GST sop likely ahead of polls in M.P., Rajasthan and Chattisgarh


MSMEs with a turnover of up to ₹5 crore may be exempted from filing returns.


The run-up to the polls in Gujarat saw a massive rejig of Goods and Services Tax (GST) rates across the board as disenchantment with the regime was at a peak. Ahead of the Assembly polls in three BJP-ruled States — Madhya Pradesh, Rajasthan and Chattisgarh — some relief for Micro Small and Medium Enterprises (MSMEs) is likely. A possible exemption from filing for firms with a turnover of up to ₹5 crore is said to be in the offing.

Senior sources in the GST Council told mediamen that during the last meeting of the Council, it was decided that rate cuts etc. were not the route to take to give relief to the MSME sector; instead exemptions from the GST ambit for firms with a turnover of upto ₹5 crore could be the way to go.

“Several States, specifically Gujarat and Delhi, have asked that exemptions be given for MSMEs with a turnover of upto ₹5 crore, whereas some other States have asked [that] the limit be for firms of upto ₹1.5 lakh,” said a source.

The decision may be announced in the next meeting of the Council on September 28 in Goa — close to polling in the three States, scheduled for the end of the year. Union Minister Arun Jaitley is expected to be back at the helm of affairs at the Finance Ministry by then. At the last meeting of the Council, Finance Minister Piyush Goyal had said all suggestions from various States should be collated and considered.

Madhya Pradesh with 26.74 lakh firms and Rajasthan with 26.87 lakh have a huge MSME presence and the any relief to the sector, currently dissatisfied with cumbersome filing procedures, would be politically important.

“Rate cuts in the context of MSMEs have been dismissed as not workable and these cuts will affect not just these units but bigger suppliers etc. Exemptions from tax and filing procedures will have a more direct impact in terms of giving relief,” said a member of the GST Council.

लोकसभा के साथ 11 राज्‍यों में विधानसभा चुनाव करा सकती है सरकारः सूत्र


इस साल के अंत में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उसे छह महीना और टालकर लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है


केंद्र सरकार अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ ही 11 राज्‍यों के विधानसभा चुनाव करा सकती है. बीजेपी सूत्रों ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, मिजोरम, छत्‍तीसगढ़ और हरियाणा जैसे राज्‍यों के चुनाव कराए जा सकते हैं. इसके लिए सभी पार्टियों की बैठक बुलाई जा सकती है. इस तरह से चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन कराने की जरूरत भी नहीं है. बता दें कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व वाली केंद्र सरकार एक देश एक चुनाव की पैरवी करती रही है.

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. वहीं ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, मिजोरम में विधानसभा चुनाव 2019 के आम चुनावों के साथ होने वाले हैं. ऐसे में मुमकिन है कि सरकार इन सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ ही करा ले. सरकार जल्द ही इस मामले में ऑल पार्टी मीटिंग बुला सकती है.

जम्‍मू कश्‍मीर में अभी किसी की सरकार नहीं है. पीडीपी बीजेपी के अलग होने के बाद से वहां पर राज्‍यपाल का शासन है. ऐसे में वहां पर भी अगले साल चुनाव कराया जा सकता है. वहीं महाराष्‍ट्र, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्‍यों में समय से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं.

अमित शाह ने विधि आयोग को एक राष्ट्र एक चुनाव पर अपना मत पत्र द्वारा स्पष्ट किया

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग को एक देश एक चुनाव से संबंधित पत्र भेजा है. सोमवार को शाह ने पत्र लिख कर समकालिक चुनाव पर भारतीय जनता पार्टी का दृष्टिकोण स्पष्ठ किया. शाह ने पत्र में लिखा, ‘हमारे देश में देखा गया है कि पूरे वर्ष, किसी न किसी महीनों किसी न किसी राज्य में चुनाव हो रहे होते हैं.’

शाह ने लिखा, ‘सामान्यतः लोकसभा के एक पांच वर्षीय कार्यकाल में, औसतन, देश में हर साल पांच से सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होते हैं और साथ ही साथ बड़ी संख्या में स्थानीय प्राधिकरणों, जो स्थानीय स्व-शासन की महत्वपूर्ण इकाइयां हैं, के चुनाव भी उस दौरान होते हैं.’

सरकारी खजाने पर पड़ता है अतिरिक्त बोझ

बीजेपी अध्यक्ष ने पत्र में लिखा की चुनावों की इस मौजूदा प्रक्रिया के परिणामस्वरूप एक ऐसी स्थिति बन जाती है जिसमें समूचा देश राष्ट्रीय स्तर पर, राज्य स्तर पर या स्थानीय अधिकारियों के स्तर पर, हर समय चुनावी मोड में ही रहता है. जिसके कारण सार्वजनिक खजाने को ऐसे आवधिक चुनावों के संचालन के लिए भारी बोझ उठाना पड़ता है. उन्होने कहा, ‘इस व्यय को पांच साल में एख साथ सभी चुनाव कराकर आसानी से कम किया जा सकता है.’

आचार संहिता से रुक जाते हैं विकास कार्य

शाह ने पत्र में लिखा कि चुनावों के समय कई सरकारी अधिकारियों का समय मूल कार्यों से हटकर चुनावों मे लग जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि चुनावों के पहले इलाके में आचार संहिता लागू हो जाती है इसके कारण विकास कार्य रुक जाता है.

शाह ने कहा कि चुनवों की तारीख लागू होने के बाद से ही तमाम राजनीतिक दल आगामी चुनावों की तैयारियों जुट जाते हैं. ऐसे में चुनावों को ध्यान में रखते हुए वह लघुकालिक और लोकलुभावन निर्णय लेने लगते हैं. जबकि निर्णय लेने का तरीका नीतिगत होना चाहिए.

आयोग और प्रतिनिधिमंडल के बीच बैठक करीब 50 मिनट चली. बैठक के बाद नकवी ने कहा कहा,

‘‘लगातार चुनाव का सिलसिला जारी रहने के चलते आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य प्रभावित होता है. इसके साथ ही चुनाव खर्च में भी बेतहाशा तेजी आती है.’’

उन्होंने कहा कि चुनाव का लगातार सिलसिला जारी रहने से वास्तविक मुद्दे पर ध्यान नहीं होता और जनता से जुड़़े विषय प्रभावी ढंग से नहीं उठ पाते. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब से देश में एक देश, एक चुनाव का माहौल बना है, तब से चुनावी प्रक्रिया के सबसे बड़े पक्षकार मतदाताओं ने इसका स्वागत किया है.

कांग्रेस एक देश एक चुनाव के पक्ष में नहीं

कांग्रेस एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव के कॉन्सेट को नकार चुकी है. पार्टी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल और सिंघवी ने हाल ही में लॉ कमीशन से कहा कि एक साथ चुनाव भारतीय संघवाद की भावना के खिलाफ है.

36 साल बाद घर लौटे गजानन्द शर्मा


गजानंद को पाकिस्तान में 2 महीने की सजा दी गई थी. लेकिन काउंसलर एक्सेस नहीं होने के कारण उन्हें 36 साल पाकिस्तान की जेल में बिताना पड़ा


जयपुर से 36 साल पहले लापता गजानंद पाकिस्तान के जेल में बंद थे. सोमवार को पाकिस्तान ने उन्हें रिहा कर दिया. रिहाई के बाद वह भारत पहुंचे. पाकिस्तान के पंजाब से भारतीय नागरिकों को लेकर एक ट्रेन वाघा बॉर्डर पहुंची है. चार महीने पहले अप्रैल में जब पाकिस्तान से उनकी भारतीय नागरिकता से जुड़े दस्तावेज वैरिफिकेशन के लिए आए थे तब उनके परिवार को उनकी जानकारी मिली.

क्या है गजानंद शर्मा की कहानी?

पाकिस्तान ने अपनी जेलों में बंद 29 भारतीय कैदियों को रिहा कर दिया है. इनमें राजस्थान के गजानंद शर्मा भी हैं. गजानंद को पाकिस्तान में 2 महीने की सजा दी गई थी. लेकिन काउंसलर एक्सेस नहीं होने के कारण उन्हें 36 साल पाकिस्तान की जेल में बिताना पड़ा.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान सरकार 14 अगस्त को पाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस के दिन 29 कैदियों को रिहा करेगा. इनमें 26 मछुआरे शामिल हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान कभी भी मानवीय मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहता.

गजानंद शर्मा को लाहौर की लखपत जेल से रिहा किया गया है. वो जयपुर में फतेह राम का टीबा नाहरगढ़ के रहने वाले हैं. 1982 में गजानंद अचानक लापता हो गए थे. उसके बाद उनका कुछ पता नहीं लगा कि वो कहां गए. दरअसल, 1982 में घर से अचानक लापता हुए गजानंद के बारे में परिजनों को उनके पाकिस्तान जेल में होने की जानकारी उस समय लगी, जब मई में पुलिस अधिकारियों ने परिजनों से गजानंद की राष्ट्रीयता की पुष्टि करने के लिए संपर्क किया.

क्या कहना है घरवालों का?

पाकिस्तानी दस्तावेजों के अनुसार गजानंद ‘फॉरनर्स एक्ट’ में वहां की जेल में बंद थे. कुछ दिन पहले विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने गजानंद शर्मा की रिहाई की घोषणा की थी. गजानंद शर्मा की पत्नी मक्खी देवी ने कहा कि पति की रिहाई सुनकर वह बहुत खुश हैं. 7 मई 2018 को उनके जिंदा होने और उनके पाकिस्तान जेल में होने का पता लगा था. उनकी रिहाई को लेकर पूरे गांव में खुशी का माहौल है.

दस्तावेज में गजानंद के गांव का पता जयपुर जिले में सामोद स्थित महार कला गांव बताया गया है. पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बहुत सालों से गजानन का परिवार जयपुर के ब्रह्मपुरी में रहने लगा है .

विजय बंसल ने ‘एससी एसटी एक्ट’ में स्वर्ण जतियों के हितों का ध्यान रखने का किया अनुरोध


देश भर में एससी-एसटी बिल के लोकसभा-राज्यसभा में पारित होने के बाद मच रहे घमासान के बीच राजस्थान के एक भाजपा विधायक ने सवर्ण समाज के हितों पर ध्यान देने की वकालत की है। भरतपुर के विधायक विजय बंसल ने सीएम वसुंधरा राजे को पत्र लिखकर कहा है कि सवर्ण समाज के हितों पर भी ध्यान दिया जाए।


जयपुर: 

एससी-एसटी बिल मामले में सवर्ण समाज का ध्यान रखने का अनुरोध पत्र में लिखा है। बंसल ने कहा कि यह पत्र व्यकितगत तौर पर लिखा गया है। कुछ लोग इस बिल का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिससे सामाजिक विषमता बढ़ रही है। ऐसे में सवर्ण समाज के हितों पर ध्यान रखा जाना सरकार का दायित्व है। समता आंदोलन समिति ने विजय बंसल से मिलकर एक ज्ञापन दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद एससी-एसटी बिल को केबिनेट के मंजूरी देने, लोकसभा व राज्यसभा में पारित कर देने से सवर्ण व ओबीसी समाज में गहरी नाराजगी है।

इस बिल में पहले से भी कानून कड़े कर दिए हैं। समिति सदस्यों ने इस बिल का विरोध करने का अनुरोध विजय बंसल से किया। समिति ने विधायकों व सांसदों को भी इस तरह के ज्ञापन दिए हैं। विजय बंसल के इस प्रयास की सवर्ण समाज, समता आंदोलन समिति का स्वागत किया है।

4 राज्यों के चुनाव परिणामों के पश्चात ही कांग्रेस महागठबंधन को गंभीरता से लेगी


कांग्रेस चाह रही है कि महागठबंधन के लिए हाथ तो फैलाया जाए लेकिन डील फाइनल न की जाए. क्योंकि कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है. इसलिए4  पार्टी एनडीए में और फूट का इंतजार कर रही है


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जयपुर के बाद अब तेलांगना के दौरे पर जा रहे हैं. 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले राहुल गांधी पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं. रविवार को जयपुर में राहुल गांधी के लिए काफी भीड़ उमड़ी, इस दौरान राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जमकर कोसा. हालांकि राहुल का प्रयास एक तरफ चल रहा है. लेकिन गठबंधन की राजनीति के लिए अभी तक सार्थक पहल नहीं हुई है. राज्यसभा में जहां विपक्ष के संख्याबल में अधिक होने के बाद भी सत्ता पक्ष का उपसभापति का चुनाव जीतना विपक्षी एकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

राहुल गांधी की तरफ से न ही कांग्रेस पार्टी की तरफ से गंभीर प्रयास किया गया. बी के हरिप्रसाद को चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ मैदान में उतार दिया गया. इस दौरान आपसी सामंजस्य बैठाने की रणनीति का अभाव साफ दिखाई दिया. आम आदमी पार्टी (आप) के आरोप को अगर अहमियत न भी दिया जाए तो भी ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस वॉक ओवर देने के लिए तैयार बैठी थी.

कैसे होगा विपक्ष का एका

विपक्षी दलों की एकजुटता न होने की वजह है, गिला और शिकवा, सत्ता से कोसों दूर होने के बाद भी अहम की लड़ाई पीछे नहीं छूट रही है. विपक्षी दल इस बात के लिए सहमति नहीं बना पा रहे हैं कि किस बात पर सहमत होना है. कुल मिलाकर मोदी विरोध ही उनके जुड़ाव का केंद्र है. लेकिन इस बात पर भी आपस में मतभेद है.

कांग्रेस के खेमों से बीजेपी नीतीश कुमार को अपने साथ लाने में कामयाब रही. वहीं टीआरएस भी बीजेपी के साथ खड़ी दिख रही है. बीजेपी सबसे बात करने में गुरेज नहीं कर रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को नवीन पटनायक से बात करने में कोई बुराई नहीं दिखाई दी. राजनीति में अमित शाह की चाल का जवाब देना कोई बड़ी बात नहीं है. बशर्ते यदि कोई पहल करे. कांग्रेस में इस पहल की कमी साफ दिखाई दे रही है. राहुल गांधी ने वर्किंग कमेटी की बैठक में कहा कि वो गठबंधन के लिए एक कमेटी का गठन करेंगें, लेकिन अभी तक कमेटी का इंतजार हो रहा है.

कॉरडिनेशन कमेटी की जरूरत

गठबंधन के लिए यूपीए में कॉरडिनेशन कमेटी की मांग उठ रही है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि एक कमेटी बनाने की जरूरत है. जाहिर है इसके लिए राहुल गांधी को पहल करनी चाहिए, कि एक ऐसी कमेटी बनाई जाए जिसमें मौजूदा घटक दल के नेता भी हों, जिससे किसी को शिकायत का मौका ना मिल सके. क्योंकि वक्त की कमी है.

दूसरे कांग्रेस की अपनी ताकत भी घटी है. जिससे छोटे दल कांग्रेस को ज्यादा अवसर देने से बच रहे हैं. समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव का हाल में दिया गया बयान जाहिर करता है कि वो कांग्रेस को यूपी में ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं है. अगर यूपीए की ओर से अधिकारिक कमेटी बना दी जाती है. तो कांग्रेस को भी आसानी रहेगी, क्योंकि इसमें पार्टी का नुमाइंदा रहेगा जो कांग्रेस के हित का ध्यान रख सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी कहा है कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा. लेकिन इसके लिए पहल कांग्रेस को ही करना पड़ेगा, क्योंकि 2004 में भी पहल सोनिया गांधी ने ही की थी.

सोनिया की टीम में अनुभव

2004 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने कई बड़े पहल किए थे. रामविलास पासवान से मिलने वो पैदल चलकर उनके घर पहुंचीं थी. सोनिया गांधी के कार्यालय से सिर्फ यह पूछा गया कि पासवान घर पर हैं या नहीं, हालांकि दोनों का घर एक-दूसरे से सटा हुआ है. सोनिया तब मायावती से भी मिलीं थी.

राजीव गांधी के 1989 में हार का कारण बने वी पी सिंह से भी उन्होंने सहयोग लिया था. राजीव गांधी के धुर विरोधी रहे आरिफ मोहम्मद खान से वो मिलीं और उन्हें पार्टी में शामिल होने का न्योता भी दिया. यह बात दीगर है कि आरिफ उसी शाम बीजेपी में शामिल हो गए. शायद वो इंडिया शाइनिंग के विपरीत चल रही हवा के रूख को भांप नहीं पाए. लेकिन रामविलास पासवान ने इसे पहचान लिया था.

तो सार यह है कि सोनिया गांधी की टीम ही पर्दे के पीछे काम कर रही थी. राहुल गांधी भी इस टीम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं. राजनीति में सत्ता या अनुभव ही काम आता है. कांग्रेस के पास न अब सत्ता की हनक है और न ही टीम राहुल में धुरंधर दिखाई दे रहे हैं.

नहीं बन पा रही धुरी

विपक्षी एकता का राग सभी अलाप रहें हैं लेकिन उनमें इच्छाशक्ति की कमी साफ दिखाई दे रही है. कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा है जो इस एकता की ध्रुवी बन सके. सभी राजनीतिक दल शह और मात का दांव खेल रहे हैं. किसका दांव लगेगा यह कहना मुश्किल है. लेकिन इस बार ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि वो किंग मेकर की जगह किंग बन सकते हैं.

2004 की तरह अब न हरिकिशन सिंह सुरजीत हैं ना ही वी पी सिंह. राहुल गांधी के सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से मरासिम अच्छे हैं. लेकिन न लेफ्ट में वो ताकत बची है, न ही हरिकिशन सिंह सुरजीत वाला कद उनके पास है. विपक्ष के पास असरदार नेताओं में शरद पवार ही हैं. जिनका मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी से दोस्ताना रिश्ते हैं. उनके शिवसेना से भी संबंध अच्छे हैं. शरद पवार लगातार लोगों से मिल भी रहे हैं, हाल में वो मायावती से भी मिले थे. राहुल गांधी बड़े दल के अध्यक्ष हैं. उनके ऊपर पार्टी की जिम्मेदारी है. ऐसे में उनको किसी पर भरोसा करना पड़ेगा क्योंकि अकेले यह सब करना आसान नहीं है.

3 राज्यों के विधानसभा के चुनाव

जल्द ही 3 महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि इन तीनों राज्यों में उसे सत्ता हासिल हो सकती है. ऐसे में कांग्रेस की कीमत बढ़ेगी और पार्टी की यूपी, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में मोलभाव की क्षमता बढ़ेगी. कांग्रेस चाह रही है कि गठबंधन के लिए हाथ तो फैलाया जाए लेकिन डील फाइनल न की जाए. क्योंकि कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है. इसलिए पार्टी एनडीए में और फूट का इंतजार कर रही है.

तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट खत्म

राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से पीछे हटने से तीसरे मोर्चे की आवाज दब गई है. राहुल गांधी से कई दल सहज नहीं थे. राहुल के इस फैसले के बाद से कांग्रेस की गोलबंदी का काम आसान हुआ है. लेकिन अधिकृत कमेटी या व्यक्ति न होने से हर पार्टी सीधे राहुल गांधी से बात करना चाहती है. जिससे समस्या खड़ी हो रही है. समय निकलता जा रहा है. बीजेपी जहां चुनाव के लिए तैयार है. वहीं कांग्रेस अभी गठबंधन के पेंच में उलझी है.

 

Meerut resident detained for spying in Rajasthan

 

A man allegedly active in several Pakistani WhatsApp groups has been detained in Rajasthan’s Banswara district.

Ayan, a resident of Meerut in Uttar Pradesh, had been staying in a hotel for the last few days after coming to Rajasthan in search of a job, Banswara Superintendent of Police Kaluram Rawat told PTI.

He was working in a garment factory.

“When his mobile phone was checked during routine checking, he was found active in several groups operated from Pakistan,” said Rawat.

SHO, Kotwali police station, Shaitan Singh said he was interrogated jointly by the local police and the Anti-Terrorist Squad.

“He came in touch with the owner of the factory through WhatsApp,” he said.

‘वसुंधरा वापस जाओ’, ‘वसुंधरा झालावाड़ छोड़ो’ : भाजपा कार्यकर्ता


झालावाड़ में पार्टी कार्यकर्ताओं ने बाइक रैली निकाली. इस रैली में कार्यकर्ताओं ने तख्ती थाम रखी थी जिस पर ‘वसुंधरा वापस जाओ’, ‘वसुंधरा झालावाड़ छोड़ो’ लिखा हुआ था


राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अपने विधानसभा क्षेत्र झालावाड़ में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इसके बाद भी मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि उनकी पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव में कुल 180 सीटों पर जीत दर्ज करेगी.

बीजेपी कार्यकर्ता प्रमोद शर्मा के नेतृत्व में नौ अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन के वर्षगांठ के मौके पर झालावाड़ में पार्टी कार्यकर्ताओं ने बाइक रैली निकाली. इस रैली में कार्यकर्ताओं ने तख्ती थाम रखी थी जिस पर ‘वसुंधरा वापस जाओ’, ‘वसुंधरा झालावाड़ छोड़ो’ लिखा हुआ था.

इस रैली में एक हजार से ज्यादा कार्यकर्ता 500 मोटरसाइकिल से झालावाड़ और इसके पड़ोसी क्षेत्र झालरापाटन शहरों के बाजारों से गुजरे.आयोजकों ने बताया कि कार्यकर्ता भ्रष्टाचार और झालावाड़ में विकास कार्य नहीं होने को लेकर विरोध कर रहे थे.

बीजेपी के झालावाड़ में जिलाध्यक्ष ने कार्यकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर वसुंधरा राजे के कार्यकाल में झालावाड़ में विकास के काफी काम किए गए हैं.

नमस्कार यह संयुक्त राष्ट्र का हिन्दी बुलेट्न है …


भारत के लिए इस पल को ऐतिहासिक माना जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 जुलाई से साप्ताहिक आधार पर हिंदी समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया है. फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर प्रसारण किया जा रहा है. प्रयोग सफल रहने पर इसके नियमित किया जाएगा.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ख़ुद यह जानकारी सार्वजनिक की है. मीडिया के प्रतिनिधियों से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा का दर्ज़ा दिलाने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं. उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रसारित हिंदी समाचार बुलेटिन 10 मिनट का है. इस बुलेटिन के प्रसारण की ज़िम्मेदारी भारत सरकार उठा रही है. इस पर आने वाला ख़र्च भी वही वहन कर रही है.

उन्हाेंने बताया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा बनाने का जहां तक सवाल है तो इस वैश्विक संस्था के 193 में 129 सदस्य देशों ने इसका समर्थन किया है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र को यह भरोसा भी दिया है कि हिंदी को अधिकृत भाषा का दर्ज़ा देने पर आने वाला पूरा खर्च भारत सरकार उठाने के लिए तैयार है. भारत की तरह जर्मनी और जापान भी जर्मन और जापानी भाषाओं को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा का दर्ज़ा दिलाने और उस पर आने वाला खर्च उठाने को तैयार हैं.

U.S. cuts military training with Pak


Pakistani officials openly threat ‘America’ that the move will push their military to further look to ‘China or Russia’ for training


President Donald Trump’s administration has quietly started cutting scores of Pakistani officers from coveted training and educational programmes that have been a hallmark of bilateral military relations for more than a decade, U.S. officials say.

The move, which has not been previously reported, is one of the first known impacts from Mr. Trump’s decision this year to suspend U.S. security assistance to Pakistan to compel it to crack down on Islamic militants.

The Pentagon and the Pakistani military did not comment directly on the decision or the internal deliberations, but officials from both countries privately criticised the move.

U.S. officials, speaking on the condition of anonymity, said they were worried the decision could undermine a key trust-building measure. Pakistani officials warned it could push their military to further look to China or Russia for leadership training.

The effective suspension of Pakistan from the U.S. government’s International Military Education and Training programme (IMET) will close off places that had been set aside for 66 Pakistani officers this year, a State Department spokesperson said. The places will either be unfilled or given to officers from other countries.

Dan Feldman, a former U.S. special representative for Afghanistan and Pakistan, called the move “very short-sighted and myopic”. “This will have lasting negative impacts limiting the bilateral relationship well into the future,” Mr. Feldman said.

Long term dividends

The State Department spokesperson, speaking on the condition of anonymity, said the IMET cancellations were valued at $2.41 million so far. At least two other programmes have also been affected, the spokesperson said.

It is unclear precisely what level of military cooperation still continues outside the IMET programme, beyond the top level contacts between U.S. and Pakistani military leaders.

The U.S. military has traditionally sought to shield such educational programmes from political tensions, arguing that the ties built by bringing foreign military officers to the U.S pay long-term dividends.

For example, the U.S. Army’s War College in Carlisle, Pennsylvania, which would normally have two Pakistani military officers per year, boasts graduates including Lieutenant General Naveed Mukhtar, the current director-general of Pakistan’ powerful spy agency, the Inter-Services Intelligence agency (ISI).

The War College, the U.S. Army’s premier school for foreign officers, says it has hosted 37 participants from Pakistan over the past several decades. It will have no Pakistani students in the upcoming academic year, a spokeswoman said.

Pakistan has also been removed from programmes at the U.S. Naval War College, Naval Staff College and courses including cyber security studies.