स्मार्ट फ़ोन क्या आपको सही में स्मार्ट बनाता है जानते है स्मार्ट फ़ोन की लत से कैसे बचे डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

सब अपनेपन के लिए तरसते है और फ़ोन से हर समय जूड़े होते है पर अपने प्रियजन से दूर होते है। साथ की खोज में साथी से ही दूर हो जाते है। इसका अत्यधिक इस्तेमाल किया जाए तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में इसका बड़ा असर होता है।

कैसे अपने स्मार्टफोन की लत को तोड़ें

डॉ सुमित्रा अग्रवाल, डेमोक्रेटिक फ्रंट, कोलकाता – 06 दिसंबर :

            वर्तमान समय में अत्यधिक लोगो के पास स्मार्टफोन है । बड़े हो या छोटे हो सब उम्र के लोग स्मार्टफोन का भरपूर इस्तेमाल करते है । स्मार्ट एडवांस टेक्नोलॉजी ने हमारी ज़िंदगी बहुत आसान बना दी है । हम कोई भी काम आसानी से घर बैठे  कर सकते है ।ऐसे में स्मार्ट फोन के फायदे भी है और नुकसान भी है ।

स्मार्ट फ़ोन से जुड़ी खट्टी मीठी बातें –

            सब अपनेपन के लिए तरसते है और फ़ोन से हर समय जूड़े होते है पर अपने प्रियजन से दूर होते है।  साथ की खोज में साथी से ही दूर हो जाते है।  इसका अत्यधिक इस्तेमाल किया जाए तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में इसका बड़ा असर होता है ।

कब होती है इस लत की सुरुवात 

            माता पिता छोटे छोटे बच्चो के  हाथो में मोबाइल दे देते है । जिसने अभी चलना सीखा भी नहीं होता है  वो फ़ोन चलना जरूर सिख जाता है। फोन की यही लत खतनाक साबित हो सकती है।  इससे मातापिता को सावधान हो जाना चाहिए क्यों की बच्चो के  हाथो में स्मार्ट फोन पकड़ाना एक कोकीन जैसी नशीली और जहरीली चीज के बराबर है।

            हाल ही में शोध से यह पता चली है की अत्यधिक स्मार्ट फोन के इस्तेमाल से बच्चे पढ़ने में कमजोर हो रहे है ।बच्चों की प्रतिरोधक  छमता कम होती नजर आ  रही है और बच्चों की एकाग्रहता की शक्ति भी कम होने लगी  है, जिससे बच्चों की रचनात्मक प्रतिभाएं  भी कम  हो रही है  ।

मोबाइल फोन की लत के लक्षण और इससे निपटने के तरीके रुझान और स्वास्थ्य

किन लक्षणों से जाने की स्मार्ट फ़ोन की लत लग गयी है –

इन लक्षणों से करे एडिक्शन की पहचान 

  •  बार बार फोन चेक करने की आदत 
  •    फोन में लंबे व्यक्त तक बाते करना 
  •   बार बार व्हाट्स एप मैसेजेस को चेक करना 
  • पूरी रात फोन में लगे रहना 
  •   रात को मैसेजेस चेक करने की आदत 
  •   कोई दूसरा इंसान आप का फोन मांगे, तो आप को गुस्सा आना 
  • सोते व्यक्त फोन का इस्तेमाल करना 
  •   पढ़ने के व्यक्त फोन का इस्तेमाल करना 
  • • फोन इस्तेमाल की टाइमिंग कंट्रोल ना करना 
  • • गाड़ी चलाते व्यक्त फोन का इस्तेमाल करना 
  • • चालू रास्ते में फोन का इस्तेमाल करना                                                                                                                          

कैसे करे इस लत का समाधान –

ऐसे पाए एडिक्शन से छुटकारा

  • रात को फोन अपने पास ना रखे 
  • • नोटिफिकेशन  और अन्य एप्प को अपने फोन में प्रतिबंध करिये।  
  • • कम से कम एप्प  का इस्तेमाल करे 
  • •  सुबह उठते समय और रात के समय फोन का इस्तेमाल बहुत जरुरी  होने पर ही करे।
  • • अपने आप को व्यस्त रखे 
  • •  क्रिएटिव चीजे करे
  • • नई  प्रतिभा को सीख सकते है ,जिसमें रुचि हो 
  • •  ज्यादातर समय अपने परिजनों के साथ बिताए 
  • •  कम से कम फ़ोन का इस्तेमाल करे 
  • पुराने दोस्तों से मिले 

छोटी पर मोटी बातें 

            आज के दौर में सभी उम्र  के लोग स्मार्ट फोन का हद से ज्यादा इस्तेमाल करते है । स्मार्ट फोन की आदत से छोटे बच्चे को दूर रखे। युवाओ को जागरूक रहना चाहिए।युवाओ को अपना ध्यान अपने करियर में लगाना चाहिए जिससे उसकी जिंदगी निखरे ।स्मार्ट फोन की एडिक्शन से कई बच्चों की जिंदगी खतरे में आती है । माता पिता को जागरूक होना चाहिए , बच्चों को कम से कम फ़ोन देना चाहिए ।

            पुराने मित्र से मिलने की बात ही अलग होती है, पुरानी यादें  ताजा होती है और संबंध भी अच्छे बनते है। स्मार्ट फोन के एडिक्शन से कई लोगो की जिंदगी आसानी से बचाई जा सकती है। बस लोगों के अंदर की  जागरूकता को बढ़ाना होगा ।जब लोग खुद ही समझ जायेंगे की कब फ़ोन का इस्तेमाल करना है और कब नहीं करना है तब कोई भी तकलीफ नहीं रहेगी।

फोन का इस्तेमाल करे , लेकिन एक नियमित समय तक ही करे इससे ज्यादा ना करे।

 संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण को नमन – करणीदानसिंह राजपूत

करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 08 अक्तूबर :

करणीदानसिंह

            जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को हुआ और 8 अक्टूबर 1979 को लंबी बीमारी के बाद पटना में उनका निधन हो गया।

जेपी को उस दिन पूरे देश ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी थी।अब तो हालात बहुत बदल गए हैं। जेपी को याद तो करते हैं, लेकिन महज रस्म आदायगी होती है।चुनाव के दौरान या जयंती, पुण्यतिथि और आपातकाल की बरसी पर ही इस बड़े नेता को याद किया जाता है।

            जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरुद्ध देश जागा था और सब कुछ छोड़कर लोग आंदोलन में चल पड़े थे। लाखों लोग परिवार लोकतंत्र की रक्षा करने संविधान को बचाने के लिए आंदोलन में कूदे। बहुत कुछ बरबाद हो गया। आज वे लोकतंत्र सेनानी 70,75,80,90,95,साल की उम्र में हैं। अनेक लोकतंत्र सेनानी संसार से विदा हो गये,जिनकी विधवाएं हैं परिवार है और वृद्धावस्था की पीड़ाएं हैं। जयप्रकाश नारायण को कौन याद करे! जब लोकतंत्र सेनानियों की आवाज ही सुनाई नहीं हो रही।

            आज नरेन्द्र मोदी की सरकार भी हजारों पत्रों के बाद भी सुन नहीं रही। एक भी पत्र का उत्तर नहीं दिया। क्या लोकतंत्र सेनानियों के पत्रों का उत्तर नहीं देना भी महानता है? मोदी सरकार पत्रों का उत्तर नहीं दे लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी नहीं देते उत्तर।

            लेकिन देश में एक ऐसी जमात बन गई है जो खुद मूक हो गई है जिसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही। लुहले भी हो गए हैं कि लिखने को हाथ ही नहीं हैं। यह कैसी मानसिकता हो गई है।?

            सत्ता और सत्ताधारी बहरे होते हैं। उनको सुनाने के लिए विद्रोह के ढोल नगाड़े बजाने पड़ते हैं।

यह ध्वज मैं फहराता रहूंगा। लोकतंत्र सेनानियों की आवाज उठाता रहूंगा  –  करणीदानसिंह राजपूत

असफलता सफलता के स्तंभ हैं

डेमोक्रेटिक फ्रंट, श्री मुक्तसर साहिब :

जसविंदर पाल शर्मा

            थोड़ी सी भी असफलता कोई मायने नहीं रखती। वास्तव में सफलता की राह असफलताओं से घिरी होती है। प्रत्येक असफलता के साथ व्यक्ति सफलता के निकट आता जाता है और प्रत्येक पतन के साथ व्यक्ति ऊँचा उठता जाता है। असफलताओं के बारे में बात करना विरोधाभासी और विरोधाभासी लग सकता है और सफलता के साथ-साथ गिरता है और उच्चतर होता है। लेकिन यह एकदम सच है। प्रत्येक असफलता व्यक्ति को सफलता के करीब ले आती है क्योंकि प्रत्येक असफलता के भीतर सफलता का एक पाठ छिपा होता है।

            बच्चे का पहला कदम देखें। वह एक कदम आगे बढ़ता है लेकिन फिर दूसरे पर गिर जाता है और ठोकर खा जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चा कभी भी चलना नहीं सीखेगा क्योंकि वह शुरुआत में ही लड़खड़ा गया था। बल्कि उसकी ठोकर यह सुनिश्चित करती है कि वह जल्द ही न केवल चलना बल्कि दौड़ना भी सीख जाएगा। आकाश में एक पक्षी को देखो, वह कैसे फड़फड़ाता है, फड़फड़ाता है और विफल हो जाता है। इसके पंख कांपते हैं क्योंकि यह उड़ने का पहला प्रयास करता है। यह कोशिश करता है और विफल रहता है। लेकिन हार नहीं मानता। और अंत में एक और प्रयास के साथ, यह अपने पंख फैलाता है और उस अनंत नीला नीले आकाश में चला जाता है जो इसके छोटे से महत्वपूर्ण प्रयासों की सराहना करता प्रतीत होता है।

            दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने वाली चींटी की कहानी अक्सर कही जाती है। यह कुछ इंच रेंगता है और गिरता है। लेकिन फिर कोशिश करता है। दरअसल, चींटी दीवार की चोटी तक पहुंचने की कोशिश में असीमित कोशिश करती रहती है। देखने वाला ऊब जाता है, थक जाता है और दिल हार जाता है। लेकिन चींटी नहीं करती। यह तब तक कोशिश करता रहता है जब तक कि यह शीर्ष पर न पहुंच जाए।

            इतिहास भी ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां असफलताओं की एक श्रृंखला से गुजरने के बाद ही सफलता मिली। किसी भी महान व्यक्तित्व के जीवन की कहानी को देखने के लिए यह देखना होगा कि चांदी की थाली में सफलता कभी नहीं मिलती है। वास्तव में सफलता का स्वाद चखने से पहले कई बार प्रयास करना पड़ता है।

            महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल सहित भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को असंख्य बार असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को सबसे ऊपर रखा और इसलिए, भारत स्वतंत्र हुआ। महान वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडिसन बिजली के बल्ब का आविष्कार करने से पहले 10,000 बार असफल हुए। स्टीव जॉब्स को उसी कंपनी से बाहर कर दिया गया था जिसे उन्होंने शुरू किया था। लेकिन वह एक शुरुआत की तरह फिर से शुरू करने की संभावना से उत्साहित था।

            हालाँकि, आज के समय में, हम पाते हैं कि एक टोपी की बूंद पर लोगों का दिल टूट रहा है। परीक्षा के फोबिया और साथियों के दबाव के शिकार हो जाते हैं छात्र। हर किसी को अपने आप से बहुत उम्मीदें होती हैं, जो पूरी न होने पर उन्हें अवसाद और यहां तक ​​कि आत्महत्या तक ले जाती है। यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि असफलता दुनिया का अंत नहीं है। उठने और चमकने के भरपूर अवसर होंगे।

जीवन में संतुलन बहुत उपयोगी है

जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है, लेकिन अधिकांश लोगों का जीवन असंतुलित बना हुआ है। हमने एक ऐसी मानसिक स्थिति का निर्माण कर रखा है कि सुख की स्थिति आने पर हम खुशी से उछल जाते हैं और दुख की स्थिति में मानो मुरझा जाते हैं जबकि हमें हर स्थिति में एक सा रहना चाहिए।

जसविंदर पाल शर्मा, डेमोक्रेटिक फ्रंट, श्री मुक्तसर साहिब पंजाब  :

इस तेजी से भागती आधुनिक दुनिया में संतुलित जीवन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। इसके अलावा, लोग यह भूल जाते हैं कि जीवन हमें उन सभी अच्छी चीजों के बदले में बहुत कुछ देता है जो हमें देती हैं। संतुलन पर यह लेख उपयोगी है, जीवन में संतुलन बनाए रखने के महान महत्व की व्याख्या करेगा।

संतुलन बनाए रखने का महत्व

इस आधुनिक युग में रहते हुए लोगों ने खुद को कम आंकने की यह नकारात्मक आदत विकसित कर ली है। इसके अलावा, बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि वास्तव में संतुलित जीवन क्या है। फलस्वरूप ऐसे व्यक्तियों के जीवन में तनाव आ जाता है।

संतुलित जीवन को परिभाषित करना कठिन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह काफी व्यक्तिगत है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है। हालांकि, संतुलित जीवन की एक सामान्य परिभाषा एक ऐसा जीवन जीना है जिसमें रिश्तों, काम, भावनात्मक कल्याण और शारीरिक स्वास्थ्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए संतुलन बनाए रखा जाता है।

एक संतुलित जीवन का एक अच्छा उदाहरण एक कामकाजी महिला का होगा जो घर में पत्नी और मां होने की भूमिका भी निभाती है। ऐसी महिला को अपनी भूमिकाओं को ठीक से निभाने के लिए अपने पेशेवर और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा, यह उनके काम और निजी जीवन में एक साथ सफलता हासिल करने की उनकी इच्छा से प्रेरित है।

जीवन में संतुलन बनाए रखने का एक शानदार तरीका यह है कि जीवन में हर कदम की योजना बनाई जाए, चाहे वह पेशेवर हो या व्यक्तिगत। हर काम में शत-प्रतिशत देने की आदत डालनी चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि स्वास्थ्य की उपेक्षा न हो, इसलिए इस पर विशेष ध्यान दें।

जब स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की बात आती है तो संतुलित आहार आवश्यक है। इस प्रकार, व्यक्ति को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और विटामिन का उचित संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसके अलावा, अच्छे स्वास्थ्य के लिए आहार में साग और फलों की हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।

समय प्रबंधन

जब जीवन में संतुलन बनाए रखने की बात आती है तो समय प्रबंधन कारक एक बड़ी भूमिका निभाता है। आधुनिक दुनिया में, कार्य-जीवन वास्तव में व्यस्त हो गया है। नतीजतन, लोग या तो अपने प्रियजनों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने में विफल रहते हैं या उनके पास अपने लिए कोई व्यक्तिगत समय नहीं होगा।

दरअसल, ज्यादातर लोग खुद को समझा लेते हैं कि उनके पास परिवार के सदस्यों और दोस्तों के लिए समय नहीं है। इसके अलावा, समय प्रबंधन के इस अस्वास्थ्यकर तरीके के कारण, लोग अपने शौक और यहां तक ​​कि उन चीजों की भी उपेक्षा करते हैं जो उन्हें खुशी देती हैं। नतीजतन, यह ऐसे लोगों के जीवन में तनाव, चिंता और अवसाद को जोड़ता है।

संतुलन पर निबंध का निष्कर्ष उपयोगी है

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा, संतुलन ऐसा होना चाहिए कि जीवन के विभिन्न तत्व प्राथमिकताओं और इच्छाओं की पूर्ण पूर्ति की सुविधा प्रदान करें। सबसे विशेष रूप से, लोगों को जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए अन्यथा वे शरीर, मन और आत्मा के महत्वपूर्ण संतुलन को खो सकते हैं।

सफाई व्यवस्था में फर्जी हाजिरी, सफाई पर पार्षद व लोग जागें

करणीदानसिंह राजपूत,  डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़  –  29 जुलाई  :

नगरपालिकाओं की सफाई व्यवस्था पर आवाजें उठती रही है और गंदगी कचरे के ढेरों की तस्वीरें छपती रही हैं।सोशल मीडिया पर सवाल उठते रहे हैं। 

अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारी  दो चार बार वार्डों का निरीक्षण करते हैं और अस्थायी सी सस्पेंशन की कार्यवाही करके एवं निर्देश देकर ठंडे है जाते हैं। निरीक्षण और कार्यवाही कुछ दिन बाद हवा हो जाते हैं।

सफाई कर्मचारी कई बार तो पांच सात दिन नहीं आते और जमादार भी नहीं आए तब किसको कहा जाए? वार्ड पार्षद को कहा जाता है तो कोई ठोस जवाब नहीं मिलता बल्कि वह भी निराशा वाला जवाब देता है।

स्थानीय निकाय के निदेशालय जयपुर से स्पष्ट आदेश है कि सफाई कर्मचारी की हाजिरी वहीं लगेगी जहां उसकी फील्ड में ड्युटी होगी। यदि ऐसा नहीं होगा तो वेतन नहीं मिलेगा। एकदम स्पष्ट आदेश है। लेकिन इनका पालन भ्रष्टाचार और अनियमितता की भेंट चढा दिया जाता है।

कुछ सफाईकर्मी की हाजिरी तो फील्ड में लगती है और वे सुबह नगरपालिका कार्यालय खुलने के समय भीतर आते हैं और शाम को कार्यालय बंद होने पर बाहर निकलते हैं। नगरपालिका कार्यालय के सीसीटीवी कैमरे इसके गवाह होंगे। वैसे यह अन्य कई प्रकार से भी प्रमाणित हो सकता है। जब एक सफाई कर्मचारी सुबह से शाम तक नगरपालिका कार्यालय में रहता है और सदा रहता है तो यह तो स्पष्ट है कि सरकारी आदेश के अनुसार वह फील्ड में ड्युटी पर हाजिर नहीं है। उसकी हाजिरी फर्जी लगाई जा रही है और वेतन भी गलत दिया जा रहा है। इसकी जिम्मेदारी किनकी है जो बिना काम के वेतन देते हैं। 

हाजिरी प्रमाणित करने वाला फील्ड में हाजिर दिखाने वाला सफाईनिरीक्षक और जमादार। इसके अलावा अधिशासी अधिकारी जो सरकार के आदेशों का पालन नहीं कर रहा। अधिशासी अधिकारी को मालुम होता है कि सफाई कर्मचारी सुबह से शाम तक और सदा नगरपालिका कार्यालय में मौजूद है। अधिशासी अधिकारी उसे कार्यालय में मौजूद क्यों रख रहा है? अधिशासी अधिकारी को यह मालुम है कि फील्ड में कार्यस्थल पर हाजिरी फर्जी लग रही है तो वेतन दिए जाने के लिए हाजिरी के दस्तावेज फर्जी तैयार होते हैं। इस फर्जकारी का जिम्मेदार और सरकारी कोष को नुकसान पहुंचाने वाले सभी दोषी होते हैं। अधिशासी अधिकारी सफाई निरीक्षक जमादार तीन तो स्पष्ट रूप में दोषी। 

अब एक और सवाल कि कर्मचारी की जगह दूसरा व्यक्ति काम करे। सफाई कर्मचारी अपने परिवार के सदस्य को भेजे जिसको जानकारी नहीं और वह कुछ देर बाद लौट जाए। सफाई कर्मचारी अपने वेतन में से आधे या और कम पर किसी को लगाए। वह भी कुछ समय फील्ड में रहे और लौट जाए। मतलब वहां सफाई नहीं हो रही। अधिशासी अधिकारी के समक्ष यह बातें रखी जाती है तो वह टालमटोल करते हैं।

इसका एक हल है कि सख्ती से कार्यवाही हो। उसकी बड़ी जिम्मेदारी स्वास्थ्य निरीक्षक की है कि वह फर्जी हाजिरी नहीं लगाए। फील्ड में ड्युटी पर हो उसी की हाजिरी लगाए।  नगरपालिका में नियुक्त कर्मचारी ही ड्युटी पर काम करे। असली कर्मचारी के अलावा किसी अन्य को काम पर नहीं लगाए।

जमादारों के पास एक डायरी हो जिसमें वे अपने प्रतिदिन का निरीक्षण लिखें। 

* गलियों व सड़कों पर कचरा फेंकने वालों पर,गोबर सड़कों के किनारे ढेर लगाने वालों पर कार्यवाही लिखित में हो और जुर्माने का प्रावधान हो।

* नालों पर अतिक्रमण व पक्के निर्माण से दुकानदारी,घरों के आगे नालों पर सड़कों के ऊपर तक बनाए रैंप से सफाई नहीं होती। स्वास्थ्य निरीक्षक एक एक सड़क और गली,बाजार की रिपोर्ट सफाई कर्मचारी व जमादार से तैयार करवाए और वह हर गली सड़क बाजार की अलग अलग फाईनल करके कार्यवाही के लिए अधिशासी अधिकारी को दे। अधिशासी अधिकारी इस पर कार्यवाही नहीं करेगा तो वह किसी भी प्रकार के नुकसान और दुर्घटना का पूरी तरह से जिम्मेदार होगा। 

* इतना होने पर ही शहर की सफाई व्यवस्था में सुधार हो सकता है।

**पार्षदों और शहर की संस्थाओं और जागरूक लोगों को नगरपालिका प्रशासन को यह सब या और भी अपनी ओर से लिखित में देना चाहिए और तुरंत देना चाहिए।

Vivek Atre releases book of English poems written by 12 year old Prisha

Panchkula. Former IAS officer Vivek Atre today released a book of English poems composed by Prisha Sharma, a 12 year old girl from Panchkula. Prisha’s book was released in a simple program in the premises of JP Toddler School, Sector 10. Addressing on this occasion, Atre said,I am amazed and astounded by the special talent that young Prisha has for writing and the poetic word. All of 12 years of age, she is a surprising package of creativity and verve. Her parents are obviously extremely supportive of her creative art as all parents should be, but only rare ones are.The mettle of her poetry lies in the simplicity of her language and the directness of her message. Poems such as “The Things I love” and “My wonderful Life” are reflective of her perceptive and grateful mind, well beyond her years.My best wishes to Prisha for her poetic tryst with destiny. May many young poets and writers take heart from her example and surge ahead in the literary world The need for young people to read more and write more has never been more pressing. I am sure that Prisha and rare gems of her ilk will be torchbearers of the written world in the years to come.

एम० के० साहित्य अकादमी ने कवियों के साथ मिल किया नव संवत 2079 का अभिनन्दन

अजय कुमार, पंचकूला, डेमोक्रेटिक फ्रंट –  05 अप्रैल : 

                     एम० के० साहित्य अकादमी (रजि०) पंचकूला एवं संस्कार भारती पंचकूला इकाई के संयुक्त तत्त्वावधान में इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1, पंचकूला के प्रांगण में नव संवत 2079 के अभिनन्दन में सबरस कवि दरबार  का आयोजन मुख्य अतिथि डॉ० अनीश गर्ग (प्रख्यात कवि, मुख्य प्रवक्ता व अखिल भारतीय कवि परिषद के अध्यक्ष) तथा विशिष्ट अतिथि हरिन्दर सिन्हा  (प्रख्यात कवि) के सानिध्य में किया गया। सुरेश गोयल ( अध्यक्ष, संस्कार भारती पंचकूला इकाई) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा डॉ प्रतिभा ‘माही’ ने मंच का कार्यभार सँभालते हुए माँ सरस्वती की वन्दना कर, सभी अतिथियों द्वारा  दीप प्रज्वलित करवाया। 

      हमारे मुख्य अतिथि डॉ० अनीश गर्ग ने ज़िन्दगी के कुछ अनछुए पहलुओं को समेटते हुये अपने हृदय के उदगार व्यक्त करते हुए क्या कहा गौर फ़रमायें:-

साहब! फुर्सत होती तो देखता छत के उधड़ते पलस्तर को….! 

अनीशको ज़माना हो गया फ़लक का चाँद तक देखे को….!”

       वहीं हमारे विशिष्ट अतिथि हरिन्दर सिन्हा ने कविता का महत्व बताते हुए श्री राम महिमा का गान किया:-

कविता से ही जीवन है औ कविता से उद्धार है। 

जबतक कविता है जीवन में, भरा पूरा संसार है।।”

     डॉ० प्रतिभा ‘माही’ ने स्वर्णिम भारत की बात करते हुए क्या कहा देखें:- 

आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा।

 स्वर्ग से सुंदर महलों का ये राजा हमें बनाएगा।।

 स्वर्ग नरक है इसी धरा पर, परमपिता ये कहते हैं।

 पहले भी स्वर्णिम था भारत, फिर स्वर्णिम बन जाएगा।।”

     संगीता कुन्द्रा दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल सुनाई, बानगी देखिए:- 

खफा है क्यों बता दे तू, बता कैसी लड़ाई है।

सही जाती नहीं मुझसे, ये अपनी जो जुदाई है।।” 

  कार्यक्रम  में उपस्थित रेनू अब्बी ने नव रात्रि की महिमा का गान किया तो दूसरी तरफ गणेश दत्त जी जीवन का सार बताते हुए अपना गीत ”इस धरा का इस धरा पर सब धरा रह जायेगा” प्रस्तुत किया। वरिष्ठ ग़ज़लकार कमल धवन, विजय सचदेवा व मोहिनी सचदेवा ने भी अपने-अपने विचार बड़ी ही सहजता से रखे। सभी कलमकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं से सभी श्रोताओं का मन मोह लिया। आज का यह कवि दरबार सम्पूर्ण दृष्टि से सफल रहा। जिसका पूरा श्रेय संयोजक सतीश अवस्थी को जाता है जो कि संस्कार भारती पंचकूला इकाई के महामंत्री  हैं। एम० के० साहित्य अकादमी संस्था प्रतिमाह इस तरह आयोजनों को करवाती रहती है। कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों ने डॉ० प्रतिभा माही के जज़्बे को सराहा।

गांधी और ‘CWC’ की आँख की किरकरी थे ‘शहीद भगत सिंह’

मोहन दास कर्मचंद गांधी ने कभी भी दिल से भगत सिंह की फांसी को रद्द करवाने का प्रयास नहीं किया।  18 फरवरी 1931 को उन्होंने खुद अपने एक लेख में ये माना था कि कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) कभी नहीं चाहती थी कि जब गांधी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच समझौते के लिए बातचीत शुरू हो तो इसमें भगत सिंह की फांसी को रद्द करवाने की शर्त जोड़ी जाए।  महात्मा गांधी ने ये जानते हुए भी उस समय भगत सिंह का खुल कर साथ नहीं दिया कि अंग्रेजी सरकार ने उनके खिलाफ एकतरफा मुकदमा चलाया था। वायसराय लॉर्ड इरविन ये भी कहा था कि “अगर गांधी इस पर उन्हें विचार करने के लिए कहते हैं, तो वो इस पर सोचेंगे।”

डेमोक्रेटिक फ्रंट :

सारिका तिवारी,

23 मार्च 1931 को महान क्रान्तिकारी भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम हरि राजगुरु को ब्रिटिश सरकार द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी की सजा दी गई थी।  भगत सिंह कहते थे कि बम और पिस्तौल से क्रान्ति नहीं आती, क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।  वो भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद देखना चाहते थे लेकिन आजादी से 16 साल 4 महीने और 23 दिन पहले ही उन्हें फांसी दे दी गई और उन्होंने भी हंसते हुए अपनी शहादत को गले लगा लिया।  इसी सिलसिले में ये जानना भी जरूरी है कि भगत सिंह, महात्मा गांधी की आंखों में चुभने क्यों लगे थे?

महात्मा गांधी का हुआ था विरोध

      भगत सिंह की फांसी से सिर्फ 18 दिन पहले ही महात्मा गांधी ने 5 मार्च 1931 को भारत के तत्कालीन Viceroy Lord Irwin के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे इतिहास में Gandhi-Irwin Pact कहा गया।  इस समझौते के बाद महात्मा गांधी का जमकर विरोध हुआ, क्योंकि उन पर यह आरोप लगा कि उन्होंने Lord Irwin के साथ इस समझौते में भगत सिंह की फांसी को रद्द कराने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया।  जबकि वो ऐसा कर सकते थे।

      महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वर्ष 1930 में जो सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया था, वो कुछ ही महीनों बाद काफी मजबूत हो गया था।  इस आन्दोलन के दौरान ही महात्मा गांधी ने 390 किलोमीटर की दांडी यात्रा निकाली थी और उन्हें 4 मई 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया था।

25 जनवरी 1931 को जब महात्मा गांधी को बिना शर्त जेल से रिहा किया गया, तब वो ये बात अच्छी तरह समझ गए थे कि अंग्रेजी सरकार किसी भी कीमत पर उनका आंदोलन समाप्त कराना चाहती है।  और इसके लिए वो उनकी सारी शर्तें भी मान लेगी।  और फिर 5 मार्च 1931 को ऐसा ही हुआ।

समझौते के दौरान नहीं हुई चर्चा

      वायसराय लॉर्ड इरविन ने गांधी-इरविन पैक्ट के तहत नमक कानून और आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए नेताओं को रिहा करने पर अपनी सहमति दी तो महात्मा गांधी अपना आंदोलन वापस लेने को राजी हो गए।  लेकिन इस समझौते में यानी इस दौरान भगत सिंह की फांसी का कहीं कोई जिक्र नहीं हुआ।  1996 में आई किताब The Trial of Bhagat Singh में वकील और लेखक A.G. Noorani लिखते हैं कि महात्मा गांधी ने अपने पूरे मन से भगत सिंह की फांसी के फैसले को टालने की कोशिश नहीं की।  वो चाहते तो ब्रिटिश सरकार पर बने दबाव का इस्तेमाल करके तत्कालीन वायसराय को इसके लिए राजी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 1930 और 1931 का साल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में काफी अहम साबित हुआ।

वो भगत सिंह का दौर था

      ये वो समय था, जब देश में लोगों की ज़ुबान पर महात्मा गांधी का नहीं बल्कि शहीद भगत सिंह का नाम था।  लोगों को ऐसा लगने लगा था कि महात्मा गांधी देश को अंग्रेजों से आजाद तो कराना चाहते हैं लेकिन इसके लिए वो अंग्रेजों के बुरे भी नहीं बनना चाहते।  जबकि भगत सिंह का मकसद बिल्कुल साफ था।  वो अंग्रेजों को किसी भी कीमत पर देश से भगाना चाहते थे।  और बड़ी संख्या में लोगों का प्यार और समर्थन भी उन्हें मिल रहा था।

       23 March को जब लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह को फांसी की सजा दी गई, तब इससे कुछ ही घंटे पहले महात्मा गांधी ने लॉर्ड इरविन (Lord Irwin) को एक चिट्ठी लिखी थी इसमें उन्होंने लिखा था कि ब्रिटिश सरकार को फांसी की सजा को कम सजा में बदलने पर विचार करना चाहिए।  उन्होंने लिखा था कि इस पर ज्यादातर लोगों का मत सही हो या गलत लेकिन लोग फांसी की सजा को कम सजा में बदलवाना चाहते हैं।  उन्होंने ये लिखा था कि अगर भगत सिंह और दूसरे क्रान्तिकारियों को फांसी की सजा दी गई तो देश में आंतरिक अशांति फैल सकती है।  लेकिन उन्होंने इस चिट्ठी में कहीं ये नहीं लिखा कि भगत सिंह को फांसी की सजा देना गलत होगा।  उन्हें बस इस बात का डर था कि लोग इसके खिलाफ हैं और अगर ये सजा दी गई तो हिंसा जैसा माहौल बन सकता है।  महात्मा गांधी इस चिट्ठी में बताया कि वायसराय लॉर्ड इरविन ने पिछली बैठक में अपने फैसले को बदलने से मना कर दिया था।  लेकिन उन्होंने ये भी कहा था कि अगर गांधी इस पर उन्हें विचार करने के लिए कहते हैं, तो वो इस पर सोचेंगे।

कांग्रेस वर्किंग कमेटी क्या चाहती थी?

      महात्मा गांधी ने कभी भी दिल से भगत सिंह की फांसी को रद्द करवाने का प्रयास नहीं किया।  18 फरवरी 1931 को उन्होंने खुद अपने एक लेख में ये माना था कि कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) कभी नहीं चाहती थी कि जब गांधी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच समझौते के लिए बातचीत शुरू हो तो इसमें भगत सिंह की फांसी को रद्द करवाने की शर्त जोड़ी जाए।  महात्मा गांधी ने ये जानते हुए भी उस समय भगत सिंह का खुल कर साथ नहीं दिया कि अंग्रेजी सरकार ने उनके खिलाफ एकतरफा मुकदमा चलाया था।

अंग्रेजों की पुख्ता साजिश और दिखावा

      भगत सिंह को फांसी की सजा ब्रिटिश पुलिस अफसर John Saunders की हत्या के लिए हुई थी।  लेकिन इस मामले में अंग्रेजी सरकार मुकदमा शुरू होने से पहले ही भगत सिंह के खिलाफ अपना फैसला सुना चुकी थी।  इसके लिए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने 1 मई 1930 को एक अध्यादेश पास किया था।  जिसके तहत हाई कोर्ट के तीन जजों का स्पेशल Tribunal बनाया गया जिसका मकसद था भगत सिंह को जल्दी से जल्दी फांसी की सजा देना।  बड़ी बात ये थी कि इन तीनों जजों के फैसले को भारत की ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।  अपील के लिए सिर्फ एक विकल्प दिया गया था जो काफी मुश्किल था।  इसमें इंग्लैंड की Privy Council में ही इस फैसले को चुनौती देने की छूट थी।  यानी ये विकल्प पूरी तरह दिखावटी था।

महात्मा गांधी सब जानते थे फिर भी चुप रहे

      इसके अलावा जब भगत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जा रहा था।  तब उनके वकील राम कपूर ने अदालत से 457 गवाहों से सवाल पूछने की इजाजत मांगी थी।  लेकिन उन्हें सिर्फ पांच लोगों से ही सवाल पूछने की मंजूरी मिली।  यानी भगत सिंह के खिलाफ एकतरफा मुकदमा चला और ब्रिटिश सरकार ने न्याय के सिद्धांत का भी गला घोंट दिया।  और इस तरह 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुना दी गई।  लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि महात्मा गांधी ये सारी बातें जानते थे. उन्हें पता था कि अंग्रेजी सरकार भगत सिंह को मौत की सजा देने के लिए बेकरार है।  लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी भगत सिंह की फांसी रद्द करवाने के लिए कोई आन्दोलन, कोई हड़ताल नहीं की।

महात्मा गांधी को दिखाए गए थे काले झंडे

      और ये बात उस समय के भारत के लोगों को काफी चुभ रही थी।  और यही वजह है कि इस फांसी के तीन दिन बाद जब 26 मार्च 1931 को कराची में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ, उस समय महात्मा गांधी के फैसले से नाराज लोगों ने उन्हें काले झंडे दिखाने शुरू कर दिए।  माना जाता है कि महात्मा गांधी इस विरोध से बचने के लिए ट्रेन में भगत सिंह के पिता को अपने साथ ले गए थे।  और उन्होंने इस अधिवेशन के दौरान एक प्रस्ताव में भगत सिंह के भी कुछ विचारों को शामिल करने पर अपनी सहमति दी थी, जिससे उनके खिलाफ नाराजगी कम हो सके।

साभार’डीएनए”

 चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए अहिंसा छोड़, सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग चुना

वर्ष 1870 में सक्स-कोबर्ग के राजकुमार अल्फ्रेड एवं गोथा प्रयागराज (तब, इलाहाबाद) के दौरे पर आए थे। इस दौरे के स्मरण चिन्ह के रूप में 133 एकड़ भूमि पर इस पार्क का निर्माण किया गया जो शहर के अंग्रेजी क्वार्टर, सिविल लाइन्स के केंद्र में स्थित है। वर्ष 1931 में इसी पार्क में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्र शेखर आज़ाद को अंग्रेज़ों द्वारा एक भयंकर गोलीबारी में वीरगति प्राप्त हुई। आज़ाद की मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 में 24 साल की उम्र में हो गई।

मैं भगतसिंह का साधक, 
मृत्यु साधना करता हूँ |
मैं आज़ाद का अनुयायी, 
राष्ट्र आराधना करता हूँ |

: राष्ट्रीय चिंतक मोहन नारायण 

स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास डेस्क : डेमोक्रेटिक फ्रंट

राष्ट्रिय स्वतन्त्रता के ध्येय को जीने वाले स्वाधीनता संग्राम के अनेकों क्रांतिकारियों में से कुछ योद्धा बहुत ही विरले हुए। जिनकी बहादुरी और स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रबल महात्वाकांक्षा ने उन्हें जनमानस की स्मृति में चिरस्थायी कर दिया। उनके शौर्य की कहानियों को दोहराए बिना राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास बया ही नहीं किया जा सकता है। जब भी हम देश के क्रांतिकारियों, आजादी के संघर्षों को याद करते है तो हमारे अंतर्मन में एक खुले बदन, जनेऊधारी, हाथ में पिस्तौल लेकर मूछों पर ताव देते बलिष्ठ युवा की छवि उभर कर आ जाती है। मां भारती के इस सपूत का नाम था चंद्रशेखर आजाद. जिनकी आज पुण्यतिथि है।

इस घटना के तार जुड़े है, 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए भीषण नरसंहार से जिसके बाद से ही देश भर के युवाओं में राष्ट्रचेतना का तेजी से प्रसार हुआ। बाद में जिसे सन 1920 में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन का रुप दिया। इस समय चन्द्रशेखर भी बतौर छात्र सडकों पर उतर आये। महज 15 साल की उम्र के चंद्रशेखर को आन्दोलन में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार किया गया। मामले में जब कोर्ट में जज के सामने इन्हें पेश किया गया तब कोई नहीं जानता था कि यहां भारत का इतिहास गढ़ा जाने वाला है जो सदियों के लिए इस देश की अमर बलिदानी परंपरा में एक उदाहरण जोड़ देगी। जज को दिए सवालों के जवाब ने चंद्रशेखर के जीवन को नई दिशा दी. उन्होंने जज के पूछने पर अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता, घर का पता जेल बताया। जिससे अंग्रेज जज तिलमिला उठा और उसने उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुना दी। कच्ची उम्र के इस बालक के नंगे बदन पर पड़ता हर एक बेत (कोड़ा) चमड़ी उधेड़ कर ले आता। लेकिन इसके मुंह से बुलंद आवाज के साथ सिर्फ भारत माता की जय… वंदे मातरम के नारे ही सुनाई देते। वहां मौजूद लोगों ने आजाद की इस सहनशीलता और राष्ट्रभक्ति को देख दांतों तले उंगलियां दबा ली।

आजादी की लड़ाई को नई दिशा देने वाले इस विरले योद्धा का जन्म झाबुआ जिले के भाबरा गांव (वर्तमान के अलीराजपूर जिले के चन्द्रशेखर आजाद नगर) में 23 जुलाई सन् 1906 को पण्डित सीताराम तिवारी के यहां हुआ था। इस वीर बालक को अपनी कोख से जन्म देने वाली और अपने रक्त व दूध से सींचने वाली वीरमाता थी जगरानी देवी। चंद्रशेखर ने अपना बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में गुजारा था। जहां वे भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाया करते थे, जिसके कारण उनका निशाना अचूक हो गया था। उनका यह कौशल आगे चलकर भारत की स्वाधीनता के संघर्ष में खूब काम आया।

अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत तो आजाद ने अहिंसा के आंदोलन से की थी लेकिन उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों और अपमान को अधिक समय तक नहीं सहा और मां भारती को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग चुन लिया। आजाद के साथ क्रांतिकारी तो कई थे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल से उनकी खूब बनी। इनकी जोड़ी ने अंग्रेजों की जड़ें हिला कर रख दी।

एक समय तक देश के सभी युवा गांधीजी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन फरवरी सन् 1922 में ऐतिहासिक चौरी-चौरा घटना ने सशस्त्र क्रांति की चिंगारी को हवा दे दी। उस समय में ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा शहर में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में प्रदर्शनकारियों का पुलिस से संघर्ष हुआ। भीड़ पर काबू करने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं जिसके बाद हालात तेजी से बिगड़े और भीड़ ने 22 पुलिसकर्मियों को थाने में बंद कर आग के हवाले कर दिया. इस घटना में हुई 3 नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मौत से आहत महात्मा गांधी ने तुरंत ही प्रभावी रुप से चल रहे असहयोग आंदोलन को रोक दिया। जिससे युवा क्रांतिकारियों के दल में भारी रोष उठा और उन्होंने अपना मार्ग गांधी से अलग कर लिया

इसके बाद ही चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े और उसके सक्रिय सदस्य बने। इसी दौरान उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी लूट को अंजाम दिया और फरार हो गए। ब्रिटिश सरकार ने इसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी गई और अन्य को कठोर कारावास के लिए कालापानी भेज दिया गया।

अपने साथियों के बलिदान के बाद आजाद ने उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारी दलों को एकजुट करके हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का गठन किया। जिसमें उनके साथी भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, जयदेव कपूर समेत कई क्रांतिकारी थे. जिन्होंने साथ मिलकर उग्र दल के नेता लाला लाजपतराय की हत्या का बदला अंग्रेजी अफसर सॉण्डर्स का वध करके लिया। आजाद कभी नहीं चाहते थे कि भगतसिंह खुद दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड की घटना को अंजाम दे क्योंकि वो जानते थे कि इसके बाद एक बार फिर संगठन बिखर जायेगा लेकिन भगत नहीं माने और इस घटना को अंजाम दिया गया।

 जिसने ब्रिटिश सरकार की रातों की नींद हराम कर दी लेकिन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) बिखर गया। आजाद ने असेम्बली बम कांड के मुकदमे में गिरफ्तार हुए अपने साथियों को छुड़ाने के लिए भरसक प्रयास किए, वे इस संदर्भ में पंडित गणेश शंकर विद्यार्थी और पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी मिले लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने वीरांगना दुर्गा भाभी (क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी) को भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव की फांसी रुकवाने के लिए गांधीजी के पास भी भेजा लेकिन गांधीजी ने भी उन्हें निराश कर दिया और उनके तीन और साथी आजादी के लिए फांसी पर झूल गए।

इन सारी घटनाओं के बावजूद चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों की नजरों से अब तक बचे हुए थे। वो अपने निशानेबाजी की कला के साथ वेश बदलने की कला में भी माहिर थे। जिसने अंग्रेजों के लिए उन्हें पकड़ने की चुनौती को और बढ़ा दिया था, कहा जाता है कि आजाद को सिर्फ पहचानने के लिए उस समय अंग्रेजी हुकूमत ने 700 लोगों को भर्ती कर रखा था बावजूद उसके वो कभी सफल नहीं हो पाए। लेकिन उन्हीं के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सेंट्रल कमेटी मेम्बर वीरभद्र तिवारी आखिर में अंग्रेजो के मुखबिर बन गए और वो दिन आया जब मां भारती के इस लाल को इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क (वर्तमान में प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद पार्क) में घेर लिया गया।

ये दिन था 27 फरवरी 1931 का, आजाद अपने साथी क्रांतिकारी सुखदेव राज से मिलने पहुंचे थे। वे दोनों पार्क में घूम ही रहे थे कि तभी अंग्रेज अफसर नॉट बावर अपने दल-बल के साथ वहां पर आ धमका जिसके बाद दोनों ओर से धुंआधार गोलीबारी शुरू हो गई। अचानक हुए इस घटनाक्रम में आजाद को एक गोली जांघ पर और एक गोली कंधे पर लग चुकी थीं। बावजूद इसके उनके हाव भाव सामान्य बने हुए थे। वे अपने साथी सुखदेव के साथ एक जामुन के पेड़ के पीछे जा छिपे और स्थिति को हाथ से निकलता देख अपने साथी सुखदेव को वहां से सुरक्षित निकाल दिया। इस दौरान आजाद ने 3 गोरे पुलिसवालों को भी ढेर कर दिया लेकिन अब उनके शरीर में लगी गोलियां अपना असर दिखाने लगी थीं।  

वहीं नॉट बावर अपने सिपाहियों के साथ अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था, आखिरकार आजाद की पिस्तौल खाली होने को आ गई! अब पास की गोलियां भी खत्म हो चुकी थीं लिहाजा इस वीर योद्धा ने अपनी पिस्तौल में बची अंतिम गोली को स्वयं की नियति में ही लिखने का साहसिक फैसला कर लिया। आजाद के मूर्छाते नेत्रों में अब भी उनका ध्येय ‘आजाद थे, आजाद है और आजाद रहेंगे!’ स्पष्ट था। अब पार्क में सन्नाटा पसर गया नॉट बावर के तरफ से भी फायरिंग थम गई थीं आजाद हर्षित मन से जीवन की अंतिम घड़ियों में अपने देश की माटी और उसकी आबोहवा को महसूस कर रहे है और यकायक उनकी पिस्तौल आखिर बार गरजी और ये वो क्षण था जब उन्होंने उस पिस्तौल में बची अंतिम गोली को अपनी कनपटी पर दाग लिया था।

‘बमतुल बुखारा’

मां भारती ने अपने लाल को खो दिया था लेकिन उसका ख़ौफ अंग्रेजों में इस कदर हावी था कि गोरे सिपाही उसके मृत शरीर के पास तक आने से कतरा रहे थे और लगातार उन पर गोलियां बरसाए जा रहे थे। आखिर में चंद्रशेखर आजाद की इस बहादुरी से नॉट बावर इतना प्रभावित हो चुका था कि उसने खुद टोपी उतार कर आजाद को सलामी दी और उनकी पिस्तौल को (जिसे आजाद ‘बमतुल बुखारा’ कहते थे) अपने साथ अपने देश ले गया था, जिसे आजादी के बाद वापस भारत लाया गया।

व्साभार नागेश्वर पवार

पंजाब में मुख्य मंत्री पद के लिए छ: चेहरे हैं जिसमें कॉंग्रेस के दो

इस बार के पंजाब विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरे सभी राजनीतिक दलों में मुख्यमंत्री पद के चेहरों की चर्चा अब तेज़ हो गई है। इसका कारण आम आदमी पार्टी है जिसने भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। उधर अकाली दल-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के लिए मुख्यमंत्री पद का चेहरा सुखबीर सिंह बादल हैं। इस बात का एलान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और सुखबीर सिंह बादल के पिता प्रकाश सिंह बादल ने किया है। किसान आंदोलन के बाद बनी किसानों की नई पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा ने बलबीर सिंह राजेवाल को अपना नेता चुना है।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ :

इस बार सत्तारूढ़ कांग्रेस में इस पद के लिए मुख्य मुक़ाबला मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच है। हालांकि चरणजीत सिंह चन्नी के पक्ष में हालात अधिक अनुकूल दिख रहे हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी गुरुवार, 27 जनवरी को पंजाब आ रहे हैं। वे यहाँ पंजाब विधानसभा चुनाव के प्रचार के सिलसिले में पूरे दिन रहने वाले हैं। हालांकि उनकी इस यात्रा से जुड़ा बड़ा सवाल ये है कि क्या वे पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करेंगे। समझते हैं, इस लिहाज से क्या संभावनाएं बन रही हैं।

इस सिलसिले में यह गौर करने लायक है कि पंजाब के कांग्रेस कार्यकर्ता मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के मसले पर स्पष्टता के हामी हैं। वे 2017 का उदाहरण देते हैं, जब कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया था। इसके बाद कैप्टन ने आम आदमी पार्टी को ‘बाहरी’ बताया। साथ ही, खुद को ‘पंजाब का पुत्तर’ और बड़े अंतर से चुनाव जिताकर पार्टी को सत्ता में ले आए। इसलिए पार्टी कार्यकर्ताओं की अपेक्षा है कि इस बार भी मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाना चाहिए। हालांकि इस अपेक्षा के पूरा होने में पेंच है।

कांग्रेस के लिए इस बार दिक्कत ये है कि उसके पास 2017 की तरह अब कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। पार्टी अभी स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में बंटी दिख रही है। एक हिस्सा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की तरफ झुका हुआ है। जबकि दूसरा- प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की ओर। ये दोनों नेता मुख्यमंत्री पद के मसले पर अपनी दावेदारी भी जता चुके हैं। यह कहते हुए कि मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने से कांग्रेस को पंजाब विधानसभा चुनाव में फायदा होगा। इन दो के बीच तीसरे नेता हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सुनील जाखड़ हैं, जिन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ा था।

जानकारों की मानें तो पार्टी अभी बार-बार सामूहिक नेतृत्व की बात कर रही है। राहुल गांधी इसी रुख को मजबूती दे सकते हैं। इसमें अपेक्षा ये है कि जाट समुदाय के नवजोत सिंह सिद्धू, दलित-सिख चरणजीत सिंह चन्नी और हिंदू नेता सुनील जाखड़ को बराबरी से साध कर रखा जाए। ताकि चुनाव में कोई नुकसान न हो और पार्टी की सत्ता में पहले वापसी सुनिश्चित की जाए।

इसके बाद आपसी सहमति बनाकर मुख्यमंत्री पद के लिए किसी नेता का चुनाव कर लिया जाएगा। संभवत: इसीलिए राहुल की यात्रा से ठीक पहले उनका कार्यक्रम जारी करते हुए पंजाब सरकार ने भी यही संकेत दिया है। जैसा कि समाचार एजेंसी एएनआई की खबर से पता चलता है। इस बार 2017 से अलग है परिस्थिति