शूभेन्दु अधिकारी ने थामा कमल

कोलकत्ता/चंडीगढ़:

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल के दो दिन के दौरे पर कोलकाता पहुंच गए हैं. बंगाल में सियासी उठापटक के बीच अमित शाह का यह दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस दौरे से अमित शाह जहां जनता से संवाद करेंगे वहीं टीएमसी के असंतुष्ट कई नेताओं के बीजेपी में शामिल होने की भी खबर है. इनमें पूर्व मंत्री व विधायक शुभेंदु अधिकारी का नाम भी शामिल है.

अमित शाह की मिदनापुर रैली में मंच पर कैलाश विजयवर्गीय, तपन घोष जैसे बड़े अधिकारियों के बीच अमित शाह के दायीं ओर बैठे दिखे शुभेन्दु अधिकारी। अमित शाह ने उन्हे भाजपा का झण्डा थमाया वहीं शुभेन्द अधिकारी ने शाह का आशीर्वाद लेते हुए भाजपा के कमल को थाम भाजपा की सदस्यत ग्रहण की।

किसान सनातन सिंह के घर भोजन करने के बाद अमित शाह ने आजतक से एक्सक्लूसिव बात की. अमित शाह ने कहा कि ममता बनर्जी ने सोनार बंगला का सपना तो दिखा दिया, लेकिन इसे पूरा नहीं किया. उन्होंने कहा कि बीजेपी इस सपने को पूरा करेगी. अमित शाह ने कहा कि बीजेपी इस बार 200 सीटें जीतेगी और ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल का बीजेपी का कार्यकर्ता ही उनके खिलाफ चुनाव लड़ेगा और उन्हें हराएगा. अमित शाह ने कहा कि ऐसा कहीं  नहीं हुआ कि 18 महीने में किसी पार्टी के 300 कार्यकर्ता मारे गए. लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा हुआ है. फिर भी हम डटे रहे, डरे नहीं. अमित शाह ने कहा कि पश्चिम बंगाल में ममता सरकार से लोग नाराज और नाखुश है इसलिए वो बीजेपी में आ रहे हैं.  

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पश्चिम बंगाल में पीएम आवास तो बने दिख रहे हैं, लेकिन पीएम के द्वारा किसानों को भेजा गया पैसा नहीं मिल रहा है. गृह मंत्री ने कहा कि अगर किसी पार्टी के अध्यक्ष पर हमला होता है तो केंद्र को कार्रवाई पड़नी पड़ती है. अमित शाह ने संघीय ढांचे के उल्लंघन के आरोपों को इनकार किया. अमित शाह ने कहा कि अगर किसी दूसरे राज्य में किसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर हमला हुआ होता तो क्या किया जाता. उन्होंने कहा कि केंद्र अपने दायरे में रहकर ही काम कर रहा है.

शुभेंदु अधिकारी के भाई भी बीजेपी में शामिल होंगे

मिदनापुर में न सिर्फ टीएमसी सांसद शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में शामिल होंगे, बल्कि कोंटाई निगम के चेयरमैन और शुभेंदु अधिकारी के छोटे भाई सुमेंदु अधिकारी भी बीजेपी में शामिल होंगे.  

इनके अलावा 10 और विधायक बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं. दक्षिण कोंटाई के विधायक बनसारी मैती भी बीजेपी में शामिल होने जा रही हैं. 

अगर सीपीएम की बात करें तो हल्दिया से CPM विधायक तापसी मंडल और ताल्मुक के CPI विधायक अशोक डिंडा भी बीजेपी में शामिल हो रहे हैं.  हल्दिया नगर निगम के कुछ पार्षद भी बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं. यही नहीं कई ग्राम पंतायत के सदस्य और ग्राम प्रधान भी बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं.  

आज मिदनापुर में टीएमसी, सीपीएम, कांग्रेस के ये नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. 

1.    Sunil Mondal / MP / TMC 
2.    Banasree Maity / MLA / TMC
3.    Biswajit Kundu / MLA / TMC
4.    Saikat Panja / MLA / TMC
5.    Shilbhadra Datta / MLA / TMC
6.    Sukra Munda / MLA / TMC
7.    Sudip Mukherjee / MLA / INC
8.    Tapasi Mondal / MLA / CPIM
9.    Ashok Dinda / MLA / CPI
10.    Dipali Biswas / MLA / won as CPIM, joined TMC later

मिदनापुर में न सिर्फ टीएमसी सांसद शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में शामिल होंगे, बल्कि कोंटाई निगम के चेयरमैन और शुभेंदु अधिकारी के छोटे भाई सुमेंदु अधिकारी भी बीजेपी में शामिल होंगे.  

इनके अलावा 10 और विधायक बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं. दक्षिण कोंटाई के विधायक बनसारी मैती भी बीजेपी में शामिल होने जा रही हैं. 

अगर सीपीएम की बात करें तो हल्दिया से CPM विधायक तापसी मंडल और ताल्मुक के CPI विधायक अशोक डिंडा भी बीजेपी में शामिल हो रहे हैं.  हल्दिया नगर निगम के कुछ पार्षद भी बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं. यही नहीं कई ग्राम पंतायत के सदस्य और ग्राम प्रधान भी बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं.  कांग्रेस के पुरुलिया से विधायक सुदीप मुखर्जी के भी बीजेपी में शामिल होने की संभावना है. बैरकपुर से टीएमसी विधायक शीलभद्र दत्ता के भी बीजेपी में शामिल होने की संभावना है. 

बर्दवान पूर्व से टीएमसी सांसद सुनील मंडल के भी बीजेपी में शामिल होने की संभावना 

स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस को नमन

गृह मंत्री अमित शाह मिदनापुर में स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस के घर पहुंचे और उनके परिवार वालों से मुलाकात की.इससे पहले अमित शाह ने खुदीराम बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. अमित शाह ने कहा कि उन्हें शहीद खुदीराम बोस के जन्मस्थान की मिट्टी को कपाल पर लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. 

अमित शाह ने कहा कि  बंगाल के अंदर जो ओछी राजनीति करते हैं उन्हें मैं बताना चाहता हूं कि खुदीराम बोस जितने बंगाल के थे वे उतने ही पूरे भारत के थे. इसके अलावा उन्होंने कहा कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जितने यूपी के थे उतने ही वे बंगाल के लिए थे. अमित शाह ने कहा कि आज पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां को अंग्रेजी ने फांसी दी थी. आज के दिन उन्हें कम से कम देश के शहीदों के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए. 

स्वाधीन रूप से काम नहीं कर पा रही हूंः तापसी, होंगी भाजपा में शामिल

शुभेन्दु अधिकारी के जिला पूर्व मेदिनीपुर के हल्दिया की CPM MLA तापसी मण्डल ने CPI-M से नाता तोड़ने की घोषणा की है. वह शनिवार को मेदिनीपुर में केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah की सभा में BJP में शामिल होंगी.

कोलकत्ता / नयी दिल्ली :

पूर्व मंत्री शुभेंदु अधिकारी के टीएमसी से नाता तोड़ने के बाद टीएमसी में भगदड़ मची हुई है. एमएलए जितेंद्र तिवारी (Jitendra Tiwari), एमएलए शीलभद्र दत्ता (Shilbhadra Dutta)सहित पार्टी के कई नेता टीएमसी से नाता तोड़ चुके हैं. गुरुवार को हेस्टिंग्स स्थित बीजेपी कार्यालय में बड़ी संख्या में अन्य पार्टियों के नेता शामिल हुए. अब बीजेपी ने लेफ्ट में भी घुसपैठ किया है. शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) के जिला पूर्व मेदिनीपुर के हल्दिया की सीपीएम एमएलए तापसी मंडल (CPM MLA Tapasi Mondol) ने माकपा (CPI-M) से नाता तोड़ने की घोषणा की है. बता दें कि तापसी मंडल के पति अर्जुन मंडल पहले ही बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. वह शनिवार को मेदिनीपुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सभा में बीजेपी में शामिल होंगी. बता दें कि पश्चिम बंगाल में भी अगले साल की शुरुआत में ही चुनाव होने हैं. 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी सबसे ज्यादा 211 सीटें जीतने में सफल रही थी. वहीं, कांग्रेस ने 44 और वामपंथी दलों ने 26 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को महज तीन सीटों पर ही जीत मिल सकी थी. वहीं, अन्य दलों ने दस सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि आरंभ में टीएमसी में बड़ी संख्या में अन्य पार्टियों के नेता शामिल हो रहे थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद स्थिति बदल गई है. अब लोग टीएमसी की जगह बीजेपी में शामिल हो रहे हैं.

वामपंथियों ने ममता के बजाय भाजपा को चुना

स्वाधीन रूप से काम नहीं कर पा रही हूंः तापसी

हल्दिया की एमएलए तापसी मंडल ने कहा, “मैं स्वाधीन रूप से आम लोगों का काम नहीं कर पा रही हूं. इस कारण मैंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया है.” उनके पति के बीजेपी में शामिल होने पर तापसी मंडल ने कहा, “मेरा विश्वास है कि एक ही घर में रह कर दो पार्टियों की राजनीति नहीं की जा सकती है. यह सही नहीं है कि मैं और मेरे पति अलग-अलग पार्टी में राजनीति करूं. इससे लोगों का विश्वास समाप्त होता है.”

अमित शाह की जनसभा में शामिल होंगे दर्जनों नेता

बता दें विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी में टूट मची हुई है. राज्य के कद्दावर नेता शुभेंदु अधिकारी के पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिए जाने के बाद कई विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं. जितेंद्र तिवारी और विधायक शीलभद्र दत्त ने इस्तीफा दे दिया है. छोटे स्तर पर नगर पालिका अध्यक्ष और पार्टी के जिला अध्यक्षों ने पहले से ही इस्तीफे की पेशकश की है. अब माकपा नेता की टूट से यह संख्या और भी बढ़ सकती है. दावा किया जा रहा है कि शनिवार को पूर्व मेदिनीपुर में अमित शाह (Amit Shah) की जनसभा के दौरान शुभेंदु अधिकारी के साथ दर्जनों नेता शामिल हो सकते हैं.

शीलभद्र दत्ता के इस्तीफे के बाद शुभेन्दु अधिकारी का इस्तीफा नामंज़ूर, ममता डेमेज कंट्रोल मोड में

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शुवेंदु अधिकारी के इस्तीफे के बाद भगदड़ की स्थिति है. यह अलग बात है कि ममता बनर्जी भी राजनीतिक की मंझी खिलाड़ी हैं. ऐसे में एक बेहद नाटकीय घटनाक्रम में ममता बनर्जी के बागी मंत्री शुबेंदु अधिकारी को पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी की तरफ से तगड़ा झटका लगा है. विधानसभा अध्यक्ष ने अधिकारी का इस्तीफा मंजूर करने से इनकार कर दिया है. इसके पीछे उन्होंने जिन तकनीकी कारणों का हवाला दिया है, उन पर तर्क-वितर्क की भरपूर गुंजाइश है. 

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के राइट हैंड माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी के बाद विधायक जितेंद्र तिवारी और अब एक और विधायक शीलभद्र दत्ता ने इस्तीफा दे दिया है. टीएमसी सूत्रों का कहना है कि कुछ और बड़े नेता और विधायक इस्तीफा देने की कतार में हैं. यह सब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दो दिवसीय बंगाल दौरे से पहले हो रहा है. खास बात यह है कि टीएमसी कार्यकर्ता बौखलाहट में बागी हुए नेताओं के पोस्टरों-बैनरों पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं.

कोलकत्ता/नयी दिल्ली:

पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर ने शुभेंदु अधिकारी का इस्तीफा नामंजूर कर दिया है. उन्होंने कहा है कि इस्तीफा सही फॉर्मेट में नहीं है. स्पीकर ने 21 दिसंबर को शुभेंदु अधिकारी को बुलाया है और कहा कि उन्हें खुद आकर इस्तीफा देना होगा.

बता दें कि पश्चिम बंगाल की ममता सरकार में मंत्री रहे शुभेंदु अधिकारी ने शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. इससे पहले बुधवार को टीएमसी में अच्छी खासी पकड़ रखने वाले शुभेंदु अधिकारी ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. माना जा रहा है कि शुभेंदु अधिकारी जल्द ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो सकते हैं. 

शुभेंदु अधिकारी बीते कई दिनों से राज्य की मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी से नाराज चल रहे थे. उन्हें कई बार मनाने की कोशिश भी की गई, लेकिन उन्होंने टीएमसी को छोड़ने का मन बना लिया था. टीएमसी में शुभेंदु अधिकारी का कद काफी बड़ा था. दरअसल, पश्चिम बंगाल की 65 विधानसभा सीटों पर अधिकारी परिवार की मजबूत पकड़ है. ये सीटें राज्य के छह जिलों में फैली हैं. 

विरासत में मिली राजनीति 

शुभेंदु अधिकारी के प्रभाव वाली सीटों की संख्या राज्य की कुल 294 सीटों के पांचवें हिस्से से ज्यादा है. शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण से कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए.

शुभेंदु अधिकारी 2009 से ही कांथी सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं. 2007 में शुभेंदु अधिकारी ने पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में एक इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के खिलाफ भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया. इस आंदोलन ने ही 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम दलों को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई थी.

शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफे के बाद टीएमसी विधायक जितेन्द्र तिवारी ने भी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. जितेन्द्र तिवारी फिलहाल पांडेश्वर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. ये इस्तीफा ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी के अंदर बढ़ते बगावती तेवरों की तरफ इशारा कर रहा है. 

तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति, ममता बनर्जी ने भेजने से मना कर दिया

गृह मंत्रालय(MHA) ने बंगाल के जिन तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (सेंट्रल डेप्युटेशन) पर सेवा के लिए पत्र लिखकर बुलाया था, उनको ममता बनर्जी सरकार ने भेजने से मना कर दिया था। जिसके बाद आज फिर से गृह मंत्रालय(MHA) ने बंगाल सरकार को पत्र लिखा है। ऐसे में इस पत्र में कहा गया है कि तीनों IPS अधिकारियों को तत्काल कार्य मुक्त किया जाए।

कोलकत्ता/नई दिल्ली :

पश्चिम बंगाल में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव के बाद गृह मंत्रालय (MHA) ने मामले में लापरवाही के आरोप में बंगाल के तीन IPS अधिकारियों पर बड़ा फैसला लिया है. इन्हें केंद्र में तैनात कर दिया गया है. MHA ने IPS कैडर रूल 6(1)  के तहत यह कारवाई की. ऐसे में केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार में एक बार फिर से टकराव बढ़ सकता है. सीएम ममता बनर्जी ने इस मसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. 

उधर, MHA ने बंगाल के जिन तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (सेंट्रल डेप्युटेशन) पर सेवा के लिए पत्र लिखकर बुलाया था, उनको ममता बनर्जी सरकार ने भेजने से इनकार कर दिया था. जिसके बाद आज फिर से MHA ने बंगाल सरकार को पत्र लिखा है. इस पत्र में कहा गया है कि तीनों IPS अधिकारियों को तत्काल कार्य मुक्त किया जाए. 

बता दें कि इन तीन अधिकारियों के नाम हैं- राजीव मिश्र, प्रवीण कुमार त्रिपाठी और भोलानाथ पांडे, जिनको MHA ने तत्काल दिल्ली बुलाया है. MHA ने पत्र में यह भी कहा कि यदि राज्य उन्हें कार्य मुक्त नहीं करती है तो ये DoPT के क्लॉज  6(1) A का उल्लंघन होगा. 

MHA ने भोलानाथ पांडे को 4 साल के लिए BPRD में एसपी के पद पर तैनात किया है. प्रवीण कुमार त्रिपाठी को SSB में DIG के पद पर पांच साल के लिए भेजा है. साथ ही राजीव मिश्रा को ITBP में पांच साल के लिए आईजी के पद भेजा है. इस बाबत गृह मंत्रालय ने बंगाल के गृह सचिव और डीजीपी को चिठ्ठी लिख कर जानकारी दी. 

वही, इस मसले पर सीएम ममता बनर्जी ने कहा है कि राज्य की आपत्ति के बावजूद पश्चिम बंगाल के 3 सेवारत IPS अधिकारियों के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का आदेश IPS कैडर नियम 1954 के आपातकालीन प्रावधान की शक्ति का दुरुपयोग है. उन्होंने कहा कि केंद्र राज्य के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहा है. यह असंवैधानिक और पूरी तरह से अस्वीकार्य है. 

आपको बता दें कि ये पूरा मामला जेपी नड्डा के बंगाल दौरे से जुड़ा है. यहां नड्डा के काफिले पर हमले और उनकी सुऱक्षा में लापरवाही के बाद केंद्र ने बंगाल के डीजीपी और मुख्य सचिव को तलब किया था. लेकिन वो हाजिर नहीं हुए. बाद में MHA ने 3 IPS अधिकारियों को दिल्ली बुला लिया, लेकिन बंगाल सरकार ने भेजने से मना कर दिया. ऐसे में अब केंद्र की ओर नया कदम उठाया गया है. 

शुभेन्दु अधिकारी ने विधायक के पद से दिया इस्तीफा

पश्चिम बंगाल की 65 विधानसभा सीटों पर अधिकारी परिवार की मजबूत पकड़ है। ये सीटें राज्य के छह जिलों में फैली हैं। शुभेंदु के प्रभाव वाली सीटों की संख्या राज्य की कुल 294 सीटों के पांचवें हिस्से से ज्यादा है। शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण से कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए। शुभेंदु अधिकारी 2009 से ही कांथी सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं। 

कोल्कत्ता/नयी दिल्ली :

TMC के दिग्गज नेता शुभेंदु अधिकारी ने आज (16 अक्टूबर, 2020) विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। बुधवार शाम को बंगाल विधानसभा पहुँचे शुभेंदु अधिकारी ने स्पीकर के ना होने पर सचिवालय को अपना इस्तीफा सौंपा दिया। खबरों के अनुसार, अधिकारी जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। शुभेंदु का यह इस्तीफा आने वाले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ममता सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

बता दें अधिकारी पिछले कुछ समय से ममता सरकार से खफा चल रहे हैं। वह परिवहन मंत्री के पद से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। वहीं अब उन्होंने विधानसभा की सदस्यता भी छोड़ दी है। वहीं भाजपा ने शुभेंदु अधिकारी के इस फैसले का स्वागत किया है।

नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलनों का प्रभाव :
नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलनों का प्रभाव पूरे राज्य में देखा गया था, लेकिन आसपास के जिलों में कुछ ऐसा हुआ जिसने शुभेंदु को एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर दिया. 
2006 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल का वोट शेयर 27 प्रतिशत था जो कि पांच साल बाद बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया. पूर्व मिदनापुर और पश्चिम बर्दवान समेत पूरे जंगल महल में फैली 65 सीटें, जिन पर अधिकारी परिवार का प्रभाव माना जाता है, वहां तृणमूल का वोट शेयर 28 प्रतिशत से बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया. 
2016 में तृणमूल कांग्रेस को इन सीटों पर करीब 48 प्रतिशत वोट मिले,  उसके बाद वाम मोर्चा को 27 प्रतिशत और भाजपा को 10 प्रतिशत वोट मिले. हालांकि, पिछले साल राज्य में 18 संसदीय सीटें हासिल करने के बाद बीजेपी अब बंगाल में मुख्य विपक्ष के रूप में उभरी है.

शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफे पर बीजेपी महासचिव मुकुल रॉय ने आज कहा, “जिस दिन शुभेन्दु अधिकारी ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया था, मैंने कहा था कि अगर वह टीएमसी छोड़ देंगे तो मुझे खुशी होगी और हम उनका स्वागत करेंगे। आज उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और मैं उनके फैसले का स्वागत करता हूँ।”

भाजपा नेता मुकुल रॉय ने कहा, ”तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) ताश के पत्तों की तरह ढह रही है। पार्टी (टीएमसी) से रोज कोई न कोई हमारी पार्टी में शामिल होने के लिए आता है।”

गौरतलब है कि इससे पहले मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के दिग्गज नेता शुभेंदु अधिकारी जल्द ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होंगे। रिपोर्ट्स का कहना है कि इस सप्ताह वो अपने राजनीतिक भविष्य की अटकलों पर विराम लगाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल होंगे।

एक निजी चैनल से बातचीत करते हुए भाजपा उपाध्यक्ष मुकुल रॉय ने कहा था, “शुभेंदु अधिकारी पर फैसला हो गया है। 2 या 4 दिन में पार्टी में शामिल होंगे। सारी बातें लगभग हो चुकी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कितना भी दौरा कर लें, लेकिन वह और टीएमसी जीतेगी नहीं। सीएम कितना भी प्रचार करें, नतीजा जीरो ही रहने वाला है। ये छूटने की कोशिश है, दौरा नहीं है।”

वहीं इससे पहले शुभेंदु अधिकारी ने स्थानीय और बाहरी लोगों के संबंध में चल रही बहस को लेकर तृणमूल कॉन्ग्रेस पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि अन्य राज्यों से आने वाले लोगों को बाहरी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि वह पहले भारतीय हैं और फिर बंगाली हैं। उन्होंने तृणमूल कॉन्ग्रेस नेतृत्व की भी आलोचना करते हुए कहा था कि वह लोगों की अपेक्षा पार्टी को अधिक महत्व दे रहा है।

मुस्लिम वोटर्स ममता बनर्जी की जागीर नहीं हैं : ओवैसी

ममता बनर्जी ने एक दिन पहले एक रैली में कहा था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पैसे खर्च करके हैदराबाद से पश्चिम बंगाल में एक पार्टी को ला रही है, ताकि हिंदू-मुस्लिम मतों का विभाजन किया जा सके. सुश्री बनर्जी के बयान को खारिज करते हुए ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘अब तक आपका पाला आज्ञाकारी मीर जाफरों और सादिकों से पड़ा है. आप उन मुस्लिमों को पसंद नहीं करतीं, जो अपने लिए सोचते और बोलते हैं. आपने बिहार में हमारे मतदाताओं का अपमान किया है.’

चंडीगढ़/ नई दिल्ली :

पश्चिम बंगाल के अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के चुनावी दंगल में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की भी एंट्री हो गई है। असदुद्दीन ओवैसी ने बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं, जिसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन पर निशाना साधा। ममता बनर्जी ने अपने एक बयान में ओवैसी की पार्टी की ओर इशारा करते हुए बयान दिया था कि भाजपा मुस्लिम वोट बाँटने के लिए हैदराबाद से एक पार्टी लाने के लिए करोड़ों खर्च कर रही है।

अब असदुद्दीन ओवैसी ने ममता बनर्जी को जवाब दिया है और कहा, “मुझे पैसों से खरीदने वाला आज तक कोई पैदा नहीं हुआ। ममता बनर्जी के आरोप निराधार हैं, उन्हें अपने घर के बारे में फिक्र होनी चाहिए। उनकी पार्टी के कई लोग बीजेपी में जाना शुरू कर चुके हैं। उन्होंने बिहार के मतदाताओं और हमारे लिए वोट करने वाले लोगों का अपमान किया है।” ओवैसी ने कहा कि मुस्लिम वोटर्स ममता बनर्जी की जागीर नहीं हैं।

बता दें कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार (दिसंबर 15, 2020) AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर गंभीर आरोप लगाए। जलपाईगुड़ी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि अल्पसंख्यकों के वोटों को बाँटने के लिए उन्होंने (BJP) हैदराबाद की एक पार्टी को चुनावी मैदान में उतारा है। टीएमसी प्रमुख ने आरोप लगाया कि भाजपा उन्हें पैसे देती है और वे इस पैसे को बाँटते हैं, यही बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था।

ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को बंगाल में लाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती है और हिंदू-मुस्लिम वोट आपस में बाँटना चाहती है। 

उल्लेखनीय है कि TMC के दिग्गज नेता शुभेंदु अधिकारी ने आज (दिसंबर 16, 2020) विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। बुधवार शाम को बंगाल विधानसभा पहुँचे शुभेंदु अधिकारी ने स्पीकर के ना होने पर सचिवालय को अपना इस्तीफा सौंपा दिया। खबरों के अनुसार, अधिकारी जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। शुभेंदु का यह इस्तीफा आने वाले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को मद्देनजर ममता सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

वहीं तृणमूल कॉन्ग्रेस के बागी विधायक जितेंद्र तिवारी ने भी खुलेमाम पार्टी छोड़ने की धमकी दी है। दुर्गापुर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने पूछा कि आखिर लोग कब तक डर में जीते रहेंगे? आसनसोल नगर निगम के बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर के अध्यक्ष तिवारी ने कहा, “एक न एक दिन हमें निर्णय लेना ही होगा कि क्या करना है? मैंने सोच लिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो मैं (पार्टी) छोड़ दूँगा, लेकिन लोगों के साथ बना रहूँगा।”

ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनावों में भाजपा की 4 से 49 पर छलांग, ओवैसी ने अपनी जमीन तो बचा ली लेकिन केसीआर का किला ध्वस्त हो गया

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में पहली बार इतना जोर-शोर दिखा. बीजेपी ने तो इस चुनाव में अपने राष्ट्रीय नेताओं जैसे गृह मंत्री अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक को प्रचार के लिए उतार दिया था. चुनाव प्रचार के दौरान AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी काफी बयानबाजी की .GHMC Election 2020 में कुल 74,44,260 मतदाता हैं, जबकि कुल 1,122 उम्मीदवार अपनी किस्मत को आजमा रहे थे.

  • ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत
  • बीजेपी को 49 सीटों पर मिली जीत
  • तेलंगाना की जनता का आभार: अमित शाह

नयी दिल्ली/हैदराबाद:

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं. देश के सबसे बड़े नगर निगम में से एक ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 49 सीटों पर सीट हासिल की है. वहीं, केसीआर की पार्टी टीआरएस को 56 और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को 43 सीटों पर जीत मिली. हालांकि इस बार किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है 150 वार्डों वाले ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में बहुमत का आंकड़ा 75 है. 

बीजेपी की जीत पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया है. उन्होंने कहा कि तेलंगाना की जनता ने पीएम मोदी पर भरोसा जताया. तेलंगाना की जनता का आभार. आपको बता दें इस चुनाव के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी थी. 

अमित शाह और योगी आदित्यनाथ जैसे बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने निगम के चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार किया था. दोनों ही नेताओं ने हैदराबाद में रोड शो किया था और असदुद्दीन ओवैसी पर जमकर निशाना साधा था. 

बीजेपी बाजीगर बनकर उभरी

नगर निगम के चुनाव में बीजेपी बाजीगर बनकर उभरी है. इस शानदार जीत के बाद सवाल उठता है कि क्या दक्षिण के दुर्ग का दूसरा दरवाजा बीजेपी के लिए जल्द ही खुलनेवाला है. क्या कर्नाटक के बाद बीजेपी दक्षिण के दूसरे राज्यों में भी सत्ता के शिखर पर पहुंचने में कामयाब हो जाएगी. चुनाव तो वैसे नगर निगम का था लेकिन रोमांच किसी लोकसभा-विधानसभा चुनाव से कम नहीं. बीजेपी ने ताकत झोंकी तो नतीजे भी गवाही देने लगे. दक्षिण के दुर्ग में दूसरा दरवाजा खोलने की बीजेपी की रणनीति काम कर गई.

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम का सियासी रसूख ही कुछ ऐसा है कि इस दुर्ग में जगह बनाना बीजेपी के लिए जरुरी था. यह नगर निगम 4 जिलों में है, जिनमें हैदराबाद, मेडचल-मलकजगिरी, रंगारेड्डी और संगारेड्डी शामिल हैं. पूरे इलाके में 24 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं तो तेलंगाना की 5 लोकसभा सीटें आती हैं.

यही वजह है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में केसीआर से लेकर बीजेपी, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी तक ने दिन रात एक कर दिया, लेकिन पिछली बार हाशिये पर खड़ी बीजेपी ने इस बार कमाल कर दिया. बीजेपी के शानदार परफॉर्मेंस का असर ये होगा कि दक्षिण में कर्नाटक के बाद तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में पैर पसारने में बीजेपी को राहत रहेगी जहां बीजेपी अबतक कामयाबी के लिए बरसों से जी-तोड़ मेहनत कर रही है.  

केसीआर का किला ध्वस्त 

जश्न भले ही टीआरएस खेमे में है लेकिन झटका भी उसे ही लगा है. ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में केसीआर की पार्टी वैसे तो सबसे बड़े प्लेयर बनकर उभरी है लेकिन चुनाव ओवैसी बनाम बीजेपी हो गया. बीजेपी ने इस चुनाव के जरिए दक्षिण के सियासी समंदर की गहराई नापी. वहां की फिजां में लोगों का मूड भांपा. दक्षिण भारत में लोकतांत्रिक विस्तार का तापमान जाना. 

चुनाव प्रचार में ही ओवैसी और बीजेपी जिस तरह एक दूसरे पर प्रहार कर रहे थे उससे लगने लगा था कि टीआरएस के लिए इस बार बहुमत हासिल करना आसान नहीं होगा. ओवैसी ने अपनी जमीन तो बचा ली लेकिन केसीआर का किला ध्वस्त हो गया.

क्यों अहम है हैदराबाद नगर निगम चुनाव

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है. यह नगर निगम 4 जिलों में है, जिनमें हैदराबाद, मेडचल-मलकजगिरी, रंगारेड्डी और संगारेड्डी शामिल हैं. पूरे इलाके में 24 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं तो तेलंगाना की 5 लोकससभा सीटें आती हैं. यही वजह है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में केसीआर से लेकर बीजेपी, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी तक की साख दांव पर लगी हुई है. 

46 फीसदी से अधिक मतदान

इस बार 46.55% मतदान हुआ. 2009 के हैदराबाद नगर निगम चुनाव में 42.04 फीसदी तो 2016 में हुई नगर निगम चुनाव में 45.29 फीसदी लोगों ने ही वोट डाले थे. हालांकि पिछले 2 चुनाव से ज्यादा इस बार वोटिंग दर्ज की गई.

पिछले चुनाव में टीआरएस को मिला था बहुमत

2016 में हुए ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव की बात करें तो टीआरएस ने 150 वार्डों में से 99 वार्ड में जीत हासिल की थी, जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को 44 वार्ड में जीत मिली थी. जबकि बीजेपी महज तीन नगर निगम वार्ड में जीत दर्ज कर सकी थी और कांग्रेस को महज दो वार्डों में ही जीत मिली थी.

एक राष्ट्र एक चुनाव, पक्ष – विपक्ष

2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. कॉंग्रेस का विरोध तो जग जाहिर है लेकिन भाजपा की इस मुद्दे पर चुप्पी समझ से परे है. 2018 में ऐसा क्या था कि प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली भाजपा तटस्थ रही और आज मोदी इसका हर जगह इसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं? 1999 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान विधि आयोग ने इस मसले पर एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि अगर किसी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है तो उसी समय उसे दूसरी वैकल्पिक सरकार के पक्ष में विश्वास प्रस्ताव भी देना सुनिश्चित किया जाए। 2018 में विधि आयोग ने इस मसले पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई जिसमें कुछ राजनीतिक दलों ने इस प्रणाली का समर्थन किया तो कुछ ने विरोध। कुछ राजनीतिक दलों का इस विषय पर तटस्थ रुख रहा। भारत में चुनाव को ‘लोकतंत्र का उत्सव’ कहा जाता है, तो क्या पांच साल में एक बार ही जनता को उत्सव मनाने का मौका मिले या देश में हर वक्त कहीं न कहीं उत्सव का माहौल बना रहे? जानिए, क्यों यह चर्चा का विषय है.

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

हर कुछ महीनों के बाद देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव हो रहे होते हैं. यह भी चुनावी तथ्य है कि देश में पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग ने किसी न किसी राज्य में कोई चुनाव न करवाया हो. इस तरह के तमाम तथ्यों के हवाले से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ की बात छेड़ी है. अव्वल तो यह आइडिया होता क्या है? इस सवाल के बाद बहस यह है कि जो लोग इस आइडिया का समर्थन करते हैं तो क्यों और जो नहीं करते, उनके तर्क क्या हैं.

जानकार तो यहां तक कहते हैं ​कि भारत का लोकतंत्र चुनावी राजनीति बनकर रह गया है. लोकसभा से लेकर विधानसभा और नगरीय निकाय से लेकर पंचायत चुनाव… कोई न कोई भोंपू बजता ही रहता है और रैलियां होती ही रहती हैं. सरकारों का भी ज़्यादातर समय चुनाव के चलते अपनी पार्टी या संगठन के हित में ही खर्च होता है. इन तमाम बातों और पीएम मोदी के बयान के मद्देनज़र इस विषय के कई पहलू टटोलते हुए जानते हैं कि इस पर चर्चा क्यों ज़रूरी है.

क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ का आइडिया?

इस नारे या जुमले का वास्तविक अर्थ यह है कि संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों. और सरल शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि वोटर यानी लोग एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोटिंग करेंगे. अब चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग, तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं.

पीएम मोदी की खास रुचि

जनवरी, 2017 में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के संभाव्यता अध्ययन कराए जाने की बात कही. तीन महीने बाद नीति आयोग के साथ राज्य के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी इसकी आवश्यक्ता को दोहराया. इससे पहले दिसंबर 2015 में राज्यसभा के सदस्य ईएम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति ने भी इस चुनाव प्रणाली को लागू किए जाने पर जोर दिया था. 2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. चार दलों (अन्नाद्रमुक, शिअद, सपा, टीआरएस) ने समर्थन किया. नौ राजनीतिक दलों (तृणमूल, आप, द्रमुक, तेदेपा, सीपीआइ, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फारवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लाक) ने विरोध किया. नीति आयोग द्वारा एक देश एक चुनाव विषय पर तैयार किए गए एक नोट में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को 2021 तक दो चरणों में कराया जा सकता है. अक्टूबर 2017 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग तैयार है, लेकिन  निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है.

क्या है इस आइडिया पर बहस?

कुछ विद्वान और जानकार इस विचार से सहमत हैं तो कुछ असहमत. दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. पहले इन तर्कों के मुताबिक इस तरह की व्यवस्था से जो फायदे मुमकिन दिखते हैं, उनकी चर्चा करते हैं.

कई देशों में है यह प्रणाली

स्वीडन इसका रोल मॉडल रहा है. यहां राष्ट्रीय और प्रांतीय के साथ स्थानीय निकायों के चुनाव तय तिथि पर कराए जाते हैं जो हर चार साल बाद सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं. इंडोनेशिया में इस बार के चुनाव इसी प्रणाली के तहत कराए गए. दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर पांच साल पर एक साथ करा  जाते हैं जबकि नगर निकायों के चुनाव दो साल बाद होते हैं.

पक्ष में दलीलें

1. राजकोष को फायदा और बचत : ज़ाहिर है कि बार बार चुनाव नहीं होंगे, तो खर्चा कम होगा और सरकार के कोष में काफी बचत होगी. और यह बचत मामूली नहीं बल्कि बहुत बड़ी होगी. इसके साथ ही, यह लोगों और सरकारी मशीनरी के समय व संसाधनों की बड़ी बचत भी होगी.  एक अध्ययन के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव पर करीब साठ हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. इसमें पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च भी शामिल हैं. एक साथ एक चुनाव से समय के साथ धन की बचत हो सकती है। सरकारें चुनाव जीतने की जगह प्रशासन पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाएंगी.

2. विकास कार्य में तेज़ी : चूंकि हर स्तर के चुनाव के वक्त चुनावी क्षेत्र में आचार संहिता लागू होती है, जिसके तहत विकास कार्य रुक जाते हैं. इस संहिता के हटने के बाद विकास कार्य व्यावहारिक रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि चुनाव के बाद व्यवस्था में काफी बदलाव हो जाते हैं, तो फैसले नए सिरे से होते हैं.

3. काले धन पर लगाम : संसदीय, सीबीआई और चुनाव आयोग की कई रिपोर्ट्स में कहा जा चुका है कि चुनाव के दौरान बेलगाम काले धन को खपाया जाता है. अगर देश में बार बार चुनाव होते हैं, तो एक तरह से समानांतर अर्थव्यवस्था चलती रहती है.

4. सुचारू प्रशासन : एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल एक ही बार होगा लिहाज़ा कहा जाता है कि स्कूल, कॉलेज और ​अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारियों का समय और काम बार बार प्रभावित नहीं होगा, जिससे सारी संस्थाएं बेहतर ढंग से काम कर सकेंगी.

5. सुधार की उम्मीद : चूंकि एक ही बार चुनाव होगा, तो सरकारों को धर्म, जाति जैसे मुद्दों को बार बार नहीं उठाना पड़ेगा, जनता को लुभाने के लिए स्कीमों के हथकंडे नहीं होंगे, बजट में राजनीतिक समीकरणों को ज़्यादा तवज्जो नहीं देना होगी, यानी एक बेहतर नीति के तहत व्यवस्था चल सकती है.

ऐसे और भी तर्क हैं कि एक बार में ही सभी चुनाव होंगे तो वोटर ज़्यादा संख्या में वोट करने के लिए निकलेंगे और लोकतंत्र और मज़बूत होगा. बहरहाल, अब आपको ये बताते हैं कि इस आइडिया के विरोध में क्या प्रमुख तर्क दिए जाते हैं.

1. क्षेत्रीय पार्टियां होंगी खारिज : चूंकि भारत बहुदलीय लोकतंत्र है इसलिए राजनीति में भागीदारी करने की स्वतंत्रता के तहत क्षेत्रीय पार्टियों का अपना महत्व रहा है. चूंकि क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को तरजीह देती हैं इसलिए ‘एक चुनाव’ के आइडिया से छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा क्योंकि इस व्यवस्था में बड़ी पार्टियां धन के बल पर मंच और संसाधन छीन लेंगी.

2. स्थानीय मुद्दे पिछड़ेंगे : चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं इसलिए दोनों एक साथ होंगे तो विविधता और विभिन्न स्थितियों वाले देश में स्थानीय मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे. ‘एक चुनाव’ के आइडिया में तस्वीर दूर से तो अच्छी दिख सकती है, लेकिन पास से देखने पर उसमें कई कमियां दिखेंगी. इन छोटे छोटे डिटेल्स को नज़रअंदाज़ करना मुनासिब नहीं होगा.

3. चुनाव नतीजों में देर : ऐसे समय में जबकि तमाम पार्टियां चुनाव पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाए जाने की मांग करती हैं, अगर एक बार में सभी चुनाव करवाए गए तो अच्छा खास समय चुनाव के नतीजे आने में लग जाएगा. इस समस्या से निपटने के लिए क्या विकल्प होंगे इसके लिए अलग से नीतियां बनाना होंगी.

4. संवैधानिक समस्या : देश के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत य​ह आइडिया सुनने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसमें तकनीकी समस्याएं काफी हैं. मान लीजिए कि देश में केंद्र और राज्य के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि सभी सरकारें पूर्ण बहुमत से बन जाएं. तो ऐसे में क्या होगा? ऐसे में चुनाव के बाद अनैतिक रूप से गठबंधन बनेंगे और बहुत संभावना है कि इस तरह की सरकारें 5 साल चल ही न पाएं. फिर क्या अलग से चुनाव नहीं होंगे?

यही नहीं, इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन किए जाने की ज़रूरत पेश आएगी.

“पांच टीएमसी सांसद किसी भी वक्त इस्तीफा दे सकते हैं और बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.” अर्जुन सिंह

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद अर्जुन सिंह ने दावा किया है कि तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पार्टी के बड़े नेता सौगत रॉय कैमरे के सामने टीएमसी नेता होने का दावा कर रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि टीएमसी एक पांच सांसद किसी भी वक्त पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं. सिंह शनिवार को नॉर्थ 24 परगनास जिले के जगदल घाट पर छठ पूजा में पहुंचे थे. उन्होंने कहा ‘मैं बार-बार कह रहा हूं कि पांच टीएमसी सांसद किसी भी वक्त इस्तीफा दे सकते हैं और बीजेपी (BJP) में शामिल हो सकते हैं.’

कोलकतता/नयी दिल्ली:

जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल में चुनाव की घड़ी नजदीक आ रही है वैसे-वैसे राजनीतिक पारा बढ़ता जा रहा है। ममता बनर्जी के सबसे करीबी माने जाने वाले दिग्गज टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी के बीजेपी में शामिल होने की खबरों के बीच एक और बड़ी जानकारी सामने आई है। अब भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और बैरकपुर के सांसद अर्जुन सिंह ने दावा किया है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के पाँच सांसद कभी भी इस्तीफा दे देंगे। बता दें कि राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है।

भाजपा सांसद अर्जुन सिंह ने दावा किया है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद सौगत राय समेत चार अन्य सांसद जल्द ही पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सौगत रॉय (टीएमसी सांसद) कैमरे के सामने टीएमसी नेता होने का दिखावा करते हैं। 

अर्जुन सिंह ने शनिवार (नवंबर 21, 2020) को दावा किया कि सौगत राय टीएमसी से इस्तीफा देना चाहते हैं। सांसद अर्जुन सिंह ने कहा, “मैं बार-बार कह रहा हूँ कि पाँच टीएमसी सांसद कभी भी इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो जाएँगे।” जब उनसे पूछा गया कि क्या इन 5 नामों में सौगत राय भी शामिल हैं, तो अर्जन सिंह ने कहा, “कैमरे के सामने सौगत राय टीएमसी नेता और ममता बनर्जी का मीडिएटर होने का ढोंग कर रहे हैं। लेकिन एक बार कैमरा घूमेगा, आप इस लिस्ट में उनका नाम भी शामिल कर सकेंगे।”

गौरतलब है कि सौगत राय तृणमूल कॉन्ग्रेस के बड़े नेता हैं। भाजपा सांसद का ये बयान ऐसे समय में आया है जब हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल का दौरा कर लौटे हैं।

बीजेपी सांसद ने आगे कहा, “शुभेंदु अधिकारी एक बड़े जनाधार वाले नेता हैं। ममता बनर्जी आज बड़ी नेता हैं क्योंकि शुभेंदु अधिकारी और उनके जैसे कई नेताओं ने संघर्ष किया है। पार्टी के लिए अपना खून दिया है, लेकिन अब ममता बनर्जी उन सब का बलिदान भूल कर अपने भतीजे को कुर्सी पर बैठाना चाहती हैं। कोई भी बड़ा नेता यह स्वीकार नहीं कर सकता। जिस तरह से शुभेंदु अधिकारी जैसे नेताओं का अपमान किया गया है, उन्हें टीएमसी छोड़ देनी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि शुभेंदु एक बड़े नेता हैं, उनका हमेशा भारतीय जनता पार्टी में स्वागत है। बीजेपी पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने जा रही है। शुभेंदु जैसे ही बीजेपी में शामिल होंगे, ममता सरकार ज्यादा दिनों तक प्रदेश में टिक नहीं पाएगी। यह सरकार खत्म हो जाएगी।

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों तृणमूल कॉन्ग्रेस के लोकप्रिय नेता और परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने बगावती तेवर दिखाते हुए नंदीग्राम दिवस पर टीएमसी से अलग रैली की थी। अधिकारी की रैली में सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तस्वीर भी नहीं थे। यहीं नहीं उन्होंने अपनी रैली में भारत माता की जय के नारे भी लगाए।

जब चेन्नई में शाह सड़कों पर उतरे

गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को तमिलनाडु के चेन्नई में रोड शो किया. अमित शाह ने सड़क पर पैदल चलकर बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की. गृहमंत्री का ये दौरा इसलिए भी खास है, क्योंकि राज्य में अगले साल 2021 में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. इस राज्य में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए बीजेपी पूरी जी जान से लगी है. ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह का ये दौरा काफी अहम माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को यहां पर कोई कामयाबी नहीं मिली थी. चुनाव में स्टालिन पार्टी डीएमके ने सबसे ज्यादा सीटें बटोरीं थीं.

चेन्नई/नयी दिल्ली:

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को चेन्नई पहुंचे, जहां वे चेन्नई मेट्रो रेल के दूसरे चरण की आधारशिला रखने के साथ 67 हजार करोड़ रुपये के विकास कार्यक्रमों का शिलान्यास करेंगे. अमित शाह शनिवार को तीन कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे.

पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन
पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता

अमित शाह के ऑफिस की ओर से जारी किए गए शेड्यूल के मुताबिक गृहमंत्री राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन और पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को शाम 4.30 बजे श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. इसके 10 मिनट बाद कई अहम विकास कार्यों का शिलान्यास करेंगे.

शाम के 6 बजे गृह मंत्री अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं और जिला अध्यक्षों से मिलेंगे. माना जा रहा है कि इस बैठक में अमित शाह अगले साल होने वाले तमिलनाडु चुनाव पर चर्चा कर सकते हैं. गृह मंत्री दो दिवसीय दौरे पर चेन्नई पहुंचे हैं. एयरपोर्ट पर, गृह मंत्री अमित शाह का राज्य के मुख्यमंत्री और उनके डिप्टी ओ. पन्नीरसेल्वम ने स्वागत किया. राज्य के मुख्यमंत्री के साथ कैबिनेट सदस्य और बीजेपी के राज्य अध्यक्ष एल. मुरुगन भी शामिल थे.

जैसे ही अमित शाह का काफिला एयरपोर्ट से निकला, बीजेपी नेता ने सबको चौंकाते हुए प्रोटोकॉल तोड़ा और गाड़ी से बाहर निकलकर व्यस्त जीएसटी रोड पर अपने कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया. बता दें कि अमित शाह के आने की खबर के साथ ही शनिवार सुबह से हजारों पार्टी कार्यकर्ता चेन्नई एयरपोर्ट के बाहर मजमा लगाए थे. अमित शाह के ऑफिस ने कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते हुए बीजेपी नेता का वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया.

शाह का दौरा उस समय हो रहा है, जब बीजेपी और अन्नाद्रमुक के रिश्तों में वेत्री वेल यात्रा को लेकर दरार दिख रही है. हालांकि लोकसभा चुनावों के बाद से अन्नाद्रमुक और बीजेपी के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं. राज्य सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण के चलते बीजेपी को वेत्री वेल यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी थी. अन्नाद्रमुक के मुखपत्र ने इस यात्रा को बांटने वाला करार दिया था. हालांकि बीजेपी नेता 6 नवंबर तक राज्य में यात्रा निकालने में जुटे थे, लेकिन बाद में राज्य पुलिस ने नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.

एक दैनिक की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने शुक्रवार को एक बार फिर अन्नाद्रमुक नेता ई. पलानीस्वामी को विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर स्वीकार करने से मना कर दिया.

पिछले महीने अन्नाद्रमुक नेताओं ने पार्टी में आतंरिक तौर पर विचार विमर्श के बाद उपमुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने 2021 विधानसभा चुनाव के लिए पलानीस्वामी को अन्नाद्रमुक का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया.

गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा को देखते हुए चेन्नई में चाक चौबंद सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल लगाए गए हैं. अमित शाह रविवार को दिल्ली के लिए रवाना होंगे.