क्या वसुंधरा के पर कतरकर पार्टी डैमेज कंट्रोल कर पाएगी?


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है.


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है. राज्य में बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है लिहाजा किसी तीसरे मोर्चे की ताकत नजर नहीं आ रही है. भले ही घनश्याम तिवाड़ी जैसे बीजेपी के पुराने दिग्गज अलग से मैदान में ताल ठोक रहे हों या फिर दलित वोटों की जुगत में लगी बीएसपी भी मैदान में क्यों न उतर आई हो, लेकिन, मुकाबले के केंद्र में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं.

बीजेपी की कोशिश, लड़ाई के केंद्र में हों मोदी

2018 के इस मुकाबले में मजबूत दावेदार बनकर उभरी कांग्रेस ने पांच साल की वसुंधरा सरकार के काम को आधार बनाकर हमला बोलना शुरू किया है. पलटवार बीजेपी की तरफ से भी हो रहा है, लेकिन, बीजेपी की कोशिश 2018 की इस लड़ाई के केंद्र से वसुंधरा को हटाकर मोदी को लाने की है. बीजेपी चाहती है कि पांच साल की लड़ाई महज वसुंधरा राजे बनाम सचिन पायलट न बनकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई के तौर पर सामने आए.

टीम अमित शाह की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिनके साढ़े चार साल के काम-काज को आधार बनाकर बीजेपी 2019 की बड़ी लड़ाई के पहले 2018 में भी राजस्थान के रेगिस्तान में अपनी कंटीली राह को कुछ हद तक आसान बनाना चाहती है.

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर लड़ाई मोदी बनाम राहुल की हो तो फिर बीजेपी को काफी हद तक राहत मिल सकती है, वरना राजस्थान में इस बार पार्टी के लिए अपना किला बचाना मुश्किल लग रहा है.

अमित शाह की सियासी बिसात

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राजस्थान को लेकर विशेष ‘गेम प्लान’ भी तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने खुद सबसे ज्यादा फोकस राजस्थान पर किया है. शाह के लगातार हो रहे राजस्थान दौरे और वहां हर संभाग में जाकर पार्टी संगठन को चुस्त करने की कवायद इस बात का प्रतीक है. वसुंधरा राजे से नाराज पार्टी नेताओं को साथ लाने की कोशिश भी हो रही है. संघ और संगठन में समन्वय के साथ-साथ बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है.

माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी अमित शाह खुद पूरे मामले पर नजर रख रहे हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में कहा, ‘भले ही राज्य में बीजेपी ने कई नेताओं और प्रभारियों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन, खुद अमित शाह की हर पहलू पर नजर है.’

इसके अलावा राज्य में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को बनाया गया है, जबकि अविनाश राय खन्ना पहले से ही प्रभारी की भूमिका में काम कर रहे हैं. ये दोनों नेता राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति को लेकर लगातार बैठक भी कर रहे हैं और उम्मीदवारों के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, हालांकि पार्टी आलाकमान केंद्रीय मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहा था, लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध के चलते मदन लाल सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई. पार्टी आलाकमान ने चुनावी साल में विवाद खत्म करने के लिए ऐसा कर दिया. लेकिन, बाद में गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर संकेत साफ दे दिया गया कि पार्टी आलाकमान की पसंद गजेंद्र सिंह शेखावत ही हैं.

भरोसेमंद नेताओं के भरोसे आलाकमान !

हालांकि इन लोगों के अलावा भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन के दूसरे नेताओं को मैदान में उतार दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी सतीश, केंद्रीय मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव और राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर भी लगातार चुनावी तैयारी में लगे हुए हैं जिनसे मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी आगे की रणनीति बना रही है.

राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर कुछ महीने पहले ही राजस्थान में संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके पहले वे पश्चिमी यूपी के संगठन का काम देख रहे थे. चंद्रशेखर को राजस्थान भेजने के पीछे भी बीजेपी आलाकमान का मकसद वसुंधरा की नकेल कसना था.

इसके अलावा वसुंधरा राजे की काट के लिए प्रदेश के दो राजपूत नेताओं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भी मैदान में उतारा है. इस तरह बीजेपी आलाकमान ने अपने तरीके से राजस्थान में पार्टी संगठन और चुनावी रणनीति में वसुंधरा की मनमानी को रोकने की पूरी तैयारी कर ली है.

नहीं चलेगी महारानी की मनमानी !

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 200 में से 162 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस महज 21 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी. उस वक्त मोदी लहर का असर राजस्थान में भी दिखा था. लेकिन, इस बार इस तरह की कोई लहर नहीं दिख रही है. बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल जरूर दिख रहा है.बीजेपी की कोशिश है डैमेज कंट्रोल करने की. पार्टी को इस बात का अंदाजा है, क्योंकि इस साल हुए अजमेर और अलवर लोकसभा के उपचुनाव और मांडलगढ़ के विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्से के तौर पर देखा गया था.

अब पार्टी आलाकमान ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही पहले वसुंधरा के हाथों में चुनाव की पूरी कमान सौंपने के बजाए कई नेताओं को अपने तरीके से चुनाव अभियान की कमान सौंपी है. दूसरी तरफ अब तैयारी हो रही है कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस बार 162 विधायकों में से एक तिहाई से ज्यादा विधायकों के टिकट भी कट जाएं तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पार्टी एंटीइंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए इस तरह की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी आलाकमान ने हर विधायक की रिपोर्ट मंगाई है, जिसके आधार पर ही टिकट का फैसला होगा.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हर मौजूदा विधायक को टिकट उनके परफॉरमेंस और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही तय होगा, भले ही वो विधायक कितने भी दिनों से अपने क्षेत्र से विधायक क्यों न हो ? सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बाबत अपनी मंशा से पार्टी नेताओं को अवगत करा दिया है.

हालांकि, इसके पहले विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की ही मनमानी चलती रही है, क्योंकि वहां प्रदेश अध्यक्ष भी अबतक उन्हीं के गुट के रहे हैं. लेकिन, अब पहली बार वसुंधरा पार्टी के अंदर ही घिर गई हैं. महारानी की मनमानी इस बार अब नहीं चलने वाली है. पार्टी आलाकमान जीताऊ उम्मीदवार और उम्मीदवार के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही फैसला करेगा.

पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर

2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें बीजेपी की झोली में आई थीं. लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव का असर लोकसभा में भी देखने को मिला था. इस लिहाज से बीजेपी के लिए अब विधानसभा का चुनाव काफी अहम हो गया है. पार्टी आलाकमान को अंदाजा है कि अगर विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन ज्यादा खराब हुआ तो फिर उसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है.

पार्टी की तरफ से इसी रणनीति के तह तैयारी हो रही है, जिसमें पहले तैयारी सरकार बनाने की होगी. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, अगर सरकार नहीं बन पाई तो भी पार्टी मजबूत विपक्ष के तौर पर राज्य में अपने –आप को जिंदा रखे, वरना कांग्रेस की एकतरफा जीत और पार्टी की एकतरफा हार का असर सीधे लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा.

सूत्रों के मुताबिक, अगर राजस्थान में सरकार नहीं बन पाई तो बीजेपी वसुंधरा को किनारे करने की तैयारी करेगी. हो सकता है कि पार्टी उन्हें विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष का पद न दे. लोकसभा चुनाव से पहले अगर ऐसा पार्टी नहीं भी कर पाई तो इतना तय है कि फिर वो अपने हिसाब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी. उस वक्त कमजोर हो चुकी वसुंधरा राजे को नजरअंदाज कर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे युवा चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है.

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply