8 विद्यार्थियों का धर्म बदलने पर स्कूल के साथ परिवारों का बवाल

24 नवंबर को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने विदिशा के डीएम को इस मामले में चिट्ठी लिखी थी। स्थानीय लोगों की शिकायत के बाद उन्होंने 31 अक्टूबर को आठ बच्चों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का आरोप लगाया था। हालांकि, स्कूल के प्रिंसिपल ने धर्मांतरण के आरोप का खंडन किया था और इसे फर्जी खबर बताया था। सोमवार को हंगामा होने पर एसपी और कलेक्टर मौके पर पहुंचे और कार्यकर्ताओं को समझाइश दी। एसपी मोनिका शुक्ला ने बताया कि मामले की जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।

राजविरेन्द्र वशीष्ठा, चंडीगढ़/मध्य प्रदेश :

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के एक मिशनरी स्कूल में दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं के तोड़फोड़ करने का मामला सामने आया है। इस मामले के सामने आये ही गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का बयान भी सामने आया है। जी दरअसल उन्होंने आज यानी मंगलवार को कहा कि ‘सरकार को धर्म परिवर्तन की गतिविधियों में शामिल लोगों की जांच करवा रहे है। हालांकि इस मामले में 4 लोग गिरफ्तार हुए है।’

मध्य प्रदेश के विदिशा स्थित एक स्कूल में कथित धर्मांतरण को लेकर हिंदू संगठनों के विरोध प्रदर्शन की खबर है। आरोप है कि सेंट जोसेफ स्कूल में नारेबाजी, तोड़फोड़ और पत्थरबाजी की गई। घटना 6 दिसंबर 2021 (सोमवार) की है जब स्कूल में 12वीं की परीक्षा हो रही थी। आक्रोशित लोगों ने स्कूल मैनेजमेंट पर कार्रवाई की माँग की है। हालाँकि विश्व हिन्दू परिषद ने किसी भी हिंसक घटना से इनकार किया है।

इसी स्कूल ने पहले भी भारत माता की जय बोलने पर 31 छात्रों को सज़ा दी थी और अपने संगठन का मुद्दा बताया था। नामली कस्बे में स्थित सेंट जोसफ कॉन्वेंट स्कूल में पिछले दिनों (शुक्रवार) 9वीं कक्षा के 31 बच्चों को जमीन पर बैठाया गया और उन्हें परीक्षा देने से वंचित कर दिया गया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि बच्चों ने एसेंबली में ‘भारत माता की जय’ का घोष किया था, जिससे उन्हें परीक्षा से वंचित किया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिन्दू संगठनों ने स्कूल के अंदर 8 छात्रों के धर्मान्तरण का आरोप लगाया है। इस संबंध में प्रशासन को ज्ञापन भी दिया गया है। पुलिस पूरे मामले की जाँच कर रही है। साथ ही तोड़फोड़ करने वालों पर IPC के तहत केस भी दर्ज किया गया है। पुलिस अधिकारी (SDOP) भारत भूषण शर्मा ने यह जानकारी मीडिया को दी।

स्कूल प्रशासन ने खुद पर लगे सभी आरोपों को नकारा है। स्कूल के प्रिंसिपल ने इसको 2 समुदायों के बीच दूरी पैदा करने की साजिश बताया। इस घटना के लिए उन्होंने कुछ यूट्यूब चैनलों की खबरों को जिम्मेदार ठहराया। कर्मचारियों की सुरक्षा की माँग करते हुए झूठी खबर चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की है। स्कूल के मैनेजर ब्रदर एंथोनी ने पुलिस पर पर्याप्त सुरक्षा नहीं देने का आरोप लगाया है। उनके मुताबिक, “सिर्फ 2 पुलिसकर्मी मौके पर मौजूद थे। जिन 8 बच्चों के धर्मान्तरण के आरोप पर हंगामा हुआ वे हमारे स्कूल के छात्र नहीं थे।”

विश्व हिन्दू परिषद ने हिंसा को नकारते हुए बताया कि स्कूल के अंदर कलावा तक पहनने से रोका जाता है। VHP कार्यकर्ता नीलेश अग्रवाल के मुताबिक स्कूल में बच्चों को तिलक लगाने से रोका जाता है। दूसरे धर्म के बच्चों से अन्य धर्मों की प्रार्थना करवाई जाती है। धर्मान्तरण के निशाने पर ख़ासतौर से गरीब बच्चों को रखा जाता है। उन्होंने कहा हम सप्ताह भर से इसके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।

याद रहें की 12 जुलाई 2016 में भी एक ईसाई स्कूल ने ऐसा ही किया था। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में एक मिशनरी स्कूल द्वारा छात्रों के भारत माता की जय के नारे लगाने पर पाबंदी लगाने का मामला सामने आया है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, स्कूल प्रशासन के इस फैसले के बाद बच्चों के पैरंट्स के बीच काफी नाराजगी है। उधर स्कूल का कहना है कि मैनेजमेंट के आदेश पर यह रोक लगाई गई है।

अहिरवार समाज संघ ने इस संबंध में 4 दिसंबर को विदिश के डीएम से शिकायत की थी। इसमें कहा गया है कि 8 हिंदू बच्चों का पानी छिड़क कर ईसाई धर्मांतरण कराया गया। स्कूल की आड़ में धर्मांतरण रैकेट चलाने का आरोप लगाया गया है। गौरतलब है कि इस स्कूल के खिलाफ 2018 में फीस नहीं देने पर एक हिंदू छात्र को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए ABVP ने प्रशासन से शिकायत की थी।

भास्कर बहाना है, मीडिया निशाना है

केंद्र में किसान आंदोलन का कोई उचित समाधान ना दे पाने से इस मोर्चे पर मुंह की खाये केंद्र सरकार, बंगाल से भी मुंह की खा कर लौटी मोदी – शाह की जोड़ी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पर पिल पड़ी और वहाँ भी कुछ हाथ नहीं लगा तो तिलमिलाई सरकार अपनी साख बचाने का प्रयास कर ही रही थी कि मानसून सत्र के एन पहले फोन टेपिंग का मामला सुर्खियों में आ गया। अब मोदी शाह आकंठ गुस्से मेन डूब गए और फिर जो लावा फूटा तो वह सबसे आसान शिकार मीडिया पर।

  • दैनिक भास्कर समूहों के सभी ऑफिसों पर पड़ रहे हैं आयकर विभाग के छापे
  • भोपाल स्थित ऑफिस पर सुबह से ही जारी है छापेमारी
  • अखबार मालिक के घर पर भी की जा रही है छापेमारी
  • न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक कर चोरी के मामले में जारी है छापेमारी

चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

कुछ बोल के लब आज़ाद हैं तेरे

अभी अभी भारत समाचार चैनल लखनऊ में रेड।

आयकर विभाग ने कर चोरी के आरोपों में मीडिया समूह दैनिक भास्कर और भारत समाचार के विभिन्न शहरों में स्थित परिसरों पर गुरुवार को छापे मारे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि छापेमारी भास्कर समूह के  भोपाल, जयपुर, अहमदाबाद और कुछ अन्य स्थानों पर की गयी है। वहीं भारत समाचार के प्रमोटर्स और एडिटर-इन-चीफ के ठिकानों पर भी आयकर विभाग की तरफ से कार्रवाई की गयी है।

हालांकि अभी तक विभाग या उसके नीति निर्माण निकाय से किसी तरह की आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है लेकिन आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यह कार्रवाई विभिन्न राज्यों में संचालित हिंदी मीडिया समूह के प्रमुखों के खिलाफ चल रही है। कांग्रेस नेता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर कहा कि आयकर विभाग के अधिकारी समूह के करीब छह परिसरों पर “मौजूद हैं”। इनमें राज्य की राजधानी भोपाल में प्रेस कॉम्प्लेक्स में उसका कार्यालय भी शामिल है। बताते चलें कि कोरोना संकट के दौरान दैनिक भास्कर की तरफ से कई ग्राउंड रिपोर्ट किए गए थे।

बताते चलें कि आयकर विभाग की तरफ से यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है। विपक्षी दल पेगासस जासूसी मामले को लेकर सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं। मंगलवार को कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने संसद के दोनों सदनों में यह मुद्दा उठाते हुए कार्यवाही बाधित कर दिया था। विपक्षी सदस्यों ने पत्रकारों, नेताओं, मंत्रियों, न्यायाधीशों और अन्य लोगों की इजराइली पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी कराए जाने के आरोपों पर दोनों सदनों में जमकर विरोध जताया था।

सिंधिया की ‘उड़ान’ पर पायलट गहलोत द्वारा सिरे से नकारे गए अभी भी हैंगर में

ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया के कॉंग्रेस छोड़ भाजपा में जाने पर आहत हुए राहुल गांधी ने मीडिया को बताया था की वह और सिंधिया कोपलेज के समय से एक दूसरे के मित्र हैं और सिंधिया का यह कदम उनकी कोंग्रेसी विचारधारा से मेल नहीं खाता। आरएसएस ने उन्हें मात्र इस्तेमाल कर मध्य प्रदेश की सत्ता हथियाने के लिए किया है, जिस सम्मान और पद के लिए वह वहाँ गए हैं उन्हें वह इज्जत और गरिमामय स्थान वहाँ नहीं मिलेगा। कल जब सिंधिया को उड्डयन मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार दिया गया तो कोंग्रेसी खेमे में मायूसी छा गयी। सिंधिया को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलते ही रास्थान में पायलट को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। गहलोत अपने पुराने साथी को किसी भी सम्मानजनक स्थिति में देखना पसंद नहीं कर रहे। यहाँ तक कि उन्होने आलाकमान के सचिन को लेकर सुझाए गए फार्मूले को भी सिरे से नकार दिया। सिंधिया को मिले केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सम्मान से सचिन सोच में तो पड़े होंगे?

  • एक साल बाद जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया को केन्द्रीय मंत्रिपद मिला वहीं गहलोत ने पायलट को सिरे से खारिज कर दिया
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी तो सचिन पायलट का भाव बढ़ने का अनुमान जताया जाने लगा था
  • हालांकि, लंबा वक्त बीतने के बाद भी पायलट खुद को कांग्रेस पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहे हैंज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में केंद्रीय मंत्री पद मिलने के बाद पायलट को लेकर कयासों का बाजार गरम
  • सोशल मीडिया पर पायलट की कांग्रेस में दाल नहीं गलने और अब बीजेपी के विकल्प पर चर्चे

सरीका तिवारी, जयपुर/नयी दिल्ली/ चंडीगढ़:

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर सियासी संकट को गुजरे अब एक साल पूरा हो चुका है। पिछले साल जुलाई में ही पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने सरकार में सम्मानजन स्थिति को लेकर गहलोत नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी। मामला बिगड़ने के बाद आलाकमान के दखल पर एक कमेटी का गठन कर कुछ समय के लिये खींचतान के माहौल को शांत कर दिया गया, लेकिन रुक-रुककर पायलट और समर्थक विधायकों की टीस फिर से उठती रही है। कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में मिली पॉजिशन के बाद फिर से बगावती सुर सामने आये हैं।सोशल मीडिया पर ‘पायलट’ ट्रेंड करने रहा है। पायलट समर्थक विधायक पर फिर से बगावती तेवर और मानेसर या दिल्ली का रास्ता इख्तियार करने की स्थिति बनी तो पीछे नहीं हटने की बात कर रहे हैं।

जुलाई 2020 के बाद 2021 का जुलाई भी आ गया है। इस दौरान राजनीति में जो सवाल सबसे ज्यादा पूछा गया वह है कि सचिन पायलट कब कॉन्ग्रेस छोड़ेंगे? ज्योतिरादित्य सिंधिया के कॉन्ग्रेस छोड़ने के कुछ ही समय बाद उन्होंने भी बगावत का मूड दिखाया था। लेकिन बगावती तेवर दिखाने के बावजूद सिंधिया की तरह आखिरी फैसला नहीं कर पाए। अब एक बार फिर उसी सिंधिया को मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलने के बाद पायलट के कॉन्ग्रेस छोड़ने को लेकर कयास तेज हो गए हैं।

पायलट ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उनके समर्थक विधायकों के बीच हलचल दिख रही है। जो संकेत मिल रहे हैं कि उससे लगता है कि इस बार आगे बढ़ने पर समर्थक शायद ही कदम पीछे खींचने को राजी हों। इसकी एक वजह कॉन्ग्रेस के राजस्थान प्रभारी अजय माकन के दौरे के बावजूद गहलोत और पायलट गुट के बीच सहमति नहीं बन पाना है।

एक दैनिक समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार सुलह के फॉर्मूले को लेकर माकन ने दो दिन तक गहलोत के साथ मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों और कॉन्ग्रेस संगठन में नियुक्तियों पर चर्चा की। लेकिन, गहलोत अपनी कैबिनेट में पायलट गुट को मनमाफिक जगह देने को तैयार नहीं हैं। वे विधायकों की संख्या के अनुपात में मंत्री बनाने का तर्क दे रहे हैं, जबकि पायलट ने बगावत ही ज्यादा प्रतिनिधित्व को लेकर की थी। कुछ रिपोर्टों में तो यहाँ तक कहा गया है कि पायलट समर्थकों को कैबिनेट में जगह देने से ही गहलोत ने साफ इनकार कर दिया है। वे संगठन में इस गुट को प्रतिनिधित्व देने को राजी बताए जा रहे हैं।

गौरतलब है कि 2018 में जब राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी तो उसका श्रेय सचिन पायलट को दिया गया था। असल में 2013 में गहलोत के नेतृत्व में करारी शिकस्त के बाद पायलट को कॉन्ग्रेस ने केंद्रीय राजनीति से प्रदेश में भेजा था और बतौर प्रदेश अध्यक्ष उन्हें कमान दी थी। 2014 के आम चुनावों में कॉन्ग्रेस का खाता नहीं खुलने के बावजूद पायलट जमीन पर जुटे रहे और 2019 के विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस को उनकी मेहनत का फल भी मिला। लेकिन मुख्यमंत्री चुनते वक्त उन्हें किनारे कर दिया गया। गहलोत कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री का पद मिला पर शुरुआत से ही उन्हें और उनके समर्थकों को सरकार में उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा। प्रियंका गाँधी से मुलाकात के बाद पायलट ने पिछली बार पैर पीछे खींच लिए थे और उसके बाद से वे सरकार तथा उनके समर्थक अलग-थलग पड़े हैं।

पिछले दिनों जब बीजेपी ने कॉन्ग्रेस से आए हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाया था तब भी इसे पायलट के लिए संकेत के तौर पर देखा गया था। अब देखना यह है कि पायलट कॉन्ग्रेस के अपने पुराने साथी सिंधिया की तरह उड़ान भरने की हिम्मत जुटा पाते हैं या कॉन्ग्रेस के ओल्ड गार्ड के रहमोकरम तले मौका मिलने की अंतहीन उम्मीद के साए तले जीते रहेंगे।

भाजपा और कांग्रेस चाहे जितनी कोशिशें कर लें अरविंद केजरीवाल को बदनाम नहीं कर सकती: योगेश्वर शर्मा

  • योगेश्वर शर्मा ने कहा: राजनीति छोडक़र तीसरी लहर से निबटने का इंतजाम करना चाहिए
  • भाजपा और कांग्रेस देश को गुमराह करने के लिए माफी मांगे

पंचकूला,26 जून:

आम आदमी पार्टी का कहना है कि  केंद्र की भाजपा सरकार और जगह जगह चारों खाने चित्त हो रही कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को बदनाम करने की लाख कोशिशें कर लें,सफल नहीं होंगी। पार्टी का कहना है कि दिल्ली के लोग जानते हैं कि केजरीवाल उनके लिए लड़ता है और उनकी खातिर इन मौका प्रस्त पार्टियों के नेताओं की बातें भी सुनता है। यही वजह है कि दिल्ली की जनता ने तीसरी बार भी उन्हें सत्ता सौंपी तथा भाजपा को विपक्ष में बैठने लायक और कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा। आने वाले दिनों में यही हाल इन दोनों दलों का पंजाब मेें भी होने वाला है। इसी के चलते अब दोनों दल आम आदमी पार्टी व इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल को निशाना बना रहे हैं।  पार्टी का कहना है कि अब तो इस मामले के लिए बनाई गई कमेटी  के अहम सदस्य एवं एम्स के प्रमुख डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि अब तक फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है। ऐसे यह कहना जल्दबाजी होगी कि दिल्ली ने दूसरी लहर के पीक के वक्त जरूरी ऑक्सीजन की मांग को चार गुना बढक़र बताया। उन्होंने कहा कि मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है, ऐसे में हमें जजमेंट का इंतजार करना चाहिए। ऐसे में अरविंद केजरीवाल को निशाना बनाने वाले भाजपा एवं कांग्रेस के नेता जनता को गुमराह के करने के लिए देश से माफी मांगे।
 आज यहां जारी एक ब्यान में आप के उत्तरी हरियाणा के सचिव योगेश्वर शर्मा ने कहा कि भाजपा और कांग्रेसी नेताओं को शर्म आनी चाहिए कि वे उस अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं जो अपने लोगों के लिए दिन रात एक करके काम करता है और उसने कोरोनाकाल में भी यही किया था। उन्होंने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में कोविड की दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी तो यहां ऑक्सीजन की मांग में भी बेतहाशा वृद्धि हो गई थी। चाहे सोशल मीडिया देखें या टीवी चैनल हर जगह लोग अप्रैल और मई माह में ऑक्सीजन की मांग कर रहे थे। कई अस्पताल और यहां तक कि मरीजों के तीमारदार भी ऑक्सीजन की मांग को लेकर कोर्ट जा पहुंचे थे। उन्होंने कहा है कि अरविंद केजरीवाल ठीक ही तो कह रहे हैं कि उनका गुनाह यह है कि वह दिल्ली के  2 करोड़ लोगों की सांसों के लिए लड़े और वह भी उस समय जब  भाजपा और कांग्रेस के नेता चुनावी रैली कर रहे थे। तब भाजपा के दिल्ली के सांसद अपने घरों में छिपे बैठे थे। उन्होंने कहा कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ठीक ही तो दावा किया है कि जिस रिपोर्ट के आधार पर अरङ्क्षवद केजरीवाल को बदनाम किया जा रहा है, वह है ही नहीं। है तो उसे सार्वजनिक करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दरअसल भाजपा का आईटी सैल अरङ्क्षवद केजरीवाल के पंजाब दौरे के बाद से ही बौखलाया हुआ है, क्योंकि पंजाब में उसका आधार खत्म हो चुका है और आप पंजाब के साथ साथ अब गुजरात में भी सफलता के परचम फैला रही है। पंजाब व गुजरात में भाजपा के लोग आप का दामन थाम रहे हैं। ऐसे में उसे व कांग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनावों में अगर किसी से खतरा है तो वह अरङ्क्षवद केजरीवाल और उनकी पार्टी आप से है। उन्होंने कहा कि ये पार्टियां और उनके नेता उन लोगों को झूठा बताकर उनका अपमान कर रहे हैं जिन लोगों ने अपनों को खोया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को देश में अपने पोस्टर लगवाने के बजाये कोविड-19 की तीसरी लहर के खतरे से निपटने की तैयारियों पर ध्यान देना चाहिए।  उन्होंने प्रधानमंत्री को सचेत किया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं, इसलिए यह आराम का वक्त नहीं है, बल्कि सरकार को अग्रिम प्रबंध करने चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा न हो कि जिस तरह केंद्र सरकार के दूसरी लहर से पहले के ढीले व्यवहार के कारण हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, वैसा ही तीसरी लहर के बाद हो। उन्होंने सरकार को वायरस के बदलते स्वरूप की तुरंत वैज्ञानिक खोज कर विशेषज्ञों की राय के अनुसार सभी इंतजाम करने को कहा। उन्होंने कहा कि अपनी नाकामियों का ठीकरा अरविंद केजरीवाल पर फोडऩे से काम नहीं चलेगा। काम करना होगा क्योंकि देश के लोग देख रहे हैं कि कौन काम कर रहा है और कौन ऐसी गंभीर स्थिति में भी सिर्फ राजनीति कर रहा है।

हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बने योगी, मोदी और शाह के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं

राजनीतिक जगत में इस बात की भी चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेताओं को अब ऐसा फ़ैसला समझ में आ रहा है, जिसे अब बदलना और बनाए रखना, दोनों ही स्थितियों में घाटे का सौदा दिख रहा है।  दूसरे, पिछले चार साल के दौरान बतौर मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ की जिस तरह की छवि उभर कर सामने आई है, उसके सामने चार साल पहले के उनके कई प्रतिद्वंद्वी काफ़ी पिछड़ चुके हैं।  यहां तक कि पिछले दो हफ़्ते से आरएसएस और बीजेपी के तमाम नेताओं की दिल्ली और लखनऊ में हुई बैठकों के बाद यह माना जा रहा था कि शायद अब यूपी में नेतृत्व परिवर्तन हो जाए लेकिन बैठक के बाद वो नेता भी योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ कर गए जिन्होंने कई मंत्रियों और विधायकों के साथ आमने-सामने बैठक की और सरकार के कामकाज का फ़ीडबैक लिया। 

करणीदानसिंह राजपूत, सूरतगढ़:

भाजपा शासित राज्यों में विरोध की दशा दिशा में अभी तो केवल मोदी के नाम के सहारे ही लड़ने और जीतने की संभावना मानते हुए राज्यों के चुनाव में उतरेंगे मगर मोदी-शाह की सबसे बड़ी मुश्किल है कि योगी उनके लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं। योगी फिर से जीते तो मोदी के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। क्योंकि हिंदू नेता के तौर पर योगी इस समय भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं। 

यूपी की दशा दिशा सब के सामने आ चुकी है।

सीएम योगी आदित्यनाथ दिल्ली में आकर पीएम और गृह मंत्री से भेंट कर चुके हैं। केंद्र की टीम लखनऊ में डेरा लगाकर  हल निकालने की जुगत में बैठी है लेकिन  बीच का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। योगी भारी पड़ रहे हैं और केंद्र की टीम वहां बिना भार का रूई का गोला साबित हो रही है।

बंगाल चुनाव में मिली हार के बाद पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सबसे बड़ी ठेस भी पहुंची है की भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वापस टीएमसी में शामिल हो गया। चाहे वह टीएमसी से ही आए थे लेकिन भाजपा से गए जब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद था। संगठन में एक पद नीचे यानि दूसरे क्रम पर थे। मोदी शाह से समकक्ष नहीं तो कुछ छोटा।

यह मामूली तो नहीं कहा जा सकता। इसके बाद बंगाल में जो टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए लोगों का वापस टीएमसी में लौटने का तूफान मचा है। समाचारों में तो यह संख्या बड़ी है। चुनाव के समय रोजाना ममता को झटका लगने का समाचार खूब प्रचारित किये जाते रहे जब टीएमसी छोडकर भाजपा में शामिल होते। इतना करने के बावजूद राज मिलने तक की संख्या तक नहीं पहुंच पाए। ममता को नीचा दिखाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय चेहरे अपने पद और कद से बहुत नीचे उतरे। अब भाजपा को रोजाना झटके लग रहे हैं।

बंगाल में राज नहीं मिलने पर जो कमजोरी आई है उससे राज्यों में चुनौती मिलने लगी है। भाजपा शासित राज्यों  में जो विरोध के स्वर देखने को मिल रहे हैं वो नेताओं की चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं। सबसे मुश्किल ये है कि विरोध केवल हिंदी भाषी राज्यों में नहीं है बल्कि दक्षिण तक पहुंच चुका है। चिंता केवल इतनी ही नहीं है। 

कर्नाटक में भी मुख्यमंत्री येदियुरप्पा केंद्रीय नेतृत्व को आंखें दिखा रहे हैं। वहां एक धड़ा उनके विरोध में सामने आ चुका है। केंद्रीय नेतृत्व चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा, क्योंकि मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं। उन्हें नाराज करने का मतलब होगा इस समुदाय को नाराज करना। कर्नाटक भाजपा के लिए अहम इस वजह से भी है क्योंकि दक्षिण में ये अकेला राज्य है जहां भाजपा अपने दम पर खड़ी है।

प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के हालात भी ठीक नहीं हैं। वहां मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच सिर फुटौव्वल चल रही है। पाटिल को मोदी का नजदीकी माना जाता है। कोरोना मामले पर मुख्यमंत्री के साथ उनकी तनातनी अब जगजाहिर हो चुकी है। केंद्रीय नेतृत्व के लिए ये बड़ी चिंता का मामला है। दोनों की तनातनी में गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल अपने लिए मौका तलाश रहे हैं। वो मुख्यमंत्री बनने के लिए गुणाभाग कर रहे हैं।

गोवा में भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के खिलाफ उनकी ही कैबिनेट ने मोर्चा खोल रखा है। गोवा में भी उत्तर प्रदेश के साथ अगले साल चुनाव होना है। केंद्र ने वहां के हालात सुधारने का जिम्मा बीएल संतोष को दिया है। नतीजा देखना रोचक होगा।

बंगाल में हार के बाद किस तरह की भगदड़ भाजपा में मची है, ये बात जगजाहिर हो चुकी है। भाजपा चाहकर भी अपने लोगों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है। त्रिपुरा में भी हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में भी हालात ठीक नहीं हैं। बंगाल से मात खाकर लौटे कैलाश विजय वर्गीय के बारे में कहा जा रहा है कि वो शिवराज को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनने के जुगाड़ में हैं। 

भाजपा की दशा दिशा शोचनीय होने पर भी माना जा रहा है कि असंतोष से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है राज्यों में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का नाम ही काफी रहेगा।

विंध्यावासिनी पूजा

शिव पुराण के अनुसार मां विंध्यवासिनी माता सती का रूप हैं. श्रीमद् भागवत में मां विंध्यवासिनी का नंदजा देवी के रूप में उल्लेख है. इसके अलावा विभिन्न धर्म ग्रंथों में इन्हें विभिन्न नामों से वर्णित किया गया है. उदाहरर्णाथ कृष्णानुजा , वनदुर्गा आदि. माँ विंध्यवासिनी की विशिष्ठ पूजा-अनुष्ठान ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की षष्ठी (इस वर्ष 16 जून 2021) के दिन करने का विधान है. इस दिन विंध्याचल स्थित माँ विंध्यवासिनी का दर्शन करने हेतु भारी तादाद में भक्त यहां पहुंचते हैं. मान्यता है कि इस दिन माता का दर्शन एवं पूजन से सभी मनोकामनाएं एवं सिद्धियां आसानी से पूरी होती हैं.

धर्म/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम :

माँ विंध्यवासिनी का महात्म्य

उत्तर भारत स्थित विंध्याचल पर्वत पर निवास करने वाली, कल्याणकारी मां विंध्यवासिनी माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती का रूप धारण करने वाली, एवं मधु-कैटभ का संहार करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां आकर मां विंध्यवासिनी की तपस्या करता है, उसे इच्छित दैवीय सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मां विंध्यवासिनी अपने दिव्य स्वरूप में विंध्याचल पर्वत पर विराजमान रहती हैं. पुराणों में विंध्याचल पर्वत को हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है.

कौन हैं मां विंध्यवासिनी?

मार्कंडेय पुराण के अनुसार माँ दुर्गा ने त्रेता युग में राक्षसों के संहार हेतु भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को नंद-यशोदा के घर में जन्म लिया था. उसी दिन विष्णुजी मथुरा जेल में देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण रूप में अवतरित हुए थे. अत्याचारी कंस को पता चल गया था कि उसकी बहन की आठवीं संतान उसका वध करेगी. इस पर उसने देवकी-वासुदेव को कैद कर लिया. देवकी जिस भी संतान को जन्म देतीं, कंस उसे मार देता था. लेकिन देवकी की आठवीं संतान पैदा हुई तो देवकृपा से कंस को पता नहीं चला. वासुदेव ने शिशु कृष्ण को नंद-यशोदा के घर पहुंचाकर उसी दिन उनके घर पैदा हुई कन्या को लाकर देवकी को सौंप दिया. कंस को देवकी की आठवीं संतान की खबर मिली, वह तत्क्षण जेल में आया. कंस ने ज्यों ही बालस्वरूपी दुर्गाजी को मारना चाहा, दुर्गाजी ने प्रकट होकर उसे बताया कि उसका संहारक गोकुल में है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार इसके बाद माँ दुर्गा विंध्य पर्वत पर आसीन हो गईं. तभी से उन्हें विंध्यवासिनी के नाम से जाना जाता है.

ऐसे करें माँ विंध्यवासिनी की पूजा-अनुष्ठान

ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन विंध्याचल में पूजा का आयोजन होता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना के कारण घर में ही पूजा-अर्चना करनी चाहिए. यह पूजा रात्रिकाल में होती है. ज्येष्ठमास की षष्ठी को स्नान ध्यान कर नये वस्त्र धारण कर माँ विंध्यवासिनी का ध्यान करें. किसी एकांत कमरे की अच्छे से सफाई कर पूर्व दिशा में मुंह करके आसन पर बैठें. सामने एक स्वच्छ चौकी रखें. इस पर गंगाजल छिड़ककर लाल आसन बिछायें, इस पर माँ विंध्यवासिनी का साधना यंत्र स्थापित करें. यंत्र के पास सात छोटी सुपारी रखें, धूप-दीप प्रज्जवलित कर, मौली को विंध्यवासिनी यंत्र पर लपेटकर माँ विंध्यवासिनी का आह्वान करें. पूजा-अर्चना कर विंध्येश्वरी माला फेरने के साथ माँ विंध्यवासिनी के इस मंत्र का 5 बार जाप करें.

‘ॐ अस्य विंध्यवासिनी मन्त्रस्य,

विश्रवा ऋषि अनुष्टुपछंद: विंध्यवासिनी,

देवता मम अभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:’

यह पूजा 11 दिनों तक निंरतर करनी चाहिए औऱ 9 दिनों तक 45 माला का जाप करें. पूजा के पश्चात मन ही मन मनोकामना करें. 11 वें दिन किसी ब्राह्मण से हवन कराकर उसे दक्षिणा एवं भोजन दें. पूजा हवन में प्रयोग की हुई वस्तुओं को किसी नदी के प्रवाह में विसर्जित करें. यह संभव नहीं है तो किसी पीपल वृक्ष की जड़ में दबा दें.

माँ विंध्यवासिनी ही हैं महिषासुर मर्दिनी!

मां विंध्यवासिनी का मंदिर विंध्य पर्वत पर स्थित है. इन्हें माँ काली के रूप में भी पूजा जाता है. क्योंकि महिषासुर का वध करने के लिए विंध्यवासिनी ने काली का रूप लिया था, इसलिए इन्हें महिषासुर -मर्दिनि भी कहते हैं. मान्यतानुसार यज्ञ में आहुति देने से मृत सती का शव लेकर भगवान शिव संपूर्ण ब्रह्माण्ड में जब तांडव कर रहे थे, तब श्रीहरि के सुदर्शन चक्र से सती के टुकड़े जहां-जहां गिरे, उन्हें शक्तिपीठ का नाम दिया गया. विंध्य पर्वत पर भी ऐसा ही एक शक्तिपीठ है, जहां देवी काजल के नाम से पूजा की जाती है.

दिल्ली में आआपा मेहरबान रोहिङिया पहलवान

पिछले साल 16 या 17 मई को एक हिन्दी दैनिक में प्रकाशित तोषी शर्मा की विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार, ये रोहिंग्या मुस्लमान दिल्ली की उस जमीन अवैध रूप से कब्जा कर बस गए हैं और साथ ही सारी सरकारी सुविधाओं का भी फायदा उठा रहे हैं। ओखला के विधायक और आआपा नेता अमानतुल्लाह ख़ान इस वक़्त उन सबके सबसे बड़े मददगार हैं, जिन्होंने रोहिंग्याओं को राशन-पानी से लेकर अन्य मदद मुहैया कराने के लिए दिन-रात एक की हुई है।

अब मूल प्रश्न यह है:

  • कि तोषी शर्मा कि इस रिपोर्ट पर आज तक क्या कार्यवाई हुई?
  • यदि केंद्र सरकार रोहंगिया को राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए घाटा मानती है तो केंद्र ने अपने स्तर पर क्या कदम उठाए?
  • सूत्रों कि माने तो जब बंगाल चुनावों में घुसपैठियों कि मदद से चुनाव जीते जा सकते हैं तो दूसरे प्रदेशों में क्यों नहीं?
  • या रिपोर्ट अपने आप में प्रश्नों का पुलिंदा है

आज भी

  • दिल्ली पुलिस बेफिक्र, केंद्र ने बताया था रोहिंग्या को खतरा
  • रोहिंग्याओं की इस बस्ती में 300 से ज्यादा लोगों को सुविधाएं भी मिल रही हैं
  • आरोप: स्थानीय आआपा विधायक की मदद से बनवा लिए आधार-वोटर कार्ड

‘पुरनूर’ कोरल, चण्डीगढ़/नयी दिल्ली :

भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमान किस तरह पूरे देश में पैर पसारते जा रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इससे राजधानी दिल्ली भी अछूती नहीं है। दिल्ली पुलिस की नाक के नीचे मदनपुर खादर श्मशान घाट के सामने अवैध रूप से ये रह रहे हैं। यह अवैध बस्ती उत्तरप्रदेश सिंचाई विभाग की जमीन पर बसाई गई है। हैरत की बात है कि इन्हें  बाकायदा सभी सरकारी सुविधाएं भी मिल रही हैं। लॉकडाउन में इन कैंपों में दिल्ली सरकार और ओखला विधायक अमानतुल्लाह खान की ओर से भरपूर राशन सामग्री मुहैया करवाई जा रही है। इस रोहिंग्या कैंप में चोरी की लाइट के साथ-साथ पानी के लिए अवैध तरीके से बोरिंग तक करवाया गया है। 

वहीं दूसरी ओर यहां आसपास की झुग्गियों में रह रहे प्रवासी मजदूरों के परिवार राशन को तरस रहे हैं। बता दें कि खुद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि रोहिंग्या मुसलमान भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है और इन्हें सरकार देश से बाहर करना चाहती है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस अवैध कैंप से कालिंदी कुंज थाना पुलिस की मिली भगत से अवैध रूप से गांजा, स्मैक और अन्य मादक पदार्थों का धंधा चल रहा है। कई आरडब्ल्यूए दिल्ली पुलिस से इस अवैध बस्ती को हटाने के लिए गुहार लगा चुका है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की जिस जमीन पर अवैध रोहिंग्याओं का कब्जा है वो करीब 5.2 एकड़ जमीन है। खसरा नंबर 612 की इस जमीन की कीमत अरबों रुपए है। जिस पर योजनाबद्ध तरीके से पुलिस संरक्षण के कारण अवैध रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों ने कब्जा कर रखा है।

योजनाबद्द तरीके से यूपी की जमीन पर बसाया: स्थानीय लोग

यूपी सिंचाई विभाग के आगरा कैनाल की जमीन पर ओखला विधायक अमानतुल्लाह खान पर योजनाबद्ध तरीके से बसाने का स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है। कंचन-कुंज के लोगों ने आरोप लगाया कि यहां अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या पहले कंचन-कुंज में एक मुस्लिम नेता के खाली प्लाट में रह रहे थे। जहां 17 अप्रैल 2018 को साजिश के तहत झुग्गियों में आग लगाई गई। जिसके बाद इन्हें दिल्ली के बाहर यूपी सिंचाई की जमीन पर अवैध कब्जा करवाया गया है। इसके कैंप के आसपास अवैध बांग्लादेशियों को भी बसाया जा रहा है। ये रोहिंग्या इस इलाके में कई वर्षों से रह रहे हैं।  यमुना किनारे श्मशान घाट के किनारे कैंप में रह रहे अवैध रोहिंग्याओं की दिल्ली सरकार और स्थानीय विधायक अमानतुल्लाह खान की ओर से पूरी मदद करने का आरोप स्थानीय लोगों ने लगाया है। लोगों का आरोप है कि इस कैंप में करीब 300 से ज्यादा लोग रहते हैं। जो बिजली और पानी की चोरी करते हैं।

सरिता विहार एसीपी बोले- रोहिंग्या बैठे हैं तो क्या हुआ

इस बारे में सरिता विहार शर्मा ने एसीपी ढाल सिंह से भी बात की। उनका जवाब हैरान करने वाला था। जब उनसे पूछा गया कि यहां रोहिंग्या अवैध तरीके रह रहे हैं। इस बारे में स्थानीय लोग कई बार इन्हें हटाने के मांग कर चुके हैं। लेकिन दिल्ली पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस पर एसीपी ढाल सिंह ने कहा कि रोहिंग्या रह रहे हैं तो क्या हुआ।  इधर, यहां अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं को हटाने के लिए स्थानीय पार्षद संतोष देवी दिनेश टांक ने बताया कि दिल्ली पुलिस, पूर्व सांसद महेश गिरी, मौजूदा बीजेपी सांसद गौतम गंभीर और यूपी की योगी सरकार को लिखित में शिकायत दे चुकी हैं। लेकिन पुलिस और सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

पूर्व सांसद गिरी बोले-नहीं मिला था पुलिस का सहयोग 

दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली से पूर्व भाजपा सांसद महेश गिरी ने इन रोहिंग्याओं को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को लिखा था। लेकिन आप विधायक अमानतुल्लाह खान ने उस समय विरोध किया था।  पूर्व सांसद महेश गिरी से एक हिन्दी दैनिक ने इस बारे में जानकारी के लिए फोन पर संपर्क किया। लेकिन उनके निजी सचिव से बात हुई। उन्होंने बताया कि क्षेत्रीय विधायक अमानतुल्लाह खान के संरक्षण में रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को इस इलाके में योजनाबद्ध तरीके से बसाया जा रहा है। यहां तक कि इन रोहिंग्याओं के अमानतुल्लाह खान ने अपने लेटर हैड के जरिए आधार और वोटर कार्ड भी बनवाए हैं।   मदनपुर खादर ईस्ट में रह रहे जानकारों ने भास्कर से बताया कि कुछ रोहिंग्या परिवार सबसे पहले मदनपुर खादर एक्सटेंशन पार्ट वन में एक मुस्लिम व्यक्ति के घर में हॉल में रह रहे थे। फिर धीरे-धीरे अपने और लोगों को बुलाते रहे। जिसके बाद ये एक स्थानीय मुस्लिम नेता के विवादित खाली प्लाट में झुग्गियां बनाकर रहने लगे। 

  • हां, यहां पर रोहिंग्या अवैध तरीके से रह रहे हैं। लेकिन कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता हूं। ये मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए डीसीपी से बात कीजिए। – संजय सिन्हा, एसएचओ, कालिंदी कुंज
  • मेरी जानकारी में नहीं है, मैं पता करवाता हूं। जानकारी मिलने पर इस विषय में नियमानुसार कार्रवाई करेंगे। चिन्मय बिस्वाल,डीसीपी, दक्षिणी पूर्वी दिल्ली
  • विभाग की जमीन से रोहिंग्याओं का कब्जा हटाने के लिए कार्ययोजना बनाकर लखनऊ भेजा जा चुका है। इसके साथ ही दिल्ली पुलिस के असहयोग के रवैये को लेकर गृह मंत्रालय को भी लिखा गया है। सरकार जमीन खाली करवाएगी।-देवेंद्र ठाकुर, एक्सईएन, हेडवर्क खंड आगरा नहर ओखला

शनैश्चर जयंती 2021

नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥

10 जून 2021 को शनैश्चर जयंती है. साढे साती, ढैया और कमजोर विंशोत्तरी के प्रभाव को कम करने के लिए शनिदेव के सहज उपाय कारगर सिद्ध होते हैं. ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनैश्चर जयंती मनाई जाती है. भाग्य के देवता न्यायाधिपति शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग विभिन्न उपाय करते हैं.

धर्म/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम :

कोरोना संक्रमण के बीच शनि जयंती 10 जून को आस्था व उल्लास के साथ मनाई जाएगी। इस मौके पर पुष्प और विद्युत सज्जा से सजे शनि मंदिरों में भगवान का तिल-तेल से अभिषेक होगा। हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते भक्तों के बिना पूजा-अर्चना के साथ कोरोना मुक्ति के लिए प्रार्थना होगी।

शनिदेव की जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या को है. शनैश्चर जयंती को पिता सूर्य को ग्रहण लगने वाला है. यह ग्रहण भारत में अमान्य होगा. इसका सूतक भी भारतवर्ष में नहीं लगेगा. कंकणाकृति ग्रहण दक्षिण अमेरिका, अंटार्कटिका, दक्षिण पश्चिम अफ्रीका, प्रशांत महासागर एवं आइसलैंड क्षेत्र में दिखाई देगा.
सूर्यग्रहण सर्वाधिक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है. इसका निर्माण सूर्य और पृथ्वी के चंद्रमा के आने पर होता है. अर्थात् तीनों एक सीध में होते हैं. सूर्यदेव की चाल से चंद्रमा और पृथ्वी को अपनी गति व्यवस्थित करना होती है. ऐसे में पृथ्वी पर अत्यावश्यक भौगोलिक सुधार होते हैं.
कंकणाकृति सूर्यग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक लगता है. यह विशेषतः दृश्य क्षेत्र में मान्य होता है. शनिदेव की शनैश्चर जयंती के दिन ग्रहण होना विभिन्न राशियों के लिए भाग्य में आकस्मिक बदलावों का संकेतक है. शनिदेव भाग्यदाता ग्रह हैं. इन दिनों वे सूर्य के प्रभाव से उलटी चाल में हैं. ऐसे ग्रहण का आना शनिदेव के प्रभाव को अत्यधिक बढ़ाने वाला है. ग्रहण के दौरान ऐसे कार्याें से दूरी रखें जिनके कारक शनिदेव हैं. लोहे के सामान और औजारों को न छुएं. ऐसी भूमि क्षेत्र से दूरी रखें जो दलदली हो. भारी मशीनरी से बचाव रखना भी उचित होगा
शनिदेव न्याय के देवता हैं. ग्रहण के दौरान किसी को हानि न पहुंचाएं. ग्रहण के दौरान पाप-पुण्य का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. ऐसे में कोई चूक न करें. शनिदेव और सूर्यदेव के मंत्रों का जाप कर सकते हैं. ग्रहण रात्रिकाल में रहेगा. रात्रि में हल्का भोजन लें. तनावमुक्त अवस्था में शयन पर जोर दें.

सिंधिया के बाद जितिन क्या अब है देवड़ा और सचिन की बारी, बिछड़े सभी बारी बारी

राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जितिन प्रसाद को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने के बाद स्वागत किया है. जितिन प्रसाद को छोटा भाई समान बताते हुए सिंधिया ने कहा कि मैं उन्हें बीजेपी में शामिल होने के लिए बधाई देता हूं. भोपाल पहुंचने पर राज्यसभा सांसद ने कहा, ”वह (जितिन प्रसाद) मेरे छोटे भाई समान हैं मैं पार्टी में उनका स्वागत करता हूं.”

  • जितिन प्रसाद के बीजेपी की सदस्यता लेते ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ खोला मोर्चा
  • कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने जितिन प्रसाद पर सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाया है
  • जितिन के करीबी बोले, …तो कांग्रेस एक दिन सिर्फ एक परिवार की पार्टी बनकर रह जाएगी
  • 26 साल की उम्र में IYC के महासचिव बने थे जितिन, 30 साल की उम्र में जीते लोकसभा चुनाव

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

एक ओr जहां भाजपा बढ़ चढ़ आर जीतीं प्रसाद का स्वागत कर रही है वहीं कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने जितिन प्रसाद पर सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाया है। सुप्रिया ने कहा कि जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली थी तो जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने विरोध किया था और विरोध में चुनाव लड़ा था। इसके बाद भी उन्हें पद दिया गया। बाद में जितिन प्रसाद को भी पार्टी में मौका दिया गया। वह युवा कांग्रेस के महासचिव, सांसद और फिर कांग्रेस की सरकार में मंत्री रहे। उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य है कि जिस कांग्रेस ने उन्हें इतना कुछ दिया, वह पार्टी छोड़ गए। क्या यह सहूलियत की राजनीति नहीं है?’

 उनके इस फैसले के बाद जहाँ तमाम कॉन्ग्रेस राजनेताओं की अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही है, वहीं मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस ईकाई ने उनकी तुलना कूड़े और भाजपा की तुलना कूड़ेदान से की है।

बता दें कि इससे पहले उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने जितिन प्रसाद के कॉन्ग्रेस छोड़ने पर अपनी तिलिमिलाहट दिखाई। चूँकि जितिन प्रसाद को कॉन्ग्रेस का बड़ा ब्राह्मण चेहरा माना जाता है। ऐसे में उनके पार्टी छोड़ने पर लल्लू ने कहा था यूपी में प्रियंका गाँधी से बड़ा कोई ब्राह्मण चेहरा नहीं है।

उल्लेखनीय है कि आज यानी 9 जून को उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस के बड़े नेता जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हुए। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इसे बड़े फेरबदल के रूप में देखा जा रहा है। दोपहर में भाजपा मुख्यालय में जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने का कार्यक्रम हुआ। शाहजहाँपुर में अच्छी पैठ रखने वाले जितिन प्रसाद फ़िलहाल दिल्ली में ही हैं।

इस अवसर पर जितिन प्रसाद ने कहा कि उनकी तीन पुश्तें कॉन्ग्रेस से जुड़ी रही हैं, इसीलिए उन्होंने काफी सोच-विचार के बाद ये महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि पिछले 8-10 वर्षों में उन्हें महसूस हुआ है कि एक ही पार्टी ऐसी है, जो पूरी तरह राष्ट्रीय है और वो है भारतीय जनता पार्टी। जितिन प्रसाद ने कहा कि अन्य राजनीतिक दल क्षेत्रीय हैं, लेकिन भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। उन्होंने कहा कि यही एक पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कठिन परिस्थिति में देशहित के लिए खड़े हैं।

धोखेबाज, गद्दार- ज्योतिरादित्य सिंधिया

जब कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से इस्तीफा दिया था तो कॉन्ग्रेसियों ने सिंधिया को गद्दार और धोखेबाज जैसे विशेषणों से पुकारना शुरू कर दिया था। कुछ समर्थकों ने सिंधिया के विकिपीडिया पेज को अपडेट कर उनके लिए ‘गधा’ और ‘सत्ता का भूखा सिंधिया’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया था।

सिंधिया पर बौखलाए थे ‘निष्पक्ष’ पत्रकार तक

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कॉन्ग्रेस छोड़ने से पत्रकारों के गिरोह विशेष की सुलग गई थी। सबा नकवी ने नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा था, “अरे, हम सब लोग इतना काम करते हैं। हम सभी इतनी मेहनत करते हैं। क्या है ये? हम दिन-रात काम करते हैं, ख़बरों को कवर करते हैं। कोई आ रहा है, कोई जा रहा है। ये सब क्या है? मजाक चल रहा है क्या?”

‘देवी’ अहल्या बाई होल्कर की तुलना क्षुद्र राजनैतिक लाभ के लिए अपनी प्रजा पर अत्याचार करने वाली नेत्री से नहीं होनी चाहिए: श्रीमंत भूषण सिंह राजे

अपने भड़काऊ, बेतुके और अनर्गल ब्यान देने के लिए कुख्यात संजय राऊत के हाथ ‘सामना’ की शक्ल में एक ऐसी दोधारी तलवार लग चुकी है जिसका प्रयोग वह यदा कदा करते ही रहते हैं। स्त्री सम्मान के प्रति उनके विचार कंगना राणावत को ले कर पहले ही सोशल मीडिया में प्रसारित हो चुके हैं। स्वयं को मराठी अस्मिता का पैरोकार मानने वाली शिवसेना के मुखपृष्ठ ‘सामना’ के संपादक राऊत इतिहास के पन्नों में जातिवाचक संज्ञा का रूप बन चुकीं ‘देवी’ अहल्याबाई होल्कर, की तुलना बंगाल की उस राजनैतिक नेत्री से की जिं पर न केवल भ्रष्टाचार आपित धर्मद्रोही होने तक के आरोप लग चुके हैं। बंगाल की मुसलिम तुष्टीकरण की पुरोधा ‘ममता बेनर्जी। राऊत के इस तुलनत्म्क लेख में मोदी विरोध कम लेकिन चाटुकारिता अधिक झलकती है। संजय राउत को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत नजर आ रही है लेकिन भाजपा द्वारा 3 से बढाकर 77 सीटों तक पहुंचने का सफर दिखाई नहीं दे रहा है। भाजपा ने पूरे विपक्ष का सफाया कर उसके राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है। ऐसे में सवाल ये है की वे भाजपा की तुलना किससे करेंगे। राईट विंग द्वारा विपक्ष में मजबूत स्थान प्राप्त कर चुकी है, ये बात संजय राउत भूलना नहीं चाहिए।

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुलना ‘महान महिला शासक’ रानी अहिल्या बाई होलकर से किए जाने के बाद रानी के वंशजों में गुस्सा है। लेख को पढ़ने के बाद उनके एक परिजन श्रीमंत भूषण सिंह राजे होलकर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र भी लिखा है।

पत्र में राउत की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि ये बेहद शर्मनाक है कि एक राष्ट्रीय नेता की तुलना आजकल के राजनेताओं से की जाए, वो भी टुच्चे फायदों के लिए। होलकर ने बताया कि अहिल्याबाई ने अपना पूरा जीवन राष्ट्र और जनता की सेवा में लगाया, उनकी तुलना एक ऐसी नेत्री से नहीं हो सकती जो राजनीति के लिए अपने लोगों पर अत्याचार करे।

पत्र में उन्होंने लिखा की ऐसी तुलना सिर्फ और सिर्फ वैचारिक क्षमता उजागर करती है। किसी को भी पहले अपनी योग्यता साबित करनी चाहिए और बाद में लोगों को उसका मूल्य तय करने देना चाहिए। 

संजय राउत का विश्लेषण

संजय राउत ने अपने संपादकीय में ममता बनर्जी को अहिल्याबाई होलकर के समतुल्य रखकर कॉन्ग्रेस के विपक्षी पार्टी होने पर कई सवाल उठाए थे। ऐसी तुलना करके राउत ने बताना चाहा था कि ममता बनर्जी एक उभरती हुई विपक्षी नेता है। 

बता दें कि इससे पहले संजय राउत विपक्षी नेता के तौर पर शरद पवार का नाम ले चुके हैं। उनका कहना था कि यूपीए को एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार अच्छे से दिशा दिखा पाएँगे।

अहिल्या बाई होलकर

उल्लेखनीय है कि शिवसेना के मुखपत्र में जिन अहिल्याबाई होलकर की तुलना तृणमूल कॉन्ग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी से की गई, वो एक महिला शासक थीं। उन्हें राजमाता या महारानी अहिल्याबाई होलकर भी कहा जाता था। वह न केवल एक योद्धा थीं, बल्कि पढ़ी लिखी, कई भाषा की जानकार और बोलियों में निपुण थीं। महेश्वर में 30 साल रहते हुए उन्होंने खुद को जनसेवा में समर्पित कर दिया था। इसके अलावा औद्योगीकरण को बढ़ावा और  धर्म शब्द का प्रसार करने का काम भी रानी अहिल्या द्वारा किया गया था।