यह मुंबई की धारावी बस्ती के पासव भी नहीं किन्तु उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य के लिए धारावी से कम भी नहीं। यह तस्वीर देहरादून की धर्मपुर विधानसभा के ब्ंजारवाला के चांदचक की है, जहा साल भर में अचानक 500 से ऊपर झोंपड़ी बन गईं, और हैरानी की बात यह है की पुलिस प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं। शमुन आली नाम के किसान की ज़मीन पर यह बस्ती बस रही है और किराया भी शमुन आली साहब के ही जेब में जा रहा है।
जहां किरायेदार की पहचान अनिवार्य
एवं न करवाना एक दंडनीय अपराध और कई मामलों में देश द्रोह भी माना जाता है वहीं शमून
अली के यहाँ 500 परिवार झुग्गियाँ बना कर रह रहे हैं और पुलिस आँखें मूंदे बैठी है।
सवाल खड़ा होता है की यह लोग कौन हैं और कहाँ से आए हैं? इंका प्रशासन द्वारा स्त्यान अभी तक क्यों नहीं हुआ? स्थानीय लोगों में भाय का माहौल व्यापत है। यह लोग कूड़ा बीनने,
कबाड़ी का या अन्य छोटे मोटे काम कर रहे हैं, पर बिना पहचान के बिना सत्यापन के इनका यहाँ होना सुरक्षा
की दृष्टि से बहुत बड़ा खतरा मुफ्त में लेने वाली बात है।
इन लोगों का कहना है की उन्हे
नगर निगम की मंजूरी मिली है जबकि ज़मीन शमून अली की है और किराया भी वही ले रहे हैं।
यहा रहने वाले लोगों के पास अपना कोई पहचान पत्र भी नहीं है जिससे यह पुष्टि हो सके
की यह लोग भारत के नागरिक हैं भी या नहीं। सीमांत प्रदेश उत्तराखंड में इस प्रकार की
बस्ती का उभरना आने वाले समय में सामरिक राजनैतिक और सामाजिक खतरों की बानगी हो सकते
हैं। इस बस्ती में आनेवालों की संख्या में दिनोंदिन हो रही बढ़ौतरी कई प्र्शन उठा रही
है।
इन्हे यहाँ किसकी शह पर बसाया जा रहा है?
इस बारे में प्रशासन, पुलिस और एलआईयू तक को कोई जान कारी क्यों नहीं है?
सीमांत प्रदेश उत्तराखंड में
इस प्रकार की घुसपैठ आने वाले समय में कोई बड़े खतरे का रूप ले इसके पहले सरकार को कोई
ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है
देखना है की सरकार आने वाले
समय में क्या ठोस कदम उठाती है।
साभार गिरिराज उनियाल
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/02/awaidh-basti.jpg389513Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-02-05 03:49:022019-02-05 03:51:34अवैध बस्तियाँ रोहिङ्ग्यान या कोई और प्रशासन मौन
जिस देश में देश द्रोहीयों, आतंकवादियों, दहशतगर्दों ज्धन्य अपराध करने वालों को मौत की सज़ा देने के बाद उचित संस्कार की परंपरा रही है वहीं तत्कालीन मुलायम सरकार ने कारसेवकों को उचित अंतिम संस्कार की बात तो दूर उनकी पहचान तक को खत्म कर दिया। हिन्दू कारसेवकों को उनकी पहचान के साथ दफना दिया गया। यह खुलासा एक निजी टीवी चैनल पर तत्कालीन एसएचओ बहादुर सिंह ने किया ।
अयोध्या गोलीकांड में कारसेवकों की मौत को लेकर आंकड़ों पर हमेशा संशय रहा है। हालांकि एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में तत्कालीन एसएचओ और राम जन्मभूमि थाने के प्रभारी वीर बहादुर सिंह ने बताया है कि मौत का आंकड़ा कम दिखाने के लिए कई कारसेवकों की लाशों को दफनाया गया था।
अयोध्या गोलीकांड के बारे में एक टीवी चैनल ने बड़े खुलासे का दावा किया तत्कालीन एसएचओ ने बताया कि कारसेवकों के मौत का आंकड़ा ज्यादा उन्होंने कहा कि आंकड़े नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे
अयोध्या में 1990 में यूपी की मुलायम सिंह सरकार के दौरान कारसेवकों पर पुलिस की गोलीबारी के मामले में एक टीवी चैनल ने बड़े खुलासे का दावा किया है। चैनल ने अपने स्टिंग में एक तत्कालीन अधिकारी से बात की। रामजन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने बताया कि कारसेवकों के मौत का जो आंकड़ा बताया गया था, उससे ज्यादा कारसेवकों की मौत हुई थी। राम जन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने इस टीवी चैनल से बातचीत में बताया, ‘घटना के बाद विदेश तक से पत्रकार आए थे। उन्हें हमने आठ लोगों की मौत और 42 लोगों के घायल होने का आंकड़ा बताया था। हमें सरकार को रिपोर्ट भी देनी थी तो हम तफ्तीश के लिए श्मशान घाट गए, वहां हमने पूछा कि कितनी लाशें हैं जो दफनाई जाती हैं और कितनी लाशों का दाह संस्कार किया गया है, तो उसने बताया कि 15 से 20 लाशें दफनाई गई हैं। हमने उसी आधार पर सरकार को अपना बयान दिया था। हालांकि हकीकत यही थी कि वे लाशें कारसेवकों की थीं। उस गोलीकांड में कई लोग मारे गए थे। आंकड़े तो नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे।’ टीवी चैनल के इस सवाल पर कि कई लोग अपनों के बारे में पूछते हुए अयोध्या तक आए होंगे, उन्हें क्या बताया जाता था। पूर्व एसएचओ ने बताया, ‘हम उन्हें बताते थे कि ये लाशें (जिन्हें दफनाया गया है) उनके परिवार के सदस्यों की नहीं हैं।’ मुलायम सिंह यादव भी कई मौकों पर इस गोलीकांड को सही ठहराते रहे हैं। उन्होंने हमेशा कहा है, ‘हमने देश की एकता के लिए गोली चलवाई थी। आज जो देश की एकता है उसी वजह से है। हमें इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षाबल मारते।’ क्या हुआ था 30 अक्टूबर 1990 के दिन? बता दें कि वीएचपी के आह्वान पर साल 1990 के अक्टूबर महीने में लाखों कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए थे। उद्देश्य था कि विवादित स्थल पर मस्जिद को तोड़कर मंदिर का निर्माण किया जाए। जब हजारों की संख्या में लोग विवादित स्थल के पास की एक गली में इकट्ठा हुए उसी वक्त सामने से पुलिस और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी। इसमें कई लोग गोली से तो कई लोग भगदड़ से मारे गए और घायल हुए। हालांकि मौतों के आंकड़े कभी स्पष्ट नहीं हुए, ऐसे में तत्कालीन अधिकारी का यह खुलासा हैरान करने वाला है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/02/images.jpg159318Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-02-03 02:37:062019-02-03 02:37:09अयोध्या गोलीकांड: तत्कालीन एसएचओ का दावा, ‘मौत का आंकड़ा कम दिखाने को दफनाई गईं कारसेवकों की लाशें’
केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है.
नई दिल्ली : अयोध्या विवाद पर केंद्र की मोदी सरकार ने मंगलवार को बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. इसमें मोदी सरकार ने कहा है कि 67 एकड़ जमीन सरकार ने अधिग्रहण की थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. सरकार का कहना है कि जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एकड़ का है, बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट से इसकी इजाजत मांगी है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह अपने 31 मार्च, 2003 के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश में संशोधन करे या उसे वापस ले. केंद्र सरकार ने SC में अर्जी दाखिल कर अयोध्या की विवादित जमीन को मूल मालिकों को वापस देने की अनुमति देने की अनुमति मांगी है. इसमें 67 एकड़ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें लगभग 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण किया था.
केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है. केंद्र ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्होंने सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक जताया था, बाकि जमीन पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया है.
अर्जी में कहा गया है कि इस्माइल फारुकी नाम के केस के फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सरकार सिविल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने पर विचार कर सकती है. केंद्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है और इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है, गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य को केंद्र द्वारा अतिरिक्त भूमि को अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त जमीन वापस करने के लिए बेहतर होगा.
बता दें कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 29 जनवरी को सुनवाई होनी थी, लेकिन इसके लिए बनाई गई जजों की बेंच में शामिल जस्टिस बोबड़े के मौजूद न होने पर अब ये सुनवाई आगे के लिए टल गई है. अभी इस मामले में सुनवाई के लिए तारीख भी तय नहीं हुई है. इससे पहले पीठ के गठन और जस्टिस यूयू ललित के हटने के कारण भी सुनवाई में देरी हुई थी.
इससे पहले 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नई बेंच का गठन कर दिया था. इस बैंच में CJI रंजन गोगोई के अलावा एसए बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामिल हैं. पिछली बैंच में किसी मुस्लिम जस्टिस के न होने से कई पक्षों ने सवाल भी उठाए थे.
इससे पहले बनी पांच जजों की पीठ में जस्टिस यूयू ललित शामिल थे, लेकिन उन पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने सवाल उठाए थे. इसके बाद वह उस पीठ से अलग हो गए थे. इसके बाद चीफ जस्टिस ने नई पीठ गे गठन का फैसला किया था. वहीं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे साधु-संतों की ओर से प्रयागराज में चल रहे कुंभ में परम धर्म संसद का आगाज सोमवार को हो चुका है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में 30 जनवरी तक प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में परम धर्म संसद का आयोजन होगा.
वहीं साधु और संतों ने इस संबंध में बड़ा ऐलान भी किया हुआ है. उनका कहना है कि राम मंदिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये बनाया जाएगा. प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में इस समय साधु और संतों का जमावड़ा लगा हुआ है. यहां विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्म संसद से पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती परम धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं. यह परम धर्म संसद कुंभ में 28, 29 और 30 जनवरी तक चलेगी. इसमें राम मंदिर निर्माण के लिए चर्चा और रणनीति बनेगी. बता दें कि विश्व हिंदू परिषद 31 जनवरी को राम मंदिर मुद्दे पर धर्म संसद का आयोजन कर रही है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/343039-342672-kumbh-pti.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-29 17:26:192019-01-29 17:26:22अविवादित ज़मीन ‘न्यास’को लौटाई जाये ताकि निर्माण आरंभ हो: केंद्र सरकार
लखनऊ: प्रयागराज में संगम की रेती पर बसे आस्था के कुंभ से उत्तर प्रदेश सरकार को 1,200 अरब रुपये का राजस्व मिलने की उम्मीद है. उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने यह अनुमान लगाया है. सीआईआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 15 जनवरी से 4 मार्च तक आयोजित होने वाला कुंभ मेला हालांकि धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है मगर इसके आयोजन से जुड़े कार्यों में छह लाख से ज्यादा कामगारों के लिए रोजगार उत्पन्न हो रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 50 दिन तक चलने वाले कुंभ मेले के लिए आयोजन के लिए 4,200 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो वर्ष 2013 में आयोजित महाकुंभ के बजट का तीन गुना है.
सीआईआई के अध्ययन के मुताबिक कुंभ मेला क्षेत्र में आतिथ्य क्षेत्र में करीब ढाई लाख लोगों को रोजगार मिलेगा. इसके अलावा एयरलाइंस और हवाई अड्डों के आसपास से करीब डेढ़ लाख लोगों को रोजी-रोटी मिलेगी. वहीं, करीब 45,000 टूर ऑपरेटरों को भी रोजगार मिलेगा. साथ ही इको टूरिज्म और मेडिकल टूरिज्म क्षेत्रों में भी लगभग 85,000 रोजगार के अवसर बनेंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक इसके अलावा टूर गाइड टैक्सी चालक द्विभाषिये और स्वयंसेवकों के तौर पर रोजगार के 55 हजार नए अवसर भी सृजित होंगे. इससे सरकारी एजेंसियों तथा वैयक्तिक कारोबारियों की आय बढ़ेगी.
सीआईआई के अनुमान के मुताबिक कुंभ मेले से उत्तर प्रदेश को करीब 12 सौ अरब रुपये का राजस्व मिलेगा. इसके अलावा पड़ोस के राज्यों राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश को भी इसका फायदा होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि कुंभ में शामिल होने वाले पर्यटक इन राज्यों के पर्यटन स्थलों पर भी जा सकते हैं.कुंभ मेले में करीब 15 करोड़ लोगों के आने की संभावना है. दुनिया का यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिकता और विलक्षणता के लिए प्रसिद्ध है
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/11_01_2019-kumbh_18842706.jpg540650Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-20 17:34:232019-01-20 17:34:26आस्था का कुम्भ, 12 लाख करोड़ की कमाई : सीआईआई
प्रयागराज में संगम तट पर लगने वाले कुंभ मेला 2019 (Kumbh Mela 2019) की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अखाड़ों, संतों, देशी-विदेशी मेहमानों और अन्य अतिथियों के लिए कुंभ में तैयारी पूरी कर ली गई है। ऐसे में आपके लिए भी ये जानना जरूरी है कि यहां पुण्य कमाने के अलावा भी ऐसी कई वजहें हैं, जिसके कारण आपको यहां अवश्य आना चाहिए। कुंभ मेला 2019 को लेकर सरकार की तरफ से खास और भव्य तैयारी की गई है। यहां आकर आप इस भव्यता के साथ कई ऐसे ऐतिहासिक पलों का गवाह बनेंगे जो कुंभ के अलावा कहीं देखने को नहीं मिलती। आइये जानते हैं कौन सी हैं वो वजहें…
प्रयागराज में कुंभ मेले के लिए दुनिया की सबसे बड़ी टेंट सिटी तैयार की गई है। इन टेंट में लाखों लोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। यहां टेंट में आलीशान सूईट से लेकर धर्मशालाएं तक बनी हैं। ये टेंट सिटी इतनी विशाल है कि इसे पैदल पूरा घूमना आसान नहीं होगा। यहां संगम तट पर बनी टेंट सिटी का एरियर व्यू इतना मनोरम होता है, जो आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा।
संगम तट किनारे आम
तौर पर शाम या रात के वक्त अंधेरा रहता है, लेकिन कुंभ के दौरान यहां टेंट सिटी
में आकर्षक लाइटिंग की जाती है। शाम को संगम तट पर अखाड़ों, साधू-संतों और
श्रद्धालुओं द्वारा भव्य आरती की जाती है। कल-कल करती लहरों पर पड़ने वाली इन
लाइटों और दीयों की रोशनी शाम को इसे झिलमिलाते तारों का शहर बना देती है। संगम
पुल से इस नजारे को देखना बेहद मनोरम होता है। दुनिया में शायद ही कहीं और ऐसा
नजारा देखने को मिलता है। इन नजारों को देखना किसी संयोग से कम नहीं।
कुंभ मेले में आस्था को जो जमघट लगता है उसका हिस्सा बनकर आपको बराबरी का एहसास होता है। यहां करोड़पति और गरीब सब एक साथ आस्था की डुबकी लगाते हैं। हजारों आलीशान पांच सितारा सूईट वाले टेंट से लेकर साधारण टेंट, किसी मुगलकालीन शहर से जैसे लगने लगते हैं।
हर बार कुंभ में
साधु-संतों के 13 अखाड़े शामिल होते हैं। ये पहला मौका है जब कुंभ में 14 अखाड़े शिरकत
करेंगे। कुंभ के दौरान इनकी भव्य पेश्वाई निकलती है। पेश्वाई का अभिप्राय इनकी
शाही सवारी से है। इसमें हाथी,
घोड़े, ऊंट, बग्घी, बैंड से लेकर सोने-चांदी से सजे
सिंहासनों पर अखाड़ा प्रमुख सजधज कर बैठे होते हैं। इनकी सवारी के लिए अखाड़ों के
शिविर से संगम तट तक एक विशेष राजपथ बनाया जाता है, जिस पर केवल अखाड़े ही चलते हैं।
मार्ग के दोनों तरफ इनके सेवादार और श्रद्धालु आशीर्वाद पाने को खड़े रहते हैं। ये
अखाड़े, साधू-संत और महंत कुंभ का प्रमुख आकर्षण होते हैं, जिन्हें देखने के
लिए पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं। दुनिया भर के फोटोग्राफर इन पलों को अपने
कैमरों में कैद करने के लिए हर वक्त मुस्तैद रहते हैं। दरअसल यही एक मौका होता है, जब सभी अखाड़े एक
साथ जुटते हैं और पूरी भव्यता से अपनी पेश्वाई निकालते हैं।
खूब विवादों के बाद किन्नर आखाडा पहली बार करेगा पेशवाई
प्रयागराज कुंभ में पहली बार किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो रहा है। इस बार कुंभ में जाने वाले लोग किन्नर अखाड़े की पेश्वाई भी देख सकेंगे। कुंभ में किन्नर अखाड़े को शामिल करने को लेकर पिछले दिनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने काफी हंगामा और विरोध भी किया था। बावजूद प्रशासन को उन्हें मंजूरी देनी पड़ी। इसके बाद किन्नर संयासियों के अखाड़े ने दो दिन पहले कुंभ में हाथी, घोड़े और ऊंट पर सवार होकर अपनी शानदार पेश्वाई निकाली थी। इस बार के कुंभ में नागाओं के बाद ये प्रमुख आकर्षण हो सकते हैं।
किन्नरों की दुनिया के नियम, कायदे सब आम लोगों से काफी अलग होते हैं। इसलिए लोगों को उनके जीवन के बारे में जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती है। किन्नरों की इसी हैरतअंगेज दुनिया से रूबरे कराने के लिए कुंभ में किन्नर आर्ट विलेज भी बनाया गया है। यहां चित्र प्रदर्शनी, कविता, कला प्रदर्शनी, दृश्य कला, फिल्में, इतिहास, फोटोग्राफी, साहित्य, स्थापत्य कला, नृत्य एवं संगीत आदि के जरिए लोगों को किन्नरों की दुनिया से रूबरू कराया जाएगा। लोगों को रामायण और महाभारत में किन्नरों के महत्व और भूमिका के बारे में भी विस्तार से बताया जाएगा। यह आर्ट विलेज किन्नरों की रहस्यमयी दुनिया का झरोखा होगा।
इस बार कुंभ में सांस्कृतिक संध्याओं से संगम तट को गुलजार करने के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए हैं। इसके लिए पहली बार कुंभ मेले में देशी-विदेशी रामलीला का मंचन भी होगा। इसके अलावा सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा भी मेले में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान यहां देश की सांस्कृतिक विरासत से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा। इसके लिए कुंभ मेले में पांच विशाल सांस्कृतिक पांडाल बनाए गए हैं। यहां प्रतिदिन धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन होंगे।
हेलीकॉप्टर और क्रूज की सवारी इस बार कुंभ मेले में आप क्रूज के
अलावा हेलीकॉप्टर की सवारी का भी मजा किफायती कीमत पर ले सकते हैं। हेलीकॉप्टर के
जरिए आप टेंट सिटी का एरियर व्यू देख सकेंगे। साथ ही इस विशाल मेले का हवाई नजारा
ले सकेंगे। पर्यटकों को ये सुविधाएं सस्ती दरों पर उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि वह कई
किलोमीटर में फैले कुंभ के अद्भुत नजारों को अपनी आंखों से देख सकें।
टूरिस्ट वॉक का भी अवसर कुंभ मेले में इस बार आपको आसपास के
दर्शनीय स्थलों पर जाने की भी सुविधा मिलेगी। इसके लिए मेले में कुछ टूरिस्ट वॉक
भी बनाए गए हैं। यहां आप टूर ऑपरेटरों से संपर्क कर पैकेज ले सकते हैं। मेले में
शंकर विमान मंडपम से टूरिस्ट वॉक शुरू होगा जो रामघाट पर आकर खत्म होगा। इस बीच
बड़े हनुमान जी का मंदिर, पातालपुरी मंदिर,
अक्षय वट और इलाहाबाद का किला देख
सकेंगे।
फेरी का मजा ले सकेंगे कुंभ में आप यमुना नदी पर जलमार्ग से फेरी का मजा भी ले सकेंगे। फेरी सेवा सुजावन घाट से शुरू होकर रेल सेतु (नैनी की ओर) के नीचे से वोट क्लब घाट और सरस्वती घाट होता हुआ किला घाट पर जाकर खत्म होगा। ये फेरी करीब 20 किलोमीटर लंबी है। इस दौरान आपको की टर्मिनल मिलेंगे।
35000 का है सबसे आलीशान टेंट कुंभ मेले का सबसे आलीशान टेंट 35000 रुपये प्रति रात का पांच सितारा सूईट जैसा है। ये टेंट 900 वर्ग फुट क्षेत्रफल में बना है। इसमें दो बेडरूम, एक लिविंग रूम, फर्निचर, बेड, प्राइवेट वाशरूम और एलईडी टीवी के साथ गृहस्थी का सारा सामना भी है। इसके अलावा यहां वैदिक टेंट सिटी में 24000 रुपये प्रति रात की दर पर टेंट में बना प्रीमियम विला भी है। यहां लग्जरी टेंट की कीमत 19,000 रुपये और 15,000 रुपये प्रति रात है। कल्प वृक्ष टेंट सिटी में 8500 रुपये से लेकर 3500 रुपये तक की कीमत के टेंट एक रात के लिए बुक कर सकते हैं। सबसे सस्ता टेंट 650 रुपये प्रति रात की दर से है। यहां 24 घंटे चलने वाले कई रेस्टोरेंट भी हैं, जहां आपको देशी-विदेशी हर तरह का शाकाहारी भोजन उपलब्ध होगा। इन रेस्टोरेंट में बिना लहसुन प्याज का भोजन भी विशेष तौर पर तैयार किया जाएगा।
कुंभ के रंग में रंगा प्रयागराज, विश्व रिकॉर्ड बनाने की तैयारी
कुंभ मेले को यादगार बनाने के लिए
यहां पहली बार पेंटिगं भी देखने लायक होगी। सरकार ने पूरे प्रयाग को कुंभ के रंग
में रंगने के लिए कई महीने पहले ही पेंट साई सिटी योजना शुरू कर दी थी। इसके तहत 600 से ज्यादा पेंटरों
ने यहां के जर्रे-जर्रे को अपनी कूची और पेंट के जरिए कुंभ के रंग में रंग दिया
है। पेंट माई सिटी योजना पर सरकार ने 30 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट खर्च
किया है। पेंट माई सिटी योजना के तहत इलाहाबाद की नैनी जेल की दीवार पर समुद्र
मंथन की सबसे बड़ी चित्रकारी बनाने का भी विश्व रिकॉर्ड बनाया जा रहा है। इसे
गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए आवेदन किया जा चुका है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/Kumbh_Tent_Booking_2019.jpg10801920Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-12 04:21:032019-01-12 05:04:11सर्वासिद्धिप्रद: कुम्भ:, स्वागत है
मुसलमानों का बंटवारा नहीं हुआ होता तो आज साठ करोड़ मुसलमानों की आवाज कौन दबा सकता था दशरथ के महल में दस हजार कमरे थे और ऐसे में ये कैसे कहा जा सकता है कि श्रीराम का जन्म किस कमरे में हुआ? उन्होंने ये भी कहा कि यह समझ से परे है कि राम मंदिर वहीं बनाने की जिद क्यों की जा रही है सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर श्रीराम को काल्पनिक अवतार बताने वाली कांग्रेस अब ये मानने लगी है कि अयोध्या में राजा दशरथ का महल था.
राम जन्मभूमि विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इस मामले की अगली सुनवाई में ये तय होगा कि कौन सी बेंच और कौन से जज किन-किन मामलों को देखेंगे. लेकिन उस सुनवाई से पहले सियासत राम जन्मभूमि विवाद पर अपनी अलग नजर गड़ाए हुए है.
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने राम मंदिर को लेकर अबतक का सबसे विवादास्पद बयान दिया है. उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के जन्म लेने के दावों पर ही सवाल उठा दिया है. मणिशंकर अय्यर ने कहा है कि अयोध्या नरेश दशरथ के महल में दस हजार कमरे थे और ऐसे में ये कैसे कहा जा सकता है कि श्रीराम का जन्म किस कमरे में हुआ? उन्होंने ये भी कहा कि यह समझ से परे है कि राम मंदिर वहीं बनाने की जिद क्यों की जा रही है?
जहां एक
तरफ कांग्रेस लगातार बीजेपी पर ये आरोप लगाती रही है कि वो ऐन लोकसभा चुनाव से
पहले राम मंदिर निर्माण का मुद्दा विहिप, आरएसएस और बजरंग दल के जरिए जानबूझकर
उछाल रही है तो वहीं दूसरी तरफ मणिशंकर अय्यर हिंदू आस्था पर सवाल उठा कर मामले को
और गरमाने का काम कर दिया.
मणिशंकर अय्यर ने ये भी कहा कि मुसलमानों का बंटवारा नहीं हुआ होता तो आज साठ
करोड़ मुसलमानों की आवाज कौन दबा सकता था. आखिर इस बयान से मणिशंकर अय्यर
तुष्टीकरण की राजनीति के जरिए कौन सा संदेश और किस दिशा में संदेश देना चाहते हैं? क्या ये बयान सांप्रदायिक माहौल
खराब करने और उकसाने के लिए नहीं माना जा सकता?
मणिशंकर
अय्यर के बयान पर बीजेपी ने कहा कि कम से कम अय्यर ने ये तो माना अयोध्या में बाबरी
ढांचा का गिरना कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी गलती थी और इसके लिए कोई माफी नहीं
है. साथ ही बीजेपी के लिए ये भी मुद्दे की बात है कि कल तक सुप्रीम कोर्ट में
हलफनामा दाखिल कर श्रीराम को काल्पनिक अवतार बताने वाली कांग्रेस अब ये मानने लगी
है कि अयोध्या में राजा दशरथ का महल था.
लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर मणिशंकर अय्यर आखिर अपनी
राजनीति से किसका भला करना चाहते हैं?
3
राज्यों
में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस जोश में है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
मंदिरों की परिक्रमाएं कर रहे हैं. इस बार कांग्रेस के नारों में ये शोर नहीं है
कि सत्ता में सांप्रदायिक ताकतों को आने से रोकना है क्योंकि मोदी सरकार सबका
साथ-सबका विकास के नारे के साथ विकास के नाम पर वोट मांग रही है. राम मंदिर के
मुद्दे पर बीजेपी सत्ता में आने के बाद बेताबी की जगह सतर्कता ज्यादा दिखा रही है. लेकिन इन चार साल में बीजेपी के
स्वभाविक हिंदू कार्ड की तोड़ निकालने के लिए कांग्रेस ने खुद की मुस्लिम परस्त
छवि को बदलने की कोशिश की है. कांग्रेस का हिंदुत्व राहुल गांधी के जनेऊ और गोत्र
के जरिए उसकी नई ताकत बन चुका है. खुद राहुल गांधी राम मंदिर के मुद्दे पर कोई भी
बयान नहीं दे रहे हैं. लेकिन मणिशंकर अय्यर अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष से कुछ
सीखना नहीं चाहते. जबकि राहुल गांधी कई दफे ये कह चुके हैं कि पार्टी के नेताओं को
विवादास्पद मुद्दों पर बयान देने से बचना चाहिए और सतर्कता बरतनी चाहिए.
अब मणिशंकर
अय्यर ने श्रीराम को लेकर नई बहस छेड़ दी है. जाहिर तौर पर ये सवाल अब कांग्रेस
अध्यक्ष से भी पूछा जाएगा. राहुल से भी पूछा जाएगा कि वो क्या मानते हैं कि
श्रीराम का जन्म कहां हुआ? राहुल से
ये भी पूछा जाएगा कि मणिशंकर अय्यर के बयान पर उनकी क्या राय है? जिस तरह राफेल डील पर राहुल गांधी
सवालों की फेहरिस्त ट्वीट के जरिए सामने रख रहे हैं उसी तरह हिंदूवादी संगठन भी
उनसे राम मंदिर मुद्दे पर खुली राय मांग सकते हैं.
बहुत
मुमकिन है कि मणिशंकर अय्यर के पहले के विवादास्पद बयानों की तरह इस बार भी
कांग्रेस उनके बयान से पल्ला झाड़ ले. लेकिन सवाल उठता है कि मणिशंकर अय्यर खुद
ऐसे बयानों से कब किनारा करेंगे?पिछले पांच साल में मणिशंकर अय्यर के विवादास्पद बयानों का
सिलसिला सा दिखाई और सुनाई देता है जिसका सीधे तौर पर फायदा बीजेपी को ही मिलता
आया है तो नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है. चाहे साल 2014 का लोकसभा चुनाव हो या फिर गुजरात
विधानसभा का चुनाव.
‘चायवाला’ से शुरु हुआ बयानों का दौर ‘नीच’ जैसे शब्दों पर जा कर ठहरा. ऐसे
आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल अय्यर ने पहले पीएम उम्मीदवार तो बाद में पीएम के
लिए किए. तभी उन्हें पार्टी से निलंबन भी झेलना पड़ा है. लेकिन अब निलंबन के बाद
वापसी करते हुए अय्यर के तेवरों में वहीं तल्खी बरकरार है. बहरहाल, दिल्ली में ‘एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम’ मुशायरा कार्यक्रम में मणिशंकर
अय्यर ने देश के सबसे विवादास्पद मुद्दे पर विवादित बयान देकर विवाद की आग में घी
उड़ेलने का काम किया है जिसकी आंच एक बार फिर उस कांग्रेस को लग सकती है जिस पर
हिंदू विरोधी होने का आरोप लगता आया है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/408926b76b696a2360e59366dc63df48.jpg400666Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-08 16:18:422019-01-08 16:18:44मणि शंकर ऐय्यर ने कांग्रेस में वापिस आते ही राम मंदिर के बनाने के औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लगाया
सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले मास्टरस्ट्रोक खेला है. मोदी सरकार ने फैसला लिया है कि वह सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देगी. सोमवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर मुहर लगाई गई. कैबिनेट ने फैसला लिया है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिया जाएगा. आरक्षण का लाभ सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में मिलेगा.
बताया जा रहा है कि आरक्षण का फॉर्मूला 50%+10 % का होगा. सूत्रों का कहना है कि लोकसभा में मंगलवार को मोदी सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने संबंधी बिल पेश कर सकती है. सूत्रों का यह भी कहना है कि सरकार संविधान में संशोधन के लिए बिल ला सकती है. इसके तहत आर्थिक आधार पर सभी धर्मों के सवर्णों को दिया जाएगा आरक्षण. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन होगा. केंद्र सरकार के इस फैसले पर वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसे कहते हैं 56 इंच का सीना.
सरकार के इस बड़े फैसले का भारतीय जनता पार्टी ने स्वागत किया है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि गरीब सवर्णों को आरक्षण मिलना चाहिए. पीएम मोदी की नीति है कि सबका साथ सबका विकास. सरकार ने सवर्णों को उनका हक दिया है. पीएम मोदी देश की जनता के लिए काम कर रहे हैं.
मालूम हो कि करीब दो महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला बीजेपी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है. हाल ही में संपन्न हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार हुई थी. इस हार के पीछे सवर्णों की नाराजगी को अहम वजह बताया जा रहा है.
पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी+ को 80 में से 73 सीटें मिली थीं. इस बार बीजेपी को चुनौती देने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाथ मिला लिया है. इसके बाद माना जा रहा था कि बीजेपी इस गठबंधन से निपटने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है. सवर्णों को आरक्षण देने के फैसले को सरकार का मास्टस्ट्रोक माना जा रहा है.
दरअसल सियासी विश्लेषकों के मुताबिक सपा-बसपा ने यूपी में अपने चुनावी गठबंधन में कांग्रेस को रणनीति के तहत शामिल नहीं करने का फैसला किया है. उसके पीछे बड़ी वजह मानी जा रही है कि बीजेपी के सवर्ण तबके में बंटवारे के लिहाज से कांग्रेस और सपा-बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ने जा रहे हैं ताकि सवर्णों का वोट बीजेपी और कांग्रेस में विभाजित हो जाए. लेकिन लंबे समय से गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग के चलते इस घोषणा से बीजेपी को सियासी लाभ मिल सकता है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/0_55_NmvfmQlZQ7hos.jpg524979Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-07 10:04:432019-01-07 10:04:46सवर्णों को भी आरक्षण, सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन का दायरा 50% से बढ़कर 60% होगा
यह प्रणाली लोगों को भूकंप की जानकारी उसके आने से 10 सेकेंड से एक मिनट पहले तक दे सकती है
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रुड़की के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने भूकंप की चेतावनी देने वाली एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जिसमें भूकंप से एक मिनट पहले लोगों को इसके आने की जानकारी मिल सकती है.
उत्तराखंड के कुछ इलाके में पहले से ही ऐसी प्रणाली लगी हुई है जिसमें ऐसे नेटवर्क सेंसर लगे हुए हैं जो भूकंप के बाद पृथ्वी के परतों से गुजरने वाले भूकंपीय तरंगों की पहचान करते हैं.
आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर मुक्तलाल शर्मा ने बताया, ‘मौजूदा समय में भूकंप का पूर्वानुमान लगाने के लिए जो तकनीक है, वह वास्तव में काम नहीं करता है. लोग सांख्यिकीय गणना यानी स्टैटिस्टिकल कैलकुलेशन के आधार पर इसका अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं लेकिन अब तक जितने भी तरीके पता हैं, वे सटीक नहीं हैं.’
दरअसल यह प्रणाली लोगों को भूकंप की जानकारी उसके आने से 10 सेकेंड से एक मिनट पहले तक दे सकती है.
शर्मा ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में विवर्तनिकी प्लेट (टेक्टोनिक प्लेट) की गतिविधि की वजह से भूकंप आता है, इसलिए देहरादून के लोगों को भूकंप से पहले सिर्फ 11 सेकेंड का समय मिलेगा जबकि दिल्ली में रहनेवाले लोगों को भूकंप से एक मिनट पहले इसकी चेतावनी मिल जाएगी.
शर्मा ने 16वीं भूकंप इंजीनियरिंग सेमिनार से इतर कहा कि भले ही इतना कम वक्त इमारतों को खाली कराने के लिए काफी न हो लेकिन इस चेतावनी की वजह से लोग खुद को खतरनाक चोटों से बचा सकते हैं. वहीं परमाणु ऊर्जा संयंत्र बंद करने, मेट्रो ट्रेन रोकने या गैस आपूर्ति रोकने में एक मिनट का समय मिलने से मदद मिल सकती है.
उन्होंने कहा, ‘हम इमारतों को नहीं बचा सकते लेकिन कुछ और जानें बचा सकते हैं.’ शर्मा ने बताया कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी और चमोली जिलों में 100 से ज्यादा सेंसर लगाए गए हैं.
उन्होंने कहा कि उत्तर भारत के अन्य राज्यों में यह प्रणाली लगाने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय आपदा प्रबंध प्राधिकरण (एनडीएमए) और पृथ्वी मंत्रालय और दूरसंचार मंत्रालय से भी संपर्क किया है. हालांकि अभी तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/earthquakealert-1502745437-9445.jpg420800Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-27 13:23:352018-12-27 13:23:38आईआईटी रुड़की के विद्यार्थियों ने बनाया भूकंप चेताने का यंत्र
मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता दिया जाए.
12-12-2018
शिलॉन्ग: मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री, विधि मंत्री, गृह मंत्री और संसद से एक कानून लाने का अनुरोध किया है ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता मिले.
बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी लिखा है कि विभाजन के समय भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था लेकिन ये धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा.
जस्टिस एसआर सेन ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट से मना किये जाने पर अमन राणा नाम के एक शख्स द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए 37 पृष्ठ का फैसला दिया. आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई.
आदेश में कहा गया है कि तीनों पड़ोसी देशों में आज भी हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंतिया और गारो लोग प्रताड़ित होते हैं और उनके लिए कोई स्थान नहीं है. इन लोगों को किसी भी समय देश में आने दिया जाए और सरकार इनका पुनर्वास कर सकती है और नागरिक घोषित कर सकती है.
केंद्र के नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोग छह साल रहने के बाद भारतीय नागरिकता के हकदार हैं, लेकिन अदालती आदेश में इस विधेयक का जिक्र नहीं किया गया है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भारत के इतिहास को तीन पैराग्राफ में समेटा है. जस्टिस एसआर सेन ने लिखा, ‘जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश था और पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान का अस्तित्व नहीं था. ये सभी एक देश में थे और हिंदू सम्राज्य द्वारा शासित थे.’
कोर्ट ने आगे कहा, ‘इसके बाद मुगल भारत आए और भारत के कई हिस्सों पर कब्जा किया और देश में शासन करना शुरु किया. इस दौरान भारी संख्या में धर्म परिवर्तन कराए गए. इसके बाद अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम पर आए और देश में शासन करने लगे.’
न्यायालय ने आगे लिखा, ‘यह एक अविवादित तथ्य है कि विभाजन के समय लाखों की संख्या में हिंदू और सिख मारे गए, प्रताणित किए गए, रेप किया गया और उन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति छोड़ कर आना पड़ा.’
मेघालय हाईकोर्ट के जज एसआर सेन ने लिखा, ‘पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित किया था. चूंकि भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था इसलिए भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था लेकिन इसने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखा.’
एसआर सेन ने मोदी सरकार में विश्वास जताते हुए कहा कि वे भारत को इस्लामिक राष्ट्र नहीं बनने देंगे. उन्होंने लिखा, ‘मैं ये स्पष्ट्र करता हूं कि किसी भी शख्स को भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश नहीं करना चाहिए. मेरा विश्वास है कि केवल नरेंद्र मोदीजी की अगुवाई में यह सरकार इसकी गहराई को समझेगी और हमरी मुख्यमंत्री ममताजी राष्टहित में सहयोग करेंगी.’
जज ने मेघालय उच्च न्यायालय में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को मंगलवार तक फैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह और विधि मंत्री को अवलोकन के लिए सौंपने और समुदायों के हितों की रक्षा के लिए कानून लाने को लेकर आवश्यक कदम उठाने को कहा है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/12/front-view-high-court.jpg4441920Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-12-14 06:56:592018-12-14 06:57:25भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था: मेघालय हाईकोर्ट
तेलंगाना में विधानसभा चुनाव सात दिसंबर को होने वाले हैं और मतगणना 11 दिसंबर को होगी
‘अटलजी ने जिन 3 राज्यों को बनाया वो आज विकसित राज्यों की श्रेणी में हैं लेकिन क्या तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अलगाव के बाद कोई विकास हुआ है?’
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आंध्र प्रदेश से अलग करके बनाए गए राज्य तेलंगाना पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने तेलंगाना के आसिफाबाद में कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 3 नए राज्य बनाए थे. उन्होंने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ बनाया था, बिहार से अलग करके झारखंड बनाया था और उत्तर प्रदेश से अलग करके उत्तराखंड बनाया था.’
राजनाथ ने कहा, ‘अटलजी ने जिन 3 राज्यों को बनाया वो आज विकसित राज्यों की श्रेणी में हैं लेकिन क्या तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अलगाव के बाद कोई विकास हुआ है?’
तेलंगाना में विधानसभा चुनाव सात दिसंबर को होने वाले हैं और मतगणना 11 दिसंबर को होगी. चुनावों को देखते हुए सभी दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं और एक दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं.
गौरतलब है कि तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग होकर भारत का 29वां राज्य बना था. इसके लिए यह व्यवस्था की गई थी कि हैदराबाद को 10 साल के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की संयुक्त राजधानी बनाई जाएगी.
इस नए राज्य के लिए ड्राफ्ट बिल को 5 दिसम्बर 2013 को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी और यह बिल 18 फरवरी 2014 को लोक सभा से पास हो गया था. दो दिनों के बाद इसे राज्यसभा में भी मंजूरी मिल गई थी.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/11/rajnath-singh.jpg498885Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2018-11-30 17:51:282018-11-30 17:52:17राजनाथ सिंह बोले- आंध्र प्रदेश से अलग करके ‘तेलंगाना’ में कितना विकास हुआ?
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