हटाये जाने से पहले गिलानी ने दिया हुर्रियत से इस्तीफा
जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा दे दिया है. गिलानी एक ऑडियो क्लिप जारी कर कहा है कि उन्होंने अपने फैसले के बारे में सभी को जानकारी दे दी है और जम्मू-कश्मीर में मौजूदा हालात को देखते हुए ही उन्होंने यह कदम उठाया है. हालांकि गिलानी ने ऑडियो क्लिप के अलावा दो पन्नों का एक पत्र भी लिखा है.
जम्मू(ब्यूरो) – 29 जून:
91 साल के अलगाववादी नेता सैय्यद अली गिलानी घाटी के कई सारे अलगाववादी विद्रोही राजनीतिक समूहों के गठजोड़ ‘हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस’ से अलग हो गए हैं.
सोमवार को सोशल मीडिया पर जारी 47 सेकेंड के एक ऑडियो क्लिप में गिलानी ने कहा, “हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस के अंदर बने हुए हालात के कारण मैं पूरी तरह से इससे अलग होता हूं.”
हुर्रियत नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम लिखे विस्तृत पत्र में गिलानी ने इस बात का खंडन किया है कि वह सरकार की सख़्त नीति या फिर अपनी ख़राब सेहत के कारण अलग हो रहे हैं.
उन्होंने लिखा है, “ख़राब सेहत और पाबंदियों के बावजूद मैंने कई तरीक़ों से आप तक पहुंचने की कोशिश की मगर आप में से कोई उपलब्ध नहीं था. जब आपको लगा कि आपकी जवाबदेही तय की जाएगी और फंड के दुरुपयोग पर सवाल उठेंगे तो आपने खुलकर नेतृत्व के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी.”
गिलानी में ये बातें उस मीटिंग को लेकर कही हैं जिसे कथित रूप से उन्हें हुर्रियत प्रमुख के पद से हटाने के लिए बुलाया गया था.
गिलानी ने माना कि हुर्रियत के अंदर भारत के क़दमों का विरोध करने की इच्छाशक्ति की कमी थी और अन्य बुरे कामों को ‘आंदोलन के व्यापक हित’ के नाम पर नज़रअंदाज़ कर दिया गया.
लंबे पत्र में गिलानी ने कश्मीर में भारत सरकार के विरोध को जारी रखने और हुर्रियत छोड़ने के बाद भी अपने लोगों का नेतृत्व करने का संकल्प जताया है.
15 साल तक रहे विधायक
गिलानी 15 सालों तक पूर्व जम्मू कश्मीर राज्य की 87 सदस्यों वाली विधानसभा के सदस्य रहे थे. वह जमात-ए-इस्लामी का प्रतिनिधित्व करते थे जिसे अब प्रतिबंधित कर दिया गया है. उन्होंने 1989 में सशस्त्र संघर्ष शुरू होने के दौरान अन्य चार जमात नेताओं के साथ इस्तीफ़ा दे दिया था.
जानिए क्या है हुर्रियत कॉन्फ्रेन्स
1993 में 20 से अधिक धार्मिक और राजनीतिक पार्टियां ‘ऑल पार्टीज़ हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ के बैनर तले एकत्रित हुईं और 19 साल के मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ इससे संस्थापक चेयरमैन बने. बाद में गिलानी को हुर्रियत का चेयरमैन चुना गया.
26 अलगाववादी नेताओं ने मिलकर 9 मार्च 1993 को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन किया था। इसका गठन कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा और अलगाववादियों की सियासत को एक मंच देने के मकसद से किया गया था। इस कॉन्फ्रेंस में 6 लोगों की एक कार्यकारी समिति थी, जिसका फैसला अंतिम माना जाता था। बाद में सैयद आली गिलानी ने कुछ मतभेदों के चलते हुर्रियत का एक अलग गुट बना लिया था। इस तरह से हुर्रियत दो गुटों में बंट गई।
पाकिस्तान के सैन्य शासक रहे जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए चार बिंदुओं वाला फॉर्मूला सुझाया था और अलगाववादियों को भारत से बात करने के लिए प्रोत्साहित किया था. गिलानी और उनके समर्थकों ने हुर्रियत से अलग होकर 2003 में एक अलग संगठन बना लिया था. वह आजीवन हुर्रियत (गिलानी) के चेयरमैन चुन लिए गए थे.
दोनों धड़ों के बीच तनाव भरे रिश्ते बने रहे थे क्योंकि मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ के नेतृत्व वाला धड़ा भारत के साथ संवाद का पक्षधर था और कश्मीर में चुनाव करवाने को लेकर भी उनका रवैया नरम था. मगर गिलानी का धड़ा संयुक्त राष्ट्र द्वारा जनमतसंग्रह करवाए जाने से पहले किसी भी तरह के द्विपक्षीय संवाद और चुनाव का विरोध करता था.