आआपा नेता संजय सिंह पर आरोप तय


संजय सिंह ने बीजेपी नेता को पूर्व मंत्री कपिल मिश्र पर कथित रूप से हमला करने वाला बताया था, अब देखने वाली बात यह है कि “आआपा नेता संजय सिंह” इस मुकद्दमे को इमानदारी से लड़ेंगे या फिर अपने नेता कि तरह भरे बाज़ार माफ़ी मांग लेंगे और गोर तलब यह भी रहेगा कि क्या भाजपा कि युवा इकाई के नेता ‘अंकित भारद्वाज’ अपने नेताओं का अनुसरण करते हुए उन्हें माफ़ कर देंगे. 


कल ही आआपा नेता संजय सिंह ने राफेल सौदे में रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीता रमण को एक कानूनी नोटिस भिजवाया ऐसा उन्होंने मिडिया में कहा, परन्तु आज उनके ही खिलाफ न्यायालय में अवमानना का मुकद्दमा दर्ज हो गया है.

बीजेपी की युवा इकाई के एक नेता की ओर से दाखिल मानहानि के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के खिलाफ आरोप तय किए हैं.

संजय सिंह ने बीजेपी नेता को पूर्व मंत्री कपिल मिश्र पर कथित रूप से हमला करने वाला बताया था. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने कहा कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं.

ये आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत तय किए गए हैं. इससे पहले राज्यसभा सांसद ने मामले में अपनी गलती स्वीकार नहीं की और इस संबंध में सुनवाई किए जाने पर जोर दिया.

[section 499 cr.p.c सिर्फ defamation मानहानि की परिभाषा बताता है यह section 499 cr.p.c  बताता है की मानहानि क्या होती है व कितने प्रकार की हो सकती है पर इसमें सजा का प्रावधान धारा 500 cr.p.c. में है इसके अनुसार जो भी कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करेगा वो दो साल के कारावास व जुर्माने व या दोनो की सजा भुगतेगा इसके अलावा वह कोर्ट में अगर कोई defamation मानहानि के लिए भी केस डालता है तो वो जुरमाना भी उसे मिलेगा ]

संजय  के अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद ने बताया कि अदालत में सुनवाई के दौरान आरोपों पर वह आआपा नेता का पक्ष रखेंगे. भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकारी सदस्य अंकित भारद्वाज ने यह मामला दायर किया था.

अंकित ने दावा किया कि आआपा नेताओं ने मीडिया में गलत तरीके से उनका नाम लिया और बीजेपी युवा मोर्चा का पदाधिकारी बताया, जिसने पिछले साल दस मई को मिश्र पर हमला किया था.

‘एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस संसद में ऐसे कांव-कांव करने लगी जैसे उनकी नानी मर गई हो.’ शाह


अमित शाह ने मध्य प्रदेश में भोपाल के जंबूरी मैदान में बीजेपी कार्यकर्ता महाकुंभ रैली को संबोधित कर रहे थे


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) के मुद्दे पर कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. मंगलवार को उन्होंने कहा कि ‘एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस संसद में ऐसे कांव-कांव करने लगी जैसे उनकी नानी मर गई हो.’

अमित शाह ने मध्य प्रदेश में भोपाल के जंबूरी मैदान में बीजेपी कार्यकर्ता महाकुंभ रैली को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा,‘असम में पंजीकरण में प्राथमिक रूप से 40 लाख घुसपैठियों की पहचान की गई है. अब इनको मतदाता सूची से भी हटाया जाएगा.’

शाह ने कहा,‘आज कार्यकर्ताओं की लाखों की भीड़ मेरे सामने खड़ी है. मैं पूछना चाहता हूं कि इस देश से घुसपैठियों को जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए?’

इस पर जनता की ओर से आवाज आई – ‘हां जाना चाहिए’.

बीजेपी अध्यक्ष ने कहा,‘पूरे देश से घुसपैठियों को निकालने की शुरुआत असम से की जाएगी.’ उन्होंने कहा कि हमने असम में सरकार बनने के बाद एनआरसी को लागू किया. भारत के नागरिकों पर रजिस्टर बनते ही अवैध घुसपैठियों की सूची बन जाएगी.

अमित शाह ने कहा,‘बीजेपी के लिए देश की सुरक्षा पहली प्राथमिकता है. आपको चिंता करने की जरूरत नहीं. एनआरसी की प्रक्रिया रुकने वाली नहीं है.’

पद्मश्री, पद्मविभूषण जसदेव सिंह नहीं रहे


87 बरस की उम्र में आवाज के जादूगर जसदेव सिंह ने ली आखिरी सांस


हॉकी वर्ल्ड कप विजय की वर्षगांठ थी. दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में एक समारोह रखा गया. इसमें जसदेव सिंह भी आए थे. तमाम औपचारिकताओं और एक प्रदर्शनी मैच के बीच जसदेव सिंह से उस जीत की यादें ताजा करने को कहा गया. मार्च का महीना था. जसदेव सिंह ने छोटा सा कागज निकाला. उस पर कुछ पॉइंट लिखे हुए थे. माइक हाथ में लिया. …और अगले 4-5 मिनट उनकी आवाज की खनक और रवानगी उस माहौल को जसदेवमय बना गई.

मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूं… इस घोषणा के साथ ही रेडियो की आवाज बढ़ा दी जाती थी. लोग रेडियो के करीब आ जाते थे. उसके बाद बस, एक आवाज गूंजती थी. जसदेव सिंह की. 1975 के विश्व कप की उस दौर का कोई शख्स नहीं भूल सकता. यहां तक कि फाइनल में विजयी गोल करने वाले अशोक कुमार ने कुछ समय पहले कहा था कि जब हम लौटकर आए, तो वो कमेंट्री दोबारा सुनी. उन्होंने कहा, ‘मैं दिल से कहता हूं कि उस कमेंट्री का रोमांच मैं शब्दों में नहीं बता सकता.’

हॉकी के हर पास की रफ्तार जसदेव सिंह के मुंह से निकलते शब्द की रफ्तार से मुकाबला करते थे. ऐसा लगता था, जैसे वो एक भी लम्हा नहीं चूकना चाहते. ..और कमेंट्री को लेकर उनका लगाव ही था, जो वर्ल्ड कप के 30 बरस बाद भी वो कमेंट्री शब्द-दर-शब्द उन्हें याद थी.

दरअसल, महात्मा गांधी के अंतिम सफर की कमेंट्री से उनका कमेंट्री के साथ लगाव शुरू हुआ था. उनके शब्दों में 1962 के स्वतंत्रता दिवस पर जो शुरुआत की, तो फिर वो किसी भी स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की आवाज बन गए. खासतौर पर गणतंत्र दिवस परेड की. माहौल बताना उनकी खासियत थी. उनकी कमेंट्री चिड़ियों के चहचहाने, सुहानी बयार, पेड़ों के झूमने से शुरू होती थी. यहां तक कि मजाक में कहा जाने लगा था कि जसदेव सिंह तो इनडोर स्टेडियम में चिड़ियों की आवाज सुना देते हैं.


Rajyavardhan Rathore

@Ra_THORe

It is with deep sadness that I note the demise of Sh Jasdev Singh, one of our finest commentators.

A veteran of @AkashvaniAIR & @DDNational, he covered 9 Olympics, 6 Asian Games & countless Independence Day & Republic Day broadcasts.

His demise is truly the end of an era.


शायद ही कोई ऐसा बड़ा इवेंट हो, जहां जसदेव सिंह की आवाज न गूंजी हो. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे नेताओं की अंतिम यात्रा हो… खेलों के हर बड़े इवेंट के साथ जुड़ाव हो.. हर जगह जब भी कमेंट्री की बात आती, जसदेव सिंह का नाम पहले आता था. उन्हें फिल्म चक दे में कमेंटेटर के रोल के लिए भी बुलाया गया. लेकिन लिखी हुई लाइन के बजाय अपने हिसाब से बोलने पर वो अड़ गए, जिस वजह से उन्हें फिल्म में नहीं लिया गया.

एक समय के बाद उनमें कुछ कड़वाहट आने लगी. उन्हें लगने लगा कि उनका वो सम्मान नहीं हो रहा, जिसके वो हकदार थे. हालांकि सब जानते हैं कि पद्म भूषण, पद्म श्री, ओलिंपिक ऑर्डर.. ये सब उनके नाम हैं. लेकिन रिटायरमेंट के बाद हालात बदले. 1955 से कमेंट्री कर रहे जसदेव शायद कमेंट्री से अपने प्यार की वजह से इससे दूर नहीं होना चाहते थे. उन्हें स्टार स्पोर्ट्स में भी शुरुआती समय में सुनील गावस्कर के साथ मौका दिया गया. 2000 के सिडनी ओलिंपिक में उन्होंने ओपनिंग सेरेमनी की कमेंट्री की. लेकिन तब तक साफ होने लगा कि आवाज का जादू तो बरकरार है, लेकिन अब आंखों और आवाज का समन्वय गड़बड़ा रहा है. कुछ खिलाड़ियों को पहचानने में उन्हें समस्या होने लगी थी.

इसके बाद भी कई सालों तक वो कमेंट्री करते रहे. वो लगातार यह कहते रहे कि उनसे कमेंट्री करवाई जानी चाहिए. लेकिन जैसा कहा जाता है कि दिन किसी के लिए नहीं थमते. आज, 24 सितंबर 2018 को 87 साल की उम्र में जसदेव सिंह दुनिया छोड़ गए हैं. कमेंट्री का वो दौर खत्म हो गया है, जिसे उनकी आवाज ने पहचान दी थी.

आकाशवाणी के सबसे चर्चित नामों में एक देवकी नंदन पांडेय थे. समाचार पढ़ने के उनके तरीके ने उन्हें ख्याति दिलाई थी. उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार इंदिरा गांधी से आकाशवाणी से लोग मिलने गए. सबने परिचय दिया. इंदिरा गांधी सिर नीचे किए कोई फाइल देख रही थीं. जब देवकी नंदन पांडेय ने अपना परिचय दिया तो इंदिरा जी ने सिर उठाया और कहा- अच्छा, आप हैं… 11 साल पहले 2007 में देवकी नंदन पांडेय का निधन हुआ था.

इसी तरह जसदेव सिंह को कमेंट्री की आवाज कहा जाता है. उनके लिए भी कहा जाता है कि 1975 के हॉकी वर्ल्ड कप फाइनल की कमेंट्री सुनने के लिए इंदिरा गांधी ने संसद की कार्यवाही रुकवा दी थी. यकीनन इसमें कोई शक नहीं कि जसदेव सिंह की आवाज गूंजती थी, तो ऐसा लगता था, मानो दुनिया थम जाए. सवाई माधोपुर में जन्मे जसदेव सिंह दिल्ली और जयपुर में रहते थे. जयपुर में अमर जवान ज्योति पर हर शाम उनकी आवाज गूंजा करती है. वो आवाज सिर्फ अमर जवान ज्योति नहीं, हर उस दिल मे हमेशा गूंजती रहेगी, जिसने उनकी कमेंट्री सुनी है. वो आवाज अमर है.

Congress-led government cancelled the deal with Dassault as the French company did not accept one of Vadra’s firm as “middleman”: Gajendra Shekhawat


The Congress has been accusing massive irregularities in the deal, alleging that the government was procuring each aircraft at a cost of over Rs 1,670 crore as against Rs 526 crore finalised by the UPA government.


Firing fresh salvo at the Congress party and its president Rahul Gandhi, BJP leader and Union minister Gajendra Shekhawat on Monday alleged that the opposition leader was being part of an “international conspiracy” to sabotage the Rafale fighter jet deal to benefit his brother-in-law Robert Vadra.

The minister also claimed that Vadra had links with arms dealer Sanjay Bhandari. He said the Congress-led government cancelled the deal with Dassault as the French company did not accept one of Vadra’s firm as “middleman”.

“They (Vadra and Bhandari) represent themselves as middlemen at many defence expos but they have not got a big breakthrough yet. The then government wanted that the French firm should accept it (Vadra’s company) as the middleman. But since it did not materialise, the deal with Dassault was cancelled,” the minister said.

Referring to former French president Francois Hollande, who stirred controversy about the Rafale fighter jet deal with India last week, Shekhawat said, “How Rahul Gandhi and he (Hollande) are linked as a part of nexus, and are trying to sabotage the deal needs to be understood.”

Accusing the opposition of messing with national security, the minister said the Congress party was weakening the Army’s morale by keeping the nation’s interest on the business interests of its son-in-law (Robert Vadra).

Hollande, who left office in May last year, said on Friday during a trip to India that French jet manufacturer Dassault Aviation had been given no choice about its local partner in a 2016 deal with the Indian administration.

Hollande’s announcement that Dassault “did not have a say in it” added fuel to claims from India’s opposition that the New Delhi government had intervened to help Ambani.

The Congress has been accusing massive irregularities in the deal, alleging that the government was procuring each aircraft at a cost of over Rs 1,670 crore as against Rs 526 crore finalised by the UPA government when it was negotiating procurement of 126 Rafale jets.

Congress president Rahul Gandhi went on the offensive. He attacked Prime Minister Narendra Modi after the reports of French media and said that the PM Modi personally negotiated and changed the Rafale deal behind closed doors.

“An ex-president of France is calling him (the prime minister of India) a thief. It’s a question of the dignity of the office of the prime minister,” he told a news conference in New Delhi.

PM Modi announced the purchase of 36 Rafale fighters after talks with Hollande on April 10, 2015, in Paris.

Two full time professions will now go hand in hand for Politicians

Courtsey: Bar & Bench :

The Supreme Court today ruled that Members of Parliament and Members of Legislative Assemblies (MPs and MLAs) cannot be barred from practicing law.

The Court made it clear that Rule 49 of the the Bar Council of India Rules is applicable only to full-time salaried employees, and does not cover legislators within its ambit.

The judgment was delivered by a Bench of Chief Justice Dipak Misra and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud in a petition filed by advocate and BJP Spokesperson Ashwini Kumar Upadhyay.

Upadhyay had filed the petition praying that legislators be debarred from practicing as Advocates (for the period during which they are Members of Parliament or State Assembly), in the spirit of Part-VI of the Bar Council of India Rules.

Senior Advocates Kapil Sibal and Dr. AM Singhvi are Parliamentarians representing the Congress Party.

In the alternative, he had sought for a direction to quash Rule 49 of the Bar Council of India Rules as ultra vires the Constitution and its basic structure, and to permit all Public Servants to practice as Advocates.

The Bar Council of India (BCI) too had issued notice to MPs, MLAs and MLCs who continue to practice law, following Upadhyay’s submission that since the legislators are being paid salary by the government, they cannot be allowed to practice, as per the Advocates Act and BCI Rules.

Interestingly, the Central government through Attorney General KK Venugopalhad opposed the petition,  contending that a Member of Parliament (MP) is an elected representative, and is not a full-time employee of the Government of India, and hence cannot be stopped from practicing law.

“They are doing a public service in their capacity as an MP. You can’t stop a person from practising a profession. It is a fundamental right to carry on a profession”, Venugopal had argued.

Senior Counsel Shekhar Naphade had represented the petitioner.

Questionable verdict. They are treated as public servants in corruption cases against them. There can be conflict of interest when a law which is to be enacted is against the interest of their clients and they vote against it even if it is in public interest.

Advocate/ legal profession is fulltime profession. Public representative viz. M.P./ MLA are bound to duty serve public full time. They can not say that they will serve/ perform their duties for part time either way.
In both position full time duty is badly required. So they should be banned from practising. According  to me, SC must review its Judgment.

When they are urgently required, either at Court or for Public duties, they are not available.
Even there are all possibilities of conflict of timing while dicharging their duties.
MLA-MP are getting undue advantages in profession. They are softly treated in court and they are getting government briefs.

माया कि माय को भेदना आसान नहीं


गुरुवार को मायावती ने कांग्रेस के बागी अजीत जोगी के साथ छत्तीसगढ़ में गठबंधन कर लिया, जिसके बाद कांग्रेस ने कहा कि वह राज्य में अकेले ही चुनाव लड़ेगी, मध्य प्रदेश में भी वो अकेले मैदान में उतरने की तैयारी में हैं


बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती संभवतः समाजवादी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के साथ मिल कर तीसरा मोर्चा बना सकती हैं. यह तीसरा मोर्चा आगामी राजस्थान चुनावों को ध्यान में रखकर बनाया जाएगा. माना जा रहा है कि अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले बीएसपी की ओर से कांग्रेस को यह तीसरा झटका होगा.

गुरुवार को मायावती ने कांग्रेस के बागी अजीत जोगी के साथ छत्तीसगढ़ में गठबंधन बना लिया. जिसके बाद कांग्रेस ने कहा कि वह राज्य में अकेले चुनाव लड़ेगी. मध्य प्रदेश में भी उन्होंने अब तक 22 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है.

राजस्थान के प्रभारी और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान ने इस खबर की पुष्टि की है. उन्होंने कहा, ‘पार्टी गठबंधन के लिए मायावती के संपर्क में है. जेडीएस और एसपी के साथ वामपंथी दलों ने तीसरा मोर्चा बनाया है. बीएसपी के भी इसमें शामिल होने पर हमें खुशी होगी. हम बीएसपी नेतृत्व के संपर्क में हैं. हालांकि बसपा कांग्रेस के साथ भी सीटों के मुद्दे पर संपर्क में है.’

छत्तीसगढ़ के उलट, जहां कांग्रेस गठबंधन करना चाह रही थी, वहीं राजस्थान में बीएसपी को साथ लेने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने किसी भी गठबंधन के खिलाफ खुल कर सामने आए, क्योंकि पार्टी राज्य में अधिक आत्मविश्वास से लबरेज है, जहां हर पांच साल पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता परिवर्तन का इतिहास है.

अभी भी कांग्रेस के संपर्क में मायावती

हालांकि, बीएसपी के विश्वसनीय सूत्रों ने कहा कि मायावती अभी भी कांग्रेस हाई कमान के संपर्क में हैं और राज्य इकाई के स्टैंड के बावजूद दोनों के बीच गठबंधन पूरी तरह से इनकार नहीं किया गया है.

एक वरिष्ठ बीएसपी कार्यकर्ता ने कहा, ‘हम कांग्रेस और अन्य गैर-बीजेपी दलों के संपर्क में हैं. लेकिन, हम राजस्थान चुनावों में अकेले जाने की गंभीरता पर विचार कर रहे हैं.’ बता दें कि पिछले चुनावों में भी बीएसपी ने राज्य में गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया था और साल 2013 में 199 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने 3 सीटें जीती थी और लगभग 5 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था.

विश्लेषकों का कहना है कि इन तीनों राज्यों में हुए मौजूदा राजनीतिक परिवर्तनों से पता चलता है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के लिए बीजेपी विरोधी गठबंधन बनाना आसान नहीं होगा. हवा बदले में गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस पार्टियों के तीसरे मोर्चे की ओर उड़ सकती है.

हरियाणा में आईएनएलडी से हाथ मिला चुकी हैं मायावती

हरियाणा में भी बीएसपी-भारतीय राष्ट्रीय लोक दल के साथ आ गई है. हालांकि राज्य में विधानसभा चुनाव आम चुनाव के बाद हैं, पिछले महीने आईएनएलडी अध्यक्ष के साथ मायावती की बैठक साल 2019 के चुनावों के लिए बहुत महत्व रखता है.

प्रमुख राजनीतिक राज्य उत्तर प्रदेश में एसपी और बीएसपी दोनों सीट साझा करने में कांग्रेस को समायोजित करने के विचार से असहज हैं. आने वाले विधानसभा चुनावों में यह दिखेगा कि साल 2019 में सीट साझा करने की बातचीत कैसे होगी. एक मजबूत कांग्रेस बनी तो अधिक सीटों की मांग करने के लिए उसे सौदेबाजी करने की ताकत देगी और अन्य विपक्षी पार्टियां यह नहीं चाहेंगी.

Jogi Ki Maya


Mayawati jolts Cong, ties up with Ajit Jogi’s party in Chh’garh, to fight alone in MP

Mayawati had earlier in July warned the Congress leaders of not forming an alliance if not given a respectable number of seats.


In a major setback to the Congress Party, Bahujan Samaj Party chief Mayawati on Thursday declared that her party will form an alliance with Ajit Jogi’s Janta Congress in the upcoming Chhattisgarh elections.

She also announced that Ajit Jogi would be the chief minister if their alliance comes to power in the state.

“The Bahujan Samaj Party has decided to contest upcoming assembly polls in alliance with Janta Congress Chhattisgarh. The BSP will fight on 35 seats and Janata Congress Chhattisgarh will contest on 55 seats. If we win, Ajit Jogi will be the CM,” BSP chief Mayawati said.

She said that the “historic alliance will bring development and prosperity to the downtrodden, the poor, Dalits, minorities, tribals and marginalised sections of society”.

The 62-year-old Dalit leader also said that the two parties had come together to boot out the Bharatiya Janata Party government in the state and ensure that there is fair and not selective development, as is taking place under the watch of the present dispensation.

The BSP has also released a list of 22 candidates for the 230-seat Madhya Pradesh Assembly stating that it would fight alone in the elections.

In a press conference, Mayawati said the BSP will tie up with only those parties which are ready to allocate a respectable number of seats to her party.

Earlier in July, Mayawati had warned the Congress leaders of Rajasthan, Madhya Pradesh and Chhattisgarh of not forming an alliance if not given a respectable number of seats.

Reports had it that the Congress and the BSP had almost finalised the seat-sharing agreement for the three states.

The development is seen as a huge blow to the Congress, which was hoping for an alliance with the Dalit powerhouse from Uttar Pradesh and thus brighten its chances against the Raman Singh-led BJP government in the tribal-dominated state.

The Congress Party which had decided to leave 5-6 seats in each of the three states for the BSP. Mayawati was not happy with the number of seats given and was said to be lobbying for a greater share.

Earlier last month, the BSP had said that it was not in talks with the Congress for an alliance for the Madhya Pradesh Assembly polls.

Elections in Chhattisgarh and Madhya Pradesh are due by year-end.

The Congress party is in a pursuit to stitch a larger anti-BJP alliance for 2019 Lok Sabha elections.

चुनावों से पाहिले सीटों के बटवारे को ले कर दबाव बना रही हैं मायावती


अखिलेश यादव की बेसब्री कांग्रेस को लेकर नहीं बल्कि अपनी बुआ मायावती को लेकर है जिन्हें साथ लेकर वो ‘कैराना’ और ‘नूरपुर’ को 2019 में दोहराना चाहते हैं. लेकिन, उनकी यही बेसब्री लगता है उनपर भारी पड़ रही है


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 11 सितंबर को पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी निशाने पर लिया था. यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों के बहाने मायावती का कांग्रेस पर हमले के सियासी मायने निकाले जा रहे थे. कहा गया कि मायावती लोकसभा चुनाव और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन में अपनी हिस्सेदारी को लेकर दबाव बनाने की तैयारी कर रही हैं.

अब पांच दिन बाद ही मायावती ने एक बार फिर हमला बोला है. लेकिन, इस बार उनके निशाने पर महागठबंधन के सभी संभावित सहयोगी हैं. इस बयान को भी दबाव की कोशिश माना जा रहा है.

मायावती की दबाव बनाने की कोशिश !

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा है ‘कुछ लोग राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपना नाम मुझसे जोड़ते हैं. मुझे बुआ कहते हैं.’ भीम आर्मी के संस्थापक और सहारनपुर जातीय हिंसा मामले में आरोपी चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ ने भी जेल से बाहर आने के बाद मायावती को बुआ कहा था. मायावती कहती हैं ‘इन लोगों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है. ये सब बीजेपी का गेम प्लान है.’

मायावती ने ‘बुआ-बबुआ’ के संबंधों को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन, उनके बयान का सियासी मतलब इससे कहीं बड़ा माना जा रहा है. क्योंकि चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से पहले तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उन्हें बुआ कहते रहे हैं.

कई मौकों पर ‘बुआ-बबुआ’ के बीच लड़ाई होती रही है. लेकिन, अब दोनों के मिलकर चुनाव लड़ने को लेकर तैयारी की बात कही जा रही है. ऐसे वक्त में ‘बुआ-बबुआ’ के रिश्ते को खारिज करने के मायावती के बयान ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है.

चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से क्यों दूर रहना चाहती हैं मायावती?

चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ के साथ मायावती के रिश्ते की बात करें तो उन्हें लगता है कि ‘रावण’ के जेल से बाहर निकलने से उनके वोट बैंक पर असर पड़ेगा. सहारनपुर समेत पश्चिमी यूपी में दलित तबके में भीम आर्मी का असर धीरे-धीरे बढ़ रहा है. चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ अगर एक अलग ताकत के तौर पर अपने-आप को चुनावी राजनीति के केंद्र में लाते हैं या फिर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो पूरे इलाके की दलित राजनीति पूरी तरह बदल जाएगी.

‘रावण’ के अलग ताकत के तौर पर चुनाव में आने के बाद इसका सीधा असर मायावती पर पड़ेगा. लेकिन, मायावती नहीं चाहती हैं कि कोई दूसरी ताकत दलित सियासत में उभर कर सामने आए. अपने बुरे दौर में भी मायावती को दलित समाज के एक बड़े तबके का समर्थन मिला हुआ है. ऐसे में किसी नए युवा दलित चेहरे को अगर दलित राजनीति में कोई स्पेस मिल जाता है तो शायद मायावती का वो एकाधिकार खत्म हो जाएगा.

यही वजह है कि बुआ का रिश्ता जोड़ने के बावजूद मायावती ने चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से दूरी बनाने का फैसला किया है. मायावती नहीं चाहती हैं कि उनके साथ मिलकर या अलग रहकर भी भीम आर्मी इतनी ताकतवर हो जाए जो आगे चलकर बीएसपी को ही चुनौती देने लगे.

मायावती के रुख से अखिलेश की बढ़ी मुश्किलें !

लेकिन, मायावती को सबसे पहले बुआ कहने वाले बबुआ यानी अखिलेश यादव के लिए इस रिश्ते का खारिज होना ज्यादा परेशान करने वाला है. क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही अखिलेश यादव केंद्र की बीजेपी सरकार को हटाने के लिए हर कुर्बानी देने की बात कह रहे हैं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव की तरफ से मायावती के साथ गठबंधन करने की मंशा और उसके लिए कुछ कदम पीछे हटने का संकेत पहले ही दिया जा चुका है.

यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर राहुल के साथ गलबहियां करना अखिलेश यादव को भारी पड़ा था. अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन की गलती को दोहराने के मूड में कतई नहीं दिख रहे. अगर कांग्रेस गठबंधन में शामिल होती भी है तो उसे बेहद कम सीटों पर ही संतोष करना होगा. हो सकता है कि उसे यूपी की 80 सीटों में से दहाई का आंकड़ा भी सीट बंटवारे में नहीं मिले.

ऐसे में अखिलेश यादव की बेसब्री कांग्रेस को लेकर नहीं बल्कि अपनी बुआ  मायावती को लेकर है जिन्हें साथ लेकर वो ‘कैराना’ और ‘नूरपुर’ को 2019 में दोहराना चाहते हैं. लेकिन, उनकी यही बेसब्री लगता है उनपर भारी पड़ रही है.

अखिलेश की अपरिपक्वता पड़ सकती है भारी

वक्त से पहले उनकी तरफ से कदम पीछे खींचने का संकेत उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत दे रही है. बीजेपी को हराने के लिए लचीला रुख अपनाने के नाम पर अखिलेश यादव कुछ ज्यादा ही झुक गए हैं. उनके इसी लचीलेपन का फायदा मायावती भी उठाना चाह रही हैं. मायावती की तरफ से गठबंधन को लेकर अभी भी अपने पत्ते नहीं खोले जा रहे हैं.

मायावती ने एक बार फिर से कहा है कि उन्हें अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं तो फिर गठबंधन नहीं होगा. मायावती की कोशिश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पर दबाव बनाने की है. उनकी तरफ से सम्मानजनक समझौते की बात करना यूपी में लोकसभा चुनाव के वक्त सीटों के बंटवारे से पहले इन तीन राज्यों में भी सीट बंटवारे को लेकर है, जहां कांग्रेस के खाते से बीएसपी कुछ सीटें झटकना चाहती हैं.

मायावती सियासी तौर पर कितनी परिपक्व हैं उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूपी में पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था. विधानसभा चुनाव में एसपी से भी काफी कम सीटें मिली और उनकी पार्टी महज 19 सीटों पर सिमट गई थी. फिर भी, ऐन वक्त तक सौदेबाजी करने और दबाव बनाकर रखने की उनकी रणनीति अब अखिलेश को बैकफुट पर ला सकती है.

लगता है अखिलेश यादव भी अपनी गलतियों से नहीं सीख रहे हैं. अखिलेश ने विधानसभा चुनाव 2017 में जनाधार विहीन कांग्रेस के साथ समझौता कर अपने खाते की जो सीटें कांग्रेस को दीं, उससे उनकी ही पार्टी का नुकसान हुआ. अब मायावती के आगे सौदेबाजी करने के बजाए पहले से ही घुटने टेकने की उनकी कोशिश एक बार फिर उनकी पार्टी कैडर्स पर नकारात्मक असर ही डालेगी.

मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाने और उस पर अपना हक जताने वाले अखिलेश यादव भले ही परिवार के भीतर उठापटक में बाजी मार गए हों, लेकिन, अपने पिता से शायद वो सियासी दांव अब तक नहीं सीख पाए हैं, जिसमें तुरुप का पत्ता आखिरी वक्त तक संभाल कर रखा जाता है. वक्त से पहले मुठ्ठी खोलना अखिलेश की उस बेसब्री को दिखा रहा है जो उन्हें बैकफुट पर धकेल सकती है

पेट्रोल 55 और डीजल 50 रुपए लीटर मिलेगा: गडकरी


केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है, एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा’


पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बायोफ्यूल के उपयोग का तरीका सुझाया है. गडकरी ने कहा, मैं 15 वर्षों से कह रहा हूं कि किसान और आदिवासी बायोफ्यूल बना सकते हैं. जिससे हवाई जहाज तक उड़ सकता है. हमारी नई तकनीक से बनी गाड़ियां किसानों और आदिवासियों द्वारा बनाए गए एथेनॉल से चल सकती हैं.

इसी के साथ उन्होंने पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों का भी जिक्र किया. सोमवार को एक सभा को संबोधित करते हुए नितिन गडकरी ने कहा, हम पेट्रोल और डीजल के आयात पर 8 लाख करोड़ रुपए खर्च करते हैं. पेट्रोल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत घट रही है.’

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ANI

एथेनॉल है पेट्रोल-डीजल का विकल्प

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है. एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा. इसके बाद डीजल की कीमत 50 रुपए प्रति लीटर और पेट्रोल का विकल्प 55 रुपए प्रति लीटर पर उपलब्ध होगा.’

दरअसल पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है. और फिलहाल पेट्रोल और डीजल के दाम अब तक के सबसे उच्चतम कीमत पर पहुंच गए हैं. इसके चलते सोमवार को कांग्रेस ने बंद का आयोजन भी किया था.

अग्रवाल समाज के व्यक्ति विवाह-शादियों में पहली मिलनी महाराजा अग्रसैन जी के नाम पर ले – बजरंग गर्ग 

पंचकूला :

अग्रोहा विकास ट्रस्ट अग्रोहा धाम के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष व व्यापार मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने वैश्य समाज के प्रतिनिधियों की बैठक लेने के उपरांत अग्रवाल भवन में पत्रकार वार्ता में कहा कि अग्रवाल विकास ट्रस्ट द्वारा पंचकूला में 4 नवंबर 2018 को उत्तरी भारत का 13 वां युवक-युवती परिचय सम्मेलन का भव्य आयोजन संस्था के प्रधान सत्यनारायण गुप्ता के नेतृत्व में किया जाएगा। जिसमें हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली, यूपी, राजस्थान व उत्तराखंड के अलावा देश भर से अग्रवाल युवक-युवती परिवार सहित भारी संख्या में भाग लेंगे। युवक-युक्तियों के परिचय फार्म भरवाने के लिए हर राज्य में अलग-अलग स्थान बनाए गए है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि परिचय सम्मेलन के माध्यम से युवक-युवतियों को एक ही मंच पर मनचाहा वर-वधु मिलने में आसानी होती है। जबकि पंचकूला में परिचय सम्मेलन के माध्यम से लगभग अब तक 5000 परिवारों के रिश्ते हो चुके हैं। इतना ही नहीं इन रिश्तो के माध्यम से फजूल खर्चों पर रोक लगती है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने समाज के व्यक्तियों से अपील की है कि वह विवाह- शादियों में पहली मिलनी महाराजा अग्रसेन जी के नाम की ली जाए व मिलनी चांदी व सोने की बजाए पहले की तरह कागज के रुपए की ले। श्री गर्ग ने कहां की देश की विकास व तरक्की में अहम भूमिका वैश्य समाज की है। जिन्होंने राष्ट्रीय व जनता के हित में मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल, गौशाला, धर्मशाला, मंदिर, स्कूल, पियाऊ आदि संस्थाएं देश के गांव व शहरों में बना कर सेवा कार्यों में जुटा हुआ है। इतना ही नहीं केंद्र व प्रदेश की हर सरकारों को चलाने व देश के विकास कार्यों के लिए भी सबसे ज्यादा धन टैक्स के रूप में राजस्व देकर सरकार को पूरा सहयोग कर रहा है। मगर जो सहयोग केंद्र व प्रदेश की सरकारों से वैश्य समाज को मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा हैं। जिसके कारण आज देश का वैश्य समाज का परिवार रात-दिन व्यापार में पिछड़ता जा रहा है। जो समाज के साथ-साथ देश के हित में नहीं है। क्योंकि वैश्य समाज व्यापार व उद्योग के माध्यम से लाखों बेरोजगारों को रोजगार देकर बेरोजगारी को काफी हद तक कम करने में अपनी अहम भूमिका पूरे देश में निभा रहा हैै। राष्ट्रीय कार्यकारिणी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि केंद्र व प्रदेश सरकार को देश की तरक्की, वैश्य समाज व व्यापारियों के हित में नई-नई योजना बनाकर ज्यादा से ज्यादा सुविधा व रियायते देनी चाहिए। ताकि देश में पहले से ज्यादा व्यापार व उद्योग को बढ़ावा मिल सके। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि बिना राजनीति के सामाजिक व धार्मिक कार्य पूरे करने में बड़ी भारी दिक्कतें समाज में आती है। श्री गर्ग ने कहा कि समाज के युवाओं से समाज व राष्ट्र के हित में आगे आकर ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक में भागीदारी सुनिश्चित करें। इस मौके पर अग्रवाल विकास ट्रस्ट जिला प्रधान सत्यनारायण गुप्ता, संरक्षक कुसुम गुप्ता, उप प्रधान मनोज अग्रवाल, मनोज कुमार अग्रवाल, आनंद अग्रवाल, वरिष्ठ उपप्रधान प्रमोद जिंदल, सेक्रेटरी बी एम गुप्ता, राकेश गोयल, रामनाथ अग्रवाल, सचिव विपिन बिंदल, नरेंद्र जैन, वीरेंद्र गर्ग, कृष्ण गोयल, नरेश सिंगला, रामचरण सिंगला, विवेक सिंगला, राजेश जैन, इंद्र गुप्ता, सेक्रेटरी सचिन अग्रवाल, महिला अग्रवाल विकास ट्रस्ट प्रधान उषा अग्रवाल, कोषाध्यक्ष स्नेह लता गोयल, पी आर ओ रोहित आदि प्रतिनिधी भारी संख्या में मौजूद थे।

फोटो बाबत – अग्रोहा विकास ट्रस्ट अग्रोहा धाम व व्यापार मंडल के प्रान्तीय अध्यक्ष के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग पत्रकार वार्ता करते हुए।