तमिलनाडु के मदुरई के अवनीयापुरम में जल्लीकट्टू का खेल आरंभ हो चुका है। इस प्रतियोगिता में 200 से अधिक बैल हिस्सा ले रहे हैं। वहीं कोविड-19 को देखते हुए, राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि किसी कार्यक्रम में खिलाड़ियों की संख्या 150 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। साथ ही दर्शकों की तादाद सभा के 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। बता दें कि प्रति वर्ष इस खूनी खेल में कई लोग बुरी तरह जख्मी भी हो जाते हैं, तो कई की जान भी जाती है। साल 2019 में इसी वक़्त शुरू हुये पोंगल महोत्सव में राज्य के विभन्न हिस्से में आयोजित जलीकट्टू के दौरान यहां दिल का दौरा पड़ने की वजह से एक दर्शक की मौत हो गई थी। इसके अलावा बैलों को काबू करने वाले 40 से अधिक व्यक्ति जख्मी हो गए थे। उस वक़्त समारोह में कुल 729 बैलों का उपयोग किया गया था।
चेन्नई/नयी दिल्ली :
तमिलनाडु के मदुरई के अवनीयापुरम में जलीकट्टू का खेल शुरू हो चुका है। कॉन्ग्रेस ने जिस खेल को कभी ‘बर्बर’ बताकर भाजपा पर इसके राजनीतिकरण का आरोप लगाया था, उसी जलीकट्टू का मजा लेने कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी अवनियापुरम के इस कार्यक्रम में पहुँच चुके हैं।
राहुल गाँधी शायद ये भूल गए कि उन्हीं की पार्टी के कई वरिष्ठ नेता और यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस जलीकट्टू को ‘हिंसक’ और पशुओं पर अत्याचार वाला खेल बता चुके हैं। यही नहीं, साल 2016 के कॉन्ग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में जलीकट्टू को प्रतिबंधित करना भी शामिल था।
Mr manmohan singh wrote letter to against Jallikattu 2017 called it's cruel the same congress opposed Jallikattu, Rahul Gandhi attent Jallikattu madurai avaniapural #Goback_Rahulpic.twitter.com/Ls6QMKjqZK
सोशल मीडिया पर राहुल गाँधी की जलीकट्टू में शामिल होने को लेकर जमकर खिंचाई हो रही है। वर्ष 2016 में, कॉन्ग्रेस ने जल्लीकट्टू को ‘बर्बर’ हरकत कहते हुए भाजपा पर इसे समर्थन देकर राजनीति करने का आरोप लगाया था।
In 2016, Congress called Jallikattu a 'Barbaric Practicec", accused BJP of doing politics by supporting it.
Now Rahul Gandhi is going to watch it, now Jallikattu is not 'Barbaric' for Congress? pic.twitter.com/FJ8PCsuST5
कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने बृहस्पतिवार (जनवरी 14, 2021) को जलीकट्टू में शामिल होने के बाद बयान दिया, “मैं यहाँ आया हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि तमिल संस्कृति, भाषा और इतिहास भारत के भविष्य के लिए आवश्यक हैं और इसका सम्मान करने की आवश्यकता है।”
I have come here as I think Tamil culture, language & history are essential for India's future & need to be respected. I've come here to give a message to those who think that they can run roughshod over Tamil people, can push aside Tamil language & Tamil culture: Rahul Gandhi https://t.co/hzWYBtM6M7
राहुल गाँधी ने कहा कि तमिल संस्कृति को देखना काफी प्यारा अनुभव था और उन्हें ये देखकर बेहद खुशी हुई कि जलीकट्टू को व्यवस्थित और सुरक्षित तरीके से आयोजित किया जा रहा है। राहुल ने कहा कि वो उन लोगों को संदेश देने के लिए गए हैं, जो ये सोचते हैं कि वो तमिल संस्कृति को खत्म कर देंगे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/01/739301-rahul-gandhi.jpg400700Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-01-14 17:45:592021-01-15 01:43:36राहुल गांधी पहुंचे ‘बैलों को यातना’ का खेल देखने
चिदंबरम ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि पार्टी को बिहार में इतनी ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था. कांग्रेस के पास गिरती अर्थव्यवस्था और कोरोनावायरस संकट के मुद्दे थे, लेकिन पार्टी उसपर भी कैंपेनिंग करके अच्छी मौजूदगी नहीं जता पाई, इस पर सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ‘मुझे गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के उपचुनावों की चिंता ज्यादा है. यह नतीजे दिखाते हैं कि या तो पार्टी की जमीन पर संगठन के तौर पर मौजूदगी ही नहीं है, या फिर बहुत ज्यादा कम हुई है।’ उन्होंने कहा, ‘बिहार में, आरजेडी-कांग्रेस के पास जीतने का मौका था। जीत के इतने करीब होने के बावजूद हम क्यों हारे, इस पर बहुत ही गहराई से विचार करने की जरूरत है। याद कीजिए, कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जीते हुए बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है।’
चंडीगढ़/नयी दिल्ली :
हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों और कई राज्यों के उपचुनावों में लचर प्रदर्शन के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी को अपने ही दिग्गज नेताओं से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस कड़ी में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के बाद अब यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने बयान दिया है। उन्होंने कॉन्ग्रेस के नीतिगत ढाँचे की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी के प्रदर्शन में पिछले कुछ समय से लगातार गिरावट ही आई है। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस को इतना साहसी बनना होगा कि गिरावट के उन कारणों को पहचाने और उन पर काम करे।
कॉन्ग्रेस नेता पी चिदंबरम की तरफ से यह प्रतिक्रिया बिहार विधानसभा और मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश उपचुनाव में दयनीय प्रदर्शन के बाद सामने आई है। चिदंबरम ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने अपनी संगठनात्मक क्षमता से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। एक दैनिक को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कॉन्ग्रेस के प्रदर्शन पर खुल कर आलोचना की। चिदंबरम ने कहा कि उपचुनाव इस बात प्रमाण हैं कि कॉन्ग्रेस की संगठनात्मक दृष्टिकोण से कोई पकड़ नहीं रह गई है। इतना ही नहीं जिन राज्यों में उपचुनाव हुए हैं उनमें कॉन्ग्रेस कमज़ोर ही हुई है।
महागठबंधन की हार अपना नज़रिया रखते हुए कॉन्ग्रेस नेता ने कहा कि महागठबंधन के जीतने की उम्मीदें थीं फिर भी हम जीतते जीतते हार गए। इन तमाम आलोचनात्मक दलीलों के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए आशावादी नज़र आते हुए उन्होंने कहा कि कुछ ही समय पहले कॉन्ग्रेस ने हिन्दी बेल्ट 3 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में जीत हासिल की थी।
इसके बाद एआईएमआईएम और सीपीआई (एमएल) का उल्लेख करते हुए चिदंबरम ने कहा कि छोटे दल अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं क्योंकि इनकी ज़मीनी स्तर पर पकड़ बेहद मजबूत है। कॉन्ग्रेस, राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सबसे कमज़ोर कड़ी साबित हुई है। पार्टी को तमाम तरह के बदलावों की ज़रूरत है और ऐसे बदलाव नहीं होने की सूरत में राजनीतिक नुकसान बढ़ता ही जाएगा।
अंत में कॉन्ग्रेस नेता ने कहा कि पार्टी ने अपनी संगठनात्मक क्षमता से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। यह एक बड़ा कारण था कि कॉन्ग्रेस इतनी कम सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दल पिछले 20 वर्षों से चुनाव जीत रहे हैं। पार्टी को सिर्फ 45 उम्मीदवार उतारने चाहिए थे, शायद तब बेहतर नतीजे हासिल होते। इसके ठीक पहले कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी संगठन के शीर्ष नेतृत्व पर कई सवाल खड़े किए थे।
उनका कहना था कि हार दर हार के बाद पार्टी के नेतृत्व ने इस प्रक्रिया को अपनी नियति मान कर स्वीकार कर लिया। कपिल सिब्बल के इस बयान पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सलमान खुर्शीद ने आलोचना की थी। इन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि पार्टी के भीतर रह कर पार्टी को नुकसान पहुँचाने वाले नेता खुद बाहर चले जाएं। इसके अलावा लोकसभा में कॉन्ग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन ने भी कपिल सिब्बल के बयान पर प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि कपिल सिब्बल को पार्टी छोड़ ही देनी चाहिए।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/11/P-chidambram.jpg337600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-11-19 16:20:382020-11-19 16:50:31कॉन्ग्रेस पार्टी की जमीन पर संगठन के तौर पर मौजूदगी ही नहीं है : चिदंबरम
वायु सेना के ड्रोन (मानव रहित टोही विमान) रुस्तम-दो की मारक क्षमता अब अचूक हो गई है। रुस्तम न सिर्फ अब दिन और रात में बराबर दुश्मन पर निगाह बनाए रखेगा, बल्कि जरूरत पडऩे पर उस पर अचूक निशाना भी साध सकेगा। यह संभव हो पाया है यंत्र अनुसंधान एवं विकास संस्थान (आइआरडीई) के लॉन्ग व मीडियम रेंज इलेक्ट्रो ऑप्टिकल सिस्टम की मदद से।
चित्रदुर्ग:
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने शुक्रवार को स्वदेशी प्रोटोटाइप ड्रोन रूस्तम -2 (Rustom 2) की फ्लाइट टेस्टिंग की. कर्नाटक के चित्रदुर्ग में Rustom 2 ने 16,000 फीट की ऊंचाई पर आठ घंटे की उड़ान भरी. इस प्रोटोटाइप के साल 2020 तक अंत तक 26000 फीट और 18 घंटे की स्थिरता हासिल करने की उम्मीद है. डीआरडीओ ने इस तरह का ड्रोन सेना की मदद करने के लिए बनाया है. इसका इस्तेमाल दुश्मन की तलाश करने, निगरानी रखने, टारगेट पर सटीक निशाना लगाने और सिग्नल इंटेलिजेंस में होता है. बता दें कि अमेरिका आतंकियों पर हमला करने के लिए ऐसे ड्रोन का अक्सर इस्तेमाल करता रहता है. इससे पहले साल 2019 के सितंबर में इसका ट्रायल फेल हो गया था. चित्रदुर्ग में ही एक टेस्टिंग के दौरान यह क्रैश हो गया था.
डीआरडीओ ने उम्मीद जाहिर की है कि रुस्तम 2 भारतीय वायु सेना और नौसेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले इजरायली हेरॉन अनमैन्ड एरियल व्हीकल वाहन का मुकाबला करेगा. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर 1959 के कार्टोग्राफिक दावे के आधार पर लद्दाख में भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश के बाद रुस्तम -2 प्रोग्राम को शुरू किया गया. PLA के पास विंग लूंग-II आर्म्ड ड्रोन हैं. चीन ने उनमें से चार को CPEC गलियारे और ग्वादर बंदरगाह की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान को दे दिया है.
हालांकि रुस्तम -2 को भारतीय सेना में शामिल होने से पहले ट्रायस और टेस्टिंग से गुजरना होगा. रक्षा मंत्रालय वर्तमान में इजरायल एयरोस्पेस उद्योग (IAI) के साथ बातचीत कर रहा है, ताकि न केवल हेरोन ड्रोन के मौजूदा बेड़े को अपग्रेड किया जा सके, बल्कि मिसाइल और लेजर गाइडेड बमों के साथ हवा से सतह पर मार करने के काबिल बनाया जा सके.
हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित साउथ ब्लॉक के अधिकारियों के अनुसार, रक्षा अधिग्रहण समिति (डीएसी) द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद हेरोन ड्रोन का तकनीकी अपग्रेडेशन और आर्मिंग कॉन्ट्रैक्टिंग नेगोशिएटिंग कमिटी लेवल के पास है. परियोजना को सुरक्षा समिति (CCS) की कैबिनेट समिति के स्तर पर मंजूरी दी जाएगी.
रुस्तम का दूसरा नाम है – तापस इस विमान को तापस बीएच-201 भी कहते हैं. रुस्तम 2 को डीआरडीओ ने पूरी तरह स्वदेशी तौर पर विकसित किया है. ये ऐसा ड्रोन है, जो दुश्मन की निगरानी करने, जासूसी करने, दुश्मन ठिकानों की फोटो खींचने के साथ दुश्मन पर हमला करने में भी सक्षम है. अमेरिका आतंकियों पर हमले के लिए ऐसे ड्रोन का इस्तेमाल करता रहा है. उसी तर्ज पर डीआरडीओ ने सेना में शामिल करने के लिए ऐसे ड्रोन बनाए हैं.
रुस्तम 2 ने फरवरी 2018, उसके बाद जुलाई में सफल परीक्षण उड़ान भरी थी. डीआरडीओ ने कहा था कि 2020 तक ये ड्रोन सेना में शामिल होने के लिए तैयार होंगे. रुस्तम- 2 अमेरिकी ड्रोन प्रिडेटर जैसा है. प्रिडेटर ड्रोन दुश्मन की निगरानी से लेकर हमला करने में सक्षम है.
उड़ान के दौरान ज्यादा शोर नहीं करता रुस्तम-2 यूएवी रुस्तम-2 को डीआरडीओ के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट इसटैब्लिसमेंट (ADE) ने HAL के साथ पार्टनरशिप करके बनाया है. इसका वजन करीब 2 टन का है. विमान की लंबाई 9.5 मीटर की है. रुस्तम-2 के पंखे करीब 21 मीटर लंबे हैं. ये 224 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से उड़ान भर सकता है.
रुस्तम-2 कई तरह के पेलोड्स ले जाने में सक्षम है. इसमें सिंथेटिक अपर्चर राडार, इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सिस्टम और सिचुएशनल अवेयरनेस पेलोड्स शामिल हैं. रुस्तम-2 मे लगे कैमरे 250 किलोमीटर तक की रेंज में तस्वीरें ले सकते हैं. रुस्तम-2 यूएवी उड़ान के दौरान ज्यादा शोर नहीं करता है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/10/0df57f519d7ca9c7370bb0624702476e.jpg385685Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-10-11 16:49:522020-10-11 16:50:10चित्रदुर्ग में Rustom 2 ने 16,000 फीट की ऊंचाई पर आठ घंटे की उड़ान भरी
मोदी सरकार ने कोरोना पर अपनी विफलता छुपाने के लिए तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया और मीडिया ने इस पर प्रॉपेगेंडा चलाया। बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। इस एक फैसले ने तबलिगी जमात के प्रति लोगों को अपने विचार बदलने पर मजबूर किया हो ऐसा नहीं है, हाँ मुसलमानों के एक तबके में राहत है और खुशी की लहर है। इस फैसले का मोदी सरकार के तथाकथित @#$%$ मीडिया वाली बात सच साबित होती दिखती है।
महाराष्ट्र(ब्यूरो):
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया। कोर्ट ने साथ ही मीडिया को फटकार लगाते हुए कहा कि इन लोगों को ही संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रॉपेगेंडा चलाया गया। वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इस प्रॉपेगेंडा से मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।
देश में जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन में स्थित तबलीग़ी जमात के बने मरकज़ में फंसे लोगों की ख़बर निकल कर सामने आई और तबलीगी जमात में शामिल छह लोगों की कोविड-19 से मौत का मामला सामने आया, तब से ही भारतीया मीडिया ने तबलीग़ी जमात की आड़ में देश के मुस्लमानों पर फेक न्यूज़ की बमबारी कर दी । मीडिया ने चंद लम्हों में इसको हिंदू-मुस्लिम का मामला बना कर परोसना शुरू कर दिया । सरकार से सवाल पूछने के बजाए नेशनल चैनल पर अंताक्षरी खेलने वाली मीडिया को जैसे ही मुस्लमानों से जुड़ा कोई मामला मिला उसने देश भर के मुस्लमानों की छवि को धूमिल करना शुरू कर दिया । कोरोनावायरस जैसी जानलेवा बीमारी को भारत में फैलाने का ज़िम्मेदार मुस्लमानों को ठहराना शुरू कर दिया। : नेहाल रिज़वी
कोर्ट ने शनिवार को मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘दिल्ली के मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रॉपेगेंडा चलाया गया। ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई, जिसमें भारत में फैले Covid-19 संक्रमण का जिम्मेदार इन विदेशी लोगों को ही बनाने की कोशिश की गई। तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया।’
हाई कोर्ट बेंच ने कहा, ‘भारत में संक्रमण के ताजे आंकड़े दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसे ऐक्शन नहीं लिए जाने चाहिए थे। विदेशियों के खिलाफ जो ऐक्शन लिया गया, उस पर पश्चाचाताप करने और क्षतिपूर्ति के लिए पॉजिटिव कदम उठाए जाने की जरूरत है।
This is a timely judgement. BJP was minimising the potential risk of the pandemic. The media scapegoated #TablighiJamat to protect BJP from criticism of its wholly inadequate response. As a result of this propaganda Muslims across India faced horrible hate crimes & violence https://t.co/BxJTZiddaw
वहीं हैदराबाद से सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के इस फैसले की सराहना करते हुए इसे सही समय पर दिया गया फैसला करार दिया। ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, ‘पूरी जिम्मेदारी से बीजेपी को बचाने के लिए मीडिया ने तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया। इस पूरे प्रॉपेगेंडा से देशभर में मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/08/tabligi.jpg400650Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-08-23 08:35:272020-08-23 08:35:49तबलीगी जमात को औरंगाबाद हाइ कोर्ट से राहत, एफ़आईआर रद्द, ओवैसी ने भाजपा पर साधा निशाना
कर्नाटक के मंत्री का यह बयान बेंगलुरु हिंसा के संदर्भ में आया है. इस हिंसा के दौरान एक ईशनिंदा करने वाली सोशल मीडिया पोस्ट के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए 50 से 60 हजार की उग्र भीड़ ने कर्नाटक के कुछ इलाकों में मंगलवार रात सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम दिया था.“सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त हुई सार्वजनिक संपत्ति की भरपाई उन व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए जिन्होंने नुकसान पहुँचाया है। हम तुरंत कार्रवाई करने जा रहे हैं। हम व्यक्तियों की पहचान कर रहे हैं और नुकसान का आकलन कर रहे हैं। इसके बाद दंगाइयों द्वारा नुकसान की वसूली की जाएगी।”
कर्नाटक/ नयी दिल्ली :
कर्नाटक के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई ने बुधवार (अगस्त 12, 2020) को कहा कि राज्य सरकार बेंगलुरु हिंसा की घटना में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी। बोम्मई ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि सार्वजनिक संपत्ति और वाहनों को नुकसान की भरपाई क्षति पहुँचाने वाले दंगाइयों को करना होगा।
मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए, कर्नाटक के गृह मंत्री ने कहा, “मैं संपत्ति की वसूली को लेकर एक महत्वपूर्ण घोषणा करना चाहता हूँ कि सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त हुई सार्वजनिक संपत्ति की भरपाई उन व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए जिन्होंने नुकसान पहुँचाया है। हम तुरंत कार्रवाई करने जा रहे हैं। हम व्यक्तियों की पहचान कर रहे हैं और नुकसान का आकलन कर रहे हैं। इसके बाद दंगाइयों द्वारा नुकसान की वसूली की जाएगी।”
JUST IN: Damage inflicted in east Bengaluru violence will be recovered from property of rioters, as per Supreme Court guidelines, says Karnataka Home Minister @BSBommai. pic.twitter.com/PAzzSMzyFq
उन्होंने पुष्टि की कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक बुलाई है, जहाँ आगजनी में लिप्त लोगों से नुकसान की वसूली के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
मंत्री ने कहा, “मैं लोगों को चेतावनी देना चाहता हूँ कि जो लोग कानून को हाथ में ले रहे हैं उन्हें सबक सिखाया जाएगा। (बेंगलुरु हिंसा) के पीछे की साजिश का पर्दाफाश किया जाएगा।”
बता दें कि इससे पहले बेंगलुरु दक्षिण के सांसद (बीजेपी) तेजस्वी सूर्या ने इस बाबत कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को पत्र लिखा था। पत्र में तेजस्वी सूर्या ने येदियुरप्पा से उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की तरह दंगे में हुई व्यापक क्षति की भरपाई दंगाइयों की संपत्ति जब्त करके करने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली दंगाइयों की संपत्ति जब्त करके करें।
I request Sri @BSYBJP to confiscate and attach properties of the rioters and compensate losses to public property in same way as Sri @myogiadityanath govt did in UP.
Bengaluru is known for its peace and harmonious society.
भाजपा सांसद ने अपने पत्र को ट्विटर पर पत्र शेयर किया, जिसमें उन्होंने येदियुरप्पा से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार के उदाहरण का पालन करने का आग्रह किया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को दोहराया नहीं जाएगा।
उत्तर प्रदेश के सीएम ने आगजनी में शामिल दंगाइयों की संपत्तियों को कैसे कुर्क किया, इसका उदाहरण देते हुए तेजस्वी ने कहा कि हिंसा के आरोपित व्यक्तियों की होर्डिंग्स लगाई गई और अकेले लखनऊ में 50 लोगों को 1.55 करोड़ रुपए की वसूली नोटिस जारी किए गए। उन्होंने दंगाइयों से सख्ती से निपटने का अनुरोध किया।
सीएम येदियुरप्पा को तेजस्वी सूर्या का लिखा गया पत्र
बता दें कि मंगलवार (अगस्त 11, 2020) की रात पूर्वी बेंगलुरु केजी हल्ली, डीजे हल्ली और पुल्केशी नगर में अल्लाह-हो-अकबर और नारा-ए-तकबीर के नारों के बीच हिंसा फैल गई। 1000 से भी अधिक की मुस्लिम भीड़ ने अल्लाह-हो-अकबर और नारा-ए-तकबीर के नारों के बीच पुलिस स्टेशन को जला डाला। यह दंगे पैगंबर मुहम्मद पर कथित रूप से आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट को लेकर भड़के थे।
1000 से भी अधिक की मुस्लिम भीड़ ने स्थानीय विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के घर को घेर लिया और तोड़फोड़ शुरू कर दी। सबसे पहले तो केजी हल्ली पुलिस स्टेशन के सामने एक हज़ार से ज्यादा की संख्या में मुसलमान इकट्ठे हो गए और कॉन्ग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के रिश्तेदार नवीन की गिरफ्तारी की माँग करने लगे। इसके बाद उन्होंने विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी शुरू कर दी। इसी तरह विधायक के आवास के बाहर भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। उनके घर के बाहर गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। कई घण्टों तक आगजनी चली।
पुलिस स्टेशन के बाहर मजहबी नारेबाजी हुई, पत्थरबाजी की गई और गाड़ियों को फूँक दिया गया। पूर्वी भीमाशंकर के डीसीपी को डंडों और पत्थरों से निशाना बनाया गया। वहीं डीजे हल्ली में पुलिस की एक गाड़ी को आग के हवाले कर दिया गया। रात के करीब 10:30 बजे अतिरिक्त पुलिस बल की टुकड़ियाँ आईं। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की। यहाँ तक कि पुलिस को थाने के भीतर घुसने के लिए भी मुस्लिम भीड़ ने जगह नहीं दी।
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संस्कृत भाषा का कोई सानी नहीं है। यह अत्यंत वैज्ञानिक व विलक्षण भाषा है जो अनंत संभावनाएं संजोए है।
अंग्रेजी में A QUICK BROWN FOX JUMPS OVER THE LAZY DOG यह एक प्रसिद्ध वाक्य है। अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर इसमें समाहित हैं। किन्तु इसमें कुछ कमियाँ भी हैं, या यों कहिए कि कुछ विलक्षण कलकारियाँ किसी अंग्रेजी वाक्य से हो ही नहीं सकतीं। इस पंक्ति में :-
1) अंग्रेजी अक्षर 26 हैं और यहां जबरन 33 का उपयोग करना पड़ा है। चार O हैं और A,E,U,R दो-दो हैं। 2) अक्षरों का ABCD.. यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा। सब अस्तव्यस्त है।
अर्थात्– पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनहार कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।
आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं। इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है।
एक ही अक्षर का अद्भुत अर्थ विस्तार। माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र”, दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है-
अर्थात् धरा को भी वजन लगे ऐसे वजनदार, वाद्य यंत्र जैसी आवाज निकालने वाले और मेघ जैसे काले निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया।
किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने कहा है –
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु। नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।
अर्थ- जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।
अब हम एक ऐसा उदहारण देखेंगे जिसमे महायमक अलंकार का प्रयोग किया गया है। इस श्लोक में चार पद हैं, बिलकुल एक जैसे, किन्तु सबके अर्थ अलग-अलग –
अर्थात् – अर्जुन के असंख्य बाण सर्वत्र व्याप्त हो गए जिनसे शंकर के बाण खण्डित कर दिए गए। इस प्रकार अर्जुन के रण कौशल को देखकर दानवों को मारने वाले शंकर के गण आश्चर्य में पड़ गए। शंकर और तपस्वी अर्जुन के युद्ध को देखने के लिए शंकर के भक्त आकाश में आ पहुँचे।
संस्कृत की विशेषता है कि संधि की सहायता से इसमें कितने भी लम्बे शब्द बनाये जा सकते हैं। ऐसा ही एक शब्द इस चित्र में है, जिसमें योजक की सहायता से अलग अलग शब्दों को जोड़कर 431 अक्षरों का एक ही शब्द बनाया गया है। यह न केवल संस्कृत अपितु किसी भी साहित्य का सबसे लम्बा शब्द है। (चित्र संलग्न है…)
संस्कृत में यह श्लोक पाई (π) का मान दशमलव के 31 स्थानों तक शुद्ध कर देता है।
यहाँ पर मैंने बहुत ही काम उदाहरण लिए हैं, किन्तु ऐसे और इनसे भी कहीं प्रभावशाली उल्लेख संस्कृत साहित्य में असंख्य बार आते हैं। कभी इस बहस में न पड़ें कि संस्कृत अमुक भाषा जैसा कर सकती है कि नहीं, बस यह जान लें, जो संस्कृत कर सकती है, वह कहीं और नहीं हो सकता।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/07/images-2.jpg190265Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-07-18 04:57:032020-07-18 05:07:29The Quick brown fox नहीं यह है एक वर्णमाला का सम्पूर्ण वाक्य 'क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोटौठीडढण:।'
डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम सिंधिया के इस्तीफ़े को कांग्रेस के लिए ख़तरे की घंटी बताया था। उस समय भी कहा गया था कि, “ऐसा नहीं है कि सिंधिया से पहले कोई कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल नहीं हुआ. असम के हिमंता बिस्वा सरमा को देखिए. कांग्रेस ने उन्हें तवज्जो नहीं दी और अब वो बीजेपी में जाकर चमक रहे हैं. अब सिंधिया के इस्तीफ़े से कांग्रेस के अन्य युवा नेताओं के भी ऐसा क़दम उठाने की आशंका है.”
आज हम फिर दोहराते हैं कि सचिन आखिरी नहीं हैं, मिलिंद देवड़ा, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं को पार्टी ने कोई अहम भूमिका नहीं दी है. ऐसे में उनमें असंतोष आना स्वाभाविक है। कांग्रेस के कई नेता बीच-बीच में पार्टी की अप्रभावी कार्यशैली और नेतृत्व की कमी का मुद्दा उठाते रहते हैं। ज़ाहिर है, कांग्रेस के अपने नेताओं में भी कम असंतोष नहीं है।
Sachin Pilot , Jyotiraditya Scindia , RPN Singh Milind Deora Jitin Prasada during the swearing-in ceremony for the new ministers at Rashtrapati Bhavan on October 28, 2012 in New Delhi, India
सारिका तिवारी, चंडीगढ़ – 13 जुलाई :
सियासत में हमेशा ओल्ड गार्ड के साथ युवा जोश के सामंजस्य को कामयाबी की सबसे मजबूत कड़ी समझा जाता है. ये फॉर्मूला कई मौकों पर कारगर होते हुए भी देखा गया है. मौजूदा वक्त में राजनीतिक संकट से जूझ रही कांग्रेस के लिए भी अनुभव और युवा सोच ने मिलकर जीत की कई कहानियां लिखी हैं, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि युवा चेहरे ही पार्टी के साथ-साथ दिग्गज नेताओं की चूलें हिला रहे हैं.
ताजा उदाहरण सचिन पायलट का है. राजेश पायलट जैसे कांग्रेसी दिग्गज के बेटे सचिन पायलट 26 साल की उम्र में कांग्रेस से सांसद बने तो 35 साल की उम्र में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी गई. इसके बाद 2014 में जब उनकी उम्र 37 साल थी तो पार्टी ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान उनके हाथों में सौंप दी.
सचिन पायलट ने जी-तोड़ मेहनत की. पूरे प्रदेश में घूमकर तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार को एक्सपोज किया और अपने संगठन को मजबूती से आगे बढ़ाया. ये वो वक्त था जब अशोक गहलोत दिल्ली में राहुल गांधी के साथ देश की राजनीतिक बागडोर संभाले हुए थे. सचिन पायलट की मेहनत रंग लाई और 2018 में राजस्थान की जनता ने वसुंधरा सरकार उखाड़ फेंकी और कांग्रेस को सत्ता सौंप दी. हालांकि, जब जीत का सेहरा बंधने का नंबर आया तो अशोक गहलोत का तजुर्बा और प्रदेश व पार्टी में उनकी पकड़ सचिन पायलट की पांच साल की मेहनत पर भारी पड़ गई. तमाम खींचतान के बाद सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री पद पर राजी हुए, लेकिन दोनों में तालमेल नहीं बैठ पाया. अब बात यहां तक पहुंच गई है कि सचिन पायलट बगावत पर उतर आए हैं और गहलोत सरकार संकट में आ गई है.
सिंधिया ने दिखाई कांग्रेस को जगह
इसी साल मार्च महीने में जब देश में कोरोना वायरस का संक्रमण अपने पैर पसार रहा था और देश होली के जश्न में डूबा हुआ था, मध्य प्रदेश और देश की राजनीति का बड़ा फेस माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को ऐसा गम दिया कि पार्टी को सरकार से हाथ धोना पड़ा. पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद सिंधिया ने 2001 में कांग्रेस ज्वाइन की और चुनाव-दर चुनाव गुना लोकसभा से जीतते चले गए. 2007 में केंद्र की मनमोहन सरकार में सिंधिया को मंत्री बनाकर बड़ा तोहफा दिया गया. लेकिन 2018 में जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद पार्टी नेतृत्व ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया तो सिंधिया के अरमान टूट गए. इसका नतीजा ये हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का साथ देकर कमलनाथ की सरकार 15 महीने के अंदर ही गिरा दी.
हिमंता बिस्वा सरमा ने नॉर्थ ईस्ट से बाहर कराया
सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के लिए उन राज्यों में चुनौती बनकर उभरे जहां मुख्य विरोधी बीजेपी हमेशा से मजबूत रही है. लेकिन पार्टी के एक और युवा चेहरे रहे हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस को जो नुकसान पहुंचाया वो ऐतिहासिक है. हिमंता बिस्वा सरमा कभी दिल्ली में बैठे कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच रखते थे. लेकिन 2015 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया. 1996 से 2015 तक हिमंता बिस्वा कांग्रेस में रहे और असम की कांग्रेस सरकार में मंत्रीपद भी संभाला.
कांग्रेस से हिमंता बिस्वा सरमा इतने नाराज हो गए कि उन्होंने बीजेपी में जाने का फैसला कर लिया. उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर उस वक्त गंभीर आरोप भी लगाए. इसके बाद 2016 असम विधानसभा चुनाव लड़ा और कैबिनेट मंत्री बने. इतना ही नहीं बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने हिमंता बिस्वा सरमा को नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) का संयोजक भी बना दिया. NEDA, नॉर्थ ईस्ट भारत के कई क्षेत्रीय दलों का एक गठबंधन है. नेडा के संयोजक रहते हुए हिमंता बिस्वा सरमा बीजेपी के लिए सबसे बड़े संकटमोचक के तौर पर उभरकर सामने आए. नॉर्थ ईस्ट की राजनीति में शून्य कही जाने वाली बीजेपी ने असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों में सरकार बनाकर कांग्रेस का सफाया कर दिया. इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट के अन्य राज्यों की सत्ता में भी बीजेपी का दखल बढ़ गया. हिमंता बिस्वा सरमा ने नॉर्थ ईस्ट की राजनीति में बीजेपी की बढ़त बनाने में अहम भूमिका अदा की.
इस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जहां कमलनाथ जैसे दिग्गज को कुर्सी से हटाने का काम किया, वहीं सचिन पायलट अब कांग्रेस के जमीनी नेताओं में शुमार अशोक गहलोत के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं. वहीं, हिमंता बिस्वा सरमा लगातार कांग्रेस को बड़ा आघात पहुंचा रहे हैं. यानी कांग्रेस के ये तीन युवा चेहरे रहे आज देश की इस सबसे पुरानी पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गजों को सियासी धूल चटा रहे हैं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/07/DYlCMezVAAA6zv_.jpg8131138Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-07-13 08:43:512020-07-13 08:45:05कांग्रेस के बागी: सचिन आखिरी नहीं
महाभारत में कौरवों ने पांडवों पर छल का प्रयोग कर कई योद्धाओं को मारने की बात कही थी, लेकिन जब भी कौरव यह मिथ्यारोपन करते थे तब वह एक बात भूल जाते थे कि उस समय के सबसे छोटी आयु के योद्धा ‘वीर अभिमन्यु’ को छल से चक्रव्यूह में सभी योद्धाओं ने एक से एक के लड़ने का नियम होने के बावजूद एकट्ठे मिल कर मारा था। तब श्री कृष्ण की शठे शाठ्यम समाचरेत नीति ही काम आई थी। आज कोरोना यद्ध में अपनी साख बचाने के लिए कॉंग्रेस कहीं भी कैसे भी प्रलाप कर रही है और भाजपा कैडर अब उन पर प्राथमिकीयान दर्ज़ करवा रहे हैं। आज यह धर्म नहीं है यह धर्म नहीं है दोनों भुजाएँ उठा कर चिल्ला चिल्ला कर बोलते हुए कोंग्रेसी नज़र आ जाएँगे। छोटे छोटे शहरों के छुटभैये नेता भी प्रेस विज्ञप्तियाँ दे कर अपनी नेत्री पर हुई प्राथमिकियों का विरोध कर रहे हैं। लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि मात्र एक सवाल पूछने पर उनकी कार्यकारिणी अध्यक्षा से मात्र एक प्रश्न पूछने पर एक पत्रकार पर 300 प्राथमिकीयान दर्ज करवा दीं गईं थीं।
चंडीगढ़/बिहार – 22 मई
पीएम केयर्स फंड को लेकर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं इस मामले में अब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी मुश्किलों में फंसती नजर आ रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा कोविड-19 के लिए बनाए गए राहत कोष को लेकर किए गए अपने विवादित बयान की वजह से अब सोनिया गांधी पर एक और मामला दर्ज हुआ है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के बाद अब बिहार में भी उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई है।
पटना के कंकड़बाग थाने में भाजपा के मीडिया प्रभारी रह चुके पंकज सिंह ने यह केस दर्ज कराया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पीएम केयर फंड पर सवाल उठाकर सोनिया गांधी लोगों को भड़का रही हैं। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ आईपीसी की धारा 504, 505 (1) बी, 505 (2) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
IPC की धारा 504 उस आरोपी पर लगती हैं, जब किसी आरोपी की मनसा किसी दुसरे व्यक्ति को जानबूझकर उकसाने की होती हैं, या फिर किसी दुसरे व्यक्ति को जानबूझकर अपमानित करने की होती हैं, जिससे की आरोपी द्वारा उकसाया व अपमानित किया गया व्यक्ति कोई ऐसा कार्य कर देना चाहता हैं, जो अपराध की श्रेणी में आता हैं अर्थात जिससे लोकशांति भंग हो।
IPC की धारा 505 (1) (b)/(ख), उन मामलों से सम्बंधित है, जहाँ किसी कथन, जनश्रुति या सूचना को, इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, सामान्य जन या जनता के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो, जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो
IPC की धारा 505(2) विभिन्न वर्गों में शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य पैदा या सम्प्रवर्तित करने वाले कथन – जो भी कोई जनश्रुति या संत्रासकारी समाचार अन्तर्विष्ट करने वाले किसी कथन या सूचना, इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घॄणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर पैदा या संप्रवर्तित हो, को रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
Bihar: Former media in-charge of state BJP unit, Pankaj Singh, files an FIR in Patna against Congress Chief Sonia Gandhi over Congress' tweet regarding PM CARES Fund. "Through its Twitter handle, Congress is spreading misinformation that PM CARES Fund is being misused," he says. pic.twitter.com/zhipwBvMs2
पंकज सिंह के अनुसार, पीएम केयर फंड को लेकर कांग्रेस की ओर से लोगों के बीच भ्रम फैलाया जा रहा है। इससे लोगों में गलत संदेश जा रहा है, जबकि पीएम केयर फंड में कोई भी आदमी छाेटी से छोटी राशि काे भी जमा कर सकता है।
बता दें कि इस पूरे मामले को लेकर सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक में भी दो दिन पहले केस दर्ज किया गया था। कर्नाटक के शिवमोगा जिले में सागर कस्बे की पुलिस ने प्रवीण के वी नामक व्यक्ति की शिकायत पर केस दर्ज किया था। कर्नाटक में आईपीसी की धारा 153 और 505 (1) (बी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/05/sonia-gandhi-1570185487.jpg402715Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-05-22 17:44:072020-05-22 17:47:57बिहार में दर्ज हुई दूसरी प्राथमिकी से कॉंग्रेस बेहाल
हम जिन बातों का प्राण दे कर विरोध करते हैं समय आने पर उनही बातों को चुपचाप मान लेते हैं।
महाराष्ट्र और कर्नाटक के विवादित 12 पंचायत क्षेत्रों और 865 गांवों में आज भी मराठा वीर शिवाजी की शौर्य गाथा गायी जाती है। इस क्षेत्र में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो वीर शिरोमणि शिवाजी की तुलना टीपू सुल्तान से कर लज्जित महसूस न हो। लेकिन सत्ता की लालसा इंसान को कहाँ से कहाँ ले जा सकती है, सत्ता की चाहत में इंसान कितना बदल सकता है, अगर इसका जीवंत उदाहरण देखना है तो एक बार महाराष्ट्र की ओर नजर दौड़ा लीजिए. वो महाराष्ट्र जहाँ के मुख्यमंत्री शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे हैं जिन्होंने कांग्रेस तथा एनसीपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई है. सरकार बनाने के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना वो भी करती हुई नजर आ रही है, जिसका ज्वलंत विरोध बाला साहेब करते थे.
17 नवंबर, 2012 को श्रद्धेय बाला साहेब ठाकरे का निधन हुआ था। उस दिन उनके सम्मान में मुंबई जैसे ठहर गई थी। भारतीय राजनीति में प्रबल हिन्दुत्व प्रवर्तकों में बाला साहेब का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। हालांकि वे चुनाव कभी नहीं लड़े, फिर भी राजनीति में उनका दखल जबरदस्त था। भारत के इतिहास में संभवत: वह पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मुसलमानों के विरुद्ध बोलने पर वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। आज उन्हीं की संतान और पार्टी नेता सत्ता के लोभ में उनके आदर्शों और मूल्यों को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
खबर के मुताबिक़, शिवसेना की तरफ से उस टीपू सुल्तान को श्रद्धांजलि दी गई है, जिस टीपू सुल्तान ने अनगिनत हिंदुओं का कत्लेआम किया था तथा शिवसेना उस टीपू सुल्तान को हिन्दू संहारक कहती थी. दरअसल सोशल मीडिया पर शिवसेना नेता का एक पोस्टर सामने आया है जिसमें वह टीपू सुल्तान को उसकी मौत वाले दिन पर श्रद्धांजलि दे रहा है. ये पोस्टर सामने आते ही हिंदूवादी कार्यकर्ता शिवसेना की जबरदस्त आलोचना कर रहे हैं तथा कह रहे हैं कि उद्धव राज में बाला साहेब की शिवसेना अब पूरी तरह से बदल चुकी है.
रामटेक से शिवसेना सांसद कृपाल तुमाने ने हाल ही में टीपू सुल्तान जयंती का बैनर बनवाया। इस पर तुमाने ने पार्टी का नाम तो लिखवाया ही, बाला साहेब का चित्र भी लगाया। जिस पार्टी की नींव आक्रांताओं के विरोध पर रखी गई हो, जो छत्रपति शिवाजी महाराज को प्रेरणास्रोत मानती हो, उसी ने आक्रांताओं को अपना आदर्श और राजा घोषित कर दिया! 20-30 साल की अपनी राजनीतिक यात्रा में शिवसेना इस स्थिति में पहुंच गई, यह देख कर बाला साहेब की आत्मा को बहुत कष्ट हो रहा होगा। भारत की संस्कृति को ध्वस्त कर इस्लामिक जिहाद के सिपहसालारों को महिमामंडित कर मुसलमानों का वोट हासिल करने का यह प्रपंच हालांकि नया नहीं है, पर अभी तक यह कांग्रेस और वामपंथी दलों तक ही सीमित था। जिस टीपू सुल्तान को शिवसेना ने अपना नया आदर्श चुना है, उसके बारे में सभी को जानना चाहिए।
Ironically In 2015 ShivSena MP Arvind Sawant said: "Tipu Sultan was a ruthless ruler who massacred Hindus and did not believe in the existence of any other religion except Islam. He had demolished temples and churches. And they say he was a good ruler?https://t.co/dFCWJ75tUL
— I Oppose Conversion (@IOpposeConvrsn) May 6, 2020
याद कीजिये वो समय जब शिवसेना कांग्रेस पार्टी के साथ सत्ता में नहीं थी तब वह टीपू सुल्तान को लेकर क्या सोचती थी. शिवसेना टीपू सुल्तान के कुकृत्यों पर प्रहार करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ती थी. 2015 में शिवसेना के सांसद अरविंद सावंत ने टीपू सुल्तान और हिंदवा सूर्य छत्रपति शिवाजी के बीच तुलना पर कठोर स्वरों में कहा था, “टीपू सुल्तान एक निर्दयी शासक था जिसने हिंदुओं का जनसंहार किया और जिसका इस्लाम के अलावा किसी भी दूसरे धर्म के अस्तित्व में विश्वास नहीं था. उसने मंदिर और गिरिजाघर ध्वस्त कराए. और वे कहते हैं कि वह एक अच्छा शासक था?”
SS don't know the Curse of Tipu. Sanjay Khan did Tipu serial, met fire accident, career finished. Mallya bought Tipu Sword, business wiped out, fled India. Siddaramiah did Tipu Jayanti, lost CM chair and clout. JDS-Congress continued it. Both got political Samadhi.
— Success Ladders – Author Coaching (@thejendra) May 6, 2020
ऐसा था टीपू सुल्तान
टीपू सुल्तान ने 17 वर्षों के शासनकाल में दक्षिण के लगभग सभी बड़े
नगरों को नष्ट कर दिया। इनमें कोडागु (कुर्ग), कालीकट (कोझिकोड), मालाबार भी शामिल थे। उसने 1788 में कुर्गनगर
में भी तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी, मंदिर तोड़ डाले
और समूचे नगर को वीरान कर दिया। वह हिन्दुओं का बलात् कन्वर्जन भी कराता था।
कुर्नूल के नवाब को लिखे उसके पत्र से इसकी पुष्टि होती है।
कालीकट के विनाश
का वर्णन अनेक पुर्तगाली, जर्मन, ब्रिटिश मिशनरियों और सेना के अधिकारियों ने
अपने संस्मरणों में किया है। इन्होंने लिखा है कि कैसे 30,000 आक्रांता आगे-आगे लोगों को मारते हुए बढ़ते थे
और पीछे से 30,000 की सेना लेकर
हाथी पर सवार टीपू हिन्दुओं को हाथियों के पैरों से बांध कर मार डालता था। बच्चों
को माताओं के गले में लटका कर और माताओं को पेड़ से लटका कर मार डाला जाता था। टीपू
के राज में पुरुषों को इस्लाम में कन्वर्ट किया जाता था और बेटियों का जबरन
मुसलमानों से निकाह करा दिया जाता था। चारों ओर मौत का भयंकर दृश्य होता था ।
मिशनरी गुनसेट लिखता है, ‘टीपू ने कालीकट
को जमीन में मिला दिया था।‘
ऐसे बर्बर
आक्रांता का कोई महिमामंडन करेगा तो किसी भी स्वाभिमानी देश भक्त का खून उबलेगा।
लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि महिमामंडन की शुरुआत कैसे हुई। 70 के दशक में कांग्रेस ने तुष्टिकरण की नीति के
तहत टीपू सुलतान पर एक डाक टिकट जारी किया। भगवन गिडवानी ने ‘द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ नामक उपन्यास लिखकर इस फैसले को न्यायोचित
बताया। इसके बाद गिरीश कर्नाड ने “टीपू विनाकाणा सुगालु” (The
Dreams of Tipu Sultan) नामक नाटक लिखा।
नई पीढ़ी इसे ही सच मानती है। आज के सूचना माध्यमों पर इनके द्वारा रचित-कल्पित
टीपू पुराण ही हावी हैं।
गिडवानी ने अपने उपन्यास में टीपू को महान देशभक्त, कुशल रणनीतिकार ,हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक , मंदिरों का उद्धारक घोषित किया। 1799 की श्रीरंगपट्टनम की अंतिम लड़ाई में टीपू के मरने तक पूरे राज्य में केवल दो मंदिरों में पूजा होती थी। उसने दक्षिण की प्रमुख भाषा कन्नड़ को हटाकर फारसी को राजभाषा बना दिया। उसके मरने के बाद कर्नल विलियम को 22,000 हस्तलिखित पत्र मिले। इनमें हिन्दुओं को काफिर और विधर्मी बताया गया है। पूरे देश में केवल कन्नड़ मुसलमान ही ऐसा है जो अपनी मातृभाषा कन्नड़ नहीं बोल सकता। इसका पूरा श्रेय गिडवानी के टीपू को ही जाता है। आज भी कन्नड़ में बलपूर्वक घुसाए गए शब्द जैसे- खाता, खिरडी , खानसुमरी, गुदास्ता, तख़्त ,जमाबन्दी, अमलदार आदि चलन में हैं। टीपू ने मुहम्मद के जन्म से आरम्भ कर कैलेंडर बनवाया था, जिसके महीनों के नाम अरबी शब्दों से शुरू होते थे।
देशभक्त नहीं था
कुछ लोग कहते हैं
कि टीपू ने मंदिरों के पास महल बनाया, जो हिन्दुओं के प्रति उसका सम्मान दर्शाता है। लेकिन सच यह है कि मुसलमान
मंदिर के पास अपना महल या मस्जिद भाईचारे की भावना से नहीं बनाता है। वह मंदिर आने
वालों को यह बताना चाहता है कि तुम्हारा भगवान है ही नहीं, केवल अल्लाह है। धिम्मी हिन्दुओं को यही समझने की जरूरत
है। टीपू को देशभक्त व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताने वालों को यह पता होना
चाहिए कि उसने अंग्रेजों के विरुद्ध केवल इसलिए लड़ाई लड़ी, क्योंकि वह फ्रांसिसियों का आधिपत्य स्वीकार कर चुका था।
उसने फ्रांस से संधि की थी कि जीतने के बाद आधा राज्य टीपू और आधा फ्रांसिसियों
का होगा। टीपू द्वारा 2 अप्रैल,
1797 को फ्रांस की सेना को
दिए गए आमंत्रण में इसका स्पष्ट उल्लेख है। यह ब्रिटिश अभिलेखागार में आज भी
उपलब्ध है।
जब मराठा
साम्राज्य उत्कर्ष पर था, तब भयभीत टीपू ने
1797 में अफगान शासन जमनशाह
को भारत पर उत्तर की ओर से आक्रमण करने के लिए पत्र लिखा था। इसमें उसने स्वयं
दक्षिण से आक्रमण करने की बात लिखी है। वह भारत से इस्लाम के दुश्मन काफिरों को
खत्म करना चाहता था। यह पत्र उसे कट्टरपंथी घोषित करने के लिए उपयुक्त है।
अंग्रेजों से अपने साम्राज्य को बचाने के लिए दुश्मन से हाथ मिलाकर अंग्रेजों से
लड़ने वाले एक क्रूर आक्रांता को स्वतंत्रता सेनानी बताया जा रहा है तो मराठों,
मेवाड़ के राजपूतों , गोरखाओं को यह सम्मान क्यों नहीं दिया गया? क्योंकि वे देश की अस्मिता व हिन्दुओं के
सम्मान के लिए लड़े थे ? वीर सावरकर से
शुरू कर आज शिवसेना टीपू सुल्तान तक पहुंच गई है। वह दिन दूर नहीं, जब इसके सहयोगी उसे छत्रपति शिवाजी महाराज को
भी दूर कर देंगे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/05/tipu-2-1280x720-1.jpg7201280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-05-08 17:15:482020-05-08 17:16:47बाला साहब की शिवसेना मनाएगी टीपू सुल्तान की पुण्यतिथि
भारत की पवित्र भूमि ने कई संत-महात्माओं को जन्म दिया है। जिन्होंने अपने अच्छे आचार-विचार एवं कर्मों के द्वारा जीवन को सफल बनाया और कई सालों तक अन्य लोगों को भी धर्म की राह से जोड़ने का कार्य किया। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार संत श्री रामानुजाचार्य का जन्म सन् 1017 में श्री पेरामबुदुर, तमिलनाडु के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम केशव भट्ट था। जब उनकी अवस्था बहुत छोटी थी, तभी उनके पिता का देहावसान हो गया। बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा ली। हिन्दू पुराणों के अनुसार श्री रामानुजम का जीवन काल लगभग 120 वर्ष लंबा था। रामानुजम ने लगभग नौ पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें नवरत्न कहा जाता है। वे आचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था। पहला– ब्रह्मसूत्र, दूसरा- विष्णु सहस्रनाम और तीसरा– दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना।
जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य
रामानुजाचार्य के गुरु यादव प्रकाश थे, जो एक विद्वान थे और प्राचीन अद्वैत वेदांत मठवासी परंपरा का एक हिस्सा थे। श्री वैष्णव परंपरा यह मानती है कि रामनुज अपने गुरु और गैर-दैवीय अद्वैत वेदांत से असहमत हैं, वे इसके बजाय वे भारतीय अलवर परंपरा, विद्वान नथमुनी और यमुनाचार्य के नक्शेकदम पर चले।
रामानुजाचार्य वेदांत के विशिष्टाद्वैत सबस्कुल के प्रमुख प्रत्याशी के रूप में प्रसिद्ध हैं, और उनके शिष्यों को संभवतः शांतियानी उपनिषद जैसे लेखों के लेखकों के रूप में जाना जाता है। रामनुज ने स्वयं ब्रह्म सूत्रों और भगवद गीता पर भक्ति जैसे संस्कृत के सभी प्रभावशाली ग्रंथ लिखे थे।
उनके विशिष्टाद्वैत (योग्य मोनिस्म) दर्शन में माधवचर्या के द्वैता (ईश्वरीय द्वैतवाद) दर्शन और शंकराचार्य के अद्वैत (अद्वैतवाद) दर्शन, साथ में दूसरे सहस्त्राब्दि के तीन सबसे प्रभावशाली वेदांतिक दर्शन थे। रामानुजाचार्य ने उपन्यास प्रस्तुत किया जिसमे भक्ति के सांसारिक महत्व और एक व्यक्तिगत भगवान के प्रति समर्पण को आध्यात्मिक मुक्ति के साधन के रूप में प्रस्तुत किया।
रामानुजाचार्य ने विवाह किया और कांचीपुरम में चले गये, उन्होंने अपने गुरु यादव प्रकाश के साथ अद्वैत वेदांत मठ में अध्ययन किया। रामानुजाचार्य और उनके गुरु अक्सर वैदिक ग्रंथों, विशेषकर उपनिषदों की व्याख्या में असहमत रहते थे। बाद में रामानुजाचार्य और यादव प्रकाश अलग हो गए, और इसके बाद रामनुज ने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
रामानुजा कांचीपुरम में वरधराजा पेरुमल मंदिर (विष्णु) में एक पुजारी बन गए, जहां उन्होंने यह पढ़ाना शुरू कर दिया कि मोक्ष (मुक्ति और संसार से छुटकारा) आध्यात्मिक, निरगुण ब्राह्मण के साथ नहीं, बल्कि व्यक्तिगत भगवान और साधू विष्णु की सहायता से प्राप्त करना है। रामानुजाचार्य ने श्री वैष्णव परंपरा में लंबे समय से सबसे अधिक अधिकार का आनंद लिया।
रामानुजाचार्य की कई पारंपरिक जीवनी ज्ञात हैं, कुछ 12 वीं शताब्दी में लिखी गईं, लेकिन कुछ बाद में 17 वीं या 18 वीं शताब्दियों में लिखी गई। विशेष रूप से वाड़काले और तिकालियों में श्रीविष्णव समुदाय के विभाजन के बाद, जहां प्रत्येक समुदाय ने रामानुजाचार्य की संतचर विज्ञान का अपना संस्करण बनाया।
ब्रह्मंत्र स्वतन्त्र द्वारा मुवायिरप्पाती गुरुपरमपराप्राभावा सबसे पहले वद्कालाई जीवनी का प्रतिनिधित्व किया। रामानुजाचार्य के बाद उत्तराधिकार के वद्कालाई दृश्य को दर्शाता है दूसरी ओर, श्रीरायिरप्पा गुरुपारम्परपभावा, दसकेली जीवनी का प्रतिनिधित्व करते हैं। [उद्धरण वांछित] अन्य दिवंगत जीवनचर्या में अन्धरभर्णा द्वारा यतीराजभविभव शामिल हैं।
लेखन
श्री वैष्णव परंपरा में संस्कृत ग्रंथों में रामनुज के गुण हैं-
-वेदार्थसंग्रह (सचमुच, “वेदों का सारांश”), -श्री भाष्य (ब्रह्मा सूत्रों की समीक्षा और टिप्पणी), -भगवद गीता भाष्य (भगवद गीता पर एक समीक्षा और टिप्पणी), -और वेदांतपिडा, वेदांतसारा, गाडिया त्रयम (जो कि तीन ग्रंथों का संकलन है, जिन्हें सरनागती ग्यादाम, श्रीरंग गद्यम और श्रीकांत ग्रन्दाम कहा जाता है), और नित्या ग्रन्थम नामक लघु कार्य हैं।
रामानुजाचार्य की दार्शनिक नींव मोनिसम के योग्य थी, और इसे हिंदू परंपरा में विशिष्टाद्वैत कहा जाता है। उनका विचार वेदांत में तीन उप-विद्यालयों में से एक है, अन्य दो को आदी शंकर के अद्वैत (पूर्ण मोनिसम) और माधवचार्य के द्वैता (द्वैतवाद) के नाम से जाना जाता है।
रामानुजाचार्य दर्शन
रामानुजा ने स्वीकार किया कि वेद ज्ञान का एक विश्वसनीय स्रोत हैं, फिर हिन्दू दर्शन के अन्य विद्यालय, अद्वैत वेदांत सहित, सभी वैदिक ग्रंथों की व्याख्या में असफल होने के कारण, उन्होंने श्री भास्कर में कहा कि पुरव्पेक्सिन (पूर्व विद्यालय) उन उपनिषदों को चुनिंदा रूप से व्याख्या करते हैं जो उनकी नैतिक व्याख्या का समर्थन करते हैं, और उन अंशों को अनदेखा करते हैं जो बहुलवाद की व्याख्या का समर्थन करते हैं।
रामनुज ने कहा, कोई कारण नहीं है कि एक शास्त्र के एक भाग को पसंद किया जाए और अन्य को नहीं, पूरे शास्त्र को सममूल्य समझा जाना चाहिए। रामानुजाचार्य के अनुसार कोई भी, किसी भी वचन के अलग-अलग भागों की व्याख्या करने का प्रयास नहीं कर सकता है।
बल्कि, ग्रंथ को एक एकीकृत संगठित माना जाना चाहिए, एक सुसंगत सिद्धांत को व्यक्त करना चाहिए। वैदिक साहित्य, ने रामानुजाचार्य पर जोर दिया, जो बहुलता और एकता दोनों का उल्लेख करते हैं, इसीलिए इस सत्य को बहुलवाद और अद्वैतवाद या योग्यतावाद को शामिल करना चाहिए।
शास्त्रीय व्याख्या की इस पद्धति ने रामनुज को आदि शंकरा से अलग किया। शंकर की अनाव्या-व्यातिरेका के साथ समनवयित तात्पर्य लिंगा के व्यापक दृष्टिकोण में कहा गया है कि उचित रूप से सभी ग्रंथों को समझने के लिए उनकी संपूर्णता में जांच की जानी चाहिए। और फिर उनके इरादे छह विशेषताओं द्वारा स्थापित किए गए, जिसमें अध्ययन शामिल है जो लेखक द्वारा उनके लक्ष्य के लिए कहा गया है।
क्या वह अपने विवरण में दोहराता है, क्या वह निष्कर्ष के रूप में बताता है और क्या यह व्यावहारिक रूप से सत्यापित किया जा सकता है। शंकर कहते है, किसी भी पाठ में समान वजन नहीं है और कुछ विचार किसी भी विशेषज्ञ की पाठ्य गवाही का सार है।
शास्त्रीय अध्ययनों में यह दार्शनिक अंतर दर्शाया, शंकराचार्य ने यह निष्कर्ष निकाला कि उपनिषद के सिद्धांत मुख्य रूप से तात तवम सी जैसे उपनिषदों के साथ बौद्ध धर्म को पढ़ाते हैं। जबकि रामानुजाचार्य ने यह निष्कर्ष निकाला कि योग्यतावाद हिंदू आध्यात्मिकता की नींव पर है।
रामानुज जी के शिष्य
किदंबी आचरण
थिरुकुरुगाई प्रियन पिल्लान
दाधुर अझवान
मुदलीयानंदन
कुराथाझवान
निधन
करीब एक सहस्राब्दी के बाद से (सीए 1017-1137) से रामानुजाचार्य दक्षिणी भारत की सड़कों पर भ्रमण करते रहे। अभी तक उनके धर्मशास्त्रज्ञ, शिक्षा और दार्शनिक के विरासत रूप में जीवित है।
उनकी मृत्यु 1137, श्रीरंगम में हुइ थी।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/04/download-2.jpg166304Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-04-29 02:05:372020-04-29 02:05:55रामानुजाचार्य जयंती पर विशेष