शिक्षकों की नियुक्तियों में दिए जाने वाले आरक्षण में विभाग को ‘यूनिट माना जाएगा न कि विश्वविद्यालय को: सर्वोच्च न्यायालय

देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/STs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) के लिए आरक्षित पदों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई. कोर्ट ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में टीचर्स के लिए आरक्षित पदों में कटौती को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों की नियुक्तियों में दिए जाने वाले आरक्षण में विभाग को ‘यूनिट माना जाएगा न कि विश्वविद्यालय को’.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया है, जिसमें शिक्षकों की विश्वविद्यालय स्तर पर नियुक्ति में आरक्षण देने संबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गाइडलाइंस को दरकिनार कर दिया गया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शिक्षकों की नियुक्ति में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण विभागीय-वार लागू होगा, न कि विश्वविद्यालय स्तर पर.

केंद्र सरकार ने सात अप्रैल 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि हाईकोर्ट का आदेश सही नहीं है. सरकार का कहना था कि आरक्षण के लिए विश्वविद्यालय को यूनिट माना जाना चाहिए, न कि विभाग को यूनिट मानना चाहिए. यूजीसी और एचआरडी मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने की गुजारिश की. लेकिन, जस्टिस उदय यू ललित की अध्यक्षता में बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया.

बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को तार्किक करार दिया है. बेंच ने कहा कि एक विश्वविद्यालय में समान योग्यता, वेतनमान और स्थिति के आधार पर पदों के बंटवारा नहीं किया जा सकता. बेंच ने टिप्पणी की, ‘भूगोल के प्रोफेसर के साथ एनाटॉमी के प्रोफेसर के पद की तुलना कैसे की जा सकती है? क्या आप सेब के साथ संतरे को क्लब कर सकते हैं?’

बता दें कि विश्वविद्यालयों में 2006 से आरक्षण का रोस्टर लागू है. इसके तहत विश्वविद्यालय को यूनिट मानकर ओबीसी और एससी-एसटी के लिए आरक्षण लागू किया जाता है. नियम के हिसाब से भर्तियों में 15 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति, 7.5 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए तय है.

History Sheeter with 38 gm heroin arrested

Today a police party of police station Mauli Jagran headed by SI Kehar Singh was on patrolling near Nirankari Satsang Mauli Jagran Chd and apprehanded one person named Deepak s/o Kallu r/o Village Biralsi Distt. Muzaffar UP age 22 yrs and recovered 38 gm. Heroin from his possession. A Case FIR No 20 dated 22.01.2019 u/s 21 NDPS Act has been registered in PS-Mauli Jagran against him.

Accused Deepak is a History-sheeter of Police Station Charthawal Distt. Muzaffar Nagar as ten cases registered against him as confirmed from SHO PS Charthawal. The cases of Arms act, robbery, attempt to murder are registered against him. He will be produced before the court tomorrow.

पीजीटी के उम्मीदवारों की मानसिक पीड़ा को ध्यान में रख कोर्ट में पैरवी की जाये : सर्व कर्मचारी संघ

पंचकूला, 22जनवरी:

सर्वकर्मचारी संघ ने पात्र उम्मीदवारों के भविष्य के लिये आयोग से की अपील। उन्होंने आयोग से अपील करते हुए कहा कि वे पात्र उम्मीदवारों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई स्टे को हटवाये या फिर उम्मीदवारों के हित में अच्छे ढंग से पैरवी करते हुए कोर्ट केस को जल्द से जल्द निपटाने की कोशिश करें।

संघ ने कहा कि यह मामला पी॰जी॰टी॰ इतिहास विषय का है, जिसका साक्षात्कार 15-16 फरवरी 2017 को हो चुका है। आंसर कुंजी में खामियों के कारण भर्ती पर हाईकोर्ट में स्टे लग गया था लेकिन 13 नवंबर 2018 को भर्ती से स्टे हट गया था। कर्मचारी चयन आयोग ने माननीय हाईकोर्ट के निर्देशानुसार 17 नवंबर 2018 को रिजल्ट रिवाईज किया व 26 दिसंबर 2018 को योग्य उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिये बुलाया गया। लेकिन पुनः आंसर की में खामियों को उज्जागर करते हुए कुछ अयोग्य उम्मीदवारों द्वारा हाईकोर्ट से दोबारा स्टे लेकर रिजल्ट पर रोक लगवा दी गई। अतः इस भर्ती को लेकर योग्य उम्मीदवार मानसिक रुप से परेशान हो रहे है।

उन्होंने पी॰जी॰टी॰ इतिहास के चेयरमैन महोदय से विन्रम निवेदन करते हुए कहा कि वे हाईकोर्ट में मजबूत पैरवी करके स्टे हटवाये और जल्द से जल्द अंतिम परिणाम घोषित करें या फिर कोर्ट केस उम्मीदवारों का रिजल्ट रोककर शेष भर्ती को पूरा किया जाये।

आरजेडी के स्वर्णों के कोटा विरोध ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाई

कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है

90 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के बीच बिहार में पिछड़ों के मसीहा के तौर पर लालू यादव का उभार हुआ था. दूसरी तरफ, मंडल के जवाब में कमंडल की राजनीति ने बीजेपी को भी धीरे-धीरे बिहार में अपने-आप को खड़ा करने का मौका दे दिया. लेकिन, इन दोनों के बीच में फंस गई कांग्रेस. बिहार में लालू के उभार ने ही कांग्रेस के अवसान की पटकथा लिख दी थी. लेकिन, मजबूर कांग्रेस सब कुछ जानते हुए भी लालू से तब भी पीछा नहीं छुड़ा पाई और अभी भी जेल में बंद लालू के पीछे-पीछे चलने को मजबूर दिख रही है.

कांग्रेस की रणनीति फेल?

लेकिन, लगभग दो दशक के दौर के बाद अब लालू यादव की पार्टी आरजेडी के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी को कम करने का बीड़ा कांग्रेस ने उठाया था. लालू की गैरहाजिरी में उनके बेटे तेजस्वी यादव को आगे कर कांग्रेस सवर्णों के एक तबके के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि आरजेडी अब वो आरजेडी नहीं रह गई. गंगा में बहुत पानी बह चुका है.

मोदी विरोध के नाम पर बिहार में महागठबंधन बनाने की तैयारी में लगी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा था जिसमें लालू यादव के यादव और मुस्लिम वोट के साथ कांग्रेस सवर्ण तबके के लोगों को भी अपने नाम पर जोड़ने की तैयारी में थी. कांग्रेस में मदनमोहन झा और अखिलेश प्रसाद सिंह सरीखे सवर्ण नेताओं को आगे बढाकर आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह जैसे चेहरों के सहारे कांग्रेस एक बार फिर से सवर्ण तबके को महागठबंधन से जोड़ने की तैयारी कर रही थी.

सूबे में कांग्रेस आरजेडी के बराबर सीट पर लड़ने का दावा कर रही थी. बीजेपी द्वारा एसएसी और एसटी एक्ट पर लिए गए फैसले के खिलाफ सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी को भुनाने का मंसूबा पाल चुकी कांग्रेस बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन कर बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी थी. लेकिन सवर्णों को आरक्षण दिए जाने संबंधी सदन में कवायद जैसे ही शुरू हुई राजनीतिक फिजा प्रदेश में बदलने लगी. खासकर आरजेडी के विरोध के फैसले के बाद आरजेडी के सवर्ण नेता सहित कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक गणित उलझने लगा है.

स्टेट लेवल के एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगड़ी जाति के बीच आरजेडी के रुख को समझ पाना मुश्किल होगा और इससे आगामी लोकसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

लेकिन, सामान्य वर्ग के गरीब तबके को मिलने वाले दस फीसदी आरक्षण वाले विधेयक पर आरजेडी के संसद में विरोध के बाद कांग्रेस की सारी रणनीति फेल होती दिख रही है. झटका आरजेडी के उन सवर्ण नेताओं को भी लगा है जो इस बार सवर्णों के वोट बैंक के सहारे चुनाव में उतरने की तैयारी में थे.

आरजेडी के सवर्ण नेताओं में बेचैनी

आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की तरफ से आया बयान उसी झुंझलाहट और बेचैनी को दिखाता है. आरजेडी के सवर्ण नेता पार्टी के स्टेंड को लेकर उलझन में हैं कि वो लोकसभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं से वोट किस आधार पर मांगेंगे, उन दिग्गज नेताओं में रघुवंश प्रसाद सिंह,जगदानंद सिंह और शिवानंद तिवारी सरीखे नेता शामिल हैं जिन्हें आरजेडी के द्वारा लिया गया सवर्ण आरक्षण विरोधी फैसला असहज करने लगा है. इसलिए आरजेडी द्वारा लिए गए फैसले को चूक बताकर रघुवंश प्रसाद सिंह ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी शुरू कर दी है.

उन्होंने ऐसा वक्तव्य देकर अगड़ी जाति को रिझाने की कोशिश की है. दरअसल रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के सवर्ण चेहरा हैं. वो पांच दफा सांसद चुने जा चुके हैं. उनका चुनाव क्षेत्र वैशाली है जहां राजपूतों की संख्या निर्णायक फैसला कराने का मादा रखती है.

साल 1996 से लेकर 2009 तक लगातार रघुवंश प्रसाद सिंह वहां के सांसद रह चुके हैं. जातिगत समीकरण के तहत यादव और राजपूत जाति का एक साथ गोलबंद होना रघुवंश बाबू को संसद तक पहुंचाता रहा है लेकिन 2014 में रामा सिंह की इंट्री की वजह से एलजेपी और बीजेपी के गठबंधन ने रघुवंश प्रसाद सिंह को छठी बार सांसद बनने से रोक दिया था.

वजह साफ है कि राजपूत और यादव समाज का गठबंधन पिछले चुनाव में मज़बूत नहीं हो पाया था और आरजेडी के सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर अपनाए गए रुख से रघुवंश प्रसाद सिंह सरीखे नेता की राजनीतिक जमीन चौपट हो सकती है. इसके लिए रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से अलग लाइन लेकर मुद्दे को माइल्ड करने की कोशिश की है. ध्यान रहे राजपूत और यादव का गठजोड़ वैशाली के आसपास तीन लोकसभा क्षेत्र में सीधा असर डाल सकता है इसलिए बदली परिस्थितियों में उन्हें एक साथ रख पाना आसान नहीं दिखाई पड़ रहा है. यही हालत कमोबेश कई संसदीय क्षेत्र में है जिनमें मुंगेर, बलिया, बेगूसराय, नवादा, दरभंगा, मुज़्फ्फरपुर, औरंगाबाद की सीटें प्रमुख हैं.

लालू यादव के इशारे पर हुआ था विरोध!

सूत्रों की मानें तो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से सलाह मशविरा करने के बाद ही पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर विरोध करने का फैसला किया था. राज्य सभा में मनोज झा ने बिल का विरोध करते हुए कहा था कि ‘कहानियां हमेशा से काल्पनिक आधार पर गढ़ी जाती रही हैं और उसका वास्तविकता से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता है.’ उन्होंने कहा था कि ‘हम सबने बचपन में पढ़ा है कि एक गरीब ब्राह्मण था लेकिन एक गरीब दलित था , एक गरीब यादव था या एक गरीब कुर्मी था ऐसी कहानी कभी नहीं पढ़ी है.’

ज़ाहिर है मनोज झा ऐसी कहानी सुना कर साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि सवर्ण को गरीब बताया जाना मनगढ़ंत कहानी है और इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है. मनोज झा पार्टी लाइन के हिसाब से सदन में बोल रहे थे और बाहर पार्टी के युवा नेता और लालू प्रसाद के वारिस तेजस्वी यादव सवर्ण आरक्षण के मुद्दे पर आए संविधान संशोधन विधेयक का विरोध यह कहते हुए कर रहे थे कि यह आरक्षण दलित,पिछड़े और आदिवासी को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने की एक साजिश है. इतना ही नहीं तेजस्वी यादव ने विरोध करते हुए यह भी कहा था कि 15 फीसदी आबादी को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की कोशिश हो रही है तो 52 फीसदी ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए.

तेजस्वी पिता लालू प्रसाद से गंभीर मंत्रणा के बाद ही ऐसी लाइन ले रहे थे. उन्हें मालूम था कि ऐसी पार्टी लाइन आरजेडी को सूट करती है और वो मोदी सरकार द्वारा लाए गए सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा राजनीति करने में ठीक वैसे ही कामयाब होंगे जैसे उनके पिता लालू प्रसाद 90 के दशक में मंडल कमीशन लागू किए जाने के बाद सत्ता के शिखर तक पहुंचे थे.

अगड़ा बनाम पिछड़ा की रणनीति कितनी कारगर?

बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति के दम पर लालू प्रसाद की राजनीति खूब चमकती रही है. इसकी वजह यह है कि अगड़ी जाति में जो चार जाति आती हैं, उनमें ब्राह्मण की आबादी 5.7 फीसदी है वहीं कायस्थ 1.5 फीसदी, भूमिहार 4.7 फीसदी और राजपूत 5.2 फीसदी हैं. आरजेडी अगड़ों के खिलाफ अतिपिछड़ा 21.7 फीसदी, यादव 14.4 फीसदी, बनिया 7.1 फीसदी, कुर्मी 3 और कोईरी 4 फीसदी को गोलबंद कर बिहार में अपनी राजनीति चमकाने की फिराक में है.

ये भी पढ़ें: 10 फीसदी कोटा: मोदी सरकार ने 8 लाख की आमदनी वाले को गरीब क्यों माना

लेकिन 90 के दशक की राजनीति का वो तरीका अब कारगर हो पाएगा उसकी उम्मीद कम ही दिखाई पड़ती है. मंडल कमीशन के दौर की राजनीति के बाद बिहार में तमाम दलों के नेतृत्वकर्ता पिछड़े और अति पिछड़े समाज से ही आते हैं, इसलिए आरजेडी की राजनीति से ज्यादा राजनीतिक लाभ मिल पाएगा ऐसा प्रतीत होता नजर नहीं आता है. प्रदेश में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति फिर से शुरू हो सके इसकी गुंजाइश नहीं दिखाई पड़ती है.

यही वजह है कि महागठबंधन के घटक दलों में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर आरजेडी के विरोध के बाद असहज स्थिति पैदा होने लगी है. आरजेडी के सवर्ण नेता भले ही डैमेज कंट्रोल करने में लगे हों लेकिन कांग्रेस के भीतर भी आरजेडी के स्टैंड को लेकर मायूसी है. कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है.

राम मंदिर मुद्दे पर कांग्रेस का साथ दे सकती है वीएचपी

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष (कार्याध्यक्ष) आलोक कुमार ने कहा यदि कांग्रेस हमारे लिए अपने दरवाजे खोलती है और अपने चुनावी घोषणा पत्र में राममंदिर निर्माण को शामिल करती है तो हम विचार करेंगे

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष (कार्याध्यक्ष) आलोक कुमार ने राम मंदिर निर्माण के लिए कानून न बनाने पर बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया है. उन्होंने कहा, ‘हमें लगता था कि सरकार कानून बनाएगी. हमने आग्रह भी किया था और सरकार को कानून लाना भी चाहिए था. लेकिन अब लगता है कि सरकार कानून नहीं लाएगी. कम से कम इस कार्यकाल में तो नहीं लाएगी. इसलिए हम दूसरे विकल्पों के साथ संतों के सामने इस मामले को रखेंगे. 1 फरवरी को धर्म संसद में अब संत ही तय करेंगे कि हमें क्या करना है?’

कांग्रेस के साथ जाने पर क्या बोली VHP?

कुंभ मेला शिविर में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदुत्व और राममंदिर को लेकर जो भी सकारात्मक संकेत देगा, हम उसके साथ जा सकते हैं. वहीं एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विकल्प तो कई हो सकते हैं. यह पूछने पर कि क्या कांग्रेस के साथ भी जा सकते हैं तो उन्होंने कहा कि पहले वे अपने दरवाजे तो हमारे लिए खोले. कांग्रेस ने तो अपने दरवाजे हमारे लिए बंद कर रखे हैं. कांग्रेस के साथ जाने के लिए पहले कांग्रेस सेवा दल से जुड़ना होता है. यदि कांग्रेस हमारे लिए अपने दरवाजे खोलती है और अपने चुनावी घोषणा पत्र में राममंदिर निर्माण को शामिल करती है तो हम विचार करेंगे.

हालांकि उन्होंने कांग्रेस पर राममंदिर मुद्दे को कोर्ट में लटकाने का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं (जो वकील भी हैं) ने पूरा प्रयास किया कि यह मामला और लटके. सीजेआई पर दबाव बनाया गया. उनके खिलाफ महाभियोग की नोटिस दी गई. यह पूछे जाने पर कि क्या फिर चुनाव में वह बीजेपी को ही सपोर्ट करेंगे.

आलोक कुमार ने कहा कि यह संत ही तय करेंगे. हम तो पूरी स्थिति उनके सामने रखेंगे. हालांकि फिलहाल हिंदुत्व और राममंदिर के बारे में बीजेपी के अलावा कोई दूसरी पार्टी सोचने वाली तो नहीं दिख रही.

मीडिया के पूछे जाने पर कि क्या दोबारा बीजेपी की सरकार बनने पर वह बीजेपी पर राममंदिर के लिए दबाव बनाएंगे? उन्होंने कहा कि हम फिर उनसे आग्रह करेंगे. जनमत चाहता है कि राममंदिर बने. हमें उम्मीद है कि 2025 तक राममंदिर जरूर बन जाएगा. हालांकि यह नहीं बताया कि शुरू कब होगा.

Misa Bharti: इस केंद्रीय मंत्री का गंडासे से हाथ काटनी चाहती थी लालू यादव की बेटी मीसा भारती

2014 के लोकसभा चुनाव में रामकृपाल यादव ने राजद से बगावत कर बीजेपी के टिकट पर राजद की मीसा भारती के खिलाफ पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत गये थे.

नई दिल्ली:बिहार की सियासत में इन दिनों बयानबाजी की बयार सी बह रही है. हर कोई अपने प्रतिद्वंदी पर वार करने का एक भी मौका छोड़ना नहीं चाह रहा है. इसी क्रम में आरजेडी से राज्यसभा सांसद और लालू यादव की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती ने पटना के बिक्रम में हो रहे कर्यक्रम में केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव पर आपत्तिजनक बयान दिया है.

बिक्रम में आरजेडी के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान मीसा भारती ने रामकृपाल यादव के हाथ काटने की बात कह डाली. उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले तक रामकृपाल यादव का वो बहुत सम्मान करती थीं, लेकिन ये सम्मान तब खत्म हो गया, जब उन्होंने सुशील कुमार मोदी के साथ हाथ मिला लिए. उन्होंने विवादित बयान देते हुए कहा कि जिस दिन वो सुशील मोदी की किताब लेकर वह हाथ में खड़े थे, उस दिन मेरी अंदर से इच्छा हुई कि उसी कुटी काटने वाले गडासे से उसका हाथ काट दें.   

मीसा भारती ने राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं को नसीहत देते हुए कहा कि राजद के कोई भी संभावित उम्मीदवार अपनी दावेदारी पर खुलकर बात न करें. सीटों पर अभी फाइनल फैसला आना बाकी है. कोई भी निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव हीं लेंगे इसलिए कार्यकर्ता क्षेत्र में अपना काम करते रहें. 

आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में रामकृपाल यादव ने राजद से बगावत कर बीजेपी के टिकट पर राजद की मीसा भारती के खिलाफ पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत गये थे. 2014 की हार पर मीसा भारती ने कहा कि मैं तब हार गई थी, क्योंकि अचानक रामकृपाल यादव पलटी मार गये थे और कुछ अपने लोग भी नाराज थे.

क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों की बिसात है ममता की महारैली

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.” : टीएमसी
भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी गेगोंग अपांग और शत्रुघ्न सिन्हा भी शिरकत करेंगे

कोलकाता: उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ बने समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन के बाद कोलकाता में शनिवार को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की महारैली होने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. यह रैली यहां ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में होगी. हालांकि, विपक्ष के कई नेता इस रैली में नजर नहीं आएंगे.  

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रैली में भाग लेंगे जबकि बसपा की ओर से पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा के शिरकत करने की संभावना है. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती खुद इस रैली में हिस्सा नहीं लेंगी. आरएलडी के अजीत सिंह और जयंत चौधरी भी मौजूद रहेंगे. वहीं, रैली में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे करेंगे. 

उत्तर प्रदेश में नया चुनावी समीकरण बनाने वाली सपा और बसपा सहित सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों की इस रैली में मौजूदगी काफी मायने रखती है. वहीं, कांग्रेस को भी यह लगता है कि विपक्ष की महारैली से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण के बारे में गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. रैली का आयोजन कर रही तृणमूल कांग्रेस ने कहा, “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.”

इस रैली में जिन अन्य नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है, उनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं. इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के भी शामिल होने की उम्मीद है. कांग्रेस से खड़गे और पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी रैली में भाग लेंगे. 

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ – साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी मंच पर नजर आएंगे. मंगलवार को भाजपा छोड़ने वाले अरूणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग भी रैली में शामिल होंगे. 

WJI ने दिल्ली में अपना मांग पत्र PMO को सौंपा

महाधरना के बाद WJI ने‌  देश की मीडियाकर्मियों की 28 मांगों का ज्ञापन PMO को सौंपा

WJI ने अपने सदस्यों को 3 लाख का दुर्घटना बीमा  देने की घोषणा की

नई दिल्ली /  वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने 16 जनवरी अपने स्थापना दिवस के अवसर पर  मीडिया महा धरना का आयोजन किया।

पिछले कुछ समय से पत्रकारों की मांगो को लेकर वर्किंग जर्नलिस्ट आफ इंडिया सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ काफी सक्रिय रहा है।

देश में पत्रकारों का शीर्ष संगठन है। यह  संगठन पत्रकारों के कल्याणार्थ समय समय पर रचनात्मक और प्ररेणादायक कार्यक्रम और आंदोलन चलाता रहा है।इसको देश के विभिन्न राज्यों से आये पत्रकार संगठन समर्थन दे रहे है।

वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी और राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र भंडारी ने

आज के महाधरना में पत्रकार एकजुटता का दृश्य देखने को मिला।देश के 12 राज्यों के पत्रकार और कई पत्रकार संगठन धरना में आकर सरकारों के प्रति आक्रोश व्यक्ति किया।पत्रकारों का खाना था केंद्र सरकार तो नया मीडिया आयोग बना रही है और न ही ऑनलाइन मीडिया को मंदिर का दे रही है जबकि पूरे देश में मीडिया कर्मी देश को मजबूत बनाने का काम करते हैं। महा धरना के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी के नेतृत्व में WJI  प्रतिनिधिमंडल pmo पहुंचा और वहां पर पत्रकारों की 28 मांगो का ज्ञापन सौंपा गया।

आज  WJI ने अपने स्थापना दिवस पर अपने सदस्य पत्रकारों के हित में 3 लाख दुर्घटना बीमा की घोषणा की।

माहौल उस समय बहुत ही उत्साहवर्धक हो गया जब भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमार,  संगठन महामंत्री अनीश मिश्रा और संगठन मंत्री ब्रजेश कुमार धरना स्थल पहुंचे। उन्होंने पत्रकारों की मांगों का समर्थन दिया।

वर्किंग जर्नलिस्ट आफ India  WJI प्रवक्ता उदय मन्ना ने बताया कि पत्रकारों में जो आक्रोश भरा वो कोई भी दिशा ले सकता है। मीडियाकर्मी RJS स्टार सुरेंद्र आनंद के गीत ने माहौल में जोश भर दिया।

 वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों द्वारा तैयार मांग पत्र जिसमे सरकार से मांग हैः-

वर्तमान समय की मांगों पर ध्यान में रखते हुए वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में संशोधन किया जाये।

कार्यकारी पत्रकार अधिनियम में इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब मीडिया, ई-मीडिया और अन्य सभी मीड़िया को

अपने अधिकार क्षेत्र में लाया जाये।

भारत की प्रेस काउंसिल के स्थान पर मीडिया काउंसिल बनाई जाये। जिससे पीसीआई के दायरे और

क्षेत्राधिकार को बढ़ाया जाये।

भारत के सभी पत्रकारों को भारत सरकार के साथ पंजीकृत किया जाये और वास्तविक मीड़िया

पहचान पत्र जारी किया जायें।

जिन अखबारों ने वेज कार्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया उन पर सरकारी विज्ञापन देने पर

कोई अनुशासत्मक प्रतिबंध हो।

केन्द्र सरकार लघु व मध्यम समाचार पत्रों को ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन जारी करने के अपने

नियमों को जल्द से जल्द परिवर्तित करे।

देश में पत्रकार सुरक्षा कानून तैयार किया जाये।

तहसील और जिला स्तर के संवाददाताओं एवं मीडिया व्यक्तियों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाईन

सेवायें उपलब्ध कराई जायें।

भारत में सभी मीड़िया संस्थानों को वेज बोर्ड की सिफारिशों को सख्ती से लागू करवाने के नियम बनाये जाये।

ड्यूटी के दौरान अथवा किसी मिशन पर काम करते हुये पत्रकार एवं मीडियाकर्मी की मृत्यु होने पर उसके परिजन को 15 लाख का मुआवजा और परिजनों को नौकरी दी जाये।

सभी पत्रकारों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन की सुविधा ओर सेवानिवृति की उम्र 64 वर्ष की जाये।

सभी पत्रकारों को राज्य एवं केन्द्र सरकारों की तरफ से चिकित्सा सुविधा और बीमा सुविधा दी जाये।

पत्रकारिता नौकरियों में अनुबंध प्रणाली का उन्मूलन किया जाये।

कैमरामैन समेत सभी पत्रकारों को सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने के लिए कोई पांबदी नहीं होनी चाहिए।

बेहतर पारस्परिक सहयोग के लिए जिला स्तर पुलिस-पत्रकार समितियां गठित की जाये।

 शुरूआती चरणों में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा पत्रकारों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा की जाये

और पत्रकारों से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाये।

मीड़िया व्यक्तियों को देश भर में उनकी संस्थान के पहचान पत्र के आधार पर सड़क टोल पर भुगतान

करने से मुक्त किया जाये।

पत्रकारों को बस और रेल किराये में कुछ रियायत प्रदान की जाये।

केन्द्रों और राज्य सरकारें PIB-DIP पत्रकारों की मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया को एकरूपता व सरल बनायें।

समाचार पत्रों से GST खत्म की जाए।

विदेशी मीडिया के लिए भारतीय मीडिया संस्थानों में विनिवेश की अनुमति ना दी जाये।

आनलाईन मीडिया को मान्यता दी जाये उन्हें सरकारी विज्ञापन दिये जायें व उनका सरकारी एक्रीडेशन किया जाये।

केन्द्र सरकार अविलम्ब नये मीडिया आयोग का गठन करें।

संविधान में मीडिया को चौथे स्तम्भ के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया जाये।

महिला पत्रकारों के लिए होस्टल बनाये जायें।

पत्रकारों की रिहायश के लिए सस्ती दरों पर भूखंड आबंटित किये जायें। अलग-अलग राज्यों से पत्रकार और WJI पदाधिकारी भी उपस्थित रहे और संबोधन दिया।

हरियाणा

भूपिंदर सिंह

धर्मेंद्र यादव

अमित चौधरी

राजिंदर सिंह

मोहन सिंह

राज कुमार भाटिया

उत्तर खंड

सुनील गुप्ता  महा सचिव उत्तरखंड  व कार्यकारिणी सदस्य

लखनऊ

पवन श्रीवास्तव अध्यक्ष उत्तर प्रदेश व कार्यकारिणी

विशेष

Mr अशोक मालिक – राष्ट्रीय अध्यक्ष

नेशनल यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट

मनोहर सिंह अध्यक्ष

दिल्ली पत्रकार संघ

संजय राठी अध्यक्ष

हरियाणा यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट

चंडीगढ़ से नेशनल मीडिया कन्फेडरेशन के उपाध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा,

राष्ट्रीय मीडिया फाउंडेशन मध्यप्रदेश के अध्यक्ष आशीष पाण्डेय,

दिल्ली एनसीआर की टीम आरजेएस मीडिया

इसके अलावा WJI की‌ राष्ट्रीय कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय,संजय सक्सेना

कोषाध्यक्ष अंजलि भाटिया,

सचिव अर्जुन जैन,विपिन चौहान आदि ने महाधरना को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आशा है पत्रकारों के संगठनों की एकजुटता का प्रयास सरकार का ध्यान आकर्षित करेगा।

80 के 80 पर लड़ेगी कांग्रेस

  • सपा-बसपा के गठबंधन को लेकर आजाद ने कहा- हमने गठबंधन नहीं तोड़ा, हम सबसे बात करने के लिए तैयार थे
  • उन्होंने कहा- 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उप्र में नम्बर 1 पार्टी बनी थी, इस बार दोगुनी सीटें जीतेंगे
  • राहुल गांधी ने शनिवार को कहा था- हम यूपी में पूरे दम से लड़ेंगे
  • माया अखिलेश तो वैसे भी अमेठी रायबरेली में चुनाव नहीं लड़ते, उनका सीट छोडना न छोडना एक बराबर है।
  • कांग्रेस 80 सीटों पर इस लिए लड़ रही है क्योंकि अखिलेश माया का पता ही नहीं कि वह चुनाव लड़ भी रहे हैं कि नहीं।

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में शामिल न होने के बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है. रविवार को पार्टी प्रदेश मुख्यालय पर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद, प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर समेत प्रदेश के शीर्ष नेताओं ने बैठक की. इस दौरान गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरी शक्ति से अपनी विचारधारा का पालन करते हुए यह चुनाव लोकसभा लड़ेंगे और भारतीय जनता पार्टी को पराजित करेंगे. हम उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. हमारी तैयारी पूरी है. नतीजे चौंकाने वाले होंगे.

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया जानती है कि संसद की लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. हम उन दलों का समर्थन जरूर लेंगे जो हमारी मदद करेंगे. इस लड़ाई में हम उन तमाम दलों का सम्मान करते हैं जो इस लड़ाई में आगे बढ़ेंगे. बीजेपी और कांग्रेस के बीच सिद्धांतों की लड़ाई है. यह कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है यह भारत को एक रखने की लड़ाई है. देश मजबूत तब होगा जब सरकार पर सभी समुदाय, सभी वर्गों का विश्वास और भरोसा हो. पार्टी वह होती है जो अपनी पार्टी का नुकसान झेल ले, लेकिन राष्ट्र का नुकसान ना झेले.

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के इतिहास को बताते हुए कहा कि लोगों ने कुर्बानियां देकर भारत को स्वतंत्र कराया है. आजादी के बाद पहली कांग्रेस सरकार ने सबसे पहला काम सैकड़ों टुकड़ों में बंटे देश को इकट्ठा करके भारत बनाने का किया. पंडित नेहरू की सरकार ने संविधान बनाया और सभी धर्मों को बराबर अधिकार दिए. उन्होंने कहा कि हमने आजादी से पहले भी किसानों, दलितों, गरीबों, महिलाओं के लिए काम किया और आजादी के बाद भी हमने उन्हें बुनियादी सुविधाओं के साथ सामाजिक अधिकार दिया.

सवाल: मायावती ने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करना बेकार है?
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हर आदमी का अपना विचार होता है और मैं किसी का विचार नहीं बदल सकता हूं। यह बात हमारे संविधान में भी है कि हर आदमी को विचार रखने की छूट है। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी का इतिहास रहा है और अगर किसी की पार्टी का है तो वह भी बताएं। वह बताएं कि वर्ष 85 से उनकी पार्टी कहां थी और उनका क्या योगदान है।

सवाल: क्या शिवपाल और अजित सिंह के साथ गठबंधन करेंगे?
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हमारी पार्टी तीन-चार सालों से कह रही है बीजेपी को हराने के लिए जो दल हमारे साथ आना चाहता है उसका स्वागत है। उन्होंने कहा कि कोई पार्टी गठबंधन में आना चाहती है तो उसका स्वागत है। एलान के बाद पार्टियां खुद से आती है और ये बातें मीडिया से नहीं होती है। 

सवाल: क्या माया और अखिलेश चुनाव लड़ेंगे तो कांग्रेस उम्मीदवार उतारेगी? 
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि रायबरेली औँर अमेठी में सपा-बसपा वैसे भी उम्मीदवार नहीं उतारती है। उन्होंने कहा कि अभी तो यह भी नहीं पता है कि मायावती और अखिलेश यादव लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे या नहीं। 

सवाल: आपको तीसरे मोर्चो की संभवाना लगती है और ऐसा हुआ तो प्रधानमंत्री कौन होगा?
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पहले बीजेपी चुनाव हार जाए फिर दखेंगे। उन्होंने कहा कि अगर कोई चेहरा प्रधानमंत्री के समकक्ष होगा तो फिर देखेंगे।

सवाल: मायावती ने कहा है कि अगर EVM पर सवाल उठे तो आंदोलन करेंगे? इसमें आपका क्या स्टैंड है?
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम कई साल कह रहे हैं और ईवीएम में शिकायतें मिल रही है। हम शिकायत लेकर चुनाव आयोग के पास भी गए। हमारी तो मांग है कि 30 प्रतिशत चुनाव बैलेट पेपर से होने चाहिए।

भाजपा पर किसानों का उत्थान न करने का आरोप लगाते हुए गुलाम नबी आजाद ने कहा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने जो वादे किए थे, वह हमने पूरे किए. कर्नाटक, पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किसानों का कर्ज माफ किया.

एक बात तो तय है कि सभी दल पूरे दम खम से अपनी अपनी लड़ाई लड़ेंगे लेकिन ज्यों ही नतीजे आएंगे तो यही एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले चुनाव पश्चात गठबंधन बना लेंगे। यही इनकी सच्चाई है ओर यही इनकी नीयति

3.5 करोड़ की कमाई के साथ द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ने की अछि शुरुआत

नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर और अक्षय खन्ना की फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ शुक्रवार (11 जनवरी) को सिनेमाघरों में रिलीज हो हुई. सच्‍ची घटना पर आधारित इस फिल्‍म को दर्शकों ने काफी पसंद किया है और यही वजह है कि इस ने पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर हंगामा मचा दिया है. यह फिल्म भारतीय नीति विश्लेषक संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, द मेकिंग एंड एनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ पर आधारित है. उन्होंने इसे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन में हुई घटनाओं के आधार पर लिखा था. संजय बारू उनके मीडिया सलाहकार भी रहे हैं. हंसल मेहता ने इस किताब पर फिल्म बनाई है और डायरेक्शन विजय रत्नाकर गुट्टे ने किया है

बॉक्स ऑफिस इंडिया के अनुसार इस फिल्म ने अपने रिलीज के पहले दिन लगभग 3.5 करोड़ रुपये की कमाई करने में सफलता हासिल की है. गौरतलब है कि अपने ट्रेलर के रिलीज के बाद से ही यह फिल्म विवादों में घिर चुकी थी. फिल्म को लेकर कई नेताओं के बयान भी सामने आए थे. यहां तक कि ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के ट्रेलर पर प्रतिबंध लगाने की याचिका भी दिल्ली हाइकोर्ट में दायर की गई थी, जिसे बाद में कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की कहानी की बात की जाए तो यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गांधी परिवार के बीच रिश्तों पर आधारित है या यह कह लें कि यह फिल्म न्यूक्लियर डील को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गांधी परिवार के बीच जो विवाद थे उसी पर आधारित है. राजनीति में दिलचस्प रखने वालों लोगों के लिए ये एक जबरदस्त फिल्म है, लेकिन राजनीति से दूर रहने वालों को शायद ही यह फिल्म ज्यादा समक्ष में आए.

फिल्म में अभिनय की बात की जाए, तो सभी किरदारों ने जबरदस्त भूमिका निभाई है. डॉ. मनमोहन सिंह की भूमिका में अनुपम खेर और सोनिया गांधी की भूमिका में सुजैन बर्नर्ट के अलावा संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना ने तो मानो फिल्म में जान फूंक दी हो. फिल्म में अक्षय खन्ना संजय बारू के किरदार में है, जो मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे. फिल्म में अक्षय आपको स्टोरी सुनाते नजर आएंगे. अक्षय खन्ना का किरदार फिल्म की जान है.