देवतुल्य शिक्षक सत्यनारायण जी बोहरा की जन्मशती:हजारों लोगों का जीवन बनाया
करणी दान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ :
सत्यनारायण जी आज संसार में नहीं है लेकिन उनकी शिक्षा से जो लोग उन्नति की ओर अग्रसर हुए वे आज वृद्धावस्था में जीवन यापन करते हुए भी अपने देवतुल्य गुरू सत्यनारायण जी बोहरा को याद करते हैं।
सत्यनारायण जी बोहरा एक साधारण अध्यापक होते हुए भी जो कार्य शिक्षा दीक्षा का कर रहे थे वह किताबों में नहीं हो सकता था। उसके लिए संसार की गतिविधियों से समय और काल के हिसाब से जुड़ना होता है। उनकी शिक्षा में सामाजिकता और धार्मिकता भी भरी हुई थी।
सत्यनारायण जी बोहरा का जन्म 29 नवंबर 1922 को हुआ। अध्यापन से सेवानिवृत्ति 31 अगस्त 1983 को हुई। उनका संसार से गमन 6 फरवरी 2002 को हुआ। यह सन् 2022 का वर्ष उनका जन्मशती वर्ष है।
उनका शिक्षा क्षेत्र खरलिया लिखमीसर जैतसर ढाबा झालार प्रमुख क्षेत्र रहे हैं। ये क्षेत्र ठेठ ग्रामीण हैं। इन स्थानों के लोग जिन्होंने बोहरा जी से शिक्षा ग्रहण की थी,आज राजस्थान में और भारत में विभिन्न स्थानों पर भी बस गए हैं। राजकीय सेवाओं में पहुंचे सेवानिवृत्त हो गए हैं। बहुत से राजनीतिक क्षेत्र में चले गए।
हजारों लोग जो खेती और किसानी कर रहे हैं वे भी सुख और शांति से संपन्न होते हुए सत्यनारायण जी बोहरा को बहुत महान और भला व्यक्ति बताते हैं।
राजनीति क्षेत्र में वरिष्ठ वकील जो इस समय 82 वर्ष के करीब हैं,सरदार हरचंद सिंह जी सिद्धू जो दो बार विधायक रहे हैं। वे बोहरा जी का नाम आते ही उनकी सीखों का बखान करने लगते हैं। सिद्धु जी बताते हैं कि सही रूप से शांति और संयम से रहने वाले बोहरा जी ने जो शिक्षा दी वह महान थी जिसके कारण भी निरंतर आगे बढ़ते रहे।
महान देवतुल्य सत्यनारायण जी बोहरा का भरपूर स्नेह मुझ करणीदानसिंह राजपूत को भी मिला। उनका आशीर्वाद रूप हाथ मेरे सिर पर रहा। बोहरा जी मेरे पिताजी रतन सिंह जी को ‘भाई जी’कहकर बड़े आदर से बुलाया करते थे। मेरे से पूछा भी करते थे भाई जी के क्या हाल है?
पिताजी के स्वर्गवास सन् 1993 के बाद मेरी माता जी का हाल पूछने और आशीर्वाद लेने आते रहे।यह एक प्रकार का पारिवारिक जुड़ाव रहा।
मैं पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में कितना भी प्रसिद्धि प्राप्त रहा हूं लेकिन बोहरा जी के आध्यात्मिक लेखन पर मैं भी सिर झुकाता हुआ उन्हें नमन करता हूं।
मेरे निजी विचार हैं कि ऐसे व्यक्ति संसार में बहुत कम आते हैं और अपने कर्म की छाप धरती पर छोड़ जाते हैं।उस छाप से उनके जीवन से शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। सत्यनारायण जी को सामने देखते ही बीस पच्चीस फुट दूर से ही मेरे हाथ उठ जाते थे नमस्कार के लिए।
मेरा और उनका मिलना जुलना सालों तक रहा है। मैं पहले बता चुका हूं कि वे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन को मानने वाले थे और यह जीवन ऐसा था जिसकी समीक्षा या वर्णन करते हुए लिखना चाहूं तो शब्द नहीं मिल सकते। ऐसा मेरा मानना है कि वे एक महान आत्मा देवतुल्य थे।
करीब 20 वर्ष पहले बोहरा जी ने मेरे को एक बहुत बड़े धर्म संकट में डाल दिया था। बोहरा जी गायत्री मंत्र पर लिखा हुआ एक लेख लेकर आए थे। उन्होंने मुझे कहा कि इस लेख का संपादन करना है। मैं आश्चर्य से चकित और उनके आगे हाथ जोड़ करके खड़ा हो गया था।मेरे लिए परीक्षा की घड़ी थी। मैंने कहा आपके लिखे हुए लेख का संपादन करना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। आपके लिखे हुए लेख में एक एक शब्द अच्छी व्याख्या लिए हुए हैं। मैं उनमें संपादन नहीं कर सकता।
आप संपादन कराना ही चाहे तो किसी अच्छे शिक्षा प्राप्त व्यक्ति से उच्च शिक्षित से करवाएं। लेकिन बोहरा जी ने कहा कि मुझे किसी उच्च शिक्षित की जरूरत नहीं है,मुझे यह लेख केवल करणी दान सिंह से ही संपादित करवाना है।
मैं बोहरा जी के आगे बोल ही नहीं पाया। मैंने हाथ जोड़ दिए के यदि आपकी यही इच्छा है तो मैं आपसे संपादन करने से पहले ही क्षमा मांगते हुए यह कार्य कर दूंगा।
मैंने वह लेख संपादन करने से पहले गायत्री मंत्र से संबंधित आठ दस पुस्तकें लेख आदि पढे और उसके बाद मैंने बोहरा जी की इच्छा को पूरा किया। मुझे मालूम नहीं की मेरे संपादन में उस लेख में क्या कुछ हुआ था लेकिन बोहरा जी को मेरा कार्य पसंद आया। उन्होंने मुझे आशीर्वाद प्रदान किया हालांकि उनका आशीर्वाद उनका हाथ मेरे सिर पर रहा लेकिन गायत्री मंत्र की लेख का संपादन करने के बाद में बोहराक्षजी का आशीर्वाद मिला उससे मुझे बहुत बड़ी शक्ति प्राप्त हुई। ऐसा मेरा मानना है। गायत्री मंत्र शक्ति का अथाह भंडार है। मैं वर्षों से गायत्री मंत्र का उच्चारण करता हुआ शक्ति प्राप्त कर रहा हूं।
मैं 1978 वर्ष की उम्र में प्रवेश कर चुका हूं और मेरा यह मानना है कि ऐसी महान विभूतियों के कारण जो आशीर्वाद मुझे मिला। मैं सच में ऐसे आशीर्वादों से ही आगे बढ़ता रहा।
सत्यनारायण जी बोहरा ने जन सामान्य को शिक्षित कर बहुत ऊंचे पदों पर पहुंचाया।
उन्होंने अपने पुत्रों को भी सर्वश्रेष्ठ शिक्षा देने में कोई कमी नहीं रखी। उनके पुत्र बसंत कुमार बोहरा जी स्वायत शासन विभाग नगरपालिका से सेवानिवृत्त हुए। आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तब समाज सेवा के लिए बसंत कुमार जी बोहरा नगर पालिका सूरतगढ़ के पार्षद पद पर है उनसे भेंट होती रहती है। सामाजिक कार्य में भी आगे हैं। इनके दूसरे पुत्र विजय सिंह बोहरा भारतीय वन सेवा से ऊंचे पद से सेवानिवृत्त हुए हैं और जयपुर में निवास करते हैं। तीसरे छोटे पुत्र के.के.बोहरा ( कृष्ण कुमार बोहरा) आकाशवाणी में लगे और दूरदर्शन से प्रसारण अधिकारी के उच्च पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
के.के.बोहरा भी जयपुर में निवास कर रहे हैं। आज भी वेअनेक प्रसारण से संबंधित कार्यों में जुड़े हैं। मेरा यह मानना है कि इन तीनों में अपने पिता की आत्मा बसती है। तीनों ही अपने मधुर व्यवहार के कारण लोकप्रिय हैं।
मैं फिर एक बार सत्यनारायण जी बोहरा जी को देवतुल्य बताते हुए उनके एक और लेख का छायाचित्र आपके सामने प्रस्तुत करता हूं। मेरे रिकॉर्ड में यह लेख 20 साल से अधिक समय से है सुरक्षित है।
‘ओउम ध्वनि के चमत्कार’ शीर्षक वाला यह लेख हस्त लिपि में है। इसे पढ़कर आप आनंद ले सकते हैं और महसूस कर सकते हैं कि सत्यनारायण जी बोहरा में आध्यात्मिक गुण और कितनी शक्तिशाली रही।