मोदी का व्यवहार जैसे कोई सड़कछाप व्यक्ति हों: इमरान मसूद


अब इमरान मसूद एक बार फिर वही गलती कर रहे हैं. मसूद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर फिर एक विवादित बयान दिया है.


कांग्रेस नेता इमरान मसूद कौन हैं ? 2014 के पहले शायद ही इनको कोई जानता होगा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और आस-पास के इलाकों में इनकी पहचान रही होगी. एक इलाके भर में इनका वजूद रहा होगा, लेकिन, पहली बार पिछले लोकसभा चुनाव में सबको पता चला कि आखिर ये जनाब हैं कौन? कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसा बयान दिया जिसके बाद देश भर में सियासी बवाल मच गया था.

2014 लोकसभा चुनाव में यूपी के सहारनपुर में एक रैली के दौरान मसूद ने अपने भाषण के दौरान मोदी की ‘बोटी-बोटी काटने’ का विवादित बयान दिया था. उस वक्त पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी. मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी. यूपीए सरकार के दस साल के शासनकाल के बाद देशभर में परिवर्तन की लहर चल रही थी. मोदी उस परिवर्तन के नायक के तौर पर अपने-आप को पेश कर रहे थे. ऐसे वक्त में मोदी के खिलाफ इस तरह का बयान देने वाले इमरान मसूद का बयान उल्टा कांग्रेस के लिए ही महंगा पड़ गया था.

अब इमरान मसूद एक बार फिर वही गलती कर रहे हैं. मसूद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर फिर एक विवादित बयान दिया है. मसूद ने उन्हें एक सड़कछाप नेता कह दिया है. कांग्रेस नेता इमरान मसूद से जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने को लेकर सवाल किया गया तो मसूद ने कहा कि ‘राहुल गांधी ने नवाज शरीफ या इमरान खान को तो गले नहीं लगाया न. प्रधानमंत्री जी को इसका जवाब शालीनता से देना चाहिए था. लेकिन वो ऐसे रिएक्ट कर रहे थे, जैसे कोई सड़कछाप व्यक्ति हों.’

इमरान मसूद के बयान से एक बार फिर खलबली मच गई है. उनके बयान पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मसूद ने एक बार फिर भाषा की मर्यादा लांघी है. कांग्रेस ने दो साल पहले उन्हें यूपी में उपाध्यक्ष पद से नवाजा है. अब इस जिम्मेदारी के बावजूद मसूद का मोदी पर अमर्यादित बयान जारी है. तो सवाल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी पूछे जा रहे हैं. राहुल से सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं क्योंकि, अविश्वास प्रस्ताव पर संसद के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले मिलने को लेकर बीजेपी पर नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया था.

इमरान मसूद के बयान पर कांग्रेस को देना होगा जवाब

राहुल ने दिखाने की कोशिश की थी कि बीजेपी के लोग भले ही हमसे नफरत करें, हम उनसे विरोधी होने के बावजूद प्यार से गले लगते हैं. लेकिन, अब इस मुद्दे पर कांग्रेस को जवाब देना होगा, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जवाब देना होगा, क्या इस तरह की भाषा से वो सहमत हैं. नफरत और प्यार का अंतर समझाने वाले राहुल गांधी इसे किस रूप में देखते हैं. क्योंकि अब सवाल राहुल गांधी की उस प्यार की राजनीति पर भी उठेंगे जो कि उन्होंने मोदी को संसद में गले लगाकर किया था.

इस मुद्दे पर बीजेपी भी कांग्रेस और राहुल गांधी को घेर रही है. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने फर्स्टपोस्ट से बातचीत में कहा ‘कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं कि वो नफरत नहीं प्यार करते हैं, लेकिन, उनके नेताओं का बयान नफरत वाला होता है.’ शाहनवाज हुसैन ने इमरान मसूद के 2014 के मोदी पर दिए उस आपत्तिजनक बयान की भी याद दिलाई जिसमें मसूद ने बोटी-बोटी काटने की बात कही थी.

बीजेपी प्रवक्ता ने दावा किया कि ‘जिस तरह 2014 में मसूद के बयान के बाद मोदी की जीत हुई थी, ठीक उसी तरह कांग्रेस को फिर से यह नफरत वाला बयान उल्टा पड़ेगा और 2019 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में फिर से बीजेपी की ही जीत होगी.’ बीजेपी के दावे में कितना दम है यह तो वक्त बताएगा, लेकिन, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने इतिहास से सबक नहीं लिया है. कांग्रेस हमेशा एक ही तरह की गलती बार-बार दोहराती रही है.

सोनिया गांधी ने गुजरात में 2007 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया था. इस बयान पर भी खूब हंगामा हुआ था. बीजेपी ने इस बयान को खूब भुनाया और चुनाव परिणाम कांग्रेस के खिलाफ रहा. लेकिन, कांग्रेस ने इससे सबक नहीं लिया. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को कांग्रेस अधिवेशन के बाहर चाय का स्टॉल लगाने की सलाह दे दी थी.

अपने खिलाफ की गई टिप्पणियों को खूब भुनाते हैं पीएम मोदी

चाय वाले का बेटा बताने वाले मोदी ने इस बयान को अपने पाले में खूब भुनाया. अय्यर का बयान कांग्रेस को उल्टा पड़ गया. फिर भी मणिशंकर अय्यर ने इससे सबक नहीं लिया. अभी पिछले साल खत्म हुए गुजरात के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था. लेकिन, चुनाव के आखिरी चरण में मणिशंकर अय्यर ने फिर से मोदी पर निजी बयान दे डाला. अय्यर ने उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच कह डाला.

मोदी ने एक बार फिर से अय्यर के इस बयान को कांग्रेस की सोच से जोड़ कर गुजरात की जनता के सामने पेश कर दिया. मोदी ने इस बयान को अपने पिछड़े और गरीब तबके से जोड़ दिया. लिहाजा कांग्रेस को चुनावी समर में यह बयान उल्टा पड गया. बीजेपी की गुजरात में मिली जीत में इस बयान को लेकर भी खूब चर्चा हुई. कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

लेकिन, कांग्रेस के दूसरे नेता इससे सबक लेने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से बार-बार दी गई हिदायत और मोदी के खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी से बचने की नसीहत का असर नहीं दिख रहा है. लोकसभा चुनाव में अभी भी वक्त है. कांग्रेस के पास अभी भी संभलने का वक्त है. कांग्रेस को समझना होगा मोदी पर जितना प्रहार होगा, मोदी उतने ही मजबूत होंगे. राहुल गांधी को अपने नेताओं पर लगाम लगानी होगी, वरना संसद में गले मिलने की प्यार की राजनीति महज दिखावा बनकर रह जाएगी.

इमरान के प्रधान मंत्री घोषित होते ही जैश का 15 एकड़ में फैला जिहादी सेंटर सुर्खियों में


सेंटर में हजारों बच्‍चों को जिहाद के लिए कुर्बानी देने की ट्रेनिंग दी जाएगी. पंजाब सूबे के बहावलपुर के बाहरी इलाके में बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही है.

जब यह सर्वमान्य है कि आईएसआई ओर सेना ने मिल कर इमरान खान को एक कठपुतली प्रधान मंत्री बनाया है वहीं एक ओर यह भी सबको मालूम हो कि जैश ने इमरान की पख्तूनवा में बहुत मदद की ओर आईएसआई के साथ मिल कर नवाज़ को देश ओर इस्लाम का द्रोही तक करार दे दिया। अब इमरान के इन एहसानों का मूल्य चुकाने की बारी है।

यह आईएसआई ही है जो इस समय sikh referendum 2020 के पीछे है। आईएसआई के 12 मोड्युल्स इंग्लैंड मे स्क्रिय हो कर इस referendum 2020 के लिए काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इसी referendum के बहाने आईएसआई पंजाब में एक बार फिर आतंकवाद को हवा दे रही है।

इमरान खान पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

नवाज़ में इच्छाशक्ति तो थी यहाँ तो धारा ही उल्टी बह रही है।


आतंकी संगठन जैश ए मोहम्‍मद पाकिस्‍तान के बहावलपुर में 15 एकड़ में गुपचुप ट्रेनिंग सेंटर बना रहा है. इस सेंटर में हजारों बच्‍चों को जिहाद के लिए कुर्बानी देने की ट्रेनिंग दी जाएगी. पंजाब सूबे के बहावलपुर के बाहरी इलाके में बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही है. तस्‍वीरों से पता चलता है कि नई बिल्डिंग जैश के वर्तमान मुख्‍यालय से पांच गुना बड़ी होगी. तीन महीनों से इसका निर्माण कार्य चल रहा है.

देश में इमरान खान के उभरने और बाद में उनके चुनाव जीतने के समय में इस बिल्डिंग को बनाया जाना केवल एक संयोग नहीं हो सकता. जैश ने चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ को समर्थन दिया और नवाज शरीफ के खिलाफ जमकर प्रचार किया था. जैश ने शरीफ को पाकिस्‍तान व इस्‍लाम का गद्दार करार दिया था. सरकारी दस्‍तावेजों के अनुसार, बहावलपुर कॉम्‍प्‍लैक्‍स के लिए सीधे मसूद अजहर ने जमीन खरीदी है. जिस जगह जमीन खरीदी गई है वहां 80 से 90 लाख प्रति एकड़ के भाव हैं.

इस जगह को देखने वाले सूत्रों ने बताया कि इसमें रसोई, मेडिकल सुविधाएं और कमरे और जमीन के नीचे भी निर्माण किया जा रहा है. माना जा रहा है कि यहां पर इंडोर फायरिंग रेंज भी बनाई जाएगी. स्विमिंग पूल, तीरंदाजी रेंज और खेल का मैदान भी तैयार किया जाएगा.

कॉम्‍प्‍लैक्‍स बनाने के लिए हज जाने वाले यात्रियों से नकद पैसे लिए गए. 2017 में जमीन मालिकों से उशर के सहारे भी मदद ली गई. उशर फसल उत्‍पादन पर लगने वाला सरचार्ज होता है जो शहीदों, धार्मिक लड़ाकों की मदद के लिए लिया जाता है. अल रहमत नाम के ट्रस्‍ट के जरिए उशर देने का आह्वान किया गया था.

जैश के स्‍थानीय नेताओं ने पंजाब में मस्जिदों के लिए पैसे उगाहे. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पैतृक शहर रायविंड के पास पट्टोकी में रूक-ए-आजम मस्जिद में मौलाना अमार नाम के एक जैश नेता ने लोगों से पैसों की मदद करने का आ‍ह्वान करते हुए कहा था, ‘जिहाद शरिया का आदेश है.’

बता दें कि जैश ए मोहम्‍मद का सरगना मसूद अजहर भारत की मोस्‍ट वांटेड लिस्‍ट में शामिल है. वह 2001 संसद हमले और 2016 पठानकोट हमले का मास्‍टमाइंड है. भारत उसे वैश्विक आतंकी बनाने के लिए कोशिशें कर रहा है लेकिन चीन इसमें रोड़े अटका रहा है. नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री रहते हुए अजहर को गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे. सूत्रों का कहना है कि अब सरकार बदलने के बाद जैश पहले से ज्‍यादा सक्रिय हो सकता है.

ममता को रहती है कश्मीर की चिंता : ओमर अब्दुल्ला

Howrah: National Conference Vice President and former chief minister Omar Abdullah and West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee during their meeting at Nabanna (State Secretariat Building) in Howrah on Friday, July 27, 2018.


उमर अबदुल्ला ने कहा कि ममता बनर्जी हमेशा कश्मीर की चिंता करती हैं.


जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी से हावड़ा में मुलाकात की है. उन्होंने कहा कि ममता हमेशा कश्मीर की चिंता करती हैं. हमने हालही में देश की वर्तमान परिस्थितियों और अल्पसंख्यकों में बढ़ रहे डर पर चर्चा की.

राज्य सचिवालय में हुई मुलाकात में अब्दुल्ला और ममता के बीच प्रस्तावित फेडरल फ्रंट के बारे में बात हुई. बता दें कि बीजेपी के खिलाफ बनाए जा रहे फ्रंट की ममता बनर्जी मुख्य नेता हैं.

अब्दुल्ला ने कहा कि वह सब एक होकर लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी को मात देंगे. हम हर उस पार्टी को अपने साथ शामिल करेंगे जो बीजेपी के खिलाफ है. पीएम चुनाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अभी इसके लिए बहुत समय है. सबसे पहले बीजेपी को मुकाबला दिया जाएगा उसके बाद पीएम के बारे में विचार करेंगे.

इमरान की बातों से अधिक उसके काम पर हो पैनी नज़र


पाकिस्तान के साथ आसानी से शांति की कल्पना ने पहले ही बहुत जानें ले ली हैं. इसलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ दां, नए प्रधानमंत्री की बातों में आने का वक्त नहीं है


विदेश मामलों के विशेषज्ञों का, अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खासा दबाव रहेगा कि वे पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ भारत-पाक रिश्तों पर बातचीत के लिए पहल करें. वो बातचीत फिर से शुरू करें, जो कभी रुक गई थी. तर्क दिए जाएंगे कि क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान के भारत में कई लोगों के साथ बहुत गर्माहट भरे रिश्ते हैं. साथ ही इमरान को पाक जनरलों का वरदहस्त भी प्राप्त है.

भारत के वे आशावादी, जिन्हें इमरान खान के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद, पाक से बड़ी उम्मीदें हैं, नहीं समझ पा रहे हैं कि दरअसल इन चुनावी नतीजों के मायने भारत के लिए क्या हैं. दरअसल कुछ नया नहीं होने जा रहा. प्रधानमंत्री इमरान खान के कुर्सी संभालने पर, कश्मीर को लेकर वही छोटी-मोटी लड़ाइयां जारी रहेंगी, जो अब तक होती रही हैं. दशकों से भारत-पाक रिश्तों में यही होता आया है. इन सबके अलावा राजनैतिक अस्थिरता भी बढ़ेगी, जो पाकिस्तान में धार्मिक रूप से कट्टर लोगों की ताकत और बढ़ाएगी. लिहाज़ा हमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि भारत की सीमाएं खोलने के बजाय, सरहदों पर सुरक्षा और मजबूत करें.

इमरान के कहने को तो अच्छी बातें लेकिन…

ये सच है कि इमरान खान के पास भारतीयों के बारे में कहने के लिए कुछ ‘अच्छी’ बातें हैं. हालांकि भारत के प्रति नवाज शरीफ की नीति पर अपने चुनाव प्रचार के वक्त वे जमकर बरसते रहे हैं. लेकिन सीएनएन-आईबीएन को 2011 में दिए एक इंटरव्यू में इमरान खान ने कहा था, ‘मैं हिंदुस्तान के प्रति नफरत लिए हुए पला-बढ़ा हूं. लेकिन जैसे-जैसे मैं भारत में और घूमा, मुझे लोगों का इतना प्यार मिला कि मैं वो सब भूल गया.’ अपने चुनाव प्रचार के बीच में भी उन्होंने कहा, ‘हमें भारत के साथ अमन और चैन रखना होगा क्योंकि कश्मीर के मुद्दे पर पूरा उपमहाद्वीप बंधक बना पड़ा है.’

आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर इमरान खान मुहावरों के मुलम्मे में लिपटी भाषा में भारत के प्रति कुछ न कुछ अच्छी बात ज़रूर कहेंगे. ज़ाहिर है उसके बाद लोग प्रधानमंत्री मोदी से भी मांग करने लगेंगे कि वे इमरान की बात के जवाब में दोस्ती का हाथ बढ़ाएं.

ये भी सच है कि इमरान खान जो भी कहेंगे, वह पूरी तरह बेतुकी बात ही होगी. पाकिस्तान में, विदेशी मामलों की जानकार आयेशा सिद्दीका कहती हैं, ‘लोकतांत्रिक शासन का मतलब ये नहीं है कि सुरक्षा और कूटनीति पर से पाक फौज अपना नियंत्रण छोड़ देगी. अफगानिस्तान, काफी हद तक ईरान भी, भारत, चीन और अमरीका पहले से ही रावलपिंडी में आर्मी जनरल हेडक्वार्टर्स के हितों को लेकर कड़ी आलोचना करते रहे हैं. अब ये मामले तो ऐसे हैं कि इन पर कोई समझौता नहीं हो सकता.’

नवाज शरीफ और जरदारी का उदाहरण ले लीजिए

2013 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज़ शरीफ ने सीएनएन-आईबीएन को दिए एक इंटरव्यू में वादा किया था कि वे हर वह काम करेंगे जो एक भारतीय उनसे उम्मीद करता है. उन्होंने कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण हल निकालने की बात कही और वादा किया कि वो पूरी कोशिश करेंगे कि भारत के खिलाफ आतंक फैलाने की किसी भी कोशिश को वे पाक धरती पर फलने-फूलने नहीं देंगे. उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की बात भी कही थी. उन्होंने ये भी वादा किया था कि वे मुंबई के 26/11 हमले में आईएसआई का हाथ होने के आरोपों की भी जांच करवाएंगे. वादा ये भी था कि करगिल युद्ध के सभी रहस्यों पर से वे पर्दा भी उठाएंगे.

शरीफ को ये श्रेय तो देना होगा कि उन्होंने जो भी कहा, उसे करने की भी पूरी कोशिश की. 2014-15 में कश्मीर में भारतीय सेना पर जिहादी हमलों में कमी आई. इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी गुटों की लगाम उन्होंने खींच कर रखी. उन्होंने खुलकर कहा कि पठानकोट पर हुए हमले का ज़िम्मेदार जैश-ए-मोहम्मद है.

लेकिन आखिर में हुआ क्या, सबको पता है. पाक फौज ने शरीफ पर उलट वार किया, पद से हटाए गए नवाज शरीफ के खिलाफ मैच फिक्स किया और जैसा कि पाकिस्तान के कानून विशेषज्ञ बब्बर सत्तार कहते हैं, ‘शरीफ की निष्ठा के बारे में कोई कुछ भी कहे, उनके खिलाफ जो मुकदमा चला, वह कानूनी तौर पर बहुत लचर और कमज़ोर मामला था.’

लेकिन नवाज़ शरीफ का तख्ता पलट कोई नई बात नहीं. याद करें, 2008 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने ऐलान किया था, ‘भारत कभी भी पाकिस्तान के लिए ख़तरा नहीं रहा.’ उन्होंने कश्मीर के इस्लामी घुसपैठियों को आतंकवादी बताया और कहा कि उम्मीद की कि भविष्य में पाकिस्तान की सीमेंट फैक्ट्रियां भारत की बढ़ी ज़रूरतों की पूर्ति करेंगी. पाकिस्तानी बंदरगाहों की वजह से भारत के भरे पड़े बंदरगाहों की मदद भी हुई. ज़रदारी ने ये भी ऐलान कर दिया था कि उनकी योजना जल्दी ही कुख्यात आईएसआई पर से फौज का नियंत्रण हटाने की है.

जांच से पता चलता है कि ये वही वक्त था जब अजमल कसाब और लश्कर-ए-तैयबा के उसके 9 साथी 26/11 हमले की तैयारी कर रहे थे. और ये हमला आईएसआई की ओर से संदेश था कि पाकिस्तान को वही चलाते हैं, कोई और नहीं.

इससे पहले फरवरी, 1999 में नवाज़ शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर घोषणापत्र पर दस्तखत किए थे, जिसके मुताबिक दोनों देशों ने वादा किया था कि शिमला समझौते को शब्दश: लागू किया जाएगा. हम सब जानते हैं कि तब क्या हुआ. इधर लाहौर घोषणापत्र पर दस्तखत हो रहे थे और उधर पाकिस्तानी फौजें लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करने की तैयारी कर रही थीं.

पाकिस्तानी फौज के अस्तित्व का संकट है भारत

पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी शुरुआती नीति यही थी कि बातचीत और व्यापार और आर्थिक संबंधों के बढ़ने पर संबंधों में नरमी आएगी. इस बात पर किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि मोदी की ये खुशफहमी, पठानकोट हमले और लाइन ऑफ कंट्रोल के पार हुए हमलों के बाद ग़लतफहमी में बदल गई. ये सोच कि बातचीत जारी रहने से संकट से बचा जा सकता है, बस दिखने में हसीन है, असलियत में एकदम निराधार. इतिहास गवाह है कि 1914 की शुरुआत में यूरोप आर्थिक और कूटनीतिक रूप से जितना एकीकृत था, उतना पहले कभी नहीं. यहां भी मामला मामला वही है.

सेना की जानकार सी क्रिस्टाइन फेयर ने कहा था कि फौज एक ऐसा समुदाय है जिसके पास बहुत ज्ञान होता है और उनका फैसला लेने का तरीका अपने पूर्ववर्तियों से सीखा हुआ होता है. भारत से पाकिस्तान के रिश्ते अगर सामान्य हुए तो ये पाकिस्तानी फौज के लिए अस्तित्व का संकट ले आएगा. पाकिस्तानी फौज की नींव ही इस मिथक पर रखी गई है कि अपने से बड़े और ताकतवर पड़ोसी के खिलाफ युद्ध ही पाकिस्तानी फौज के अस्तित्व की वजह है. इससे पाक फौज, हिंदू भारत के खिलाफ इस्लामिक पाकिस्तान के रक्षक की भूमिका में दिखता है. और आसान तरीके से कहें तो, भारत-पाक के बाच शांति कराकर पाकिस्तानी सेना खुद को खत्म नहीं करना चाहती.

सच्ची बात तो ये है कि भारत के पास कोई विकल्प नहीं है. भारत-पाकिस्तान की बात करें तो भारत को सबसे बड़े फायदे युद्ध से ही हुए हैं, बातचीत से नहीं. नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम हो या 2003 के बाद कश्मीर में हिंसा में आई कमी की बात, ये सब 1999 के करगिल युद्ध के बाद ही मुमकिन हो पाया. 2001-02 में भी दोनों देश युद्ध के करीब आ गए थे. लड़ाई आसन्न थी और ये एक ऐसा संकट था जिसे झेलना भारत के लिए तो मुश्किल होता, लेकिन पाकिस्तान तो टूट ही गया होता.

लेकिन ये रास्ते भारत के हितों के मुताबिक नहीं हैं. जो संभावित खतरे हैं, वे बहुत ज़्यादा बड़े हैं. ‘राष्ट्रवादियों के गर्व’ की बात परे रखें तो ये सच है कि 2016 में भारतीय सेना के सीमा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक करने के बाद, कश्मीर में हिंसा की वारदातें बढ़ी हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद के हफ्तों में पाकिस्तान की ओर से जिहादी हमले और तेज़ हुए और तब से लेकर अब तक वारदातें रुकी नहीं हैं. 2001-02 में आई युद्ध की स्थिति का विश्लेषण करें तो ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान को अपनी फौजें पीछे हटाने के लिए बाध्य किया जा सकता है. लेकिन भारत के कूटनीतिक प्रतिष्ठान मानते हैं कि इसके लिए हमारे देश को जो कीमत चुकानी पड़ेगी, वो बहुत ज़्यादा है.

किसी खुशफहमी में न रहें पीएम मोदी

ज़िंदगी की तरह ही राजनीति में भी इससे ज़्यादा बढ़िया सलाह नहीं हो सकती कि अगर कोई चीज़ इतनी अच्छी लगे कि वो सच से परे है, तो ये मान लेना चाहिए कि वो झूठी है. इंग्लैंड में पढ़ा, खूबसूरत क्रिकेट स्टार, जो अब पाकिस्तान पर राज करेगा, पाकिस्तान को नॉर्थ यूरोपियन वेलफेयर स्टेट की तरह एक इस्लामिक मुलम्मे में लिपटा वेलफेयर स्टेट बनाना चाहता है. भारत में भी ऐसे एलीट लोग हैं जो चाहते हैं कि हमारे यहां भी कोई ऐसा ही नेता कुर्सी पर बैठे. बहरहाल, इमरान खान भारत-पाक दोस्ती के हरकारे या शांतिदूत नहीं हैं.

भारत के पास अब भी वही पुराना विकल्प सबसे अच्छा है. बगैर युद्ध की स्थिति लाए, आतंकविरोधी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना, कश्मीर में राजनैतिक संकट का हल निकालना क्योंकि सूबे में हिंसा वहीं से पनप रही है, पाकिस्तान समर्थित आतंक से निपटने के लिए दूसरे सैन्य तरीकों का विकास, ये ही वे तरीके हैं जिन पर भारत को ध्यान देना होगा.

इन सब कामों के लिए वक्त और मेहनत दोनों चाहिए. वे काम, राजनेताओं के काम और वादों की तरह लुभावने नहीं हैं कि अपने वोटर्स को हर बार नया खिलौना देकर बहला लिया जाए. पाकिस्तान के साथ आसानी से शांति की कल्पना ने पहले ही बहुत जानें ले ली हैं. इसलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ दां, नए प्रधानमंत्री की बातों में आने का वक्त नहीं है.

तुर्की के राष्ट्रपति एर्देगोन से मिले मोदी

 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि यहां ब्रिक्स सम्मेलन से इतर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के साथ उनकी बैठक बहुत अच्छी रही और इस दौरान भारत – तुर्की के बीच सहयोग के कई क्षेत्रों पर चर्चा हुई. मोदी ने कहा कि उन्होंने दोनों देशों के लोगों के फायदे के लिए द्विपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ़ करने के तरीकों पर चर्चा की.

उन्होंने एर्दोगन के दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर उन्हें बधाई भी दी. 64 वर्षीय एर्दोगन राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद जून में और पांच साल के कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित हुए.

मोदी ने ट्वीट किया, ‘तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ बैठक बहुत अच्छी रही. हमारी वार्ता में भारत – तुर्की के बीच सहयोग के कई क्षेत्रों और अपने – अपने नागरिकों के फायदे के लिए द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ करने के तरीकों को कवर किया गया.’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने तुर्की के राष्ट्रपति के साथ मोदी की दो तस्वीरें भी साझा की. कुमार ने ट्वीट किया, ‘…प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन 2018 से इतर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोगन से मुलाकात की.’

उन्होंने बताया, ‘प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति एर्दोगन के दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर उन्हें बधाई दी.’ इससे पहले, दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की और अर्जेंटीना तथा अंगोला के राष्ट्रपतियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी की.

सूचनाओं की गोपनीयता पर श्रीकृष्ण समिति ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट


सरकार ने निजी जानकारियों की सुरक्षा के नियम कायदे पर सुझाव देने के लिए जुलाई 2017 में 10 सदस्यीय समिति गठित की थी


सूचनाओं की गोपनीयता के संरक्षण के संबंध में रूपरेखा तैयार कर रही उच्च स्तरीय समिति ने शुक्रवार को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. समिति ने निजी जानकारियों की सुरक्षा , सूचनाओं के प्रसंस्करण का दायित्व, लोगों के अधिकार और उल्लंघन पर जुर्माना आदि के बारे में सुझाव दिए हैं.

जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली समिति ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री रवि शंकर प्रसाद को रिपोर्ट सौंपी. संवेदन शील और विवादास्पद प्रकृतिक के इस काम को काफी विचार – विमर्श के साथ पूरा करने में एक साल लगे.

प्रसाद ने कहा, ‘यह एक बड़ महत्वपूर्ण कानून है. हम इस पर विस्तृत संसदीय विचार विमर्श कराना चाहेंगे. हम चाहते हैं कि भारतीय सूचना संरक्षण कानून वैश्विक स्तर पर आदर्श बने जो सुरक्षा , निजता एवं नवाचार को बढ़ावा देने वाला हो.’ उन्होंने कहा कि रिपोर्ट को मंत्रालयों के बीच परामर्श तथा मंत्रिमंडल एवं संसद की मंजूरी की प्रक्रिया से गुजरना होगा.

जस्टिस श्रीकृष्ण ने कहा कि निजता का विषय एक ज्वलंत मुद्दा हो गया है और इस कारण इसे संरक्षित रखने की कोशिश हर कीमत पर की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के तीन पहलू हैं – नागरिक, राज्य और उद्योग. उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट पहला कदम है . प्रौद्योगिकी में बदलाव होने से उसके साथ कानूनों को उसके अनुकूल बनाए रखना जरूरी हो गया है.

सरकार ने निजी जानकारियों की सुरक्षा के नियम कायदे पर सुझाव देने के लिए जुलाई 2017 में 10 सदस्यीय समिति गठित की थी.

पादरियों द्वारा महिलाओं का कोन्फ़ेश्न ब्लैक मेल का कारण बन सकता है: राष्ट्रीय महिला आयोग

केंद्रीय मंत्री के. जे. अल्फोंस


महिला आयोग ने अपनी सिफारिश के पक्ष में दलील दी थी कि कन्फेशन के कारण महिलाओं को ब्लैकमेल किया जा सकता है.


केंद्रीय मंत्री के. जे. अल्फोंस ने राष्ट्रीय महिला आयोग की इस सिफारिश को सिरे से खारिज कर दिया है कि गिरिजाघरों में कन्फेशन (गिरजाघरों में पादरी के सामने गलतियों को स्वीकार करने की परंपरा) के रिवाज को खत्म कर दिया जाना चाहिए.

आयोग ने अपनी सिफारिश के पक्ष में दलील दी थी कि कन्फेशन के कारण महिलाओं को ब्लैकमेल किया जा सकता है. इस बीच, केरल के पादरियों की एक संस्था ने इस सिफारिश के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इसे चौंकाने वाला करार दिया है.

केरल के रहने वाले और ईसाई धर्म को मानने वाले केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री अल्फोंस ने महिला आयोग की सिफारिश को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार लोगों की धार्मिक आस्था में कभी दखल नहीं देगी.

केरल कैथलिक बिशप्स काउंसिल के प्रमुख आर्चबिशप सूसा पकियम ने तिरुवनंतपुरम में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘यह न सिर्फ ईसाई समुदाय के लिए बल्कि धर्म की आजादी के पक्ष में खड़े होने वाले हर शख्स के लिए चौंकाने वाला था.’

उन्होंने कहा कि इस सिफारिश के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी को एक ज्ञापन भेजा गया है. पकियम ने कहा कि गिरजाघर से विचार-विमर्श किए बगैर केंद्र को एकतरफा रिपोर्ट सौंपकर महिला आयोग ने अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया है. उन्होंने इसे गलत मंशा से की गई गैर- जिम्मेदाराना हरकत करार दिया.

उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सचिव जॉर्ज कुरियन को भी पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह गिरजाघर की चिंताओं से उचित अधिकारियों को अवगत कराएं. समझा जाता है कि कुरियन ने केसीबीसी के प्रमुख आर्चबिशप सूसा पकियम का पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भेजा है.

पकियम ने पत्र में कहा है, ‘हमारा मानना है कि सिफारिश अवांछित है और इसका मकसद गिरजाघर की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाना है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ऐसे बयान देते हैं जिससे अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाएं बेहद आहत होती हैं.’

केरल में गिरजाघरों की ओर से विरोध किए जाने के बाद अल्फोंस ने आयोग की सिफारिश के खिलाफ टिप्पणी की और इसे ईसाई आस्था एवं आध्यात्मिक रिवाज पर हमला करार दिया.

अल्फोंस ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘यह सरकार का आधिकारिक रुख नहीं है. राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा के रुख से भारत सरकार का कोई लेना-देना नहीं है. यह रेखा शर्मा की निजी राय है.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया, ‘नरेंद्र मोदी सरकार धार्मिक आस्थाओं में कभी दखल नहीं देगी.’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऐसी सिफारिश करने की कोई जरूरत ही नहीं थी.

अल्फोंस ने नई दिल्ली में मलयालम न्यूज चैनलों से बातचीत में कहा, ‘चूंकि यह सिफारिश आई है तो मोदी सरकार इसे सिरे से खारिज करती है.’ केरल के गिरजाघरों में बलात्कार और यौन हमलों की घटनाओं का हवाला देते हुए रेखा शर्मा ने कल कहा था कि पादरी महिलाओं पर अपनी गलतियों का खुलासा करने का दबाव बनाते हैं और फिर उनका शोषण करते हैं.

प्रदेश सरकार पत्रकारों के लिए हाउसिंग स्कीम बना रही है: राजीव जैन

चण्डीगढ़, 27 जुलाई :

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के मीडिया सलाहकार राजीव जैन ने कहा कि प्रदेश सरकार पत्रकारों के लिए हाउसिंग स्कीम बना रही है ताकि हर पत्रकार का अपना घर हो सके।
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार राजीव जैन ने कहा कि प्रत्येक पत्रकार को आवास सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए प्रदेश सरकार गंभीरता से विचार कर रही है और इस संबंध में हाउसिंग पॉलिसी बनाई जा रही है। इसके लिए राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकारों द्वारा बनाई गई पॉलिसी मंगवाई गई हैं जिनका अध्ययन किया जा रहा है। इन दोनों राज्यों की पॉलिसी के आधार पर जो श्रेष्ठ होगा वह हरियाणा की पॉलिसी में शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार पत्रकारों की मृत्यु पर दी जाने वाली आर्थिक सहायता में बढ़ोतरी करने पर भी गंभीर प्रयास कर रही है जिसके संबंध में जल्द ही मुख्यमंत्री द्वारा घोषणा की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पत्रकारों के हित में अगस्त माह से कैशलेस मेडिकल सुविधा शुरू होने की पूरी संभावना है। इसी प्रकार पत्रकारों के लिए एक्रीडेशन सुविधा को और अधिक आसान बनाने के लिए सरकार ने एक्रीडेशन कमेटी का पुनर्गठन कर दिया है। अगले एक सप्ताह में इसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा जिसके बाद कमेटी द्वारा एक्रीडेशन की नई नीति व नियमों को घोषित किया जा सकेगा।
श्री जैन ने कहा कि मैंने लंबे समय तक पत्रकारिता भी की है और कई सरकारों के साथ काम भी किया है लेकिन पत्रकारों की समस्याओं के समाधान तथा उन्हें सुविधाएं देने के मामले में जो कदम इस सरकार ने उठाए हैं, वह पहले किसी सरकार द्वारा नहीं उठाए गए। उन्होंने कहा कि मैं पत्रकारों की समस्याओं से भली-भांति परिचित हूं और 1992 में जब मैं खुद पत्रकार यूनियन का महासचिव था तब हमने प्रयास करके पहली बार पत्रकारों के लिए बीमा पॉलिसी शुरू करवाई थी।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल घोषणाओं पर कम और काम में ज्यादा विश्वास करते हैं। पत्रकारों की एक आवाज पर उन्होंने पत्रकारों के लिए 10 हजार रुपये मासिक पेंशन शुरू करने के अलावा उनकी सुविधा के लिए हर जिले में मीडिया सेंटर खुलवाए हैं। पत्रकारों की अधिकतर मांगें इस सरकार के कार्यकाल में पूरी की जा चुकी हैं और उनके द्वारा की जा रही एकाध शेष मांगों के अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण और लाभकारी योजनाओं की सौगातें पत्रकारों को देने पर विचार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न पत्रकार यूनियनों द्वारा दी गई मांगों का संयुक्त मांग पत्र प्रदेश सरकार को दिया गया है जिन्हें पूरा करवाने के लिए वे विशेष प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कार्य के दौरान यदि किसी पत्रकार के कैमरे या अन्य उपकरण को नुकसान होता है तो उसकी भरपाई भी सरकार द्वारा नियमित रूप से की जाती है, क्योंकि सरकार का मानना है कि पत्रकार की कलम न रुकनी चाहिए, न झुकनी चाहिए, न अटकनी चाहिए और न भटकनी चाहिए।
राजीव जैन आज आयोजित एक कार्यक्रम के उपरांत यह जानकारी दे रहे थे। हरियाणा यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में 200 से अधिक पत्रकारों को बीमा पॉलिसी वितरित की गईं।
यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष आरपी वशिष्ठ ने कहा कि प्रदेश में अब तक 1750 पत्रकारों को बीमा पॉलिसियां वितरित की जा चुकी हैं और पत्रकारों की समस्याओं के समाधान व मांगों को पूरा करने की दिशा में सरकार गंभीर प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकारों ने पत्रकारों से वादे तो किए लेकिन मांगें पूरी कभी नहीं की। उन्होंने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पत्रकारों के एक कार्यक्रम में पत्रकारों के लिए 5 हजार रुपये मासिक पेंशन शुरू करने का वादा किया था लेकिन उसे कभी पूरा नहीं किया। वर्तमान सरकार ने आते ही इस मांग को पूरा करते हुए पत्रकारों के लिए 10 हजार रुपये पेंशन शुरू की है। उन्होंने बताया कि पत्रकार यूनियन द्वारा की गई 10 में से 7 मांगें वर्तमान सरकार पूरी कर चुकी है। उन्होंने कहा कि इस सरकार ने संतों, गायों और पत्रकारों की सबसे अधिक सुध ली है।

संयुक्‍त व्‍यक्‍तव्‍य जारी 36 हजार करोड़ का नुकसान कर ट्रक हड़ताल समाप्त


विभिन्न मागों को लेकर चल रही यह हड़ताल 20 जुलाई से शुरू हुई थी। इसके चालू होने से अब ट्रांसर्पोटेशन का काम शुरू हो जाएगा।

दरअसल, ह़़डताल इसलिए खत्म हुई क्योंकि सरकार के सख्त रुख और ट्रक वालों के घटते समर्थन को देखते हुए एआईएमटीसी हड़ताल खत्म होने का बहाना ढूंढ रही थी। इसका संकेत एआईएमटीसी के अध्यक्ष भीम वाधवा ने रविवार को ही दे दिया था। हालांकि उनका वह दावा एकदम खोखला साबित हुआ कि वह सरकार को झुका लेंगे। दूसरी ओर ह़़डताल के लंबा खिंचने से चीजों की कमी और दाम बढ़ने की आशंकाओं के मद्देनजर सरकार पर भी हड़ताल को जल्द से जल्द खत्म करने का दबाव बन गया था।


नई दिल्ली 27 जुलाई :

केंद्र सरकार से वार्ता के बाद चल रही आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस एसोसिएशन नई दिल्ली की देशव्यापी हड़ताल शुक्रवार को समाप्त हो गई। विभिन्न मागों को लेकर चल रही यह हड़ताल 20 जुलाई से शुरू हुई थी। इसके चालू होने से अब ट्रांसर्पोटेशन का काम शुरू हो जाएगा।

आठ दिनों से चलने वाली इस हड़ताल के समाप्त होने पर व्यापारियों ने राहत की सांस ली है। हड़ताल से सब्जी के दामों में मामूली बढ़ोत्तरी भी हुई थी। माना जा रहा है कि अब इसमें कमी आ जाएगी। बीते 20 जुलाई को हड़ताल शुरू होने के बाद ट्रकों के पहिए थम गए। सामानों का आवागमन रुक गया। फैक्ट्रियों में होने वाला उत्पादन डंप हो गया। बाजार में जरूरत के सामानों की कमी दिखने लगी लेकिन आठ दिनों बाद उनकी मांगों के संबंध में वार्ता के बाद हड़ताल समाप्त हो गई।

ट्रांसपोर्टरों का चक्का जाम ऐसे मुकाम पर पहुंच गया था, जहां ट्रांसपोर्टरों की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। क्योंकि आठ दिन बाद भी चक्का जाम का जरूरी वस्तुओं की आवाजाही पर कोई विशेष असर दिखाई नहीं दे रहा था। हड़ताल से पहले सरकार ने ट्रांसपोर्टरों को मनाने की भरसक कोशिश की थी। खुद केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने उनकी मांगों के संदर्भ में कुछ ऐलान किए थे। इनमें ट्रकों के एक्सल लोड में 25-35 फीसद तक की बढ़ोतरी, साल के बजाय दो साल में फिटनेस सर्टिफिकेट तथा ओवरलोडिंग पर टोल जुर्माने में कमी जैसे अहम एलान शामिल हैं। यही नहीं, इसके बाद गडकरी न केवल स्वयं ट्रांसपोर्टरों से मिले, बल्कि वित्तमंत्री पीयूष गोयल के साथ भी उनकी मीटिंग करवाई। इन बैठकों में सरकार की ओर से ट्रांसपोर्टरों से स्पष्ट कहा गया था कि 18 नवंबर तक हड़ताल को टाल दें। इसके बाद सरकार उनकी अन्य चिंताओं के समाधान का भी प्रयास करेगी। लेकिन, ट्रांसपोर्टर नहीं माने और सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए हड़ताल पर चले गए। ट्रांसपोर्टरों के सबसे बड़े संगठन आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआइएमटीसी) के आह्वान पर इस चक्का जाम का आयोजन हुआ था।

हड़ताल खत्‍म होने को लेकर केंद्रीय परिवहन और हाइवे मंत्रालय व आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) ने कई दौर की बैठकों के बाद संयुक्‍त व्‍यक्‍तव्‍य जारी किया है।

* केंद्र सरकार के आग्रह पर भारी वाहनों पर थर्ड पार्टी इंश्‍योरेंस के मद्देनजर प्रीमियम की समीक्षा के लिए प्रमुख इश्‍यारेंस बॉडी इरीडा (IRDA) तैयार हो गया है। मामले को लेकर ट्रांसपोटरों और इरीडा के बीच 28 जुलाई को 10 बजे बैठक होगी। इरीडा ट्रांसपोटर्स के साथ आवश्‍कय वस्‍तुओं का डाटा को साझा करने पर सहमत हो गया है।

* कर संग्रह की प्रक्रिया का आसान बनाने का लेकर केंद्र सरकार सहमत हो गई है। इसमें तकनीकी की मदद से छह माह में सभी ट्रांसपोर्ट वाहनों का एक साथ टोल प्‍लाजा पर टैक्‍स लेने की व्‍यवस्‍था की जाएगी, जिससे वाहनों का सुचारु रूप से संचालन हो सके। इसके लिए मंत्रालय की एक कमेटी बनाई जाएगी जो इस दिशा में काम करेगी। इसमें ट्रांसपोटरों सहित विभिन्‍न पक्षों के सुक्षाव लिए जाएंगे।

* सरकार व्‍यवसायिक वाहनों के ड्राइवरों और उनके सहयोगियों को प्रधानमंत्री जीवन ज्‍योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में शामिल करने पर विचार करेगी।

* सरकार व्‍यवसायिक वाहनों के ड्राइवरों और उनके सहयोगियों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवा ईएसआईसी (ESIC) में शामिल करने पर विचार करेगी।

* सरकार पूरे देश में पर्यटक वाहनों के लिए निर्बाध गति के लिए नेशनल परमिट स्‍कीम की अधिसूचना जारी करेगी।

* सरकार ट्रांसपोर्ट सेक्‍टर की इन मांगों पर भी विचार करेगी

-वाहनों के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट की सीमा को बढ़ाकर दो साल किया जाए।

-सामान ढोने वाले वाहनों की नेशनल परमिट नियमों को आसान बनाया जाए, जिसमें दो ड्राइवर की आवश्‍यकता को खत्‍म करना शामिल है।

-वाहनों में एक्‍सल लोड को नियमित करना भी शामिल है।

*सरकार सड़क और परिवहन मंत्रालय के सचिव की अध्‍यक्षता में हाई लेवल कमेटी का गठन करेगी, जो परिवहन क्षेत्र में सुविधाओं पर ध्‍यान देगी ।

सभी विभागाध्यक्ष हर रविवार का दिन ड्राई डे के रूप में मनाएं : अतिरिक्त उपायुक्त कुमार

 

 

रोहतक, 27 जुलाई:

स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिला में चिकनगुनिया, मलेरिया की रोकथाम के लिए विशेष जागरूकता एवं निरीक्षण अभियान चलाया हुआ है। सभी विभागों के अधिकारी अपने-अपने विभागों के साथ-साथ घरों में भी विशेषकर बरसाती पानी एकत्रित न होने तथा सफाई का प्रबंध करने का कार्य करेंगे।
यह निर्णय आज अतिरिक्त उपायुक्त कुमार की अध्यक्षता में आयोजित स्वास्थ्य विभाग की बैठक में लिया गया। स्थानीय विकास सदन के कांफ्रेंस हाल में आयोजित बैठक में सभी विभागों का वाटसअप गु्रप बनाकर उस पर नियमित रूप से की जाने वाली गतिविधियों की फोटो अपलोड करने का भी निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि सभी विभागाध्यक्ष हर रविवार का दिन ड्राई डे के रूप में मनाएं और छतों पर पुराने बर्तनों एवं टायरों आदि की सफाई तथा कूलरों एवं टंकियों की भी जांच करेंं। उन्होंने बताया कि माह के दौरान 61 हजार 335 घरों का निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान 971 घरों में मलेरिया का लारवा पाए जाने पर नोटिस जारी किए गए। उन्होंने नगर निगम को भेजे गए नोटिस पर कार्यकारी अधिकारी इन्द्रजीत कुलडिया को चालान काटने के निर्देश दिए।
उन्होंने कहा कि सभी अधिकारी अपने विभागों में स्वास्थ्य संबंधी गतिविधियों के लिए नोडल अधिकारी मनोनीत करें और उसकी रिकार्ड स्वास्थ्य विभाग को भेजें। उन्होंने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे रविवार को घर-घर जाकर विशेषकर विज्ञान के विद्यार्थी प्रोजेक्ट की तरह लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाए तथा उस प्रोजेक्ट की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को भेजें। स्वास्थ्य विभाग ऐसे विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने का कार्य करेगा।
बैठक में सभी विभागों के अधिकारियों को डाक्यूमेंटरी भी दिखाई गई, जिसमें लारवा न पनपने तथा घरों व कार्यालयों के आसपास पानी एकत्रित होने पर तेल डालने का अनुरोध किया। जिला में स्वास्थ्य विभाग, पंचायतीराज विभाग नगर निगम के पास 17 फोगिंग मशीनें चलती हालत में हैं। इसके अलावा कलानौर व महम नगरपालिका के पास भी एक-एक फोगिंग मशीन है। इनसे जिला में मलेरिया फैलने का अंदेशा होने पर फोगिंग करवाने का कार्य किया जाएगा। उन्होंने बताया कि मई से अक्तूबर माह तक मलेरिया फैलने का अंदेशा होता है। इसलिए इस दौरान पूर्ण जागरूकता रखें और पूर्ण रूप से ढके हुए कपड़े पहनकर ही वाटरजनित रोगों से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि डेंगू का लारवा केवल साफ पानी में पनपता है, इसलिए घरों में प्रयोग होने वाली टंकियों, मटकों आदि को सप्ताह में एक बार अवश्य खाली करके साफ करें।
बैठक में सिविल सर्जन डा. अनिल बिरला, मलेरिया नोडल अधिकारी डा. अनुपमा मित्तल, डा. विवेक, डा. संजीव, सुरेश भारद्वाज सहित सभी विभागों के अधिकारी मौजूद थे।