कमलनाथ सरकार अब मंदिरों की ज़मीनें बिल्डरों को बेचेगी

बीजेपी ने मध्य प्रदेश सरकार के इस प्रस्ताव को हिंदू विरोधी बताया है. उसका कहना है कांग्रेस सिर्फ एक धर्म को निशाना बना रही है. हिंदुओं को दबाकर कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। आने वाले समय में मंदिर अपने खुले स्थानों पर गो – शाला अथवा या गुरुकुल इत्यादि स्थापित कर धर्म और गोवंश के महत्व को बढ़ावा दें इस लायक बनें उनकी, ज़मीनें बेच दी जाएँ और पैसे सरकार के खाते में जाएँ। यदि एस होना अतिआवश्यक है तो फिर यह गाज मंदिरों पर ही क्यों गिरे?

नयी दिल्ली:

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में मंदिरों की जमीन बिल्डर्स को देने की तैयारी है. सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर रखा है. पांच फरवरी को होने वाली कैबिनेट बैठक (Cabinet Meet) में इस पर मुहर लगना भर बाकी है. बिल्डर्स इस पर मकान-दुकान कुछ भी बना सकते हैं. जमीन बेचने पर जो पैसा मिलेगा वो मंदिर, जिला प्रशासन और सरकारी खजाने में जाएगा.

दरअसल कमलनाथ सरकार (Kamalnath Government) ने प्रदेश के मंदिरों की जमीन बिल्डरों को देने का प्रस्ताव तैयार किया है. सरकार इस प्रस्ताव को पांच फरवरी को होने वाली कैबिनेट की बैठक में लेकर आएगी. बिल्डर्स इस जमीन पर निर्माण कार्य कर उसे बेच सकते हैं. इससे जो पैसा मिलेगा वो मंदिर, जिला और राज्य सरकार के देवस्थान कोष में जाएगा. इसके पीछे सरकार की मंशा है कि ऐसा करने से मंदिरों की प्राइम लोकेशन वाली बेशकीमती जमीन को अतिक्रमण और कब्जे से बचाया जा सकेगा.

ऐसा है सरकार का प्रस्ताव

आध्यात्म विभाग के मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि सरकार के अधीन आने वाले मंदिरों की खाली जमीन व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए निजी व्यक्तियों को बेचने का प्रस्ताव लाया जा रहा है. इसकी शुरुआत भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर के साथ दूसरे बड़े शहरों के मंदिरों से होगी. जिस व्यक्ति को जमीन दी जाएगी, वो उस पर निर्माण कार्य कर बेच सकेगा. इससे मिलने वाला पैसा तीन हिस्सों में बांटा जाएगा. 20 फीसदी मंदिर, 30 फीसदी जिला स्तर और 50 फीसदी राज्य स्तर के देवस्थान कोष में जमा होगा. सरकार केवल जमीन देगी. उस पर मकान-दुकान या बिल्डिंग बिल्डर अपने खर्च पर बनवाएगा. बिल्डर अपनी मर्जी के मुताबिक उस जमीन पर फ्लैट, डुप्लेक्स, दुकान, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स सहित दूसरा कर्मिशियल निर्माण कर सकता है.

स्ताव की वजह

इस प्रस्ताव के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि मंदिरों की खाली जमीन पर कब्जा हो जाता है. प्रशासन कार्रवाई कर इन कब्जों को बार-बार हटाती है, लेकिन इन पर फिर कब्जा जमा लिया जाता है. साथ ही मंदिरों की खाली पड़ी जमीन का कोई उपयोग नहीं हो पाता है. प्रशासन के पास अमला नहीं होने की वजह से मंदिरों की मॉनिटरिंग में दिक्कत आती है. ऐसे में सरकार का मानना है कि इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने से मंदिरों का विस्तार के साथ विकास भी होगा.

बीजेपी ने कहा- ये हिंदू विरोधी

बीजेपी ने सरकार के इस प्रस्ताव को हिंदू विरोधी बताया है. उसका कहना है कांग्रेस सिर्फ एक धर्म को निशाना बना रही है. कांग्रेस हिंदुओं को दबाकर तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है. मंदिर में कोई अवैध कब्जा नहीं होता है. सरकार अगर मंदिरों को बड़े-बड़े बिल्डर्स को देने की कोशिश करेगी तो बीजेपी इसका विरोध करेगी. ये निर्णय पूरी तरह बड़े बिल्डर्स को संरक्षण देने का है. कांग्रेस सरकार हर तरह के हिंदू विरोधी फैसले कर रही है.

आज का राशिफल

Aries

01 फरवरी 2020: आज का दिन आपके लिए व्यस्त रहने वाला है. यह गंभीर समस्याओं को हल करने का सबसे अच्छा समय नहीं है क्योंकि आप भी अन्य चीजें करते हुए पकड़े गए हैं. आपके पास पहले से ही जो कुछ है, उस पर ध्यान दें, क्योंकि यह बहुत कुछ है. आज अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर न जाएं. आप जो सबसे अच्छा करते हैं उससे चिपके रहें और आपकी सराहना की जाएगी.

Taurus

01 फरवरी 2020: आपका करियर आज अपने चरम पर है. आपके कार्यस्थल में सब कुछ आपके मनमुताबिक चल रहा है. आपको अपनी टीम के निर्माण के नए तरीके मिलेंगे और आपका काम में प्रयोग करने की ओर भी झुकाव होगा. आपके कार्य क्षेत्र में कौशल के साथ-साथ आपके पास अच्छी सहज शक्तियां होने के साथ ही आपको जो सही लगता है, उसका पालन करना सबसे अच्छा है.

Gemini

01 फरवरी 2020: अपने आप को नए विचारों के लिए खुला रखें. आज आप अपनी राय पर बहुत कठोर न हों. पेशेवर क्षेत्र में चीजें आपके लिए काम करने वाली हैं. हालांकि आपके निजी जीवन में थोड़ा बहुत झगड़ा हो सकता है. यदि आपके और किसी प्रियजन के बीच कुछ घर्षण है तो अपने मन की बात कहकर इसे हल करने का प्रयास करें. शांत और सौम्य रहें और निष्कर्ष पर न जाएं.

Cancer

01 फरवरी 2020: आज आपका दिन अनुशासित रहने वाला है. आज आपको दिन के मध्य में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन यदि आपके पास एक नियोजित कार्यक्रम है तो आप उन बाधाओं को दूर करने में सक्षम होंगे. आज चीजों को सहजता से न छोड़ें. दिन के लिए खुद को व्यवस्थित और तैयार रखें.

Leo

01 फरवरी 2020: एक टीम के रूप में काम करना आज आपको सबसे अच्छे परिणाम देगा. सुनिश्चित करें कि आप अपने पक्ष में वादे के मुताबिक काम करते हैं और नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं. यह सबसे अच्छा है अगर आप समूह के साथ रहते हैं और खुले में अपनी राय रखने की बजाय विचारों और विचारों पर चर्चा करते हैं. यदि आप दूसरों की राय को ध्यान में रखते हैं तो आप अधिक सम्मानित होंगे.

Virgo

01 फरवरी 2020: हो सकता है आज आपको कुछ इधर उधर की बातें सुनने को मिलें. आप जो कुछ भी सुनते हैं उस पर विश्वास न करें. यदि आप कुछ संदिग्ध सुनते हैं, तो निष्कर्ष पर कूदने से पहले अपनी खबर की पुष्टि करें. आज आप जो चाहते हैं, उसे करने से कुछ नहीं हो सकता, जब तक आप अपना दिमाग केवल अपने काम पर केंद्रित रखें और दूसरों की बात न सुनें.

Libra

01 फरवरी 2020: आपके व्यावसायिक साझेदारों / सहयोगियों के पास आपके साथ साझा करने के लिए कुछ रोमांचक योजनाएं हो सकती हैं. उनके विचारों और योजनाओं को स्वीकार करें और अपनी ईमानदार राय भी दें. यह उद्यमी कुछ ऐसा है जो निश्चित रूप से आपको सफलता दिलाएगा, इसलिए सुनिश्चित करें कि आप इसे ठीक से समझते हैं और भविष्य के लिए अच्छी तरह से योजना बनाते हैं.

Scorpio

01 फरवरी 2020: आज आपके लिए उन लोगों से बात करने का एक शानदार अवसर है जिनके लिए आपकी भावनाएं थीं. यदि आपको ऐसा लगता है कि यह व्यक्ति समान नहीं है तो आप गलत हैं. अपने डर का सामना करें और अपनी भावनाओं को अपने विशेष व्यक्ति को व्यक्त करें. उनका जवाब निश्चित रूप से, एक अच्छे तरीके से, आपको आश्चर्यचकित करेगा. कामदेव आज आपकी तरफ हैं.

Sagittarius

01 फरवरी 2020: आप साग का नेतृत्व कर रहे हैं! लंबे समय से आप एक ऐसा काम कर रहे हैं जिसे आप करने में सक्षम नहीं हैं. हालांकि, आज इसे करने का दिन है. आपकी उत्पादकता अपने चरम पर है और जो भी आप एक तरफ रख रहे हैं उसे समाप्त करना सबसे अच्छा है. बाद में चीजों को न छोड़ें क्योंकि आपके पास उन्हें खत्म करने का समय नहीं हो सकता है.

Capricorn

01 फरवरी 2020: आपके सहकर्मियों के लिए आज शानदार विचार चल रहे हैं. आपके नेतृत्व कौशल आपके समूह से सर्वश्रेष्ठ हैं और ये विचार आपके करियर को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं. अपनी टीम के खिलाड़ियों की सामर्थ्य के अनुसार जिम्मेदारियों को समझाना और उन्हें याद रखना. नेतृत्व करें और काम पूरा करें.

Aquarius

01 फरवरी 2020: आज बाहर जाने और खोज करने की बजाय आपके लिए सबसे अच्छी बात घर रहना होगा. यह कुछ आत्म खोज करने और शौक के लिए समय निकालने का एक शानदार समय है जो आप अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण पहले छोड़ते आए हैं. वापस बैठें और अपनी पिछली उपलब्धियों और अपने भविष्य के लक्ष्यों को प्रतिबिंबित करें. जीवन से जो आप चाहते हैं उसे समझें और फिर उस दिन के बाद कार्रवाई में लाएं.

Pisces

01 फरवरी 2020: आपका मन सबसे अच्छी जगह पर संभव है. आज आप निर्णय लेने में तेज होंगे और यह आपके कार्य स्थल और आपके व्यक्तिगत जीवन दोनों में मदद करने वाला है. आपके मन में कोई भ्रम रहने वाला है और इसी के चलते आज लोग आपकी बात सुनने वाले हैं. सुनिश्चित करें कि आप अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ बोर्ड पर सभी को प्राप्त करें.

CAA-NRC के दौरान पत्रकारों पर हुए घातक हमले

मीडियाकर्मियों पर हुए इन हमलों की संख्या केवल 12 तक ही सीमित नहीं हैं। यदि पाठकों को मीडियाकर्मियों पर हुए हमले से जुड़ी अन्य घटनाओं के बारे में पता है, तो वो हमें उन घटनाओं से अवगत करा सकते हैं। हम उन्हें इस लेख में जोड़कर इस लेख को अपडेट कर देंगे।

मीडिया को भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है, जिसकी भूमिका बेहद अहम है। ऐसे में मीडियाकर्मियों पर हमला इस ओर इशारा करता है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है। लेकिन ये कर कौन रहा है? हाल के दौरान, CAA-NRC के ख़िलाफ़ देश में चल रहे हिंसक-प्रदर्शनों में आए दिन ऐसी ख़बरें सामने आईं, जहाँ पत्रकारों पर हमला कर दिया गया और उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इससे यह साफ़ पता चलता है कि पत्रकारों को निशाना बनाने का काम एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है, जिससे फ़र्ज़ी ख़बरों को फैलाने वाले अराजक तत्व जनता के सामने सही ख़बर को लाने से रोक सकें।

हालिया मामला न्यूज़ नेशन के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया का है, जिन्हें शाहीन बाग में CAA के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध-प्रदर्शन के दौरान कुछ गुंडों ने उनके साथ न सिर्फ़ बदसलूकी की बल्कि उनके साथ हाथापाई करते हुए उनका कैमरा तक तोड़ दिया। बता दें कि दीपक चौरसिया के साथ अभद्रतापूर्ण किया गया यह व्यवहार किसी पत्रकार के साथ पहली बार नहीं हुआ है। इस लेख में हम आपको उन 12 घटनाओं के बार में बताएँगे जहाँ पत्रकारों व उनकी टीम को निशाना बनाया गया। अप्रैल 2019 से अभी तक की इन 12 घटनाओं के बारे में क्रम से नीचे पढ़ें:

1. रिपब्लिक टीवी, इंडिया टुडे के पत्रकारों पर TMC के गुंडों ने बरसाई लाठियाँ, महिला पत्रकार को भी नहीं बख़्शा

2019 में लोकसभा चौथे चरण के चुनाव के दौरान जहाँ सारा देश लगभग शांति से मतदान कर रहा था, वहीं पश्चिम बंगाल से हिंसा और धांधली की खबरें आईं। इन खबरों को कवर करने गई रिपब्लिक टीवी ने बताया है कि इस दौरान TMC के गुंडों ने उन पर हमला किया गया। रिपब्लिक टीवी के अनुसार, उनकी पत्रकार शांताश्री, अपने साथी पत्रकार के साथ आसनसोल से रिपोर्टिंग कर रही थीं। 

पत्रकार शांताश्री, अपने साथी पत्रकार के साथ आसनसोल से रिपोर्टिंग कर रही थीं। वहाँ TMC के गुंडों ने लाठियों से उनकी कार पर हमला किया और खिड़की तोड़ दी। शांताश्री ने बताया कि वे भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो की कार के पीछे-पीछे चल रहे थे। अचानक से TMC के गुंडे भड़क गए और उन्होंने उन पर हमला कर दिया। ख़बर के अनुसार, जिन-जिन मीडिया वाहनों ने भाजपा नेता की कार का पीछा किया, उन्हें ही निशाना बनाया गया। गुंडों ने कथित तौर पर मीडियाकर्मियों को गालियाँ दीं और जब उन्हें रिपोर्ट करने की कोशिश की गई तो उनका पीछा किया गया। इससे पहले, TMC कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर आसनसोल में सुप्रियो की कार पर हमला किया था।

वहाँ TMC के गुंडों ने लाठियों से उनकी कार पर हमला किया और खिड़की तोड़ दी। शांताश्री ने बताया कि वे भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो की कार के पीछे-पीछे चल रहे थे। अचानक से TMC के गुंडे भड़क गए और उन्होंने उन पर हमला कर दिया। रिपब्लिक टीवी के चालक दल के अलावा, इंडिया टुडे के चालक दल और पत्रकार मनोग्य लोईवाल पर भी कथित तौर पर TMC के गुंडों द्वारा ही हमला किया गया।

2. मध्य प्रदेश: दिनदहाड़े पत्रकार पर जानलेवा हमला, कॉन्ग्रेस नेता गोविंद सिंह पर लगा आरोप, लिबरल गैंग मौन

मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले में स्थानीय पत्रकार रीपू धवन से मारपीट की एक वीडियो सोशल मीडिया पर 30 सितंबर 2019) को वायरल हुआ। वीडियो में यह साफ़तौर पर दिखा कि दिनदहाड़े कुछ बदमाश पत्रकार को ज़मीन पर लिटाकर बेरहमी से लगातार मार रहे थे। पत्रकार लाचार ज़मीन पर पड़ा है और उस पर चारों ओर से लाठियाँ बरस रही थीं। पूरी घटना वीडियो कैमरे में कैद हो गई थी, लेकिन सभी हमलावर बदमाशों ने अपने मुँह पर कपड़ा बाँधा हुआ था। वहीं, पत्रकार का आरोप था कि उसपर ये हमला कॉन्ग्रेस नेता गोविंद सिंह के आदेश पर हुआ।

वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि दिनदहाड़े पत्रकार के पीटे जाने के बाद भी बात-बे-बात पर शोर मचाने वाली लिबरल गैंग मौन है क्योंकि यहाँ शासन कॉंग्रेस का है, सत्ता में कमलनाथ और आरोपित कॉन्ग्रेस नेता गोविंद सिंह।

इससे पहले मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस नेता का नाम जबलपुर में पत्रकार पर हुए हमले में भी आया था। जहाँ कॉन्ग्रेस नेता एवं बिल्डर सत्यम जैन और मयूर जैन ने पत्रकार आलोक दिवाकर पर जानलेवा हमला किया था और उन्हें बुरी तरह मारा था।

3. इसके मज़े लो: JNU में महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी, गूँजा ‘हिन्दी मीडिया मुर्दाबाद’ का नारा

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) लंबे समय से देश-विरोधी नारेबाजी आदि के लिए, नकारात्मक बातों के लिए ही चर्चा में रहती है। ज़ी न्यूज़ चैनल की एक महिला पत्रकार किसी मुद्दे पर जानकारी जुटाने के लिए विश्वविद्यालय के परिसर में पहुँची। इस दौरान उनके द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने की बजाय वहाँ मौजूद छात्र-छात्राओं ने उनके साथ न सिर्फ़ अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया बल्कि मारपीट भी की। महिला पत्रकार बार-बार स्टूडेंट्स से उनके मसले के बारे में पूछती रही, लेकिन स्टूडेंट्स ने उनकी एक नहीं सुनी और उनके साथ बदतमीज़ी करते रहे।

जिस परिसर में महिला पत्रकार कुछ स्टूडेंट्स से सवाल करती नज़र आ रही थीं, वहाँ मौजूद छात्रों के झुंड में से कुछ ने यह कहकर फ़ब्तियाँ कस रहे थे कि ‘इन्हें घेरो मत, मजा लो’। इतना सुनने के बाद जब महिला पत्रकार ने उन शब्दों पर आपत्ति जताते हुए सवाल किया तो उनमें से एक छात्र ने कहा, “यहाँ सब आपका मज़ा ले रहे हैं।” महिला पत्रकार ने जब पूछा कि आप लोग यहाँ पढ़ाई करने आते हैं या मज़ा लेने आते हैं? इस सवाल के जवाब पर स्टूडेंट्स के झुंड ने एक साथ ‘हिन्दी मीडिया मुर्दाबाद’ के नारे लगाए और मीडियाकर्मियों को कैमरे बंद करने के लिए कहा।

4. झारखंड: कॉन्ग्रेस कैंडिडेट ने बूथ के बाहर लहराए हथियार, समर्थकों ने पत्रकारों को पीटा

झारखंड में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 13 सीटों पर 30 नवंबर 2019 को वोट पड़े। डाल्टनगंज के एक बूथ के बाहर कॉन्ग्रेस प्रत्याशी केएन त्रिपाठी का हथियार लहराते वीडियो सामने आया था। उनके समर्थकों और भाजपा प्रत्याशी आलोक चौरसिया के समर्थकों के बीच झड़प की खबर भी सामने आई। मीडिया ​रिपोर्टों के मुताबिक घटना को कैमरे में कैद कर रहे पत्रकारों की पिटाई भी त्रिपाठी समर्थकों ने की।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार पूर्वडीहा गॉंव में कॉन्ग्रेस नेता केएन त्रिपाठी त्रिपाठी के समर्थकों ने निजी चैनल के पत्रकार और कैमरामैन को पीट डाला। उनका कैमरा भी तोड़ दिया।

5. जामिया में प्रदर्शनकारी छात्रों की गुंडागर्दी, ABP की महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी

जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्रों का प्रदर्शन अब भी आक्रामकता के दौर से गुजर रहा था। 15 दिसंबर 2019 को छात्रों का विरोध-प्रदर्शन अचानक से हिंसक हो उठा, जब जामिया नगर से 4 बसों को जलाए जाने की ख़बर आई। कई मेट्रो स्टेशनों को बंद करना पड़ा, कई इलाक़ों में लम्बा ट्रैफिक जाम लगा और लोगों को ख़ासी परेशानी का सामना करना पड़ा। जामिया के छात्रों ने पत्रकारों को भी अपने चपेट में ले लिया था। यहाँ तक कि महिला रिपोर्टरों को भी नहीं बख्शा गया।

इस दौरान, एबीपी न्यूज़ की पत्रकार प्रतिमा मिश्रा लगातार छात्रों से पूछती रही थीं कि क्या यही उनका शांतिपूर्ण प्रदर्शन है, लेकिन छात्रों ने महिला रिपोर्टर को घेर कर उनके साथ बदतमीजी की और नारेबाजी शुरू कर दी। वो बार-बार पूछती रहीं कि आप एक महिला के साथ गुंडागर्दी क्यों कर रहे हैं लेकिन जामिया के प्रदर्शनकारी छात्र लगातार बदसलूकी करते रहे।

6. जामिया मिलिया के बाहर ANI पत्रकारों पर हमला, हॉस्पिटल भेजे गए: अन्य रिपोर्टरों से भी हो चुकी है बदसलूकी

नागरिकता सेशोधन क़ानून का विरोध कर रहे जामिया के छात्रों ने समाचार एजेंसी ANI के दो कर्मचारियों पर 16 दिसंबर, 2019 को दोपहर हमला कर दिया गया, जब वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रदर्शनकारी छात्रों को कवर करने गए थे। ANI के पत्रकार और कैमरामैन पर हमला यूनिवर्सिटी के गेट नंबर-1 के पास हुआ। हमले में घायल हुए पत्रकार उज्जवल रॉय और कैमरामैन सरबजीत सिंह को होली फैमिली हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

नागरिकता विधेयक में संशोधन के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन की नकली परतें उतर रहीं हैं, और असली चेहरा सामने आ रहा है। पहले ‘शांतिपूर्ण’ की परत उतरी, और प्रदर्शनकारियों ने पथरबाज़ी शुरू कर दी। फिर ‘सेक्युलर’ की परत उतरी, जब “हिन्दुओं से आज़ादी” के नारे लगे, और अपनी बात साबित करने के लिए (अंग्रेज़ी में कहें तो, टु ड्राइव होम ए पॉइंट) प्रदर्शन स्थल पर हुजूम ने नमाज़ पढ़ी, मुहर्रम की तरह नंगे बदन ‘मातम’ मनाने तथाकथित छात्र सड़क पर उतर पड़े। और अब ‘लोकतान्त्रिक’ का भी नकली मुलम्मा उतर कर गिर गया है, जब ‘लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ’ बताए जाने वाले मीडिया पर हमला हो रहा है। वह भी केवल इसलिए, क्योंकि मीडिया ने वह करने की ‘जुर्रत’ की, जो उसका काम है- लोगों का, प्रदर्शनों का सच कवर करना।

7. गिरफ़्तार हुआ पत्रकारों की पिटाई करने करने वाला कॉन्ग्रेस नेता, फरार होकर भी चला रहा था फेसबुक

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) समेत कई विपक्षी दलों ने 21 दिसंबर 2019 को बिहार बंद का आयोजन किया था। उसी समय कॉन्ग्रेस के नेता आशुतोष शर्मा ने एक पत्रकार की न सिर्फ़ पिटाई की थी बल्कि कई अन्य मीडियाकर्मियों के साथ भी बदतमीजी की थी। उसने कई अख़बारों के पत्रकारों व फोटोग्राफरों की पिटाई की थी। कॉन्ग्रेस नेता ने पत्रकारों के कैमरे व अन्य उपकरणों को तो तोड़ ही डाला गया था साथ ही पत्रकारों के मोबाइल फोन को भी नहीं बख्शा था। साथ ही एक फोटोग्राफर का सिर फोड़ डाला था। इसके बाद वो कई दिनों तक फ़रार रहे।

फरारी के दौरान भी उसने अपने फेसबुक पेज पर अपना फोटो पोस्ट किया था। उससे पहले उसने न सिर्फ़ एक पत्रकार की पिटाई की थी बल्कि कई अन्य मीडियाकर्मियों के साथ भी बदतमीजी की थी। उसने कई अख़बारों के पत्रकारों व फोटोग्राफरों की पिटाई की थी। पत्रकारों के कैमरे व अन्य उपकरणों को भी तोड़ डाला गया था। पत्रकारों के मोबाइलों को भी नहीं बख्शा गया था। एक फोटोग्राफर का सिर फोड़ डाला गया था। आशुतोष पटना जिला ग्रामीण कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष है।

8. ‘तेरी माँ की…’ गाली देने वाला है The Hindu का पूर्व जर्निलस्ट, रेप पीड़िता को भी कह चुका है K*tti, har*#zadi

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) कैंपस में 5 जनवरी को नकाबपोश गुंडों ने धावा बोला और हॉस्टल में छात्रों को निशाना बनाया था। लाठी, पत्थरों और लोहे की छड़ों के साथ गुंडों ने हाथापाई, मारपीट और खिड़कियों, फर्नीचर सामानों में तोड़फोड़ की। इसी दौरान रिपब्लिक भारत के रिपोर्टर पीयूष मिश्रा भी रिपोर्टिंग करने वहाँ पहुँचे थे। वहाँ पर उपस्थित छात्रों के साथ ही फ्रीलांस जर्नलिस्ट अभिमन्यु सिंह उर्फ अभिमन्यु कुमार ने भी गाली-गलौच और बदसलूकी की। बता दें कि अभिमन्यु सिंह मीडिया संस्थान द हिन्दू, संडे गार्डियन में काम कर चुके हैं और फिलहाल ऑनलाइन पोर्टल जनता की आवाज के साथ जुड़े हुए हैं।

ऑपइंडिया की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद हरियाणा की रहने वाली एक महिला मीना (बदला हुआ नाम) ने उनसे संपर्क किया था और आरोप लगाया था कि फ्रीलांस जर्नलिस्ट अभिमन्यु सिंह ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें ‘K*tti’ और ‘har*mzadi’ कहा।

9. रिपब्लिक के पत्रकार के साथ धक्का-मुक्की कर चुकी है वामपंथियों को कोचिंग देने वाली ‘इंडिया टुडे’ की तनुश्री

12 जनवरी 2020 को ऑपइंडिया ने ‘इंडिया टुडे’ के पत्रकार के वायरल वीडियो को लेकर एक ख़बर प्रकाशित की थी। उस वीडियो में देखा जा सकता था है कि पत्रकार तनुश्री पांडेय जेएनयू के सर्वर रूम में वामपंथी छात्रों को सिखाती हुई दिख रही थीं कि उन्हें कैमरे के सामने क्या बोलना है?

इसके बाद एक वीडियो सामने आया था कि ‘इंडिया टुडे’ की तनुश्री पांडेय जेएनयू छात्र संगठन की अध्यक्ष आईसी घोष के साथ मिल कर ‘रिपब्लिक टीवी’ के पत्रकार के साथ धक्का-मुक्की की थी। पत्रकार तनुश्री, वामपंथी छात्र नेता आईसी व अन्य वामपंथी छात्रों ने ‘रिपब्लिक टीवी’ के पत्रकार के साथ सिर्फ़ इसीलिए धक्का-मुक्की की थी क्योंकि उन्होंने कुछ सवाल पूछे थे। ये घटना नवंबर 20, 2019 की थी, जब जेएनयू में हॉस्टल फी बढ़ाने को लेकर हंगामा चल रहा था।

10. कॉन्ग्रेस नेता का बेहूदा रवैया: मेट्रो में सुरक्षकर्मियों को धमकी, महिला पत्रकार से बदसलूकी – वायरल हुआ Video

15 जनवरी 2020 को इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार तबस्सुम ने अपने ट्विटर पर मेट्रो स्टेशन पर हुए एक वाकये को शेयर किया था। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा था, मेट्रो स्टेशन में घुसते ही उन्होंने किसी को यह कहते सुना था, “तुम जानते हो मैं पार्षद हूँ।” जब उन्होंने पास जाकर देखा तो वो कॉन्ग्रेस नेता विक्रांत चव्हाण थे। वो मेट्रो स्टाफ और सुरक्षाकर्मियों पर तेज आवाज में चिल्ला रहे थे और सुरक्षाकर्मी उन्हें शांत करने की कोशिश में जुटे थे।

इसके बाद तबस्सुम ने साजिद नाम के सुरक्षाकर्मी से पूछा कि आखिर हुआ क्या है? साजिद ने बताया,”ये पार्षद हैं, यही कारण है कि ये चिल्ला रहे हैं और किसी की सुन ही नहीं रहे।” कॉन्ग्रेस नेता का ऐसा रवैया देख, तबस्सुम ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने बड़े आराम से चव्हाण को शांत हो जाने को कहा, लेकिन उनकी आवाज़ और तेज़ हो गई। वो पत्रकार को कहने लगे, “तू जा यहाँ से, मैं विक्रांत चव्हाण हूँ। पार्षद।” बस फिर क्या, तबस्सुम मे पूरे मामले की वीडियो बनानी शुरू कर दी। जिसे देखकर चव्हाण नाराज हो गए और तबस्सुम के हाथ पर मारकर वीडियो रोकने की कोशिश की।

11. CPI नेता अमीर जैदी ने टीवी डिबेट में दीपक चौरसिया को दी गाली, बताया भ*वा पत्रकार

“रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप से तुम तुम से तू होने लगी।” मशहूर शायर दाग दहलवी की ये शायरी तब प्रासंगिक नजर आई जब CPI के पार्टी प्रवक्ता अमीर हैदर ज़ैदी ने टीवी पर बहस के दौरान टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया को ‘तू-ता’ कहकर गालियाँ देते नजर आए। इसके अलावा, CPI के पार्टी प्रवक्ता ने दीपक चौरसिया को गाली देते हुए उन्हें ‘भ*वा पत्रकार’ तक कह दिया था। इसके बाद वो इतने पर भी नहीं रुके और दीपक चौरसिया पर और भी आरोप लगाते हुए ज़ैदी उन्हें भ*वा कहते हुए भद्दी गालियाँ देते हुए उन्हें दोहराते रहे। हालाँकि, इस दौरान दीपक चौरसिया सिर्फ मंद-मंद मुस्कुराते हुए ज़ैदी के आरोप सुनते रहे।

इस निंदनीय घटना को दीपक चौरसिया ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “जब किसी संगठन की वैचारिक तर्कशक्ति मर जाती है, तो वो गाली-गलौच पर आ जाता है! मुझे गाली देने से आपका स्वास्थ्य अच्छा होता है तो और दीजिए। लेकिन जैदी साहब, बच्चों के दिमाग में अपनी मानसिक कुंठा मत भरिए!”

12. अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए शाहीन बाग के गुंडों ने की पत्रकार दीपक चौरसिया से मारपीट, कैमरा भी तोड़ा

शाहीन बाग़ में चल रहे CAA-विरोधी प्रदर्शन में न्यूज़ नेशन के वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया के साथ 24 जनवरी 2020 को वहाँ प्रदर्शन कर रहे गुंडों ने बदसलूकी की। यही नहीं, उनके साथ हाथापाई करने के बाद उनका कैमरा भी तोड़ दिया गया। इस दौरान सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे वीडियो में धक्का-मुक्की कर रही भीड़ को अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते भी सुना गया।

यह घटना तब हुई जब न्यूज़ नेशन के पत्रकार दीपक चौरसिया शाहीन बाग़ घटना को कवर करने गए थे। उन्होंने एक वीडियो के ज़रिए बताया था कि शाहीन बाग में प्रदर्शन के नाम पर कई असामाजिक तत्व हिंसा फैला रहे हैं। साथ ही न्यूज नेशन के कैमरामैन का कैमरा तोड़ दिया गया।

नोट: मीडियाकर्मियों पर हुए इन हमलों की संख्या केवल 12 तक ही सीमित नहीं हैं। यदि पाठकों को मीडियाकर्मियों पर हुए हमले से जुड़ी अन्य घटनाओं के बारे में पता है, तो वो हमें उन घटनाओं से अवगत करा सकते हैं। हम उन्हें इस लेख में जोड़कर इस लेख को अपडेट कर देंगे।

जब छोटे-छोटे पड़ोसी मुल्कों में हैं नागरिकता रजिस्टर कानून! भारत में ही NRC का विरोध क्यों?

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

नयी दिल्ली

असम एनआरसी के बाद पूरे भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बनाने की कवायद भले ही अभी पाइपलाइन में हो और इसका विरोध शुरू हो गया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत के सरहद से सटे लगभग सभी पड़ोसी मुल्क मसलन पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में नागरिकता रजिस्टर कानून है।

पाकिस्तान में नागरिकता रजिस्टर को CNIC, अफगानिस्तान में E-Tazkira,बांग्लादेश में NID, नेपाल में राष्ट्रीय पहचानपत्र और श्रीलंका में NIC के नाम से जाना जाता है। सवाल है कि आखिर भारत में ही क्यों राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC)कानून बनाने को लेकर बवाल हो रहा है। यह इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि आजादी के 73वें वर्ष में भी भारत के नागरिकों को रजिस्टर करने की कवायद क्यों नहीं शुरू की गई। क्या भारत धर्मशाला है, जहां किसी भी देश का नागरिक मुंह उठाए बॉर्डर पार करके दाखिल हो जाता है या दाखिल कराया जा रहा है।

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

बीजेपी नेता के मुताबिक अगर पश्चिम बंगाल से 50 लाख घुसैपठियों को नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया तो टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वोट प्रदेश में कम हो जाएगा और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम से कम 200 सीटें मिलेंगी और टीएमसी 50 सीटों पर सिमट जाएगी। बीजेपी नेता दावा राजनीतिक भी हो सकता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उनका दावा सही पाया गया है और असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा ऐसा प्रदेश है, जहां सर्वाधिक संख्या में अवैध घुसपैठिए डेरा जमाया हुआ है, जिन्हें पहले पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया।

ममता बनर्जी अब भारत में अवैध रूप से घुसे घुसपैठियों का पालन-पोषण वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं। वर्ष 2005 में जब पश्चिम बंगला में वामपंथी सरकार थी जब ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं। दिवंगत अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को री-ट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है, लेकिन वर्तमान में पश्चिम बंगाल में वही घुसपैठिए ममता बनर्जी को जान से प्यारे हो गए है।

क्योंकि उनके एकमुश्त वोट से प्रदेश में टीएमसी लगातार तीन बार प्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही है। शायद यही वजह है कि एनआरसी को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे अधिक मुखर है, क्योंकि एनआरसी लागू हुआ तो कथित 50 लाख घुसपैठिए को बाहर कर दिया जाएगा। गौरतलब है असम इकलौता राज्य है जहां नेशनल सिटीजन रजिस्टर लागू किया गया। सरकार की यह कवायद असम में अवैध रूप से रह रहे अवैध घुसपैठिए का बाहर निकालने के लिए किया था। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी राष्ट्र में गैरकानूनी तरीके से रह रहे किसी एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या थी।

दिलचस्प बात यह है कि असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठिओं को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।

लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका और वर्ष 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद असम एनआरसी की लिस्ट जारी की गई। असम की राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर सूची में कुल तीन करोड़ से अधिक लोग शामिल होने के योग्य पाए गए जबकि 50 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। सवाल सीधा है कि जब देश में अवैध घुसपैठिए की पहचान होनी जरूरी है तो एनआरसी का विरोध क्यूं हो रहा है, इसका सीधा मतलब राजनीतिक है, जिन्हें राजनीतिक पार्टियों से सत्ता तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाकर वर्षों से इस्तेमाल करती आ रही है। शायद यही कारण है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे कानून की कवायद को कम तवज्जो दिया गया।

असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद संपन्न कराया जा सका और जब एनआरसी जारी हुआ तो 50 लाख लोग नागरिकता साबित करने में असमर्थ पाए गए। जरूरी नहीं है कि जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए है वो सभी घुसपैठिए हो, यही कारण है कि असम एनआरसी के परिपेच्छ में पूरे देश में एनआरसी लागू करने का विरोध हो रहा है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर नहीं होना चाहिए। भारत में अभी एनआरसी पाइपलाइन का हिस्सा है, जिसकी अभी ड्राफ्टिंग होनी है। फिलहाल सीएए के विरोध को देखते हुए मोदी सरकार ने एनआरसी को पीछे ढकेल दिया है।

पूरे देश में एनआरसी के प्रतिबद्ध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के विकास के लिए बनाए जाने वाल पैमाने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारत में नागरिकों की संख्या कितनी है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में, वहां के सभी वयस्क नागरिकों को 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर एक यूनिक संख्या के साथ कम्प्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान पत्र (CNIC) के लिए पंजीकरण करना होता है। यह पाकिस्तान के नागरिक के रूप में किसी व्यक्ति की पहचान को प्रमाणित करने के लिए एक पहचान दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।

इसी तरह पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भी इलेक्ट्रॉनिक अफगान पहचान पत्र (e-Tazkira) वहां के सभी नागरिकों के लिए जारी एक राष्ट्रीय पहचान दस्तावेज है, जो अफगानी नागरिकों की पहचान, निवास और नागरिकता का प्रमाण है। वहीं, पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, जहां से भारत में अवैध घुसपैठिए के आने की अधिक आशंका है, वहां के नागरिकों के लिए बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय पहचान पत्र (NID) कार्ड है, जो प्रत्येक बांग्लादेशी नागरिक को 18 वर्ष की आयु में जारी करने के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज है।

सरकार बांग्लादेश के सभी वयस्क नागरिकों को स्मार्ट एनआईडी कार्ड नि: शुल्क प्रदान करती है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल का राष्ट्रीय पहचान पत्र एक संघीय स्तर का पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट पहचान संख्या है जो कि नेपाल के नागरिकों द्वारा उनके बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है।

पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में भी नेशनल आइडेंटिटी कार्ड (NIC) श्रीलंका में उपयोग होने वाला पहचान दस्तावेज है। यह सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए अनिवार्य है, जो 16 वर्ष की आयु के हैं और अपने एनआईसी के लिए वृद्ध हैं, लेकिन एक भारत ही है, जो धर्मशाला की तरह खुला हुआ है और कोई भी कहीं से आकर यहां बस जाता है और राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के लिए उनका वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती हैं। भारत में सर्वाधिक घुसपैठियों की संख्या असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बताया जाता है।

भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया। कहा जाता है कि तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया। उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं।

भारत में नागरिकता से जुड़ा कानून क्या कहता है?

नागरिकता अधिनियम, 1955 में साफ तौर पर कहा गया है कि 26 जनवरी, 1950 या इसके बाद से लेकर 1 जुलाई, 1987 तक भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर देश का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 को या इसके बाद, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 की शुरुआत से पहले जन्म लेने वाला और उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो, वह भारत का नागरिक होगा। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने के बाद जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता में से दोनों उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों, देश का नागरिक होगा। इस मामले में असम सिर्फ अपवाद था। 1985 के असम समझौते के मुताबिक, 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वाले विदेशियों को भारत का नागरिक मानने का प्रावधान था। इस परिप्रेक्ष्य से देखने पर सिर्फ असम ऐसा राज्य था, जहां 24 मार्च, 1974 तक आए विदेशियों को भारत का नागरिक बनाने का प्रावधान था।

क्या है एनआरसी और क्या है इसका मकसद?

एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा। सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि एनआरसी का भारत के किसी धर्म के नागरिकों से कोई लेना देना नहीं है इसका मकसद केवल भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है।

एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे। बता दें कि अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए इससे पहले असम में लागू किया गया है। अगले संसद सत्र में इसे पूरे देश में लागू करने का बिल लाया जा सकता है। पूरे भारत में लागू करने के लिए इसके लिए अलग जरूरतें और मसौदा होगा।

एनआरसी के लिए किन दस्तावेजों की जरूरत है?

भारत का वैध नागरिक साबित होने के लिए एक व्यक्ति के पास रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, जन्म का सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। चूंकि सरकार पूरे देश में जो एनआरसी लाने की बात कर रही है, लेकिन उसके प्रावधान अभी तय नहीं हुए हैं। यह एनआरसी लाने में अभी सरकार को लंबी दूरी तय करनी पडे़गी। उसे एनआरसी का मसौदा तैयार कर संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना होगा। फिर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद एनआरसी ऐक्ट अस्तित्व में आएगा। हालांकि, असम की एनआरसी लिस्ट में उन्हें ही जगह दी गई जिन्होंने साबित कर दिया कि वो या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आकर बस गए थे।

क्या NRC सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही होगा?

किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को CAA या NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। एनआरसी का किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।

क्या धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?

यह बिल्कुल भ्रामक बात है और गलत है। NRC किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब NRC लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।

NRC में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा?

अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं होता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ले जाया जाएगा जैसा कि असम में किया गया है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेज दिया जाएगा।

आभार, Shivom Gupta

राहुल विरोध, एकेडमी ऑफ आर्ट के डायरेक्टर योगेश सोमन को भारी पड़ा, भेजे गए लंबी छुट्टी पर

‘आप वास्तव में सावरकर नहीं हैं. सच तो यह है कि तुम सच्चे गांधी भी नहीं हो.’ डायरेक्टर योगेश सोमन

काँग्रेस के दबाव में काम करना उद्धव ठाकरे की सावरकर व हिन्दू विरोध की राजनीति के आगे नतमस्त्क होना ही दर्शाता है। अब जब भी चुनाव होंगे तो वह अपना कौन सा चेहरा ले कर मैदान में कूदेंगे, प्रखर हिन्दू वादी का या फिर सौम्य छद्म सेकुलर का।

 कभी बीजेपी के साथ सत्ता का सुख भोग रही शिवसेना सरकार में अपने सहयोगी दल कांग्रेस एनसीपी के हाथों कठपुतली बन चुकी है. यही वजह है कि वह ऐसे मामले पर खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रही है. ठाकरे सरकार एक तरफ सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ बोलने वालों को अच्छे-अच्छे पद बांट रही है तो वहीं दूसरी तरफ वो अब कांग्रेस एनसीपी के खिलाफ बोलने वालों पर ऐक्शन लेने के मूड में दिखाई दे रही है.  

‘आप वास्तव में सावरकर नहीं हैं. सच तो यह है कि तुम सच्चे गांधी भी नहीं हो.’ डायरेक्टर योगेश सोमन

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

 कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान की निंदा करना मुंबई यूनिवर्सिटी में एकेडमी ऑफ आर्ट के डायरेक्टर योगेश सोमन को भारी पड़ा. योगेश सोमन ने वीर सावरकर को लेकर दिए राहुल गांधी के एक बयान की निंदा की थी. दरअसल राहुल गांधी ने झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान रेप की बढ़ती घटनाओं को लेकर रेप कैपिटल वाला बयान दिया था जिसके बाद बीजेपी और सहयोगी दलों ने मांग की थी कि राहुल गांधी इस बयान पर माफी मांगें.

माफी की मांग पर जवाब देते हुए राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, ‘मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है. मैं माफी नहीं मांगूंगा.’ सावरकर को लेकर राहुल गांधी के इसी बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए योगेश सोमन ने 14 दिसंबर को सोशल मीडिया पर अपना एक वीडियो पोस्ट किया था. इस वीडियो में सोमन ने कहा था कि, ‘आप वास्तव में सावरकर नहीं हैं. सच तो यह है कि तुम सच्चे गांधी भी नहीं हो.’

इस पोस्ट को लेकर कांग्रेस एवं वामदलों से जुड़े छात्र संगठन सोमन की बर्खास्तगी की मांग पर अड़े थे. आखिरकार महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार के गठन के बाद मुंबई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सुहास पेडेनकर ने राहुल गांधी के खिलाफ बयान करने पर योगेश सोमन को जबरन छुट्टी पर भेजने के अलावा इस मामले में एक जांच कमेटी का भी गठन किया. यह जांच कमेटी सोमन पर लगे तमाम आरोपों की जांच करेगी. 

हालांकि इस पूरे विवाद पर योगेश सोमन ने जी मीडिया से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि “पहले मैं सारे तथ्य जांच कमेटी के सामने रखूंगा और फिर मीडिया से बात करूंगा.” योगेश सोमन के खिलाफ इस कार्रवाई को बीजेपी ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया. बीजेपी ने शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी से सवाल किया है कि योगेश सोमन के खिलाफ की गई कार्रवाई असहिष्णुता नहीं तो क्या है? 

लेकिन राज्य सरकार इस कार्रवाई को सही ठहरा रही है. ठाकरे सरकार में कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मे कार्यरत अधिकारी किसी दल या संगठन के विचार को प्रमोट करेंगे तो सरकार कठोर कार्रवाई करेगी. उसे सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ेगी. इस पूरे मामले में सावरकर की विचारधारा में यकीन रखने वाली शिवसेना ने चुप्पी साध रखी है. जाहिर है कि कभी बीजेपी के साथ सत्ता का सुख भोग रही शिवसेना सरकार में अपने सहयोगी दल कांग्रेस एनसीपी के हाथों कठपुतली बन चुकी है. यही वजह है कि वह ऐसे मामले पर खुलकर विरोध भी नहीं कर पा रही है.

ठाकरे सरकार एक तरफ सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ बोलने वालों को अच्छे-अच्छे पद बांट रही है तो वहीं दूसरी तरफ वो अब कांग्रेस एनसीपी के खिलाफ बोलने वालों पर ऐक्शन लेने के मूड में दिखाई दे रही है.  

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मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग के बाद नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अनुमति दे दी गई है. इस पर अगले साल अप्रैल से काम शुरू हो जाएगा. इसमें देश में रहने वाले भारतीयों और गैर भारतीयों के नाम रजिस्टर में दर्ज किए जाएंगे.

National Population Register, एनपीआर को दूसरे शब्दों में जनगणना कार्य भी कह सकते हैं

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को मंजूरी दे दी है. ये अगले साल से लागू हो जाएगा. इसमें घर-घर जाकर एक रजिस्टर तैयार किया जाएगा और दर्ज किया जाएगा कि कहां कौन रह रहा है. ये एनआरसी से एकदम अलग है.

इसमें देश में हर गांव, शहर और राज्यों में रहने वाले लोगों के नाम एक रजिस्टर में दर्ज किए जाएंगे. अगर कोई शख्स छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रह रहा है तो उसे एनपीआर में अनिवार्य तौर पर खुद को रजिस्टर्ड कराना होगा.

एनपीआर को दूसरे शब्दों में जनगणना कार्य भी कह सकते हैं. भारत सरकार ने अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के दौरान जनगणना 2011 के लिए घर-घर जाकर सूची तैयार करने तथा प्रत्येक घर की जनगणना के चरण में देश के सभी सामान्य निवासियों के संबंध में विशिष्ट सूचना जमा करके इस डेटाबेस को तैयार करने का कार्य शुरू किया था.

नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में प्रत्येक नागरिकों को जानकारी रखी जाएगी. ये नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है.

क्या है एनपीआर?

एनपीआर का फुल फॉर्म नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर है. जनसंख्या रजिस्टर का मतलब यह है इसमें किसी गांव या ग्रामीण इलाके या कस्बे या वार्ड या किसी वार्ड या शहरी क्षेत्र के सीमांकित इलाके में रहने वाले लोगों का विवरण शामिल होगा.’ वैसे देश में काफी भ्रम है कि पॉपुलेशन रजिस्टर (PR), नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) और नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजंस (NRIC) किस तरह संबंधित हैं. लेकिन एनपीआर और एनआरसी पूरी तरह अलग हैं. इसे जनगणना से भी जोड़कर देखा जा सकता है.

किस तरह एनपीआर लागू होगा

नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में तीन प्रक्रिया होंगी. पहले चरण यानी अगले साल एक अप्रैल 2020 लेकर से 30 सितंबर के बीच केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे. वहीं दूसरा चरण 9 फरवरी से 28 फरवरी 2021 के बीच पूरा होगा. तीसरे चरण में संशोधन की प्रक्रिया 1 मार्च से 5 मार्च के बीच होगी.

आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी. 10 साल में होने वाली जनगणना अब तक 7 बार हो चुकी है. अभी 2011 में की गई जनगणना के आंकड़े उपलब्ध हैं और 2021 की जनगणना पर काम जारी है. बायोमेट्रिक डाटा में नागरिक का अंगूठे का निशान और अन्य जानकारी शामिल होगी.

क्या है उद्देश्य

नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) का उद्देश्य इस प्रकार है-
– सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत दिया जाने वाला लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे और व्यक्ति की पहचान की जा सके.
– नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) द्वारा देश की सुरक्षा में सुधार किया जा सके और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में सहायता प्राप्त हो सके.
– देश के सभी नागरिकों को एक साथ जोड़ा जा सके.

कितना खर्च होगा

इसके लिए केंद्र की ओर से 8500 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं. एनपीआर अपडेट करने की प्रक्रिया अप्रैल 2020 से शुरू होगी. ये 30 सितंबर 2020 तक चलेगा. इसमें असम के अलावा पूरे देश में घर-घर गणना के लिए फील्डवर्क किया जाएगा.

क्या इसमें भारतीय और गैर भारतीय नागरिकों का विवरण होगा

हां, नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजंस में भारत और भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों का विवरण होगा. नियम 4 का उपनियम (3) कहता है: भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर की तैयारी और इसमें लोगों को शामिल करने के लिए जनसंख्या रजिस्टर में हर परिवार और व्यक्ति का जो विवरण है उसको स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित और जांच किया जाएगा.
2003 रूल के नियम 4 के उपनियम (4) में यह बहुत साफ है कि इस वेरिफिकेशन और जांच प्रक्रिया में क्या होगा: वेरिफिकेशन प्रक्रिया के तहत जिन लोगों की नागरिकता संदिग्ध होगी, उनके विवरण को स्थानीय रजिस्ट्रार आगे की जांच के लिए जनसंख्या रजिस्टर में उपयुक्त टिप्पणी के साथ देंगे. ऐसे लोगों और उनके परिवार को वेरिफिकेशन की प्रक्रिया खत्म होने के तत्काल बाद एक निर्धारित प्रो-फॉर्मा में दिया जाएगा.

गुजरात में CAA के विरोध में की गई तोड़फोड़, NSUI के 5 कार्यकर्ता गिरफ्तार

नागरिकता बिल पर पिछले 5-6 दिनों से जो विनाश भारत में देखने को मिल रहा है वह सुनियोजित ढंग से फैलाया जा रहा है। पहले पहल हिंसक प्रदर्शन बंगाल में ममता बेनर्जी के संरक्षण में रेलवे सम्पत्तियों की तोड़फोड़ से शुरू हुआ जिसमें पुलिस अकर्मण्यता का बचाव ममता बेनर्जी ने यह कह कर किया की रेलवे संपत्तियाँ केंद्र की ज़िम्मेदारी हैं न की राज्य की। और फिर ममता खुद मैदान में उतर आई और केंद्र की सत्ता को ही मानने से इंकार करते हे सीधे संयुत राष्ट्र की देख रेख में जनमत संग्रह की मांग रख दी। अब बात करते हैं काँग्रेस की, दिल्ली में चल रहे शांति पूर्वक धरना प्रदर्शन के हिंसक होने से मात्र एक शाम पहले प्रियंका वाड्रा धरना स्थल पर जा कर अपना समर्थन देने की बात कहतीं हैं और अगले ही दिन शांत छात्र प्रदर्शन हिंसक से विनाशक हो जाता है। सारे प्रकरण में एक बात साफ है की केवल मुस्लिम बहुल इलाके ही में हिंसक प्रदर्शन हुए। अब एक दूसरी बात, भाजपा शासित प्रदेश ही हिंसक प्रदर्शनों की चपेट में हैं, छतीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश या फिर पंजाब जहां कांग्रेस का शासन है, वहाँ के नागरिकों को इस बिल से कोई परेशानी नहीं है यही वह राज्य हैं जहां इस मामले में पूर्ण शांति है। और तो और काश्मीर भी शांत है। इससे इस सारे फसाद में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष काँग्रेस का हाथ होने की संभावना अधिक जान पड़ती है :- चाचा चंडीगढ़िया

सतर्कता के रूप में, इलाके में पुलिस बंदोबस्त भी तैनात किया गया है. अहमदाबाद के लाल दरवाजा सिटी कॉलेज के सामने से बिल का विरोध कर रहे 5 छात्रों को हिरासत में लिया गया है. सभी पांच छात्र एनएसयूआई के कार्यकर्ता है. लाल दरवाजा और सीटी इलाकों में पुलिस का कड़ा बंदोबस्त किया गया है.

दिल्ली(ब्यूरो):

नागरिकता बिल पर गुजरात के बनासकांठा में प्रदर्शनकारियों ने जमकर उत्पात मचाया. पुलिसवालों की गाड़ियों को घर लिया. उसे हिलाया. गुस्से में प्रदर्शनकारी ने गाड़ी को धक्का दिया और उसे गिराने की कोशिश की. एक और वीडियो अहमदाबाद का सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है जिसमें प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों से मारपीट कर रहे हैं.

इतनी ही नहीं, गुजरात के कई जिलों में नागरिकता कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है. वड़ोदरा में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओ द्वारा नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन किया गया है लेकिन खुद पार्टी प्रमुख विनोद शाह को इस बिल के बारे में जानकारी नहीं है. मीडिया ने जब उनसे CAA को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा की मुझे बिल के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वडोदरा के मांडवी इलाके में भी  नागरिकता बिल के खिलाफ विरोध देखा गया. मांडवी इलाके में व्यापारियों ने बंद का एलान किया है. व्यापारियों ने इलाके की तमाम दुकाने बंद कर अपना विरोध दिखाया है. वही अन्य क्षेत्रों में बंद का कोई असर नहीं देखा गया है.

अहमदाबाद की बात करें तो वह भी नागरिकता बिल का विरोध किया गया है. विरोध के चलते शहर के ढालगरवाड और त्रण दरवाजा इलाके को संपूर्ण रूप से बंद कर दिया गया है. व्यापारियों द्वारा सम्पूर्ण तोर पर दुकाने बंद की गई हैं. सतर्कता के रूप में, इलाके में पुलिस बंदोबस्त भी तैनात किया गया है. अहमदाबाद के लाल दरवाजा सिटी कॉलेज के सामने से बिल का विरोध कर रहे 5 छात्रों को हिरासत में लिया गया है. सभी पांच छात्र एनएसयूआई के कार्यकर्ता है. लाल दरवाजा और सीटी इलाकों में पुलिस का कड़ा बंदोबस्त किया गया है.

अब देश में होंगे 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर अब राज्य नहीं

इतिहास के पटल पर आज 31 अक्तूबर का दिन खास तौर पर दर्ज़ हो गया जब आज आधी रात से  जम्मू कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया ।

यह पहला मौका है जब एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया हो। आज आधी रात से फैसला लागू होते ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या नौ हो गई है।

आज जी सी मुर्मू और आर के माथुर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के प्रथम उपराज्यपाल के तौर पर बृहस्पतिवार को शपथ लेंगे।

श्रीनगर और लेह में दो अलग-अलग शपथ ग्रहण समारोहों का आयोजन किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल दोनों को शपथ दिलाएंगी।

सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था, जिसे संसद ने अपनी मंजूरी दी। इसे लेकर देश में खूब सियासी घमासान भी मचा। 

भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने की बात कही थी और मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 90 दिनों के भीतर ही इस वादे को पूरा कर दिया। इस बारे में पांच अगस्त को फैसला किया गया।


सरदार पटेल की जयंती पर बना नया इतिहास 


सरदार पटेल को देश की 560 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय का श्रेय है। इसीलिए उनके जन्मदिवस को ही इस जम्मू कश्मीर के विशेष अस्तित्व को समाप्त करने के लिए चुना गया।
देश में 31 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। आज पीएम मोदी गुजरात के केवडिया में और अमित शाह दिल्ली में अगल-अलग कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया। इसके साथ ही दो केंद्रशासित प्रदेशों का दर्जा मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया है। नए केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अस्तित्व में आए हैं।

 जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की बौखलाहट एक बार फिर सामने आई है. आतंकियों ने कुलगाम में हमला किया है, जिसमें 5 मजदूरों की मौत हो गई है. जबकि एक घायल है. मारे गए सभी मजदूर कश्मीर से बाहर के हैं. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला है. आतंकियों की कायराना हरकत से साफ है कि वे कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले से बौखलाए हुए हैं और लगातार आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं.

जम्मू और कश्मीर पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों ने इस इलाके की घेराबंदी कर ली है और बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चल रहा है. अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है. माना जा रहा है कि मारे गए मजदूर पश्चिम बंगाल के थे.

ये हमला ऐसे समय हुआ है जब यूरोपियन यूनियन के 28 सांसद कश्मीर के दौरे पर हैं. सांसदों के दौरे के कारण घाटी में सुरक्षा काफी कड़ी है. इसके बावजूद आतंकी बौखलाहट में किसी ना किसी वारदात को अंजाम दे रहे हैं. डेलिगेशन के दौरे के बीच ही श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर के कुछ इलाकों में पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं.

जम्मू एवं से अनुच्छेद-370 हटने के बाद यूरोपीय संघ के 27 सांसदों के कश्मीर दौरे को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा सवाल उठाने पर भारतीय जनता पार्टी ने जवाब दिया है. पार्टी का कहना है कि कश्मीर जाने पर अब किसी तरह की रोक नहीं है. देसी-विदेशी सभी पर्यटकों के लिए कश्मीर को खोल दिया गया है, और ऐसे में विदेशी सांसदों के दौरे को लेकर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है.

भाजपा प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा, ‘कश्मीर जाना है तो कांग्रेस वाले सुबह की फ्लाइट पकड़कर चले जाएं. गुलमर्ग जाएं, अनंतनाग जाएं, सैर करें, घूमें-टहलें. किसने उन्हें रोका है? अब तो आम पर्यटकों के लिए भी कश्मीर को खोल दिया गया है.’शहनवाज हुसैन ने कहा कि जब कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा था, तब शांति-व्यवस्था के लिए एहतियातन कुछ कदम जरूर उठाए गए थे, मगर हालात सामान्य होते ही सब रोक हटा ली गई. उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास कुछ छिपाने को नहीं, सिर्फ दिखाने को है.’

भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘जब कश्मीर में तनाव फैलने की आशंका थी, तब बाबा बर्फानी के दर्शन को भी तो रोक दिया गया था. यूरोपीय संघ के सांसद कश्मीर जाना चाहते थे. वे पीएम मोदी से मिले तो अनुमति दी गई. कश्मीर को जब आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है तो विदेशी सांसदों के जाने पर हायतौबा क्यों? विदेशी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जाने से पाकिस्तान का ही दुष्प्रचार खत्म होगा.’

आठ दिन और छ्ह फैसले

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ 31-अक्टूबर:

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई नवंबर की 17 तारीख को रिटाइर हो रहे हैं  उन्हें छह महत्त्वपूर्ण मामलों में फैसला सुनाना है। सुप्रीम कोर्ट में इस समय दिवाली की छुट्टियां चल रही हैं और छुट्टियों के बाद अब काम 4 नवंबर को शुरू होगा।

अयोध्या बाबरी मस्जिद मामला, राफल समीक्षा मामला , राहुल पर अवमानना मामला, साबरिमाला , मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का मामला और आर टी आई अधिनियम पर फैसले आने हैं।

अयोध्या-बाबरी मस्जिद का मामला इन सभी मामलों में सर्वाधिक चर्चित है अयोध्या-बाबरी मस्जिद का मामला। पांच जजों की संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई पूरी कर चुकी है और 16 अक्टूबर को अदालत ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा। इस पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ही कर रहे हैं। इस विवाद में अयोध्या, उत्तर प्रदेश में स्थित 2 .77 एकड़ विवादित जमीन पर किसका हक़ है, इस बात का फैसला होना है। हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में कहा कि यह भूमि भगवान राम के जन्मभूमि के आधार पर न्यायिक व्यक्ति है। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना था कि मात्र यह विश्वास की यह भगवान राम की जन्मभूमि है, इसे न्यायिक व्यक्ति नहीं बनाता। दोनों ही पक्षों ने इतिहासकारों, ब्रिटिश शासन के दौरान बने भूमि दस्तावेजों, गैज़ेट आदि के आधार पर अपने अपने दावे पेश किये है। इस सवाल पर कि क्या मस्जिद मंदिर की भूमि पर बनाई गई? आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट भी पेश की गई।

 रफाल समीक्षा फैसला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में एसके कौल और केएम जोसफ की पीठ के 10 मई को रफाल मामले में 14 दिसंबर को दिए गए फैसले के खिलाफ दायर की गई समीक्षा रिपोर्ट पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला 36 रफाल लड़ाकू विमानों के सौदे में रिश्वत के आरोप से संबंधित है। इस समीक्षा याचिका में याचिकाकर्ता एडवोकेट प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने मीडिया में लीक हुए दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट में तर्क दिया कि सरकार ने फ्रेंच कंपनी (Dassault) से 36 फाइटर जेट खरीदने के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाओं को छुपाया है। कोर्ट ने इस मामले में उन अधिकारियों के विरुद्ध झूठे साक्ष्य देने के सन्दर्भ में कार्रवाई भी शुरू की जिन पर यह आरोप था कि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को गुमराह किया है। 10 अप्रैल को अदालत ने इस मामले में द हिन्दू आदि अखबारों में लीक हुए दस्तावेजों की जांच करने के केंद्र की प्रारंभिक आपत्तियों को दरकिनार कर दिया था। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि ये दस्तावेज सरकारी गोपनीयता क़ानून का उल्लंघन करके प्राप्त किए गए थे, लेकिन पीठ ने इस प्रारंभिक आपत्तियों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि साक्ष्य प्राप्त करने में अगर कोई गैरकानूनी काम हुआ है तो यह इस याचिका की स्वीकार्यता को प्रभावित नहीं करता।

राहुल गांधी के “चौकीदार चोर है” बयान पर दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा रफाल सौदे की जांच के लिए गठित मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राहुल गांधी के खिलाफ मीनाक्षी लेखी की अवमानना याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रखा। राहुल गांधी ने रफाल सौदे को लक्ष्य करते हुए यह बयान दिया था कि “चौकीदार चोर है।” कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी इस टिपण्णी के लिए माफी मांग ली थी।

सबरीमाला समीक्षा फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सबरीमाला मामले में याचिकाकर्ताओं को एक पूरे दिन की सुनवाई देने के बाद समीक्षा याचिका पर निर्णय को फरवरी 6 को सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति खानविलकर, न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में ट्रावनकोर देवस्वोम बोर्ड, पन्दलम राज परिवार और कुछ श्रद्धालुओं ने 28 दिसंबर 2018 को याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत दे दी थी। याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में अपनी दलील में यह भी कहा था कि संवैधानिक नैतिकता एक व्यक्तिपरक टेस्ट है और आस्था के मामले में इसको लागू नहीं किया जा सकता। धार्मिक आस्था को तर्क की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता। पूजा का अधिकार देवता की प्रकृति और मंदिर की परंपरा के अनुरूप होना चाहिए। यह भी दलील दी गई थी कि फैसले में संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत ‘अस्पृश्यता’ की परिकल्पना को सबरीमाला मंदिर के सन्दर्भ में गलती से लाया गया है और इस क्रम में इसके ऐतिहासिक सन्दर्भ को नजरअंदाज किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई के अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4 अप्रैल को सीजेआई कार्यालय के आरटीआई अधिनियम के अधीन होने को लेकर दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 के फैसले के खिलाफ चुनौती दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के तहत ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’है। वित्त अधिनियम 2017 की वैधता पर निर्णय ट्रिब्यूनलों के अधिकार क्षेत्र और स्ट्रक्चर पर डालेगा प्रभाव राजस्व बार एसोसिएशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा। इस याचिका में वित्त अधिनियम 2017 के उन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जिनकी वजह से विभिन्न न्यायिक अधिकरणों जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण, आयकर अपीली अधिकरण, राष्ट्रीय कंपनी क़ानून अपीली अधिकरण के अधिकार और उनकी संरचना प्रभावित हो रही है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि वित्त अधिनियम जिसे मनी बिल के रूप में पास किया जाता है, अधिकरणों की संरचना को बदल नहीं सकता।

यौन उत्पीडन मामले में सीजेआई के खिलाफ साजिश मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के खिलाफ यौन उत्पीडन के आरोपों की साजिश की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति एके पटनायक ने की और जांच में क्या सामने आता है, इसका इंतज़ार किया जा रहा है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, आरएफ नरीमन और दीपक गुप्ता की पीठ ने न्यायमूर्ति पटनायक को एडवोकेट उत्सव बैंस के दावों के आधार पर इस मामले की जांच का भार सौंपा था। उत्सव बैंस ने कहा था कि उनको किसी फ़िक्सर, कॉर्पोरेट लॉबिस्ट, असंतुष्ट कर्मचारियों ने सीजेआई के खिलाफ आरोप लगाने के लिए एप्रोच किया था। ऐसा समझा जाता है कि न्यायमूर्ति पटनायक ने इस जांच से संबंधित अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है।


मध्य प्रदेश निकाय चुनावों संबन्धित अध्यादेश को लेकर भाजपा काँग्रेस में ठहरी

मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर कमलनाथ कैबिनेट में एक प्रस्ताव मंजूर किया था। जिसमें नगरपालिका चुनाव के प्रावधानों में संशोधन किया है। जिसके बाद अब प्रदेश में महापौर का चुनाव सीधे जनता के बजाए पार्षदों के जरिए किया जाएगा। लेकिन इस अध्यादेश को फिलहाल राज्यपाल लालजी टंडन ने रोक दिया है, उनकी मंजूरी फिलहाल इस प्रस्ताव को नहीं मिली है। जिसके बाद प्रदेश की सियासत गरमा गई है। इस मुद्दे पर भाजपा पहले ऐसे ही कांग्रेस के आमने-सामने है। अध्यादेश पर फिलहाल रोक लगाने से राज्यपाल पर कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तंखा ने बयान दिया है उन्होंने राज्यपाल से राज धर्म पालन करने की अपील की है। इसी मामले में सोमवार को बीजेपी नेता उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात कर अध्यादेश पर विरोध जताया. 

लाल जी टंडन

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन द्वारा महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से करने वाले कमलनाथ सरकार के अध्याधेश को मंजूरी नहीं देने का विवाद गहराता जा रहा है. इसे राज्य की कमलनाथ सरकार के लिए नगरीय निकाय चुनाव से पहले बड़ा झटका माना जा रहा है. बता दें कि बीजेपी इस अध्यादेश का विरोध कर रही है.

इसी मामले में सोमवार को बीजेपी नेता उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात कर अध्यादेश पर विरोध जताया. दरअसल, राज्यपाल लालजी टंडन ने महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से करने वाले राज्य सरकार के अध्याधेश को मंजूरी नहीं दी है. बता दें कि महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से करने संबंधी प्रस्ताव को बीते महीने मध्य प्रदेश कैबिनेट ने मंजूरी दी थी. 

इस प्रस्ताव के तहत प्रदेश में महापौर और नगर पंचायत अध्यक्षों का निर्वाचन पार्षदों द्वारा किया जाना है. वहीं, बीजेपी द्वारा इस प्रक्रिया का विरोध किया जा रहा है. बीजेपी ने निकाय चुनाव की अप्रत्यक्ष प्रक्रिया को मंजूरी नहीं देने के लिए राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा था. वहीं, शिवराज सिंह चौहान ने राज्यपाल से मुलाकात के बाद कहा कि त्रिस्तरीय पंचायत के अध्यक्षों का चुनाव भी प्रत्यक्ष प्रणाली से होना चाहिए. उन्होंने सीएम कमलनाथ से चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने की मांग की है.

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज का कहना है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होने पर खरीद-फरोख्त का खतरा बढ़ेगा. वहीं, विवेक तन्खा के ट्वीट पर शिवराज सिंह ने कहा कि राज्यपाल राजधर्म का पालन कर रहे हैं. उन्हें कांग्रेस नेता सीख ना दें. गौरतलब है कि कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने ट्वीट कर राज्यपाल लालजी टंडन को राजधर्म का पालन करने को कहा था. 

बता दें कि राज्यपाल लालजी टंडन ने महापौर एवं नगर पालिका अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से करने वाले राज्य सरकार के अध्याधेश को मंजूरी नहीं दी है. हालांकि, राज्यपाल ने कमलनाथ सरकार के एक अन्य अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. ये अध्यादेश पार्षद प्रत्याशी के हलफनामे में गलत जानकारी से जुड़ा है. इसमें विधानसभा चुनाव की तरह उन्हें 6 माह की सजा और 25 हजार रुपए का जुर्माना का प्रावधान है.