काश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए तुर्की दृढ़ करेगा पाकिस्तान के हाथ

पुलवामा हमले के बाद जिस तरह से भारत ने पलटवार करते हुए बालाकोट में आतंकी शिविरों को निशाना बनाया था, उससे पाकिस्तान को होश फ़ाख्ता हो गए थे. चूंकि वो अपनी आदत से बाज आने वाला नहीं था इसलिए उसने अपनी तैयारी तभी से शुरू भी कर दी थी. बालाकोट स्ट्राइक के तुरंत बाद ही पाकिस्तान ने चीन के सामने मिसाइल सिस्टम दिए जाने की गुहार लगाई थी. खुफिया रिपोर्ट में ये साफ हुआ की पाकिस्तान ने मल्टिपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम A-300 बैटरी देने के लिए चीन से दरख्वास्त की थी. तुर्की अब खुलकर कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान की मदद कर रहा है. बता दें कि चीन के बाद अब तुर्की ने भी पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी है. साथ ही पाकिस्तान को हर मुद्दे पर समर्थन दे रहा तुर्की अब उसे हथियार के साथ-साथ पैसों से भी मदद कर रहा है. 

नई दिल्ली: 

तुर्की अब खुलकर कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान की मदद कर रहा है. बता दें कि चीन के बाद अब तुर्की ने भी पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी है. साथ ही पाकिस्तान को हर मुद्दे पर समर्थन दे रहा तुर्की अब उसे हथियार के साथ-साथ पैसों से भी मदद कर रहा है. 

जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान तुर्की से पैर्मीटर सर्वेलांस रडार सिस्टम लेने जा रहा है. रैटीनार PTR-X पैर्मीटर सर्वेलांस रडार सिस्टम की खास बात ये है कि ये पोर्टेबल है यानी कि इस सिस्टम को दो लोग आसानी से कहीं भी ले जा सकते हैं और इसे चलाने के लिए सिर्फ एक आदमी की जरूरत होगी. ये सिस्टम पूरी तरह से ऑटोमैटिक तरीके से बड़े इलाके को स्कैन कर सकती है. इसके इस्तेमाल से लगातार दूरबीनों और कैमरे की मदद से निगरानी करने की कोई जरूरत नहीं होगी.

पाकिस्तान तुर्की से इस सिस्टम को इसलिए ले रहा है क्योंकि एलओसी पर भारतीय सेना के मजबूत ग्रिड के चलते उसके घुसबैठ की कोशिशें नाकाम हो रही हैं. ऐसे में इस रडार के जरिए वो उन इलाकों को स्कैन करने की कोशिश करेगा और ये पता लगाएगा कि कहां से घुसबैठ करना में आसानी होगी. पाकिस्तान इस सिस्टम की मदद के भारत में घुसबैठ के नए रूट खोजने की कोशिश करेगा. 

इसके अलावा तुर्की ने कश्मीर के लिए पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक मदद दी है. इसकी प्लानिंग पाकिस्तान और तुर्की ने पिछले साल के आखिर से ही शुरू कर दी थी जब पाकिस्तान सेना के आला अधिकारी तुर्की गए थे. कश्मीर के युवाओं को तुर्की में स्कॉलर्शिप और प्रोग्राम के बहाने पाकिस्तान अपना एजेंडा पूरा कर रहा है. तुर्की  ने कश्मीर में कई NGO को भी काफी पैसा दिया है.

फ्रांस की ‘The Grand Mosque of Pantin’ पर जड़ दिया ताला

नयी दिल्ली/ Overseas Desk:

फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक इतिहास के शिक्षक सैमुअल की सिर्फ इसीलिए हत्या कर दी गई थी, क्योंकि उन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी की पढ़ाई के दौरान छात्रों को पैगम्बर मुहम्मद का कार्टून दिखाया था। इस वारदात के बाद घृणा फैलाने वालों और इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ चल रही कार्रवाई के बीच फ्रांस ने पेरिस के बाहर स्थित एक मस्जिद को अस्थायी रूप से बंद कर दिया है। ‘The Grand Mosque of Pantin’ पर ताला जड़ दिया गया है।

ये मस्जिद फ्रांस की राजधानी पेरिस के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक सबअर्ब में स्थित है, जो बाकी इलाकों से थोड़ा पिछड़ा हुआ है। इस मस्जिद ने अपने फेसबुक पेज पर शिक्षक सैमुअल पैटी की हत्या से पहले एक वीडियो जारी कर उनके खिलाफ घृणा फैलाई थी। प्रशासन ने मस्जिद के बाहर इसे बंद किए जाने का नोटिस चस्पा दिया है। फ्रांस में मजहब के आधार पर कट्टर शिक्षा देने वालों और देश की सुरक्षा में संभावित खतरा पैदा करने वाले विदेशियों पर कार्रवाई हो रही है।

इस मस्जिद को 6 महीने के लिए बंद किया गया है और बताया गया है कि ‘आतंकवादी घटनाओं से बचाव के एकमात्र कारण’ के लिए ऐसा किया गया है। फ्रांस के ‘Seine-Saint-Denis’ विभाग ने ये नोटिस जारी किया। ये भी पता चला है कि हत्यारा उस अभिभावक से संपर्क में था, जो शिक्षक के खिलाफ घृणा अभियान चला रहा था। साथ ही हमास के पक्ष में आए हुए पहले के एक आदेश को भी रद्द कर दिया गया है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि देशवासी कार्रवाई चाहते हैं और सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है। हत्यारे ने व्हाट्सप्प पर उस अभिभावक से चैट किया था, जिसकी बेटी ने पैगम्बर मुहम्मद का कार्टून दिखाने वाले शिक्षक की शिकायत की थी। इसके बाद उस अभिभावक ने इसे ‘पोर्नोग्राफी’ बताते हुए उन्हें बरखास्त करने की माँग के साथ विरोध में समर्थन जुटाना शुरू कर दिया था। हत्यारा अब्दुल्लाख भी पुलिस की गोली से मारा गया।

इस हत्याकांड के कुछ ही सप्ताह पहले फ्रेंच राष्ट्रपति ने ‘इस्लामी अलगाववाद’ के कारण चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि इस्लाम एक ऐसा मजहब है, जो पूरी दुनिया में ही संकटकाल से गुजर रहा है, सिर्फ फ्रांस में ही ऐसा नहीं है। फ्रांस के गृह मंत्री गेराल्ड ने कहा कि देश ‘अंदर के दुश्मनों’ से लड़ रहा है। फ्रांस में सक्रिय हमास का समर्थन करने वाले समूह को भंग कर दिया गया है। उसके मुखिया अब्देलहकीम से पुलिस पूछताछ कर रही है।

वहीं अब मस्जिद के प्रबंधक मोहममद हेंनीचे ने अब वीडियो शेयर करने को लेकर खेद जताया है। उन्होंने कहा कि ये वीडियो सिर्फ मुस्लिम छात्रों की चिंताओं के लिए शेयर किया गया था। साथ ही दावा किया कि इस्लाम में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। अब ‘Sorbonne’ विश्वविद्यालय में बुधवार (अक्टूबर 21, 2020) को उक्त शिक्षक को श्रद्धांजलि दी जाएगी, जिसमें राष्ट्रपति मैक्रों, पीड़ित परिवार और 400 अतिथि उपस्थित रहेंगे।

मंगलवार को संसद में भी इस घटना के कारण एक मिनट का मौन रखा गया। ‘Conflans-Sainte-Honorine’ में उसी दिन शाम को हजारों लोगों ने जमा होकर ‘मैं भी सैमुअल’ का नारा लगा आकर इस्लामी कट्टरपंथियों का विरोध किया। ‘शार्ली हेब्दो’ के अगले अंक में ‘सिर कटा हुआ गणतंत्र’ नाम से एक शीर्षक भी आने वाला है। इसके संपादकीय में बताया जाएगा कि कैसे ये हत्यारे लोकतंत्र का गला काटना चाहते हैं।

ज्ञात हो कि उधर वहाँ के 4 NGO ने ट्विटर के खिलाफ भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हेट स्पीच पर लगाम लगाने में विफल रहने के कारण उसे कोर्ट में घसीटा गया है। हत्यारे का सन्देश और शिक्षक के मृत शरीर के साथ तस्वीर ट्विटर पर डाली गई थी, जिससे वहाँ के कई संगठन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से खफा हैं। हत्यारे ने अपने ट्विटर अकाउंट से भी आपत्तिजनक चीजें डाली थीं। वहाँ के ये NGO सरकार के साथ खड़े हैं।

21 अक्तूबर: अखिल भारतीय जनसंघ स्थापना दिवस

कोरल ‘पुरनूर’, चंडीगढ़ – 21 अक्तूबर:

21 अक्टूबर 1951 को नई दिल्ली में महान् बलिदानी डॉ0 श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता तथा पंडित मौलीचन्द्र शर्मा, वैध गुरूदत्त, लाला योधरज, प्रो0 बलराज मधोक आदि देशभक्तों की सहभागिता में स्थापित भारतीय जनसंघ स्वतंत्र भारत का पहला राष्ट्रवादी-यथार्थवादी राजनीतिक दल हैं जिसने संसद के अन्दर और बाहर नेहरूवाद का विकल्प और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का संखनाद किया। भारत में अभारतीय शासन के विकल्प के रूप में भारतीय राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक नीतियों की आधुनिक सन्दर्भों में व्याख्या और अनुप्रयोग के आग्रही एवं देश की एकता-अखण्डता के विश्वनीय वाहक के रूप में जनसंघ का उदय हुआ था।

भारत का जनसंघ का इतिहास :

अखिल भारतीय जनसंघ भारत का एक पुराना राजनैतिक दल है जिससे 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। इस दल का आरम्भ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गयी थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। इसने 1952 के संसदीय चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी जिसमे डाक्टर मुखर्जी स्वयं भी शामिल थे।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। आपातकाल से पहले बिहार विधानसभा के भारतीय जनसंघ के विधायक दल के नेता लालमुनि चौबे ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बिहार विधानसभा से अपना त्यागपत्र दे दिया। जनता पार्टी 1980 में टूट गयी और जनसंघ की विचारधारा के नेताओं नें भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। इसके पश्चात प्रोफेसर बलराज मधोक ने भारतीय जनसंघ का नाम अखिल भारतीय जनसंघ करके चुनाव आयोग में रजिस्टर कराया और भारतीय राजनीति में अखिल भारतीय जनसंघ के नाम से संसदीय चुनाव प्रणाली में भाग लिया।

‘अखिल भारतीय जनसंघ’ के संस्थापक प्रो.बलराज मधोक ने देश में प्रखर राष्ट्रवादी और हिन्दुत्ववादी राजनीति की नींव रखी। भारतीय जनसंघ के साथ ही उन्होंने 1951 में आरएसएस की स्टूडेंट ब्रांच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की। इसके साथ ही उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ और इस दौरान लंबे समय तक लखनऊ उनकी राजनीतिक कर्मभूमि रहा। जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने लखनऊ में पहली राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक रखी। उसके बाद जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर उन्होंने 1989 में यहीं से चुनाव भी लड़ा। लखनऊ में उनके साथ काम करने वाले ऐसे ही कुछ नेताओं और बुद्धिजीवियों को उनकी बेवाकी और स्पष्ट राजनीतिक सोच के संस्मरण अब भी याद हैं।

भारतीय जनसंघ के संस्थापक प्रो.मधोक के लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी से राजनीतिक मतभेद रहे। आडवाणी जब राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो 1973 में उन्हें भारतीय जनसंघ से निकाल दिया गया। बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी तो उसमें शामिल हुए, हालांकि उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने ‘अखिल भारतीय जनसंघ’ पार्टी बनाई लेकिन वह सफलता नहीं हो सकी। उसके बाद बीजेपी ने 1989 में जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। लखनऊ से जनता दल के मांधाता सिंह को संयुक्त प्रत्याशी बनाया गया। मधोक मांधाता सिंह के खिलाफ निर्दलीय लड़े। उन्हें हिंदूवादियों का समर्थन मिला और माना जा रहा था कि वह जीत जाएंगे। इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने एक लाइन का बयान दिया-‘मधोक हमारे प्रत्याशी नहीं हैं।’ और पूरा चुनावी रुख पलट गया, मधोक हार गए।
पूर्व सांसद लालजी टंडन बताते हैं कि जनसंघ की स्थापना के समय से आखिरी समय तक मेरा उनसे जुड़ाव रहा। वह जीवन भर मूल्यों पर आधारित राजनीति करते रहे। वह जब भी लखनऊ आते, मेरी मुलाकात होती थी। उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यसमिति यहां चौक स्थित धर्मशाला में हुई। तब मैं उनके काफी करीब रहा। कश्मीर को बचाने में उनका खासा योगदान है। मैं अटलजी और मधोकजी के बीच कुछ दूरियां रहीं लेकिन मैं दोनों के काफी करीब रहा। एक बार यह स्थिति आ गई कि उन्हें जनसंघ से अलग होना पड़ा लेकिन उसके बाद भी वह लिखकर अपने राष्ट्रवादी विचार रखते रहे। जिन विषयों पर आज के नेता संकोच करते हैं, उन पर भी उन्होंने प्रखर विचार रखे। वह राजनीतिक तौर पर भले ही अलग रहे हों लेकिन वह कभी मूल विचारधारा से नहीं हटे।

राष्ट्रधर्म के संपादक आनंद मिश्र अभय बताते हैं कि मधोक जी से मेरा संपर्क 1997 में हुआ जब मकर संक्रांति पर ‘सनातन भारत’ विशेषांक निकाला। राष्ट्रधर्म में उनका लेख छापा तो उनके करीबी महेश चंद्र भगत ने सराहा। भगत जी ने ही मेरे बारे में उनको बताया। मधोक जी जब लखनऊ आए तो मुझे मिलने बुलाया और प्रेस कॉन्फ्रेंस में साथ ही बैठा लिया। इसी दौरान वह बोल गए कि अटल जी अब तक के सबसे खराब प्रधानमंत्री हैं। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में उनसे बेहतर नेता और कौन है? इस पर उन्होंने कहा कि यह बीजेपी का सिरदर्द है। मैंने कहा, यह बीजेपी का सिरदर्द है तो आप क्यों इसे अपना बना रहे हैं? … और प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म हो गई। यह उनकी सहजता ही थी कि इसके बाद भी उन्होंने बुरा नहीं माना। बाद में मैंने उनसे कहा कि आपने इतिहास पढ़ा है, पढ़ रहे हैं, गढ़ रहे हैं और इतिहास को जी रहे हैं। क्यों नहीं आप संस्मरण लिखते। उसके बाद ही उन्होंने संस्मरणों पर आधारित पुस्तक लिखी। कश्मीर समस्या के समाधान पर उन्होंने एक लेख भी भेजा जो उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा के विपरीत था। मैंने वह लेख छापा नहीं और उनसे आग्रह किया कि इसे कहीं और भी न भेजें। इससे आपकी छवि धूमिल होगी। मेरी यह बात उन्होंने मानी भी और अपनी विचारधारा के अनुसार ही लिखते रहे।

एशिया की सबसे लंबी जोज़िला टनल देश को सामरिक महत्व का एक और तोहफा

इस सुरंग की नींव मई 2018 में ही रख दी गई थी। लेकिन टेंडर पाने वाली IL&FS दीवालिया हो गई। उसके बाद हैदराबाद की मेघा इंजिनियरिंग को 4,509.5 करोड़ रुपये में इसका ठेका मिलासरकार का दावा है कि वह प्रोजेक्‍ट की रीमॉडलिंग के जरिए 3,835 करोड़ रुपये बचा लेगी। पूरे प्रोजेक्‍ट की अनुमानित लागत 6,808.63 करोड़ रुपये है। जोजिला पास के नीचे करीब 3,000 मीटर की ऊंचाई पर यह सुंरग बनेगी। इसकी लोकेशन NH-1 (श्रीनगर-लेह) में होगी। जोजिला टनल का निर्माण-कार्य ऐसे समय में शुरू हो रहा है जब पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर चीन से पिछले पांच महीनों से टकराव चल रहा है. गड़करी ने कहा है कि इस टनल के बनने से श्रीनगर, द्रास, करगिल और लेह क्षेत्रों में हर मौसम के लिए कनेक्टिविटी स्थापित हो जाएगी।

  • सुरंग की लंबाई 14.15 किलोमीटर होगी, इसके अलावा 18.63 किलोमीटर लंबी एप्रोच रोड का निर्माण किया जाएगा, जिसे बनाने में 6809 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
  •  जो दूरी को तय करने में तीन घंटे लगते थे वो महज 15 मिनट में पूरी हो जाएगी।
  • सुरंग के निर्माण में 6 वर्ष का समय लगेगा, जबकि एप्रोच रोड को बनाने में 2.5 साल लगेंगे।

लद्दाख/जम्मू/ कश्मीर(ब्यूरो):

देश के इतिहास में एक पन्ना जुड़ने जा रहा है और 30 साल के लम्बे इंतज़ार के बाद अब भारत सरकार कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ने वाली टनल पर आज से काम शुरू करने जा रही है। इसकी नीव के लिए पहला विस्फोट सड़क परिवहन व राजमार्ग केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के द्वारा किया जाएगा। देश के लिए सामरिक अहमियत वाली इस 14.15 किलोमीटर लंबी टनल का निर्माण करने में 6808.63 करोड़ का कुल खर्च आएगा।

2015 में पीएम मोदी ने रखी थी आधारशिला

इस टनल को बनाने के लिए करीब तीस साल से मांग हो रही थी. साल 2005 में टनल बनाने के लिए प्रोजेक्ट की प्लानिंग शुरू हुई थी और प्रोजेक्ट रिपोर्ट साल 2013 में बीआरओ यानि बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (Border Road Organisation) ने तैयार की थी. इसके बाद साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने इसकी आधारशिला रखी थी. इसके 5 साल बाद अब निर्माण कार्य शुरू होने जा रहा है.

देश को अटल टनल की सौगात देने के बाद केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में सामरिक महत्व की एक और टनल का निर्माण शुरू करने जा रही है। केंद्रीय सड़क – परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए इस सुरंग के निर्माण के लिए पहला ब्लास्ट किया। सेना और सिविल इंजीनियरों की एक चोटी की टीम जोजिला-दर्रे के पहाड़ को काट कर इस सुरंग का निर्माण करेगी। 

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने खुद ट्वीट कर भारत सरकार के इस महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी दी है। बता दें कि टनल का निर्माण-कार्य ऐसे समय में शुरू हो रहा है जब पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर चीन से पिछले पांच महीनों से टकराव चल रहा है। गड़करी ने कहा है कि इस टनल के बनने से श्रीनगर, द्रास, करगिल और लेह क्षेत्रों में हर मौसम के लिए कनेक्टिविटी स्थापित हो जाएगी। इसके अलावा दोनों स्थानों के बीच यात्रा में लगने वाले समय में 3 घंटे 15 की कमी आएगी।

इस टनल के बनने से लैंड स्लाइड की आशंकाओं के बगैर नेशनल हाईवे वन पर श्रीनगर से लेह के बीच यात्रा की जा सकेगी। इस प्रोजेक्ट के तहत 14.15 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई जाएगी, इसके अलावा 18.63 किलोमीटर लंबी एप्रोच रोड का निर्माण किया जाएगा। इस तरह से पूरे प्रोजेक्ट में 32.78 किलोमीटर लंबा सड़क बनाया जाएगा। 

इस पूरे प्रोजेक्ट के निर्माण में 6808.63 करोड़ रुपये की लागत आएगी. सुरंग के निर्माण में 6 वर्ष का समय लगेगा, जबकि एप्रोच रोड को बनाने में 2.5 साल लगेंगे।

जोजिला टनल का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद पूरा लेह-लद्दाख, करगिल-द्रास और सियाचिन सालों भर देश के बाकी हिस्सों से सड़क मार्ग से जुड़ा रहेगा। अभी इनमें से कई क्षेत्रों में सड़क मार्ग से कनेक्टिविटी साल के 6 महीने तक ही हो पाती है। सर्दियों के मौसम में यहां जाने वाली मौजूदा सड़कें बर्फ से ढक जाती हैं, लेकिन ये सुरंग इस समस्या को दूर कर देगी। इस नए सुरंग की मदद से इन इलाकों में सेना की मूवमेंट बेहद आसान हो जाएगी। 

जोजिला टनल केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगी। 

बता दें कि जोजिला दर्रा दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक है। इस दुर्गम रास्ते में वाहन चलाना बेहद चुनौतीपूर्ण और खतरे से भरा है।  

महबूबा के रिहा होते ही अब्दुल्ला ने अलापा धारा 370 का राग, 6 और दलों की जुगलबंदी

मुफ्ती और अब्दुल्ला की मौजूदा जुगलबंदी कुछ वैसी ही है, जैसी दो दिन पहले हमने पूरे बॉलीवुड में देखी. खुद को बचाने के लिए पूरे बॉलीवुड के सारे ग्रुप 70 वर्ष में पहली बार एकजुट हो गए. उसी तरह महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला की ये दोस्ती भी शायद अपना अस्तित्व बचाने के लिए है. ये अस्तित्व खत्म होने का डर है जो दोनों का पास पास ला रहा है. डर बड़े-बड़े दुश्मनों को भी एक साथ ला देता है. ये बैठक नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला द्वारा बुलाई गई है, जिसमें उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन समेत वो नेता शामिल हो रहे हैं, जिन्होंने चार अगस्त 2019 को साझा बयान जारी किया था. फारूक अब्दुल्ला के घर हो रही इस खास बैठक में शामिल होने के लिए पीडीपी मुखिया और राज्य की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती पहुंच चुकी हैं. पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के कई अन्य नेता भी पहुंचे हैं.

जम्मू / कश्मीर(ब्यूरो):

महबूबा मुफ्ती की रिहाई के बाद फारूक और उमर अब्दुल्ला उनके घर मिलने पहुंचे थे, ये तस्वीर भी ट्विटर पर पोस्ट की गई है. इस तस्वीर में जम्मू कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्री जिस लॉन में बैठे हुए हैं, वो महबूबा मुफ्ती का सरकारी आवास है. बतौर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती इसी आवास में रहती थीं. वो सारी सुख सुविधाएं जो उन्हें उस समय मिलती थीं, वो आज भी उन्हें मिल रही हैं. महबूबा मुफ्ती की सुरक्षा में आज भी एसएसजी यानी स्पेशल सिक्योरिटी ग्रुप तैनात है. सुरक्षा और निवास पर होने वाला खर्च आज भी सरकारी खजाने से होता है.

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्विटर पर अपना एक बयान पोस्ट किया है. महबूबा मुफ्ती ने अपने इस ऑडियो संदेश में धारा 370 को दोबारा हासिल करने का ऐलान किया है. 434 दिन बाद जम्मू कश्मीर प्रशासन की हिरासत से महबूबा मुफ्ती को मंगलवार रात रिहा किया गया था. रिहाई के दो घंटे बाद ही महबूबा मुफ्ती ने ब्लैक स्क्रीन करके एक ऑडियो संदेश ट्वीट किया. 

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 ए बहाल करवाने व राज्य के एकीकरण के लिए कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों ने आपस में हाथ मिला लिए हैं. नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूख अब्दुल्ला के  निमंत्रण पर उनके घर पर कश्मीरी राजनीतिक दलों की बैठक हो रही है.

महबूबा, सज्जाद लोन, यूसुफ तारिगामी बैठक में शामिल
जानकारी के मुताबिक महबूबा मुफ्ती, सज्जाद गनी लोन और कम्युनिस्ट नेता यूसुफ तारिगामी फारूख अब्दुल्ला के घर पहुंच चुके हैं. करीब एक साल घर में नजरबंद रहने के बाद महबूबा मुफ्ती दो दिन पहले रिहा हुई हैं. फारूख अब्दुल्ला के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उनकी आगवानी की.

कांग्रेस के नेताओं ने फिलहाल साधी चुप्पी
कांग्रेस के नेताओं ने फिलहाल इस कवायद से दूरी बना रखी है. वहीं जम्मू का भी कोई राजनेता इस बैठक में शामिल नहीं है. इस बैठक के विरोध में बीजेपी कार्यकर्ता कई जगह विरोध कर रहे हैं. उनका आरोप है कि इस बैठक के जरिए कश्मीरी नेता फिर से प्रदेश में उपद्रव कराने की साजिश कर रहे हैं.

फारूख अब्दुल्ला ने पिछले साल बुलाई थी कश्मीरी दलों की बैठक
बता दें कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने से एक दिन पहले यानी 4 अगस्त 2019 को अपने गुपकार रोड़ वाले आवास पर कश्मीरी नेताओं की बैठक बुलाई थी. इस बैठक में कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को संरक्षित करने के लिए वे मिलकर प्रयास करेंगे. इस प्रस्ताव पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और कुछ छोटे दल शामिलों ने भी हस्ताक्षर किए. नेशनल कांफ्रेंस ने इस बैठक के बाद हुई घोषणा को गुपकार घोषणा करार दिया था.

बदले माहौल में राजनीति की नई राह तलाश रहे हैं फारूख-महबूबा
करीब एक साल नजरबंदी में रहने के बाद अब फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ्ती बाहर आ चुके हैं. ऐसे में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य के एकीकरण के मुद्दे पर फारूख और महबूबा मुफ्ती ने हाथ मिला लिए हैं. फारूख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल करने की मांग को लेकर चीन से समर्थन मांगने की भी बात कर चुके हैं. जिसके लिए उनकी पूरे देश में आलोचना हो रही है. आज की बैठक में वे अपनी धुर विरोधी महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर में अपनी नई राजनीति की राह तैयार कर सकते हैं.

इस पूरे मामले पर एक राष्ट्रिय चैनल के संपादक ने कुछ सवाल पूछे हैं जो ज़ाहिर सी बात है अनुत्तरित ही रहेंगे:

  1. पहला प्रश्न : जो आप सोच रहे होंगे कि अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे लोगों के रहते बाहरी दुश्मनों की क्या जरूरत है? जब अपने ही देश में ऐसे लोग मौजूद हैं तब हमें चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों की क्या जरूरत है?
  2. दूसरा प्रश्न: ये है कि ऐसे देश विरोधी बयान देने की आजादी कब तक मिलती रहेगी. जब किसी सांसद को आपकी बात पसंद नहीं तो वो आपके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे देता है. अदालत के फैसले पर कोई टिप्पणी कर देता है तो उस पर अवमानना का आरोप लग जाता है लेकिन ऐसे लोग जो भारत देश के खिलाफ बोलते हैं उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती. उनके खिलाफ सड़क से संसद तक कोई आवाज क्यों नहीं उठाता?
  3. तीसरा प्रश्न: ये है कि जब फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने संविधान की शपथ लेकर जम्मू कश्मीर पर शासन किया था. तब क्या इन्होंने राष्ट्रहित में सारे निर्णय लिए होंगे? ये बहुत बड़ा प्रश्न है क्योंकि जम्मू कश्मीर एक संवेदनशील राज्य है, जहां आए दिन आतंकवादी हमले होते हैं, एनकाउंटर होते हैं. क्या जम्मू कश्मीर में सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों को राज्य सरकार का पूरा सहयोग मिलता रहा होगा? महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला के हाल के बयानों के बाद क्या उनके फैसलों की जांच की जानी चाहिए?
  4. चौथा प्रश्न है जब फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे राजनेता संसद के फैसले को पलटने की बात खुलेआम करते हैं. तब इनकी संसद सदस्यता रद्द क्यों नहीं की जाती. इन नेताओं की पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द क्यों नहीं किया जाता. महबूबा मुफ्ती इस समय पीडीपी यानी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष हैं और फारूक अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के सबसे बड़े नेता. पार्टी की कमान भले ही उन्होंने अभी बेटे उमर अब्दुल्ला को दे रखी है लेकिन पार्टी के निर्णयों पर आखिरी मुहर उन्हीं की होती है?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमने कुछ कानूनी जानकारों से बात की है उनके मुताबिक,

  • कोई भारतीय नागरिक इस तरह के बयानों के खिलाफ देश में कहीं भी एफआईआर दर्ज करा सकता है.
  • हमारे चुने हुए प्रतिनिधि चाहें सांसद हो या विधायक वो भी ऐसे बयान देने वालों के खिलाफ एफआईआर कर सकते हैं. ऐसे बयान आईपीसी की धारा 124 ए यानी देशद्रोह के दायरे में आते हैं.
  • -इस तरह के बयानों पर हमारी संसद क्या एक्शन ले सकती है?

Representation of people act 1951 यानी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत संसद एक प्रस्ताव ला सकती है. जिसके तहत फारूक अब्दुल्ला जैसे सांसद की सदस्यता रद्द की जा सकती है. चुनाव आयोग से ऐसी पार्टियों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की जा सकती है.

असम में सरकारी अनुदान वाले धार्मिक संस्थान बंद

रिपोर्ट्स के मुताबिक, असम में 614 सरकारी तो 900 निजी मदरसे हैं और लगभग सभी मदरसों को जमीयत उलमा द्वारा चलाया जाता है। वहीं, प्रदेश में 100 सरकारी और 500 निजी संस्कृत संस्थान हैं। बता दें कि सरकार मदरसों पर हर साल 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च करती है जबकि संस्कृत संस्थानों में हर साल महज 1 करोड़ रुपए खर्च होता है। इस कार्यवाही के पीछे काश्मीर में हुई कार्यवाई को नहीं देखना चाहिए

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि राज्य के सभी सरकारी मदरसों को बंद करने का निर्णय ‘समानता’ के लिए लिया गया है। असम सरकार ने सभी मदरसों को बंद कर के उन्हें नियमित स्कूलों में तब्दील कर दिया है, जिससे कई इस्लामी विचारधारा वाले लोग नाराज़ हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी पैसे से कुरान नहीं पढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है (सरकारी पैसों से कुरान पढ़ाया जाता है) तो फिर बाइबिल और भगवद्गीता भी पढ़ानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस चलन को खत्म कर के समानता लाने के लिए ये निर्णय लिया गया है। ‘ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF)’ के मुखिया और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा है कि राज्य की भाजपा सरकार ने जिन मदरसों को बंद कर दिया है, उनकी पार्टी की सरकार बनने पर उन सभी मदरसों को वापस बहाल किया जाएगा। कई पार्टियों ने सेकुलरिज्म की बातें करते हुए इस फैसले का विरोध किया है।

हिमंत बिस्वा सरमा ने इस दौरान ‘लव जिहाद’ के मुद्दे को भी उठाया और कहा कि मुस्लिम लड़के अक्सर खुद को हिन्दू दिखाते हैं और हिन्दू लड़कियों से शादी कर लेते हैं। उन्होंने इसे ‘किसी को विश्वास को धोखा देना’ करार दिया। हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि कई मुस्लिम लड़के हिन्दू नाम के साथ फेसबुक अकाउंट बनाते हैं और किसी मंदिर के साथ खुद की तस्वीर डालते हैं, ताकि किसी को लगे कि वो मुस्लिम हैं।

उन्होंने कहा कि जब लड़की उससे शादी कर लेती है, तब उसे अचानक से पता चलता है कि जिससे उसकी शादी हुई है, वो मुस्लिम है। उन्होंने कहा कि ये प्रामाणिक शादी कभी नहीं हो सकता, ये किसी के भरोसे को धोखा देना हुआ। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इन मामलों को देख रही है और अगले 5 वर्षों में ये सुनिश्चित किया जाएगा कि ये शादियाँ स्वेच्छा से हो, किसी को जाल में फँसा कर नहीं। उन्होंने आश्वासन दिया कि असम सरकार कार्रवाई कर रही है।

असम में विधानसभा चुनाव अगले साल मार्च-अप्रैल में प्रस्तावित है। डिब्रूगढ़ में भाजपा महिला मोर्चा की एक बैठक में शिक्षा मंत्री ने कहा था, ‘‘हमें असम की जमीन पर लव जिहाद के खिलाफ एक नई और कड़ी लड़ाई शुरू करनी होगी। अगर भाजपा दोबारा सत्ता में आती है तो हम यह निर्णय लेंगे कि अगर कोई भी लड़का धार्मिक पहचान छुपाता है और असम की बेटियों और महिलाओं पर कुछ भी नकारात्मक टिप्पणी करता है तो उसे कड़ी सजा मिले।” 

भारत ने चीन के बहानों को किया खारिज

चीनी मामलों के जानकारों  का कहना है कि पीएलए, लद्दाख में भारतीय बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर इसलिए चिंतित है क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए अरबों डॉलर के पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, या CPEC के लिए एक सैन्य खतरा पैदा कर सकता है, जो कि खुंजेर दर्रा और पाकिस्तान से होकर गुजरता है।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

भारत ने चीन की उस दावे को खारिज कर दिया है कि जिसमें ड्रैगन ने कहा कि 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बुनियादी ढांचों को अपग्रेड करने के कारण दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है। भारत ने कहा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पहले से ही वहां मौजूद है और सीमा के उस पार सड़कों और संचार नेटवर्क का निर्माण जारी है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “पहले, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा सोमवार को उद्घाटन किए गए पुल एलएसी से दूर हैं और ये पुल नागरिकों की आवाजादी और सैन्य रसद पहुंचाने में मदद करेंगे। दूसरा, चीन ने कभी भी चल रही सैन्य-कूटनीतिक वार्ता में भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड के मुद्दे को नहीं उठाया है। तीसरा, एलएसी के करीब सड़क, पुल, ऑप्टिकल फाइबर, सोलर-हीटेड हट्स और मिसाइल तैनाती के बारे में पीएलए का क्या कहना है?” उन्होंने कहा कि भारत केवल एलएसी के किनारे पर ही कोई निर्माण कर रहा है और इसके लिए हमें चीनी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

सैन्य कमांडरों के अनुसार, PLA ने गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स में सुरक्षित संचार के लिए ऑप्टिकल फाइबर खींचा है, पंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर आगे के सैनिकों के लिए सौर गर्म कंटेनरों को पहुंचाने के लिए भारी-लिफ्ट क्रेन का इस्तेमाल किया है और एक अस्पताल भी बनाया है।

हालांकि, चीन पर नजर रखने वालों के अनुसार, पीएलए लद्दाख में भारतीय बुनियादी ढांचे के अपग्रेड करने की खबर से इसलिए चिंतित है, क्योंकि यह पाकिस्तान के लिए अरबों डॉलर के पाकिस्तान आर्थिक गलियारे या CPEC के लिए एक सैन्य खतरा पैदा कर सकता है, जो कि खुंजेर दर्रा और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है। यह समझा जाता है कि चीन ने CPEC को लेकर अपने सभी मौसम सहयोगी के पाकिस्तान को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है, क्योंकि भारत ने बीजिंग को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र और पीओके का शोषण करने पर बहुत सख्त आपत्ति जताई है।

फारूक का ब्यान एक ‘देशद्रोही कमेंट’ है : संबित पात्रा

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पार्टी मुख्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘एक तरह से फारूक अब्दुल्ला अपने इंटरव्यू में चीन की विस्तारवादी मानसिकता को न्यायोचित ठहराते हैं, वहीं दूसरी ओर एक देशद्रोही कमेंट करते हैं कि भविष्य में हमें अगर मौका मिला तो हम चीन के साथ मिलकर अनुच्छेद 370 वापस लाएंगे.’ उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पूर्व में दिए गए बयानों का हवाला देते हुए आरोप लगाया, ‘राहुल गांधी और फारूक अब्दुल्ला में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.’ हैरानी है की राष्ट्रिय मंच से भाजपा के राष्ट्रिय प्रवक्ता बहुत ही नपि तुली भाषा में फ़रूक अब्दुल्लाह के ब्यान मात्र ही को देश द्रोही बताते हैं. सही भी है राजनीति संभावनाओं का खेल है. अब्दुल्लाह एक ही पखवाड़े में 2 बार अपना चीन प्रेम दिखा चुके हैं.

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के बयान पर राजनीतिक घमासान मच गया है. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने फारूक अब्दुल्ला के बयान को देश विरोधी ठहराया है. उन्होंने कहा कि फारूक चीन की मानसिकता को सही ठहरा रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला ने पहली बार ऐसा नहीं कहा है. उन्होंने पहले भी कई बार इस तरह के बयान दिए हैं.

उन्होंने कहा कि एक तरह से फारूक अब्दुल्ला, अपने इंटरव्यू में चीन की विस्तारवादी मानसिकता को न्यायोचित ठहराते हैं. वहीं दूसरी ओर एक देशद्रोही कमेंट करते हैं कि भविष्य में हमें अगर मौका मिला तो हम चीन के साथ मिलकर अनुच्छेद 370 वापस लाएंगे. 

संबित पात्रा ने आगे कहा कि इन्हीं फारूक अब्दुल्ला ने भारत के लिए कहा था कि PoK क्या तुम्हारे बाप का है, जो तुम PoK ले लोगे, क्या पाकिस्तान ने चूड़ियां पहनी हैं. पाकिस्तान और चीन को लेकर जिस प्रकार की नरमी और भारत को लेकर जिस प्रकार की बेशर्मी इनके मन में है, ये बातें अपने आप में बहुत सारे प्रश्न खड़े करती हैं. 

चीन में हीरो बने फारूक: बीजेपी

पात्रा ने राहुल गांधी पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि केवल फारूक अब्दुल्ला ऐसा कहते हैं ऐसा नहीं है, अगर आप इतिहास में जाएंगे और राहुल गांधी के हाल फिलहाल के बयानों को सुनेंगे तो आप पाएंगे कि ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने एक हफ्ते पहले कहा था कि प्रधानमंत्री कायर है, प्रधानमंत्री छुपा हुआ है, डरा हुआ है. दूसरे देशों की तारीफ और अपने देश, प्रधानमंत्री और आर्मी के लिए इस प्रकार के वचन कहां तक सही है, ये आप सब समझते हैं.  बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाकर राहुल गांधी पाकिस्तान में हीरो बने थे, आज फारूक अब्दुल्ला चीन में हीरो बने हैं.

पात्रा ने कहा कि 24 सितंबर को फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि आप अगर जम्मू कश्मीर में जाकर लोगों से पूछेंगे कि क्या वह भारतीय हैं, तो लोग कहेंगे कि नहीं हम भारतीय नहीं हैं. उसी स्टेटमेंट में ही उन्होंने ये भी कहा था कि अच्छा होगा अगर हम चीन के साथ मिल जाएं. उन्होंने कहा कि देश की संप्रभुता पर प्रश्न उठाना, देश की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाना क्या एक सांसद को शोभा देता है? क्या ये देश विरोधी बातें नहीं हैं?

दरअसल फारूक अब्दुल्ला ने रविवार को आजतक से बातचीत के दौरान कहा था कि एलएसी पर जो भी तनाव के हालात बने हैं, उसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है. क्योंकि उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया. चीन ने कभी भी अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले का समर्थन नहीं किया है और हमें उम्मीद है कि इसे (आर्टिकल 370) फिर से चीन की ही मदद से बहाल कराया जा सकेगा.

चीन ने फैसला स्वीकार नहीं किया: फारूक

फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव की जो भी स्थितियां बनी हैं, वह 370 के खत्म होने के कारण बनी हैं. चीन ने कभी इस फैसले को स्वीकार ही नहीं किया. हम ये उम्मीद करते हैं कि चीन की ही मदद से जम्मू-कश्मीर में फिर आर्टिकल 370 को बहाल किया जा सकेगा. 5 अगस्त 2019 को 370 को हटाने का जो फैसला लिया गया, उसे कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता. 

वहीं चीन की तरफदारी करने के सवाल पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा, मैंने कभी चीनी राष्ट्रपति को भारत नहीं बुलाया. पीएम नरेंद्र मोदी ही उन्हें भारत आमंत्रित करने वाले शख्स थे. उन्होंने चीनी राष्ट्रपति को झूला झुलाया और चेन्नई में उन्हें खाना खिलाने भी ले गए. फारूक ने कहा कि उन्हें सांसद होने के बावजूद संसद सत्र के दौरान जम्मू-कश्मीर की समस्याओं पर बोलने का मौका नहीं दिया गया. 

भारत से सावधान रहें चीन और पाकिस्तान

नई दिल्ली: 

भारत ने 35 दिनों के अंदर 10 हथियारों को हासिल किया है और उनका सफल परीक्षण भी किया है. बता दें कि ये हथियार चीन और पाकिस्तान के लिए खतरा साबित हो सकते हैं. बता दें कि रक्षाक्षेत्र में बनाए गए ये हथियार स्वदेशी हैं. ये मिसाइल DRDO द्वारा ये 10 मिसाइल पिछले 35 दिनों में बनाकर रिकॉर्ड कायम कर दिया है. DRDO द्वारा कई घातक मिसाइलों को अपग्रेड किया गया है. ब्रह्मोस की रेंज को 290 किमी से बढ़ाकर 400 किमी तक कर दिया गया है. ऐसी संभावना है कि भारत में ऐशसी कई और मिसाइलों का परीक्षण किया जा सकता है.

बता दें कि इन मिसाइलों का परीक्षण भारत अपने पड़ोसियों के मद्देनजर कर रहा है. ऐशे में भारतीय सेना में बीते दिनों स्वदेशी निर्मित पृथ्वी 2 मिसाइल का सफल परीक्षण किया था. यह मिसाइल 350 किमी दूर दुश्मन को ढेर करने की क्षमता रखता है. यह मिसाइल एटॉमिक वॉरहेड भी अपने साथ ले जाने में सक्ष्म है. वहीं टैक से दागी जाने वाली मिसाइल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल का भी सफल परीक्षण किया गया था. इस मिसाइल को अर्जुन टैंक के जरिए फायर किया था. इस मिसाइल ने तीन किमी दूर स्थित टारगेट को भी ध्वस्त कर दिया था. यह बख्तरबंद टैंकों को निशाना बनाने में सक्ष्म है.

DRDO द्वारा 22 सितंबर को स्वदेशी हाई-स्पीड टारगेट ड्रोन अभ्यास का भी सफल परीक्षण किया गया था. अभ्यास एक हाई-स्पीड ड्रोन है. यह अपने साथ हथियार कैरी कर सकता है व दुश्मनों को ठिकाने लगा सकता है. वहीं 7 सितंबर को हाइपर सोनिक टेक्नोलोजी डेमोन्सट्रेटर व्हीकल (Hyper sonic Technology Demonstrator Vehicle) का निर्माण किया गया था. इसका इस्तेमाल हाईपर सोनिक और क्रूज मिसाइल को लॉन्च करने के लिए किया जाएगा.

5 अक्टूबर को DRDO ने मिसाइल टारपीडो सिस्टम सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड रिलीज ऑप टॉरपीडो का सफल परीक्षण किया था. सुपरसॉनिक रफ्तार से यह टॉरपीडो पंडुब्बी पर हमला कर सकता है. बता दें कि भारत में एक के बाद एक ऐसे कई हथियार बीते कुछ ही दिनों में बनाए गए हैं, जिससे हर कोई सकते में हैं. क्योंकि DRDO ने अपने कामों में तेजी दिखाते हुए एक के बाद एक कई हथियारों का सफल परीक्षण कर चीन और पाकिस्तान को भौंचक्का कर दिया है.

प्रधान मंत्री को गुस्सा क्यों आता है??

कृषि कानून को लेकर पंजाब समेत विभिन्न जगहों पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां कृषि कानून को ‘किसान विरोधी’ करार देते हुए सरकार की आलोचना कर रही हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सोमवार को ट्रैक्टर जलाकर विरोध प्रदर्शित किया गया. विरोध प्रदर्शन करने वाले पंजाब यूथ कांग्रेस के बताए जा रहे हैं. पीएम मोदी ने इस घटना को लेकर किसी पार्टी का नाम लिए बिना विपक्ष पर निशाना साधते हुए किसानों को अपमानित करने का आरोप लगाया. पीएम मोदी ने कहा, “आज जब केंद्र सरकार, किसानों को उनके अधिकार दे रही है, तो भी ये लोग विरोध पर उतर आए हैं. ये लोग चाहते हैं कि देश का किसान खुले बाजार में अपनी उपज नहीं बेच पाए. जिन सामानों की, उपकरणों की किसान पूजा करता है, उन्हें आग लगाकर ये लोग अब किसानों को अपमानित कर रहे हैं.” पीएम मोदी ने कहा कि पिछले महीने ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया गया है। ये लोग पहले सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का विरोध कर रहे थे, फिर भूमिपूजन का विरोध करने लगे। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कानूनों के अजीबोगरीब विरोध के परिप्रेक्ष्य में कहा कि हर बदलती हुई तारीख के साथ विरोध के लिए विरोध करने वाले ये लोग अप्रासंगिक होते जा रहे हैं।

  • सरकार ने चारों दिशाओं में एक साथ काम आगे बढ़ाया : PM
  • ये लोग अपने जांबाजों से ही सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे थे : मोदी
  • आज तक इनका कोई बड़ा नेता स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नहीं गया : प्रधानमंत्री

चंडीगढ़ – 29 सितंबर:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करने के बाद अपने सम्बोधन में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों को लेकर कॉन्ग्रेस को आईना दिखाया और जनता को समझाया कि कैसे वो हर उस चीज का विरोध करते हैं, जिसे जनता की भलाई के लिए लाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान राम मंदिर और योग दिवस को भी याद किया, जिसका कॉन्ग्रेस ने विरोध किया था।

पीएम मोदी ने कहा कि भारत की पहल पर जब पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रही थी, तो भारत में ही बैठे ये लोग उसका विरोध कर रहे थे। उन्होंने याद दिलाया कि जब सरदार पटेल की सबसे ऊँची प्रतिमा का अनावरण हो रहा था, तब भी ये लोग इसका विरोध कर रहे थे। पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया कि आज तक इनका कोई बड़ा नेता स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नहीं गया है। सरदार वल्लभभाई पटेल कॉन्ग्रेस के ही नेता थे।

कॉन्ग्रेस पार्टी अक्सर योग दिवस का मजाक बनाती रही है। जिस चीज ने दुनिया भर में भारत को नई पहचान दी, पार्टी उसका विरोध करती है। राहुल गाँधी ने सेना की ‘डॉग यूनिट’ के एक कार्यक्रम की तस्वीर शेयर कर के इसे ‘न्यू इंडिया’ बताते हुए न सिर्फ योग का बल्कि सेना का भी मजाक उड़ाया था। तभी पूर्व-सांसद और अभिनेता परेश रावल ने कहा था कि ये कुत्ते राहुल गाँधी से ज़्यादा समझदार हैं। सेना के डॉग्स के योगासन का मजाक बनाने वाले राहुल गाँधी की खूब किरकिरी हुई थी।

इसी तरह कॉन्ग्रेस ने अपनी ही पार्टी के नेता सरदार वल्लभभाई पटेल की ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ का विरोध किया, जिसके कारण न सिर्फ भारत का मान बढ़ा बल्कि केवडिया और उसके आसपास के क्षेत्रों में विकास के साथ-साथ रोजगार के नए अवसर आए। कॉन्ग्रेस पार्टी ने इस स्टेचू के निर्माण को ‘चुनावी नौटंकी’ और ‘राजद्रोह’ करार दिया था। राहुल गाँधी ने दावा कर दिया था कि सरदार पटेल के बनाए सभी संस्थाओं को मोदी सरकार बर्बाद कर रही है।

पीएम मोदी ने मंगलवार (सितम्बर 29, 2020) को कहा कि पिछले महीने ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया गया है। ये लोग पहले सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का विरोध कर रहे थे, फिर भूमिपूजन का विरोध करने लगे। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कानूनों के अजीबोगरीब विरोध के परिप्रेक्ष्य में कहा कि हर बदलती हुई तारीख के साथ विरोध के लिए विरोध करने वाले ये लोग अप्रासंगिक होते जा रहे हैं।

कॉन्ग्रेस पार्टी कृषि कानूनों के विरोध के लिए एक ट्रैक्टर को 20 सितम्बर को अम्बाला में जला रही है तो फिर 28 सितम्बर को उसी ट्रैक्टर को दिल्ली के इंडिया गेट के पास राजपथ पर जला कर सुर्खियाँ बटोर रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह धरना दे रहे हैं। सोनिया गाँधी राज्यों को क़ानून बना कर केंद्र के क़ानूनों को बाईपास करने के ‘फर्जी’ निर्देश दे रही है। जबकि अधिकतर किसानों ने भ्रम और झूठ फैलाए जाने के बावजूद इन क़ानूनों का स्वागत किया है।

राम मंदिर मुद्दे की याद दिलाना भी आज के परिप्रेक्ष्य में सही है क्योंकि इसी कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2009 में सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट देकर कहा था कि भगवान श्रीराम का कोई अस्तित्व नहीं है। वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल तो राम मंदिर की सुनवाई टालने के लिए सारे प्रयास करते रहे। वहीं दिसंबर 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी ने उनसे पूछा था कि कॉन्ग्रेस बाबरी मस्जिद चाहती है या राम मंदिर?

इसी कॉन्ग्रेस ने जब राम मंदिर के शिलान्यास के बाद जनता के मूड को भाँपा तो वो राम मंदिर के खिलाफ टिप्पणी करने से बचने लगी। कोई पार्टी नेता इसके लिए राजीव गाँधी को क्रेडिट देने लगा। प्रियंका गाँधी बयान जारी कर के इसका समर्थन करने लगीं। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल रामायण कॉरिडोर बनाने लगे। कमलनाथ हनुमान चालीसा पढ़ने लगे। तभी तो आज पीएम ने कहा – ये विरोध के लिए विरोध करते हैं

प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि चार साल पहले का यही तो वो समय था, जब देश के जाँबाजों ने सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए आतंक के अड्डों को तबाह कर दिया था। लेकिन ये लोग अपने जाँबाजों से ही सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँग रहे थे। सर्जिकल स्ट्राइक का भी विरोध करके, ये लोग देश के सामने अपनी मंशा, साफ कर चुके हैं। देखा जाए तो एक तरह से सारे विपक्षी दलों ने सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध किया था।

नवम्बर 2016 में मोदी सरकार ने भारतीय सेना को सर्जिकल स्ट्राइक के लिए हरी झंडी दिखा कर इतिहास को बदल दिया। पहली बार भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाक़े में घुस कर आतंकियों को मारा लेकिन राहुल गाँधी इसे ‘खून की दलाली’ बताते हुए कहते रहे कि सरकार ‘सैनिकों के खून’ के पीछे छिप रही है। कॉन्ग्रेस पार्टी के लोग सबूत माँगने में लगे थे। कइयों ने तो पाकिस्तान वाला सुर अलापना शुरू कर दिया था।

पीएम मोदी ने कहा कि देश ने देखा है कि कैसे डिजिटल भारत अभियान ने, जनधन बैंक खातों ने लोगों की कितनी मदद की है। जब यही काम हमारी सरकार ने शुरू किए थे, तो ये लोग इनका विरोध कर रहे थे। देश के गरीब का बैंक खाता खुल जाए, वो भी डिजिटल लेन-देन करे, इसका इन लोगों ने हमेशा विरोध किया। उन्होंने कहा कि आज जब केंद्र सरकार, किसानों को उनके अधिकार दे रही है, तो भी ये लोग विरोध पर उतर आए हैं।

बकौल पीएम मोदी, ये लोग चाहते हैं कि देश का किसान खुले बाजार में अपनी उपज नहीं बेच पाए। जिन सामानों की, उपकरणों की किसान पूजा करता है, उन्हें आग लगाकर ये लोग अब किसानों को अपमानित कर रहे हैं। बता दें कि किसानों को सरकार के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों को अपनी उपज बेचने के लिए मिली आज़ादी का विरोध समझ से परे है। इसके लिए सीएए विरोध जैसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।

अमित शाह बता चुके हैं कि जिस पार्टी ने अपनी सरकार रहते अनाजों की खरीद में भी अक्षमता दिखाई लेकिन मोदी सरकार ने इस मामले में रिकॉर्ड बनाया, इसके बावजूद वो किसानों को भ्रमित करने में लगे हुए हैं। एमएसपी के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है, उलटा उसे बढ़ाया गया है। बावजूद इसके किसानों को भाजपा के खिलाफ ऐसे ही भड़काया जा रहा है, जैसे लॉकडाउन में मजदूरों को भड़काया गया था।

पीएम मोदी ने ये भी याद दिलाया कि भारतीय वायुसेना के पास राफेल विमान आये और उसकी ताकत बढ़ी, ये उसका भी विरोध करते रहे। उन्होंने कहा कि वायुसेना कहती रही कि हमें आधुनिक लड़ाकू विमान चाहिए, लेकिन ये लोग उनकी बात को अनसुना करते रहे। हमारी सरकार ने सीधे फ्रांस सरकार से राफेल लड़ाकू विमान का समझौता कर लिया तो, इन्हें फिर दिक्कत हुई। आज अम्बाला से लद्दाख तक वायुसेना का परचम लहरा रहा है।

राफेल मुद्दे पर ज्यादा कुछ याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पूरा 2019 का लोकसभा चुनाव ही इसी पर लड़ा गया था। जहाँ एक तरफ कॉन्ग्रेस पोषित मीडिया संस्थानों द्वारा एक के बाद एक झूठ फैलाया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट और कैग से क्लीन-चिट मिलने के बावजूद राफेल को लेकर झूठ फैलाया गया। वही कॉन्ग्रेस अब राफेल का नाम नहीं लेती क्योंकि जब 5 राफेल की पहली खेप भारत आए तो जनता के उत्साह ने सब साफ़ कर दिया। 2019 का लोकसभा चुनाव हारे, सो अलग।