पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के भीतर अंसतोष बढ़ सकता है। नतीजों के ठीक एक दिन बाद पार्टी के जी 23 समूह के कई नेता राजधानी दिल्ली में बैठक कर रहे हैं जिसमें वे आगे की रणनीति तय कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के आवास पर हो रही इस बैठक में कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और कुछ अन्य नेता शामिल हैं।
नयी दिल्ली(ब्यूरो) : डेमोक्रेटिक फ्रंट :
पांच राज्यों में कांग्रेस ने एक बार फिर शर्मनाक हार का सामना किया है। पंजाब में जहां कांग्रेस की सरकार थी, वहां से भी जनता ने पार्टी को नकार दिया है। खबर है कि कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी का असंतुष्ट खेमा यानि जी-23 ग्रुप फिर एक्टिव हो गया है। जिसमें वे आगे की रणनीति तय कर सकते हैं।
पंजाब में आप की आँधी और यूपी में पीएम मोदी और सीएम योगी की जोड़ी का ऐसा जलवा दिखा कि विपक्षी पानी माँगते दिखे। इन राज्यों में कॉन्ग्रेस की शर्मनाक हार के बाद पार्टी का असंतुष्ट खेमा G-23 एक्टिव हो गया है। इस ग्रुप के नेताओं ने शुक्रवार (11 मार्च 2022) को गुलाम नबी आजाद के घर पर मीटिंग की।
बैठक में कॉन्ग्रेस की आपातकालीन बैठक बुलाकर पार्टी में नए अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने की माँग की गई। इस दौरान कपिल सिब्बल से लेकर मनीष तिवारी तक शामिल रहे। इससे पहले ये असंतुष्ट नेता सोनिया गाँधी को पत्र लिखकर पार्टी के स्थाई अध्यक्ष के चुनाव का सुझाव दे चुके हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कॉन्ग्रेस को अपनी दुर्गति का आभास पहले से ही हो गया था।
ऐसा इसलिए कि रिपोर्ट के मुताबिक, 10 मार्च को रिजल्ट आने से पहले ही इसके नतीजों को लेकर कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी के घर पर एक बैठक हुई थी, जिसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, प्रियंका गाँधी वाड्रा और संगठन के महासचिव केसी वेणुगोपाल शामिल रहे। इसमें पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर यह तय किया गया कि सितंबर 2022 तक पार्टी के नए अध्यक्ष का चयन किया जाएगा। इतनी बड़ी हार के बाद भी कॉन्ग्रेसी राहुल गाँधी का गुणगान करने में लगे हुए हैं।
एआईसीसी के जनरल सेक्रेट्री और गुजरात के प्रभारी रघु शर्मा का कहना है कि पूरे देश में केवल राहुल गाँधी ही भाजपा का मुकाबला कर रहे हैं। वो कहते हैं कि केवल राहुल और प्रियंका ही जनता के मुद्दों पर बात करते हैं।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष खड़गे ने ट्वीट किया, 50 साल के मेरे राजनीतिक करियर में मैंने कई उतार और चढ़ाव देखे हैं। विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखना दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि सिर्फ हम फासीवादी ताकतों से लड़ सकते हैं। हम जनता का विश्वास जल्द फिर से जीत लेंगे।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस की केवल 2 सीटें आई हैं औऱ उसका वोट शेयर केवल 2 प्रतिशत ही रहा। जबकि पंजाब में आप की आँधी के सामने कॉन्ग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई। उसके मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी तक हार गए।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2022/03/1252638-sonia-rahul-priyanka.jpg9001500Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2022-03-12 12:16:012022-03-12 12:16:17उत्तर भारत में कॉंग्रेस की शर्मनाक हार के बाद ‘G23’ एक्टिव, आज़ाद के घर हुई बैठक
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि आज केसी वेणुगोपाल, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और अशोक गहलोत के साथ बैठक की। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों पर विस्तृत चर्चा की गई। 10 मार्च को घोषित होने वाले परिणामों के संबंध में रणनीति पर भी चर्चा की गई। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 5 राज्यों में चुनाव और आगे के रास्ते पर विस्तृत चर्चा की गई। वर्तमान सरकार द्वारा संविधान और लोकतंत्र की चुनौतियां खतरे में हैं। कांग्रेस आज एकमात्र विपक्षी पार्टी है, लोगों को उम्मीदें हैं। यह देखना हमारा कर्तव्य है कि हम पार्टी में क्या योगदान दे सकते हैं। वहीं राजस्थान सरकार की कोयले की खदान जिसका MDO है अड़ानी समूह के नाम, इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने खनन पर लगा रखी है रोक, इसको लेकर दोनों राज्यों के बीच चल रही है खींचतान, इसको लेकर राहुल गांधी की मौजूदगी में चर्चा होने की बात आ रही है सामने, छत्तीसगढ़ से सीएम बघेल और सीएम गहलोत ने इस सवाल का नहीं दिया जवाब।
डेमोक्रेटिक फ्रंट, नयी दिल्ली(ब्यूरो) :
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है और इस बीच कांग्रेस ने दिल्ली में अहम बैठक बुला ली है। राहुल गांधी के आवास पर पांच राज्यों में हुई वोटिंग को लेकर महत्वपूर्ण बैठक हुई। राहुल गांधी के आवास पर हुई इस बैठक में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, यूपी महासचिव प्रियंका गांधी, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल शामिल थे। बैठक में पांच राज्यों में हुई वोटिंग और उत्तर प्रदेश में बचे 2 चरणों के चुनाव की तैयारी पर चर्चा की गई।
सूत्रों के मुताबिक बैठक में 10 मार्च को होने वाली मतगणना को लेकर भी रणनीति बनाई गई। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को निर्देश दिया गया है कि वो चुनावी प्रदेश के महासचिव और प्रभारी के साथ मंत्रणा कर मतगणना की पूरी तैयारी कर लें। प्रदेश के कार्यकर्ताओं को कहा गया है कि वो काउंटिंग सेंटर पर बराबर नजर बनाए रखें। वहीं अलग-अलग राज्यों के वरिष्ठ नेताओं को भी चुनावी राज्य में निरीक्षण के लिए लगाया जाएगा।
सीएम गहलोत प्रेस वार्ता में कहा कि 5 राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर भी गंभीर चर्चा की है। इसे योजनाबद्ध तरीके से अमलीजामा पहनाने की कोशिश पार्टी कर रही है। चर्चा इस पर भी की गई कि चुनाव बाद की परिस्थितियों से कैसे डील करना है। सीएम ने कहा कि शहरी रोजगार गारंटी योजना को लेकर कांग्रेस कार्यसमिति तय करेगी। छत्तीसगढ़ की गोधन योजना को लेकर पार्टी गंभीर है हाल में बजट में सीएम ने विभिन्न योजनाओं खासकर पुरानी पेंशन योजना की बहाली की बात कही है। उसको कांग्रेस शासित अन्य प्रदेशों में लागू कराने को लेकर भी इस हाइप्रोफाइल मीटिंग में मंथन हुआ।
सीएम गहलोत ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि देश का संविधान खतरे में है। सरकार में फासीस्ट लोग है। देश ऐसे माहौल में जी रहा है। मीडिया दबाव में है। देश की जनता देख रही है। पुरानी पेंशन बहाली पर सीएम गहलोत ने कहा कि मानवीय दृष्टिकोण से फैसला लिया गया है। बुढ़ापे में सरकारी कर्मचारी सुरक्षित रहे। सरकारी कर्मचारियों की भविष्य की चिंता नहीं रहे। इसलिए पुरानी पेंशन योजना लागू की गई है। सीएम ने कहा कि यदि कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी सुरक्षित महसूस नहीं करेगा तो वह सरकार में अपना योगदान कैसे करेगा? मानवाधिकार आयोग ने भी टिप्पणी की है कि सरकार को अपने निर्णय पर विचार करना चाहिये। ज्यूडिशरी के पे कमीशन इसे नहीं मान रहे, डिफेंस वाले इससे पहले ही अलग किए जा चुके हैं। मानवाधिकार आयोग खुद ये कह रहा है ऐसी स्थिति में लोग दो वर्ग में बंट गए हैं। इन सबको देखते हुए हमारी सरकार ने सोच समझ कर निर्णय लिया है।
सीएम गहलोत ने प्रेस वार्ता में मोदी सरकार की नीति और नीयत को कटघरे में खड़ा किया। मोदी सरकार को फासीवादी करार दिया। सीएम ने कहा कि भाजपा को लोकतंत्र में यकीन नहीं है। संविधान में यकीन नहीं है। जिसके कारण देश के संविधान और लोकतंत्र को खतरा है। सीएम गहलोत ने दावा किया कि साहित्यकार, पत्रकार, लेखक सब दुखी हैं और मीडिया पर भी दबाव है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2022/02/a_r_b.jpg547835Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2022-02-27 13:39:112022-02-27 13:42:04बघेल और गहलोत ने राहुल गांधी के घर पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों पर विस्तृत चर्चा की, 2017 वाली गलती न हो इसलिए बनाई रणनीति
चुनाव के दौरान कोरोना के खतरे को देखते हुए चुनाव आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने एक बैठक की थी। बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि मतदाताओं और कर्मचारियों का पूर्ण टीकाकरण अनिवार्य किया जाए। इस बार चुनाव में सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी रखी जाएगी। किसी भी तरीके से आपत्तिजनक पोस्ट पर कार्रवाई की जाएगी। राज्यों की सीमाओं पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे।
सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट – चंडीगढ़ :
इस साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। जिन राज्यों में चुनाव होंगे वो हैं- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल 403 सीटें हैं और वर्तमान में भाजपा की नेतृत्व वाली योगी आदित्यनाथ की सरकार है। गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में भी बीजेपी की सरकार है। जबकि पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। इस बार इन चुनावों में आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस और बीजेपी को टक्कर दे सकती है।
चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। बता दें कि 2022 में इन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। उत्तर प्रदेश में 403, पंजाब में 117, उत्तराखंड में 70, मणिपुर में 60 और गोवा में 40 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि ये चुनाव कोविड-19 से सुरक्षा को देखते हुए बड़ी तैयारी के साथ कराए जाएँगे। बूथों की संख्या बढ़ेगी। वहाँ मास्क और सैनिटाइजर उपलब्ध रहेंगे।
पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में 14 फरवरी को एक ही चरण में सभी विधानसभा सीटों का मतदान निपटा लिया जाएगा। 10 मार्च को चुनाव परिणाम जारी किए जाएँगे। उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में चुनाव होंगे – फरवरी में 10, 14, 20, 23 और 27 को, जबकि मार्च में 3 और 7 को। मणिपुर में 27 फरवरी और 3 मार्च को चुनाव कराए जाएँगे। रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक कोई चुनाव प्रचार नहीं होगा। इस तरह 10 फरवरी, 2022 से चुनाव शुरू हो जाएगा।
सभी विधानसभाओं में एक ऐसा पोलिंग बूथ होगा, जो केवल महिलाओं के लिए होगा। ECI ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ-साथ सभी राज्यों के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ भी बैठकें की हैं। जमीनी परिस्थिति को जानने-समझने के बाद चुनाव के तारीखों का ऐलान किया गया। इन 5 राज्यों में 24.9 लाख युवा ऐसे हैं, जो पहली बार वोट देंगे। कुल 18.34 करोड़ लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिनमें 8.55 करोड़ महिलाएँ हैं। 80 की उम्र से ऊपर के बुजुर्गों, दिव्यांगों और कोरोना मरीजों के लिए पोस्टल बैलेट्स की सुविधा होगी, ताकि ज्यादा से ज्यादा वोटर भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।
विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों को ऑनलाइन नामांकन भरने की सुविधा भी दी जाएगी। चुनाव में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की शिकायत के लिए ‘cVIGIL’ एप के जरिए लोग शिकायत कर सकते हैं। घोषणा की गई है कि शिकायत के 100 मिनट के भीतर ECI अधिकारी वहाँ पहुँच जाएँगे। तारीखों के ऐलान के साथ ही आदर्श आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। सभी पोलिंग बूथों पर EVM एवं VVPAT का इस्तेमाल होगा। सभी चुनाव अधिकारियों/कर्मचारियों को ‘फ्रंटलाइन वर्कर’ के रूप में गिना जाएगा और उन्हें कोरोना की तीसरी (Precautionary) डोज दी जाएगी।
CEC सुशील चंद्रा ने इस दौरान “यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है” पंक्ति का भी इस्तेमाल किया। साथ ही 15 जनवरी, 2021 तक किसी भी राजनीतिक पार्टी को फिजिकल रैली की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके बाद स्थिति की समीक्षा कर आगे के नियम बताए जाएँगे। कोई भी रोडशो, साइकिल-बाईक यात्रा या पदयात्रा और जुलूस भी अगले आदेश तक नहीं निकाले जा सकेंगे। 7 चरणों में सभी 5 राज्यों के चुनाव निपटा लिए जाएँगे।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2022/01/commissioners.jpg6611040Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2022-01-08 12:00:282022-01-08 13:21:52विधानसभा चुनाव 2022
हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी।
हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी।
आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।
क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2021/02/RSPLS.png382966Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2021-02-12 08:29:242021-02-12 10:03:53इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ
अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद् की ओर से देवी अहिल्या बाई होल्कर लेक्चर सीरीज का आयोजन किया जा रहा है, जिसका तृतीय लेक्चर दिनांक 28.11.20 को सायं 5.30 बजे विभिन्न सोशल माध्यम द्वारा आयोजित किया जायेगा।
अधिवक्ता परिषद् -राजस्थान से उदयपुर इकाई की महिला प्रमुख एडवोकेट भूमिका चौबीसा ने इस लेक्चर सीरीज पर जानकारी देकर बताया कि “भारतीय महिलाओ का वैदिक काल से संवैधानिक स्थिति तक की यात्रा” विषय पर उक्त वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है। जिसमे विषय पर मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतूल्ला का मुख्य वक्तव्य और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीपति विवेक अग्रवाल का प्रारंभिक पाथेय प्राप्त होगा।
यह पूरा कार्यक्रम अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के अधिकारिक यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि पर लाइव संचालित किया जायेगा। इस सीरीज की विशेषता बताते हुये भूमिका बताती है कि इसके आयोजन की अभिरूची केवल विधि क्षेत्र से सम्बंधित लोगो मे ही नही अपितु इसके सामाजिक विषय जो सीधे आमजन को जोडते है, के कारण समाज का हर वर्ग मे उत्साहपूर्वक भाग लेता है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/11/e9991cb5-b401-4986-b23d-346adceef50a.jpg1280905Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-11-27 12:47:332020-11-27 12:48:07एबीएपी की तृतीय लेक्चर सीरीज का आयोजन शनिवार को
नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. जिसके बाद मणिपुर में अपनी सरकार को स्थिर रखने के लिए बीजेपी ने एक बार फिर क्षेत्रीय दल का समर्थन हासिल कर लिया. दरअसल मणिपुर में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार एनपीपी के चार और बीजेपी के तीन बागी विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद मुश्किल में आ गई थी.
नई दिल्ली(ब्यूरो):
मणिपुर में बीजेपी की गठबंधन वाली सरकार पर चल रहे संकट के बीच बुधवार को दिल्ली में गृह मंत्री अध्यक्ष अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से नेशनल पीपुल्स पार्टी के बागी विधायकों ने मुलाकात की. उनका नेतृत्व पार्टी चीफ और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने किया. इस दौरान मणिपुर में चल रहे राजनीतिक संकट पर चर्चा की गई. यह जानकारी बीजेपी नेता और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के संयोजक हेमंत बिस्व सरमा ने दी.
नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी के संकटमोचक कहे जाने वाले हेमंत बिस्व सरमा ने बताया कि एनपीपी मणिपुर में बीजेपी सरकार को समर्थन जारी रखेगी. हम विकास के लिए साथ मिलकर काम करेंगे. वहीं सूत्रों के मुताबिक अमित शाह से मुलाकात के बाद बीजेपी और एनपीपी के बीच समझौता हो गया है. कहा जा रहा है कि गुरुवार को एनपीपी विधायक राज्यपाल से मिलेंगे और सरकार को अपने समर्थन का दावा पेश करेंगे. ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेने वाले एनपीपी के चारों विधायक वापस सरकार में लौट सकते हैं. सूत्रों ने बताया कि इसे लेकर बीजेपी आलाकमान को जानकारी दी गई है.
बता दें कि सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस में शामिल हुए नेशनल पीपुल्स पार्टी के 4 विधायकों को चर्चा के लिए दिल्ली बुलाया गया था. इससे पहले हेमंत बिस्व सरमा ने रविवार को इंफाल पहुंचकर पूरे मामले को समझा था. उनके साथ एनपीपी प्रमुख और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा भी थे. इस मामले पर हेमंत बिस्व सरमा का कहना था कि नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस और एनडीए के बीच समर्थन जारी रहेगा. हेमंत बिस्व सरमा ने कहा था कि मणिपुर के संबंध में घबराने की कोई जरूरत नहीं है. हम सभी विधायकों के साथ विचार विमर्श कर रहे हैं. सभी मुद्दों को मैत्रीपूर्ण ढंग से सुलझा लिया जाएगा.
मणिपुर में बीजेपी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से उपमुख्यमंत्री वाई जॉय कुमार सिंह, आदिवासी एवं पर्वतीय क्षेत्र विकास मंत्री एन कायिशी, युवा मामलों और खेल मंत्री लेतपाओ हाओकिप और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री एल जयंत कुमार सिंह ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था. एनपीपी से इस्तीफा देने के बाद इन चारों विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने का भी ऐलान किया था.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/06/biren-singh_160317-093555.jpg450800Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-06-25 02:24:092020-06-25 02:24:56मणिपुर में भाजपा स्थिर
कोरोना के खिलाफ जंग में पीएम मोदी की अपील के बाद देशवासी आज रात 9 बजे 9 मिनट दीया, कैंडल, मोबाइल फ्लैश और टार्च जलाकर एकजुटता का परिचय देंगे. लोग दीया जलाने की तैयारी कर लिए हैं.
नई दिल्ली:
कोरोना वायरस के खिलाफ पूरे देश ने एकजुट होकर प्रकाश पर्व मनाया. पीएम मोदी की अपील पर एकजुट होकर देश ने साबित कर दिया कि कोरोना के खिलाफ हिंदुस्तान पूरी ताकत से लड़ेगा. देश के इस संकल्प से हमारी सेवा में 24 घंटे, सातों दिन जुटे कोरोना फाइटर्स का भी हौसला लाखों गुना बढ़ गया. गौरतलब है कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में हैं. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देश कोरोना के आगे बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं लेकिन भारत के संकल्प की वजह से देश में कोरोना संक्रमण विकसित देशों के मुकाबले कई गुना कम है.
Live Updates-
कोरोना के खिलाफ एकजुट हुआ भारत, प्रकाश से जगमगाया पूरा देश
पीएम मोदी की अपील पर हिंदुस्तान ने किया कोरोना के खिलाफ जंग का ऐलान
कोरोना के खिलाफ जापान में जला पहला दीया,
कुछ देर बाद 130 करोड़ हिंदुस्तानी लेंगे एकजुटता का संकल्प
अमित शाह ने जलाए दीये
दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने अपने आवास पर सभी लाइट बंद करने के बाद मिट्टी के दीपक जलाए.
योगी आदित्यनाथ ने जलाया दीया
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने दीया जलाकर एकता की पेश की मिसाल. दीए की रोशनी से बनाया ऊं.
अनुपम खेर ने जलायी मोमबत्ती
अनुप खेर ने दीया जलाकर दिया एकता का संदेश
बता दें कि पीएम मोदी ने शुक्रवार को अपील की थी कि पूरे देश के लोग रविवार रात 9 बजे घर की बत्तियां बुझाकर अपने कमरे में या बालकनी में आएं और दीया, कैंडिल, मोबाइल और टॉर्च जलाकर कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी एकजुटा प्रदर्शित करें.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/04/navjivanindia_2020-04_148487f8-a244-4808-a0a3-f67f62f61ceb_WhatsApp_Image_2020_04_05_at_9_16_56_PM.jpeg6751200Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-04-05 18:07:362020-04-05 18:13:52मोदी के आवाहन पर भारत ने दिखाई एकता, की दीपावली
होली जरूर मनाएं, लेकिन घर पर ही मनाएं। मोहल्लों और गांवों में एकत्रित होकर समूह में न मनाएं। रंगों के इस त्योहार के समय कोरोना अब महामारी बन चुका है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि भीड़ वाले जगहों पर न जाएं। क्योंकि किसी एक को संक्रमण होने पर कई दूसरे लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि होली भी समूह में मनाने से बचें। हैप्पी होली।
चंडीगढ़:
आज होली है। फागुन के इस महीने में रंगों के इस त्योहार में हर कोई सराबोर होने को आतुर है, लेकिन एहतियात भी जरूरी है। चीन से पैदा हुआ कोरोना अंटार्कटिका को छोड़ सारे महाद्वीपों को अपने जद में ले चुका है। इंसानों से इंसानों में इसके वायरस का तेजी से संक्रमण हो रहा है। तभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत तमाम स्वास्थ्य संस्थाएं सामूहिक जुटान न करने की सलाह दे रहे हैं। उनकी इसी सलाह पर प्रधानमंत्री मोदी के बाद एक-एक करके कई मशहूर हस्तियों ने होली न खेलने का निर्णय लिया। जनमानस के लिए तो साल भर का यह त्योहार है। वे भला होली से दूर क्यों रहें। विशेषज्ञ भी कहते हैं कि होली जमकर खेलिए, लेकिन एहतियात बरतना न भूलिए।
यह बात सही है कि विशेष परिस्थितियों में कोरोना सामान्य फ्लू की तुलना में दस गुना घातक है, लेकिन अगर व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत है तो इसका वायरस लाचार हो जाता है। स्वस्थ जीवनशैली और खानपान से कोई भी अपने शरीर की प्रतिरक्षा इकाई को इस वायरस की कवच बना सकता है। बुजुर्गो और किसी अन्य रोग से ग्रसित व्यक्ति को खास एहतियात की दरकार होगी। होली की मस्ती में यह न भूलें कि कोरोना अब विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित की जा चुकी है। लिहाजा जमकर गुलाल उड़ाएं, रंगों की फुहारें छोड़ें, लेकिन अत्यधिक भीड़ में जाने से परहेज करें। कोरोना का वायरस हवा में तैरते अति सूक्ष्म कणों के साथ आंखों यहां तक कि फेस मास्क को भी भेदने की सामर्थ्य रखता है। सिर्फ खांसी या छींक के साथ निकलने वाले बड़े कणों को ही मास्क रोकने में सक्षम है। इसलिए सावधान रहिए, लेकिन होली के उल्लास को कम मत होने दीजिए।
विशेषज्ञ बोल
होली जरूर मनाएं, लेकिन घर पर ही मनाएं। मोहल्लों और गांवों में एकत्रित होकर समूह में न मनाएं। रंगों के इस त्योहार के समय कोरोना अब महामारी बन चुका है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि भीड़ वाले जगहों पर न जाएं। क्योंकि किसी एक को संक्रमण होने पर कई दूसरे लोग इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। बेहतर होगा कि होली भी समूह में मनाने से बचें। हैप्पी होली।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/03/hqdefault.jpg360480Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-03-10 01:40:172020-03-10 01:40:31कोरोना से घबरा कर होली फीकी न करें
भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।
नयी दिल्ली
असम एनआरसी के बाद पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की कवायद भले ही अभी पाइपलाइन में हो और इसका विरोध शुरू हो गया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत के सरहद से सटे लगभग सभी पड़ोसी मुल्क मसलन पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में नागरिकता रजिस्टर कानून है।
पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर को CNIC, अफगानिस्तान में E-Tazkira,बांग्लादेश में NID, नेपाल में राष्ट्रीय पहचानपत्र और श्रीलंका में NIC के नाम से जाना जाता है। सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो जाता है या दाखिल कराया जा रहा है।
भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।
बीजेपी नेता के मुताबिक अगर पश्चिम बंगाल से 50 लाख घुसैपठियों को नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया तो टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वोट प्रदेश में कम हो जाएगा और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 200 सीटें मिलेंगी और टीएमसी 50 सीटों पर सिमट जाएगी। बीजेपी नेता दावा राजनीतिक भी हो सकता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उनका दावा सही पाया गया है और असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया।
ममता बनर्जी अब भारत में अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं। वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगला में वामपंथी सरकार थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं। दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में पश्चिम बंगाल में वही घुसपैठिए ममता बनर्जी को जान से प्यारे हो गए है।
क्योंकि उनके एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है। शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। गौरतलब है असम इकलौता राज्य है जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया। सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।
दिलचस्प बात यह है कि असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठिओं को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।
लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका और वर्ष 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद असम एनआरसी की लिस्ट जारी की गई। असम की राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची में कुल तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल होने के योग्य पाए गए जबकि 50 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है। शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को कम तवज्जो दिया गया।
असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए। जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए। भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है।
पूरे देश में एनआरसी के प्रतिबद्ध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास के लिए बनाए जाने वाल पैमाने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में नागरिकों की संख्या कितनी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।
इसी तरह पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है। वहीं, पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है।
सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।
पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं, लेकिन एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।
भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया। कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।
भारत में नागरिकता से जुड़ा कानून क्या कहता है?
नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर कहा गया है कि 26 जनवरी, 1950 या इसके बाद से लेकर 1 जुलाई, 1987 तक भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर देश का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 को या इसके बाद, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाला और उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो, वह भारत का नागरिक होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता में से दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों, देश का नागरिक होगा। इस मामले में असम सिर्फ अपवाद था। 1985 के असम समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले विदेशियों को भारत का नागरिक मानने का प्रावधान था। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर सिर्फ असम ऐसा राज्य था, जहां 24 मार्च, 1974 तक आए विदेशियों को भारत का नागरिक बनाने का प्रावधान था।
क्या है एनआरसी और क्या है इसका मकसद?
एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है।
एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इससे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। पूरे भारत में लागू करने के लिए इसके लिए अलग जरूरतें और मसौदा होगा।
एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?
भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। चूंकि सरकार पूरे देश में जो एनआरसी लाने की बात कर रही है, लेकिन उसके प्रावधान अभी तय नहीं हुए हैं। यह एनआरसी लाने में अभी सरकार को लंबी दूरी तय करनी पडे़गी। उसे एनआरसी का मसौदा तैयार कर संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना होगा। फिर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद एनआरसी ऐक्ट अस्तित्व में आएगा। हालांकि, असम की एनआरसी लिस्ट में उन्हें ही जगह दी गई जिन्होंने साबित कर दिया कि वो या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आकर बस गए थे।
क्या NRC सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही होगा?
किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को CAA या NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। एनआरसी का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।
क्या धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?
यह बिल्कुल भ्रामक बात है और गलत है। NRC किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब NRC लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।
NRC में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा?
अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं होता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।
आभार, Shivom Gupta
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2020/01/nrcn-1578736214-1579523229.jpg338600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2020-01-22 02:49:502020-01-22 02:49:53जब छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्कों में हैं नागरिकता रजिस्टर कानून! भारत में ही NRC का विरोध क्यों?
इतिहास के पटल पर आज 31 अक्तूबर का दिन खास तौर पर दर्ज़ हो गया जब आज आधी रात से जम्मू कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया ।
यह पहला मौका है जब एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में
बदल दिया गया हो। आज आधी रात से फैसला लागू होते ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों
की संख्या नौ हो गई है।
आज जी सी मुर्मू और आर के माथुर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के प्रथम उपराज्यपाल के तौर पर बृहस्पतिवार को शपथ लेंगे।
श्रीनगर और
लेह में दो अलग-अलग शपथ ग्रहण समारोहों का आयोजन किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर हाई
कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल दोनों को शपथ दिलाएंगी।
सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए
गए विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में
बांटने का फैसला किया था, जिसे संसद ने अपनी मंजूरी दी। इसे लेकर देश में खूब सियासी
घमासान भी मचा।
भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का
दर्जा खत्म करने की बात कही थी और मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 90 दिनों के भीतर ही इस वादे
को पूरा कर दिया। इस बारे में पांच अगस्त को फैसला किया गया।
सरदार पटेल की
जयंती पर बना नया इतिहास
सरदार पटेल को देश की 560 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय का श्रेय है। इसीलिए उनके जन्मदिवस को ही इस जम्मू कश्मीर के विशेष अस्तित्व को समाप्त करने के लिए चुना गया। देश में 31 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। आज पीएम मोदी गुजरात के केवडिया में और अमित शाह दिल्ली में अगल-अलग कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया। इसके साथ ही दो केंद्रशासित प्रदेशों का दर्जा मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया है। नए केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अस्तित्व में आए हैं।
जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की बौखलाहट एक बार फिर सामने आई है. आतंकियों ने
कुलगाम में हमला किया है, जिसमें 5 मजदूरों की मौत हो गई है. जबकि एक घायल है. मारे गए सभी मजदूर कश्मीर से बाहर
के हैं. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला है. आतंकियों की
कायराना हरकत से साफ है कि वे कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले से बौखलाए हुए हैं और
लगातार आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं.
जम्मू और कश्मीर पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों
ने इस इलाके की घेराबंदी कर ली है और बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चल रहा है.
अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है. माना जा रहा है कि मारे गए मजदूर पश्चिम
बंगाल के थे.
ये हमला ऐसे समय हुआ है जब यूरोपियन यूनियन के 28 सांसद कश्मीर के दौरे पर हैं. सांसदों के दौरे
के कारण घाटी में सुरक्षा काफी कड़ी है. इसके बावजूद आतंकी बौखलाहट में किसी ना
किसी वारदात को अंजाम दे रहे हैं. डेलिगेशन के दौरे के बीच ही श्रीनगर और दक्षिण
कश्मीर के कुछ इलाकों में पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं.
जम्मू एवं से अनुच्छेद-370 हटने के बाद यूरोपीय संघ के 27 सांसदों के कश्मीर
दौरे को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा सवाल उठाने पर भारतीय जनता पार्टी
ने जवाब दिया है. पार्टी का कहना है कि कश्मीर जाने पर अब किसी तरह की रोक नहीं
है. देसी-विदेशी सभी पर्यटकों के लिए कश्मीर को खोल दिया गया है, और ऐसे में विदेशी
सांसदों के दौरे को लेकर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है.
भाजपा प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा, ‘कश्मीर जाना है तो
कांग्रेस वाले सुबह की फ्लाइट पकड़कर चले जाएं. गुलमर्ग जाएं, अनंतनाग जाएं, सैर करें, घूमें-टहलें. किसने
उन्हें रोका है? अब तो आम पर्यटकों के लिए भी कश्मीर को खोल दिया गया है.’शहनवाज हुसैन ने कहा कि जब कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा था, तब शांति-व्यवस्था के लिए एहतियातन कुछ कदम जरूर
उठाए गए थे, मगर हालात सामान्य होते ही सब रोक हटा ली गई.
उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास कुछ छिपाने को नहीं, सिर्फ दिखाने को है.’
भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘जब कश्मीर
में तनाव फैलने की आशंका थी, तब बाबा बर्फानी के दर्शन को
भी तो रोक दिया गया था. यूरोपीय संघ के सांसद कश्मीर जाना चाहते थे. वे पीएम मोदी
से मिले तो अनुमति दी गई. कश्मीर को जब आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है तो
विदेशी सांसदों के जाने पर हायतौबा क्यों? विदेशी
सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जाने से पाकिस्तान का ही दुष्प्रचार खत्म
होगा.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/jammudivision.jpg711831Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-10-30 23:52:292019-10-30 23:52:32अब देश में होंगे 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर अब राज्य नहीं
We may request cookies to be set on your device. We use cookies to let us know when you visit our websites, how you interact with us, to enrich your user experience, and to customize your relationship with our website.
Click on the different category headings to find out more. You can also change some of your preferences. Note that blocking some types of cookies may impact your experience on our websites and the services we are able to offer.
Essential Website Cookies
These cookies are strictly necessary to provide you with services available through our website and to use some of its features.
Because these cookies are strictly necessary to deliver the website, you cannot refuse them without impacting how our site functions. You can block or delete them by changing your browser settings and force blocking all cookies on this website.
Google Analytics Cookies
These cookies collect information that is used either in aggregate form to help us understand how our website is being used or how effective our marketing campaigns are, or to help us customize our website and application for you in order to enhance your experience.
If you do not want that we track your visist to our site you can disable tracking in your browser here:
Other external services
We also use different external services like Google Webfonts, Google Maps and external Video providers. Since these providers may collect personal data like your IP address we allow you to block them here. Please be aware that this might heavily reduce the functionality and appearance of our site. Changes will take effect once you reload the page.
Google Webfont Settings:
Google Map Settings:
Vimeo and Youtube video embeds:
Google ReCaptcha cookies:
Privacy Policy
You can read about our cookies and privacy settings in detail on our Privacy Policy Page.