The Ashok Chakra of the Indian National Flag was replaced

During one of the anti CAA protests in Hyderabad, a shocking visual came to light. The Ashok Chakra of the Indian National Flag was replaced with an Islamic Shahada ‘La Ilaha Illallah’ which means “there is no other God but allah”. On the official twitter handle of The News Indian Express, Telangana (TNIE, Telangana), the following tweet was seen on Jan 04, 2020, the image of which was credited to photojournalist Vinay Madapu.

LSJ approached TNIE to verify the veracity of the image and the claim, which was confirmed as true and correct. The slogan ‘La Ilaha Illallah’ which means “there is no other God but allah” is now being openly used to mock the Constitution and the revered Ashok Chakra of India’s national flag in the name of secularism by replacing it with the same Islamic Shahada that once provoked the gullible Kashmiris in January, 1990 in order to provoke them to wash their hands in blood of their own brothers in the name of Allah leading to a macabre tale of the Kashmiri pandits massacre.

credited to photojournalist Vinay Madapu

The Flag Code of India, 2002 contains executive instructions issued by the Government of India. Also, in terms of Section 2 of Insults to National Honour Act, 1971 – no person shall burn, mutilate, deface, defile, disfigure, destroy, trample upon or otherwise show disrespect to or bring into contempt (by words, either spoken or written, or by acts) the Indian National Flag. Strict action must be taken to curb such instances that rip apart the country in the name of religion.

Congress Spokes Person Ajay Verma demanded separate nation for Indian Muslims

New Delhi, 30th January

A video clip of the Congress spokesperson, Ajay Verma, is doing the rounds on social media. In the video, from a programme that was aired this past week on an Indian television news channel, Verma is heard challenging the Bhartiya Janata Party-led ruling government to give a ‘separate nation’ to the 25 crore Indian Muslims and then declare India a ‘Hindu Rashtra’.

“I dare Indian government to show guts and give a separate country, like Pakistan, to Indian Muslims. Then you can declare India as a Hindu Rashtra (nation),” he said during a live debate on Zee news.

Verma’s remarks drew sharp reactions from the anchor and from the BJP spokesperson, Sudhanshu Trivedi, who berated him for his inflammatory and divisive comments.

The incident happened during the show ‘Taal Thok Ke’ on which participants were debating the controversial Citizenship Amendment Act.

CAA-NRC के दौरान पत्रकारों पर हुए घातक हमले

मीडियाकर्मियों पर हुए इन हमलों की संख्या केवल 12 तक ही सीमित नहीं हैं। यदि पाठकों को मीडियाकर्मियों पर हुए हमले से जुड़ी अन्य घटनाओं के बारे में पता है, तो वो हमें उन घटनाओं से अवगत करा सकते हैं। हम उन्हें इस लेख में जोड़कर इस लेख को अपडेट कर देंगे।

मीडिया को भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, जिसकी भूमिका बेहद अहम है। ऐसे में मीडियाकर्मियों पर हमला इस ओर इशारा करता है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है। लेकिन ये कर कौन रहा है? हाल के दौरान, CAA-NRC के ख़िलाफ़ देश में चल रहे हिंसक-प्रदर्शनों में आए दिन ऐसी ख़बरें सामने आईं, जहाँ पत्रकारों पर हमला कर दिया गया और उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इससे यह साफ़ पता चलता है कि पत्रकारों को निशाना बनाने का काम एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है, जिससे फ़र्ज़ी ख़बरों को फैलाने वाले अराजक तत्व जनता के सामने सही ख़बर को लाने से रोक सकें।

हालिया मामला न्यूज़ नेशन के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया का है, जिन्हें शाहीन बाग में CAA के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध-प्रदर्शन के दौरान कुछ गुंडों ने उनके साथ न सिर्फ़ बदसलूकी की बल्कि उनके साथ हाथापाई करते हुए उनका कैमरा तक तोड़ दिया। बता दें कि दीपक चौरसिया के साथ अभद्रतापूर्ण किया गया यह व्यवहार किसी पत्रकार के साथ पहली बार नहीं हुआ है। इस लेख में हम आपको उन 12 घटनाओं के बार में बताएँगे जहाँ पत्रकारों व उनकी टीम को निशाना बनाया गया। अप्रैल 2019 से अभी तक की इन 12 घटनाओं के बारे में क्रम से नीचे पढ़ें:

1. रिपब्लिक टीवी, इंडिया टुडे के पत्रकारों पर TMC के गुंडों ने बरसाई लाठियाँ, महिला पत्रकार को भी नहीं बख़्शा

2019 में लोकसभा चौथे चरण के चुनाव के दौरान जहाँ सारा देश लगभग शांति से मतदान कर रहा था, वहीं पश्चिम बंगाल से हिंसा और धांधली की खबरें आईं। इन खबरों को कवर करने गई रिपब्लिक टीवी ने बताया है कि इस दौरान TMC के गुंडों ने उन पर हमला किया गया। रिपब्लिक टीवी के अनुसार, उनकी पत्रकार शांताश्री, अपने साथी पत्रकार के साथ आसनसोल से रिपोर्टिंग कर रही थीं। 

पत्रकार शांताश्री, अपने साथी पत्रकार के साथ आसनसोल से रिपोर्टिंग कर रही थीं। वहाँ TMC के गुंडों ने लाठियों से उनकी कार पर हमला किया और खिड़की तोड़ दी। शांताश्री ने बताया कि वे भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो की कार के पीछे-पीछे चल रहे थे। अचानक से TMC के गुंडे भड़क गए और उन्होंने उन पर हमला कर दिया। ख़बर के अनुसार, जिन-जिन मीडिया वाहनों ने भाजपा नेता की कार का पीछा किया, उन्हें ही निशाना बनाया गया। गुंडों ने कथित तौर पर मीडियाकर्मियों को गालियाँ दीं और जब उन्हें रिपोर्ट करने की कोशिश की गई तो उनका पीछा किया गया। इससे पहले, TMC कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर आसनसोल में सुप्रियो की कार पर हमला किया था।

वहाँ TMC के गुंडों ने लाठियों से उनकी कार पर हमला किया और खिड़की तोड़ दी। शांताश्री ने बताया कि वे भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो की कार के पीछे-पीछे चल रहे थे। अचानक से TMC के गुंडे भड़क गए और उन्होंने उन पर हमला कर दिया। रिपब्लिक टीवी के चालक दल के अलावा, इंडिया टुडे के चालक दल और पत्रकार मनोग्य लोईवाल पर भी कथित तौर पर TMC के गुंडों द्वारा ही हमला किया गया।

2. मध्य प्रदेश: दिनदहाड़े पत्रकार पर जानलेवा हमला, कॉन्ग्रेस नेता गोविंद सिंह पर लगा आरोप, लिबरल गैंग मौन

मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले में स्थानीय पत्रकार रीपू धवन से मारपीट की एक वीडियो सोशल मीडिया पर 30 सितंबर 2019) को वायरल हुआ। वीडियो में यह साफ़तौर पर दिखा कि दिनदहाड़े कुछ बदमाश पत्रकार को ज़मीन पर लिटाकर बेरहमी से लगातार मार रहे थे। पत्रकार लाचार ज़मीन पर पड़ा है और उस पर चारों ओर से लाठियाँ बरस रही थीं। पूरी घटना वीडियो कैमरे में कैद हो गई थी, लेकिन सभी हमलावर बदमाशों ने अपने मुँह पर कपड़ा बाँधा हुआ था। वहीं, पत्रकार का आरोप था कि उसपर ये हमला कॉन्ग्रेस नेता गोविंद सिंह के आदेश पर हुआ।

वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि दिनदहाड़े पत्रकार के पीटे जाने के बाद भी बात-बे-बात पर शोर मचाने वाली लिबरल गैंग मौन है क्योंकि यहाँ शासन कॉंग्रेस का है, सत्ता में कमलनाथ और आरोपित कॉन्ग्रेस नेता गोविंद सिंह।

इससे पहले मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस नेता का नाम जबलपुर में पत्रकार पर हुए हमले में भी आया था। जहाँ कॉन्ग्रेस नेता एवं बिल्डर सत्यम जैन और मयूर जैन ने पत्रकार आलोक दिवाकर पर जानलेवा हमला किया था और उन्हें बुरी तरह मारा था।

3. इसके मज़े लो: JNU में महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी, गूँजा ‘हिन्दी मीडिया मुर्दाबाद’ का नारा

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) लंबे समय से देश-विरोधी नारेबाजी आदि के लिए, नकारात्मक बातों के लिए ही चर्चा में रहती है। ज़ी न्यूज़ चैनल की एक महिला पत्रकार किसी मुद्दे पर जानकारी जुटाने के लिए विश्वविद्यालय के परिसर में पहुँची। इस दौरान उनके द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने की बजाय वहाँ मौजूद छात्र-छात्राओं ने उनके साथ न सिर्फ़ अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया बल्कि मारपीट भी की। महिला पत्रकार बार-बार स्टूडेंट्स से उनके मसले के बारे में पूछती रही, लेकिन स्टूडेंट्स ने उनकी एक नहीं सुनी और उनके साथ बदतमीज़ी करते रहे।

जिस परिसर में महिला पत्रकार कुछ स्टूडेंट्स से सवाल करती नज़र आ रही थीं, वहाँ मौजूद छात्रों के झुंड में से कुछ ने यह कहकर फ़ब्तियाँ कस रहे थे कि ‘इन्हें घेरो मत, मजा लो’। इतना सुनने के बाद जब महिला पत्रकार ने उन शब्दों पर आपत्ति जताते हुए सवाल किया तो उनमें से एक छात्र ने कहा, “यहाँ सब आपका मज़ा ले रहे हैं।” महिला पत्रकार ने जब पूछा कि आप लोग यहाँ पढ़ाई करने आते हैं या मज़ा लेने आते हैं? इस सवाल के जवाब पर स्टूडेंट्स के झुंड ने एक साथ ‘हिन्दी मीडिया मुर्दाबाद’ के नारे लगाए और मीडियाकर्मियों को कैमरे बंद करने के लिए कहा।

4. झारखंड: कॉन्ग्रेस कैंडिडेट ने बूथ के बाहर लहराए हथियार, समर्थकों ने पत्रकारों को पीटा

झारखंड में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 13 सीटों पर 30 नवंबर 2019 को वोट पड़े। डाल्टनगंज के एक बूथ के बाहर कॉन्ग्रेस प्रत्याशी केएन त्रिपाठी का हथियार लहराते वीडियो सामने आया था। उनके समर्थकों और भाजपा प्रत्याशी आलोक चौरसिया के समर्थकों के बीच झड़प की खबर भी सामने आई। मीडिया ​रिपोर्टों के मुताबिक घटना को कैमरे में कैद कर रहे पत्रकारों की पिटाई भी त्रिपाठी समर्थकों ने की।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार पूर्वडीहा गॉंव में कॉन्ग्रेस नेता केएन त्रिपाठी त्रिपाठी के समर्थकों ने निजी चैनल के पत्रकार और कैमरामैन को पीट डाला। उनका कैमरा भी तोड़ दिया।

5. जामिया में प्रदर्शनकारी छात्रों की गुंडागर्दी, ABP की महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी

जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्रों का प्रदर्शन अब भी आक्रामकता के दौर से गुजर रहा था। 15 दिसंबर 2019 को छात्रों का विरोध-प्रदर्शन अचानक से हिंसक हो उठा, जब जामिया नगर से 4 बसों को जलाए जाने की ख़बर आई। कई मेट्रो स्टेशनों को बंद करना पड़ा, कई इलाक़ों में लम्बा ट्रैफिक जाम लगा और लोगों को ख़ासी परेशानी का सामना करना पड़ा। जामिया के छात्रों ने पत्रकारों को भी अपने चपेट में ले लिया था। यहाँ तक कि महिला रिपोर्टरों को भी नहीं बख्शा गया।

इस दौरान, एबीपी न्यूज़ की पत्रकार प्रतिमा मिश्रा लगातार छात्रों से पूछती रही थीं कि क्या यही उनका शांतिपूर्ण प्रदर्शन है, लेकिन छात्रों ने महिला रिपोर्टर को घेर कर उनके साथ बदतमीजी की और नारेबाजी शुरू कर दी। वो बार-बार पूछती रहीं कि आप एक महिला के साथ गुंडागर्दी क्यों कर रहे हैं लेकिन जामिया के प्रदर्शनकारी छात्र लगातार बदसलूकी करते रहे।

6. जामिया मिलिया के बाहर ANI पत्रकारों पर हमला, हॉस्पिटल भेजे गए: अन्य रिपोर्टरों से भी हो चुकी है बदसलूकी

नागरिकता सेशोधन क़ानून का विरोध कर रहे जामिया के छात्रों ने समाचार एजेंसी ANI के दो कर्मचारियों पर 16 दिसंबर, 2019 को दोपहर हमला कर दिया गया, जब वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रदर्शनकारी छात्रों को कवर करने गए थे। ANI के पत्रकार और कैमरामैन पर हमला यूनिवर्सिटी के गेट नंबर-1 के पास हुआ। हमले में घायल हुए पत्रकार उज्जवल रॉय और कैमरामैन सरबजीत सिंह को होली फैमिली हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

नागरिकता विधेयक में संशोधन के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन की नकली परतें उतर रहीं हैं, और असली चेहरा सामने आ रहा है। पहले ‘शांतिपूर्ण’ की परत उतरी, और प्रदर्शनकारियों ने पथरबाज़ी शुरू कर दी। फिर ‘सेक्युलर’ की परत उतरी, जब “हिन्दुओं से आज़ादी” के नारे लगे, और अपनी बात साबित करने के लिए (अंग्रेज़ी में कहें तो, टु ड्राइव होम ए पॉइंट) प्रदर्शन स्थल पर हुजूम ने नमाज़ पढ़ी, मुहर्रम की तरह नंगे बदन ‘मातम’ मनाने तथाकथित छात्र सड़क पर उतर पड़े। और अब ‘लोकतान्त्रिक’ का भी नकली मुलम्मा उतर कर गिर गया है, जब ‘लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ’ बताए जाने वाले मीडिया पर हमला हो रहा है। वह भी केवल इसलिए, क्योंकि मीडिया ने वह करने की ‘जुर्रत’ की, जो उसका काम है- लोगों का, प्रदर्शनों का सच कवर करना।

7. गिरफ़्तार हुआ पत्रकारों की पिटाई करने करने वाला कॉन्ग्रेस नेता, फरार होकर भी चला रहा था फेसबुक

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) समेत कई विपक्षी दलों ने 21 दिसंबर 2019 को बिहार बंद का आयोजन किया था। उसी समय कॉन्ग्रेस के नेता आशुतोष शर्मा ने एक पत्रकार की न सिर्फ़ पिटाई की थी बल्कि कई अन्य मीडियाकर्मियों के साथ भी बदतमीजी की थी। उसने कई अख़बारों के पत्रकारों व फोटोग्राफरों की पिटाई की थी। कॉन्ग्रेस नेता ने पत्रकारों के कैमरे व अन्य उपकरणों को तो तोड़ ही डाला गया था साथ ही पत्रकारों के मोबाइल फोन को भी नहीं बख्शा था। साथ ही एक फोटोग्राफर का सिर फोड़ डाला था। इसके बाद वो कई दिनों तक फ़रार रहे।

फरारी के दौरान भी उसने अपने फेसबुक पेज पर अपना फोटो पोस्ट किया था। उससे पहले उसने न सिर्फ़ एक पत्रकार की पिटाई की थी बल्कि कई अन्य मीडियाकर्मियों के साथ भी बदतमीजी की थी। उसने कई अख़बारों के पत्रकारों व फोटोग्राफरों की पिटाई की थी। पत्रकारों के कैमरे व अन्य उपकरणों को भी तोड़ डाला गया था। पत्रकारों के मोबाइलों को भी नहीं बख्शा गया था। एक फोटोग्राफर का सिर फोड़ डाला गया था। आशुतोष पटना जिला ग्रामीण कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष है।

8. ‘तेरी माँ की…’ गाली देने वाला है The Hindu का पूर्व जर्निलस्ट, रेप पीड़िता को भी कह चुका है K*tti, har*#zadi

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) कैंपस में 5 जनवरी को नकाबपोश गुंडों ने धावा बोला और हॉस्टल में छात्रों को निशाना बनाया था। लाठी, पत्थरों और लोहे की छड़ों के साथ गुंडों ने हाथापाई, मारपीट और खिड़कियों, फर्नीचर सामानों में तोड़फोड़ की। इसी दौरान रिपब्लिक भारत के रिपोर्टर पीयूष मिश्रा भी रिपोर्टिंग करने वहाँ पहुँचे थे। वहाँ पर उपस्थित छात्रों के साथ ही फ्रीलांस जर्नलिस्ट अभिमन्यु सिंह उर्फ अभिमन्यु कुमार ने भी गाली-गलौच और बदसलूकी की। बता दें कि अभिमन्यु सिंह मीडिया संस्थान द हिन्दू, संडे गार्डियन में काम कर चुके हैं और फिलहाल ऑनलाइन पोर्टल जनता की आवाज के साथ जुड़े हुए हैं।

ऑपइंडिया की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद हरियाणा की रहने वाली एक महिला मीना (बदला हुआ नाम) ने उनसे संपर्क किया था और आरोप लगाया था कि फ्रीलांस जर्नलिस्ट अभिमन्यु सिंह ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें ‘K*tti’ और ‘har*mzadi’ कहा।

9. रिपब्लिक के पत्रकार के साथ धक्का-मुक्की कर चुकी है वामपंथियों को कोचिंग देने वाली ‘इंडिया टुडे’ की तनुश्री

12 जनवरी 2020 को ऑपइंडिया ने ‘इंडिया टुडे’ के पत्रकार के वायरल वीडियो को लेकर एक ख़बर प्रकाशित की थी। उस वीडियो में देखा जा सकता था है कि पत्रकार तनुश्री पांडेय जेएनयू के सर्वर रूम में वामपंथी छात्रों को सिखाती हुई दिख रही थीं कि उन्हें कैमरे के सामने क्या बोलना है?

इसके बाद एक वीडियो सामने आया था कि ‘इंडिया टुडे’ की तनुश्री पांडेय जेएनयू छात्र संगठन की अध्यक्ष आईसी घोष के साथ मिल कर ‘रिपब्लिक टीवी’ के पत्रकार के साथ धक्का-मुक्की की थी। पत्रकार तनुश्री, वामपंथी छात्र नेता आईसी व अन्य वामपंथी छात्रों ने ‘रिपब्लिक टीवी’ के पत्रकार के साथ सिर्फ़ इसीलिए धक्का-मुक्की की थी क्योंकि उन्होंने कुछ सवाल पूछे थे। ये घटना नवंबर 20, 2019 की थी, जब जेएनयू में हॉस्टल फी बढ़ाने को लेकर हंगामा चल रहा था।

10. कॉन्ग्रेस नेता का बेहूदा रवैया: मेट्रो में सुरक्षकर्मियों को धमकी, महिला पत्रकार से बदसलूकी – वायरल हुआ Video

15 जनवरी 2020 को इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार तबस्सुम ने अपने ट्विटर पर मेट्रो स्टेशन पर हुए एक वाकये को शेयर किया था। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा था, मेट्रो स्टेशन में घुसते ही उन्होंने किसी को यह कहते सुना था, “तुम जानते हो मैं पार्षद हूँ।” जब उन्होंने पास जाकर देखा तो वो कॉन्ग्रेस नेता विक्रांत चव्हाण थे। वो मेट्रो स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों पर तेज आवाज में चिल्ला रहे थे और सुरक्षाकर्मी उन्हें शांत करने की कोशिश में जुटे थे।

इसके बाद तबस्सुम ने साजिद नाम के सुरक्षाकर्मी से पूछा कि आखिर हुआ क्या है? साजिद ने बताया,”ये पार्षद हैं, यही कारण है कि ये चिल्ला रहे हैं और किसी की सुन ही नहीं रहे।” कॉन्ग्रेस नेता का ऐसा रवैया देख, तबस्सुम ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने बड़े आराम से चव्हाण को शांत हो जाने को कहा, लेकिन उनकी आवाज़ और तेज़ हो गई। वो पत्रकार को कहने लगे, “तू जा यहाँ से, मैं विक्रांत चव्हाण हूँ। पार्षद।” बस फिर क्या, तबस्सुम मे पूरे मामले की वीडियो बनानी शुरू कर दी। जिसे देखकर चव्हाण नाराज हो गए और तबस्सुम के हाथ पर मारकर वीडियो रोकने की कोशिश की।

11. CPI नेता अमीर जैदी ने टीवी डिबेट में दीपक चौरसिया को दी गाली, बताया भ*वा पत्रकार

“रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप से तुम तुम से तू होने लगी।” मशहूर शायर दाग दहलवी की ये शायरी तब प्रासंगिक नजर आई जब CPI के पार्टी प्रवक्ता अमीर हैदर ज़ैदी ने टीवी पर बहस के दौरान टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया को ‘तू-ता’ कहकर गालियाँ देते नजर आए। इसके अलावा, CPI के पार्टी प्रवक्ता ने दीपक चौरसिया को गाली देते हुए उन्हें ‘भ*वा पत्रकार’ तक कह दिया था। इसके बाद वो इतने पर भी नहीं रुके और दीपक चौरसिया पर और भी आरोप लगाते हुए ज़ैदी उन्हें भ*वा कहते हुए भद्दी गालियाँ देते हुए उन्हें दोहराते रहे। हालाँकि, इस दौरान दीपक चौरसिया सिर्फ मंद-मंद मुस्कुराते हुए ज़ैदी के आरोप सुनते रहे।

इस निंदनीय घटना को दीपक चौरसिया ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “जब किसी संगठन की वैचारिक तर्कशक्ति मर जाती है, तो वो गाली-गलौच पर आ जाता है! मुझे गाली देने से आपका स्वास्थ्य अच्छा होता है तो और दीजिए। लेकिन जैदी साहब, बच्चों के दिमाग में अपनी मानसिक कुंठा मत भरिए!”

12. अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए शाहीन बाग के गुंडों ने की पत्रकार दीपक चौरसिया से मारपीट, कैमरा भी तोड़ा

शाहीन बाग़ में चल रहे CAA-विरोधी प्रदर्शन में न्यूज़ नेशन के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया के साथ 24 जनवरी 2020 को वहाँ प्रदर्शन कर रहे गुंडों ने बदसलूकी की। यही नहीं, उनके साथ हाथापाई करने के बाद उनका कैमरा भी तोड़ दिया गया। इस दौरान सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे वीडियो में धक्का-मुक्की कर रही भीड़ को अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते भी सुना गया।

यह घटना तब हुई जब न्यूज़ नेशन के पत्रकार दीपक चौरसिया शाहीन बाग़ घटना को कवर करने गए थे। उन्होंने एक वीडियो के ज़रिए बताया था कि शाहीन बाग में प्रदर्शन के नाम पर कई असामाजिक तत्व हिंसा फैला रहे हैं। साथ ही न्यूज नेशन के कैमरामैन का कैमरा तोड़ दिया गया।

नोट: मीडियाकर्मियों पर हुए इन हमलों की संख्या केवल 12 तक ही सीमित नहीं हैं। यदि पाठकों को मीडियाकर्मियों पर हुए हमले से जुड़ी अन्य घटनाओं के बारे में पता है, तो वो हमें उन घटनाओं से अवगत करा सकते हैं। हम उन्हें इस लेख में जोड़कर इस लेख को अपडेट कर देंगे।

ममता राज में निकाय चुनावों में वापसी कर सकता है बैलट पेपर

दिल्ली (ब्यूरो)24/1/ 2020 :

 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले अभी तीन महीने बाद ममता बनर्जी को बड़ी चुनावी बाधा का सामना करना है. दरअसल बंगाल की 125 नगरपालिकाओं में से 110 पर अप्रैल में निकाय चुनाव होने हैं. अब इसमें असल समस्‍या ये है कि ममता सरकार ये निकाय चुनाव ईवीएम के बजाय बैलट पेपर से कराने की पक्षधर है.

इस संबंध में म्‍युनिसिपल मामलों से जुड़े डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव ने राज्‍य चुनाव आयोग को पत्र लिखा है. इसके साथ ही अब ये मामला चुनाव आयोग के समक्ष पहुंच गया है. वैसे अभी तक ये आम परंपरा रही है कि इस तरह के चुनावों में आयोग राज्‍य सरकार के निर्णयों से सहमति जताता रहा है.

कारण

दरअसल लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) खास प्रदर्शन नहीं कर पाई. राज्‍य की 42 लोकसभा सीटों में टीएमसी को 22 और बीजेपी को 18 सीटें मिलीं. बीजेपी को पहली बार बंगाल में इतनी बड़ी कामयाबी मिली. उसके बाद ममता बनर्जी ने आशंका जाहिर करते हुए कहा था कि ईवीएम मशीनों में छेड़खानी करके बीजेपी ने बंगाल में कामयाबी हासिल की. उन्‍होंने चुनावों बाद मांग भी की थी कि भविष्‍य के सभी चुनाव बैलट पेपर से कराए जाएं. दरअसल ममता बनर्जी का मानना है कि कंप्‍यूटर प्रोग्रामिंग के माध्‍यम से ईवीएम मशीनों में छेड़खानी की जा सकती है.

इनसाइड स्‍टोरी

यदि 2021 राज्‍य विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी का फाइनल गेम है तो उससे पहले निकाय चुनाव उनके लिए सेमीफाइनल मैच की तरह है. ये इन चुनावों को लेकर इसलिए भी गंभीर हैं क्‍योंकि राज्‍य के विभिन्‍न जिलों में ये 110 नगरपालिकाएं फैली हुई हैं. इन चुनावों में बुरे प्रदर्शन का असर सीधे तौर पर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा. ममता को ये भी आशंका है कि ईवीएम से निकाय चुनाव होने पर केंद्र की बीजेपी सरकार इनमें छेड़खानी करा सकती है. इसलिए वह किसी प्रकार का कोई चांस नहीं लेना चाहतीं. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ईवीएम मशीनों में किसी प्रकार की छेड़खानी मुमकिन नहीं है.

आगे की राह

निकाय चुनावों के नियमों के मुताबिक राज्‍य चुनाव आयोग को राज्‍य सरकार के निर्देशों का अनुपालन करना होता है. ऐसे में ये आसानी से कहा जा सकता है कि अप्रैल में होने जा रहे निकाय चुनाव बैलट पेपर से होंगे. हालांकि 2014 में ये ईवीएम से हुए थे.

ट्रंप आएंगे हिंदुस्तान, सदमे में क्यों पाकिस्तान?

पाकिस्तान को इस वक्त अमेरिका की मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है..लेकिन अमेरिका को भारत में अपना सबसे अच्छा दोस्त नजर आता है…और जब से पाकिस्तान को मालूम चला है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आने वाले हैं तब से उसकी बेचैनी और बढ़ गई है…

नई दिल्‍ली(ब्यूरो): 

स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम में शिरकत करने पहुंचे इमरान खान ने अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप से मुलाकात के बाद फिर से कश्‍मीर राग अलापा है. PTV की एक रिपोर्ट के मुताबिक इमरान खान ने कहा कि भारत और पाकिस्‍तान एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्‍यारोप लगाते रहते हैं. नियंत्रण रेखा पर पर्यवेक्षक क्‍यों नहीं भेजे जाते? हम भारत को दोष देते हैं, भारत हमको दोष देता है. हम ऑर्ब्‍जवर क्‍यों नहीं भेजते? इस बीच अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तान आतंकवाद पर दुनिया से अलग-थलग पड़ गया है.

इस बीच हर मंच से कश्मीर का रोना रोने वाले इमरान खान को फिर से शिकस्त का सामना करना पड़ा है…देवास में वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम की मीटिंग के अलग जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात हुई तो कश्मीर पर डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से इमरान खान को आश्वासन का लॉलीपाप पकड़ा दिया. इससे पहले भी इमरान खान, डोनाल्ड ट्रंप से इस तरह के आश्वासन ले चुके हैं लेकिन खुद पाकिस्तान के लोग जानते हैं कि ट्रंप और पूरी दुनिया से कश्मीर पर आश्वासन के अलावा पाकिस्तान को कुछ भी नहीं मिलने वाला.

पाकिस्तान को इस वक्त अमेरिका की मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है..लेकिन अमेरिका को भारत में अपना सबसे अच्छा दोस्त नजर आता है…और जब से पाकिस्तान को मालूम चला है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आने वाले हैं तब से उसकी बेचैनी और बढ़ गई है…

ट्रंप आएंगे हिंदुस्तान, सदमे में क्यों पाकिस्तान?

दरअसल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे से पाकिस्तान परेशान है. इमरान खान की कोशिश है कि डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के दौरे पर भी आएं. भारत जाने या लौटते वक्त ट्रंप को पाकिस्तान बुलाने की कोशिश में है. अमेरिकी राष्ट्रपति का पाकिस्तान में जाना मुश्किल है. वैसे दावोस में भी पत्रकारों ने डोनाल्ड ट्रंप से ये पूछने की कोशिश की कि क्या भारत दौरे के वक्त वो पाकिस्तान आएंगे लेकिन ट्रंप के जवाब ने साफ कर दिया कि वह पाकिस्तान नहीं जाने वाले हैं.

पाकिस्तान के दौरे पर नहीं जाएंगे ट्रंप?

ट्रंप ने संकेत दे दिए कि उनकी मुलाकात इमरान खान से दावोस में हो गई. इसलिए उनका पाकिस्तान जाने का कोई ईरादा नहीं. खान इसलिए भी ज्यादा चिंतित हैं, क्योंकि वे प्रधानमंत्री बनने के बाद से कोशिश में लगे हैं कि ट्रंप एक बार पाक आ जाएं लेकिन ट्रंप के पाकिस्तान में रुकने की कोई बड़ी वजह नहीं हैं. इसके अलावा सुरक्षा के मुद्दे के चलते भी ट्रंप रुकने से बच रहे हैं. यह बात इमरान तक पहुंचा दी गई है.

वैसे भी महंगाई, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर इमरान विफल रहे हैं. वहीं अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर वो कश्मीर समेत अन्य मुद्दों पर मुस्लिम देशों और विश्व बिरादरी को अपने पक्ष में करने में नाकाम रहे हैं. ऐसे में ट्रंप का भारत जाना और पाक न जाना बड़ा झटका साबित हो सकता है.

23 जनवरी, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की 123वीं जयंती पर विशेष

उल्लेखनीय है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 30 दिसंबर 1943 को पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल में पहली बार तिरंगा फहराया था।

युद्धवीर सिंह लांबा,

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने विचारों से देश के लाखों लोगों को प्रेरित किया था, आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जयंती है । भारत की आजादी में अहम योगदान देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और मां का नाम ‘प्रभावती’ था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेजीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई । सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें। यह उस जमाने की सबसे कठिन परीक्षा होती थी। इण्डियन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। उन्होंने 1920 में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए आईसीएस की परीक्षा पास कर ली।  1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और  जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ट्राइपास (ऑनर्स) की डिग्री के साथ स्वदेश वापस लौट आये। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फौज के संस्थापक और जय हिन्द और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया, इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज किए जिसका नतीजा ये हुआ कि सुभाष चंद्र बोस को अपने जीवन में 11 बार जेल जाना पड़ा। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस 16 जुलाई 1921 को पहली बार, 1925 में दूसरी बार जेल गए थे ।

आजाद हिंद फौज की स्थापना टोक्यो (जापान) में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रेडियो पर किए गए एक आह्वान के बाद रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को नेताजी सुभाष को इसका नेतृत्व सौंप दिया । नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज में ही एक महिला बटालियन भी गठित की, जिसमें उन्होंने रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया था और उसकी कैप्टन लक्ष्मी सहगल थी ।

उल्लेखनीय है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 30 दिसंबर 1943 को पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल में पहली बार तिरंगा फहराया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में 1943 में 21 अक्टूबर के दिन आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की प्रांतीय सरकार बनाई। इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली और उसके तत्कालीन सहयोगी देशों का समर्थन मिलने के बाद भारत में अंग्रेजों की हुकूमत की जड़े हिलने लगी थी।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि उन्हें यह उपाधि किसने दी थी? महात्मा गांधी को सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रपिता कहा था, बात 4 जून 1944 की है जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में एक रेडियो संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को पहली बार ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था।

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को मरणोपरांत भारत रत्न देने का प्रस्ताव किया था। यहां तक कि इस संबंध में प्रेस विज्ञप्ति तक जारी कर दी गई थी।  तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 10 अक्टूबर 1991 को राष्ट्रपति आर वेंकटरमन को एक खत लिखा था। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने लिखा था, ‘भारत सरकार सुभाषचंद्र बोस के देश के लिए दिए अमूल्य योगदान और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी का सम्मान करते हुए उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का प्रस्ताव करती है’भारत सरकार ने इसके लिए खास आयोजन करने का सुझाव दिया था । इसके बाद नरसिम्हा राव ने राष्ट्रपति वेंकटरमन को एक और खत लिखा । उसमें कहा गया था कि अच्छा होगा अगर नेताजी को भारत रत्न देने का ऐलान 23 जनवरी को किया जाए. इस दिन सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन भी है । नरसिम्हा राव ने लिखा था कि मेरा दफ्तर इस बारे में निरंतर आपसे संपर्क स्थापित करता रहेगा

मेरा मानना है कि हमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए। जब तक हम उनकी दी गई शिक्षाओं को नहीं अपनाते तब तक हमारा जीवन अधूरा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश के ऐसे महानायकों में से एक हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। 

स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चन्द्र बोस लोगों के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। मेरा यह मानना है कि नेताजी आज भी हमारे दिलों में बसते हैं। देश को आजादी दिलाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज के युवाओं को भी उनके पद चिन्हों पर चलते हुए देश सेवा में अपना योगदान करना चाहिए।     

लेखक: युद्धवीर सिंह लांबा, रजिस्ट्रार, दिल्ली टेक्निकल कैंपस, बहादुरगढ़.

जब छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्कों में हैं नागरिकता रजिस्टर कानून! भारत में ही NRC का विरोध क्यों?

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

नयी दिल्ली

असम एनआरसी के बाद पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की कवायद भले ही अभी पाइपलाइन में हो और इसका विरोध शुरू हो गया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत के सरहद से सटे लगभग सभी पड़ोसी मुल्क मसलन पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में नागरिकता रजिस्टर कानून है।

पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर को CNIC, अफगानिस्तान में E-Tazkira,बांग्लादेश में NID, नेपाल में राष्ट्रीय पहचानपत्र और श्रीलंका में NIC के नाम से जाना जाता है। सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो जाता है या दाखिल कराया जा रहा है।

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

बीजेपी नेता के मुताबिक अगर पश्चिम बंगाल से 50 लाख घुसैपठियों को नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया तो टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वोट प्रदेश में कम हो जाएगा और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 200 सीटें मिलेंगी और टीएमसी 50 सीटों पर सिमट जाएगी। बीजेपी नेता दावा राजनीतिक भी हो सकता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उनका दावा सही पाया गया है और असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया।

ममता बनर्जी अब भारत में अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं। वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगला में वामपंथी सरकार थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं। दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में पश्चिम बंगाल में वही घुसपैठिए ममता बनर्जी को जान से प्यारे हो गए है।

क्योंकि उनके एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है। शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। गौरतलब है असम इकलौता राज्य है जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया। सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।

दिलचस्प बात यह है कि असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठिओं को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।

लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका और वर्ष 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद असम एनआरसी की लिस्ट जारी की गई। असम की राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची में कुल तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल होने के योग्य पाए गए जबकि 50 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है। शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को कम तवज्जो दिया गया।

असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए। जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए। भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है।

पूरे देश में एनआरसी के प्रतिबद्ध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास के लिए बनाए जाने वाल पैमाने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में नागरिकों की संख्या कितनी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।

इसी तरह पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है। वहीं, पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है।

सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।

पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं, लेकिन एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।

भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया। कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।

भारत में नागरिकता से जुड़ा कानून क्या कहता है?

नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर कहा गया है कि 26 जनवरी, 1950 या इसके बाद से लेकर 1 जुलाई, 1987 तक भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर देश का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 को या इसके बाद, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाला और उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो, वह भारत का नागरिक होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता में से दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों, देश का नागरिक होगा। इस मामले में असम सिर्फ अपवाद था। 1985 के असम समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले विदेशियों को भारत का नागरिक मानने का प्रावधान था। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर सिर्फ असम ऐसा राज्य था, जहां 24 मार्च, 1974 तक आए विदेशियों को भारत का नागरिक बनाने का प्रावधान था।

क्या है एनआरसी और क्या है इसका मकसद?

एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है।

एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इससे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। पूरे भारत में लागू करने के लिए इसके लिए अलग जरूरतें और मसौदा होगा।

एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?

भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। चूंकि सरकार पूरे देश में जो एनआरसी लाने की बात कर रही है, लेकिन उसके प्रावधान अभी तय नहीं हुए हैं। यह एनआरसी लाने में अभी सरकार को लंबी दूरी तय करनी पडे़गी। उसे एनआरसी का मसौदा तैयार कर संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना होगा। फिर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद एनआरसी ऐक्ट अस्तित्व में आएगा। हालांकि, असम की एनआरसी लिस्ट में उन्हें ही जगह दी गई जिन्होंने साबित कर दिया कि वो या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आकर बस गए थे।

क्या NRC सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही होगा?

किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को CAA या NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। एनआरसी का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।

क्या धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?

यह बिल्कुल भ्रामक बात है और गलत है। NRC किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब NRC लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।

NRC में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा?

अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं होता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।

आभार, Shivom Gupta

झारखंड और महराष्ट्र के बाद बिहार से विलुप्त हो सकती है भाजपा

विधानसभा चुनावाें में साल दर साल भाजपा से अलग हाेती गई सहयोगी दलों की राह
2005 में सहयोगी दल को 18, 2009 में 14, 2014 में 8 व 2019 में सीटाें पर नहीं हुआ समझाैता

प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक बड़ा बयान दिया है. पीके ने कहा है कि जेडीयू को बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। यह भाजपा से किनारा करने के संकेत हैं, वैसे भी 2014 चुनाव जीतने के बाद ही से मोदी प्रशांत की दोस्ती में खटास आ चुकी है, यह नहीं बंगाल विजय का सपना देखने वाली भाजपा के लिए पीके और ममता की दोस्ती भी मुश्किल खड़ी कर सकती हैभाजपा ने यदि आपण रणनीति नहीं बदली तो सभी राज्य धीरे धीरे भाजपा मुक्त हो जाएँगे।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चर्चित रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक बड़ा बयान दिया है. प्रशांत किशोर ने कहा है कि जेडीयू को बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. प्रशांत किशोर ने कहा है कि विधानसभा चुनावों में जेडीयू हमेशा से बीजेपी से बहुत बड़ी पार्टी रही है और इसी के आधार पर आगे भी रहेगी. प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में जेडीयू हमेशा से बड़े भाई की भूमिका में रही है.

प्रशांत किशोर ने ये भी कहा कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ा जाना चाहिए. इतना ही नहीं, जेडीयू उपाध्यक्ष ने साफ कर दिया कि बिहार में जेडीयू की सरकार है. बीजेपी उसकी सहयोगी पार्टी है.

प्रशांत किशोर ने कहा, ‘अगर 2010 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए जिसमें जेडीयू और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था तो यह अनुपात 1:1.4 था. अगर इसमें इस बार मामूली बदलाव भी हो, तो भी यह नहीं हो सकता कि दोनों दल समान सीटों पर चुनाव लड़ें. जेडीयू अपेक्षाकृत बड़ी पार्टी है जिसके करीब 70 विधायक हैं जबकि बीजेपी के पास करीब 50 विधायक हैं. 

प्रशांत किशोर के बयान को जेडीयू ने सही ठहराया है. जेडीयू नेता श्याम रजक ने कहा है कि, आगामी विधानसभा चुनाव में जेडीयू की बड़ी भूमिका में होगी. हालांकि ये अभी तय नहीं हुआ है. उधर, बीजेपी नेता नंद किशोर यादव ने कहा कि प्रशांत किशोर कोई पार्टी के अधिकारी नहीं हैं. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने साफ कर दिया है कि, हम बिहार में मिलकर चुनाव लड़ेंगे. इसके बाद कुछ कहने की जरूरत नहीं है.

NPR जानें सारा सच

मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग के बाद नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अनुमति दे दी गई है. इस पर अगले साल अप्रैल से काम शुरू हो जाएगा. इसमें देश में रहने वाले भारतीयों और गैर भारतीयों के नाम रजिस्टर में दर्ज किए जाएंगे.

National Population Register, एनपीआर को दूसरे शब्दों में जनगणना कार्य भी कह सकते हैं

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को मंजूरी दे दी है. ये अगले साल से लागू हो जाएगा. इसमें घर-घर जाकर एक रजिस्टर तैयार किया जाएगा और दर्ज किया जाएगा कि कहां कौन रह रहा है. ये एनआरसी से एकदम अलग है.

इसमें देश में हर गांव, शहर और राज्यों में रहने वाले लोगों के नाम एक रजिस्टर में दर्ज किए जाएंगे. अगर कोई शख्स छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रह रहा है तो उसे एनपीआर में अनिवार्य तौर पर खुद को रजिस्टर्ड कराना होगा.

एनपीआर को दूसरे शब्दों में जनगणना कार्य भी कह सकते हैं. भारत सरकार ने अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के दौरान जनगणना 2011 के लिए घर-घर जाकर सूची तैयार करने तथा प्रत्येक घर की जनगणना के चरण में देश के सभी सामान्य निवासियों के संबंध में विशिष्ट सूचना जमा करके इस डेटाबेस को तैयार करने का कार्य शुरू किया था.

नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में प्रत्येक नागरिकों को जानकारी रखी जाएगी. ये नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है.

क्या है एनपीआर?

एनपीआर का फुल फॉर्म नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर है. जनसंख्या रजिस्टर का मतलब यह है इसमें किसी गांव या ग्रामीण इलाके या कस्बे या वार्ड या किसी वार्ड या शहरी क्षेत्र के सीमांकित इलाके में रहने वाले लोगों का विवरण शामिल होगा.’ वैसे देश में काफी भ्रम है कि पॉपुलेशन रजिस्टर (PR), नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) और नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजंस (NRIC) किस तरह संबंधित हैं. लेकिन एनपीआर और एनआरसी पूरी तरह अलग हैं. इसे जनगणना से भी जोड़कर देखा जा सकता है.

किस तरह एनपीआर लागू होगा

नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में तीन प्रक्रिया होंगी. पहले चरण यानी अगले साल एक अप्रैल 2020 लेकर से 30 सितंबर के बीच केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे. वहीं दूसरा चरण 9 फरवरी से 28 फरवरी 2021 के बीच पूरा होगा. तीसरे चरण में संशोधन की प्रक्रिया 1 मार्च से 5 मार्च के बीच होगी.

आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी. 10 साल में होने वाली जनगणना अब तक 7 बार हो चुकी है. अभी 2011 में की गई जनगणना के आंकड़े उपलब्ध हैं और 2021 की जनगणना पर काम जारी है. बायोमेट्रिक डाटा में नागरिक का अंगूठे का निशान और अन्य जानकारी शामिल होगी.

क्या है उद्देश्य

नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) का उद्देश्य इस प्रकार है-
– सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत दिया जाने वाला लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे और व्यक्ति की पहचान की जा सके.
– नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) द्वारा देश की सुरक्षा में सुधार किया जा सके और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में सहायता प्राप्त हो सके.
– देश के सभी नागरिकों को एक साथ जोड़ा जा सके.

कितना खर्च होगा

इसके लिए केंद्र की ओर से 8500 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं. एनपीआर अपडेट करने की प्रक्रिया अप्रैल 2020 से शुरू होगी. ये 30 सितंबर 2020 तक चलेगा. इसमें असम के अलावा पूरे देश में घर-घर गणना के लिए फील्डवर्क किया जाएगा.

क्या इसमें भारतीय और गैर भारतीय नागरिकों का विवरण होगा

हां, नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजंस में भारत और भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों का विवरण होगा. नियम 4 का उपनियम (3) कहता है: भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर की तैयारी और इसमें लोगों को शामिल करने के लिए जनसंख्या रजिस्टर में हर परिवार और व्यक्ति का जो विवरण है उसको स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित और जांच किया जाएगा.
2003 रूल के नियम 4 के उपनियम (4) में यह बहुत साफ है कि इस वेरिफिकेशन और जांच प्रक्रिया में क्या होगा: वेरिफिकेशन प्रक्रिया के तहत जिन लोगों की नागरिकता संदिग्ध होगी, उनके विवरण को स्थानीय रजिस्ट्रार आगे की जांच के लिए जनसंख्या रजिस्टर में उपयुक्त टिप्पणी के साथ देंगे. ऐसे लोगों और उनके परिवार को वेरिफिकेशन की प्रक्रिया खत्म होने के तत्काल बाद एक निर्धारित प्रो-फॉर्मा में दिया जाएगा.

SC में CAA के खिलाफ़ प्रदर्शन में तोड़फोड़ करने वालों पर कार्यवाई को लेकर याचिका दायर

विनीत ढांडा द्वारा दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि अफवाह फैलाने वाली राजनीतिक पार्टियों पर चुनाव आयोग एक्शन ले और दुष्प्रचार में शामिल मीडिया संस्थानों के खिलाफ सूचना प्रसारण मंत्रालय कार्रवाई करे. आपको बता दें कि दरियागंज हिंसा मामले में शामिल 15 आरोपियों की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है.

विनीड ढांडा
साभार ANI

नई दिल्ली:

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन में शामिल लोगों पर कार्रवाई की मांग उठने लगी है. इसे लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को दंगाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के आदेश दे. याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत ढांडा ने दायर की है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि अफवाह फैलाने वाली राजनीतिक पार्टियों पर चुनाव आयोग एक्शन ले और दुष्प्रचार में शामिल मीडिया संस्थानों के खिलाफ सूचना प्रसारण मंत्रालय कार्रवाई करे. आपको बता दें कि दरियागंज हिंसा मामले में शामिल 15 आरोपियों की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है. 

नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली के दरिया गंज इलाके में 20 दिसंबर को हुए हिंसक प्रदर्शन में आगजनी और दंगा करने के मामले में पुलिस ने 15 लोगों को आरोपी बनाया था. तीस हजारी की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सोमवार को इन सभी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. लेकिन मंगलवार को इनमें से 6 आरोपियों ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले को सेशन कोर्ट में चुनौती दी है. आज इस मामले में सुनवाई होनी है.

पुलिस का कहना था कि ये लोग पुलिस पर पत्थरबाजी, कार जलाने जैसी हरकतों में शामिल थे. सोमवार को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सभी 15 आरोपियों की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘पुलिसकर्मियों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात किया गया था, उन्हें उनकी ड्यूटी करने से रोका गया. पुलिस पर हमला किया गया उनपर पत्थरबाजी हुई. पुलिसकर्मियों को चोटें आई, किसी भी तरह से हिंसा को सही साबित नहीं किया जा सकता है. जो भी आरोप लगे हैं वह गंभीर प्रकृति के हैं. इसलिए जमानत का कोई आधार नहीं है.’