घनश्याम तिवारी ने दिया इस्तीफा, बने भारत वाहिनी पार्टी

वसुंधरा राजे और घनश्याम तिवारी

 

राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से नाराज चल रहे बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता घनश्याम तिवारी ने सोमवार को पार्टी से इस्‍तीफा दे दिया है। उन्‍होंने अपना इस्‍तीफा बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह को भेजा है। 5 बार से विधायक तिवारी ने अपना इस्‍तीफा ऐसे समय पर दिया है जब दो दिन पहले ही उनके बेटे अखिलेश ने भारत वाहिनी पार्टी नाम से अलग पार्टी बनाई है।

घनश्‍याम तिवारी ने कहा कि बीजेपी ने अगर वसुंधरा राजे को सीएम पद से नहीं हटाया तो अगले चुनाव में पार्टी को बुरी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। तिवारी ने दावा किया कि वसुंधरा राजे सिंधिया तानाशाह की तरह काम कर रही हैं। पार्टी के पदों को बाहरी लोगों से भरा जा रहा है। इससे पार्टी के कार्यकर्ता निराश हैं। चुनाव से ठीक पहले तिवारी के पार्टी छोड़ने से बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। तिवारी सांगनेर विधानसभा सीट से विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वह 60 हजार से अधिक वोटों से जीते थे।

उधर, घनश्याम तिवारी के बेटे अखिलेश तिवारी ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में हिस्‍सा लेगी। अखिलेश ने कहा कि भारत वाहिनी पार्टी राज्‍य की 200 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयारी करेगी। तीन जुलाई को पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की पहली बैठक आयोजित करने जा रही है। इस बैठक में 2000 कार्यकर्ता हिस्‍सा लेंगे। अखिलेश ने बताया कि हरेक विधानसभा सीट से 10 प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है।

उन्‍होंने बताया कि दीन दयाल वाहिनी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और प्रतिनिधि भी नई पार्टी में शामिल होंगे। बता दें, दीन दयाल वाहिनी की स्‍थापना घनश्‍याम तिवारी ने की थी। चुनाव आयोग ने भारत वाहिनी पार्टी को रजिस्‍टर कर लिया है और विधानसभा चुनाव में उम्‍मीदवार उतारने की अनुमति दे दी है। अखिलेश ने 11 दिसंबर 2017 को पंजीकरण के लिए आवेदन किया था।

आम आदमी खुश हुआ, दिल्ली में अब नहीं कटेंगे पेड़


  • पेड़ कटाई मामले पर विवाद खड़ा होने के बाद एनजीटी इस पर 2 जुलाई को सुनवाई करेगा
  • क्या किसी भी प्रकार के विकास के नाम पर पेड़ों का काटना ही एक मात्र विकल्प है?
  • क्या हम पेड़ों का स्थानान्त्र्ण नहीं कर सकते?
  • क्या हमारे हॉर्टिकल्चर विभाग के लोग इस कार्य में दक्ष नहीं हैं?

दक्षिण दिल्ली के कई इलाकों में मकान बनाने के नाम पर सरकारी विभाग द्वारा 16 हजार पेड़ों की कटाई का मामला तूल पकड़ने लगा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए 4 जुलाई तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दिया है.

कोर्ट ने 4 जुलाई को इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख मुकर्रर की है.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कोर्पोरेशन (एनबीसीसी) से पूछा कि- क्या दिल्ली सड़कों के और इमारतों के विकास के लिए पेड़ों की कटाई की कीमत चुका सकता है? इसपर एनबीसीसी की ओर से कहा गया कि एनजीटी में ये मामला बहुत साल चला और अंत मे एनजीटी ने पेड़ काटने की अनुमति दे दी.

एनबीसीसी और पीडब्ल्यूडी ने कोर्ट को आश्वासन दिया है कि अगली सुनवाई तक वो पेड़ों को नहीं काटेंगे.

आम आदमी, अपनी सरकार के फैसलों पर रोक से खुश अब पेड़ नहीं कटेंगे

बता दें कि वकील के के मिश्रा ने पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की थी. मिश्रा ने कहा कि सरकार दक्षिण दिल्ली में 20 हजार से भी ज्यादा पेड़ों को काटना चाहती है.

उन्होंने सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली में 9 लाख पेड़ों की पहले से कमी है.

वहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) 2 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगा.

बयान विवादित है


हरियाणवी डांसर और लोक गायक सपना चौधरी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकती है


हरियाणवी डांसर और लोक गायक सपना चौधरी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकती हैं। बीते शुक्रवार को सपना चौधरी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी से मुलाकात करने दिल्ली पहुंचीं थी। सपना चौधरी के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद ने विवादित बयान दिया है। करनाल से सासंद अश्विनी कुमार चोपड़ा ने कहा कि कांग्रेस को देखना है कि उन्हें ठुमके लगाने वाले चाहिए या चुनाव जीतने वाला।
सासंद अश्विनी कुमार चोपड़ा ने कहा, कांग्रेस में ठुमके लगाने वाले जो हैं, वही ठुमके लगाएंगे, ये उनको देखना है कि ठुमके लगाने हैं या चुनाव जीतना है।
आपको बता दें कि 22 जून को सपना चौधरी कांग्रेस मुख्यालय गई थी और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से प्रभावित होने की बात कही थी। कांग्रेस मुख्यालय पहुंचने के बाद सपना ने संवाददाताओं से कहा था, मुझे सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी बहुत अच्छी लगती हैं। मैं उनसे मिलने पहुंची थी लेकिन उनसे नहीं मिल पाई। जल्द ही मैं उनसे मिलूंगी।

आरक्षण विरोधी ताकतों के साथ मिल कर लड़ेगे चुनाव : सपाक्स

सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स)


मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.


दिल्ली के आईएएस अधिकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है लेकिन, मध्यप्रदेश के अफसर पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे के खिलाफ राजनीति के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. पिछले दो साल से पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स) ने अगले विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.

अनारक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारी के संगठन के इस ऐलान से साल के अंत में होने वाले विधानसभा के चुनाव में जातिवादी राजनीति के हावी होने की संभावना बढ़ गई है. सपाक्स समाज से कई आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी जुड़े हुए हैं. संगठन का राजनीतिक स्वरूप होने पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आचरण संहिता से बचना मुश्किल होगा.

पिछले ड़ेढ दशक से कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहने की मुख्य वजह पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था रही है. वर्ष 2002 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कानून बनाया था. पदोन्नति में आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को ही दिया जाता है. पिछड़ा वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाता है. राज्य में पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में चौदह प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए बीस एवं जनजाति वर्ग के लिए सोलह प्रतिशत पद सरकारी नौकरियों में आरक्षित हैं. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कोई लाभ नहीं मिला था.

कांग्रेस बुरी तरह से चुनाव हार गई थी. भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह शासनकाल की याद दिलाकर वोटरों को बांधे रखने की लगातार कोशिश करती रहती है. विधानसभा एवं लोकसभा के पिछले तीन चुनावों में बीजेपी को इस मुद्दे पर सफलता भी मिलती रही है. लगभग दो साल पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के लिए बनाए गए कानून एवं नियमों को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया था.

 

इस निर्णय के खिलाफ सरकार के सुप्रीम कोर्ट में चले जाने से गैर आरक्षित वर्ग के सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी नाराज हैं. सपाक्स संगठन इसी नाराजगी से उपजा है. संगठन के सक्रिय होने के बाद राज्य के सरकारी क्षेत्र में आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच स्पष्ट विभाजन देखा जा रहा है. वर्ग संघर्ष की पहली झलक दो अप्रैल के भारत बंद के दौरान देखने को मिली थी. इस बंद के दौरान राज्य के कई हिस्सों में व्यापक तौर पर हिंसा भी हुई थी. इस आंदोलन में आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

आरक्षण के खिलाफ संख्या बल दिखाने के लिहाज से ही पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग को भी शामिल कर सपाक्स का गठन किया गया था. पिछड़ा वर्ग को हर स्तर पर चौदह प्रतिशत आरक्षण मिलता है. सिर्फ पदोन्नति में नहीं है. पिछड़ा वर्ग के अधिकारी एवं कर्मचारी आरक्षण समाप्त करने की मांग का समर्थन नहीं करते हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग अधिकारियों एवं कर्मचारियों का अपाक्स नाम से अलग संगठन भी है. संगठन के अध्यक्ष भुवनेश पटेल कहते हैं कि हम सपाक्स के साथ नहीं हैं. पटेल ने कहा कि सपाक्स के लोग भ्रमित दिखाई दे रहे हैं. वे क्या करना चाहते हैं, उन्हें पता ही नहीं हैं. सपाक्स के अध्यक्ष डॉ. केदार सिंह तोमर ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल आरक्षित वर्ग को नहीं छोड़ना चाहता है. सपाक्स ने चुनाव लड़ने का फैसला आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ लिया है.

डॉ.तोमर पशु चिकित्सा विभाग में हैं. उन्होंने बताया कि आरक्षण के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई सपाक्स समाज संगठन द्वारा लड़ी जाएगी. सपाक्स की उत्पत्ति पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ हुई थी, इस कारण इस संगठन को जमीनी स्तर पर सामान्य वर्ग का कोई खास समर्थन नहीं मिला. लिहाजा सपाक्स समाज नाम से अलग संगठन बनाया गया. इस संगठन में रिटायर्ड आईएएएस अधिकारी हीरालाल त्रिवेदी संरक्षक हैं. अन्य पदाधिकारी भी रिटायर्ड अधिकारी हैं. सपाक्स और सपाक्स समाज एक ही सिक्के दो पहलू हैं.

सपाक्स समाज के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं कि उन सभी राजनीतिक दलों से बात कर चनाव की रणनीति तय की जाएगी, जो आरक्षण व्यवस्था के विरोध में हैं. सवर्ण समाज पार्टी भी इनमें एक है. यह दावा भी किया जा रहा है कि रघु ठाकुर सपाक्स समाज का समर्थन कर रहे हैं. रघु ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं. रघु ठाकुर अथवा उनके दल की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दमोह में आरोप लगाया है कि बीजेपी ब्राहणों और दलितों को आपस में लड़ाने का काम कर रही है.

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें 148 सामान्य सीटें हैं. अनुसूचित वर्ग के लिए 35 और जनजाति वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. दोनों ही प्रमुख राजनीति दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा आरक्षित सीटों को अपनी झोली में ड़ालने की रणनीति बना रहे हैं. कांग्रेस बसपा और सपा से भी तालमेल की संभावनाएं तलाश रही है. पिछड़े वोटों को जाति के आधार साधने के लिए पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं.

आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस अभी साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इससे सामान्य वर्ग नाराज है. इस नाराजगी का लाभ सपाक्स राजनीति में उतरकर उठाना चाहता है. सपाक्स से जुड़े हुए अधिकांश लोग सरकारी नौकरी में हैं. सरकारी नौकरी में रहकर राजनीति नहीं की जा सकती. इस कारण ऐसे दलों से उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं भी तलाश की जा रही हैं, जो पहले से ही चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दल है. इसमें सवर्ण समाज पार्टी भी एक है. सपाक्स के श्री त्रिवेदी ने कहा कि संगठन को राजनीतिक दल के तौर पर पंजीयन कराने का फैसला सभी संभावनाएं टटोलने के बाद ही किया जाएगा.

राज्य में कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मण वोटों को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. पिछले पांच सालों में बीजेपी का ब्राह्मण नेतृत्व कमजोर हुआ है. कांग्रेस में भी दमदार ब्राहण नेताओं की कमी है. बीजेपी की आतंरिक राजनीति के चलते कई ब्राह्मण नेता नेपथ्य में चले गए हैं. सरकारी नौकरी में सामान्य वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या पांच लाख से भी अधिक है. अधिकारी एवं कर्मचारी भी सरकार से अनेक मुद्दों पर नाराज चल रहे हैं. प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष कमलनाथ कर्मचारी संगठनों से उनकी मांगों को लेकर बैठक भी कर चुके हैं.

कांग्रेस इस कोशिश में लगी हुई है कि किसी भी सूरत में सरकार विरोधी वोटों का विभाजन न हो. सपाक्स के उम्मीदवार यदि सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो वोटों का विभाजन भी होगा. सत्ता विरोधी वोटों के विभाजन की स्थिति में लाभ बीजेपी को होना तय माना जा रहा है. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.

सुशासन बाबु का जंगल राज


इस जवाब में कोई दम नहीं रह गया है कि आरजेडी के शासन काल को जंगल राज कहा जाता था. उस दौर की तुलना में अपराध कम ही हो रहे हैं. यहां तो तुलना नीतीश के पहले, दूसरे और तीसरे शासन के बीच हो रही है


अपराध के आंकड़े भले ही नीतीश कुमार को सकून दे रहे हों, पर राज्य के आम लोग इन दिनों सुशासन को पहले की तरह भरोसे के साथ नहीं देख पा रहे हैं. यह बेवजह नहीं है. कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जा रही हैं, जिसे देख-सुनकर सिहरन पैदा हो जाती है. कुछ दिन पहले गया में एक व्यक्ति की मौजूदगी में उसकी पत्नी और बेटी के साथ रेप की खबर आई. शुक्रवार को बेतिया में एक शिक्षक के सामने उनके इकलौते बेटे की हत्या कर दी गई.

ये ऐसी घटनाएं हैं, जिनके बारे में सोचकर ही धारणा बनती जा रही है कि अपराधियों के मन से पुलिस और कानून का डर जा रहा है. अगर ऐसा है तो यह नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती है. उन्हें याद होगा कि 2005 में राज्य की जनता ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया था, उस वक्त कानून का राज और सुशासन बड़ा चुनावी मुद्दा था. विकास का नंबर दूसरे पायदान पर था. शाम ढलने के बाद लोग घर से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझते थे. जिनके पास थोड़ी पूंजी थी और राज्य के बाहर कहीं कारोबार का विकल्प था, उन सबों का पलायन हो रहा था.

ताजा हाल यह है कि मुख्य विपक्षी दल आरजेडी अपराध को राजनीतिक मुद्दा बना चुका है. इस जवाब में कोई दम नहीं रह गया है कि आरजेडी के शासन काल को जंगल राज कहा जाता था. उस दौर की तुलना में अपराध कम ही हो रहे हैं. यहां तो तुलना नीतीश के पहले, दूसरे और तीसरे शासन के बीच हो रही है.

 

24 नवंबर 2005 को सत्ता में आने के तुरंत बाद नीतीश ने अपराधियों की नकेल कसनी शुरू कर दी. असर अगले दिन से दिखने लगा. वह डर जो आम लोगों के दिल में था, भागकर अपराधियों के दिमाग में पैठ गया. अपहरण के धन से अमीर बने कई सरगनाओं ने दक्षिण के राज्यों का रुख किया. उसी दौर में राजधानी सहित राज्य के दूसरे बड़े शहरों में रात की गतिविधियां शुरू हो गईं. होटल, रेस्तरां और आइसक्रीम पार्लर देर रात तक खुलने लगे. बदमाशों के डर से बंद सिनेमा के नाइट शो भी चालू हो गए. दूसरे राज्यों में भाग गए कारोबारी लौटने लगे.

अपराध कम हुए तो विकास भी शुरू हुआ. सड़क और बिजली की हालत सुधरने लगी. लगा कि सबकुछ ढर्रे पर आ गया. सरकारी अफसर भी चैन की सांस लेने लगे थे क्योंकि बदले हुए निजाम में राजनीतिक नेता-कार्यकर्ता के भेष में कोई आदमी इन अफसरों को डरा-धमका नहीं पा रहा था. उसके पहले के शासन में तो आइएएस अफसर तक की उनके चैंबर में ही पिटाई हो चुकी थी.

क्यों बढ़ रहा है अपराधियों का मनोबल

राहत की बात यह है कि कानून-व्यवस्था की हालत में गिरावट के बावजूद चीजें हाथ से बाहर नहीं निकल गई हैं. पड़ताल हो रही है कि नीतीश के पहले कार्यकाल में वह कौन सा कदम था, जिसने अपराध के ग्राफ को कम किया. इसका जवाब भी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है. नीतीश की टीम में उन दिनों अभयानंद जैसे काबिल आईपीएस अफसर को तरजीह मिली हुई थी. सीएम खुद पुलिस अफसरों के साथ बैठकर अपराध नियंत्रण की योजना बनाते थे. उसी बैठक में स्पीडी ट्रायल की योजना बनी थी. सरकार की सहमति पर इसे लागू किया गया. पुराने मामलों को खंगाल कर निकाला गया. स्पीडी ट्रायल की रफ्तार देखिए-2005-10 के बीच 52343 अपराधियों को सजा दी गई. इनमें पूर्व सांसद और विधायक भी थे. 109 को सजा ए मौत दी गई. करीब 20 फीसदी अपराधियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई.

स्पीडी ट्रायल ने अपराधियों के मन में यह खौफ पैदा कर दिया कि अगर अपराध करेंगे तो बच नहीं पाएंगे. परिणाम सामने था. 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए 243 में से 206 सीट पर काबिज हो गया. यह लालू प्रसाद की 1995 के चुनाव की ऐतिहासिक कामयाबी पर भारी पड़ा, जब एकीकृत बिहार की 324 सदस्यीय विधानसभा में 167 सीटों पर लालू को सफलता मिली थी.

भूल गए स्पीडी ट्रायल

2010 की जबरदस्त चुनावी कामयाबी ने नीतीश का आत्मविश्वास बढ़ाया. लेकिन, धीरे-धीरे अपराध नियंत्रण का दावा जमीन से अधिक जुबानी रह गया. उनके दूसरे कार्यकाल में, जिसमें कुछ महीनों के लिए जीतनराम मांझी सीएम बन गए थे, स्पीडी ट्रायल की रफ्तार बेहद धीमी हो गई. 2010-15 के बीच इसमें 60 फीसदी से अधिक की गिरावट आ गई.

यह समझने वाली बात है कि विकास की अपेक्षाकृत ठीकठाक गति के बावजूद नीतीश की चुनावी सफलताएं धीमी क्यों पड़ने लगीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बमुश्किल दो सीटों पर उनके उम्मीदवार की जीत हुई. 2015 का विधानसभा चुनाव, जिसे नीतीश कुमार के लोग अपनी सबसे बड़ी जीत समझते हैं, उसका विश्लेषण भी उनके हक में नहीं जा रहा है. 2010 में 115 सीट जीतने वाले नीतीश चुनाव मैदान में जाने से पहले ही 14 सीट गंवा चुके थे. यानी उन्होंने तालमेल के तहत अपनी जीती हुई ये सीटें दूसरे दलों के लिए छोड़ दी. 101 सीटों पर उनके उम्मीदवार खड़े हुए. 71 पर जीत हुई. इनमें से भी एक जोकीहाट की सीट उपचुनाव में आरजेडी के पास चली गई. पांच साल में वो 115 से 70 विधायकों की संख्या पर आ गए. यह कैसी उपलब्धि हुई.

अपराध बनेगा चुनावी मुद्दा

आरजेडी के कथित जंगलराज को कोसने और उसके नाम पर वोट लेने का टोटका शायद अब नहीं चल पाएगा. वे बच्चे जो 2005 में पांच-छह साल के रहे होंगे, वो नीतीश कुमार के राजकाज में ही जवान हुए. उन्हें आरजेडी के जंगलराज के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. इनके मन में अगर अपराध को लेकर कोई अवधारणा बनती है तो यह नीतीश की चुनावी सेहत के लिए ठीक नहीं होगी.

बेशक नीतीश की यह छवि कभी नहीं बन पाई कि उन्होंने अपराधियों को संरक्षण दिया या उन्हें अपनी मंडली में बिठाकर महिमामंडित किया. लेकिन, सकल परिणाम के तौर पर ऐसी छवि का चुनाव के दिनों में बहुत मतलब नहीं रह जाता है. खासकर उस हालत में जबकि उनके सुधार के अधिक फैसले रोजगार सृजन पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं और बेरोजगारों को अपराध करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.

शराबबंदी बहुत अच्छी चीज है. लेकिन, इसने लाख से अधिक लोगों को रातोंरात बेरोजगार कर दिया. वायदे के बावजूद उनके लिए रोजगार के वैकल्पिक उपाय नहीं किए गए. इसी तरह बालू कारोबार में माफियागिरी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का बुरा असर मजदूरों और छोटे कारोबारियों पर पड़ा है. ये

आंकड़े बस दिल को थोड़ी राहत दे सकते हैं कि 2005 में जब जंगलराज चरम पर था, 3428 लोगों की हत्या हुई थी और 2017 में सिर्फ 2803 लोग ही मारे गए. इस साल के मार्च तक पुलिस रिकॉर्ड के हत्या वाले कालम में 667 का आंकड़ा दर्ज है. आखिर कभी तो नीतीश अपने अफसरों को कहें कि शराब पकड़ने के अलावा भी कई काम हैं.

आम आदमी पार्टी के दावे और सच

पंचकूला,23 जून। आम आदमी पार्टी की जिला पंचकूला इकाई ने अपने हरियाणा जोड़ो अभियान के तहत आज शहर के वार्ड नंबर 13, बुढऩपुर, सकेतड़ी, चंडीकोटला, आशियाना  इंड्रिस्टियल एरिया तथा राजीव कालोनी में विशेष अभियान चलाया। पार्टी द्वारा कालका में भी यह अभियान चलाया जा रहा है।

जिला अध्यक्ष योगेश्वर शर्मा के नेतृत्व में पार्टी नेताओं ने विभिन्न सेक्टरों व गांवों में लोगों से निजी तौर पर मुलाकात कर उनकी समस्याएं सुनी तथा उन्हें हल करवाने के लिए उनकी मांगों को पूरे जोर शोर से उठाने का भरोसा भी दिया।

बाद में यहां जारी एक ब्यान में योगेश्वर शर्मा ने बताया कि यहां के लोगों ने उन्हें बताया कि वे लोग बिजली, पानी की मुख्य समस्याओं से तो जूझ ही रहे हैं साथ ही उन्हें अस्पतलों में से पूरी दवांए,राशन की दूकान से सस्ता अनाज,मिट्टी का तेल भी नहीं मिल रहा जोकि पहले मिल जाया करता था और भाजपा ने अपने चुनाव के दौरान इसे बढ़ाने का वायदा किया था। आज हालत यह है कि डिपूधारक कह देते हैं कि पीछे से ही नहीं आया या खत्म हो गया। योगेश्वर शर्मा ने बताया कि इन स्थानों में इन लोगों की सबसे बड़ी समस्या बेराजगारी की है। इन लोगों के पास काम तो है नहीं उपर से महंगाई की मार से ये लेाग और भी दुखी हैं।

आम आदमी द्वारा दिल्ली में किये गए काम

घर घर पानी पंहुचाया(आ आ पा)

 

दिल्लीवासियों के हक के लिए लड़ते हुए आ आ पा के कर्मठ कार्यकर्ता

 

दिल्ली वासियों के लिए गवर्नर के घर सोते हुए मुख्यमंत्री

योगेश्वर शर्मा ने इन्हें बताया कि दिल्ली की सरकार अपने वहां के लोगों को एक तय सीमा तक बिजली पानी निशुल्क देती है तथा शिक्षा और ईलाज भी निशुल्क करवा रही है। दूसरी ओर यहां आम आदमी बिजली की बढ़ी हुई दरों की वजह से तो परेशान है ही साथ ही बिजली निगम द्वारा वेबजह बड़ी बड़ी रकमों के भेजे जाने वेाले बिलों से भी तंग है। आए दिन उन्हें बिजली विभाग जाकर इसे ठीक करवाने के लिए अधिकारियेां की मिन्नतें करनी पड़ती हैं और कई कई बार तो अपनी बात मनवाने के लिए उनका लड़ाई झगड़ा भी हो जाता  है। बावजूद इसके उनकी बात नहीं सुनी जाती। योगेश्वर शर्मा ने बताया कि आम आदमी पार्टी हरियाणा गत महीने में हरियाणा जोड़ो अभियान के तहत हरियाणा की सभी 90 विधानसभाओं पर चुनाव लडऩे की घोषणा के साथ अपने संगठन लोकसभा संगठन मंत्री, जिला अध्यक्ष, विधानसभा संगठन मंत्री व हल्का अध्यक्ष के साथ प्रवक्ताओं के साथ गांव-गांव जाकर पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल द्वारा दिल्ली में किए गए जनकल्याणकारी ऐतिहासिक कामों को जन-जन तक पहुंचा रही है।  छोटे-छोटे नुक्कड़ सभाएं करके आम आदमी पार्टी की नीतियों का प्रचार भी कर रही है जैसे दिल्ली में किसान की फसल खराब होने पर 20,000 प्रति एकड़ मुआवजा, सैनिक के शहीद होने पर एक करोड़ की परिवार को आर्थिक सहायता, 20,000 लीटर पानी फ्री, बिजली के यूनिट,  सभी सरकारी अस्पताल में इलाज, दवाइयां व सभी प्रकार के मेडिकल टेस्ट जैसे एक्स-रे, सीटी स्कैन, एम आर आई, अल्ट्रासाउंड व खून की जांच मुफ्त की जाती है। आप के जिला पंचकूला के प्रधान योगेश्वर शर्मा ने आगे बताया कि दिल्ली में शिक्षा क्रांति के हुए  ऐतिहासिक कामों जैसे प्राइवेट स्कूल से बढिय़ा सरकारी स्कूलों के रिजल्ट, प्राइवेट स्कूलों की फीस न बढऩे देना व बढ़ी हुई फीस को वापिस करवाना आदि को भी आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता जन जन तक पहुंचा रहे हैं। इस अवसर पर उनके साथ पंचकूला के प्रधान सुशील मैहता,सुभाष अरोड़ा, मन्ना ङ्क्षसह और जतिंद्र,शिवम और संजू भी थे।

Ensured “14% girls in every programme” IIT JEE got 14 girls in top 500

IIT-Pune

 

A mere fourteen girls have made the cut to the top 500 ranks of the IIT-JEE Advanced exam, underscoring the gender divide in technical education at the elite IITs. The number of females rises to just 46 even when the list is expanded to the top 1,000 scorers (there were 68 girls on that list last year).

However, under the HRD ministry’s gender diversity plan, at least 8% more seats (800 in all) will be added to IITs this year to accommodate more girls, thus enhancing female representation in popular streams like computer science and electrical engineering. The seven older IITs will have 3% girls in computer science with the female-only seats.

IIT – Kanpur

Data from IIT-Kanpur shows 3,000-odd girls have been shortlisted by the Joint Admission Board from the top 24,500 ranks. Among the top 5,000 students, there are 410 girls, and in the top 10,000 ranks of the common rank list, there are 935 of them. Excluding the girls-only quota, the 23 IITs have 11,279 seats; the number of girls in the top 12,000 are about 1,202.

JEE chairman pointed out that mandatory reservation and addition of seats for girls was to ensure “14% girls in every programme”.

According to the IITs, female candidates are eligible for a seat from the female-only pool as well as the gender-neutral pool of a program. A female candidate will compete for a seat in the gender-neutral pool only if she fails to get a seat from the female-only pool.

IIT-Bihar

“But if you see the number of female candidates in the top ranks, they are very few and most will opt for the female-only pool to get into a popular course and a better institute,” said a faculty member from IIT Bombay.

Under business rules set by the IIT for seat allocation, the 800-odd seats for females will also follow reservation norms. For example, consider an OBC-NCL female candidate with a general rank. She will be first considered for a seat from the female-only pool of general seats followed by the gender-neutral pool of general seats for that program. If she does not make it, she will be eligible under the OBC category.

Several attempts have been made in the past to ensure a larger share of girls at the IITs. Even the admission form’s cost was reduced on the C N R Rao committee’s recommendations. But that did not boost the numbers.

Next year, according to the decision of the Joint Admission Board, more seats would be added to ensure that girls constitute 17% of total students. By 2020, the ministry aims to increase percentage of girl students at IITs to 20.

पंचांग

विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – उत्तर
ऋतु – वर्षा
मास – ज्येष्ठ (द्विoशुद्ध)
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वादशी
नक्षत्र – विषाखा
योग – सिद्ध
करण – बव

राहुकाल-
4:30PM – 6:00PM

🌞सूर्योदय – 05:25 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 19:24 (चण्डीगढ)
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🚩पर्व -🚩
हल्दी घाटी।

🚩दिवस-🚩
रानी दुर्गावती बलिदान दिवस।
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चोघड़िया मुहूर्त- एक दिन में सात प्रकार के चोघड़िया मुहूर्त आते हैं, जिनमें से तीन शुभ और तीन अशुभ व एक तटस्थ माने जाते हैं। इनकी गुजरात में अधिक मान्यता है। नए कार्य शुभ चोघड़िया मुहूर्त में प्रारंभ करने चाहिएः-
दिन का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
लाभ 08:54 10:38 शुभ
अमृत 10:38 12:23 शुभ
शुभ 14:08 15:53 शुभ

रात्रि का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
शुभ 19:22 20:37 शुभ
अमृत 20:37 21:52 शुभ
लाभ 01:39 02:54 शुभ
शुभ 04:09 05:24 शुभ

यात्रिगन कृपया ध्यान दें, “मेट्रो” बहादुरगढ़ पंहुच रही है.

 

मनोहर सरकार बहादुरगढ़ के लोगों को आज एक बड़ा तोहफा देने जा रही है. 24 जून यानी रविवार की सुबह मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मुंडका बहादुरगढ़ रेलवे लाइन का शुभारंभ करने आ रहे हैं. यानी रविवार की सुबह मुंडका से बहादुरगढ़ के सिटी पार्क मेट्रो स्टेशन तक पहली बार मेट्रो ट्रेन चलने जा रही है.

बहादुरगढ़ से मुंडका तक मेट्रो से जुड़ा होने के बाद रोजाना करीब डेढ़ लाख लोग इसका फायदा उठा सकेंगे. मेट्रो ग्रीन लाइन पर चलने के बाद एक तरफ जहां लोग महज 20 मिनट में बहादुरगढ़ से मुंडका की दूरी तय कर सकेंगे, वहीं सड़कों पर भी वाहनों का दबाव कम होने के कारण देश की राजधानी दिल्ली में लगने वाले जाम से काफी हद तक बचा जा सकेगा.

बता दें कि मुंडका बहादुरगढ़ मेट्रो लाइन बनाने में करीब एक हजार करोड़ रुपए का खर्च आया है. यह पूरा खर्चा हरियाणा सरकार ने वहन किया है. इस लाइन पर राजधानी दिल्ली की सीमा में चार मेट्रो स्टेशन बनाए गए हैं, वहीं तीन स्टेशन हरियाणा की सीमा में बनाए गए हैं. ग्रीन लाइन मेट्रो का निर्माण प्रदेश की पिछली हुड्डा सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था और करीब 4 साल मैं यह मेट्रो लाइन पूरी तरह से बन कर तैयार हो गई है.

हालांकि बहादुरगढ़ में मेट्रो का एक यार्ड भी बनाया जाना था, लेकिन कानूनी पेचीदगियों के चलते जमीन अधिग्रहण कैंसिल हो जाने के कारण यह नहीं बन सका है. लेकिन फिलहाल मुंडका मेट्रो यार्ड के सहारे ही यहां मेट्रो सुचारू रूप से चलाई जाएगी. मेट्रो लाइन शुभारंभ समारोह की तैयारियां प्रशासनिक स्तर पर शुरू कर दी गई है.

आज दोपहर को ही सीआरपीएफ के जवान सभी मेट्रो स्टेशनों की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभाल लेंगे. बता दें कि पिछले दिनों डीएमआरसी के उच्च अधिकारियों ने बहादुरगढ़ के नवनिर्मित मेट्रो स्टेशनों पर सुरक्षा का जायजा लिया था और बहादुरगढ़ मुंडका मेट्रो लाइन को सिक्योरिटी क्लीयरेंस दे दिया गया था. उसके बाद से ही मेट्रो लाइन के उद्घाटन का इंतजार बहादुरगढ़ के लोगों को बेसब्री से था. रविवार को बहादुरगढ़ के लोगों का अपने शहर से ही मेट्रो में बैठकर दिल्ली पहुंचने का सपना पूरा हो जाएगा.

बहादुरगढ़ मेट्रो : भाजपा श्रेय ले रही है : दीपेन्द्र हूडा

 

इस मेट्रो लाइन के चालू होने से बहादुरगढ़ वासियों को कामकाज और व्यापार के सिलसिले में दिल्ली आने जाने में काफी आराम हो जायेगा। जहाँ जहाँ मेट्रो पहुँचती है वहाँ विकास और रोजगार के नये साधनों का सृजन होता है।

जानिए, बहादुरगढ़-वासियों का मेट्रो का सपना कैसे हुआ साकार :

7 अगस्त 2012 – यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्रिमंडल से सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा के आग्रह पर बहादुरगढ़ मेट्रो विस्तार परियोजना को मंजूरी मिली।

2 फरवरी 2013 – तत्कालीन केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री श्री कमल नाथ जी ने हरियाणा के तब के मुख्यमंत्री चौ भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जी की उपस्तिथि में इस मेट्रो विस्तार का शिलान्यास किया।

अप्रैल 2013 – इसपर जोरशोर से काम शुरू करवा दिया था और मार्च 2016 तक इसका काम पूरा हो जाना चाहिये था।

लेकिन, मई 2014 के बाद से भाजपा सरकार ने इस पूरे काम का श्रेय लूटने के लिए ढाई साल की देरी करा दी और बहादुरगढ़ वासियों को ढाई साल मेट्रो शुरू होने का इंतज़ार करना पड़ा।

इस परियोजना में एक और विशेष बात यह है कि यह पहली ऐसी परियोजना थी जिसके हरियाणा में आने वाले हिस्से की लागत (रुपये 788 करोड़) और दिल्ली के मुंडका से आगे हरियाणा तक के सेक्शन की लागत (रुपये 152 करोड़) भी चौ भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जी के कार्यकाल में ही हरियाणा सरकार ने वहन करने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। 2000 करोड़ की कुल लागत में से हरियाणा सरकार ने 940 करोड़ रूपए वहन किये थे।