सफाई (वाल्मीकि)व चतुर्थ श्रेणी कार्मिकों के दूसरे जिलों में स्थानांतरण : अंधेरे में गहलौत सरकार

सबसे छोटी पोस्ट और जिले से बाहर स्थानांतरण क्यों और कौन करवाता है?

करणी दान सिंह राजपूतडेमोक्रेटिक फ्रंट,  सूरतगढ़ :

            राजस्थान के स्वायत्त शासन विभाग द्वारा पिछले कुछ महीनों से नगर पालिकाओं से सफाई कर्मचारियों चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों व अन्य के स्थानांतरण एक जिले से दूसरे जिले में काफी संख्या में हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं।

सोनभद्र-: सफाई कर्मी है देवता तुल्य – Khabhar24 Live

            सफाई कर्मचारी लगभग सभी बाल्मीकि अनुसूचित जाति से संबंधित है और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी अधिकांश अनुसूचित जाति जनजाति या ओबीसी वर्ग के हैं।

इनका स्थानांतरण गहलोत सरकार के लिए भारी पड़ेगा। एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरण करना मतलब उस सबसे छोटी पोस्ट के कर्मचारी को जानते बुझते हुए दंडित करना है। उसके परिवार घर के  दो चुल्हे करना है।

            ऐसा लगता है कि यह बहुत सोच और समझ कर नेतागिरी करने वाले लोग अभिशंषा या दंड देने के लिए करवाने पर तुले हुए हैं और निदेशक स्वायत शासन विभाग का इस ओर कोई ध्यान नहीं है या फिर वह ध्यान होते हुए भी कुछ सोच कर के ऐसा कर रहे हैं या उनसे करवाया जा रहा है। निदेशक से ऊपर तो स्थानांतरण करवाने का अधिकार है तो स्वायत्त शासन मंत्री ही सक्षम हैं।

स्थानांतरण पर सरकार सवालों के घेरे में।

            सफाई कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी इनसे अगर कोई भूल चूक हुई है या कोई काम नहीं करने वाला है तो क्या उसे कभी नगर पालिका के प्रशासन अधिशासी अधिकारी द्वारा नोटिस दिया गया? उससे पूछा गया? उसका जवाब अनुचित लगा हो तो उसके ऊपर कार्रवाई हो सकती है। कर्मचारी से कितनी बार पूछा गया?  यदि सफाई कर्मचारी एक जगह काम नहीं कर रहा है तो स्थानीय स्तर पर उसका स्थानांतरण दूसरी जगह किया जा सकता था। यदि कर्मचारी जानबूझकर काम नहीं कर रहा है और उसका जवाब भी सही नहीं है तो उसका स्थानांतरण जिले में कहीं किया जा सकता है। एक छोटे कर्मचारी को इससे छोटी कोई पोस्ट नहीं है उसको सैकड़ों किलोमीटर दूर दूसरे जिले में स्थानांतरण करना दंड देना है। अनेक का तो स्थानांतरण चार सौ पांच सौ किलोमीटर दूर  दूसरे जिलों में किया गया है।

            दूसरे जिलों में ये स्थानांतरण हुए हैं उनकेआदेश प्रमाणित करते हैं कि जो अधिकारी स्थानांतरण आदेश पर हस्ताक्षर कर रहा है वह भी आंख मीच कर या फिर अंधेरे में स्थानांतरण कर रहा है। उस अधिकारी यानि निदेशक को खुद को कर्मचारी के पद के बारे में कोई पता नहीं है।

स्थानांतरण आदेश पर निर्देश प्रमाणित करते हैं कि सब अंधेरे में ही किया जा रहा है।

एक आदेश जो 1373 दिनांक 23 नवंबर 2022 को जारी हुआ। इसका नमूना उदाहरण और सबूत है।

 यह आदेश हृदेश कुमार शर्मा निदेशक एवं संयुक्त सचिव की ओर से जारी किया गया।

            इसमें एक से सात निर्देश हैं उनसे ही ऐसा स्पष्ट होता है कि श्रीमान निदेशक महोदय को कुछ मालूम नहीं है और वह केवल किसी की रड़क निकलवाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। कौन किसकी रड़क निकलवा रहा है। यह फाइलों से मालूम पड़ सकता है जो निर्देश हैं उनसे लगता है कि सब कुछ बदले की भावना से किया जा रहा है।

            1- पदनाम में कोई परिवर्तन हो तो विभाग को तुरंत अवगत कराएं अन्यथा आपकी व्यक्ति से जिम्मेवारी होगी. (मतलब स्थानांतरण तो निदेशक करें अंधेरे में करें और जिम्मेवारी नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी की होगी)             2- स्थानांतरित कर्मचारी का सेवाभिलेख प्राप्त होने के उपरांत ही इन्हें वेतन भत्ते का भुगतान किया जाए।

       3-कर्मचारी दैनिक वेतन भोगी या संविदा पर नियुक्त हो तो उसका स्थानांतरण नहीं माना जाए एवं कार्यमुक्त नहीं किया जाकर विभाग को अवगत कराएं। (यह भी अंधेरे में मतलब मालूम ही नहीं है कि जिसका स्थानांतरण किया गया है वह किस प्रकार का कर्मचारी है)

      4- यदि कोई कर्मचारी सेवानिवृत्त या किसी कारण से सेवा से पृथक हो गया हो तो उसका स्थानांतरण नहीं माना जाए।( मतलब यहां भी अंधेरा. उसका निदेशालय में रिकॉर्ड ही नहीं।)

      5- रिक्त पद होने पर ही संबंधित कर्मचारी को ज्वाइन कराया जाए।(यह भी अंधेरे में)

      6- कार्मिक को अपने मूल पद पर ही कार्य ग्रहण कराया जाए।

      7- माननीय माननीय न्यायालय के स्थगन आदेश होने पर उक्त स्थानांतरण लागू नहीं होंगे। ( निदेशालय के पास यह महत्वपूर्ण रिकॉर्ड भी नहीं)

स्थानांतरण आदेश पर  एक लाइन का महत्वपूर्ण संदेश  लिखा गया है।

            “यह सक्षम स्तर से अनुमोदित है।” यह दबाव कि इतना पढने के बाद कोई भागदौड़ पूछताछ तक नहीं करे। मतलब यह स्थानांतरण करवाने करने की अनुमति प्रदान की हुई है तो यह सक्षम स्तर कौन सा है?  निदेशक से बड़ा तो फिर  स्वायत्त शासन मंत्री ही होता है।

            नगरपालिकाओं में कुछ महीनों से यह खेल चल रहा है जितने स्थानांतरण किये गये हैं,उनमें सफाई कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कनिष्ठ सहायक स्वास्थ्य निरीक्षक फायरमैन  के स्थानांतरण भी शामिल हैं। क्या किसी को गलतियों पर कभी नोटिस दिया गया? कभी पूछा गया कोई गलती बताई गई? इसका जवाब आएगा कि नहीं।

            अब सवाल यह सबसे बड़ा है कि सफाई कर्मचारियों में संपूर्ण राजस्थान में हजार के पीछे कोई एक कर्मचारी गैर वाल्मीकि होगा। मतलब संपूर्ण राजस्थान में सभी कर्मचारी बाल्मीकि अनुसूचित जाति के कर्मचारी हैं जिनको कभी नोटिस नहीं दिया गया।  अगर पूछा नहीं गया तो उन्होंने कोई गलती भी नहीं की।

            ऐसे स्थानांतरण कौन करवा रहा है यह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मालूम नहीं है?  अशोक गहलोत की सरकार अंधेरे में है और इसका बहुत बड़ा नुकसान सरकार को हो सकता है।

             मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को खुद को इस बारे में तुरंत हस्तक्षेप करते हुए पिछले तीन-चार महीनों से अब तक हुए सभी स्थानांतरण आदेशों पर तुरंत गौर करना चाहिए। सभी स्थानांतरण की जांच करवानी चाहिए कि क्या ये स्थानांतरण कर्मचारियों से जवाब तलब करने के बाद में हुए हैं? प्रत्येक कर्मचारी की स्थानांतरण फाईल में यह देखना जरूरी है कि किसने अभिशंषा की और उसमें क्या लिखा?

            अगर बिना किसी कारण के ये स्थानांतरण किए गए हैं,तो मुख्यमंत्री स्वयं को इस पर समुचित और सही निर्णय तुरंत बिना देरी किए लेना चाहिए, जब तक निर्णय नहीं हो तब तक इस प्रकार के स्थानांतरण पर रोक लगाई जानी चाहिए।

निदेशक का स्थानांतरण अन्यत्र करके और डीएलबी में कोई अनुभवी अधिकारी को लगाया जाना चाहिए।

सरकार ने कोई फैसला तुरंत नहीं लिया तो इस अंधेरे का नुकसान निश्चित रूप से होने की संभावना रहेगी।