नमस्कार यह संयुक्त राष्ट्र का हिन्दी बुलेट्न है …


भारत के लिए इस पल को ऐतिहासिक माना जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 जुलाई से साप्ताहिक आधार पर हिंदी समाचार बुलेटिन का प्रसारण शुरू किया है. फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर प्रसारण किया जा रहा है. प्रयोग सफल रहने पर इसके नियमित किया जाएगा.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ख़ुद यह जानकारी सार्वजनिक की है. मीडिया के प्रतिनिधियों से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा का दर्ज़ा दिलाने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं. उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रसारित हिंदी समाचार बुलेटिन 10 मिनट का है. इस बुलेटिन के प्रसारण की ज़िम्मेदारी भारत सरकार उठा रही है. इस पर आने वाला ख़र्च भी वही वहन कर रही है.

उन्हाेंने बताया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा बनाने का जहां तक सवाल है तो इस वैश्विक संस्था के 193 में 129 सदस्य देशों ने इसका समर्थन किया है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र को यह भरोसा भी दिया है कि हिंदी को अधिकृत भाषा का दर्ज़ा देने पर आने वाला पूरा खर्च भारत सरकार उठाने के लिए तैयार है. भारत की तरह जर्मनी और जापान भी जर्मन और जापानी भाषाओं को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा का दर्ज़ा दिलाने और उस पर आने वाला खर्च उठाने को तैयार हैं.

केजरीवाल ने एक ही दिन में 80,000 की शराब पी डाली : सिरसा


बीजेपी विधायक ओपी शर्मा ने कहा है कि जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल जनता के पैसे को अपने निजी कामों में उपयोग कर रहे हैं इसकी हम घोर निंदा करते हैं


दिल्ली में विपक्ष ने पोस्टर के जरिए एक बार फिर अरविंद केजरीवाल और आप सरकार पर निशाना साधा है. आरटीआई में खुलासा हुआ है कि अरविंद केजरीवाल जब बेंगलुरु गए थे तो एक दिन में 80000 रुपये का शराब का बिल सामने आया था. इसी को लेकर अकाली दल के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने केजरीवाल सरकार पर निशाना साधते हुए दिल्ली के तमाम जगहों पर पोस्टर लगाए हैं.

पोस्टर में एक तरफ अरविंद केजरीवाल को शराब पीते हुए दिखाया गया है और दूसरे तरफ भूखे बच्चों की तस्वीर लगाई गई है. बता दें कि इस पोस्टर पर लिखा गया है कि शराब पीने में अरविंद केजरीवाल ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. कुछ दिन पहले ही दिल्ली में भूख से तीन बच्चियों की मौत हुई थी. उस पर भी सवाल लगाए गए हैं और पूछा गया है कि एक तरफ बच्चे भूख से मर रहे हैं दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल पार्टी में मस्त हैं.

बीजेपी विधायक ओपी शर्मा ने कहा है कि जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल जनता के पैसे को अपने निजी कामों में उपयोग कर रहे हैं इसकी हम घोर निंदा करते हैं और अरविंद केजरीवाल से जवाब मांगते हैं कि जनता के पैसे का दुरुपयोग क्यों किया जा रहा है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बेंगलुरु होटल मे 80,000 के शराब बिल पर बीजेपी विधायक ओपी शर्मा ने तंज कसते हुए कहा जनता के पैसे से शराब परोसा जाना बेहद निंदनीय है हम इस कृत्य की घोर निंदा करते हैं.

His Holiness now wants to be the part of China

Sareeka Tewari

Chandigarh

Dalai Lama says Tibetans not asking for independence, can live with China
Tibetan spiritual leader the Dalai Lama courted controversy by stating that Tibet is ready to be part of China provided Beijing agrees to guarantee certain rights.
Tibetan spiritual leader the Dalai Lama addresses during “Thank You Karnataka” an event to mark 60th year of Tibetan arrival to India, in Bengaluru on Aug 10, 2018.
Two days after praising Jinnah over Nehru now
Tibetan spiritual leader His Holiness the Dalai Lama stoked a political flame by stating that Tibet is ready to be part of China provided Beijing agrees to guarantee certain rights.

Speaking at an event organised by the Central Tibetan Administration (CTA) in Bengaluru, the Dalai Lama said, “Tibetans are not asking for independence. We are willing in remaining with the People’s Republic of China, provided we have full rights to preserve our culture.”

 

At the “Thank You Karnataka” event, the 83-year-old Nobel Peace laureate said, “Several of Chinese citizens practicing Buddhism are keen on Tibetan Buddhism as it is considered scientific.”
Dalai Lama Says Sorry if his Remark on Nehru was Wrong.
Dalai Lama’s ‘Tibet Does Not Seek Independence’

On November 25, 2017 while adressing a seminar of CII His Holiness the Dalai Lama’s said that Tibet does not seek independence. His statement drew a mixed reactions from the public. That was the first time the Tibetan leader had so lucidly explained what he wants from China.

The Tibetan Youth Congress (TYC) said that they respected everyone’s opinion but Tibet was an independent country and it is their right to struggle for freedom.

“We are not opposing anything and respect everyone’s opinion. But our struggle is for freedom of Tibet and it will go on,” TYC president Tenzin Jigme said.

The Students for Free Tibet (SFT) who have long been vocal about complete freedom for Tibet stated that there were many things that can be done for Tibet cause. “In any movement for independence there are different methods and ideologies to reach a goal. We respect the Dalai Lama’s vision – this is one thing, but there are so many things that can be done for Tibet cause. The SFT believes that Tibet is an independent country and we are working towards that,” national executive director of the SFT, Tselha, said.

Supporting the Dalai Lama’s stance was the Tibetan Women Association (TWA) who maintained that Dalai Lama had never said Tibet is not an independent country. “We are seeking genuine autonomy. The Dalai Lama has never said that Tibet is not an independent country,” TWA president Dolma Yangchen said.

Tibetan writer and poet Tenzin Tsundue, when asked about the statement, said, “The Dalai Lama’s statement cannot be taken as not wanting independence and supporting China. Given a chance, who would not want freedom? The Dalai Lama is a Buddha, he can envision living with enemy but the demand of the Tibetans is only human, and they want freedom.”
Only two days ago, the 14th Dalai Lama enraged many by saying that India would not have been partitioned had Pakistan’s founding father Muhammed Ali Jinnah become the Prime Minister instead of Jawaharlal Nehru.

During an interaction with students in Goa, the Dalai Lama said, “Mahatma Gandhi wanted to give the prime ministership to (Mohammad Ali) Jinnah. But Nehru refused. He was self-centred. He said, ‘I wanted to be Prime Minister’. India and Pakistan would have been united (had Jinnah been made Prime Minister at the time). Pandit Nehru was wise and experienced. But mistakes do happen.”

As his remarks triggered outrage, the Dalai Lama on Thursday tendered an apology. “My statement has created controversy, I apologise if I said something wrong,” he said.

“I had a close relationship with Nehru, who suggested having separate schools to preserve the Tibetan thought. He (Nehru) supported the Tibetans’ cause,” the 14th Dalai Lama said.

Born in Taktser hamlet in northeastern Tibet, the Dalai Lama was recognised at the age of two as the reincarnation of the 13th Dalai Lama, Thubten Gyatso. He fled to India from Tibet after a failed uprising against the Chinese rule in 1959.

China annexed Tibet in 1950, forcing thousands of Tibetans, including monks, to flee the mountain country and settle in India as refugees.

Since then, India has been home to over 100,000 Tibetans majorly settled in Karnataka, Himachal Pradesh among other states.

राज्य सभा में तीन तलाक को लेकर क्या होगा??


सरकार के एजेंडे में मॉनसून सत्र में तीन तलाक बिल को पास कराना था लेकिन सत्र में कई और दूसरे जरूरी मुद्दे थे जिसको लेकर सरकार ज्यादा जोर दे रही थी


तीन तलाक विधेयक शुक्रवार को राज्यसभा में पेश होने वाला है. मॉनसून सत्र के अाखिरी दिन इस विधेयक के पारित होने पर सस्पेंस बना हुआ है. हालांकि सरकार की पूरी कोशिश है इसे पारित करा लिया जाए लेकिन विपक्ष के विरोधी तेवर को देखते हुए इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, लिहाजा कांग्रेस या फिर दूसरे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उसे दरकार होगी. इसे देखते हुए सरकार ने बिल में कुछ अहम संशोधन भी किए हैं.

संशोधन से क्या विपक्ष को राहत?

कैबिनेट ने तीन तलाक से जुड़े बिल में तीन संशोधन कर उसमें थोड़ी राहत जरूर दी है. अब नए संशोधन के मुताबिक, पहले के बिल के प्रावधानों में से पहले संशोधन के बाद, तीन तलाक में आरोपी पति मुकदमे पर सुनवाई से पहले जमानत की अपील कर सकेगा जिस पर पीड़ित पत्नी का पक्ष लेने के बाद मजिस्ट्रेट जमानत दे सकते हैं लेकिन आरोपी पति को जमानत तभी दी जाएगी, जब पति मजिस्ट्रेट की तरफ से तय किया गया मुआवजा पत्नी को दे दे.

बिल के दूसरे संशोधन के मुताबिक, तीन तलाक के मुद्दे पर एफआईआर तभी दर्ज की जाएगी, जब पीड़ित महिला या उसके किसी रिश्तेदार की तरफ से इस मामले में पुलिस के सामने अपनी तरफ से शिकायत की जाए. पहले बिल में यह प्रावधान था कि अगर पड़ोसी भी इस मामले में पुलिस में शिकायत करे तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है. इसे पीड़ित पक्ष के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है.

बिल के तीसरे प्रावधान के मुताबिक, तीन तलाक का मामला कंपाउंडेबल होगा. इसका मतलब यह हुआ कि मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद पति-पत्नी यानी दोनों ही पक्ष में से कोई भी पक्ष अपना केस वापस ले सकता है. इससे पति-पत्नी के बीच तीन तलाक के मामले को लेकर विवाद का निपटारा मजिस्ट्रेट के स्तर पर भी हो सकता है.

राज्यसभा में विपक्ष का रोड़ा बनी मुसीबत

तीन तलाक बिल पहले ही लोकसभा से पारित हो चुका है. पिछले साल शीतकालीन सत्र में इस बिल को लोकसभा से मंजूरी मिल गई थी लेकिन इस मुद्दे पर कुछ प्रावधानों पर विपक्षी दलों के विरोध के चलते राज्यसभा में यह बिल पारित नहीं हो सका था. कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने तीन तलाक के मामले में सजा के प्रावधान को लेकर अपनी असहमति जताई थी. अभी भी इस मुद्दे पर उनका विरोध जारी है.

हालाकि, सरकार लोकसभा से पारित बिल में संशोधन कर अपने रुख में थोड़ी नरमी दिखाने का संकेत दे रही है लेकिन सजा के प्रावधान को अभी भी बरकरार रखा गया है. यानी सरकार के एक कदम पीछे खींचने के बावजूद इस मुद्दे पर रार होने की पूरी संभावना अभी भी बरकरार है.

लोकसभा से बिल पारित होने के बाद से ही कांग्रेस लगातार इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजे जाने की मांग करती आई है लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इसके चलते यह बिल अभी तक अटका पड़ा है.

डिप्टी चेयरमैन पद पर जीत से बमबम सरकार

राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, लिहाजा कांग्रेस या फिर दूसरे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उसे दरकार होगी. हालाकि राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के पद के लिए हुए चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश की जीत ने ऊपरी सदन में भी सरकार के पक्ष में नए समीकरण और बढ़त का संकेत दिया है. फिर भी, सरकार के लिए तीन तलाक बिल को पास कराना आसान नहीं होगा क्योंकि डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में साथ आए बीजेडी और टीआरएस जैसे दल तीन तलाक बिल के मुद्दे पर भी सरकार का साथ देंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.

मॉनसून सत्र के आखिरी दिन क्यों लाया बिल ?

दरअसल, सरकार के एजेंडे में मॉनसून सत्र में तीन तलाक बिल को पास कराना था लेकिन सत्र में कई और दूसरे जरूरी मुद्दे थे जिसको लेकर सरकार ज्यादा जोर दे रही थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को लेकर भी सरकार काफी संजीदा थी. अब दोनों सदनों से यह बिल पारित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया गया है, जिसमें एससी-एसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दायर करने के बाद तुरंत गिरफ्तारी से रोक हटा दी गई थी. अब फिर से पहले की तरह तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को लागू कर दिया गया है.

इसके अलावा पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले बिल को भी सरकार ने मौजूदा सत्र में पास करा लिया है. सरकार की इन दो बड़ी कोशिशों को बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है. इन दोनों बिल को पास कराने के बाद मौजूदा सत्र में सरकार एससी-एसटी के साथ ओबीसी तबके को भी अपने साथ लाने और उनमें यह संदेश देने में सफल रही है कि सरकार उनके हितों के लिए काम करती है.

क्या कोर वोटर्स को लुभाने की रणनीति?

उधर, राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में भी सरकार को एआईएडीएमके, टीआरएस और बीजेडी को साथ लेना था. सरकार नहीं चाहती थी कि डिप्टी चेयरमैन के चुनाव से पहले किसी तरह का कोई बवाल हो, लिहाजा पहले उस चुनाव में सबको साथ लेकर अपनी जीत तय कर ली गई. उसके बाद सत्र के आखिरी दिन इस मुद्दे को समझदारी से उठा दिया गया. यहां तक कि तीन तलाक बिल में संशोधन का फैसला भी डिप्टी चेयरमैन का चुनाव होने के बाद उसी दिन हुई कैबिनेट की बैठक में तय किया गया.

सरकार की तरफ से भले ही नरमी दिखाई जा रही हो लेकिन इस मुद्दे पर अभी भी आगे बढ़ना आसान नहीं दिख रहा है. हंगामे के आसार भी हैं. मॉनसून सत्र के आखिरी दिन विपक्ष भी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश करेगा. ऐसे में तीन तलाक बिल एक बार फिर से सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अपने-अपने कोर वोटर्स के बीच जगह बनाने की कोशिश भर रह जाएगा. हालात तो ऐसे ही नजर आ रहे हैं.

‘खट्टर हम से सीख ले, कि सही मायनों में विकास कैसे होता है’: केजरीवाल


  • महागठबंधन में शामिल पार्टियों की  देश के विकास में कोई भूमिका नहीं रही है: केजरीवाल

  • चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा 


महागठबंधन में शामिल पार्टियों की  देश के विकास में कोई भूमिका नहीं रही है: केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह ऐलान किया है कि 2019 का लोकसभा चुनाव उनकी पार्टी अकेले ही लड़ेगी. वह बीजेपी के खिलाफ बनी संभावित महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी. केजरीवाल ने कहा कि जो पार्टियां संभावित महागठबंधन में शामिल हो रही हैं, उनकी देश के विकास में कोई भूमिका नहीं रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार ने दिल्ली में कराए जाने वाले विकास कार्यों में रोड़े अटकाए हैं.

केजरीवाल ने गुरुवार को रोहतक में कुछ संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी हरियाणा में विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा की सभी सीटों पर भी चुनाव लड़ेगी.

केजरीवाल ने दिल्ली के रुके हुए कामों के लिए केन्द्र की मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि उनके हर उस कदम को रोका गया जो आम जनता की भलाई के लिए कहा था. उन्होंने दावा किया, ‘हमने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में क्रांतिकारी काम किए हैं.’

उधर बीजेपी को निशाना बनाते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी धर्म के नाम पर सिर्फ दिखावा कर रही है. उसे लोगों की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है. हरियाणा की बीजेपी सरकार को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने दिल्ली के मुकाबले हरियाणा को विकास के क्षेत्र में जहां पिछड़ा हुआ करार दिया तो वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री को सलाह भी दे डाली कि ‘वो हम से सीख ले कि सही मायनों में विकास कैसे होता है.’

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार जब पूर्ण राज्य न होते हुए भी बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है तो हरियाणा में खट्टर सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती है. केजरीवाल ने अंबाला के शहीद हुए जवान के परिवार के लिए हरियाणा सरकार से एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता की मांग की है.

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away after a prolong illness at 5:15 pm in New Delhi. She was 61. Born on 2nd January 1957 to Sh. Manmohan Singh and Smt. Amrit Kaur and later was adopted by Sh. Gurumukh Singh and Mrs Madan Kaur ji.

She got her education at convent of Christian and Mary Mussoorie As a better half of Baba Hardev Singh she supported him in prachar and welfare in india and abroad.

She was the 5th Saduru of nirankari mission

She is survived by three daughters. Samta, Renuka and Sudeeksha

Sadguru Sudiksha ji is the 6th head of Nirankari Mission

The body of Mata ji will be plaed for last ‘darshans’ in Samagam ground no. 8 till 7th of August, 2018, the cremation will be held at Nigam Bodh Ghat on 8th August at 12 noon in electrical crematorium. The mission sources told.

The Shradhaanjli samaroh will take place in samagam ground the same day at 2:00 pm

कांग्रेस हताश, किसी को भी पीएम उम्मीदवार बनाने को तैयारः अनंत कुमार

 

प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती और ममता बनर्जी के नाम पर कांग्रेस की सहमति पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है, ‘ये कांग्रेस की हताशा को दर्शाता है. जिस दिन वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर चयनित किया था. हमने उसी दिन कहा उनकी उम्मीदवारी  के लिए कोई सहमति नहीं होगी.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की साथी पार्टियों में इस कारण विकट परिस्थिति शुरू हो गई है. जब ऐसी स्थिति पैदा होती है तो निराश होकर कोई भी प्रधानमंत्री बने, कैसे भी बने तो हम उसका समर्थन करेंगे. यही स्थिति कांग्रेस की हो गई है.’

वहीं राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के खिलाफ कांग्रेस पार्टी द्वारा विशेषाधिकार हनन लाए जाने के नोटिस पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है कि विशेषाधिकार हनन का नोटिस संसद के नियमों के हिसाब से होता है.

अगर कांग्रेस विशेषाधिकार हनन लाती है तो उसका कोई स्टैंड नहीं करेगा. प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के खिलाफ जो विशेषाधिकार हनन लाने की बात कर रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है. इससे कांग्रेस के लिए अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी.

संसद में जब विशेषाधिकार हनन का नोटिस आता है वो संसद की नियमावली के सूझ-बूझ और ज्ञान, विवेक के हिसाब से देते हैं. हर बार इस तरीके से विशेषाधिकार हनन का नोटिस इस्तेमाल करने का प्रावधान नहीं है. लेकिन बिना सूझ-बूझ और बिना विवेक के कांग्रेस जहां कोई विशेषाधिकार का हनन नहीं है, कोई विशेषाधिकार हनन का कोई मुद्दा ही नहीं बनता है, वहां पर नोटिस दे रही है. तो एक और बार खुलासा होगा कि जो संसदीय प्रक्रिया है उसकी कमी कांग्रेस में.

कास्टिंग काउच: शिकंजा कसा तो बहुत लोगों के नाम होंगे उजागर


केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किया सूचित, 7 प्रोडक्शन हाउसेज का बना पैनल


यौन उत्पीड़न के खिलाफ दक्षिण की लड़कियों ने जंग छेड़ रखी है, अब ये साफ-सफाई अधिनियम शुरू करने के लिए बॉलीवुड की बारी है. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सूचित किया है कि सात बॉलीवुड प्रोडक्शन हाउसेज यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए एक पैनल बनाने पर सहमत हुए हैं.

2017 में मेनका गांधी ने बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं से वर्कप्लेस एक्ट, 2013 में यौन उत्पीड़न का अनुपालन करने और शिकायतों को सुनने के लिए समितियों की स्थापना करने के लिए कहा था. तब से ये आंदोलन हो रहा है और प्रोडक्शन हाउसेज और फिल्म एसोसिएशन ने भी इस तरह के मामलों से निपटने की शुरुआत कर दी है. जब फिल्म के सीईओ और टेलीविजन प्रोड्यूसर कुलमीत मक्कड़ ने पूछा कि क्या मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में कंपनियों के लिए या किसी अन्य उद्योग में उस मामले के लिए काम पर यौन उत्पीड़न नीति है या नहीं. उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल! ये गैर-विचारणीय है और इसे लागू किया जाना चाहिए. हम भारत के निर्माता गिल्ड के रूप में बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री के जरिए पालन किए जाने वाले सर्वोत्तम प्रथाओं की आवश्यकता का समर्थन करते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि कार्यस्थल महिलाओं के काम करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करें’

अमित बहल ने कहा कि, कई प्रोडक्शन हाउसेज में पहले से ही एक सेल है जहां शिकायतों का ख्याल रखा जा रहा है. यहां तक कि सिने और टेलीविजन आर्टिस्ट्स एसोसिएशन भी ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करता है. सुशांत सिंह और मैं अमेरिका और फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल एक्टर्स में हमारे समकक्षों के जरिए शुरू किए गए #मीटू कैंपेन के लिए प्रमुख तौर पर हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं. इसके अलावा हमने निश्चित रूप से ये सुनिश्चित किया है कि कोई भी सदस्य यौन उत्पीड़न और शोषण का कोई मामला होने पर आगे आ सकते हैं और अगर हमें पुलिस के पास जाने और कानूनी लड़ाई लड़ने की जरूरत पड़ती है तो हम अपने सदस्यों की मदद करेंगे.

आश्चर्यजनक बात ये है कि सबसे प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउसेज एक्सेल एंटरटेनमेंट, यश राज और स्फेयर ऑरिजीन के बोर्डों ने अपने बोर्ड्स पर लिखा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं होता है, इसलिए हम चाहते हैं कि सभी लोग उन मानकों का पालन करें जो अनियमित प्रोडक्शन हाउसेज हैं जो रात में ऑपरेट होते हैं. कुछ ऐसे व्यक्तियों के बारे में रिपोर्ट है जिन्होंने सीधे यौन उत्पीड़न के बारे में मंत्रालय को लिखा है जिसमें वो मॉडल, अभिनेत्री और कुछ अभिनेता भी शामिल हैं.

इस बीच हमारे पास कुछ ऐसे नाम हैं जो अधिकारियों के साथ परेशानी में पड़ सकते हैं. इस सूची में शीर्ष की एक ऐसी कंपनी है जो युवा महत्वाकांक्षी अभिनेत्री को संगीत वीडियो का वादा करता है और अक्सर काम के लिए सेक्सुअल फेवर मांगता है. वो उन्हें गलत काम के लिए बुलाता है और अगर वो नहीं करते हैं तो उन्हें काम नहीं मिलता है.

एक फिल्म निर्माता है जो वर्तमान में एक और सीक्वल बनाने की प्रक्रिया में है और फिल्मों में अपनी ‘गर्लफ्रेंड्स’ को मौका दे रहा है, वो भी इस सूची में शामिल है. उनकी आखिरी फिल्म में ऐसी एक अभिनेत्री थी जिसे उस फिल्म के निर्माण के दौरान उनकी ‘वर्तमान’ प्रेमिका माना जाता था. एक अभिनेता-निर्देशक है जिसने एक वरिष्ठ अभिनेता के साथ फिल्म बनाने के दौरान एक अभिनेत्री के साथ गलत किया था उसके बाद उसने फिल्म को प्रमोट नहीं किया, वो भी परेशानी में पड़ने वाला है.

ये अभिनेता-निर्देशक वर्तमान में विदेश में एक फिल्म की शूटिंग कर रहा है, जो खुले तौर पर काम करने वाले लोगों से फेवर मांग रहा है. एक फिल्म निर्माता जो कॉर्पोरेट हाउस के साथ काम करता है, जिसकी कमजोरी ही लड़की है. उसके खिलाफ एक कर्मचारी ने शिकायत दर्ज कराई थी. जिसके बाद उन्हें प्रोडक्शन हाउस से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उनके एक सलाहकार जो उनके दोस्त भी हैं, उन्होंने बॉसेज से अनुरोध किया कि वो उन्हें एक मौका और दें. एक टैलेंट एजेंसी का मालिक है जिसे उसके गलत व्यवहार के लिए हटा दिया गया है, वो भी इस सूची में है. ऐसे कई महत्वाकांक्षी मॉडल और अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने बाद में उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई हैं.

2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

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चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

कर्णाटक में गौ रक्षा दल बनयेगी विश्व हिन्दू परिषद


यह दल रात के वक्त मवेशियों को ले जा रहे सभी संदिग्ध वाहनों को रोकेंगे और दोषियों के पकड़े जाने पर उन्हें पुलिस को सौंपेंगे


विश्व हिंदू परिषद ने कर्नाटक के तटीय दक्षिण कन्नड़ जिले के हर गांव में गौरक्षा दल बनाने का फैसला किया है. ताकि मवेशियों की चोरी और अवैध तरीके से उन्हें लाने ले जाने पर लगाम लगे.

परिषद के मंगलूर संभाग के अध्यक्ष जगदीश शेनावा ने कहा कि मवेशियों की बढ़ती चोरी की घटनाएं और दोषियों की गिरफ्तारी में पुलिस की कथित नाकामी के कारण उन्हें ऐसे दल  बनाने पड़े. उन्होंने कहा कि हर दल में 10 सदस्य होंगे. यह दल रात के वक्त मवेशियों को अवैध तरीके से लाने-ले जाने पर नजर रखेंगे. मवेशियों को ले जा रहे सभी संदिग्ध वाहनों को रोकेंगे और दोषियों के पकड़े जाने पर उन्हें पुलिस को सौंपेंगे.

शेनावा ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद को ऐसा कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि पुलिस जिले में मवेशियों को अवैध तरीके से लाने-ले जाने पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम रही है. उन्होंने कहा कि हिंदू कार्यकर्ताओं को नैतिकता के पहरेदार के तौर पर पेश करने की बजाय पुलिस को मवेशियों का अवैध परिवहन करने वालों के खिलाफ गुंडा कानून के तहत केस दर्ज करना चाहिए.

विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल 26 जुलाई को जिले के वामनजूर में गौहत्या और मवेशियों के अवैध व्यापार को रोकने में अधिकारियों की कथित नाकामी के विरोध में संयुक्त रूप से एक रैली करेंगे.