राम मंदिर के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने किया निराश

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

रामन्दिर के मुकदमे की सुनवाई को उत्सुक हिन्दू समाज को निराशा हुयी जब सुप्रीम कोर्ट ने नये सिरे से मध्यस्थता की ओर मोडकर मामले को कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के बयान कि लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई होनी चाहिये की राह पर जाकर मामला ताल दिया !

अब जबकि मुकदमे के सभी पक्षकार सुनवाई के लिये तैयार है कागजी कार्यवाही भी पूरी हो चुकी है अब मध्यस्थता के नाम मामले को लटकाने का प्रयास किया जा रहा है! सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता की बात करते ही जो लोग मामले की सुनवाई को लोकसभा के चुनाव के बाद सुनवाई केपक्ष मे थे की बाछे खिल गयी ये लोग वही है जो कि कुछ समय पहले श्री श्री रविशंकर के द्वारा की गयी मध्यस्थता पहल ने शामिल ही नही हुये,उनका विरोध भी किया अब उनकी इसी मध्यस्थता के नाम पर मुराद पूरी होने उम्मीद जाग रही है कि राम मन्दिर मामले की सुनवाई लोकसभा चुनाव से पहले नही होनी चाहिये क्योकि ये जानते है कि फैसला क्या आयेगा !

क्या राममन्दिर मामले को किसी और दिशा मे मोडने की कोशिश हो रही है?जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश स्पष्ट तौर पर रामलला के पक्ष मे है फिर भी उसका बंटवारा तीन हिस्सो मे किया गया तो समझौता भी हिन्दू समाज करे? मामले को इस स्तर पर मध्यस्थता की बात करने का मकसद ही मामले की सुनवाई टालना ही लगता है जबकि राम लला और हिन्दु महासभा की ओर से मामले के इस स्तर पर किसी तरह की मध्यस्थता का विरोध किया है! अब जबकि सभी पक्ष सुनवाई को तैयार है टालना का कोई बहाना ही नही बचा तो मामले का फैसला आये उसके बजाये मध्यस्थता की ओर मोडकर मामले को लटकाने का ही प्रयास है क्योंकि मध्यस्थता मे जाने के बाद साल छ: महीने के लिये टल जायेगा जबकि हिन्दू पक्ष पक्षकार अब और मामले कॊ लम्बा खींचना नही चाहता वो फैसला चाहता है क्योंकि उसके लिये यह आस्था का प्रश्न है!

देखने की बात यह है कि जिनके पक्ष मे इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया वो पक्ष मध्यस्थता के विरोध मे है जबकि मध्यस्थता का पूर्व मे विरोध कर चुकी बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी अचानक ही मध्यस्थता को बैचेन दिखाई तत्ा हथियार उनकी मंशा कि लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई होनी चाहिये को पूरी करता है लेकिन मध्यस्थता के लिये सभी पक्षो का सहमत होना आवश्यक है और अगर राममन्दिर का मामला मध्यस्थता को सौंपा जाता है तो सबरीमाला मन्दिर का मामला भी रिव्यू मे मध्यस्थता को सौपा जाना चाहिये

पांच सदस्यों की पीठ ने राममन्दिर मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को बातचीत के माध्यम से सुलझाने और बातचीत के जरिये कोई हल निकालने को लेकर सुनवाई की जस्टिस एस ए बोबडे ने सुनवाई के दौरान कहा कि बाबर ने जो किया उसे हम बदल नही सकते हमारा मकसद विवाद को सुलझाना है इतिहास की जानकारी हमें भी है मध्यस्थता का मतलब किसी की हार या जीत नही है ये दिल,दिमाग,भावनाओ से जुडा मामला है हम इस मामले की गम्भीरता को लेकर सावचेत है ! जबकि इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि यह सिविल सूट है अब जबकि हिन्दूपक्ष भी सिविल सूट जिसे वह आस्था के साथ जुडा पाता है,कि सुनवाई को तैयार है तो मध्यस्थता की आवश्यकता कैसे पडी जबकि कुछ समय पहले ही सबरीमाला मन्दिर के मामले मे सैकडो बर्षो पुरानी आस्था को तोडकर निर्णय दिया उस समय न्यायालय को मध्यस्थता मे जाना क्यों उचित नही लगा सबरीमाला मन्दिर के निर्णय को भी रिव्यू कर मध्यस्थता मे ले जाना उचित रहेगा ! मध्यस्थता को लेकर सभी पक्षकारो की भी भिन्न राय है मसलन निर्मोही अखाडे के वकील सुशील जैन ने कहा कि जमीन हमारी है और हमें वहां पूजा का अधिकार है लेकिन मध्यस्थता होती है तो सभी पक्षो को साथ आना होगा बाबरी मस्जिद के वकील राजीव धवन ने कहा कि वह मध्यस्थता के लिये तैयार है! रामलला की ओर से बरिष्ठ वकील सी एस वैद्य नाथन ने कहा कि अयोध्या श्री राम की जन्मभूमि है इसलिये यह आस्था का विषय है इसलिये इसमे किसी तरह का समझौता नही हो सकता है सिर्फ यही फैसला हो सकता है कि मस्जिद कहिं दूसरी जगह बना सकते है हम उसके लिये क्राउडफंडिग कर सकते है मध्यस्थता का तो सवाल ही नही है! वहीं हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने किसी तरह के समझौते का विरोध किया उनका कहना था कि कोरगट मे पक्षकार मान भी जाते है तो बाहर आम जनता इस फैसले को नही मानेगी हिन्दु महासभा ने कहा कि जमीन हमारी है इसमे कोई समझौता मान्य नही है!

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