नवरात्रि महत्व

सनातन धर्म के बहुत से ऐसे पर्व हैं जिनमें रात्रि शब्द जुड़ा हुआ है। जैसे शिवरात्रि और नवरात्रि। साल में चार नवरात्रि होती है। चार में दो गुप्त नवरात्रि और दो सामान्य होती है। सामान्य में पहली नवरात्रि चैत्र माह में आती है जबकि दूसरी अश्विन माह में आती है। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि आती है। गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधनाओं के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि शक्ति की साधना के लिए।

धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:

1. नवरात्रि में नवरात्र शब्द से ‘नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध’ होता है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। जैसे- नवदिन या शिवदिन, परंतु हम ऐसा नहीं कहते हैं। शैव और शक्ति से जुड़े धर्म में रात्रि का महत्व है तो वैष्णव धर्म में दिन का। इसीलिए इन रात्रियों में सिद्धि और साधना की जाती है। (इन रात्रियों में किए गए शुभ संकल्प सिद्ध होते हैं।)

2. यह नवरात्रियां साधना, ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग आदि के लिए महत्वपूर्ण होती है। कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इस दिनों प्रकृति नई होना प्रारंभ करती है। इसलिए इन रात्रियों में नव अर्थात नया शब्द जुड़ा हुआ है। वर्ष में चार बार प्रकृति अपना स्वरूप बदलकर खुद को नया करती हैं। बदलाव का यह समय महत्वपूर्ण होता है। वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण से देखें तो पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक वर्ष की चार संधियां होती हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतुओं की संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। ऐसे में नवरात्रि के नियमों का पालन करके इससे बचा भी जा सकता है।

3. वैसे भी रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। जैसे यदि आप ध्यान दें तो रात्रि में हमारी आवाज बहुत दूर तक सुनाई दे सकती है परंतु दिन में नहीं, क्योंकि दिन में कोलाहल ज्यादा होता है। दिन के कोलाहल के अलावा एक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।

4. रेडियो इस बात का उदाहरण है कि रात्रि में उनकी फ्रीक्वेंसी क्लियर होती है। ऐसे में ये नवरात्रियां तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इस समय हम ईथर माध्यम से बहुत आसानी से जुड़कर सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। हमारे ऋषि-मुनि आज से कितने ही हजारों-लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

5. रेडियो तरंगों की तरह ही हमारे द्वारा उच्चारित मंत्र ईथर माध्यम में पहुंचकर शक्ति को संचित करते हैं या शक्ति को जगाते हैं। इसी रहस्य को समझते हुए संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपनी शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजकर साधन अपनी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि करने में सफल रहते हैं। गीता में कहा गया है कि यह ब्रह्मांड उल्टे वृक्ष की भांति हैं। अर्थात इसकी जड़े उपर हैं। यदि कुछ मांगना हो तो ऊपर से मांगों। परंतु वहां तक हमारी आवाज को पहुंचेने के लिए दिन में यह संभव नहीं होता है यह रात्रि में ही संभव होता है। माता के अधिकतर मंदिरों के पहाड़ों पर होने का रहस्य भी यही है।

प्रधान मंत्री को गुस्सा क्यों आता है??

कृषि कानून को लेकर पंजाब समेत विभिन्न जगहों पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां कृषि कानून को ‘किसान विरोधी’ करार देते हुए सरकार की आलोचना कर रही हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सोमवार को ट्रैक्टर जलाकर विरोध प्रदर्शित किया गया. विरोध प्रदर्शन करने वाले पंजाब यूथ कांग्रेस के बताए जा रहे हैं. पीएम मोदी ने इस घटना को लेकर किसी पार्टी का नाम लिए बिना विपक्ष पर निशाना साधते हुए किसानों को अपमानित करने का आरोप लगाया. पीएम मोदी ने कहा, “आज जब केंद्र सरकार, किसानों को उनके अधिकार दे रही है, तो भी ये लोग विरोध पर उतर आए हैं. ये लोग चाहते हैं कि देश का किसान खुले बाजार में अपनी उपज नहीं बेच पाए. जिन सामानों की, उपकरणों की किसान पूजा करता है, उन्हें आग लगाकर ये लोग अब किसानों को अपमानित कर रहे हैं.” पीएम मोदी ने कहा कि पिछले महीने ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया गया है। ये लोग पहले सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का विरोध कर रहे थे, फिर भूमिपूजन का विरोध करने लगे। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कानूनों के अजीबोगरीब विरोध के परिप्रेक्ष्य में कहा कि हर बदलती हुई तारीख के साथ विरोध के लिए विरोध करने वाले ये लोग अप्रासंगिक होते जा रहे हैं।

  • सरकार ने चारों दिशाओं में एक साथ काम आगे बढ़ाया : PM
  • ये लोग अपने जांबाजों से ही सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे थे : मोदी
  • आज तक इनका कोई बड़ा नेता स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नहीं गया : प्रधानमंत्री

चंडीगढ़ – 29 सितंबर:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करने के बाद अपने सम्बोधन में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों को लेकर कॉन्ग्रेस को आईना दिखाया और जनता को समझाया कि कैसे वो हर उस चीज का विरोध करते हैं, जिसे जनता की भलाई के लिए लाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान राम मंदिर और योग दिवस को भी याद किया, जिसका कॉन्ग्रेस ने विरोध किया था।

पीएम मोदी ने कहा कि भारत की पहल पर जब पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रही थी, तो भारत में ही बैठे ये लोग उसका विरोध कर रहे थे। उन्होंने याद दिलाया कि जब सरदार पटेल की सबसे ऊँची प्रतिमा का अनावरण हो रहा था, तब भी ये लोग इसका विरोध कर रहे थे। पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया कि आज तक इनका कोई बड़ा नेता स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नहीं गया है। सरदार वल्लभभाई पटेल कॉन्ग्रेस के ही नेता थे।

कॉन्ग्रेस पार्टी अक्सर योग दिवस का मजाक बनाती रही है। जिस चीज ने दुनिया भर में भारत को नई पहचान दी, पार्टी उसका विरोध करती है। राहुल गाँधी ने सेना की ‘डॉग यूनिट’ के एक कार्यक्रम की तस्वीर शेयर कर के इसे ‘न्यू इंडिया’ बताते हुए न सिर्फ योग का बल्कि सेना का भी मजाक उड़ाया था। तभी पूर्व-सांसद और अभिनेता परेश रावल ने कहा था कि ये कुत्ते राहुल गाँधी से ज़्यादा समझदार हैं। सेना के डॉग्स के योगासन का मजाक बनाने वाले राहुल गाँधी की खूब किरकिरी हुई थी।

इसी तरह कॉन्ग्रेस ने अपनी ही पार्टी के नेता सरदार वल्लभभाई पटेल की ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ का विरोध किया, जिसके कारण न सिर्फ भारत का मान बढ़ा बल्कि केवडिया और उसके आसपास के क्षेत्रों में विकास के साथ-साथ रोजगार के नए अवसर आए। कॉन्ग्रेस पार्टी ने इस स्टेचू के निर्माण को ‘चुनावी नौटंकी’ और ‘राजद्रोह’ करार दिया था। राहुल गाँधी ने दावा कर दिया था कि सरदार पटेल के बनाए सभी संस्थाओं को मोदी सरकार बर्बाद कर रही है।

पीएम मोदी ने मंगलवार (सितम्बर 29, 2020) को कहा कि पिछले महीने ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया गया है। ये लोग पहले सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का विरोध कर रहे थे, फिर भूमिपूजन का विरोध करने लगे। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कानूनों के अजीबोगरीब विरोध के परिप्रेक्ष्य में कहा कि हर बदलती हुई तारीख के साथ विरोध के लिए विरोध करने वाले ये लोग अप्रासंगिक होते जा रहे हैं।

कॉन्ग्रेस पार्टी कृषि कानूनों के विरोध के लिए एक ट्रैक्टर को 20 सितम्बर को अम्बाला में जला रही है तो फिर 28 सितम्बर को उसी ट्रैक्टर को दिल्ली के इंडिया गेट के पास राजपथ पर जला कर सुर्खियाँ बटोर रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह धरना दे रहे हैं। सोनिया गाँधी राज्यों को क़ानून बना कर केंद्र के क़ानूनों को बाईपास करने के ‘फर्जी’ निर्देश दे रही है। जबकि अधिकतर किसानों ने भ्रम और झूठ फैलाए जाने के बावजूद इन क़ानूनों का स्वागत किया है।

राम मंदिर मुद्दे की याद दिलाना भी आज के परिप्रेक्ष्य में सही है क्योंकि इसी कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2009 में सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट देकर कहा था कि भगवान श्रीराम का कोई अस्तित्व नहीं है। वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल तो राम मंदिर की सुनवाई टालने के लिए सारे प्रयास करते रहे। वहीं दिसंबर 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी ने उनसे पूछा था कि कॉन्ग्रेस बाबरी मस्जिद चाहती है या राम मंदिर?

इसी कॉन्ग्रेस ने जब राम मंदिर के शिलान्यास के बाद जनता के मूड को भाँपा तो वो राम मंदिर के खिलाफ टिप्पणी करने से बचने लगी। कोई पार्टी नेता इसके लिए राजीव गाँधी को क्रेडिट देने लगा। प्रियंका गाँधी बयान जारी कर के इसका समर्थन करने लगीं। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल रामायण कॉरिडोर बनाने लगे। कमलनाथ हनुमान चालीसा पढ़ने लगे। तभी तो आज पीएम ने कहा – ये विरोध के लिए विरोध करते हैं

प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि चार साल पहले का यही तो वो समय था, जब देश के जाँबाजों ने सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए आतंक के अड्डों को तबाह कर दिया था। लेकिन ये लोग अपने जाँबाजों से ही सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँग रहे थे। सर्जिकल स्ट्राइक का भी विरोध करके, ये लोग देश के सामने अपनी मंशा, साफ कर चुके हैं। देखा जाए तो एक तरह से सारे विपक्षी दलों ने सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध किया था।

नवम्बर 2016 में मोदी सरकार ने भारतीय सेना को सर्जिकल स्ट्राइक के लिए हरी झंडी दिखा कर इतिहास को बदल दिया। पहली बार भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाक़े में घुस कर आतंकियों को मारा लेकिन राहुल गाँधी इसे ‘खून की दलाली’ बताते हुए कहते रहे कि सरकार ‘सैनिकों के खून’ के पीछे छिप रही है। कॉन्ग्रेस पार्टी के लोग सबूत माँगने में लगे थे। कइयों ने तो पाकिस्तान वाला सुर अलापना शुरू कर दिया था।

पीएम मोदी ने कहा कि देश ने देखा है कि कैसे डिजिटल भारत अभियान ने, जनधन बैंक खातों ने लोगों की कितनी मदद की है। जब यही काम हमारी सरकार ने शुरू किए थे, तो ये लोग इनका विरोध कर रहे थे। देश के गरीब का बैंक खाता खुल जाए, वो भी डिजिटल लेन-देन करे, इसका इन लोगों ने हमेशा विरोध किया। उन्होंने कहा कि आज जब केंद्र सरकार, किसानों को उनके अधिकार दे रही है, तो भी ये लोग विरोध पर उतर आए हैं।

बकौल पीएम मोदी, ये लोग चाहते हैं कि देश का किसान खुले बाजार में अपनी उपज नहीं बेच पाए। जिन सामानों की, उपकरणों की किसान पूजा करता है, उन्हें आग लगाकर ये लोग अब किसानों को अपमानित कर रहे हैं। बता दें कि किसानों को सरकार के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों को अपनी उपज बेचने के लिए मिली आज़ादी का विरोध समझ से परे है। इसके लिए सीएए विरोध जैसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।

अमित शाह बता चुके हैं कि जिस पार्टी ने अपनी सरकार रहते अनाजों की खरीद में भी अक्षमता दिखाई लेकिन मोदी सरकार ने इस मामले में रिकॉर्ड बनाया, इसके बावजूद वो किसानों को भ्रमित करने में लगे हुए हैं। एमएसपी के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है, उलटा उसे बढ़ाया गया है। बावजूद इसके किसानों को भाजपा के खिलाफ ऐसे ही भड़काया जा रहा है, जैसे लॉकडाउन में मजदूरों को भड़काया गया था।

पीएम मोदी ने ये भी याद दिलाया कि भारतीय वायुसेना के पास राफेल विमान आये और उसकी ताकत बढ़ी, ये उसका भी विरोध करते रहे। उन्होंने कहा कि वायुसेना कहती रही कि हमें आधुनिक लड़ाकू विमान चाहिए, लेकिन ये लोग उनकी बात को अनसुना करते रहे। हमारी सरकार ने सीधे फ्रांस सरकार से राफेल लड़ाकू विमान का समझौता कर लिया तो, इन्हें फिर दिक्कत हुई। आज अम्बाला से लद्दाख तक वायुसेना का परचम लहरा रहा है।

राफेल मुद्दे पर ज्यादा कुछ याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पूरा 2019 का लोकसभा चुनाव ही इसी पर लड़ा गया था। जहाँ एक तरफ कॉन्ग्रेस पोषित मीडिया संस्थानों द्वारा एक के बाद एक झूठ फैलाया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट और कैग से क्लीन-चिट मिलने के बावजूद राफेल को लेकर झूठ फैलाया गया। वही कॉन्ग्रेस अब राफेल का नाम नहीं लेती क्योंकि जब 5 राफेल की पहली खेप भारत आए तो जनता के उत्साह ने सब साफ़ कर दिया। 2019 का लोकसभा चुनाव हारे, सो अलग।

तबलीगी जमात को औरंगाबाद हाइ कोर्ट से राहत, एफ़आईआर रद्द, ओवैसी ने भाजपा पर साधा निशाना

मोदी सरकार ने कोरोना पर अपनी विफलता छुपाने के लिए तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया और मीडिया ने इस पर प्रॉपेगेंडा चलाया। बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। इस एक फैसले ने तबलिगी जमात के प्रति लोगों को अपने विचार बदलने पर मजबूर किया हो ऐसा नहीं है, हाँ मुसलमानों के एक तबके में राहत है और खुशी की लहर है। इस फैसले का मोदी सरकार के तथाकथित @#$%$ मीडिया वाली बात सच साबित होती दिखती है।

महाराष्ट्र(ब्यूरो):

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया। कोर्ट ने साथ ही मीडिया को फटकार लगाते हुए कहा कि इन लोगों को ही संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रॉपेगेंडा चलाया गया। वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इस प्रॉपेगेंडा से मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।

देश में जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन में स्थित तबलीग़ी जमात के बने मरकज़ में फंसे लोगों की ख़बर निकल कर सामने आई और तबलीगी जमात में शामिल छह लोगों की कोविड-19 से मौत का मामला सामने आया, तब से ही भारतीया मीडिया ने तबलीग़ी जमात की आड़ में देश के मुस्लमानों पर फेक न्यूज़ की बमबारी कर दी । मीडिया ने चंद लम्हों में इसको हिंदू-मुस्लिम का मामला बना कर परोसना शुरू कर दिया । सरकार से सवाल पूछने के बजाए नेशनल चैनल पर अंताक्षरी खेलने वाली मीडिया को जैसे ही मुस्लमानों से जुड़ा कोई मामला मिला उसने देश भर के मुस्लमानों की छवि को धूमिल करना शुरू कर दिया । कोरोनावायरस जैसी जानलेवा बीमारी को भारत में फैलाने का ज़िम्मेदार मुस्लमानों को ठहराना शुरू कर दिया। : नेहाल रिज़वी

कोर्ट ने शनिवार को मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘दिल्ली के मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रॉपेगेंडा चलाया गया। ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई, जिसमें भारत में फैले Covid-19 संक्रमण का जिम्मेदार इन विदेशी लोगों को ही बनाने की कोशिश की गई। तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया।’

हाई कोर्ट बेंच ने कहा, ‘भारत में संक्रमण के ताजे आंकड़े दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसे ऐक्शन नहीं लिए जाने चाहिए थे। विदेशियों के खिलाफ जो ऐक्शन लिया गया, उस पर पश्चाचाताप करने और क्षतिपूर्ति के लिए पॉजिटिव कदम उठाए जाने की जरूरत है।

वहीं हैदराबाद से सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के इस फैसले की सराहना करते हुए इसे सही समय पर दिया गया फैसला करार दिया। ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, ‘पूरी जिम्मेदारी से बीजेपी को बचाने के लिए मीडिया ने तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया। इस पूरे प्रॉपेगेंडा से देशभर में मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।’

मध्य प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनावों की तैयारियां तेज़

मध्य प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों के उपचुनाव की तैयारी तेज हो गई है। कोविड-19 के बीच उपचुनाव को लेकर की जाने वाली तैयारियों का निर्वाचन आयोग ने आकलन कर लिया है। उपचुनाव में 2225 बूथों की संख्या बढ़ाई जा सकती है, जिससे मतदान केंद्रों पर भीड़ न इकट्ठी हो और सुरक्षा तथा चुनाव अधिकारियों को मतदाताओं से कोरोना गाइडलाइंस का पालन कराने में सहूलियत हो।

भोपाल (ब्यूरो) – 20 अगस्त:

चुनाव आयोग लंबे समय से उपचुनाव को लेकर तैयारियां कर रहा था। कोरोना काल के चलते तमाम गाइडलाइन का पालन कराने के लिए और मौजूदा स्थिति को देखते हुए बूथों की संख्या बढ़ाई जा रही है। अगले हफ्ते भारत निर्वाचन आयोग की तरफ से कोविड प्रोटोकॉल से जुड़ी गाइडलाइन भेज दी जाएगी। इधर, चुनाव आयोग की तैयारियों को देखते हुए बीजेपी कांग्रेस और दूसरी पार्टियों ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी है।

वर्चुअल बैठकों और मीटिंग के साथ रैलियां की जा रही है. बसपा ने भी अपने तमाम उम्मीदवारों को 27 सीटों पर उतारने का फैसला लिया है । उपचुनाव के मद्देनजर बीजेपी और कांग्रेस में बयानबाजी का दौर भी जारी है। उम्मीदवारों का चयन भी लगभग तय हो गया है। सिर्फ सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान करना बाकी है।

27 सीटों पर 2225 बूथ बढ़ाए

चुनाव आयोग ने सभी 18 कलेक्टरों की सहमति लेने के बाद यह फैसला लिया था कि जिन विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है, वहां पर वोटों की संख्या बढ़ाई जाएगी। ऐसा करने से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा नहीं रहेगा और गाइडलाइन का पालन भी हो सकेगा। कलेक्टरों की सहमति और तमाम स्तर की बैठक के तहत 27 सीटों पर 2225 बूथ बढ़ाकर चुनाव कराए जा सकते हैं।

अधिकारियों की ट्रेनिंग शुरू

चुनाव आयोग की तैयारियां बड़ी तेजी से चल रही है। बूथ के बाद किस तरीके की व्यवस्था चुनाव के दौरान रहने वाली है। इसको लेकर भी ट्रेनिंग सेशन शुरू कर दिए गए हैं। आयोग रिटर्निंग अधिकारी और एआरओ की ट्रेनिंग दे रहा है। चुनाव की तैयारियों के चलते  यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में चुनाव हो सकते हैं। हालांकि, इन तैयारियों पर भारत निर्वाचन आयोग जल्द फैसला लेगा।

ग्वालियर-चंबल संभाग में 22 से भाजपा का शंखनाद

इधर चुनाव आयोग की सक्रियता को देखते हुए भाजपा और कांग्रेस सहित तीसरे मोर्च ने मध्य प्रदेश की जनता के बीच सक्रियता बढ़ा दी है। जल्द चुनाव की संभावना को देखते हुए भाजपा ग्वालियर-चंबल संभाग में सक्रिय हो गई है। पार्टी 22 से 24 अगस्त तक इस क्षेत्र में बड़े कार्यक्रम करने जा रही है। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति अभी बंद कमरों में ही बन रही है। भाजपा के कार्यक्रम के बाद कांग्रेस नेता भी ग्वालियर-चंबल संभाग में सक्रिय होंगे।

पायलट खुद से रूठे खुद ही माने सब कसूर भाजपा का

राजस्थान में पिछले लगभग एक महीने से जारी सियासी घमासान का अंत हो गया है। जहां कांग्रेस से सचिन पायलट के बागी तेवर अपनाने के बाद राज्य में अशोक गहलोत की सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। लेकिन अब राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विश्वास मत हासिल कर लिया है। विधानसभा में राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के पक्ष में ध्वनि मत से विश्वास प्रस्ताव पारित किया गया है। इसके बाद कांग्रेस विधायकों में खुशी की लहर देखी गई। वहीं अब राजस्थान में 21 अगस्त तक सदन को स्थगित किया गया है। इस दौरान कांग्रेस के दोनों दिग्गज नेता गहलोत और पायलट ने विपक्षी दल भाजपा पर जमकर निशाना साधा। विश्वास मत हासिल करने के बाद कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस, करोड़ों भारतीयों ने गोरे अंग्रेजों से लड़कर विजय पाई। हम संकल्प बद्ध है प्रजातंत्र, बहुमत और देश के संविधान पर हमला करने वाले मोदी सरकार में बैठे काले अंग्रेजों से भी जीतकर प्रजातंत्र और संविधान की रक्षा करने के लिए। आज के विश्वास मत का यही सबक है।

कॉन्ग्रेस में ड्रामा चल रहा था और मीडिया के साथ-साथ पार्टी के कई नेता इसे अमित शाह और भाजपा की चाल बताते रहे। मीडिया ने इसे ऐसे पेश किया जैसे भाजपा ही अशोक गहलोत की सरकार गिराने की कोशिश कर रही हो। अगर ऐसा था तो फिर सचिन पायलट अब वापस मान गए हैं तो फिर वो या उनकी पार्टी खुलासा क्यों नहीं करती कि इसमें भाजपा का क्या रोल था? अब सब एक हैं तो बता दें।

चंडीगढ़ 15 अगस्त:

‘सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं’– राजस्थान में जब सियासी ड्रामा शुरू हुआ था, तब सचिन पायलट का यही ट्वीट सामने आया था। ये राजस्थान का ड्रामा कम और कॉन्ग्रेस का अंदरूनी कलह ज्यादा था। अब स्थिति ये है कि ‘सत्य’ परेशान भी रहा, पराजित भी हो गया और अब वापस जमीन पर धड़ाम से गिरा भी है। पायलट के प्लेन ने वहीं लैंडिंग कर दी, जहाँ से वो उड़ा था। एक ‘यू-टर्न’ के बाद सब शांत होता दिख रहा है।

मंगलवार (अगस्त 10, 2020) को सचिन पायलट इस पूरे विवाद के बीच पहली बार मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने कहा कि पार्टी से उनके द्वारा किसी भी पद की माँग नहीं की गई है। बकौल पायलट, उन्होंने तो सिर्फ सरकार के कामकाज के तौर-तरीके और पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मान का मुद्दा उठाया था। 45 विधायकों में से एक पर राष्ट्रद्रोह तक का केस लगाए जाने और फिर इस 25 दिनों के सियासी चकल्लास के बाद आरोप वापस लिए जाने वाली प्रक्रिया पर भी उन्होंने नाराजगी जताई।

सचिन पायलट ने याद किया कि कैसे उनके ख़िलाफ़ कई मामले दर्ज किए गए। उनका कहना है कि ये सब नहीं होना चाहिए था। पायलट ने ये भी कहा कि उन्होंने तो बस कुछ मुद्दे उठाए थे। अब बदले की राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही कॉन्ग्रेस के प्रति श्रद्धा जताते हुए वो ये भी कहते नज़र आए कि वो पार्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे। वो ये कहने से भी नहीं चूके कि उन्होंने कभी पार्टी, इसकी विचारधारा और नेतृत्व को लेकर कुछ भी गलत नहीं कहा।

यहाँ पर सवाल उठता है कि अगर सब कुछ इतना ही सीधा और सपाट था तो वो गए ही क्यों थे? एक तरफ तो वो कहते हैं कि सरकार के कामकाज की प्रक्रिया को लेकर वो नाराज़ थे और दूसरी तरफ वो ये भी कहते हैं कि सरकार के ख़िलाफ़ तो उन्होंने कुछ कहा ही नहीं। जब कहने की बात आती है तो गहलोत ने पायलट को निकम्मा, नकारा कर धोखेबाज से लेकर और न जाने क्या-क्या कहा। अब यही सचिन पायलट कह रहे हैं कि अशोक गहलोत तो सम्मानित और बुजुर्ग हैं।

कॉन्ग्रेस में ड्रामा चल रहा था और मीडिया के साथ-साथ पार्टी के कई नेता इसे अमित शाह और भाजपा की चाल बताते रहे। मीडिया ने इसे ऐसे पेश किया जैसे भाजपा ही अशोक गहलोत की सरकार गिराने की कोशिश कर रही हो। अगर ऐसा था तो फिर सचिन पायलट अब वापस मान गए हैं तो फिर वो या उनकी पार्टी खुलासा क्यों नहीं करती कि इसमें भाजपा का क्या रोल था? अब सब एक हैं तो बता दें।

कॉन्ग्रेस में सोनिया गाँधी की बैठक में घमासान हुआ। ‘बुजुर्ग बनाम युवा’ की लड़ाई छिड़ गई। कुछ नेताओं द्वारा मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार पर ठिकरा फोड़ने के बाद ये बहस सोशल मीडिया पर आ गई और शशि थरूर व आनंद शर्मा जैसे नेताओं ने आगे आकर यूपीए के 10 साल के कार्यकाल का समर्थन करते हुए ‘आलोचक नेताओं’ से नाराज़गी जताई। अगर कोई मुद्दा ही नहीं था तो कलह ट्विटर पर क्यों हुआ?

अब मीडिया का एक बड़ा वर्ग ये प्रचारित करने में सक्रिय हो गया है कि कैसे राहुल गाँधी ने चुटकियों में इस मसले को सुलझा लिया। कैसे उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए सचिन पायलट को मनाम लिया और राजस्थान की सरकार गिराने से बचा कर भाजपा की साजिश को नाकाम कर दिया। राहुल गाँधी को हर महीने नए तरीके से लॉन्च किया जाता है। सचिन पायलट के बहाने भी उन्हें एक बार और लॉन्च किया जा रहा है।

कॉन्ग्रेस के अंदरूनी रायते भाजपा के लिए झटका कैसे?

अब आते हैं उन लोगों पर, जो इसे भाजपा के लिए झटका बता रहे हैं। भाजपा को झटका, ‘ऑपेरशन लोटस’ नाकाम, अमित शाह से बड़े चाणक्य निकले अशोक गहलोत, राहुल ने भाजपा की चाल पर फेरा पानी और विधायकों को नहीं खरीद पाई भाजपा- मीडिया में ऐसी बातें चल रही हैं। उन लोगों से एक ही सवाल है कि इस पूरे मामले में भाजपा थी कहाँ? सिर्फ कॉन्ग्रेस नेताओं ने बयानों के अलावा? फिर भाजपा को झटका कैसे?

ये स्वाभाविक है कि अगर विरोधी पार्टी कमजोर होगी तो किसी भी दल को फायदा होगा। लेकिन, वहाँ चल रहे ड्रामे से भाजपा को झटका कैसे लग गया? कॉन्ग्रेस का संकट टला नहीं है। विधायकों को मनाने का दौर जारी है। गहलोत कैम्प के ही विधायकों की नाराजगी की खबर आ रही है, जो ये कह रहे हैं कि उनकी सरकार रहते हुए भी उन्हें बन्दी की तरह रहना पड़ रहा है। रेगिस्तानों में विधायकों को भटकाया जा रहा है।

जैसलमेर के सूर्यागढ़ में ठहरे विधायक मायूस हैं। उन्होंने रणदीप सुरजेवाला के सामने ही पूछा है कि जिन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए सरकार को संकट में डाला, सरकार के काम-काज को प्रभावित किया और जिनके कारण ये पूरा ड्रामा चला, अब पार्टी उनके लिए ही बाहें फैलाए खड़ी हैं। परिवार से दूर रहे विधायक नाराज़ हैं कि वो वैसे के वैसे ही रह गए और जिनके कारण ये सब हुआ उनका स्वागत किया जा रहा है।

विधायकों के मान-मनव्वल का एक दौर फिर से चलेगा। एक बगावत टलने के बाद कई छोटे-छोटे बगावतों से पार्टी को नुकसान होने की पूरी संभावना है। कॉन्ग्रेस के जिन विधायकों को उम्मीद थी, झटका उन्हें लगा है, भाजपा को नहीं! अब सचिन पायलट अपने गुट के विधायकों को मंत्री बनवाएँगे, तो इन विधायकों के अरमान धरे के धरे रह जाएँगे। इन सबसे कॉन्ग्रेस को ही निपटना है, भाजपा को नहीं!

ये झटका किसे है?

सचिन पायलट अब राजस्थान में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष नहीं रहे। न ही वो अब राज्य के उप-मुख्यमंत्री हैं। महीने भर उनका अपमान हुआ। कॉन्ग्रेस नेताओं ने उन्हें भला-बुरा कहा। अगर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद वापस मिल भी जाता है तो फिर उन्हें क्या फायदा हुआ? साथ में उनका जो अपमान किया गया, वो भी तो रह गया। कल अगर उनकी कोई नाराज़गी होती है तो क्या उन्हें वैसा ही समर्थन मिलेगा, जैसा अभी मिला था?

हो सकता है कि इसी बीच गैंगस्टर विकास दुबे, भारत-चीन गतिरोध और सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे मीडिया में ऐसे छाए हुए थे कि एक समय के बाद सचिन पायलट को फुटेज मिलनी बन्द हो गई थी और उन्होंने सोच-विचार में इतना समय ले लिया कि अब उनके पास विकल्प ही नहीं बचे थे। भाजपा ने उनके मन-मुताबिक पद देने से मना कर दिया हो, ये भी हो सकता है। इस स्थिति में भी तो झटका सचिन पायलट को ही है।

लोग हर मोड पे रुक रुक के समहलते क्यूँ हैं ; राहत इंदौरी नहीं रहे वह 70 वर्ष के थे

देश के मशहूर शायर राहत इंदौरी का मंगलवार को निधन हो गया. वे लंबे समय से सांस की बीमारी से पीड़ित थे. हाल ही में उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें अरबिंदो अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जानकारी के अनुसार राहत इंदौरी को शुगर और हृदय रोग की भी समस्या थी. हाल ही में निमोनिया के चलते उनके फेंफड़ेां में इंफेक्‍शन हो गया था. बताते है कि राहत इंदौरी चार महीने से घर से नहीं निकले थे. वे सिर्फ नियमित जांच के लिए ही घर से बाहर निकलते थे. उन्हें चार-पांच दिन से बेचैनी हो रही थी. डॉक्टरों की सलाह पर फेफड़ों का एक्स-रे कराया गया तो निमोनिया की पुष्टि हुई थी. इसके बाद सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे जिसमें वे कोरोना संक्रमित पाए गए. राहत साहब को दिल की बीमारी और डायबिटीज की शिकायत भी थी. उनके डॉ. रवि डोसी का बताया था कि उनके दोनों फेफड़ों में निमोनिया है सांस लेने में तकलीफ के चलते आईसीयू में रखा गया था उनको तीन बार हार्ट अटैक भी आया था.

खुद ट्वीट कर दी थी जानकारी

बता दें कि राहत इंदौरी ने अपने एक ट्वीट के जरिए खुद के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि की है. राहत इंदौरी ने ट्वीट कर लिखा था कि कोविड के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर मेरा कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई है. ऑरबिंदो हॉस्पिटल में एडमिट हूं, दुआ कीजिये जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं. एक और इल्तेजा है, मुझे या घर के लोगों को फ़ोन न करें. मेरी ख़ैरियत ट्विटर और फेसबुक पर आपको मिलती रहेगी.  राहत इंदौरी मशहूर शायर होने के साथ ही अच्छे लिरिक्स राइटर भी थे. उन्होंने बॉलीवुड के लिए भी कई मशहूर गाने लिखे थे.

पायलट निकम्मा, नकारा, धोखेबाज अब नहीं है

ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के जनरल सेक्रेट्री केसी वेनुगोपाल ने बताया कि सचिन पायलट की इस मुलाकात के बाद सोनिया गांधी ने फैसला किया है कि पायलट और असंतुष्ट विधायकों की ओर से उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए पार्टी तीन सदस्यीय एक कमिटी का गठन करेगी. इसमें सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी और मंथन करने के बाद उचित रास्ता निकाला जाएगा. मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट को क्या क्या नहीं कहा. गहलोत ने सचिन पायलट पर बड़े बड़े आरोप भी लगाए. फिर 10 अगस्त को आखिर क्या हो गया कि अचानक सचिन पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिलकर सभी बातों को सुलटा लिया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने सिरे से सचिन पायलट को नज़रंदाज़ करने का मन बना लिया? क्या सचिन पायलट को वसुंधरा राजे की नाराजगी से अवगत करा दिया गया? जिसके बाद सचिन पायलट ने घर वापसी का रास्ता अख्तियार करना अपनी समझदारी समझी.

खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आन्ना

जयपुर(ब्यूरो):

चाहे राजस्थान प्राकरण में राहुल गांधी अकर्मण्य रहे और इस राजनैतिक संकट से अपनी पार्टी को उबारने के लिए कुछ नहीं कर पाये लेकिन वसुंधरा राजे की हलचल ने पायलट की अक्ल ठिकाने ला दी ऐसा लगता है। अब तक राजस्थान सियासी संकट में आलाकमान से निराश हो चुके कोंग्रेसी भी हतप्रभ हैं ओर कह रहे हैं की रानी साहिबा पहले ही आ जातीं तो इतने दिन न लगते। सच जानते हुए भी अब राहुल की बांछे खिल गईं हैं। सब ओर प्रचार प्रसार हो रहा है की यह राहुल की सूझबूझ ही थी जो राहुल ने इस संकट से कॉंग्रेस को उबार लिया।

सचिन पायलट की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात के साथ पिछले एक महीने से चला आ रहा, राजस्थान का राजनीतिक संकट खत्म हो गया. अब सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक अशोक गहलोत के साथ खड़े हो गए. पिछले एक महीने में कांग्रेस के अंदर खासा उठक पटक देखने को मिली. सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायको की अपने ही अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ नाराज़गी ने राजस्थान सरकार को संकट में डाल रखी थी. कभी बात थर्ड फ्रंट बनाने की हुई तो कभी सचिन पायलट और उनके समर्थकों की बीजेपी में शामिल होने की चली. सचिन समर्थक विधायकों ने गुरुग्राम के एक होटल में अपनी आवाज़ बुलंद की.

इस पूरे सियासी घटनाक्रम में बीजेपी की पैनी निगाह थी, राज्य बीजेपी इकाई में इस विषय मे लगातार बैठके भी होती रही. यहां तक की केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर जैसे नेताओं ने सचिन पायलट को बीजेपी में आने तक का न्योता तक दे डाला. पार्टी के अंदर सचिन पायलट और उनके समर्थकों के प्रति भले ही सहानभूति के स्वर निकल रहे हो, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुप्पी साधे रखी.

सूत्रों के मुताबिक वसुंधरा राजे कभी भी सचिन पायलट और उनके समर्थकों को बीजेपी में लाने के पक्षधर नहीं रहीं. इस सियासी घटना पर वसुंधरा ने राज्य इकाई से अपना विरोध दर्ज करवा दिया. कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया, गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर और उनके समर्थक नेताओं के सामने उनकी बहुत ज्यादा चली नहीं.

वसुंधरा राजे अचानक 5 अगस्त को दिल्ली पहुंच गईं. फिर बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ उनकी मैराथन बैठक शुरू हुई. वसुंधरा राजे 6 अगस्त को पार्टी संगठन महामंत्री बीएल संतोष से मुलाक़ात की. इन दोनों बड़े नेताओं के बीच ये बैठक तकरीबन 2 घंटे से ज्यादा चली. अगले ही दिन यानी 7 अगस्त को वसुंधरा राजे ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से दिल्ली में उनके आवास में मुलाक़ात की. बैठक तकरीबन डेढ़ घंटे तक चली. वसुंधरा राजे अगले ही दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिली, ये बैठक भी दो घंटे से ज्यादा चली.

सूत्रों की मानें, तो वसुंधरा राजे ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को राजस्थान राजनीतिक घटनाक्रम पर अपनी राय से अवगत करा दिया. सूत्रों के मुताबिक, सचिन पायलट और उनके समर्थकों के बीजेपी में शामिल और सचिन पायलट के थर्ड फ्रंट को किसी भी तरीके के समर्थन पर वसुंधरा राजे ने अपनी नाराजगी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने रख दी. कहा ये भी जा रहा है कि राजे ने यहां तक कह दिया कि राज्य बीजेपी इकाई का एक बड़ा वर्ग सचिन पायलट और उनके समर्थकों के साथ खड़ा होने को तैयार नहीं हैं. हालांकि, इन बैठकों में वसुंधरा राजे ने राज्य कार्यकारणी में हुए बदलाव और उनके समर्थकों को शामिल नहीं करने पर भी अपनी नाराजगी जता दी.

6 से 8 अगस्त के बैठकों के साथ वसुंधरा राजे ने दिल्ली में अपना मोर्चा बुलंद कर दिया. ठीक दो दिन बाद अचानक सचिन पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात की और कहा गया कि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक ठाक है. ये ठीक ठाक कितना ठीक ठाक था, ये इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सचिन पायलट को अशोक गहलोत से उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया था. साथ प्रदेश अध्यक्ष पद से उनकी छुट्टी कर दी गयी थी.

आलम ये था कि इस दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट को क्या क्या नहीं कहा. गहलोत ने सचिन पायलट पर बड़े बड़े आरोप भी लगाए. फिर 10 अगस्त को आखिर क्या हो गया कि अचानक सचिन पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिलकर सभी बातों को सुलटा लिया.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने सिरे से सचिन पायलट को नज़रंदाज़ करने का मन बना लिया? क्या सचिन पायलट को वसुंधरा राजे की नाराजगी से अवगत करा दिया गया? जिसके बाद सचिन पायलट ने घर वापसी का रास्ता अख्तियार करना अपनी समझदारी समझी.

अशोक गहलोत 99 के फेर में, 10 – 15 विधायक पायलट के

“अशोक गहलोत गुट के 10 से 15 विधायक हमारे सीधे संपर्क में हैं। वे कह रहे हैं कि जैसे ही उन्हें छोड़ा जाएगा वे हमारे साथ आ जाएँगे। अगर गहलोत प्रतिबंध हटाते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कितने विधायक उनके पक्ष में हैं” पायलट गुट का दावा। राजस्थान में 200 सदस्यीय विधानसभा में 101 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। अशोक गहलोत को बहुमत साबित करने के लिए सीपीएम के विधायक बलवान पूनिया ने कुछ वक्‍त पहले साथ देने का भरोसा दिलाया था, लेकिन वे न जयपुर में बाडेबंदी में थे न ही जैसलमेर गए थे।

जयपुर(राजस्थान ब्यूरो):

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनका कैंप दावा कर रहा है कि उनके पास 109 विधायक है लेकिन डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम के पास गहलोत समर्थक विधायकों की पुरी सूची है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कैंप के पास 99 विधायक ही हैं। इन 99 में से 92 विधायक ही जयपुर से आज जैसलमेर पहुंचे। चार मंत्री समेत 7 विधायक जयपुर में ही हैं। इसमें से कुछ विधायक शनिवार को जैसलमेर जा सकते हैं।

राजस्थान में 200 सदस्यीय विधानसभा में 101 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। अशोक गहलोत को बहुमत साबित करने के लिए सीपीएम के विधायक बलवान पूनिया ने कुछ वक्‍त पहले साथ देने का भरोसा दिलाया था, लेकिन वे न जयपुर में बाडेबंदी में थे न ही जैसलमेर गए थे। पूनिया ने अगर पार्टी व्हिप का पालन किया और कांग्रेस के पक्ष में मत नहीं दिया तो गहलोत सरकार के पास विधायक 99 ही रहेंगे. यानी गहलोत सरकार के गिरने का खतरा।

एक मंत्री मास्टर भंवरलाल इतने बीमार हैं कि मतदान नहीं कर सकते हैं। फिलहाल उनका मत किसी कैंप में नहीं है। स्पीकर सीपी जोशी सिर्फ पक्ष-विपक्ष की समान मत संख्या पर ही मतदान करा सकते हैं। अगर गहलोत के पास 99 मत ही रहते हैं तो सीपी जोशी मतदान नही कर पाएंगे यानी सरकार नहीं बचा सकते। जोशी सरकार को तभी बचा सकते हैं जब गहलोत 100 विधायक जुटा लें ऐसा तभी संभव है जब सीपीएम के दो में से कम से एक गहलोत के पक्ष में मत करे।

आज ही गहलोत ने अपने एक ताजे बयान में कहा है कि जो लोग सरकार गिराने की साजिश में लगे थे अगर वह आलाकमान के पास जाते हैं और आलाकमान उन्हें माफ कर देता है तो मैं उन्हें गले लगा लूंगा. मुझे पार्टी ने बहुत कुछ दिया है तीन बार मुख्यमंत्री था प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष रहा मैं जो भी कर रहा हूं पार्टी और जनता की सेवा के लिए कर रहा हूं मेरा इसमें अपना कुछ भी नहीं है

राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार पर मंडरा रहा खतरा टलता नहीं दिख रहा। सचिन पायलट गुट के एक विधायक के दावे ने पार्टी की मुसीबत और बढ़ा दी है। विधायक हेमाराम चौधरी का दावा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गुट के 10 से 15 विधायक उनके संपर्क में हैं।

हेमाराम ने यह बात ऐसे वक्त में कही है जब गहलोत विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव लेकर आने की बात कह रहे हैं।हेमाराम चौधरी ने कहा, “अशोक गहलोत गुट के 10 से 15 विधायक हमारे सीधे संपर्क में हैं। वे कह रहे हैं कि जैसे ही उन्हें छोड़ा जाएगा वे हमारे साथ आ जाएँगे। अगर गहलोत प्रतिबंध हटाते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कितने विधायक उनके पक्ष में हैं।”

अमर नहीं रहे

पूर्व समाजवादी पार्टी नेता, राज्‍यसभा सांसद अमर सिंह का निधन हो गया है. वो पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थे उनका दुबई कए एक अस्पताल में इलाज चल रहा था. कुछ दिनों पहले ही उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था. शनिवार दोपहर उनका निधन हो गया।

राज्‍यसभा सांसद अमर सिंह का निधन हो गया है. वह लगभग 6 महीने से बीमार चल रहे थे. सिंगापुर में इलाज के दौरान अमर सिंह शनिवार दोपहर जिंदगी की जंग हार गए. उनके सियासी सफर में ऊपर चढ़ने और नीचे गिरने की कहानी दो दशकों के दौरान लिखी गई. एक दौर में वो समाजवादी पार्टी के सबसे असरदार नेता थे, उनकी तूती बोलती थी लेकिन हाशिए पर भी डाले जाते रहे. समाजवादी पार्टी की कमान अखिलेश के हाथों में जाने के बाद उन्हें सपा से किनारा करना पड़ा.

अमर सिंह विभिन्न वजहों से कई बार विवादों में भी रहे। एक बार उन्होंने एक वाकया सुनाया था कि कैसे उन्होंने 1999 में कॉन्ग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की पिटाई की थी। मणिशंकर अय्यर ने उन्हें अवसरवादी कहा था और शराब के नशे में कुछ भी बकने का आरोप लगाया था। जब अय्यर ने उन्हें माँ की गाली दी और मुलायम को भी गाली दी तो उन्होंने वहीं पटक कर अय्यर की पिटाई कर दी।

64 वर्षीय राज्यसभा सांसद अमर सिंह का निधन सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान हुआ। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने ईद की शुभकामनाएँ भी दी थीं और साथ ही बाल गंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया था। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के निधन पर दुःख जताते हुए कहा कि स्वभाव से विनोदी अमर सिंह की सार्वजनिक जीवन के दौरान सभी दलों में मित्रता थी।

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बसपा विधायकों के कॉंग्रेस में विलय के खिलाफ याचिका, स्पीकर को नोटिस

राजस्थान में सियासी संग्राम जारी है. बहुजन समाज पार्टी विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के विधायक मदन दिलावर ने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका लगाई है. इस मामले में बुधवार को कोर्ट में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कहा बीएसपी विधायकों का विलय पूरी तरह अमान्य है. ये नियम के खिलाफ है. बीएसपी एक राष्ट्रीय पार्टी है, उसका राज्य स्तर पर विलय कैसे मंजूर? वहीं, कोर्ट ने साल्वे से पूछा कि आपकी याचिका तकनीकी आधार पर 28 जुलाई को खारिज हुई है. केस में अभी कोई मेरिट नहीं है.

जयपुर(ब्यूरो) – 30 जुलाई :

राजस्‍थान में मचे सियासी कोहराम में रोजाना एक नया रंग दिख रहा है. गहलोत सरकार को संकट से उबारने के लिए बीएसपी के विधायकों ने मोर्चा संभाला और कांग्रेस में विलय की घोषणा कर दी. 6 विधायकों की इस घोषणा के बाद, सबसे बड़ी चोट भले ही बीएसपी को लगी हो, लेकिन दर्द बीजेपी को भी हुआ. हाईकोर्ट ने सभी बीएसपी विधायकों और स्‍पीकर को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 11 अगस्‍त तक का समय दिया है.

यही वजह है कि बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता और विधायक मदन दिलावर ने इस मामले में राजस्‍थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. वहीं, राजस्‍थान हाईकोर्ट ने विधायक मदन द‍िलावर की याचिका को स्‍वीकार करते हुए कांग्रेस में विलय करने वाले बीएसपी के 6 विधायक और विधानसभा अध्‍यक्ष (Speaker) को नोटिस जारी किया है. उल्‍लेखनीय है कि बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने राजस्‍थान हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल की थीं.

बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने अपनी याचिका में बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय को असंवैधानिक बताते हुए स्पीकर के आदेश को रद्द करने की मांग की थी. भाजपा विधायक की याचिका पर बुधवार को जस्टिस महेंद्र गोयल की पीठ में सुनवाई हुई. जिसमें बाद, कोर्ट ने कांग्रेस में विलय करने वाले बीएसपी सभी छह विधायकों और राजस्‍थान विधानसभा के अघ्‍यक्ष को नोटिस जारी किया है.

एक बार कोर्ट से रद्द हो चुकी है बीजेपी विधायक की याचिका

बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय को लेकर यह दूसरी याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की है. इससे पहले, जस्टिस महेंद्र गोयल की अदालत ने सोमवार को विधायक मदन दिलावर की एक याचिका को खारिज कर दिया था. उसके बाद, उन्होंने अधिवक्ता आशीष शर्मा के जरिए दो नई याचिका नए सिरे से दाखिल की थीं. इन याचिकाओं में बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय और 22 जुलाई के स्पीकर सीपी जोशी के आदेश को चुनौती दी गयी है.