समुदाय विशेष को खुश करने के लिए हिंदू त्योहार का हो रहा दमन : बीजेपी विधायक मनीष जायसवाल

झारखंड विधानसभा के बजट सत्र का 14वां दिन हजारीबाग की रामनवमी में लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर विपक्ष के हंगामे के साथ शुरू हुआ। सदन की कार्रवाई शुरू होने से पहले सदन के बाहर भाजपा के विधायकों ने जमकर हंगामा किया। विधायकों ने हजारीबाग की रामनवमी को विश्व प्रसिद्ध बताते हुए वहां लगाए जा रहे प्रतिबंधों पर हंगामा करते हुए कहा यह सरकार गूंगी-बहरी सरकार है जो तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। इसके बाद सदन की कार्रवाई शुरू हुई। सदन के भीतर भाजपा के विधायकों ने जय श्री राम के नारे लगाए। इसके बाद सदन 12 बजे तक स्थगित कर दिया गया। 12 बजे के बाद सदन शुरू हुआ। इसके बाद भी भाजपा विधायक हजारीबाग रामनवमी पर निर्णय लेने की मांग कर रहे हैं। सदन दो बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।

रामनवमी को लेकर सदन के बाहर विपक्ष का हंगामा - Dainik Bhaskar

डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, झारखंड ब्यूरो – 21 मार्च :

झारखंड विधानसभा मंगलवार (21 मार्च 2023) को जय श्रीराम के नारों से गूँज उठा। बीजेपी विधायक मनीष जायसवाल ने सदन में अपना कुर्ता फाड़ लिया। बनियान पर लिखा ‘जय श्रीराम’ दिखाया। वे हजारीबाग में रामनवमी जुलूस को लेकर लगाई गई पाबंदियों का विरोध कर रहे थे। जायसवाल हजारीबाग सदर की सीट से विधायक हैं।

विधानसभा में भाजपा विधायक ने हेमंत सरकार को घेरते हुए कई तीखे सवाल किए। उन्होंने कहा कि रामनवमी को लेकर हजारीबाग में कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। डीजे पर रोक लगा दी गई। फैसले के खिलाफ आवाज उठाने वाले 5 हजार लोगों पर धारा 107 के तहत मुकदमा कर दिया गया है। क्या इस राज्य में हिंदू होना अपराध है? क्या हम तालिबान में रहते हैं?

हजारीबाग के विधायक मनीष जायसवाल ने कहा कि ये गूंगी बहरी सरकार है और केवल वोट बैंक का राजनीति कर रही है। दो चीजें स्पष्ट हैं पहला कि ये राम के नाम पर कांग्रेस का वोट साफ करने की कोशिश कर रही है। दूसरा एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए हिंदू त्योहार का दमन कर रही है। सरस्वती पूजा में भी ऐसा हुआ था। अब रामनवमी में भी ऐसा किया जा रहा है। कल हजारीबाग डीसी ने प्रेस कांफ्रेंस किया, जहां उन्होंने कहा कि लाउडस्पीकर अलाउड है। ताशा अलाउड है। ढ़ोल-बाजे अलाउड हैं। आप गाना भी बजा सकते हैं। लेकिन चलंत डीजे नहीं बजा सकते हैं। जब आपने गाना बजाने की अनुमति दे दी है तब आपको डीजे बजाने देने से क्या चिढ़ है। कहीं न कहीं यह दूसरे समुदाय को खुश करने की कोशिश है। ये हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं।

हजारीबाग की जनता रामनवमी को लेकर काफी संवेदनशील है। हजारीबाग के लोगों के अंदर आग सी सुलग रही है। चूंकि आपने हिंदुओं की भावना के साथ खेलने का काम किया है। जब तक सदन चल रहा है तब तक हम लोकतांत्रिक तरीके से रास्ता निकालने का प्रयास करेंगे।

विधायकों ने हजारीबाग में आयोजित होने वाले हैं विश्व प्रसिद्ध रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान डीजे नहीं बजाने और वृहद स्तर पर पर जुलूस न निकालने के सरकार के आदेश को अविलंब रद्द करने की बात कही। इस पर विधायक रणधीर सिंह ने कहा कि भगवान श्री राम के ऊपर राजनीति नहीं होनी चाहिए। जब से झारखंड में जेएमएम कांग्रेस और राजद के गठबंधन वाली सरकार आई है तब से हर वर्ष हजारीबाग में आयोजित होने वाले रामनवमी के जुलूस पर अलग-अलग तरह से प्रतिबंध लगाकर हिंदुओं को दबाने का प्रयास किया जा रहा है, जो भारतीय जनता पार्टी कभी उन्हें नहीं देगी।

24 जगहों पर ED के छापे, 1 करोड़ कैश, विदेशी करेंसी, ED ने कहा- 600 करोड़ की लेनदेन के सबूत मिले

केन्द्रीय एजेंसी ने कहा कि लालू प्रसाद के परिवार और उनके सहयोगियों के लिए रियल एस्टेट और अन्य क्षेत्रों में किए गए निवेशों का पता लगाने के लिए जांच की जा रही है। ईडी ने शुक्रवार को लालू प्रसाद के पुत्र व बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के दिल्ली स्थित परिसर सहित परिवार के सदस्यों के विभिन्न परिसरों पर छापा मारा। ईडी ने बयान में कहा, ईडी ने जॉब स्कैम के लिए रेलवे भूमि में 24 स्थानों पर तलाशी ली, जिसके परिणामस्वरूप 1 करोड़ रुपए की बेहिसाब नकदी, यूएस $ 1900 सहित विदेशी मुद्रा, 540 ग्राम सोना बुलियन और 1.5 किलो से अधिक सोने के आभूषण की बरामदगी हुई है।

ईडी छापे में बरामद...- India TV Hindi

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, नई दिल्ली/ पटना – 11 मार्च :

ईडी की कार्रवाई के बाद लालू यादव और उनके परिवार के सदस्यों की मुश्किलें बढ़ती हुए नजर आ रही हैं। शुक्रवार को ईडी के द्वारा पटना, रांची, दिल्ली, मुंबई के 24 जगहों पर छापेमारी की गई। इस दौरान दिल्ली के एनसीआर में तेजस्वी यादव जिस घर में रहते हैं वहां और अन्य जगहों पर भी छापेमारी की. ईडी के द्वारा जारी बयान में करोड़ों की संपत्ति का जिक्र किया गया है।

लैंड फॉर जॉब मामले में लालू यादव और उनके परिवार के सदस्यों के यहां शुक्रवार की सुबह ही ईडी ने देशभर में 24 जगहों पर छापेमारी की। पटना में आरजेडी के पूर्व विधायक अबू दोजान और दिल्ली में तेजस्वी यादव जिस घर में रहते हैं वहां भी छापेमारी की गई। रेड के बाद ईडी द्वारा प्रेस रिलीज जारी कर इसकी विस्तृत जानकारी दी गई। ईडी ने जानकारी दी है कि उन्हें पहले उनके सूत्रों ने इनपुट दी जिसके आधार पर कार्रवाई की गई है।

इस बीच केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने शनिवार को आरोप लगाया कि जांच एजेंसियों की कार्रवाई को लेकर बीजेपी नीत सरकार के खिलाफ विपक्षी दल साथ आ रहे हैं जो महा ठग बंधन है। ठाकुर ने कहा, सभी का अपना भ्रष्टाचार का मॉडल है। अब जब कार्रवाई हो रही है तो सब साथ आ रहे हैं. यह महागठबंधन नहीं है बल्कि महा ठग बंधन है।

मंत्री अनुराग ठाकुर ने केंद्र सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाने के लिए करने का आरोप लगाने के लिए आम आदमी पार्टी (आआपा ), भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को आड़े हाथ लिया।

दिल्ली में आबकारी नीति घोटाले के संदर्भ में ठाकुर ने कहा कि आप नेता मनीष सिसोदिया मामले में मुख्य आरोपी हो सकते हैं, लेकिन मुख्य कर्ताधर्ता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं. ठाकुर ने कहा, वी कौन है? किसने संदेश भेजा था कि ‘वी’ को पैसा चाहिए? अरविंद केजरीवाल आपका विजय नायर से क्या रिश्ता है? क्या आबकारी नीति बनाये जाते समय विजय नायर मौजूद था?

बीआरएस की नेता के. कविता द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन करने पर चुटकी लेते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पिछले नौ साल में तेलंगाना की पार्टी ने केवल एक महिला के सशक्तीकरण के लिए काम किया।

मंत्री ठाकुर ने कहा, जब भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए तो आपको महिला सशक्तीकरण की बात सूझ रही है। तेलंगाना में लूट काफी नहीं थी, जो आप दिल्ली में आए हैं। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के खिलाफ जांच पर ठाकुर ने कहा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री का एक विशेष नारा था, आप मुझे भूखंड दीजिए, मैं आपको नौकरी दूंगा।

ढोल गँवार सूद्र पसु नारी – 2

तुलसीदासजी रामायण में लिखते हैं कि ढोल गंवार सुद्र पसु नारी, सकल ताडऩा के अधिकारी…। इस कथन को लेकर बहुत से लोगों ने तुलसीदासजी पर शुद्रों और नारियों के प्रति भेदभाव और असम्मान की भावना रखने का आरोप लगाया। कहा कि वे तो शुद्रों और नारियों को डांटने- फटकराने और प्रताडि़त करने का पक्ष लेते हैं। पर वास्तव में  देखें तो तुलसीदास जी नहीं बल्कि इस चौपाई का अपने हिसाब से मतलब निकालने वाले लोग गलत है। दरअसल ताडऩा का अर्थ किसी को देखते रहना, सीख, शिक्षा या संरक्षण देने के अर्थ में भी लिया जाता है। और संतों की व्याख्या के अनुसार तुलसीदास जी यहां यही कहना चाहते हैं कि ढोल, गंवार, शुद्र और नारी को शिक्षा व सीख देने के साथ उनके कार्यों को देखते रहना चाहिए। वरना दोष उनका नहीं , बल्कि उनके संरक्षकों का होगा। जैसे शादी के बाद यदि बहु कोई गलत काम करती है तो उलाहना आज भी उसकी मां को ही दिया जाता है कि उसने अच्छी सीख नहीं दी। इसी तरह ढोल ठीक नहीं बजेगा तो दोष ढोल वादक का होगा। गवांर गवांरुपन दिखाए तो दोष उसके शिक्षक का होगा और शुद्र यानी सेवक सलीका नहीं रखे और पशु भी ठीक नहीं है तो दोष उनके मालिकों का ही माना जाएगा कि उनकी सीख में कोई कमी है। इसलिए तुलसीदासजी की चौपाई का अर्थ यही निकालना चाहिए कि वे ढोल, गवांर, सेवक, पशु व नारी को शिक्षा और संरक्षण पाने का अधिकारी मानते हैं। ना कि प्रताडऩा का।

John Ray Quote: “A spaniel, a woman, and a walnut tree, the more they're  beaten

पीयूष पयोधि, धर्म/संस्कृति देस, डेमोक्रेटिक फ्रंट, बिहार :

                   भारत की इस आधार पर लानत मलानत करने वाले कि यहां मानस में स्त्री को ताड़ना के काबिल ही बताया गया है, स्वयं यह नहीं बताते कि उनके यहां यह क्यों कहा गया कि-

A Spaniel, A Woman,

And a walnut tree

The more you beat them,

The better they be

                        इसलिए इस तरह की पंक्तियों के आधार पर सांस्कृतिक या धार्मिक श्रेष्ठता के दावे उपहासास्पद लगते हैं। बल्कि इस अंग्रेजी उक्ति में ‘बीट’ शब्द के बारे में कोई अर्थ-विषयक भ्रम नहीं है।

                        मैं पश्चिमी आस्था वाले ग्रंथ के ‘महाप्रयाण’ (Exodus) से उद्धृत करूं: ‘When a man sells his daughter as a slave, she will not be freed at the end of six years as the men are. If she does not please the man who bought her, he may allow her to be bought back again.’

                        दासों को मारने के बारे में वहां क्या कहा गया : ‘When a man strikes his male or female slave with a rod so hard that the slave dies under his hand, he shall be punished. If, however, the slave survives for a day or two, he is not to be punished, since the slave is his own property. ‘

                        इसी में ईश्वर न केवल बेटियों को दासी बनाकर बेचा जाने को ही संस्वीकृति देता है बल्कि यह भी बताता है कि इसे कैसे किया जा सकता है।

                        तोराह में तो कोई औरत पति की अनुमति के बिना कोई संकल्प तक नहीं ले सकती। ‘जिन शहरों को भगवान की कृपा से तुम जीत लेते हो, उनके सभी आदमियों और बच्चों को मार डालो, लेकिन औरतों को अपने भोग के लिए रखो।’ (Deuteronomy 20:13-15) ‘यदि कोई औरत बलात्कार का शिकार होने पर भी चिल्लाती नहीं है तो उसे मार डाला जाए।’ (Deuteronomy 22:23- 24) कोई बलात्कारी अपनी ‘शिकार’ को उसके पिता से 50 शेकेल में खरीद सकता है। (Deuteronomy)

इसलिए तुलसी की पंक्ति के आगे सांस्कृतिक श्रेष्ठता के दावे ठहर नहीं सकते।

एक्लेसिआस्टिकस की तरह सुन्दरकांड नहीं कह रहा है कि ‘sin began with a woman and thanks to her we all must die.’ (25:18, 19, 33)

                        जेफर्सन डेविस, जो अमेरिका के कान्फेडरेट राज्यों के अध्यक्ष थे, ने कहा था कि दास प्रथा सर्वशक्तिमान ईश्वर के द्वारा आदेशित व्यवस्था है। यह बाईबल में संस्वीकृत है- ‘दोनों टेस्टामेंटों में- जिनेसिस से लेकर रिवीलेशन तक- यह सभी युगों में अस्तित्व में रहा है।’

                        एक अन्य पादरी अलेक्जेन्डर कैंपबेल ने कहा कि बाईबल में दास प्रथा को वर्जित करने वाला एक छन्द नहीं है, किंतु उसे नियम और विधान में बांधने वाले ढेरों छंद हैं। इसलिए दास प्रथा गलत नहीं है।

                        जिस समय ब्रिटेन और अमेरिका में दास प्रथा का दौर था, उस समय उसे जीसस और बाईबल के संदर्भों से उचित ठहराया जाना आम था।

तो बात इसकी नहीं है कि इन पंक्तियों को उद्धृत करके धर्मांतरणकारी अपने बहुत बहुत बड़े गढ्ढे छुपा पायेंगे।

फिर भी कई लोग तो मानस की इन पंक्तियों को जस्टिफाई करने के लिये और भी बड़ी जुगत भिड़ाते देखे जाते हैं।

                        बड़े-बड़े पांडित्य के बोझ से ये पंक्तियां झुकी जाती हैं। एक सज्जन ने ये पांच वर्ग देखे और इनके ठीक ऊपर पंचतत्वों की भी चर्चा देखी। गगन समीर अनल जल धरनी को उन्होंने ढोल गंवार शूद्र पशु नारी से जोड़ दिया। उसी क्रम में। अब गगन ढोल बन गया। यह साम्य एकदम अटपटा भी नहीं है। ढोल के भीतर शून्य है और शून्य में स्वन है। धरनी को नारी से जोड़ना भी सहज लगता है। नारी धरित्री तो है ही। लेकिन बौद्धिक कसरत तो समीर को गंवार से, अनल को शूद्र से, जल को पशु से जोड़ने में करनी पड़ती है और वह तमाम प्रज्ञा-प्राणायाम के बावजूद कोई बहुत कन्विसिंग नहीं जान पड़ती। आखिरकार समीर गंवार कैसे हो सकता है। मारुति के अध्याय में मरुत गंवार ? अनल को शूद्र कहने का एक प्रगतिशील अर्थ तो संभव है कि जो सेवा करता है उसके भीतर एक अग्नि धधका करती है। वह अग्निधर्मा है, वह आलोकधन्वा है। लेकिन इन विशारद ने उसे इन अर्थों में तो लिया नहीं । जल को पशु कहना भी विश्वसनीय नहीं जान पड़ता। फिर पंच तत्वों का ताड़ना से क्या रिश्ता ? बौद्धिक जिमनास्टिक्स में ताड़ना का एक संस्कृत अर्थ घर्षण ले लिया गया। अग्नि तो घर्षण से पैदा हुई ही । गगन लेकिन बिग बैंग से हुआ। जल और समीर तो इतने प्रत्यक्षतः घर्षणपरक नहीं लगते ।

तो रैशनल बात और रैशनलाइजिंग बात का फ़र्क़ दिख जाता है। ज़रूरत रैशनल बात की है।

                        जो लोग ताड़ना का अर्थ पिटाई या प्रताड़ना से लगाते है, वे अवधी समझना तो खैर छोडें, सुन्दरकांड के उस प्रसंग को भी नहीं समझते जिसमें यह पंक्तियां प्रयुक्त हुई है। इन पंक्तियों का संदर्भ यह है कि राम समुद्र से रास्ता मांग रहे हैं। वे विभीषण की सलाह पर चल रहे हैं , हालांकि लक्ष्मण की राय किंचित् भिन्न है । विनय करने के खिलाफ है। तीन दिन बीत जाने पर भी जड़ जलधि नहीं पसीजता। तब राम “सकोप” बोलते है कि बिना भय के प्रीति नहीं होती। शठ के साथ विनय का कोई अर्थ नहीं। “ऊसर बीज भए फल जथा” । वे लक्ष्मण को आदेश देते हैं कि “लछिमन बान सरासन आनू”- कि वह उनके धनुष बाण लेकर आये ताकि वे सौषौं बारिधि – समुद्र को सुखा दें। फिर राम के प्रत्यंचा तानते ही समुद्री जीव जन्तु सब अकुलाने लगते हैं। राम समुद्र को दंड देने को प्रस्तुत हैं।

                        अब समुद्र प्रकट होता है वह उन्हें बताता है कि वह जड़ है। वह उन्हें उनकी मर्यादा की भी याद दिलाता है लेकिन यह सब वह राम के आशंकित दंड के परिहार के लिये कहता है यदि उसका लक्ष्य दंड के आमंत्रण का होता तो वह तो राम पहले ही करने को सन्नद्ध हो चुके थे। उसका अभिप्रेत तो उस सन्नद्धता का निवारण है।

                        यदि वह “सकल ताड़ना के अधिकारी” में प्रयुक्त ताड़ना को दंड के अर्थ में लेता कि वह दंडनीय है, तो वह राम की सन्नद्धता को ही जस्टिफाई कर रहा होता। कि चलो हमें पीट लो। हम तो पिटने के ही लायक हैं। लेकिन वह श्रीराम को उनकी उस मनोदशा से dissuade करना चाहता है। इसलिये यह कहना कि इन वर्गों के माध्यम से वह स्वयं को भी पिटाई योग्य मानना बताना चाह रहा है, प्रसंग के एकदम , उलटा पड़ता है।

                        कई बार मुझे यह भी संदेह होता है कि इस पंक्ति में यदि ताड़ना को दंड के अर्थ में ले रहा होता तो वह अपने समुद्र को किस स्थान, किस श्रेणी में रखता । क्या समुद्र एक ढ़ोल है ? नहीं। क्या समुद्र गंवार है ? विभीषण उसे “प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि” कहते हैं? इसी कुलगुर शब्द से ही ‘शूद्र’ की कोटि भी निराकृत होती है। क्या समुद्र पशु है? समुद्री जीव- जन्तु उसमें है, लेकिन वह उनसे अधिक है और नारी तो वह है नहीं।

                        तो वह इन सब वर्गों के अप्रासंगिक नाम गिनाता ही क्यों है? क्या वह राम का ध्यान भटकाना चाहता है? क्या वह यह कहना चाहता है कि पिटाई के अधिकारी तो ये सब लोग है, मैं नहीं? क्या यह वह चतुराई है जो अपने को दोष मुक्त करने के लिये दूसरे को प्रस्तुत कर देती है? क्या अपराध की अन्याक्रांति की यह कोशिश राम को भरमा पायेगी ? तब क्या समुद्र राम के दंड के आतंक से इतना अकबका गया है कि आंय बांय सांय बके जा रहा है? राम उससे पूछ न लेंगे कि औरों की छोड़ो, अपनी कहो। फिलहाल तो राम वैसे ही कुपित हैं। ऐसे में समुद्र द्वारा यह कहने की थोड़ी सी कोशिश कि दंड का भागी या पात्र मैं नहीं, कोई और है तो राम के क्रोधानल को और भड़का देगी। तो समुद्र दंड के निवारणार्थ ऐसी कोशिश, राम के तत्सामयिक मूड को देखते हुए, करने का जोखिम मोल नहीं ले सकता।

तब इसका इस उक्ति का प्रसंग की संगति में अभिप्रेत अर्थ क्या है?

                        इन वर्गों के विरुद्ध किसी भी तरह की नकारात्मकता समुद्र को उनके ब्रेकिट में नहीं ले जा सकती। वह अपना दोष भुलाने के लिये दूसरे के सर मढ़ने जैसी चेष्टा होगी। समुद्र इनके ब्रेकिट में तभी आ सकता है जब वह इनके बारे में कुछ सकारात्मक बोल रहा हो। तब वह कह सकता है कि जैसे ये सब हैं, वैसा ही मैं भी हूं। जैसे तुम इन सबका ध्यान धरे हो, वैसे मेरा भी ध्यान धरो। गुह, निषाद, केवट, शबरी को प्रेम करने वाले राम के सामने वह गंवार और शूद्र को पीटने के लिये कहेगा और खुद पिटाई न खा जायेगा? जटायु को मुक्ति देने वाले और “बानर भालु बरूथ” की सेना बनाने वाले राम के सामने वह पशु की पिटाई की बात करेगा और खुद पिट न जायेगा? सीता तो छोड़ें जो कैकेयी के विरुद्ध भी ऐसा एक शब्द नहीं बोलने की सावधानी रखते हैं जो उसके मन को दुखाये, उन राम के सामने वह नारी को ताड़ना का अधिकारी कह जायेगा और बचकर चला जायेगा। कम से कम इस चौपाई को जिस संदर्भ में प्रयुक्त किया गया है, वहां नकारात्मक अर्थ की गुंजाइश किसी तरह नहीं दिखती। समुद्र तो एक सीधी सी बात कह रहा है। वह चीजों की अंतर्भूत प्रकृति की बात कर रहा है। ‘प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही’ में शिक्षा की बात है, संस्कृति की बात है । फिर वह यह भी कहता है : मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही। किंतु मर्यादा भी आपकी ही बनाई हुई है। मर्यादा यानी चीजों का स्वभाव।

                        यह प्रकृति और संस्कृति का द्वन्द्व है। इसे रेखांकित करते हुये समुद्र अचानक जातिभेदी या वर्णभेदी या मेल शोविनिस्ट या पशु विरोधी बात क्यों करने लगेगा ? वहां तो कोई ऐसा पाजिटिव अभिप्राय होना चाहिये जो राम की क्रोधाग्नि को शीतल करे। राम एक आधुनिक युवक हैं- उनकी संवेदनायें सर्वग्राही और सर्वस्पर्शी है। उनके सामने किसी तरह के धृष्ट पूर्वाग्रह की बात कहने का दुसाहस कोई साधारण समय में नहीं कर सकता, तब की तो बात ही अलग है जब राम एक “फाउल मूड” में हों।

                        तुलसी जब ‘ढोल गवार सूद्र पसु के अधिकारी’ बोलते हैं तो उसमें प्रयुक्त ‘ताड़ना’ शब्द का अर्थ संस्कृत शब्द कोषों से निकालने की जगह उस अवधी भाषा से निकालना चाहिए जिसमें रामचरितमानस लिखा गया। मैं जब लखनऊ गया तो वहां मैंने एक वृद्धा मां को अपनी बेटी को- जो मायके बाल-बच्चों समेत अपनी मां से मिलने आई थी- विदा के वक्त यह कहते देखा कि : बाल बचियन को ताड़ियत रहियो । उसके कहने के लहजे से मैं जो समझा वह शायद यह था कि टेक केअर ऑफ द चिल्ड्रनइस ताड़ना में कंसर्न है, इस ताड़ना में सलाह है और सद्भाव भी ।

                        लेकिन जिन लोगों ने मॉनियर विलियम्स का संस्कृत- अंग्रेजी के शब्दकोष, शब्दार्थ- कौस्तुभ आदि को पढ़ा है वे इस लोक-परंपरा से निःसृत अभिव्यक्ति के पास नहीं पहुंच सकते। समुद्र वैसे भी डरा हुआ है। उसके मनोभाव के अनुकूल है कि वह भगवान से कहे कि वह ध्यान रखने के काबिल है, ‘केअर’ करने के काबिल है। विशेष रूप से देखे जाने के काबिल है। वह इसलिए कि उसके भीतर भी जीव-जन्तु रहते हैं। उनके ऊपर अत्याचार न हो। उसकी एक जलवायुगत पर्यावरणगत भूमिका है। उसकी अनदेखी न की जाये। यदि पीटना ही उसका अभिप्रेत होता तो ‘ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी’ से उसे क्या सहायता मिल रही थी क्योंकि वह तो विप्र रूप रखकर आया था? विप्र रूप का तुलसी हनुमान-विभीषण प्रसंग में भी उपयोग कर चुके हैं : ‘बिप्र रूप धरि बचन सुनाये।’ इसलिए विप्र का रूप रखकर शूद्र की बात करने का कोई अर्थ नहीं।

                        समुद्र स्वयं को राम के सामने एक ऐसे व्यक्ति की तरह पेश करता है जो विशेष अवधान के लायक है। विशेष खातिर तवज्जो के लायक। बच्चों की देखभाल करते रहना, यह भाव अवधी ‘ताड़ियत रहियो’ में है किन्तु संस्कृत ताड़ना में नहीं है। अवधी ताड़ना में एक चिंता, एक खयाल, एक अवेक्षा का भाव है। यह तुलसी की चित्तवृत्ति के अनुकूल भी है। उस चित्तवृत्ति के जिसने सीता, निषाद, हनुमान जैसे पात्रों के पुनर्सृजन में हृदय का पूरा सत्व उड़ेल दिया था।

 क्रमशः…..

(अगली कड़ियों में जारी…)

अश्विनी कुमार तिवारी  (साभार)

तुलसीदासजी ने क्यों लिखा, ढोल गंवार शूद्र पशु नारी

तुलसीदासजी रामायण में लिखते हैं कि “ढोल गंवार शूद्र पसु नारी, सकल ताडऩा के अधिकारी…।” इस कथन को लेकर बहुत से लोगों ने तुलसीदासजी पर शुद्रों और नारियों के प्रति भेदभाव और असम्मान की भावना रखने का आरोप लगाया। कहा कि वे तो शुद्रों और नारियों को डांटने- फटकराने और प्रताडि़त करने का पक्ष लेते हैं। पर वास्तव में  देखें तो तुलसीदास जी नहीं बल्कि इस चौपाई का अपने हिसाब से मतलब निकालने वाले लोग गलत है। दरअसल ताडऩा का अर्थ किसी को देखते रहना, सीख, शिक्षा या संरक्षण देने के अर्थ में भी लिया जाता है। और संतों की व्याख्या के अनुसार तुलसीदास जी यहां यही कहना चाहते हैं कि ढोल, गंवार, शुद्र और नारी को शिक्षा व सीख देने के साथ उनके कार्यों को देखते रहना चाहिए। वरना दोष उनका नहीं, बल्कि उनके संरक्षकों का होगा। जैसे शादी के बाद यदि बहु कोई गलत काम करती है तो उलाहना आज भी उसकी मां को ही दिया जाता है कि उसने अच्छी सीख नहीं दी। इसी तरह ढोल ठीक नहीं बजेगा तो दोष ढोल वादक का होगा। गवांर गवांरुपन दिखाए तो दोष उसके शिक्षक का होगा और शुद्र यानी सेवक सलीका नहीं रखे और पशु भी ठीक नहीं है तो दोष उनके मालिकों का ही माना जाएगा कि उनकी सीख में कोई कमी है। इसलिए तुलसीदासजी की चौपाई का अर्थ यही निकालना चाहिए कि वे ढोल, गवांर, सेवक, पशु व नारी को शिक्षा और संरक्षण पाने का अधिकारी मानते हैं। ना कि प्रताडऩा का।

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी' चौपाई का सही अर्थ क्या  है? - Quora

पीयूष पयोधी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, बिहार :

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी

मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि कोटि विध बध लागहिं जाहू/ आएँ सरन तजउ नहि ताहू – “जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहीं त्यागता जैसे कथनों के आधार पर अब तक किसी ने तुलसी को ब्राह्मण विरोधी क्यों नही बताया?

किसी ने जैसे उस एक कथन को शास्त्र से निकालना चाहा, वैसे इस एक कथन को क्यों नहीं निकलवाना चाहा।

पहला कथन तो समुद्र जैसे जड़ पात्र के द्वारा तुलसी ने कहलवाया हैइन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी। वह भी ऐसे जड़ के जो गहरी आत्म-ग्लानि में ग्रस्त है।

पर ‘कोटि बिप्र बध’ वाला उद्गार साक्षात ‘प्रभु’ के मुखारविंद से कहते हुए बतलाया है।

संवेदना का यह कौन सा ध्रुवांत है जिसके तहत एक का ‘ताड़न’ भी सहन योग्य नहीं दूसरे का ‘वध’ भी आपत्ति के लायक  नहीं लगता।

संवेदना की यह कौन-सी सरहद है जहां ‘एक’ और ‘कोटि’ का भी फर्क समाप्त हो जाता है।

कोटि बिप्र बध तो एक तरह का जेनोसाइड हुआ!

यदि वह एक कोटि( श्रेणी) है तो यह कोटि भी कोटि है। संख्या नहीं, वर्ग। संवेदना के ये कौन से कोष्ठक हैं? करुणा के ये कौन से कारागार हैं?

क्या इनकी पूर्ति यह कहकर हो सकती है कि अन्यत्र ‘द्विज-पद-प्रेम’ की बात कहकर इसका परिहार किया है? तो यह परिहार गुह निषाद केवट शबरी आदि से क्यों नहीं संभव हुआ?

क्या तुलसी को यह आशंका रामचरितमानस समय लिखते समय बहुत पहले से नहीं थी?कि ‘पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास’- इस रचना को सुनकर सज्जन सभी सुख पावेंगे और दुष्ट सब हंसी उड़ावेंगे।

संवेदना का स्वस्तिक एक गतिमय स्वस्तिक है। उसकी गति चक्रानुगमन करती है और वही विष्णु का सुदर्शन चक्र हो जाता है।

यदि ईश्वर की करुणा जातिभेद करती होती तो ईश्वर भी करुणा का कोटा निर्धारित कर रहा होता। ‘कोटि’ से कोटे तक पहुंचने में वक्त कितना लगता है।

लेकिन तुलसी वर्ग-भेद का लक्ष्य लेकर नहीं चल रहे। उनके रामराज में जो बात सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य है, वह है ‘सब’ शब्द का उपयोग। ‘सब नर करहिं परस्पर प्रीती।’ ‘सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा।’ सब निर्दंभ धर्मरत पुनी/नर अरु नारि चतुर सब गुनी’ / सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी/सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।’ यदि तुलसी की निष्पत्ति किसी पूंजीवादी, किसी वर्ग-वैषम्यवादी, किसी सर्वहारा की तानाशाही वाले समाज की होती तो वे ‘सब’ की यह रट नहीं लगा रहे होते। वे ‘सब उदार सब पर उपकारी’ भी नहीं कह रहे होते।

विप्रों ने इस करोड़ों विप्रों के वध वाली पंक्ति पर आक्षेप नहीं किया तो इसलिए कि उन्हें किसी महाकाव्य को कैसे पढ़ा जाता है, इसका पता था और है।

जिन्हें यह कला नहीं मालूम और पढ़ाई लिखाई की गहराई से जिनका दूर दूर तक वास्ता नहीं, उनकी ही व्यभिचारिणी बुद्धि के तमाशे चलते रहे हैं।

कुछ लोगों ने इस पंक्ति की व्याख्या यों की है कि वह व्याख्या नहीं, सफ़ाई अधिक लगती है। ज़रूरत टीका की है लेकिन दिए स्पष्टीकरण जा रहे हैं। मसलन एक बंधु यह कहते हैं कि तुलसी के समय हिंदी में अंग्रेज़ी का हाइफन नहीं होता था।

इस कारण तुलसी के जिन शब्दों को 5 वर्ग समझा जाता है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी वे वस्तुतः तीन वर्ग हैं : एक ढोल, दूसरा गंवार-शूद्र और तीसरा पशु-नारी ये तीनों प्रताड़ना, दंड, पिटाई के योग्य हैं। हर शूद्र पिटाई के लायक नहीं है। पहले एक विशेषण उसे क्वालिफाई करता है हर नारी भी पिटाई के लायक नहीं है। पहले एक विशेषण उसे भी क्वालिफाई करता है। गंवार-शूद्र और पशु-नारी पृथक- पृथक संज्ञाएं नहीं हैं। उनके बीच विशेषण- विशेष्य संबंध है।

यह व्याख्या इन पंक्तियों की कर्कशता को कम करने की और उन्हें सहय बनाने की कोशिश है। एक तरह की नैरोकास्टिंग। लेकिन यह उचित नहीं है, औचित्यीकृत है।

एक पल को इसे मान भी लिया जाए कि बात गंवार-शूद्र के बारे में कही जा रही है तो उससे समाधान जितना नहीं होता, सवाल उतने ज्यादा उठते हैं। प्रतिप्रश्न ये है कि यदि गंवार शूद्र ताड़ना के काबिल हैं तो गंवार ब्राह्मण क्यों नहीं? मनु तो अपमान को ब्राह्मण का पथ्य कहते थे। स्मृतियों में तो यहाँ तक कहा गया कि अर्चित और पूजित ब्राह्मण दुही जाती हुई गाय के समान खिन्न हो जाता है। गंवार ब्राह्मण को तो शास्त्रों में पंक्तिदूषक ब्राह्मण या अपांक्तेय ब्राह्मण के रूप में वर्णित किया गया है। वेदव्यास ने महाभारत के वनपर्व में ‘चतुर्वेदोऽपि दुर्वृत्तः स शूद्रादतिरिच्यते’ क्यों कहा था? देवी भागवत में ‘यस्त्वाचार विहीनोऽत्र वर्तते द्विजसत्तमः’ को बहिष्कार योग्य क्यों कहा गया? गंवार-शूद्र ही क्यों, गंवार वैश्य और गंवार- क्षत्रिय को भी ताड़ना मिलनी चाहिए। बात तो आचरण की है।

वाल्मीकि ने यही तो कहा था : कुलीनमकुलीन वा वीरं पुरुषमानिनम् / चारित्र्यमेव व्याख्याति शुचि वा यदि वाशुचिम– मनुष्य का चरित्र ही यह बतलाता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, वीर है या कायर, अथवा पवित्र है या अपवित्र तो गंवार शूद्र को किसी विशेष ताड़ना का हिस्सा बनाना कवि तुलसीदास का अभिप्रेत नहीं हो सकता था।

यही बात पशु-नारी के संदर्भ में है। क्या तुलसी उत्तरपूर्वी कंबोडिया के जंगलों में अभी जनवरी 2007 में पाई गई उस स्त्री के बारे में बात कर रहे थे जो 6 साल की उम्र में जंगलों में खो गई, 19 साल जंगलों में जानवरों के बीच रही और जब पुलिस ने उसे बरामद किया तो वह पूर्णतः जानवरों जैसी हरकतें कर रही थी ? क्या वे ‘वाइल्ड वोल्फ वूमन’ (जंगली भेड़िया – स्त्रियों) के बारे में प्रतिक्रिया दे रहे थे ? क्या तुलसी अरस्तू की तरह स्त्री को ‘आत्म विहीन’ प्राणी मान रहे थे ? क्या नारी की ‘एनीमलिटी’ पुरुष के पशुत्व से विशेष बदतर है ? तुलसी पशु-पुरुष को प्रताड़ना योग्य क्यों नहीं मानते ? क्या तुलसी ‘पशु-नारी’ के रूप में किन्हीं ‘गुरिल्ला नारियों’ को ताड़ना योग्य बता रहे थे?

स्त्रीवादी लेखिका एलिजाबेथ स्पेलमेन ने ‘सोमाटोफोबिया’ नामक एक मानसिक व्याधि की चर्चा की है जिसमें स्त्री को पशु से समीकृत किया जाता है। क्या तुलसी इस सोमाटोफोबिया के शिकार थे? क्या ‘पशु- नारी’ शब्द अपने आप में ही पशु और मनुष्य के बीच में किसी द्वैत के होने का परिचायक नहीं है? शैव दर्शन में पशुपति की संकल्पना ‘पशु’ की व्याख्या किस तरह से करती है ? क्या अंग्रेजी में स्त्रियों को ‘कैटी’ (Catty ), श्रू (Shrew), काउ (cow), बिच (bitch), डम बन्नी (Dumb bunny), ओल्ड क्रौ (old crow), विक्सन (vixen) कहने वाले अभिधान इसी ‘ पशु-नारी’ के बारे में हैं? जोरू के गुलाम के लिए अंग्रेजी में जो ‘हेन्पेक्ड’ शब्द चलता है वह स्त्री को ‘मुर्गी’ मानता है। ये तो नकारात्मक अर्थों वाले शब्द हैं लेकिन ‘फॉक्सी’ जैसे स्त्री-विश्लेषण भी स्त्री की पशु-पहचान को ही उभारते हैं।

तो तुलसीदास किसी सैक्सुअल हैरासमेंट के समर्थक थे? क्या तुलसीदास भारत में पशु और मनुष्य के बीच सांस्कृतिक रिश्तेदारी से अनभिज्ञ थे? पशु नारी हमेशा ही नकारात्मक हो, यह भी कैसे मान लिया जाए? मेरी वेब का उपन्यास ‘गोन टू अर्थ’ (1917) पढ़िए जिसमें उसने हेज़ेल नामक एक ऐसे स्त्री पात्र की रचना की है जिसमें जंगली निर्दोषिता और ऊर्जस्विता है, जो अपने आसपास के सामाजिक विश्व को जैसे ‘बिलांग’ ही नहीं करती, क्या वह ‘पशु-नारी’ ताड़ना योग्य लगती है ? हेज़ेल पशुओं की मूक वेदना को समझती है और एक छोटी लोमड़ी को बचाने की कोशिश में प्राण भी दे देती है। क्या तुलसी जैसा संवेदनशील कवि ऐसी प्रकृत सहज नारी की प्रताड़ना के बारे में कभी सोच भी सकेगा? जब ‘बैटमैन’, स्पाइडर मैन, एनीमल मैन आदि के रूप में आधुनिक कॉमिक हीरो लोकप्रिय हो रहे हैं तो पशु-नारी में ऐसी क्या कमी है कि आधुनिक व्याख्याकार उसे प्रताड़नीय समझ रहे हैं ?

 क्रमशः….

(सहयोग : अश्विनी कुमार तिवारी)

बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे ने किया गठबंधन का एलान

                        2019 के विधानसभा चुनाव में भी प्रकाश आंबेडकर ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ बना कि पार्टी ने कांग्रेस-एनसीपी के वोट काटे थे, जिससे बीजेपी को फायदा हुआ था।  साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रकाश आंबेडकर की पार्टी की करीब 10 निर्वाचन क्षेत्रों में एक लाख से ज्यादा वोट पड़े थे। तब प्रकाश आंबेडकर की पार्टी का गठबंधन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से था। तब दलित-मुस्लिम गठजोड़ बना था और एआईएमआईएम के खाते में औरंगाबाद सीट गई थी। 

उद्धव ठाकरे - फोटो : Social Media
  • उद्धव ठाकरे और प्रकाश अंबेडकर आए साथ
  • BMC चुनाव के लिए VBA के साथ गठबंधन की घोषणा
  • MVA गठबंधन में अब VBA भी शामिल

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़/मुंबई – 23 जनवरी :

                        आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों से पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के साथ हाथ मिलाया है। हालांकि निकाय चुनावों की तारीखों की घोषणा अभी बाकी है, लेकिन इस कदम को इस संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि उद्धव की सेना ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। सोमवार दोपहर दोनों पार्टियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घटनाक्रम का ऐलान किया।

                        उद्धव ठाकरे ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हम संविधान को अक्षुण्ण रखने के लिए एक साथ आए हैं।’ इस दौरान उन्होंने प्रकाश अंबेडकर के साथ मंच साझा किया। गौरतलब है कि उद्धव की महा विकास अघाड़ी सरकार को जून में एकनाथ शिंदे नेतृत्व वाले विद्रोही सेना गुट द्वारा गिरा दिया गया था। MVA गठबंधन के बारे में बात करते हुए, प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस और एनसीपी उनकी वीबीए पार्टी को सहयोगी के रूप में भी स्वीकार करेंगे। अंबेडकर ने ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर भी भाजपा सरकार पर हमला किया।

                        वहीं वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के प्रमुख प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे की जयंती पर शिवसेना (यूबीटी) और वीबीए का गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया बदलाव लाएगा। इस कदम से राजनीतिक समीकरण बदलेंगे। ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां कुछ पार्टियों ने अपने सहयोगियों को कम करने और खत्म करने की कोशिश की, लेकिन राजनीतिक दल की जीत का फैसला करना लोगों पर निर्भर है। हमारे देश की इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कोई नहीं बदल सकता है।

                        पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि अभी तक चुनाव की कोई घोषणा नहीं हुई है। मैं देशद्रोहियों (शिंदे गुट) को चुनाव कराने की चुनौती देना चाहता हूं। अगर उनमें (शिवसेना शिंदे गुट और बीजेपी में) दम है तो उन्हें चुनाव की घोषणा करनी चाहिए। 

                        इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे ने आरएसएस प्रमुख पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत मस्जिद गए तो क्या उन्होंने हिंदुत्व छोड़ दिया? जब बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन किया तो क्या उन्होंने हिंदुत्व छोड़ दिया? वे जो कुछ भी करते हैं वह सही है और जब हम कुछ करते हैं, तो हम हिंदुत्व छोड़ देते हैं, यह सही नहीं है। 

पंजाब में मनप्रीत बादल भाजपा में, देखें चंडीगढ़ में आज कौन ?

                        पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने बुधवार को भाजपा का दामन थामा। इसके बाद से पंजाब में सियासत तेज होने लगी है। भारत जोड़ो यात्रा के बीच मनप्रीत सिंह कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। बता दें कि पंजाब के सीएम भगवंत मान को राजनीति में लाने का श्रेय मनप्रीत बादल को ही जाता है। मनप्रीत ने ही 2011 में अपनी पार्टी ‘पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब’ (पीपीपी) में भगवंत मान को शामिल कर 2012 विधानसभा चुनाव में लहरा सीट से प्रत्याशी बनाया था। भगवंत मान पीपीपी के चुनाव चिह्न पतंग के साथ चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उनकी पतंग उड़ान नहीं भर सकी। इसके बाद मनप्रीत ने जब पीपीपी का कांग्रेस में विलय करने का एलान किया तो भगवंत मान ने न सिर्फ पीपीपी बल्कि मनप्रीत बादल से भी नाता तोड़ लिया और अब आम आदमी पार्टी का हिस्सा और पंजाब के सीएम हैं। आज  कुछ ऐसा चंडीगढ़ में भी होने वाला है।

Former Punjab finance minister Manpreet Badal quits Congress, joins BJP -  Hindustan Times

अजय सिंगला, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ – 23 जनवरी :

                        मेयर चुनाव के दरमियान चंडीगढ़ में नेताओं के इधर से उधर जाने की खूब चर्चाएं चलीं मगर सब कुछ सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रहा। लेकिन अब ऐसा होने जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, आज शाम को साढ़े 4 बजे चंडीगढ़ बीजेपी के सेक्टर 33 स्थित कमलम (मुख्यालय) में कोई बड़ा नेता पार्टी जॉइन करेगा। हालांकि वह नेता कौन है और किस पार्टी (AAP या CONGRESS) से है? इसकी अभी जानकारी नहीं मिल पाई है। फिलहाल, उक्त नेता की जॉइनिंग के दौरान चंडीगढ़ बीजेपी चीफ अरुण सूद सहित पार्टी के तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी रहेगी। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस से कोई बड़ा नेता भी आज भाजपा में शामिल हो सकता है। कांग्रेस की इस समय नगर निगम में स्थिति काफी खराब है। पार्टी के पास मात्र 6 काउंसलर हैं। कांग्रेस की टिकट पर जीते 2 काउंसलर पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके हैं।

                        हालांकि, चंडीगढ़ बीजेपी में शामिल होने वाले नेता को लेकर लग रहे कयासों के बीच चंडीगढ़ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुभाष चावला का नाम भी लिया जा रहा है। लेकिन सुभाष चावला ने अर्थ प्रकाश से बातचीत करते हुए बीजेपी ज्वाइन न करने की बात कही है। चावला का साफ कहना है कि, वह बीजेपी में शामिल नहीं हो रहे हैं। चावला के मुताबिक, पार्टी के कुछ फैसलों से उनकी नाराजगी जरूर है लेकिन वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे। बहराल, कौन शामिल हो रहा है और कौन नहीं? यह मौके की तस्वीर से ही स्पष्ट हो पाएगा।

                   आपको बतादें कि, इससे पहले चंडीगढ़ बीजेपी में कांग्रेस पार्टी से नेता और कई कार्यकर्ता शामिल हो चुके हैं. पिछले साल ही कांग्रेस की टिकट पर जीते 2 पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए थे। इसके अलावा चंडीगढ़ कांग्रेस के बेहद पुराने नेता दविंदर सिंह बबला ने भी कांग्रेस को अलविदा कहते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया था। मसलन चंडीगढ़ में कांग्रेस का खेमा जहां लगातार घट रहा है और वहीं बीजेपी अपना खेमा बढ़ाती जा रही है। अन्य जगहों जैसे चंडीगढ़ में भी कांग्रेस की स्थिति काफी खराब है।

रामचरितमानस विवाद पर बदली-बदली दिख रही बिहार की राजनीति

                        पत्रकारों से बात करते हुए जगदानंद सिंह ने एक बार फिर से चंद्रशेखर के बयान का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि सभी समाजवादी आपके साथ हैं। उन्होंने राममनोहर लोहिया के हवाले से कहा कि रामचरितमानस में हीरा-मोती भी है और कूड़ा-कचरा भी है, इसलिए हम कूड़ा साफ करेंगे और हीरा-मोती को रखेंगे। इसके पहले उन्होंने चंद्रशेखर के विवादित बयान का समर्थन करते हुए कहा था कि पूरी राजद उनके साथ खड़ी है। जगदानंद सिंह ने कहा था कि ‘राष्ट्रीय जनता दल’ कमंडल के आगे कभी मंडल को हारने नहीं देगा। लेकिन जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने साफ कहा है कि जदयू के लिए सभी धर्म एक समान है और वह राजद के राम या रामचरितमानस पर दिए बयान के साथ नहीं है। जदयू के संसदीय बोर्ड अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि राजद के इस स्टैंड का फायदा भाजपा को मिलेगा।

जगदानंद सिंह, चंद्रशेखर यादव
रामचरितमानस पर राजद में दो फाड़, प्रदेश अध्यक्ष ने फिर किया अपमान
  • शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के रामचरितमानस पर राजद में भी एकमत नहीं
  • जगदानंद सिंह ने किया समर्थन तो शिवानंद तिवारी विरोध में खड़े हुए
  • जदयू और राजद के बीच भी रामचरितानस विवाद पर अलग-अलग सुर

डेमोक्रेटिक फ्रंट, पटना ब्यूरो – 14 जनवरी :

                        बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के रामचरितमानस  पर दिए गए ‘ज्ञान’ ने देश में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। चंद्रशेखर के विवादित बयान से लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बुरी तरह फंस गई है। विरोधी दलों के अलावा बिहार की सत्ता में सहयोगी पार्टी जनता दल युनाइटेड भी चंद्रशेखर के बयान की निंदा कर रही है। इतना ही नहीं, अब राजद के अंदर भी शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर  को लेकर दो फाड़ हो गई है। कुछ नेता चंद्रशेखर के साथ खड़े हो गए हैं तो कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में अब राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने भी चंद्रशेखर के बयान पर आपत्ति जताई है।

                        रिपब्लिक भारत से खास बातचीत में राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि ‘चंद्रशेखर ने जो कुछ कहा है, उससे हम सहमति नहीं रखते हैं। हमने उन्होंने कहा भी कि आपको वहां रामचरितमानस पर बोलने की क्या जरूरत थी। आप जिस वैचारिक धरातल तक खड़े हैं, उससे आप अलग होना चाह रहे हैं। राजद हो या जदयू हो, इन दोनों की एक ही वैचारिक धारा है।’

                        इसी बीच चंद्रशेखर को जगदानंद सिंह के समर्थन पर भी शिवानंद तिवारी ने करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘मैं जगदानंद सिंह के बयान से असहमत हूं कि पार्टी चंद्रशेखर के बयान के साथ खड़ी है। प्रदेश अध्यक्ष ऐसा फैसला कैसे ले सकते हैं। मैं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हूं। मैं इस पर तेजस्वी यादव से बात करूंगा कि चंद्रशेखर द्वारा दिया गया बयान पार्टी के हित में नहीं है। मैं उस बैठक का हिस्सा नहीं था, जिसमें रामचरित मानस पर चंद्रशेखर के बयान का समर्थन करने का फैसला लिया गया था।’ शिवानंद तिवारी ने आगे कहा, 

“जगदानंद सिंह ने शायद यह बयान इसलिए दिया है क्योंकि वह अपने बेटे को नीतीश कैबिनेट से बाहर किए जाने से नाराज हैं।”, शिवानंद तिवारी

                        उल्लेखनीय है कि बीते दिन बिहार आरजेडी के अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने चंद्रशेखर के विवादित बयान का समर्थन करते हुए कहा था कि पूरी राजद उनके साथ खड़ी है। जगदानंद सिंह ने कहा था कि ‘राष्ट्रीय जनता दल कमंडल के आगे कभी मंडल को हारने नहीं देगा, जो हमारी सामजिक न्याय और समाजवाद की धारा है, जो डॉ. राममनोहर लोहिया से सीख हमको मिली है, उसके लिए कर्पूरी ठाकुर मृत्यु तक लड़ते रहे।’ उन्होंने आगे कहा था, 

जो राह समाजवादियों ने हमें बताई है उस पर आज भी चलने का ये (चंद्रशेखर) काम कर रहे हैं। मैं इस विषय पर ज्यादा नहीं कहना चाहता पर एक बात जरूर कहूंगा कि चंद्रशेखर आप आश्वस्त रहिए, पूरी राष्ट्रीय जनता दल आपके साथ और कमंडलवादियों के खिलाफ आपके साथ खड़ी है।

                        दरअसल, बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर हाल ही में एक कार्यक्रम में पहुंचे थे, जहां उन्होंने रामचरितमानस पर विवादित बयान दिया था। चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को ‘नफरती ग्रंथ’ बताया था। इसके बाद रिपब्लिक भारत से खास बातचीत में भी शिक्षामंत्री चंद्रशेखर ने अपने बयान को दोहराया। उन्होंने कहा, ‘उस ग्रंथ में नफरत का अंश है। मैं सीधी बात कहता हूं कि रामचरितमानस हो या मनुस्मृति हो इसमे जातियों के लेकर जो विषमता दिखाई गई है उसे हटाना चाहिए।’

                   इस मामले के तूल पकड़ने के बावजूद चंद्रशेखर गलती मानने की बजाय अपने बयान पर आज भी कायम हैं। ऐसे में उनको विपक्ष की आलोचना के साथ अपने सहयोगी दलों, यहां तक की अपनी ही पार्टी के नेताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है। चंद्रशेखर के विवादित बयान से महागठबंधन सरकार में साथी कांग्रेस और जेडीयू किनारा कर गए हैं।

शरद यादव का निधन : बेटी ने लिखा -‘पापा नहीं रहे’ , 75 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले शरद यादव लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह जनता दल पर‍िवार के पुराने नेता थे और जीवन के अंत‍िम द‍िनों में एक बार फ‍िर लालू यादव की पार्टी राष्‍ट्रीय जनता दल से ही आकर जुड़ गए थे।

JDU के पूर्व अध्यक्ष और दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव का निधन, 75 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

अजय सिंगला, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़/नयी दिल्ली :

दिग्गज नेता और जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का हुआ निधन। शरद यादव की बेटी सुभाषिनी ने इस खबर की पुष्टि ट्वीट कर की है, शरद यादव ने 75 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। देश की राजनीती में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले दिग्गज नेता शरद यादव ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। बिहार की राजनीति के कद्द्वार नेता शरद यादव का जाना सभी को दुखी कर गया है। गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में हुआ शरद यादव का निधन।

शरद यादव को उनकी उनकी समाजवाद की राजनीती ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रियता दिलाई थी। जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की बेटी सुभाषिनी ने  ट्विटर पर अपने पिता की मौत पर शोक व्यक्त कर उन्होंने ने लिखा “पापा नहीं रहे” शरद यादव एक महान नेता थे उनका राजनीतिक सफर भी संघर्षशील रहा है, उन्होंने अपने कई दशक की राजनीति में काफी कुछ देखा है। 

शरद यादव की बेटी शुभाषिनी यादव ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी है।

शरद यादव ने 1999 और 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विभिन्न विभागों में मंत्री रहे थे। 2003 में शरद यादव जनता दल यूनाइटेड (JDU) के अध्यक्ष बने थे। वह NDA के संयोजक भी रहे। साल 2018 में जदयू से अलग होकर लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) बनाया था। पिछले साल अपनी पार्टी के RJD में विलय की घोषणा कर दी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शरद यादव जी के निधन से बहुत दुख हुआ। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में उन्होंने खुद को सांसद और मंत्री के रूप में प्रतिष्ठित किया। वे डॉ. लोहिया के आदर्शों से काफी प्रभावित थे। मैं हमेशा हमारी बातचीत को संजो कर रखूंगा। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदनाएं। शांति।

लालू यादव ने अपने ट्वीट में लिखा-अभी सिंगापुर में रात्रि के समय शरद भाई के जाने का दुखद समाचार मिला। बहुत बेबस महसूस कर रहा हूं। आने से पहले मुलाकात हुई थी और कितना कुछ हमने सोचा था समाजवादी व सामाजिक न्याय की धारा के संदर्भ में। शरद भाई…ऐसे अलविदा नहीं कहना था। भावपूर्ण श्रद्धांजलि!

लालू यादव ने अस्पताल से ही वीडियो मैसेज के साथ ये पोस्ट शेयर की है। अभी सिंगापुर में रात्रि में के समय शरद भाई के जाने का दुखद समाचार मिला। बहुत बेबस महसूस कर रहा हूँ। आने से पहले मुलाक़ात हुई थी और कितना कुछ हमने सोचा था समाजवादी व सामाजिक न्याय की धारा के संदर्भ में। शरद भाई…ऐसे अलविदा नही कहना था। भावपूर्ण श्रद्धांजलि!

बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा- मंडल मसीहा, राजद के वरिष्ठ नेता, महान समाजवादी नेता मेरे अभिभावक आदरणीय शरद यादव जी के असामयिक निधन की खबर से मर्माहत हूँ। कुछ कह पाने में असमर्थ हूँ।

जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव ने कहा कि देश के दिग्गज राजनेता, समाजवाद और सामाजिक न्याय के योद्धा शरद यादव के निधन की खबर सुनकर मर्माहत हैं। शरद यादव के निधन से एक युग का अंत हो गया। एक समाजिक न्याय के नेता के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे।

अपनी क्षमताओं को पहचाने बिहार

डेमोक्रेटिक फ्रंट 

– डॉ. विपिन कुमार

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

मैं हाल ही में नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुआ। बिहार के लोकप्रिय साहित्यकार और सांसद शंकर दयाल सिंह जी की जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में सारण के लोकसभा सांसद राजीव प्रताप रूडी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए, जो पूर्व में भारत सरकार के मंत्री भी रह चुके हैं। इसके अलावा कार्यक्रम में पूर्व केन्द्रीय सचिव सीके मिश्र, भारत सरकार के पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार आनन्द सिंह भाल जैसे कई गणमान्यों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

यहाँ मैं शंकर स्मृति समारोह का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि इस अवसर पर बिहार को लेकर एक गहरी चर्चा हुई। यहाँ बिहार के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को लेकर कई विचारोत्तेजक तथ्य रखे गए। वास्तव में, इस प्रकार के आयोजनों से बिहार विमर्श की प्रासंगिकता को एक नया आयाम हासिल होगा।

ह कोई छिपाने वाली बात नहीं है कि बिहार का प्राचीन काल से ही एक गौरवशाली इतिहास रहा है। बिहार भगवान बुद्ध, महावीर जैन और चाणक्य जैसे महात्माओं और विद्वानों की कर्मभूमि रही है, तो सम्राट अशोक ने यहीं की मिट्टी से पल्लवित होकर पूरे विश्व में धर्म की स्थापना की।

बिहार की मिट्टी ने ही राष्ट्रकवि दिनकर को जन्म दिया, तो हमारे राजेन्द्र बाबू आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में मनोनीत हुए। आपातकाल के दौरान जब सत्ता ने अपनी असीम शक्तियों का इस्तेमाल अपने ही लोगों के खिलाफ करना शुरू कर दिया, तो उस वक्त लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ‘सम्पूर्ण क्रांति’ के उद्घोष ने पूरे देश को एकजुट कर दिया और इसकी तपिश इतनी भयानक थी कि सत्ता उसके सामने टिक नहीं सकती थी।

लेकिन आज परिस्थितियां अलग हैं। आज बिहार की गिनती देश के सबसे पिछड़े राज्यों में होती है। आर्थिक हो चाहे सामाजिक – हम जीवन के हर पहलू में विच्छिन्न हो चुके हैं और हमें न खुद पर विश्वास है और न ही अपने राज्य और इसकी महान ऐतिहासिक विरासतों पर।

आज बिहार के समाज में एक विचित्र नीरसता और हतोत्साह ने जन्म ले लिया है और हमें इससे पार पाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। लेकिन हमें अब सजग होना होगा और एक सक्षम और सुदृढ़ बिहार के निर्माण के लिए अपनी भूमिकाएं निभानी होगी।

इस कार्यक्रम के दौरान, राजीव प्रताप रूडी ने एक बेहद जरूरी मुद्दा उठाया, “आखिर ऐसा क्या है आज बिहारी आगे है और बिहार पीछे? हमने अपने आधारभूत संरचना में काफी सुधार किया है। आज हमारे पास चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध है। सड़कों की स्थिति बेहतर है। लेकिन ऐसा क्या है, जिस वजह से हम इतने पीछे हैं?”

वास्तव में, उनका यह कथन कई मायनों में काफी विचारोत्तेजक है। बीते कुछ वर्षों के दौरान बिहार की सार्वजनिक सुविधाओं में काफी सुधार आया है।

लेकिन ऐसा क्या है कि हम आज भी यहाँ आपराधिक घटनाओं पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं? लोगों को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए बेबशी और लाचारी में दूसरों राज्यों की ओर रुख करना पड़ रहा है।

कुछ समय पहले नीति आयोग द्वारा बिहार के सामाजिक सूचकों के संदर्भ में एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट में बिहार में सर्वाधिक बहुआयामी गरीबी की बात कही गई। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की कुल आबादी का करीब 52 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे अपना गुजर-बसर करता है। जबकि, यहाँ कुपोषण की दर भी करीब 52 प्रतिशत है। कुपोषण की इस समस्या के कारण 4.5 प्रतिशत बच्चे और किशोर अकाल मौत के मुँह में समां जाते हैं। दूसरी ओर, राज्य मातृ स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी पिछड़ा हुआ है और यहाँ करीब 46 प्रतिशत महिलाओं को प्रसव के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

आज शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की बात हो, चाहे उद्यमिता, पर्यावरण और स्वच्छता जैसे घटक, बिहार हर मामले में सबसे निचले पायदान पर है।

तो, आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इसके लिए जिम्मेदार है हमारी राजनैतिक व्यवस्था। बिहार को पिछलग्गू बनाने के लिए जिम्मेदार है, हमारी जातिवादी मानसिकता। आज बिहार की जो हालत है, वह 30 वर्ष नहीं बल्कि बीते दशकों की नाकामयाबी का नतीजा है।

यहाँ की राजनैतिक दलों ने अपना वोट बैंक बनाने के लिए, लोगों को जाति के आधार पर बाँट कर रहा है। यहाँ लोगों जाति के नाम पर इतने मतांध हो चुके हैं कि उनका ‘बिहारी’ पहचान तभी जाग्रत होता है, जब वे बिहार से बाहर होते हैं।

यहाँ के नेताओं ने खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए आरंभ से ‘आरक्षण’ को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया। कभी अनुसूचित जाति और जनजाति के नाम पर, तो कभी पिछड़ा और अति-पिछड़ा के नाम पर। इन्होंने अपनी रोटियां सेंकने के लिए राज्य को भौगोलिक रूप से भी बाँटना नहीं छोड़ा। यही वजह है कि नेता तो जीत गए, लेकिन बिहार हर दिन हार रहा है।

आज बिहार के करीब 4 करोड़ लोग अपने जीवनयापन के लिए पलायन कर चुके हैं। यह एक ऐसी आबादी है कि जो अपने खून-पसीने से भारत निर्माण कर रहे हैं। हम अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं। फिर भी, सवाल बना रहता है कि जब बिहार पिछड़ा है, तो हम आगे कैसे हो सकते हैं?

इसलिए अब वक्त आ चुका है कि हम अपने जन-प्रतिनिधियों से तीखे सवाल पूछें। उन्हें सिर्फ चुनावी वादों के लिए नहीं, बल्कि योजनाओं के जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन के लिए बाध्य करें। हम अपनी जातिगत पहचान को धूमिल करें और अपनी क्षमताओं को जगाएं। इसके लिए हमारे युवाओं को सामने आना होगा। तभी एक बेहतर और आत्मनिर्भर बिहार का सपना साकार हो पाएगा।

सुसाइड नहीं हत्या थी सुशांत सिंह राजपूत की मौत? मॉर्चरी सर्वेंट ने किया हैरान करने वाला

            सुशांत के शव का पोस्टमार्टम करने वाले रूपकुमार शाह ने दावा किया है कि एक्टर का मर्डर हुआ था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने सुशांत का शव देखा तो उन्हें ये आत्महत्या का मामला नहीं लगा।

सुशांत सिंह राजपूत

कोरल’पुरनूर’ डेमोक्रेटिक फ्रंट, मुंबई/चंडीगढ़ :

            सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामले में कूपर अस्पताल के एक कर्मचारी ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। कर्मचारी का दावा है कि वो सुशांत के पोस्टमार्टम के समय उसी जगह मौजूद था और जैसा कि उसने देखा उससे पता चल रहा था कि वो आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है।

            टीवी  को दिए इंटरव्यू में कूपर अस्पताल के कर्मचारी रूपकुमार शाह ने कहा, “हत्या और आत्महत्या में बहुत फर्क होता है। शव देखने के तुरंत बाद पता चल जाता है वो हत्या है या आत्महत्या है। सुशांत के गले में निशान थे। वह बिलकुल हत्या जैसा लग रहा था। बॉडी को मुक्के मारे गए थे, उस पर चोट के निशान थे। जो आदमी आत्महत्या करता है उसे चहरे पर पंच के निशान नहीं होते जैसे कि सुशांत के चेहरे पर थे।”

            एक्टर की मौत के करीब ढाई साल बाद रूपकुमार शाह नाम के शख्स की टिप्पणी ने सबको हैरान कर दिया है। रूपकुमार शाह का दावा है कि जब सुशांत का पोस्टमार्टम हुआ तो वह वहीं मौजूद थे। न्यूज एजेंसी एनएनआई से रूपकुमार शाह ने कहा कि वह इस बारे में पहले भी दो चैनलों से बात कर चुके हैं। उन्होंने आगे कहा कि, मैं इसलिए यह बोल रहा हूं क्योंकि मैं 14 और 15 जून को ड्यूटी पर था। काम कर रहा था। उसी दौरान एक वीआईपी बॉडी आई। वीआईपी बॉडी थी इसलिए ज्यादा लोग आए। हमने अपना काम चालू रखा। रात को करीब 11-12 बजे के आसपास सुशांत की बॉडी के पोस्टमार्टम का नंबर आया।“”

            शाह ने आगे, शव देखने के बाद पता चला कि यह तो सुशांत सिंह राजपूत की बॉडी है। हमने देखा कि उनका शव अलग दिखा। उनका शव सुसाइड जैसा नहीं था। मैं तुरंत अपने सीनियर से बात करने गया और कहा कि सर ये अलग केस दिख रहा है। क्योंकि मुझे 28 साल का तजुर्बा है।साहब ने कहा, ‘हम इस पर बाद में बात करेंगे।

            शाह ने आगे कहा कि “मैंने देखा कि सुसाइड के शव में फांसी के बाद जो गले पर निशान होता है, जिसे हैंगिंग मार्क बोलते हैं वह सुसाइड जैसा नहीं था। वह कुछ अलग-सा था। इसके अलावा पैर और हाथ पर भी अलग-अलग तरह के निशान थे। वह बिल्कुल अलग थे। मैं अभी बता नहीं सकता।” बता दें कि एक्टर                   सुशांत सिंह राजपूत 14 जून 2020 को मुंबई स्थित अपने अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे। उनकी मौत को आत्महत्या करार दिया गया था। इस मामले में अब तक जांच जारी है।

सुशांत सिंह राजपूत

            सीबीआई ने इसकी जांच खत्म कर अभी तक क्लोजर रिपोर्ट नहीं सौंपी है। मगर अब ये चौंकाने वाली खबर सामने आई है जिसने सभी को हैरान कर दिया है। सुशांत के फैन्स पहले भी इसे खुदकुशी नहीं मानते थे और अब उन्हें इसे खुदकुशी न मानने की एक और वजह मिल गई है।