University Grants Commission V/s Higher Education Commission

Shri Prakash Javadekar Union Minister for Human Resource Development,


Will this step help curb corruption or will increase it manyfolds???


NEW DELHI:

The University Grants Commission is all set to give way to the Higher Education Commission of India (Repeal of University Grants Commission Act) Act 2018, which the government is branding as the “end of inspection raj.”

The ministry of human resource development (MHRD) has uploaded the draft of the Act, which provides for establishing the HECI by repealing the UGC Act, 1956, on its website on Wednesday evening. The government is inviting feedback from the public.

The ministry has prepared a draft Act for repeal of UGC and setting up of the commission, whose mandate would be to improve academic standards with a specific focus on learning outcomes, evaluation of academic performance by institutions, mentoring of institutions, training of teachers and promoting the use of educational technology, among others. Unlike UGC, HECI will not have grant functions and would focus only on academic matters. The ministry will deal with the grant functions.

The idea is to downsize the scope of regulation with “no interference in the management issues of the educational institutions,” according to a senior government official.

The proposed commission will have 12 other members appointed by the central government, apart from the chairperson and vice-chairperson. The members would include secretaries of higher education, ministry of skill development and entrepreneurship and department of science and technology, as well as the chairpersons of AICTE and NCTE and two serving vice chancellors, among others.

According to the draft, the functions of the commission include steps for promoting the quality of an academic instruction and maintenance of academic standards, specifying learning outcomes for courses of study in higher education, laying down standards of teaching, assessment, research and evaluating the yearly academic performance of higher educational institutions, as well as putting in place a robust accreditation system for evaluation of academic outcomes by various HEIs, mentoring of institutions found to be failing in maintaining the required academic standards and ordering those institutions to be closed that fail to adhere to the minimum standards as long as it does not affect the student’s interest or those that fail to get accreditation within the specified period, among others.

Educationists, stakeholders and others can furnish their comments and suggestions by July 7, 2018, until 5 pm.

राहुल ने स्वीकार किया थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा हुए सर्वे को, शर्म की बात है

 


विडंबन यह है की विपक्ष के नेता को विदेशी सर्वे बताते हैं की उनके देश में महिलाओं की क्या स्थिति है. और इससे पाहिले उन्हें इस बात की बनक तक नहीं होती. उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इतने फूहड़ हैं की वह अपने मालिक को भारत की यथा स्थिति से अवगत नहीं करवाते, यदि ऐसा होता तो अब तक राहुल गांधी कितनी ही अबलाओं की जिंदगी सुधार चुके होते. 

यह शर्म की बात है.


नई दिल्लीः

भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताये जाने वाल सर्वे  को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी  ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. राहुल गांधी ने अपने ताजा ट्वीट में कहा है कि भारत महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और बलात्कार के मामले में अफगानिस्तान, सऊदी अरब और सीरिया से भी आगे हो गया है.


  • अब प्रश्न यह उठता है कि रानी जी को कौन कहे कि आगा ढांके.
  • राहुल से हम पूछना चाहते हैं कि क्या पंजाब, कर्णाटक पुद्दुचेरी भारत में नहीं आते? और यदि आते हैं तो क्या वहां की सरकारों को क्लीन चिट दी गयी है?
  • दूसरी बात जब भारत की तरक्की की खबरे यह सर्वे रिपोर्ट्स दिखाती हैं तब राहुल कहते हैं कियह सर्वे मोदी ने खरीदा है, तो क्यों न यह मान लिया जाए की या सर्वे विपक्ष और खासकर राहुल की पार्टी ने खरीदा हो.
  • तीसरे इस सर्वे के जारी होने की तारीख को लेकर कुछ संशय उठते हैं, यह रिपोर्ट ठीक उसी दिन आते हैं जब भाजपा 26, जून को प्रजातंत्र पर एक काला दिवस के रोप में याद करती है और राष्ट्र भर में आपातकाल की भयावहता को याद करती और करवाती है.

बता दें कि हाल ही में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा हुए सर्वेहुए सर्वे में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीडन और उन्हें सेक्स वर्कर के धंधे में जबरन धकेलने के कारण भारत को सबसे असुरक्षित देश  माना गया है. वहीं इस सर्वे में अफगानिस्तान, सीरिया और अमेरिका को दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर रखा गया है. 26 जून को वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा किये गए सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताया गया है.

राहुल गाँधी ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से लिखा, ‘जिस समय हमारे प्रधानमंत्री अपने गार्डन में योगा वीडियो बनाने में व्यस्त थे, भारत ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और बलात्कार के मामले में अफगानिस्तान, सऊदी अरब और सीरिया को पीछे छोड़ दिया, हमारे देश के लिए कितने शर्म की बात है! ‘

 

Rahul Gandhi

@RahulGandhi

India the most dangerous country for women, survey shows

India is the most dangerous country in the world to be a woman because of the high risk of sexual violence and slave labor, a new survey of experts shows.


थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के एक सर्वे के मुताबिक भारत में महिलाओं के प्रति अत्याचार और उन्हें जबरन वैश्यावृत्ति में धकेलने के मामले सबसे ज्यादा सामने आए हैं. सर्वे में पश्चिम देशों में केवल अमेरिका का ही नाम है. सर्वे के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में अमेरिका में महिलाओं के प्रति हिंसा की गतिविधियां बढ़ी हैं.

महिलाओं की असुरक्षा को लेकर पहले स्थान पर भारत
वहीं इससे पहले 2011 में हुए सर्वे में अफगानिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो , पाकिस्तान, भारत और सोमालिया महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताए गए थे. 2011 में हुए सर्वे में भारत को भारत को चौथे स्थान में रखा गया था. लेकिन, इस साल सारे देशों को पीछे छोड़ भारत को महिलाओं की असुरक्षा की दृष्टि से पहला स्थान दिया गया है. जिससे साफ पता चलता है कि भारत महिलाओं के लिए दिनों दिन कितना खतरनाक होता जा रहा है.

महिलाओं के प्रति अत्याचार में 2007 से 2016 के बीच 83 प्रतिशत वृद्धि
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे बलात्कार के चार मामले दर्ज होते हैं. 2007 से 2016 के बीच देश में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. सर्वे में विशेषज्ञों से पूछा गया था कि सयुंक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से ऐसे कौन से पांच सदस्य राष्ट्र हैं जो महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. जिसके जबाव में भारत, अफगानिस्तान, सीरिया-अमेरिका, सोमालिया और सऊदी अरब को रखा गया.

सऊदी अरब में महिलाओं के संरक्षण का पूरा अधिकार पुरुषों के हाथ
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा हुए सर्वे में विशेषज्ञों को मानव तस्करी, यौन उत्पीड़न, सेक्स स्लेवरी, और घरेलू हिंसा में भी भारत को सबसे खतरनाक देश बताया गया. वहीं सऊदी अरब में महिलाओं के संरक्षण का पूरा अधिकार पुरुषों के हाथ सौंप दिया जाता है. जिसे विशेषज्ञों ने मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है. इस लिस्ट में अमेरिका इकलौता ऐसा पश्चिमी देश है जिसे इस लिस्ट में रखा गया है.

बीते 28 दिनों में पेट्रोल हुआ 3.03 और डीजल 3.12 रूपये सस्ता

 

नई दिल्ली :

पेट्रोल-डीजल के दामों में 28वें दिन भी कटौती की गई. मंगलवार को भी पेट्रोल-डीजल के रेट में आम आदमी को राहत दी गई. तेल कंपनियों ने देश के चार महानगरों में पेट्रोल पर 14 से 18 पैसे प्रति लीटर तक की कटौती हुई. वहीं, डीजल में 10 से 12 पैसे की कटौती की गई. लगातार 28 वें दिन पेट्रोल और डीजल की कीमत में कटौती से आम आदमी को धीरे-धीरे राहत मिल रही है. हालांकि यह राहत नाकाफी है. पिछले 28 दिन में चेन्नई में पेट्रोल 3.03 रुपये और मुंबई में 3.12 रुपये सस्ता हुआ है.

कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद 30 मई से पेट्रोल-डीजल के दाम में कटौती शुरू हुई थी. हालांकि, बीच में कई दिन पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. लेकिन, 28वें दिन तक पेट्रोल करीब 3 रुपये तक सस्ता हो गया है. राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत में मंगलवार को 14 से 18 पैसे की कौति की गई. वहीं, डीजल पर भी 10 से 12 पैसे कम हुए. दिल्ली में मंगलवार को पेट्रोल 75.55 रुपये प्रति लीटर और डीजल 67.38 रुपये प्रति लीटर हैं.

26 जून को दिल्ली और कोलकाता में 14 पैसे, मुंबई में 18 पैसे और चेन्नई में 15 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई. इसी तरह डीजल के रेट में दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में 10 पैसे प्रति लीटर और मुंबई में 12 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई. अभी भी मुंबई में पेट्रोल 83.12 प्रति लीटर और डीजल 71.52 रुपये प्रति लीटर के स्तर पर बिक रहा है.

4 महानगरों में पेट्रोल की कीमत

29 मई 26 जून
दिल्ली 78.43 रुपये 75.55 रुपये
कोलकाता 81.06 रुपये 78.23 रुपये
मुंबई 86.24 रुपये 83.12 रुपये
चेन्नई 81.43 रुपये 78.40 रुपये

28 दिन में 3 रुपये तक सस्ता हुआ पेट्रोल
30 मई के बाद से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेल कंपनियां कटौती हो रही है. पिछले 28 दिन में पेट्रोल तीन रुपये तक सस्ता हुआ है. वहीं, डीजल में 2 रुपये से ज्यादा की गिरावट आई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों का फायदा मिला है. इससे पहले में क्रूड की कीमतों में उछाल से पिछले महीने पेट्रोल की कीमतें 80 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई थीं. कच्चे तेल की कीमतों में 6 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा कमी आ चुकी है.

4 महानगरों में डीजल की कीमत

29 मई 26 जून
दिल्ली 69.31 रुपये 67.38 रुपये
कोलकाता 71.86 रुपये 69.93 रुपये
मुंबई 73.79 रुपये 71.52 रुपये
चेन्नई 73.18 रुपये 71.12 रुपये

 

PM being “The Most Valuable Target” new security guidelines are issued to states


  • The home ministry said there has been an “all-time high” threat to the PM and he is the “most valuable target” in the run-up to the 2019 general elections
  • The SPG is believed to have advised Modi, who is the main campaigner for the ruling BJP, to cut down on road shows, which invite a bigger threat

NEW DELHI:

Issuing new security guidelines to states in the wake of an “all-time high” threat to Prime Minister Narendra Modi, the home ministry has said that not even ministers and officers will be allowed to come too close to the prime minister unless cleared by the Special Protection Group (SPG).

The ministry said there has been an “all-time high” threat to the prime minister and he is the “most valuable target” in the run-up to the 2019 general elections, officials privy to the development said.

No one, not even ministers and officers, should be allowed to come too close to the prime minister unless cleared by his special security, the home ministry communication said, citing an “unknown threat” to Modi.

The SPG is believed to have advised Modi, who is the main campaigner for the ruling BJP, to cut down on road shows, which invite a bigger threat, in the run up to the 2019 Lok Sabha polls, and instead address public rallies, which are easier to manage, an official said.

The close protection team (CPT) of the prime minister’s security has been briefed about the new set of rules and the threat assessment and instructed them to frisk even a minister or an officer, if necessary.

The Prime Minister’s security apparatus was reviewed threadbare recently after the Pune Police told a court on June 7 that they had seized a “letter” from the Delhi residence of one of the five people arrested for having alleged “links” with the banned CPI (Maoist), another official said.

The purported letter allegedly mentioned a plan to “assassinate” Modi in “another Rajiv Gandhi-type incident”, the police had told the court.

Besides, during a recent visit to West Bengal, a man was able to break through six layers of security to touch the prime minister’s feet, sending the security agencies into a tizzy.

Super moon on 27th July

 

The month of July is set to witness a rare astronomical spectacle as a blood moon, the second of the year, will appear on the intermediary night of July 27-28. The total lunar eclipse is being touted as the longest of this century.

The eclipse will follow the super blue blood moon of January 31, which too was a once-in-a-lifetime event combining a supermoon, blue moon and blood moon.

Here’s why this super-moon is special:

According to space experts, the eclipse will last one hour and 43 minutes – nearly 40 minutes longer than the January 31 Super Blue Blood Moon. The January 31 super-moon was supposed to be the longest total lunar eclipse of the year but this will outdo the former.

The blood moon, or the ‘full buck moon’ as it is being called, will turn blood red during the eclipse due to the way light bends around Earth’s atmosphere. During a blood moon, the moon takes on a deep red to orange colour rather than completely disappearing when it passes through the shadow cast by Earth. This bizarre effect known as ‘Rayleigh scattering’ filters out bands of green and violet light in the atmosphere during an eclipse.

The full buck moon will last longer than normal as it will pass almost directly through Earth’s shadow during the eclipse. At the same time, it will be at the maximum distant point from earth. Therefore, it will take longer to cross Earth’s shadow.

The moon will be visible on July 27. “The July 2018 full moon presents the longest total lunar eclipse of the 21st century on the night of July 27-28, 2018, lasting for a whopping one hour and 43 minutes,”  an expert as saying.

The eclipse will be visible only in the eastern hemisphere of the world – Europe, Africa, Asia, Australia and New Zealand. People in North America and Arctic-Pacific region won’t be able to get a hold of this event this time.

In Asia, Australia and Indonesia, the greatest view of the eclipse will be during morning hours. Europe and Africa will witness the eclipse during the evening hours, sometime between sunset and midnight on July 27.

प्रधान मंत्री पद की दावेदारी गठबंधन पर पड़ेगी भारी

 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस की उम्मीदें केवल एक ही सहारे पर टिकी हुई हैं. वो सहारा है महागठबंधन. कांग्रेस को लगता है कि महागठबंधन के समुद्र मंथन से ही सत्ता का अमृत पाया जा सकता है. महागठबंधन का वैचारिक आधार है-मोदी विरोध. महागठबंधन की बात बार-बार दोहराकर कांग्रेस इसकी अगुवाई का भी दावा कर रही है ताकि भविष्य में पीएम पद को लेकर महाभारत न हो. लेकिन दूसरे राजनीतिक दलों में गूंजने वाली अलग-अलग प्रतिक्रियाएं महागठबंधन के वजूद पर अभी से ही सवालिया निशान लगा रही हैं.

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार चुनाव से पहले महागठबंधन की कल्पना को व्यावहरिक ही नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि क्षेत्रीय दलों की मजबूती की वजह से महागठबंधन व्यावहारिक नहीं दिखाई देता है. पवार का राजनीतिक अनुभव और दूरदर्शिता उनके इस बयान से साफ दिखाई देता है.

जिन क्षेत्रीय दलों की मजबूती को कांग्रेस एक महागठबंधन में देखना चाहती है दरअसल यही मजबूती ही क्षेत्रीय दलों को चुनाव बाद के गठबंधन में सौदेबाजी का मौका देगी. क्षेत्रीय दलों की यही ताकत उन्हें चुनाव बाद एकजुट होने की परिस्थिति में उनके फायदे के लिये ‘सीधी बात’ कहने का आधार देगी और सत्ता में भागेदारी का बराबरी से अधिकार भी देगी.

शरद पवार ये मानते हैं कि हर राज्य में अलग-अलग पार्टियों की अपनी स्थिति और भूमिका है. कोई पार्टी किसी राज्य में नंबर 1 है तो उसकी प्राथमिकता राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने की होगी. जाहिर तौर पर ऐसी स्थिति में कोई भी पार्टी चुनाव पूर्व महागठबंधन के फॉर्मूले में कम से कम अपने गढ़ में तो ऐसा कोई समझौता नहीं करेगी जिससे उसके वोट प्रतिशत और सीटों का नुकसान हो.

वहीं इस महागठबंधन के आड़े आने वाला सबसे बड़ा व्यावहारिक पक्ष ये है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने वाले क्षेत्रीय दल लोकल स्तर पर एकजुटता कैसे दिखा पाएंगे? वो पार्टियां जो अबतक एक दूसरे के खिलाफ आग उगलकर चुनाव लड़ती आई हैं वो राष्ट्रीय स्तर पर कैसे एकता दिखा सकेंगी? उन सभी के किसी न किसी रूप में वैचारिक मतभेद हैं जिनका किसी न किसी रूप में समझौते पर असर पड़ेगा.

सबसे बड़ी चुनौती जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को लेकर होगी जिनके लिए महागठबंधन के बाद एक साथ काम कर पाना आसान नही होगा क्योंकि कई राज्यों में वैचारिक मतभेद से उपजा खूनी संघर्ष भी इतिहास में कहीं जिंदा है.

बड़ा सवाल ये है कि सिर्फ मोदी को रोकने के लिए क्या पश्चिम बंगाल में टीएमसी और वामदल आपसी रंजिश को भुलाकर कांग्रेस के साथ आ सकेंगे? क्या तमिलनाडु में डीएमके और आआईएडीएमके, बिहार में लालू-नीतीश, यूपी में अखिलेश-मायावती और दूसरे राज्यों में गैर कांग्रेसी क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का गठबंधन साकार हो सकेगा?

महागठबंधन को साल 2015 में पहली कामयाबी बिहार में तब मिली जब लालू-नीतीश की जोड़ी ने बीजेपी के विजयी रथ को रोका. इसी फॉर्मूले का नया अवतार साल 2018 में यूपी में तब दिखा जब बीजेपी को हराने के लिए पुरानी रंजिश भूलकर एसपी-बीएसपी गोरखपुर-फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में साथ आए तो फिर कैराना में रालोद के साथ गठबंधन दिखा. यूपी-बिहार के गठबंधन के गेम से ही कांग्रेस उत्साहित है और वो महागठबंधन का सुनहरा ख्वाब संजो रही है.

लेकिन एक दूसरा सवाल ये भी है कि अपने-अपने राज्यों के क्षत्रप आखिर कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन से जुड़ने को अपना सौभाग्य क्यों मानेंगे? खासतौर से तब जबकि हर क्षेत्रीय दल का नेतृत्व खुद में ‘पीएम मैटेरियल’ देख रहा हो.

कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में महागठबंधन की अगुवाई करना चाहती है. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में गैर-बीजेपी दलों के हित में जारी महागठबंधन की अपील को ठुकरा चुकी हैं. ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे की कवायद में ज्यादा एक्टिव दिखाई दे रही हैं. वो दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय नेताओं के लगातार संपर्क में हैं. बीजेपी को हराने के लिए वो हर बीजेपी विरोधी नेता से हाथ मिलाने को तैयार हैं. उन्होंने गुजरात चुनाव में बीजेपी की नजदीकी जीत के बाद हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश की तिकड़ी की तारीफ की और हार्दिक पटेल को पश्चिम बंगाल का सरकारी मेहमान तक बना डाला.

हाल ही में उन्होंने दिल्ली के सीएम केजरीवाल के एलजी ऑफिस में धरने के वक्त तीन अलग राज्यों के सीएम के साथ पीएम से मुलाकात की. ये मुलाकात साल 2019 को लेकर कांग्रेस के लिए भी बड़ा इशारा था. एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली में केजरीवाल के धरने को ड्रामा बता रहे थे तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी की अगुवाई में चार राज्यों के सीएम केजरीवाल का सपोर्ट कर रहे थे.

महागठबंधन से पहले किसी विचारधारा या फिर मुद्दे पर कांग्रेस और गैर-कांग्रेसी दलों में एकता दिखाई नहीं दे रही है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि किसी भी कीमत पर मोदी और बीजेपी को साल 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए महागठबंधन की नींव पड़ भी गई तो इमारत बनाने के लिए ईंटें कहां से आएंगी?

मोदी को रोकने के लिए महागठबंधन तो बन सकता है लेकिन महागठबंधन के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस आम सहमति कैसे बना पाएगी? साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर चुकी है. यहां तक कि खुद राहुल गांधी भी कर्नाटक चुनाव प्रचार के वक्त कह चुके हैं कि वो देश का पीएम बनने को तैयार हैं. जबकि मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब राहुल से महागठबंधन के नेतृत्व पर सवाल पूछा गया तो वो जवाब टाल गए.

पीएम बनने की महत्वाकांक्षा आज के दौर में हर क्षेत्रीय पार्टी के अध्यक्ष के मन में है और यही महागठबंधन की महाकल्पना के साकार होने में आड़े भी आएगी. क्योंकि क्षेत्रीय दल सिर्फ सीटों तक की सौदेबाजी को लेकर महागठबंधन के समुद्र मंथन में नहीं उतरेंगे बल्कि वो पीएम पद को लेकर भी बंद दरवाजों  से लेकर खुले मैदान में शक्ति-परीक्षण के जरिये सौदेबाजी करने का मौका नहीं चूकेंगे

महागठबंधन पर बात न बन पाने की सूरत में कांग्रेस के पास यही विकल्प बचता है कि या तो वो गैर कांग्रेसी दलों को पीएम पद सौंपने पर राजी हो जाए या फिर यूपीए 3 के नाम से अपने प्रगतिशील गठबंधन के दम पर लोकसभा चुनाव में उतरे और चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर फॉर्मूला बनाए.

सिर्फ विधानसभा चुनाव और उपचुनावों से लोकसभा चुनाव का मूड नहीं भांपा जा सकता है. यूपीए ने भी साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उपचुनावों में जीत हासिल की थी. वहीं इस साल 15 सीटों पर हुए उपचुनावों में महागठबंधन को सिर्फ चार सीटों पर ही जीत मिली है. ऐसे में महागठबंधन को लेकर बनाई जा रही हवा कहीं हवा-हवाई न साबित हो जाए.

क्षेत्रीय दलों को सिर्फ एक ही बात की चिंता है कि साल 2019 में भी कहीं ‘मोदी लहर’ की वजह से उनके राजनीतिक वनवास की मियाद पांच साल और न बढ़ जाए. यही डर उन्हें महागठबंधन में लाने को मजबूर कर सकता है लेकिन सत्ता में भागीदारी का लालच उन्हें पीएम पद की तरफ भी आकर्षित करता है. तभी पीएम पद की बाधा-रेस महागठबंधन में सबसे बड़ा अड़ंगा डालने का काम कर सकती है क्योंकि इस मुद्दे पर चुनाव से पहले कोई भी पार्टी राजी होने को तैयार नहीं होगी.

कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेगी कि वो पीएम पद के बारे में चुनाव बाद उभरे राजनीतिक हालातों के बाद फैसला करे. वो ये चाहेगी कि इस मामले में तस्वीर अभी से एकदम साफ रहे और पूरा चुनाव राहुल बनाम मोदी ही लड़ा जाए.

बहरहाल सिर्फ मोदी-विरोध के नाम पर अलग-अलग राज्यों में विपक्षी दलों के सियासी समीकरण साधना भी इतना आसान नहीं है क्योंकि ये जातीय समीकरणों में भी उलझे हुए हैं. सिर्फ मोदी-विरोध का एक सूत्रीय कार्यक्रम देश की सभी विपक्षी पार्टियों के लिए साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आत्मघाती साबित हो सकता है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की अंदरूनी रिपोर्ट को बाकी विपक्षी दलों को किसी ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह जरूर पढ़ना चाहिये और ये भी समझना चाहिये कि कि उनका सियासी इस्तेमाल सिर्फ कांग्रेस के प्रतिशोध तक ही तो सीमित नहीं है. फिलहाल कांग्रेस के लिए महागठबंधन बना पाना उसी तरह असंभव दिखाई दे रहा है जिस तरह अपने बूते साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना.

आरक्षण को कोई भी छीनने का प्रयास करे, तो थप्पड़ मारकर अपना अधिकार वापस छीन लो: कल्याण सिंह

 

राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने सोमवार को विवादित बयान दे डाला। बयान भी ऐसा की कानून को हाथ में लेने की सलाह दे दी। अब कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां उनके इस बयान को लेकर पीछे पड़ गई है।

पिछड़ा वर्ग के लोगों को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि आरक्षण उनका हक है और यह उनके लिए ही है। अगर उनके इस अधिकार को कोई भी छीनने का प्रयास करे, तो थप्पड़ मारकर अपना अधिकार वापस छीन लो। राज्यपाल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कुछ भी हो जाए, किसी भी कीमत पर अपना यह अधिकार मत खोना। सिंह ने कहा कि वीपी सिंह की जयंती पर लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में कल्याण सिंह ने कहा कि ‘आरक्षण के लिए कितने संघर्ष करने पड़े हैं, यह कोई पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय वीपी सिंह से पूछे। उन्होंने आपके लिए मंडल कमीशन लागू किया था। उस समय देश का क्या हाल हो गया था। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कहा कि लाठी, डंडे, गोली सब कुछ चला, खून भी बहा, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह न करते हुए मंडल कमीशन लागू किया। उनकी वजह से ही आप हैं। उनके दिए गए इस अधिकार को चाहे कोई कितना भी छीनने का प्रयत्न करे, आपको छीनने नहीं देना है।

घनश्याम तिवारी ने दिया इस्तीफा, बने भारत वाहिनी पार्टी

वसुंधरा राजे और घनश्याम तिवारी

 

राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से नाराज चल रहे बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता घनश्याम तिवारी ने सोमवार को पार्टी से इस्‍तीफा दे दिया है। उन्‍होंने अपना इस्‍तीफा बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह को भेजा है। 5 बार से विधायक तिवारी ने अपना इस्‍तीफा ऐसे समय पर दिया है जब दो दिन पहले ही उनके बेटे अखिलेश ने भारत वाहिनी पार्टी नाम से अलग पार्टी बनाई है।

घनश्‍याम तिवारी ने कहा कि बीजेपी ने अगर वसुंधरा राजे को सीएम पद से नहीं हटाया तो अगले चुनाव में पार्टी को बुरी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। तिवारी ने दावा किया कि वसुंधरा राजे सिंधिया तानाशाह की तरह काम कर रही हैं। पार्टी के पदों को बाहरी लोगों से भरा जा रहा है। इससे पार्टी के कार्यकर्ता निराश हैं। चुनाव से ठीक पहले तिवारी के पार्टी छोड़ने से बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। तिवारी सांगनेर विधानसभा सीट से विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वह 60 हजार से अधिक वोटों से जीते थे।

उधर, घनश्याम तिवारी के बेटे अखिलेश तिवारी ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में हिस्‍सा लेगी। अखिलेश ने कहा कि भारत वाहिनी पार्टी राज्‍य की 200 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयारी करेगी। तीन जुलाई को पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की पहली बैठक आयोजित करने जा रही है। इस बैठक में 2000 कार्यकर्ता हिस्‍सा लेंगे। अखिलेश ने बताया कि हरेक विधानसभा सीट से 10 प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है।

उन्‍होंने बताया कि दीन दयाल वाहिनी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और प्रतिनिधि भी नई पार्टी में शामिल होंगे। बता दें, दीन दयाल वाहिनी की स्‍थापना घनश्‍याम तिवारी ने की थी। चुनाव आयोग ने भारत वाहिनी पार्टी को रजिस्‍टर कर लिया है और विधानसभा चुनाव में उम्‍मीदवार उतारने की अनुमति दे दी है। अखिलेश ने 11 दिसंबर 2017 को पंजीकरण के लिए आवेदन किया था।

Yoga is Rahmat not Zahmat Top Muslim Bodies

 

Yoga should not be used as a political tool or linked to a particular community, top Muslim bodies said on Wednesday on the eve of International Day for Yoga.

The organisations also said that Yoga should be seen as form of exercise and not through the prism of religion.

“Islam lays special emphasis on physical fitness and considers things related to fitness as good. Yoga as an exercise is good, but it should not be made compulsory which may not be acceptable to people of other religions.

“The most important thing is that Yoga should not be used as a political tool. But, sadly this practice is going on,” said All India Muslim Personal Law Board spokesman Sajjad Nomani .
He also said that people of every religion and section of society should be encouraged to celebrate Yoga Day on Thursday.

“It is unfair to force upon someone any particular exercise. There should be no dispute vis-a-vis Yoga. People of every religion and section of the society should be encouraged to celebrate International Yoga Day.

“It is important that Yoga should be perceived as a rahmat (mercy) and not a ‘zahmat‘ (worry),” the spokesman said.

“Yoga should not be seen as something linked to a particular community. It is related to the body only. People who have the habit of seeing Yoga through the prism of religion, actually want to see humanity in a sick state of affairs,” AISPLB spokesperson Yasoob Abbas said.

He said several Islamic nations celebrate International Day for Yoga and people participate happily in events.

On Muslims generally having objections to chanting of mantras during different Yoga asanas, Abbas said, “There is no doubt that Muslims worship Allah alone. But, Islam is not that weak that it will break at the slightest instance and moreover, Yoga is not a God.”

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2018 प्रधान मंत्री की अगुआई में आरम्भ

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौथे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में योग सत्र में हिस्सा लिया. पीएम मोदी ने यहां मशहूर फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट यानी एफआरआई में करीब 50,000 लोगों के साथ कई तरह के योगासन किए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यपाल डॉक्टर के के पॉल, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, केंद्रीय आयुष मंत्री और उत्तराखंड के आयुष मंत्री हरक सिंह रावत भी मौजूद रहे.

इससे पहले पीएम मोदी ने जनता को संबोधित किया. प्रधानमंत्री ने योग दिवस के मौके पर अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि उत्तराखंड अनेक दशकों से योग का मुख्य केंद्र रहा है. उन्होंने कहा, “यहां के ये पर्वत स्वत: ही योग और आयुर्वेद के लिए प्रेरित करते हैं, सामान्य से सामान्य नागरिक भी जब इस धरती पर आता है तो उसे एक अलग तरह की दिव्य अनुभूति होती है. इस पावन धरा में अद्भुत स्फूर्ति और सम्मोहन है”

पीएम मोदी ने कहा, “ये हम सभी भारतीयों के लिए गौरव की बात है कि आज जहां-जहां उगते सूरज के साथ जैसे-जैसे सूरज अपनी यात्रा करेगा, दुनिया के उस भूभाग में लोग योग से सूर्य का स्वागत कर रहे हैं. देहरादून से लेकर कर डबलिन तक, शंघाई से लेकर शिकागो, जकार्ता से लेकर जोहान्सबर्ग तक योग ही योग है. योग समूचे विश्व को जोड़ने वाली ताकत बन गया है.”

पीएम मोदी ने कहा, आज की आपाधापी में योग व्यक्ति के जीवन में शांति की अनुभूति कराता है. व्यक्ति को परिवार से जोड़कर शांति स्थापित करता है और साथ लाता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हम अपनी विरासत पर गर्व करेंगे तभी पूरी दुनिया इसे स्वीकार करेगी. आज पूरी दुनिया में ऐसा माहौल है जो योग के लिए सभी को बढ़ावा देता है.

उन्होंने कहा, योग हर परिस्थिति में जीवन को समृद्ध कर रहा है, जब तोड़ने वाली ताकतें हावी होती है तो बिखराव आता है तो व्यक्तियों और समाज और राष्ट्रों के बीच बिखराव होता है, समाज में विवाद बढ़ते हैं, यहां तक कि व्यक्ति खुद ही बिखरता है और जीवन में तनाव बढ़ता चला जाता है. इस बिखराव के बीच योग जोड़ता है.

आज हमारी दुनिया में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो कि हार्ट की बीमारी से ग्रसित हैं ऐसे में योग उन बीमारियों को दूर करने में भी मदद करता है. उन्होंने कहा कि योग के कारण दुनिया आज illness से wellness की तरफ बढ़ रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ योग करने के लिए न सिर्फ कॉलेज के विद्यार्थी अलग-अलग जगह से रात के 12 बजे से ही इंतज़ार में बैठे थे कि गेट खुले और वो अंदर जाए, बल्कि 6 साल की एक छोटी बच्ची भी इस इंतज़ार में थी कि मोदी अंकल के साथ योग कर सके, उसकी माने तो मोदी उसके नेता हैं और देश के लिए अच्छा ही कर रहे हैं.

आपको बता दें कि ये चौथा योग दिवस है. इससे पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग शहरों में जाकर योग दिवस मनाया था. पीएम मोदी ने पहला योग दिवस दिल्ली में, दूसरा योग दिवस चंडीगढ़ में, तीसरा योग दिवस लखनऊ में मनाया था.

इन सभी आयोजनों में भी प्रधानमंत्री के साथ 50,000 से अधिक लोगों ने योग किया था. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में 21 जून को योग दिवस मनाया जाएगा.

आपको बता दें कि अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में भी प्रधानमंत्री ने योग दिवस का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि अगर हम फिट रहेंगे, तो भारत फिट रहेगा.” 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से पहले उन्होंने कहा, “मैं सभी देशवासियों से अपील करता हूं कि वह अपनी योग की विरासत को अपनाएं और एक स्वस्थ, सुखद और सुव्यवस्थित राष्ट्र का निर्माण करें.”

वह एक ऐतिहासिक क्षण था. 11 दिसंबर 2014 – यूनाइटेड नैशंस की आम सभा ने भारत द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में घोषित कर दिया. इस प्रस्ताव का समर्थन 193 में से 175 देशों ने किया और बिना किसी वोटिंग के इसे स्वीकार कर लिया गया.

यूएन ने योग की महत्ता को स्वीकारते हुए माना कि योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक संपूर्ण नजरिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 14 सिंतबर 2014 को पहली बार पेश किया गया यह प्रस्ताव तीन महीने से भी कम समय में यूएन की महासभा में पास हो गया.

भारतीय राजदूत अशोक मुखर्जी ने ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ का प्रस्ताव यूएन असेंबली में रखा था, जिसे दुनिया के 175 देशों ने भी सह-प्रस्तावित किया था. यूएन जनरल असेंबली में किसी भी प्रस्ताव को इतनी बड़ी संख्या में मिला समर्थन भी अपने आप में एक रिकॉर्ड बन गया. इससे पहले किसी भी प्रस्ताव को इतने बड़े पैमाने पर इतने देशों का समर्थन नहीं मिला था. और यह भी पहली बार हुआ था कि किसी देश ने यूएन असेंबली में कोई इस तरह की पहल सिर्फ 90 दिनों के भीतर पास हो गयी हो. यह भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है.

21 जून को ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बनाए जाने के पीछे वजह है कि इस दिन ग्रीष्म संक्रांति होती है. इस दिन सूर्य धरती की दृष्टि से उत्तर से दक्षिण की ओर चलना शुरू करता है. यानी सूर्य जो अब तक उत्तरी गोलार्ध के सामने था, अब दक्षिणी गोलार्ध की तरफ बढ़ना शुरू हो जाता है. योग के नजरिए से यह समय संक्रमण काल होता है, यानी रूपांतरण के लिए बेहतर समय होता है.