कैप्टन हुए पूर्व ‘ ‘, अब आगे…..

कैप्टन ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा। पंजाब में बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल रही है। अटकलें हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह आज मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी दोनों से इस्तीफा देने जा रहे हैं। सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक अमरिंदर ने इसकी घोषणा अपने समर्थक विधायकों के साथ बैठक में की है। कांग्रेस आलाकमान के आदेश पर आज शाम 5 बजे विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में विधायक अपना नया नेता चुन सकते हैं। 

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ :

राजनीति में विकल्प कभी भी विलुप्त नहीं होते। भविष्य में क्या करना है यह सब आपके हाथ में है। मैंने अपने विकल्प खुले रखे हैं। मेरी अगली रणनीति मैं अपने पुराने साथियों एवं समर्थकों के साथ मिल कर तय करूंगा”। राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद पत्रकारों के समूह के सामने कैप्टन ने अपने विचार रखे।

40 असंतुष्ट विधायकों के कॉंग्रेस आलाकमान को लिखे पत्र के पश्चात कल पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने अचानक ही विधायक दल की बैठक बुला ली थी। इससे आहत कैप्टन ने जब कॉंग्रेस अलाकमान सोनिया गांधी से शिकायत की तो आलाकमान द्वारा ऊना इस्तीफा मांग लिया गया। अमरेन्द्र सिंह ने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। राजभवन से बाहर आते हुए कैप्टन आहत तो थे परंतु निराश बिलकुल नहीं। उनके मन में अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर कुछ तो चल रहा था जिसका उन्होने अपने सम्बोधन में भी ज़िक्र किया

आज की इस घटना की नींव बहुत साल पहले ही रखी जा चुकी थी। कैप्टन ने प्रदेश की बागडोर तब संभाली जब कॉंग्रेस की ज़मीन हर तरफ ऊखड़ चुकी थी। देश भर में मोदी लहर थी और भाजपा एक के बाद एक राज्य जीतती जा रही थी। ऐसे में कैप्टन ने 2017 में प्रदेश कॉंग्रेस में एक नयी जान फूंकी। यह वह समय था जब कैप्टन की तूती बोलने लगी थी। पंजाब में कैप्टन ही कॉंग्रेस का पर्याय बन चुके थे। सूत्रों की मानें तो कॉंग्रेस के प्रथम परिवार को कैप्टन से डर लगने लगा था। पार्टी की बन्दिशों से मुक्त कप्तान अपनी मर्ज़ी के मालिक थे। ऐसे में कॉंग्रेस के प्रथम परिवार को नवजोत सिंह सिद्धू में आशा की किरण दिखाई पड़ी।

पंजाब में अपने आकाओं द्वारा हासिल कवच – कुंडल के कारण सिद्धू कैप्टन को उनही की ज़ुबान में जवाब देने लगे, बल्कि अधिक कठोरता से। सिद्धू ने मानो कैप्टन के खिलाफ एक जंग ही छेड़ दी थी। कई मौकों पर सिद्धू की उच्छृंखल ब्यानबाजी से आहत कैप्टन ने शीर्ष परिवार को गुहार भी लगाई। परंतु सिद्ध को तो इस शीर्ष परिवार ही ने प्रेषित किया था। सिद्धू की बढ़ती मनमानियाँ और आहात होते कैप्टन में ज़बान जंग तेज़ हो गयी जिसमें कैप्टन ने अपनी उम्र ओहदे और अपने संस्कारों का परिचय दिया।

पिछले कुछ महीनों में सिद्धू और कैप्टन से असंतुष्ट विधायकों ने खेमेबंदी कर ली थी। बार बार किए जा रहे आघातों से कैप्टन कई बार तो बच निकले पर उन्होने अपनी कमियों को दूर नहीं किया। आज की बैठक कैप्टन के लापरवाह रवैये का ही नतीजा थी।

अब बात करते हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह के अगले सियासी कदम क्या होगा?

आम आदमी पार्टी :

कैप्टन के राजनैतिक सलहकार रहे प्रशांत किशोर कुछ राजनैतिक कारणों से कॉंग्रेस को छोड़ गए थे। प्रशांत किशोर ने कॉंग्रेस के लिए अपनी सेवाएँ देनी बंद कर दीं थी लेकिन उनकी कैप्टन के साथ दोस्ती जस की तस है। अभी हाल ही में पता लगा है की प्रशांत किशोर आने वाले पंजाब चुनावों में आआपा के लिए राजनैतिक सलाहकार का काम संभालेंगे। तो क्या यह समझा जाये की कैप्टन अपना रुतबा रसूख पंजाब में आआपा को स्थापित करने में लगा देंगे? अभी यह कयास भर है। दूसरी ओर एक आलाकमान से आहत क्या कैप्टन दूसरे आलाकमान के लिए काम करेंगे? कहाँ कैप्टन का 52 साल का एक शानदार राजनैतिक जीवन और कहाँ आआपा की कॉंग्रेस जैसी ही अपरिपक्व राजनीति। आसार कम ही हैं।

भाजपा :

कैप्टन के लिए भाजपा एक बड़ा और शानदार विकल्प है। प्रधान मंत्री मोदी के साथ कैप्टन का समंजस्य बहुत बढ़िया है। केंद्र की सभी जनहित योजनाओं को कैप्टन ने पंजाब में यथावत लागू किया था। सीएए पर भी कैप्टन का केन्द्र के साथ पार्टी लाइन से हट कर दृढ़ता से खड़े होना भी दर्शाता है कि कैप्टन ने एक परिपक्व राजनेता और प्रशासक होने का परिचय दिया। कई मामलों में कैप्टन ने केंद्र से सामंजस्य बना कर भी कॉंग्रेस के शीर्ष परिवार की दुश्मनी मोल ली है। लेकिन विपक्ष भाजपा का किसान विरोधी चेहरा बनाने में सफल रही है। हालांकि आम जन इस विचार के हैं कि किसान आंदोलन को कॉंग्रेस और आम आदमी पार्टी का समर्थन खुले तौर पर प्राप्त है। लेकिन किसान विरोधी ठप्पे के कारण कैप्टन चाह कर भी भाजपा के साथ नहीं जा सकते।

अब आखिरी विकल्प कैप्टन अपनी पार्टी खड़ी करें। क्या वाई 6 महीनों में यह संभव है???