सिख रेफेरेंडुम 2020 पंजाब राजनीती का फीफा

 

अलग पंजाबी राष्ट्र बनाने के अलगाववादी रेफरेंडम-2020 का समर्थन करने पर आप विधायक सुखपाल सिंह खैरा चौतरफा हमलों में घिर गए हैं। शनिवार को सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा कई कांग्रेस विधायकों ने सुखपाल खैरा की कड़ी आलोचना करते हुए आप संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी निशाना साधा और खैरा को पार्टी से बर्खास्त करने की मांग की।

उधर, सुखपाल खैरा ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा कि वे रेफरेंडम के हिमायती नहीं हैं लेकिन लगातार हो रहे भेदभाव के कारण सिख अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी पंजाब ने रेफरेंडम-2020 पर खैरा के बयानों को उनकी निजी राय बताते हुए न सिर्फ पल्ला झाड़ लिया बल्कि यह भी संकेत दिए कि पार्टी इस मुद्दे पर सुखपाल खैरा से स्पष्टीकरण मांगेगी।

क्योंकि आप किसी भी अलगाववादी और देश विरोधी मुहिम का समर्थन नहीं करती। शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का समर्थन करने पर सुखपाल खैरा के खिलाफ तुरंत मामला दर्ज करने की मांग की है।

 

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गर्मख्यालियों द्वारा पेश की गई अलगाववादी सिख रेफरेंडम-2020 का समर्थन करने के लिए खैरा की कड़ी आलोचना की। शनिवार को जारी एक बयान में मुख्यमंत्री ने खैरा के इस बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि नेता विपक्ष पंजाब के इतिहास के बारे में समझ रखने के बिना इस तरह की विलक्षण और नाटकीय सियासत में लिप्त हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि खैरा अपने इस बयान या कार्रवाई के संभावित नतीजों को महसूस नहीं कर रहे। कैप्टन ने कहा कि पंजाब और यहां के लोगों ने अलगाववादी लहर के कारण कई साल तक गहरा संताप झेला है और खैरा इससे पूरी तरह अनजान लगते हैं। उन्होंने कहा कि खैरा को यह अनुमान नहीं है कि उनका बयान सूबे के लिए क्या खतरा पैदा कर सकता है।

मुख्यमंत्री ने खैरा के उस दावे को कोरा पाखंड करार दिया जिसमें खैरा ने कहा था कि वे इस रेफरेंडम का समर्थन करते हुए भारत की अखंडता के हक में खड़े हैं। कैप्टन ने खैरा द्वारा दोनों दिशाओं में लगाई दौड़ को एक विलक्षण केस बताया। उन्होंने कहा कि विवादपूर्ण रेफरेंडम का समर्थन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति स्पष्ट तौर पर भारत की सद्भावना को ठेस पहुंचा रहा है और वे किसी हालत में देश की एकता का समर्थक नहीं हो सकता।

 

 

सिखों के अलग राज्य की मांग संबंधी रेफरेंडम-2020 का समर्थन करने संबंधी खबरों का खंडन करते हुए नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा ने कहा है कि भले ही उन्होंने कभी इसका समर्थन नहीं किया लेकिन वे यह स्वीकार करने से नहीं झिझकते कि यह बंटवारे के बाद की केंद्र सरकारों के सिखों के प्रति पक्षपात और सौतेले व्यवहार का ही नतीजा है।

शनिवार को जारी एक बयान में खैरा ने कहा कि यह सिखों और पंजाबियों की महान कुर्बानियों का ही नतीजा है कि भारत ने आजादी हासिल की। भले ही ब्रिटिश सरकार ने सिखों को अलग पूर्ण राज्य की पेशकश की थी लेकिन सिखों ने भारत का हिस्सा बनने का फैसला किया।

उन्होंने कहा कि यह तथ्य है कि बंटवारे का सबसे ज्यादा संताप सिखों ने झेला जब उन्हें पूरी तरह उजड़कर भारत आना पड़ा। खैरा ने इसके साथ ही भाषाई आधार पर, पानी के बंटवारे, आपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिक्र करते हुए केंद्र की सरकारों द्वारा सिखों से भेदभाव किए जाने का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार को अपनी सिख विरोधी नीतियों पर दोबारा विचार करना चाहिए।

 

आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब ने स्पष्ट किया है कि पार्टी रेफरेंडम-2020 मुहिम का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी रूप में समर्थन नहीं करती। आप द्वारा जारी संयुक्त बयान में पार्टी के सूबा सह-प्रधान डा. बलबीर सिंह, माझा जोन के प्रधान कुलदीप सिंह धालीवाल, मालवा जोन-1 के प्रधान नरिन्दर सिंह संधू, मालवा जोन-2 के प्रधान गुरदित्त सिंह सेखों और मालवा जोन-3 के प्रधान दलबीर सिंह ढिल्लों ने कहा कि आम आदमी पार्टी साफ शब्दों में स्पष्ट करती है कि पार्टी भारतीय संविधान, देश की प्रभुता व एकता-अखंडता में संपूर्ण विश्वास रखती है,

इसलिए पार्टी देश को बांटने या तोड़ने वाले किसी भी प्रकार के रेफरेंडम में न यकीन रखती है और न ही समर्थन करती है। पार्टी के सीनियर नेता और विधानसभा में विरोधी पक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा द्वारा रेफरेंडम-2020 का समर्थन किए जाने पर हैरानगी प्रकट करते हुए पार्टी नेताओं ने कहा कि रेफरेंडम-2020 की हिमायत सुखपाल खैरा की निजी राय हो सकती है, लेकिन इस तरह की राय के साथ आम आदमी पार्टी का कोई संबंध नहीं है।

 

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा द्वारा रेफरेंडम-2020 की हिमायत करके राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की है। शनिवार को जारी एक प्रेस बयान में पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि खैरा केवल पंजाब को भारत से अलग किए जाने की ही वकालत नहीं कर रहे बल्कि अलगाववादी भावनाओं को भड़काकर मुश्किल से हासिल हुई शांति को लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।

मजीठिया ने आप कन्वीनर और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सवाल किया कि वे इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं। मजीठिया ने कहा कि केजरीवाल को पंजाबियों को बताना चाहिए कि वे खैरा के स्टैंड का समर्थन करते हैं या नहीं? उन्होंने केजरीवाल को यह भी बताना चाहिए कि उन्होंने आज तक खैरा के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

अकाली नेता ने आम आदमी पार्टी और इसके पंजाब के विधायकों से भी पूछा कि वे मशहूर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट गुरपतवंत पन्नू द्वारा तैयार किए गए रेफरेंडम- 2020 का समर्थन करते हैं? उन्होंने कहा कि इन विधायकों को बताना चाहिए कि वे सभी देश में प्रचलित चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्त्रिस्या में विश्वास रखते हैं या बाहरी ताकतों को इस देश की किस्मत का फैसला करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

कांग्रेस के सीनियर नेताओं और विधायकों ने देश को धार्मिक आधार पर बांटने और पंजाब को भारत से अलग करने के उद्देश्य से तैयार रेफरेंडम-2020 की खुलेआम हिमायत करने के लिए नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा की कड़ी आलोचना की है।

कांग्रेस विधायकों ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से भी स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा है कि क्या वे पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता के रुख से सहमत हैं? खैरा के विरुद्ध तुरत कार्रवाई की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि केजरीवाल को खैरा को पार्टी से बर्खास्त करना चाहिए और अगर वे ऐसा नहीं करते तो इसका मतलब होगा कि वे खैरा के राष्ट्र विरोधी मंसूबों से सहमत हैं।

कांग्रेस विधायक रमनजीत सिंह सिकी, हरमिंदर सिंह गिल और हरदेव सिंह लाडी ने साझा बयान में खैरा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि एक तरफ तो वे रेफरेंडम-2020 की हिमायत कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर वे एकजुट भारत के पक्ष में भी खड़े हैं।

प्राथमिक शिक्षा ………सर्वथा अप्राथमिक

सारिका तिवारी

हालांकि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। इसे दस साल में पूरा करने का लक्ष्य भी तय किया गया था। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका।इसके लिए सरकार के पास धन नहीं था। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर किसी ठोस योजना की शुरुआत नहीं हो सकी।

साक्षरता और शिक्षा के मामले में भारत की गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। अगर हम अपने देश की तुलना आसपास के देशों से करें तो चीन, श्रीलंका, म्यांमा, ईरान से भी पीछे हैं।

राज्यों के स्तर पर अलग-अलग प्रयास किए गए। स्वतंत्रता के बाद राज्य की गरिमा बढ़ाने के लिए कई राज्यों ने स्कूलों में उस राज्य की भाषा को शिक्षा का माध्यम चुना।

मुख्यतया प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों को अंगरेजी शिक्षा दिलाने के पक्ष में था, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करवा दिया। ये निजी स्कूल कई तरह के थे-  चर्चों द्वारा संचालित असंख्य स्कूल, लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग कान्वेंट, निजी संस्थाओं, रामकृष्ण मिशन और आर्य समाज, देव समाज आदि द्वारा संचालित स्कूल। यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी राज्य और नगर निगम के स्कूलों से दूरी बनाये हुए हैं। केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना सरकारी राज्य सेवाकर्मियों के बच्चों के लिए और सैनिक स्कूलों की स्थापना मिलिटरी अफसरों के बच्चों के लिए हुई।

इन्हीं कुछ कारणों से सरकारी स्कूल गरीबों और अशिक्षितों के बच्चों का सहारा बने हुए हैं, जहां उन्हें नौकरशाही और शिक्षक संघों की दया पर रहना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप इन स्कूलों के लिए स्थापित मानकों-पाठ्यपुस्तकों की गुणवत्ता और प्रासंगिकता, विद्यार्थियों की उपलब्धियों का निरीक्षण का विकास थम गया। आज नब्बे प्रतिशत से ज्यादा सार्वजनिक खर्च की राशि भारतीय स्कूलों में अध्यापकों के वेतन और प्रशासन पर ही खर्च होती है। फिर भी विश्व में बिना अनुमति अवकाश लेने वाले अध्यापकों की संख्या भारत में सबसे अधिक है। हमारे स्कूलों में अध्यापक आते ही नहीं हैं और चार में से रोज कोई न कोई अध्यापक छुट्टी पर होता है।

हमारे यहां शिक्षा का जिम्मा राज्यों पर है, इसलिए सभी राज्यों ने इसकी चुनौतियों को अपने ढंग से हल किया। इसके अलग-अलग परिणाम सामने आए। जो राज्य स्कूलों में शिक्षा का विकास करने में सफल रहे उन्होंने गरीब बच्चों की शिक्षा संबंधी चुनौतियों को प्राथमिकता दी। इसकी अगुआई दक्षिण के राज्यों ने की, जिन्होंने सर्वशिक्षा में इतिहास रचा। मैसूर, त्रावणकोर, कोचीन और बड़ौदा जैसी दक्षिण रियासतें तो पहले से ही गरीबों के लिए शिक्षा पर जोर देती थीं और उनके महाराजाओं ने सर्वशिक्षा के लिए अनुदान और स्कूलों के लिए खजाने से राशि भी दी थी। त्रावणकोर और कोचीन में प्रत्येक जाति के लिए आधारभूत शिक्षा के आग्रह ने उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के किंडरगार्टन और प्राइमरी स्कूलों के समान पल्लीकुड़म और कुड़ीपल्लीकुडम की स्थापना में सहायता की।

इसका मतलब है कि स्वतंत्रता के बाद उत्तर से कहीं ज्यादा दक्षिण की सरकारों ने गरीबों के लिए शिक्षा पर जोर दिया। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. कामराज ने मिड-डे मील योजना को राज्य के स्कूलों में लागू किया, जिसे सन 1923 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने प्रारंभ किया था। इस योजना की जिम्मेदारी स्कूल के बच्चों को एक वक्त का भोजन, यूनीफार्म और पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराना था। केरल में स्कूलों को विविध सुधारवादी आंदोलनों से प्रेरणा मिली। इनकी अगुआई चर्चों, नायरों और वामपंथी दलों ने की और राज्य ने स्कूलों को सर्वव्यापी बनाने पर जोर दिया। राज्य अपनी पहली विधानसभा में शिक्षा को मुफ्त और जरूरी बनाने संबंधी संशोधन लाया और शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के लिए जल्दी ही उसने जमीनी संगठनों और अभिभावकों को इस मुहिम में अपने साथ कर लिया।

हालांकि, अन्य भारतीय राज्यों में शिक्षा का एक अलग ही चलन था। आज भारत के छह राज्यों में दो-तिहाई बच्चे स्कूल नहीं जाते- आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। इन राज्यों को जिन समस्याओं ने जकड़ा हुआ है वह है उनका इतिहास। कई सार्वजनिक समस्याएं हैं, जो अपने साथ राज्य की शिक्षा योजना को भी दूषित कर रही हैं जैसे कि ज़मींदारी पध्दति इससे इन समुदायों में कड़वाहट और गुस्से की परंपरा कायम हुई, जिसने एक ऐसी राजनीति को जन्म दिया, जिसे ‘बदले की राजनीति’ कहते हैं, जो आज तक चली आ रही है। इन क्षेत्रों में ध्यान प्रतिशोध पर केंद्रित रहता है और इन राज्यों में राजनीति से अभिप्राय है कि ‘आंखें मूंद कर अपने बड़ों के नक्शे कदम पर चलो’। परिणामस्वरूप वे कहते हैं, ‘यहां अभी तक मतदाताओं का शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश के प्रति ज्यादा झुकाव नहीं है।’

इन राज्यों में ये जातिगत मतभेद स्कूलों में पैठ करने लगे, विशेष रूप से गांवों में, जहां स्कूलों को ‘पिछड़े’ और ‘उच्च’ वर्गों में बांट दिया गया है। इस अलगाव ने और भी भयानक रूप तब लिया जब राज्यों के निवेश भी जाति के अनुसार बंटने लगे। मंत्री अपनी जाति विशेष के हितों के लिए काम करते रहे। इसलिए आप देख सकते हैं कि सरकारी स्कूल एक विशेष समुदाय क्षेत्र में ही बने, जहां ‘अन्य जातियां’ उसका लाभ नहीं उठा सकतीं। परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के ओबीसी और अनुसूचित जनजातियों के आधे गांवों में एक भी स्कूल नहीं है।

ये अव्यवस्था में डूबे हुए राज्य, जो स्कूली शिक्षा को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं, वे इस क्षेत्र पर वार्षिक बजट का सबसे कम हिस्सा खर्च करते हैं। उन्होंने गरीब बच्चों के लाभ को नजरअंदाज किया, जो कि कई सफल राज्यों में कारगर रहा। इसलिए परिणाम निराशाजनक थे। पर अब जब सरकार हमारे प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों पर पहले से कहीं अधिक खर्च कर रही है, तब हम उस राशि को प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करने के लिए संघर्षरत हैं। अगर यहां प्रगति करनी है, तो हमें राजनीतिक तौर पर प्रखर प्रश्नों का जवाब देना होगा। उदाहरण के लिए, शिक्षकों और प्रशासकों में जिम्मेदारी की समस्या के समाधान के बिना हमारे लिए स्कूलों के संकट का सामना करना नामुमकिन है।

देश और राज्य सरकारों के लिए यह कम लज्जा की बात नहीं है कि जिन कामों को उन्हें खुद करना चाहिए, उनके लिए अदालतों को आदेश देना पड़ता है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए इलाहाबाद में उच्च न्यायालय का दिया गया आदेश है। प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की बदहाली किसी से छिपी नही है। वैसे तो यह समस्या पूरे देश में है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान के सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत खराब है। कई स्कूलों में तो शिक्षक पढ़ाने ही नहीं जाते, जहां जाते हैं वहां वे मन से नहीं पढ़ाते।

इन स्कूलों की दशा सुधारने के लिए बना तंत्र भी लगभग पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। किसी का किसी पर नियंत्रण नहीं है। आज पूरे तंत्र पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सरकारी प्राथमिक स्कूलों की इस दशा को सुधारने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि सभी सरकारी अधिकारियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और न्यायिक कार्य से जुड़े अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि वे अपने बच्चे को पढ़ने के लिए इन्हीं स्कूलों में भेजें। अगर वे ऐसा नही करते हैं तो उनके वेतन से निजी कान्वेंट स्कूल की फीस के बराबर धनराशि काट ली जाए और उसे सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने में खर्च किया जाए।

आज भारत में साक्षरता पहले से कुछ बढ़ी है। अंगरेजों के शासन के अंत तक होने वाली यानी 1947 में भारत की साक्षरता दर केवल बारह प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़ कर 74.04 प्रतिशत हो गई। पहले से छह गुना अधिक, मगर विश्व की औसत शिक्षा दर से काफी कम। हालांकि साक्षरता के लिए सरकार काफी सक्रिय रही है। समय-समय पर कई तरह की योजनाएं लाती रही है। इसके बावजूद 1990 में किए गए अध्ययन के मुताबिक 2060 से पहले भारत विश्व की औसत साक्षरता दर को नहीं छू सकता, क्योंकि 2001 से 2011 तक के दशक में भारत की साक्षरता दर में वृद्धि केवल 9.2 प्रतिशत रही। 2006 और 2007 में किए गए अध्ययन से पता चला कि बच्चे पढ़ने तो जा रहे हैं, लेकिन धूप, शीत और बरसात में उनके लिए कोई कक्षा की व्यवस्था नहीं है।

ऐसे कई सरकारी स्कूल हैं, जहां बच्चों को पीने का साफ पानी भी मुहैया नहीं कराया गया है। लगभग 89 प्रतिशत सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां शौचालय की सुविधा नहीं है। शहरों की झुग्गी बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में चलने वाले स्कूलों में शिक्षक या तो नहीं हैं या फिर आते नहीं। इसलिए उन्हें दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है।

प्राथमिक शिक्षा की हालत में सुधार के लिए आने वाले सालों में भारत को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। खासकर शिक्षा को सार्वभौमिक अधिकार बनाने वाली योजनाओं की सफलता को लेकर कई स्तरों पर संशय कायम है। प्राथमिक शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए भारत दुनिया के कई देशों से आर्थिक मदद लेता है। लेकिन वैश्विक मंदी के कारण अगले सालों में इसमें कटौती हो सकती है। इसका प्रभाव हमारे सर्वशिक्षा अभियान पर भी पड़ेगा।

गोलकीपर कैस्पर इश्माइकल की बदोलत जीता डेनमार्क

अपने गोलकीपर कैस्पर इश्माइकल की बेहतरीन गोलकीपिंग और यूसुफ पाउलसन युरारी द्वारा 59वें मिनट में गिए गए गोल के दम पर डेनमार्क ने शनिवार को मोरडोविया एरिना में खेले गए फीफा विश्व कप-2018 के ग्रुप-सी के मुकाबले में पेरू को 1-0 से हरा कर टूर्नामेंट का आगाज जीत के साथ किया। इस रोमांचक मुकाबले में डेनमार्क की जीत के हीरो इश्माइकल रहे जिन्होंने मैच में, खासकर दूसरे हाफ में कई शानदार बचाव करते हुए पेरू को बराबरी नहीं करने दी और अपनी टीम को पूरे तीन अंक दिलाए।

पेरू ने पहले हाफ में ज्यादा मौके नहीं बनाए थे, लेकिन दूसरे हाफ में उसकी आक्रमण पंक्ति ने अधिकतर समय डेनमार्क के खेमे में बिताया। हालांकि उसके खिलाड़ी इश्माइकल की बाधा को पार नहीं कर पाए। पहले हाफ में पेरू के पास सबसे अच्छा और बेहद आसान मौका अंतिम समय के इंजुरी टाइम में आया जब उसे वीडियो असिस्टेंट रेफरी (वीएआर) की मदद से पेनल्टी किक मिली। क्रिस्टियन क्वेवा गेंद लेकर डेनमार्क के खेमे में जा रहे थे।

तभी पाउलसन ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की। इस कोशिश में उन्होंने क्वेवा को गिरा दिया। रेफरी ने वीएआर का इस्तेमाल किया और पेरू को पेनल्टी किक दी। पेनल्टी को गोल में तब्दील करने की जिम्मेदारी क्वेवा पर ही थी, लेकिन क्वेवा गेंद को बार के काफी ऊपर मार बैठे और पेरू के खिलाड़ी तथा प्रशंसकों को मायूसी हाथ लगी।

सर्बिया को जिताया कप्तान एलेक्जेंडर कोलारोव के फ्री किक ने

 

आठ साल बाद विश्व कप में कदम रख रही सर्बिया की टीम ने कप्तान एलेक्जेंडर कोलारोव द्वारा फ्रीकिक पर किए गए गोल के दम पर रविवार को समारा स्टेडियम में खेले गए मैच में कोस्टा रिका को 1-0 से मात देकर टूर्नामेंट का विजयी आगाज किया।

ग्रुप-ई के इस मैच में कोस्टा रिका को सर्बिया की टीम के सामने दबाव में देखा गया। वह सर्बिया को डिफेंस को भेदने में नाकाम रही और इसी कारण अपने एक भी अवसर को गोल में तब्दील नहीं कर पाई।

मैच की शुरुआत में ही दोनों टीमें एक-दूसरे को अच्छी टक्कर दे रही थीं। 11वें मिनट में कोस्टा रिका को पेनाल्टी कॉर्नर मिला और गुजमान ने फुटबाल पर किक मारा और गोंजालेज ने हेडर से मारकर उसे सर्बिया गोल पोस्ट कर पहुंचाना चाहा, लेकिन फुटबाल नेट के ऊपर से निकल गई।

इसके बाद, 13वें मिनट में सर्बिया के खिलाड़ी मित्रोविक ने बड़ा शॉट मारकर कोस्टा रिका के गोल पोस्ट तक फुटबाल को भेजने की कोशिश की, लेकिन के. नवास ने शानदार सेव करते हुए इसे असफल कर दिया।

रेफरी ने इस बीच, कोस्टा रिका के खिलाड़ी फ्रांसिस्को जेवियर काल्वो क्वेसाडा को पीला कार्ड दिखाया। दोनों टीमों का अच्छा डिफेंस था, लेकिन आक्रामक पंक्ति कमाल नहीं कर पा रही थी।

सर्बिया टीम के फारवर्ड में अनुभव की कमी साफ नजर आ रही थी। वह कोस्टा रिका के गोल पोस्ट तक तो पहुंच रहे थे, लेकिन गोल नहीं कर पा रहे थे। 26वें मिनट में सर्बिया को एक बार फिर गोल करने का अवसर मिला था, मिलिनोविक ने फुटबाल को अपने पास लेकर प्रतिद्वंद्वी टीम के गोल पोस्ट तक पहुंचाना चाहा, लेकिन कोस्टा रिका के गोलकीपर नवास ने इस कोशिश को नाकाम कर दिया।

मेसी ने गंवाई फ्री किक

 

अर्जेंटीना के सुपरस्टार लियोनेल मेसी को फीफा विश्व कप में आइसलैंड के खिलाफ खेले गए मैच के दूसरे हाफ में मिले पेनल्टी किक पर गोल के अवसर से चूकने का अफसोस है। विश्व कप में ग्रुप-डी में शनिवार रात को दोनों टीमों के बीच खेला गया मैच 1-1 से ड्रॉ पर समाप्त हुआ।

समाचार एजेंसी एफे की रिपोर्ट के अनुसार बार्सिलोना के दिग्गज मेसी ने मैच के बाद कहा कि पेनल्टी किक पर गोल करने का अवसर गंवाने का अफसोस है, क्योंकि इससे हमें बहुत अच्छा फायदा मिलता। मेसी ने कहा, हमने ड्रॉ के बावजूद भी आशा नहीं छोड़ी थी और जीत की इच्छा प्रबल थी। हम जीत के काबिल थे।

हमने आइसलैंड के डिफेंस में कमी तलाशने की कोशिश की थी, लेकिन हम नहीं ढूंढ पाए। अर्जेंटीना के खिलाड़ी मेसी ने हालांकि, इस मैच का प्रभाव उनके अगले मैच पर पडऩे से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि टीम के पास आराम करने का समय है और वे अगले मैच के लिए पूरी तरह से तैयार होंगे।

औरंगजेब के पिता की बात से घाटी में बदलते हालात

जम्मू एंड कश्मीर में सेना के जवान औरंगजेब की शहादत के बाद हालात काफी अलग हैं. इस घटना के बाद आतंकियों के खिलाफ लोगों के मन में गुस्सा बढ़ गया है. खासकर औरंगजेब के पिता मोहम्मद हनीफ की सरकार से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की अपील ने इस असर को और गहरा किया है. औरंगजेब के परिवार के कई सदस्य सेना में हैं या रह चुके हैं. मोहम्मद हनीफ ने आतंकवाद को उखाड़ने के लिए खुद खड़े होने का दावा किया है. जाहिर है ऐसे तेवरों का असर आम कश्मीरी के मन पर भी पड़ रहा है.

आम जन का आतंकियों के खिलाफ रोष बढ़ रहा है. पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठनों ने लोगों के मन में डर बिठाने के लिए जो नापाक चाल चलकर शहीद औरंगजेब की हत्या की, उसका उल्टा असर हुआ है. खुफिया एजेंसियों के हवाले से खबर है कि औरंगजेब की हत्या के बाद आईएसआई कश्मीर के बदले हालात पर नजर बनाए हुए है.

सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि औरंगजेब की हत्या से कश्मीर के लोगों में है गुस्सा बढ़ा है. इसके साथ ही भारतीय सेना के लिए कश्मीर में जो सपोर्ट मिल रहा है उसे लेकर आईएसआई और उसके हुक्मरान काफी परेशान हैं. अगर ऐसे ही हालात आगे रहे तो आतंकियों का घाटी में रहना मुश्किल हो जाएगा.

खुफिया सूत्रों के अनुसार, आईएसआई ने लश्कर ऐ तैयबा, जैश ए मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी गुटों से कहा कि वो औरंगजेब की हत्या की जिम्मेदारी न लें. ये पहला मौका नहीं है. इससे पहले कश्मीर में लेफ्टिनेंट उमर फयाज की भी हत्या हुई थी. अब आतंकियों ने औरंगजेब को निशाना बनाया है. लेकिन जिस तरह से औरंगजेब के पिता ने आतंकियों को जवाब दिया है, उससे पाकिस्तान में मौजूद आतंकी और उनके आकाओं की नींद उड़ी हुई है.

मुसलमानों के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है: मुख़्तार अब्बास नकवी

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि पिछले 70 वर्ष से मुसलमानों के जेहन में जो विष भरा गया है, वह काफी हद तक कम तो हुआ है लेकिन इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिये बहुत कुछ करना होगा। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार बिना भेदभाव के, सम्मान के साथ अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण के लिये प्रतिबद्ध है। नकवी ने कहा, ‘‘मोदी सरकार का विकास का मसौदा, वोट का सौदा नहीं है। पिछले चार वर्षो के दौरान हमारी सरकार ने अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण के लिये प्रतिबद्ध पहल की है जिसका जमीन पर प्रभाव दिख रहा है।’’

उन्होंने कहा कि भाजपा वर्ष 2019 के चुनाव में तीन तलाक के विषय पर अपने प्रयासों को जनता के सामने रखेगी। उन्होंने कहा कि सशक्तिकरण की पहल के कारण ही मुस्लिम बालिकाओं के बीच में ही स्कूल छोड़ने की दर 74 प्रतिशत से घटकर अब 42 प्रतिशत रह गई है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पौने तीन करोड़ बच्चों को प्रत्यक्ष नकद अंतरण (डीबीटी) के तहत छात्रवृत्ति प्रदान की गई है। इसके कारण बिचौलियों की भूमिका खत्म हो गई है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने कहा कि सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार और रोजगार का मौका मुहैया कराने का काम किया है। इसका गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों को काफी लाभ हुआ है जिसमें काफी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग शामिल हैं।
मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के सभी मंत्रियों द्वारा लगातार सम्पर्क एवं संवाद के माध्यम से समाज के सभी वर्ग के लोगों में विकास एवं विश्वास का माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है।उन्होंने कहा कि पिछले 70 वर्षों से मुसलमानों के जेहन में जो विष भरा गया है, वह काफी हद तक खत्म हुआ लेकिन अभी भी इस संदर्भ में बहुत कुछ करना होगा और मोदी सरकार बिना भेदभाव के सम्मान के साथ अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है।
अल्पसंख्यक मंत्रालय के कार्यों का जिक्र करते हुए नकवी ने कहा कि प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के माध्यम से देश के पिछड़े एवं अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी वाले क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, जलापूर्ति, कौशल विकास के लिये आधारभूत ढांचे के विकास का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के तहत नवोदय एवं केंद्रीय विद्यालय की तर्ज पर स्कूलों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इस योजना के तहत अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में भवनों एवं सामुदायिक केंद्रों का निर्माण किया गया । इसके साथ ही समाज में सद्भाव एवं समरसता को बढ़ावा देने के लिये ‘सद्भाव मंडप’ की भी स्थापना की जा रही है।

Sheila Bats For Rahul as PM 2019

Congress president Rahul Gandhi the 2019 general election, Congress veteran Sheila Dixit has said on Sunday.

The three-time Delhi Chief Minister said the country was facing serious challenge of “remaining together” under the Modi government and all the opposition parties must join hands, leaving aside their differences, to dethrone the current dispensation from power.

“Look he is leading the party. Automatically the one who leads the party is chosen for everything. He is the leader of our party and if Congress has to lead the opposition alliance, then Rahul Gandhi automatically becomes its leader,” the 80-year-old Congress leader said.

Buoyed by results of Karnataka Assembly election as well as recent bypolls, the Congress and and other prominent opposition leaders have been talking about the need to form a grand alliance to stop BJP’s electoral juggernaut in 2019 polls but there has been no consensus yet on who will lead such an alliance.

“There is a small movement to bring together all the non-BJP parties is going on. That will require some understandings, some sort of adjustments,” she said
Asked whether the Congress should try to stitch together the coalition, Dikshit said the time has come for such an alliance the party should go for it.

The Congress leader, who was the chief minister of Delhi between 1998 and 2013, said India was going through a “very difficult phase” and that opposition parities must leave aside their differences for the sake of the country’s future.

“As a country, the biggest struggle for us is to remain together. We are a nation which has got every religion here. Some may be bigger, some may be smaller. The basic philosophy of the country is to carry everybody together and make everybody feel that he is an Indian first. The Congress gave the feeling to everybody,” she said.

Dikshit said Gandhi has emerged as a capable leader and there was no reason why he should not lead the opposition alliance.

Asked about Sonia Gandhi role in the party, Dikshit said she remains the guiding force of the party and will remain so.

“Sonia Gandhi has been the leader of the party for over two decades. She knows the party more than anybody else does and I do not think she will run away from responsibilities. She built up Congress when everybody felt the party is finished,” Dikshit said.

Asked about Pranab Mukherjee recent visit to RSS headquarters in Nagpur, Dikshit said his speech there was good “but no body in Congress is being able to understand why he had to go there. There is a big why?”

“There is disappointment in Congress. He spoke well there. His speech has been appreciated. But the visit was not expected,” she added.

On whether Mukherjee’s visit legitimised the RSS, she said “RSS does not need legitimisation by anybody other then themselves. They have a particular way of dressing, they have a particular way of thinking. I do not think they need any legitimisation.”

 

She observed that the RSS must have “gained” from Mukherjee’s visit. “They will take it as a gain,” she said.

Let us do our work. We are feeling frightened and victimised: IAS officers association

  • The officers were addressing the media after Delhi government alleged that bureaucrats in Delhi have been “hindering” the work of the AAP-led government
  • Let us do our work. We are feeling frightened and victimised, the officers said

Delhi’s IAS association on Sunday held an unprecedented press conference to counterAAP’s claim that its officers are on strike and said that they are being “targeted”and “victimised”.

“I would like to inform that we are not on strike. The information that IAS officers in Delhi are on strike is completely false and baseless. We are attending meetings, all departments are doing their work. We are sometimes also working on holidays,” said Manisha Saxena, IAS Association Delhi.

The officers were addressing the media after Delhi government alleged that bureaucrats in the national capital have been “hindering” the work of the AAP-led government and have alleged that they have been staging a strike for the last four months.

“Let us do our work. We are feeling frightened and victimised. We are being used for completely political reasons,” said bureaucrat Varsha Joshi.

Delhi chief minister Arvind Kejriwal along with his cabinet colleagues has been camping at Lt. Governor Anil Baijal’s house + for almost a week to demand that Baijal issue a directive to civil servants who the AAP leader says are on de facto strike.

PM Invite “Widespread Debate” on Simultaneous Elections

 

Prime Minister Narendra Modi today called for “widespread” debate on holding simultaneous elections to the Lok Sabha and state assemblies saying that it will result in financial savings.

Modi was addressing the fourth meeting of the Governing Council of NITI Aayog that was attended by chief ministers of almost all states.

The central government has been toying with the idea of holding simultaneous elections for quite sometime now.

“The Prime Minister called for widespread debate and consultations on simultaneous elections for Lok Sabha and Vidhan Sabhas, keeping in view various aspects such as the resulting financial savings and consequent better utilisation of resources,” an official release said.

Niti Aayog had last year suggested synchronised, two-phase Lok Sabha and assembly polls from 2024 so as to ensure minimum ‘campaign-mode’ disruption to governance.

In his closing remarks at the meet, Modi also said that corporate investment in agriculture is very low in India and urged the state governments to formulate policies to promote industry participation in the farm sector.

Speaking on various aspects of the economy, Modi said that the world expects India to become a five trillion dollar economy soon.

He encouraged states to give fresh ideas to the Finance Commission, for incentivising outcome-based allocations, and expenditure correction.