अगस्ता हेलीकॉप्टर सौदा: ‘मिसेज गांधी’ का नाम आने पर भड़के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने तंज कसते हुए कहा, ‘यदि सरकार, प्रवर्तन निदेशालय और मीडिया की चली, तो इस देश में केस की सुनवाई टीवी चैनलों पर होगी’  

  1. अगस्ता सौदे में ‘मिसेज गांधी’ का नाम आने पर भड़के पीसी
  2. चिदंबरम ने सरकार, ईडी, मीडिया की आलोचना की
  3. चिदंबरम ने कई ट्वीट कर सरकार पर हमला बोला

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.चिदंबरम ने अगस्ता वेस्टलैंड मामले में बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल के यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी का नाम लेने पर सवाल उठाए हैं. रविवार को चिदंबरम ने इसपर मीडिया की भी भूमिका की आलोचना करते हुए ट्वीट किया, ‘कंगारू कोर्ट में भी सुनवाई होती है. मगर हमारे नए ‘बेहतर’ व्यवस्था में इससे भी आगे बढ़कर टीवी चैनलों पर न्याय हो रहा है.’

P. Chidambaram@PChidambaram_IN · 14hReplying to @PChidambaram_IN

Further, the Criminal Procedure Code and the Evidence Act will not apply. What ED says will be oral evidence, any piece of paper ED produces will be documentary evidence, and what the TV channel pronounces will be the judgement.

P. Chidambaram@PChidambaram_IN

Even kangaroo courts hold trials in a courtroom. Our new ‘improved’ system will surpass kangaroo courts and deliver justice on TV channels.8709:06 AM – Dec 30, 2018Twitter Ads info and privacy380 people are talking about thisTwitter Ads info and privacy

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने तंज कसते हुए कहा, ‘यदि सरकार, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और मीडिया की चली, तो इस देश में केस की सुनवाई टीवी चैनलों पर होगी.’

P. Chidambaram@PChidambaram_IN

If government, ED and the media have their way, in this country cases will be tried on TV channels.2,7069:04 AM – Dec 30, 2018Twitter Ads info and privacy901 people are talking about thisTwitter Ads info and privacy

उन्होंने आगे कहा, ‘क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी) और एविडेंस एक्ट लागू नहीं होंगे. जो प्रवर्तन निदेशालय कहेगा वो मौखिक सबूत होंगे. ईडी कागज का कोई भी टुकड़ा पेश करेगा तो वो दस्तावेजी सबूत हो जाएंगे. और जो टीवी चैनल दिखाएंगे वो निर्णय हो जाएगा.’

P. Chidambaram@PChidambaram_IN · 14h

If government, ED and the media have their way, in this country cases will be tried on TV channels.

P. Chidambaram@PChidambaram_IN

Further, the Criminal Procedure Code and the Evidence Act will not apply. What ED says will be oral evidence, any piece of paper ED produces will be documentary evidence, and what the TV channel pronounces will be the judgement.7999:05 AM – Dec 30, 2018Twitter Ads info and privacy314 people are talking about thisTwitter Ads info and privacy

New Delhi: Agusta Westland scam accused middleman Michel Christian at CBI headquarters in New Delhi, on early Wednesday, Dec. 5, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary)(PTI12_5_2018_000001B)

अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदे में बिचौलिए की भूमिका अदा करने वाले क्रिश्चियन मिशेल को सीबीआई दुबई से प्रत्यर्पण कर भारत लेकर आई थी

कोर्ट को बताया था मिशेल के सोनिया गांधी का नाम लेने की बात 

दरअसल अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदा मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने शनिवार को पटियाला हाउस कोर्ट को बताया था कि बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल ने सोनिया गांधी का नाम लिया है. ईडी ने हालांकि कहा कि अभी यह साफ नहीं है कि मिशेल ने सोनिया गांधी का नाम किस संदर्भ में लिया.

ईडी ने कोर्ट को कहा कि मिशेल ने ‘इटली की महिला के पुत्र’ के बारे में बताया है. साथ ही यह भी बताया है कि कैसे ‘वो देश का अगला पीएम बनने जा रहा है.’

कोर्ट को ईडी की दी गई इस जानकारी के बाद कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘मिशेल पर एक परिवार का नाम लेने का दबाव बनाया गया है. आखिर चौकीदार सरकारी एजेंसियों पर एक परिवार का नाम लेने के लिए दबाव क्यों बना रही है? बीजेपी के स्क्रिप्ट राइटर ओवरटाइम काम कर रहे हैं.’

ट्रिपल तालाक बिल राज्य सभा में मुंह के बल गिरेगा: कांग्रेस महासचिव

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि लोकसभा में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब 10 विपक्षी दल इसके खिलाफ खुल कर सामने आए थे

शनिवार को कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कहा कि उनकी पार्टी तीन तलाक विधेयक को इसके मौजूदा रूप में राज्यसभा में पारित नहीं होने देगी. वेणुगोपाल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि कांग्रेस अन्य दलों को साथ लेकर विधेयक को इसके मौजूदा रूप में पारित नहीं होने देगी.

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि लोकसभा में जब यह विधेयक पेश किया गया था तब 10 विपक्षी दल इसके खिलाफ खुल कर सामने आए थे. कांग्रेस नेता ने कहा कि यहां तक कि अन्नाद्रमुक और तृणमूल कांग्रेस ने भी इस विधेयक का खुल कर विरोध किया है. गौर करने वाली बात यह है कि अन्नाद्रमुक ने कई मुद्दों पर बीजेपी नीत सरकार का समर्थन किया है.

लोकसभा में पास हो चुका है बिल

उन्होंने कहा कि यह विधेयक महिलाओं को सशक्त करने में कोई मदद नहीं करेगा. गौरतलब है कि गुरुवार को लोकसभा में यह विधेयक पारित हुआ था. उम्मीद की जा रही है कि अगले सप्ताह राज्यसभा में इस पर विचार किया जा सकता है. कांग्रेस महासचिव का यह भी कहा है कि इस विधेयक को लेकर कांग्रेस नीत यूपीए या केरल में पार्टी नीत यूडीएफ में कोई भ्रम नहीं है.

संसद के निचले सदम में यह बिल ध्वनी मत से पास हो चुका है और अगर यह राज्यसभा में भी पास हो जाता है तो यह कानून बन जाएगा. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बीजेपी नेता और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि इस बिल पर राजनीति नहीं की जानी चाहीए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह बिल किसी एक समुदाय के खिलाफ नहीं है.

‘The Accidental Prime Minister’ is BJP’s propaganda against our party, say Congress leaders

It’s a ‘riveting tale of how a family held the country to ransom for 10 long years,’ says BJP

“The Accidental Prime Minister”, a film starring Anupam Kher as Manmohan Singh, is BJP’s propaganda against their party, Congress leaders said on Friday as the former Prime Minister evaded comment on the growing controversy over the film on him.

The trailer of the film, based on the book of the same name by Sanjay Baru who served as Mr. Singh’s media advisor from 2004 to 2008, was released in Mumbai on Thursday.

The trailer shows Mr. Singh as a victim of the Congress’ internal politics ahead of the 2014 general election.

“Riveting tale of how a family held the country to ransom for 10 long years. Was Dr Singh just a regent who was holding on to the PM’s chair till the time heir was ready? Watch the official trailer of ‘TheAccidentalPrimeMinister’, based on an insider’s account, releasing on 11 January,” the BJP said on Thursday night.

Congress chief spokesperson Randeep Surjewala said on Twitter that such fake propaganda by the party would not stop it from asking the Modi government questions on “rural distress, rampant unemployment, demonetisation disaster, flawed GST, failed Modinomics, all pervading corruption.”

Asked by journalists to comment on the film at the Congress’s foundation day function at the party headquarters on Friday, Dr. Singh walked away without saying anything.

Truth shall prevail, says Gehlot

Congress leader and Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot said propaganda against the Congress and its leaders would not work and the truth shall prevail.

Mr. Gehlot’s party colleague PL Punia accused the BJP of evading answers on its ”misgovernance” after having ”failed” on all fronts.

“This is the handiwork of the BJP. They know that time has come to give answers after completion of five years and they are now trying to divert attention by raising such issues and evade answering to the public after its government failed on all fronts,” he said.

National Conference leader Omar Abdullah tweeted, saying, “Can’t wait for when they make The Insensitive Prime Minister. So much worse than being the accidental one.”

Youth Congress threatens to stall release ‘Accidental Prime Minister’only if….

The trailer of political drama ‘The Accidental Prime Minister’ starring Anupam Kher in the lead role was unveiled, earlier in the day.

New Delhi: Soon after the trailer of ‘The Accidental Prime Minister’ was released, Maharashtra Youth Congress on Thursday wrote to the makers of the political drama, demanding the screening of the film before its release.

The youth wing added that if some of the scenes are found to be unfactual, those will have to be deleted else they would not let the movie to be screened anywhere in the country.

The trailer of political drama ‘The Accidental Prime Minister’ starring Anupam Kher in the lead role was unveiled, earlier in the day. The film, which is scheduled to hit the screens on January 11, 2019, is based on a book written by Sanjaya Baru by the same name.

The film has already created an immense buzz amongst the audience owing to its controversial subject. It aims to focus on the tenure of the former prime minister Dr Manmohan Singh, who ruled the country from 2004 to 2014.

यूपी में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन कांग्रेस मुक्त होगा: सपा

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के इस बयान को मध्‍य प्रदेश में पार्टी के एकमात्र विधायक को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने से कांग्रेस के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है

2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में दरार दिखने लगा है. समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी के खिलाफ उत्‍तर प्रदेश में बनने वाले गठबंधन के गैर-कांग्रेस होने की बात कही है.

अखिलेश ने बुधवार को कहा, ‘बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन खड़ा करने में सभी पार्टियों को साथ लाने का प्रयास किया जा रहा है. मैं तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर को इस दिशा में प्रयास के लिए बधाई देता हूं. वो इसके लिए जुटे हैं. मैं उनसे मिलने हैदराबाद जाऊंगा.

उन्होंने यह भी कहा कि हम कांग्रेस का भी धन्यवाद देना चाहेंगे कि मध्य प्रदेश में हमारे विधायक को मंत्री नहीं बनाया. हम कांग्रेस और बीजेपी दोनों को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने कम से कम समाजवादियों का रास्ता साफ कर दिया. जबकि एसपी का विधायक मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस को समर्थन दे रहा था.

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के इस बयान को मध्‍य प्रदेश में पार्टी के एकमात्र विधायक को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने से कांग्रेस के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है.

बता दें कि 11 दिसंबर को आए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस 114 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वहीं बीजेपी के खाते में 109 सीटें आई थी.

बहुमत से दूर कांग्रेस को बाद में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के 2, समाजवादी पार्टी के 1 और 4 निर्दलीय विधायकों ने सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था. जिसके बाद कांग्रेस को कुल 121 विधायकों का समर्थन हासिल है.


Nationalised Banks on Strike today: 26 Dec, 2018

Services of state-owned banks are expected to be impacted Wednesday due to a nation-wide strike call given by unions to protest against the proposed amalgamation of Vijaya Bank and Dena Bank with Bank of Baroda. This will be the second bank strike in less than a week.

Last Friday (December 21), an officers’ union of state-run banks observed a day-long strike to protest against the merger and also demanded immediate settlement of wage negotiations. Most of the banks have already informed customers about the strike.

Private sector banks will continue to function as usual.

The strike is being organised by the United Forum of Bank Unions (UFBU), an umbrella organisation of nine unions, including the All India Bank Officers Confederation (AIBOC), the All India Bank Employees’ Association (AIBEA), National Confederation of Bank Employees (NCBE) and the National Organisation of Bank Workers (NOBW). The UFBU claims membership of 10 lakh officers and staffers.

According to AIBEA General Secretary C H Vekatachalam, the conciliation meeting called by Additional Chief Labour Commissioner did not lead to any assurance and so the unions are going ahead with the strike.

During the meeting, neither the government nor the concerned banks came forward to assure that they will not go ahead with the merger, he added.

The unions claim that the government wants banks to grow in size by such mergers but even if all public sector banks are bundled into one, the merged entity will not find a place among the top 10 globally.

The government in September approved the amalgamation of Bank of Baroda (BoB), Vijaya Bank and Dena Bank — the first three-way merger in the public sector banking space.

The move follows top lender State Bank of India last year merging five of its subsidiary banks with itself and taking over Bharatiya Mahila Bank, catapulting it to among the top 50 global lenders.

On wage revision, NOBW Vice President Ashwani Rana it is due since November 2017. So far, Indian Banks’ Association (IBA) has offered 8 per cent wage hike which is not acceptable to UFBU, he said.

Till results we are apart; Mayavati

This comes after the Madhya Pradesh Assembly elections, wherein the BSP and the Congress fought separately, but the former extended its support to the grand old party after the declaration of the results.

Mayawati’s Bahujan Samaj Party (BSP) seems to have put the plans for a grand alliance of opposition parties on hold by declaring that the party would contest on all seats in Madhya Pradesh during the 2019 Lok Sabha elections. According to an announcement by party’s vice president Ramji Gautam, the BSP is preparing to contest on all 29 Lok Sabha seats of Madhya Pradesh.

Notably, this comes shortly after the Madhya Pradesh Assembly elections, wherein the BSP and the Congress fought separately, but the former extended its support to the grand old party after the declaration of the results.

Ahead of the Assembly elections in the state, Mayawati had in October declared that she would not get into pre-poll alliance with the Congress party, blaming leaders like former Madhya Pradesh chief minister Digvijaya Singh. She had, however, said that the intentions of Congress chief Rahul Gandhi and Sonia Gandhi for a BSP-Congress alliance was “honest”.

But after the Congress party fell short of majority by winning 114 seats in Madhya Pradesh Assembly elections, Mayawati extended support to ensure that a Congress-led government was formed in the state. She had said that the BSP had decided to support the Congress party so that the Bharatiya Janata Party (BJP) could be kept out of power.

This comes even as Nationalist Congress Party (NCP) chief Sharad Pawar has said that talks are on among all opposition parties for a Mahagathbandhan ahead of the Lok Sabha elections 2019. He also suggested that seat sharing discussions were also underway at different levels, saying that parties that are powerful in a particular state would be given more seats in that region.

“All opposition parties have decided to come together and form a Mahagathbandhan. Talks are on for the same. Whichever party is more powerful in a state will be given more number of seats,” the veteran leader wrote on microblogging site Twitter in Marathi.

In another significant political development, Telangana Rashtra Samithi supremo K Chandrasekhar Rao on Monday met Trinamool Congress chief and West Bengal CM Mamata Banerjee. Following the meeting the Telangana Chief Minister said that soon a “concrete plan” would be formulated.

The TRS chief, who had declared after the Telangana Assembly elections that he would play an active role in national politics, is also slated to meet Mayawati and Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav. Earlier, he had met Odisha chief minister and Biju Janata Dal (BJD) supremo Naveen Patnaik.

SC to hear Ram Mandir title dispute on January 4

Appeals are listed before a Bench of CJI Ranjan Gogoi and Justice S.K. Kaul

The volatile Ayodhya dispute appeals have been listed before a Bench led by Chief Justice of India on January 4, 2019.

The Supreme Court’s main cause list for January 4 shows that an application for early hearing and the appeals are listed before a Bench of Chief Justice Ranjan Gogoi and Justice S.K. Kaul. On October 29, a three-judge Bench led by Justice Gogoi had ordered the appeals to be listed in January 2019 before an appropriate Bench to fix a date for hearing.

The October order had come when the parties had sought an early hearing. At the time, Justice Gogoi had orally told them that the decision when to start hearing the appeals would be in the realm of discretion of the “appropriate Bench” before which the matter would come up in January.

“We have our own priorities… whether hearing would take place in January, March or April would be decided by an appropriate Bench,” the Chief Justice had remarked.

Majority opinion

On September 27, the apex court, in a majority opinion, had declined the plea made by Islamic bodies and individuals to refer the question as to whether prayer in a mosque is an essential part of Islam to a seven-judge Constitution Bench.

The majority verdict, in its last paragraph, had further directed the Supreme Court to start hearing the pending cases from October 29. This direction had triggered questions whether the court intended to deliver a judgment in the appeals before the May 2019 elections.

In 2017, when the court had started to hear the appeals after a hiatus of over seven years, senior advocate Kapil Sibal had suggested it to adjourn the hearings to after the general elections in May 2019.

HC verdict

The Ayodhya appeals are against the September 30, 2010 decision of the Allahabad High Court to divide the disputed 2.77 acre area among Sunni Waqf Board, Nirmohi Akhara and the Ram Lalla. The High Court had concluded that Lord Ram, son of King Dashrath, was born within the 1,482.5 square yards of the disputed Ramjanmabhoomi-Babri Masjid premises over 9,00,000 years ago during the Treta Yuga.

Manufactured row exposes Rahul Gandhi’s immaturity and media’s lack of due diligenceaccording to MHA notification


File photo of Congress president Rahul Gandhi.

Media’s ill-informed debates add to the confusion and important questions are buried in the din.
India’s oldest political party is taking a dangerous turn towards immaturity under its newest president.

The manufactured “controversy” over MHA notification on government agencies authorised to intercept ‘private’ communications brings out two issues very clearly. One, Indian media is prone to jumping to conclusions without due diligence. These make for ill-informed debates and dumbing down of political discourse. Two, India’s oldest political party is taking a dangerous turn towards immaturity under its newest president.

Let’s begin with the second point. There is no doubt that Rahul Gandhi has managed to energise the Congress cadre and, even more importantly, infuse a modicum of unity in a party that has traditionally been prone to infighting and factionalism. It has been said long enough that Congress is its own worst enemy.

Though his mantle was the result of dynastic entitlement and not inner-party democracy, nevertheless in his first year as president, Rahul has brought warring factions together and infused a sense of purpose in the veins of the grand old party. He has also put together an excellent team to manage big data and effectively use it in shaping political narratives. The Congress ran BJP close in Gujarat and snatched away three Hindi heartland states from the saffron unit. Rahul may legitimately claim credit for it.

To set an early electoral agenda and turn around Congress’s fortunes in 2019 Lok Sabha elections, Rahul — perhaps acting on inputs from his team of crack data analysers — has decided that he should launch an aggressive, frontal attack on Prime Minister Narendra Modi whose steady popularity (see survey reports in November 2017 and November 2018) remains BJP’s biggest asset and Congress’s key concern. Nothing wrong with Rahul’s strategy, except that in order to target Modi through a vilification campaign — perhaps to show him as corrupt, hateful, dictatorial and pull him down from the pedestal a few notches — the Congress president has frequently tried to take shortcuts where none exist.

From indulging in theatrics such as the hug-and-wink routine in Parliament, gaslighting on ‘single-rate’ GST, launching a post-truth narrative on Rafale, calling the prime minister a “thief” to spinning a 2009 UPA-era law as an example of Modi’s “insecure dictatorship”, Rahul’s personalised and shrill campaign has frequently crossed all boundaries and broken all conventions. This wouldn’t have mattered had the Congress president been able to buttress his accusations with facts or even a smoking gun but in absence of either, the campaigns have become steadily harsher and fantastic.

Take the GST, for instance. Malaysia, which is a much smaller nation compared to India, recently scrapped its deeply unpopular ‘single-rate’ GST though it was envisaged as a “less complex” tax. It will be even more difficult to implement such a uniform rate in a much larger and socio-economically more complex nation such as India. Yet Congress, which has no skin in the game because it isn’t in power, has been pressing for a ‘single-slab’ GST and Rahul has targeted Modi over what he calls ‘Gabbar Singh Tax’.

This might be a catchy political slogan but it reflects immaturity of the leadership. It also carries little economic or even political sense, considering the fact that GST rates are decided by a GST Council comprising representatives from all parties. Even if we leave aside the impossibility of taxing luxury yachts and tea at the same rate, Rahul may remember that the Congress-led UPA left behind the legacy of 31 percent indirect tax on most items, that weakens his moral position on this issue.

On Rafale, for instance, Rahul Gandhi’s tone-deaf campaign has left little space for an informed debate. In a short span of time, Rahul has called the Union defence minister a liar; the Union finance minister a liar; the prime minister a liar; the Dassault CEO a liar; and has implied that even French president Emmanuel Macron was lying. Congress has ended up calling the Indian Air Force chief a liar and has cast aspersions against even the Supreme Court for passing a verdict on Rafale that wasn’t to its liking. In short, the argument seems to be that everyone but the Congress president is lying on Rafale.

On the MHA notification, the latest flashpoint between BJP and the Opposition, Rahul’s tweet indicates that the prime minister is showing signs of “insecure dictatorship” by bringing in a law that enables the state to snoop on every computer and a citizen’s private data.

Congress has launched a ‘stalker sarkar’ campaign against the NDA on social media and senior leaders have called the notification an “assault on people’s fundamental rights” and the law “violative of the right to privacy guaranteed by the Constitution”. While the larger points on ‘national security versus privacy’ needs to be debated in light of the Supreme Court’s recent judgment on Aadhaar, Congress position on this issue reeks of hypocrisy, given the fact that this UPA-era law was brought by the Manmohan Singh government in 2009. All provisions invoked by the MHA notification on Friday were contained within that law.

For instance, on government surveillance over private data and its interception, a statement by RPN Singh — minister of state in Union ministry of home affairs on 11 February, 2014, in the UPA 2 government — tabled in Lok Sabha reveals that “incidents of physical/electronic surveillance in the States of Gujarat and Himachal Pradesh, and the National Capital Territory of Delhi, allegedly without authorization have been reported.” The minister’s statement also reveals that “Standard Operating Procedures for Interception, Handling, Use, Sharing, Copying, Storage and Destruction of records have been issued by the Ministry of Home Affairs to the Central Law Enforcement Agencies.”

As Jaitley has pointed out in his blog, during UPA-II in a detailed debate in Parliament relating to corporate lobbyist, then Home Minister P Chidambaram had indirectly admitted in Parliament that the lobbyist’s phone was “under vigil”. Chidambaram had argued strongly in favour of tax evasion being a valid ground for interception and had insisted that the “government was entitled to tap conversations if they relate to any transaction that needed to be investigated.”

So, a legitimate question that one may ask the Congress president is this: Was he referring to his own government while tweeting on turning India into a “police state”?

The Congress president’s brazenly contradictory positions and immature assertions spring from a belief that either the media will fail to hold him accountable for taking liberties with facts, or the media is too busy jumping to conclusions to verify facts and conduct due diligence before taking positions. It is the job of the media to ask questions of the government in power and put its actions to scrutiny, but if that job leaves large factual gaps, the entire edifice falls apart and ‘questioning’ becomes an extension of ‘campaigning’.

Even a perfunctory scrutiny of the recent MHA notification would have been enough to show that the notification is not an “expansion” of the government’s power but a reassertion of its existing powers. In fact, by notifying the names of the agencies that are authorised to collect such sensitive information, the government may have removed some ambiguities from the law that could have enabled a zealous agency to overstep some boundaries.

There is no doubt that the existing law still leaves enough gaps for the state to exploit but when the fundamental question is whether India should have a proper judicial framework for acts of surveillance instead of delegating such authority to bureaucrats, little point is served in political blame-gaming. Media’s ill-informed debates add to the confusion and important questions are buried in the din.

कर्ज में फंसे हैं बटाईदार और माफी पा रहे जमींदार

सरकारों की तरफ से कृषि कर्ज माफी की घोषणा होने पर भू-स्वामी किसानों के बीच खुशी की लहर दौड़ जाती है. मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर तमाम तरह की टिप्पणियां की जाती हैं

सरकारों की तरफ से कृषि कर्ज माफी की घोषणा होने पर भू-स्वामी किसानों के बीच खुशी की लहर दौड़ जाती है. मीडिया और सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर तमाम तरह की टिप्पणियां की जाती हैं, लेकिन भारत में अमूमन चार तरह के किसान होते हैं.एक बड़े जोत का किसान जिसके पास बारह-पंद्रह बीघा या इससे भी अधिक जमीन है. दूसरा मध्यम जोत का काश्तकार जिसके पास पांच-छह बीघा जमीन है. तीसरा लघु किसान जिसके पास तीन बीघा से भी कम जमीन है. चौथा भूमिहीन बटाईदार किसान जिसके पास अपनी कोई जमीन नहीं होती और वे दूसरों की जमीन पर बटाई करते हैं.

कर्ज माफी या कृषि संबंधी अन्य लाभकारी योजनाओं का ज्यादातर लाभ बड़े किसानों को ही मिलता है. जबकि किसानों के बीच एक बड़ा तबका भूमिहीन बटाईदार किसानों का भी है, जिसे कर्ज माफी से कभी कोई राहत नहीं मिली है.

कर्ज माफी बना चुनावी कामयाबी का जरिया

हालिया कुछ वर्षों में कृषि कर्ज माफी के वादे अधिक होने लगे हैं. सियासी पार्टियां चुनावी रैलियों में किसानों से कर्ज माफी का यकीन दिलाने के साथ-साथ कर्ज माफी की मियाद भी तय करने लगी हैं. पिछले साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने कर्ज माफी की घोषणा की थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने उसे पूरा करने का दावा भी किया.

यह दीगर बात है कि इसे लेकर अब भी कई सवाल मौजूद हैं. इस परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए मध्य-प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नव नियुक्त मुख्यमंत्रियों क्रमशः कमलनाथ और भूपेश बघेल ने अपने शपथ-ग्रहण के कुछ घंटे बाद ही कृषि कर्ज माफी का ऐलान किया. दो दिन बाद ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कर्ज माफी की घोषणा कर दी.

अगले साल अप्रैल-मई में संसदीय चुनाव होने हैं. मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व चिंतित है. 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. लिहाजा पार्टी को यकीन है कि बरास्ते कर्ज माफी वह चुनावी कामयाबी हासिल कर सकती है. 2008 में कांग्रेस यह नुस्खा बखूबी आजमा चुकी है. जब यूपीए (प्रथम) सरकार अपने आखिरी साल में ‘कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना’ (ए.डी.डब्ल्यू.डी.आर.एस) के तहत 52,259.86 करोड़ रुपये की कर्ज माफी की थी.

देश भर में 3.73 करोड़ किसानों को इसका फायदा मिला. वित्तीय अनियमितताओं की वजह से यह योजना भी सवालों के घेरे में रही लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में इसका जबरदस्त फायदा कांग्रेस को मिला और डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में पुनः यूपीए की सरकार बनी. पिछले कई उपचुनाव और उत्तर भारत के तीन अहम राज्यों की सत्ता खोने के बाद संभवतः भाजपा नीत केंद्र सरकार भी कर्ज़ माफ़ी के इस प्रचलित विकल्प पर विचार कर सकती है.

वैसे भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन समेत अर्थ-वित्त मामलों के कई जानकारों का मानना है कि कर्ज माफी कृषि क्षेत्र एवं किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं है. वे आगाह कर चुके हैं कि कृषि कर्ज माफी के बढ़ते चलन से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है. सियासी पार्टियों को भी कमोबेश इसका इल्म है, लेकिन सत्ता जाने का खौफ शायद अर्थव्यवस्था के नुकसान पर भारी है.दस साल पहले यूपीए की सरकार में हुए कर्ज माफी पर जानकारों की अलग-अलग राय हो सकती है. लेकिन उस फैसले से वास्तविक किसानों को कोई फायदा नहीं मिला. इसके बरअक्स देश की अर्थव्यवस्था पर एक अतिरिक्त और अनावश्यक दबाव झेलना पड़ा. देशव्यापी कृषि कर्ज माफी का सकारात्मक असर तो दिखना चाहिए.

बावजूद इसके बीते दस वर्षों में किसानों की आत्महत्याओं में तो कोई कमी नहीं आई. लेकिन किसान आत्महत्या से प्रभावित राज्यों में इजाफा जरूर हुआ. साल 2008 में जो कृषि कर्जे माफ हुए उससे लाभान्वितों होने में एक बड़ी संख्या उन भू-स्वामियों की थी जिन्हें किसान नहीं कहा जा सकता. सरल शब्दों में कहें तो वे ऐसे भू-स्वामी थे जो अपनी जमीनें बटाई पर देकर परिवार सहित शहरों में रहते हैं.

कर्ज माफी का वह साल ऐसे भू-स्वामियों के लिए एक बड़ा तोहफा साबित हुआ. जिस पर उनके अधिकारों का कोई मतलब नहीं था. हममें से ज्यादातर पत्रकारों-लेखकों का ताल्लुक किसी न किसी गांव-कस्बों से रहा है. शायद आपने भी देखा और सुना होगा कि जिन भू-स्वामियों ने बैंकों से कृषि कर्ज लेकर उससे वाहन, भवन आदि का सुख प्राप्त किया. वैसे भू-स्वामियों के कृषि कर्ज जब माफ हुए तो, उन लोगों को पछतावा हुआ जिन्होंने कृषि कर्ज नहीं लिए थे. वहीं दूसरी तरफ साहूकारों के कर्ज के बोझ से दबे लाखों भूमिहीन बटाईदार किसानों को सरकारों द्वारा कर्ज माफी का एक पैसा भी नहीं मिलता.

यह एक भ्रामक तथ्य है कि किसान तो आखिर किसान हैं क्या भू-स्वामी, क्या बटाईदार! भारत में वास्तविक किसानों यानी बटाईदारों की संख्या कितनी है क्या ऐसा कोई आंकड़ा केंद्र व राज्य सरकारों के पास है? सरकारें इससे किनारा नहीं कर सकतीं क्योंकि आजादी के तुरंत बाद ही देश में किसानों के कई मुद्दे मसलन-जमींदारी प्रथा का विरोध, भूमिहीनों को भू-अधिकार और लगान निर्धारण, नहर सिंचाई दर जैसे सवालों पर कई आंदोलन हुए. बिहार जैसे राज्य में तो बटाईदारी कानून बनाने की भी मांग उठी.

यह अलग बात है कि इसे अमल में लाना तो दूर कोई भी दल इस पर बहस करने की जहमत नहीं उठाना चाहता. वह उस राज्य में जहां पिछले तीन दशकों से समाजवादी पृष्ठभमि की सरकारें शासन में हैं. सिर्फ भू-स्वामी होने मात्र से किसी को किसान मान लेना सही नहीं है. ऐसे में उन लाखों भूमिहीन किसानों का क्या, जो दूसरों की खेतों में बटाईदारी करते हैं.

यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि देश में किसानों से जुड़ी नीतियां बनाने वाले महकमों (कृषि मंत्रालय से लेकर नीति आयोग तक) को इस बात की ख़बर ही नहीं है कि मुल्क के करोड़ों किसानों में बटाईदार किसानों की संख्या कितनी है? और वैसे भू-स्वामी कितने हैं जो स्वयं खेती नहीं करते. अगर आजादी के सात दशक बाद भी देश में बटाईदार किसानों को चिन्हित नहीं किया गया है तो यह सरकारों द्वारा किया गया एक अपराध है.

बटाईदार किसानों के परिजनों नहीं मिलता मुआवजा

किसानों की त्रासदी यहीं खत्म नहीं होती! दरअसल, किसानों के बीच फर्क न कर पाने से वास्तविक किसानों को कई और खामियाजे भुगतने पड़ते हैं. सरकारी अभिलेख में बटाईदारों का उल्लेख नहीं होने एवं भू-स्वामित्व संबंधी दस्तावेज के अभाव में उन्हें सूचीबद्ध किसान नहीं माना जाता. किसान आत्महत्या से प्रभावित राज्यों में मौत और मुआवजे का यही विचित्र दृश्य देखने को मिलता है. आत्महत्या करने वाला अगर कोई बटाईदार किसान है तो, शोक-संतप्त उसके परिजनों को सरकारी मुआवजा और मदद नहीं मिलती. वजह मृतक किसान के परिवार में भू-स्वामित्व के दस्तावेज न होना.

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1990 के बाद देश भर में फसलों की नाकामी व कृषि घाटे के कारण तकरीबन 3,96,000 किसानों ने आत्महत्या की. गैर सरकारी आंकड़े इससे भी अधिक संख्या बताते हैं. इस आलेख के लेखक कुछ साल पहले मराठवाड़ा और तेलंगाना के गांवों में आत्महत्या करने वाले कई किसानों के परिजनों से मिले थे. पीड़ित परिवारों ने बताया कि बटाईदार होने की वजह से उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिला. संबंधित जिला कलेक्टरों से जब इसकी सच्चाई पूछी तो, उन्होंने कहा कि कृषि व राजस्व विभाग के मुताबिक आत्महत्या करने वाले उन्हीं किसानों के परिजनों को सरकार द्वारा घोषित मुआवजे की रकम मिलती है जिनके पास भू-स्वामित्व से जुड़े प्रमाण-पत्र व दस्तावेज होंगे.

बटाईदारों को नहीं मिलता ‘किसान क्रेडिट कार्ड’

हर साल रबी और खरीफ फसल के सीजन में नई अनाज खरीद नीति की लेकर भी जिज्ञासाएं बनी रहती हैं क्योंकि इसके तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा मिलता है. लेकिन बटाईदार किसानों को इसका भी लाभ नहीं मिलता. कारण भू-स्वामित्व के प्रमाण-पत्र संबंधी वही पुराना मामला. नतीजतन बटाईदार किसान औने-पौने दाम पर साहूकारों को अपनी उपज बेच देते हैं. या फिर अपनी उपज को भू-स्वामी की उपज बताकर सरकारी अनाज खरीद केंद्रों पर बेचते हैं. किसानों के बीच ‘केसीसी’ यानी ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ काफी लोकप्रिय है.

इसकी शुरुआत वर्ष 1998 में हुई थी. वैसे तो इसके कई लाभ हैं लेकिन इसका फायदा किसे मिल रहा है, यह एक बड़ा सवाल है. दरअसल जिन किसानों को इसका वास्तविक लाभ मिलना चाहिए उन्हें नहीं मिल पाता. अपनी जमीनें बटाई देकर शहरों में रहने वाले भू-स्वामियों को जब किसान क्रेडिट कार्ड के तहत बैंकों से पैसा लेना होता है, तब वे ब्लॉक-सबडिवीजन आते हैं. राजस्व कर्मचारी से ‘मालगुजारी’ की रसीद और ‘लैंड पजेशन सर्टिफिकेट’ (एलपीसी) प्राप्त कर बैंक से कृषि कर्ज उठा लेते हैं.

जबकि निर्धारित भू-संबंधी प्रमाण-पत्र न होने से भूमिहीन बटाईदार किसानों को यह कर्ज नहीं मिल पाता. ओलावृष्टि, अतिवृष्टि-अनावृष्टि और बेमौसम बारिश होने पर खेतों में खड़ी फसलें जब तबाह हो जाती हैं तो राज्य सरकारों की तरफ से किसानों को सरकारी मदद मिलती है. लेकिन इसका भी फायदा उन्हीं किसानों को मिलता है जिनकी अपनी जमीनें हैं. यहां भी बटाईदार किसानों को निराश होना पड़ता है. वहीं खुद से खेती नहीं करने वाले ढेरों भू-स्वामी इसका भी लाभ उठा लेते हैं. सरकार और उसकी व्यवस्था के लिए इससे अधिक शर्म की स्थिति और क्या हो सकती है?

क्रॉप पैटर्न में बदलाव से होगा किसानों का भला

किसानों की आत्महत्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है. भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों इस बाबत ईमानदार प्रयास का अभाव दिखता है. किसानों को उपज का वाजिब दाम नहीं मिलना और फसलों का खराब होना इसकी प्रमुख वजह हो सकती है. लेकिन इसके कुछ कारण और भी हैं जिसकी चर्चाएं नहीं होती. ‘किसान आत्महत्या’ प्रभावित राज्यों की अध्ययन यात्राओं से कुछ अहम बातें समझ में आईं. मसलन नब्बे के दशक में ‘कैश क्रॉप’ और ‘हाइब्रिड सीड्स’ ने यहां के खेतों में अपनी जड़ें जमा लीं.

नतीजतन मराठवाड़ा, विदर्भ और तेलंगाना के किसान अपने परंपरागत खेती से दूर हो गए. बीजों का भंडारण और उसका पुनर्पयोग ‘संकर बीजों’ की मेहरबानी से समाप्त हो गया. बाकी कसर उन ‘कीटनाशकों’ ने पूरी कर दीं जिनके छिड़काव फसलों के लिए लाभदायक कीट-पतंगे भी नष्ट हो गए. हालत यह होते चली गए कि किसानों के महीने भर के राशन के खर्च के बराबर या उससे ज्यादा भाव में हाइब्रिड बीज और कीटनाशक मिलने लगे हैं. इन राज्यों के किसान पहले ऐसी फसलें उगाते थे जिससे पशुओं को भी चारा मिल जाता था.

लेकिन कपास की खेती शुरू होने के बाद दुधारू पशु गायब होने लगे. नकदी फसल के मोह में पशुपालन जो कृषि का ही रूप है, उससे किसान वंचित हो गए. यानी गाय-भैंस के दूध से जो आमदनी किसानों की होती वह बंद हो गई. किसानों के कर्जें माफ हों इसके लिए देश भर से किसान ‘दिल्ली कूच’ करते हैं लेकिन किसानों से हमदर्दी जताने वाले नेताओं और एनजीओ द्वारा कर्ज माफी के अलावा अन्य सार्थक विकल्पों जैसे, क्रॉप पैटर्न में बदलाव और कृषि और पशुपालन के संबंधों को मजबूत बनाने पर बल नहीं दिया जाता.