न्यायिक परीक्षा के लिए अधिवक्ता परिषद द्वारा निशुल्क कोचिंग का शुभारंभ

उदयपुर, राजस्थान(ब्यूरो) – 18 अक्तूबर :

आज दिनांक 18.10.2020 को अधिवक्ता परिषद, महिला टोली द्वारा न्यायिक सेवा की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु महारानी अहिल्याबाई होल्कर विधिक अनुशिक्षण कक्षाओ का शुभारंभ किया गया।

उक्त कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्च न्यायालय से सेवानिवृत मा.न्यायाधीपति रामचंद्र सिंह झाला रहे, जिन्होने अपने संघर्ष, अनुभव आदि साझा कर विभिन्न प्रकार के संस्मरणो द्वारा मार्गदर्शन किया। वर्तमान मे न्यायिक सेवाओ मे महिलाओ के प्रतिनिधित्व को बताते हुये मेवाड क्षेत्र से भी उत्कृष्ट प्रतिनिधित्व हो,उसके लिए मार्गदर्शन प्रदान किया।

कार्यक्रम की अध्यक्ष पुर्व महापौर एवं प्रांत समन्वयिका श्रीमती रजनी डांगी रही,जिन्होने महारानी अहिल्या बाई के न्याय को बताते हुये उनकी ही प्रतिमुर्ति न्याय व्यवस्था मे स्थापित हो, ऐसी शुभकामनाएँ देते हुये प्रोत्साहन प्रदान किया।

वन्दना उदावत ने महिला टोली के प्रयास को सराहा और अजय चौबीसा ने महिला टोली के पूरे कोविड कल की सक्रियता को बताते हुये कोचिंग की आवश्यकता को बताया। महेंद्र जी ओझा ने भी अपने विचार साझा किये।

इस अवसर पर कोविड काल के दौरान आयोजित सात दिवसीय व्याख्यान माला के प्रतिभागियो को प्रमाण पत्र भी मा.न्यायाधीपति महोदय द्वारा दिये गये।

स्वागत उद्बोधन एवं कार्यक्रम परिचय के माध्यम से महिला प्रमुख एडवोकेट भूमिका चौबीसा ने बताया कि उक्त कोचिंग महिलाओ एवं विधि की छात्राओ के लिए पूर्ण रूप से निशुल्क करायी जा रही है, जिसे पाठ्यक्रम के विषयो के अनुरुप न्यायाधीशो, अधिवक्ताओ, प्रोफेसर आदि के मार्गदर्शन मे संचालित किया जायेगा।

उक्त कोचिंग को संचालित करने सम्बन्धी विशेष सहयोग एडवोकेट बृजेन्द्र जी सेठ द्वारा प्रदान किया जा रहा है,जिनका न्यायाधीपति महोदय द्वारा उपरणा ओढा कर अभिनंदन किया गया। धन्यवाद ज्ञापन महिला सह-प्रमुख भावना नागदा द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन ऐडवोकेट मीनाक्षी माथुर ने किया।

नवरात्रि महत्व

सनातन धर्म के बहुत से ऐसे पर्व हैं जिनमें रात्रि शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि। साल में चार नवरात्रि होती है। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती है। सामान्य में पहली नवरात्रि चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी अश्विन माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधनाओं के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि शक्ति की साधना के लिए।

धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:

1. नवरात्रि में नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन, परंतु हम ऐसा नहीं कहते हैं। शैव और शक्ति से जुड़े धर्म में रात्रि का महत्व है तो वैष्णव धर्म में दिन का। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। (इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।)

2. यह नवरात्रियां साधना, ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग आदि के लिए महत्वपूर्ण होती है। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इस दिनों प्रकृति नई होना प्रारंभ करती है। इसलिए इन रात्रियों में नव अर्थात नया शब्द जुड़ा हुआ है। वर्ष में चार बार प्रकृति अपना स्वरूप बदलकर खुद को नया करती हैं। बदलाव का यह समय महत्वपूर्ण होता है। वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण से देखें तो पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक वर्ष की चार संधियां होती हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतुओं की संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। ऐसे में नवरात्रि के नियमों का पालन करके इससे बचा भी जा सकता है।

3. वैसे भी रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। जैसे यदि आप ध्यान दें तो रात्रि में हमारी आवाज बहुत दूर तक सुनाई दे सकती है परंतु दिन में नहीं, क्योंकि दिन में कोलाहल ज्यादा होता है। दिन के कोलाहल के अलावा एक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।

4. रेडियो इस बात का उदाहरण है कि रात्रि में उनकी फ्रीक्वेंसी क्लियर होती है। ऐसे में ये नवरात्रियां तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इस समय हम ईथर माध्यम से बहुत आसानी से जुड़कर सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

5. रेडियो तरंगों की तरह ही हमारे द्वारा उच्चारित मंत्र ईथर माध्यम में पहुंचकर शक्ति को संचित करते हैं या शक्ति को जगाते हैं। इसी रहस्य को समझते हुए संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजकर साधन अपनी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि करने में सफल रहते हैं। गीता में कहा गया है कि यह ब्रह्मांड उल्टे वृक्ष की भांति हैं। अर्थात इसकी जड़े उपर हैं। यदि कुछ मांगना हो तो ऊपर से मांगों। परंतु वहां तक हमारी आवाज को पहुंचेने के लिए दिन में यह संभव नहीं होता है यह रात्रि में ही संभव होता है। माता के अधिकतर मंदिरों के पहाड़ों पर होने का रहस्य भी यही है।

माँ भगवती के जयघोष के साथ शारदीय नवरात्रों का शुभारंभ

सनातन धर्म के बहुत से ऐसे पर्व हैं जिनमें रात्रि शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि। साल में चार नवरात्रि होती है। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती है। सामान्य में पहली नवरात्रि चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी अश्विन माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधनाओं के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि शक्ति की साधना के लिए। आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है जो मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है, विश्वास है कि मां ब्रह्मचारिणी की सच्‍चे मन से पूजा करने से भक्‍त को सदाचार, एकाग्रता, धैर्य, संयम और सहनशीलता प्राप्‍त होती है।

धर्म/ संस्कृति डेस्क, पंचकूला:

जय कारा ये शेरांवाली का – बोल साँचे दरबार की जय, जहड़ा माता दा जयकारा न लाये ओह महामाई दा चोर। माता के भावभक्ति में डूबे जयकारों के साथ मनसा देवी मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ने वाले भक्तों का जोश नवरात्र के पहले दिन खूब दिखाई दिया। टोकन लेकर मंदिर में दर्शन करने आए भक्तों ने अनुशासन के साथ मंदिर में प्रवेश किया और माता को शीश नवाया।

माता मनसा देवी मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लग गया था। पुलिस द्वारा यहां करीब 15 नाके लगाए गए थे। माता मनसा देवी मंदिर में प्रवेश के लिए टोकन सिस्टम होने के बावजूद यहां पर औसतन 12 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंची हुई थी। यहां पर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के भक्त भी दर्शन करने पहुंचे थे। एक भक्त विकास गुप्ता ने बताया कि वह सुबह छह बजे ही यहां पहुंचे थे। कोविड के कारण अबकी बार यहां भक्तों की ज्यादा भीड़ नहीं दिखाई दे रही है।

23,79,887 लाख का चढ़ावा चढ़ा

माता मनसा देवी में पहले दिन 18,54,572 जबकि काली माता मंदिर में 5,25,315 रुपये का चढ़ावा चढ़ा। इसके साथ ही माता मनसा देवी मंदिर में 10.572 ग्राम का सोना और 638.397 ग्राम चांदी चढ़ाई गई। काली माता मंदिर में श्रद्धालुओं ने 2.96 ग्राम सोना और 432.67 ग्राम चांदी का चढ़ावा माता को भेंट किया।

कोरोना मुक्ति यज्ञ का किया आयोजन

हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने माता मनसा देवी मंदिर स्थित यज्ञशाला में कोरोना मुक्ति यज्ञ किया। उन्होंने इस महामारी के खात्मे की कामना की। गुप्ता ने कहा कि वे जब भी माता के दरबार में मन्नत मांगने आए, वह हमेशा पूरी हुई है। इस मौके पर उनके साथ उपायुक्त मुकेश कुमार आहूजा, विधानसभा अध्यक्ष की पत्नी बिमला देवी, भाजपा के जिला प्रधान अजय शर्मा, महामंत्री हरेंद्र मलिक, पूर्व प्रधान दीपक शर्मा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी एमएस यादव, सचिव शारदा प्रजापति, वीरेंद्र राणा, कमल अवस्थी, बीबी सिंघल, सौरभ बंसल, सुरेश वर्मा, सुरेंद्र मनचंदा, संदीप यादव, वंदना गुप्ता, रेडक्रास सचिव सविता अग्रवाल, श्यामलाल बंसल, विशाल सेठ, बलकेश वत्स, जय कौशिक के साथ कई पदाधिकारी मौजूद रहे।

Panchang

पंचांग, 18 अक्टूबर 2020

आज 18 अक्टूबर को हिंदू पंचांग के अनुसार रविवार है. रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित माना जाता है. रविवार सूर्य देवता की पूजा का वार है. जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है. रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं. 

विक्रमी संवत्ः 207, 

शक संवत्ः 1942, 

मासः द्वितीय (शुद्ध) आश्विनी मास, 

पक्षः शुक्ल पक्ष, 

तिथिः द्वितीया सांय 05.28 तक है, 

वारः रविवार, 

नक्षत्रः स्वाती प्रातः 08.51 तक, 

योगः प्रीति सांय 05.12 तक, 

करणः बालव, 

सूर्य राशिः तुला, 

चंद्र राशिः तुला, 

राहु कालः सायं 4.30 से सायं 6.00 बजे तक, 

सूर्योदयः 06.27, 

सूर्यास्तः 05.44 बजे।

विशेषः आज पश्चिम दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर रविवार को पान खाकर लाल चंदन, गुड़ और लड्डू का दान देकर यात्रा करें।