Calling Imran Khan an “ideal puppet” of the military establishment in Pakistan, ex-wife Reham Khan alleged that the Pakistan Tehreek-e-Insaf (PTI) chief had benefited from “rigged” elections. In an interview to The Hindu over the telephone from London, Ms. Khan said Mr. Khan would carry out foreign policy, including with India, according to the wishes of the military if he becomes Prime Minister, as he is expected to do after his party won 115 of the 272 seats in the elections held in Pakistan on July 25.
एक घटना से सारे राजनैतिक जीवन पर प्रश्नाचिन्ह नहीं लगाना चाहिए
/0 Comments/in NATIONAL, POLITICS, RAJASTHAN/by Demokratic Front Bureauअलवर में गाय के नाम पर जो कुछ हुआ, उसे किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार मानें ऐसा भी ठीक नहीं
कुछ वक्त पहले दिल्ली के एक मुशायरे में राहत इंदौरी साहब का सुना एक शेर याद आ गया-
कौन जालिम हैं यहां, जुर्म हुआ है किस पर, क्या खबर आएगी, अखबार को तय करना है.
अपने घर में मुझे क्या खाना-पकाना है, ये भी मुझको नहीं, सरकार को तय करना है.
राजस्थान के अलवर से जब खबर आई, तो दिल को तकलीफ सी दे गई, खासतौर से इसलिए क्योंकि मैं अरसे से राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जानता हूं, थोड़ा-थोड़ा वो भी मुझे पहचानती होंगी. वसुंधरा जी की छवि एक मुख्यमंत्री के तौर पर, एक प्रशासक के तौर पर एक जन प्रतिनिधि के तौर पर भी बेहद दमदार हैं. उन्हें कमजोर मुख्यमंत्री नहीं कहा जा सकता और यह भी नहीं माना जा सकता कि वे हमेशा ही सिर्फ लोक लुभावन फैसले करती हैं.
मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंनें बहुत बार ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनका फायदा दूरगामी हो, ज्यादा से ज्यादा लोगों को होता होगा, लेकिन कई बार वे चुनावी राजनीति के तौर पर फायदेमंद नहीं होते. भारतीय जनता पार्टी जैसे बड़े संगठन में उनकी आवाज को ना तो दबाया जा सकता है और ना ही नजरअंदाज किया जा सकता है, यह कई बार उन्होंने साबित किया है. उनके इस अंदाज से अक्सर बहुत से लोग परेशान भी रहते हैं.
मुझे याद आते हैं वो दिन जब राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत बीजेपी के सबसे बड़े नेता होते थे, या ये कहना भी गलत नहीं होगा कि किसी दूसरी पार्टी में भी उनके बराबर के कद का नेता नहीं था. कांग्रेस में जो कद मोहन लाल सुखाड़िया को हासिल हुआ, वो शख्सियत शेखावत की रही, लेकिन तमाम वर्षों में बीजेपी को कभी बहुमत वाली सरकार नहीं मिल पाई और वे दूसरे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाते रहे, चलाते रहे, साथ ही पार्टी के भीतर लगातार चलती रहती उठापटक से भी निपटते रहे. शेखावत और राजमाता रही विजया राजे सिंधिया के बीच बेहद अच्छे संबंध थे.
माना जाता है कि वसुंधरा जी को राजनीतिक तौर पर तैयार करने में शेखावत का भी अहम योगदान रहा, लेकिन जो लोग उस वक्त उन्हें एक कमजोर या नौसिखिया नेता के तौर पर देख रहे थे, उनको जवाब दिया उन्होंनें पहली बार राजस्थान में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर. ज्यादातर लोगों को 2014 के आम चुनावों के नतीजे याद होंगें जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की अगुवाई में बीजेपी ने पहली बार केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई, लेकिन इससे पांच महीने पहले दिसंबर 2013 के चुनाव में राजस्थान में वसुंधरा के नेतृत्व में बीजेपी ने 160 से ज्यादा सीटें हासिल कर ली थीं और फिर आम चुनाव में सभी 25 संसदीय सीटें भी जितवाई.
जाहिर है कि वसुंधरा जी की ताकत को केंद्रीय आलाकमान नजरअंदाज नहीं कर सकता था और तमाम कोशिशों के बावजूद हुआ वही जो वसुंधरा जी को पसंद था. तो क्या इतनी ताकतवर मुख्यमंत्री से राज्य में कानून-व्यवस्था कायम रखने की उम्मीद करना नाइंसाफी होगा?
अलवर में गाय के नाम पर जो कुछ हुआ, उसे किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार मानें ऐसा भी ठीक नहीं. लेकिन गाय और मरते हुए आदमी में से पहले गाय को गौशाला छोड़ना और फिर अस्पताल जाने की पुलिस की कारवाई इस बात का अंदाजा तो देती ही है कि या तो पुलिस और प्रशासन को एक ताकतवर मुख्यमंत्री की परवाह नहीं या फिर उनकी शह है. इससे भी ज़्यादा इस घटना के बाद उनकी सरकार के मंत्री, विधायक और हाल में बने बीजेपी अध्यक्ष के बयान और उन सब पर मुख्यमंत्री की चुप्पी हैरान करती है.
1992 में 6 दिसंबर की घटना याद आती है कि बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरने के बाद देश भर में दहशत का माहौल था, और जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. उस रात राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोंसिह शेखावत अपने निवास पर बैठे पूरे माहौल पर नजर रखे हुए थे. तब रात को करीब दस बजे खबर मिली कि जयपुर की एक मुस्लिम बस्ती पर हमला हो सकता है, मुख्यमंत्री ने पुलिस प्रशासन को तो सख्ती का आदेश दिया ही साथ में वह अपने अफसरों के साथ उस बस्ती में पहुंच गए और देर रात तक सड़क पर ही डेरा डाल कर बैठे रहे.
नतीजा एक मुस्लिम बस्ती बच गई,किसी की हिम्मत नहीं हुई हमला या दंगा करने की. शेखावत जी अक्सर कहा करते थे कि सरकार सिर्फ़ रुआब से चलती है यानी आपका डर होना चाहिए कि अगर कोई गड़बड़ हुई तो फिर किसी को बख्शा नहीं जाएगा और रुआब इस बात से बनता है कि आपने किसी घटना पर किस तरह का प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवहार किया, जिसे वाजपेयी जी की जबान में राजधर्म कहते हैं.
राजस्थान में इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं यानी जनता फिर से याद आने लगी है और अब हर दरवाजे तक पहुंचना है. अच्छी बात है. मुख्यमंत्री चार अगस्त से सुराज यात्रा शुरू कर रही हैं. सुना है कि रथ तैयार हो गया है, दूसरी तैयारियां भी पूरी होने को होंगी. यह मौका हो सकता है जनता में इस बात का विश्वास दिलाने का कि वे एक निष्पक्ष और ताकतवर मुख्यमंत्री हैं और उनके रहते हुए किसी को किसी बात की चिंता की जरूरत नहीं हैं.
वसुंधरा जी बीजेपी की नई पीढ़ी का नेतृत्व करती हैं. उनके साथ के शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह मुख्यमंत्री के तौर पर तीन-तीन पारी पूरी कर चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीन बार चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंचे हैं यानी वसुंधरा जी को राजस्थान में हर चुनाव में दूसरी पार्टी की सरकार के खेल को बदलने की तैयारी करनी है.
माफी के साथ, एक बार फिर शायर राहत इंदौरी याद आ रहे हैं कि–
झूठ से, सच से, जिससे भी यारी रखें, आप तो अपनी तकरीर जारी रखें.
इन दिनों आप मालिक हैं बाजार के, जो भी चाहें वो कीमत हमारी रखें..
चंचल की रसोई : मालपूआ
/0 Comments/in LIFE STYLE, RAJASTHAN, STATES/by Demokratic Front Bureauचंचल की रसोई
मालपुआ
आवश्यक सामग्री
एक कप (125 ग्राम) गेहूं का आटा
एक चम्मच सौंफ पिसी हुई
3 से 4 इलायची पिसी हुई
एक बड़ा चम्मच कद्दूकस किया नारियल या नारियल का बुरादा
आधा कप चीनी
3 बड़े चम्मच दूध
घी
विधि
– मालपुआ बनाने के लिए सबसे पहले दूध में चीनी डालकर एक घंटे के लिए रख दें.
– तब तक एक बर्तन में आटा छानकर, इसमें सौंफ , इलायची और नारियल का बुरादा डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें.
– जब दूध में चीनी घुल जाए, तो चीनी-दूध के घोल को आटे के मिश्रण में डालकर इसे एक चम्मच से फेंटते हुए मिलाएं.
– इस तरह आटे का न ज्यादा गाढ़ा, न ज्यादा पतला पेस्ट तैयार कर लें. यदि पेस्ट अच्छी तरह नहीं बना, तो इसमें थोड़ा पानी डालकर फेंट लें.
– अब एक कड़ाही में घी डालकर, उसे गैस पर गर्म करने रखें.
– घी गर्म होने के बाद गैस की आंच मध्यम करके, एक बड़े चम्मच में आटे का पेस्ट लेकर, उसे गोल पूरी के आकार में घुमाते हुए घी में डालें और पुआ फ्राई करें.
– मालपुआ दोनों तरफ से पलट कर लाल होने तक सेकें, इसी तरह सभी पुए बनाएं और गर्मागर्म इनका मजा लें.
चंचल की रसोई : मलाई घेवर
/0 Comments/in LIFE STYLE, RAJASTHAN, STATES/by Demokratic Front Bureauचंचल की रसोई
मलाई घेवर
आवश्यक सामग्री
घेवर के लिए
2 कप मैदा
1/4 कप देसी घी
1/4 कप दूध
4 कप पानी
2 कप देसी घी
चाशनी के लिए
1 1/2 कप चीनी
1 कप पानी
1/4 चम्मच इलायची पाउडर
विधि
– एक बॉउल में मैदा, घी और दूध मिलाकर अच्छी तरह मिक्स करें और इसमें पानी डालकर गाढ़ा पेस्ट बना लें.
– अब एक पैन में घी गरम करें और उसमें तैयार पेस्ट का घोल डालें और उसमें छोटे-छोटे बब्ल पड़ने दें.
– इस प्रक्रिया को 3-4 बार दोहराएं और इसके बाद किसी चाकू या चम्मच की मदद से घेवर में बीच में एक छेद कर दें.
– अब घेवर को तब तक फ्राई करें जब तब कि वह सुनहरा भूरा न हो जाए.
– तैयार घेवर को एक प्लेट में निकालकर रखें और एक्सट्रा घी निकालने के लिए इसे टिश्यू पेपर में रखें.
– अब बचे हुए पेस्ट से इसी तरह बाकी घेवर भी बना लें.
– इसके बाद एक तार की चाशनी तैयार कर लें और उसमें घेवर को 10 सेकेंड के लिए भिगोकर रखें.
– घेवर को सर्विंग डिश में निकाल कर उनके ऊपर रबड़ी और ड्राई फ्रूट्स से सजाकर परोसें।
Imran Khan is the ideal puppet, he will follow Army line: Reham Khan
/0 Comments/in DELHI, GUJRAT, NATIONAL, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, STATES, WORLD/by Demokratic Front BureauJournalist and ex-wife of the Pakistani Prime Ministerial-hopeful says the plot to put him in power was hatched two or three years ago
In her book about Mr. Khan, Ms. Khan has pulled no punches, portraying the former cricketer as a libertarian, unstable and power-hungry politician. Rejecting calls to tone down her criticism of Mr. Khan, and unfavourable comparisons to his first wife, British heiress Jemima, who congratulated Mr. Khan on Twitter, Ms. Khan, said she refused to “justify the indefensible”.
What is your reaction to the Pakistan Tehreek-e-Insaf’s (PTI) performance in the elections, and especially Imran Khan’s success in all five constituencies he contested?
I knew that this would be the result. But I also knew that if elections were fair and free, there is no chance he would have won.
It is impossible that the party did well in so many places, including Khyber Pakhtunkhwa (KPK), where the PTI government was unpopular. In other places like Lahore and Karachi, what is unbelievable is that serious and experienced candidates have been defeated by unknown novices from the PTI.
You have called Imran Khan the military’s candidate … but surely all candidates who come to power in Pakistan have the military’s blessings?
Absolutely. If you remember, in 2013, Imran Khan said that Nawaz Sharif was the establishment’s protege too, so he understands that is what it takes. I think this time the military establishment wanted to show their power … very purposefully in their support for Imran Khan. They were upset when Nawaz Sharif started to assert himself, especially on the India policy and the China Pakistan Economic Corridor, and that is when they let him go. Imran is the ideal puppet. He has no knowledge of a lot of complex issues, and he will be willing to follow their line.
In your book Reham Khan, you suggest that Imran Khan was created by the military, but in 2008 he also boycotted elections under military rule. How do you explain his relationship with the military?
As a wife, you see and hear things. Imran always spoke about his links with the military. In 2008, he may have boycotted out of pique, out of feeling upset that they didn’t support him, but when I knew him, he always boasted about their support. He was always so sure that he would become Prime Minister that I think this plan to put Imran Khan in power came two or three years ago.
When it comes to India, Imran Khan said he has engaged more with Indians than any other Pakistani has. What do you think are chances of a reach-out from Imran Khan to India and Prime Minister Narendra Modi?
Yes, he has spent a lot of time in India and has many friends in India. This is why I feel he should not have been critical of India in his campaign. It is all so hypocritical. Let us imagine he actually wants healthy relations with India, and means it when he spoke of more trade ties.
But what did he do to the Sharifs when they wanted to increase business ties with India? He called them gaddars (traitors).
He stopped the MFN (Most Favoured Nation) status being given to India. He has no ideology, so you can expect him to do only what he is told to do, whether it is in India or Pakistan.
Many have alleged that you timed your book as part of a politically motivated agenda. Did you at least hope to have an impact on the elections?
Yes, people have said the book was sponsored by the PML-N (Pakistan Muslim League-Nawaz), which is just not true. I only know the Sharifs through my time as a journalist, when I interviewed them. It would be flattering for me to think I could have had any impact on the campaign. I was told very clearly that this would happen in the elections, but I wrote my book anyway. I will not be dictated to by these forces. If people say I should be like Jemima, and be ladylike and graceful, then I don’t agree. I think you have to speak up, especially if you are a woman and you watch other women being treated badly.
I don’t want to be like Jemima for sure. I married Imran Khan when he was not winning elections. I am a Pakistani, a self-made woman, an anti-social nerd, and I am not a socialite like her. I am actually quite relieved that I didn’t have to stand beside Imran Khan while he touted blasphemy laws, and his party targeted minorities. I wouldn’t want to justify the indefensible.
What were the specific challenges you faced in bringing out this book?
I think I need to write another book just about how difficult it was to get my book out and how many people tried to block me. My staff were intimidated, offered bribes and told very clearly that anyone who stood in Imran Khan’s way would be blown up (udaa diye jaayenge). They also called my friends and made them tell me, “You are a woman, you have two daughters, and none of you will be safe.” So I felt it best to leave at that time [in February].
Will you return to Pakistan at some point, though? And would you consider joining politics?
(Laughs) I can’t live without Pakistan; so, yes, I will return. My children have declared me psychotic and crazy as a result, but I do wish to go back.
On politics, I don’t think I have it in me to withstand the kind of targeting one faces and the depths one has to go to.
Pak. elections are “negatively affected & unequal opportunity to campaign” EU observers
/0 Comments/in GUJRAT, JAMMU & KASHMIR, NATIONAL, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, STATES, WORLD/by Demokratic Front BureauImran Khan to form government with the support of allies, Independents; Opposition parties question results.
A European Union election observer mission to Pakistan has said that the July 25 election was “negatively affected” by the political environment in the country and suffered from an “unequal opportunity to campaign”.
The mission’s comments on Friday in Islamabad came as Imran Khan’s Pakistan Tehreek-e-Insaf (PTI) won 117 seats, Nawaz Sharif’s Pakistan Muslim League-Nawaz (PML-N) took 64 and the Bhutto-Zardari’s Pakistan People’s Party (PPP) tally stood at 43, Pakistan’s Election Commission said.
The Opposition — ranging from the PPP and the PML(N) to the religious parties grouped under the Muttahida Majlis-e-Amal (MMA) — have questioned the results as having been rigged and manipulated.
Nearly 48 hours after polling, an election commission official said the turnout for the National Assembly stood at 51.85%, three percentage points lower than in 2013.
The election was overshadowed by restrictions on freedom of expression and while voting was transparent, counting was “somewhat problematic” with staff not always following procedures, the 120-strong EU observer mission said.
In an editorial, the Karachi-based Dawn newspaper wrote: “The shocking mismanagement of the process of counting votes and announcing results at the polling station has made it necessary that the entire ECP [Election Commission of Pakistan] senior leadership resign after the election formalities are completed and a high-level inquiry be conducted at the earliest.”
Mr. Khan is, however, set to be sworn in as Prime Minister with the support of allies and Independents.
Independents are reported to have won 12 seats while the Muttahida Qaumi Movement-Pakistan (MQM-P), a potential PTI ally, has five. The new National Assembly is expected to meet by August 15.
Interestingly, Mr. Khan won all five of the seats he contested while Bilawal-Bhutto Zardari, Maulana Fazlur Rehman (Jamiat Ulema-e Islam-F), Asfandyar Wali (Awami National Party) lost in their traditional strongholds. Mr. Bilawal Bhutto, however, won in the traditional family constituency of Larkana while PML-N leader Shahbaz Sharif managed to win only one of the four seats he contested.
Pakistan also elected it’s first-ever Hindu from a general seat on the PPP ticket since non-Muslims were allowed to contest and vote in general seats in 2002. Mahesh Kumar Malani won the Tharparkar-II seat in Sindh province.
Roshan Pakistan Polling Agency estimated that a new, hardline religious party, the Tehreek-e-Labbaik, managed an 8-10% share of the vote in Punjab, causing the PML-N a staggering 14 National Assembly seats.
In the key province of Punjab, both the PML-N with 127 seats and PTI with 123 seats had said they would stake claim to form the government in a 297-member House. The PPP however, managed only six seats.
इमरान के प्रधान मंत्री घोषित होते ही जैश का 15 एकड़ में फैला जिहादी सेंटर सुर्खियों में
/0 Comments/in CHANDIGARH, DELHI, GUJRAT, NATIONAL, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, STATES, TRICITY, WORLD/by Demokratic Front Bureauसेंटर में हजारों बच्चों को जिहाद के लिए कुर्बानी देने की ट्रेनिंग दी जाएगी. पंजाब सूबे के बहावलपुर के बाहरी इलाके में बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही है.
जब यह सर्वमान्य है कि आईएसआई ओर सेना ने मिल कर इमरान खान को एक कठपुतली प्रधान मंत्री बनाया है वहीं एक ओर यह भी सबको मालूम हो कि जैश ने इमरान की पख्तूनवा में बहुत मदद की ओर आईएसआई के साथ मिल कर नवाज़ को देश ओर इस्लाम का द्रोही तक करार दे दिया। अब इमरान के इन एहसानों का मूल्य चुकाने की बारी है।
यह आईएसआई ही है जो इस समय sikh referendum 2020 के पीछे है। आईएसआई के 12 मोड्युल्स इंग्लैंड मे स्क्रिय हो कर इस referendum 2020 के लिए काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इसी referendum के बहाने आईएसआई पंजाब में एक बार फिर आतंकवाद को हवा दे रही है।
इमरान खान पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
नवाज़ में इच्छाशक्ति तो थी यहाँ तो धारा ही उल्टी बह रही है।
आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद पाकिस्तान के बहावलपुर में 15 एकड़ में गुपचुप ट्रेनिंग सेंटर बना रहा है. इस सेंटर में हजारों बच्चों को जिहाद के लिए कुर्बानी देने की ट्रेनिंग दी जाएगी. पंजाब सूबे के बहावलपुर के बाहरी इलाके में बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही है. तस्वीरों से पता चलता है कि नई बिल्डिंग जैश के वर्तमान मुख्यालय से पांच गुना बड़ी होगी. तीन महीनों से इसका निर्माण कार्य चल रहा है.
देश में इमरान खान के उभरने और बाद में उनके चुनाव जीतने के समय में इस बिल्डिंग को बनाया जाना केवल एक संयोग नहीं हो सकता. जैश ने चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ को समर्थन दिया और नवाज शरीफ के खिलाफ जमकर प्रचार किया था. जैश ने शरीफ को पाकिस्तान व इस्लाम का गद्दार करार दिया था. सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, बहावलपुर कॉम्प्लैक्स के लिए सीधे मसूद अजहर ने जमीन खरीदी है. जिस जगह जमीन खरीदी गई है वहां 80 से 90 लाख प्रति एकड़ के भाव हैं.
इस जगह को देखने वाले सूत्रों ने बताया कि इसमें रसोई, मेडिकल सुविधाएं और कमरे और जमीन के नीचे भी निर्माण किया जा रहा है. माना जा रहा है कि यहां पर इंडोर फायरिंग रेंज भी बनाई जाएगी. स्विमिंग पूल, तीरंदाजी रेंज और खेल का मैदान भी तैयार किया जाएगा.
कॉम्प्लैक्स बनाने के लिए हज जाने वाले यात्रियों से नकद पैसे लिए गए. 2017 में जमीन मालिकों से उशर के सहारे भी मदद ली गई. उशर फसल उत्पादन पर लगने वाला सरचार्ज होता है जो शहीदों, धार्मिक लड़ाकों की मदद के लिए लिया जाता है. अल रहमत नाम के ट्रस्ट के जरिए उशर देने का आह्वान किया गया था.
जैश के स्थानीय नेताओं ने पंजाब में मस्जिदों के लिए पैसे उगाहे. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पैतृक शहर रायविंड के पास पट्टोकी में रूक-ए-आजम मस्जिद में मौलाना अमार नाम के एक जैश नेता ने लोगों से पैसों की मदद करने का आह्वान करते हुए कहा था, ‘जिहाद शरिया का आदेश है.’
बता दें कि जैश ए मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर भारत की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल है. वह 2001 संसद हमले और 2016 पठानकोट हमले का मास्टमाइंड है. भारत उसे वैश्विक आतंकी बनाने के लिए कोशिशें कर रहा है लेकिन चीन इसमें रोड़े अटका रहा है. नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री रहते हुए अजहर को गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे. सूत्रों का कहना है कि अब सरकार बदलने के बाद जैश पहले से ज्यादा सक्रिय हो सकता है.
इमरान की बातों से अधिक उसके काम पर हो पैनी नज़र
/0 Comments/in DELHI, GUJRAT, NATIONAL, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, STATES, WORLD/by Demokratic Front Bureauपाकिस्तान के साथ आसानी से शांति की कल्पना ने पहले ही बहुत जानें ले ली हैं. इसलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ दां, नए प्रधानमंत्री की बातों में आने का वक्त नहीं है
विदेश मामलों के विशेषज्ञों का, अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खासा दबाव रहेगा कि वे पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ भारत-पाक रिश्तों पर बातचीत के लिए पहल करें. वो बातचीत फिर से शुरू करें, जो कभी रुक गई थी. तर्क दिए जाएंगे कि क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान के भारत में कई लोगों के साथ बहुत गर्माहट भरे रिश्ते हैं. साथ ही इमरान को पाक जनरलों का वरदहस्त भी प्राप्त है.
भारत के वे आशावादी, जिन्हें इमरान खान के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद, पाक से बड़ी उम्मीदें हैं, नहीं समझ पा रहे हैं कि दरअसल इन चुनावी नतीजों के मायने भारत के लिए क्या हैं. दरअसल कुछ नया नहीं होने जा रहा. प्रधानमंत्री इमरान खान के कुर्सी संभालने पर, कश्मीर को लेकर वही छोटी-मोटी लड़ाइयां जारी रहेंगी, जो अब तक होती रही हैं. दशकों से भारत-पाक रिश्तों में यही होता आया है. इन सबके अलावा राजनैतिक अस्थिरता भी बढ़ेगी, जो पाकिस्तान में धार्मिक रूप से कट्टर लोगों की ताकत और बढ़ाएगी. लिहाज़ा हमारे प्रधानमंत्री को चाहिए कि भारत की सीमाएं खोलने के बजाय, सरहदों पर सुरक्षा और मजबूत करें.
इमरान के कहने को तो अच्छी बातें लेकिन…
ये सच है कि इमरान खान के पास भारतीयों के बारे में कहने के लिए कुछ ‘अच्छी’ बातें हैं. हालांकि भारत के प्रति नवाज शरीफ की नीति पर अपने चुनाव प्रचार के वक्त वे जमकर बरसते रहे हैं. लेकिन सीएनएन-आईबीएन को 2011 में दिए एक इंटरव्यू में इमरान खान ने कहा था, ‘मैं हिंदुस्तान के प्रति नफरत लिए हुए पला-बढ़ा हूं. लेकिन जैसे-जैसे मैं भारत में और घूमा, मुझे लोगों का इतना प्यार मिला कि मैं वो सब भूल गया.’ अपने चुनाव प्रचार के बीच में भी उन्होंने कहा, ‘हमें भारत के साथ अमन और चैन रखना होगा क्योंकि कश्मीर के मुद्दे पर पूरा उपमहाद्वीप बंधक बना पड़ा है.’
आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर इमरान खान मुहावरों के मुलम्मे में लिपटी भाषा में भारत के प्रति कुछ न कुछ अच्छी बात ज़रूर कहेंगे. ज़ाहिर है उसके बाद लोग प्रधानमंत्री मोदी से भी मांग करने लगेंगे कि वे इमरान की बात के जवाब में दोस्ती का हाथ बढ़ाएं.
ये भी सच है कि इमरान खान जो भी कहेंगे, वह पूरी तरह बेतुकी बात ही होगी. पाकिस्तान में, विदेशी मामलों की जानकार आयेशा सिद्दीका कहती हैं, ‘लोकतांत्रिक शासन का मतलब ये नहीं है कि सुरक्षा और कूटनीति पर से पाक फौज अपना नियंत्रण छोड़ देगी. अफगानिस्तान, काफी हद तक ईरान भी, भारत, चीन और अमरीका पहले से ही रावलपिंडी में आर्मी जनरल हेडक्वार्टर्स के हितों को लेकर कड़ी आलोचना करते रहे हैं. अब ये मामले तो ऐसे हैं कि इन पर कोई समझौता नहीं हो सकता.’
नवाज शरीफ और जरदारी का उदाहरण ले लीजिए
2013 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज़ शरीफ ने सीएनएन-आईबीएन को दिए एक इंटरव्यू में वादा किया था कि वे हर वह काम करेंगे जो एक भारतीय उनसे उम्मीद करता है. उन्होंने कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण हल निकालने की बात कही और वादा किया कि वो पूरी कोशिश करेंगे कि भारत के खिलाफ आतंक फैलाने की किसी भी कोशिश को वे पाक धरती पर फलने-फूलने नहीं देंगे. उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की बात भी कही थी. उन्होंने ये भी वादा किया था कि वे मुंबई के 26/11 हमले में आईएसआई का हाथ होने के आरोपों की भी जांच करवाएंगे. वादा ये भी था कि करगिल युद्ध के सभी रहस्यों पर से वे पर्दा भी उठाएंगे.
शरीफ को ये श्रेय तो देना होगा कि उन्होंने जो भी कहा, उसे करने की भी पूरी कोशिश की. 2014-15 में कश्मीर में भारतीय सेना पर जिहादी हमलों में कमी आई. इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी गुटों की लगाम उन्होंने खींच कर रखी. उन्होंने खुलकर कहा कि पठानकोट पर हुए हमले का ज़िम्मेदार जैश-ए-मोहम्मद है.
लेकिन आखिर में हुआ क्या, सबको पता है. पाक फौज ने शरीफ पर उलट वार किया, पद से हटाए गए नवाज शरीफ के खिलाफ मैच फिक्स किया और जैसा कि पाकिस्तान के कानून विशेषज्ञ बब्बर सत्तार कहते हैं, ‘शरीफ की निष्ठा के बारे में कोई कुछ भी कहे, उनके खिलाफ जो मुकदमा चला, वह कानूनी तौर पर बहुत लचर और कमज़ोर मामला था.’
लेकिन नवाज़ शरीफ का तख्ता पलट कोई नई बात नहीं. याद करें, 2008 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने ऐलान किया था, ‘भारत कभी भी पाकिस्तान के लिए ख़तरा नहीं रहा.’ उन्होंने कश्मीर के इस्लामी घुसपैठियों को आतंकवादी बताया और कहा कि उम्मीद की कि भविष्य में पाकिस्तान की सीमेंट फैक्ट्रियां भारत की बढ़ी ज़रूरतों की पूर्ति करेंगी. पाकिस्तानी बंदरगाहों की वजह से भारत के भरे पड़े बंदरगाहों की मदद भी हुई. ज़रदारी ने ये भी ऐलान कर दिया था कि उनकी योजना जल्दी ही कुख्यात आईएसआई पर से फौज का नियंत्रण हटाने की है.
जांच से पता चलता है कि ये वही वक्त था जब अजमल कसाब और लश्कर-ए-तैयबा के उसके 9 साथी 26/11 हमले की तैयारी कर रहे थे. और ये हमला आईएसआई की ओर से संदेश था कि पाकिस्तान को वही चलाते हैं, कोई और नहीं.
इससे पहले फरवरी, 1999 में नवाज़ शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर घोषणापत्र पर दस्तखत किए थे, जिसके मुताबिक दोनों देशों ने वादा किया था कि शिमला समझौते को शब्दश: लागू किया जाएगा. हम सब जानते हैं कि तब क्या हुआ. इधर लाहौर घोषणापत्र पर दस्तखत हो रहे थे और उधर पाकिस्तानी फौजें लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करने की तैयारी कर रही थीं.
पाकिस्तानी फौज के अस्तित्व का संकट है भारत
पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी शुरुआती नीति यही थी कि बातचीत और व्यापार और आर्थिक संबंधों के बढ़ने पर संबंधों में नरमी आएगी. इस बात पर किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि मोदी की ये खुशफहमी, पठानकोट हमले और लाइन ऑफ कंट्रोल के पार हुए हमलों के बाद ग़लतफहमी में बदल गई. ये सोच कि बातचीत जारी रहने से संकट से बचा जा सकता है, बस दिखने में हसीन है, असलियत में एकदम निराधार. इतिहास गवाह है कि 1914 की शुरुआत में यूरोप आर्थिक और कूटनीतिक रूप से जितना एकीकृत था, उतना पहले कभी नहीं. यहां भी मामला मामला वही है.
सेना की जानकार सी क्रिस्टाइन फेयर ने कहा था कि फौज एक ऐसा समुदाय है जिसके पास बहुत ज्ञान होता है और उनका फैसला लेने का तरीका अपने पूर्ववर्तियों से सीखा हुआ होता है. भारत से पाकिस्तान के रिश्ते अगर सामान्य हुए तो ये पाकिस्तानी फौज के लिए अस्तित्व का संकट ले आएगा. पाकिस्तानी फौज की नींव ही इस मिथक पर रखी गई है कि अपने से बड़े और ताकतवर पड़ोसी के खिलाफ युद्ध ही पाकिस्तानी फौज के अस्तित्व की वजह है. इससे पाक फौज, हिंदू भारत के खिलाफ इस्लामिक पाकिस्तान के रक्षक की भूमिका में दिखता है. और आसान तरीके से कहें तो, भारत-पाक के बाच शांति कराकर पाकिस्तानी सेना खुद को खत्म नहीं करना चाहती.
सच्ची बात तो ये है कि भारत के पास कोई विकल्प नहीं है. भारत-पाकिस्तान की बात करें तो भारत को सबसे बड़े फायदे युद्ध से ही हुए हैं, बातचीत से नहीं. नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम हो या 2003 के बाद कश्मीर में हिंसा में आई कमी की बात, ये सब 1999 के करगिल युद्ध के बाद ही मुमकिन हो पाया. 2001-02 में भी दोनों देश युद्ध के करीब आ गए थे. लड़ाई आसन्न थी और ये एक ऐसा संकट था जिसे झेलना भारत के लिए तो मुश्किल होता, लेकिन पाकिस्तान तो टूट ही गया होता.
लेकिन ये रास्ते भारत के हितों के मुताबिक नहीं हैं. जो संभावित खतरे हैं, वे बहुत ज़्यादा बड़े हैं. ‘राष्ट्रवादियों के गर्व’ की बात परे रखें तो ये सच है कि 2016 में भारतीय सेना के सीमा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक करने के बाद, कश्मीर में हिंसा की वारदातें बढ़ी हैं. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद के हफ्तों में पाकिस्तान की ओर से जिहादी हमले और तेज़ हुए और तब से लेकर अब तक वारदातें रुकी नहीं हैं. 2001-02 में आई युद्ध की स्थिति का विश्लेषण करें तो ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान को अपनी फौजें पीछे हटाने के लिए बाध्य किया जा सकता है. लेकिन भारत के कूटनीतिक प्रतिष्ठान मानते हैं कि इसके लिए हमारे देश को जो कीमत चुकानी पड़ेगी, वो बहुत ज़्यादा है.
किसी खुशफहमी में न रहें पीएम मोदी
ज़िंदगी की तरह ही राजनीति में भी इससे ज़्यादा बढ़िया सलाह नहीं हो सकती कि अगर कोई चीज़ इतनी अच्छी लगे कि वो सच से परे है, तो ये मान लेना चाहिए कि वो झूठी है. इंग्लैंड में पढ़ा, खूबसूरत क्रिकेट स्टार, जो अब पाकिस्तान पर राज करेगा, पाकिस्तान को नॉर्थ यूरोपियन वेलफेयर स्टेट की तरह एक इस्लामिक मुलम्मे में लिपटा वेलफेयर स्टेट बनाना चाहता है. भारत में भी ऐसे एलीट लोग हैं जो चाहते हैं कि हमारे यहां भी कोई ऐसा ही नेता कुर्सी पर बैठे. बहरहाल, इमरान खान भारत-पाक दोस्ती के हरकारे या शांतिदूत नहीं हैं.
भारत के पास अब भी वही पुराना विकल्प सबसे अच्छा है. बगैर युद्ध की स्थिति लाए, आतंकविरोधी क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान देना, कश्मीर में राजनैतिक संकट का हल निकालना क्योंकि सूबे में हिंसा वहीं से पनप रही है, पाकिस्तान समर्थित आतंक से निपटने के लिए दूसरे सैन्य तरीकों का विकास, ये ही वे तरीके हैं जिन पर भारत को ध्यान देना होगा.
इन सब कामों के लिए वक्त और मेहनत दोनों चाहिए. वे काम, राजनेताओं के काम और वादों की तरह लुभावने नहीं हैं कि अपने वोटर्स को हर बार नया खिलौना देकर बहला लिया जाए. पाकिस्तान के साथ आसानी से शांति की कल्पना ने पहले ही बहुत जानें ले ली हैं. इसलिए अब पाकिस्तान के अंग्रेज़ दां, नए प्रधानमंत्री की बातों में आने का वक्त नहीं है.
हाफ़ीज़ का हाफ़िज़ खुदा
/0 Comments/in DELHI, GUJRAT, JAMMU & KASHMIR, NATIONAL, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, STATES, WORLD/by Demokratic Front Bureauआतंकी हाफिज सईद का दावा था कि उसके सभी प्रत्याशी इन चुनावों में जीतेंगे, लेकिन पाकिस्तान की जनता ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया
जब पाकिस्तान में चुनाव आईएसआई ओर आर्मी करवाती है तो आतंकी हाफिज़ की वास्तविक स्थिति विचारणीय है
आतंकी हाफ़ीज़ को पाकिस्तानी आवाम ने नकार दिया है तो फिर वह कौन हैं जो इसकी मजलिसों में जा कर अल्लाह – ओ – अकबर के नारे लगाते हैं
साल 2008 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड और जमात-उद-दावा चीफ हाफिज सईद को पाकिस्तान आम चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है. आतंकी हाफिज सईद की पार्टी अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक (एएटी) के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं. हाफिज सईद ने 260 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.
इस चुनाव में हाफिज का बेटा और दामाद भी किस्मत आजमा रहा था. लेकिन दोनों अपनी-अपनी सीट बुरी तरह से हार गए. बेटा हाफिज तल्हा सईद लाहौर से 200 किलोमीटर दूर सरगोधा सीट से चुनाव लड़ रहा था. हाफिज सईद यही का रहने वाला है.
आतंकी हाफिज सईद का दावा था कि उसके सभी प्रत्याशी इन चुनावों में जीतेंगे. लेकिन पाकिस्तान की जनता ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया. हाफिज सईद ने लोगों से अपील कि थी कि वो ‘पाकिस्तान की विचारधारा’ के लिए मतदान करे.
हाफिज सईद ने मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) के बैनर तले अपने प्रत्याशियों को मैदन में उतारा था. लेकिन बाद में चुनाव आयोग की ओर से मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था. इसके बाद हाफिज सईद ने अल्लाह-ओ-अकबर के बैनर तले अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा.
जमात-उद-दावा को अमेरिका ने जून 2014 में आतंकी संगठन घोषित किया था. ये संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था जिसने साल 2008 में मुंबई हमले को अंजाम दिया था. अमेरिका ने सईद पर एक करोड़ डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है.
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ …आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दा: दुष्यंत कुमार
/0 Comments/in CHANDIGARH, DELHI, HARYANA, HIMACHAL, MOHALI, NATIONAL, OPINION, PAGE 3, PANCHKULA, POLITICS, PUNJAB, RAJASTHAN, STATES, TRICITY, UTTAR PRADESH/by Demokratic Front Bureauबात दो जून की रोटी की नहीं रही क्योंकि इन बच्चियों के पास रोटी के दो निवाले भी नहीं थे
काम की तलाश में पिता घर से बाहर था. मां को होश नहीं था और भूख उसके तीन मासूमों को ‘निवाला’ बनाने में जुटी हुई थी. दिल्ली के एक मोहल्ले में बंद कमरे से तीन बेटियों के शव बरामद हुए. न तो उनके शरीर पर चोट के निशान थे और न ही उन्होंने जहर खाया था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में जो सच सामने आया उससे सरकारें ही नहीं बल्कि दिल्ली और हम सब शर्मसार हुए हैं. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कहती है कि ये तीन बच्चियां 8 दिनों से भूखी थीं और इन्हें भूख ही खा गई. बात दो जून की रोटी की होती है लेकिन इन बच्चियों के पास रोटी के दो निवाले भी नहीं थे.
दिल्ली यानी राजधानी ही नहीं बल्कि वो शहर जिस पर देश-दुनिया की नजर होती है. यहां की छोटी सी खबर भी देश के लिये बड़ी होती है. दिल्ली के मायने सिर्फ राजधानी तक ही सीमित नहीं. चकाचौंध, ग्लैमर, सियासत की उठापटक का शहर, तरक्की की रफ्तार के साथ तेज भागती जिंदगी और बड़े चेहरों-बड़े नामों से अपनी पहचान बनाने वाली ऐतिहासिक दिल्ली में मासूमों की मौत ने ये साबित कर दिया कि यहां किसी कोने में छुपा अंधेरा कितना स्याह है.
कहां गईं वो कैंटीन जो गरीबों को मुफ्त खाना देने का एलान करती हैं. कहां गई राशन की वो व्यवस्था जो हर परिवार को मुफ्त अनाज देने का दावा करती है. ये कितना शर्मनाक है कि गरीबों के लिये तमाम सरकारी योजनाओं को लागू करने का केंद्र कहलाने वाली दिल्ली में बेटियां भूख से मर जाती हैं और किसी को पता तक नहीं चलता है कि बच्चियां 8 दिनों से भूखी थीं.
डिजिटल इंडिया के दौर में देश को दुनिया के कोने-कोने से कनेक्ट करने की कोशिश की जा रही है और समाज अपने ही मोहल्ले में इस कदर कटा हुआ है कि उसे खबर ही नहीं कि 3 बच्चियां 8 दिनों से भूखी हैं.
इसी दिल्ली में एक सीजन में लाखों शादियां होती हैं जो रिकॉर्ड बनाती हैं. लाखों रुपये का खाना बर्बाद होता है. इसी जगमगाती दिल्ली की चकाचौंध में गरीब बस्तियों के बंद कमरे में भूखे पेट सोने वाले झूठी उम्मीद के साथ सुबह का इंतजार कर रहे होते हैं.
ये सिर्फ दिल्ली के मंडावली की कहानी नहीं है. ये समाज के राजनीति के संवेदनहीन होने के चलते देश के कई इलाकों की हकीकत है. इससे पहले झारखंड के सिमडेगा में एक 11 साल की बच्ची की भूख से मौत हो गई थी. बच्ची के परिवार को अनाज इसलिये नहीं मिल सका था क्योंकि उसके राशन कार्ड से आधार कार्ड लिंक नहीं था. दोनों ही घटनाओं का लिंक भूख से है. यहां न राशन कार्ड था और न बनाने को राशन.
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
सियासत सवाल उठा रही है दिल्ली सरकार पर. सवाल उठ रहे हैं सीएम केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर. दिल्ली सरकार पर आरोप है कि वो फ्री पानी और फ्री वाईफाई तो दे सकती है लेकिन उसकी हुकूमत में मासूम भूख से मर रहे हैं. सवाल दिल्ली सरकार की तरफ से भी उठ रहे हैं कि उनकी डोर स्टेप राशन व्यवस्था ऐसी ही घटनाओं को रोकने के लिये है ताकि कोई भूख से न मरे.
सियासत आरोपों में उलझी हुई है और योजनाओं के फाइलों में फंसे होने की दलील दी जा रही है तो गरीबों के राशन कार्ड, बीपीएल कार्ड, पेंशन कार्ड जैसे न मालूम योजनाएं के कितने कार्ड न बनने के आरोप लग रहे हैं.
लेकिन बंद कमरों में भूख से बेटियों की मौत पर समाज के ठेकेदार मौन धरे हुए हैं. ये लोग उसी समाज का हिस्सा हैं जो कभी आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर संग्राम छेड़ देते हैं तो कभी जाति और मजहब के नाम पर सड़कों पर आक्रोश दिखाते हैं. लेकिन ऐसी संवेदनशील घटनाओं पर चुप्पी मार जाते हैं. अपने ही इलाकों में आपस में अंजान रहने और खुद में सिमटे रहने की आदत ही भावनात्मक रूप से शून्य बनाने का काम कर रही है.
मशहूर शायर दुष्यंत कुमार ने लिखा था कि, ‘ इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात….अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां.’
मंडावली की ये घटना आज के संवेदनहीन समाज के आइने का असल अक्स है जिसमें सिर्फ अपना पेट और अपनी जेब की फिक्र में इंसान इंसानियत से कटता दिखाई दे रहा है.
तीन बेटियों की दर्दनाक मौत हो गई. सिस्टम और समाज की संवेदनहीनता के चलते बेटियां बचाईं नहीं जा सकी. भूख से मौत की बेबसी आत्मा को झकझोर कर रख देती है. ये शर्मसार कर जाती है उन सियासी और गैर-सियासी लोगों को जो अपने अपने स्वार्थ में डूबे हैं. इस मौत के जिम्मेदार हम सब ही हैं. भले ही हम सरकार पर उंगली उठा कर खुद को मुंसिफ करार देने की कोशिश करें.
दलील दी जा रही है कि किसी को पता नहीं था कि बच्चियां भूखी हैं. ये दलील सही भी है. किसी को वाकई नहीं मालूम कि इस देश का एक तबका भूखे पेट ही सोता है. न ये सरकारों को अहसास है और न ही समाज के लोगों में ये अहसास जग सका है. समाज इसी तरह सोता रहेगा तो न किसी को भूख से मौत की खबर होगी और न फिर कभी फर्क ही पड़ेगा.
ऐसे ही संवेदनहीन हालातों को देखकर दुष्यंत ने ये भी कहा था, ‘ भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ …आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दा.’
Recent News
- राशिफल, 22 नवंबर 2024
- पंचांग, 22 नवंबर 2024
- 14वां चंडीगढ़ राष्ट्रीय शिल्प मेला 29 नवंबर से
- विधानसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस के झूठ का गुब्बारा फोड़ा
- एसडी कॉलेज के दो खो-खो खिलाडी इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप के लिए चयनित
- श्री गुग्गा माड़ी मंदिर सोसाइटी की नई कमेटी का गठन
- डेमोक्रेटिक भारतीय लोक दल
- Police Files, Pnchkula – 21 November, 2024
- अंबाला जेल अधीक्षक सतविंदर ने जेल रोड बंद की हुई है
- P.G.H., Mohali Announces Launch of IMARS