त्रिपुरा-नगालैंड में पीएम मोदी ने चुनावी नतीजों के बाद ट्वीट कर लोगों का धन्यावाद जताया है और कहा कि त्रिपुरा का दिल से शुक्रिया। त्रिपुरा-नगालैंड में बीजेपी की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है। उन्होंने कहा कि त्रिपुरा का दिल से शुक्रिया। ये स्थिरता और विकास के लिए वोट है। त्रिपुरा में बीजेपी विकास के लिए आगे भी काम करती रहेगी। सभी कार्यकर्ताओं पर मुझे गर्व है।
सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़/असम – 02 मार्च :
तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों – त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनाव नतीजों की तैयारी पूरी हो चुकी है और आज यानी गुरुवार को चुनाव नतीजे घोषित होने वाले हैं। इन राज्यों में 16 और 27 फरवरी को मतदान हुआ था। दो मार्च को कड़ी सुरक्षा के बीच इस चुनावी जंग के लिए वोटों की गिनती की जाएगी। चुनावी भविष्यवाणी करने वालों ने नागालैंड और त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके गठबंधन के लिए आसानी बहुमत हासिल करने की भविष्यवाणी की है, जबकि मेघालय में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जताई गई है। त्रिपुरा बीजेपी और उसके गठबंधन सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) त्रिपुरा में लगातार दूसरे कार्यकाल की मांग कर रहे हैं। 2018 में, इसी गठबंधन ने CPI (M) से सत्ता छीन ली थी, जो राज्य में तीस से ज्यादा सालों से राज करती आ रही थी। 60 सदस्य वाले सदन के लिए वोटों की गिनती सुबह सात बजे से होगी, जिसमें 259 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होगा। राज्य में 89.95 प्रतिशत मतदान हुआ है।
त्रिपुरा में भाजपा को बहुमत
नतीजों से पहले, चुनाव आयोग 3,000 से ज्यादा मतदान केंद्रों में शांति बैठकें आयोजित कर रहा है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वोटों की गिनती के दौरान कोई हिंसा न हो। इस साल, मतदान के दिन हिंसा की कुछ “छुटपुट घटनाओं” को छोड़कर, राज्य में विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण रहे हैं, जहां चुनावों के दौरान अपेक्षाकृत हिंसा देखी गई है। BJP-IPFT को वामपंथी और कांग्रेस के गठबंधन से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वाम मोर्चा 47 सीटों पर और कांग्रेस 13 सीटों पर चुनाव लड़ी है। तृणमूल कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ी और 58 निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं। मेघालय चुनाव आयोग ने 27 फरवरी को 59 सीटों के लिए चुनाव कराया था। HDR लिंगदोह सीट से यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (UDP) के उम्मीदवार के निधन के बाद सोहियोंग विधानसभा क्षेत्र का मतदान स्थगित कर दिया गया था।
मेघालय में NPP सबसे ज्यादा सीटों पर आगे
राज्य के 60 निर्वाचन क्षेत्रों में से 36 निर्वाचन क्षेत्र खासी, जयंतिया हिल्स क्षेत्र में आते हैं, जबकि 24 निर्वाचन क्षेत्र गारो हिल्स क्षेत्र में हैं। मेघालय विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल 15 मार्च को खत्म होगा। राज्य में सरकार बनाने के लिए बहुमत का निशान 31 है। कई एजेंसियों के एग्जिट पोल से पता चला है कि मेघालय में मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ त्रिशंकु विधानसभा देखने को मिल सकती है।
नगालैंड में भी भाजपा को बहुमत
ऐसा अनुमान है कि NPP की राज्य में सबसे ज्यादा सीटें जीतने का अनुमान है, लेकिन ये आधे आंकड़े को भी नहीं छू पाएगी। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस एक गेम चेंजर के रूप में उभर सकती है, क्योंकि इसके राज्य में दूसरी सबसे बड़ी सीटें जीतने की उम्मीद है। चुनाव आयोग ने मेघालय में सुचारू मतदान प्रक्रिया के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की 119 कंपनियों को तैनात किया है। चुनाव आयोग के अनुसार, 60 विधानसभा सीटों के लिए 375 उम्मीदवार मैदान में हैं। 233 उम्मीदवार राष्ट्रीय दलों से हैं, 69 क्षेत्रीय दलों से हैं और 44 निर्दलीय उम्मीदवार हैं। राज्य में 76.27 प्रतिशत मतदान हुआ। नागालैंड नागालैंड में 85 प्रतिशत मतदान हुआ है और 60 सदस्य वाली विधानसभा के लिए 183 उम्मीदवार मैदान में हैं।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) ने गठबंधन किया है और राज्य में सत्ता बरकरार रखने की कोशिश कर रही है। बीजेपी ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि NDPP 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इस बीच, नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) और कांग्रेस क्रमश: 22 और 23 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। चुनाव आयोग के अनुसार, कुल 183 183 उम्मीदवारों में से केवल चार महिलाएं हैं। 1963 में राज्य की स्थापना के बाद से, नागालैंड ने 14 विधानसभा चुनाव देखे हैं, लेकिन एक महिला कभी विधायक नहीं चुनी गई है। ये पहली बार होगा, अगर महिला उम्मीदवार सत्ता में चुनी जाती हैं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2023/03/result.jpg464828Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2023-03-02 16:22:092023-03-02 16:26:37त्रिपुरा-नगालैंड में भाजपा को फिर बहुमत, मेघालय में NPP आगे
एग्जिट पोल के जरिए चुनाव में जनता ने कौन से दल पर भरोसा जताया और किस दल को लेकर उसका रुझान है इसका अनुमान लगाया जाता है। अगले साल लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं इसलिए ये विधानसभा चुनाव इस लिहाज से भी काफी अहम माने जा रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवाद और घुसपैठ और विकास जैसे मुद्दे आम रहते हैं इसलिए इन चुनावों में भी यही मुद्दे छाए रहे हैं। अब एग्जिट पोल के जरिए ये अनुमान लगाया जाएगा कि कौन से दल पर जनता ने ज्यादा विश्वास जताया है।
अजय सिंगला। डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़ :
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम दो मार्च को आने हैं, लेकिन सोमवार को एक्जिट पोल के अनुमानों के अनुसार त्रिपुरा में भाजपा की पहले से ज्यादा सीटों के साथ दमदार वापसी हो सकती है। कांग्रेस-वामदलों और भाजपा गठबंधन के बीच संघर्ष में पहली बार आए टिपरा मोथा की करामात कुछ खास क्षेत्र तक ही सीमित रह सकती है। फिर भी इसे नौ से ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं।
पूर्वोत्तर भारत के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव करवाए गए हैं, और मतगणना, यानी चुनाव परिणाम 2 मार्च, 2023 को घोषित किए जाएंगे। अलग-अलग मीडिया हाउस की ओऔर से कराए गए एक्ज़िट पोल में चुनावी नतीजों के रुझान सामने आ गए हैं। पोल ऑफ एक्ज़िट पोल के मुताबिक अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस राज्य में कौन सा दल सत्ता में आ सकता है। त्रिपुरा में एक ही चरण में 16 फरवरी को मतदान करवाया गया था, जबकि मेघालय और नागालैंड में भी एक ही चरण में सोमवार, 27 फरवरी को मतदान करवाया गया।
सोमवार को वोटिंग खत्म होने के बाद जी न्यूज-मेट्राइस,न्यूज 18-सी वोटर्स, इंडिया टुडे- एक्सिस माय इंडिया और टाइम्स नाउ-ईटीजी रिसर्च ने एग्जिट पोल जारी किए। नीचे दिए ग्राफिक्स में अलग-अलग राज्यों में इन एग्जिट पोल्स के अनुमान देख सकते हैं।
चुनाव आयोग ने नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में विधानसभा चुनाव का ऐलान 18 जनवरी को किया था। तीनों राज्यों में फरवरी की 16 और 27 तारीख को वोटिंग हुई। सभी राज्यों में मतगणना 2 मार्च को होगी।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2023/02/Exit-Poll-23-a.jpg400700Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2023-02-28 03:00:492023-02-28 03:05:54नगालैंड – त्रिपुरा – मेघालय चुनाव का एग्जिट पोल
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2022/05/images-1-1.jpeg420315Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2022-05-25 07:32:562022-05-25 07:40:11कपिल सिब्बल हाथ छोड़ कर हुए साइकल सवार, अब रजाया सभा जाने की तैयारी
3 राज्यों में AFSPA का दायरा घटा: असम, नगालैंड, मणिपुर के कुछ हिस्सों से हटा सेना को स्पेशल पावर देने वाला कानून, लंबे समय से थी हटाने की मांग भारत सरकार ने दशकों बाद नगालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दशकों बाद पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार (31 मार्च 2022) को सिलसिलेवार तीन ट्वीट कर यह जानकारी दी। गृहमंत्री ने लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक अहम फैसला लिया गया है। भारत सरकार ने दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर राज्य में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का निर्णय लिया है।”
नयी द्ल्लि(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :
भारत सरकार ने दशकों बाद नगालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों का दायरा कम करने का फैसला किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट में यह जानकारी दी है। शाह ने लिखा- AFSPA के इलाकों का दायरा घटाने में सरकार के शांति लाने के लिए किए जा रहे प्रयास मददगार रहे हैं। इन इलाकों में उग्रवाद पर भी नियंत्रण बढ़ा है। कई समझौतों के कारण सुरक्षा के हालात और विकास ने भी कानून हटाने में मदद की।
Government of India decides to reduce disturbed areas under Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) in the states of Nagaland, Assam and Manipur after decades: Union Home Minister Amit Shah pic.twitter.com/2WDCJmp9gI
पिछले साल दिसंबर में नगालैंड में सेना के हाथों 13 आम लोगों के मारे जाने और एक अन्य घटना में एक व्यक्ति के मारे जाने के बाद असम में अफ्सपा (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम ) हटाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था। यह एक्ट मणिपुर में (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़ कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगदिंग और तिरप जिलों में, असम से लगने वाले उसके सीमावर्ती जिलों के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों के अलावा नगालैंड और असम में लागू है। केंद्र सरकार ने जनवरी की शुरुआत में नगालैंड में इसे छह महीने के लिए बढ़ा दिया था।
उन्होंने लिखा, “अफस्पा (AFSPA) के इलाकों में सरकार के शांति लाने के लिए किए जा रहे प्रयास मददगार रहे हैं। इन इलाकों में उग्रवाद पर भी नियंत्रण बढ़ा है। कई समझौतों के कारण सुरक्षा के हालात और विकास ने भी कानून हटाने में मदद की।” इसके बाद वह (अमित शाह) अपने अंतिम ट्वीट में पीएम मोदी को धन्यवाद करते हुए लिखते हैं, “पीएम मोदी की प्रतिबद्धता के कारण हमारा पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो दशकों से उपेक्षित था, अब शांति, समृद्धि और अभूतपूर्व विकास के एक नए युग का गवाह बन रहा है। मैं इस महत्वपूर्ण अवसर पर पूर्वोत्तर के लोगों को बधाई देता हूँ।”
सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को केवल अशांत क्षेत्रों में ही लागू किया जाता है। पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की सहूलियत के लिए 11 सितंबर 1958 को यह कानून पास किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो यहाँ भी 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया था। अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये भी केंद्र सरकार ही तय करती है। आसान शब्दों में अफस्पा कानून को ऐसे समझे। यह किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित कर देती है। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं। कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार मिल जाता है।
इस एक्ट को सबसे पहले अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था। उस वक्त ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए थे। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया। फिर वर्ष 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA को लाया गया और तीन महीने बाद ही अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिल गई। इसके बाद 11 सितंबर 1958 को AFSPA एक कानून के रूप में लागू हो गया।
इस कानून को लागू करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इसे उन इलाकों में लागू किया जाता है, जिनमें उग्रवादी गतिविधियाँ होती रहती हैं। भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों तरफ कई अलगाववादी विद्रोही संगठनों के ठिकाने हैं। नागालैंड के अलावा मणिपुर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सक्रिय है, जो सेना पर हमले करती रहती है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में भी अलगाववादी संगठन सक्रिय है। इन संगठनों से निपटने और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सेना को अफस्पा के तहत विशेष अधिकार दिए गए।
AFSPA को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई हिस्सों में लागू किया गया था। लेकिन, समय-समय पर परिस्थितियों को देखते हुए हटा भी दिया जाता है। मणिपुर में अफस्फा के खिलाफ इरोम चानू शर्मिला ने 16 साल तक अनशन किया था। नवंबर 2000 में आयरन लेडी के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला के सामने एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना का विरोध करते हुए उस वक्त 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल तक चली। अगस्त 2016 में उन्होंने भूख हड़ताल खत्म करके राजनीति में आने का फैसला किया और चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा (NOTA) से भी कम वोट मिले थे। बताया जाता है कि उन्हें सिर्फ 90 वोट मिले थे, जबकि 143 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2022/03/984489-afspa-act.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2022-03-31 16:39:532022-03-31 16:40:37असम, नगालैंड, मणिपुर के कुछ हिस्सों से हटा सेना को स्पेशल पावर देने वाला कानून, लंबे समय से थी हटाने की मांग
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने मामले को उठाते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से जवाब देने की मांग की और संबंधित घटना की पूरी जानकारी मांगी। विपक्ष के नेता खड़गे ने कहा- हम मांग करते हैं कि संसद के दोनों सदनों में केन्द्रीय गृह मंत्री घटना में बारे में विस्तृत जानकारी दें। ऐसी हम उम्मीद करते हैं। यह एक बेहद ही संवेदनशील मुद्दा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। उन्हें अवश्य यह जवाब देना चाहिए कि क्यों ऐसा हुआ है। सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर बयान देंगे। उन्होंने इसे काफी गंभीर मुद्दा बताया। राज्यसभा की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।
नयी दिल्ली(ब्यूरो), 06 दिसंबर :
गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को संसद के दोनों सदनों में नगालैंड की घटना पर बयान दे रहे हैं। उक्त घटना में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 आम नागरिक मारे गए थे। संसदीय सूत्रों ने बताया कि शाह पहले लोकसभा में और फिर राज्यसभा में बयान दे सकते हैं।
नागालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 13 नागरिकों की मौत और उसके बाद हुई हिंसा में एक सैनिक की मौत के मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार (6 दिसंबर, 2021) को संसद में बयान दिया। उन्होंने बताया कि भारतीय सेना को नागालैंड के मोन जिले के तिजीत क्षेत्र में तिरुगाँव के पास उग्रवादियों की आवाजाही की सूचना मिली थी, जिसके आधार पर सेना के 21 पैराकमांडो के एक दस्ते ने 4 दिसंबर, 2021 की शाम को संदिग्ध क्षेत्र में घात लगाया।
केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि जहाँ भारतीय सेना मौजूद थी, उसी स्थान पर एक वाहन गुजरा। वाहन को रुकने का इशारा किया गया, लेकिन वो गाड़ी उस जगह से तेजी से निकलने का प्रयास करने लगी। अमित शाह ने बताया कि इस आशंका पर कि वाहन में संदिग्ध विद्रोही जा रहे थे, उस पर गोली चलाई गई और उसमें सवार 8 व्यक्तियों में से 6 की मौत हो गई। अमित शाह ने माना कि बाद में ये ‘गलत पहचान’ का मामला पाया गया और जो दो लोग घायल हुए थे, उन्हें सेना द्वारा ही इलाज हेतु नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया।
अमित शाह ने संसद को बताया, “इस घटना का समाचार मिलने के बाद स्थानीय ग्रामीणों ने सेना की टुकड़ी को घेर लिया, दो वाहनों को जला दिया और उन पर हमला किया। इसके परिणामस्वरूप सुरक्षा बल के एक जवान की मृत्यु हो गई। कई अन्य जवान घायल हो गए। अपनी सुरक्षा में एवं भीड़ को तितर-बितर करने के लिए जवानों को गोली चलानी पड़ी, जिसमें 7 अन्य नागरिकों की मौत हो गई कुछ कुछ अन्य घायल हो गए। स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने स्थिति को सामान्य करने के प्रयास किए हैं।”
केंद्रीय गृह मंत्री ने जानकारी दी थी स्थिति अभी भी तनावपूर्ण ही है, लेकिन नियंत्रण में बनी हुई है। उन्होंने बताया कि नागालैंड के पुलिस महानिदेशक और वहाँ के आयुक्त ने घटना के अगले घटनास्थल का दौरा किया। अमित शाह ने तिजीत पुलिस थाने में इस घटना को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई है और मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए इसे ‘राज्य अपराध पुलिस स्टेशन’ को जाँच के लिए सौंप दिया गया है। साथ ही एक विशेष SIT का भी गठन किया गया है, जिसे निर्देश दिया गया है कि वो एक महीने के भीतर जाँच पूरी करे।
उन्होंने बताया, “उपरोक्त घटना के अगले दिन शाम को लगभग 250 लोगों की उद्वेलित भीड़ ने मोन शहर में ‘असम राइफल्स’ की कंपनी ऑपेरेटिंग बेस ने तोड़फोड़ की और दफ्तर में आग लगा दी, जिसके बाद भीड़ को तितर-बितर करने के लिए ‘असम राइफल्स’ को गोली चलानी पड़ी। इस कारण एक और नागरिक की मृत्यु हो गई और एक घायल हो गए। प्रभावित क्षेत्र में किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं। सेना के 3 कोर मुख्यालय द्वारा एक प्रेस व्यक्तव्य जारी किया गया है।”
बता दें कि इस प्रेस वक्तव्य में भारतीय सेना ने निर्दोष नागरिकों की मौत को लेकर अत्यधिक दुःख व्यक्त किया था। अमित शाह ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि सेना इसके कारणों की जाँच उच्च-स्तर पर की जा रही है और कानून के हिसाब से कार्रवाई होगी। अमित शाह ने बताया कि वो लगातार नागालैंड की सरकार से संपर्क में हैं और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तुरंत पूर्वोत्तर के सचिव को कोहिमा भेजा, जहाँ उन्होंने वहाँ के नेताओं-अधिकारियों के साथ बैठक की।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/12/Amit-Shah-Parliament.jpg392696Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-12-06 12:42:162021-12-06 12:43:06लोक सभा में नागालैंड में हुई हत्याओं पर गृह मंत्री का ब्यान
हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी।
हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी।
आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।
क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/02/RSPLS.png382966Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-02-12 08:29:242021-02-12 10:03:53इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ
पूर्व आईपीएस अधिकारी ने यह खौफनाक कदम क्यों उठाया, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है। फिलहाल एसपी शिमला मोहित चावला की अगुवाई में पुलिस टीम घटनास्थल पर मौजूद है और मामले में जांच कर रही है। पुलिस को घटनास्थल से सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है। जिनमें लिखा गया है कि जिंदगी से तंग आकर अगली यात्रा पर निकल रहा हूं। खुदकुशी की इस घटना से हर कोई स्तब्ध है।
अजय सिंगला, शिमला:
नगालैंड के पूर्व राज्यपाल एवं पूर्व सीबीआई निदेशक और हिमाचल के पूर्व पुलिस महानिदेशक रहे अश्वनी कुमार ने बुधवार को रस्सी से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस सूत्रों के अनुसार शिमला स्थित ब्राकहास्ट में उनके आवास में पूर्व आईपीएस अधिकारी अश्वनी कुमार का शव लटका पाया गया। उन्होंने यह कदम क्यों उठाया, इसकी पुष्ट जानकारी अभी सामने नहीं आई है। हालांकि पुलिस को मिले सुसाइड नोट में अश्वनी कुमार ने बीमारी से तंग आकर जान देने की बात लिखी है।
उन्होंने लिखा कि जिंदगी से तंग आकर अगली यात्रा पर निकल रहा हूं और मौत के बाद उनके अंग दान कर दिए जाएं। एसपी शिमला मोहित चावला की अगवाई में देर रात पुलिस टीम घटनास्थल पर जुटी रही। एफ एसएल की टीम भी जांच कर रही है। 70 वर्षीय अश्वनी कुमार का जन्म सिरमौर के जिला मुख्यालय नाहन में हुआ था। वह आईपीएस अधिकारी थे और सीबीआई एवं एलीट एसपीजी में विभिन्न पदों पर भी रहे। तीन साल तक सीबीआई के डायरेक्टर रहे थे। वह सीबीआई के पहले ऐसे प्रमुख रहे, जिन्हें बाद में राज्यपाल बनाया गया था।
उन्हें नगालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। हालांकि वर्ष 2014 में उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद वह शिमला में निजी विश्वविद्यालय एपीजी के वाइस चांसलर भी रहे। सीआईडी इस विवि में हुए फर्जी डिग्री मामले की भी जांच कर रही है। प्रदेश पुलिस के उच्च अधिकारी और सीबीआई के अफसर देर शाम उनके निवास स्थान पर पहुंच गए। पूरे क्षेत्र को सील कर दिया गया है। ड्यूटी पर तैनात गार्ड ने बताया कि शाम 4:40 बजे वह बाहर गए थे। अश्वनी कुमार मार्च 2013 से 2014 तक नगालैंड के राज्यपाल रहे। वर्ष 2006 से 2008 तक डीजीपी हिमाचल और वर्ष 2008 से 2010 तक सीबीआई निदेशक तैनात रहे।
हमारे लिए तो प्रेरणास्रोत थे अश्वनी कुमार: भंडारी
पूर्व डीजीपी आईडी भंडारी ने कहा कि उनके लिए तो अश्वनी कुमार प्रेरणास्रोत थे। वह बहुत मेहनती थे। वह उनके एसपी भी रहे। उन्होंने 1984 के आसपास उन्हीं के पास ज्वाइन किया था। वह ईमानदार और कर्मठ आदमी थे। यह बहुत ही दुखद बात है।
उनके लिए सदमे की तरह है
पूर्व डीजीपी डीएस मन्हास ने भी उनके इस तरह से शरीर छोड़ने पर बहुत दुख जताया। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। पूर्व एडीजीपी केसी सडयाल ने भी कहा कि यह बहुत ही दुखद है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/10/ashwani_kumar_file_mha1.jpg6751200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-10-08 03:03:032020-10-08 03:03:25नगालैंड के पूर्व राज्यपाल अश्वनी कुमार ने आत्महत्या की
कोरोना के खिलाफ जंग में पीएम मोदी की अपील के बाद देशवासी आज रात 9 बजे 9 मिनट दीया, कैंडल, मोबाइल फ्लैश और टार्च जलाकर एकजुटता का परिचय देंगे. लोग दीया जलाने की तैयारी कर लिए हैं.
नई दिल्ली:
कोरोना वायरस के खिलाफ पूरे देश ने एकजुट होकर प्रकाश पर्व मनाया. पीएम मोदी की अपील पर एकजुट होकर देश ने साबित कर दिया कि कोरोना के खिलाफ हिंदुस्तान पूरी ताकत से लड़ेगा. देश के इस संकल्प से हमारी सेवा में 24 घंटे, सातों दिन जुटे कोरोना फाइटर्स का भी हौसला लाखों गुना बढ़ गया. गौरतलब है कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में हैं. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देश कोरोना के आगे बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं लेकिन भारत के संकल्प की वजह से देश में कोरोना संक्रमण विकसित देशों के मुकाबले कई गुना कम है.
Live Updates-
कोरोना के खिलाफ एकजुट हुआ भारत, प्रकाश से जगमगाया पूरा देश
पीएम मोदी की अपील पर हिंदुस्तान ने किया कोरोना के खिलाफ जंग का ऐलान
कोरोना के खिलाफ जापान में जला पहला दीया,
कुछ देर बाद 130 करोड़ हिंदुस्तानी लेंगे एकजुटता का संकल्प
अमित शाह ने जलाए दीये
दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने अपने आवास पर सभी लाइट बंद करने के बाद मिट्टी के दीपक जलाए.
Delhi: Home Minister Amit Shah lights earthen lamps after turning off all lights at his residence. PM had appealed to the nation to switch off all lights of houses today at 9 PM for 9 minutes,& just light a candle, 'diya', or flashlight, to mark India's fight against #Coronaviruspic.twitter.com/J8HvaGCfCL
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने दीया जलाकर एकता की पेश की मिसाल. दीए की रोशनी से बनाया ऊं.
Lucknow: UP CM Yogi Adityanath lights earthen lamps to form an 'Om', at his residence. PM Modi had appealed to the nation to switch off all lights of houses today at 9 PM for 9 minutes, and just light a candle, 'diya', or flashlight, to mark India's fight against #Coronavirus. pic.twitter.com/QXrj2oTsVu
बता दें कि पीएम मोदी ने शुक्रवार को अपील की थी कि पूरे देश के लोग रविवार रात 9 बजे घर की बत्तियां बुझाकर अपने कमरे में या बालकनी में आएं और दीया, कैंडिल, मोबाइल और टॉर्च जलाकर कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी एकजुटा प्रदर्शित करें.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/04/navjivanindia_2020-04_148487f8-a244-4808-a0a3-f67f62f61ceb_WhatsApp_Image_2020_04_05_at_9_16_56_PM.jpeg6751200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-04-05 18:07:362020-04-05 18:13:52मोदी के आवाहन पर भारत ने दिखाई एकता, की दीपावली
होली जरूर मनाएं, लेकिन घर पर ही मनाएं। मोहल्लों और गांवों में एकत्रित होकर समूह में न मनाएं। रंगों के इस त्योहार के समय कोरोना अब महामारी बन चुका है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि भीड़ वाले जगहों पर न जाएं। क्योंकि किसी एक को संक्रमण होने पर कई दूसरे लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि होली भी समूह में मनाने से बचें। हैप्पी होली।
चंडीगढ़:
आज होली है। फागुन के इस महीने में रंगों के इस त्योहार में हर कोई सराबोर होने को आतुर है, लेकिन एहतियात भी जरूरी है। चीन से पैदा हुआ कोरोना अंटार्कटिका को छोड़ सारे महाद्वीपों को अपने जद में ले चुका है। इंसानों से इंसानों में इसके वायरस का तेजी से संक्रमण हो रहा है। तभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत तमाम स्वास्थ्य संस्थाएं सामूहिक जुटान न करने की सलाह दे रहे हैं। उनकी इसी सलाह पर प्रधानमंत्री मोदी के बाद एक-एक करके कई मशहूर हस्तियों ने होली न खेलने का निर्णय लिया। जनमानस के लिए तो साल भर का यह त्योहार है। वे भला होली से दूर क्यों रहें। विशेषज्ञ भी कहते हैं कि होली जमकर खेलिए, लेकिन एहतियात बरतना न भूलिए।
यह बात सही है कि विशेष परिस्थितियों में कोरोना सामान्य फ्लू की तुलना में दस गुना घातक है, लेकिन अगर व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत है तो इसका वायरस लाचार हो जाता है। स्वस्थ जीवनशैली और खानपान से कोई भी अपने शरीर की प्रतिरक्षा इकाई को इस वायरस की कवच बना सकता है। बुजुर्गो और किसी अन्य रोग से ग्रसित व्यक्ति को खास एहतियात की दरकार होगी। होली की मस्ती में यह न भूलें कि कोरोना अब विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित की जा चुकी है। लिहाजा जमकर गुलाल उड़ाएं, रंगों की फुहारें छोड़ें, लेकिन अत्यधिक भीड़ में जाने से परहेज करें। कोरोना का वायरस हवा में तैरते अति सूक्ष्म कणों के साथ आंखों यहां तक कि फेस मास्क को भी भेदने की सामर्थ्य रखता है। सिर्फ खांसी या छींक के साथ निकलने वाले बड़े कणों को ही मास्क रोकने में सक्षम है। इसलिए सावधान रहिए, लेकिन होली के उल्लास को कम मत होने दीजिए।
विशेषज्ञ बोल
होली जरूर मनाएं, लेकिन घर पर ही मनाएं। मोहल्लों और गांवों में एकत्रित होकर समूह में न मनाएं। रंगों के इस त्योहार के समय कोरोना अब महामारी बन चुका है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि भीड़ वाले जगहों पर न जाएं। क्योंकि किसी एक को संक्रमण होने पर कई दूसरे लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि होली भी समूह में मनाने से बचें। हैप्पी होली।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/03/hqdefault.jpg360480Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-03-10 01:40:172020-03-10 01:40:31कोरोना से घबरा कर होली फीकी न करें
भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।
नयी दिल्ली
असम एनआरसी के बाद पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की कवायद भले ही अभी पाइपलाइन में हो और इसका विरोध शुरू हो गया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत के सरहद से सटे लगभग सभी पड़ोसी मुल्क मसलन पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में नागरिकता रजिस्टर कानून है।
पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर को CNIC, अफगानिस्तान में E-Tazkira,बांग्लादेश में NID, नेपाल में राष्ट्रीय पहचानपत्र और श्रीलंका में NIC के नाम से जाना जाता है। सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो जाता है या दाखिल कराया जा रहा है।
भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।
बीजेपी नेता के मुताबिक अगर पश्चिम बंगाल से 50 लाख घुसैपठियों को नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया तो टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वोट प्रदेश में कम हो जाएगा और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 200 सीटें मिलेंगी और टीएमसी 50 सीटों पर सिमट जाएगी। बीजेपी नेता दावा राजनीतिक भी हो सकता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उनका दावा सही पाया गया है और असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया।
ममता बनर्जी अब भारत में अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं। वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगला में वामपंथी सरकार थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं। दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में पश्चिम बंगाल में वही घुसपैठिए ममता बनर्जी को जान से प्यारे हो गए है।
क्योंकि उनके एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है। शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। गौरतलब है असम इकलौता राज्य है जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया। सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।
दिलचस्प बात यह है कि असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठिओं को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।
लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका और वर्ष 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद असम एनआरसी की लिस्ट जारी की गई। असम की राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची में कुल तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल होने के योग्य पाए गए जबकि 50 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है। शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को कम तवज्जो दिया गया।
असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए। जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए। भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है।
पूरे देश में एनआरसी के प्रतिबद्ध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास के लिए बनाए जाने वाल पैमाने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में नागरिकों की संख्या कितनी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।
इसी तरह पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है। वहीं, पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है।
सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।
पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं, लेकिन एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।
भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया। कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।
भारत में नागरिकता से जुड़ा कानून क्या कहता है?
नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर कहा गया है कि 26 जनवरी, 1950 या इसके बाद से लेकर 1 जुलाई, 1987 तक भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर देश का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 को या इसके बाद, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाला और उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो, वह भारत का नागरिक होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता में से दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों, देश का नागरिक होगा। इस मामले में असम सिर्फ अपवाद था। 1985 के असम समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले विदेशियों को भारत का नागरिक मानने का प्रावधान था। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर सिर्फ असम ऐसा राज्य था, जहां 24 मार्च, 1974 तक आए विदेशियों को भारत का नागरिक बनाने का प्रावधान था।
क्या है एनआरसी और क्या है इसका मकसद?
एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है।
एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इससे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। पूरे भारत में लागू करने के लिए इसके लिए अलग जरूरतें और मसौदा होगा।
एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?
भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। चूंकि सरकार पूरे देश में जो एनआरसी लाने की बात कर रही है, लेकिन उसके प्रावधान अभी तय नहीं हुए हैं। यह एनआरसी लाने में अभी सरकार को लंबी दूरी तय करनी पडे़गी। उसे एनआरसी का मसौदा तैयार कर संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना होगा। फिर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद एनआरसी ऐक्ट अस्तित्व में आएगा। हालांकि, असम की एनआरसी लिस्ट में उन्हें ही जगह दी गई जिन्होंने साबित कर दिया कि वो या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आकर बस गए थे।
क्या NRC सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही होगा?
किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को CAA या NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। एनआरसी का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।
क्या धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?
यह बिल्कुल भ्रामक बात है और गलत है। NRC किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब NRC लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।
NRC में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा?
अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं होता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।
आभार, Shivom Gupta
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/01/nrcn-1578736214-1579523229.jpg338600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-01-22 02:49:502020-01-22 02:49:53जब छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्कों में हैं नागरिकता रजिस्टर कानून! भारत में ही NRC का विरोध क्यों?
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