AAP makes MP nominee Atishi drop ‘Marlena’ from her name because it ‘sounds Christian’


While Atishi’s Twitter handle has changed from @Atishimarlena to @AtishiAAP, her name has also been amended on the AAP website.


AAP leader Atishi Marlena, who has been declared the party’s candidate in the 2019 Lok Sabha election from East Delhi constituency, has dropped her ‘Christian-sounding’ last name ‘Marlena’ from her Twitter handle apparently to dodge attacks from the BJP. However, AAP has refuted the reports that the party had forced her to drop her last name, saying ‘Marlena’ was a given name while her actual surname was ‘Singh’.

While Atishi’s Twitter handle has changed from @Atishimarlena to @AtishiAAP, her name has also been amended on the AAP website. The leader has, however, not given a reason for the recent changes. In fact, Atishi’s last name is also being removed from posters, banners, hoardings and poll pamphlets.

A source told The Indian Express that the party was forced to take the decision as BJP had started a “whisper campaign”, saying Atishi was a Christian and a foreigner. “Was forced to take this decision as BJP started a whisper campaign saying she is a Christian and a foreigner ever since she was declared AAP’s east Delhi in-charge,” the source said.

AAP’s official website mentions her name as only Atishi.

The source also said Atishi’s surname was ‘Singh’ and she herself decided to stop using ‘Marlena’. “But she never used that. Not even in school. Marlena was her second name give by her communist parents. But she decided to stop using that. It was her own decision,” the source added.

A former adviser to Education Minister Manish Sisodia, Atishi is the first candidate to be announced by AAP for the 2019 elections. She belongs to a Punjabi Rajput family. Several reports said that her parents, Dr Tripta Wahi and Dr Vijay Singh, who were leftists, gave her a title combining Marx and Lenin.

Calling Atishi a progressive politician, AAP joint secretary Akshay Marathe said she does not use her surname ‘Singh’ as she does not encourage caste-based politics. “A progressive politician like Atishi who DOES NOT use her caste name ‘Singh’ to ask for votes, is being targeted for using only Atishi without ‘Marlena’. Our discourse is around education and healthcare, not on identities of caste and religion,” Marathe tweeted.

Hitting out at AAP, AIMIM chief and MP Asaduddin Owaisi said this was the reality of Indian politics, where one could not have a “Christian or Muslim-sounding name” to get elected. “This is reality of Indian Electoral Politics to get Elected one cannot have a name which is /might sound like a Christian/Muslim name. That is why we have only 4% Muslims in Lok Sabha out of 14%, all this “TALK”of Secularism fails at time of Voting,” he tweeted.

‘Govt. opposed RBI in court for first time’: Jairam

 

The Congress on Monday alleged that the Centre, for the first time ever, has opposed a circular of the Reserve Bank of India (RBI) in a court of law, to protect the Gujarat State Petroleum Corporation (GSPC) from being declared bankrupt under the new Insolvency and Bankruptcy Code law.

“This is the first time in independent India, in 70 years, that the Government of India challenges a circular of the Reserve Bank in a court. There are always differences between the government and the RBI, but it never [reached] a court of law,” senior Congress leader Jairam Ramesh told reporters at a press briefing.

Circular challenged

On February 12, the RBI had issued a circular stating that any company with over ₹2,000 crore of bank dues should be declared bankrupt if they did not clear them within 180 days. However, this RBI circular has been challenged by a number of private power companies in the Allahabad High Court, arguing that the 180-day period is too short.

On August 2, the Centre too filed an affidavit in the High Court stating that it did not agree with the order.

This move by the Centre, the Congress alleged, was aimed at protecting the GSPC that owes ₹12,519 crore to a consortia of public sectors banks, with the State bank of India (SBI) as the lead lending bank.

“I am making this statement with a full sense of responsibility that these power producers were encouraged by the Government of India to go to the Allahabad High Court to challenge this RBI circular,” Mr. Ramesh said.

He said that as per the RBI circular, the SBI as the lead bank, should initiate action to get the GSPC declared bankrupt under the Insolvency and Bankruptcy Code law.

“This demonstrates the [Modi] government’s approach to institutions and if the RBI circular is not implemented, it will be performing the antim sansksar (last rites) and RBI would have lost all autonomy and credibility,” he said.

“All efforts are being made to ensure that GSPC is not declared bankrupt because if it is done, then it will be a blemish on Prime Minister Modi’s record.”

पीवी सिंधू ने 18वें एशियाई खेलों में रचा इतिहास


रियो ओलंपिक खेलों की रजत विजेता भारत की पीवी सिंधू ने सोमवार को 18वें एशियाई खेलों की बैडमिंटन स्पर्धा के महिला एकल स्वर्ण पदक मुकाबले में पहुंचकर इतिहास रच दिया।


सिंधू भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं जिन्होंने एशियन खेलों के फाइनल में प्रवेश पाया है। उन्होंने महिला एकल सेमीफाइनल मुकाबले में भारी उत्साह और भारतीय समर्थकों के सामने दूसरी सीड जापान की अकाने यामागुची के खिलाफ 66 मिनट तक चले रोमांचक मुकाबले को 21-17, 15-21, 21-10 से जीता।

विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी सिंधू ने यामागुची की चुनौती को स्वीकारते हुये बराबरी की टक्कर दिखाई। पहला गेम जीतने के बाद दूसरे गेम में हालांकि जापानी खिलाड़ी ने कहीं बेहतर खेल दिखाया और 8-10 से सिंधू से पिछड़ने के बाद लगातार भारतीय खिलाड़ी को गलती करने के लिये मजबूर किया और 11-10 तथा 16-12 से बढ़त बना ली।

सिंधू पर दबाव बढ़ता गया और एक समय यामागुची ने स्कोर 17-14 पहुंचा दिया और फिर 20-15 पर गेम प्वांइट जीतकर 21-15 से गेम जीता और मुकाबला 1-1 से बराबर पहुंचा दिया। निर्णायक गेम और भी रोमांचक रहा जिसमें यामागुची ने आत्मविश्वास के साथ शुरूआत करते हुये 7-3 की बढ़त बनाई।  लेकिन सिंधू लगातार अंक लेती रहीं और 5-10 से पिछड़ने के बाद लंबी रैली जीतकर बढ़त बनाई।

उन्होंने 11 अंकों की सबसे बढ़ी बढ़त ली और 16-10 से यामागुची को पीछे छोड़ा और 20-10 पर मैच प्वाइंट जीतकर निर्णायक गेम और मैच अपने नाम कर लिया। तीसरी वरीय खिलाड़ी के सेमीफाइनल मुकाबला जीतने के साथ ही स्टेडियम में बैठे लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी जीत का स्वागत किया।

सिंधू अब फाइनल में भारत को पहला एशियाड स्वर्ण दिलाने के लिये चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ उतरेंगी जिन्होंने दिन के एक अन्य सेमीफाइनल में भारत की सायना नेहवाल को 21-17, 21-14 से पराजित किया।
सायना एशियाई खेलों में महिला एकल का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं।

स्थिर सरकार, योग्य कार्यपालिका ने बदली बस्तर की तस्वीर, विकास ने यहाँ तो पैर पसार ही दिये


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है.


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है. कुछ समय पहले तक राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर सहित लगभग 16 जिलों में नक्सलियों का खुलमखुल्ला तांडव चलता था. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी नक्सलियों के सामने लाचार, विवश और बेसहारा बन कर यह सब देखते रहते थे.सारी मशीनरी नक्सलियों के सामने घुटने टेक देती थी.

30-40 साल बाद एक बार फिर से वही हाथ उठने लगे हैं, एक बार फिर से बंदूकों से गोलियां गरजने लगी हैं, लेकिन अब बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की दिशा बदल गई है. जो आदिवासी पहले कभी नक्सली बन कर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे, वही नक्सली अब छत्तीसगढ़ पुलिस में भर्ती हो कर दूसरे लोगों की जान की रक्षा करने में लग गए हैं. ये वही लोग हैं जो बाकी बचे-खुचे नक्सलियों के खिलाफ भी अब काल बन कर सामने खड़े हो गए हैं. ये लोग समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पाले हुए हैं.

जो लोग कुछ साल पहले तक नक्सली जुल्म का शिकार थे वो अब सहकारी समिति के माध्यम से पॉस्चराइजेशन प्लांट में दूध बेच कर पैसे कमा रहे हैं. इसके अलावा परम्परागत जैविक खेती कर चावल पैदा कर रहे हैं और मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े व्यापारिक हब को निर्यात भी कर रहे हैं.

जिन सड़कों पर कभी आदिवासी महिलाएं सिर पर लकड़ी लेकर जाती थीं वही महिलाएं अब बेहतरीन सड़कों पर सार्वजनिक यातायात के जरिए गैस का सिलेंडर लेकर जाते हुए देखी जा सकती हैं. गांव की दुकानों और बाजारों में पहले जो वीरानी छाई रहती थी, उन दुकानों और बाजारों में अब रौनक रहती है.

दंतेवाड़ा जिले के बोमड़ा पारा ब्लॉक के जावंगा गांव की एक महिला बुड़िया, गांव की खूबसूरत सड़क के किनारे खड़ी होकर टूटी-फूटी हिंदी में बात करते हुए कहती हैं, मैं अब घर पर ही ज्यादा काम करने लगी हूं. अभी पति के साथ साइकिल से गांव से बाजार आई हूं. पति के साथ खेती में सहयोग करती हूं. दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा है और सात साल की बेटी. दोनों बच्चे स्कूल गए हैं, इसलिए हमलोग बाजार में सामान खरीदने आए हैं. पति जैविक खेती करते हैं. पति का भी सहकारी समिति में कुछ काम था इसलिए हमलोग दोनों एक साथ बाजार आए हैं.’

बुड़िया से पत्रकारों  ने सवाल किया कि आपके लिए राज्य के सीएम रमन सिंह ने क्या-क्या काम किया है तो उस पर बुडिया कहती हैं, ‘राशन अब समय पर मिलने लगा है. पहले हमलोग राशन लेने नहीं जाते थे. अपने खेत का उपजा हुआ चावल ही खाते थे. लेकिन, अब हमें सरकार की तरफ से मदद मिलने लगी है. गांव में बिजली भी आ गई है. 20 से 22 घंटे बिजली रहती है. गांव में ही पानी भी पहुंचने वाला है. कलेक्टर साहेब अक्सर गांव आते रहते हैं. पानी लाने के लिए हमें अब दूर नहीं जाना पड़ता है.’

आतंक की त्रासदी में दशकों जीने को मजबूर ये लोग अब अपने दम पर खड़े हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें अनाज का उत्पादन ही नहीं, उत्पादकता भी बढ़ी है. यानी लागत कम, अनाज ज्यादा. यहां के युवाओं को बीपीओ के जरिए रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. यहां के युवा किसी भी दूसरे शहर के लड़के-लड़कियों की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते मिल जाते हैं.

दंतेवाड़ा के एक बीपीओ में काम करने वाली और दंतेवाड़ा के ही पीजी कॉलेज से एमए पास मीना सेनापति कहती हैं, ‘पहले मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं थी. मैंने 45 दिनों की बीपीओ ट्रेनिंग ली. मेरे बातचीत करने का तरीका बेहतर हुआ है. मुझे 8 हजार की नौकरी भी मिल गई है.’

दंतेवाड़ा के इसी बीपीओ में काम करने वाली नीता देशमुख कहती हैं, ‘मैं ग्रेजुएट हूं. दंतेवाड़ा में गीदम एक जगह है वहां की रहने वाली हूं. सात महीने पहले मैं इस बीपीओ में आई थी, तब मुझे कुछ नहीं आता था. मेरा सपना था कि मैं वेब डिजायनर बनूं, लेकिन पैसे की कमी के कारण मेरा सपना पूरा नहीं हो रहा था. लेकिन अब मुझे आठ हजार रुपए मिलते हैं, जिससे मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूं. पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं. मैं चार बहनों में दूसरे नंबर पर हूं. दो बहन की शादी हो चुकी है.’

इसी तरह बछेली की रहने वाली कांति नाग, दंतेवाड़ा की रहनेवाली निधि बैरागी और रवि प्रकाश बीपीओ में काम कर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. इन युवाओं को सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली हिना सिंह, जिनके पिता नौकरी करने सालों पहले कर्नाटक से दंतेवाड़ा आ गए थे, कहती हैं, ‘मैं एक ट्यूटर हूं. पिछले 21 सालों से ट्यूशन पढ़ाती आ रही हूं. इस बीपीओ के जरिए मुझे फिक्स्ड सैलेरी मिल रही है. पति ड्राइवर का काम करते हैं. यहां से छूटने पर मैं 10वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाती भी हूं.’

दूसरी तरफ दिव्यांग बच्चों के लिए भी दंतेवाड़ा में एक शानदार मुकबधिर स्कूल चलाया जा रहा है. हाल ही में इस स्कूल में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दौरा किया था. यहां पढ़ने वाली दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लॉक के माड़ेंदा गांव की हड्मा हंस कर कहती हैं, ‘बहरेपन का इलाज नहीं होने पर भी वे इशारों में बात कर लेती थीं पर अब सरकारी इलाज के बाद यह फायदा हुआ है कि दूसरे उनके बारे में क्या कह रहे हैं यह सुन सकती हूं. आम लोगों की तरह संवाद कर सकती हूं.’

आज से कुछ साल पहले तक छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सातों जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर जिले का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय तारी हो जाता था. कहा जाता था अगर एक तरफ से कोई हिंसक जानवर हमला करे और दूसरी तरफ से नक्सली तो लोग पहले की तरफ भागना पसंद करते थे. यही सोच कर कि जानवर तो सिर्फ एक झटके में मारेगा. तड़पना तो नहीं पड़ेगा.

सालों बाद आज स्थानीय अखबारों में खबर देखने को मिलती है कि इस अप्रतिमरूप से प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हाथ-से-हाथ न दीखने वाले जंगल से घिरे अमुक गांव मे एक-दो नक्सलियों ने मोबाइल छीन लिया. दरअसल स्थानीय मीडिया भी अब नक्सली और औसत अपराधी को समानार्थी समझने लगा है. यह स्थिति चरम वामपंथ जो पिछले 60 सालों में ‘राज्य-पोषित शोषण को हथियार से खत्म करने’ के नाम पर देश के 10-12 राज्यों में लंपटवादी आतंक का पर्याय बन गया था, अब पता चला कि सड़क-छाप गुंडई के रूप में अंतिम सांसें गिन रहा है.

यह सब कुछ संभव कैसे हुआ !

कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कुछ प्रचार सामग्री (बुकलेट) छापी, जो बाहर से आने वाले किसी भी स्वतंत्र विश्लेषक को उपलब्ध होती है, लेकिन चूंकि यह सरकारी ज्ञान होता है, जिस पर सहज विश्वास करना मुश्किल होता है, लिहाजा तस्दीक के लिए हमारी टीम हाईवे के पास के गांव में निकल गई. सड़क के पास ही कुछ आदिवासी महिलाएं गैस सिलिंडर के साथ दिखीं. उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. इन महिलाओं से पूछने की कोशिश की तो टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, ‘सरकार ने दिया है. जलाना आता है का जवाब हंस कर देती हैं, घर जा कर किसी से पूछेंगे.

कैसे स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है प्रशासन?

इस राज्य में एक व्यक्ति और एक पार्टी का शासन पिछले 15 साल से जारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से युवा आईइएस और आईपीएस अधिकारियों में इस बात की होड़ लगी है कि कौन विकास के नए विचार अमल में लाता है या कौन कानून व्यवस्था को ज्यादा दुरुस्त करता है. विकास के 31 पैरामीटर्स पर कौन जिलाधिकारी इस माह किससे आगे या पीछे रह गया है, इसकी समीक्षा की जाती है. साथ ही, अधिकारियों को तबादले की चाबुक से डराने का खेल यहां नहीं चलता.

सौरभ कुमार सिंह

चार साल से भी ज्यादा समय से दंतेवाड़ा में तैनात 2009 बैच के आईएएस अधिकारी और जिले के डीएम सौरभ कुमार सिंह हमसे बात करते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि एक आईएएस अधिकारी को काम करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य ही बने हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर काम करने की संभावना सबसे ज्यादा हैं. किसी भी स्तर के अधिकारी को अगर सच में कुछ कर के दिखाना है तो दो चीजें होनी चाहिए, पहली काम करने के लिए ऐसी परिस्थितियां होनी चाहिए, जो आपके काम को प्रमोट करें. जिसके लिए पोलिटिकल स्टेबलिटी होना बहुत ही आवश्यक है. दूसरा, एक ऐसा एनवायरमेंट होना चाहिए जिससे आप एक निश्चित समय-सीमा में काम कर दिखा सकें. हम अगर बात करें साल 2015 या 2016 की तो जिले में संस्थागत प्रसव रेट 38 प्रतिशत था. आज की तारिख में यह 78 प्रतिशत है. अब महिलाएं अस्पताल में जाकर प्रसव करा रही हैं. ये सब तभी संभव हो पाता है जब आपको एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिले. ये सब छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ही आपको करने को मिलेगा. ’

सौरभ कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘दंतेवाड़ा में प्राइवेट सेक्टर में पिछले छह महीने में रोजगार डबल हो गए हैं. अगर जिले में योजनाओं की बात करें तो यहां पर एससीए या भारत सरकार की होम मिनिस्ट्री के जरिए जो पैसा आता है उससे कहीं अधिक पैसा दंतेवाड़ा जिले को माइनिंग फंड से मिलता है, जिसमें राज्य शासन ने जो नियम बनाए हैं उसमें ज्यादातर अधिकार जिले के कलेक्टर को दिए हैं. उसी के समकक्ष जिले में जो बड़ी इंडस्ट्री चल रही जैसे एनएमडीसी के सीएसआर का पैसा भी आता है. इन पैसों के इस्तेमाल का अधिकार राज्य शासन ने कलेक्टर को दे रखा है. मेरा मानना है कि सबके अंदर कुछ न कुछ कर के दिखाने की चाहत होती है चाहे वह नेता हों या अधिकारी. हम साल में एक हजार युवक और युवतियों को नौकरी देने का काम करते हैं तो इसमें हमें कौन रोक सकता है. हजारों महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ली कूपर और रेमंड जैसी कंपनियों से उनके पास सिलाई के ऑफर आ रहे हैं तो इसमें कौन रोक सकता है. चाहे नेता हों या जनता हो या फिर कोई और लोग सकारात्मक चीजों के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

‘दंतेवाड़ा जिले में हमलोग यही काम कर रहे हैं. जिले में एक जैविक कैफे चल रहा है, जो किसानों की एक कंपनी चला रही है. हमको हरियाणा, पंजाब की तरह उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को अलग बनाना है. अगर रोजगार की बात करें तो हम गुरुग्राम और नोएडा से कंपेयर नहीं कर सकते हैं, पर अगर यहां के युवाओं को हम 8 हजार रुपए दे कर रोजगार दे रहे हैं तो क्या यह कम है. जिले की 150 महिला समूह ऑटो चला रही हैं. हमने सड़कें तो बना दी लेकिन लोगों के आय का लेवल इतना नहीं है कि वह ऑटो खरीद सकें. उनको हम ऑटो प्रोवाइड कर रहे हैं. 210 महिला समूह एक अलग जाति का कड़कनाथ मुर्गे का प्रजनन कर रहे हैं.’

दंतेवाड़ा के डीएम जहां जिले में विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं वहीं जिले के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव नक्सलियों के मंसूबे को तहस-नहस कर नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रहे हैं. और यह सब तब शायद संभव नहीं होता अगर राज्य सरकार के द्वारा युवा पुलिस अधिकारियों के लिए रणनीतिक परिवर्तन न किया होता.

इस प्रश्न पर कि सड़कों पर इस बीहड़ जंगल में भी पुलिस नहीं दिखाई दे रही है और क्या कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं है या फिर पुलिस का अभाव है, दंतेवाडा के युवा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘नहीं अब पुलिस आप को ही नहीं, नक्सलियों को भी दिखाई नहीं देती बस उन्हें गोली की आवाज सुनाई देती है और उनके समझने के पहले वे इसका शिकार हो चुके होते हैं. आपको बता दें कि सीआरपीएफ छत्तीसगढ़ में 2003-04 में आई. इससे पहले हमलोग यहां की भाषा को नहीं जानते थे. यहां के लोगों के कल्चर के बारे में हमलोगों को पता नहीं रहता था. छत्तीसगढ़ पुलिस में भी जो लोग थे वह छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों के थे. स्थानीय भागादारी बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी काम किया है. इसमें एक है सरेंडर और रिहैब पॉलिसी, जिसके अंदर कोई भी ग्रामीण या नक्सली सरेंडर करता है या पुलिस को मदद करता जिससे हम दूसरे नक्सलियों को पकड़ पाते हैं. ऐसे लोगों को एसपी के रिकंमडेशन पर आईजी सिपाही के तौर पर भर्ती कर लेते हैं. धीरे-धीरे काफी नक्सलियों ने सरेंडर किया है. अगर बात सिर्फ दंतेवाड़ा जिले की करें तो यहां पर 70 से 80 सिपाही सरेंडर्ड नक्सली हैं.’

अभिषेक पल्लव

अभिषेक पल्लव आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ साल पहले डिस्टिक रिजर्व ग्रुप के नाम से एक लोकल ग्रुप बनाया. इसमें बस्तर निवासियों को अपने जिले में ही पुलिस की नौकरी करने के लिए पद निकाले गए थे. ऐसे 200 पद दंतेवाड़ा जिले में भी रिलिज किए गए थे. ये दो ग्रुप हैं, जिससे लोकल लोग हमलोगों को मिलते हैं. हमारी इस नीति को सीआरपीएफ ने भी हाल ही में आजमाया है. पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तरिया बटालियन के लिए 750 बस्तर के ही युवक और युवतियों को नियुक्त किया. हमारे लिए लोकल लोगों का पुलिस में आना काफी फायदेमंद रहा. इन लोगों और उनके परिवार के जरिए हमें काफी सूचनाएं मिलती हैं. इनकी सटीक सूचनाओं और नक्सलियों के काम करने की गतिविधि को उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले योगेश मानवी, जो आठवीं पास हैं, 1998 में ही नक्सली बन गए थे. साल 2012 में आत्मसमर्पण के बाद आज 25 हजार की पगार पर छत्तीसगढ़ पुलिस में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह परशुराम आलमी 2007 में नक्सली बन गए थे. साल 2015 में सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस में नक्सलियों को खत्म करने या मुख्यधारा में लौटने में मदद कर रहे हैं. आलमी पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसी तरह 5वीं पास पोडिया तेलम 2001 में नक्सली बन गए थे. 2014 में समाज की मुख्यधारा में लौट कर परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं.

सुरक्षा सिद्धांतों में इस रणनीति को अदृष्टिगोचर सिक्योरिटी कहते हैं. पहले जहां जंगल के ऊंचे टीलों से ये जवानों को शिकार बनाते थे. आज पुलिस का उन ठिकानों पर कब्जा है. डरकर नक्सली या तो मौत के डर से मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं या फिर अंदर जंगलों में तिल-तिल कर मर रहे हैं. अब अदिवासियों पर भी उनका खौफ नहीं रहा है और सामूहिक रूप से उन्हें नकारने की क्षमता भी आ गई है. पुलिस अधीक्षक से यह मुलाकात अचानक ही थी लेकिन बड़े भरोसे से उन्होंने कहा ‘आप जहां हैं सिर्फ थोड़ी दूर घने जंगलों में नजर डालें आपको पुलिस की अदृश्य लेकिन सतर्क मुश्तैदी का एहसास हो जाएगा. और यह बात तब सच लगी जब उनके साथ हमारी टीम घने जंगलों से चित्रकोट तक का सफर किया.

कुलमिलाकर कुछ साल पहले तक राज्य के नक्सल प्रभावित 16 से 18 जिलों में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी. खासकर बस्तर संभाग के सभी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को समझने वाला दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता था. इसका कारण था कि यहां पर नक्सलियों के द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती थी, लेकिन समय बदला, सरकार बदली और ब्यूरोक्रेसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को बखुबी निभाया,जिसका नतीजा आज पूरे देश के सामने है. इन इलाकों में न केवल नक्सली घटनाओं में कमी आई बल्कि इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर से लेकर शिक्षा और स्वरोजगार में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है.

खिलाड़ियों के आने से पहले इनामों की बौछार

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एथलीटों को अपने इन प्रदर्शन के लिए इनामों के दिए जाने भी शुरू हो गए हैं


भारत एशियन गेम्स में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. भारतीय खिलाड़ियों ने अब तक देश को कई मेडल दिला चुके हैं. एथलीटों को अपने इन प्रदर्शन के लिए इनामों  के दिए जाने भी शुरू हो गए हैं.

उडिशा सरकार ने 18वें एशियाई खेलों में महिला 100 मीटर दौड़ में सिल्वर मेडल जीतने वाली एथलीट दुती चंद के लिए 1.5 करोड़ रुपए के नकद पुरस्कार की घोषणा की. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने दुती को मेडल जीतने पर बधाई दी थी. मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया, ‘यह गर्व का विषय है कि ओडिशा की एक खिलाड़ी ने देश के लिए गौरव अर्जित किया है.’

बयान में कहा गया, ‘दुती चंद के जज्बे और दृढ़ निश्चय की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री ने उनके लिए डेढ़ करोड़ रुपए के नकद पुरस्कार की घोषणा की है.’इससे पहले 1998 के एशियाई खेलों में ओडिशा की धाविका रचिता पांडा मिस्त्री ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था.

Jakarta: Indian athlete Dutee Chand during the women’s 100m semifinal track event at the 18th Asian Games 2018 in Jakarta, Indonesia on Sunday, Aug 26, 2018.

तमिलनाडु सरकार ने इंडोनेशिया में मौजूदा एशियाई खेलों में मेडल जीतने वाले राज्य के स्क्वॉश खिलाड़ियों की सराहना की और प्रत्येक को 20 लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की.

मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी ने जोशना चिनप्पा, दीपिका पल्लीकल कार्तिक और सौरव घोषाल को जकार्ता और पालेमबांग में चल रहे खेलों की स्क्वाश व्यक्तिगत स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने के लिए बधाई दी और देश तथा राज्य को गौरवांवित करके लिए उनकी सराहना की. मुख्यमंत्री ने इस साल कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उनके अच्छे प्रदर्शन को याद किया.

जो लाएगा जायदा सीटें वही होगा पीएम कुर्सी का दावेदार: पवार

 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने सोमवार को कहा कि 2019 के चुनाव में अधिकतम सीटें जीतने वाली पार्टी ही प्रधानमंत्री पद के लिए दावा करेगी. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान पर भी ‘खुशी’ जाहिर की, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखते हैं.

पवार ने कहा, ‘चुनाव होने दीजिए, इन लोगों (बीजेपी) को सत्ता से बेदखल होने दीजिए. हम एकसाथ बैठेंगे. अधिक सीट जीतने वाली पार्टी प्रधानमंत्री पद पर दावा कर सकती है.’

उन्होंने मुंबई में पार्टी की बैठक में कहा, ‘मैं इस बात से खुश हूं कि कांग्रेस नेता (राहुल गांधी) ने भी कहा है कि वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं.’ राहुल गांधी ने रविवार को कहा था कि वह प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं देखते हैं.

राहुल गांधी ने कहा था, ‘मैं इस तरह के सपने नहीं देखता. मैं खुद को एक वैचारिक लड़ाई लड़ने वाले के तौर पर देखता हूं और यह बदलाव मेरे अंदर 2014 के बाद आया. मुझे महसूस हुआ कि जिस तरह की घटनाएं देश में हो रही है उससे भारत और भारतीयता को खतरा है. मुझे इससे देश की रक्षा करनी है.’

दिलाई यूपीए-1 की याद

मुंबई में आयोजित बैठक में पवार ने एनसीपी नेताओं को याद दिलाया कि 2004 के आम चुनाव के बाद गठित यूपीए ने तत्कालीन एनडीए सरकार को सत्ता से बेदखल किया था. उन्होंने कहा कि वह हर राज्य में जाकर ऐसे क्षेत्रीय दलों को विपक्षी गठबंधन के साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे जो अभी बीजेपी के साथ नहीं हैं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है. उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश हैं. हर राज्य की स्थिति अलग है. इसलिए हमें हर राज्य में मजबूत लोगों को अपने साथ लेना होगा.’

वाम पंथ की ओझल होती राजनैतिक स्थिति से दुखी हैं अमर्तय सेन


सेन वामदलों की विचारधारा से प्रेरित और प्रभावित हैं. उन्हें सिमटते वामदल की चिंता सता रही है. अमर्त्य सेन विकास के गुजरात मॉडल को खारिज कर केरल को विकास का मॉडल मानते और बताते रहे हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बढ़ते प्रभुत्व का भी असर उनके बयानों में दिखाई देता है.


मोदी विरोध की राजनीति के दौर में नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम बनने से रोकने के लिये अब राजनीति ने नया अर्थशास्त्र गढ़ा है. नोबल पुरस्कार से सम्मानित ‘भारत रत्न’ अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी गैर सांप्रदायिक पार्टियों से एकजुट होने की अपील की है ताकि एनडीए को सत्ता में आने से रोका जाए.

अमर्त्य सेन की इस अपील का आखिर राज़ क्या है? क्या ये विपक्षी दलों में एकता फूंकने की ‘कौटिल्य-नीति’ है? आखिर मोदी विरोध की नीति के पीछे अमर्त्य सेन का कौन सा दर्द छिपा हुआ है?

अमर्त्य सेन ने बीजेपी पर हमला करते हुए उसे एक वो बीमार पार्टी बताया जिसने 55 फीसदी सीटों के साथ सत्ता हासिल कर ली जबकि उसे केवल 31 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे. सेन बीजेपी को गलत इरादों से सत्ता में आई पार्टी मानते हैं. क्या माना जाए कि अमर्त्य सेन के मुताबिक देश की जनता ने ‘गलत इरादों वाली पार्टी’ को देश सौंपा है?

साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अब अमर्त्य सेन साल 2014 की ही तरह एक्टिव हो गए हैं. एक बार फिर अर्थशास्त्री और बीजेपी आमने-सामने हैं. सवाल उठता है कि आखिर अमर्त्य सेन को एनडीए या फिर मोदी सरकार से क्या नाराजगी है? दरअसल साल 2014 में भी अमर्त्य सेन ने मोदी के पीएम पद की दावेदारी का जोरदार विरोध किया था.

अमर्त्य सेन की अपील विपक्ष के लिये अमर-वाणी हो सकती है. लेकिन पिछले पांच साल से बीजेपी को सेन के शब्दों के एक-एक बाण गहरे तक लग रहे हैं. तभी बीजेपी ने पलटवार करते हुए अमर्त्य सेन की तुलना उन बुद्धिजीवियों से की है जिन्होंने हमेशा समाज को गुमराह किया.

अमर्त्य सेन को साल 1998 में अर्थशास्त्र के लिये नोबल पुरस्कार मिला था. बंगाल की मिट्टी से उभरे अर्थशास्त्र के नायक अमर्त्य सेन ने गरीबों, स्वास्थ और शिक्षा को लेकर अपने विचारों से दुनिया में सबका ध्यान खींचा था. लेकिन आज वो एनडीए को सत्ता में आने से रोकने की अपील कर देश में सबका ध्यान खींच रहे हैं. खासबात ये है कि अमर्त्य सेन को एनडीए सरकार ने ही ‘भारत-रत्न’ दिया था. उस वक्त एनडीए सरकार के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी थे.

लाल बिहारी जोशी

लेकिन साल 2014 आते आते अमर्त्य सेन की एनडीए को लेकर मानसिकता बदल गई. साल 2014 में जब बीजेपी ने गुजरात के तत्तकालीन सीएम नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तो अमर्त्य सेन ने इसका विरोध किया. सेन ने मोदी की पीएम पद की दावेदारी पर सवाल उठाए. जिसके बाद बीजेपी के पश्चिम बंगाल से नेता चंदन मित्रा ने ‘भारत-रत्न’ वापस लेने तक की मांग कर डाली थी. अमर्त्य सेन के विचारों को निजी विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता कर कांग्रेस और वामदलों ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला था.

इसके बाद से लगातार ही अमर्त्य सेन मोदी सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि पीएम मोदी को आर्थिक विकास के मामलों की समझ नही हैं. उन्होंने नोटबंदी को दिशाहीन मिसाइल कहते हुए गलत फैसला बताया.

अमर्त्य सेन के पीएम मोदी के खिलाफ राजनीतिक विचार अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैं तो उनके निजी विचार मोदी के प्रति उनके निजी मतभेदों को ही जताते हैं. नालंदा यूनिवर्सिटी से कुलपति पद से इस्तीफा देने के बाद से अमर्त्य सेन की अभिव्यक्ति की आजादी में तल्खी बढ़ती ही जा रही है.

जिस तरह से सेन ने साल 2014 में मोदी की उम्मीदवारी पर सवाल उठाए थे उसी तरह साल 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अब वो बीजेपी पर सवाल उठा रहे हैं. सेन का कहना है कि लोकतंत्र खतरे में है और निरंकुशता के खिलाफ विरोध जताना चाहिए. लेकिन इस बार चंदन मित्रा की जगह मोर्चा संभाला है पश्चिम बंगाल से बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने. घोष ने कहा कि वाम विचारधारा का अनुसरण करने वाले सेन जैसे बुद्धिजीवी वास्तविकता से दूर रहे हैं.

अमर्त्य सेन मोदी सरकार के विरोध में अपने बयान देने में ‘मुखर’ अर्थशास्त्री हैं. उन्हें जब भी मोदी सरकार को घेरने का मौका मिला वो निशाना लगाने से नहीं चूके हैं. जेएनयू में देशद्रोह के मामले में भी अमर्त्य सेन की राय सरकार के बेहद खिलाफ थी. सेन ने कहा था कि जिन छात्रों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया उन पर आरोप साबित नहीं हुए और छात्रों की कस्टडी में पिटाई कानून के खिलाफ हैं. सेन ने देश में अराजकता और असहिष्णुता जैसे हालातों का हवाला देते हुए कहा कि देश में लोगों को इंसाफ नहीं मिल रहा है.

आज अमर्त्य सेन जिस तरह से मोदी सरकार पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा रहे हैं, वो उनके पूर्वाग्रह को ही परिभाषित करता है. यूपीए सरकार में सलाहकार रहने वाले अमर्त्य सेन को 84 के सिख दंगे या फिर भागलपुर और मुजफ्फरनगर के दंगे नहीं दिखाई देते हैं. वो पश्चिम बंगाल में होने वाली सांप्रदायिक हिंसा पर चुप रहना ठीक समझते हैं. केरल में बीजेपी या फिर संघ के कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर उन्हें निरंकुश होती सत्तासीन ताकतों की क्रूरता नहीं दिखाई देती.

1984-सीख विरोधी दंगे जो अमर्तय सेन को कभी सुने ही नहीं

अमर्त्य सेन का ये बयान निजी विचारों के बावजूद किसी राजनीतिक दल के नजरिये से मेल खाते हैं. तभी बीजेपी उन पर किसी पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर बोलने का आरोप लगाती आई है.

दुनिया अमर्त्य सेन को उनके आर्थिक सिद्धांतों की वजह से जानती है. हिंदुस्तान के विकास और विकास के मॉडल पर नजर रखने वाले अमर्त्य सेन मोदी सरकार पर स्वास्थ और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों पर सवाल उठाते रहे हैं. लेकिन ये विडंबना ही है कि यूपीए सरकार को आर्थिक सुधारों,स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में सलाह देने की जरूरत नहीं महसूस हुई.

अमर्त्य सेन ने अपनी किताब ‘भारत और उसके विरोधाभास’ पर चर्चा के वक्त कहा था कि साल 2014 के बाद से देश गलत दिशा में आगे बढ़ रहा है. हाल ही सेन ने कहा था कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से सामाजिक क्षेत्रों से ध्यान हटा है और देश में जरूरी और बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

अमर्त्य सेन की छवि एक आम अर्थशास्त्री से अलग है. जहां उन्होंने अर्थशास्त्रों के नए सिद्धांतों की व्याख्या की तो वहीं उन्होंने स्त्री-पुरुष असमानता, गरीबी, विकास और अकाल पर भी किताबें लिखी हैं. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि एक सम्मानित शख्सीयत होते हुए क्या उन्हें राजनीतिक विचार रखने चाहिये या खुद को किसी खास विचारधारा से जुड़ी पार्टी के प्रवक्ता की तरह पेश करना चाहिये?

सेन वामदलों की विचारधारा से प्रेरित और प्रभावित हैं. उन्हें सिमटते वामदल की चिंता सता रही है. अमर्त्य सेन विकास के गुजरात मॉडल को खारिज कर केरल को विकास का मॉडल मानते और बताते रहे हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बढ़ते प्रभुत्व का भी असर उनके बयानों में दिखाई देता है. कहीं न कहीं सेन ये नहीं चाहेंगे कि पश्चिम बंगाल की जमीन पर वामपंथ बीजेपी की वजह से पूरी तरह हाशिए पर चला जाए. शायद तभी लगता है कि वो गैर-सांप्रदायिक पार्टियों के नाम पर दरअसल बीजेपी को रोकने की बात कर वामपंथ को बचाने की भी गुहार लगा रहे हैं.

राम रहीम के पास पहुंची डेरा की चेयरपर्सन शोभा गोरा, पैरोल की संभावना


 

रविवार को रक्षा बंधन के पर्व पर जेल में दो दुष्कर्मों की सजा काट रहे राम रहीम के परिजन उनसे मिलने के लिए सुनारिया जेल पहुंचे। शाम करीब चार बजकर दस मिनट पर परिजन जेल पहुंचे। परिवार के सदस्यों में पुत्रवधु व दोनों बेटियां के अलावा पोती व पोता शामिल थे।

साथ ही डेरा साचा सौदा की चेयरपर्सन शोभा गोरा भी सुनारिया जेल पहुंची। जहां करीब आधे घंटे तक राम रहीम से मुलाकात की। जिसके चलते राम रहीम भावुक भी हो गए। सभी चार बजकर 40 मिनट तक जेल परिसर में रहे।

वहीं डेरा सच्चा सौदा की चेयरपर्सन शोभा गोरा के साथ राम रहीम की विशेष मुलाकात रही। जिसके बाद चेयरपर्सन ने बताया कि यह सामान्य दौरा था। किसी प्रकार कि कोई परेशानी नहीं है। डेरा संचालक का स्वास्थ्य ठीक है। वहीं बताया कि 28 अगस्त के बाद जेल से पेरौल मिलने की सम्भावना है।

साधुओं को नपुंसक बनाने का मामला अड़चन बन सकता है। जमानत न होने तक पेरौल में भी क़ानूनी अड़चन रहेगी। जमानत मिलने के बाद पेरौल के लिए अर्जी देने का रास्ता खुलेगा। सीबीआई कोर्ट इस मामले में तीन दिन पहले उसकी जमानत याचिका ख़ारिज कर चुकी है।

अमरिंदर 1984 दंगों के चश्मदीद गवाह हैं: सुखबीर बादल

 

1984 सिख दंगों के मामले में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा, ‘अमरिंदर सिंह को सुप्रीम कोर्ट को लिखकर बताना चाहिए कि वह इस केस के मुख्य गवाह हैं.’

सुखबीर ने कहा, ‘कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस मामले में 5 नाम लिए लेकिन उनके मन में जगदीश टाइटलर के लिए मुलायम कोना है.’ बता दें कि पंजाब के सीएम ने दंगे मामले में पांच लोगों का नाम लिया था. जिसमें सज्जन कुमार, धर्मदास शास्त्री, अर्जुन दास का नाम शामिल है.

बता दें कि रविवार को अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पर भड़कते हुए अमरिंदर सिंह ने कहा था, ‘1984 के दंगों को लेकर राहुल गांधी पर हमला करना अनुचित है, क्योंकि राहुल उस समय बच्चे थे और स्कूल में पढ़ते थे’ दरअसल कुछ समय पहले राहुल ने कहा था, ‘1984 के दंगों में कांग्रेस संलिप्त नहीं थी.’

वहीं सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि 1984 के दंगों में राहुल गांधी भी भागीदार थे. अमरिंदर ने सुखबीर के इस बयान को मूर्खतापूर्ण बताया था और कहा था कि राहुल पर इस मामले में आरोप लगाना सुखबीर की राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है.

एचएस फूलका की राहुल को खुली बहस की चुनौती


बीजेपी ने सिख दंगों को लेकर एक वीडियो ट्वीट जारी किया है जिसमें राहुल गांधी 4 साल पहले मान रहे हैं कि कांग्रेस के नेता इसमें शामिल थे जबकि अब उन्होंने इसमें पार्टी की संलिप्तता से साफ इनकार किया है


विदेश दौरे पर गए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी सार्वजनिक मंच से कह रहे हैं कि 1984 में हुए सिख दंगों में पार्टी की कोई भूमिका नहीं है. लेकिन उनके इस बयान से देश में सिख दंगों को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ हो गई है.

आम आदमी पार्टी (आप) से लेकर बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने इसे लेकर उनपर तीखा हमला बोला है. केंद्रीय मंत्री और अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा, ‘राहुल गांधी ने लंदन में कहा कि 1984 के सिख दंगों में कांग्रेस का कोई हाथ नहीं था. इसी तरह अगर मैं भी उनके (राहुल गांधी) दिमाग की तरह बोलूं तो उनके पिता (राजीव गांधी) और दादी (इंदिरा गांधी) की हत्या नहीं हुई बल्कि उन दोनों की मौत दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है.’

 

वहीं आप नेता एचएस फुल्का ने राहुल के बयान को गलत करार देते हुए इस पर खुली बहस की चुनौती दी है. फुल्का ने कहा, ‘राहुल गांधी का वो बयान जिसमें उन्होंने सिख विरोधी दंगे के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार नहीं माना है पूरी तरह गलत है. इसलिए मैंने उन्हें खुली चुनौती की बहस दी है जिसमें मैं कांग्रेस और उनके पिता की भूमिका साबित करूंगा. यह पूरा नरसंहार ही राजीव गांधी के निर्देश पर कांग्रेस द्वारा रचा गया था.’

बीजेपी ने सिख दंगों पर राहुल गांधी के बयान का एक वीडियो जारी किया है. इसमें जनवरी 2014 में वो टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी को दिए एक इंटव्यू में स्पष्ट तौर पर मान रहे हैं कि इन दंगों में कांग्रेस के कुछ लोग शामिल थे. मगर दो दिन पहले लंदन में एक कार्यक्रम में जब उनसे सवाल पूछा गया कि, क्या कांग्रेस ने इन दंगों को करवाया तो राहुल गांधी ने इसपर जवाब देते हुए कहा कि- कांग्रेस की इसमें कोई भूमिका नहीं है.