नहीं रहे स्पाइडर मैन और डॉक्टर स्ट्रेंज को बनाने वाले लेजेंड आर्टिस्ट स्टीव डिटको


स्पाइडर मैन की कल्पना और उसे मार्वल कॉमिक्स के पन्नों तक उतरने तक हर प्रकिया में स्टीव डिटको का दिमाग था


मार्वल कॉमिक्स की दुनिया में द अमेजिंग स्पाइडर मैन की एंट्री में इस शख्स का बड़ा हाथ था. स्पाइडर मैन की कल्पना और मार्वल कॉमिक्स के पन्नों तक उतरने तक हर प्रकिया में स्टीव डिटको का दिमाग था. महान कॉमिक आर्टिस्ट स्टैन ली के साथ मिलकर उन्होंने दुनिया को जबरदस्त सुपरहीरो स्पाइडर मैन दिया.

उन्हीं स्टीव डिटको ने बीते शुक्रवार दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी उम्र 90 साल की थी. शुक्रवार को न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट ने स्पष्ट किया कि मार्वल कॉमिक्स लेजेंड स्टीव डिटको का निधन हो गया है.

2 नवंबर, 1927 को जन्मे स्टीव डिटको ने कार्टूनिस्ट बनने के गुर न्यूयॉर्क सिटी के कार्टूनिस्ट एंड इलस्ट्रेटर्स स्कूल में बैटमैन बनाने वाले लेजेंड जेरी रॉबिन्सन के अंडर में रहकर सीखा था.

उन्होंने 1953 में अपना प्रोफेशनल करियर शुरू किया. उन्होंने जो सिमॉन और जैक कर्बी के स्टूडियो से इंकर के काम से शुरुआत की. यहां वो आर्टिस्ट मॉर्ट मेस्किन के प्रभाव में आए.

इसके बाद उन्होंने शार्ल्टन कॉमिक्स के साथ काम करना शुरू किया. ये साथ काफी लंबा चला. डिटको ने यहां साइंस फिक्शन, हॉरर और मिस्ट्री जॉनर में काम किया. 1960 में यहां उन्होंने सुपरहीरो कैप्टन एटम की रचना में भी को क्रिएटर की भूमिका निभाई.

इसके बाद उन्होंने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा क्रिएशन किया. उन्होंने लेजेंड स्टैन ली के साथ मिलकर अमेजिंग स्पाइडर मैन का बनाया. स्पाइडर मैन के कॉस्ट्यूम से लेकर उसकी पॉवर्स तक की कल्पना करने और उसे पन्नों पर उतारने की पूरी प्रक्रिया में डिटको स्टैन ली के साथ रहे.

डिटको ने स्पाइडर मैन के अलावा दुनिया को एक और बिल्कुल अलग सा सुपरहीरो दिया- डॉक्टर स्ट्रेंज. जबरदस्त डॉक्टर स्ट्रेंज की अद्भुत शक्तियां डिटको के सोचने के अलग तरीके और कल्पना शक्ति की मिसाल हैं.

उनके निधन पर कई आर्टिस्टों और लेखकों ने उनके जाने के दुख में श्रद्धांजलि अर्पित की है. फिलहाल मार्वल की फिल्मों में स्पाइडरमैन का किरदार निभा रहे टॉम हॉलैंड ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी.

तेज़ रफ्तार कर ने लील ली एक जिंदगी, दूसरा बुरी तरह से घायल

 

करनाल। करनाल में एक दर्दनाक सड़क हादसे में एक युवक की मौत हो गई जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया जिसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।

जानकारी के अनुसार सेक्टर 6  स्थित ट्रेफिक पार्क के पास हाईवे पर दो बाइक सवार युवकों को एक तेज रफ्तार कार ने अपनी जद में ले लिया। हादसे में एक युवक की मौके पर ही मौत हो गई जबकि दूसरा घायल हो गया। हादसे के बाद घटना स्थल पर जाम लग गया और लोगों की भीड़ जमा हो गई। हादसे के बाद सफारी चालक फरार हो गया है। पुलिस ने अज्ञात सफारी चालक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है और जांच में जुट गई है। पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद हाईवे पर लगा जाम खुलवाया और यातायात को सूचारू करवाया।

केंद्रीय मंत्री उमा भारती के बड़े भाई स्वामी लोधी का निधन

भारतीय जनता पार्टी की नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लोधी का दिल्ली में निधन हो गया। उनके निधन से मंत्री उमा भारती को एक बड़ा झटका लगा है. उनका निधन दिल्ली स्तिथ आवास पर हुआ है। स्वामी प्रसाद लोधी काफी समय से बीमार चल रहे थे। उनका दिल्ली के एम्स में इलाज चल रहा था। रविवार सुबह 11 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे एक बार मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायक रह चुके हैं। उनका अंतिम संस्कार 9 जुलाई को टीकमगढ़ में किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि बड़े भाई के

निधन की जानकारी खुद उमा भारती ने ट्वीट कर दी। उमा भारती ने ट्वीटर पर लिखा कि अभी मेरे बड़े भाई स्वामी प्रसाद जी लोधी का एम्स

में निधन हो गया है। वह 9 साल से बीमार थे। आज उनकी आयु 72 वर्ष की थी। वह बहुत ही विद्वान व्यक्ति थे तथा विधायक एवं मध्य प्रदेश खाद्य आपूर्ति निगम के अध्य

क्ष भी रहे। मे

री ज़िंदगी में उनकी भूमिका वही थी जो एक माता-पिता की होती है। वह मुझसे 14 वर्ष बड़े थे। मेरी ज़िंदगी की सारी उपलब्धियां उन्हीं की देन है।

कल दिनांक 9/7/18 को टीकमगढ़ में अंतिम संस्कार होगा। कल सुबह 11 बजे टीकमगढ़ में अंतिम संस्कार होगा। उमा भारती ने बताया है कि आज मध्य प्रदेश में जो भाजपा की सरकार है उसमें जो भी मेरी तपस्या है उसके अधिष्ठान में मेरे बड़े भाई ही हैं। उन्होंने मुझे हमेशा बहादुर रहने के प्रेरणा दी, मैं इस बात को आजीवन याद रखूंगी।

मैं अभी तुरंत हिमालय से रवाना हो रही हूं एवं उनके अंतिम संस्कार में आप सब से कल टीकमगढ़ में मुलाकात करूंगी।

एक राष्ट्र एक चुनाव मे दुविधा में कांग्रेस्स


क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि एक साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा


देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीर विचार-विमर्श जारी है. कई पार्टियों ने इसके समर्थन में हामी भरी है तो कांग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने एकसाथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है और इस बाबत विधि आयोग को पत्र भी लिखा है.

समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने भी अपना समर्थन जाहिर करते हुए कहा कि उनकी पार्टी एक देश-एक चुनाव के पक्ष में है लेकिन यह 2019 से शुरू होना चाहिए. यादव ने मांग की कि कोई जनप्रतिनिधि अगर पार्टी बदलता है या खरीद-फरोख्त में लिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ एक हफ्ते में कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई ओर डीएमके ने पुरजोर विरोध जताया है

इस बीच, क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा. तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई ने विधि आयोग की बैठक में हिस्सा तो लिया लेकिन दोनों पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का जोरदार विरोध किया. दक्षिण की पार्टी डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन भी इसके विरोध में हैं. उनके मुताबिक एकसाथ चुनाव कराया जाना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

उधर, एनडीए की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन करते हुए कहा कि इससे पार्टियों के खर्च में कमी आएगी और विकास कार्यों को रोकने वाली आदर्श आचार संहिता की अवधि कम होगी. एसएडी का प्रतिनिधित्व पार्टी के राज्यसभा सदस्य नरेश गुजराल ने किया. उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने के लिए किसी विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाए जाने की स्थिति में राज्यसभा चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का मुद्दा उठाया.

बीजेपी नेता सुब्रह्मणियम स्वामी ने एक साथ चुनाव कराए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है और कहा है कि यह विपक्षी पार्टियों के ऊपर है कि वे इसका समर्थन करते हैं विरोध.स्वामी ने कहा, यह कांग्रेस और सीपीएम पर निर्भर करता है कि वे इसका समर्थन करते हैं या नहीं. उन्होंने कहा, बार-बार चुनावों पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करने का क्या मतलब.

टीएमसी और सीपीआई ने इस प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है

तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके ने कहा कि यदि जरूरी ही है तो एक साथ चुनाव 2024 में कराए जाएं और उससे पहले कतई नहीं. सूत्रों ने बताया कि पार्टी का यह भी मानना है कि तमिलनाडु विधानसभा को अपना कार्यकाल पूरा करने की इजाजत दी जानी चाहिए और लोकसभा चुनाव अपने कार्यक्रम के अनुसार कराए जाने चाहिए.

टीएमसी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है. सीपीआई, एआईडीयूएफ और गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है.

कांग्रेस ने कहा कि वह इस बाबत अपने कदम पर फैसला करने से पहले अन्य विपक्षी पार्टियों से विचार-विमर्श करेगी.

विधि आयोग का क्या है प्रस्ताव?

विधि आयोग के एक प्रस्ताव में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की गई है लेकिन कहा गया है कि यह चुनाव दो चरणों में कराए जाएं और इसकी शुरुआत 2019 से हो. आयोग के दस्तावेज के मुताबिक, एक साथ चुनाव का दूसरा चरण 2024 में होना चाहिए. इस दस्तावेज में संविधान और जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि इस कदम को प्रभावी बनाने के लिए विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार किया जाए या कमी की जाए.

पहले चरण में उन राज्यों को शामिल किया जाएगा जहां 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य दूसरे चरण में शामिल होंगे. इन राज्यों में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए इनकी विधानसभाओं के कार्यकाल बढ़ाने होंगे.

नितीश ने बीजेपी और जेडीयू के 17-17 सीटों पर लड़ने का फॉर्मूला दिया है


मोदी मैजिक उतार पर है

बिग ब्रदर की भूमिका न मिले तो भी जुड़वां की भूमिका मे आना चाहते हैं नितीश

जेडीयू की दिल्ली में हुई बैठक में तय किया गया कि पार्टी की तरफ से नीतीश कुमार जो भी फैसला लेंगे पार्टी नेताओं को वह मान्य होगा


बिहार :

जुलाई 8, 2018॰

बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और बीजेपी के बीच गठबंधन को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लग गया है. जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी नेताओं के सामने स्पष्ट किया कि दोनों दलों के बीच गठबंधन बरकरार रहेगा.

वहीं पार्टी ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दोनों दलों (बीजेपी और जेडीयू) के 17-17 सीटों पर लड़ने का फॉर्मूला दिया है.

दिल्ली स्थित बिहार भवन में पार्टी के महासचिव और सचिव समेत तमाम वरिष्ठ नेताओं के साथ हुई बैठक में तय किया गया कि जेडीयू की तरफ से नीतीश कुमार जो भी फैसला लेंगे पार्टी नेताओं को वह मान्य होगा.

इस बैठक में शामिल अधिकांश नेता नीतीश के इस प्रस्ताव से सहमत थे कि बिहार में बीजेपी के साथ गठबंधन बरकरार रहना चाहिए. हालांकि इस दौरान यह भी तय किया गया कि बिहार के बाहर भी पार्टी अपना विस्तार जारी रखेगी.

जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज़18 को बताया कि इस बैठक में शीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चा हुई और तय किया किया गया बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से जेडीयू कम से कम 17-18 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

इस दौरान पार्टी के नेताओं ने सीटों की दावेदारी पर मंत्रणा भी की. पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, जेडीयू और बीजेपी के 17-17 सीटों पर लड़ने, जबकि एलजेपी और आरएलएसपी के लिए 6 सीटें छोड़ने की बात कही गई.

‘बिहार में BJP से गठबंधन जारी रहेगा, नीतीश कुमार NDA के नेता होंगे’

जेडीयू के एक नेता ने कहा कि हम फिर से कह रहे हैं कि बिहार में बीजेपी के साथ हमारा गठबंधन जारी रहेगा और नीतीश कुमार एनडीए के नेता होंगे.

नीतीश ने पार्टी की बैठक के दौरान इस बात का भी जिक्र किया कि वो तमाम आलोचनाओं के बीच किस तरह से सरकार चला रहे हैं. नीतीश ने कहा कि जब वो आरजेडी के साथ सरकार में थे तो उनपर तरह-तरह के कमेंट किए जाते थे, लेकिन बीजेपी के साथ उनकी सरकार में ऐसा कुछ भी नहीं है.

बैठक के दौरान नीतीश ने इस बात का भी जिक्र किया कि मोदी लहर में बीजेपी ने भले ही 22 सीटें जीती हों, लेकिन ऐसे वक्त में जब हमने अपने 17 साल पुराने दोस्त से एक बार फिर से हाथ मिलाया है, हर किसी को बलिदान के लिए तैयार रहने की जरूरत है.

बता दें कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 12 जुलाई को पटना दौरे पर आ रहे हैं. ऐसे में जेडीयू की इस बैठक के बाद नीतीश कुमार की अमित शाह के साथ होने वाली मुलाकात को अहम माना जा रहा है.

चंचल की रसोई से

श्रीमती चंचल पाठक Homemaker


 छाछ रबडी (जौ का दलिया)

 छाछ रबडी (जौ का दलिया)

व्यंजन सामग्री:
1 मध्यम आकार की कटौरी- जौ का दलिया
3 गिलास पानी
स्वादनुसार नमक
मीठा बनाना चाहें तो
1 कटोरी चीनी या शक्कर

जौ का दलिया बनाने के लिए पहले एक भगौने में तीन गिलास पानी लें और आँच पर रख दें। उबाल आने पर उसमें जौ का दलिया गर्म पानी में डाल दे उसमें थोड़ा सा नमक डाल दे अब गैस को धीमा कर दे दलिया डालते समय इस बात का ध्यान रखे एक हाथ से दलिया डाले दुसरे हाथ से चम्मच से उसे चलाते रहे नहीं तो उसमें गंठे पड़ जाएगी आंच धीमी करके बर्तन को प्लेट से आधा ढक दे बीच बीच में चलाते रहे कुछ देर बाद दलिये मे जो जौ के दाने हैं उसे दबाकर देखें पक गया हो तो थोड़ा उसे और चलाए ताकि पानी और दलिया अलग न हो बिल्कुल एकसार हो जाना चाहिए अब उसे आँच से उतार दे बिल्कुल ठण्डा हो जाए तब उसमें छाछ डाल कर खाए कुछ लोग इसे मिठा खाना भी पसंद करते हैं इसलिए इसमें चीनी या शक्कर भी मिला कर खाया जा सकता है। ये खाने में बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक होता हैं। राजस्थान में यह व्यंजन सुबह के नाश्ते में खाया जाता है। घर की महिलाए अधिकांश रात को बना कर रख देती हैं सुबह तक ये बिल्कुल ठण्डा हो जाता हैं और फिर इसमें ठण्डी छाछ मिलाकर खाते है।

जौ और छाछ दोनों ही शरीर के लिए पौष्टिक व लाभ कारी व ठण्डक देने वाली है इसलिए इसे सिर्फ गर्मियों में ही खाया जाता है।

 


जोधपुरी मिर्ची वड़ा

 

जोधपुरी मिर्ची बड़ा नाश्ते में सर्व करने वाली स्पाइसी रेसिपी है। मिर्ची वड़ा में मिर्ची के अंदर मसालेदार आलू भरे कर फिर इसे बेसन के घोल में लपेटकर फ़्राई किया जाता है। इसे गरम गरम चाय के साथ परोस कर टेस्ट करे।

जोधपुरी मिर्ची वड़ा

”आवश्यक सामग्री”
– 8 मोटी और लम्बी हरी मिर्च
”भरावन के लिए”
– 4 उबले और मैश किए हुए आलू
– 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट
– ½ चम्मच हरी मिर्च का पेस्ट
– ½ चम्मच लाल मिर्च पाउडर
– ½ छोटा चाट मसाला
– 1 चम्मच धनिया पाउडर
– ½ छोटा चम्मच गरम मसाला
– ½ चम्मच राई
– 1 चुटकी हींग
– 1 चम्मच अमचूर पाउडर
– 1 बड़ा चम्मच तेल
– स्वादानुसार नमक

बेसन से कवर करने के लिए

– 100 ग्राम बेसन
– 1 चुटकी खाने का सोडा
– 2 हरी मिर्च कटी हुई
– ½ चम्मच लालमिर्च पाउडर
– स्वादानुसार नमक
– आवश्यकतानुसार तेल

सर्व करने के लिए
– इमली की मीठी चटनी
– टोमैटो सॉस

जोधपुरी मिर्ची वड़ा बनाने का तरीका
”भरावन के लिए”
– एक पैन में गरम तेल में राई और हींग का तड़का लगाएँ।

– अब इसमें अदरक और हरी मिर्च का पेस्ट डालकर भून लें।

– इसमें मैश की हुई उबली आलू, नमक, लाल मिर्च पाउडर, गरम मसाला, चाट मसाला, अमचूर पाउडर और धनिया पाउडर को डालकर सभी सामग्री को आपस में कलछी से मिक्स कर लें।

– इसे एक प्लेट में निकाल कर ठंडा कर लें।

– मिर्ची में भरने के लिए भरावन की सामग्री तैयार है।

मिर्ची वड़ा बनाने के लिए
– हरी मिर्च को किसी साफ़ कपड़े से पोछ लें।

– मिर्ची को पकड़कर चाकू की सहायता से लम्बाई में चीरा लगाएँ और सारे बीज निकाल लें।

– अब इन 8 मिर्ची में नमक लगाकर 15 मिनट के लिए रख दें।

– फिर इन्हें सूखे कपड़े से पोछकर हाथों से धीरे धीरे मिर्ची के अंदर भरावन की सामग्री को भर दें।

– इसी तरह से सारी मिर्ची को भरकर एक प्लेट में रख लें।

घोल बनाने के लिए एक बर्तन में बेसन, नमक, खाने का सोडा, लालमिर्च पाउडर और हरी मिर्च को डालें।

– अब इसमें एक कप पानी डालकर मीडियम का घोल तैयार कर लें।

– भरी हुई मिर्च को इस घोल में डिप करके गर्म तेल में मध्यम आँच पर तल लें।

– जब ये अच्छे से गोल्डन फ़्राई हो जाएँ तब एक प्लेट में टिशु पेपर बिछाकर सारे मिर्ची वड़ा निकाल लें।

– गरम गरम जोधपुरी मिर्ची वड़ा को इमली की मीठी चटनी या टोमैटो सॉस के साथ नाश्ते में सर्व करें।

 



राजस्थानी दही पापड़ की सब्जी

राजस्थानी दही पापड़ की सब्जी

 

 

सामग्री:

स्किम्ड दूध की दही-1 1/2 कप
बिकानेरी मूंग पापड़-2
बेसन- 3/4 बड़ा चम्मच
नमक स्वादानुसार
हल्दी का पाउडर-1/2 छोटा चम्मच
लाल मिर्च पाउडर-3/4 छोटा चम्मच
तेल1 1/2 बड़े चम्मच
जीरा-1 छोटा चम्मच
हींग-1/2 छोटा चम्मच
सूखी लाल मिर्च -टुकडे किए हुए-2
धनिया पाउडर-1 1/2 छोटे चम्मच
अदरक कटा हुआ-1 छोटा चम्मच
बूंदी-1/4 कप
गरम मसाला पाउडर-1/2 छोटा चम्मच,
ताजा हरा धनिया कटा हुआ-1 बड़ा चम्मच।

विधि

दही में बेसन, नमक, हल्दी व लाल मिर्च पाउडर डालें और मिलाएं। दो कप पानी डालकर मिला लें और इस घोल को छान लें। अलग रखें।

नॉन स्टिक कढ़ाई में तेल गरम करें। जीरा, हींग व सूखी लाल मिर्च के टुकड़े डालें और भूनें।

धनिया पाउडर डालकर एक मिनट भून लें। अदरक मिला दें और एक मिनट भून लें।

दही का घोल डालक र मिलालें और नमक चख लें। कलछी चलाते रहें और एक उबाल आने पर आंच धीमी करें।

दो मिनट पकाएं। बहुत गाढ़ा लगे तो पानी डालें। नॉनस्टिक तवे पर पापड़ सेक लें।

दो इंच के टुकड़े बना लें। उबलती दही में पापड़ और बूंदी मिला दें।

दो-तीन मिनट उबलने दें। गरम मसाला पाउडर डालें और मिलाएं।

आंच से हटा दें और हरे धनिये से सजाकर गरमागरम परोसें।

विधायक अमन अरोड़ा ने गुरुवार को मोहाली मे करवाया डोप टेस्ट

 

 

मोहाली। पंजाब के आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक अमन अरोड़ा ने गुरुवार को मोहाली के एक सरकारी अस्पताल में मादक पदार्थ सेवन का परीक्षण (डोप टेस्ट) कराया। यह घटनाक्रम पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह द्वारा सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए डोप टेस्ट अनिवार्य करने के आदेश के एक दिन बाद सामने आया है। इन कर्मचारियों में पुलिस कर्मी भी शामिल हैं।

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस कदम का स्वागत किया।

तिवारी ने ट्वीट किया, “पंजाब सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों के भर्ती/पदोन्नति के लिए प्रस्तावित डोप टेस्ट एक स्वागत योग्य कदम है। इसे राज्य के सभी सांसदों व विधायकों के लिए भी अनिवार्य किया जाना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “यह न सिर्फ एक उदाहरण स्थापित करेगा, बल्कि सरकारी सेवकों के दो वर्गो के बीच अनुचित वर्गीकरण को भी हटा देगा।”

पंजाब में मादक पदार्थो की लत बुरी तरह से फैली हुई है, खासकर युवा व ग्रामीण आबादी इससे प्रभावित है।

सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा, “मुख्यमंत्री ने भर्ती और पदोन्नति के साथ-साथ कुछ कर्मचारियों के उनकी ड्यूटी की प्रकृति के अनुसार वार्षिक चिकित्सा जांच के सभी मामलों में मादक पदार्थो की जांच करने का आदेश दिया है।”

उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों में पदोन्नति के साथ-साथ सभी भर्ती में डोप टेस्ट को अनिवार्य किया जाएगा।

पंजाब में विपक्षी पार्टियां कांग्रेस सरकार पर मादक पदार्थो के खतरे को खत्म करने के लिए कुछ नहीं करने को लेकर सवाल खड़ा करती रही हैं।

मुकेश अंबानी का कार्यकाल 5 साल ओर बढ़ा


बाजार पूंजीकरण के आधार पर देश की दूसरी बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के शेयरधारकों ने मुकेश अंबानी को अगले पांच वर्ष के लिए फिर से अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक (सीएमडी) नियुक्त करने को मंजूरी प्रदान कर दी है।


मुंबई

61 वर्षीय अंबानी वर्ष 1977 से कंपनी के निदेशक मंडल है और जुलाई 2002 में उनके पिता धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद अध्यक्ष बनाया गया था। गत पांच जुलाई को कंपनी की 41वीं वार्षिक आम बैठक में अंबानी को कंपनी का पांच वर्ष के लिए पुन: अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव किया था। उनकी नई नियुक्ति 19 अप्रेल 2019 से प्रभावी होगी।

कंपनी ने शेयर बाजार को सूचित किया है कि उसके 616.45 करोड़ शेयरधारकों में से 50818 करोड़ शेयरधारकों ने अंबानी को पुन: अध्यक्ष बनाने के पक्ष में मतदान किया है। कुल मत में से 98.5 फीसदी ने अंबानी के पक्ष में एवं 1.48 प्रतिशत ने विरोध में पड़े थे।

प्रस्ताव के अनुसार अंबानी को वार्षिक 4.17 करोड़ वेतन मिलेगा और 59 लाख रुपए पूर्वनिर्धारित व्यय और भत्ते मिलेगा। इसमें सेवानिवृत्ति लाभ शामिल नहीं है।

कंपनी के शुद्ध लाभ के आधार पर वह बोनस के हकदार भी होंगे और पत्नी एवं सेवादारों के साथ कारोबारी यात्राओं का पूरा व्यय और कंपनी के कामकाज के लिए कारों का उपयोग, आवास पर संचार से संबंधित सभी व्यय रिलायंस करेगी। अंबानी और उनके परिवार की सुरक्षा पर होने वाला व्यय भी कंपनी ही भरेगी।

‘संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ’ राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन 15 जुलाई को

भरतपुर।

जयपुर के बिड़ला सभागार में ‘संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ’ राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन 15 जुलाई को किया जाएगा।

जिला कांग्रेस कमेटी विधि, मानवाधिकार व आरटीआई विभाग की नवीन कार्यकारिणी की भरतपुर में हुई पहली बैठक में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव सुशील शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय अधिवेशन में केन्द्रीय नेता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, कु. शैलजा, अशोक गहलोत तथा सचिन पायलट, अविनाश पाण्डे, विवेक तनखा, सी.पी. जोशी भाग लेंगे। इस अधिवेशन में राजस्थान के 5,000 लोग जो विधि, मानवाधिकार एवं आरटीआई विभाग से संबंधित हैं, भाग लेंगे, जिसमें वर्तमान सरकार द्वारा संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग करने और संवैधानिक ढांचे को तहस-नहस करने इत्यादि समस्त विषयों पर चर्चा होगी। साथ ही अधिवेशन में वकीलों के कल्याण की योजना, वकीलों की पार्टी तथा आने वाले चुनावों में भागीदारी पर भी चर्चा होगी। इसके अलावा वकीलों की कल्याणकारी योजनाओं को आगामी चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कराकर उन्हें लागू कराया जाएगा।

नितीश अगला कदम क्या लेंगे? बहुत असमंजस ;


इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समय नीतीश बिहार की राजनीति में सबसे स्वीकार्य नेता हैं इसके बावजूद अपने सहयोगी दल के रवैए से वो असहज महसूस कर रहे हैं


बात उस समय की है जब नीतीश कुमार दसवीं की परीक्षा दे रहे थे और मैथ्स (गणित) का पेपर चल रहा था. तय समय पूरा हो जाने के कारण परीक्षक ने उनकी कापी छीन ली ओर उस गणित के पेपर मे नितीश कुमार 100 मे 98 अंक ही पा सके। उन्हें इस बात का हमेशा मलाल रहा कि वो 100 अंक हासिल नहीं कर सके.

राजनीति की दुनिया में नीतीश कुमार ने कई मौकों पर ऐसे फैसले लिए जो लोगों को चौंकाने वाले रहे, लेकिन शायद नीतीश को किसी फैसले का मलाल नहीं रहा. आज नीतीश कुमार फिर राजनीति के अपने पेपर में उस मुकाम पर खड़े हैं जिसका तय समय पूरा होना वाला है लेकिन समय के इस पड़ाव पर वो अपने खुद के परीक्षक हैं और कॉपी अपने पास रखनी है या किसी को देनी है, उन्हें खुद तय करना है.

यह समय बिहार की राजनीति, उनकी पार्टी और खुद नीतीश कुमार के लिए काफी निर्णायक होने वाला है. बिहार एनडीए में घमासान मचा हुआ है. लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान और मोल भाव का दौर चालू है. बीजेपी के नेता तरह-तरह के बयान देकर उनपर दबाव बनाने का काम शुरू कर चुके हैं. राजनीतिक हलके में चर्चा हो रही है कि अगर बीजेपी से बात नहीं बनी तो वो फिर कुछ चौंकाने वाला निर्णय ले सकते हैं. नीतीश भी अपने अदांज में एक बार फिर दबाव की राजनीति कर कर रहे हैं.

उनकी पार्टी जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है. इस बैठक में नीतीश के अध्यक्षीय भाषण पर सबकी निगाहें हैं. इस भाषण से तय हो जाएगा कि बिहार में क्या होने वाला है. इस भाषण का इंतजार बीजेपी के साथ-साथ बिहार की पार्टियों को भी है. बिहार में आरजेडी अभी मजबूत स्थिति में है. नीतीश इस बात को बखूबी जानते हैं. आगे उनका निर्णय जो भी वो इस हकीकत को ध्यान में जरूर रखेंगे.

तमाम अटकलों और चर्चाओं के बीच सबसे बड़ी बात यह है कि नीतीश आज भी बिहार की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी और चेहरा हैं. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता. उनका कद आज भी राज्य के तमाम नेताओं में सबसे बड़ा है. बदलते हुए हालात में अपनी प्रासंगिता को बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार कड़े राजनीतिक फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं.

शराबबंदी का साहसिक फैसला

नीतीश कुमार ने जब 2015 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महिलाओं के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर इस बार हमारी सरकार बनी तो राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू करूंगा. उस समय नीतीश बीजेपी का दामन छोड़ आरजेडी के साथ हो लिए थे. लेकिन इस फैसले पर उन्हें अपने सहयोगी आरजेडी का साथ नहीं मिला. नीतीश कुमार चुनाव जीत कर आए और उन्होंने अपने वादे को पूरा किया और राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू हो गई.

नीतीश के इस फैसले पर बीजेपी ने भी खुली रजामंदी नहीं जताई थी. हालांकि नीतीश पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने 10 करोड़ आबादी वाले राज्य में पूर्ण शराबबंदी कर ही दी. मीडिया में तमाम खबरें चलीं कि शराबबंदी से राज्य के राजस्व पर न जाने कितने करोड़ का असर पड़ेगा, लेकिन इसी मीडिया से किसी ने यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की कि राज्य की एक बड़ी जनसंख्या पर इसका असर क्या हुआ और न जाने कितने घर टूटने से बच गए.

आरजेडी के साथ जाना और फिर साथ छोड़ देना

नीतीश कुमार ने जब बीजेपी से नाता तोड़ा था तब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय फलक पर चमकने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके थे. ऐसा नहीं था कि नीतीश यह नहीं जानते थे कि जिस बीजेपी नेतृत्व (अटल-आडवाणी) में विश्वास जता कर उन्होंने इस पार्टी का दामन थामा था, अब वह वैसी नहीं रही. लेकिन राजनीतिक भविष्य का अंदाजा उन्हें लग गया था. उन्हें समझ आ गया था कि बिहार जैसे राज्य में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए बीजेपी का साथ छोड़ने का समय आ गया है.4

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जिस लालू का विरोध कर नीतीश ने सत्ता हासिल की थी उसी लालू से गले मिल चुनाव जीतना और फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना नाम लिखवाना. यह नीतीश के राजनीतिक जीवन का सबसे कठीन फैसला था. लालू के साथ गए भी तो वहां भी चेहरा खुद बने रहे. आरजेडी ने 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू से ज्यादा सीटें हासिल की थी लेकिन लालू और उनकी पार्टी ने चेहरा के तौर पर नीतीश को ही चुना था.

महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस नीतीश के मुख्य सहयोगी थे. सरकार बनी तो लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री का पद मिला. नीतीश की राजनीति और काम करने के तरीके को समझने वाले लोग कहने लगे थे कि यह साथ लंबा नहीं चलेगा, लेकिन नीतीश ने कभी भी ऐसा कुछ नहीं कहा. वो बीजेपी के सहयोगी से बीजेपी के कट्टर विरोधी बन गए. मौका मिलने पर संघ मुक्त भारत के निर्माण की कल्पना भी की.

सरकार बनने के बाद प्रशासनिक स्तर पर नीतीश का वो जोर नहीं दिखा जो बीजेपी के साथ सरकार में रहने पर 10 साल तक था. राज्य में अराजकता बढ़ने लगी. हत्या, अपहरण और अपराध का दौर फिर से अपने पुराने रूप में लौटने को तैयार दिखने लगा. यह सब तो ठीक था, लेकिन जिस प्रकार से लालू परिवार पर एक-एक कर भ्रष्टाचार के आरोप लगते गए और रोज नए-नए घोटालों में लालू परिवार के सदस्यों का नाम आने लगा, इससे नीतीश असहज हो गए.

हद तो तब हो गई तब बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव का नाम भी ऐसे ही मामलों में आने लगा. नीतीश ने दूसरे तरफ से सफाई की उम्मीद की. उन्होंने सोचा की जनता के बीच जाकर बिहार के युवा नेता तेजस्वी सफाई देंगे, लेकिन लालू के नेतृत्व में ताकत का प्रदर्शन का खेल चलने लगा और सफाई तो दूर कोई बयान तक नहीं दिया गया.

नीतीश मजबूर हुए और राजनीति के शतरंज में बिना शह दिए सरकार के सबसे बड़े सहयोगी को मात दे दी और बीजेपी का दामन थाम लिया. नीतीश के इस फैसले की मीडिया में जमकर आलोचना हुई. मीडिया से लेकर विरोधी पार्टी के नेताओं ने उन्हें पलटूराम तक कह दिया. नीतीश को क्या लालू और उनके परिवार के भ्रष्टाचार को एंडोर्स करना चाहिए था, शायद इसका जवाब किसी के पास न हो. यह सिर्फ बातें नहीं हैं सीबीआई से लेकर ईडी तक मामला पहुंचा हुआ है. जब स्थिति ऐसी हो तो फैसले पर विचार हर कोई करता है. नीतीश ने भी वही किया.

बिहार में किसी भी पार्टी के पास नीतीश के कद का नेता नहीं

इतनी बातें कहने के बाद और राजनीतिक हालात पर चर्चा करने के पश्चात एक बात कहना बेहद जरूरी सा जान पड़ता है. फिलहाल नीतीश की सहयोगी वह पार्टी है जिसका दामन उन्होंने दो दशक से भी ज्यादा समय पहले थामा था. वह पार्टी कोई और नहीं बल्कि आज केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ही है. बीजेपी को यह हर हाल में समझ लेना चाहिए कि नीतीश कुमार कोई जीतन राम मांझी, रमई राम, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी नहीं हैं.

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अगर बीजेपी को यह लगता है कि नीतीश कुमार कमजोर हो गए हैं तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ समय पहले ही आरजेडी के साथ जाने के बाद और फिर आरजेडी का दामन छोड़ के बीजेपी में आने के बाद भी नीतीश ही बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. अगर इन विपरित परिस्थितियों में एक सर्वमान्य नेता के तौर पर नीतीश कुमार किसी भी पार्टी में जाकर राज्य के मुखिया रह सकते हैं तो बीजेपी को अपनी सोच पर काम करना होगा और नीतीश के स्तर का नेता बिहार में तैयार करना होगा, जो एक दो साल में संभव नहीं है. वर्तमान में जिस तरह से बीजेपी की कार्यशैली चल रही है आने वाले कुछ सालों में भी यह पार्टी शायद ही इस कद का नेता दे पाए.

बीजेपी के चाणक्य भी जानते हैं नीतीश की स्थिति

बीजेपी के ‘चाणक्य’ अमित शाह को यह जरूर आभास होगा कि हालात 2014 जैसे नहीं हैं, ऐसे में नीतीश कुमार जैसे सर्वमान्य चेहरे को खोने की कीमत भी वो बखूबी लगा लिए होंगे. बिहार की सत्ता संभालने के बाद जो तमाम काम नीतीश कुमार ने किए उनमें से कई को केंद्र की सरकार ने भी आदर्श माना. विपरित परिस्थितियों और बदले हुए नेतृत्व को यह जरूर पता को होगा कि नीतीश की एक ‘सात निश्चय योजना’ बिहार की दशा बदल रही है.

तमाम कार्य और राज्य को उन्नति की दिशा में लगातार अग्रसर करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक बात पर लोगों ने बहुत कम गौर किया और वो था/है की नीतीश ने कभी भ्रष्टाचार से समझौता और धर्म की राजनीति करने वालों से कभी कोई उम्मीद नहीं रखी और न ही ऐसे लोगों को कोई मौका दिया.