ममता का सत्ताग्रह
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सबसे पहले ये समझिए कि इस सीबीआई vs ममता विवाद की जड़ क्या है ? आपको पश्चिम बंगाल के सारदा और Rose Valley घोटाले याद होंगे, जिनमें ममता बनर्जी की पार्टी के कई नेता फंसे हुए हैं. ये घोटाले करीब 19 हज़ार 500 करोड़ रुपये के हैं. इसमें 17 लाख से भी ज़्यादा लोगों का पैसा फंसा हुआ है.
इन्हीं घोटालों के संबंध में CBI कोलकाता के मौजूदा पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करना चाहती है. इसके लिए राजीव कुमार को कई बार Summon किया गया, लेकिन वो नहीं आए. कल शाम को CBI के अफसरों की एक टीम राजीव कुमार से पूछताछ करने के लिए उनके घर जाना चाहती थी. लेकिन कोलकाता पुलिस ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया. काफी देर तक ये ड्रामा होता रहा. इसके बाद कोलकाता पुलिस, CBI के करीब 25 अधिकारियों को लेकर थाने चली गई. और दो घंटे तक उन्हें हिरासत में रखा.
इसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने CBI के खिलाफ कल रात 9 बजे से कोलकाता में धरना शुरू कर दिया. और इस धरने में उनके साथ कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार भी शामिल हैं. ये धरना इस वक़्त भी जारी है. ममता बनर्जी की उम्र 64 वर्ष है, लेकिन इस उम्र में भी अपने राजनीतिक धरने के लिए उनके पास ऊर्जा की कोई कमी नहीं है.
ममता बनर्जी ने पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक रंग दे दिया. और ये आरोप लगाए कि CBI केन्द्र सरकार के इशारे पर काम कर रही है. और देश का संघीय ढांचा खतरे में है. इसके साथ ही ममता बनर्जी के इस धरने के खिलाफ देश भर की विपक्षी पार्टियां इक्कठी हो गईँ. ममता बनर्जी के धरने को चंद्रबाबू नायडू, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव समेत बहुत से नेताओं का समर्थन मिल गया है. राहुल गांधी, पहले ममता बनर्जी का विरोध करते थे, उन पर सवाल उठाते थे. लेकिन अब उन्होंने यू-टर्न ले लिया है. आगे हम इस पर भी विस्तार से बात करेंगे.
एक मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी के जितने भी काम थे, वो आज उन्होंने इसी धरना स्थल से किए. ममता बनर्जी ने इसी धरना स्थल पर कैबिनेट की मीटिंग की, किसानों की रैली को संबोधित किया और पुलिसवालों को कुछ अवॉर्ड्स भी दिए. यानी ममता बनर्जी ने पूरी तैयारी की हुई है और वो इस धरने को एक तरह की राजनीतिक Vacation बनाना चाहती हैं?
हालांकि राजनीतिक लाभ के लिए देश की संस्थाओं की हत्या करना बहुत ख़तरनाक है. और जब भी ऐसा होता है, तो देश विखंडित हो जाता है. और देश के छोटे छोटे राज्य भी.. संविधान के नैतिक दायित्वों का उल्लंघन करने लगते हैं. ज़रा सोचिए कि क्या अब भारत में वो समय आ गया है जब पश्चिम बंगाल जाने के लिए वीज़ा लगेगा? वहाँ ना तो भारत का पासपोर्ट चलेगा और न ही भारत की नागरिकता मान्य होगी ? अगर यही फॉर्मूला देश के दूसरे राज्यों में चल निकला, तो कुछ दिन बाद मायावती,लालू यादव और चंद्रबाबू नायडू सहित विपक्षी दलों के तमाम नेता अपना अलग देश बना लेंगे. और वो परिस्थिति भारत की अखंडता के लिए शुभ नहीं होगी.
बड़ा सवाल ये है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI को किसी राज्य में पूछताछ और कार्रवाई करने का अधिकार है या नहीं ? अगर किसी राज्य में कोई घोटाला हुआ है, तो वहां जांच के लिए CBI नहीं जाएगी तो कौन जाएगा? क्या ममता बनर्जी अपने नेताओं और पुलिस अधिकारियों पर लगे आरोपों की जांच, अपनी ही पुलिस से करवाना चाहती हैं? वैसे CBI को ये जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सौंपी गई थी, तो क्या ये भी मान लिया जाए कि ममता बनर्जी को इस देश के सुप्रीम कोर्ट पर भी विश्वास नहीं है?
अगर कल को ममता बनर्जी की तरह ही देश के हर राज्य का मुख्यमंत्री ये कह दे कि उसे CBI पर विश्वास नहीं है और अगर CBI उसके राज्य में कोई कार्रवाई करेगी, तो वो CBI के अफसरों को गिरफ्तार करवा देगा, तो फिर क्या होगा? क्या ये देश के संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी? इस तरह तो मायावती, लालू यादव और चंद्रबाबू नायडू सहित विपक्षी दलों के तमाम नेता, अपनी मनमानी करके.. एक तरह से अपना अलग देश बना लेंगे. और वो परिस्थिति भारत की अखंडता के लिए शुभ नहीं होगी.
CBI के अधिकारियों को हिरासत में लेने के पीछे कोलकाता पुलिस का पहला तर्क ये था कि इन अधिकारियों के पास कोई वॉरंट या कागज़ नहीं थे. जबकि हमारे पास CBI की वो पत्र मौजूद है, जो पुलिस कमिश्नर के घर जाने से पहले CBI के अधिकारियों ने पुलिस को लिखा था.
ये पत्र CBI ने कल कोलकाता पुलिस को लिखी थी. इस चिट्ठी में CBI ने सुरक्षा की मांग की है. CBI ने लिखा है कि उसे कोलकाता पुलिस के कमिश्नर राजीव कुमार के घर पर एक Secret Operation करना है, इसलिए उन्हें सुरक्षा दी जाए. ये चिट्ठी CBI के पुलिस इंस्पेक्टर प्रसेनजीत मुखर्जी की तरफ से लिखी गई है.
अब आपको ये बताते हैं कि कोलकाता पुलिस ने CBI के अधिकारियों के साथ कैसा व्यवहार किया ? आज पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है और इस रिपोर्ट में बहुत बड़े खुलासे हुए हैं. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पश्चिम बंगाल पुलिस और राज्य सरकार ने कानून व्यवस्था की गंभीर समस्या पैदा कर दी है. रिपोर्ट में लिखा है कि ना सिर्फ CBI के अधिकारियों को रोका गया, बल्कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने उनके मोबाइल फोन और कागज़ात भी छीन लिए. CBI के बहुत से अधिकारियों, और यहां तक कि महिला अधिकारियों के साथ भी बुरा व्यवहार किया गया. और उन्हें थाने में अवैध हिरासत में रखा गया.
रिपोर्ट में लिखा है कि ना सिर्फ CBI के अफसरों को बल्कि CBI के Joint डायरेक्टर पंकज श्रीवास्तव के परिवार को भी परेशान किया गया. पश्चिम बंगाल पुलिस ने पंकज श्रीवास्तव के घर की घेराबंदी कर दी थी और इस दौरान उनकी पत्नी और बेटी को परेशान किया गया. हमने कल रात से अब तक के इस घटनाक्रम पर एक रिपोर्ट तैयार की है. ये एक हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामा था. इसके हर एक पहलू के बारे में आपको पता होना चाहिए.
अब आपको उस व्यक्ति के बारे में बताते हैं, जिसकी वजह से पश्चिम बंगाल में राजनीति की आग लगी हुई है. और ममता बनर्जी और CBI के बीच ये पूरा हंगामा हुआ है. ये व्यक्ति हैं कोलकाता पुलिस के कमिश्नर राजीव कुमार जो ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठे हुए हैं. आपके मन में भी ये सवाल ज़रूर आ रहा होगा कि इन घोटालों में राजीव कुमार की क्या भूमिका है?
राजीव कुमार की उम्र 53 वर्ष है. वो 1989 बैच के IPS अफसर हैं. IPS का मतलब होता है – Indian Police services. यानी भारतीय पुलिस सेवा. लेकिन उनका जो आचरण है वो इससे मेल नहीं खाता. वो ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठकर भारत की नहीं बल्कि ममता बनर्जी की सेवा कर रहे हैं.
राजीव कुमार चिट फंड घोटालों के लिए राज्य सरकार की तरफ से बनाई गई Special Investigation Team यानी SIT के प्रमुख थे. उन्होंने 2013 में सारदा और Rose Valley घोटाले की जांच की थी. लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने ये दोनों मामले CBI को सौंप दिए. बाद में CBI ने आरोप लगाया कि राजीव कुमार ने कई Documents, Pen Drive और जांच से जुड़े Mobile Phones उसे नहीं सौंपे. इस बारे में राजीव कुमार को कई बार समन भेजा गया लेकिन वो CBI के सामने पेश नहीं हुए. CBI के मुताबिक इन्हीं सबूतों के सिलसिले में उसके अधिकारी रविवार रात राजीव कुमार के आवास पर गए थे.
इस पूरे घटनाक्रम के पीछे दो बड़े घोटाले छिपे हुए हैं. जिनका नाम है सारदा चिटफंड घोटाला और Rose Valley घोटाला. और जब तक आपको इन घोटालों की जानकारी नहीं होगी, आपको इस केस की गंभीरता का पता नहीं चलेगा. आप ये नहीं समझ पाएंगे कि ममता बनर्जी किस तरह भ्रष्टाचारियों को बचा रही हैं? पूरे देश में ममता बनर्जी की राजनीति की बात हो रही है. Mamta vs Modi जैसी राजनीतिक शब्दावली का प्रयोग हो रहा है. लेकिन कोई भी उन लोगों की बात नहीं कर रहा जिन्होंने घोटाले में अपना सब कुछ गंवा दिया.
सारदा घोटाले में देश के कई राज्यों के लाखों गरीबों के जीवन भर की कमाई, कुछ ताकतवर लोगों ने लूट ली, और अपनी जेबें भर लीं. गरीबों की कमाई से इन ताकतवर लोगों ने जमकर अय्याशी की…टीवी चैनल खोले…बेहिसाब पैसा जुटाया….और गरीबों को धोखा दे दिया. इसमें सत्ता के तंत्र से लेकर मीडिया तक, सब शामिल रहे.
सारदा ग्रुप ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा सहित देश के कई राज्यों में करीब 17 लाख लोगों से करोड़ों रुपये जुटाए. Ponzi Schemes के ज़रिए लोगों को बड़े मुनाफे का लालच दिया गया और बाद में इन योजनाओं के Agents ने दुकानें बंद कर ली. 2013 में सारदा ग्रुप का घोटाला सामने आया और ये घोटाला करीब ढाई हज़ार करोड़ रुपये का बताया गया. सारदा ग्रुप के 17 लाख निवेशक थे, और घोटाला सामने आने के बाद पूरे बंगाल में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. यहां तक कि सारदा ग्रुप की स्कीम में पैसा लगाने वाले करीब 311 एजेंटों और लोगों ने खुदकुशी भी कर ली. वर्ष 2013 में घोटाला सामने आने के बाद इसके मुख्य आरोपी और सारदा ग्रुप के चेयरमैन सुदीप्तो सेन को गिरफ्तार किया गया.
सारदा ग्रुप के ज़रिए जिन लोगों ने अपनी जेबें भरीं और जिनका नाम इस घोटाले में आया…उनमें से कई मंत्री और सांसद भी थे, जिन्हें सीबीआई ने गिरफ्तार भी किया था लेकिन इनमें से ज़्यादातर आरोपी ज़मानत पर बाहर आ चुके हैं. इस लिस्ट में तृणमूल कांग्रेस के निलंबित सांसद कुणाल घोष, ममता बनर्जी सरकार के पूर्व परिवहन मंत्री मदन मित्रा, तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद श्रृंजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व डीजीपी और तृणमूल कांग्रेस के नेता रजत मजूमदार और तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पॉल हैं. इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के नेता मतंग सिंह भी जेल से बाहर आ चुके हैं . यानी इस घोटाले में बहुत बड़े बड़े लोगों के नाम शामिल हैं. अब आपको Rose Valley घोटाले के बारे में बताते हैं.
ये घोटाला भी सारदा घोटाला की तरह ही हुआ था. ये करीब 17 हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला है. इस घोटाले में लोगों से किश्तों में पैसे लिए जा रहे थे. और उन्हें ये भरोसा दिया जा रहा था कि उन्हें मकान दिए जाएंगे और विदेश यात्राएं करवाई जाएंगी. निवेशकों के पास ये भी विकल्प था कि अगर वो चाहें तो सारी किश्त जमा होने के बाद अच्छे खासे ब्याज़ पर अपने पैसे वापस भी ले सकते हैं. इसका मास्टरमाइंड था गौतम कुंडू जो इस Rose Valley Group का चेयरमैन था. लेकिन पैसा जमा होने के बाद लोगों को ना तो पैसे मिले और ना ही विदेश यात्राएं. केन्द्र सरकार ने दखल दिया. और निवेशकों को उनका पैसा लौटाने का आदेश दिया. लेकिन इस स्कीम में पैसा लगाने वाले लोगों को उनका पैसा आज तक वापस नहीं मिला.
हमने आज ऐसे बहुत से लोगों से बात की है, जिन्हें आज भी अपना पैसा वापस मिलने की आस है. सबसे बड़ा विरोधाभास ये है कि इस पूरे मामले में ममता बनर्जी, सारदा और Rose Valley घोटाले के पीड़ितों के साथ अन्याय कर रही हैं. CBI इस मामले के दोषियों पर कार्रवाई करना चाहती है. लेकिन ममता बनर्जी CBI की कार्रवाई के खिलाफ़ ही धरना दे रही हैं और इसे सत्याग्रह बता रही हैं. जबकि असलियत में ये सत्याग्रह नहीं, बल्कि सत्ताग्रह है.