इस्राइल में चीनी राजदूत डू वेई की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु

यरुशलम: 

इजराइल में चीन के राजदूत रविवार को तेल अवीव में अपने घर में मृत पाए गए. इजराइल के विदेश मंत्रालय ने यह जानकारी दी. मौत की कोई वजह नहीं बताई गई है और इजराइली पुलिस ने कहा कि वह मामले की छानबीन कर रही है. कोरोना वायरस वैश्विक महामारी संकट के बीच डू वेई को फरवरी को राजदूत नियुक्त किया गया था. वह पहले यूक्रेन में चीन के राजदूत थे. उनके परिवार में पत्नी और एक बेटा है तथा दोनों इजराइल में नहीं थे. मौत से दो दिन पहले उन्होंने अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की उन टिप्पणियों की आलोचना की थी जिसमें इजराइल में चीन के निवेश की निंदा की गई और चीन पर कोरोना वायरस के बारे में जानकारी छिपाने का आरोप लगाया था.

इज़राइल में तीन चुनावों के बाद अब सरकार बनना तय
गतिरोध और बिना किसी स्पष्ट नतीजे के तीन बार हुए चुनावों और डेढ़ साल तक कार्यवाहक सरकार रहने के बाद प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार रविवार को अंतत: शपथ ले रही है. शपथ से पहले भी हालांकि तीन दिनों तक मंत्री पद को लेकर उनकी लिकुड पार्टी के अंदर काफी खींचतान चलती रही. सप्ताहांत पर नेतन्याहू और उनके विरोधी से सहयोगी बने बेनी गांट्ज ने नई सरकार के गठन के लिये साथ आने की घोषणा की. नई सरकार में इज़राइल के इतिहास में सबसे ज्यादा 36 मंत्रियों और 16 उप मंत्रियों के होने की उम्मीद है.

नेतन्याहू और पूर्व सेना प्रमुख गांट्ज ने पिछले महीने कहा था कि वे कोरोना वायरस संकट और गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिये अपने मतभेदों को दरकिनार कर साथ आ रहे हैं.

सत्ता साझेदारी के विवादित समझौते के तहत सरकार गठन के पहले 18 महीने नेतन्याहू प्रधानमंत्री रहेंगे और उसके बाद अगले 18 महीने सरकार की बागडोर गांट्ज के हाथों में होगी. दोनों पक्षों के समान संख्या में मंत्री होंगे और अन्य प्रमुख मुद्दों पर वीटो करने की परोक्ष शक्ति भी.

आलोचक ऐसे समय में सरकार में इतने मंत्री बनाए जाने की आलोचना कर रहे हैं जब कोरोना वायरस के कारण बेरोजगारी दर बढ़कर 25 प्रतिशत पहुंच गई है.

नेतन्याहू के खेमे में कई छोटे दल भी शामिल हैं और ऐसे में लिकुड पार्टी के पदाधिकारियों को देने के लिये उनके पास सीमित संख्या में मंत्रीपद हैं और ऐसे में गुरुवार को निर्धारित शपथ ग्रहण समारोह से पहले पार्टी के नाराज वरिष्ठ सदस्यों के हल्के विरोध का भी उन्हें सामना करना पड़ा. यह मामला समय पर नहीं सुलझा पाने के कारण नेतन्याहू ने पार्टी के अंदरूनी संकट के समाधान के लिए शपथ ग्रहण टालने को कहा था.

सत्ता के लिये हुई साझेदारी की वजह से गांट्ज की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी पहले ही बंट गई है कि उसने नेतन्याहू के साथ काम नहीं करने के अपने मुख्य चुनावी वादे से समझौता कर लिया. नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार का आरोप है और उन्हें मुकदमे का सामना करना है.

दोनों पार्टियों में यह समझौता होने से पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि उसके पास इसे रोकने का कोई कानूनी आधार नहीं है.

आलोचनाओं के बावजूद गांट्ज की दलील है कि नेतन्याहू से हाथ मिलाना देश को लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक गतिरोध और इज़राइल को एक बार फिर खर्चीले चुनाव में ढकेलने से रोकने का एक मात्र रास्ता था. इज़राइल में अगर फिर चुनाव की नौबत आती तो लगभग एक साल में चौथा चुनाव होता.

गांट्ज नई सरकार में रक्षा मंत्री होंगे जबकि उनके साथी सेवानिवृत्त पूर्व सेना प्रमुख गाबी अस्केनाजी विदेश मंत्री बनाए जाएंगे. लिकुड पार्टी में नेतन्याहू के शीर्ष सहयोगी निवर्तमान विदेश मंत्री इज़राइल काट्ज वित्त मंत्री बनाए जाएंगे.

आलोचना की एक मुख्य वजह “वैकल्पिक प्रधानमंत्री” का नवसृजित पद है. यह गांट्ज से पद बदलने के बाद भी नेतन्याहू को कार्यालय में बने रहने और भ्रष्टाचार के मुकदमे और संभावित अपील प्रक्रिया पर नजर रखने में मदद करेगा.

इस बात को लेकर भी लोगों में संदेह है कि क्या नेतन्याहू मोलभाव के अपने पक्ष को बरकरार रखते हुए अंतत: गांट्ज को पद सौंपेंगे.

इसके बाद भी नया पद माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री को मिलने वाली सभी सुविधाओं से युक्त होगा जिसमें आधिकारिक आवास और सबसे महत्वपूर्ण कानून से यह छूट कि प्रधानमंत्री के आधिकारिक पद पर नहीं रहने वाले व्यक्ति को आरोप लगने पर इस्तीफा देना होता है.

नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार, विश्वास भंग और घूस लेने के कई आरोप हैं.

ट्रम्प ने दी चीन को धमकी, कहा हर रिश्ता तोड़ देंगे

  • कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच चीन से खफा हुआ अमेरिका, दी धमकी
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी चीन को धमकी, कहा- हर रिश्ता हम तोड़ देंगे
  • पिछले कई हफ्तों से राष्ट्रपति पर चीन के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा है

डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए चीनी स्टॉक मार्केट से अरबों डॉलर के अमेरिकी पेंशन निधि निवेश को वापस लेने का ऐलान कर दिया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर में कोरोना वायरस के फैलने के मद्देनजर चीन से सारे रिश्ते तोड़ने की गुरुवार को धमकी दी। जानलेवा संक्रमण ने दुनियाभर में तकरीबन तीन लाख लोगों की जान ले ली है, जिनमें 80,000 से ज्यादा अमेरिकी शामिल हैं। ट्रंप ने एक न्यूज चैनल को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि कई चीजें हैं जो हम कर सकते हैं। हम सारे रिश्ते तोड़ सकते हैं। साथ ही उन्होने चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए चीनी स्टॉक मार्केट से अरबों डॉलर के अमेरिकी पेंशन निधि निवेश को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। ट्रंप ने पुष्टि की है कि उनके प्रशासन ने चीन से अरबों डॉलर के अमेरिकी पेंशन निधि निवेश वापस लेने की प्रक्रिया पर काम शुरू कर दिया है. ट्रंप के इस कदम से चीन के स्टॉक मार्केट को भारी नुकसान हो सकता है।

पिछले कई हफ्तों से राष्ट्रपति पर चीन के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ रहा है। सांसदों और विचारकों का कहना है कि चीन की निष्क्रियता की वजह से वुहान से दुनियाभर में कोरोना वायरस फैला है। एक सवाल के जवाब में ट्रंप ने कहा कि वह चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से फिलहाल बात नहीं करना चाहते हैं। हालांकि, उनके चिनफिंग से अच्छे रिश्ते हैं।

‘…लेकिन चीन ने इस बात को नहीं माना’
ट्रंप ने कहा कि चीन ने उन्हें निराश किया है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने चीन से बार-बार कहा कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वुहान की प्रयोगशाला जाने की इजाजत दी जाए, लेकिन उसने इसे नहीं माना।

इससे पहले अमेरिका ने चीन पर बौद्धिक संपदा और अनुसंधान कार्य से जुड़ी जानकारियां चोरी करने का भी आरोप लगाया गया था. ‘फॉक्स बिजनेस न्यूज’ पर जब ट्रम्प से उन खबरों के बारे में पूछा गया कि क्या अमेरिका ने चीनी निवेश से अरबों डॉलर की अमेरिकी पेंशन निधि निकाली हैं, तो राष्ट्रपति ने कहा, ‘अरबों डॉलर, अरबों … हां, मैंने इसे वापस ले लिया’

एक अन्य सवाल में, राष्ट्रपति से पूछा गया कि क्या वह अमेरिकी शेयर बाजारों में सूचीबद्ध होने के लिए चीनी कंपनियों को सभी शर्तों का पालन करने के लिए मजबूर करेंगे? ट्रंप ने कहा, ‘हम इस मामले पर बहुत करीब से ध्यान दे रहे हैं। यह बहुत आश्चर्यजनक है, लेकिन इस मामले में एक समस्या है. मान लीजिए कि हम ऐसा (शर्तों का पालन करने के लिए मजबूर) करते हैं, ठीक है? तो फिर वे क्या करेंगे? वे लंदन या किसी अन्य स्थान पर इसे सूचीबद्ध कराने जाएंगे।’

कमाई साझा नहीं करती चीनी कंपनियां

आरोप है कि अलीबाबा जैसी चीनी कंपनियों को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन वे उस तरह कमाई की जानकारी साझा नहीं करते, जिस तरह कोई अमेरिकी कंपनी करती है। इस बीच, कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, चीन उन अमेरिकी सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है, जिन्होंने कोरोना वायरस प्रकोप से निपटने में लापरवाही बरतने को लेकर चीन के खिलाफ प्रतिबंध लगाने वाली मांग संबंधी प्रस्ताव सीनेट में पेश किया है। कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद अमेरिका और चीन के संबंध बिगड़ गए हैं। अमेरिका ने कोरोना वायरस से निपटने में चीन के रुख पर निराशा व्यक्त की है। कोरोना वायरस अब तक अमेरिका में 80,000 से अधिक लोगों की जान ले चुका है।

कोरोना के बाद अब आण्विक हथियारों की दौड़ में चीन

चीन और पाकिस्तान दो ऐसे देश हैं जो कभी अपने अजेंडे से इतर काम नहीं करते। पाकिस्तान का काम आतंकवाद का पोषण करना है जिसमें वह हमेशा बेशर्मी दिखाता आया है और अब तो उसे अपने आका चीन का वरदहस्त प्राप्त है और दूसरी तरफ चीन है वह विश्व की सबसे बड़ी प्रभावशाली अर्थव्यवस्था और वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है और इसके लिए वह कुछ भी करेगा। चीन के उत्कोच से संयुक्त राष्ट्र भी झुक चुका है और कोरोना की मार से बड़े बड़े राष्ट्र घुटनों पर हैं, ऐसे में यदि कोई भी राष्ट्र चीन के विरुद्ध खड़ा होगा तो वह संयुक्त राष्ट्र और चीन की मार झेलने के लिए तैयार रहे।

चीन के उत्कोच से संयुक्त राष्ट्र भी झुक चुका है

नई दिल्ली: 

मुसीबत के वक्त ही नायकों और खलनायकों की पहचान होती है. इस वक्त दुनिया कोरोना की मुसीबत से जुझ रही है लेकिन कोरोना से विश्वयुद्ध के दौरान भी कुछ देश ऐसे हैं जो विनाशकारी हथियारों से युद्ध लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. यही हैं दुनिया के वो खलनायक जो कोरोना काल में भी युद्ध काल की तैयारी में जुटे हैं. इस देशों में सबसे उपर है चीन जिसने पहले दुनिया में कोरोना फैलाया और जब दुनिया कोरोना की वैक्सीन खोज रही है तब चीन एटमी परीक्षण कर रहा है.  

दुनिया के लिए चीन की खुराफातें मुसीबत बनती जा रही हैं. पहले चीन की वुहान लैब से कोरोना वायरस लीक के बाद दुनिया पर महामारी की मुसीबत टूटी और अब जिस वक्त पूरी दुनिया चीन से निकले वायरस के खिलाफ विश्वयुद्ध लड़ रही है. उस वक्त का इस्तेमाल भी चीन अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कर रहा है. यानि ताकत बढ़ाने और ताकत दिखाने का ड्रैगन का नशा कोरोना काल में भी कम नहीं हो रहा और ताकत का यही नशा चीन को दुनिया की नजरो में खलनायक बना रहा है. 

कोरोना आपातकाल में चीन का एटमी परीक्षण!

एक तरफ दुनिया कोरोना की वैक्सीन बनाने की तैयारी में जुटी है. कहीं पर जानवरों तो कहीं पर मानवों पर टीके का परीक्षण किया जा रहा है लेकिन इस मुश्किल वक्त में चीन एटमी परीक्षण कर रहा है. ये खबर अमेरिका और चीन के बीच पहले से ही काफी बढ़ चुके तनाव को और ज्यादा बढ़ा सकती है. 

अमेरिका के गृह विभाग ने चीन पर परमाणु परीक्षण का आरोप लगाया है. आरोप है कि चीन ने जमीन के नीचे परमाणु परीक्षण किए हैं. चीन कम तीव्रता वाले परमाणु बम तैयार कर रहा है. अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट ने चीन पर यह आरोप लगाया है कि चीन ऐसे ब्लास्ट्स को लेकर बनाए गए समझौते के पालन की बात करता है लेकिन फिर भी उसने कम तीव्रता के परमाणु बम के परीक्षण किए हैं. चलिए अब आपको अमेरिका के आरोपों के पीछे की वजह भी बताते है. इस इलाके को देखिए. ये चीन की लोप नुर टेस्ट साइट है जहां पर चीन परमाणु परीक्षण करता है. कभी यहां पर एक बड़ा तालाब हुआ करता था लेकिन चीन ने अपनी नापाक इरादों के लिए तालाब को सुखाकर यहां परमाणु परीक्षण करने शुरू कर दिए. 

क्यों बढ़ा चीन पर अमेरिका का शक? 

चीन लोप नूर टेस्ट साइट पर सालभर से तैयारी कर रहा है. लोप नुर टेस्ट साइट में बड़े स्तर पर खुदाई की गई है. न्यूक्लियर परीक्षण को लेकर चीन पारदर्शिता नहीं बरत रहा है. जिन कम तीव्रता वाले परमाणु बमों के परीक्षण का शक जताया गया है, उन पर चीन और पाकिस्तान साथ में काम कर रहे हैं और इनसे किसी छोटे इलाके को निशाना बनाना आसान होता है. 

पाकिस्तान के FATF के ब्लैक लिस्ट में जाने का खतरा बढ़ गया है

नई दिल्ली: 

पूरी दुनिया इस समय मानवता को बचाने में जुटी है और कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में जुटी है, लेकिन पाकिस्तान इस मुश्किल की घड़ी में भी अपने पुराने ही एजेंडे पर चल रहा है. पाकिस्तान ने अपने आतंक की फैक्ट्री से चुपके से करीब 4 हजार आंतकियों के नाम हटा दिए हैं.

पाकिस्तान की लिस्ट से गायब हुए आंतकियों में मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी भी है. लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर जकी उर रहमान लखवी समेत कई बड़े आतंकियों का नाम इस सूची से बड़ी सफाई से गायब कर दिया गया है.

पाकिस्तान ने ये साजिश ऐसे समय में रची है जब जून में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में पाकिस्तान के भाग्य का फैसला होने जा रहा है. पाकिस्तान फिलहाल FATF के ग्रे लिस्ट में है और अगर पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम नहीं लगा पाता है तो उसे जल्द ही ग्रे लिस्ट से ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाएगा.

इससे पहले इसी साल फरवरी में एफएटीएफ ने कहा था कि उसकी ओर से दिए गए 27 कार्यों में अभी भी 13 को पाकिस्तान पूरा नहीं कर पाया है, हालांकि पाकिस्तान ने दुनिया को भरोसा दिलाया था कि वो आतंक पर लगाम लगाएगा.

वैसे पाकिस्तान FATF के सामने पहले भी चालबाजी दिखा चुका है. फरवरी में FATF की बैठक से ठीक पहले ये ऐलान कर दिया था कि ग्लोबल आंतकी मसूद अजहर लापता है, हांलांकि बाद में पाकिस्तान का ये झूठ बेनकाब हो गया और ये पता चल गया था कि वो बहावलपुर में ISI के संरक्षण में ही छिपा हुआ था.

पाकिस्तान पहले भी आतंक के खिलाफ लड़ाई में दुनिया की आंखों में धूल झोंकने का काम कर चुका है, लेकिन चीन जैसे कुछ मित्र देशों की वजह से हर बार वो अपने उपर होने वाली कड़ कार्रवाई से बच जाता है. लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान बार बार दुनिया के भरोसे को ध्वस्त कर रहा है. उससे पाकिस्तान के FATF के ब्लैक लिस्ट में जाने का खतरा बढ़ गया है.

कोरोना : त्रासदी के साथ अवसर भी @ भारत

      ऐसा माना जा रहा  है कि साल 2020 की शुरुआत ही कोरोना नामक वायरस का मानव पर हमले से हुई और  चीन के  एक शहर वुहान मे चमगादड़ से यह वायरस इन्सान के शरीर मे आया है यह  अत्यंत चिंता  एवं  खोज का विषय तो है ही पर   सवाल चीन की नियत पर  भी उठ रहा है कि  कंही  I विश्व शक्ति बनने की दौड़ मे कभी चीन तो यह नहीं कर रहा है  । विश्व शक्ति बनने के इस  विनाशकारी खेल मे कई बार अमरीका और पूर्व सोवियत संघ रूस आमने सामने आ चुके थे  पर क्या हासिल हुआ यह  सर्व विदित  है

इस  महामारी  से भारत भी अछूता नहीं है 

      पर आशावादी नजरिये से आज के इस लेख क़े माध्यम से मैं आप का ध्यान  भारत के लिए यह  कोरोना   त्रासदी  क़े साथ अवसर   के तौर पर भी  दिलाना चाहूँगा

प्रो . महिपाल सिंह
पूर्व अकादमिक सलाहकार  
अंसल यूनिवर्सिटी

      अगर  आप आकड़ो के हिसाब से देखे तो यह प्रतीत होता है की भारत सब से कम प्रभावित होने वाले देशो मे शुमार  है, पर साथ ही स्वास्थ्य  सेवाओं के  मापदंडो मे बहुत ही निम्न स्तर पर  है। वही दूसरी और  बेहतरीन स्वास्थय  सेवाओं के बावजूद   यूरोप, अमरीका, ग्रेट ब्रिटेन  जैसे विकसित देश  इस ला – इलाज बीमारी का सामना करने मे लगभग विफल साबित हो रहे  है।

      सभी देशो क़े सामने जो सबसे बड़ा  सवाल खड़ा हो रहा है वो ये कि  आज की  दुनिया चीन पर कितनी निर्भर हो गई है,  सिर्फ इस लिए कि चीनी  सामान सस्ता होता  है  तो हम खुद  क्यों उत्पादन  करे? लगभग दुनिया क़े सभी देशो ने अपने  संसाधनों को किनारे कर क़े पूरी तरह  से अपने   उद्योगों  और श्रमशक्ति को  विराम अवस्था मे डाल दिया है।

       परन्तु  जब  कोविड 19   क़े कारण चीन मे प्रोडक्शन लाइन रुक गई  तो सारी दुनिया क़े बाजार संकट मे आ गए और विश्व प्रसिद्ध स्टॉक एक्सचेंज  ‘वाल स्ट्रीट’ तक  में सन 1929 क़े क्रैश से भी तेज गिरावट दर्ज की  गई।   ब्रितानी   पाउंड 35 साल के  निम्न सत्र पर आ गया क्यों कि ब्रिटेन, यूरोप और अमेरिका तथा भारत सहित विकासशील देशो मे बेचे जाने वाली 95 % एंटीबायोटिक दवा चीन उपलब्ध करवाता है।  यह तो  मात्र एक वस्तु का उदाहरण है ऐसी अनेको वस्तुओ  के लिए दुनिया के देश पूर्णतया चीन पर निर्भर हो चुके है।

       अब   भारत क़े पास मैन्युफैक्चरिंग  क्षेत्र मे चीन की जगह लेने का भरपूर अवसर है,  दुनिया के  देशो  के  लिए दवाओं से लेकर स्मार्टफोन  तक  अनेको वस्तुओ की सप्लाई चेन टूट गई है।  इस कारण अफोर्डेबल मैन्युफैक्चरिंग क़े लिए  चीन का विकल्प ढूंढा जा रहा है, बल्कि जापान जैसे कुछ विकसित देशो ने तो चीन मे कार्यरत अपनी कम्पनियों   पलायन कर   दूसरे विकासशील देशो मे उद्योग स्थापित करने की सलाह  तक दे दी है  अब इस   अवसर को भांपते हुए  भारत ने समझदारी भरे कदम उठाये तो यह मौका उनके हाथ लग सकता है। बस शर्त भारत की राजनैतिक इच्छा शक्ति  स्मार्ट अफसरशाही  तथा वर्क फोर्स को ज़्यादा सक्ष्म  और स्किल्ड हो। साथ साथ  अपने हितो को ध्यान मे रख कर विदेशी कम्पनीओ क़े लिए राह और भी आसान बनानी होगी,  तभी आप हर हाथ को काम देने क़े सपने को साकार कर सकते हैं। तब तक सामान  क्षेत्रीय विकास की नीति बना कर प्रवासी मजदूरों की समस्या से निजात  पाई जा सकती है और सही  मे मायनो मे  जी डी पी और प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जा  सकता  है।

      गौरतलब है कि  भारत के पास  सिर्फ मलेरिया से लड़ने की सब से सस्ती  एक दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोकुनीन  है और दुनिया क़े सब मुल्को मे सबसे अधिक भारत मे बनाई जाती है  विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO तथा विकसित देशो के डॉक्टर  इस  दवाई को  कोरोना क़े इलाज मे सब से ज़्यादा कारगर  बता रहे  है

   और विश्व शक्ति  समझने वाले ये  देश आप से इस दवा को  लेने क़े लिए मिन्नत कर रहे है और अपने करोडो  नागरिको  की जिंदगी बचाने  के लिए  उम्मीद भरी नजरो  से आप की तरफ    देख रहे है  अमरीका जहा आप का दिल से शुक्रिया अदा  कर रहा है वही ब्राजील के राष्ट्रपति इस दवा को  हनुमान जी  की संजीवनी बूटी की  संज्ञा दे रहे है तो जरा कल्पना करो आज आप क़े पास  वेंटीलेटर मास्क तथा मानव रक्षक दवाओं का भंडार और  बनाने की क्षमता और कौशल होता तो आप आज अरबो खरबो का व्यापर कर चुके होते और दुनिया मे आप की साख  भी बढ़ती।

      इस आपदा से  यह भी  जगजाहिर  हो गया की हमारे देश का  स्वास्थ्य  तंत्र कितना लचर  है और हॉस्पिटलों  मे  जीवन रक्षक  मेडिकल उपकरण जैसे  मास्क, वेंटिलेटर्स आदि की कमी की बहुत ही  भयावह तस्वीर सामने आई है,  हम कितने सजग है और किन किन  उपकरणों का अपने देश मे निर्माण करते  है और क्या नहीं  तथा   ऐसी वस्तुओ के लिए हम करोडो डॉलर इम्पोर्ट पर खर्च करते है  जो हम अपने कौशल के बल पर देश मे ही निर्माण कर सकते है  यह सही  वक्त है इन अवसरों को  निर्माण मे बदलने का

      देश की राज्य सरकारों  और केंद्रीय सरकार को  साहस जुटाना  होगा वस्तुओ क़े निर्माण  और अनुसन्धान का  उपभोक्तावादी सोच से ऊपर उठ कर निर्माता की सोच बनानी होगी आज यह भी निश्चित हो चुका है की दुनिया को भारत  से कौन सी वस्तुए चाहिए। आज  विश्व समुदाय  हमारी  प्रतीक्षा कर रहा है  

      जैसा की विश्व सतर पर अनुमान लगाया जा रहा है की अगर इस कोरोना बीमारी की उत्पत्ति और प्रसार मे चीन की कुटिल नीयत  शामिल है तो विश्व समुदाय अपने  लाखो  निर्दोष नागरिको  की मौतों  का बदला जरूर लेगा और परिणाम स्वरूप   बहुत ही जबरदस्त आर्थिक प्रतिबंद चीन पर लगाए जा  सकते है  तब तो भारत की पौ बारह हो सकती है

       मेरा अनुमान है की वो समय आ गया है की आप “मेक इन इंडिया” के साथ “मेक बाय इंडिया” का सपना भी साकार कर सकते है उस क़े पीछे एक और सटीक दलील यह  है की  चीन क़े अलग थलग  पड़ने पर  सिर्फ  भारत क़े  पास ही मैनपावर और उद्योगिक इंफ़्रा, निवेश के लिए अनुकूल माहौल मौजूद है जो स्वयं  भारत की घरेलू  जरुरत  और  विश्व की वस्तु निर्माण कंपनियों की जरूरतों को  पूरा कर सकती है।  ऐसी परिस्थितियों  के सन्दर्भ  मे  भगवान श्री कृष्ण ने  विश्व प्रसिद्ध गीता उपदेश मे यही बताया था  की अवसर सिर्फ  अवसर होता है उस क़े साथ कोई किन्तु परन्तु  मत करो  बल्कि जितना जल्दी हो  सके उसका फायदा उठाना चाहिए

            भारत मे अपार सम्भावनाओ के मद्दे नजर   कुछ  क्षेत्रों जैसे कृषि (फल, फूल, मसाले) प्रसंस्करण क्षेत्र, फार्मा क्षेत्र, केमिकल, पेट्रोकेमिकल, आयुर्वेदिक दवा, एक्सपोर्ट, ऑटो पार्ट्स निर्माण, टाइल एवं सेरेमिक उत्पाद, इंटीरियर, हाउस होल्ड गुड्स, डायमंड स्टोन क्राफ्टिंग, वुड एंड प्लास्टिक फर्नीचर गुड्स, मेडिकल औजार  जैसे  डाइलिसिस मशीन, वेंटिलेटर्स, मॉनिटर और सहायक साजो सामान  के स्व देशी  निर्माण  के लिए क्रन्तिकारी विश्व निर्माता नीति बना कर  समयबद्ध और  चरणबद्ध   तरीके से  लागू कर क़े दुनिया क़े सामने मिसाल पेश कर सकते है 

मौलाना साद का मरकज़ एक बड़े षड्यंत्र का सूत्रधार हो सकता है

  • मरकज के खातों में आई थी काफी रकम, बैंक ने किया था अलर्ट
  • हवाला के जरिए ट्रांसफर का शक, क्राइम ब्रांच 17 दिन बाद भी मौलाना तक नहीं पहुंच सकी
  • मरकज के लेन-देन के मामले की जांच ईडी और इनकम टैक्स को सौंपी जा सकती है
  • जांच एजेंसी मौलाना समेत सात आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए लगातार हाथ-पांव मार रही है

जमातियों के जरिये देश में कोरोना फैलाने के बाद से मौलाना साद फरार है लेकिन पुलिस के शिकंजे से दूर रहना उसके लिए ज्यादा दिनों तक संभव नहीं हो पाएगा. पुलिस ने मौलाना साद के जुर्मों का हिसाब करना शुरू कर दिया है. मौलाना साद ने सिर्फ देश में कोरोना वायरस फैलाया बल्कि इसके लिए हवाला के जरिये विदेशों से फंडिंग हासिल की. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, मरकज कार्यक्रम से पहले मौलाना साद के एकाउंट में बड़ी रकम आई.

नई दिल्ली(ब्यूरो):

 मौलाना साद ने सिर्फ देश में कोरोना वायरस फैलाया बल्कि इसके लिए हवाला के जरिये विदेशों से फंडिंग हासिल की. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सूत्रों के मुताबिक, मरकज कार्यक्रम से पहले मौलाना साद के एकाउंट में बड़ी रकम आई. मौलाना साद के चार्टर एकाउंटेंट से एक बैंक ने पूछताछ की थी. 2005 के बाद हवाला के जरिये मरकज के खाते में बड़ी रकम आई. सऊदी अरब और बाकी देशों से खाने-पीने के नाम पर कैश आना शुरू हुआ. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मरकज को नोटिस जारी कर जानकारी मांगी है. निजामुद्दीन मरकज में ज्यादातर फंडिंग हवाला के जरिये हो रही थी. 

जमातियों के जरिये देश में कोरोना फैलाने के बाद से मौलाना साद फरार है लेकिन पुलिस के शिकंजे से दूर रहना उसके लिए ज्यादा दिनों तक संभव नहीं हो पाएगा. पुलिस ने मौलाना साद के जुर्मों का हिसाब करना शुरू कर दिया है. हम आपको पुलिस की कार्रवाई के बारे में बताएंगे लेकिन उससे पहले जमात के हवाला कनेक्शन पर बड़े खुलासे जानिए: 

सबसे बड़ा खुलासा ये है कि मरकज कार्यक्रम से पहले मौलाना साद के खाते में बड़ी रकम आई. 2005 के बाद हवाला के जरिये मरकज के खाते में इतनी बड़ी रकम आई थी. सऊदी अरब और बाकी देशों से खाने-पीने के नाम पर कैश आना शुरू हुआ. सूत्रों के मुताबिक निजामुद्दीन मरकज में ज्यादातर फंडिंग हवाला के जरिये हो रही थी. ये खुलासे दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आए हैं. निजामुद्दीन के एक बैंक अधिकारी ने मौलाना साद के चार्टर एकाउंटेंट से पूछताछ  भी की है. 

साद के खिलाफ ED ने दर्ज किया केस

तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद के खिलाफ अब प्रवर्तन निदेशालय ने भी केस दर्ज कर लिया है. साद के खिलाफ ये केस मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में दर्ज किया गया है. बुधवार को ही दिल्ली पुलिस ने मौलाना साद पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया था. इससे पहले, तबलीगी जमात के मौलाना साद की मुश्किलें पहले से ही बढ़ती हुई नजर आ रही थीं. बुधवार को ही दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम निजामुद्दीन मरकज पहुंची थी. क्राइम ब्रांच ने मरकज से दो रजिस्टर और CPU भी बरामद किए. दिल्ली पुलिस ने

– मौलाना साद और जमात के बाकी आरोपियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया है. 
– इस धारा के तहत कम से कम दस साल या उम्रकैद तक की सज़ा का प्रावधान है. 

इससे पहले, मौलाना साद पर महामारी कानून के तहत केस दर्ज किए गए थे. इस बीच मौलान साद के ससुराल तक कोरोना वायरस पहुंच गया है.  यूपी के सहारनपुर में साद की ससुराल है, जहां पर उसके दो रिश्तेदार कोरोना संक्रमित पाए गए हैं. साद के ये दोनों रिश्तेदार लॉकडाउन से पहले निजामुद्दीन के एक होटल में रुके थे.  

कुल मिलाकर मौलाना साद की मुश्किलें हर ओर से अब बढ़ती ही नजर आ रही हैं. शुरुआत से ही पहले पुलिस की चेतावनी को नजरअंदाज करना और फिर अब नोटिस के बाद भी पुलिस से छिपना ये बता रहा है कि मरकज की आंड़ में कैसे मौलाना साद कोरोना के जरिए देश में साजिश रचने का काम कर रहा था. 

चीन की जीडीपी वर्ष 2020 की पहली तिमाही में यह 6.8 प्रतिशत घट गई

बीजिंग: 

चीन की जीडीपी में 1976 की विनाशकारी सांस्कृतिक क्रांति के बाद से अब तक की सबसे बड़ी गिरावट आई है. वर्ष 2020 की पहली तिमाही में यह 6.8 प्रतिशत घट गई. इस दौरान कोरोना वायरस महामारी का मुकाबला करने के लिए उठाए गए अप्रत्याशित उपायों के चलते दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थम सी गई थी.

चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) ने शुक्रवार को कहा कि 2020 की पहली तिमाही (जनवरी से मार्च) में चीन का सकल घरेलू उत्पाद 20,650 अरब युआन (लगभग 2910 अरब डॉलर) रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 6.8 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है.

एनबीएस के आंकड़ों के मुताबिक इस तिमाही के पहले दो महीनों में 20.5 फीसदी की कमी आई. इस तरह तीसरे महीने में अपेक्षाकृत कुछ सुधार आया.

चीन की अर्थव्यवस्था में 2019 में 6.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी. अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के कारण यह वृद्धि दर पिछले 29 वर्षों में सबसे कम थी, लेकिन छह प्रतिशत के मनोवैज्ञानिक स्तर से ऊपर रही थी.

पिछले साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर से सामने आए कोरोना वायरस ने चीन और दुनिया को बुरी तरह प्रभावित किया है और ताजा आंकड़ों से साफ है कि इसके चलते चीन की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा, जो पहले से ही सुस्ती के दौर में चल रही थी.

विदेशी नागरिकों का नियमित वीजा और ई-वीजा 30 अप्रैल तक नि:शुल्क बढ़ेगा

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

 सरकार ने कोविड-19 के कारण भारत में फंसे विदेशी नागरिकों का नियमित वीजा और ई-वीजा 30 अप्रैल तक नि:शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है। गृह मंत्रालय ने यह जानकारी दी। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 24 मार्च को देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की गई थी जिसके बाद से विदेशी नागरिक यहां फंसे हुए हैं।

भारत सरकार द्वारा लगाए गए यात्रा संबंधी प्रतिबंधों की वजह से भारत में फंसे विदेशी नागरिकों के नियमित वीज़ा, ई-वीज़ा या स्टे स्टेपुलेशनतथा ऐसे विदेशी नागरिक जिसके वीजा की अवधि समाप्‍त हो चुकी है  या 01.02.2020 (मध्यरात्रि) से 30.04.2020 (मध्यरात्रि) के दौरान समाप्त हो रही है, तो उसे विदेशी नागरिक द्वारा ऑनलाइन आवेदन करने के बाद, निशुल्‍क आधार पर 30 अप्रैल 2020 (मध्यरात्रि) तक बढ़ाया जाएग

जनता के भ्रम को  दूर करने के उद्देश्‍य से यह सूचित किया जाता है कि कोविड 19 के प्रकोप के कारण यात्रा पर लगे प्रतिबंधों की वजह से वर्तमान में 30 अप्रैल 2020 तक भारत में रह रहे विदेशी नागरिकों कोकेंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 28.03.2020 को निशुल्‍क आधार पर दूतावास की सेवाएं (या कांसुलर सर्विसिज) प्रदान की थीं।

जापान और अमेरिका के बाद क्या कोरोना त्रस्त राष्ट्र चीन से आर्थिक दूरी(Economic Distancing) बनाएँगे?

चीन की गलती के कारण विश्व में फैली करो ना वायरस के चलते अब दुनिया भर के देशों में मंदी का साया मंडराने लगा है। काफी समय लोग डाउन के कारण हर दिन लाखों करोड़ों का नुकसान हो रहा है। बिगड़ती अर्थव्यवस्था को देखते हुए अब दुनिया भर के देशों ने चीन पर ही इस वायरस को फैलाने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। ब्रिटेन के कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों ने जहां चीन पर कानूनी कार्रवाई और मुकदमा करने की मांग की है वहीं भारत में अब चीनी सामानों का बहिष्कार की आवाज उठने लगी है। योग गुरु रामदेव ने दुनिया भर में फैले कोरोनावायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया है। योग गुरु ने कहा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चीन का राजनीतिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार करना चाहिए चीन का आर्थिक बहिष्कार भारत की जनता द्वारा उपयोग किया जाने वाला ऐसा हथियार है, जो युद्ध से भी ज्यादा प्रभावशाली है।

दुनिया के तमाम बड़े बड़े देश अब चीन पर अपनी निर्भरता कम या फिर पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं और इसकी शुरुआत जापान और अमेरिका ने कर दी है लेकिन सवाल ये है कि अगर बड़ी बड़ी कंपनियां चीन छोड़ देती हैं तो इससे दुनिया के किन देशों को फायदा होगा ? और चीन के मुकाबले कौन से देश नया विकल्प बन सकते हैं.

दिल्ली ब्यूरो:

आप इसे चीन की लापरवाही कहिए या फिर साजिश लेकिन सच ये है कि एक देश की वजह से आज पूरी दुनिया जीवन और मृत्यु के एक ऐसे चक्र में फंस गई है जिससे बाहर निकलने की कोई सूरत फिलहाल दिखाई नहीं दे रही लेकिन इसके लिए चीन को क्या सज़ा दी जानी चाहिए? पूरी दुनिया इस समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रही है लेकिन क्या चीन को सबक सिखाने के लिए दुनिया को उसके साथ ECONOMIC DISTANCING करनी चाहिए ? यानी क्या दुनिया को चीन का आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए?

दुनिया के दो देशों ने इस पर काम शुरू कर दिया है. जापान और अमेरिका अब चीन को उसके कर्मों की सज़ा देने की कोशिश कर रहे हैं . इस हफ्ते मंगलवार को जापान ने एक बहुत बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. ये आर्थिक पैकेज 75 लाख करोड़ रुपये का है. ये जापान की कुल जीडीपी का 20 प्रतिशत है. आगे बढ़ने से पहले आप इस विषय पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का ये बयान सनिए: 

कहा जा रहा है कि शिंजो आबे ने इतने बड़े पैकेज का ऐलान करके जापान को संदेश देने की कोशिश की है क्योंकि इस राहत पैकेज के जरिए जापान अपनी बड़ी बड़ी कंपनियो और फैक्ट्रियों को चीन से वापस बुलाना चाहता है. जापान की जो कंपनियां ऐसा करेंगी उन्हें सरकार इस राहत पैकेज के तहत आर्थिक मदद देगी जो कंपनियां जापान वापस आएंगी उनके लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये और जो कंपनियां चीन के छोड़कर किसी और देश में जाएंगी उनके लिए 1600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. जापान ने अपनी कंपनियों को साफ साफ दिया है कि वो चीन को छोड़कर किसी भी देश में जाने के लिए स्वतंत्र हैं.

चीन से अमेरिकी कंपनियों का पलायन भी शुरू हो गया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी की वजह से कई कंपनियां अब चीन छोड़ने पर मजबूर हैं . चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार यानी व्यापार युद्ध भी चल रहा है और यही वजह है कि पिछले वर्ष अमेरिका की करीब 50 कंपनियों ने पिछले साल ही चीन को गुड बाय कह दिया था और इस साल चीन छोड़ने वाली अमेरिकी कंपनियों की संख्या तेज़ी से बढ़ सकती हैं. कंसल्टिंग फर्म KEARNEY के मुताबिक चीन के प्रति अब दुनिया भर की कंपनियों का रवैया बदलने लगा है .

अब ये कंपनियां चाहती हैं कि वो दुनिया के अलग अलग देशों में कारोबार करे और अपनी फैक्ट्रियां लगाएं ताकि चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके. दरअसल, चीन पिछले कई दशकों से दुनिया की फैक्ट्री बना हुआ , आपके जीवन से जुड़ी कई छोटी बड़ी चीज़ें भी चीन से ही बनकर आती है . लेकिन कोरोना वायरस की वजह से जब चीन में उत्पादन ठप हुआ तो पूरी दुनिया को ये समझ आ गया है कि चीन पर निर्भर रहने का अर्थ है अपनी ज़रूरतों से समझौता करना. दुनिया के करीब 400 करोड़ लोग इस समय लॉकडाउन में हैं और अगर कंपनियां चीन से माल खरीद ही नहीं पाएंगी तो इन 400 करोड़ लोगों तक जरूरत का सामान पहुंचेगा कैसे?

इसलिए दुनिया के तमाम बड़े बड़े देश अब चीन पर अपनी निर्भरता कम या फिर पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं और इसकी शुरुआत जापान और अमेरिका ने कर दी है लेकिन सवाल ये है कि अगर बड़ी बड़ी कंपनियां चीन छोड़ देती हैं तो इससे दुनिया के किन देशों को फायदा होगा ? और चीन के मुकाबले कौन से देश नया विकल्प बन सकते हैं.

दुनिया में फिलहाल 5 ऐसे देश हैं जो चीन की जगह ले सकते हैं. इसमें पहला नाम भारत का है. भारत चीन के पैमाने पर ही लेबर फोर्स मुहैया करा सकता है क्योंकि आबादी के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है और चीन की ही तरह भारत में भी श्रम लागर बहुत कम है. दूसरे नंबर पर वियतनाम है जो कोरोना वायरस के संकट से पहले भी अमेरिका को करीब 5 हज़ार तरह के उत्पाद बेच रहा था. इसके अलावा थाइलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया को भी इससे काफी फायदा हो सकता है, क्योंकि इन देशों की आबादी भी अच्छी खासी है और इन देशों में भी श्रम लागत काफी कम है और इन पांचों देशों के पास सस्ते दामों पर कच्चा माल भी उपलब्ध है.

फिलहाल चीन दुनिया की फैक्ट्री है. आपके मोबाइल फोन से लेकर दीवाली पर लगाई जाने वाली लाइटें तक चीन में ही बनती है . चीन बड़ी सैन्य शक्ति ही नहीं बल्कि एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी है इसलिए किसी भी बड़े देश की कंपनियों के लिए चीन छोड़ने का फैसला आसान नहीं है लेकिन यहां आपको ये भी समझना चाहिए कि चीन ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को इतना सक्षम बनाया कैसे ? और उसकी उपलब्धियां क्या हैं.

चीन 70 वर्षों में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सक्षम रहा है. चीन का लक्ष्य इस वर्ष के अंत तक अपने देश से गरीबी को पूरी तरह खत्म करना है. पिछले 70 वर्षों में हर 8 साल के दौरान चीन की अर्थव्यस्था का आकार दोगुना होता रहा है .

वर्ष 2050 तक चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिकी से दोगुनी हो जाएगी, हालांकि कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ये चमत्कार 2030 से पहले भी कर सकता है. हालांकि, चीन को अभी भी एक विकासशील देश माना जाता है. लेकिन ऐसा इतिहास में पहली बार हो रहा है जब कोई विकासशील देश दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है.

ये भी सच है कि चीन ने आर्थिक तरक्की का सफर 70 वर्ष पहले नहीं बल्कि सिर्फ 42 साल पहले शुरू किया था. 1978 में चीन में डेंग ज़ाओपिंग सत्ता में आए और उन्होंने उदारीकरण की शुरुआत की, यानी चीन ने दुनिया के लिए अपने दरवाज़े भारत से 13 वर्ष पहले खोल लिए थे. भारत में आर्थिक उदारीकरण का दौर 1991 में शुरु हुआ था.

1978 में चीन की अर्थव्यवस्था सिर्फ 150 बिलियन डॉलर्स यानी आज के हिसाब से 10 लाख करोड़ रुपये थी . चीन की अर्थव्यवस्था 1997 में बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 73 लाख करोड़ रुपये हो गई . और आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत से कई गुना ज्यादा बड़ी है जिसका आकार करीब 14 ट्रिलियन डॉलर्स का है. ये 1100 लाख करोड़ रुपये के बराबर है . ये भारत की अर्थव्यवस्था से करीब 5 गुना ज्यादा है.

वर्ष 1980 में चीन विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य बना और चीन में चार स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाए गए. दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां चीन आने लगीं, क्योंकि चीन में श्रम लागत बहुत कम है. इसलिए चीन कुछ ही वर्षों में दुनिया की फैक्टरी बन गया. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक Deng Xiaoping (डेंग ज़ाओपिंग) ने एक बार कहा था कि समाजवाद का मतलब गरीबी नहीं है, अमरी होना भी यशस्वी होने के बराबर है.

आज चीन सिर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं बल्कि सैन्य और कूटनीतिक तौर पर भी दुनिया के शक्तिशाली देशों में शामिल है जो काम डेंग जाओपिंग ने शुरू किया था उसे आज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन शी ये काम कैसे कर रहे हैं और कैसे उनके इस उद्देश्य में चीन की संस्कृति उनकी मदद कर रही है ये आपको समझना चाहिए. आधुनिक इतिहास में ऐसा पहली बार है, जब दुनिया की किसी सुपर पावर का संबध पश्चिम से नहीं पूर्व से है. आज हम आपको चीन के आर्थिक विकास में छिपे खतरों के बारे में भी बताएंगे लेकिन पहले आपको ये समझना चाहिए कि चीन ने 40 वर्षों में ये चमत्कार आखिर किया कैसे?

1978 तक चीन में महानदार्शनिक Confucius मूल्यों को बहुत महत्व दिया जाता था. इन मूल्यों में मानवता, ज्ञान, एकजुटता, वफादारी, और सही आचरण जैसी बातें शामिल थी . लेकिन चीन की कम्युनिस्ट सरकारों ने धीरे-धीरे इन मूल्यों को आधुनिकता के साथ जोड़ने का काम शुरु किया और इस विकास यात्रा में कुछ मूल्यों को सिरे से भूला भी दिया गया .

एतिहासिक तौर चीन में हमेशा से शासन करने वालों को बहुत सम्मान दिया जाता रहा है. चीन की संस्कृति के मुताबिक वहां शासक को एक संरक्षक माना जाता है. यानी चीन के पारिवारिक मूल्यों में भी सत्ता का प्रभाव अक्सर दिखाई देता है. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में सरकार और समाज को एक ही यूनिट माना जाता है.

इसलिए वहां की सरकार जब सख्त नियम लागू करती है, तो ज्यादातर लोग इनका विरोध नहीं करते, बल्कि ये मान लेते हैं कि ये नियम घर के किसी बड़े ने उनको लाभ पहुंचाने के लिए तय किए हैं. यानी चीन में सत्ता को बहुत शक्तिशाली माना जाता है और उसके खिलाफ जाने की हिम्मत कोई नहीं करता. कोरोना वायरस के दौर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा लिए गए फैसले भी इसी अनुशासन का उदाहरण है. शी ने खुद को चीन की सत्ता का केंद्र बना लिया है और वो आने वाले कई वर्षों तक चीन के लोगों के इस अनुशासन के दम पर राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं .

अब आपको चीन की कमज़ोरियों को भी समझना चाहिए. चीन की सबसे बड़ी कमज़ोरी है वहां विपक्ष और लोकतंत्र का अभाव. ये चीन की विकास यात्रा का वो पहलू है जिससे भारत ने हमेशा बचने की कोशिश की है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और एक लोकतंत्र की विशेषता ये होती है कि वहां सब की बात सुनी जाती है. विपक्ष को भी अहमियत दी जाती है. लोगों की राय का सम्मान किया जाता है. विरोध प्रदर्शन को दबाया नहीं जाता, बल्कि इसे लोकतंत्र की ताकत माना जाता है. हालांकि इसकी वजह से कई बार विकास की रफ्तार धीमी हो जाती है . लक्ष्य वक्त पर हासिल नहीं हो पाते . इसलिए कुछ लोग इसे डेमोक्रेसी टैक्स भी कहते हैं. चीन में अमीर और गरीबों के बीच की खाई पहले से भी बड़ी हो गई है. चीन के ग्रामीण इलाकों में ये असमानता बहुत ज्यादा है और चीन की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आज भी कम कुशल है . यानी इनकी काम करने कुशलता बहुत कम है. हालांकि चीन को कभी एशिया के सबसे गरीब और दरिद्र देशों में शामिल किया जाता था, लेकिन आज चीन दुनिया की महाशक्ति बन गया है.

अब यहां आपको चीन से जुड़ा एक एतिहासिक पहलू बताते हैं . चीन में सरकार और शक्तिशाली लोगों के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सज़ा देने का इतिहास रहा है और जो लोग महामारियों से जुड़ा सच बताते हैं उन्हें भी कई बार मौत के घाट उतार दिया जाता है.

उदाहरण के लिए चीन के जिस डॉक्टर Li Wenliang (ली वेनलियांग) ने सबसे पहले कोरोना वायरस के खतरे से आगाह किया था उन्हें चीन की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उनकी कोरोना वायरस से ही मौत हो गई. 2002 में SARS Virus के बारे में बताने वाले सर्जन को भी 45 दिनों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था. 

2008 में चीन में एक व्यक्ति ने दूध कंपनियों के भ्रष्टाचार को उजागर किया था. ये कंपनियां दूध में खतरनाक केमिकल की मिलावट कर रही थी जिसकी वजह से 54 हज़ार बच्चों को अस्पताल में भर्ति कराना पड़ा था लेकिन ये खुलासा करने वाले Whistel Blower की भी चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी गई .

लेकिन चीन में सच कहने वालों को सज़ा देने का इतिहास बहुत पुराना है . ढाई हज़ार साल पहले महान दार्शनिक Confucius के एक शिष्य Zhong You ने जब भ्रष्टाचार के मामले को उजागर किया तो उसकी

भी निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी . कहा जाता है कि Zhong You के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे और कहा जाता है कि इसके बाद Confucius ने जीवन में फिर कभी मांस को हाथ नहीं लगाया. यानी Confucius से लेकर Communism तक चीन का इतिहास तो बदलता रहा लेकिन उसकी जन विरोधी प्रथाएं नहीं बदलीं.

नेपाल का ज़ालिम मुखिया भारत में कोरोना फैलाने की फिराक में

भारत में कोरोना का कहर जारी है. इस वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन है. इसी बीच बिहार से एक ऐसा मामला सामने आया जहां आरोप है कि पड़ोसी देश नेपाल का रहना वाला जालिम मुखिया भारत में कोरोना वायरस फैलाने की योजना बना रहा है. पूरा देश इन दिनों संपूर्ण लॉकडाउन और सीलिंग की वजह से कैद है. बावजूद इसके कोरोना वायरस का कहर रोके नहीं रुक रहा. देश में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़कर 64 सौ से ज्यादा हो गई है. 199 लोगों की अबतक मौत हो चुकी है. गुरुवार को दिल्ली में कोरोना के 51 नए केस आने के बाद 720 हो गई है, जिनमें 430 मरकज से जुड़े हैं.

जालिम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का स्थानीय नेता है

नई दिल्ली (ब्यूरो)10 अप्रैल:

 बिहार से कोरोना वायरस से जुड़ी एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है. बेतिया के डीएम ने एसपी को पत्र लिखकर बिहार-नेपाल बॉर्डर के संबंध में अलर्ट किया है. इसमें कहा गया है कि तस्कर जालिम मुखिया कोरोना संक्रमित भारतीय मुस्लिमों को भेजकर कोरोना फैलाने की साजिश रच रहा है. 

जालिम मुखिया थाना सेमरा नेपाल से है और भारत में कोरोना फैलाने का प्लान बना रहा है. उसका प्लान 40 से 50 कोरोना संदिग्ध भारतीय मुसलमानों को भारत भेजने का है. जालिम मुखिया हथियार तस्करी, ड्रग्स आदि का धंधा करता है. 

जानकारी के मुताबिक जालिम मुखिया को जालिम मियां के नाम से भी जाना जाता है. जालिम मुखिया बिहार नेपाल सीमा पर स्थित नेपाल के पर्सा जिले के जगरनाथपुर गांव पालिका का मेयर है. जालिम नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का स्थानीय नेता है.

इस मामले में SSB की 47 बटालियन को सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है और बगहा, नरकटियागंज, सिकटा मैनताड़, और गौनाहा बॉर्डर पर सतर्कता बढ़ाने का निर्देश दिया गया है. 

SSB के पत्र पर बिहार के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी का कहना है कि सभी बिंदुओं पर जांच की जा रही है, गृह मंत्रालय को भी जानकारी दी गई है. उन्होंने कहा कि लोग घुसे नहीं हैं बल्कि घुसने की फिराक में हैं. वहां के डीएम और एसपी को निर्देश दिया गया है. 

आमिर सुबहानी ने कहा कि इन लोगों को घुसने नहीं दिया जाएगा. मामला नेपाल में है लेकिन हमने अपने अधिकारियों को अलर्ट कर दिया है. मरकज मामले में  कार्रवाई हो रही है. 

3 अप्रैल को SSB ने जिला प्रशासन से ये इनपुट शेयर किया था. उसके बाद पश्चिम चंपारण DM ने पुलिस को अलर्ट किया. 

इस मामले में बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि जालिम मुखिया मामले में 4 दिन पहले जिले के डीएम, एसपी को अलर्ट के लिए बोला गया है. कोरोनो संक्रमित लोगों की सूचना दी गई थी. लेकिन सूचना अभी तक पुष्ट नहीं हो पाई है.

वहीं क्वारंटाइन के नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर अब मुकदमा दर्ज होगा. गोपालगंज जैसे मामलों पर पुलिस गंभीर है.  सिवान में एक ही परिवार के कई लोग चपेट में आए हैं. जिन इलाकों को सील किया गया है वहां कर्फ्यू जैसे हालात हैं.