स्मानतर अदालतें हमारे समाज का हिस्सा नहीं हो सकतीं: Nida


तीन तलाक पीड़िता निदा कहती हैं कि जिस देश में हम रह रहे हैं वहां एक संविधान है तो समानांतर कोर्ट नहीं चल सकती.


 

जुमे का दिन था और वक्त था जोहर की नमाज का जब हम बरेली के शामतगंज में निदा खान के घर पहुंचे. निदा तो घर पर थीं नहीं. लेकिन उनकी अम्मी अपना फोन लिए इधर-उधर कर रही थीं. पूछने पर पता चला कि वो निदा के अब्बू और भाई को फोन लगा रही हैं जो नमाज अदा करने घर के पास वाली मस्जिद में गए है.

विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता से निदा खान के खिलाफ फतवा जारी होने के बाद यह पहला जुम्मा था. किसी ने निदा की अम्मी को फोन कर बताया था कि निदा के अब्बू और भाई को नमाज अदा करने से रोक दिया गया है. और यही वजह थी उनके हैरान परेशान होने की.

हालांकि जब निदा के अब्बू और भाई घर लौटे तो वो खबर महज एक अफवाह थी. निदा के अब्बू ने बताया कि हमने किसी को मिलने का मौका ही नहीं दिया. हम ठीक उस वक्त पहुंचे जब नमाज शुरू होने को थी और बाकी भीड़ के निकलने से पहले हम खुद वहां से निकल गए. उन्होंने कहा, हम सिर्फ जुमे की नमाज पढ़ने मस्जिद जाते हैं बाकी दिन की नमाज हम घर से ही अदा करते हैं. 

16 जुलाई को मुफ्ती खुर्शीद आलम द्वारा जारी किए फतवे में निदा को इस्लाम से खारिज कर दिया गया था. फतवे में कहा गया था, ‘अगर निदा खान बीमार पड़ती हैं तो उन्हें कोई दवा उपलब्ध नहीं कराई जाएगी. अगर उनकी मौत हो जाती है तो न ही कोई उनके जनाजे में शामिल होगा और न ही कोई नमाज अदा करेगा’. फतवे में यह भी कहा गया है,’अगर कोई निदा खान की मदद करता है तो उसे भी इस्लाम से खारिज कर दिया जाएगा’.

तीन तालाक पर लड़ाई लड़ रही निदा कोर्ट की तारीख पर गई थीं. निदा के घर लौटने में अभी वक्त था तो हम मुफ्ती खुर्शीद आलम से मिलने जामा मस्जिद पहुंचे. हालांकि मौलाना ने कहा हम बात नहीं करेंगे, आप मीडिया वाले हमारी सुनते नहीं सिर्फ अपनी कहते हैं. हमारे तसल्ली देने के बाद उन्होंने कहा कि पहले आप मस्जिद में इकठ्ठा हुई महिलाओं से मीलिए फिर हम आपसे मिलेंगे.

मस्जिद में लगभग सौ महिलाओं की भीड़ थी. जिस वक्त हम मस्जिद पहुंचे तो नातशरीफ पढ़ रही थीं. हालांकि हमें देखते ही वो उस मुद्दे पर आ गईं जिसके लिए मौलाना ने हमें उनसे मिलने को कहा था. उनके लिए मुद्दा था इस्लाम की रक्षा करना जिसे निदा जैसी औरतें खराब कर रही हैं.

रफिया शबनम

रफिया शबनम नाम की एक महिला इस भीड़ को संबोधित कर रही थीं. वो बता रही थीं कि ‘सबकी आवाज’ नाम से उन्होंने एक मुहिम शुरू की है जिसमें एक लाख मुस्लिम महिलाओं के दस्तखत होंगे और ये मुहिम शरीयत के कानून पर उठाए जा रहे सवालों के खिलाफ है.

अपने संबोधन में उन्होंने कहा, कुछ महिलाओं द्वारा धर्म की गलत छवि पेश की जा रही है. अब और लोग हमें बताएंगे कि हम शरीयत के कानून से डरें नहीं? और लोग हमें बताएंगे कि हम अपने धर्म में सुरक्षित हैं? आप लोगों को पता है कि तलाक को मुश्किल करने के लिए हलाला है? और बड़ी बात तो ये कि जिस आदमी ने तुम्हें एक बार तालाक दे दिया उसके पास वापस जाने का मतलब क्या है? ये हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना है. शरीयत ये इजाजत देती है कि एक बार तुम्हारे शौहर ने तुम्हें तलाक दे दिया तो तुम कहीं और निकाह कर सकती हो. नहीं जरूरी है दोबारा वापिस आओ. हलाला को रेप ओर दुष्कर्म क्यों बना दिया?

हाल ही में बरेली से सामने आए शबीना हलाला मामले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, आज हमारे शहर की एक औरत ने 60 साल के पिता की उम्र के आदमी पर दुष्कर्म का आरोप लगा दिया. क्या उसे शर्म नही आई ये करते हुए? क्या उसे ये नहीं पता उसका सवाल शरीयत पर सवाल उठाता है? उसने सिर्फ अपना फायदा देखा. जितने बराबरी के हक शरीयत ने मर्द और औरत को दिए हैं उतने शायद ही किसी और धर्म ने दिए.

क्या 5 या 10 प्रतिशत महिलाओं के कहने से शरीयत का कानून यानी तलाक और हलाला गलत हो जाएगा? जो 1400 साल पहले हमारे हूजुर ने लिख वो आज गलत हो गया! निदा खान ने अपने व्यक्तिगत मामले से से आज हमारी शरीयत पर सवाल उठा दिए. एक बड़े खानदान को रुसवा कर दिया.

संबोधन खत्म हुआ तो मैंने रफिया शबनम से पूछा क्या निदा के साथ जो हुआ वो ठीक है? रफिया ने कहा, वो निदा का व्यक्तिगत मामला है. तलाक पीड़िताएं तो बरसों से है. व्यक्तिगत मामलों को धर्म से मत जोड़िए. मैंने पलट कर पूछ लिया तो जब मामला व्यक्तिगत था तो फतवा भी गलत हुआ? तो वो थोड़ा गुस्साईं और कहने लगीं, क्या एक निदा के कहने से शरीयत में लिखा ट्रिपल तलाक या हलाला गलत हो जाएगा, अपने पीछे खड़ी भीड़ की तरफ इशारा कर उन्होंने कहा कि क्या ये हजार महिलाएं अपने घर में महफूज नहीं है? एक तलाक पीड़िता के लिए क्या सब बदल दिया जाएगा?

निदा खान के खिलाफ जारी किए गए फतवे की तस्वीर

मैंने एक-एक कर उन्हीं में से कई महिलाओं से पूछा क्या आप तलाक-ए-बिद्दत को ठीक मानती हैं? कोई दूसरे का मुंह देखने लगी तो किसी ने मुस्कुराकर टाल दिया, तो किसी ने यहां तक कह दिया कि आपका सवाल ही गलत है. मैंने कहा चलिए ये बताइए कि तलाक के जिस तरीके को सुप्रीम कोर्ट ने बैन किया है क्या वो सही था? ऐसा लगा जैसे वो इस सवाल के लिए तैयार नहीं थीं. इस भीड़ में पीछे खड़ी एक औरत आगे बढ़ी और कहने लगी, हमें अपने हदीस और कुरान पर यकीन है. सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कहे पर हम मानेंगे तो वही जो हमारा कुरान हमसे कहता है. संविधान ने हमें हक दिया अपने धर्म को पालन करने का और अगर संविधान हमारे शरीयत या हदीस के खिलाफ होगा तो हम संविधान के भी खिलाफ जाएंगे.

वक्त आया मौलाना जी से मिलने का. मैंने कहा, क्या निदा अपने हक के लिए लड़ नहीं सकती? और लड़ेगी तो आप उसे इस्लाम से खारिज कर देंगे? आपको ये हक किसने दिया? मौलाना ने कहा, मैं कौन होता हूं किसी को इस्लाम से खारिज करने वाला! जो कुरान ओर हदीस के खिलाफ जाएगा वो खुद ही इस्लाम से खारिज हो जाएगा. हम तो सिर्फ हुकम बताने वाले हैं. सवाल कायम किया हमने, फतवा दारुल इफ्ता से मिला और मैंने सिर्फ उसका जवाब पढ़कर सुना दिया.

उसमें लिखा है कि अगर किसी ने कुरान से इंकार करने की गलती की है तो वो तौबा करें, मांफी मांगे, जब वो मुस्लमान है. ये फतवा इसलिए जारी हुआ क्योंकि हमें कुरान और हदीस पर भरोसा है. अगर इसके खिलाफ कोई बात सामने आती है तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अवाम को आगाह किया जाए. जैसी कि बयानबाजी हो रही थी कि हलाला का कुरान में कोई सबूत नहीं हैं, हलाला औरतों पर जुल्म है. हलाला का तालुक खुदा के हुक्म से है. हलाला का मतलब नहीं कि जबरदस्ती किसी को मजबूर किया जाए.

मैंने कहा कि क्या जिस तलाक-ए-बिद्दत पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगा दिया है, आप उसके विरोध में नहीं हैं?

मौलाना ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वो ही हमारी शरीयत भी कह रही है. एक साथ तीन तालाक गुनाह है, लेकिन अगर कह दिया तो तलाक हो जाएगा. वो गुनहगार है जिसने एक साथ तीन तलाक दिया.

मैंने कहा जब शरीयत भी कह रही है ये गलत है तो इसके खिलाफ लड़ना कैसे गलत है? मौलाना ने कहा, तलाक तो हो गया. निदा अपने हक के लिए लड़ें, हमें उससे कोई दिक्कत नहीं. लेकिन वो अपने हक की लड़ाई में शरियत को निशाना न बनाएं, कुरान और हदीस के खिलाफ न जाएं. फतवे की ये लाइनें हदीस से कोट की गई हैं. फतवे का मतलब है आगाह करना. ये फतवा सिर्फ निदा के लिए नहीं है. उसमे लिखा है जो भी कुरान या हदीस के कानून से इंकार करेगा उस पर इस्लाम का ये कानून लागू होता है.

आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड आपके फतवे से कोई इत्तेफाक नहीं रखता और उनका कहना है कि इस फतवे का कोई मतलब नहीं क्योंकि फतवा सिर्फ तब जायज है जब वो मांगा जाए, दागा नहीं जा सकता. तो उन्होंने कहा, हमारी जिम्मदारी है कानून और हदीस के कानून से अवाम को आगाह करना. लोगों को बताना.

मुफ्ती खुर्शीद आलम

इस तरह के फतवे जारी कर के आप इस्लाम को बदनाम कर रहें हैं? ये सोच है और सोच पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता. जिसका इमान कुरान पर है, हदीस पर है वो कभी ये नहीं बोल सकता कि इन फतवों से इस्लाम बदनाम होता है. बल्कि ये फतवा ईमान वालों के लिए रहमत है. शहर काजी के हुक्म से फतवा जारी हुआ हे और वो शब्द-शब्द सही है. कुरान का कानून है और कुरान के हर हर्फ पर मेरा ईमान है

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक फतवे की कोई कानूनी मान्यता नहीं है और संविधान से बड़ा तो कुछ नहीं? तो वो बोले कुरान सबसे बड़ा है हमारे लिए. पहले हम कुरान देखेंगे, फिर सुप्रीम कोर्ट का कानून.

मुफ्ती खुर्शीद आलम से लंबी बातचीत में बार-बार पूछने पर उन्होंने कहा कि तलाक ए बिद्दत शरीयत के हिसाब से भी गलत है लेकिन किसी ने दे दिया तो हो गया. हालांकि गलत के खिलाफ लड़ने पर उनके पास जवाब नहीं.

मौलाना से मिल हम निदा के घर लौटे. निदा अपने घर के आंगन में बैठी एक मां के आंसू पोंछ रही थीं. दरअसल वो मां थीं एक और पीड़िता की जिसे उसके शौहर की मृत्यु के बाद ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था. निदा उन्हें समझा रहीं थी कि वे परेशान ना हो, ये लड़ाई कानूनी तौर पर लड़ी जाएं.

निदा 2017 से आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी नाम की एक संस्था चलाती हैं जिसमें वो ट्रिपल तालाक, हलाला, बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं. निदा कहती हैं कि हमारी पहली कोशिश होती है कि घर टूटने से बच सकें तो उसे बचा लें.

निदा यहां अपनी अम्मी, अब्बू, भाई के साथ रहती हैं.अक्सर न्यूज स्क्रीन पर जिस निदा को हमेशा नकाब में देखा वो एक बेहद दिलचस्प इंसान हैं. ट्रिपल तलाक, हलाला के खिलाफ लड़ाइ लड़ रही निदा चंचल, चुलबुल लड़की हैं.

बात करने पर निदा ने कहा कि वो कोर्ट के उस फैसले से खुश है जिसमे कोर्ट ने उनके तीन तलाक को अवैध करार दे दिया है. निदा ने कहा फतवे का इस्तेमाल हमेशा से कानून को चकमा देने के लिए किया गया है. जो चीज असंवैधानिक है उसका कोई वजूद नहीं. इसका इस्तेमाल सलाह मशविरा के लिए किया जा सकता है, किसी को बेइज्जत करने के लिए नहीं. जिस तरह की बात फतवे में हुई है वो मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है. और उनके इस फतवे का जवाब देने से अच्छा मैं समझती हूं कि मैं उस पर कार्रवाई करूं.

2016 से शुरू हुई इस लड़ाई में मुझ पर अटैक हुए, केस वापस लेने का दबाव बनाया गया और अब ये फतवा लेकिन एक इंसान जितना डर सह सकता है उससे ज्यादा हो चुका है, तो अब इन चीजों का फर्क नहीं पड़ता. मेरे संविधान ने मुझे अधिकार दिया है कि मैं जो धर्म चाहूं उसका पालन करूं और कोई भी फतवा मुझे ये करने से रोक नहीं सकता. मैं इस फतवे को सुप्रीम कोर्ट लेकर जाउंगी. जो संदेश उन्होंने इस फतवे से समाज को देने की कोशिश की है उसका उल्टा संदेश मैं सामाज को दूंगी…मैं इस लड़ाई को पूरी तरह से लड़ूंगी.

अजीब ये है कि जिन मौलानाओं को इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का काम दिया गया है वो ऐसे फतवों से इस्लाम की गलत तस्वीर पेश करते हैं. इस तरह का फतवा देकर वो समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं कि जो कोई अपने हक की लड़ाई लड़ेगा उसे हम इस्लाम से खारिज कर देंगे. मुझे लगता है तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत हमारी सोसायटी का एक बुरा सच है जिसका खत्म होना बेहद जरूरी है.

और रही बात हलाला की तो हलाला शरीयत के हिसाब से मर्दों के लिए सजा थी और लेकिन इसमें असली सजा तो महिलाओं को भुगतनी पड़ती है. आज के वक्त में इसे बिजनेस बना दिया गया है.

निदा कहती हैं, सोसायटी का एक हिस्सा है जिन पर फतवे से फर्क पड़ा हैं. मैं कोर्ट गई थी और वहां मेरी पहचान के ही किसी ने कहा मैं आपसे बात नहीं करूंगा वरना मेरा ईमान चला जाएगा.

जब निदा से मैंने पूछा कि वो सरकार से क्या चाहती हैं? निदा ने कहा, ये अकेली और पहली सरकार है जिसने तीन तलाक का मुद्दा उठाया है और शायद पहली बार इससे पीड़ित महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठा रही हैं. अब तक तीन तलाक शरीयत के नाम पर चलाया जा रहा था लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने ही इसे बैन कर दिया तो अब क्या? हालांकि सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत को बैन करने से चीजें नहीं बदलेंगी क्योंकि वो तलाक तो आज भी हो रहे हैं. कानून तो हमारे पास रेप का भी है लेकिन अमल होना जरूरी हैं. ठीक है कि ये कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा लेकिन सिर्फ तब जब उस कानून का सही से पालन होगा. रिफॉर्म सोसायटी के लिए जरूरी है.

निदा कहती हैं जब तक मैं अपने शौहर को सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाती, जिसकी वजह से मैंने अपन बच्चा खोया, ये लड़ाई जारी रहेगी. जिस देश में हम रह रहे हैं वहां एक संविधान है तो समानांतर कोर्ट नहीं चल सकती. अगर इतना है तो पहले सुप्रीम कोर्ट जाएं और शरीयत को कोडिफाई कराएं.

मेरी अम्मी, अब्बू, भाई ने मुझे बहुत सहारा दिया है. कोर्ट के वातावरण का अंदाजा तो जॉली एलएलबी के बाद से सबको हो ही गया है. उस वातावरण में मेरे भाई ने मुझे काफी सपोर्ट किया है. हमें बहुत सारी कामयाबी मिली है.

पानी जब तक दूर है तब तक उससे डर लगता है लेकिन एक बार समुद्र की लहर पैरों को छू जाएं तो वो डर खत्म हो जाता है.

गाय मुस्लिम के लिए तो प्रेम दलित के लिए लिंचिंग का कारण बने


भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे बाड़मेर के सरहदी गांव में एक दलित युवक को प्रेमप्रसंग के चलते पीट पीटकर मार दिया गया


अलवर में अकबर की घटना के बाद देश में एक तरफ़ तो मॉब लांचिंग को लेकर संसद से सड़क तक घमासान मचा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ़ भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे बाड़मेर के सरहदी गांव में एक दलित युवक को प्रेमप्रसंग के चलते पीट पीटकर मार दिया गया. मामले में पुलिस ने दर्जनभर आरोपियों में से दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है.

वारदात बाड़मेर के मेकरनवाला गांव में शुक्रवार रात को हुई थी. वहां दर्जनभर के लोगों पीट-पीटकर एक दलित युवक भिण्डे का पार निवासी खेताराम भील की हत्या कर दी. हत्या के बाद शव को उठाकर नजदीक सूनसान स्थित ढाणी में फेंक दिया. हत्या के पीछे अल्प संख्यक युवती से उसका प्रेम प्रसंग बताया जा रहा है. शनिवार को युवक का शव पड़ा देखकर ग्रामीणों ने पुलिस को इसकी जानकारी दी. इस पर पुलिस ने शव की शिनाख्त करवाकर पोस्मार्टम के बाद परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

गांव में बनाई अस्थाई चौकी

मामले के बाद पुलिस ने सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने की आशंका के चलते गांव में अस्थाई चौकी बना दी है. वहीं मामले की जांच वृत्ताधिकारी स्तर के अधिकारी को दी गई है. पूरे मामले में परिजनों ने करीब एक दर्जन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है. पुलिस ने इस मामले में दो युवकों पठाई खान व अनवर खां निवासी मेकरनवाला को गिरफ्तार किया है. दोनों ने पूछताछ ने यह बात क़बूली है कि प्रेम प्रसंग के चलते इन्होंने खेताराम की पीट पीटकर हत्या की है. आरोपियों को मंगलवार को कोर्ट में पेशकर सात दिन के रिमांड पर लिया गया है.

कास्टिंग काउच: शिकंजा कसा तो बहुत लोगों के नाम होंगे उजागर


केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किया सूचित, 7 प्रोडक्शन हाउसेज का बना पैनल


यौन उत्पीड़न के खिलाफ दक्षिण की लड़कियों ने जंग छेड़ रखी है, अब ये साफ-सफाई अधिनियम शुरू करने के लिए बॉलीवुड की बारी है. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सूचित किया है कि सात बॉलीवुड प्रोडक्शन हाउसेज यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए एक पैनल बनाने पर सहमत हुए हैं.

2017 में मेनका गांधी ने बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं से वर्कप्लेस एक्ट, 2013 में यौन उत्पीड़न का अनुपालन करने और शिकायतों को सुनने के लिए समितियों की स्थापना करने के लिए कहा था. तब से ये आंदोलन हो रहा है और प्रोडक्शन हाउसेज और फिल्म एसोसिएशन ने भी इस तरह के मामलों से निपटने की शुरुआत कर दी है. जब फिल्म के सीईओ और टेलीविजन प्रोड्यूसर कुलमीत मक्कड़ ने पूछा कि क्या मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में कंपनियों के लिए या किसी अन्य उद्योग में उस मामले के लिए काम पर यौन उत्पीड़न नीति है या नहीं. उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल! ये गैर-विचारणीय है और इसे लागू किया जाना चाहिए. हम भारत के निर्माता गिल्ड के रूप में बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री के जरिए पालन किए जाने वाले सर्वोत्तम प्रथाओं की आवश्यकता का समर्थन करते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि कार्यस्थल महिलाओं के काम करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करें’

अमित बहल ने कहा कि, कई प्रोडक्शन हाउसेज में पहले से ही एक सेल है जहां शिकायतों का ख्याल रखा जा रहा है. यहां तक कि सिने और टेलीविजन आर्टिस्ट्स एसोसिएशन भी ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करता है. सुशांत सिंह और मैं अमेरिका और फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल एक्टर्स में हमारे समकक्षों के जरिए शुरू किए गए #मीटू कैंपेन के लिए प्रमुख तौर पर हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं. इसके अलावा हमने निश्चित रूप से ये सुनिश्चित किया है कि कोई भी सदस्य यौन उत्पीड़न और शोषण का कोई मामला होने पर आगे आ सकते हैं और अगर हमें पुलिस के पास जाने और कानूनी लड़ाई लड़ने की जरूरत पड़ती है तो हम अपने सदस्यों की मदद करेंगे.

आश्चर्यजनक बात ये है कि सबसे प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउसेज एक्सेल एंटरटेनमेंट, यश राज और स्फेयर ऑरिजीन के बोर्डों ने अपने बोर्ड्स पर लिखा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं होता है, इसलिए हम चाहते हैं कि सभी लोग उन मानकों का पालन करें जो अनियमित प्रोडक्शन हाउसेज हैं जो रात में ऑपरेट होते हैं. कुछ ऐसे व्यक्तियों के बारे में रिपोर्ट है जिन्होंने सीधे यौन उत्पीड़न के बारे में मंत्रालय को लिखा है जिसमें वो मॉडल, अभिनेत्री और कुछ अभिनेता भी शामिल हैं.

इस बीच हमारे पास कुछ ऐसे नाम हैं जो अधिकारियों के साथ परेशानी में पड़ सकते हैं. इस सूची में शीर्ष की एक ऐसी कंपनी है जो युवा महत्वाकांक्षी अभिनेत्री को संगीत वीडियो का वादा करता है और अक्सर काम के लिए सेक्सुअल फेवर मांगता है. वो उन्हें गलत काम के लिए बुलाता है और अगर वो नहीं करते हैं तो उन्हें काम नहीं मिलता है.

एक फिल्म निर्माता है जो वर्तमान में एक और सीक्वल बनाने की प्रक्रिया में है और फिल्मों में अपनी ‘गर्लफ्रेंड्स’ को मौका दे रहा है, वो भी इस सूची में शामिल है. उनकी आखिरी फिल्म में ऐसी एक अभिनेत्री थी जिसे उस फिल्म के निर्माण के दौरान उनकी ‘वर्तमान’ प्रेमिका माना जाता था. एक अभिनेता-निर्देशक है जिसने एक वरिष्ठ अभिनेता के साथ फिल्म बनाने के दौरान एक अभिनेत्री के साथ गलत किया था उसके बाद उसने फिल्म को प्रमोट नहीं किया, वो भी परेशानी में पड़ने वाला है.

ये अभिनेता-निर्देशक वर्तमान में विदेश में एक फिल्म की शूटिंग कर रहा है, जो खुले तौर पर काम करने वाले लोगों से फेवर मांग रहा है. एक फिल्म निर्माता जो कॉर्पोरेट हाउस के साथ काम करता है, जिसकी कमजोरी ही लड़की है. उसके खिलाफ एक कर्मचारी ने शिकायत दर्ज कराई थी. जिसके बाद उन्हें प्रोडक्शन हाउस से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उनके एक सलाहकार जो उनके दोस्त भी हैं, उन्होंने बॉसेज से अनुरोध किया कि वो उन्हें एक मौका और दें. एक टैलेंट एजेंसी का मालिक है जिसे उसके गलत व्यवहार के लिए हटा दिया गया है, वो भी इस सूची में है. ऐसे कई महत्वाकांक्षी मॉडल और अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने बाद में उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई हैं.

चंदन मित्रा टिवीटर के फेर में फंसे


उनके पुराने ट्वीट्स को ट्विटर पर रिट्वीट किया जा रहा है, जिनमें उन्होंने टीएमसी को जमकर कोसा है


हाल ही में बीजेपी छोड़ टीएमसी का दामन थामने वाले पूर्व सांसदको उनके पुराने ट्वीट्स को लेकर कई तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल उनके पुराने ट्वीट्स को ट्विटर पर रिट्वीट किया जा रहा है, जिनमें उन्होंने टीएमसी को जमकर कोसा है. अपनी नई पार्टी के खिलाफ पुराने ट्वीट्स से संबंधित सवाल को उन्होंने ट्रोल्स का हथकंडा बताया.

उन्होंने कहा ‘जो मैने पांच-छह साल पहले लिखा, वो अभी जरूरी कैसे हो सकता है. यह सिर्फ ट्रोल्स का हथकंडा है मुझे परेशान करने के लिए. हां मैने कुछ बयान जरूर दिए थे क्योंकि में बीजेपी का वरिष्ठ नेता और बंगाल में उम्मीदवार था. लेकिन हर किसी के पास अपनी सोच और विचार बदलने का अधिकार है.’ लेकिन उनके इन विचारों से इतर लोग  उनके पढ़ें ऐसे ही कुछ ट्वीट्स.

अप्रैल 2014 में लोकसभा चुनावों के समय ट्वीट किया था, ‘टीएमसी के गुंडों के आतंक के शासनकाल को रोकने के लिए चुनाव आयोग को दक्षिणी पश्चिम बंगाल में तुरंत केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात करना चाहिए.’

30 अप्रैल को उन्होंने ट्वीट किया था, ‘हुगली लोकसभा सीट के धनीखली सेगमेंट में टीएमसी ने मतदान के दौरान बुरी तरह से धांधली की है.’

पिछले दिनों बीजेपी का दामन छोड़ कर मित्रा ने चार अन्य नेताओं के साथ टीएमसी का दामन थाम लिया था. इनमें समर मुखर्जी, अबू ताहिर, सबीना यासमीन और अखरुज्जमां शामिल हैं.पिछले दिनों बीजेपी का दामन छोड़ कर मित्रा ने चार अन्य नेताओं के साथ टीएमसी का दामन थाम लिया था. इनमें समर मुखर्जी, अबू ताहिर, सबीना यासमीन और अखरुज्जमां शामिल हैं.

 

2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

chidambaram

चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

प्रधान मंत्री ने ‘गिरिंका’ योजना मे 200 गायों का योगदान दिया

3 अफ्रीकी देशों के दौरे पर निकले पीएम नरेंद्र मोदी मंगलवार को रवांडा की राजधानी किगली पहुंचे

 

इसके बाद रवांडा सरकार की ‘गिरिंका’ योजना के तहत पीएम मोदी ने सरकार को 200 गायें गिफ्ट कीं

 

2006 से शुरू हुई रवांडा सरकार की इस योजना से 3.5 लाख परिवारों को फायदा पहुंचा है

 

इस योजना के तहत सरकार हर गरीब परिवार को एक गाय देती है, फिर उससे पैदा हुई एक बछिया को वह परिवार अपने पड़ोसी को देगा. इस तरह से ये योजना चलती रहती है. इस योजना का मकसद इन गायों के दूध से बच्चों का कुपोषण दूर करना है

रवांडा के ऐतिहासिक सामूहिक क़बरगाह पर प्रधान मंत्री द्वारा भावभीनी शरद्धांजली


उन्होंने कब्र पर पुष्प चढ़ाकर नरसंहार के पीड़ितों को याद किया और केंद्र का दौरा करके रवांडा के प्रमुख जातीय समुदाय तुत्सी के खिलाफ नरसंहार के इतिहास के बारे में और जानकारी ली


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1994 के नरसंहार में मारे गए 2,50,000 से अधिक लोगों की याद में बने रवांडा के नरसंहार स्मारक केंद्र का मंगलवार को दौरा करके रवांडा की जनता के ‘अदम्य साहस’ को सलाम किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को दो दिवसीय दौरे पर रवांडा पहुंचे. यह तीन अफ्रीकी देशों की उनकी यात्रा का पहला चरण है. मोदी यहां आने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं.

उन्होंने कब्र पर पुष्प चढ़ाकर नरसंहार के पीड़ितों को याद किया और केंद्र का दौरा करके रवांडा के प्रमुख जातीय समुदाय तुत्सी के खिलाफ नरसंहार के इतिहास के बारे में और जानकारी ली. मोदी ने अपने दौरे के बाद स्मारक की आगंतुक पुस्तिका में भावपूर्ण संदेश लिखा.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने एक ट्वीट में कहा, ‘मार्मिकता के साथ दिन की शुरुआत. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किगाली में नरसंहार स्मारक केंद्र का दौरा किया. स्मारक हिंसा के क्रूरतम कृत्य के पीड़ितों के सम्मान में बनाया गया है.’ उन्होंने कहा कि यह मेल-मिलाप की सराहनीय और अनुकरणीय प्रक्रिया का प्रतीक भी है जिसकी शुरुआत रवांडा ने की है.

रवांडा नरसंहार तुत्सी और हुतु समुदाय के लोगों के बीच हुआ एक जातीय संघर्ष था. इसमें तुत्सी विरोधी नरसंहार के 2,50,000 पीड़ितों की कब्रें हैं.

प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री के खिलाफ सदन में विशेषाधिकार हनन का नोटिस


 एक ओर जहां संसद में गलत बयानी कर राहुल ने अपनी किरकिरी कारवाई है वहीं दूसरी फ्रांस के आधिकारिक बयान के बाद भी कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए पीएम मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है


कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा निर्मला सीतारमण पर राफेल विमान सौदे को लेकर सदन को ‘गुमराह करने’ का आरोप लगाते हुए मंगलवार को उनके खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया.

सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से सुमित्रा महाजन को दिए गए इस नोटिस में आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 20 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए सदन को ‘गुमराह करने वाला बयान’ दिया.

खड़गे ने कहा, ‘लोकसभा में कार्यवाही एवं प्रक्रिया के नियम 222 के तहत मैं सदन को गुमराह करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देता हूं.’ रक्षा मंत्री के खिलाफ ऐसे ही एक अन्य नोटिस में पार्टी ने कहा कि 20 जुलाई को चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए निर्मला सीतारमण सदन को ‘गुमराह करने वाला’ बयान दिया था उसको लेकर उनके खिलाफ विशेषाधिकार का नोटिस दिया जाता है.

राफेल को लेकर दोनों पार्टियों में जंग जारी

कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने संसद को गुमराह किया है, ये विशेषाधिकार का हनन है. वहीं, इससे पहले बीजेपी सासंदों ने कांग्रेस अध्यक्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर संसद को गुमराह करने का आरोप लगाया था.

लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर गड़बड़ी के आरोप लगाए थे. राहुल ने पीएम और रक्षा मंत्री से राफेल की कीमत बताने की मांग भी की थी. जवाब देते हुए पीएम ने कहा था कि ये दो देशों के बीच समझौता है. रक्षा मंत्री ने भी सीक्रेसी क्लॉज़ का हवाला देते हुए कीमत बताने से इनकार कर दिया था.

कांग्रेस का कहना है कि सौदे में सीक्रेसी क्लॉज़ जैसी कोई व्यवस्था नहीं और पीएम व रक्षा मंत्री दोनों ने सदन को गुमराह किया. सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने विशेषधिकार हनन प्रस्ताव लाने का संकेत भी दिया.


इसे कहते हैं चोरी ओर सीनाज़ोरी

पंचकुला में सेबों की आवक सुचारु ढंग से हो इसका ख्याल रखा जाएगा: मार्केट कमेटी

चंडीगढ़।

पंचकूला सेक्टर-20 स्थित सेब मंडी में हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों से सेब बिक्री के लिए आना शुरू हो गया है। हालांकि अभी सेब सीजन ने पूरी तरह र तार नहीं पकड़ी है और कम ही सेब मंडियों में पहुंच रहा है। बीते तीन-चार दिनों में करीब 7500 पेटी सेब मंडी में उतर चुका था और रोजाना करीब 2000 पेटी सेब आ रहा है। सेब सीजन के अगस्त के प्रथम सप्ताह तक पूरी तरह रफतार पकडऩे की उम्मीद है। उधर, मंडी में व्यापार करने वाले आढ़तियों, लोडर्स, सेब लेकर आने वाले सेब उत्पादकों व अन्य लोगों को किसी तरह की कोई समस्या न आए, इसके लिए पंचकूला मार्केट कमेटी ने पहले से ही सब तैयारियां कर ली हैं। मंडी में आने वालों के लिए कमेटी की ओर से शौचालय, नहाने के लिए अलग से बाथरूम, पीने के पानी के लिए वाटरकूलर व छोटी-बड़ी हर प्रकार की गाडिय़ों के लिए उचित पार्किंग व ड्राइवरों और सेब उत्पादकों के ठहरने के लिए कमरों आदि की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही चंडीगढ़ से पंचकूला मंडी गए आढ़तियों को वहां कोई समस्या न आए, इसके लिए भी कोई समस्या न आए इसके लिए पंचकूला मार्केट कमेटी अलग-अलग पॉलिसी बनाने की सोच रहा है। पंचकुला ग्रेन व एप्पल मार्के ट कमेटी के सचिव विशाल गर्ग ने बताया कि एप्पल सीजन शुरू होते ही भारी मात्रा में हिमाचल से सेब उत्पादक पंचकूला में सेब बेचने आते हैं जिनकी पेमेंट वैसे तो आढ़तियों द्वारा समय पर कर दी जाती है, लेकिन फिर भी अगर किसी की पेमेंट रुक जाती है या लेट हो जाती है तो हम ऐसी पॉलिसी बनाएंगे जिससे बागवानों को उनकी फसल की पेमेंट समय पर मिल जाए।

बता दें चंडीगढ़ से करीब 70-80 आढ़ती पंचकूला मंडी के लिए पलायन कर चुके हैं। इन आढ़तियों ने पंचकूला में 15 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह किराये पर दुकानें ले रखी हैं।

सीजन शुरू होने से पहले की पूरी तैयारी

मार्केट के डायरेक्टर अश्विनी चौहान के अनुसार पिछले वर्ष पंचकूला में करीब 15 से 18 लाख पेटियां सेब आया था जिसके लिए हर रोज ४०० से ५०० छोटे-बड़े वाहन मंडी में आते थे। पिछली बार प्राकृतिक तौर पर कुछ दिक्कतें आने के चलते सेब सीजन के दौरान मंडी में 2 दिन पानी की समस्या हो गई थी, लेकिन इस बार कमेटी ने पहले ही तैयारियां कर ली हैं ताकि इस प्रकार की कोई समस्या न आए। उन्होंने बताया कि इस बार पीने के पानी के लिए 6-7 वॉटरकूलर, 9 शौचालय (नहाने के बाथरूम अलग से) बड़े पार्किंग एरिया की भी व्यवस्था की गई है ताकि वाहन पार्क करने में किसी को भी समस्या न आए।

कोट्स

पेमेंट की समस्या को लेकर हम लोडर्स का रेकॉर्ड व सिक्योरिटी रखने जैसी पॉलिसी बनाने की सोच रहे हैं जिस विषय में हम बहुत जल्द मीटिंग करेगें। मीटिंग में यदि सहमति बन पाई तो हम पॉलिसी बनाकर 1 अगस्त तक लागू भी कर सकते हैं। बाकि पॉलिसी बनने से पहले यदि सेब उत्पादक व आढ़तियों को कोई समस्या आती है तो वह हमारे पास आकर लिखित में शिकायत दे सकते हैं। हम एक सप्ताह की अवधि पूरी होने से पहले पेमेंट दिलवाएंगे ताकि हमारी मार्केट में आने वाले छोटे-बड़े किसी भी व्यापारी को कोई समस्या न आए।

विशाल गर्ग, सचिव, पंचकूला मार्केट कमेटी

सीजन के दौरान किसी उत्पादक या लोडर्स को दिक्कत न आए इसके लिए हरियाणा सरकार ने नियम बना रखा है कि कोई पुलिसवाला बिना कारण सेब लेकर आ रहे ट्रक को नहीं रोकेगा। बाकि हमारी तरफ से मंडी में 24 घंटे एक पीसीआर गाड़ी उपलब्ध करवाई गई है ताकि किसी भी व्यक्ति के साथ कोई आपराधिक घटना न घट सके।

अश्विनी चौहान, डायरेक्टर, मार्केट कमेटी

आढ़तियों के चंडीगढ़ से पंचकूला शि ट होने के बाद हरियाणा सरकार को बीते वर्ष 2 करोड़ रुपये के करीब लाभ हुआ है। सीजन 1 अगस्त से अक्तूबर अंत तक चलेगा। अब तो परमाणु और सोलन से भी आढ़ती पंचकूला में आने को तैयार हैं जिनमें से 44 ने अपनी रिजर्वेशन करवा रखी है। बाकि यों के लिए ओपन ऑक्शन करवाई जाएगी जिसमें ऑलओवर इंडिया के आढ़ती भाग लेंगे।

    हरियाणा में अगली सरकार कांग्रेस की, भाजपा की विदाई तय – हुड्डा

 


  •  पेंशन के तीन नोट खरे – एक गुलाबी दो हरे – हुड्डा 

  •  नशा रोकने में सरकार विफल, समाज निभाए दायित्व – हुड्डा


फतेहाबाद : 24 जुलाई

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में चल रही जनक्रांति रथ यात्रा के चौथे चरण में आज तीसरे दिन फतेहाबाद हलके के लोगों पर यात्रा का जादू सिर चढ़ कर बोला I कहीं कांग्रेस का झंडा उठाए मोटर साइकिल सवार युवाओं के जत्थों ने तो किसी गाँव में ट्रैक्टरों के काफिले ने पूर्व मुख्यमंत्री की अगुवाई की तथा यात्रा के रूट पर पड़ने वाले गाँव जहाँ पूर्व निर्धारित कार्यक्रम भी नहीं थे वहां भी उनको रोक कर उनका तगड़ा स्वागत किया गया I हुड्डा को देखने व सुनने के जुनून का आलम यह था कि काफी लेट होने के बावजूद भी भीषण गर्मीं में उनको देखने और सुनने के लिए लोग डटे रहे I बनगांव से पीलीमंदोरी, खाबड़ा कलां, किरढान, बड़ोपल, गोरखपुर, से हुते हुए नहला पहुंची जनक्रांति यात्रा ने फतेहाबाद हल्के में राजनैतिक माहौल को कांग्रेसमय बना दिया I

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी लोगों को जोड़ने और भाजपा तोड़ने में विश्वास रखती है I जबसे केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार बनी है, सत्ताधारी चुनाव पूर्व किए गए वायदों को भूलकर सामाजिक ताने बाने को छिन्नभिन्न करने में लग गए Iपरिणाम यह हुआ कि आज हरियाणा हर वर्ग भाजपा से दुखी और आक्रोशित होकर उससे निजात पाना चाहता है I प्रदेश में भाजपा का सहयोगी  दल इनेलो अपनी कमियों के कारण रसातल की ओर है I उन्होंने कहा कि जनक्रांति यात्रा के चौथे चरण तक लोगों से मिले फीडबैक के आधार पर मैं दावा कर सकता हूँ कि हरियाणा में अगली सरकार कांग्रेस की बनेगी I सरकार बनते ही बुजुर्गों की पेंशन 3000 रूपए मासिक कर दी जाएगी यानि “पेंशन के तीन नोट खरे – एक गुलाबी दो हरे” I

हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस की नई सरकार में आधे दाम में पूरी ब्जिली देगी I शहरों और गांवों का तेजी से विकास किया जाएगा ताकि हरियाणा देश में मोडल स्टेट की गिन्ती में अव्वल हो जैसा 2014 में था I प्रदेश को फिर से अपराध मुक्त किया जाएगा ताकि लोग खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें और कारोबारी अपना काम धंधा सुकून से कर सके I उन्होंने पूर्व सी.पी.एस. प्रहलाद सिंह गिल्लाखेड़ा की मांग पर कहा कि सत्ता में आने पर सेम व बिजली की समस्या का निदान किया जाएगा I उन्होंने जनसमूह को आह्वान किया कि वे नशे के दुष्परिणामों से सचेत रहे I पंजाब जो कभी हरियाणा से अग्रणी राज्य था, अब नशे के कारण हमसे पिछड़ गया है I यूवा अपने उज्जवल भविष्य की सोचें और नशे से दूर रहें तथा समाज भी अपनी जिम्मेवारी समझें क्यूंकि सरकार नशे और नशे के कारोबार को रोकने में पूर्ण रूप से विफल रही है I
वहीँ कल देर सांय फतेहाबाद के जवाहर चौक में उपस्थित शहरवासियों को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने कहा कि इतिहास गवाह कि जवाहर चौक से जब भी बदलाव का बिगुल बजा है वह सफल हुआ है I मुझे ख़ुशी है कि आप भाजपा की वायदा खिलाफी को लेकर जो लड़ाई हमने शुरू की है, उसे सहयोग देने के लिए आप आगे आएं हैं I आपलोगों ने यह भी जांच परख लिया है कि भाजपा उनलोगों पर पहली चोट करती है जो उसपर विश्वास करते हैं I आप देख ही रहें हैं कि नोटबंदी और जी.एस.टी. के कारण काम धंधे चौपट हो गए और बाजार से रौनक गायब है और रही सही कसर इन्स्पेक्ट्री राज ने पूरी कर दी है I कांग्रेस की सरकार बनने पर इन्स्पेक्ट्री राज को पूर्ण रूप से ख़तम कर दिया जाएगा I

जनक्रांति यात्रा में मुख्य रूप से पूर्व विधान सभा स्पीकर व विधायक कुलदीप शर्मा, पूर्व सी.पी.एस. प्रहलाद सिंह गिल्लाखेड़ा, पूर्व मंत्री सरदार परमवीर सिंह, विधायक गीता भुक्कल, विधायक शकुंतला खटक, पूर्व मंत्री रामभज लोधर, प्रो. वीरेंद्र, पूर्व विधायक संत कुमार, पूर्व विधायक भरथ सिंह बेनीवाल, रणधीर सिंह,पूर्व विधायक धरम सिंह छोक्कर, पूर्व विधायक अर्जुन सिंह,एम् एस चोपड़ा, अरविंद शर्मा, गुलबहार एडवोकेट, उषा दहिया, गोपाल चौधरी, आनंत राम, वीरेंद्र नारंग, आनंद्वीर गिल्लाखेड़ा, पृथ्वी सिंह खाबड़ा, धर्मवीर गोयत,धर्मेन्द्र ढुल ,सचिन कुंडू ,सूर्यदेव दहिया,संदीप, अनिल,देवीलाल बनगाँव, कृपा शर्मा,वीर सिंह दलाल,शमशेर सिंह , सुरेंदर कादयान,सुरेश, सत्याबाला मलिक, प्रदीप पुण्डरी ,अमित चुघ, योगेन्द्र योगी,किरण, उनके साथ थेI