जांच से दुखी : चिदम्बरम बोले,”सीबीआई को जो बात करनी है मुझसे करे”

मेरे बेटे को परेशान मत करो

  1. सीबीआई गलत सूचना फैला रही है

  2. सीबीआई को जो बात करनी है मुझसे करे

  3. मेरे बेटे कार्ति चिदंबरम को परेशान न करे

 

 

 


चिदंबरम ने कहा कि एयरसेल-मैक्सिस मामले में किसी अपराध का उल्लेख करते हुए प्राथमिकी नहीं है, ईडी पीछे पड़ी हुई है और आरोपों का जवाब अदालत में दिया जाएगा


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर आरोप लगाया कि वह एयरसेल-मैक्सिस मामले में उनके पीछे पड़ी हुई है. उन्होंने कहा कि प्राथमिकी में उनका नाम नहीं है और आरोपों का जवाब अदालत में दिया जाएगा. पूर्व वित्त मंत्री की यह टिप्पणी उस वक्त आई है जब दिल्ली की एक अदालत ने चिदंबरम और उनके पुत्र कार्ति की गिरफ्तारी पर लगी रोक को सात अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया है.

कार्ति ने सीबीआई के जांच जारी रहने के दावे का खंडन करते हुए उसके समक्ष पेश होने से इंकार कर दिया था और कहा था कि एक विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था और इस मामले की सुनवाई समाप्त हो चुकी है. पी चिदंबरम ने एक के बाद एक किए गए ट्वीट के जरिए कहा, एयरसेल-मैक्सिस में, एफआईपीबी ने सिफारिश की थी और मैंने उस कार्यवाही के के विवरण (मिनिट्स) को मंजूरी दी थी. सीबीआई को मुझसे पूछताछ करनी चाहिए और कार्ति चिदंबरम को परेशान नहीं करना चाहिए. पी चिदंबरम ने एक ट्वीट में कहा, निराश सीबीआई गलत सूचना प्रसारित कर रही है. एयरसेल-मैक्सिस में एफआईपीबी के अधिकारियों ने सीबीआई के सामने बयान दर्ज किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि मंजूरी वैध था.

एक विशेष अदालत में दायर सीबीआई के एक आरोपपत्र के मुताबिक, मैक्सिस की सहायक कंपनी मॉरीशस स्थित मैसर्स ग्लोबल कम्युनिकेशन सर्विसेज होल्डिंग्स लिमिटेड ने एयरसेल में 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर निवेश करने की मंजूरी मांगी थी. (मौजूदा विनिमय दर के आधार पर यह 5,127 करोड़ रुपया होता है) आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) इसकी मंजूरी देने के लिए सक्षम थी. एजेंसी ने 2014 में कहा था, हालांकि, वित्त मंत्री ने मंजूरी दी थी. तत्कालीन वित्त मंत्री द्वारा मंजूरी दिए जाने को लेकर एफआईपीबी (विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड) की परिस्थितयों के आधार पर आगे की जांच की जाएगी. इससे जुड़े हुए मामले की भी जांच की जा रही है. भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया था कि पूर्व वित्त मंत्री ने समझौते के लिए एफआईपीबी को मंजूरी दी थी, जिसे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले सीसीईए को भेजा जाना चाहिए था क्योंकि 600 करोड़ रुपये से अधिक के विदेशी निवेश के प्रस्ताव को मंजूरी देने का अधिकार सिर्फ इसी समिति को था. इस मामले के सिलसिले में 2014 में एजेंसी के समक्ष पेश होने वाले पी चिंदबरम ने इस साल एक बयान में कहा था कि एफआईपीबी का अनुमोदन की मंजूरी ‘सामान्य कामकाज’ में दी गई थी.

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