इमरान की बातों से अधिक उसके काम पर हो पैनी नज़र


पाकिस्तान के साथ आसानी से शांति की कल्पना ने पहले ही बहुत जानें ले ली हैं. इसलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ दां, नए प्रधानमंत्री की बातों में आने का वक्त नहीं है


विदेश मामलों के विशेषज्ञों का, अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खासा दबाव रहेगा कि वे पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ भारत-पाक रिश्तों पर बातचीत के लिए पहल करें. वो बातचीत फिर से शुरू करें, जो कभी रुक गई थी. तर्क दिए जाएंगे कि क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान के भारत में कई लोगों के साथ बहुत गर्माहट भरे रिश्ते हैं. साथ ही इमरान को पाक जनरलों का वरदहस्त भी प्राप्त है.

भारत के वे आशावादी, जिन्हें इमरान खान के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद, पाक से बड़ी उम्मीदें हैं, नहीं समझ पा रहे हैं कि दरअसल इन चुनावी नतीजों के मायने भारत के लिए क्या हैं. दरअसल कुछ नया नहीं होने जा रहा. प्रधानमंत्री इमरान खान के कुर्सी संभालने पर, कश्मीर को लेकर वही छोटी-मोटी लड़ाइयां जारी रहेंगी, जो अब तक होती रही हैं. दशकों से भारत-पाक रिश्तों में यही होता आया है. इन सबके अलावा राजनैतिक अस्थिरता भी बढ़ेगी, जो पाकिस्तान में धार्मिक रूप से कट्टर लोगों की ताकत और बढ़ाएगी. लिहाज़ा हमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि भारत की सीमाएं खोलने के बजाय, सरहदों पर सुरक्षा और मजबूत करें.

इमरान के कहने को तो अच्छी बातें लेकिन…

ये सच है कि इमरान खान के पास भारतीयों के बारे में कहने के लिए कुछ ‘अच्छी’ बातें हैं. हालांकि भारत के प्रति नवाज शरीफ की नीति पर अपने चुनाव प्रचार के वक्त वे जमकर बरसते रहे हैं. लेकिन सीएनएन-आईबीएन को 2011 में दिए एक इंटरव्यू में इमरान खान ने कहा था, ‘मैं हिंदुस्तान के प्रति नफरत लिए हुए पला-बढ़ा हूं. लेकिन जैसे-जैसे मैं भारत में और घूमा, मुझे लोगों का इतना प्यार मिला कि मैं वो सब भूल गया.’ अपने चुनाव प्रचार के बीच में भी उन्होंने कहा, ‘हमें भारत के साथ अमन और चैन रखना होगा क्योंकि कश्मीर के मुद्दे पर पूरा उपमहाद्वीप बंधक बना पड़ा है.’

आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर इमरान खान मुहावरों के मुलम्मे में लिपटी भाषा में भारत के प्रति कुछ न कुछ अच्छी बात ज़रूर कहेंगे. ज़ाहिर है उसके बाद लोग प्रधानमंत्री मोदी से भी मांग करने लगेंगे कि वे इमरान की बात के जवाब में दोस्ती का हाथ बढ़ाएं.

ये भी सच है कि इमरान खान जो भी कहेंगे, वह पूरी तरह बेतुकी बात ही होगी. पाकिस्तान में, विदेशी मामलों की जानकार आयेशा सिद्दीका कहती हैं, ‘लोकतांत्रिक शासन का मतलब ये नहीं है कि सुरक्षा और कूटनीति पर से पाक फौज अपना नियंत्रण छोड़ देगी. अफगानिस्तान, काफी हद तक ईरान भी, भारत, चीन और अमरीका पहले से ही रावलपिंडी में आर्मी जनरल हेडक्वार्टर्स के हितों को लेकर कड़ी आलोचना करते रहे हैं. अब ये मामले तो ऐसे हैं कि इन पर कोई समझौता नहीं हो सकता.’

नवाज शरीफ और जरदारी का उदाहरण ले लीजिए

2013 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज़ शरीफ ने सीएनएन-आईबीएन को दिए एक इंटरव्यू में वादा किया था कि वे हर वह काम करेंगे जो एक भारतीय उनसे उम्मीद करता है. उन्होंने कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण हल निकालने की बात कही और वादा किया कि वो पूरी कोशिश करेंगे कि भारत के खिलाफ आतंक फैलाने की किसी भी कोशिश को वे पाक धरती पर फलने-फूलने नहीं देंगे. उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की बात भी कही थी. उन्होंने ये भी वादा किया था कि वे मुंबई के 26/11 हमले में आईएसआई का हाथ होने के आरोपों की भी जांच करवाएंगे. वादा ये भी था कि करगिल युद्ध के सभी रहस्यों पर से वे पर्दा भी उठाएंगे.

शरीफ को ये श्रेय तो देना होगा कि उन्होंने जो भी कहा, उसे करने की भी पूरी कोशिश की. 2014-15 में कश्मीर में भारतीय सेना पर जिहादी हमलों में कमी आई. इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी गुटों की लगाम उन्होंने खींच कर रखी. उन्होंने खुलकर कहा कि पठानकोट पर हुए हमले का ज़िम्मेदार जैश-ए-मोहम्मद है.

लेकिन आखिर में हुआ क्या, सबको पता है. पाक फौज ने शरीफ पर उलट वार किया, पद से हटाए गए नवाज शरीफ के खिलाफ मैच फिक्स किया और जैसा कि पाकिस्तान के कानून विशेषज्ञ बब्बर सत्तार कहते हैं, ‘शरीफ की निष्ठा के बारे में कोई कुछ भी कहे, उनके खिलाफ जो मुकदमा चला, वह कानूनी तौर पर बहुत लचर और कमज़ोर मामला था.’

लेकिन नवाज़ शरीफ का तख्ता पलट कोई नई बात नहीं. याद करें, 2008 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने ऐलान किया था, ‘भारत कभी भी पाकिस्तान के लिए ख़तरा नहीं रहा.’ उन्होंने कश्मीर के इस्लामी घुसपैठियों को आतंकवादी बताया और कहा कि उम्मीद की कि भविष्य में पाकिस्तान की सीमेंट फैक्ट्रियां भारत की बढ़ी ज़रूरतों की पूर्ति करेंगी. पाकिस्तानी बंदरगाहों की वजह से भारत के भरे पड़े बंदरगाहों की मदद भी हुई. ज़रदारी ने ये भी ऐलान कर दिया था कि उनकी योजना जल्दी ही कुख्यात आईएसआई पर से फौज का नियंत्रण हटाने की है.

जांच से पता चलता है कि ये वही वक्त था जब अजमल कसाब और लश्कर-ए-तैयबा के उसके 9 साथी 26/11 हमले की तैयारी कर रहे थे. और ये हमला आईएसआई की ओर से संदेश था कि पाकिस्तान को वही चलाते हैं, कोई और नहीं.

इससे पहले फरवरी, 1999 में नवाज़ शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर घोषणापत्र पर दस्तखत किए थे, जिसके मुताबिक दोनों देशों ने वादा किया था कि शिमला समझौते को शब्दश: लागू किया जाएगा. हम सब जानते हैं कि तब क्या हुआ. इधर लाहौर घोषणापत्र पर दस्तखत हो रहे थे और उधर पाकिस्तानी फौजें लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करने की तैयारी कर रही थीं.

पाकिस्तानी फौज के अस्तित्व का संकट है भारत

पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी शुरुआती नीति यही थी कि बातचीत और व्यापार और आर्थिक संबंधों के बढ़ने पर संबंधों में नरमी आएगी. इस बात पर किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि मोदी की ये खुशफहमी, पठानकोट हमले और लाइन ऑफ कंट्रोल के पार हुए हमलों के बाद ग़लतफहमी में बदल गई. ये सोच कि बातचीत जारी रहने से संकट से बचा जा सकता है, बस दिखने में हसीन है, असलियत में एकदम निराधार. इतिहास गवाह है कि 1914 की शुरुआत में यूरोप आर्थिक और कूटनीतिक रूप से जितना एकीकृत था, उतना पहले कभी नहीं. यहां भी मामला मामला वही है.

सेना की जानकार सी क्रिस्टाइन फेयर ने कहा था कि फौज एक ऐसा समुदाय है जिसके पास बहुत ज्ञान होता है और उनका फैसला लेने का तरीका अपने पूर्ववर्तियों से सीखा हुआ होता है. भारत से पाकिस्तान के रिश्ते अगर सामान्य हुए तो ये पाकिस्तानी फौज के लिए अस्तित्व का संकट ले आएगा. पाकिस्तानी फौज की नींव ही इस मिथक पर रखी गई है कि अपने से बड़े और ताकतवर पड़ोसी के खिलाफ युद्ध ही पाकिस्तानी फौज के अस्तित्व की वजह है. इससे पाक फौज, हिंदू भारत के खिलाफ इस्लामिक पाकिस्तान के रक्षक की भूमिका में दिखता है. और आसान तरीके से कहें तो, भारत-पाक के बाच शांति कराकर पाकिस्तानी सेना खुद को खत्म नहीं करना चाहती.

सच्ची बात तो ये है कि भारत के पास कोई विकल्प नहीं है. भारत-पाकिस्तान की बात करें तो भारत को सबसे बड़े फायदे युद्ध से ही हुए हैं, बातचीत से नहीं. नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम हो या 2003 के बाद कश्मीर में हिंसा में आई कमी की बात, ये सब 1999 के करगिल युद्ध के बाद ही मुमकिन हो पाया. 2001-02 में भी दोनों देश युद्ध के करीब आ गए थे. लड़ाई आसन्न थी और ये एक ऐसा संकट था जिसे झेलना भारत के लिए तो मुश्किल होता, लेकिन पाकिस्तान तो टूट ही गया होता.

लेकिन ये रास्ते भारत के हितों के मुताबिक नहीं हैं. जो संभावित खतरे हैं, वे बहुत ज़्यादा बड़े हैं. ‘राष्ट्रवादियों के गर्व’ की बात परे रखें तो ये सच है कि 2016 में भारतीय सेना के सीमा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक करने के बाद, कश्मीर में हिंसा की वारदातें बढ़ी हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद के हफ्तों में पाकिस्तान की ओर से जिहादी हमले और तेज़ हुए और तब से लेकर अब तक वारदातें रुकी नहीं हैं. 2001-02 में आई युद्ध की स्थिति का विश्लेषण करें तो ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान को अपनी फौजें पीछे हटाने के लिए बाध्य किया जा सकता है. लेकिन भारत के कूटनीतिक प्रतिष्ठान मानते हैं कि इसके लिए हमारे देश को जो कीमत चुकानी पड़ेगी, वो बहुत ज़्यादा है.

किसी खुशफहमी में न रहें पीएम मोदी

ज़िंदगी की तरह ही राजनीति में भी इससे ज़्यादा बढ़िया सलाह नहीं हो सकती कि अगर कोई चीज़ इतनी अच्छी लगे कि वो सच से परे है, तो ये मान लेना चाहिए कि वो झूठी है. इंग्लैंड में पढ़ा, खूबसूरत क्रिकेट स्टार, जो अब पाकिस्तान पर राज करेगा, पाकिस्तान को नॉर्थ यूरोपियन वेलफेयर स्टेट की तरह एक इस्लामिक मुलम्मे में लिपटा वेलफेयर स्टेट बनाना चाहता है. भारत में भी ऐसे एलीट लोग हैं जो चाहते हैं कि हमारे यहां भी कोई ऐसा ही नेता कुर्सी पर बैठे. बहरहाल, इमरान खान भारत-पाक दोस्ती के हरकारे या शांतिदूत नहीं हैं.

भारत के पास अब भी वही पुराना विकल्प सबसे अच्छा है. बगैर युद्ध की स्थिति लाए, आतंकविरोधी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना, कश्मीर में राजनैतिक संकट का हल निकालना क्योंकि सूबे में हिंसा वहीं से पनप रही है, पाकिस्तान समर्थित आतंक से निपटने के लिए दूसरे सैन्य तरीकों का विकास, ये ही वे तरीके हैं जिन पर भारत को ध्यान देना होगा.

इन सब कामों के लिए वक्त और मेहनत दोनों चाहिए. वे काम, राजनेताओं के काम और वादों की तरह लुभावने नहीं हैं कि अपने वोटर्स को हर बार नया खिलौना देकर बहला लिया जाए. पाकिस्तान के साथ आसानी से शांति की कल्पना ने पहले ही बहुत जानें ले ली हैं. इसलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ दां, नए प्रधानमंत्री की बातों में आने का वक्त नहीं है.

तुर्की के राष्ट्रपति एर्देगोन से मिले मोदी

 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि यहां ब्रिक्स सम्मेलन से इतर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के साथ उनकी बैठक बहुत अच्छी रही और इस दौरान भारत – तुर्की के बीच सहयोग के कई क्षेत्रों पर चर्चा हुई. मोदी ने कहा कि उन्होंने दोनों देशों के लोगों के फायदे के लिए द्विपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ़ करने के तरीकों पर चर्चा की.

उन्होंने एर्दोगन के दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर उन्हें बधाई भी दी. 64 वर्षीय एर्दोगन राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद जून में और पांच साल के कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित हुए.

मोदी ने ट्वीट किया, ‘तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ बैठक बहुत अच्छी रही. हमारी वार्ता में भारत – तुर्की के बीच सहयोग के कई क्षेत्रों और अपने – अपने नागरिकों के फायदे के लिए द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ करने के तरीकों को कवर किया गया.’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने तुर्की के राष्ट्रपति के साथ मोदी की दो तस्वीरें भी साझा की. कुमार ने ट्वीट किया, ‘…प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन 2018 से इतर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोगन से मुलाकात की.’

उन्होंने बताया, ‘प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति एर्दोगन के दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर उन्हें बधाई दी.’ इससे पहले, दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की और अर्जेंटीना तथा अंगोला के राष्ट्रपतियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी की.

Modi meets South African President Cyril Ramaphosa, discusses ways to boost bilateral ties

 

Prime Minister Narendra Modi on Thursday met South African President Cyril Ramaphosa and the two leaders discussed ways to expand the bilateral ties in a number of sectors, including trade and investment, information technology and defence.

After the delegation-level talks between Mr. Modi and Mr. Ramaphosa, three memorandums of understandinds (MoUs) were signed on cooperation in exploration and use of outer space for peaceful purposes, the setting up of a Gandhi-Mandela Centre of specialisation for artisan skills, and agricultural research and education.

Mr. Modi, who arrived in Johannesburg on July 25, met Mr. Ramaphosa on the sidelines of the two-day BRICS (Brazil, Russia, India, China and South Africa summit whose theme this year is ‘BRICS in Africa’.

“Kicking off a series of bilateral meetings on the sidelines of BRICS! PM Narendra Modi meets the host South African President Cyril Ramaphosa,” External Affairs Ministry spokesperson Raveesh Kumar said in a tweet.

“Saluting the enduring legacy of Mahatma and Mandela! Prime Minister Narendra Modi and South African President Cyril Ramaphosa jointly released a stamp commemorating the two iconic personalities,” he tweeted.

Strategic partnership

India and South Africa are celebrating 21 years of strategic partnership.

“India and South Africa are proud inheritors of legacies of Mahatma Gandhi and Nelson Mandela,” Mr. Kumar said.

“Prime Minister Narendra Modi and President Cyril Ramaphosa discussed expansion of our relationship in trade and investment, agriculture and food processing, IT, defence and people-to-people contacts,” he said.

Later, Foreign Secretary Vijay Gokhale said both the nations expressed satisfaction at the growth in trade and investment, besides improvement in the people-to-people relation.

“President Ramaphosa actually said India-South Africa relations may be new in terms of re-establishment of diplomatic relations but are in fact very deep-rooted in history. Now what it requires is nurturing, it needs to be watered time to time and such meetings help in that process,” he said.

Mr. Gokhale said Mr. Modi entirely agreed with the South African leader on this, and noted a “very positive” trend on investments and trade.

Long-standing issues

The Prime Minister said Indian companies would respond positively to investing in South Africa, as he welcomed the India-South African business summit, held in April, for which the Commerce and Industries Minister had come here.

Mr. Modi also took up the issue of Indian business persons facing some obstacles in terms of general work permits and inter-company transfer permits in South Africa.

“These are long-standing issues that the Prime Minister took up,” Mr. Gokhale said, adding that the South African President assured Mr. Modi that he would look into the matter.

The Prime Minister, he said, informed Mr. Ramaphosa that India had liberalised the visa regime “very greatly” for South Africans.

On trade, Mr. Modi said among the areas which the South African companies should be exploring in India were defence, food processing and health insurance, according to Mr. Gokhale.

During the “very productive, very good and very warm” meeting, Mr. Modi also mentioned about the visit of Indian Naval Ship INS Tarini with an all-female crew to South Africa.

“The President of South Africa in fact remarked that this [INS Tarini visit] had got very good publicity in the South African press and was seen as a sign of gender empowerment, women empowerment,” the Foreign Secretary said.

Modi meets Putin

Mr. Modi on Thursday also held bilateral talks with Russian President Vladimir Putin on the sidelines of the BRICS summit and said the friendship between India and Russia was deep-rooted.

Mr. Modi was meeting Mr. Putin after their informal meeting in May in the Black Sea coastal city of Sochi in Russia in May.

The two leaders then met on the sidelines of the Shanghai Cooperation Organisation Summit in Qingdao, China, in June.

“Wide-ranging and productive talks with President Putin. India’s friendship with Russia is deep-rooted and our countries will continue working together in multiple sectors. @KremlinRussia,” Mr. Modi said in a tweet.

The two leaders had a comprehensive discussion on bilateral issues of mutual interest, especially in trade, investment, energy, defence and tourism, Mr. Raveesh Kumar said in a tweet.

The Modi-Putin meeting got over at midnight local time, he said.

During their meeting in Sochi in May, India and Russia elevated their strategic partnership to a “special privileged strategic partnership”.

Anti-apartheid movement

India’s relations with South Africa date back to several centuries. India was at the forefront of the international community in its support to the anti-apartheid movement.

This year also marks 25 years since the resumption of India’s diplomatic relations with South Africa in 1993. This year also marks the 125th year of the Pietermaritzburg railway station ‘incident’ involving Gandhiji.

“2018 is a historical year for our relations, as it marks the commemoration of twenty-five years of diplomatic relations between South Africa and India,” the South African Presidency tweeted.

The South African Indian-origin community numbers around 1.5 million and constitutes about three per cent of South Africa’s total population.

US India working together ahead of 2+2 talks


Alice Wells, principal deputy assistant secretary of state for South and Central Asia, says US is looking forward to the “two-plus-two” dialogue with India in New Delhi in September


The US and India are working together “hand in glove” diplomatically and militarily to build dimensions of the critical bilateral relationship ahead of the “2+2 dialogue”, a State Department official has told American lawmakers.

During a Congressional hearing, Alice Wells, principal deputy assistant secretary of state for South and Central Asia, said the US is looking forward to the “2+2” dialogue with India in New Delhi in September.

She said she expects substantial progress will be made in the bilateral relationship during the dialogue.

“On India, we’re looking ahead to the September 6th two plus two and the joining of forces between Secretary (of State Mike) Pompeo and (Defence) Secretary (James) Mattis to help define what (is) major defense partnership,” Wells said, responding to a question from Indian-American Congressman Ami Bera.

“We’re working together hand in glove diplomatically and militarily to build out the dimensions of what Secretary Pompeo said is one of our most critical relationships,” she said.

The September meet will be the first “two-plus-two” dialogue between India and the United States. Last month, the US had postponed the dialogue due to “unavoidable reasons”.

The dialogue, a vehicle to elevate the strategic ties between the two countries, was announced last year during Prime Minister Narendra Modi’s meeting with President Donald Trump. It has been reschedule at least twice since then.

Indication that the two countries are closer to signing the long-pending foundational agreements, Wells said, “We’re going to be able to demonstrate both in terms of the progress we make on the agreements we can reach that will make it easier for US to share classified information and undertake logistical activities together.”

The dialogue is expected to give meaning and definition to how major purchases and on-the-ground activities such as the Malabar Exercise can work together to secure the Indo-Pacific region, Wells said.

Congressman Bera said it was important for the US to continue sending the message that it sees India as a major defence ally and “incredibly important” in helping the US stabilize the strategic region.

हाफ़ीज़ का हाफ़िज़ खुदा


आतंकी हाफिज सईद का दावा था कि उसके सभी प्रत्‍याशी इन चुनावों में जीतेंगे, लेकिन पाकिस्‍तान की जनता ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया

जब पाकिस्तान में चुनाव आईएसआई ओर आर्मी करवाती है तो आतंकी हाफिज़ की वास्तविक स्थिति विचारणीय है

आतंकी हाफ़ीज़ को पाकिस्तानी आवाम ने नकार दिया है तो फिर वह कौन हैं जो इसकी मजलिसों में जा कर अल्लाह – ओ – अकबर के नारे लगाते हैं 


साल 2008 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड और जमात-उद-दावा चीफ हाफिज सईद को पाकिस्तान आम चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है. आतंकी हाफिज सईद की पार्टी अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक (एएटी) के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं. हाफिज सईद ने 260 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.

इस चुनाव में हाफिज का बेटा और दामाद भी किस्मत आजमा रहा था. लेकिन दोनों अपनी-अपनी सीट बुरी तरह से हार गए. बेटा हाफिज तल्हा सईद लाहौर से 200 किलोमीटर दूर सरगोधा सीट से चुनाव लड़ रहा था. हाफिज सईद यही का रहने वाला है.

आतंकी हाफिज सईद का दावा था कि उसके सभी प्रत्‍याशी इन चुनावों में जीतेंगे. लेकिन पाकिस्‍तान की जनता ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया. हाफिज सईद ने लोगों से अपील कि थी कि वो ‘पाकिस्तान की विचारधारा’ के लिए मतदान करे.

हाफिज सईद ने मिल्‍ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) के बैनर तले अपने प्रत्‍याशियों को मैदन में उतारा था. लेकिन बाद में चुनाव आयोग की ओर से मान्‍यता देने से इनकार कर दिया गया था. इसके बाद हाफिज सईद ने अल्‍लाह-ओ-अकबर के बैनर तले अपने प्रत्‍याशियों को मैदान में उतारा.

जमात-उद-दावा को अमेरिका ने जून 2014 में आतंकी संगठन घोषित किया था. ये संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था जिसने साल 2008 में मुंबई हमले को अंजाम दिया था. अमेरिका ने सईद पर एक करोड़ डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है.

पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने को भारत को ही आगे आना होगा: इमरान


भारत पर बोलते हुए इमरान खान ने कहा कि सेना के जरिए दोनों देशों के मसले ठीक नहीं हो सकते. कश्मीर समस्या का हल बातचीत के जरिए होगा

अमरीका ओर चीन से रिश्ते ओर सुधरेंगे ओर मजबूत होंगे 


पाकिस्‍तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्‍तान और पीटीआई चीफ इमरान खान एक और बड़े खिताब के काफी करीब पहुंच गए हैं. उनकी इस कामयाबी के लिए उन्हें दुनियाभर से बधाई मिल रही हैं. इमरान खान ने चुनाव के नतीजे घोषित होने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. इसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे करने पर जोर डाला है.

भारत पर बोलते हुए इमरान खान ने कहा कि सेना के जरिए दोनों देशों के मसले ठीक नहीं हो सकते. कश्मीर समस्या का हल बातचीत के जरिए होगा. भारत एक कदम बढ़ाएगा तो पाकिस्तान दो कदम बढ़ाएगा. भारत के साथ अच्छे संबंध के साथ भारत के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्ते चाहते हैं.

इमरान खान ने कहा कि कश्मीरी लंबे समय से दुख झेल रहे हैं. हमें कश्मीर का मुद्दा बातचीत के जरिए सुलझाना होगा. अगर भारत का नेतृत्व चाहता है तो हम दोनों मिल कर इस मुद्दे का सामाधान निकाल सकते हैं. यह इस उपमहाद्वीप के लिए अच्छा होगा.

राष्ट्र को संबोधित करते हुए पीटीआई चीफ इमरान खान ने कहा कि जिस तरह से मुझे भारतीय मीडिया में पेश किया गया उससे मुझे दुख पहुंचा. मैं उन पाकिस्तानियों में से हूं जो भारत के साथ अच्छे संबंध चाहता हूं. अगर हम उपमहाद्वीप को गरीबी से मुक्त कराना चाहते हैं तो हमें दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रखने होंगे और व्यापारिक रिश्ते अच्छे करने होंगे.

अपने संबोधन में इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान एक ऐसा देश है जिसने आतंकवाद का सबसे बुरा दौर देखा है. अगर वहां पर शांति हो सकती है तो पाकिस्तान में क्यों नहीं. उन्होंने कहा कि मैं चाहूंगा कि दोनों देशों के बीच बॉर्डर को खोला जाए.

इमरान खान ने कहा कि इस चुनाव के दौरान मेरे पर सबसे ज्यादा व्यक्तिगत हमले हुए. हम बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि जनता से किए गए हर वादे को पूरा करूंगा.

खान ने राष्ट्र के संबोधन में कहा कि पहले हुक्मरान, शासन करने वाले अपने आप पर खर्च करते थे. आज से यह नहीं होगा. म सादगी से रहेंगे, इतने बड़े पीएम हाउस में नहीं. छोटी जगह देखेंगे कोई. मैं आवाम के टैक्स की हिफाजत करूंगा.

उन्होंने कहा कि हमें गरीबी से लड़ाई लड़नी है. यह एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि चीन हमारे सामने एक उदाहरण की तरह है जिसने पिछले 30 साल में 70 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला. यह अभूतपूर्व था.

पीटीआई अध्यक्ष इमरान खान ने कहा कि हम लोग पाकिस्तान के लोकतंत्र को मजबूत होते हुए देख रहे हैं. तमाम आतंकी हमलों के बाद भी चुनावी प्रक्रिया सफल रही. उन्होंने सुरक्षा बलों को धन्यवाद भी दिया.

इमरान खान ने कहा कि वह जिन्‍ना के सपनों को पूरा करने के लिए राजनीति में आए थे. पाकिस्‍तानी सरकारों को गिरते देखा है. नया पाकिस्‍तान बनाना मेरा लक्ष्‍य है. हम देश में लोकतंत्र को मजबूत होते हुए देख रहे हैं.

राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 22 सालों की मेहनत रंग लाई है. उन्होंने बलूचिस्तान के लोगों को धन्यवाद भी दिया है. उन्होंने कहा कि अल्लाह ने मुझे मौका दिया है.

कम ख़राब से अधिक ख़राब का चुनाव है इमरान खान


ईशनिंदा को लेकर बने कठोर पाकिस्तानी कानून का समर्थक होना, या फिर औरतों को लेकर पोंगापंथी वाले विचार जाहिर करना, इमरान खान को बहुत पीछे ले गया है.

यकीन जानिए यही वहाँ की ज़रूरत भी है।


इमरान खान ने बहुत पहले वादा किया था कि वे पाकिस्तान को बदल देंगे. लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें बदल दिया. देश का नेतृत्व करने का सपना पूरा करने में, उन्हें खुद को बदलने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ी, उतनी मेहनत शायद उन्हें ताज़ा चुनावों में खुद को प्रधानमंत्री पद के लिए सही उम्मीदवार साबित करने में नहीं हुई.

ऑक्सफर्ड से पढ़ाई कर, ब्रिटिश लहज़े वाली अंग्रेज़ी बोलने वाले एलीट, और ब्रिटिश अरबपति की बेटी से शादी करने वाले इमरान खान से लेकर उस इमरान खान तक, जो पाकिस्तान की राजनीति में उतरने के बाद कट्टर इस्लामिक विचारधारा का हो जाता है, उन्होंने खुद को काफी बदल लिया है. ईशनिंदा को लेकर बने कठोर पाकिस्तानी कानून का समर्थक होना, या फिर औरतों को लेकर पोंगापंथी वाले विचार जाहिर करना, इमरान खान को बहुत पीछे ले गया है.

2011 में आई उनकी ऑटोबायग्रफी, ‘पाकिस्तान: अ पर्सनल हिस्ट्री’ में वे एक जगह पाकिस्तानी सांसद सलमान तासीर की हत्या के लिए मुल्क के मौलानाओं को ज़िम्मेदार मानते दिखाई देते हैं. वे कहते हैं कि ईशनिंदा का कट्टर कानून ही उस हत्या की वजह है. 4 जनवरी 2011 को सलामन तासीर को उनके 26 साल के बॉडीगार्ड मलिक मुमताज़ हुसैन कादरी ने गोलियों से भून दिया था. वो पाकिस्तान में पंजाब के गवर्नर थे.

वजह, उनका बॉडीगार्ड ईशनिंदा कानून पर उनके कथित विरोध से नाराज़ था. पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून एक ज्वलंत मुद्दा है. सलमान तासीर को 26 गोलियां मारने वाले इस हत्यारे को साल 2016 में नवाज़ शरीफ सरकार ने फांसी की सज़ा दे दी. लेकिन सलमान तासीर को मारने के बाद मीडिया के सामने इस गार्ड ने कहा था, ‘ सलमान तासीर ईशनिंदक हैं, अल्लाह की बुराई करने वाले हैं और ऐसे शख्स को यही सज़ा मिलनी चाहिए थी.’

कादरी फांसी पर झूल गया लेकिन पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरवादियों के लिए शहीद और आदर्श बन गया. उसकी मौत से पूरे पाकिस्तान में कट्टर मुसलमानों में रोष फैल गया. और इस गुस्से ने एक राजनातिक दल को जन्म दिया ‘ तहरीक-ए-लबाएक पाकिस्तान ’, जिसने वहां के लोगों में फिलहाल अच्छी पकड़ बना ली है और ताज़ा चुनावों में उससे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद भी की जा रही है. अपने प्रचार में इस पार्टी के समर्थक कादरी की तस्वीर वाला झंडा लहराते हैं और ‘ ईशनिंदा करने वालों को मौत दो ’ के नारे भी लगाते हैं.

2011 में इमरान खान ने कादरी की जम कर निंदा की और मुल्लाओं के खिलाफ कार्रवाई न कर पाने के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया था. उस वक़्त इमरान ने ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘उग्रवादी और अतिवादी सोच हमारे समाज के भीतर तक पैठ बना चुकी है और हमारा युवा उसका नुकसान उठा रहा है. कादरी जैसे लोग उस सोच के तहत चलते हैं जिसके मुताबिक इस्लाम खतरे में है और उसे उस खतरे से बचाने के लिए वे खुद फैसले करने लगते हैं. कादरी ने जो किया, उससे हमारे समाज में एक डर बैठ गया है. उसके साथ वैसा ही बर्ताव होना चाहिए, जैसा किसी भी दूसरे हत्यारे के साथ वाजिब हो.’

2013 के चुनावों में इमरान की बड़ी शर्मनाक हार हुई और उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर आई. इमरान को उस चुनाव में एक ‘ताजा उम्मीद’ के तौर पर देखा जाने लगा था. उनकी रैलियों में भीड़ भी खूब आती थी, लेकिन वे उस भीड़ को वोटों में तब्दील कर पाने में नाकाम रहे. 2013 की करारी हार ने इमरान खान को भीतर से बदल दिया. उन्होंने महसूस किया कि अगर सत्ता पाकिस्तान की फौज के इशारे पर चलने से पाई जा सकती है, तो कट्टर इस्लामी सोच रख कर भी कुर्सी तक पहुंचा जा सकता है.

नतीजतन, उनकी पार्टी का मेलजोल अब धार्मिक उन्मादियों के साथ ज़बरदस्त तरीके से चल रहा है और इमरान खान समाज को पीछे ले जाने वाली हर लंपट सोच का साथ देते दिखाई दे रहे हैं. नवाज शरीफ की पार्टी ‘पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज’ के खिलाफ अपनी लड़ाई में, इमरान की पार्टी ‘तहरीक-ए-इंसाफ’ के नेता लोगों से साफ कहते हैं कि कादरी को अपने चुनावी बैनर पर रख कर चलने वालों और उसे मौत देने वालों में से किसी एक को उन्हें चुनना है. इमरान खान इस संदेश को तब और मजबूत करते दिखाई देते हैं, जब रैली में आने वाली भीड़ को वे खुद बताते हैं, ‘कोई मुसलमान खुद को तब तक मुसलमान नहीं कह सकता, जब तक वो ये न मान ले कि हजरत मोहम्मद के बाद कोई पैगंबर हुआ ही नहीं.’

इमरान के इस बयान के बाद पाकिस्तान के अल्पसंख्यक अहमदी संप्रदाय में डर और घबराहट फैल गई है, जो ये मानते हैं कि पैगंबर हजरत मोहम्मद के बाद भी कोई और पैगंबर था. लिहाजा पूरी चुनावी प्रक्रिया से अहमदियों को बाहर रखा गया और इससे वे खुद को बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

अपनी एक रैली में इमरान खान ने भीड़ से साफ कहा, ‘हम संविधान की धारा 295 C के हक में हैं और उसको बनाए रखने के लिए कुछ भी करेंगे.’ आपको बता दें कि इस कानून के तहत पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कोई गलत बात कहने वाले को सीधे मौत की सजा का प्रावधान है.

पाकिस्तान की सेना भी प्रधानमंत्री पद के लिए इमरान के रास्ते आसान करती जा रही है. क्योंकि सेना को लगता है कि शरीफ और भुट्टो की वंशवाद की राजनीति से इमरान खान की राजनीति बेहतर है. फौज, इमरान खान को कम खतरनाक भी मानती है. लेकिन ये पूरी तस्वीर नहीं है. पाकिस्तान में भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे राजनेताओं की वजह से भी इमरान खान की लोकप्रियता बढ़ी है.

एवनफील्ड अपार्टमेंट्स घोटाले में नवाज़ शरीफ और उनकी बेटी जेल में हैं, जबकि भ्रष्टाचार के आरोपों में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के आसिफ ज़रदारी जेल जा चुके हैं. इसके ठीक उलट इमरान की छवि है. भ्रष्टाचार को लेकर उनका दामन साफ तो है ही, अपने प्रचार से उन्होंने ये छवि बना ली है कि इस चुनाव में दरअसल उनकी लड़ाई मुल्क के माफियाओं के साथ है.

इस तरह ये देख पाना बहुत आसान है कि पाकिस्तान में युवा वर्ग, इमरान की ‘सत्ता के मुखालिफ’ वाली छवि यानी ‘एंटी- इस्टैबलिशमेंट’ वाले रुख से क्यों उम्मीदें लगाए बैठा है. साफ है, उसे लगता है कि सिर्फ इमरान खान पाकिस्तान से गंदगी हटा सकते हैं और बड़े सामाजिक-आर्थिक संकट में गहरे डूबे मुल्क को बाहर निकाल सकते हैं.

लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स ने कराची यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हुमा बकाई का ये बयान छापा- ‘निराशा भरे इस माहौल में वही उम्मीद की एक किरण हैं. उनके पास पहले से कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है. उन्होंने भयंकर ग़लतियां भी की हैं. लेकिन ये भी सच है कि हमने पाकिस्तान की दोनों बड़ी पार्टियों को आज़मा कर देख लिया है और वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं.’

बावजूद इसके कि पाकिस्तानी वोटरों के सामने घटिया विकल्प हैं, इमरान भी कोई अच्छा विकल्प नहीं दे पाए हैं और इसकी कई सारी वजहें हैं. जैसे- वे कई सालों से राजनीति में हैं. लेकिन अब तक सरकार में नहीं रहे, उनके पास बहुत कम प्रशासनिक अनुभव है और भ्रष्टाचार को खत्म करने के अलावा उनके पास कोई एजेंडा नहीं है.

2013 में उनके हाथों में केपीके यानी खैबर पख्तूनवा की हुकूमत आई, लेकिन वे वहां अपना कोई भी वादा पूरा करने में नाकाम रहे हैं. उन्होंने 2013 में कहा था कि खैबर पख्तूनवा को एक आदर्श राज्य बनाया जाएगा. लेकिन ज़मीनी रिपोर्ट बताती है कि उनके वादों और ज़मीनी सच्चाई में जमीन-आसमान का फर्क है.

इस्लामाबाद में रहने वाले लेखक और एक्टिविस्ट अरशद महमूद ने जर्मनी की पत्रिका डाएचे वेले को बताया, ‘तस्वीर यहां वैसी ही है, जैसी पहले थी. कोई तब्दीली नहीं आई है. क्योंकि पीटीआई के कार्यकर्ता खुद को कानून से ऊपर समझते हैं और कभी भी प्रशासन के साथ सहयोग नहीं करते.’ कुछ लोगों का ये कहना भी है कि इमरान की पार्टी ‘तहरीक-ए-इंसाफ’ में अंदरूनी झगड़े भी बहुत हैं. केपीके के कई विधायकों ने अपने ही चीफ मिनिस्टर और इमरान खान के खिलाफ झंडा बुलंद कर रखा है.

इमरान का दावा है कि उन्हें सत्ता मिली तो वे पाकिस्तान को एक इस्लामिक वेलफेयर स्टेट में बदल देंगे. अब इस तरह के वादे उस मुल्क के लिए तो त्रासदी लाने के नुस्खे की तरह ही होंगे, जहां बैलेंस ऑफ पेमेंट यानी भुगतान संतुलन बहुत कमज़ोर अवस्था में है, मुद्रा की कीमत गिरती जा रही है, तेल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं, बिजली और पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है, नवजातों की मौत का अनुपात दुनिया में सबसे ज़्यादा है और ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स पर पाकिस्तान बहुत नीचे है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में मुल्क 119 देशों में 106वें नंबर पर है. इस तरह इमरान खान के लिए वादे पूरा करना लगभग असंभव तो है ही, पीटीआई के मुखिया नीतियों और विचारों के स्तर पर भी काफी सतही मालूम होते हैं.

लंदन के संडे टाइम्स के एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि पाकिस्तान में चीन का मॉडल वे कैसे लागू करेंगे, तो इमरान कुछ बता ही नहीं पाए, जबकि उनके प्रचार में इसका वादा किया गया है. इमरान ने कहा, ‘हमें इस बात से सीखना है कि चीन ने अपने मुल्क में उद्योगों के साथ क्या किया.’ जब सवाल पूछा गया कि उनके पास कुल मिला कर योजना क्या है, तो उनका जवाब था, ‘हमारी प्राथमिकता सार्वभौमिक विदेश नीति की है, उसके बाद इस्लामिक वेलफेयर स्टेट और तीसरे नंबर पर चीन का मॉडल पाकिस्तान में लागू करना, ये हमारी प्राथमिकताएं हैं.’

जब उनसे पूछा गया कि क्या वे विस्तार से इसे बता सकते हैं, उनकी आंखें भावशून्य हो गईं, जैसे उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा हो कि क्या जवाब दें. यहां तक कि उनके करीब के साथी भी मानते हैं कि उनके बॉस इस मामले में थोड़े कमज़ोर हैं. पार्टी के उपाध्यक्ष असद उमर का कहना है, ‘इसे कुछ इस तरह कहें तो बेहतर होगा कि वे रणनीति के धुरंधर नहीं हैं. वे कभी किसी संस्था का हिस्सा नहीं रहे हैं और किसी संस्था के दायरे में बंध कर काम करना नहीं जानते.’

लेकिन सत्ता की खोज में इमरान खान का इस्लामवाद की ओर झुकाव खतरनाक है, खास तौर पर तालिबान की तरफ उनका नरम रुख. इसीलिए उन्हें ‘तालिबान खान’ कह कर भी बुलाया जाने लगा है. खैर, उत्तरी केपीके में सत्ता में बैठी उनकी पार्टी की तब काफी बदनामी हुई थी , जब 2017 में उसने हक्कानिया मदरसों के लिए 30 लाख डॉलर अनुदान के तौर पर दे दिए थे.

ये मदरसे तालिबानी आतंकियों के स्कूल माने जाते रहे हैं. इमरान ने ये तक मांग कर डाली थी कि तालिबान को पाकिस्तानी शहरों में दफ्तर खोलने की इजाज़त दी जाए. उन्होंने ये भी मांग की थी कि अमेरिका तालिबानियों पर ड्रोन से हमल करना बंद करे. बदले में तालिबान चाहता है कि सरकार से बातचीत में इमरान ही तालिबानियों का प्रतिनिधित्व करें.

खतरे की घंटी भारत के लिए भी है. अगर इमरान का पार्टी इन चुनावों में बहुमत से पीछे रह जाती है, तो हाफिज़ सईद के चुनावी फ्रंट अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक, शरीफ को कुर्सी की दौड़ से बाहर करने के लिए, इमरान को सरकार बनाने के लिए मदद कर सकती है. हाफिज़ सईद यानी मुंबई हमलों की साजिश रचने वाला आरोपी. जाहिर है, खतरा भारत को भी है.

उधर पूरे पाकिस्तान में किए गए ओपिनियन पोल इशारा करते हैं कि हालांकि इमरान की पार्टी पीटीआई शरीफ और भुट्टो की पार्टियों से बढ़त पा जाएगी, किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाएगा. जानकारों का मानना है कि उस हालत में इमरान, नवाज़ और शाहबाज़ शरीफ को बाहर रखने के लिए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी से हाथ मिला लेंगे.

डॉन में अपने एक लेख में इरफान हुसैन लिखते हैं, ‘पीपीपी के लिए ये सौदा बुरा नहीं होगा. धूर्त ज़रदारी आला-दर्ज़े का मोलभाव करेंगे क्योंकि उन्हें मालूम है कि इमरान देश के प्रधानमंत्री बनने को बेताब हैं.’ इसका मतलब ये हुआ कि अनुभवहीन इमरान उन लोगों के हाथों से इस्तेमाल होंगे, जो राजनीतिक अनुभव में उनसे बेहतर हैं. जाहिर है नया पाकिस्तान बनाने के जो वादे उन्होंने कर रखे हैं, वे पूरे नहीं होने हैं.

इमरान के खिलाफ सबसे घातक तर्क पाकिस्तानी फौज को लेकर दिया जा रहा है. रावलपिंडी के जनरलों ने इमरान को इस जगह तक किसी रणनीति के तहत ही पहुंचाया है. जाहिर है मौका आने पर बदले में वह अपना हिस्सा मांगने में पीछे नहीं रहेगी. इमरान खान के पक्ष में पलड़ा झुकाने के लिए फौज की ओर से कितनी कोशिशें हुई हैं. ये समझने के लिए एक उदाहरण काफी होगा.

डेली टाइम्स के संपादक रज़ा रूमी ने ब्रिटेन के ‘द टाइम्स’ की क्रिस्टीना लैंब को बताया, ‘इन चुनावों के दौरान कवरेज के लिए मीडिया को धमकाया गया है, कि वे अपनी हदों में रहें. चेतावनी दी गई है कि नवाज शरीफ को लेकर पॉज़िटिव खबरें न लिखें , उनकी पार्टी की रैलियों की कवरेज न हो, फौज की ओर से की गई हत्याओं के खिलाफ पख्तूनों का विरोध प्रदर्शन न कवर किया जाए, अदालतों और जजों की आलोचना से बचा जाए और इमरान की पूर्व पत्नी रेहाम खान की उस किताब का बिलकुल ज़िक्र न किया जाए, जिसमें उन्होंने इमरान के बारे में कई विवादास्पद बातें कही हैं.’

मतलब ये कि अगर इमरान जीते भी, तो उनकी सरकार पर ‘लोकप्रियता’ की मोहर नहीं लग पाएगी. जाहिर है बाद में सिविल-मिलिट्री तनाव बढ़ सकता है. हालांकि फौज उनको स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन इमरान की विश्वसनीयता में कमी से बाद में सेना को नुकसान हो सकता है, क्योंकि जैसा कि हुसैन हक्कानी ने लिखा है कि पाक फौज सत्ता की आदी तो है, लेकिन बिना किसी ज़िम्मेदारी के.

अमरीका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हक्कानी ने अपनी किताब में लिखा था, ‘पाकिस्तान संवैधानिक तौर पर लोकतंत्र है, वहां तानाशाही नहीं है. लेकिन अगर कठपुतलियों की डोर दिखने लगे, तो नतीजा जो भी हो, ज़िम्मेदारी कठपुतलियों को नचाने वालों की ही होती है. तो फौज दोनों हाथ में लड्डू रखना चाहती है. यानी सत्ता तो चाहिए, लेकिन बिना ज़िम्मेदारी के.’

खैर, पाकिस्तानी मतदाताओं को एक खराब स्क्रिप्ट पक़ड़ा दी गई है. अब उन्हें ‘सबसे कम खराब’ को चुनना है. और इस तरह पाकिस्तानियों के लिए इमरान ही एकमात्र विकल्प बचते हैं.

Pakistan election in disarray as incumbent rejects result


Pakistan Muslim League-Nawaz alleges ballot is rigged in favour of Imran Khan’s party


Pakistan’s general election has been plunged into chaos after the incumbent Pakistan Muslim League-Nawaz (PMLN) said it would reject the result amid widespread allegations that the military was rigging the ballot in favour of the party led by the former cricketer Imran Khan.

With only a third of the vote counted by 3am – an hour after the result was officially due – Khan’s Pakistan-Tehreek-e-Insaf (PTI) led in 110 seats, with the PMLN trailing on 68.

Most projections held that the PTI would go on to win between 107 and 120 seats out of a total 272 in the lower-house, exceeding expectations and delivering the role of prime minister to Khan for the first time.

The Election Commission of Pakistan(ECP), an independent body, blamed the delay in announcing the result on a breakdown in the Results Transmission Software it purchased from a British company.

“There’s no conspiracy, nor any pressure in delay of the results,” the ECP secretary, Babar Yaqoob, told reporters. “The delay is being caused because the result transmission system has collapsed.”

But Shehbaz Sharif, the leader of the PMLN, said his party “wholly rejects” the result of the election, telling a press conference that his party’s polling agents had been evicted from dozens of stations by security officials before a final tally was reached, leaving them unable to monitor potential tampering.

Supporters of Imran Khan, who is head of the Pakistan Tehreek-e-Insaf party, celebrate on a street during general election in Islamabad

“The mandate of millions of people who came out to vote has been humiliated. Our democratic process has been pushed back by decades,” said Sharif.

The PMLN, which tried to curb the power of the military while in office, has claimed for months that the establishment was “engineering” the vote against it.

The party’s former leader Nawaz Sharif, who on 13 July began a legally-dubious 10 year prison sentence for corruption, has accused the deputy head of the country’s all-powerful ISI spy agency of leadinga campaign against the PMLN. He said it included pressure on its candidates to defect, a spate of court cases and the silencing of supportive media channels.

As election workers sorted through massive piles of paper ballots, almost all the parties – except the PTI – alleged that their polling agents had been excluded from polling stations.

Bilawal Bhutto, the leader of the liberal Pakistan People’s Party (PPP) – the country’s third-largest party – tweeted it was “inexcusable and outrageous” that his activists had been excluded “across the country”.

The complaint was echoed by his rival Khadim Rizvi, the foul-mouthed cleric who leads the far-right Islamist group, Tehreek-e-Labbaik (TLP). “This is the worst rigging in history,” said a spokesman for Rizvi.

The PMLN senator Musadik Malik told journalists that security officials had taken over proceedings inside polling stations, with a particular focus on constituencies where the race was close between the PTI and PMLN.

“If what most political parties are alleging is true,” Aqil Shah of Oklahoma University said, “it would be the biggest theft of an election since the 1970s”, adding that the the parties should “unite and demand a repeat.”

PTI leaders batted away the claims. Pakistan’s likely next finance minister Asad Umar said that only those “sympathetic to India” were crying foul, while the rest of Pakistan “can see the country is going towards betterment.”

Terming the vote a “contest between the forces of good and evil”, Naeem ul Haq, a spokesperson for Khan, said the party chairman would address the nation at 2pm on Thursday.

Concerns about the electoral process were heightened after the ECP last month announced it would allow military officials inside polling stations, and granted them ultimate authority on proceedings there, while the armed forces announced it would deploy 371,000 troops on the day of the election, a fivefold increase on 2013 despite greatly improved security across the nation.

After a bloody campaign in which a terrorist attack in the eastern province of Balochistan killed 151 people at a rally, fears of election day violence were confirmed. Within hours of the polls opening, a suicide attack in Balochistan’s capital, Quetta, added 31 to the death toll and was later claimed by Isis.

The allegations of vote-rigging marred what was supposed to have been only the second transfer of power from one civilian government to another in Pakistan’s coup-prone 71-year existence.

Many supporters argued that 65-year-old Khan, the captain who brought home the 1992 cricket World Cup and a notable philanthropist, could fulfil his promises to end corruption and turn Pakistan into an “Islamic welfare state”.

At a street-party in Islamabad, PTI supporters danced ahead of the announcement of the official results.

Earlier in the day, 20-year-old Muhammad Junaid brandished his ink-stained thumb outside a polling station in Islamabad and said: “We want change”. His friend, Muhammad Salman, 20, said that an entire generation of young voters were turning out for Khan after being unable to vote in 2013.

Electoral projections suggested that the PTI would easily be able to form a coalition that would deliver the required 136-seat majority, drawing on the support of natural allies in the federally administered tribal areas and independent candidates.

Analyst Fasi Zaka argued that long-term instability would be limited: “Shehbaz Sharif is not a rabble-rouser, he is an administrator,” he said, adding that the PPP would also quickly cool down if it received the projected 40 or so seats.

Analysts said that, from an economic perspective, a stable PTI-led coalition would help the country deal with a looming current-account crisis.

“In September we have to go to the IMF to ask for the biggest bailout in Pakistan’s history, of between $15bn to $18bn,” said Adnan Rasool of Georgia State University. “If you have a strong coalition you can push through policy measures that we need in order to secure that kind of bailout, which is to take away subsidies and reduce budget deficit and reduce the value of the currency – again.”

But, he added, “this has been a selection process, not an election. It is embarrassing to watch.”

ZX10R – ZX10RR motorcycles are now being locally assembled in India


This offer is valid until the end of July and then there will be a significant increase in the price. While the new Kawasaki Ninja ZX-10R will be available in KRT edition, the new Ninja ZX-10RR will be available in black.


After a series of reports on an imminent price drop for Kawasaki ZX-10R, the Japanese brand has now introduced the 2018 ZX-10R and ZX-10RR in India. What’s exciting about this news is that since these two motorcycles are now being locally assembled in India, the prices have been seriously lowered. 2018 Kawasaki Ninja ZX-10R is now the most affordable litre-class superbike in the country. The Ninja ZX-10R has had a prominent name in the world of motorsports with three times successive victories at the World Superbike Championship.

The first-ever locally assembled new Kawasaki Ninja ZX-10R and new Ninja ZX-10RR are being introduced with a special pre-order offer. Under the special pre-order offer the ex-showroom Delhi price of the new Ninja ZX-10R is Rs 1,280,000 and the price of the new Ninja ZX-10RR is Rs 1,610,000.

This offer is valid till the end of July 2018 and then there will be a significant increase in the price. While the new Ninja ZX-10R will be available in KRT edition along with few graphical changes, the new Ninja ZX-10RR will be available in black.

Both the models will be produced limited in numbers, however, the total units of the new Ninja ZX-10RR will be lesser than the total units of the new Ninja ZX-10R, as the Ninja ZX-10RR’s global production is limited. The bookings for Model Year 2018 are now open and will be closed after the allocated production and bookings are completed.

Kawasaki ZX-10R draws its power from a 998cc, inline four-cylinder engine paired with a six-speed transmission system. The fuel injected engine sheds out 197 bhp and 114 Nm of torque. With this, the bike can hit an electronically restricted top speed of 299 km/h.

Local assembly of motorcycles should definitely help Kawasaki gain better traction in India. The Japanese brand is locally also assembling the Z250, Ninja 300, Z650, Ninja 650, Versys 650 and Ninja 1000 here. And with the addition of the ZX 10R, the brand will find a better standing in the litre-class superbike territory in the country.

प्रधान मंत्री ने ‘गिरिंका’ योजना मे 200 गायों का योगदान दिया

3 अफ्रीकी देशों के दौरे पर निकले पीएम नरेंद्र मोदी मंगलवार को रवांडा की राजधानी किगली पहुंचे

 

इसके बाद रवांडा सरकार की ‘गिरिंका’ योजना के तहत पीएम मोदी ने सरकार को 200 गायें गिफ्ट कीं

 

2006 से शुरू हुई रवांडा सरकार की इस योजना से 3.5 लाख परिवारों को फायदा पहुंचा है

 

इस योजना के तहत सरकार हर गरीब परिवार को एक गाय देती है, फिर उससे पैदा हुई एक बछिया को वह परिवार अपने पड़ोसी को देगा. इस तरह से ये योजना चलती रहती है. इस योजना का मकसद इन गायों के दूध से बच्चों का कुपोषण दूर करना है