कास्टिंग काउच: शिकंजा कसा तो बहुत लोगों के नाम होंगे उजागर


केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किया सूचित, 7 प्रोडक्शन हाउसेज का बना पैनल


यौन उत्पीड़न के खिलाफ दक्षिण की लड़कियों ने जंग छेड़ रखी है, अब ये साफ-सफाई अधिनियम शुरू करने के लिए बॉलीवुड की बारी है. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सूचित किया है कि सात बॉलीवुड प्रोडक्शन हाउसेज यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए एक पैनल बनाने पर सहमत हुए हैं.

2017 में मेनका गांधी ने बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं से वर्कप्लेस एक्ट, 2013 में यौन उत्पीड़न का अनुपालन करने और शिकायतों को सुनने के लिए समितियों की स्थापना करने के लिए कहा था. तब से ये आंदोलन हो रहा है और प्रोडक्शन हाउसेज और फिल्म एसोसिएशन ने भी इस तरह के मामलों से निपटने की शुरुआत कर दी है. जब फिल्म के सीईओ और टेलीविजन प्रोड्यूसर कुलमीत मक्कड़ ने पूछा कि क्या मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में कंपनियों के लिए या किसी अन्य उद्योग में उस मामले के लिए काम पर यौन उत्पीड़न नीति है या नहीं. उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल! ये गैर-विचारणीय है और इसे लागू किया जाना चाहिए. हम भारत के निर्माता गिल्ड के रूप में बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री के जरिए पालन किए जाने वाले सर्वोत्तम प्रथाओं की आवश्यकता का समर्थन करते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि कार्यस्थल महिलाओं के काम करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करें’

अमित बहल ने कहा कि, कई प्रोडक्शन हाउसेज में पहले से ही एक सेल है जहां शिकायतों का ख्याल रखा जा रहा है. यहां तक कि सिने और टेलीविजन आर्टिस्ट्स एसोसिएशन भी ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करता है. सुशांत सिंह और मैं अमेरिका और फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल एक्टर्स में हमारे समकक्षों के जरिए शुरू किए गए #मीटू कैंपेन के लिए प्रमुख तौर पर हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं. इसके अलावा हमने निश्चित रूप से ये सुनिश्चित किया है कि कोई भी सदस्य यौन उत्पीड़न और शोषण का कोई मामला होने पर आगे आ सकते हैं और अगर हमें पुलिस के पास जाने और कानूनी लड़ाई लड़ने की जरूरत पड़ती है तो हम अपने सदस्यों की मदद करेंगे.

आश्चर्यजनक बात ये है कि सबसे प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउसेज एक्सेल एंटरटेनमेंट, यश राज और स्फेयर ऑरिजीन के बोर्डों ने अपने बोर्ड्स पर लिखा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं होता है, इसलिए हम चाहते हैं कि सभी लोग उन मानकों का पालन करें जो अनियमित प्रोडक्शन हाउसेज हैं जो रात में ऑपरेट होते हैं. कुछ ऐसे व्यक्तियों के बारे में रिपोर्ट है जिन्होंने सीधे यौन उत्पीड़न के बारे में मंत्रालय को लिखा है जिसमें वो मॉडल, अभिनेत्री और कुछ अभिनेता भी शामिल हैं.

इस बीच हमारे पास कुछ ऐसे नाम हैं जो अधिकारियों के साथ परेशानी में पड़ सकते हैं. इस सूची में शीर्ष की एक ऐसी कंपनी है जो युवा महत्वाकांक्षी अभिनेत्री को संगीत वीडियो का वादा करता है और अक्सर काम के लिए सेक्सुअल फेवर मांगता है. वो उन्हें गलत काम के लिए बुलाता है और अगर वो नहीं करते हैं तो उन्हें काम नहीं मिलता है.

एक फिल्म निर्माता है जो वर्तमान में एक और सीक्वल बनाने की प्रक्रिया में है और फिल्मों में अपनी ‘गर्लफ्रेंड्स’ को मौका दे रहा है, वो भी इस सूची में शामिल है. उनकी आखिरी फिल्म में ऐसी एक अभिनेत्री थी जिसे उस फिल्म के निर्माण के दौरान उनकी ‘वर्तमान’ प्रेमिका माना जाता था. एक अभिनेता-निर्देशक है जिसने एक वरिष्ठ अभिनेता के साथ फिल्म बनाने के दौरान एक अभिनेत्री के साथ गलत किया था उसके बाद उसने फिल्म को प्रमोट नहीं किया, वो भी परेशानी में पड़ने वाला है.

ये अभिनेता-निर्देशक वर्तमान में विदेश में एक फिल्म की शूटिंग कर रहा है, जो खुले तौर पर काम करने वाले लोगों से फेवर मांग रहा है. एक फिल्म निर्माता जो कॉर्पोरेट हाउस के साथ काम करता है, जिसकी कमजोरी ही लड़की है. उसके खिलाफ एक कर्मचारी ने शिकायत दर्ज कराई थी. जिसके बाद उन्हें प्रोडक्शन हाउस से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उनके एक सलाहकार जो उनके दोस्त भी हैं, उन्होंने बॉसेज से अनुरोध किया कि वो उन्हें एक मौका और दें. एक टैलेंट एजेंसी का मालिक है जिसे उसके गलत व्यवहार के लिए हटा दिया गया है, वो भी इस सूची में है. ऐसे कई महत्वाकांक्षी मॉडल और अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने बाद में उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई हैं.

2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

chidambaram

चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

पंडित त्रिपाठी पर राहू…ल का प्रकोप, पार्टी से निष्कासित


आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शंकर चरण त्रिपाठी ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने की आलोचना की थी जिसपर पार्टी ने उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें निकाल बाहर किया


 

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अक्सर बीजेपी और एनडीए के निशाने पर रहते हैं लेकिन अब यूपीए के ही एक सहयोगी पार्टी के नेता ने उनपर सवाल उठाया है.

न्यूज़ एजेंसी एएनआई के अनुसार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राष्ट्रीय प्रवक्ताने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने पर तंज कसा. आरजेडी नेता ने पीएम मोदी को गले लगाने को लेकर राहुल की आलोचना की.

मामला सामने आने के बाद आरजेडी ने शंकर चरण त्रिपाठी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया है.

मायावती ने कहा कि बसपा में अनुशासनहीनता को ना तो पहले कभी बर्दाश्त किया है और ना ही आगे कभी इसे सहन किया जाएगा। इसीलिए पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व नेशनल कोआर्डिनेटर जयप्रकाश सिंह को पहले सभी पार्टी पदों से हटाया गया और अब बसपा से भी निकाल दिया गया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत तौर पर आक्षेप करते हुए उन्हें ‘गब्बर सिंह भी कहा था। पार्टी सुप्रीमो ने कहा कि बसपा को सत्ताधारी पार्टी भाजपा कतई नहीं बनने देना है, जो सत्ता के लालच व अहंकार में आकर मर्यादाओं की हर सीमा को लांघने में लगी हुई है। हालांकि जयप्रकाश को बाहर का रास्ता दिखाने की कार्रवाई तब की गई, जब कांग्रेस ने इसकी आलोचना की।

क्या है पूरा मामला-
मायावती ने हाल ही में जयप्रकाश सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ दिए बयान के चलते उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर पद से हटा दिया था। जयप्रकाश सिंह ने बयान दिया था कि राहुल गांधी कभी भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं क्योंकि उनकी मां विदेश मूल की हैं। जिसके बाद मायावती ने कहा था, ‘मुझे बीएसपी के राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर जयप्रकाश सिंह के भाषण के बारे में पता चला है जो बीएसपी की विचारधारा के खिलाफ है। साथ ही, उन्होंने विरोधी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी की है। क्योंकि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, उन्हें पार्टी के पद से फौरन प्रभाव से हटाया जा रहा है।’

आरजेडी के मायावती की ही तरह इस मामले में त्वरित कार्रवाई करने को यूपीए की सहयोगी आरजेडी के डैमैज कंट्रोल की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

क्यों गाय और मुस्लिम दोनों जीवित नहीं रह सकते?

अवधेश प्रताप सिंह

आज सबसे चर्चित विषय माब लिंचिंग और बलात्कार हैं यहां ध्यान दीजिये कि सभी दल सभी पक्ष मीडिया न्यायालय बुद्धिजीवी एक मत हैं कि ये गंदगी मिटनी चाहिये पर सब एक दूसरे को इनका पोषक बता रहे हैं आरोपित कर रहे हैं।

जब ओवैसी कहते हैं कि गाय को कानूनन जीने का हक है पर मुस्लिम को नहीं तब परोक्ष रूप से यही कह रहे हैं कि मुस्लिम को जीने का हक होना चाहिये गाय को नहीं। सवाल ये है कि गाय और मुस्लिम क्यों दोनों जीवित नहीं रह सकते क्यों मुस्लिम गाय को मारने का प्रयास करें और गौभक्त मुस्लिम को, समस्या का हल तो यही हो सकता है कि हिंदू मुस्लिम ईसाई कोई भी हो बहुसंख्य देशवासियों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए गौ हत्या से दूर रहें इसकी निंदा करें तब न कोई शक होगा न माब लिंचिंग होगी।

निस्संदेह कानून हाथ में लेना गौभक्तों की ज्यादती है जिस पर रोक लगनी चाहिये पर मीडिया अदालत और बुद्धिजीवी सहित राजनेता ये रेखांकित क्यों नहीं करते कि दोनों गलत हैं गौ हत्या भी और माब लिंचिंग भी, एक पक्षीय वकालत तो नकारात्मकता को प्रोत्साहन देने के समान है

जब मोदी जी कथित नकली गौभक्तों की निंदा करते लताड़ते हैं तब साथ में ये क्यों नहीं कहते कि गौवध का कोई भी प्रयास सामाजिक तानेबाने को आहत करता है इसलिये बरदाश्त नहीं किया जायेगा। इसीतरह ओवैसी यदि ये कहते कि गौवध के प्रयास करने वाले को जो सजा मिले कम है और माबलिंचिंग वाले को भी कठोरतम सजा दी जाय तो उनका राष्ट्रीय सरोकार ध्वनित होता, किंतु जो उन्होंने अभी कहा उसमें तो इस्लामिक सरोकार और गौ को मरने देने के भाव की प्रस्तुति हुई ये दोगला सरोकार इन घटनाओं को बढ़ावा देता है। यही हाल मीडिया न्यायालयों और अन्य सेकुलर नेताओं का है।

इसी प्रकार बलात्कार यदि मुस्लिम महिला या लड़की से हुआ और आरोपी हिंदू हैं तो कांग्रेस इंडियागेट पर मोमबत्ती जलाकर प्रदर्शन करती है किंतु यदि बलात्कार हिंदू लड़की पर मुस्लिम युवक करता है रंगे हाथ पकड़ा जाता है स्वयं कबूल करता है तो कांग्रेस सीबीआई जांच की मांग कर सजा टालने या आरोपी के बचाने का घृणित प्रयास करती है बलात्कार घृणित है निंदनीय दंडनीय है इसमें हिमदू मुस्लिम पक्ष का विचारण क्यों होना चाहिये कोई कथित हिंदू साधु बाबा या नक्काल बलात्कार का दोषी है तो हंगामा बरपा जाये पर यदि बलात्कारी मौलवी या पादरी हो तो चुप्पी साध ली जाय ये चारित्रिक बेईमानी और पाखंड ही नहीं है बल्कि यही आचरण बलात्कार व माब लिंचिंग का पोषक है सिख नरसंहार से बड़ा माब लिंचिंग तो होना संभव ही नहीं है पर मीडिया सेकुलर कांग्रेस उसकी निंदा करने में हिचकते ही नहीं बचाव करते झूठ बोलते और बगलें झांकते हैं ये बेईमानियां तब भी दिखती है जब ओवैसी या कांग्रेस को केवल बंगाल में हिंदुओं की भीड़ द्वारा हत्याओं कोई अपराध नहीं दिखता ये दोगलापन जब तक है अपराध रोकने की कोई मुहिम सफल नहीं हो सकती क्योंकि अपराधों के पोषक वही हैं जो होहल्ला मचाते हैं….#

The IIT, Kanpur presents ‘TreadWill’ to support mental health


Based on the proven methodology of CBT, TreadWill uses simple language to help users to identify involuntary negative thoughts and behaviour


The Indian Institute of Technology (IIT), Kanpur, has developed an online tool, TreadWill, to help people cope with issues related to their mental health.

TreadWill is a website designed to help people deal with stress, low mood, lethargy and other depressive symptoms through different online exercises, questionnaires and games, Nitin Gupta, a professor at the Biological Sciences and Bioengineering department of the IIT, said.

People suffering from depressive symptoms such as feeling low and lack of pleasure in usual activities may find the contents of the site helpful, he said.
It will help in overcoming depressive symptoms and becoming more resilient against stressful events in the future, Gupta said.

The online tool has been developed by a team with collaborative support from the Computer Science and Engineering and HSS (Psychology) departments, and Dr Alok Bajpai, a psychiatrist, the professor said.

It is based on cognitive behavioural therapy (CBT) that helps people with depressive symptoms, Gupta said.

The effectiveness of CBT is well established for many mental illnesses, including mood and anxiety disorders.

Based on the proven methodology of CBT, TreadWill uses simple language to help users to identify involuntary negative thoughts and behaviour, Gupta said, adding that users are subsequently taught techniques to work on modifying their thoughts and actions.

He said that he has been studying anxiety, stress, and depression for many years and the most common problem that people face is wrestling with their thoughts while lying on the bed, and they desperately want their minds to calm down so that they can sleep.

But, whatever they try seems to fail, Gupta said, adding that people tell themselves not to worry, but they discover countless new things to worry about.

This work has discovered the secret to tackle anxiety, stress, exhaustion and full-blown depression successfully, he asserted.

Through simple questionnaires, the online tool can recognise differences in each users’ history and customise accordingly, Gupta said.

TreadWill would further help its users by sending personalised SMS alerts to help them stick to the programme till the end.

Elaborating further, Gupta said that TreadWill would offer a free and easy accessible alternative for those who are wary of attending in-person sessions at clinics.

Each TreadWill user is guaranteed the same quality of help and users can choose a pace comfortable to them, he added.

TreadWill uses simple forms (thought record worksheet, core belief worksheet) and games to practice the techniques of CBT in an engaging manner.

The game helps people focus on positivity in stressful situations and over time, the exercise helps build self-esteem. It also focuses on social engagement as a means of combating mental health issues, he said.

Every user of TreadWill can use support groups to share their experiences and to get support from other users. The smaller groups of users, called Peer Groups, have also been set up as private spaces where they can follow each others progress. This will help them form bonds and enhance their feeling of belonging, Gupta said.

In the future, TreadWill plans to scale the tool for different language users and offer cognitive training for other disorders such as autism spectrum disorder.
Gupta said that if the user chooses to participate, they would have to go through six modules over a period of about six weeks. These modules will teach different skills of CBT, he said.

The users would be able to complete these modules at their convenience by sitting at their respective places, Gupta asserted.

The users mood would be assessed at different stages to analyze usefulness of the programme, he said.

He further added that the research team would send an email to the users just 90 days after completing the program to check the long-term effectiveness of the online programme.

Gupta also said that if TreadWill does not benefit users directly, the participation will help the team improve the program so that the website becomes more useful to people and society.

Opposition running for power ignoring poor, farmers & youth: PM


This is PM’s third visit to the state in a month. Before this, he has reached out to people in Azamgarh, Sant Kabir Nagar, Mirzapur and Varanasi.


A day after winning the no-confidence motion in Lok Sabha on Friday, Prime Minister Narendra Modi on Saturday said the Opposition is running after PM’s chair and ignoring the poor, youth and farmers. While addressing a farmers’ rally in Shahjahanpur district in central Uttar Pradesh, PM Modi criticised the previous UP governments saying they did not have the will to help farmers.

PM’s outreach to the farmers in the state can be viewed as an exercise to appease the huge agrarian voter base in UP. Before starting today’s rally, Modi had tweeted that he always enjoys being with the farmers.

“I always enjoy being with our farmers. It is due to their hardwork that India has achieved so much. Going to Shahjahanpur in Uttar Pradesh to address a Kisan Kalyan Rally this afternoon”.



Narendra Modi

@narendramodi

I always enjoy being with our farmers. It is due to their hardwork that India has achieved so much. Going to Shahjahanpur in Uttar Pradesh to address a Kisan Kalyan Rally this afternoon.



The PM also said that the government has decided to allow mills to produce ethanol from molasses, sugarcane juice from Dec 1. Uttar Pradesh has a huge population sugarcane farmers. The state has a large number of sugar mills. A considerable part of the farming community in the state depends on sugarcane crop for their livelihood.

Apart from this, Modi also criticised some opposition parties in alliance or mulling over getting together to face BJP in the 2019 Lok Sabha polls. Using a Hindi expression, he said more the parties, more the mud in which ‘lotus’ blooms.

This is the PM’s third visit to the state in less than a month. Before this, he has reached out to people in Azamgarh, Sant Kabir Nagar, Mirzapur and Varanasi. Among the necessary arrangements made for smooth conduct of the rally, waterproof tents were also installed, an official was quoted.

Chief Minister Yogi Adityanath had convened a meeting of officials of eight districts while making preparation for the rally. Meanwhile, speaking prior to the PM, Adityanath said that Modi answered each and every question of the opposition during no-confidence motion yesterday and won with an absolute majority.

The NDA government on Saturday won the no-trust vote against the opposition in Lok Sabha. Before that, the no-confidence motion also saw dramatic scenes inside the lower house when Congress president Rahul Gandhi walked up to PM Modi and hugged him.

हामीद अंसारी की परेशानी जोशी की जुबानी

 

नई दिल्ली. संघ और भाजपा से जुड़े रहे पूर्व प्रचारक संजय विनायक जोशी फिर से जोश में आ गए हैं. अचानक उन्होंने एक ब्लॉग लिखकर अपने तेवर दिखा दिए हैं. यूं तो उन्होंने पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर निशाना साधा है लेकिन सीधे तौर पर उनके निशाने पर भारत ही नहीं दुनियां भर के मुसलमान और इस्लाम तो है ही, उनकी तरफदारी करने वाले लोग भी हैं. इस ब्लॉग को उनकी फौरी प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जाए या भविष्य का कोई संकेत, ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा, लेकिन उनके तेवर काफी सख्त हैं.

जोशी बिना लाग लपेट के सीधे हामिद अंसारी पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं कि, ‘हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था कि देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है. अभी-अभी आ रही एक बेहद सनसनीखेज खबर से साबित हो गया है कि आखिर हामिद अंसारी जैसे लोगों में असुरक्षा की भावना क्यों पनप रही है. खबर है कि उत्तराखंड में मदरसों में पढ़ने वाले करीब 2 लाख मुस्लिम बच्चे रातों-रात गायब हो गए हैं’. दरअसल उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में आधार लिकिंग के बाद उत्तराखंड में वजीफों में आई कमी को हामिद अंसारी के बयान से जोड़ दिया है.

वो आगे लिखते हैं, ‘ये तो अकेले उत्तराखंड का मामला है, अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि जब सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में मदरसों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा तो क्यों इतना हंगामा खड़ा कर दिया गया. इस बात से साबित हो गया है कि बीजेपी की सरकार आने के बाद से मुस्लिम खुद को क्यों असुरक्षित महसूस कर रहे हैं’. वजीफे के मुद्दे पर ही नहीं वो मदरसों को और भी बातों के लिए निशाने पर लेते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में तो और भी काफी कुछ चल रहा है. सरकारी पैसों की लूट वहां भी ऐसे ही की जा रही है, साथ ही खुफिया एजेंसियों ने ये भी अलर्ट दिया है कि कई मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी शिक्षा भी दी जा रही है. इस तरह की गड़बड़ियों को देखते हुए सीएम योगी ने सभी मदरसों का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर दिया है. राज्य में कई मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं, उन्हें फंड कहाँ से आता है, इसकी किसी को कोई जानकारी तक नहीं है.इन मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता. जबकि ऐसे छात्रों को लगातार अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के तहत तमाम फायदे मिलते रहते हैं.’.

हामिद अंसारी पर निशाना साधते हुए संजय जोशी लिखते हैं, ‘उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में चल रहे लगभग 800 मदरसों पर प्रतिवर्ष 4000करोड़ रुपये खर्च करती है. मगर हैरत की बात है कि इसका एक बड़ा हिस्सा छात्रों तक पहुंचने की जगह उन लोगों की जेब में जा रहा है, जिन्हें लेकर हामिद अंसारी जैसे लोग परेशान हो रहे हैं’. मदरसों के बाद वो अपने ब्लॉग में इंटरनेशनल लेवल पर हो रही घटनाओं को इस्लाम से जोड़ देते हैं, ‘वैसे देखा जाय तो पाकिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है ? अफगानिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है? सीरिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है? यमन में मुसलमानों को कौन मार रहा है? इराक में मुसलमानों को कौन मार रहा है? लीबिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है? कौन है जो मिस्र में मुसलमानों को मार रहा है? जो सोमालिया में मुसलमानों को मार रहा है? बलूचिस्तान में भी मुसलमानों को मार रहा है? अब मैं सोच रहा हूँ जब ये सभी देश इस्लामिक हैं… तब शान्ति कहाँ है? मैं इस्लाम पर सवाल नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि सभी लोग जानते हैं की इस्लाम एक शांतिपूर्ण धर्म है… लेकिन शांति रहस्यमय रूप से से गायब है….!! अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लेबनान, यमन और मिस्र को किसने बर्बाद किया है ? या वहां दंगा करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं ?’.

लग रहा है कि संजय जोशी इस्लाम से जुड़े एक एक पहलू पर लिखने के मूड में थे, वो देश की बात भी करते हैं और उसके ‘गद्दारों’ की भी, ‘अजीब विडम्बना है , कुछ गद्दारों के लियें यहाँ इशरत बेटी है, कन्हैया बेटा है, दाऊद भाई है, अफजल गुरू है, लेकिन भारत माता नहीं !आखिर…ऐसा क्यों है……..’.

वो आगे लिखते हैं, ‘अब थोड़ा और ध्यान दीजिए…मुस्लिम + हिन्दू = समस्या, मुस्लिम + बौद्ध =समस्या, मुस्लिम + ईसाई = समस्या, मुस्लिम + सिख = समस्या, मुस्लिम + नास्तिक = समस्या, मुस्लिम + मुस्लिम =बहुत बड़ी समस्या! उदाहरण देखिए, हां-जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है, वहाँ वे सुखी नहीं रहते हैं और न दूसरे को रहने देते हैं!

देखिए …मुस्लिम सुखी नहीं, गाजा में मुस्लिम सुखी नहीं ,म्हलचज में मुस्लिम सुखी नहीं, लीबिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,मोरोक्को में मुस्लिम सुखी नहीं, ईरान में मुस्लिम सुखी नहीं, ईराक में मुस्लिम सूखी नहीं, यमन में मुस्लिम सुखी नहीं, अफगानिस्तान में मुस्लिम सुखी नहीं, किस्तान में मुस्लिम सुखी नहीं ,सीरिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,लेबनान में मुस्लिम सुखी नहीं ,नाइजीरिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,केन्या में मुस्लिम सुखी नहीं सूडान में ,अब गौर कीजिए ………! मुस्लिम सुखी वहां हैं, जहाँ कम संख्या में है…? मुस्लिम सुखी है आस्ट्रेलिया में, मुस्लिम सुखी है इंग्लैंड में, मुस्लिम सुखी है बेल्जियम में, मुस्लिम सुखी है फ्रांस में, मुस्लिम सुखी है इटली में, मुस्लिम सुखी है जर्मनी में, मुस्लिम सुखी है स्वीडन में, मुस्लिम सुखी है कनाडा में, मुस्लिम सुखी है भारत में, मुस्लिम सुखी है नार्वे में, मुस्लिम सुखी है नेपाल में, क्योंकि यहां जेहाद के नाम पर सब कुछ संभव हैं.

आखिरी लाइन वो उस विषय पर लिखते हैं जोकि उनके ब्लॉग का टाइटल है, ‘आतंकवादी का मजहब क्या होता है?’. वो लिखते हैं, ‘मुसलमान हर उस देश में सुखी है ! जो इस्लामिक देश नही है ……..और देखिये कि वो उन्हीं देशो को दोषी ठहराते है जो इस्लामिक नहीं हैं….! या जहां मुस्लिमो की लीडरशिप नही है…..! मुस्लिम हमेशा उन देशो को ब्लेम करते है जहां वे सुखी हैं…….! और मुस्लिम उन देशों को बदलना चाहते हैं….. जहां वे सुखी हैं ! और बदल कर वे उन देशों की तरह कर देना चाहते हैं! जहां वे सुखी नही हैं……..!और अंत तक वो इसके लिए लड़ाई करते हैं….! और इसको ही बोलते हैं..आदि और भी हैं ऐसे ही इस्लामिक जेहादी आतंकवादी संगठन! अब इतना तो आप सभी, जरूर समझ गए होंगे कि……आतंकवादी का मजहब क्या होता है…..?’

संजय जोशी अपने आप को बीजेपी का सदस्य कहते हैं, ये अलग बात है कि बीजेपी उन्हें आधिकारिक रूप से कही नहीं बुलाती. अब ऐसे में उनका ये ‘मुस्लिम विरोधी’ ब्लॉग विवादों में आता है, या उन्हीं की तरह गुमनामी में जाएगा, वक्त ही बताएगा.

Mangal Pandey ‘The Lone Runner’


The chapters of India’s independence chapter began to be written in true sense in 1857 but it is said that the rebel of the rebellion against Angaji’s rule was played by the soldier with one of them. The aura of that soldier was such that when the forerunners ordered the other soldiers to confront him, they all retreated and the turn of martyrdom turned out to be the executioners refused to hang him.


The chapters of India’s independence chapter began to be written in true sense in 1857 but it is said that the rebel of the rebellion against Angaji’s rule was played by the soldier with one of them. The aura of that soldier was such that when the forerunners ordered the other soldiers to confront him, they all retreated and the turn of martyrdom turned out to be the executioners refused to hang him. Perhaps that Indian soldier was a warrior of independence. He was none other than Mangal Pandey, born in 1827 in a Sarayuparan Brahmin family in Nagawa, a small village in Ballia, Uttar Pradesh. Today (July 19th) is the birth anniversary of Mangal Pandey. Pandey was admitted to the army of East India Company at the age of 22 as a constable. He was a soldier of the East India Company’s 34th Bengal Infantry. In the memory of Mangal Pandey, the Government of India issued a stamp in 1984. Films and dramas have become their life. Historians have different opinions about Mangal Pandey’s revolt.

One of the historians wrote that rumors of Indian soldier being killed by the European soldiers for making and opposing Indian soldiers forcibly terrorized Mangal Pandey and on 29 March 1857, in the drunken cannabis, Had rebelled against the rule. Some historians said that due to the rebellion he became an enfield gun, in which the cartridge had to be cut off by teeth. When the soldiers came to know that the outer shell of the cartridge was made of cow and pig fat to save the seal, Mangal Pandey had raised the voice against it. English historian Kim E. Wagner wrote in his book “The Great Fear of 1857 – Rumors, Conspiracy and Making of the Indian Unmissing”, “Knowing the fear of the sepoys, Major General J. B. Heyersi, on the Hindustani soldiers It was quite rumored to have called the assault as rumor, but it is quite possible that the heresy was able to spoil the situation by confirming the rumors reached to the soldiers. The soldiers who were terrorized by Major General’s speech were also Mangal Pandey of the 34th Bengal Native Infantry. “

British historian Rosie Lilvelan Jones has also presented some similar arguments in his book “The Great Upcoming In India 1857 – 58 Untold Stories, Indian and British”. According to these historians, Mangal Pandey fired at Sergeant Major James Hewison but he survived. This incident has been told by the hand of Sheikh Paltu. During the conflict, when the lieutenant Benpade Bag reached the spot, Pandey shot him, but the target missed, Bagh also fired on Pandey with his pistol, he did not even target. If the British officers asked the soldiers to capture Mangal Pandey, all the chase was withdrawn. Paltu tried to overcome Pandey.According to Jones, when Paltu told the jamadar Ishwari Pandey that he sent four soldiers to capture Mangal Pandey, Ishwari Prasad had told Paltu a gun and said that if Mangal does not let Pandey escape then he will shoot him.

According to Jones, Mangal Pandey has cursed his colleagues and said that “you people have provoked me and now you are not with me”, and many pedestrians, including the cavalry, come towards him, Pandey has put a gun in his chest with his chest The trigger was pressed by thumb but he was saved. On April 8, 1857, Pandey was executed by the hangers of Kolkata on refusal by local hangers.

Ishwar Prasad was also hanged after Mangal Pandey. This spark of rebellion imposed by Mangal Pandey is not extinguished again. After a month, on May 10, 1857, a revolt was started in Meerut Cantonment and after seeing this fire took the whole of North India into its grip. It is said that the British had imposed 34,735 laws on Indian revolt with the rebellion so that no one like Mangal Pandey could retain his head again.

……. और कारवां गुज़र गया

 

 जन्म 04 जनवरी 1924
 निधन 19 जुलाई 2018
 उपनाम नीरज
 जन्म स्थान पुरावली, इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत
 कुछ प्रमुख कृतियाँ
दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरीगीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी,बादलों से सलाम लेता हूँकुछ दोहे नीरज के कारवां गुजर गया
 विविध
2007 में पद्म भूषण सहित अनेकप्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित

Arif Mohammad Khan’s statement valid till date

A piece of news has barely scratched the surface of our consciousness. It involves a powerful and influential local cleric from Bareilly’s Dargah Aala Hazrat seminary issuing a fatwa against a woman, asking locals and the faithful to ostracize her. Nida Khan, according to the cleric, has committed a “grave crime”. A victim of ‘triple talaq’, Nida had the temerity to campaign against the practice of instant divorce in Indian Muslim communities.

Congress president Rahul Gandhi. PTI

What makes Nida’s “crime” even “greater” is that she runs an NGO in Bareilly, Uttar Pradesh, through which the courageous crusader supports Muslim women — a voiceless, marginalised group on the fringes of community space — who have been victimised by triple talaq or ‘nikah halala’ (the custom that dictates that a divorced couple can remarry only if the woman marries another man, consummates her new marriage and then proceeds to divorce).

According to a nation wide survey involving over 4,700 married Muslim women across 10 states conducted by Bharatiya Muslim Mahila Andolan (BMMA) — a women’s rights organisation that has been at the forefront of the fight against triple talaq, polygamy and nikah halala — more than 90 percent respondents want the ritual of instant divorce and polygamy to be banned in India. The survey also showed that 88 percent Muslim women favour divorce through “talaq-e-ahsan” — a practice spread over three months and involving negotiation.

In a landmark ruling in April last year, a five-judge bench of the Supreme Court had set aside the Hanafi tradition of triple talaq as a “manifestly arbitrary” practice not covered by Article 25 (freedom of religion) of the Constitution. In delivering the judgment, justice Rohinton Fali Nariman had observed that it is “not possible for the court to fold its hands when petitioners (Muslim women) come to court for justice,” according to a report in The Hindu.

For Nida’s “crime”, however, cleric Mufti Afzaal Razvi wrote in the fatwa: “If Hinda (Nida Khan) does not apologise, she should be boycotted. Nobody should talk or greet her and people should stop eating with her, should not visit her if she is taken ill and if she dies, they should not read her last prayer or let her be buried in a graveyard,” reported Times of India which claimed to possess a copy of the “fatwa’.

The newspaper report also mentions that Nida suffered a miscarriage after allegedly being beaten by her husband in 2015 and she was eventually divorced by her husband through triple talaq a year later. The fatwa forbids Muslims from meeting her. It says: “Any person, including her family and triple talaq victims, who will meet her and do not follow Sharia decision, will stand at the same position as Nida.”

It doesn’t end here.According to a report by ABP News, the Bareilly cleric “ostracized” Nida and another woman — Farhat Naqvi, who happens to be the sister of Union Minister Mukhtar Abbas Naqvi and also runs an organisation to support Muslim women — for daring to raise their voices against triple talaq. The fiery Nida has dismissed the ‘fatwa’ and slammed the All India Muslim Personal Law Board — the self-styled gatekeepers of shariah law. “We don’t accept the AIMPLB but Islam, which came to us 1400 years ago. We will continue fighting for our daughters. These people have always subjugated women but now the time has changed,” the report quoted her, as saying.

The saddest part is, for campaigning against a practice deemed unconstitutional by the Supreme Court and considered un-Islamic in several Muslim-majority nations, Nida has been extended police protection.

There has hardly been any voice in Nida’s support. The self-righteous Left, which has huge similarities with Islamism in its way of controlling the thoughts and actions of its followers and prioritization of group identity over individual rights, is expectedly looking the other way. The liberals are silent because hounding of Muslim women by clerics doesn’t fit into its majoritarian narrative.


The Congress, whose president recently proclaimed himself as the “eraser” of hatred and fear and announced that he stands with the “exploited, marginalised and the persecuted”, is trying his best to scuttle the Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2017, so that it doesn’t turn into a law. Introduced by the NDA government after Supreme Court set aside the practice of ‘triple talaq’, the bill seeks to make it easier for Muslim women to approach the law seeking subsistence allowance and custody of minor children. It declares instant divorce as “illegal” and “void”.

The Bill has been passed in Lok Sabha, where the BJP has a majority. It is stuck in the Upper House because the Opposition wants to send it to a “select committee” for “closer scrutiny”. In reality, it is a delaying tactic by the Congress-led Opposition which has been caught in a no man’s land. The Opposition is non-committal and desperate to buy time because it doesn’t want to be seen coming out against a legislation that seeks to address legitimate grievances of Muslim women. On the other hand, it is wary of backing the Bill and courting the ire of the powerful mullahs’ club.

If Rahul Gandhi was truly the fellow traveler of the “exploited, marginalised and the persecuted”, he would have led Congress in unconditionally backing the triple talaq Bill and undoing his father Rajiv Gandhi’s historic blunder who — in order to appease male Muslim leaders — used his brute majority in Parliament to overturn a Supreme Court verdict in 1986 and deny Shah Bano Begum, a poor, septuagenarian, divorced Muslim woman her alimony.

On Congress’ decision to block the triple talaq Bill in Rajya Sabha, former Union minister Arif Mohammad Khan who resigned from the Rajiv Gandhi cabinet in protest against the decision to overturn the Shah Bano verdict, had this to say to India Today: “The Congress party is acting at the behest of Muslim Personal law board, the way its members have congratulated Congress is a testimony to this and it is a very unfortunate situation… Congress party doesn’t care about victims and individuals, but those who promise vote bank, like the Muslim personal law board.”

What the fatwa against Nida and the fate of triple talaq Bill tells us is that the fate of real minorities — such as Muslim women — remains endangered in India because the political system is unable to help them and the civil society finds it easier to indulge in pop activism than tackle uncomfortable realities and lived experiences.

Hashtag campaigns such as #TalkToAMuslim dominate social media — championed by the likes of actor and globally acclaimed public intellectual Swara Bhasker — that are condescending (if well-meaning), reductive and serve to alienate Muslims further through an exclusive focus on religious identities. Instead of such bubblegum activism in echo chambers, it might be worthwhile listening to the voices of courageous Muslim women in India who are still being persecuted for resisting obscurantist practices propagated by misogynistic men. Talk to them.