गोगोई की बिसात पर भाजपा की मात


ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस मुद्दे पर विपक्ष उनके पीछे खड़ा हुआ है


एनआरसी को लेकर हंगामा जारी है. विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया है. संसद में भी इस मसले को लेकर बवाल चल रहा है. दोनों पक्ष इस मसले को तूल दे रहे हैं. विपक्ष की तरफ से लोकसभा में दो स्थगन प्रस्ताव भी दिया गया है. एक कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी की तरफ से दूसरा टीएमसी के सौगत राय की तरफ से. वहीं टीएमसी की अध्यक्ष के दिल्ली दौरे से इस मामले में और भी राजनीतिक उबाल आ गया है. ममता बनर्जी ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है, वहीं बीजेपी के दो बागी नेताओं के साथ इस पूरे मसले पर राय मशविरा कर रही हैं, जिसमें यशंवत सिन्हा और राम जेठमलानी शामिल हैं.

टीएमसी के सांसदों ने संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने धरना भी दिया है. टीएमसी सांसदो का एक दल हालात का जायज़ा लेने के लिए असम जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि एनआरसी का मसला एकबार फिर बीजेपी और टीएमसी के बीच फ्लैश प्वाइंट बनता जा रहा है. टीएमसी उन 40 लाख लोगों को बंगाल में बसाने की पेशकश कर रही है. वहीं बीजेपी बंगाल में एनआरसी जैसी प्रक्रिया अपनाने को लेकर बयानबाज़ी कर रही है. हालांकि इस पूरे राजनीतिक माहौल में कांग्रेस अलग-थलग दिखाई दे रही है. वैसे राज्यसभा में कांग्रेस ने इस मसले को पुरज़ोर ढंग से उठाने का प्रयास किया है.

ममता-माया साथ-साथ

इस पूरे मामले में ममता बनर्जी ने राजनीतिक बाज़ी मार ली है. ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस मुद्दे पर विपक्ष उनके पीछे खड़ा हुआ है. मायावती ने सरकार से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है. मायावती ने ममता के सुर में सुर मिलाया है. दोनों का आरोप है कि सरकार इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रही है. मायावती ने आरोप लगाया है कि सरकार इसका चुनावी फायदा उठाना चाहती है. बीएसपी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि असम में रह रहे 40 लाख से अधिक धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के नागरिकता को ही समाप्त करके बीजेपी की केंद्र और असम सरकार ने अपनी स्थापना के संकीर्ण और विभाजनकारी राजनीतिक मकसद को हासिल कर लिया है. लेकिन इससे जो नई उन्मादी समस्या पैदा हो रही है उसके दुष्प्रभाव को संभालना मुश्किल होगा. इसलिए सरकार को बैठक बुलाकर इसपर सुरक्षात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.

बीजेपी का रूख सख्त

इस मसले को लेकर राज्यसभा में भी काफी हंगामा हुआ है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस को घेरा है. अमित शाह ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस लेकर आई है. ये राजीव गांधी के वक्त असम एकॉर्ड का हिस्सा था. लेकिन इसको लागू नहीं किया गया था. बीजेपी की सरकार आने पर लागू किया गया है, क्योंकि बीजेपी ने हिम्मत दिखाई है.

ज़ाहिर है कि अमित शाह को लग रहा है कि बीजेपी के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा साबित हो सकता है इसलिए बीजेपी इस मसले पर कांग्रेस को घेर रही है. बीजेपी को चुनाव से पहले इतना बढ़िया मुद्दा नहीं मिल सकता है. बीजेपी लगातार कहती रही है कि असम में अवैध रूप से विदेशी बंग्लादेशी नागरिक रह रहे हैं, जिससे निजात पाना ज़रूरी है. हालांकि, एनआरसी का ये फाइनल ड्राफ्ट नहीं है लेकिन 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है. बीजेपी ने इस मुद्दे को बढ़ाते हुए बंगाल को भी घेरने की कोशिश की है. बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि बीजेपी को बंगाल की सत्ता हासिल हुई तो राज्य में एनआरसी की व्यवस्था लागू करेगी. ज़ाहिर है कि निशाने पर ममता बनर्जी हैं. बीजेपी का आरोप है कि टीएमसी अवैध रूप से रह रहे लोगों को भारत में बसाने का प्रयास कर रही है. बंगाल में बीजेपी की जद्दोजहद जारी है. पार्टी अपने विस्तार के लिए मुद्दों की तलाश में है.

राजनैतिक मुद्दे गँवाती कांग्रेस

इस मसले को लेकर कांग्रेस परेशान है. बंगाल में पार्टी की स्थिति और खराब हो सकती है. इसका उदाहरण संसद परिसर में देखने को मिला है. जब केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे और कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य में तीखी बहस हो गई. इससे पता चलता है कि कांग्रेस के बंगाल के नेता किस तरह दबाव में हैं. कांग्रेस को लग रहा है कि बंगाल में बचा-खुचा कांग्रेस का मुस्लिम वोट टीएमसी में शिफ्ट कर सकता है.

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मनमोहन सिंह ने इसकी शुरूआत की थी. ये असम समझौते का हिस्सा था लेकिन जिस तरह इसको अमली जामा पहनाया गया है, ये सही नहीं है. कांग्रेस ने इस मसले को ज़ोरदार ढंग से उठाया है. लेकिन इसका कांग्रेस को राजनीतिक फायदा होगा ये कहना मुश्किल है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल किया है. गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि एनआरसी को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए, इसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. ये मानवाधिकार का मामला है, हिंदू मुस्लिम का नहीं है. कांग्रेस को लग रहा है ये मसले पार्टी के लिए दोधारी तलवार हैं. अगर बोले तो बीजेपी मुस्लिमपरस्त साबित करने की कोशिश करेगी. अगर नहीं बोले तो पार्टी के धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को नुकसान हो सकता है.

गोगोई ने की हिटविकेट 

असम में ज्यादातर लोग इस हंगामे के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार मानते हैं. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बयान से पार्टी की जान सांसत में है. पंद्रह साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस लेकर आई थी. हालांकि इस तरह से लोगों के बेदखल करने का विरोध पूर्व मुख्यमंत्री ने किया है. लेकिन कांग्रेस के हाथ से ये मुद्दा निकल गया है. कुल मिलाकर इस मसले पर कांग्रेस फंस गई है. कांग्रेस को नहीं लग रहा था कि इतनी बड़ी तादाद में लोग रजिस्टर से बाहर हो जाएंगे, जो राजनीतिक बिसात बिछाने की कोशिश तरुण गोगई ने की थी, उसका फायदा बीजेपी ने उठा लिया है. कांग्रेस के हाथ में कुछ नहीं आया है.

जानकार कहते हैं कि तरुण गोगोई ने एआईयूडीएफ के विरोध में कांग्रेस को असम में बहुसंख्यक पार्टी बनाने की तैयारी की थी. लेकिन बीजेपी के हिंदुत्व के आगे गोगोई की ये चाल फेल हो गई है. कांग्रेस के पास हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. हालांकि मुस्लिम जमात इस मसले पर अभी सरकार के रुख का इंतज़ार कर रहे हैं. जमीयत उलेमा हिंद के अरशद मदनी ने कहा है कि घबराने की जरूरत नहीं है. अभी ये फाइनल लिस्ट नहीं है. जमीयत के कार्यकर्ता सभी को अपना नागरिकता साबित करने में मदद करेंगे इसलिए लोग संयम से काम लें. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि ये फाइनल लिस्ट नहीं है.

भाजपा को घेरने आए विपक्ष भाजपा से ही घिर गई


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक संग्राम छिड़ा है.


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर संसद लेकर सड़क तक संग्राम छिड़ा है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में जैसे ही इस मुद्दे पर बोलना शुरू किया, हंगामा तेज हो गया. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित करनी पड़ी.

आखिर विपक्षी दल एनआरसी के मुद्दे पर इतना हंगामा क्यों कर रहे हैं. विपक्षी दल लगातार बीजेपी पर हमलावर क्यों है. ये चंद सवाल हैं जिसको लेकर गुवाहाटी से लेकर दिल्ली तक की राजनीति गर्म है.

दरअसल, असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी करने के बाद से ही हंगामा तेज हो गया है. इस मसौदे के मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को भारत का वैध नागरिक मान लिया गया है. हालांकि, वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन, इनमें से 40,07,707 लोग यह साबित नहीं कर पाए कि वे भारत के नागरिक हैं.

एनआरएसी के नए ड्राफ्ट के हिसाब से अब चालीस लाख से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ेगा. इसी के बाद हंगामा तेज हो गया है. विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. कांग्रेस से लेकर टीएमसी तक और एसपी-बीएसपी तक सबकी तरफ से सरकार पर हमला तेज कर दिया गया है.

विपक्षी दलों ने एनआरएसी के मुद्दे को लेकर सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगाया है, जबकि सरकार की तरफ से सफाई यही दी जा रही है कि यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है.

बात पहले विपक्ष की करें तो इस मुद्दे पर कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान कहा कि एनआरसी को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए और इसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. ये मानवाधिकार का मामला है, हिंदू-मुस्लिम का नहीं. कांग्रेस की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरा जा रहा है. सरकार पर ध्रुवीकरण की राजनीति का आरोप लगाया जा रहा है.

उधर, टीएमसी ने भी इस मुद्दे को लेकर हंगामा शुरू कर दिया है. टीएमसी ने इस मुद्दे को लेकर संसद परिसर में धरना भी दिया. राज्यसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है, लेकिन, अब लोकसभा के भीतर भी टीएमसी इस मुद्दे पर चर्चा चाहती है.

असम में भारतीय नागरिकता साबित करने को लेकर एनआरसी तैयार हो रहा है, लेकिन, इसका असर पश्चिम बंगाल में भी दिख रहा है. पश्चिम बंगाल में भी अवैध रूप से रह-रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद को लेकर सियासत होती रही है. अब जबकि बीजेपी नेताओं की तरफ से असम की ही तर्ज पर पश्चिम बंगाल में भी ऐसा करने की बात कही जा रही है तो फिर टीएमसी इस मुद्दे पर पलटवार कर रही है.

लेकिन, टीएमसी ही नहीं इस मुद्दे पर एसपी, बीएएसपी और आरजेडी जैसे विरोधी दल भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. मायावती ने इसे बीजेपी और आरएसएस की विभाजनकारी नीतियों का परिणाम बताया है. समाजवादी पार्टी सांसद रामगोपाल यादव ने भी सरकार पर एनआरसी के मुद्दे को लेकर हमला बोला है.

लेकिन, विपक्ष के हमले का बीजेपी भी अपने अंदाज में जवाब दे रही है. राज्यसभा में चर्चा के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जैसे ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिया वैसे ही सदन में कांग्रेस के सदस्यों ने हंगामा कर दिया. अमित शाह ने कहा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसकी आत्मा एनआरसी है. उन्होंने कहा कि अवैध घुसपैठियों की पहचान की बात इसमें की गई थी. अमित शाह ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि आपमें हिम्मत नहीं थी इसलिए आप इस पर आगे नहीं बढ़ पाए, लेकिन, हमारे अंदर हिम्मत है तो हम इस पर आगे बढ पा रहे हैं.

बीजेपी अध्यक्ष के संसद के भीतर कांग्रेस को घेरने के बाद कांग्रेसी सांसद राज्यसभा में वेल में आ गए. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई. लेकिन, बीजेपी इस मुद्दे पर विपक्ष को घेरने की पूरी कोशिश कर रही है. उसे लगता है कि इस मुद्दे पर जितनी चर्चा होगी, विपक्ष उतना ही बैकफुट पर जाएगा. लिहाजा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अलग से प्रेस कांफ्रेस बुलाकर इस मुद्दे पर विपक्ष के रवैये को लेकर सवाल खड़ा कर दिया.

बीजेपी इस मुद्दे पर असम समेत पूरे नॉर्थ-ईस्ट में विपक्ष पर बढ़त लेना चाहती है. भले ही यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है, लेकिन, अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को बीजेपी पहले से ही उठाती रही है. एनआरसी के मुद्दे पर भले ही हंगामा कर विपक्ष की तरफ से बीजेपी को घेरने की कोशिश हो रही है, लेकिन,इस मुद्दे पर बीजेपी को सियासी फायदा ही मिलने वाला है, क्योंकि यह उसके मुख्य मुद्दे में से एक रहा है.

असम में ममता बनर्जी पर FIR


असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी हो चुका है. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.90 करोड़ आवेदक वैध पाए गए हैं. 40 लाख आवेदकों का नाम ड्राफ्ट से गायब है


असम NRC मुद्दे पर डिब्रुगढ़ जिले के नाहरकटिया पुलिस थाने में ममता बनर्जी के खिलाफ एफआईआर हुआ है. ममता पर प्रदेश की सांप्रदायिक सद्भावना को नुकसान पहुंचाने की कोशिश का आरोप लगाया गया है.

यह एफआईआर जगदीश सिंह, मृदुल कलिता और अमुल्य चेंगलारी नाम के तीन लोगों ने दर्ज करवाई है. ये तीनों बीजेपी युवा मोर्चा के सदस्य बताए जा रहे हैं. एफआईआर के मुताबिक ममता बनर्जी असम में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने और NRC की शांतिपूर्ण प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं. ममता बनर्जी ने एनआरसी से 40 लाख लोगों को बाहर रखने पर केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था.

क्या कहा था ममता ने?

दिल्ली स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाली ही नहीं अल्पसंख्यकों, हिंदुओं और बिहारियों को भी एनआरसी से बाहर रखा गया है. 40 लाख से ज्यादा लोगो जिन्होंने कल सत्ताधारी पार्टी के लिए वोट किया था आज उन्हें अपने ही देश में रिफ्यूजी बना दिया गया है. ममता ने कहा, ‘वे लोग देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. यह जारी रहा तो देश में खून की नदियां बहेंगी, देश में सिविल वॉर शुरू हो जाएगा.’

ममता बनर्जी ने NRC पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि जिन 40 लाख लोगों के नाम एनआरसी से बाहर किए गए हैं वे नेहरू-लियाकत पैक्ट, इंदिरा पैक्ट के मुताबिक वे भारतीय नागरिक हैं. बिहार, तमिलनाडु और राजस्थान के कई लोगों के नाम वहां नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अगर बंगाली कहें कि वे बंगाल में नहीं रह सकते, अगर दक्षिण भारतीय कहें कि वे उत्तर भारतीयों को नहीं रहने दे सकते इस देश के हालात कैसे होंगे? अगर हम साथ रह रहे हैं तो यह देश हमारे लिए परिवार की तरह है.

कौन सी गलती करना चाहती हैं ममता?

ममता ने यह भी कहा कि किसी भी अच्छी वजह के लिए लड़ना गलत है तो हम ये गलती करेंगे. उन्होंने नाम न लेते हुए कहा कि सिर्फ एक ही पार्टी के सदस्यों का अधिकार है कि वे देश से प्यार करें.

असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी हो चुका है. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.90 करोड़ आवेदक वैध पाए गए हैं. 40 लाख आवेदकों का नाम ड्राफ्ट से गायब है. असम में एनआरसी का पहला ड्राफ्ट पिछले साल दिसंबर के आखिर में जारी हुआ था. पहले ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे.

NRC यह भारत और असम का आंतरिक मामला है : हसन उल हक इनु


बांग्लादेश के सूचना मंत्री ने कहा कि यह भारत और असम का आंतरिक मामला है, बांग्लादेश का इस मामले से कुछ लेना-देना नहीं है


असम में सोमवार को जारी एनआरीस में करीब 40 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं हैं. एनआरसी से बाहर किए गए 40 लाख लोग बांग्लादेश के अवैध प्रवासी माने जा रहे हैं, जिसके बाद भारत में इस बात को लेकर चर्चा गर्म है कि इन्हें बांग्लादेश वापस भेजा जाएगा?

इस मुद्दे पर बांग्लादेश ने पहली बार प्रतिक्रिया दी है. बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन उल हक इनु ने पत्रकारों से बात करते हुए इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान देने से इनकार कर दिया. हसन उल हक ने कहा कि भारत सरकार ने बांग्लादेश को आधिकारिक तौर पर कोई भी सूचना नहीं दी है, इसलिए इस मुद्दे पर आधिकारिक बयान देने की जरूरत नहीं है.

बांग्लादेशी मंत्री ने इस मुद्दे को भारत का आंतरिक मुद्दा बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने कहा, ‘यह भारत और असम का आंतरिक मामला है, बांग्लादेश का इस मामले से कुछ लेना-देना नहीं है और न ही ये लोग (40 लाख) हमारे हैं. हो सकता है कि वे असम के पड़ोसी राज्यों के हों इसलिए इस मामले में बांग्लादेश की भागीदारी का कोई मामला नहीं उठता.’

उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई के वक्त सहमति समझौते के तहत बांग्लादेश के लोगों ने भारत में शरण ली थी लेकिन बाद में उन्हें वापस भेज दिया गया जहां उनका पुनर्वास किया गया. इसके बाद भारत में किसी भी बांग्लादेशी शरणार्थी के होने की रिपोर्ट नहीं है.

हसन उल हक इनु ने कहा कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था वृद्धि पर है इसलिए किसी बांग्लादेशी को भारत जाने की जरूरत नहीं है.

बांग्लादेश के मंत्री ने आगे कहा कि अगर वे लोग बांग्लादेशी होते हैं तो भारत सरकार को हमसे आधिकारिक रूप से बात करनी होगी. बांग्लादेश असम सरकार से कोई बात नहीं करेगा. हालांकि उन्होंने कहा कि वे लोग बांग्लादेशी नहीं हैं.


हैरानी है कि एनआरसी कि सूची बांग्लादेश पहुँच भी गयी ओर उन्होने जांच भी ली 

एनआरसी के लागू होने की स्थिति में देश मे गृह युद्ध छिड़ेगा: ममता


नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि मार्च 1971 से जो भी लोग बांग्लादेश से भारत आए हैं वो भारतीय नागरिक हैं


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को आरोप लगाया कि असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) की कवायद राजनीतिक मकसद से किया गया है ताकि लोगों को बांटा जा सके. उन्होंने चेतावनी दी कि इससे देश में गृह युद्ध छिड़ जाएगा. ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी देश को बांटने का प्रयास कर रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

ममता बनर्जी ने कहा कि आप उन लोगों के बारे में सोचिए जिनका नाम इस सूची में नहीं है वे अपनी पहचान को खो देंगे. इस बात को समझने की जरूरत है कि विभाजन से पहले भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश एक थे. मार्च 1971 से जो भी लोग बांग्लादेश से भारत आए हैं वो भारतीय नागरिक हैं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नई दिल्ली के कॉन्सटिट्यूशन क्लब में ‘लव फॉर नेबर’ (पड़ोसी के लिए प्यार) नामक कार्यक्रम में बोल रही थीं. उन्होंने कहा कि भारत को बदलाव की जरूरत है और यह बदलाव दुनिया की बेहतरी के लिए 2019 में जरूर आएगा.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इससे पहले भी असम के एनआरसी ड्राफ्ट पर निशाना साध चुकी हैं और यह कहा है कि यह बंगालियों और बिहारियों को निशाना बनाने के लिए जारी किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों का नाम एनआरसी ड्राफ्ट में नहीं है उनका पश्चिम बंगाल में स्वागत है.

एनआरसी में असम के बाद अब बंगाल का नंबर है : कैलाश विजयवर्गीय

 


विपक्ष पर पलटवार करते हुए बीजेपी ने कहा कि बांग्लादेश से बंगाल में अवैध रूप से आए प्रवासियों की पहचान के लिए भी ऐसा ही कदम उठाया जाना चाहिए


एनआरसी पर टीएमसी नेताओं के बयान के बाद अब बीजेपी ने पलटवार किया है. बीजेपी का कहना है कि एनआरसी में असम के बाद अब बंगाल का नंबर है. बीजेपी की तरफ से कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में बांग्लादेश से अवैध तरीके से दाखिल हुए लोग रह रहे हैं और इनकी संख्या करोड़ों में है.

पत्रकारों से बातचीत में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के महासचिव  कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि राज्य का युवा बांग्लादेश से अवैध रूप से आए प्रवासियों की पहचान करना चाहता है, क्योंकि इनकी वजह से उन्हें बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था जैसे दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी उनकी मांग का समर्थन करती है.

उन्होंने कहा कि अगर असम में एनआरसी के अंतिम मसौदे में 40 लाख अवैध लोगों के बारे में पता चल रहा है, तो फिर पश्चिम बंगाल में ये आंकड़ा करोड़ों में हो सकता है. असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में जारी किया गया, ये पश्चिम बंगाल में भी कराया जा सकता है.

इससे पहले सरकार के इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए तृणमूल कांग्रेस के नेता एसएस रॉय ने कहा था कि केंद्र सरकार ने जानबूझ कर 40 लाख मजहबी और भाषाई अल्पसंख्यकों को एनआरसी से बाहर कर दिया है, जिसका असम और उससे लगे राज्यों की आबादी पर गंभीर परिणाम होगा. प्रधानमंत्री खुद संसद में आएं और इस मामले को स्पष्ट करें.

सोमवार को असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का अंतिम मसौदा जारी होने के बाद से ही विवाद चला आ रहा है. विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार ने ये कदम अपने फायदे के लिए उठाया है. असम में जारी हुए एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में करीब 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं. विपक्ष  बीजेपी पर धर्म और भाषाई आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगा रही है.

Eight-member Trinamool Congress (TMC) delegation to visit Assam to assess situation in state after release of NRC final draft

Kolkata: An eight-member delegation of the Trinamool Congress (TMC) will be visiting Assam later this week to assess the situation in the north-eastern state in the wake of the publication of the final draft of the NRC, the party said on Monday.

The final draft of the National Register of Citizens (NRC) was published in Assam on Monday. Over 40 lakh people of the state did not find their names in the document. “On August 2 and 3, a delegation comprising six MPs of the Trinamool Congress (Sukhendu Sekhar Ray, Kakoli Ghosh Dastidar, Ratna De Nag, Nadimul Haque, Arpita Ghosh, Mamata Thakur), MLA Mohua Moitra and West Bengal minister Firhad Hakim will be visiting Assam,” the TMC said in a statement.

TMC supremo and West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee accused the BJP-led central government of resorting to “vote-bank politics” with regard to the NRC and said “Indian citizens have become refugees” in their own land.

Amid tight security, the much-awaited NRC final draft was published in Assam on Monday with over 2.89 crore names of the 3.29 crore applicants.

NRC Assam: Over 40 lakh were declared ineligible for inclusion and, therefore, will not have any claim to Indian citizenship

 

 

Unlike what the government had anticipated, Assam did not witness any significant disturbances on Monday, the day the state government released the final draft of the National Register of Citizens (NRC). To prevent violence, central forces had been deployed in the state to maintain law and order.

However, this is not to say that the discontent already generated by this exercise will not be exacerbated by the knowledge that of the roughly 3.29 crore people who had applied to be included in the register, over 40 lakh were declared ineligible for inclusion and, therefore, will not have any claim to Indian citizenship. That this version of the register just published is only the final draft — the final NRC of Assam will be published after another round of claims and objections are filed and processed — will be of small consolation for those who face the prospect of being denied citizenship and either becoming “stateless” or being deported. Stateless people, like practically the entire Rohingya Muslim population, are those who are not recognised as citizens by any country.

The apprehension that the NRC being upgraded, and the criteria set to include in it, is a political stratagem to consolidate the Bharatiya Janata Party’s (BJP) majority vote bank in Assam is underlined by several factors.

First, the majority of those left out of the NRC are Bengali-speaking Muslims who migrated to Assam at some point. Theoretically, if they had arrived in the state before midnight on 24 March, 1971, they are eligible to be included in the register and claim citizenship. But in practical terms, it is not so simple. There are many people who did arrive before the cut-off date but do not have the requisite documentation to prove that; for instance, some because they went to other states when they migrated before shifting to Assam.

Second, there is more than a whiff of injustice that clings to any process, under whatever mandate, that seeks to make illegal the status of people living in a place for up to 47 years. Even more egregious and unconscionable is the decision to exclude them from the ambit of the NRC and also deny citizenship to those who were born in Assam to illegal migrants, as this is in violation of the Citizenship Act as amended in 2003.

Third, there is the parallel legislative manoeuvre of amending the Citizenship Act with the Citizenship (Amendment) Bill, 2016. This amendment Bill was tabled in the Lok Sabha in July 2016 and referred to a joint parliamentary committee about a month later. The committee is scheduled to table its report in the Winter Session of Parliament this year. This Bill seeks to grant citizenship to illegal immigrants, understood to be from the region, who are Buddhists, Christians, Hindus, Jains, Parsis or Sikhs. A Bill that explicitly discriminates against people professing a particular religion — Islam — seems, on the face of it, against the spirit of the Constitution.

When considered together, all of these have given the exercise of updating the NRC in Assam — and nowhere else — a communal and sectarian colour and has made it look as though it is being pushed through to subserve the BJP’s political and electoral calculations, obviously not just in Assam but countrywide. It would certainly not be outlandish to argue that the timing — months before crucial Assembly elections this year and the Lok Sabha elections next year — is suspect. On the other had, BJP supporters could argue that the exercise cannot be considered partisan as it was the Supreme Court that had ordered the government to identify illegal immigrants.

This argument does not really cut much ice. Illegal immigrants are illegal immigrants, regardless of their religion. So when the state simultaneously undertakes an exercise to identify illegal immigrants and seeks to provide immunity, i.e. citizenship, to some of them, the spirit of the Supreme Court’s order seems to be vitiated.

Opposition parties have Protested against the process of the NRC’s upgrade. The Congress warned that “illegals”, as well as Indian Muslims who are not part of the BJP’s vote base, will be targeted. A conglomerate of groups from the Barak Valley, which has a high concentration of Bengali-speakers, and rights groups have also critiised the way the Assam government has gone about the task set by the Supreme Court (beginning with setting the criteria determining eligibility) for violating human rights. There has also been talk of ethnic cleansing, though a bit extreme.

 

Assam’s neighbours will ultimately have to suffer some of the consequences of whatever outcome finally emerges. For now, 40 lakh people risk losing out; this figure could either drop significantly or rise. Within India, West Bengal would be the obvious destination for the “illegals” who are, as earlier mentioned, largely Bengali-speaking Muslims.

Not surprisingly, Chief Minister of West Bengal Mamata Banerjee has taken a stand against the exercise. She has accused the BJP of using this stratagem for electoral gains, of turning people — Bengalis, Biharis, Hindus and Muslims — into refugees in their own country and of pursuing a policy of divide and rule. Mamata also said that West Bengal will serve as a refuge for the displaced. Other parties have been similarly critical. Bangladesh, which may be affected as well, has understandably not reacted.

Mamata has a point, especially when she says that West Bengal — and by extension other neighbouring states — should have been consulted. This is in tune with her reiterations of the sanctity of the federal principle and her attempt to play a key role in building a “federal front” to fight the BJP.

However, the West Bengal chief minister is also playing to her constituency: Bengalis, in general, and Bengali-speaking Muslims in particular. In this context, the Trinamool Congress would do well to be careful to first stick to principles instead of countering one form of identity politics with another.

सेंट स्टीफन कॉलेज ने ममता को भेजा आमंत्रण वापिस लिया


तृणमूल कांग्रेस सूत्रों के अनुसार ममता का 31 जुलाई को दिल्ली आने और तीन दिन तक राष्ट्रीय राजधानी में रुकने का कार्यक्रम है 


 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित सेंट स्टीफन कॉलेज में होने वाले एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने और छात्रों के साथ संवाद करने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बुलाने की अनुमति प्राचार्य ने नहीं दी है. हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने इसे आरएसएस और भाजपा की साजिश करार दिया है.

कॉलेज की एक सोसाइटी की ओर से आयोजित किया जाने वाला यह कार्यक्रम एक अगस्त को होगा. सूत्रों ने बताया कि ममता का इस कार्यक्रम में हिस्सा लेना लगभग तय था लेकिन प्राचार्य ने इसकी अनुमति नहीं दी और न्यौता उन्हें नहीं भेजा गया.

कालेज के प्लानिंग फोरम ने महाविद्यालय प्रशासन को आनलाइन आग्रह किया था कि एक अगस्त को होने वाले कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बुलाया जाए लेकिन कुछ कारणों से यह आगे नहीं बढा .

सूत्रों ने बताया कि बाद में उन्होंने पत्र लिख कर ममता को बुलाने की अनुमति मांगी लेकिन प्राचार्य ने इसकी अनुमति नहीं दी. हालांकि, टिप्पणी के लिए कालेज के प्राचार्य जान वर्गिस से संपर्क नहीं हो सका.

तृणमूल कांग्रेस सूत्रों के अनुसार ममता का 31 जुलाई को दिल्ली आने और तीन दिन तक राष्ट्रीय राजधानी में रुकने का कार्यक्रम है. पार्टी सूत्रों के अनुसार ममता की योजना जनवरी में कोलकाता में एक रैली की है . इसी रैली में विपक्षी दलों को शामिल होने का न्योता देने वह यहां आ रही है .

इस बीच कोलकाता में, तृणमूल कांग्रेस नेताओ ने कॉलेज के कार्यक्रम में शामिल नहीं होने की अनुमति नहीं मिलने के पीछे भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ बताया है और कहा है कि उनकी (ममता) आवाज को दबाया नहीं जा सकता है .

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा राज्य सभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने बताया, ‘पहले, अमेरिका के शिकागो में विवेकानंद समारोह, इसके बाद उनकी चीन यात्रा और अब सेंट स्टीफन. ममता बनर्जी ने बीजेपी और संघ को बेचैन कर दिया है. उन्हें प्रयास करने दीजिए, उनकी (ममता) आवाज को बंद नहीं किया जा सकता है.


मात्र उच्चविद्यालय में राजनैतिक गोष्ठी न करने देने से आवाज़ दबाई जा सकती है : नहीं वैसे पूछते हैं

मोदी के खिलाफ कांग्रेस को विपक्ष की रणनीति के मुताबिक लड़ाई लड्नी होगी: ममता


ममता ने कहा कि अगले लोकसभा चुनावों के लिए संभावित महागठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर किसी का नाम नहीं चुना जाना चाहिए


नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने की कोशिशों में जुटी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी बीजेपी से लड़ने की क्षेत्रीय पार्टियों की एकजुटता का बंटाधार कर देगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बीजेपी विरोधी क्षेत्रीय पार्टियों को साथ आना चाहिए और देश के फायदे के लिए उन्हें बलिदान देना चाहिए.

ममता बनर्जी ने यह बात शनिवार को कोलकाता में नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के साथ बैठक के बाद कही. दोनों के बीच हुई इस बैठक को लेकर लगाए जा रहे अटकलों के बीच तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की अध्यक्ष ने कहा कि अगले लोकसभा चुनावों के लिए संभावित महागठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर किसी का नाम नहीं चुना जाना चाहिए.

वहीं उमर अब्दुल्ला ने कहा कि विपक्ष की एकजुट लड़ाई तब तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस विपक्षी रणनीति के मुताबिक लड़ाई न लड़े.


The question you asked about Mamata didi’s proposal, is what we’re discussing – how best can regional parties come together to take on BJP in general elections. No effort towards opposition unity will succeed unless Congress is able to fight BJP in the way we hope: Omar Abdullah


उन्होंने कहा, ममता दीदी का प्रस्ताव यही है कि भावी आम चुनावों के लिए बीजेपी विरोधी पार्टियों को कैसे लामबंद किया जाए और इसमें विपक्षी एकजुटता तब तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक कांग्रेस विपक्ष की रणनीति के मुताबिक बीजेपी से लोहा न ले.


The question you asked about Mamata didi’s proposal,is what we’re discussing – how best can regional parties come together to take on BJP in general elections. No effort towards opposition unity will succeed unless Congress is able to fight BJP in the way we hope: Omar Abdullah

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It’s an ongoing conversation. You have seen a number of efforts made particularly by Sonia Gandhi to bring opposition parties together. As we get closer to the general election in 2019 I’m sure it’ll take on a greater shape: Omar Abdullah in Kolkata


महागठबंधन की तैयारियों के बारे में उमर ने कहा, बातचीत चल रही है. लोग देख रहे हैं कि विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने के लिए कई प्रयास हुए हैं, खास कर सोनिया गांधी की ओर से. जैसे-जैसे 2019 का चुनाव नजदीक आएगा, मुझे भरोसा है कि महागठबंधन एक बड़ा आकार लेगा.

कांग्रेस ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए बताया था उम्मीदवार 

बता दें कि हाल ही में दिल्ली में कांग्रेस की नवगठित कार्यकारिणी बैठक में पार्टी ने एक सुर में राहुल गांधी का चेहरा आगे कर भावी लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था. पार्टी ने यह घोषणा की थी कि राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री के दावेदार होंगे.

कांग्रेस की ओर से यह भी कहा गया कि कोई भी विपक्षी गठबंधन बने लेकिन कांग्रेस को ही केंद्र में रखकर रणनीति बनाई जानी चाहिए. ऐसे में महागठबंधन बनने से पहले ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर एक तरह से ब्रेक लगा दिया है.