हरियाणा बेरोजगारी में नंबर वन, युवा अपनी जमीन बेचकर विदेशों की तरफ पलायन को मजबूर : चित्रा सरवारा

कोशिक खान, डेमोक्रेटिक फ्रंट, छछरौली – 18 दिसम्बर  :

आम आदमी पार्टी(आआपा) की 10 दिवसीय प्रदेश स्तरीय बदलाव यात्रा के चौथे दिन आआपा प्रदेश उपाध्यक्ष चित्रा सरवारा ने प्रेसवार्ता कर बेरोजगारी के मुद्दे पर हरियाणा सरकार को घेरा है। इस दौरान उनके अंबाला लोकसभा अध्यक्ष आदर्शपाल सिंह मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की बदलाव यात्रा एक मुहिम है, इसके जरिए आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के विजन को प्रदेश के हर घर तक पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता भाजपा सरकार से संतुष्ट नहीं है, इसलिए जनता बदलाव के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में हरियाणा बहुत बुरी स्थिति से गुजर रहा है। हरियाणा बेरोजगारी में नंबर वन है, 33% युवा काम नहीं कर रहा या पढ़ ही नहीं रहा, हर तीन में से एक युवा दिशाहिन है और युवा अपनी जमीन को बेचकर विदेशों की तरफ पलायन करने को मजबूर हैं। इसके अलावा डोंकी की रास्ते अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हैं। जिसकी जिम्मेदार हरियाणा सरकार है।

उन्होंने कहा हाल ही में हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाई है कि आंकड़ों को खेल खेलना बंद करें और बताएं कि हरियाणा में रोजगार के लिए क्या किया जा रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि करीब 2 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं। लेकिन लोगों को रोजगार नहीं दे रही। भाजपा सरकार के राज में लगातार पेपर लीक हो रहे हैं, पिछले 10 सालों में न जाने कितने युवाओं के मौके चले गए, परीक्षा देकर रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं और आज उनकी क्वालीफिकेशन की उम्र ही निकल गई है।

उन्होंने कहा कि हरियाणा में 71,000 पद शिक्षा विभाग में खाली पड़े हैं, प्रारंभिक शिक्षा विभाग में 42,000 और माध्यमिक शिक्षा विभाग में 29,000 पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा पुलिस विभाग में 21500, परिवहन विभाग में 10000, पशुपालन विभाग में 5500, सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग में 5000, अग्निशमन विभाग में 3320 और चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान में 3000 पद रिक्त पड़े हैं। हरियाणा सरकार युवाओं को रोजगार देने में नाकाम साबित हुई है। वहीं पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने मात्र डेढ़ साल में 37000 युवाओं को नौकरी दे दी है।

उन्होंने कहा दुर्भाग्यपुर्ण बात यह है कि खट्टर सरकार प्रदेश के 10,000 युवाओं को रोजगार देने के लिए इजराइल भेजने का ऑफर दे रही है। जिसके लिए सरकार ने विज्ञापन निकाला है, जोकि हरियाणा सरकार की विफलता का प्रतीक है। हरियाणा सरकार प्रदेश के युवाओं को युद्ध में झोंकना चाहती है। इजराइल और हमास में युद्ध जारी है और खट्टर सरकार को वहां रोजगार के अवसर नजर आ रहे हैं। इससे साबित होता है कि प्रदेश सरकार को हरियाणा के युवाओं के भविष्य और जीवन की कोई फिक्र नहीं है। 

वहीं, अंबाला लोकसभा अध्यक्ष आदर्शपाल सिंह ने कहा कि बेरोजगारी की कारण हरियाणा का युवा नशा और अपराध की तरफ जा रहा है। महिलाओं की सबसे असुरक्षित वाली सूची में हरियाणा दूसरे नंबर पर है, रेप के मामलों में हरियाणा पूरे देश में दूसरे नंबर पर है, हत्याओं की बात करें तो दूसरे नंबर पर है, किडनैपिंग में नंबर तीन पर है और यूपी भी हरियाणा से पीछे है। उन्होंने कहा कि हरियाणा से बरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपराध को खत्म करने की लिए बदलाव जरुरी है। हरियाणा में 2024 में बदलाव सुनिश्चि है, जिसके लिए प्रदेश की जनता तैयार है।

इस अवसर पर जिला अध्यक्ष गगनदीप सिंह,लक्ष्मण विनायक,योगेंद्र चौहान,राहुल भान,रणधीर चौधरी मौजूद रहै

जोरम पीपुल्स मूवमेंट ने मिजोरम में मारी बाजी

मिजोरम में मतगणना रविवार को मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के साथ होनी थी। हालांकि, राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों, चर्च और छात्र संगठनों की अपील के बाद निर्वाचन आयोग ने इसे स्थगित कर दिया क्योंकि रविवार का दिन ईसाई बहुल मिजोरम के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। मिजोरम विधानसभा के लिए मतदान सात नवंबर को हुआ था और राज्य के 8.57 लाख मतदाताओं में से 80 प्रतिशत से अधिक ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।

  1. 15 सीटों पर जोरम पीपुल्स मूवमेंट प्रत्याशियों की जीत
  2. मतगणना केंद्रों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम।
  3. ZPM ने छुआ बहुमत का आंकड़ा

डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़- 04 दिसम्बर  :

मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना शुरू हो गई है। आज होने वाली मतगणना के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किये गये हैं। इस बार चुनाव में सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। मिजोरम विधानसभा चुनाव के सोमवार को जारी मतगणना के शुरुआती रुझान में विपक्षी जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने राज्य में सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) पर बढ़त बना ली है। 

मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। मिजोरम की 40 विधानसभा पर 7 नवंबर को चुनाव संपन्न हुए थे। हालांकि, पहले मिजोरम में मतगणना 3 दिसंबर को होनी थी, लेकिन चुनाव आयोग ने 4 दिसंबर तक के लिए मतगणना को स्थगित कर दिया था।

बता दें कि मिजोरम की 40 विधानसभा सीटों पर मिजो नेशनल फ्रंट, जोरम पीपुल्स मूवमेंट, कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला है।

पार्टियां-                  सीटों पर बढ़त 

मिजो नेशनल फ्रंट-         11

जोरम पीपुल्स मूवमेंट-     27

बीजेपी-                         02

कांग्रेस-                          01

चुनाव आयोग के अनुसार, जोरम पीपुल्स मूवमेंट ने 15 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है। मिजो नेशनल फ्रंट तीन सीटों पर बाजी मार ली है। वहीं, 1 सीट पर भाजपा जीत चुकी

चुनाव आयोग ने 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान किया

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि कुल 16.14 करोड़ मतदाता इन चुनावों में अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इनमें 8.2 करोड़ पुरुष मतदाता, 7.8 करोड़ महिला मतदाता होंगे। इस बार 60.2 लाख नए मतदाता पहली बार वोट डालेंगे। खास बात यह भी है कि 60.2 लाख नए मतदाता पहली बार वोट डालेंगे। इनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। 15.39 लाख वोटर ऐसे हैं, जो 18 साल पूरे करने जा रहे हैं और जिनकी एडवांस एप्लीकेशन प्राप्त हो चुकी हैं।

चुनाव आयोग ने 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान किया

  1. चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है
  2. छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव होंगे
  3. 03 दिसंबर को एक साथ सभी राज्यों के नतीजे सामने आएंगे

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़ – 09अक्टूबर :

निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव की तारीखें का ऐलान कर दिया। चुनाव आयोग ने सोमवार दोपहर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि मध्य प्रदेश में 17 नंवबर, राजस्थान में 23 नवंबर, छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवंबर और मिजोरम 7 नवंबर और तेलंगाना में 30 नवंबर को मतदान होगा। वहीं 3 दिसबंर को इन सभी 5 राज्यों में वोटरों की गिनती के साथ नतीजे साफ हो जाएंगे।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि इन चुनावों में कुल 16.14 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे, जिनमें 8.2 करोड़ पुरुष मतदाता और 7.8 करोड़ महिला मतदाता होंगे। इस बार 60.2 लाख नए मतदाता पहली बार वोट डालेंगे।

मिजोरम में 7 नवंबर को चुनाव होंगे। छत्तीसगढ़ में 7 नवंबर और 17 नवंबर को 2 चरण में चुनाव होंगे। वहीं मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को ही सभी सीटों पर चुनाव करा लिए जाएँगे। जहाँ तक राजस्थान की बात है, वहाँ 23 नवंबर को एक ही चरण में चुनाव संपन्न कराया जाएगा। वहीं तेलंगाना में सबसे अंत में 30 नवंबर को चुनाव होंगे। सभी राज्यों में 3 दिसंबर को मतगणना होगी।

इस दौरान चुनाव आयोग ने बताया कि जिन 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वो एक तरह से इस देश का छठा भाग है। 8.2 करोड़ पुरुष और 7.8 करोड़ महिला वोटर वोट डालने वाले हैं। सबसे ज़्यादा मध्य प्रदेश में 5.60 करोड़ वोटर हैं। दिव्यांग वोटरों और 80 वर्ष से ज़्यादा उम्र के बुजुर्गों के लिए न सिर्फ बूथों पर विशेष व्यवस्था की जाएगी, बल्कि वो घर से भी वोट कर पाएँगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि महिलाओं, समलैंगिकों, युवा वोटरों, जनजातीय समाज और दिव्यांगों – इन सबके मताधिकार की जागरूकता के लिए विशेष अभियान चलाया गया।

चुनाव आयोग ने 75 जनजातीय समाजों की बात करते हुए बताया कि अंतिम व्यक्ति तक वोट डालने की सुविधा पहुँचाई जाएगी, उन्हें पोलिंग स्टेशन पर लाया जाएगा। इस बार 60 लाख ऐसे वोटर होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। 15.39 लाख वोटर ऐसे हैं जो जनवरी 2023 के बाद 18 वर्ष की उम्र को पूरा कर रहे हैं और नए संशोधन के तहत वो मताधिकार का इस्तेमाल करने के योग्य हैं। 2900 से अधिक पोलिंग स्टेशनों पर युवा कर्मचारियों को तैनात किया जाएगा।

चुनाव आयोग ने बताया कि पूरे देश में वोटरों को जोड़ने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। 5 राज्यों में 57.89 लाख नए वोटर जोड़े गए हैं। पाँचों राज्यों में 1.77 लाख पोलिंग बूथ हैं। हाउस टू हाउस सर्वे चल रहे है, किसी को वोटर लिस्ट में नाम जोड़वाना हो या कोई बदलाव कराना हो तो 17 अक्टूबर, 2023 से लेकर 30 नवंबर, 2023 तक वोटर लिस्ट में वो ऐसा करने में सक्षम होंगे। इनमें से 1.01 लाख वेब कास्टिंग की सुविधा से लैस होंगे। 17,734 मॉडल पोलिंग स्टेशन होंगे। 8192 को महिलाओं द्वारा मैनेज किया जाएगा और 621 दिव्यांग कर्मचारियों द्वारा प्रबंधित किए जाएँगे।

कई राज्यों में ऐसे पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं, जो सुदूर इलाकों में हैं और लोगों को ज़्यादा दूर चलना नहीं पड़ेगा। cVIGIL मोबाइल एप के जरिए 100 मिनट में शिकायतों पर प्रतिक्रिया देने का वादा भी किया गया है। किसी उम्मीदवार की आपराधिक पृष्ठभूमि है तो उनकी पार्टी को बताना पड़ेगा कि उसे क्यों चुना गया, साथ ही प्रत्याशी को भी 3 बार अख़बार और टीवी के जरिए अपने बारे में सब कुछ बताना होगा। राजनीतिक दलों के खर्चों, आय और ऑडिट के लिए डिजिटल टूल विकसित किया गया है।

जो पोलिंग कर्मचारी हैं, जो पोस्टल बैलेट घर ले जा सकते थे और मतगणना तक कभी भी अपना वोट भेज सकते थे, लेकिन अब वोटर फैसिलिटेशन सेंटर पर वोट डालेंगे और फिजिकल रूप से उनके वोट कलेक्ट किए जाएँगे।

कपिल सिब्बल हाथ छोड़ कर हुए साइकल सवार, अब रजाया सभा जाने की तैयारी

दिल्ली व हरियाणा सहित देश के पांच राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने पर केंद्र सरकार ने चिंता जताई है

स्वास्थ्य सचिव ने नए कोरोना मरीजों के आसपास क्लस्टर जोन में निगरानी बढ़ाने के अलावा टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने के लिए भी कहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रमुख सचिव मनीषा सक्सेना को लिखे पत्र में बताया कि बीते एक अप्रैल तक जहां एक सप्ताह में 724 नए मामले दर्ज किए गए, वहीं दो से आठ अप्रैल के बीच 826 नए मामले आए हैं। दो सप्ताह में लगातार बढ़े कोरोना के मामलों के कारण अब राष्ट्रीय स्तर पर अकेले दिल्ली से ही रोजाना औसतन 11.33 फीसदी मामले आ रहे हैं। वहीं दैनिक संक्रमण दर 0.51 से 1.25 फीसदी तक पहुंच गई है। 

नयी दिल्ली(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

दिल्ली व हरियाणा सहित देश के पांच राज्यों में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने पर केंद्र सरकार ने चिंता जताई है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने शुक्रवार को प्रभावित राज्यों को पत्र लिख कर कोरोना निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए। स्वास्थ्य सचिव ने दिल्ली के अलावा हरियाणा, महाराष्ट्र, केरल और मिजोरम के मुख्य सचिवों से एक सप्ताह के दौरान संक्रमण बढ़ने को गंभीरता से लेने को कहा है।

स्वास्थ्य सचिव ने नए कोरोना मरीजों के आसपास क्लस्टर जोन में निगरानी बढ़ाने के अलावा टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने के लिए भी कहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रमुख सचिव मनीषा सक्सेना को लिखे पत्र में बताया कि बीते एक अप्रैल तक जहां एक सप्ताह में 724 नए मामले दर्ज किए गए, वहीं दो से आठ अप्रैल के बीच 826 नए मामले आए हैं। दो सप्ताह में लगातार बढ़े कोरोना के मामलों के कारण अब राष्ट्रीय स्तर पर अकेले दिल्ली से ही रोजाना औसतन 11.33 फीसदी मामले आ रहे हैं। वहीं दैनिक संक्रमण दर 0.51 से 1.25 फीसदी तक पहुंच गई है। 

इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर रोजाना औसतन 5.70 फीसदी मामले अकेले हरियाणा से सामने आ रहे हैं। हरियाणा में दैनिक संक्रमण दर 0.51 से बढ़कर 1.06 फीसदी तक पहुंच गई है। इनके अलावा महाराष्ट्र में हर दिन 10.09 फीसदी नए मामले आ रहे हैं।

मंत्रालय के अनुसार मिजोरम में कोरोना का संक्रमण 16 फीसदी पार हो गया। दो से आठ अप्रैल के बीच यहां 16.48 फीसदी सैंपल कोरोना संक्रमित मिले। जबकि इससे पहले वाले सप्ताह में साप्ताहिक दर 14.38 फीसदी थी। इसी तरह केरल में साप्ताहिक संक्रमण दर 13.45 से बढ़कर 15.53 फीसदी तक पहुंच गई है।

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ

हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी। 

हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी। 

आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी। 

क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।    

मोदी के आवाहन पर भारत ने दिखाई एकता, की दीपावली

कोरोना के खिलाफ जंग में पीएम मोदी की अपील के बाद देशवासी आज रात 9 बजे 9 मिनट दीया, कैंडल, मोबाइल फ्लैश और टार्च जलाकर एकजुटता का परिचय देंगे. लोग दीया जलाने की तैयारी कर लिए हैं.

नई दिल्ली: 

कोरोना वायरस के खिलाफ पूरे देश ने एकजुट होकर प्रकाश पर्व मनाया. पीएम मोदी की अपील पर एकजुट होकर देश ने साबित कर दिया कि कोरोना के खिलाफ हिंदुस्तान पूरी ताकत से लड़ेगा. देश के इस संकल्प से हमारी सेवा में 24 घंटे, सातों दिन जुटे कोरोना फाइटर्स का भी हौसला लाखों गुना बढ़ गया. गौरतलब है कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में हैं. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देश कोरोना के आगे बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं लेकिन भारत के संकल्प की वजह से देश में कोरोना संक्रमण विकसित देशों के मुकाबले कई गुना कम है.

Live Updates- 

  • कोरोना के खिलाफ एकजुट हुआ भारत, प्रकाश से जगमगाया पूरा देश
  • पीएम मोदी की अपील पर हिंदुस्तान ने किया कोरोना के खिलाफ जंग का ऐलान
  • कोरोना के खिलाफ जापान में जला पहला दीया,
  • कुछ देर बाद 130 करोड़ हिंदुस्तानी लेंगे एकजुटता का संकल्प

अमित शाह ने जलाए दीये

दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने अपने आवास पर सभी लाइट बंद करने के बाद मिट्टी के दीपक जलाए. 

योगी आदित्यनाथ ने जलाया दीया

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने दीया जलाकर एकता की पेश की मिसाल. दीए की रोशनी से बनाया ऊं.

अनुपम खेर ने जलायी मोमबत्ती

अनुप खेर ने दीया जलाकर दिया एकता का संदेश

बता दें कि पीएम मोदी ने शुक्रवार को अपील की थी कि पूरे देश के लोग रविवार रात 9 बजे घर की बत्तियां बुझाकर अपने कमरे में या बालकनी में आएं और दीया, कैंडिल, मोबाइल और टॉर्च जलाकर कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी एकजुटा प्रदर्शित करें.

कोरोना से घबरा कर होली फीकी न करें

होली जरूर मनाएं, लेकिन घर पर ही मनाएं। मोहल्लों और गांवों में एकत्रित होकर समूह में न मनाएं। रंगों के इस त्योहार के समय कोरोना अब महामारी बन चुका है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि भीड़ वाले जगहों पर न जाएं। क्योंकि किसी एक को संक्रमण होने पर कई दूसरे लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि होली भी समूह में मनाने से बचें। हैप्पी होली।

चंडीगढ़:

आज होली है। फागुन के इस महीने में रंगों के इस त्योहार में हर कोई सराबोर होने को आतुर है, लेकिन एहतियात भी जरूरी है। चीन से पैदा हुआ कोरोना अंटार्कटिका को छोड़ सारे महाद्वीपों को अपने जद में ले चुका है। इंसानों से इंसानों में इसके वायरस का तेजी से संक्रमण हो रहा है। तभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत तमाम स्वास्थ्य संस्थाएं सामूहिक जुटान न करने की सलाह दे रहे हैं। उनकी इसी सलाह पर प्रधानमंत्री मोदी के बाद एक-एक करके कई मशहूर हस्तियों ने होली न खेलने का निर्णय लिया। जनमानस के लिए तो साल भर का यह त्योहार है। वे भला होली से दूर क्यों रहें। विशेषज्ञ भी कहते हैं कि होली जमकर खेलिए, लेकिन एहतियात बरतना न भूलिए।

यह बात सही है कि विशेष परिस्थितियों में कोरोना सामान्य फ्लू की तुलना में दस गुना घातक है, लेकिन अगर व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत है तो इसका वायरस लाचार हो जाता है। स्वस्थ जीवनशैली और खानपान से कोई भी अपने शरीर की प्रतिरक्षा इकाई को इस वायरस की कवच बना सकता है। बुजुर्गो और किसी अन्य रोग से ग्रसित व्यक्ति को खास एहतियात की दरकार होगी। होली की मस्ती में यह न भूलें कि कोरोना अब विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित की जा चुकी है। लिहाजा जमकर गुलाल उड़ाएं, रंगों की फुहारें छोड़ें, लेकिन अत्यधिक भीड़ में जाने से परहेज करें। कोरोना का वायरस हवा में तैरते अति सूक्ष्म कणों के साथ आंखों यहां तक कि फेस मास्क को भी भेदने की साम‌र्थ्य रखता है। सिर्फ खांसी या छींक के साथ निकलने वाले बड़े कणों को ही मास्क रोकने में सक्षम है। इसलिए सावधान रहिए, लेकिन होली के उल्लास को कम मत होने दीजिए।

विशेषज्ञ बोल

होली जरूर मनाएं, लेकिन घर पर ही मनाएं। मोहल्लों और गांवों में एकत्रित होकर समूह में न मनाएं। रंगों के इस त्योहार के समय कोरोना अब महामारी बन चुका है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि भीड़ वाले जगहों पर न जाएं। क्योंकि किसी एक को संक्रमण होने पर कई दूसरे लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि होली भी समूह में मनाने से बचें। हैप्पी होली।

जब छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्कों में हैं नागरिकता रजिस्टर कानून! भारत में ही NRC का विरोध क्यों?

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

नयी दिल्ली

असम एनआरसी के बाद पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की कवायद भले ही अभी पाइपलाइन में हो और इसका विरोध शुरू हो गया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत के सरहद से सटे लगभग सभी पड़ोसी मुल्क मसलन पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में नागरिकता रजिस्टर कानून है।

पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर को CNIC, अफगानिस्तान में E-Tazkira,बांग्लादेश में NID, नेपाल में राष्ट्रीय पहचानपत्र और श्रीलंका में NIC के नाम से जाना जाता है। सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो जाता है या दाखिल कराया जा रहा है।

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

बीजेपी नेता के मुताबिक अगर पश्चिम बंगाल से 50 लाख घुसैपठियों को नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया तो टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वोट प्रदेश में कम हो जाएगा और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 200 सीटें मिलेंगी और टीएमसी 50 सीटों पर सिमट जाएगी। बीजेपी नेता दावा राजनीतिक भी हो सकता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उनका दावा सही पाया गया है और असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया।

ममता बनर्जी अब भारत में अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं। वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगला में वामपंथी सरकार थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं। दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में पश्चिम बंगाल में वही घुसपैठिए ममता बनर्जी को जान से प्यारे हो गए है।

क्योंकि उनके एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है। शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। गौरतलब है असम इकलौता राज्य है जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया। सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।

दिलचस्प बात यह है कि असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठिओं को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।

लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका और वर्ष 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद असम एनआरसी की लिस्ट जारी की गई। असम की राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची में कुल तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल होने के योग्य पाए गए जबकि 50 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है। शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को कम तवज्जो दिया गया।

असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए। जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए। भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है।

पूरे देश में एनआरसी के प्रतिबद्ध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास के लिए बनाए जाने वाल पैमाने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में नागरिकों की संख्या कितनी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।

इसी तरह पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है। वहीं, पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है।

सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।

पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं, लेकिन एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।

भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया। कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।

भारत में नागरिकता से जुड़ा कानून क्या कहता है?

नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर कहा गया है कि 26 जनवरी, 1950 या इसके बाद से लेकर 1 जुलाई, 1987 तक भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर देश का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 को या इसके बाद, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाला और उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो, वह भारत का नागरिक होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता में से दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों, देश का नागरिक होगा। इस मामले में असम सिर्फ अपवाद था। 1985 के असम समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले विदेशियों को भारत का नागरिक मानने का प्रावधान था। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर सिर्फ असम ऐसा राज्य था, जहां 24 मार्च, 1974 तक आए विदेशियों को भारत का नागरिक बनाने का प्रावधान था।

क्या है एनआरसी और क्या है इसका मकसद?

एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है।

एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इससे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। पूरे भारत में लागू करने के लिए इसके लिए अलग जरूरतें और मसौदा होगा।

एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?

भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। चूंकि सरकार पूरे देश में जो एनआरसी लाने की बात कर रही है, लेकिन उसके प्रावधान अभी तय नहीं हुए हैं। यह एनआरसी लाने में अभी सरकार को लंबी दूरी तय करनी पडे़गी। उसे एनआरसी का मसौदा तैयार कर संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना होगा। फिर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद एनआरसी ऐक्ट अस्तित्व में आएगा। हालांकि, असम की एनआरसी लिस्ट में उन्हें ही जगह दी गई जिन्होंने साबित कर दिया कि वो या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आकर बस गए थे।

क्या NRC सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही होगा?

किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को CAA या NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। एनआरसी का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।

क्या धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?

यह बिल्कुल भ्रामक बात है और गलत है। NRC किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब NRC लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।

NRC में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा?

अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं होता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।

आभार, Shivom Gupta

अब देश में होंगे 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर अब राज्य नहीं

इतिहास के पटल पर आज 31 अक्तूबर का दिन खास तौर पर दर्ज़ हो गया जब आज आधी रात से  जम्मू कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया ।

यह पहला मौका है जब एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया हो। आज आधी रात से फैसला लागू होते ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या नौ हो गई है।

आज जी सी मुर्मू और आर के माथुर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के प्रथम उपराज्यपाल के तौर पर बृहस्पतिवार को शपथ लेंगे।

श्रीनगर और लेह में दो अलग-अलग शपथ ग्रहण समारोहों का आयोजन किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल दोनों को शपथ दिलाएंगी।

सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था, जिसे संसद ने अपनी मंजूरी दी। इसे लेकर देश में खूब सियासी घमासान भी मचा। 

भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने की बात कही थी और मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 90 दिनों के भीतर ही इस वादे को पूरा कर दिया। इस बारे में पांच अगस्त को फैसला किया गया।


सरदार पटेल की जयंती पर बना नया इतिहास 


सरदार पटेल को देश की 560 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय का श्रेय है। इसीलिए उनके जन्मदिवस को ही इस जम्मू कश्मीर के विशेष अस्तित्व को समाप्त करने के लिए चुना गया।
देश में 31 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। आज पीएम मोदी गुजरात के केवडिया में और अमित शाह दिल्ली में अगल-अलग कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया। इसके साथ ही दो केंद्रशासित प्रदेशों का दर्जा मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया है। नए केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अस्तित्व में आए हैं।

 जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की बौखलाहट एक बार फिर सामने आई है. आतंकियों ने कुलगाम में हमला किया है, जिसमें 5 मजदूरों की मौत हो गई है. जबकि एक घायल है. मारे गए सभी मजदूर कश्मीर से बाहर के हैं. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला है. आतंकियों की कायराना हरकत से साफ है कि वे कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले से बौखलाए हुए हैं और लगातार आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं.

जम्मू और कश्मीर पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों ने इस इलाके की घेराबंदी कर ली है और बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चल रहा है. अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है. माना जा रहा है कि मारे गए मजदूर पश्चिम बंगाल के थे.

ये हमला ऐसे समय हुआ है जब यूरोपियन यूनियन के 28 सांसद कश्मीर के दौरे पर हैं. सांसदों के दौरे के कारण घाटी में सुरक्षा काफी कड़ी है. इसके बावजूद आतंकी बौखलाहट में किसी ना किसी वारदात को अंजाम दे रहे हैं. डेलिगेशन के दौरे के बीच ही श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर के कुछ इलाकों में पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं.

जम्मू एवं से अनुच्छेद-370 हटने के बाद यूरोपीय संघ के 27 सांसदों के कश्मीर दौरे को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा सवाल उठाने पर भारतीय जनता पार्टी ने जवाब दिया है. पार्टी का कहना है कि कश्मीर जाने पर अब किसी तरह की रोक नहीं है. देसी-विदेशी सभी पर्यटकों के लिए कश्मीर को खोल दिया गया है, और ऐसे में विदेशी सांसदों के दौरे को लेकर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है.

भाजपा प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा, ‘कश्मीर जाना है तो कांग्रेस वाले सुबह की फ्लाइट पकड़कर चले जाएं. गुलमर्ग जाएं, अनंतनाग जाएं, सैर करें, घूमें-टहलें. किसने उन्हें रोका है? अब तो आम पर्यटकों के लिए भी कश्मीर को खोल दिया गया है.’शहनवाज हुसैन ने कहा कि जब कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा था, तब शांति-व्यवस्था के लिए एहतियातन कुछ कदम जरूर उठाए गए थे, मगर हालात सामान्य होते ही सब रोक हटा ली गई. उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास कुछ छिपाने को नहीं, सिर्फ दिखाने को है.’

भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘जब कश्मीर में तनाव फैलने की आशंका थी, तब बाबा बर्फानी के दर्शन को भी तो रोक दिया गया था. यूरोपीय संघ के सांसद कश्मीर जाना चाहते थे. वे पीएम मोदी से मिले तो अनुमति दी गई. कश्मीर को जब आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है तो विदेशी सांसदों के जाने पर हायतौबा क्यों? विदेशी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जाने से पाकिस्तान का ही दुष्प्रचार खत्म होगा.’