इंटेलिजेंस एजेंसियों की तरफ से जम्मू कश्मीर में 28 जून से शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा पर आतंकवादी हमलों की चेतावनी के बाद सुरक्षा बलों ने लक्षित और सूचना-आधारित आतंक-विरोधी अभियानों के लिए बुधवार से जवानों की नए सिरे से तैनाती शुरू कर दी है. फ़र्स्टपोस्ट द्वारा खुफिया आकलन के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि लश्करे-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन की दक्षिण कश्मीर में- खासकर शोपियां, अनंतनाग, बड़गाम, कुलगाम और पुलवामा में गतिविधियों में लगातार तेजी आई है और ये आने वाले दिनों में और हमलों के लिए स्लीपर सेल्स को सक्रिय कर रहे हैं.
राज्य में आतंकवाद, हिंसा और कट्टरता बढ़ने का आरोप लगाते हुए बीजेपी द्वारा पीडीपी से गठबंधन तोड़कर निकल जाने के बाद 20 पन्नों का यह पहला इंटेलिजेंस आकलन है. एलर्ट में आने वाले दिनों में सुरक्षा बलों पर हमलों में बढ़ोत्तरी की चेतावनी दी गई है, जिसके बाद सरकार की तरफ से इनसे निपटने के लिए आक्रामक आतंक-विरोधी ऑपरेशंस की तैयारी की जा रही है. इंटेलिजेंस आकलन में सीमा पार से हुई बातचीत को डिकोड करने से पता चला है कि घाटी में शांति भंग करने और अव्यवस्था फैलाने के लिए राजनीतिक कार्यकर्ता पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों का आसान निशाना हो सकते हैं.
इस बात की आशंका है कि हमला करने के लिए आतंकवादी नेशनल हाईवे के करीब छिपने की जगहों पर इकट्ठा हों. ऐसे हमलों को रोकने और आतंकवादियों का जड़ से सफाया करने के लिए सुरक्षा और इंटेलिजेंस एजेंसियों को साझा प्रयास करने होंगे. जून के पहले हफ्ते में माछिल और करेन में इंटेलिजेंस आधारित एक के बाद एक ऑपरेशंस बताते हैं कि लश्कर और जैश की घुसपैठ बढ़ी है. सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि “हमने आतंकवादियों की योजना को विफल करने के लिए परंपरागत घुसपैठ रूटों पर लक्षित ऑपरेशंस शुरू करने के साथ ही आतंकवादियों के छिपने के संभावित ठिकाने वाले इलाकों में घेराबंदी करके तलाशी अभियान शुरू किया है.”
हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के जमावड़े और गतिविधियों का इनपुट मिलने के बाद सुरक्षा बल कुलगाम के रामपोरा, बान, यासू, फराह, हवूरा, वानपोह और पांजाथ में सघन तलाशी अभियान चला सकते हैं. रमजान के दौरान स्थगित किए ऑपरेशंस के बाद हेफ शिरमल, चाक चोलान, नागबल, तरेंज और जैनापोरा में भी नए सिरे से ऑपरेशंस शुरू किए जा सकते हैं, जहां इंटेलिजेंस अलर्ट में हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तोइबा की गतिविधियों को लेकर चेतावनी दी गई है. इंटेलिजेंस रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया है कि आतंकवादियों के छिपने के संदिग्ध ठिकानों पर सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई जाए और साथ ही विभिन्न बलों के बीच तालमेल बेहतर किया जाए.
इंटेलिजेंस नोट में कहा गया है, “बीते साल के शुरुआती आधे हिस्से की तुलना में इस साल ज्यादा आतंकवादियों के मारे जाने के बावजूद इस बार बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आतंकवादियों की घुसपैठ के कारण घाटी में उनकी संख्या बढ़ी है. सुरक्षा बलों ने घाटी में विरोध प्रदर्शनों से निपटने में अधिकतम संयम दिखाया है, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से युद्धविराम के उल्लंघन के कारण सरहद पर रहने वाले लोगों की तकलीफों में इजाफा हुआ है.”
गृह मंत्रालय द्वारा मुहैया कराए आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 2016 की तुलना में आतंकवादी हिंसा की घटनाओं और नागरिकों की मौतों में बढ़ोत्तरी हुई है. 2017 में सुरक्षा बलों के करीब 80 जवानों, 40 आम नागरिकों और 213 आतंकवादियों की मौत हुई. 2018 में जून के मध्य तक 38 आम नागरिक, सुरक्षा बलों के 40 जवान और 95 आतंकवादी मारे जा चुके हैं.
पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वीएन राय ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करने के वास्ते बॉर्डर ऑपरेशंस के लिए इंटेलिजेंस उपायों को ज्यादा चाक-चौबंद किया जा सकता है और इस बात की संभावना है कि ऐसी कोशिशों के कुछ नतीजे दिखाई दें, लेकिन घाटी में नए सिरे से शुरू की कार्रवाई के संभवतः वांछित नतीजे ना मिलें और आने वाले दिनों में आतंकी हमलों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है.
राय कहते हैं, “आपको कश्मीर घाटी में शांति कायम करने के लिए आईएसआई की साजिशों और पाकिस्तानी सेना को हराना होगा. सेना और सुरक्षा बल भारी दबाव में काम कर रहे हैं, और मेरा मानना है कि लगातार आतंक-विरोधी अभियान से आतंकवादी हिंसा कम नहीं होने वाली है. यह सारे हालात मुझे राजीव गांधी के शासन के समय की याद दिलाते हैं, जब एक दिशाहीन नीति के कारण घाटी ने आतंकवाद का 10 साल लंबा दौर देखा था. मेरा मानना है कि अगर सरकार घाटी में आतंकवाद के खात्मे को लेकर गंभीर है तो सीमा के उस पार भी लॉन्च पैड या वो जो कुछ भी है, उसे खत्म करने के लिए ऑपरेशंस चलाना चाहिए. चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारी एजेंसियों के एकीकृत प्रयास, और सबसे ऊपर राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है.”
इंटेलिजेंस नोट में आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए घाटी में जिलों की सीमाओं पर मानव और तकनीकी इंटेलिजेंस के एक्शन प्लान को विस्तार देने का सुझाव दिया गया है. इसमें कहा गया है, “सूचना के आदान-प्रदान और समन्वित कार्रवाई के लिए राज्य पुलिस और अन्य एजेंसियों से नियमित संपर्क हर हालत में बनाए रखा जाना चाहिए. लक्षित ऑपरेशन के लिए इस संबंध में कोई भी महत्वपूर्ण सूचना सभी संबंधित लोगों को फौरन दी जानी चाहिए”
जाने-माने आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि हालात 1990 जितने खराब नहीं हैं और हमने बीते दो साल में नागरिकों को न्यूनतम और आतंकवादियों को अधिकतम नुकसान पहुंचाने के लिए लक्षित ऑपरेशंस देखे हैं. वह कहते हैं कि 2017 में मौतों की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन सुरक्षा हालात का आकलन करने के लिए इसकी 1990 और 2000 के दशक से तुलना करना समझदारी नहीं है, क्योंकि वह घटनाओं और मौतों का बहुत मामूली दौर था.
साहनी कहते हैं कि 2018 में आतंकवादी घटनाओं से जुड़ी हिंसा में मौतें सिर्फ 29 तहसीलों में सीमित हैं और सिर्फ 5 तहसीलों में 60 फीसद मौतें होना दिखाता है कि हिंसा का क्षेत्र सिमट रहा है. “मुझे कुछ भी नया रवैया नहीं दिखता और आतंकवाद-विरोधी ऑपरेशंस बिना राष्ट्रवादी गुलगपाड़े के जारी रहेंगे, जिसकी गूंज शायद हमें दिल्ली में सुनाई दे. हम जो देखने जा रहे हैं, वह है इलाके को खाली कराके सर्च ऑपरेशन चलाने के भारी भरकम ऑपरेशंस के बजाय सटीक इनपुट पर आधारित सीमित ऑपरेशंस चलते रहेंगे. अगर आप बीते कुछ सालों में नागरिकों की मौतों की संख्या को देखें तो, तो इसमें काफी कमी आई है. और आतंकवादियों की मौत में काफी बढ़ोत्तरी हुई है.”
साहनी ने कहा कि यहां तक कि बीते साल की तुलना में पत्थरबाजी की घटना में भी काफी कमी आई है. मुझे लगता है कि इस तरह के लक्ष्य आधारित ऑपरेशंस जारी रहेंगे, क्योंकि हमने पूर्व में देखा है कि इससे अच्छे नतीजे मिलते हैं.”