शिवालिक क्षेत्र पर लागू अधिनियम उद्योग विरोधी: विजय बंसल

फोटो: राजकुमार


अखिल भारतीय उद्योग व्यापार सुरक्षा मंच जिला पंचकूला इकाई का हुआ गठन 

कार्यकारिणी की पहली लिस्ट की जारी, जिले के उद्योगपति व व्यापारियों को मिली एहम जिम्मेवारियां

बीमार उद्योगों पर बात करते हुए विजय बंसल ने कहा कि शिवालिक क्षेत्र पर लागू अधिनियम उद्योग विरोधी हैं


अखिल भारतीय उद्योग व्यापार सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व हरियाणा प्रभारी विजय बंसल की स्वीकृति से तथा प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप अग्रवाल की सहमति से जिला पंचकूला इकाई का गठन कर जिले के व्यापारी व उद्योगपतियों को एहम जिम्मेवारियां सौपी गई।इससे पूर्व संगठन की कार्यकारिणी की बैठक भी ली गई जिसमें व्यापारियों व उद्योगपतियों के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाओं के बारे विचार विमर्श किया गया।जिले के उद्योगपति-व्यापारियों के हितों की सुरक्षा के लिए यह संगठन राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासरत है।पंचकूला के भगवान दास मित्तल को जिला अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौपी गई है।

विजय बन्सल ने प्रेस वार्ता के दौरान अपने सम्बोधन मे बताया कि इस क्षेत्र में व्यापार व उद्योग दोनों खत्म हो चुका है। यहां दो बड़े उद्योग थे एचएमटी व एसीसी। एसीसी को 1997 में व एचएमटी का ट्रेक्टर प्लांट बन्द करदिया तथा मशीन टूल्स बन्द होने के कगार पर है जिससे कालका-पिंजोर व आसपास का व्यापार खत्म हो गया है। भाजपा के शासन में व्यापारी व उद्योगपति त्राहि त्राहि कर रहा है जिसके लिए अखिल भारतीय उद्योग व्यापार सुरक्षा मंच आवाज उठाने के लिए एक बेहतर रास्ता है। इस मंच के माध्यम से, राज्य व केंद्र सरकार से मांग की है कि जिला पंचकूला में कोई बड़ा उद्योग लगाया जाए, एचएमटी की खाली भूमि पर कोई उद्योग लगाया जाए आदि। इसके साथ ही शिवालिक क्षेत्र को औद्योगिक पैकेज देने के भी मांग करी गई। बंसल ने भाजपा के चार वर्ष के कार्यकाल को व्यापारी विरोधी बताया क्योंकि नोटबन्दी, जीएसटी की मार से व्यापारी व उद्योगपति उभर नही पाया है।

बीमार उद्योगों पर बात करते हुए विजय बंसल ने कहा कि शिवालिक क्षेत्र पर लागू अधिनियम उद्योग विरोधी हैं। जबकि कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बद्दी में ये समस्या नहीं है इसलिए उद्योगपति हरियाणा में अपनी इकाई लगाने की बजाय हिमाचल में निवेश करते हैं जिससे कि प्रदेश को काफी नुक्सान होता है।

एच एम टी को ही लें तो करोड़ों की मशीनें बेकार पड़ी है सरकार एच एम टी को दोबारा शुरू करने की बजाय सेब मंडी आदि पर ध्यान दे रही है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है

प्रदीप अग्रवाल, प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि उद्योग व्यापार मंच ने हमेशा व्यापारी व उद्योगपतियों की आवाज को उठाया है।प्रदेश में व्यापारी कल्याण बोर्ड का गठन, 2100 दुकानदारों को मुआवजा, दिवाली की समय दुकानदारों को मुआवजा दिलवाने जैसे व्यापारी व उद्योगपतियों के हित में काम करवाए है।

भगवान दास मित्तल ने पत्रकारों से रूबरू होते हुए बताया कि संगठन को जिले स्तर पर मजबूत किया जा रहा है।ब्लाक स्तर पर अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गए है,जिले की कार्यकारिणी में हर कोने से व्यापारियों व उद्योगपतियो को जिम्मेवारियां सौप कर मजबूत किया गया है।इसके साथ साथ आने वाले समय मे अन्य व्यापारी व उद्योगपति साथियो को भी साथ मे जोड़ा जाएगा।

विजय बन्सल ने बताया कि प्रदेश कार्यकारिणी में विस्तार करते हुए विजय अग्रवाल को प्रदेशउपाध्यक्ष,श्याम लाल मंगल को महासचिव,शमिंदर गर्ग संगठन सचिव,राज अग्रवाल प्रदेश मीडिया प्रभारी तथा जिले में यशपाल गर्ग,प्रमोद अग्रवाल,जय गोपाल गोयल,संजय बंसल,राजीव गुप्ता को जिला उपाध्यक्ष ,सुनीत सिंगला (मुख्यालय प्रभारी),सुरिंदर गोयल (मीडिया प्रभारी),राजेश गुप्ता ,प्रदीप गोयल,राकेश अग्रवाल टीनू,श्याम अग्रवाल,प्रवीण गर्ग को जिला महासचिव,अनिल अग्रवाल ,अविनाश गुप्ता,प्रदीप अग्रवाल,सुधीर सिंगला,अजय सिंगला (प्रवक्ता) को जिला सचिव,दीपक खोसला,मोती लाल,सतबीर गोयल को जिला संगठन सचिव,राजपाल गुप्ता को जिला वित्त सचिव ,नितेश मित्तल को जिला कानूनी सलाहकार,वेद प्रकाश गर्ग को कालका विधानसभा अध्यक्ष , नरेश मंगला को कालका ब्लाक अध्यक्ष , राजिंदर हंगोला को रायपुरानी ब्लाक अध्यक्ष व ईश्वर मंगला को तुंरन्त प्रभाव से बरवाला ब्लाक अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।समस्त कार्यकारिणी बैठक में मौजूद रही।

09 दिसंबर को राम मंदिर निर्माण के लिए हुंकार भरेंगे लाखों रामभक्त

09 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित धर्म सभा में भगवा पताका के साथ लाखों कार्यकर्ताओं के पहुुंचने का लक्ष्य बना है। 1528 से लेकर 2018 तक 77 बार हिंदू समाज मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष कर चुका है। इस दिशा में रामलीला मैदान में लाखों कार्यकर्ता अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करेंगे। किसी पार्टी का झंडा नहीं होगा। इस रैली को सफल बनाने के लिए संत समाज के साथ पूरा संघ परिवार तैयारी में जुटा हुआ है। इस रामभक्त महासम्मेलन में लाखों रामभक्त 09 दिसंबर को रामलीला मैदान पहुँचकर राम मंदिर निर्माण का संकल्प लेंगे। सिर्फ भारत माता, भारत माता की जय एवं जय श्रीराम के जयकारे सुनाई देंगे।

सोशल मीडिया के प्लेयर्स ने बढ़ाए दाम, हो रही धन की बरसात…

 

आजकल डिजिटल का जमाना है। शहरों से लेकर गांवों तक स्मार्टफोन की उपलब्धता आसान होने से इंटरनेट यूज करने वाले लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। सभी तरह का कंटेंट इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है। ऐसे में इन दिनों फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। अपने प्लेटफॉर्म पर यूजर्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए ये कंपनियां भी अब इस मौके को भुनाने में जुट गई हैँ।

अंग्रेजी अखबार ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ में छपी एक खबर के मुताबिक, विडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म यूट्यूब ने अपने होमपेज पर दिए जाने वाले एक दिन के विज्ञापन रेट 70 लाख रुपए से बढ़ाकर 1.4 करोड़ रुपए करने की घोषणा की है।

बताया जाता है कि मंथली एक्टिव यूजर्स (MAUs) की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि के बाद यूट्यूब ने यह कदम उठाया है। आंकड़ों के अनुसार, यूट्यूब के मंथली एक्टिव यूजर्स 250 मिलियन, फेसबुक के 220 मिलियन और इंस्टाग्राम के 68 मिलियन हो चुके हैं, जबकि ट्विटर की बात करें तो यह आंकड़ा 30.4 मिलियन तक पहुंच चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, यूट्यूब के बाद अब फेसबुक और ट्विटर भी अपनी विज्ञापन दरें बढ़ा रहे हैं।

विशेषज्ञों के हवाले से अखबार ने कहा है कि वर्ष 2019 में भी फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम अपनी विज्ञापन दरों में सालाना 20 से 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी करना जारी रखेंगे, क्योंकि हर साल इन प्लेटफॉर्म्स पर यूजर्स पहले के मुकाबले ज्यादा समय बिताने लग जाते हैं। हालांकि, फेसबुक ने विज्ञापन की दरों में बढ़ोतरी से इनकार किया है।

Dentsu Aegis Network-e4m Digital की रिपोर्ट के अनुसार, इस समय ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री 55,960 करोड़ रुपए की इंडस्ट्री बन चुकी है और 32 प्रतिशत ‘compound annual growth rate’ (CAGR) के स�

Media Ecosystem: The wall falls down


बहुत से छोटे मँझोले ओर बड़े व्यापारियों  को अपनि वित्तीय स्थितियों के कारण अपने मार्केटिंग के तरीकोण का चयन करने में दिक्कत आती है वह यह निर्णय नहीं कर पाते की उनके लिए विज्ञापन का कौन सा माध्यम ठीक रहेगा?

किस माध्यम से उनके द्वारा निवेशित रूपये की पूरी वसूली हो सकेगी?

व्यापारी अपने व्यापार के लिए किस माध्यम पर भरोसा करे?

उत्तर हैरान कर देगा।


इस बात में कोई शक नहीं है कि आज के समय में ब्रैंड्स के लिए डिजिटल बहुत जरूरी हो गया है, हालांकि ऐडवर्टाइजर्स अभी भी टेलिविजन को प्राथमिकता दे रहे हैं और यह उनकी पहली पसंद बना हुआ है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ऐडवर्टाइजर्स और टेलिविजन के बीच का संबंध और मजबूत होता जा रहा है? क्या टेलिविजन आगे भी ऐडवर्टाइजर्स की पहली पसंद बना रहेगा? क्या डिजिटल इस स्थिति को बदल पाएगा? इन सब बातों को लेकर हमने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की कि आखिर आने वाले समय में क्या हालात रहने वाले हैं?

डिजिटल का जमाना है। पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो ऐडवर्टाइजर्स भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं और इसे काफी पसंद भी कर रहे हैं। जितने भी बड़े ब्रैंड हैं, लगभग सभी ऑनलाइन प्लेटफॉंर्म पर मौजूद हैं और अब हालात ये हैं कि डिजिटल के बिना कोई भी मार्केट स्ट्रैटजी पूरी नहीं मानी जाती है।

‘केपीएमजी’ की रिपोर्ट ‘Media Ecosystem: The wall falls down’ के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018 (FY18) में डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग के रेवेन्यू में 35 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज की गई है और यह 116000 करोड़ रुपए हो गई है। जबकि टेलिविजन की ग्रोथ वित्तीय वर्ष 2018 में इसके मुकाबले कम रही है और यह 9.5 प्रतिशत के हिसाब से बढ़कर 65200 रुपए रही है।

इस बारे में ‘एचयूएल’ (HUL)  के सीईओ और एमडी संजीव मेहता का कहना है कि टेलिविजन आज भी प्रासंगिक है और आने वाले कई दशकों तक देश में इसका प्रभाव यूं ही बना रहेगा।

मेहता का कहना है, ‘आज टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो गई है कि हम डिजिटल कम्युनिकेशंस के साथ अपने टार्गेट को प्लान कर सकते हैं। हालांकि कुछ चीजें कभी नहीं बदलने वाली हैं। मार्केट के फंडामेंटल यानी बेसिक बातें हमेशा यही बने रहेंगे। मार्केटिंग में कंज्यूमर हमेशा ही मुख्य रहेगा। नए जमाने का कंटेंट हमें नए तरीके से स्टोरीटैलिंग की कला सिखाएगा।’

वहीं इस बारे में ‘पारले प्रॉडक्ट्स’ (Parle products) के कैटगरी हेड मयंक शाह का कहना है कि चूंकि टेलिविजन की पहुंच बहुत ज्यादा है, इसलिए यह ब्रैड्स के लिए पसंदीदा माध्यम बना हुआ है। उनका मानना है कि ब्रैंड्स के लिए टेलिविजन पर विज्ञापन करना ज्यादा उचित है क्योंकि टीवी की पहुंच ज्यादा है।

शाह का कहना है, ‘इस बात में कोई शक नहीं कि डिजिटल काफी तेजी से ग्रोथ कर रहा है और यह काफी महत्वपूर्ण माध्यम भी बना हुआ है। लेकिन जब बात इसकी पहुंच की आती है, खासकर एफएमसीजी और दैनिक जरूरतें की चीजों के ब्रैंड के बारे में तो टीवी का प्रदर्शन बेहतर है।’ उनका कहना है कि टेलिविजन कुछ समय के लिए डिजिटल पर अपनी बढ़त बनाए रखेगा। डिजिटल उन ब्रैंड्स के लिए एक प्लेटफॉर्म है जो आडियंस के खास वर्ग को टार्गेट करना चाहते हैं।

इस बारे में ‘मैडिसन वर्ल्‍ड’ (Madison World) के सीओओ (Buying) नील कमल शर्मा का कहना है कि पिछले वर्ष के मुकाबले एक प्रतिशत की गिरावट के बावजूद ऐडवर्टाइजिंग के चार्ट में टेलिविजन अभी भी टॉप पर बना हुआ है।

नील कमल शर्मा का कहना है, ‘यह सही है कि देश में डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग का रेवेन्यू काफी बढ़ा है और यह ट्रेंड अभी भी जारी है। लेकिन पिछले वर्ष के मुकाबले एक प्रतिशत की गिरावट के बावजूद टेलिविजन का ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्यू अभी भी सबसे ज्यादा है।’

शर्मा का कहना है, ‘चूंकि कुल ऐडवर्टाइजिंग में 12 प्रतिशत और डिजिटल में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, ऐसे में टीवी और प्रिंट जैसे स्थापित माध्यमों के शेयर में भविष्य में कमी आने की संभावना है। लेकिन टेलिविजन की प्रासंगिकता बनी रहेगी। चूंकि ऐडवर्टाइजिंग कैटेगरी में टीवी सबसे टॉप पर है, इसलिए यह एफएमसीजी प्लेयर्स की पहली पसंद बना हुआ है। इसके अलावा स्मार्ट फोन, ट्रैवल और ओटीटी प्लेटफॉर्म भी अपनी ग्रोथ के लिए टीवी का इस्तेमाल करते हैं।’

डिजिटल मीडिया की ग्रोथ में एफएमसीजी, टेलिकॉम, बीएफएसआई, रियल एस्टेट और ई-कॉमर्स जैसी कैटेगरी का काफी योगदान है। हालांकि इनमें से कुछ का ट्रेडिशनल मीडिया में भी काफी प्रभाव है। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर न्यूज, ऐंटरटेनमेंट और स्पोर्ट्स के कंटेंट का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। खासकर, युवा वर्ग इन दिनों ट्रेडिशनल मीडिया से दूर होता जा रहा है और यही कारण है कि एफएमसीजी और टेलिकॉम जैसी कैटेगरी भी बड़े पैमाने पर डिजिटल प्लेटफॉर्मस का इस्तेमाल कर रही हैं।

‘बजाज एलायंज लाइफ इंश्योरेंस’ (Bajaj Allianz Life Insurance) के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर चंद्रमोहन मेहरा का मानना है कि कम से कम तीन से पांच साल तक दोनों माध्यम सह-अस्तित्व में बने रहेंगे।

मेहरा का कहना है, ‘सबसे पहले मीडिया का सलेक्शन ऑब्जेक्ट के अनुसार करना है, टीवी और डिजिटल का चुनाव आपके काम पर निर्भर करता है। ब्रैंड्स के लिए इंटीग्रेटिड अप्रोच ज्यादा प्रभावी रहती है। टीवी पहुंच बढ़ाने और डिजिटल ब्रैंड को गहराई से जोड़ने के काम आता है।’

‘केपीएमजी’ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका जैसे मार्केट में व्यूअर्स टीवी से डिजिटल की ओर इसलिए मुड़ रहे हैं क्योंकि वहां पर डिजिटल का इंफ्रॉस्ट्रक्चर काफी मजबूत है और इसकी कम कीमत भी एक बड़ी वजह है। लेकिन, भारत में ग्रोथ और कीमत के मामले में टीवी काफी मजबूत स्थिति में है। इसके अलावा, डिजिटल का उतना इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। ऐसे में, लोगों का टीवी की तरफ झुकाव हो जाता है।

‘वॉयकॉम 18’ (Viacom 18) के रीजनल टीवी नेटवर्क के हेड रवीश कुमार के अनुसार, कंज्यूमर्स तक पहुंच के मामले में टीवी सबसे बड़ा और सस्ता माध्यम है।

उनका कहना है, ‘टीवी के दर्शकों को मापना काफी आसान है जबकि डिजिटल में इसके लिए काफी समय लगता है। हालांकि कंटेंट के मामले में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं लेकिन दोनों को एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि ब्रैंड्स के लिए टीवी पहली पसंद बना हुआ है।’

‘MullenLowe Lintas’ ग्रुप में ‘पाइंटनाइन लिंटास’ (PointNine Lintas) के नेशनल डॉयरेक्टर विधू सागर का मानना है कि अलग-अलग लोगों के लिए हमेशा अलग स्थिति होती है और सभी प्रकार के ऑडियंस के लिए सामान्य दृष्टिकोण लागू नहीं किया जा सकता है।

सागर का कहना है, ‘आज मीडिया की जो स्थिति है, उसमें आप पुराने दृष्टिकोण को नहीं अपना सकते हैं, क्योंकि समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। आज के समय में लॉन्च हो रहा कोई भी ब्रैंड टीवी और कई मामलों में प्रिंट के बिना कुछ नहीं कर सकता है।’

सागर का कहना है, ‘आप यदि बड़े पैमाने पर काम करना चाहते हैं तो आपको डिजिटल के साथ टीवी की जरूरत भी पड़ेगी। यदि आप अपने ब्रैंड के साथ कई अन्य पहलू सम्मान और विश्वसनीयता शामिल करना चाहते हैं तो आपको ब्रॉडकॉस्ट मीडिया के साथ जाना पड़ेगा।’

‘केपीएमजी’ की रिपोर्ट के अनुसार, देश में डिजिटल ऐडवर्टाइजमेंट मुख्य धारा में आ चुका है। वित्तीय वर्ष 2023 में डिजिटल पर विज्ञापन खर्च 40000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। वर्ष 2017 डिजिटल पर विज्ञापन खर्च का योगदान 86.2 बिलियन रुपए था और वर्ष 2023 तक सीएजीआर (CAGR)  ग्रोथ 30.9 तक बढ़ने का अनुमान है।

सागर का कहना है, ‘डिजिटल में तो काफी तेजी से वृद्धि हुई है लेकिन अधिकतर ऐडवर्टाइजर्स ने इस हिसाब से अपना बजट नहीं बढ़ाया है। इसलिए डिजिटल का रेवेन्यू दूसरे मीडिया से कटकर आ रहा है। यह रेडियो, सिनेमा और प्रिंट को प्रभावित कर रहा है।

मैगजींस लगभग समाप्ति की ओर हैं और कई जगह टेलिविजन भी प्रभावित हो रहा है। लेकिन टीवी की अपनी अलग बात है और कोई भी क्लाइंट अचानक से टीवी से हटकर एकदम से डिजिटल की ओर नहीं जाने वाला है।

इस समय भारतीय ओटीटी इंडस्ट्री ‘AVOD’ अथवा ‘freemium’ मॉडल पर काम कर रही है और ‘SVOD’ अभी आरंभिक अवस्था में है। टेल्को आधारित पेड सबस्क्रिप्शन के साथ 2-2.4 मिलियन सबस्क्राइबर्स सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स सबस्क्राइब कर रहे हैं। हालांकि ऐसे टेल्को आधारित सबस्क्रिप्शन में पिछले साल इजाफा हुआ है, लेकिन सीपीएम (CPM) रेट घटने से ऐडवर्टाइजमेंट रेवेन्यू को काफी चुनौती का सामना करना पड़ा है।

‘केपीएमजी’ के पार्टनर और हेड गिरीश मेनन का कहना है, ‘इस समय डिजिटल का सीपीएम कम है। इस वजह से भी डिजिटल के समक्ष काफी चुनौतियां हैं। प्रिंट में एक पेज के विज्ञापन के मुकाबले डिजिटल में काफी कम कमाई होती है। इसलिए सीपीएम बढ़ने से पहले आपको आरओआई (ROI) और मीजरमेंट की जरूरत होती है।’

‘केपीएमजी’ की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018 में भले ही टीवी की रफ्तार कम रही हो लेकिन उम्मीद है कि यह फिर वापसी करेगा और पिछले वर्षों की तरह फिर आगे बढ़ेगा।

बढ़ती पहुंच, विज्ञापन की बढ़ती मांग के कारण टीवी की सीएजीआर (CAGR) ग्रोथ 12.6 से होने की उम्मीद है।

Rupee dearer by fifty paisa against $


DF Bureau, Mombai:

The Indian rupee gained in the early trade on Thursday. It opened higher by 51 paise at 70.11 per dollar on Thursday versus against previous close 70.62.

Rupee strengthened against the US dollar and extended gains in the latter half of the session ahead of the important preliminary GDP number that was released from the US. In the last couple of sessions rally in domestic equities is also supporting the rupee with FIIs also turning net buyers after remaining sellers in September and October, said Motilal Oswal.

This month until now FIIs have poured in around USD 900 million of funds in equity and debt segment keeping the momentum positive for the currency. Today, USD-INR pair is expected to quote in the range of 70.20 and 70.80, it added.

Surjewala accuses BJP govt. of fradulant jugglery of GDP figures


Rajiv Kumar, vice chairman of NITI Aayog said the new series, based on the 2011-12 base year, is superior to the earlier one. 

P. Chidambaram criticized NITI Aayog’s revised GDP numbers, terming them a joke. 

“Resorting to malicious and fraudulent jugglery of GDP figures to hide the enormous body blow caused by them to India’s economy”: Surjewala


Sareeka Tewari V, Editor

Congress leader Randeep Singh Surjewala accused the government of “resorting to malicious and fraudulent jugglery of GDP figures to hide the enormous body blow caused by them to India’s economy”.
And Surjewala is right up to an extent.

Anticipating criticism of the numbers as they drastically scale down growth in the UPA era, Rajiv Kumar, vice chairman of NITI Aayog said the new series, based on the 2011-12 base year, is superior to the earlier one.

Senior Congress leader and former finance minister P. Chidambaram criticized NITI Aayog’s revised GDP numbers, terming them a joke.

“They are a bad joke. Actually, they are worse than a bad joke. The numbers are the result of a hatchet job,” Chidambaram said in a post on Twitter. He also questioned whether the National Statistical Commission had been disbanded as it did not calculate these numbers.
With general elections due next year, the Narendra Modi- led National Democratic Alliance government is likely to use the new data to claim that its management of the economy has been superior to that of the Congress-led United Progressive Alliance (UPA) when it seeks a second term.

“It is in complete sync with the UN system of national accounts. Any feeling around the new series that it is overestimating should completely be dispelled.” economic growth under the previous Congress-led coalition government was slower than estimated earlier and was never in double digits, according to the revised GDP numbers released by the government on Wednesday.

The new GDP data, pertaining to the years between 2005-06 and 2011-12, has sparked off a heated exchange between the Congress and the ruling Bharatiya Janata Party over the performance of the economy during their respective terms.

According to the back-series data, the Indian economy grew at an average of 6.67% in the nine years ended 31 March 2014 when UPA was in power, slower than the 7.35% achieved in the four years ended 31 March 2018, with Modi as the prime minister. It also shows that the highest growth rate the Indian economy has so far achieved is 8.5% in 2010-11, against the 10.3% estimated using the older base.

The link between the old and new GDP series through the back-series data is crucial as it helps in better economic forecasting. The link has so far been missing after the government shifted the base year to 2011-12 from 2004-05.

The new data shows that growth in the tertiary sector was much slower than initially estimated on account of changes to unorganized trade, communication and financial services.

The government attributes the lower growth rate in the unorganized sector in years prior to 2011-12 to better estimation of trade data using sales tax.

The numbers released by the government on Wednesday are also vastly different from the estimates put out by a subcommittee of the National Statistical Commission headed by N.R. Bhanumurthy in July. Its back-series calculation had showed that the Indian economy grew at a much faster pace during UPA’s tenure and had registered double-digit growth in two years—10.23% in 2007-08 and 10.78% in 2010-11.

Statisticians and economists questioned how the back-series data shows slower GDP growth compared to the old series for the years before 2011-12 and higher for the period after 2011-12.

“By and large, one methodology does not apply to every sector and this is the correct way to do it. But having said that, what I am concerned about is that for the entire period from 2004-05 to 2011-12, for all the sectors, the growth has been scaled down,” said Pronab Sen, programme director for the India programme of the International Growth Centre and former chief statistician of India. “I don’t know how this systematic scaling down has been done. It was expected for the tertiary sector but not for the secondary sector.”

“We have got official series now, for which we have been waiting for long, although there could be some discussions on database used in back series,” said Bhanumurthy, professor at National Institute of Public Finance and Policy.