2019 में कांग्रेस फिर मुस्लिम समाज से आस बांधे हुए
कांग्रेस मॉइनॉरिटी की लड़ाई लड़ती रहेगी और इसे कतई मुस्लिम तुष्टिकरण कि राजनीति नहीं कहना चाहिए
राहुल गांधी का बुधवार को संवाद प्रोग्राम है, जिसमें राहुल गांधी मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों से मुलाकात करने वाले हैं. ये चर्चा सेलेक्ट ग्रुप में होने वाली है, जिसमें मुस्लिम समाज के हर वर्ग के नुमाइंदों को बुलाया जा रहा है. इसमें सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं. प्रोफेसर, नामचीन डॉक्टर, एनजीओ चलाने वालों से लेकर फिल्म जगत के प्रमुख लोगों को बुलाया जा रहा है.
राउंड टेबल की इस चर्चा में तकरीबन बीस लोगों के शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं. हालांकि, गेस्ट लिस्ट को काफी सीक्रेट रखा जा रहा है. लेकिन संभावना है कि जावेद अख्तर, सैय्यदा हमीद जैसी शख्सियत इस बैठक में होंगी, जिसमे राहुल गांधी मुस्लिम समाज की परेशानियों से रूबरू होंगे. इसके अलावा पार्टी बुद्धिजीवी वर्ग से कैसे कनेक्ट करे, ये भी एजेंडा में शामिल रहेगा.
मुलाकात की कवायद का मकसद
राहुल गांधी आम चुनाव से पहले सभी समाज के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं. लेकिन 2014 के चुनाव के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से दूरी मुस्लिमों से बनाई थी, उसके बाद से पार्टी की तरफ से ये औपचारिक पेशरफ्त है. इससे पहले राहुल गांधी ने जून में रोज़ा इफ्तार का आयोजन किया था. राहुल गांधी चाहते हैं कि मुस्लिम समाज के लोगों को विश्वास दिलाया जाए कि वो अकेले नहीं हैं बल्कि कांग्रेस उनके साथ है. कांग्रेस मॉइनॉरिटी की लड़ाई लड़ती रहेगी. हालांकि, बुद्धिजीवी वर्ग से राहुल गांधी के मुलाकात का मतलब है कि इस वर्ग से पार्टी संवाद कायम करने की जरूरत ज्यादा समझ रही है. इस वर्ग के ज़रिए मुस्लिम तबके को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश है. कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन नदीम जावेद का कहना है कि इस तरह की बैठक से वो आगाह नहीं हैं लेकिन ये कांग्रेस की परंपरा का हिस्सा है. कांग्रेस सभी धर्मों और वर्गों को साथ लेकर चलना चाहती है. इस प्रोग्राम के सूत्रधार पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद हैं, जो लोगों को राहुल गांधी से मिलने के लिए बुला रहे हैं.
उत्तर भारत में मुसलमान कांग्रेस के साथ नहीं
राहुल गांधी के इस मुलाकात की वजह राजनीतिक भी है. उत्तर भारत में मुस्लिम तबका ज्यादातर रीजनल पार्टियों के साथ है. असम में बदरुद्दीन अजमल के साथ है. तो बंगाल में ममता बनर्जी के साथ खड़ा है. वहीं बिहार में मुस्लिम वोट आरजेडी के साथ है. यूपी में मुस्लिम समाज एसपी–बीएसपी के साथ है, जहां कोई विकल्प नहीं है वहीं कांग्रेस के साथ है. ज़ाहिर है कि उत्तर भारत में यूपी से लेकर असम तक तकरीबन 175 सीटें हैं, जिसमें कांग्रेस असम को छोड़कर कहीं ताकत में नहीं है. पार्टी रीजनल पार्टियों के ऊपर निर्भर है. इन सभी राज्यों में रीजनल पार्टियों के उदय से पहले ये कांग्रेस के साथ था.
1992 के बाद बदली स्थिति
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से मुस्लिम समाज कांग्रेस से दूर हुआ है. इस दौर में ही मंडल की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ था. समाजवाद का नारा चल रहा था. मुस्लिम समाज ने कांग्रेस को छोड़कर इन दलों के साथ जाने में भलाई समझी थी क्योंकि ये दल राज्य में मज़बूत ताकत बन गए और कांग्रेस हाशिए पर चली गई. कांग्रेस ने इन दलों के साथ गठबंधन करके अपनी ताकत और घटा ली है. राज्यों में गठबंधन करने से कांग्रेस को कम सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. धीरे-धीरे मुस्लिम वोट इन दलों के बीच बंट गया. हालांकि कांग्रेस को वोट मिलता रहा है. लेकिन एकमुश्त नहीं जहां कांग्रेस मज़बूत है वहां पर ही मुस्लिम वोट कांग्रेस को मिला है. दक्षिण में भी रीजनल पार्टियों का दबदबा बढ़ रहा है. कर्नाटक में जेडीएस, तेलंगाना में टीआरएस और महाराष्ट्र में एनसीपी जैसे दल कांग्रेस के मुस्लिम वोट में सेंध लगाते रहे हैं.
2014 में एंटनी कमेटी
2014 के आम चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई थी. पार्टी लोकसभा में अपने न्यूनतम संख्या पर है. हार का कारण जानने के लिए बनी एंटनी कमेटी ने कहा कि कांग्रेस की हार का मुख्य कारण अति अल्पसंख्यकवाद था, जिसकी वजह से हिंदू वोट का बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण हो गया था. हालांकि इस रिपोर्ट से मुस्लिम का एक वर्ग कांग्रेस से नाराज हो गया था. मुस्लिम समाज को लगा कि कांग्रेस ने 10 साल के शासन में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के हिसाब से भी ज्यादा कुछ नहीं किया है, जबकि ढिंढोरा ज्यादा पीटा गया था. वहीं हार का ठीकरा मुस्लिम समाज पर थोपा जा रहा है. इस तबके को लग रहा था कि कांग्रेस करप्शन के आरोपों की वजह से सत्ता से बाहर हो गयी थी, खासकर अन्ना के आंदोलन, 2जी और कोयला घोटाले के बाद ही कांग्रेस की लोकप्रियता कम हो गई. कांग्रेस भी ये बात समझ रही है इसलिए इस तबके में पैठ बनाने की कोशिश तेज़ हो गई है और दुहाई धर्मनिरपेक्षता की दी जा रही है.
धर्मनिरपेक्षता कांग्रेस की ताकत
कांग्रेस में राहुल गांधी के करीबी लोगों का कहना है कि पार्टी की ताकत धर्मनिरपेक्षता ही है, जिसको लेकर कांग्रेस कोई समझौता नहीं करने वाली है. सोमवार को कांग्रेस के नेता प्रमोद तिवारी ने आरोप लगाया कि जिस तरह से जयंत सिंन्हा ने मॉब लिंचिग के सजायाफ्ता लोगों का स्वागत किया है. उससे साफ है कि सरकार की मंशा क्या है. प्रमोद तिवारी ने आगे आरोप लगाया कि गिरिराज सिंह जैसे मंत्री दंगा के आरोपियों से मुलाकात करते हैं. पीएम चुप हैं इसका मतलब बीजेपी की मौन सहमति है. कांग्रेस ऐसे लोगों का विरोध करती है.
राहुल का साफ्ट हिंदुत्व
गुजरात के चुनाव में कांग्रेस ने साफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग किया था. राहुल गांधी ने तकरीबन 27 मंदिरों मे जाकर दर्शन किया था. सोमनाथ मंदिर में जाने के लेकर विवाद खड़ा हुआ तो पार्टी की तरफ से राहुल गांधी को शिवभक्त बताया गया था. कर्नाटक में भी राहुल गांधी कई मंदिरों में गए थे. कांग्रेस की तरफ से दिल्ली की रैली में राहुल गांधी ने मानसरोवर जाने की इजाज़त कार्यकर्ताओं से मांगी थी, जिसको लेकर विवाद चल रहा है.
यकीन जानिये यह मुस्लिम तुष्टिकरण बिलकुल नहीं है