राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, चंडीगढ़ के सहयोग से डड्डू माजरा कॉलोनी के स्कूल में “विश्व जनसँख्या दिवस” मनाया गया।

 

चंडीगढ़ (12 जुलाई): राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, सैक्टर 38 वैस्ट, डड्डू माजरा कॉलोनी में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, यू.टी. चंडीगढ़ के सहयोग से ‘विश्व जनसँख्या दिवस’ के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए।

सर्वप्रथम इस अवसर पर मुख्य अतिथि आदरणीय न्यायाधीश श्री महावीर सिंह अहलावत, सदस्य सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, चंडीगढ़ ने विद्यालय प्रांगण में “रात की रानी” पौधा लगा कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। तत्पश्चात् जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण व उसके सम्भावित उपायों सम्बंधी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।

विद्यालय की छात्राओं कुमारी पायल गुप्ता व शैला खान ने इस अवसर पर जनसँख्या वृद्धि के प्रमुख कारणों व रोकथाम के उपायों पर अपने विचार प्रकट किये।

लीगल क्लब इंचार्ज श्री राकेश दहिया ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अशिक्षा, गरीबी व बेरोजगारी जनसँख्या वृद्धि के प्रमुख कारण हैं।

विद्यालय प्रधानाचार्या श्रीमती राजिंदरपाल कौर जी ने उपस्थित अतिथियों व गणमान्य लोंगों को धन्यवाद किया व अधिकाधिक लोगों को जनसँख्या वृद्घि रोकने के लिए जागरूक करने हेतु शपथ भी दिलाई गयी।

बंगाल मे खस्ता हल कांग्रेस टूटने की कगार पर


समय कम है और राज्य स्तर के नेताओं पर दबाव काफी है, लेकिन ये तो तय है कि राहुल गांधी का जो भी फैसला होगा-उससे कांग्रेस में भगदड़ तो मचेगी.


2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए करो या मरो का चुनाव है. गठबंधन की गाड़ी पर सवार कांग्रेस हर राज्य में अपना साथी तलाश रही है. बड़े-बड़े राज्यों पर खास तौर से कांग्रेस की नजर है. ऐसे ही एक बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की गाड़ी अटक रही है. साथी की तलाश में बंगाल में उसके सामने दो विकल्प हैं और यही विकल्प उसके लिए गले की हड्डी बने हुए हैं. कांग्रेस में चुनावी तालमेल के सवाल पर दो गुट आमने-सामने हैं.

इनमें से एक गुट सीपीएम की अगुवाई वाले वाममोर्चा के साथ तालमेल जारी रखने की वकालत कर रहा है तो दूसरा गुट तृणमूल कांग्रेस के साथ एक बार फिर हाथ मिलाने के पक्ष में है. ऐसे में कांग्रेस काफी पसोपेश में है. वामदलों ने 2004 में कांग्रेस की यूपीए सरकार को समर्थन दिया था और यहीं से केंद्र में उनकी दोस्ती शुरू हो गई थी, जबकि राज्य में कांग्रेस और वामदल धुरविरोधी थे. आपातकाल के बाद कांग्रेस का विरोध कर ही वामपंथी दलों ने बंगाल पर जीत हासिल की थी. उस जीत का साइड इफेक्ट इतना भयंकर रहा कि कांग्रेस बंगाल में खत्म सी हो गई है.

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस

देश के आजादी के बाद पश्चिम बंगाल में 1967 तक कांग्रेस का शासन रहा. उसके बाद राज्य में समस्याओं का दौर शुरू हो गया. 1967 से 1980 के बीच का समय पश्चिम बंगाल के लिए हिंसक नक्सलवादी आंदोलन, बिजली के गंभीर संकट, हड़तालों और चेचक के प्रकोप का समय रहा. इन संकटों के बीच राज्य में आर्थिक गतिविधियां थमी सी रहीं. साथ ही राज्य में राजनीतिक अस्थिरता भी चलती रही. 1947 से 1977 तक राज्य में सात मुख्यमंत्री बदले और तीन बार राष्ट्रपति शासन रहा. आपातकाल के देश में परिवर्तन की लहर चली तो पश्चिम बंगाल में भी सत्ता का परिवर्तन हुआ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा या लेफ्ट फ्रंट ने सत्ता संभाली.

वाममोर्चे के नीतियों का वहां की जनता पर काफी सकारात्मक असर हुआ और राज्य में कांग्रेस की स्थिति लगातार इतनी कमजोर होती गई कि अगले 34 सालों तक यानी वर्ष 2011 तक राज्य में वामपंथियों को सत्ता से कोई हटा नहीं पाया. हालांकि कांग्रेस के अनुभवी नेता प्रणब मुखर्जी का कांग्रेस में दबदबा कायम रहा लेकिन वे पश्चिम बंगाल में ऐसी जमीन तैयार नहीं कर पाए जहां खड़े होकर वे वाममोर्चे को चुनौती देते.

प्रियरंजन दासमुंशी जैसे लोकप्रिय नेता भी हुए लेकिन उनका क़द कभी इतना बड़ा नहीं हो सका कि वे वामपंथियों के लिए कांग्रेस को चुनौती के रूप में खड़ा करते. अलबत्ता युवा कांग्रेस के जरिए राजनीति में आईं तेज-तर्रार नेता ममता बैनर्जी ने अपनी जमीन जरूर तैयार की और उसका पर्याप्त विस्तार भी किया. पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई और फिर धीरे-धीरे अपनी पार्टी को कांग्रेस से बड़ा कर लिया. अब ममता बनर्जी की पार्टी की स्थिति वही है जो कि अस्सी या नब्बे के दशक में बंगाल में जो स्थिति वामपंथ की थी.

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाला राज्य है पश्चिम बंगाल. यहां पर लोकसभा की 42 सीटें हैं. साल 2014 में तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में मौजूद 42 सीटों में से 34 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था. जबकि कांग्रेस को चार, वामदलों को दो और बीजेपी को दो सीटें मिली थी. साल 2016 में पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बंगाल में अपने धुरविरोधी रहे वामदलों के साथ गठबंधन किया था लेकिन कांग्रेस को खास सफलता नहीं मिली. विधानसभा के कुल 294 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 44 पर ही जीत मिली.

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) को 26 सीटें मिली थीं. बीजेपी को एक और तृलमूल कांग्रेस ने भारी जीत के साथ 211 सीटों पर कब्जा किया था. अब पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में है और कांग्रेस उसकी छोटी सहयोगी पार्टी के रूप में. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में मिलकर चुनाव लड़ा था. उस वर्ष तृणमूल कांग्रेस को 19 सीटें और कांग्रेस को छह सीटें हासिल हुई थीं. वामदल को 15 और बीजेपी को एक सीट हासिल हुई थी.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का दबाव बना रहे हैं. पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने ममता के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की पैरवी की है. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और विधायक मोइनुल हक सहित लगभग आधा दर्जन विधायक तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन न होने की सूरत में पार्टी छोड़ सकते हैं.

ऐसे में कांग्रेस के सामने पश्चिम बंगाल में पार्टी को टूट से बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है. मोइनुल हक ने बयान दिया था कि अगर हम अकेले भी लड़ते हैं तो कोई फायदा होने वाला नहीं है. अगर हम तृणमूल कांग्रेस के साथ जाएंगे तो कुछ सीटें आ जाएंगी. लेफ्ट के साथ जाने का मतलब खुदकुशी करना है. कांग्रेस को ममता बनर्जी साथ लेगी तो उनको भी फायदा है इनको भी फायदा है.’

राहुल की मुश्किल यह है कि पार्टी का एक खेमा वामपंथी दलों के साथ तालमेल करने की बात कर रहे हैं तो वहीं तरफ कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो पार्टी को मजबूत करने के लिए अकेले चुनाव लड़ने पर जो डाल रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का झुकाव वामपंथ की तरफ है. उनका कहना है कि कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा अगर कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. इससे पार्टी और कमजोर होगी.

तृणमूल कांग्रेस ने वामदल का कैडर तोड़ कर अपनी तरफ कर लिया है. वहीं तरीका वो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ भी कर रही है. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि ममता के साथ जाने का मतलब बंगाल से कांग्रेस का नामोनिशान खत्म करना है. वहीं दीपा दासमुंशी जैसे कुछ नेता पार्टी को मजबूत करने की बात कर रहे हैं यानी पार्टी अकेले चुनाव लड़े. इनका मानना है कि हो सकता है पार्टी को कम सीटें मिले लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं को बल मिलेगा और कांग्रेस की जमीन मजबूत होगी.

बंगाल में बीजेपी की बढ़त

कांग्रेस नेताओं की दूसरी परेशानी बीजेपी का राज्य में बढ़त कायम करना है. पंचायत चुनाव में बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. बंगाल में बीजेपी ने करीब 32000 ग्राम पंचायत सीटों में से 5700 से अधिक में जीत दर्ज की थी. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 17.02 वोट शेयर हासिल करने में सफलता पाई थी जो 2009 की तुलना में करीब 6.4 प्रतिशत अधिक था.

2016 के विधानसभा चुनाव में उसे 10.16 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त हुए थे. पंचायत चुनाव में अच्छा-प्रदर्शन करके बीजेपी ने बता दिया है कि जमीनी स्तर पर भी अब उसने आपको मजबूत कर लिया है. ये स्थिति कांग्रेस के नेताओं को डरा रही है. बीजेपी की बढ़त और हिन्दुत्व की तरफ लोगों का रुझान कांग्रेस के नेताओं के लिए सरदर्द बनता जा रहा है. बंगाल के भद्रलोगों में बीजेपी काफी लोकप्रिय हो रही है.

ममता बनर्जी की चुप्पी

हालांकि ममता बनर्जी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. बताया जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा में ममता के शामिल होने पर राहुल गांधी ने तंज कसा था- ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच सांठ-गांठ का आरोप लगाते हुए कहा था कि जब यूपीए की सरकार थी और तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बांग्लादेश जाना चाहते थे तब ममता बनर्जी ने हमसे कहा, ‘नहीं, एकला चलो रे’. लेकिन जब प्रधानमत्री मोदी गए तो ममता वहां पर चल दी. ममता को ये बयान काफी तीखा लगा था.

फिर उन्हें कांग्रेस और वामदलों की नजदीकी भी पसंद नहीं आई थी. कांग्रेस ने ममता बनर्जी के बजाय वाम दलों को ज्यादा तरजीह देते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम दलों के साथ गठबंधन किया था, जबकि ममता कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को इच्छुक थीं. पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत के बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि किस तरह वह विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से गठबंधन के लिए दिल्ली में तीन दिनों तक थीं, लेकिन पार्टी के किसी नेता ने बात तक नहीं की.

यही वजह थी कि ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे के लिए बेकरार थीं. इसके प्रयास में उन्होंने दिल्ली से हैदराबाद तक नेताओं से मुलाकात की थी. उन्होंने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने से बचती रहीं. कहीं ना कहीं वो ये संदेश देना चाह रही थीं कि राहुल गांधी का नेतृत्व उन्हें पसंद नहीं हालांकि खुल कर उन्होंने कुछ नहीं बोला.

अभी चुनावों में काफी वक्त बाकी है और कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी का गठबंधन होता है तो ये देखने वाली बात होगी कि वो बंगाल में कांग्रेस के लिए कितनी सीटें छोड़ती हैं. अगर वो अपनी पार्टी के बूते अकेले बंगाल में चुनाव लड़ती हैं तो उनका प्रदर्शन काफी बेहतर होगा. लेकिन अगर कांग्रेस ने 10-12 सीटें मांगीं तो वो नहीं देंगी क्योंकि वो जानती हैं कि कांग्रेस यहां पर कमजोर है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस राज्य में इतनी ताकतवर हो गई है कि उसे कांग्रेस की जरूरत नहीं है. अलबत्ता कांग्रेस के जिन नेताओं को चुनाव लड़ना है, वो तृणमूल कांग्रेस के साथ तालमेल करना चाहते हैं. बीजेपी की बढ़त के चलते कांग्रेस के लोगों का मानना है कि वामदल से तालमेल में ना कांग्रेस के हाथ कुछ आएगा बल्कि वोट भी बंटेगे. लेकिन तृणमूल कांग्रेस के साथ तालमेल के बाद कांग्रेस बीजेपी को ज्यादा मजबूत चुनौती देगी. इस मुद्दे पर पार्टी के करीब छह विधायक और एक सांसद पार्टी छोड़ने को तैयार बैठे हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस नेतृत्व के कुंआ-खाई वाली स्थिति है. अगर तृणमूल से तालमेल नहीं करेगी तो चुनाव से पहले पार्टी से लोग भांगेंगे वहीं दूसरी तरफ तालमेल के बावजूद कांग्रेस को कुछ लाभ होगा भी ये अंदाजा लगाना मुश्किल है.

तृणमूल अपने में मजबूत पार्टी है लेकिन उसकी मजबूती से कांग्रेस को क्या लाभ होगा इसका अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है. अब फैसला राहुल गांधी को लेना होगा कि कांग्रेस अपना तालमेल किससे करेगी. इस मुद्दे पर उन्होंने राज्य स्तर के नेताओं के साथ बैठक की है लेकिन अभी तक किसी फैसले पर नहीं पहुंचे. समय कम है और राज्य स्तर के नेताओं पर दबाव काफी है, लेकिन ये तो तय है कि राहुल गांधी का जो भी फैसला होगा-उससे कांग्रेस में भगदड़ तो मचेगी.

सरयू किनारे आरएसएस करेगी कौमी एकता का आयोजन पढ़ी जाएगी कुरान


आरएसएस की इकाई राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की ओर से कराए जाने वाले इस कार्यक्रम में आम मुसलमान और मौलवी ‘भाईचारे’ का संदेश देते हुए कुरान की आयतें पढ़ेंगे


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मुस्लिम इकाई राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की ओर से 12 जुलाई को अयोध्या में सरयू नदी के किनारे मुस्लिमों के लिए खास आयोजन किया जाएगा. इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आम मुसलमान और मौलवी ‘भाईचारे’ का संदेश देते हुए कुरान की आयतें पढ़ेंगे.

मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार ने इस कार्यक्रम के आयोजन की पुष्टि की. राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के सह-संयोजक मुरारी दास ने बताया कि गुरुवार 12 जुलाई को सरयू नदी के किनारे करीब ‘1500 मुस्लिम भाई’ जुटेंगे. वो सरयू नदी के जल से वजू (मुस्लिम रीति-रिवाज) करेंगे और कुरान की आयतें पढ़ेंगे.

स्क्रोल की खबर के अनुसार कुरान की आयतें नूह अली सलाम दरगाह पर पढ़ी जाएंगी. राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का कहना है कि यह अपने आप में अनोखा आयोजन होगा जब बड़ी संख्या में मुस्लिम सरयू पर तिलावत-ए-कुरान (कुरान की आयतें पढ़ना) करेंगे. वहीं दूसरी तरफ वैदिक मंत्र उच्चारण और सरयू आरती भी होगी.

अयोध्या में सूफी संतों के काफी संख्या में मकबरे हैं, मौलाना यहां भी जाएंगे. मुरारी दास ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य दुनिया को यह संदेश देना है कि अयोध्या हिंदू और मुसलमान भाईचारे का प्रतीक स्थल है. साथ ही यह दोनों मिलकर भारत को एक तरक्की पसंद, तालीम पसंद और कौमी एकता कायम रखने वाला राष्ट्र बनाने में योगदान करेंगे.

राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की इस कवायद को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

धारा 377 अब सर्वोच्च न्यायालय ही तय करे : केंद्र


सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने का यह मुद्दा कोर्ट के विवेक पर छोड़ते हैं


समलैंगिकता (होमो सेक्सुएलिटी) अपराध है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई में आज यानी बुधवार को केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटार्नी सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिकता संबंधी धारा 377 की संवैधानिकता के मसले को हम कोर्ट के विवेक पर छोड़ते हैं.

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ‘जब आपने यह हमारे ऊपर छोड़ा है कि धारा 377 अपराध है या नहीं, इसका फैसला हम करें तो अब हम यह तय करेंगे.’

उन्होंने कहा कि मुद्दा यह है कि दो व्यस्कों द्वारा सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं. समहति से बनाया गया अप्राकृतिक संबंध अपराध नहीं होना चाहिए. हम बहस सुनने के बाद इस पर फैसला देंगे.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील मेनका गुरुस्वामी ने लिखित में कहा, एलजीबीटी समुदाय भी कोर्ट, सरकार और देश से सुरक्षा हासिल करने का अधिकार रखता है. धारा 377 ऐसे लोगों के समान नागरिक अधिकारों का हनन है.

बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यों की संविधान पीठ मंगलवार से इस मामले में सुनवाई कर रहा है. सुनवाई के दौरान कहा पीठ ने कहा कि वो केवल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर विचार करेगी जो समान लिंग के 2 वयस्कों के बीच आपसी सहमति से यौन संबंधों को अपराध घोषित करती है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जुलाई, 2009 के फैसले को बदलते हुए 2 वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था.

नाज फाउंडेशन समेत कई लोगों द्वारा दायर याचिकाओं में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में कहा था कि ऐसे लोग जो अपनी मर्जी से जिंदगी जीना चाहते हैं, उन्हें कभी भी डर की स्थिति में नहीं रहना चाहिए. स्वभाव का कोई तय पैमाना नहीं है. उम्र के साथ नैतिकता बदलती है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने दो वयस्कों के बीच समलैंगिकता को वैध करार दिया था. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 149 वर्षीय कानून ने इसे अपराध बना दिया था, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था.

भाजपा से आआपा में गए कनुभाई कलसरिया ने थामा कांग्रेस का हाथ


कनुभाई कलसरिया को गुजरात के किसान नेता के रूप में जाना जाता है. उन्होंने 2008-09 में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के एक फैसले का विरोध भी किया था


पूर्व बीजेपी विधायक और आम आदमी पार्टी के नेता कनुभाई कलसरिया ने बुधवार को कांग्रेस जॉइन कर ली है. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया.

राहुल गांधी 16-17 जुलाई को सौराष्ट्र के भावनगर और अमरेली जिले जाने की उम्मीद है. यहां वह किसानों से मुलाकात करेंगे.

इससे पहले ही उनके कांग्रेस के साथ जाने की उम्मीद जताई जा रही थी. उन्होंने खुलेतौर पर कहा था कि उनकी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष से बातचीत हो रही है और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद ही कुछ फैसला करेंगे, लेकिन अब उन्होंने फैसला कर लिया है और कांग्रेस का हाथ थाम लिया है.

कलसरिया को गुजरात के एक बड़े किसान नेता के रूप में जाना जाता है. कलसरिया ने 1998, 2002 और 2007 विधानसभा चुनाव में मधुवा सीट से बीजेपी की टिकट पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद उनहोंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध किया था. उनका विरोध नरेंद्र मोदी द्वारा मधुवा के निकट एक सीमेंट प्लांट को मंजूरी देना था.

उनका कहना था कि यह प्लांट जल निकायों को ऊपर बनाया जा रहा है. कलसरिया का आरोप था कि इससे स्थानीय पर्यावरण और ग्राउंड वॉटर को नुकसान होगा.

जम्मू कश्मीर की विधान सभा भंग हो : ओमर


पिछले कुछ वक्त से लगातार खबरें आ रही हैं कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के बागी विधायकों की मदद से सरकार का गठन कर सकती है

निर्मल सिंह ओर मोदी की गुप्त बैठक के बाद इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी जल्द ही राज्य में नई सरकार का गठन कर सकती है.


नेशनल कांफ्रेंस ने बुधवार को कहा कि जम्मू कश्मीर विधानसभा को भंग कर दिया जाना चाहिए ताकि राज्य में ‘अनिश्चितता और अटकलों’ पर विराम लग सके. पार्टी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने नेशनल कांफ्रेस विधायक दल की बैठक में कहा, ‘हमने राज्य विधानसभा को भंग करने की मांग की थी और करते रहेंगे. नेशनल कांफ्रेंस का मानना है कि अनिश्चितता और अटकलों के मौजूदा दौर को खत्म करने के लिए यह जरूरी है क्योंकि इससे लोगों के बीच अविश्वास की भावना बढ़ रही है.’

उन्होंने कहा कि राज्य की वर्तमान स्थिति चुनाव करवाने के लिए उपयुक्त नहीं है. राज्यपाल के प्रशासन को लोकतांत्रिक प्रक्रिया (चुनाव के संदर्भ में) संचालित करने से पहले लोगों के बीच सुरक्षा की भावना प्रबल करने और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए हर संभव कदम उठाने चाहिए. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पीडीपी-भाजपा गठबंधन ने राज्य को बर्बर स्थिति में छोड़ दिया और लोगों विशेषकर युवाओं में अलग थलग होने की भावना पैदा कर दी है.

पिछले कुछ वक्त से लगातार खबरें आ रही हैं कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के बागी विधायकों की मदद से सरकार का गठन कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक बुधवार को जम्मू-कश्मीर के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता निर्मल सिंह ने दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से गुप्त बैठक की.  इस बैठक के बाद इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी जल्द ही राज्य में नई सरकार का गठन कर सकती है.

मोदी निर्मल सिंह की मुलाक़ात वादी मे क्या गुल खिलाएगी??


जम्मू कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम और सीनियर बीजेपी नेता निर्मल सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ गुप्त बैठक की, इस बैठक के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि राज्य में बीजेपी जल्द ही सरकार का बना सकती है


जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सरकार बनाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं. प्रधानमंत्री ऑफिस के सूत्रों ने न्यूज 18 को जानकारी दी कि बुधवार शाम चार बजे जम्मू कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम और सीनियर बीजेपी नेता निर्मल सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ गुप्त बैठक की. इस बैठक के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि राज्य में बीजेपी जल्द ही सरकार का गठन कर सकती है.

सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक से पहले निर्मल सिंह ने जम्मू-कश्मीर के बीजेपी प्रभारी राम माधव के साथ एक लंबी मुलाकात की थी. गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से लगातार खबरें आ रही हैं कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के बागी विधायकों की मदद से सरकार बनाकर राज्य में हिन्दू मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना चाहती है.

हालांकि आधिकारिक रूप से कोई भी इस बात को नहीं मान रहा है, लेकिन बीजेपी और पीडीपी दोनों के सूत्रों कह रहे हैं कि अगस्त में अमरनाथ यात्रा की समाप्ति के बाद जम्मू कश्मीर की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकता है. बुधवार को हुई मोदी और निर्मल सिंह की बैठक भी इसी ओर इशारा कर रही है.

बता दें कि इस साल जून में बीजेपी ने खुद को महबूबा मुफ्ती की गठबंधन वाली सरकार से अलग कर लिया था. इसके बाद अन्य पार्टियों ने राज्यपाल शासन का समर्थन किया था. लेकिन शुरू से ही कयास लग रहे हैं कि बीजेपी अन्य पार्टियों के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाने की कोशिश कर सकती है.

महबूबा से नाराज हैं पीडीपी के विधायक

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व के खिलाफ खुले तौर पर विद्रोह करने वाले पीडीपी विधायक आबिद अंसारी ने न्यूज 18 को बताया कि पीडीपी के बागी विधायक बीजेपी के समर्थन को लेकर गंभीरता से विचार करेंगे. महबूबा मुफ्ती पर हमला बोलते हुए अंसारी ने कहा था कि या तो पार्टी टूट जाएगी या फिर लीडरशिप में बदलाव आएगा.

अंसारी ने कहा, ‘सवाल पर्याप्त नंबर का है. इस वक्त करीब एक दर्जन विधायक मेरे साथ हैं. अगर महबूबा पार्टी को बचाना चाहती हैं तो उन्हें किसी जिम्मेदार नेता को पार्टी की कमान सौंप देनी चाहिए. अन्यथा हम अलग रास्ता तय करेंगे.’

क्या बागी विधायकों ने बीजेपी को समर्थन देने पर विचार किया होगा? इस सवाल के जवाब में अंसारी कहते हैं, ‘क्यों नहीं? अगर हमारे पास संख्या है तो मुझे नहीं लगता कि हमारे पास सरकार नहीं बनाने का कोई कारण है, वह भी तब जब अगले चुनाव में दो साल का वक्त बाकी है.’ वहीं पीडीपी के एक सूत्र ने बताया कि महबूबा ने बागी विधायकों की मांग को खारिज कर दिया है.

पीडीपी नेता ने कहा, ‘हमने बागी विधायकों से बात करने की कोशिश की. महबूबा ने उनसे माफी भी मांगी. अब मुझे नहीं पता कि इससे ज्यादा क्या किया जा सकता है. इतिहास हमें बताता है कि नई दिल्ली जो चाहती है वह कर सकती है. लेकिन अगर वह इन कुटिल साधनों के माध्यम से सरकार का गठन कर भी लेते हैं तो भी जनता का सामना कैसे करेंगे, मुझे समझ में नहीं आता. संवाद के माध्यम से शांति का एजेंडा बीच में ही छोड़ दिया गया. यह सत्ता की कैसी भूख है.’

बीजेपी को चाहिए 19 विधायक

जम्मू कश्मीर विधानसभा में 87 सीटें हैं, जिसका मतलब यह होता है कि यहां सरकार के गठन के लिए किसी भी दल को 44 सीटों की आवश्यकता होगी. राज्य में बीजेपी के पास इस वक्त 25 विधायक हैं, इसलिए उसे सरकार बनाने के लिए 19 और विधायकों की जरूरत है. सज्जाद लोन की पार्टी पीपल्स कॉन्फ्रेंस बीजेपी को सपोर्ट कर रही है इसलिए पार्टी को दो विधायकों को समर्थन यहां से मिल जाएगा, लेकिन इसके बावजूद उसे 17 विधायक जुटाने होंगे.

पीडीपी विधायकों के अलावा कोई भी दल बीजेपी के समर्थन के लिए तैयार नहीं है, ऐसे में अगर बीजेपी जम्मू कश्मीर में सरकार बनाना चाहती है तो उसे पीडीपी के कम से कम 17 विधायकों के बागी होने की जरूरत होगी, हालांकि जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं लग रहा है कि ऐसा संभव हो जाएगा.

मैं आदिवासी समाज को पिछले चार साल का हिसाब देने आया हूं. मोदी सरकार से हिसाब मांगना आपका हक है: अमित शाह


कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति को कांग्रेस ने बिजली से वंचित रखा, जबकि हम हर आदिवासी के घर में बिजली देंगे


भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने एक दिवसीय रांची दौरे में आदिवासी बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत की. राजधानी के कार्निवल ग्राउंड में आयोजित जनजातीय समाज के साथ संवाद कार्यक्रम में बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि विपक्ष ने आदिवासी समाज में भ्रम फैलाया है, जिसे हम दूर करने आए हैं. उन्होंने कहा कि मैं आदिवासी समाज को पिछले चार साल का हिसाब देने आया हूं. मोदी सरकार से हिसाब मांगना आपका हक है.

राज्य की रघुवर सरकार की तारीफ करते हुए शाह ने कहा कि केंद्र ने गैस दिया, तो राज्य सरकार ने चूल्हा दे दिया. कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति को कांग्रेस ने बिजली से वंचित रखा, जबकि हम हर आदिवासी के घर में बिजली देंगे. आदिवासी समाज की भावना को भड़काना आसान है. कांग्रेस ने यही किया है, विकास नहीं.

बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि आदिवासी समाज को भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. एससी-एसटी एक्ट में बदलाव से यह एक्ट और मजबूत हुआ है. उन्होंने कहा कि अब तक हर सम्मान कांग्रेस को मिलता था, लेकिन हमने गरीबों को दिया. शाह ने कहा कि हमने हिसाब दे दिया अब जेएमएम और कांग्रेस से हिसाब मांगें. जब उन्होंने मौजूद लोगों से पूछा कि वे मोदी को फिर से पीएम बनाएंगे, तो लोगों ने हां में जवाब दिया.

सीएम रघुवर दास ने कहा कि आदिवासी समाज अब जाग गया है. अब वो विकास चाहता है और उनका विकास हमारा लक्ष्य है. उन्होंने लोकसभा चुनाव में सभी 14 सीटों पर जीत दिलाने की लोगों से अपील की.

30 Police officers including SSPs transferred in Punjab 

Chandigarh, July 11, 2018: 30 Police officers including SSPs transferred in Punjab

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Coach Arothe resigns after players’ revolt


Indian women’s cricket team coach Arothe resigned as head coach on Tuesday (10th July) over the alleged differences with some of the senior players, who had protested against his training methods.

This is the second time during the Supreme Court appointed Committee of Administration (CoA) tenure that a national coach has stepped down after players’ revolt. Last year, Indian men’s cricket team head coach Anil Kumble resigned after his much-publicised differences with captain Virat Kohli.

“The BCCI on Tuesday accepted India women’s team coach Tushar Arothe’s resignation. Arothe cited personal reasons behind his resignation and thanked the BCCI for giving him an opportunity to work with the Indian women’s cricket team,” the BCCI said in a media release.

However, a senior BCCI official told press that Arothe was forced to resign after some senior players, with reasonable influence, wanted his immediate ouster.

“It was almost final after the last meeting of CoA with the senior players. BCCI acting secretary Amitabh Chaudhary, GM (Cricket Operations) Saba Karim and CEO Rahul Johri were also present. There has been adverse reports about his coaching methods from players, selectors and even the team manager,” a senior BCCI official, privy to the development told PTI on the condition of anonymity.

When the official was asked whether a couple of senior players had a major role in Arothe’s ouster, he said: “Yes, they were against him.”

CoA member Diana Edulji, a former India captain, is currently calling the shots as far as women’s cricket is concerned.

While BCCI didn’t divulge names, it has been learnt that ODI captain Mithali Raj and Twenty20 captain Harmanpreet Kaur did not have good things to say about Arothe’s coaching methods when the BCCI bigwigs sought their feedback.

Arothe, who was a Baroda stalwart with an experience of 114 first-class games, had guided the team to the 50-over World Cup final in England last year.

The Indian team also won ODI and T20 series in South Africa in February this year but things went downhill since then.

India had a dismal T20 tri-series against England and Australia and then lost the ODI series against the Southern Stars.

However, it was twin defeat against minnows Bangladesh in the Asia Cup including one in the final, that became the last straw.

One of the major reason of discontent was Arothe’s training methods. While the coach was keen on having two practice sessions of two and half hours each in morning and afternoon, some of the seniors in their mid-30s were finding it difficult to cope with the strenuous schedule.

It was because of their protest that the Indian team’s camp from June 15 to 25 was cancelled as BCCI was getting ready to show Arothe the door.

“We will again put up an advertisement and interview process will be followed,” said the official.