विदेशी भाषा की आंधी में मातृभाषा के दीप जलाएंगे…

कवियों ने मनाया हिंदी दिवस

डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़- 15सितम्बर :

आज अखिल भारतीय कवि परिषद् की स्थानीय ईकाई की ओर से हिंदी दिवस पर कवि गोष्ठी  का आयोजन किया गया जिसमें शहर के नामी कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम सेंट जोसेफ स्कूल, से. 44 में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में स्कूल के डायरेक्टर सुखदीप सिंह और प्रिंसिपल मोनिका चावला ने मुख्य अतिथि प्रेम विज एवं डॉ. अनीश गर्ग का स्वागत किया।

मंच संचालिका राशि श्रीवास्तव ने सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

वरिष्ठ कवि डॉ. अनीश गर्ग ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा कि निश्चय ही उल्लास से हम हिंदी दिवस मनायेंगे…विदेशी भाषा की आंधी में साहित्य धरा पर मातृभाषा के दीप जलाएंगे…,

प्रेम विज ने व्यंग्यात्मक कविता पेश करते हुए कहा कि हैड आफिस से अंग्रेजी में आया फरमान..धूमधाम से मनाया जाए हिंदी दिवस,

डॉ. विनोद शर्मा ने फ़रमाया कि हिंदी मिटाती दिल से दूरी, करती पूरी अभिलाषा अधूरी…,

डेज़ी बेदी ने पढ़ा कि हिंदी बोली आज तुम औपचारिकता को निभा लो, लिखो हिंदी भाषा में आज कविताओं को सजा लो,

प्राचार्या मोनिका चावला ने भी अपनी कविता के माध्यम से कहा कि जैसी भी है ज़िंदगी…अपनी ही है ज़िंदगी…।

इनके अलावा प्रतिष्ठित कवियों मुरारी लाल अरोड़ा, डॉ. संगीता शर्मा कुंद्रा, हेमा शर्मा, अनीता गरेजा, रजनी बजाज ने भी अपनी खूबसूरत हिंदी की कविताएं प्रस्तुत की। स्कूल के डायरेक्टर ने सभी कवियों का आभार व्यक्त करते हुए अखिल भारतीय कवि मंच को कवि गोष्ठियों के लिए स्कूल का ऑडिटोरियम निशुल्क उपलब्ध कराने की घोषणा की।

 हरियाणा की बेटियों रिद्धिमा और विधिका कौशिक ने रचा इतिहास

सुशील पण्डित
राजनैतिक विश्लेषक
  •  हरियाणा का गौरव बनकर उभरी रिद्धिमा और विधिका कौशिक

सुशील पण्डित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर – 08 सितम्बर :

एक समय था जब कहा जाता था कि पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब,खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब। परंतु जैसे जैसे समय बदला और समय के साथ साथ धारणाएँ भी बदल गई, वर्त्तमान परिदृश्य में खेल जीवन में आगे बढ़ने का ऐसा सशक्त माध्यम बन चुका है जिसके बल पर मनुष्य बड़ी से बड़ी चुनौती को स्वीकार करके जीवन के हर क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित करने में सक्षम हो रहा हैं। देश की आज़ादी के पश्चात यदि पुरुष और महिला खिलाड़ियों द्वारा खेलों के माध्यम से हासिल की सफ़लता का आंकलन किया जाए तो निश्चित रूप से महिलाएं समाज और राष्ट्र की उन्नति में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। लड़कियों द्वारा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करके देश का परचम लहराया जा रहा है। खेल किसी भी मनुष्य के जीवन के लिए उतना ही महत्व रखते हैं जितना कि एक सफल इंसान बनने में शिक्षा व अन्य संसाधनों का है। यदि यह कहा जाए कि खेल के माध्यम से मनुष्य का चौमुखी विकास हो सकता है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी यह एक ज्ञात तथ्य है कि स्वस्थ व सफल जीवन शैली के लिए खेल अभिन्न हिस्सा है। हालांकि छोटी उम्र से खेल खेलने के बहुत सारे लाभ है खेल जहाँ स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देता है वहीं आत्म सम्मान की दृष्टि से खेल का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व माना जाता है।

वर्तमान की तेज तर्रार और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा से भरपूर जीवन में खेलों का अत्यधिक महत्व रहता है सामान्य तौर पर युवाओं के जीवन में खेल की भूमिका महत्वपूर्ण होती है परंतु खेल में भागीदारी सुनिश्चित करना विशेष रूप से लड़कियों और महिलाओं के लिए महत्व रखता है। भारत में आज भी बहुत से ऐसे क्षेत्र है जहां लड़कियों के लिए शिक्षा आभाव तथा कम उम्र में विवाह तथा स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की अक्षमता तथा लिंगानुपात की दृष्टि से लड़कियों और महिलाओं को समान अवसर से वंचित रहना पड़ता है। इन परिस्थितियों में खेल एक उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है। दरअसल खेल महिला खिलाड़ियों को नित नए अवसर प्रदान करता है तथा जीवन की चुनोतियों को स्वीकार करने का कौशल विकसित करने में सहायक सिद्ध होता है। यदि बात वर्तमान परिदृश्य में खेलों की जाए तो आज देश की बच्चियों खेलों में बेहतर प्रदर्शन करके न केवल स्वयं का अपितु पूरे देश का नाम विश्व के पटल पर रोशन करने में लगी है। इसी का जीवंत उदाहरण बनकर उभरी है, हरियाणा के फरीदाबाद की दो सगी बहने विधिका कौशिक व रिद्धिमा कौशिक। बचपन से ही किक बॉक्सिंग खेल में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही विधिका कौशिक और रिद्धिमा कौशिक किक बॉक्सिंग का खेल रूचि से प्रारंभ होकर वर्तमान में ओलंपिक पदक का लक्ष्य बन चुका है। इन दोनों बहनों ने खंड स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उम्र में छोटी और प्रतिभा की दृष्टि से बड़ी हरियाणा की दोनों बेटियों की खेल शैली, एक मंजे हुए खिलाड़ी के भांति दिखाई देती है। हाल ही में दिल्ली में आयोजित हुई अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में विधिका और रिद्धिमा कौशिक ने स्वर्ण पदक हासिल करके अपने माता-पिता व प्रदेश का नाम रोशन किया है। गौरतलब है कि इस प्रतियोगिता में पूरे विश्व के बेहतर खिलाड़ियों ने भाग लिया था जिसमें इन दोनों बच्चियों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करके स्वर्ण पदक हासिल करके देश में एक अपनी अलग पहचान बनाने का काम किया है।

शुरुआती दौर से ही हरियाणा का खेलो के क्षेत्र में अपना अलग स्थान रहा है। दरअसल माँ और माटी का स्वभाव समान होता है। जिस प्रकार हरियाणा की माटी खिलाड़ियों सर्वांगीण विकास करने के लिए सदैव ततपर रहती है उसी प्रकार रिद्धिमा और विधिका की माँ रितु कौशिक भी बेटियों को बुलंदियों पर देखने के लिए समर्पण भाव से अपनी बच्चियों को बेहतर परवरिश देने में उद्घत रहती हैं। भारत के खेल इतिहास पर यदि बात करें तो हरियाणा प्रदेश के खिलाड़ियों ने देश का नाम विश्व पटल पर चमकाने के काम किया है। इसी प्रकार किक बॉक्सिंग में भी देश की बेटियां अपनी अलग पहचान बना रही है।अभी हाल ही में भारत के झारखंड राज्य में हुई राष्ट्रीय किक बाक्सिंग प्रतियोगता में दो सगी बहनों विधिका कौशिक व रिद्धिमा कौशिक स्वर्ण पदक जीत कर न केवल परिवार का अपितु देश व प्रदेश का नाम रोशन किया है। विधिका ने 28 किलोग्राम भार वर्ग और रिद्धिमा ने अंडर-12 आयु वर्ग मनवाया प्रतिभा का लोहा मनवाया। निश्चित तौर पर आज के समय और परिस्थितियों के अनुसार जो खेलेगा वही आगे बढ़ सकता है, फिर वह जीवन हो या खेल का मैदान। हरियाणा के जिला फरीदाबाद की दो सगी बहनों ने छोटी उम्र में ही बड़ा काम करके एक नया कीर्तिमान स्थापित करने का सराहनीय कार्य किया है। दरअसल बच्चे को परिवार की ओर से दिए गए अच्छे  संस्कार व शिक्षा जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। झारखंड के राचीं में 23 से 27 अगस्त के बीच आयोजित हुई राष्ट्रीय किक बाक्सिंग प्रतियोगिता-2023 चिल्ड्रन कैडेटस एंड जूनियर में फरीदाबाद जिले की विधिका और रिद्धिमा ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। झारखंड अमेतरा स्पोर्ट्स किक बाक्सिंग एसोसिएशन की ओर से आयोजित प्रतियोगता में देशभर के किक बाक्सिंग खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। 28 किलोग्राम भार वर्ग के किक लीग इवेंट में विधिका कौशिक ने स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। जबकि 47 किलोग्राम भार वर्ग के लीग कांटेस्ट में रिद्धिमा कौशिक ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सोने का पदक हासिल करके माता पिता व प्रदेश का नाम रोशन किया है। खेल के क्षेत्र में खिलाड़ी का परिश्रम और कोच की निष्ठा दोनों ही महत्व रखती है। जिस प्रकार शिक्षक के बिना शिक्षा अधूरी है उसी प्रकार कोच के बिना खेलों में सफलतापूर्वक आगे बढ़ना कठिन है। इन बच्चियों की  कोच संतोष थापा कहना है कि विधिका कौशिक ने किक लाइक में तमिलनाडु की टीम को हराकर गोल्ड मेडल जीता है। रिद्धिमा कौशिक ने किक बाक्सिंग में गुजरात को हराकर गोल्ड मेडल जीता है। थापा ने बताया कि इससे पहले दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय किक बाक्सिंग प्रतियोगिता में भी गोल्ड मेडल जीत कर नाम रोशन कर चुकी हैं।

दोनों बहनों का लगन व मेहनत से स्वर्ण प्राप्त करना जहाँ परिवार के लिए गर्व का विषय बना है वंही फरीदाबाद लौटने पर शहरवासियों ने ढोल-नगाड़ों के साथ विधिका और रिद्धिमा का जोरदार स्वागत करके इन बेटियों की उपलब्धि के महत्व को दोगुना करने का काम किया है। अक्सर कहा जाता है कि बेटियां माँ की अपेक्षा पिता की अधिक लाडली होती है और यह देखा भी गया है कदाचित पिता के भाव को समझने में बेटी अधिक सक्षम होती है। अपनी दोनों बेटियों पर गर्व की अनुभूति करते हुए विधिका और रिद्धिमा के पिता सुरेंद्र कुमार कौशिक का कहना है कि बेटियों की इस उपलब्धियों पर उन्हें गर्व है। दोनों बेटियों ने पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है। कौशिक का कहना है कि एक समय था जब लड़के और लड़की में अंतर माना जाता था, सामाजिक कुरीतियों व संकीर्ण मानसिकता के कारण उतपन्न होने वाली इस प्रकार की सोच समाज और परिवार के लिए किसी अभिशाप से कम नही होती। उन्होंने कहा कि खेलों से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। प्रखर समाजसेवी डीआर शर्मा ने बताया कि अभिभावकों को बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा के साथ साथ खेलों में  भाग लेने  के लिए प्रेरित करना चाहिए। शर्मा का कहना है कि प्रदेश की बेटियां पढ़ाई के साथ खेलों में भी नाम रोशन कर समाज के लिए नई प्रेरणा बन रही हैं। निश्चित रूप से भारत की खेल नीति बेहतर होने के कारण आज खिलाड़ियों को अनेकों अवसर मिल रहे हैं वहीं यदि प्रदेश स्तर की बात की जाए तो मौजूदा सरकार के द्वारा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाभान्वित किया जाना भी खेलों को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो रहा है। इस बारे में जब इन बच्चियों के पिता सुरेंद्र कौशिक से बात हुई तो उन्होंने बताया कि बच्चों की पहचान पिता के नाम से होना सामान्य बात होती है परंतु बच्चों के नाम से माता पिता की अलग पहचान बनना गर्व की बात है। 

सत्ता की आपदा और विपक्ष का अवसर बन सकता है अविश्वास प्रस्ताव

सुशील पण्डित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर – 10 अगस्त :

विपक्षी दलों या यूं कहें इंडिया द्वारा सत्ता पक्ष के खिलाफ प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर लगातार तीन दिनों से संसद में बहस जारी है। विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष की ओर से केंद्र सरकार को घेरने का काम किया जा रहा है। इस अविश्वास प्रस्ताव में जहाँ विपक्ष के नेता राहुल गांधी भाजपा सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं वंही सत्ताधारियों द्वारा स्वंम को बचाने और विपक्ष को 2014 से पहले का भारत दिखाया जा रहा है। अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्षी सदस्यों के साथ साथ जनता की भी खासी रूचि दिखाई दे रही है। भविष्य में 2024 के चुनाव को देखते हुए विपक्षी दलों द्वारा इंडिया के बैनर तले सत्तापक्ष को घेरने का प्रयास किया जा रहा है वंही विपक्ष की ओर से प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी के मुद्दों से परिपूर्ण भाषण ने भाजपा को चुप्पी साधने के लिए मजबूर कर दिया।

भाटिया ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का प्रभाव और परिणाम मौजूदा सरकार के प्रतिकूल हो सकता है। विपक्ष द्वारा प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव का आधार मणिपुर की हिंसा तो है ही साथ ही अन्य ज्वंलत समस्याओं को भुनाने का काम विपक्षी पार्टियों द्वारा किया जा रहा है। मणिपुर हिंसा का जल्द समाधान जहां सत्ता पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी बनती है वहीं भविष्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती भी है जिसका कुप्रभाव आगामी लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में सात प्रदेशों को सेवेन सिस्टर्स के समान माना जाता था तथा यदि मणिपुर की बात करें तो मणिपुर भारत के सुंदर और शांत राज्यों में से एक था जिसका उदाहरण दिया जाता था परंतु लंबे समय से चली आ रही हिंसा के चलते मणिपुर का वास्तविक स्वरूप मूल रूप से विपरीत हो चुका है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए सत्ता पक्ष की यह नैतिक व राजनीतिक जिम्मेदारी बनती है कि इस मुद्दे का समाधान जल्द से जल्द किया जाए।

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा सत्ता पक्ष को अहंकारी बताया गया है वहीं राहुल गांधी ने रामायण का उदाहरण देते हुए भाजपा सरकार को रावण की संज्ञा देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि कहीं ना कहीं सत्ता पक्ष अहंकार के वशीभूत होकर देश में हो रहे दंगों, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, एवं अन्य समस्याओं का समाधान करने में विफल रहा है। गौतम ने कहा कि राहुल गांधी द्वारा संसद में कई गई बहस ने एनडीए सरकार को एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था से कदाचित खिलवाड़ तो नहीं हुआ है। देश की राजनीति में अविश्वास प्रस्ताव का प्रस्तुत किया जाना,देश की वर्तमान प्रजातांत्रिक व्यवस्था की प्रतिकूलता एवं विपरीत परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

सत्ता पक्ष का एक के बाद एक विभिन्न मुद्दों पर घेराव करना और विपक्षी दलों का अपेक्षा से अधिक हावी होते दिखाई देना,अविश्वास प्रस्ताव की प्रासंगिकता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो सकता है  देश के जनता की अपेक्षाएं मौजूदा सरकार से जुड़ी होते हैं परंतु कहीं ना कहीं जनता की अपेक्षाओं को उपेक्षाओं में परिवर्तित करने का कार्य सत्ता पक्ष के द्वारा किया जा रहा है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था और राजधर्म के प्रतिकूल है। 2024 के चुनाव से पहले भाजपा को अविश्वास प्रस्ताव के प्रभाव को समाप्त करना पड़ेगा तथा विपक्ष की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब धरातल पर देना होगा क्योंकि भाजपा के लिए अविश्वास प्रस्ताव से अधिक पीड़ादायक हो सकता है जनता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरना। यदि केंद्र सरकार देश के ज्वलंत मुद्दों पर गंभीरता से कार्य करने का प्रयास करें तो कदाचित जनता का रुझान भाजपा सरकार की ओर पुनः हो सकता है अन्यथा विपक्षी दलों द्वारा किया गया इंडिया गठन सफल होने की कगार पर दिखाई दे रहा है और  परिणाम 2024 के चुनाव में भली भांति देखा जा सकता है। कदाचित यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी दलों की निजी महत्वकांक्षा और सत्ता में वापसी एक पथरीला मार्ग हो सकता है परन्तु लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार यह सत्ताधारियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा सत्ता पक्ष पर आरोप लगाना तथा देश की वर्तमान परिस्थितियों को यदि हम समानांतर दृष्टि से देखें तो कहीं ना कहीं यह अविश्वास प्रस्ताव राजनीति की एक स्वभाविक प्रक्रिया हो सकती है जो केंद्र सरकार के लिए क्रिया की प्रतिक्रिया सिद्ध हो सकती है।

हरियाणा कांग्रेस को हमेशा से कमज़ोर करते हैं महत्वकांक्षी नेता

सरिका तिवरि, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, पंचकुला – 05  जुलाई :

सारिका तिवारी

हरियाणा कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी कोई नई बात नहीं । भले ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हों या कुमारी शैलजा , रणदीप सिंह सुरजेवाला या फिर किरण चौधरी ; सभी अपने अपने समर्थकों के साथ हरियाणा की राजनीति में स्वयं को आगामी मुख्यमत्री के रूप में दिखाने की होड़ में लगे हुए हैं । जबकि समय की मांग है कि कांग्रेस एकजुटता का परिचय दे।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद सुरजेवाला का कद बढ़ा है । रोड शो में समर्थक रणदीप सुरजेवाला को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर जोर दे रहे थे।

आगामी 30 जुलाई को शैलजा अपने गढ़ सिरसा में शक्ति प्रदर्शन करेंगी।

समय समय पर शैलजा हुड्डा को आड़े हाथों लेती रहती हैं आज फतेहाबाद के बड़पोल गांव में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति रैली में योजनाओं की घोषणा कैसे कर सकता है जबकि मेनिफेस्टो जारी करना पार्टी का काम है।

हरियाणा के नए प्रभारी दीपक बाबरिया ने पिछले दिनों बैठक में सब को एकजुट हो जाने के आदेश दिए ।
उस समय भी कुमारी शैलजा ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा की शिकायत करते हुए कहा कि प्रदेश भर में वह अन्य नेताओं के इलाके में जाकर बैठकें और समारोह कर रहे हैं।

इसी से पता लगता है कि भले ही नेता एक मंच पर आए परंतु फिर भी कांग्रेस की अंतर कलह पटल पर दिखाई दे रही है।

इतना ही नहीं उस बैठक में हुड्डा और शैलजा के समर्थकों ने अपने अपने नेता के पक्ष में नारे भी लगाए। लेकिन कूटनीति का सहारा लेते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कुमारी शैलजा के पक्ष में नारे लगाए जिसमें सभी कार्यकर्ताओं ने हुड्डा का साथ दिया ।

अनुभवी हुड्डा समय की नजाकत को पहचानते हैं क्योंकि राजनीति में दोस्ती हों या दुश्मनी कुछ भी स्थाई नहीं होता। वैसे भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा कुमारी शैलजा को हमेशा से ही अपनी बहन कहते हैं । यह बात अलग है ही समय से पहले ही शैलजा को अध्यक्ष पद से हटा कर उनकी जगह हुड्डा खेमे के उदय भान को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया।

हाल ही में कुमारी शैलजा ,रणदीप सिंह सुरजेवाला और किरण चौधरी ने एक मंच पर से सत्ताधारी भाजपा और जजपा की नीतियों की कड़ी भर्त्सना की । भले ही ये नेता आंतरिक तौर पर इकट्ठे नहीं है लेकिन फिर भी एक मंच पर आकर इन्होंने कांग्रेस की एकजुटता का परिचय देने की नाकाम कोशिश की , क्योंकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा या उनकी ओर से कोई भी प्रतिनिधि प्रेस वार्ता में मौजूद नहीं था।

कुल मिला कर अगर कांग्रेस एकजुट होती है तभी सत्तारूढ़ गठबंधन को चुनौती देने का साहस कर पाएगी।

परिदृश्य: अजीब देश की सजीव कहानी

सौरभ त्रिपाठी, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, पंचकुला – 28 अप्रैल :

सौरभ त्रिपाठी

“विभीषिका”अर्थ व अनर्थ दोनो में विचित्र है। यदि यह अनर्थ के साथ वातावरण में फैल जाए तो जीवन कैसा होगा, सोचिए मत।

अमृतकाल के आनंद युग में मगन जनता अमृतवर्षा में नाच रही है। नृत्य की भाव विभोरता में नगनत्व में बदल रही है। महान देश के महान देवता की कृपा अनवरत बरस रही है। अमृत वर्षा में स्वर्ण व रजत बूँदे देश की धरती को पड़पड़ा कर पीट रही है। शेयर सूचिकांग जैसा इंद्रधनुष क्षितिज में टिमटिमा रहा है। विकासवादी हवा नथुनों को रगड़ रही है। चुनाव, लोकतंत्र ईवीएम, अम्बानी-अदानी,  मीडिया-अदालत,  ईडी – सीबीआईं जैसी आवाज़ें बादलों की तरह उमड़ घुमड़ रहे है। मेंढकों का एक ख़ास झुंड आकस्मिक अमृत वर्षा से नाराज़ होकर उछल -कूद मचा रहे है। अमृतवर्षा के स्पर्श से सभी गिरगिट मगरमच्छ जैसे दिख रहे है। चार पायदानो पर टिके लोकतंत्र के खंडहर के चारों तरफ़ गहरी खामोशी है । लोकतंत्र की इमारत पर वज्रपात जैसा हुआ है।

      ओह! विहंगम दृश्य “उड़ी छत-धंसी फ़र्श -फटी दिवार ,लोकतंत्र का खंडहर और स्तब्ध लोग। पक्ष और विपक्ष गुत्थम- गुत्था हो रहे है ।बहस और संवाद चिल्लाहट व धक्कामुक्की में बदल रही है ।एक तरफ़ पाक चल रहा है ,दूसरी तरफ़ पाक जल रहा है। पुलवामा से गलवान तक जवान खोजे जा रहे है ।स्वास्थ्य, शिक्षा, महंगाई, ग़रीबी, न्याय, बेरोज़गारी जैसे शब्द लुप्त हो गए, सार्वजनिक संस्थान भी निजी महल हो गए। कोविड मृतकों के आत्मशांति के लिए चिकित्सालय कब बनेंगे, वर्तमान पीढ़ी का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा? रूसी क्रूड आयल सस्ता होने पर भी डीज़ल पेट्रोल गैस सिलेंडर क्यों गर्मा रहे है।

चुनावी बांड किस दल को कितना और क्यू मिलते है, ये सवाल पूछेगा कौन, ईडी-सीबीआई का ख़ौफ़ जो है। अयोध्या -मथुरा, काशी के वासी भी मौन है। साफ़ सुथरे आवरण में लिपटे ब्यूरोक्रेसी आज़ादी या ग़ुलामी की बहस में उलझी है। प्रशाशक और सेवक के परिभाषा अभी तक नही गढ़ी गयी। इसलिए ब्यूरोक्रेसी ने सोचना व समझना छोड़ दिया है। ब्यूरोक्रेट अब टेक्नोक्रेट बनकर रह गया है। आर्टिफ़िशियल एजेंसी पर रीसर्च करने को उतावला है।

प्रोजेक्ट, इन्वेस्टमेंट, प्रमोशन और मलाईदार पद के दायरे में सिमटा इन महामानवो का क़बीला सिर्फ़ स्वामियों के संकेत को समझता है। संवेदनायुक्त ब्यूरोक्रेड्स हारते हुए भी लड़ कर थोड़ा विश्वास बनाए हुए विभागीय जाँच के फंदे में लटकते दिखाई देते है।

न्याय के मंदिर अंधेरे में कभी कभी ही चमकते है। न्यायदेवताओं की विवेकदृष्टि भविष्य को ध्यान में रखकर फ़ैसले देने लगी है । न्याय की खोज, न्याय में भरोसा, न्याय की पारदर्शिता में अन्याय नाम की ऋंखला गहरी पैठ बना रखी है । गली – दर -गली, सड़क – दर – सड़क, न्याय होता दिख रहा है।

कभी ग़ोलीयो से ,कभी तलवारों से ,कभी गाड़ी पलटने से  , कभी बुलडोज़र से ।परेशान लोग कहाँ जाये ,किसके सामने हाथ फैलाए ,किससे न्याय की उम्मीद रखे ।इसलिए गहरी चुप्पी ओढ़ लेते है । हमारे शांति व अहिंसा का यही सारांश है । न्यायप्रिय देवता भी गवाहों एवं साक्ष्यों के परिवर्तन से सहमा हुआ है । स्वतंत्र कहलाने वाली मीडिया की स्वतंत्रता स्वयं संदेहात्मक है । अपनी रुचि या मजबूरी के प्रभाव से सारे सच को ढकने या सारे झूठ को खोलने का बेहतरीन अभ्यास आज के दौर में दिखायी दे रहा है । देश के लोगों के भाग्य अब स्वयं उसके  कर्म में है ।

सहयोग करने वाली सत्ताए लालच के समुद्र में डूब रही है। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सत्ता के प्रति दीवानगी इस हद तक है कि नोट में भी चिप लगा देती है। सार्थक बहसें हिंदू – मुस्लिम तक सीमित है। समाज का आईना बनने का दम्भ भरने वाली मीडिया आईने  में  स्वयं का चेहरा नही देख पा रही है।

लालच की पत्रकारिता किसी देश की ग़ुलाम बनाने के लिए पर्याप्त है। यही तो विभीषिका है। जहाँ नागरिक ही ग़ुलाम बन जाता है। यह किसी देश का परिदृश्य नही, वैश्विक विनाश लीला है जहाँ सच, न्याय, ईमानदारी रोज़ झूठ, अन्याय, और बेईमानी के हाथों शर्मिंदा  होते है। दर्द से उभरती चीखे मधुर संगीत बन जाती है। अन्याय से निकली कराह में मंदिरो की घंटिया सुनायी पड़ती है।

मेरी कुर्सी की कमाई, सिस्टम मनी

करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, सूरतगढ़ – 19 अप्रैल :

 ठेकेदारों और अन्य से कमीशन का हिस्सा जो मुझ चैयरमैन को पांच प्रतिशत मिलता रहा है। वह मेरी कुर्सी की कमाई है। कुर्सी है तो कमाई भी है। जब तक कुर्सी तब तक कमाई। मेरी कुर्सी के साथ और भी हैं कुर्सियां। सभी का हिस्सा रुतबे के मुताबिक। इस कुर्सी की कमाई को सिस्टम का पैसा नाम दे दिया गया है। रिश्वत कमीशन जैसे गंदे नाम अब नहीं लिया जाते। 

 नया नाम सिस्टम का पैसा अब पापुलर नाम हो गया है। कुर्सी की कमाई मेरी शान है ईज्जत है। कुर्सी से उतर जाओ तब भी पैसा फेंक तमाशा देख जैसे गेम चलाना और अपनी कुर्सी कमाई में से मामूली सी पुड़िया फेंक कर मीडिया पब्लिसिटी लेना मामूली बात है। इसी से दान पुन: और गिफ्ट भी इसलिए सभी के बीच में मेरा चेहरा रहता है और फोटो विडिओ सभी बनते हैं।

कुर्सी की कमाई तो शान है इसलिए शर्म कैसी! और ऊंची कुर्सी के लिए अभियान है, मुश्किलें तो हैं मगर मेरा रास्ता न्यारा है। 

 कुर्सी कमाई  लेना मेरा अधिकार बन गया है। 

चैयरमैन पद पर मेरा हिस्सा 5 प्रतिशत होता है।मेरा ईओ भी 5 प्रतिशत कुर्सी कमाई करता है।

मेरी संस्था का एक साल का बजट 125 करोड़। उसमें ऊपर को छोड़ो 100 करोड़ तो पक्के मान ही लो जिसमें मेरा चैयरमैनी हिस्सा 5 करोड़। पांच साल का बजट 600 और 700 करोड़। केवल शुद्ध मान लो 500 करोड़ तो मेरी चेयर का हिस्सा 25 करोड़। हर साल पांच मिनट में तालियों के साथ बजट पारित होता है। सच्च मेरी खूबी नहीं होती, असल में तालियां बजाने वालों को बजट का क ख ग ही नहीं आता। मानलो वे छोटे ठेकेदार और मैं बड़ा ठेकेदार। 

सिस्टम का कुल पैसा 20 से 25 प्रतिशत तक बिलों के भुगतान में से कट जाता है और उसी में अपने आप मेरे को पहुचा दिया जाता है। सभी को पहुंच जाता है।

सिस्टम का हक लेने से मेरी छवि  दागी नहीं कहलाई। मैं सारे दिन आप लोगों के साथ रहता हूं। मेरे फोटो मेरे विडिओ बनते हैं। 

समाजसेवी और संस्थाएं कभी उदघाटन कराती है कभी हरी झंडी दिखवाती है। 

चुनाव में खड़े होने और पार्टी की टिकट लेने की दिन रात की ट्राई है। बस इसलिए हर भीड़ हर आंदोलन में हाजिरी और फोटो विडिओ। 

मैंने पूरा पारदर्शिता से बता दिया है।

स्मार्ट फ़ोन क्या आपको सही में स्मार्ट बनाता है जानते है स्मार्ट फ़ोन की लत से कैसे बचे डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

सब अपनेपन के लिए तरसते है और फ़ोन से हर समय जूड़े होते है पर अपने प्रियजन से दूर होते है। साथ की खोज में साथी से ही दूर हो जाते है। इसका अत्यधिक इस्तेमाल किया जाए तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में इसका बड़ा असर होता है।

कैसे अपने स्मार्टफोन की लत को तोड़ें

डॉ सुमित्रा अग्रवाल, डेमोक्रेटिक फ्रंट, कोलकाता – 06 दिसंबर :

            वर्तमान समय में अत्यधिक लोगो के पास स्मार्टफोन है । बड़े हो या छोटे हो सब उम्र के लोग स्मार्टफोन का भरपूर इस्तेमाल करते है । स्मार्ट एडवांस टेक्नोलॉजी ने हमारी ज़िंदगी बहुत आसान बना दी है । हम कोई भी काम आसानी से घर बैठे  कर सकते है ।ऐसे में स्मार्ट फोन के फायदे भी है और नुकसान भी है ।

स्मार्ट फ़ोन से जुड़ी खट्टी मीठी बातें –

            सब अपनेपन के लिए तरसते है और फ़ोन से हर समय जूड़े होते है पर अपने प्रियजन से दूर होते है।  साथ की खोज में साथी से ही दूर हो जाते है।  इसका अत्यधिक इस्तेमाल किया जाए तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में इसका बड़ा असर होता है ।

कब होती है इस लत की सुरुवात 

            माता पिता छोटे छोटे बच्चो के  हाथो में मोबाइल दे देते है । जिसने अभी चलना सीखा भी नहीं होता है  वो फ़ोन चलना जरूर सिख जाता है। फोन की यही लत खतनाक साबित हो सकती है।  इससे मातापिता को सावधान हो जाना चाहिए क्यों की बच्चो के  हाथो में स्मार्ट फोन पकड़ाना एक कोकीन जैसी नशीली और जहरीली चीज के बराबर है।

            हाल ही में शोध से यह पता चली है की अत्यधिक स्मार्ट फोन के इस्तेमाल से बच्चे पढ़ने में कमजोर हो रहे है ।बच्चों की प्रतिरोधक  छमता कम होती नजर आ  रही है और बच्चों की एकाग्रहता की शक्ति भी कम होने लगी  है, जिससे बच्चों की रचनात्मक प्रतिभाएं  भी कम  हो रही है  ।

मोबाइल फोन की लत के लक्षण और इससे निपटने के तरीके रुझान और स्वास्थ्य

किन लक्षणों से जाने की स्मार्ट फ़ोन की लत लग गयी है –

इन लक्षणों से करे एडिक्शन की पहचान 

  •  बार बार फोन चेक करने की आदत 
  •    फोन में लंबे व्यक्त तक बाते करना 
  •   बार बार व्हाट्स एप मैसेजेस को चेक करना 
  • पूरी रात फोन में लगे रहना 
  •   रात को मैसेजेस चेक करने की आदत 
  •   कोई दूसरा इंसान आप का फोन मांगे, तो आप को गुस्सा आना 
  • सोते व्यक्त फोन का इस्तेमाल करना 
  •   पढ़ने के व्यक्त फोन का इस्तेमाल करना 
  • • फोन इस्तेमाल की टाइमिंग कंट्रोल ना करना 
  • • गाड़ी चलाते व्यक्त फोन का इस्तेमाल करना 
  • • चालू रास्ते में फोन का इस्तेमाल करना                                                                                                                          

कैसे करे इस लत का समाधान –

ऐसे पाए एडिक्शन से छुटकारा

  • रात को फोन अपने पास ना रखे 
  • • नोटिफिकेशन  और अन्य एप्प को अपने फोन में प्रतिबंध करिये।  
  • • कम से कम एप्प  का इस्तेमाल करे 
  • •  सुबह उठते समय और रात के समय फोन का इस्तेमाल बहुत जरुरी  होने पर ही करे।
  • • अपने आप को व्यस्त रखे 
  • •  क्रिएटिव चीजे करे
  • • नई  प्रतिभा को सीख सकते है ,जिसमें रुचि हो 
  • •  ज्यादातर समय अपने परिजनों के साथ बिताए 
  • •  कम से कम फ़ोन का इस्तेमाल करे 
  • पुराने दोस्तों से मिले 

छोटी पर मोटी बातें 

            आज के दौर में सभी उम्र  के लोग स्मार्ट फोन का हद से ज्यादा इस्तेमाल करते है । स्मार्ट फोन की आदत से छोटे बच्चे को दूर रखे। युवाओ को जागरूक रहना चाहिए।युवाओ को अपना ध्यान अपने करियर में लगाना चाहिए जिससे उसकी जिंदगी निखरे ।स्मार्ट फोन की एडिक्शन से कई बच्चों की जिंदगी खतरे में आती है । माता पिता को जागरूक होना चाहिए , बच्चों को कम से कम फ़ोन देना चाहिए ।

            पुराने मित्र से मिलने की बात ही अलग होती है, पुरानी यादें  ताजा होती है और संबंध भी अच्छे बनते है। स्मार्ट फोन के एडिक्शन से कई लोगो की जिंदगी आसानी से बचाई जा सकती है। बस लोगों के अंदर की  जागरूकता को बढ़ाना होगा ।जब लोग खुद ही समझ जायेंगे की कब फ़ोन का इस्तेमाल करना है और कब नहीं करना है तब कोई भी तकलीफ नहीं रहेगी।

फोन का इस्तेमाल करे , लेकिन एक नियमित समय तक ही करे इससे ज्यादा ना करे।

 संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण को नमन – करणीदानसिंह राजपूत

करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 08 अक्तूबर :

करणीदानसिंह

            जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को हुआ और 8 अक्टूबर 1979 को लंबी बीमारी के बाद पटना में उनका निधन हो गया।

जेपी को उस दिन पूरे देश ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी थी।अब तो हालात बहुत बदल गए हैं। जेपी को याद तो करते हैं, लेकिन महज रस्म आदायगी होती है।चुनाव के दौरान या जयंती, पुण्यतिथि और आपातकाल की बरसी पर ही इस बड़े नेता को याद किया जाता है।

            जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरुद्ध देश जागा था और सब कुछ छोड़कर लोग आंदोलन में चल पड़े थे। लाखों लोग परिवार लोकतंत्र की रक्षा करने संविधान को बचाने के लिए आंदोलन में कूदे। बहुत कुछ बरबाद हो गया। आज वे लोकतंत्र सेनानी 70,75,80,90,95,साल की उम्र में हैं। अनेक लोकतंत्र सेनानी संसार से विदा हो गये,जिनकी विधवाएं हैं परिवार है और वृद्धावस्था की पीड़ाएं हैं। जयप्रकाश नारायण को कौन याद करे! जब लोकतंत्र सेनानियों की आवाज ही सुनाई नहीं हो रही।

            आज नरेन्द्र मोदी की सरकार भी हजारों पत्रों के बाद भी सुन नहीं रही। एक भी पत्र का उत्तर नहीं दिया। क्या लोकतंत्र सेनानियों के पत्रों का उत्तर नहीं देना भी महानता है? मोदी सरकार पत्रों का उत्तर नहीं दे लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी नहीं देते उत्तर।

            लेकिन देश में एक ऐसी जमात बन गई है जो खुद मूक हो गई है जिसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही। लुहले भी हो गए हैं कि लिखने को हाथ ही नहीं हैं। यह कैसी मानसिकता हो गई है।?

            सत्ता और सत्ताधारी बहरे होते हैं। उनको सुनाने के लिए विद्रोह के ढोल नगाड़े बजाने पड़ते हैं।

यह ध्वज मैं फहराता रहूंगा। लोकतंत्र सेनानियों की आवाज उठाता रहूंगा  –  करणीदानसिंह राजपूत

असफलता सफलता के स्तंभ हैं

डेमोक्रेटिक फ्रंट, श्री मुक्तसर साहिब :

जसविंदर पाल शर्मा

            थोड़ी सी भी असफलता कोई मायने नहीं रखती। वास्तव में सफलता की राह असफलताओं से घिरी होती है। प्रत्येक असफलता के साथ व्यक्ति सफलता के निकट आता जाता है और प्रत्येक पतन के साथ व्यक्ति ऊँचा उठता जाता है। असफलताओं के बारे में बात करना विरोधाभासी और विरोधाभासी लग सकता है और सफलता के साथ-साथ गिरता है और उच्चतर होता है। लेकिन यह एकदम सच है। प्रत्येक असफलता व्यक्ति को सफलता के करीब ले आती है क्योंकि प्रत्येक असफलता के भीतर सफलता का एक पाठ छिपा होता है।

            बच्चे का पहला कदम देखें। वह एक कदम आगे बढ़ता है लेकिन फिर दूसरे पर गिर जाता है और ठोकर खा जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चा कभी भी चलना नहीं सीखेगा क्योंकि वह शुरुआत में ही लड़खड़ा गया था। बल्कि उसकी ठोकर यह सुनिश्चित करती है कि वह जल्द ही न केवल चलना बल्कि दौड़ना भी सीख जाएगा। आकाश में एक पक्षी को देखो, वह कैसे फड़फड़ाता है, फड़फड़ाता है और विफल हो जाता है। इसके पंख कांपते हैं क्योंकि यह उड़ने का पहला प्रयास करता है। यह कोशिश करता है और विफल रहता है। लेकिन हार नहीं मानता। और अंत में एक और प्रयास के साथ, यह अपने पंख फैलाता है और उस अनंत नीला नीले आकाश में चला जाता है जो इसके छोटे से महत्वपूर्ण प्रयासों की सराहना करता प्रतीत होता है।

            दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने वाली चींटी की कहानी अक्सर कही जाती है। यह कुछ इंच रेंगता है और गिरता है। लेकिन फिर कोशिश करता है। दरअसल, चींटी दीवार की चोटी तक पहुंचने की कोशिश में असीमित कोशिश करती रहती है। देखने वाला ऊब जाता है, थक जाता है और दिल हार जाता है। लेकिन चींटी नहीं करती। यह तब तक कोशिश करता रहता है जब तक कि यह शीर्ष पर न पहुंच जाए।

            इतिहास भी ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां असफलताओं की एक श्रृंखला से गुजरने के बाद ही सफलता मिली। किसी भी महान व्यक्तित्व के जीवन की कहानी को देखने के लिए यह देखना होगा कि चांदी की थाली में सफलता कभी नहीं मिलती है। वास्तव में सफलता का स्वाद चखने से पहले कई बार प्रयास करना पड़ता है।

            महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल सहित भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को असंख्य बार असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को सबसे ऊपर रखा और इसलिए, भारत स्वतंत्र हुआ। महान वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडिसन बिजली के बल्ब का आविष्कार करने से पहले 10,000 बार असफल हुए। स्टीव जॉब्स को उसी कंपनी से बाहर कर दिया गया था जिसे उन्होंने शुरू किया था। लेकिन वह एक शुरुआत की तरह फिर से शुरू करने की संभावना से उत्साहित था।

            हालाँकि, आज के समय में, हम पाते हैं कि एक टोपी की बूंद पर लोगों का दिल टूट रहा है। परीक्षा के फोबिया और साथियों के दबाव के शिकार हो जाते हैं छात्र। हर किसी को अपने आप से बहुत उम्मीदें होती हैं, जो पूरी न होने पर उन्हें अवसाद और यहां तक ​​कि आत्महत्या तक ले जाती है। यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि असफलता दुनिया का अंत नहीं है। उठने और चमकने के भरपूर अवसर होंगे।

जीवन में संतुलन बहुत उपयोगी है

जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है, लेकिन अधिकांश लोगों का जीवन असंतुलित बना हुआ है। हमने एक ऐसी मानसिक स्थिति का निर्माण कर रखा है कि सुख की स्थिति आने पर हम खुशी से उछल जाते हैं और दुख की स्थिति में मानो मुरझा जाते हैं जबकि हमें हर स्थिति में एक सा रहना चाहिए।

जसविंदर पाल शर्मा, डेमोक्रेटिक फ्रंट, श्री मुक्तसर साहिब पंजाब  :

इस तेजी से भागती आधुनिक दुनिया में संतुलित जीवन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। इसके अलावा, लोग यह भूल जाते हैं कि जीवन हमें उन सभी अच्छी चीजों के बदले में बहुत कुछ देता है जो हमें देती हैं। संतुलन पर यह लेख उपयोगी है, जीवन में संतुलन बनाए रखने के महान महत्व की व्याख्या करेगा।

संतुलन बनाए रखने का महत्व

इस आधुनिक युग में रहते हुए लोगों ने खुद को कम आंकने की यह नकारात्मक आदत विकसित कर ली है। इसके अलावा, बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि वास्तव में संतुलित जीवन क्या है। फलस्वरूप ऐसे व्यक्तियों के जीवन में तनाव आ जाता है।

संतुलित जीवन को परिभाषित करना कठिन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह काफी व्यक्तिगत है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है। हालांकि, संतुलित जीवन की एक सामान्य परिभाषा एक ऐसा जीवन जीना है जिसमें रिश्तों, काम, भावनात्मक कल्याण और शारीरिक स्वास्थ्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए संतुलन बनाए रखा जाता है।

एक संतुलित जीवन का एक अच्छा उदाहरण एक कामकाजी महिला का होगा जो घर में पत्नी और मां होने की भूमिका भी निभाती है। ऐसी महिला को अपनी भूमिकाओं को ठीक से निभाने के लिए अपने पेशेवर और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा, यह उनके काम और निजी जीवन में एक साथ सफलता हासिल करने की उनकी इच्छा से प्रेरित है।

जीवन में संतुलन बनाए रखने का एक शानदार तरीका यह है कि जीवन में हर कदम की योजना बनाई जाए, चाहे वह पेशेवर हो या व्यक्तिगत। हर काम में शत-प्रतिशत देने की आदत डालनी चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि स्वास्थ्य की उपेक्षा न हो, इसलिए इस पर विशेष ध्यान दें।

जब स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की बात आती है तो संतुलित आहार आवश्यक है। इस प्रकार, व्यक्ति को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और विटामिन का उचित संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसके अलावा, अच्छे स्वास्थ्य के लिए आहार में साग और फलों की हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।

समय प्रबंधन

जब जीवन में संतुलन बनाए रखने की बात आती है तो समय प्रबंधन कारक एक बड़ी भूमिका निभाता है। आधुनिक दुनिया में, कार्य-जीवन वास्तव में व्यस्त हो गया है। नतीजतन, लोग या तो अपने प्रियजनों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने में विफल रहते हैं या उनके पास अपने लिए कोई व्यक्तिगत समय नहीं होगा।

दरअसल, ज्यादातर लोग खुद को समझा लेते हैं कि उनके पास परिवार के सदस्यों और दोस्तों के लिए समय नहीं है। इसके अलावा, समय प्रबंधन के इस अस्वास्थ्यकर तरीके के कारण, लोग अपने शौक और यहां तक ​​कि उन चीजों की भी उपेक्षा करते हैं जो उन्हें खुशी देती हैं। नतीजतन, यह ऐसे लोगों के जीवन में तनाव, चिंता और अवसाद को जोड़ता है।

संतुलन पर निबंध का निष्कर्ष उपयोगी है

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा, संतुलन ऐसा होना चाहिए कि जीवन के विभिन्न तत्व प्राथमिकताओं और इच्छाओं की पूर्ण पूर्ति की सुविधा प्रदान करें। सबसे विशेष रूप से, लोगों को जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए अन्यथा वे शरीर, मन और आत्मा के महत्वपूर्ण संतुलन को खो सकते हैं।