पंचकुला वासियों को 69.01 करोड रुपये से नवनिर्मित तीन बड़ी परियोजनाओं की सौगात मिलेगी

राहुल तत्कालीन गृह मंत्री चिदम्बरम के साथ
महाराष्ट्र पुलिस ने 28 अगस्त को पांच वामपंथी विचारकों को गिरफ्तार किया था. इन वामपंथी विचारकों पर शहरी-नक्सलवाद फैलाने का आरोप था. इन पर भीमा-कोरेगांव हिंसा भड़काने, नक्सली विचाराधारा फैलाने और पीएम मोदी की हत्या की साजिश से जुड़े होने का आरोप लगा.
इन विचारकों की गिरफ्तारी पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तुरंत ही ट्वीट किया और कहा कि देश में अगर कोई भी विरोध करे तो उसे गोली मार दो. यही है न्यू इंडिया.
बीजेपी विरोध में राहुल ये भूल रहे हैं कि शहरी नक्सलवाद और शहरों में मौजूद बुद्धिजीवियों के नक्सल कनेक्शन को लेकर खुद उनकी यूपीए सरकार ने ही सबसे पहले सामाजिक कार्यकर्ताओं और विचारकों के खिलाफ मोर्चा खोला था. मीडियाके पास कांग्रेस सरकार का वो काउंटर एफिडेविट है जिसमें नक्सल विचाराधारा को फैलाने वाले शहर में मौजूद बुद्धिजीवियों को पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी से ज्यादा खतरनाक बताया है.
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका क्रमांक 738/2013 के मुताबिक केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि किस तरह से शहरों और कस्बों में रहने वाले माओवादी विचारक और समर्थक एक सुनियोजित प्रोपेगेंडा के जरिये सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार कर माहौल बना रहे हैं और झूठ फैलाकर राज्य की छवि खराब कर रहे हैं.
सरकार के काउंटर एफिडेविट में में ये साफ-साफ लिखा है कि सही मायने में माओवाद को जिंदा रखने वाले बौद्धिक रूप से मजबूत विचारक हैं जो कई मायनों में पीपुल लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी से भी ज्यादा खतरनाक हैं. इतना ही नहीं, काउंटर एफिडेविट में ये भी कहा गया है कि ये माओवादी विचारक ‘मास ऑर्गेनाइजेशन’ या फिर ‘फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन’ के जरिये शहरी आबादी के खास लक्षित वर्ग को मोबलाइज करने का काम करते हैं. ये मास ऑर्गेनाइजेशन मानवाधिकार संस्थाओं की आड़ में काम करते हैं.
इनका नेतृत्व और संचालन माओवादी विचारक करते हैं जिनमें बुद्धिजीवी और समाजिक कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं. ये मास ऑर्गेनाइजेशन मानवाधिकार से जुड़े मामलों को जमकर भुनाते हैं और सुरक्षा बलों की कार्रवाई के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने में माहिर होते हैं. साथ ही राज्य की संस्थाओं के खिलाफ प्रोपेगेंडा और दुष्प्रचार के जरिए राज्य सरकारों की छवि खराब करते हैं. सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार ने जिस तरह से शहरी नक्सलवाद को लेकर बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को चिन्हित किया था वही रिपोर्ट गृहमंत्रालय की भी है.
ऐसे में सवाल उठता है कि साल 2013 में शहरी नक्सलवाद और माओवादी विचारकों के रूप में बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति कांग्रेस का नजरिया पांच साल में कैसे बदल गया? जब तक कांग्रेस सत्ता में रही तो उसने नक्सलियों को मिटाने के लिये ऑपरेशन ग्रीन हंट किया. यहां तक कि तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम नक्सली प्रभावित इलाकों में एयर स्ट्राइक के भी पक्षधर थे. खुद यूपीए सरकार में पीएम मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था.
ऐसे में वर्तमान केंद्र सरकार अगर उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है तो फिर कांग्रेस के लिए लोकतंत्र पर हमला बताना राजनीतिक रोटियां सेंकने से ज्यादा कुछ और कैसे हो सकता है..?
क्या कांग्रेस के शासनकाल में शहरी नक्सलवाद पर उनके गंभीर विचार मोदी सरकार में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का मामला बन गए? अगर साल 2013 में शहरी इलाकों में मौजूद माओवादी विचारक पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी से ज्यादा खतरनाक थे तो फिर 2019 में कांग्रेस के लिए वैसे लोग मानवाधिकार के प्रचारक कैसे हो गए! ये सवाल कई निष्पक्ष लोगों की जुबान पर है जिनका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है.
सवाल ये जरूर उठता है कि शहरी-नक्सलवाद के मामले में कार्रवाई में इतना वक्त क्यों लगा? क्या इस कार्रवाई की एकमात्र वजह ये रही कि भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में जांच में जुटी महाराष्ट्र पुलिस ने माओवादियों का वो पत्र बरामद किया जिसमें पीएम मोदी की हत्या की साजिश की बात लिखी गई थीं? दरअसल, नक्सलवाद के खिलाफ कार्रवाई में कांग्रेस बीजेपी से कम आक्रामक नहीं रही है. हां इसमें दो धड़े हमेशा से रहे हैं. एक गरम तो दूसरा नरम. लेकिन गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम नक्सल के खिलाफ बेहद आक्रामक थे. बंगाल में कांग्रेस के बड़े नेता सिद्धार्थ शंकर रे नक्सल के खिलाफ कार्रवाई के लिए जाने जाते हैं. 70 के दशक में उन्होंने नक्सल की कमर तोड़ने में कोई कोताही नहीं बरती थी. पीएम मनमोहन और चिंदबरम ने ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाकर नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए सख्त कदम भी उठाए थे.
इतना ही नहीं कांग्रेस सरकार के काउंटर एफिडेविट से साफ है कि तत्कालीन सरकार भी शहरों में माओवादी विचारधारा फैलाने वाले वामपंथी विचारकों के खिलाफ मुखर थी. उनका मानना था कि ये प्रबुद्ध लोग मानवाधिकारों का इस्तेमाल कर राज्य सरकार की छवि खराब करने में माहिर हैं और ये कानूनी धाराओं का इस्तेमाल कर सुरक्षा बलों की कार्रवाई और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को कमजोर करने का काम करते रहे हैं.
इस काउंटर एफिडेविट में ये तक बताया गया है कि किस तरह से नक्सल प्रभावित इलाकों में कलेक्टर का अपहरण किया जाता रहा है. साथ ही ये भी बताया गया है कि किस तरह से हजारों आदिवासियो को पुलिस का मुखबिर बता कर मौत के घाट उतारा गया है.
बहरहाल, ये सोचने वाली बात है कि पांच वामपंथी माओवादी विचारकों की गिरफ्तारी पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी यूपीए सरकार के दौर में सुप्रीम कोर्ट में उनकी पार्टी की सरकार द्वारा दायर वो काउंटर एफिडेविट क्यों नहीं याद आया जिसने शहरी नक्सलवाद को सबसे पहले परिभाषित किया और उससे होने वाले गंभीर परिणाम की तरफ अगाह भी किया.
तत्कालीन यूपीए सरकार खुद ये मानती रही है कि माओवादी शहरों में अपनी जड़े मजबूत करने में जुटे हुई हैं और इनको शहरी क्षेत्रों से सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथी विचारकों से भरपूर समर्थन मिल रहा है. ये बुद्धिजीवी माओवादी विचाराधारा के प्रति अपनी सहानुभूति के जरिए ही देश के अलग राज्यों के मुख्य शहरों में सरकार और सिस्टम के खिलाफ किसी न किसी रूप में हिंसात्मक आंदोलन को हवा दे रहे हैं. महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव की हिंसा इसी मास ऑर्गेनाइजेशन की रणनीति का ही उदाहरण है.
यूपीए सरकार द्वारा काउंटर एफिडेविट में इस बात का साफ विवरण है कि फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन दरअसल किसी न किसी मानवाधिकार संस्था का मास्क पहन कर काम करते हैं. जिसका असली मकसद बड़ी संख्या में लोगों को एकजुट करने का होता है. केवल उसी वर्ग को लक्षित किया जाता है जो कि माओवादी विद्रोही विचाराधारा पर भरोसा करता हो.
अरुण फ़र्रेरा
राज्य सरकार के खिलाफ ही ये सरकारी मशीनरी का भी इस्तेमाल कर माहौल बनाते और बिगाड़ते हैं. बुद्धिजीवी वर्ग के जरिए झूठ का प्रोपेगेंडा करने में आसानी भी रहती है.
लेकिन अब जब केन्द्र सरकार उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है तो वही राजनीतिक दल आड़े आने आने का काम कर रहे हैं जो पांच साल पहले इन्हें नक्सलियों का समर्थक और देश का सबसे बड़ा दुश्मन बता रहे थे. अब सही और गलत का फैसला तो अदालत करेगी. पुलिस की कार्रवाई उन पांच लोगों के खिलाफ जायज है या नजायज ये लंबे ट्रायल के बाद साबित हो पाएगा. लेकिन कांग्रेस सरकार में कुछ और और विपक्ष में बिल्कुल उसके उलट बयानबाजी कर पूरी तरह घिरती नजर आ रही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाराष्ट्र में पार्टी नेताओं से कहा कि ‘राज्य में वे 15 वर्ष सत्ता में रहे हैं’ और 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत सुनिश्चित करने के लिये सभी नेता एकजुट हों और ‘तन-मन-धन’ से जुट जाएं.
महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार के आने से पहले 2014 तक राकांपा के साथ मिलकर कांग्रेस करीब 15 साल तक लगातार सत्ता में रही. महाराष्ट्र के प्रभारी महासचिव खड़गे ने ‘जन संघर्ष यात्रा’ के आरंभ के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण और अन्य नेताओं की मौजूदगी में यह बात कही. खड़गे ने कहा कि अगर कांग्रेस नेता एकजुट हो जाएं तो सत्तारूढ़ भाजपा के लिए जीत पाना असंभव होगा.
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश में माहौल खराब करने और एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का आरोप लगाया. पार्टी कार्यकर्ताओं के समूह को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम इस मंच पर एक दूसरे का हाथ थामे और उसे ऊपर उठाए खड़े हैं. लेकिन हमें तन-मन-धन लगाने की जरूरत है. तन-मन-धन लगाना होगा क्योंकि आपने भी 15-20 साल शासन किया है. आप सत्ता में रहे हैं. सभी को सहयोग करना चाहिए.’
‘भय मुक्त’ और ‘भाजपा मुक्त’ भारत का आह्वान करते हुए महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख अशोक चव्हाण ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी समय चुनाव का सामना करने को तैयार है. चव्हाण ने आरोप लगाया कि भाजपा शासन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरा है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं डरी है.
खड़गे ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पनसारे के हत्यारों को बचा रही है.
यूपी के यादव परिवार में एक बार फिर आपसी रार शुरू हो गई है. विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की कमान को लेकर पहली खींचतान हुई थी. मौजूदा विवाद पार्टी में रसूख को लेकर उठा है. शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को दो दिन में कोई फैसला लेने की मोहलत दी है.
मान-सम्मान न मिलने की पीड़ा जाहिर की थी
मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने पार्टी में मान-सम्मान न मिलने को लेकर सार्वजनिक तौर पर अपनी पीड़ा जाहिर की थी. उसके ठीक बाद ही ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ का विवाद सामने आ गया. सूत्रों की मानें तो शिवपाल यादव को मनाने की हर कोशिश नाकामयाब हो चुकी है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपनी बात पर अड़े हुए हैं. वह वक्त आने पर शिवपाल को कोई पद देने की बात कह रहे हैं.
मुलायम का रुख साफ नहीं
वहीं कई मौकों पर शिवपाल दोबारा मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की बात पर सब कुछ सामान्य हो जाने की बात कह चुके हैं. बड़ी बात ये है कि 2016 से लेकर ताजा विवाद होने तक मुलायम सिंह का रुख साफ नहीं हुआ है. किसी भी मौके पर उन्होंने न तो अखिलेश यादव के समर्थन में कोई संकेत दिया है और न ही कभी शिवपाल यादव के लिए खुलकर बोले हैं.
सैफई में बड़े कार्यक्रम की तैयारी
सूत्रों का कहना है कि शिवपाल यादव इस बार आरपार के मूड में हैं. मुलायम सिंह अपनी स्थिति शुक्रवार और शनिवार तक साफ कर दें, ये संकेत भी शिवपाल दे चुके हैं. कुछ इन्हीं कारणों के चलते उन्होंने लखनऊ और सैफई छोड़ दिल्ली में डेरा डाल दिया है. हालांकि वह मुजफ्फरनगर में एक कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह की हां-ना पर निर्भर रहने वाले एक बड़े कार्यक्रम की तैयारी सैफई में चल रही है.
कार्यक्रम शिवपाल यादव के स्वागत समारोह की तैयारी में किया जा रहा है. समारोह शिवपाल यादव का शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है. डॉ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्वालय, आगरा में प्रोफेसर और राजनीति के जानकार मोहम्मद अरशद का कहना है कि मुलायम सिंह अगर किसी के भी पक्ष में बोलते हैं तो उससे नुकसान पार्टी को ही होगा.
मुलायम पर करता है सब निर्भर
अखिलेश के समर्थन में जाते हैं तो शिवपाल परिवार की डोर से मुक्त हो जाएंगे और खुलकर निर्णय लेने के लिए आज़ाद होंगे. वहीं अगर बेटे का साथ नहीं देंगे तो सपा कमजोर पड़ जाएगी और विरोधियों के हाथ अखिलेश को घेरने का नया हथियार मिल जाएगा. मालूम हो कि दिसंबर 2016 से फरवरी 2017 तक यादव परिवार का विवाद पार्ट-1 हुआ था. माना जाता है कि इस विवाद की वजह से समाजवादी पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान हुआ. इसलिए पूरा यादव परिवार चाहता है कि विवाद का पार्ट-2 इतना ज्यादा न बढ़ जाए कि उसकी कीमत 2019 के लोकसभा चुनाव में भुगतनी पड़े.
पंचकूला 31 अगस्त 2018 :
भारतीय जनता पार्टी जिला पंचकूला के अध्यक्ष दीपक शर्मा ने बीती रात भाजपा युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष द्वारा एक वट्स ऐप ग्रुप में कुछ आपत्तिजनक वीडियो डालने पर कड़ी निंदा की तथा उपाध्यक्ष अमित गुप्ता से लिखित रूप में इस्तीफा लिया।
अमित गुप्ता ने ज़िला अध्यक्ष के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उस रात वह किसी शादी समारोह में गया हुआ था तथा फोटो खींचने के लिए अपना फोन अपने दोस्त को दिया। फ़ोटो खिंचते हुए दोस्त द्वारा गलती से कुछ वीडियोस उस ग्रुप में पोस्ट हो गए। इस बात की उन्हें जानकारी नहीं थी। मगर कुछ समय पश्चात उनके किसी मित्र का फोन आया जिस पर उन्हें उसने कहा कि आपने यह क्या पोस्ट कर दिया। यह जानने के पश्चात जब उन्होंने वह वीडियोस डिलीट करने चाहे तो सभी वीडियोस डिलीट नहीं हुए क्यूँकि जो वीडियोस दूसरे लोग देख चुके थे वह डिलीट नहीं हो पा रहे थे। अमित गुप्ता ने कहा कि उन्होंने उसी समय सभी ग्रुप मेंबर से भी माफी मांगी तथा एडमिन को भी कहा कि कृपया वह यह वीडियो डिलीट कर दें। उन्होंने कहा कि मैं सार्वजनिक तौर पर भी अपनी गलती की माफी मांगने के लिए तैयार हूं।
दीपक शर्मा ने बयान देते हुए कहा की अमित गुप्ता द्वारा लिखित रूप में उन्हें इस्तीफा सौंप दिया गया है तथा पुलिस इस मामले पर अपनी कार्रवाई कर रही है। उन्होंने यह भी कहा की कुछ विपक्षी पार्टी के लोगों द्वारा जो अमित गुप्ता को पंचकूला विधायक ज्ञान चन्द गुप्ता का भांजा बताया जा रहा है वह सब बातें मिथ्या है। अमित गुप्ता का विधायक ज्ञान चन्द गुप्ता के साथ कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं है। उन्होंने कहा अमित गुप्ता सिर्फ एक पार्टी कार्यकर्ता हैं उनका पार्टी के किसी पदाधिकारी या विधायक से कोई रिश्ता नहीं है। विपक्षी पार्टियों के नुमाइंदों को इस प्रकरण में विधायक ज्ञान चन्द गुप्ता का नाम घसीट कर अपनी ओछि राजनीति का परिचय नहीं देना चाहिए था। शर्मा ने आगे बयान में कहा कि पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच कर रही है जिसमें विधायक या पार्टी का कोई हस्तक्षेप नहीं है। हमने पार्टी लेवल पर इस मामले को आगे की जाँच एवं कारवाई के लिए प्रदेश अनुशासन समिति के पास भेज दिया है।
भाजपा प्रवक्ता संवित पात्रा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि श्री गांधी हर समय किसी न किसी बहाने चीन का नाम लेते हैं और अक्सर भारत की तुलना से चीन से करते हैं। वह भारतीय हैं , ‘चीनी गांधी’नहीं फिर वह इस तरह की बातें क्यों करते हैं। उन्होंने कहा, “ हम कांग्रेस से पूछना चाहते हैं कि वह चीन में किन-किन नेताओं से मिलेंगे और उनसे क्या चर्चा करेंगे।”
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि चीन हर रोज 50 हजार युवाओं को रोजगार देता है जबकि भारत एक दिन में 450 युवाओं को ही रोजगार दे पाता है। आखिर उन्हें यह जानकारी कहां से मिली। वास्तव में श्री गांधी भारत के नजरिए को समझना ही नहीं चाहते हैं। वह सिर्फ चीन का प्रचार करते रहते हैं।
पात्रा ने कहा जिस समय डोकलाम में तनाव था तो श्री गांधी बिना किसी को विश्वास में लिए चीन के राजदूत के साथ बैठक कर रहे थे। जब यह बात लोगों के सामने आयी तो कांग्रेस ने इससे इन्कार कर दिया हालांकि बाद में उसे यह बात स्वीकार करनी पड़ी। गांधी आज ही कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए यहां से काठमांडू रवाना हुए हैं।
महवा:
वार्ड नंबर 17 के पार्षद कारण सिंह आज तीसरे दिन भी भूख हड़ताल पर बैठे रहे। तेजरम मीणा ओर वोहरा के समझने पर भी नहीं माने कर्ण सिंह।
नगरपालिका के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे वार्ड नंबर 17 के पार्षद करण सिंह को गुरुवार को तीसरे दिन भी बैठे रहे। नगर पालिका चेयरमैन, अधिशासी अधिकारी व नगरपालिका के अन्य वार्ड पार्षदों ने काफी समझाने का प्रयास किया लेकिन एन वक्त पर लिखित में आदेश दिए जाने की बात पर मामला बिगड़ गया।
जानकारी के अनुसार अपनी आधा दर्जन मांगों को लेकर पिछले दो दिन से धरने पर बैठे वार्ड पार्षद को नगर पालिका चेयरमैन विजय शंकर बौहरा और अधिशासी अधिकारी तेजराम मीणा व दर्जनों पार्षदों ने समझाने का प्रयास किया। नगर पालिका सभागार में आयोजित पार्षदों की बैठक में भी इस मामले को अन्य पार्षदों ने भी उठाया और भूख हड़ताल पर बैठे पार्षद करण सिंह को सभागार में चल रही मीटिंग में बुलवाकर उसकी मांगे जानी।
चेयरमैन और अधिशासी अधिकारी ने उसकी आधा दर्जन मांगो को स्वीकार कर सहमति जताते हुए दो सप्ताह के अंदर उपलब्ध करवाने का भरोसा दिलाया।
दौसा, 31 अगस्त, 2018:
पार्षदों के परिजनों की उपस्थिती के चलते नगर परिषद महवा की बैठक सनसनीखेज ओर हंगामेदार रही। विजयशंकर वोहरा की अध्यक्षता में हुई बैठक में नगर के विकास कार्यों को ले कर तीखा विचार विमर्श हुआ। सभी विपक्षी पार्षद मुख्यमंत्री बजट घोषणा में स्वीकृत हुए कार्यों को निरस्त करवाना चाहते थे। उनका मानना था कि यदि सड़कों के ऊपर रिकार्पेटिंग कारवाई गयी तो मकान नीचे रह जाएँगे और जल भराव कि स्थिति बन जाएगी। इसीलिए सड़कों कि खुदाई करवाने के पश्चात ही उनका पुनर्निर्माण करवाना चाहिए। कुछ ने अतिरिक्त विकास कार्यों कि बात भी कि।
इसी दौरान नगर पालिका अधिकारी तेजराम मीणा ने बैठक में मौजूद पार्षदों को समझाने का प्रयास किया और मुख्यमंत्री बजट घोषणा के कार्यों को करवाने की बात उनके सामने रखी, लेकिन पार्षदों में सहमति नहीं बन पाई। ऐसे में कुछ पार्षदों की अधिशासी अधिकारी से खींचतान हो गयी। इसे लेकर अधिशासी अधिकारी ने कहा कि स्वीकृत कार्य निरस्त करने का अधिकार डीएलबी को है। लेकिन कुछ पार्षद इसे मानने को तैयार नहीं हुए और कानून नियम की बात करने लगे। जिस पर अधिशाषी अधिकारी तेजराम मीणा ने पार्षदो के स्थान पर बैठक में शामिल हुए उनके परिजनों से बैठक में शामिल होने का अधिकार नहीं होने की बात कहते हुए भविष्य में इन बैठकों मे पार्षदों के ही शामिल होने की बात कह डाली जिससे वहां मौजूद कुछ पार्षद व उनके परिजन भड़क उठे। जिसके कारण पार्षद दो धड़ों में बट गए। जिसके चलते बैठक में विकास कार्यों पर अंतिम मुहर नहीं लग सकी। नगर पालिका अधिशासी अधिकारी तेजराम मीणा का कहना था कि भविष्य में पार्षदों के स्थान पर उनके परिजनों को बैठक में स्वीकार नहीं किया जाएगा। बैठक में जनप्रतिनिधि ही अपनी बात रख सकते है।
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