जापान और अमेरिका के बाद क्या कोरोना त्रस्त राष्ट्र चीन से आर्थिक दूरी(Economic Distancing) बनाएँगे?

चीन की गलती के कारण विश्व में फैली करो ना वायरस के चलते अब दुनिया भर के देशों में मंदी का साया मंडराने लगा है। काफी समय लोग डाउन के कारण हर दिन लाखों करोड़ों का नुकसान हो रहा है। बिगड़ती अर्थव्यवस्था को देखते हुए अब दुनिया भर के देशों ने चीन पर ही इस वायरस को फैलाने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। ब्रिटेन के कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों ने जहां चीन पर कानूनी कार्रवाई और मुकदमा करने की मांग की है वहीं भारत में अब चीनी सामानों का बहिष्कार की आवाज उठने लगी है। योग गुरु रामदेव ने दुनिया भर में फैले कोरोनावायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया है। योग गुरु ने कहा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चीन का राजनीतिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार करना चाहिए चीन का आर्थिक बहिष्कार भारत की जनता द्वारा उपयोग किया जाने वाला ऐसा हथियार है, जो युद्ध से भी ज्यादा प्रभावशाली है।

दुनिया के तमाम बड़े बड़े देश अब चीन पर अपनी निर्भरता कम या फिर पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं और इसकी शुरुआत जापान और अमेरिका ने कर दी है लेकिन सवाल ये है कि अगर बड़ी बड़ी कंपनियां चीन छोड़ देती हैं तो इससे दुनिया के किन देशों को फायदा होगा ? और चीन के मुकाबले कौन से देश नया विकल्प बन सकते हैं.

दिल्ली ब्यूरो:

आप इसे चीन की लापरवाही कहिए या फिर साजिश लेकिन सच ये है कि एक देश की वजह से आज पूरी दुनिया जीवन और मृत्यु के एक ऐसे चक्र में फंस गई है जिससे बाहर निकलने की कोई सूरत फिलहाल दिखाई नहीं दे रही लेकिन इसके लिए चीन को क्या सज़ा दी जानी चाहिए? पूरी दुनिया इस समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रही है लेकिन क्या चीन को सबक सिखाने के लिए दुनिया को उसके साथ ECONOMIC DISTANCING करनी चाहिए ? यानी क्या दुनिया को चीन का आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए?

दुनिया के दो देशों ने इस पर काम शुरू कर दिया है. जापान और अमेरिका अब चीन को उसके कर्मों की सज़ा देने की कोशिश कर रहे हैं . इस हफ्ते मंगलवार को जापान ने एक बहुत बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. ये आर्थिक पैकेज 75 लाख करोड़ रुपये का है. ये जापान की कुल जीडीपी का 20 प्रतिशत है. आगे बढ़ने से पहले आप इस विषय पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का ये बयान सनिए: 

कहा जा रहा है कि शिंजो आबे ने इतने बड़े पैकेज का ऐलान करके जापान को संदेश देने की कोशिश की है क्योंकि इस राहत पैकेज के जरिए जापान अपनी बड़ी बड़ी कंपनियो और फैक्ट्रियों को चीन से वापस बुलाना चाहता है. जापान की जो कंपनियां ऐसा करेंगी उन्हें सरकार इस राहत पैकेज के तहत आर्थिक मदद देगी जो कंपनियां जापान वापस आएंगी उनके लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये और जो कंपनियां चीन के छोड़कर किसी और देश में जाएंगी उनके लिए 1600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. जापान ने अपनी कंपनियों को साफ साफ दिया है कि वो चीन को छोड़कर किसी भी देश में जाने के लिए स्वतंत्र हैं.

चीन से अमेरिकी कंपनियों का पलायन भी शुरू हो गया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी की वजह से कई कंपनियां अब चीन छोड़ने पर मजबूर हैं . चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार यानी व्यापार युद्ध भी चल रहा है और यही वजह है कि पिछले वर्ष अमेरिका की करीब 50 कंपनियों ने पिछले साल ही चीन को गुड बाय कह दिया था और इस साल चीन छोड़ने वाली अमेरिकी कंपनियों की संख्या तेज़ी से बढ़ सकती हैं. कंसल्टिंग फर्म KEARNEY के मुताबिक चीन के प्रति अब दुनिया भर की कंपनियों का रवैया बदलने लगा है .

अब ये कंपनियां चाहती हैं कि वो दुनिया के अलग अलग देशों में कारोबार करे और अपनी फैक्ट्रियां लगाएं ताकि चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके. दरअसल, चीन पिछले कई दशकों से दुनिया की फैक्ट्री बना हुआ , आपके जीवन से जुड़ी कई छोटी बड़ी चीज़ें भी चीन से ही बनकर आती है . लेकिन कोरोना वायरस की वजह से जब चीन में उत्पादन ठप हुआ तो पूरी दुनिया को ये समझ आ गया है कि चीन पर निर्भर रहने का अर्थ है अपनी ज़रूरतों से समझौता करना. दुनिया के करीब 400 करोड़ लोग इस समय लॉकडाउन में हैं और अगर कंपनियां चीन से माल खरीद ही नहीं पाएंगी तो इन 400 करोड़ लोगों तक जरूरत का सामान पहुंचेगा कैसे?

इसलिए दुनिया के तमाम बड़े बड़े देश अब चीन पर अपनी निर्भरता कम या फिर पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं और इसकी शुरुआत जापान और अमेरिका ने कर दी है लेकिन सवाल ये है कि अगर बड़ी बड़ी कंपनियां चीन छोड़ देती हैं तो इससे दुनिया के किन देशों को फायदा होगा ? और चीन के मुकाबले कौन से देश नया विकल्प बन सकते हैं.

दुनिया में फिलहाल 5 ऐसे देश हैं जो चीन की जगह ले सकते हैं. इसमें पहला नाम भारत का है. भारत चीन के पैमाने पर ही लेबर फोर्स मुहैया करा सकता है क्योंकि आबादी के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है और चीन की ही तरह भारत में भी श्रम लागर बहुत कम है. दूसरे नंबर पर वियतनाम है जो कोरोना वायरस के संकट से पहले भी अमेरिका को करीब 5 हज़ार तरह के उत्पाद बेच रहा था. इसके अलावा थाइलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया को भी इससे काफी फायदा हो सकता है, क्योंकि इन देशों की आबादी भी अच्छी खासी है और इन देशों में भी श्रम लागत काफी कम है और इन पांचों देशों के पास सस्ते दामों पर कच्चा माल भी उपलब्ध है.

फिलहाल चीन दुनिया की फैक्ट्री है. आपके मोबाइल फोन से लेकर दीवाली पर लगाई जाने वाली लाइटें तक चीन में ही बनती है . चीन बड़ी सैन्य शक्ति ही नहीं बल्कि एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी है इसलिए किसी भी बड़े देश की कंपनियों के लिए चीन छोड़ने का फैसला आसान नहीं है लेकिन यहां आपको ये भी समझना चाहिए कि चीन ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को इतना सक्षम बनाया कैसे ? और उसकी उपलब्धियां क्या हैं.

चीन 70 वर्षों में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सक्षम रहा है. चीन का लक्ष्य इस वर्ष के अंत तक अपने देश से गरीबी को पूरी तरह खत्म करना है. पिछले 70 वर्षों में हर 8 साल के दौरान चीन की अर्थव्यस्था का आकार दोगुना होता रहा है .

वर्ष 2050 तक चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिकी से दोगुनी हो जाएगी, हालांकि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ये चमत्कार 2030 से पहले भी कर सकता है. हालांकि, चीन को अभी भी एक विकासशील देश माना जाता है. लेकिन ऐसा इतिहास में पहली बार हो रहा है जब कोई विकासशील देश दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है.

ये भी सच है कि चीन ने आर्थिक तरक्की का सफर 70 वर्ष पहले नहीं बल्कि सिर्फ 42 साल पहले शुरू किया था. 1978 में चीन में डेंग ज़ाओपिंग सत्ता में आए और उन्होंने उदारीकरण की शुरुआत की, यानी चीन ने दुनिया के लिए अपने दरवाज़े भारत से 13 वर्ष पहले खोल लिए थे. भारत में आर्थिक उदारीकरण का दौर 1991 में शुरु हुआ था.

1978 में चीन की अर्थव्यवस्था सिर्फ 150 बिलियन डॉलर्स यानी आज के हिसाब से 10 लाख करोड़ रुपये थी . चीन की अर्थव्यवस्था 1997 में बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 73 लाख करोड़ रुपये हो गई . और आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत से कई गुना ज्यादा बड़ी है जिसका आकार करीब 14 ट्रिलियन डॉलर्स का है. ये 1100 लाख करोड़ रुपये के बराबर है . ये भारत की अर्थव्यवस्था से करीब 5 गुना ज्यादा है.

वर्ष 1980 में चीन विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बना और चीन में चार स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाए गए. दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां चीन आने लगीं, क्योंकि चीन में श्रम लागत बहुत कम है. इसलिए चीन कुछ ही वर्षों में दुनिया की फैक्टरी बन गया. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक Deng Xiaoping (डेंग ज़ाओपिंग) ने एक बार कहा था कि समाजवाद का मतलब गरीबी नहीं है, अमरी होना भी यशस्वी होने के बराबर है.

आज चीन सिर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं बल्कि सैन्य और कूटनीतिक तौर पर भी दुनिया के शक्तिशाली देशों में शामिल है जो काम डेंग जाओपिंग ने शुरू किया था उसे आज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन शी ये काम कैसे कर रहे हैं और कैसे उनके इस उद्देश्य में चीन की संस्कृति उनकी मदद कर रही है ये आपको समझना चाहिए. आधुनिक इतिहास में ऐसा पहली बार है, जब दुनिया की किसी सुपर पावर का संबध पश्चिम से नहीं पूर्व से है. आज हम आपको चीन के आर्थिक विकास में छिपे खतरों के बारे में भी बताएंगे लेकिन पहले आपको ये समझना चाहिए कि चीन ने 40 वर्षों में ये चमत्कार आखिर किया कैसे?

1978 तक चीन में महानदार्शनिक Confucius मूल्यों को बहुत महत्व दिया जाता था. इन मूल्यों में मानवता, ज्ञान, एकजुटता, वफादारी, और सही आचरण जैसी बातें शामिल थी . लेकिन चीन की कम्युनिस्ट सरकारों ने धीरे-धीरे इन मूल्यों को आधुनिकता के साथ जोड़ने का काम शुरु किया और इस विकास यात्रा में कुछ मूल्यों को सिरे से भूला भी दिया गया .

एतिहासिक तौर चीन में हमेशा से शासन करने वालों को बहुत सम्मान दिया जाता रहा है. चीन की संस्कृति के मुताबिक वहां शासक को एक संरक्षक माना जाता है. यानी चीन के पारिवारिक मूल्यों में भी सत्ता का प्रभाव अक्सर दिखाई देता है. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में सरकार और समाज को एक ही यूनिट माना जाता है.

इसलिए वहां की सरकार जब सख्त नियम लागू करती है, तो ज्यादातर लोग इनका विरोध नहीं करते, बल्कि ये मान लेते हैं कि ये नियम घर के किसी बड़े ने उनको लाभ पहुंचाने के लिए तय किए हैं. यानी चीन में सत्ता को बहुत शक्तिशाली माना जाता है और उसके खिलाफ जाने की हिम्मत कोई नहीं करता. कोरोना वायरस के दौर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा लिए गए फैसले भी इसी अनुशासन का उदाहरण है. शी ने खुद को चीन की सत्ता का केंद्र बना लिया है और वो आने वाले कई वर्षों तक चीन के लोगों के इस अनुशासन के दम पर राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं .

अब आपको चीन की कमज़ोरियों को भी समझना चाहिए. चीन की सबसे बड़ी कमज़ोरी है वहां विपक्ष और लोकतंत्र का अभाव. ये चीन की विकास यात्रा का वो पहलू है जिससे भारत ने हमेशा बचने की कोशिश की है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और एक लोकतंत्र की विशेषता ये होती है कि वहां सब की बात सुनी जाती है. विपक्ष को भी अहमियत दी जाती है. लोगों की राय का सम्मान किया जाता है. विरोध प्रदर्शन को दबाया नहीं जाता, बल्कि इसे लोकतंत्र की ताकत माना जाता है. हालांकि इसकी वजह से कई बार विकास की रफ्तार धीमी हो जाती है . लक्ष्य वक्त पर हासिल नहीं हो पाते . इसलिए कुछ लोग इसे डेमोक्रेसी टैक्स भी कहते हैं. चीन में अमीर और गरीबों के बीच की खाई पहले से भी बड़ी हो गई है. चीन के ग्रामीण इलाकों में ये असमानता बहुत ज्यादा है और चीन की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी कम कुशल है . यानी इनकी काम करने कुशलता बहुत कम है. हालांकि चीन को कभी एशिया के सबसे गरीब और दरिद्र देशों में शामिल किया जाता था, लेकिन आज चीन दुनिया की महाशक्ति बन गया है.

अब यहां आपको चीन से जुड़ा एक एतिहासिक पहलू बताते हैं . चीन में सरकार और शक्तिशाली लोगों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सज़ा देने का इतिहास रहा है और जो लोग महामारियों से जुड़ा सच बताते हैं उन्हें भी कई बार मौत के घाट उतार दिया जाता है.

उदाहरण के लिए चीन के जिस डॉक्टर Li Wenliang (ली वेनलियांग) ने सबसे पहले कोरोना वायरस के खतरे से आगाह किया था उन्हें चीन की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उनकी कोरोना वायरस से ही मौत हो गई. 2002 में SARS Virus के बारे में बताने वाले सर्जन को भी 45 दिनों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था. 

2008 में चीन में एक व्यक्ति ने दूध कंपनियों के भ्रष्टाचार को उजागर किया था. ये कंपनियां दूध में खतरनाक केमिकल की मिलावट कर रही थी जिसकी वजह से 54 हज़ार बच्चों को अस्पताल में भर्ति कराना पड़ा था लेकिन ये खुलासा करने वाले Whistel Blower की भी चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी गई .

लेकिन चीन में सच कहने वालों को सज़ा देने का इतिहास बहुत पुराना है . ढाई हज़ार साल पहले महान दार्शनिक Confucius के एक शिष्य Zhong You ने जब भ्रष्टाचार के मामले को उजागर किया तो उसकी

भी निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी . कहा जाता है कि Zhong You के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे और कहा जाता है कि इसके बाद Confucius ने जीवन में फिर कभी मांस को हाथ नहीं लगाया. यानी Confucius से लेकर Communism तक चीन का इतिहास तो बदलता रहा लेकिन उसकी जन विरोधी प्रथाएं नहीं बदलीं.

सती अनुसूया की जयंती पर विशेष

अनसूया प्रजापति कर्दम और देवहूति की 9 कन्याओं में से एक तथा अत्रि मुनि की पत्नी थीं। उनकी पति-भक्ति अर्थात सतीत्व का तेज इतना अधिक था के उसके कारण आकाशमार्ग से जाते देवों को उसके प्रताप का अनुभव होता था। इसी कारण उन्हें ‘सती अनसूया’ भी कहा जाता है। सती अनसूया ने राम, सीता और लक्ष्मण का अपने आश्रम में स्वागत किया था। उन्होंने सीता को उपदेश दिया था और उन्हें अखंड सौंदर्य की एक ओषधि भी दी थी। सतियों में उनकी गणना सबसे पहले होती है।

बाल रूप में त्रिदेवों पर अपना ममत्व उंढेलतीं माता अनुसूया

अत्रि ऋषि की पत्नी और सती अनुसूया की कथा से अधिकांश धर्मालु परिचित हैं। उन की पति भक्ति की लोक प्रचलित और पौराणिक कथा है। जिसमें त्रिदेव ने उनकी परीक्षा लेने की सोची और बन गए नन्हे शिशु

एक बार नारदजी विचरण कर रहे थे तभ तीनों देवियां मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां पार्वती को परस्पर विमर्श करते देखा। तीनों देवियां अपने स तीत्व और पवित्रता की चर्चा कर रही थी। नारद जी उनके पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया। नारद जी बोले उनके समान पवित्र और पतिव्रता तीनों लोकों में नहीं है। तीनों देवियों को मन में अनुसूया के प्रति ईर्ष्या होने लगी। तीनों देवियों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य की परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को कहा, तीनों ने उन्हें बहुत समझाया पर पर वे राजी नहीं हुई।

इस विशेष आग्रह पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनसूया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति परखने की सोची। जब अत्रि ऋषि आश्रम से कहीं बाहर गए थे तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ने यतियों का भेष धारण किया और अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे तथा भिक्षा मांगने लगे।

अतिथि-सत्कार की परंपरा के चलते सती अनुसूया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत कर उन्हें खाने के लिए निमंत्रित किया।

लेकिन यतियों के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक स्वर में कहा, ‘हे साध्वी, हमारा एक नियम है कि जब तुम निर्वस्त्र होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे।’ 

अनसूया अस मंजस में पड़ गई कि इससे तो उनके पातिव्रत्य के खंडित होने का संकट है। उन्होंने मन ही मन ऋषि अत्रि का स्मरण किया। दिव्य शक्ति से उन्होंने जाना कि यह तो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। 

मुस्कुराते हुए माता अनुसूया बोली ‘जैसी आपकी इच्छा’, तीनों यतियों पर जल छिड़क कर उन्हें तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया। सुंदर शिशु देख कर माता अनुसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। शिशुओं को स्तनपान कराया, दूध-भात खिलाया, गोद में सुलाया। तीनों गहरी नींद में सो गए।

अनसूया माता ने तीनों को झूले में सुलाकर कहा- ‘तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए, मेरे भाग्य को क्या कहा जाए। फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी। उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा, एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम पर उड़ने लगा और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए हुए आया और आकर द्वार पर उतर गया। यह नजारा देखकर नारद, लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे।

 नारद ने विनयपूर्वक अनसूया से कहा, ‘माते, अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर यह तीनों देवियां यहां पर आ गई हैं। यह अपने पतियों को ढूंढ रही थी। इनके पतियों को कृपया इन्हें सौंप दीजिए।’ 

अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इन्हें आप ले जा सकती हैं।’ लेकिन जब तीनों देवियों ने तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान लगने वाले तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो रहे थे। इस पर लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं। 

नारद ने उनकी स्थिति जानकर उनसे पूछा- ‘आप क्या अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? जल्दी से अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए।’ देवियों ने जल्दी में एक-एक शिशु को उठा लिया। वे शिशु एक साथ त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए। तब उन्हें मालूम हुआ कि सरस्वती ने शिवजी को, लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है। तीनों देवियां शर्मिंदा होकर दूर जा खड़ी हो गईं। ती नों देवियों ने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और यह सच भी बताया कि उन्होंने ही परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था। फिर प्रार्थना की कि उनके पति को पुन: अपने स्वरूप में ले आए। 

तीनों देवियों को उनए पतियों से मिलवाती हुईं सती अनुसूया

माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया। तीनों देव सती अनसूया से प्रसन्न हो बोले, देवी ! वरदान मांगो। त्रिदेव की बात सुन अनसूया बोलीः- “प्रभु ! आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें ये वरदान चाहिए।

तभी से वह मां सती अनुसूया के नाम से प्रख्यात हुई तथा कालान्तर में भगवान दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का, चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म माता अनुसूया के गर्भ से हुआ। मतांतर से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्त तथा शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ। 

Face masks being donated by SBI R-SETI Doda to Distt Admin

Today Ist consignment of face masks prepared by SBI R-SETI Doda handed over to Distt: Administration received by BDO Bhalla and Marmat. Many more consignments be handed over to the Administration in the days to come.

Entire Banking fraternity and R-SETI has pledged to shoulder its all related responsibilities in the Distt.

WHO प्रमुख डॉ. टेड्रोस हाजिर हों

टॉड यंग ने डब्ल्यूएचओ प्रमुख को सीनेट बुलाने के लिए जो पत्र भेजा है, उसमें लिखा है कि कोरोना को संभालने को लेकर डब्ल्यूएचओ और उसके प्रमुख ने शुरुआत में चीन की तारीफ की, जो गलत है. साथ ही चीन की ओर से मिल रहे आंकड़ों को सच्चा माना. जबकि, पहले उसकी जांच करनी चाहिए थी.

सीनेटर टॉड यंग

कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका और चीन के बीच चल रहे विवाद का एक बड़ा हिस्सा विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के प्रमुख भी हैं. स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टड्रोस अधनोम घेब्रेसस एक बार फिर अमेरिका के निशाने पर हैं. इस बार अमेरिका की सीनेट ने उन्हें चीन की मदद करने के आरोप में गवाही देने के लिए पेश होने को कहा है

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में प्रकाशित खबर के अनुसार, अमेरिकी सीनेटर टॉड यंग ने WHO प्रमुख डॉ. टेड्रोस को अमेरिकी सीनेट की फॉरेन रिलेशंस सबकमेटी के सामने पेश होने को कहा है. डॉ. टेड्रोस से कहा गया कि आप सीनेट की इस सबकमेटी के सामने बताएंगे कि आपके संगठन ने कैसे इस महामारी को संभाला

आपको बता दें कि इस समय WHO प्रमुख डॉ. टेड्रोस अमेरिकी सीनेट में मौजूदा रिपब्लिकन्स सीनेटर्स और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निशाने पर हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप लगातार ये आरोप लगा रहे हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना वायरस महामारी पर चीन के साथ खड़ा था.

ट्रंप ने कहा था कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख चीन के झूठ में साथ दे रहे हैं. वहीं, टॉड यंग ने कहा कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख चीन के द्वारा फैलाई जा रही गलत जानकारियों को बढ़ावा दे रहे हैं. चीन की सच्चाई छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. मैं खुद भी डब्ल्यूएचओ प्रमुख के इस रवैये से बेहद नाराज हूं.

टॉड यंग ने डब्ल्यूएचओ प्रमुख को सीनेट बुलाने के लिए जो पत्र भेजा है, उसमें लिखा है कि कोरोना को संभालने को लेकर डब्ल्यूएचओ और उसके प्रमुख ने शुरुआत में चीन की तारीफ की, जो गलत है. साथ ही चीन की ओर से मिल रहे आंकड़ों को सच्चा माना. जबकि, पहले उसकी जांच करनी चाहिए थी.

सीनेटर टॉड यंग ने कहा कि हमारी इंटेलिजेंस ने बताया है कि चीन कोरोना वायरस को संभालने में बुरी तरह से कमजोर साबित हुआ है. चीन ने दुनिया को सही आंकड़े नहीं बताएं हैं. न मरीजों के न ही मरने वालों के. चीन ने पूरी दुनिया से कोरोना के बारे में शुरू से ही झूठ बोला है.

टॉड यंग ने कहा कि चीन के इस काम में डब्ल्यूएचओ प्रमुख शुरुआत से ही मदद कर रहे थे. डब्ल्यूएचओ प्रमुख चीन के साथ ऐसे खड़े थे जैसे कोई असिस्टेंट खड़ा रहता है. सिर्फ हां में हां मिलाता है.

टॉड यंग ने कहा कि हमने डब्ल्यूएचओ प्रमुख डॉ. टेड्रोस को अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंधी उपसमिति के सामने बुलाया है. यह समिति डब्ल्यूएचओ प्रमुख से यह जानने की कोशिश करेगी कि अगली बार से अमेरिका डब्ल्यूएचओ को पैसे दे तो किस तरह से दे. क्या पैसे दिए भी जाएं या नहीं. 

सीनेटर यंग को उम्मीद है कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख सीनेट के सामने जरूर पेश होंगे. अपनी गवाही देंगे. क्योंकि अमेरिका संगठन को सबसे ज्यादा पैसा देती है. हालांकि, डब्ल्यूएचओ की तरफ से अभी तक इस मामले को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है

एसबीआई पेंशन सेल ने पुलिस कर्मियों के लिए मास्क और साइनेटाइजर भेंट किए

पंचकुला – 10 अप्रैल:

आज स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया पेंशन सेल सेक्टर -5 पंचकुला की तरफ से हरियाणा पुलिस के कर्मचारियों के लिए फेस मास्क और  सैनिटाइजर मोहित हांडा DCP पंचकुला  को भेंट  किये गए. इस अवसर पर पेंशन सेल के सहायक  महाप्रबंधक मनोज कुमार सिंह, मुख्य प्रबंधक हरविंदर सिंह के अलावा विजय तिवारी,  प्रेम पवार,  यशपाल बजाज,  पाल सिंह  और सूरज कुमार उपस्थित  थे.

हरियाणा पुलिस  के  तरफ  से सुशील कुमार भी इस मौके पर उपस्थित  थे. पुलिस अधिकारियो ने इस नेक काम के लिए बैंक प्रबंधक का धन्यवाद किया.  मीडिया कर्मियों से बातचीत करते हुए मुख्य प्रबंधक हरविंदर सिंह ने बताया की इस समय  पूरे  देश  मे  जो महामारी फैली  हुई  है इस समय बैंक कर्मचारी  ना केवल बखूबी  से बैंक ड्यूटी निभा रहे हैं बल्कि राहत कार्यों  मे भी बढ़चढ़  कर हिस्सा ले रहे  है

चंडीगढ़ से एक और फर्जी डॉक्टर गिरफ्तार

कपिल नागपाल, चंडीगढ़ – 10 अप्रैल:

चंडीगढ़ से एक और फर्जी डॉक्टर गिरफ्तार,पहले कर रहा था कंपाउंडर का काम फिर फर्जी डॉक्टर बन चमकाई क्लीनिक की दुकान

शहर में जमातीयों के साथ ही चंडीगढ़ पुलिस ने झोलाछाप डॉक्टरों की भी खबर लेनी शुरू कर दी है। पुलिस की इसी सतर्कता के परिणाम स्वरूप मलोया थानाा क्षेत्र अंतर्गत आने वाले डडूमाजरा में पुलिस ने एक और झोलाछाप डॉक्टर को गिरफ्तार किया है। आपको यह जानकर हैरानी होगी की पुलिस के मुताबिक यह झोलाछाप डॉक्टर पहले कंपाउंर का काम किया करता था। जिसके बाद आरोपी ने जाली डॉक्टर बन क्लीनिक खोल इसे अपना धंधा बना लिया। मामले में मलोया थाना पुलिस ने आरोपी फर्जी डॉक्टर के खिलाफ केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी झोलाछाप डॉक्टर की पहचान डडूमाजरा के रहने वाले ओम प्रकाश के रूप में हुई है। आपको बता बता दें कि लॉक डाउन के दौरान यह चंडीगढ़ पुलिस की ओर से फर्जी डॉक्टर की इस तरह से दूसरी गिरफ्तारी है।

छाया: कपिल नागपाल

जानकारी के अनुसार लॉक डाउन के दौरान तैनात किए गए एक्सक्यूटिव मजिस्ट्रेट इंदरजीत सिंह और एसएचओ मलोया पलक गोयल अपनी जनरल ड्यूटी के दौरान क्षेत्र में राउंड पर थी। इस दौरान उन्होंने दीपा क्लीनिक के नाम से मौजूद क्लीनिक के डॉक्टर ओम प्रकाश से बात की। संदेह होने पर पुलिस में जब आरोपी डॉक्टर से उसके रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट डाक्यूमेंट्स और मेडिकल डिग्री मांगी गई तो वह पहले गोलमाल करने लगा । लेकिन जब पुलिस ने उससे सख्ती सेेे पूछताछ की । इस दौरान उसने पुलिस के सामने माना कि उसके पास कोई भी सर्टिफिकेट ,रजिस्ट्रेेशन या डिग्री नहीं है। वह बीते करीब 1 माह से इसी तरह से खुद को डॉक्टर बता क्लीनिक चलाता आ रहा है।

छाया: कपिल नागपाल

पुलिस की माने तो आरोपी ने पूछताछ में बताया है कि वह पहले कंपाउंडर का काम करता था। इसके बाद उसने क्लीनिक खोल डॉक्टरी को अपना धंधा बना लिया। मामले में आरोपी फर्जी डॉक्टर के खिलाफ मेडिकल काउंसिल एक्ट -1956 की धारा 15 और सेक्शन 23 पंजाब मेडिकल रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

नेपाल का ज़ालिम मुखिया भारत में कोरोना फैलाने की फिराक में

भारत में कोरोना का कहर जारी है. इस वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन है. इसी बीच बिहार से एक ऐसा मामला सामने आया जहां आरोप है कि पड़ोसी देश नेपाल का रहना वाला जालिम मुखिया भारत में कोरोना वायरस फैलाने की योजना बना रहा है. पूरा देश इन दिनों संपूर्ण लॉकडाउन और सीलिंग की वजह से कैद है. बावजूद इसके कोरोना वायरस का कहर रोके नहीं रुक रहा. देश में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़कर 64 सौ से ज्यादा हो गई है. 199 लोगों की अबतक मौत हो चुकी है. गुरुवार को दिल्ली में कोरोना के 51 नए केस आने के बाद 720 हो गई है, जिनमें 430 मरकज से जुड़े हैं.

जालिम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का स्थानीय नेता है

नई दिल्ली (ब्यूरो)10 अप्रैल:

 बिहार से कोरोना वायरस से जुड़ी एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है. बेतिया के डीएम ने एसपी को पत्र लिखकर बिहार-नेपाल बॉर्डर के संबंध में अलर्ट किया है. इसमें कहा गया है कि तस्कर जालिम मुखिया कोरोना संक्रमित भारतीय मुस्लिमों को भेजकर कोरोना फैलाने की साजिश रच रहा है. 

जालिम मुखिया थाना सेमरा नेपाल से है और भारत में कोरोना फैलाने का प्लान बना रहा है. उसका प्लान 40 से 50 कोरोना संदिग्ध भारतीय मुसलमानों को भारत भेजने का है. जालिम मुखिया हथियार तस्करी, ड्रग्स आदि का धंधा करता है. 

जानकारी के मुताबिक जालिम मुखिया को जालिम मियां के नाम से भी जाना जाता है. जालिम मुखिया बिहार नेपाल सीमा पर स्थित नेपाल के पर्सा जिले के जगरनाथपुर गांव पालिका का मेयर है. जालिम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का स्थानीय नेता है.

इस मामले में SSB की 47 बटालियन को सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है और बगहा, नरकटियागंज, सिकटा मैनताड़, और गौनाहा बॉर्डर पर सतर्कता बढ़ाने का निर्देश दिया गया है. 

SSB के पत्र पर बिहार के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी का कहना है कि सभी बिंदुओं पर जांच की जा रही है, गृह मंत्रालय को भी जानकारी दी गई है. उन्होंने कहा कि लोग घुसे नहीं हैं बल्कि घुसने की फिराक में हैं. वहां के डीएम और एसपी को निर्देश दिया गया है. 

आमिर सुबहानी ने कहा कि इन लोगों को घुसने नहीं दिया जाएगा. मामला नेपाल में है लेकिन हमने अपने अधिकारियों को अलर्ट कर दिया है. मरकज मामले में  कार्रवाई हो रही है. 

3 अप्रैल को SSB ने जिला प्रशासन से ये इनपुट शेयर किया था. उसके बाद पश्चिम चंपारण DM ने पुलिस को अलर्ट किया. 

इस मामले में बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि जालिम मुखिया मामले में 4 दिन पहले जिले के डीएम, एसपी को अलर्ट के लिए बोला गया है. कोरोनो संक्रमित लोगों की सूचना दी गई थी. लेकिन सूचना अभी तक पुष्ट नहीं हो पाई है.

वहीं क्वारंटाइन के नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर अब मुकदमा दर्ज होगा. गोपालगंज जैसे मामलों पर पुलिस गंभीर है.  सिवान में एक ही परिवार के कई लोग चपेट में आए हैं. जिन इलाकों को सील किया गया है वहां कर्फ्यू जैसे हालात हैं.

क्या WHO चीन के निर्देशों की पालना करता है???

चीन की आपत्तियों के कारण ताइवान को WHO, संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी की सदस्यता से बाहर रखा गया है।

डब्ल्यूएचओ के प्रमुख Tedros Adhanom Ghebreyesus ने कहा कि वह महीनों से नस्लवादी टिप्पणियों और मौत की धमकियों का शिकार थे।

लेकिन राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने कहा कि ताइवान ने किसी भी तरह के भेदभाव का विरोध किया, और डॉ। टेड्रोस को द्वीप पर जाने के लिए आमंत्रित किया।

ताइवान ने कहा कि कोरोनोवायरस फैलने के बाद इसे महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच से वंचित कर दिया गया। WHO इसे खारिज करता है।

चीन की आपत्तियों के कारण ताइवान को WHO, संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी की सदस्यता से बाहर रखा गया है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ताइवान को एक टूटता प्रांत मानती है और आवश्यकता पड़ने पर बल द्वारा उसे लेने के अधिकार का दावा करती है।

WHO की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भी आलोचना की गई है, जिन्होंने एजेंसी को अमेरिकी धन वापस लेने की धमकी दी है।

क्या कहा जा रहा है?

डॉ. टेड्रोस ने कहा कि वह पिछले दो से तीन महीनों से नस्लवादी टिप्पणियों के शिकार थे।

“मुझे काला या नीग्रो नाम देना,” उन्होंने कहा। “मुझे काले होने पर गर्व है, या नीग्रो होने पर गर्व है।”

कोरोनोवायरस लड़ाई के दिल में इथियोपिया

कोरोनावायरस: अमेरिका में चीजें गलत हो गई हैं – और सही हो गई हैं
इसके बाद उन्होंने कहा कि उन्हें जान से मारने की धमकी मिली है, “मैं कोई
ध्यान नहीं देता।”

डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि दुरुपयोग ताइवान से हुआ था, “और विदेश मंत्रालय ने खुद को इससे अलग नहीं किया”।

लेकिन सुश्री त्साई ने कहा कि ताइवान भेदभाव का विरोध कर रहा था।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने उनके हवाले से कहा, “वर्षों से, हमें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से बाहर रखा गया है, और हम किसी और से बेहतर जानते हैं कि यह किसके खिलाफ भेदभाव और अलग-थलग करने जैसा है।”

“यदि महानिदेशक टेड्रोस चीन के दबाव का सामना कर सकते हैं और ताइवान में खुद के लिए कोविद -19 से लड़ने के ताइवान के प्रयासों को देखने के लिए आते हैं, तो वह यह देख पाएंगे कि ताइवान के लोग अनुचित उपचार के सच्चे शिकार हैं।”

ताइवान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जोआन ओउ ने कहा कि टिप्पणियां “गैर जिम्मेदाराना” थीं और आरोप “काल्पनिक” थे। समाचार एजेंसी एएफपी ने बताया कि मंत्रालय ने कहा कि वह “बदनामी” के लिए माफी मांग रहा है।

संवाददाताओं का कहना है कि ताइवान वायरस को रोकने के अपने उपायों पर गर्व कर रहा है, जिसमें अभी तक केवल 380 मामले और पांच मौतें हैं।

पिछले महीने, डब्ल्यूएचओ ने कहा कि यह ताइवान में वायरस की प्रगति की निगरानी कर रहा था और इसके प्रयासों से सबक सीख रहा था।

अमेरिका के साथ विवाद के बारे में क्या?

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने ट्रम्प से जंग जारी रखी है, जो डब्ल्यूएचओ पर “बहुत चीन-केंद्रित” होने का आरोप लगाते हैं और फंडिंग समाप्त की धमकी देते है।

बुधवार को बोलते हुए, महानिदेशक टेड्रोस एडहोम घेबियस ने डब्ल्यूएचओ के काम का बचाव किया और कोविद -19 के राजनीतिकरण को समाप्त करने का आह्वान किया।

यह बीमारी पहली बार पिछले दिसंबर में चीनी शहर वुहान में सामने आई थी, जिसमें 11 सप्ताह का लॉकडाउन खत्म हुआ था। डब्ल्यूएचओ प्रमुख के एक सलाहकार ने पहले कहा था कि चीन के साथ उनके करीबियों (WHO) की ज़िम्मेदारी इस बीमारी को शुरुआती दौर में समझने की बनती थी जिसमें वह नाकामयाब रहे थे।

टेड्रोस का मानना है कि डब्ल्यूएचओ पर ट्रम्प के हमले अपने स्वयं के प्रशासन की महामारी से निपटने की असमर्थता के संदर्भ में आते हैं, विशेष रूप से अमेरिकी परीक्षण के साथ शुरुआती समस्याएं।

डब्ल्यूएचओ ने जनवरी में एक कोरोनोवायरस परीक्षण को मंजूरी दी थी – लेकिन अमेरिका ने इसका उपयोग करने के बजाय अपने स्वयं के परीक्षण का विकास करने का फैसला किया। हालांकि, फरवरी में, जब परीक्षण किटों को हटा दिया गया, तो उनमें से कुछ ने ठीक से काम नहीं किया, और अनिर्णायक परिणामों का नेतृत्व किया।

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि देरी ने वायरस को अमेरिका के भीतर फैलने में सक्षम बना दिया।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पहले डब्ल्यूएचओ की रक्षा के लिए अपनी आवाज उठाई थी। उन्होंने प्रकोप को “अभूतपूर्व” बताया और कहा कि यह कैसे संभाला जाए इसका कोई भी आकलन भविष्य के लिए एक मुद्दा होना चाहिए।

डॉ॰ टेड्रोस को अफ्रीकी संघ से भी समर्थन मिला है, वर्तमान अध्यक्ष और दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने “एकजुटता, उद्देश्य की एकता और बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने के लिए आह्वान किया है कि हम इस असामान्य दुश्मन को दूर करने में सक्षम हैं”।

“हमें दोषारोपण के प्रलोभन से बचना चाहिए,” उन्होंने कहा।

क्या WHO एक वैश्विक संगठन के रूप में पूरी तरह से असफल रहा है

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप  तो लगातार WHO की खिंचाई कर रहे हैं. पहले उन्होंने WHO की फंडिंग रोकने की धमकी दी, फिर ये कहा कि WHO को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होंगी. ये बात बिल्कुल सही है, क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ाई में WHO ने लगातार गलत फैसले लिए. और ये ऐसे फैसले थे, जिनकी वजह से चीन का बचाव हो रहा था.

चीन में कोरोना संक्रमण के शुरुआती मामले दिसंबर में ही आ गए थे, लेकिन WHO ने कोई जांच नहीं की.

चंडीगढ़, 10 अप्रैल :

कोरोना वायरस को लेकर पूरी दुनिया का गुस्सा विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) पर निकल रहा है क्योंकि WHO एक वैश्विक संगठन के रूप में पूरी तरह से फेल हुआ है. आरोप यही लग रहे हैं कि WHO सिर्फ चीन की बात सुनता है. इसलिए दूसरे देशों ने भी तय कर लिया कि वो WHO की बात नहीं सुनेंगे. भारत का ही उदाहरण लीजिए. 30 जनवरी को WHO के महानिदेशक ने कहा था कि WHO चीन पर यात्रा प्रतिबंध लगाने की सिफारिश नहीं करेगा. इसके तीन दिन बाद ही भारत ने अपने नागरिकों को चीन की यात्रा ना करने की सलाह दी थी.

16 मार्च को WHO के महानिदेशक ने कहा कि कोरोना से लड़ने का मंत्र है- Test, Test और Test, लेकिन 22 मार्च को भारत ने साफ कर दिया कि बिना देखे सुने Testing नहीं होगी. कोरोना से लड़ने का एक ही मंत्र है- Isolation, Isolation और isolation.

WHO ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए  गाइडलाइंस में कहां कि वो किसी विशेष दवा की सिफारिश नहीं करता, क्योंकि किसी कारगर दवा के सबूत नहीं है. लेकिन भारत ने प्रयोग के तौर पर दो antivirus का इस्तेमाल करने को कहा और इसके बाद इसकी जगह पर hydroxy-chloroquine और antibiotic azithromycin का इस्तेमाल करना शुरू किया. इन दोनों दवाओं का प्रयोग किस तरह से सफल रहा, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया के बड़े-बड़े देश भारत से hydroxy-chloroquine मांग रहे हैं.

Hydroxy-chloroquine दवा के निर्यात की मंजूरी देने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद कर रहे हैं. ट्रंप ने Tweet करके कहा कि इस मदद को वो कभी भुला नहीं पाएंगे. ट्रंप ने लिखा कि चुनौतीपूर्ण वक्त में दोस्तों के बीच करीबी सहयोग की ज़रूरत होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी मानवता की सेवा हो रही है. इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने भी जवाब दिया और कहा कि मानवता की सेवा के लिए भारत कुछ भी करेगा. ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने तो अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत का शुक्रिया कहा है.

अमेरिका भी कर रहा खिंचाई

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप  तो लगातार WHO की खिंचाई कर रहे हैं. पहले उन्होंने WHO की फंडिंग रोकने की धमकी दी, फिर ये कहा कि WHO को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होंगी. ये बात बिल्कुल सही है, क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ाई में WHO ने लगातार गलत फैसले लिए. और ये ऐसे फैसले थे, जिनकी वजह से चीन का बचाव हो रहा था.

चीन में कोरोना संक्रमण के शुरुआती मामले दिसंबर में ही आ गए थे, लेकिन WHO ने कोई जांच नहीं की. 14 जनवरी को WHO ने यहां तक कह दिया कि इस वायरस का इंसान से इंसान में संक्रमण होने का कोई सबूत नहीं है.

24 जनवरी को WHO ने इस वायरस पर ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा तो की लेकिन यात्राओं पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की कोई सिफारिश नहीं की. सिर्फ यही नहीं WHO कह रहा था कि यात्रा प्रतिबंध लगाना सही नहीं है. 27 जनवरी को वायरस 13 देशों में फैल चुका था, लेकिन WHO का पूरा फोकस चीन पर ही था. इस वक्त तक भी WHO कोरोना वायरस को महामारी मानने से इनकार करता रहा.

27 जनवरी को ही Wuhan के मेयर ने एक इंटरव्यू में ये बात स्वीकार की थी कि कोरोना से जुड़ी अहम जानकारियों को बताने में देरी नहीं करनी चाहिए. जानकारियां जल्‍दी-जल्दी दी जानी चाहिए. ये वो वक्त था जब WHO के महानिदेशक खुद चीन के दौरे पर गए थे और वहां जाकर कोरोना वायरस से लड़ाई में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तारीफ कर रहे थे.

30 जनवरी को WHO ने इसे ग्लोबल इमरजेंसी घोषित किया. लेकिन WHO को इस वक्त भी ध्यान नहीं आया कि इसे महामारी घोषित करना चाहिए. आखिरकार 11 मार्च को इसे महामारी घोषित किया गया.

मंडियों में खरीदी को सुनिश्चित करें : मुख्य सचिव हरियाणा

चंडीगढ़, 9 अप्रैल:

हरियाणा की मुख्य सचिव श्रीमती केशनी आनन्द अरोड़ा ने आगामी गेहूं और सरसों की खरीद को देखते हुए जिला उपायुक्तों को निर्देश दिए कि वे मंडी या खरीद केन्द्रों पर सभी व्यवस्थाओं का जायजा लें और खरीद केंद्रों के एंट्री और एग्ज़िट पॉइंट पर कड़ी निगरानी रखी जाए द्य  इसके अलावा, खरीद केंद्रों पर भीड़ एकत्रित न हो, इसके लिए केन्द्रों के स्टाफ, आढ़तियों, श्रमिकों और किसानों को प्रवेश पास जारी किए जाएं।
        मुख्य सचिव ने यह निर्देश आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोविड-19 के लिए नियुक्त नोडल अधिकारियों के साथ संकट समन्वय समिति की बैठक में दिए।
        उन्होंने निर्देश दिए कि खरीद केन्द्रों पर मास्क, सैनीटाइजर और थर्मल स्कैनर की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि खरीद केन्द्रों पर कंप्यूटर,  लैपटॉप, और टैब्लेट की उचित व्यवस्था की जाए। उन्होंने निर्देश दिए कि श्रमिकों की मैपिंग की जाए और प्रत्येक श्रमिकों को पास जारी किए जाएं और इस सारी व्यवस्था की कड़ी निगरानी रखी जाए। उन्होंने कहा कि खरीद करते समय सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों का पूरी तरह से पालन किया जाए। उन्होंने कहा कि श्रमिकों के अंतर जिला आवागमन पर कड़ी निगरानी रख जाए।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि  सभी खरीद केन्द्रों के स्टाफ, खरीद एजेंसियों के कर्मचारियों, आढ़तियों, श्रमिकों और किसानों को मास्क पहनना अनिवार्य होगा। मास्क उपलब्ध करवाने होंगे, इसके लिए टेक्सटाइल उद्योग और स्वयं सहायता समूहों का सहयोग लिया जाए ताकि मास्क की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। उन्होंने पुलिस विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि खरीद केन्द्रों पर और उसके आस-पास पुलिस कर्मियों की तैनाती भी उचित प्रकार से की जाए। उन्होंने कहा कि उपायुक्त जिले में खरीद केन्द्रों से संबंधित जो भी कार्य योजना तैयार करें, उसमें पुलिस अधीक्षकों को अवश्य शामिल करें ताकि व्यापक तौर पर बंदोबस्त में कोई कमी न रहे और यह सुनिश्चित करने के लिए एक सेक्टर मजिस्ट्रेट अधिकारी को तैनात किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि प्रत्येक खरीद केंद्र में तैनात अधिकारियों की एक अलग सूची तैयार की जाए। इसके अलावा, मेरी फसल मेरा ब्यौरा  पोर्टल पर किसानों के पंजीकरण की सुविधा के लिए सभी सामान्य सेवा केंद्रों को तुरंत सक्रिय किया जाना चाहिए।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि प्रत्येक उपायुक्त यह सुनिश्चित करें कि सभी किसान मेरी फ़ेसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर पंजीकृत हैं ताकि मंडियों में उनके प्रवेश के लिए जो तंत्र बनाया गया है उसका अच्छी तरह पालन किया जा सके।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि जो क्षेत्र कंटनेमेंट प्लान के दायरे में आते हैं, ऐसे क्षेत्रों में सब्जीवालों के प्रवेश पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए और इन क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति घर द्वार पर पहुंचाना सुनिश्चित की जाए।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के निर्देशानुसार, प्रत्येक अधिकारी द्वारा ठिकरी पहरा पर तैनात व्यक्तियों के नाम और संपर्क नंबर सहित विस्तृत विवरण का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए।
मुख्य सचिव ने इस संकट की घड़ी में कार्य कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सभी मुख्यालय और जिला कार्यालयों का सैनिटाइजेशन सुनिश्चित किया जाए और सभी अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का भी ध्यान रखें।