श्री रामानुजाचार्य जयंती विशेष: आचार्य रामानुज का जीवन परिचय

श्री रामानुजाचार्य की पूजा पूरे देश में की जाती है। भारत के दक्षिणी, उत्तरी हिस्सों में उनके भक्त यह दिन विशेष उत्सव के रूप में मनाते हैं। श्री रामानुजाचार्य जयंती पर पूरे देश के मंदिरो को सुंदर तरीके सजाया जाता है तथा भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं। इस दिन उपनिषदों के अभिलेख को सुनना शुभ माना जाता है तथा उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित करके सुखपूर्ण जीवन की प्रार्थनाएं करते हैं।

धर्म/संस्कृति डेस्क :

रामानुजाचार्य

वेदों के निषेधाज्ञा पालन के नाम पर जब अल्पबुद्धि व्यक्तियों के प्रभाव में अन्धविश्वास पूर्ण कर्मकांड और निर्दयतापूर्वक पशु-हत्या हो रही थी और वेदों पर आधारित यथार्थ धर्म शिथिल पड़ने लगा था, तब एक समाज-सुधारक के रूप में इस धरातल पर बुद्ध प्रकट हुए । वैदिक साहित्य को पूर्णता से अस्वीकार करके उन्होंने तर्कसंगत नास्तिकतावाद विचारों एवं अहिंसा को जीवन का सर्श्रेष्ठ लक्ष्य बताया ।

कुछ ही समय बाद शंकराचार्य के दर्शन और सिद्धांतों ने बौद्ध विचारों को पराजित किया और सम्पूर्ण भारत में इसका विस्तार हुआ। शंकराचार्य द्वारा उपनिषदों और वैदिक साहित्य की प्रामाणिकता को पुनर्जीवित किया गया और बौद्ध मत के विरुद्ध, अस्त्र के रूप में प्रस्तुत किया गया । वेदों की व्याख्या में शंकराचार्य एक निष्कर्ष पर पहुंचे की जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं, और उन्होंने ‘अद्वैत-वेदांत’ मत स्थापित किया । उन्होंने प्रधानरूप से उन श्लोकों को महत्त्व दिया जिनसे बौद्ध मत के तर्कसंगत नास्तिकतावाद को खंडित किया जा सके, अंततोगत्वा शंकराचार्य की शिक्षाएं पूर्णरूपेण ईश्वरवाद का समर्थन नहीं करती थी, जिनका आगे चलकर अनावरण श्रील रामानुजाचार्य द्वारा होना निर्धारित था । वैष्णव मत की पुन: प्रतिष्ठा करने वालों में रामानुज या रामानुजाचार्य का महत्वपूर्ण स्थान है।

रामानुज का जन्म सन १०१७ ई. में हुआ था । ज्योतिषीय गणना के अनुसार तब सूर्य, कर्क राशि में स्थित था । एक राजपरिवार से सम्बंधित उनके माता-पिता का नाम कान्तिमती और आसुरीकेशव था । रामानुज का बाल्यकाल उनके जन्मस्थान, श्रीपेरुम्बुदुर में ही बीता । १६ वर्ष की आयु में उनका विवाह रक्षकम्बल से हुआ ।

पिता की मृत्यु के उपरांत रामानुजाचार्य कांची चले गए जहाँ उन्होंने यादव प्रकाश नामक गुरु से वेदाध्ययन प्रारंभ किया। यादव प्रकाश की वेदांत टिकाएं शंकर-भाष्य से प्रेरित थी और मायावादी विचारों का प्रतिपादन करती थी । श्री रामानुजाचार्य की बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि वे अपने गुरु की व्याख्या से भी अधिक विस्तृत व्याख्या कर दिया करते थे। रामानुज के गुरु ने बहुत मनोयोग से शिष्य को शिक्षा दी। वेदांत का इनका ज्ञान थोड़े समय में ही इतना बढ़ गया कि इनके गुरु यादव प्रकाश के लिए इनके तर्कों से पार पाना कठिन हो गया। रामानुज की विद्वत्ता की ख्याति निरंतर बढ़ती गई। इनकी शिष्य-मंडली भी बढ़ने लगी। यहाँ तक कि इनके गुरु यादव प्रकाश भी इनके शिष्य बन गए। रामानुज द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत ‘विशिष्टाद्वैत’ कहलाता है। श्रीरामानुजाचार्य बड़े ही विद्वान, सदाचारी, धैर्यवान और उदार थे। चरित्रबल और भक्ति में तो ये अद्वितीय थे।

श्रीरामानुजाचार्य कांचीपुरम में रहते थे। वे वहां श्री वरदराज भगवान की पूजा करते थे। कांचीपुरम के दक्षिण-पश्चिम में ३०० किमी दूर कावेरी तट पर पवित्र स्थल श्रीरंगम (तिरुचिरापल्ली) है। श्रीरंगम के मठाधीश प्रसिद्ध आलवार संत श्रीयामुनाचार्य थे। जब श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु सन्निकट थी, तब उन्होंने अपने शिष्य के द्वारा श्रीरामानुजाचार्य को अपने पास बुलवाया, किन्तु इनके पहुँचने के पूर्व ही श्रीयामुनाचार्य की मृत्यु हो गयी।

अश्रुपूरित नेत्रों और भावपूर्ण हृदय के साथ वहाँ पहुँचने पर रामानुज ने देखा कि श्रीयामुनाचार्य के दाहिने हाथ की तीन अंगुलियाँ मुड़ी हुई थीं। वहां पर उपस्थित सभी शिष्यों ने इस रहस्य को जानना चाहा । श्रीरामानुजाचार्य ने समझ लिया कि श्रीयामुनाचार्य इसके माध्यम से कुछ कहना चाहते हैं। उन्होंने उच्च स्वर में कहा, “मै अज्ञानमोहित जनों को नारायण के चरणकमलों की अमृतवर्षा और शरणागति में लगाकर सर्वदा निर्विशेषवाद से उनकी रक्षा करता रहूँगा”। उनके इतना कहते ही एक अंगुली खुलकर सीधी हो गयी।

रामानुज ने पुनः कहा, “मैं लोगों की रक्षा हेतु समस्त अर्थों का संग्रह कर मंगलमय परम तत्वज्ञान प्रतिपादक श्रीभाष्य की रचना करूंगा”। इतना कहते ही एक और अंगुली खुलकर सीधी हो गयी। रामानुज पुनः बोले, “जिन पराशर मुनि ने लोगों के प्रति दयावश जीव, ईश्वर, जगत, उनका स्वाभाव तथा उन्नति का उपाय स्पष्ट रूप से समझाते हुए विष्णु-पुराण की रचना की, उनके ऋण का शोधन करने के लिए मै किसी दक्ष एवं महान भक्त शिष्य को उनका नाम दूंगा।”

रामानुज के इतना कहते ही अंतिम अंगुली भी खुलकर सीधी हो गयी। यह देखकर सब लोग बड़े विस्मित हुए और इस बात में किसी को संदेह नहीं रहा कि यह युवक यथासमय आलवन्दार (श्रीयामुनाचार्य) का आसन ग्रहण करेगा। श्रीरामानुजाचार्य ने ‘ब्रह्मसूत्र’, ‘विष्णुसहस्त्रनाम’ और अलवन्दारों के ‘दिव्य प्रबन्धम्’ की टीका कर श्रीयामुनाचार्य को दिए गए तीन वचनों को पूरा किया।

श्रीरामानुचार्य गृहस्थ थे, किन्तु जब इन्होंने देखा कि गृहस्थी में रहकर अपने उद्देश्य को पूरा करना कठिन है, तब इन्होंने गृहस्थ आश्रम को त्याग दिया और श्रीरंगम जाकर संन्यास धर्म की दीक्षा ले ली। इनके गुरु श्रीयादव प्रकाश को अपनी पूर्व करनी पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ और वे भी संन्यास की दीक्षा लेकर श्रीरंगम चले आये और श्रीरामानुजाचार्य की सेवा में रहने लगे। आगे चलकर उन्होंने गोष्ठीपूर्ण से दीक्षा ली।

गोष्ठीपूर्ण एक परम धार्मिक विद्वान् थे। गोष्ठीपूर्ण दीक्षा लेने और मन्त्र प्राप्त करने के लिए श्रीरामानुजाचार्य उनके पास गए। गोष्ठी पूर्ण ने उनके आने का आशय जानकर कहा, “किसी अन्य दिन आओ तो देखा जायेगा।” निराश होकर रामानुज अपने निवास स्थान को लौट आये। श्रीरामानुज इसके बाद फिर गोष्ठिपूर्ण के चरणों में उपस्थित हुए, परन्तु उनका उद्देश्य सफल नहीं हुआ। इस प्रकार अट्ठारह बार लौटाए जाने के बाद गुरुदेव ने रामानुजाचार्य को अष्टाक्षर नारायण मंत्र (‘ऊँ नमः नारायणाय’) का उपदेश देकर समझाया- वत्स! यह परम पावन मंत्र जिसके कानों में पड़ जाता है, वह समस्त पापों से छूट जाता है। मरने पर वह भगवान नारायण के दिव्य वैकुंठधाम में जाता है। यह अत्यंत गुप्त मंत्र है, इसे किसी अयोग्य को मत सुनाना क्योंकि वह इसका आदर नहीं करेगा। गुरु का निर्देश था कि रामानुज उनका बताया हुआ मन्त्र किसी अन्य को न बताएं। किंतु जब रामानुज को ज्ञात हुआ कि मन्त्र के सुनने से लोगों को मुक्ति मिल जाती है तो वे मंदिर की छत पर चढ़कर सैकड़ों नर-नारियों के सामने चिल्ला-चिल्लाकर उस मन्त्र का उच्चारण करने लगे। यह देखकर क्रुद्ध गुरु ने इन्हें नरक जाने का शाप दिया। इस पर रामानुज ने उत्तर दिया— यदि मन्त्र सुनकर हज़ारों नर-नारियों की मुक्ति हो जाए तो मुझे नरक जाना भी स्वीकार है। रामानुज का जवाब सुनकर गुरु भी प्रसन्न हुए।

वृद्धावस्था में रामानुजाचार्य प्रतिदिन नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वे जब स्नान करने जाते तो एक ब्राह्मण के कंधे का सहारा लेकर जाते और लौटते समय एक शूद्र के कंधे का सहारा लेते। वृद्धावस्था के कारण उन्हें किसी के सहारे की आवश्यकता है, यह बात तो सभी समझते थे किंतु आते समय ब्राह्मण का और लौटते समय शूद्र का सहारा सबकी समझ से परे था। उनसे इस विषय में प्रश्न करने का साहस भी किसी में न था। सभी आपस में चर्चा करते कि वृद्धावस्था में रामानुजाचार्य की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। नदी स्नान कर शुद्ध हो जाने के बाद अपवित्र शूद्र को छूने से स्नान का महत्व ही भला क्या रह जाता है? शूद्र का सहारा लेकर आएं और स्नान के बाद ब्राह्मण का सहारा लेकर जाएं तो भी बात समझ में आती है। एक दिन एक पंडित से रहा नहीं गया, उसने रामानुजाचार्य से पूछ ही लिया- प्रभु आप स्नान करने आते हैं तो ब्राह्मण का सहारा लेते हैं किंतु स्नान कर लौटते समय शूद्र आपको सहारा देता है। क्या यह नीति के विपरीत नहीं है? यह सुनकर आचार्य बोले- मैं तो शरीर और मन दोनों का स्नान करता हूं। ब्राह्मण का सहारा लेकर आता हूं और शरीर का स्नान करता हूं किंतु तब मन का स्नान नहीं होता क्योंकि उच्चता का भाव पानी से नहीं मिटता, वह तो स्नान कर शूद्र का सहारा लेने पर ही मिटता है। ऐसा करने से मेरा अहंकार धुल जाता है और सच्चे धर्म के पालन की अनुभूति होती है।

श्रीरामानुजाचार्य ने भक्तिमार्ग का प्रचार करने के लिये सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। इन्होंने भक्तिमार्ग के समर्थन में गीता और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा। वेदान्त सूत्रों पर इनका भाष्य श्रीभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। इनके द्वारा चलाये गये सम्प्रदाय का नाम भी श्रीसम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय की आद्यप्रवर्तिका श्रीमहालक्ष्मी जी मानी जाती हैं। श्रीरामानुजाचार्य ने देश भर में भ्रमण करके लाखों लोगों को भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया। यात्रा के दौरान अनेक स्थानों पर आचार्य रामानुज ने कई जीर्ण-शीर्ण हो चुके पुराने मंदिरों का भी पुनर्निमाण कराया। इन मंदिरों में प्रमुख रुप से श्रीरंगम्, तिरुनारायणपुरम् और तिरुपति मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनके सिद्धान्त के अनुसार भगवान विष्णु ही पुरुषोत्तम हैं। वे ही प्रत्येक शरीर में साक्षी रूप से विद्यमान हैं। भगवान नारायण ही सत हैं, उनकी शक्ति महा लक्ष्मी चित हैं और यह जगत उनके आनन्द का विलास है। भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण इस जगत के माता-पिता हैं और सभी जीव उनकी संतान हैं।

श्री रामानुजाचार्य १२० वर्ष की आयु तक श्रीरंगम में रहे । वृद्धावस्था में उन्होंने भगवान् श्री रंगनाथ जी से देहत्याग की अनुमति लेकर अपने शिष्यों के समक्ष अपने देहावसान के इच्छा की घोषणा कर दी । शिष्यों के बीच घोर संताप फ़ैल गया और सभी उनके चरण कमल पकड़कर अपने इस निर्णय का परित्याग करने की याचना करने लगे।

इसके तीन दिन पश्चात श्री रामानुजाचार्य शिष्यों को अपने अंतिम निर्देश देकर इस भौतिक जगत से वैकुण्ठ को प्रस्थान कर गए ।

श्री रामानुजाचार्य के अपने शिष्यों को दिए गए अन्तिम निर्देश :

१) सदैव ऐसे भक्तों का संग करो जिनका चित्त भगवान् के श्री चरणों में लगा हो और अपने गुरु के समान उनकी सेवा करो ।

२) सदैव वेदादि शास्त्रों एवं महान वैष्णवों के शब्दों में पूर्ण विश्वास रखो ।

३) काम, क्रोध एवं लोभ जैसे शत्रुओं से सदैव सावधान रहो, अपनी इंद्रियों के दास न बनो ।

४) भगवान् श्री नारायण की पूजा करो और हरिनाम को एकमात्र आश्रय समझकर उसमे आनंद अनुभव करो ।

५) भगवान् के भक्तों की निष्ठापूर्वक सेवा करो क्योंकि परम भक्तों की सेवा से सर्वोच्च कृपा का लाभ अवश्य और अतिशीघ्र मिलता है ।

आदि शंकराचार्य जयंती

आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कब हुआ था? इस संबंध में भ्रम फैला हुआ है। इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म 7वीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था। आओ जानते हैं कि आखिर सचाई क्या है? आदि शंकराचार्य का जन्म- महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि आदि शंकराचार्यजी का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है। दयानंद सरस्वती जी 139 साल पहले हुए थे। आज के इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में। मतलब वह 32 साल जीए। अब हम असली बात समझते हैं।

धर्म/संस्कृति डेस्क

इस वक्त 2021 ईसाई वर्ष चल रहा है। विक्रम संवत इससे 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। वर्तमान में विक्रम संवत 2076 चल रहा है। इस वक्त कलि संवत 5120 चल रहा है। युधिष्ठिर संवत कलि संवत से 38 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। मतलब इस वक्त युधिष्ठिर संवत 5158 चल रहा है।

आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन अवस्रप पर शंकराचार्य मठों में पूजन हवन का आयोजन किया जाता है। देश भर में आदि शंकराचार्य जी को पूजा जाता है। अनेक प्रवचनों एवं सतसंगों का आयोजन भी होता है। सनातन धर्म के महत्व पर की उपदेश दिए जाते हैं और चर्चा एवं गोष्ठी भी कि जाती है। मान्यता है कि इस पवित्र समय अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन धर्म यात्राएं एवं शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित किया जिस कारण  आदि शंकराचार्य जी को हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है, आदि शंकराचार्य, जी को जगद्गुरु  एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है।

आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्‍ठिर संवत में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के बारे में लिखा जान लेंगे।

असाधारण प्रतिभा के धनी आद्य जगदगुरू शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के पावन दिन हुआ था। दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में जन्में शंकर जी आगे चलकर ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य’ के नाम से विख्यात हुए। इनके पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहाँ जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई, तो इन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की इनकी श्रद्धा पूर्ण कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। शिवगुरु ने प्रभु शंकर से एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं हैं तब शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति की प्रार्थना की और भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया तथा कहा कि मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूंगा। इस प्रकार उस ब्राह्मण दंपती को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई और जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम शंकर रखा गया शंकराचार्य ने शैशव में ही संकेत दे दिया कि वे सामान्य बालक नहीं है. सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने वेदों का पूर्ण अध्ययन कर लिया था, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत हो गए और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य कि रचना की उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी अपने इन्हीं महान कार्यों के कारण वह आदि गुरू शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।

मठों में आदि शंकराचार्य से अब तक के जितने भी गुरु और उनके शिष्य हुए हैं उनकी गुरु-शिष्य परंपरा का इतिहास संवरक्षित है। जो भी गुरु या गुरु का शिष्य समाधि लेता था उनकी तिथि वहां के इतिहास में दर्ज होती थी। फिर जो गुरु शंकराचार्य की पदवी ग्रहण करता और समाधि लेता था उसकी भी तिथि आदि दर्ज होती रही है। उक्त तिथियों को श्लोकों में लिखे जाने की परंपरा रही है। जिसे गुरु-शिष्य की परंपरा के अनुसार कंठस्थ किए जाने का प्रचलन रहा है। शंकराचार्य ने पश्‍चिम दिशा में 2648 में जो शारदामठ बनाया गया था उसके इतिहास की किताबों में एक श्लोक लिखा है।

युधिष्ठिरशके 2631 वैशाखशुक्लापंचमी श्री मच्छशंकरावतार:। तदुन 2663 कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां….श्रीमच्छंशंकराभगवत्। पूज्यपाद….निजदेहेनैव……निजधाम प्रविशन्निति।

अर्थात 2631 युधिष्‍ठिर संवत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। मतलब आज 5158 युधिष्ठिर संवत चल रहा है। अब यदि 2631 में से 5158 घटाकर उनकी जन्म तिथि निकालते हैं तो 2527 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसको यदि हम अंग्रेजी या ईसाई संवत से निकालते हैं तो 2527 में से हम 2019 घटा दे तो आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व हुआ था। इसी तरह मृत्यु का सन् निकालें तो 474 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हुई थी।

आदि शंकराचार्य जयन्ती के दिन शंकराचार्य मठों में पूजन हवन किया जाता है और पूरे देश में सनातन धर्म के महत्व पर विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जंयती के अवसर पर अद्वैत सिद्धांत का किया जाता है। इस अवसर पर देश भर में शोभायात्राएं निकली जाती हैं तथा जयन्ती महोत्सव होता है जिसमें बडी संख्या में श्रद्वालु भाग लेते हैं तथा यात्रा करते समय रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तनों का दौर रहता है। इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है और समारोह में शंकराचार्य विरचित गुरु अष्टक का पाठ भी किया जाता है।

आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था। शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात कही है। गुरुरत्न मालिका में उनके देह त्याग का उल्लेख मिलता है।

भ्रम क्यों उत्पनन्न हुआ- दरअसल, 788 ईस्वी में एक अभिनव शंकर हुए जिनकी वेशभूषा और उनका जीवन भी लगभग शंकराचार्य की तरह ही था। वे भी मठ के ही आचार्य थे। उन्होंने चिदंबरमवासी श्रीविश्वजी के घर जन्म लिया था। उनको इतिहाकारों ने आदि शंकराचार्य समझ लिया। ये अभिनव शंकराचार्यजी कैलाश में एक गुफा में चले गए थे। ये शंकराचार्य 45 वर्ष तक जीए थे। लेकिन आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां हुआ था और वे 32 वर्ष तक ही जीए थे।

शंकराचार्य ने ही दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यह दस संप्रदाय निम्न हैं:- 1.गिरि, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। 4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। 9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।

मुस्लिम त्ष्टिकरण की राह पर कैप्टन अमरिंदर सिंह

अमेठी से चुनाव हारने के डर से राहुल ने दूसरा नामांकन वायनाड, मुस्लिम बहुल वायनाड से भरा। अपनी पुश्तैनी सीट ‘अमेठी’ हार गए पर मुसलिम बहुल वायनाड में जनेयू धारी दत्तात्रेय गोत्र के रहल गांधी जीत गए। अब बारी बंगाल चुनाव की थी, एक ओर वामपंथियों का सहयोग तो दूसरी ओर फुरफुरा शरीफ के मौलाना अब्बास सददिकी की इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ हाथ मला लिया। मुसलिम तुष्टीकरण का ऐसा बुखार किसी को नहीं चढ़ा जैसा की कॉंग्रेस पार्टी को। बंगाल में सददिकी तो साथ लगते असम mein बद्द्र्द्दिन अजमल की AIDUF जैसी खालिस इस्लामिक पार्टी से हाथ मिलाया। नतीजा बंगाल में शून्य तो असम में हार का सामना करना पड़ा। अब बात पंजाब की। पूर्वोत्तर राज्यों में मिली शर्मनाक हार से घबराई कॉंग्रेस अब फिर से मुसलिम तुष्टिकरण की ओर बढ़ रही है। ताज़ातरीन ऊदाहरण पंजाब के मुस्लिम बहल इलाके मलेरकोटला का है। पूछने वाले तो कैप्टन की पाकिस्तानी पत्रकार दोस्त ‘अरूसा आलम’ का हाथ होने की भी बात पूछ रहे हैं।

ईद के मौके पर सीएम अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मलेरकोटला को प्रदेश के 23वें जिले के रूप में घोषित किया है। उन्होंने नए जिले के लिए 500 करोड़ रुपये की लागत से कॉलेज, बस स्टैंड और महिला पुलिस थाना की परियोजना का भी ऐलान किया है। ईद-उल-फितर के मौके पर लोगों को बधाई देने के लिए राज्य स्तर पर ऑनलाइन तरीके से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने मलेरकोटला के लिए 500 करोड़ रुपये की लागत से मेडिकल कॉलेज, एक महिला कॉलेज, एक नया बस स्टैंड और एक महिला पुलिस थाना बनाने की भी घोषणा की। नए जिले की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि यह लंबे समय से लंबित मांग रही है।’ सिंह ने कहा कि मलेरकोटला शहर, अमरगढ़ और अहमदगढ़ भी इस नए जिले की सीमा में आएंगे।

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ :

मुस्लिम बहुल मलेरकोटला पंजाब का 23वाँ जिला बन गया है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ईद के मौके पर इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि अरसे से लंबित इस माँग को पूरा कर दिया गया है। ईद-उल-फितर के मौके पर लोगों को बधाई देने के लिए राज्य स्तर पर ऑनलाइन आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने मलेरकोटला में 500 करोड़ रुपए की लागत से मेडिकल कॉलेज, एक महिला कॉलेज, एक नया बस स्टैंड और एक महिला पुलिस थाना बनाने की भी घोषणा की।

मुस्लिम बहुल कस्बा मलेरकोटला अब तक संगरूर जिले का हिस्सा था। यह संगरूर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नए जिले की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं जानता हूँ कि यह लंबे समय से लंबित माँग रही है। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के वक्त पंजाब में 13 जिले थे। सिंह ने कहा कि मलेरकोटला शहर, अमरगढ़ और अहमदगढ़ नए जिले की सीमा में आएँगे।

बाद में एक ट्वीट में मुख्यमंत्री ने कहा, “यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ईद-उल-फितर के पाक मौके पर मेरी सरकार ने घोषणा की है कि मलेरकोटला राज्य का नवीनतम जिला होगा। 23वें जिले का विशाल ऐतिहासिक महत्व है। जिला प्रशासनिक परिसर के लिए उचित स्थान का तत्काल पता लगान का आदेश दिया है। मलेरकोटला को जिला का दर्जा देना कॉन्ग्रेस का चुनाव से पहले किया गया एक वादा था।

बता दें कि 1966 में जब पंजाब का विभाजन हुआ था तब 13 जिले हुआ करते थे, जो अब बढ़ कर 23 हो गए हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि मेडिकल कॉलेज के लिए वक्फ बोर्ड ने 25 एकड़ जमीन दी है। मलेरकोटला में लड़कियों के कॉलेज के लिए 12 करोड़ और बस स्टैंड के लिए 10 रुपए आवंटित करने की घोषणा भी सीएम ने की।

वर्चुअल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा कि उनकी ईद के मौके पर मलेरकोटला में आने की बहुत इच्छा थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण वह आ नहीं सके। उन्होंने कहा कि मलेरकोटला पटियाला रियासत का हिस्सा रहा है और उनके बुज़ुर्गों के मालेरकोटला के नवाब के साथ बहुत अच्छे संबंध रहे हैं। 

उन्होंने मालेरकोटला के विकास के 6 करोड़ रुपए का अनुदान देने की भी घोषणा की। कहा कि बहुत जल्द मालेरकोटला में जिला उपायुक्त की तैनाती कर दी जाएगी। कार्यक्रम को पंजाब कॉन्ग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़, कैबिनेट मंत्री बेगम रजिया सुलताना ने भी संबोधित किया।

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भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम

भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म त्रेता युग में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हुआ था। इस बार यह तिथि 14 मई 2021 शुक्रवार को आ रही है। भगवान परशुराम की जन्म स्थली वर्तमान में मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के मानपुर ग्राम में जानापाव नामक पर्वत पर है। जानापाव पर्वत से चंबल समेत सप्तनदियों का उद्गम भी होता है। परशुराम ब्राह्मण वंश के जनक और सप्तऋषियों में से एक हैं। परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका हैं। इन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार कहा जाता है। पौराणिक आख्यानों में वर्णन है किभगवान परशुराम का जन्म छह उच्च ग्रहों के संयोग में हुआ था जिस कारण वे परम तेजस्वी, ओजस्वी, पराक्रमी और शौर्यवान थे। वे माता-पिता के परम आज्ञाकारी पुत्र थे। उन्होंने पिता के कहने पर अपनी ही माता का सिर काट दिया था और पिता से वरदान स्वरूप माता को जीवित करवा लिया था।

धर्म/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम :

सतयुग और त्रेतायुग के संधिकाल में राजाओं की निरंकुशता से जनजीवन त्रस्त और छिन्न-भिन्न हो गया था। दीन और आर्तजनों की पुकार को कोई सुनने वाला नहीं था।

ऐसी परिस्थिति में महर्षि ऋचिक के पुत्र जमदग्नि अपनी सहधर्मिणी रेणुका के साथ नर्मदा के निकट पर्वत शिखर पर जमदग्नेय आश्रम (अब जानापाव) में तपस्यारत थे। उन्होंने पराशक्ति का आह्वान किया, उपासना की तब लोक मंगल के लिए वैशाख शुक्ल तृतीया को पराशक्ति, परमात्मा, ईश्वर का मध्यरात्रि को अवतरण हुआ। आश्रम में उत्साह का वातावरण फैला।ज्योतिष एवं नक्षत्रों की यति-मति-गति अनुसार बालक का नाम ‘राम’ रखा गया। बालक अपने ईष्ट शिव का स्मरण करते हुए ब़ड़ा होने लगा। राम का अपने ईष्ट शिव से साक्षात्कार हुआ। अमोघ शस्त्र परशु (फरसा) और धनुष प्राप्ति के साथ शक्ति अर्जन हेतु माँ पराम्बा, महाशक्ति त्रिपुर सुंदरी की आराधना का आदेश भी प्राप्त किया।

  • परशुराम का नामकरण उनके पितामह अर्थात् दादाजी महर्षि भृगु ने किया था।
  • सर्वप्रथम उन्होंने नाम राम रखा था किंतु बाद में शिवजी द्वारा परशु दिए जाने के कारण वे परशुराम कहलाए।
  • परशुराम को विष्णु का आवेशावतार कहा जाता है, अर्थात् वे विष्णु के सभी अवतारों में सबसे ज्यादा उग्र हैं।
  • परशुराम की आरंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचिक के आश्रम में हुई थी।
  • महर्षि ऋचिक से उन्हें शारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और महर्षि कश्यप से वैष्णव मंत्र प्राप्त हुआ था। इसके बाद वे भगवान शंकर से शिक्षा प्राप्त करने के लिए कैलाश पर्वत चले गए। वहां उन्होंने शंकरजी से अनेक दिव्य अस्त्र और शक्तियां प्राप्त की। शिवजी से उन्हें दिव्य धनुष भी प्राप्त हुआ था जिसे भगवान राम ने तोड़कर सीता स्वयंवर जीता था।
  • शंकरजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र और मंत्र कल्पतरू समेत अनेक दिव्य और चमत्कारी मंत्र सिद्धियां प्राप्त हुई थी।
  • परशुराम सप्त ऋषियों और सप्त चिरंजीवी में शामिल हैं। वे आज भी पृथ्वी पर सशरीर मौजूद हैं।
  • परशुराम शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने द्वापर युग में भीष्म, द्रोण, कर्ण को भी शस्त्र विद्या दी थी।
  • परशुराम स्त्रियॉं को शक्तियां देने और नारी सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनुसुइया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा और अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी जागृति अभियान प्रारंभ किया था।
  • पुराणों के अनुसार कलयुग के अंत में होने वाले भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्की अवतार के समय में कल्की के गुरु के रूप में प्रकट होंगे। भगवान परशुराम ने अहंकारी हैहयवंशीय क्षत्रियों का 21 बार नाश किया था।
  • वे पृथ्वी पर वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार के वाहक थे। भारत के अधिकांश ग्राम भगवान परशुराम द्वारा ही बसाए गए हैं। वर्तमान के कोंकण, गोवा और केरल परशुराम जी की ही देन है
  • भगवान परशुराम पशु-पक्षियों से उन्हीं की भाषा में जीवंत संवाद स्थापित कर लेते थे। खूंखार से खूंखार हिंसक पशु भी उनके सामने आते ही उनसे मित्रवत व्यवहार करने लग जाता था।

परशुधारी परशुराम को शास्त्र विद्या का ज्ञान जमदग्नि ऋषि ने दे दिया था, किंतु शिव प्रदत्त अमोघ परशु को चलाने की कला सीखने के लिए महर्षि कश्यप के आश्रम में भेजा। परशुराम शस्त्र कला में पारंगत होने के बाद गुरु से आशीर्वाद प्राप्त कर पिता के आश्रम लौटे। वहां पिता का सिर ध़ड़ से अलग, आश्रम के ऋषि, ब्राह्मण और गुरुकुल के बालकों के रक्तरंजित निर्जीव शरीर का अंबार प़ड़ा मिला। परशुराम हतप्रभ हो गए। इसी बीच माता की कराह और चीत्कार सुनाई दी। दौ़ड़कर माता के निकट पहुंचे। माता ने 21 बार छाती पीटी।परशुराम ने सब जान लिया कि कार्तवीर्य (सहस्रबाहु) के पुत्र एवं सेना ने तांडव मचाया है। परशुराम वायु वेग से माहिष्मति पहुंचे। उन्होंने कार्तवीर्य की सहस्र भुजाओं को अपने प्रखर परशु से एक-एक कर काट दिया। अंत में शीश भी काटकर धूल में मिला दिया।

इतना ही नहीं, परशुराम का परशु चलता ही रहा और एक-एक अनाचारी को खोज-खोजकर नष्ट कर दिया। परशुरामजी से यह कृत्य लोकहित में ही हुआ है किंतु कतिपय लोगों ने उन्हें आवेशी करार दिया है। परशुरामजी में आवेश का प्रादुर्भाव कभी नहीं हुआ। परिस्थितिजन्य स्थिति में कोमल भी कठोर हो जाता है। परशुरामजी के कोमल मन में आवेश नहीं, कठोरता का प्रादुर्भाव अवश्य होता रहा है।

यदि हम पुराणों का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि ब्राह्मण जाति और सर्व समाज के हितैषी भगवान परशुराम दया, क्षमा, करुणा के पुंज हैं, साथ ही उनका शौर्य प्रताप हम में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ है।

आवश्यकता है उनको पूजने की, उनकी आराधना करने की।

Police Files, Chandigarh : – Five held for dealing for illegal trading of Remdesivir

‘Purnoor’ Korel, CHANDIGARH :

Operations Cell of Chandigarh Police has successfully arrested a group of persons involving in illegal dealing of Remdesivir medicine for selling it in local market in India at high rates. ASI Surjit Singh of Operations Cell along with police party while on patrolling received a secret information regarding some illegal dealing of  Medicine Remdesivir which is used in corona disease is in process  at Hotel Sec 17 Chd ;  On this ASI Surjit Singh  along with police party  raided there and apprehended 05 persons, red handed namely :-  

  1. Abhishek PV S/o Palangattu Veetil Diva Karan R/O Kerala Age 21 Yrs
  2. Susheel Kumar S/o Ram Saran, Kalka ji, South Delhi
  3. Parbhat Tyagi S/o Chandra Raj Singh Tyagi R/O Bhopal MP
  4. Philip Jacob Auxilium Pala of Kerala
  5. KP Francis S/o P T Paulose R/o Kerala

            All were dealing in sale/purchase of Remdesivir medicine, without any permit or license. After facts’ verification it was found that Abhishek PV and Susheel Kumar, Parbhat Tyagi , KP Francis and Philip Jacob  were making a fraud/illegal deal of medicine without any permit or license and committing  an offence  under section 420, 120B IPC and Section 7 of EC Act 1955 and Section 27 of Drugs and cosmetics act 1940.

            A raid was conducted at said medicine manufacturer plant at Baddi regarding which medicine they were dealing and 3000 injection of Remdesivir meant for supply in local market here in India without any prior permission or approval were seized in the presence of Local Drug Inspector.  Glaring irregularities were found in the physical verification of stock pointing towards diversion of said medicine towards local market after the ban on export by govt. Company director Gaurav Chawla R/o Zirakpur was also arrested. Further investigation is going on. A Special Investigation team has been constituted for the detailed Investigation.

देश के सभी मुस्लिम मिल कर 2030 तक भारत को इस्लामिक स्टेट बनाने की योजना बनाई है : पीसी जॉर्ज

देश में लंबे समय से लव जिहाद पर कानून और भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित किए जाने की मांग उठ रही है। इसी बीच केरल जनपक्षम (सेक्युलर) के विधायक पीसी जॉर्ज के कई तरह के दावों ने इन मांगों को और हवा दे दी। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने साल 2030 तक भारत को एक इस्लामिक स्टेट बनाने की योजना तैयार की है। ऐसे में भारत को इससे बचने के लिए ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित किया जाना चाहिए।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

केरल के विधायक PC जॉर्ज ने राज्य में ‘लव जिहाद’ की वास्तविकता को न सिर्फ स्वीकार किया है, बल्कि ये भी कहा है कि भारत को अब ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि देश के सभी मुस्लिम मिल कर भारत को एक इस्लामी मुल्क बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है। उन्होंने केरल के इडुक्की स्थित थोडुपुझा में ये बातें कही।

उन्होंने आदिवासियों के कल्याण के लिए कार्य करने वाली NGO ‘HDRC इंडिया’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भारत को तुरंत ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि मुस्लिम समाज 2030 तक इसे इस्लामी मुल्क बनाने के काम पर लगा हुआ है। PC जॉर्ज ने कहा कि ये काम तेज़ी से चल रहा था, लेकिन बीच में PM मोदी ने जिस तरह से नोटबंदी की, उससे ये प्रक्रिया धीमी हो गई। उन्होंने कहा, “लव जिहाद वास्तविक है।”

LDF और UDF कर रहे है आतंकियों का सहयोग- जॉर्ज

इडुक्की में थोडुपुझा में आदिवासी कल्याण के लिए एक गैर सरकारी संगठन HRDS इंडिया द्वारा आयोजित एक समारोह में विधायक जॉर्ज ने कहा कि मुस्लिमों ने 2030 तक भारत को इस्लामिक स्टेट बनाने की योजना बनाई है।उन्होंने आरोप लगाया केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) इस योजना को सफल बनाने के लिए आतंकियों का साथ दे रहे हैं। ऐसे में इससे बचने के लिए भारत को जल्द ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित किया जाना चाहिए।

इस दौरान PC जॉर्ज ने फ्रांस सहित अन्य यूरोपियन देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह से ईसाई देश में घुसपैठ कर मुस्लिम जबरन इस्लाम कबूल करवा रहे हैं, ताकि उन्हें इस्लामी मुल्क बनाया जा सके- ये भयावह है। उन्होंने पूछा कि क्या भारत को किसी समुदाय विशेष के पास जाने दिया जा सकता है? उन्होंने कहा कि इस विषय पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है और किसी को तो आवाज़ उठानी ही पड़ेगी।

PC जॉर्ज ने कहा, “दुनिया भर के अन्य देशों को देखिए। कई पूँजीवादी राष्ट्र हैं तो कितने ही गरीब देश भी हैं। फिर आ जाते हैं भारत जैसे देश, जो तीसरी दुनिया का हिस्सा हैं। सभी देश किसी न किसी मजहब को प्राथमिकता देते हैं। अरब मुल्कों की बात करें तो वहाँ इस्लाम न सिर्फ आधिकारिक मजहब है, बल्कि जो भी चीज इस्लामी नहीं है उसे अनुचित माना जाता है। अमेरिका जैसे भी इस जाल में फँस रहे हैं, लेकिन चीजें अब बदल रही हैं।”

उन्होंने कहा फ्रांस जैसे कई ईसाई देश का अतिक्रमण कर उसे इस्लामी बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ‘लव जिहाद’ की वास्तविकता से इनकार किया है, लेकिन वे जानते हैं कि ऐसा हो रहा है। उन्होंने कहा कि इन सारी समस्याओं का एक ही समाधान है- भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना। PC जॉर्ज इससे पहले भी विवादों में रहे हैं। केरल की महिला आयोग की अध्यक्ष ने उन पर धमकी देने के आरोप लगाए थे।

बता दें कि पिछले 31 वर्षों में 7 बार विधायक चुने जाने वाले प्लनथोट्टाथिल चाको जॉर्ज 2011-15 में कॉन्ग्रेस की सरकार के दौरान केरल विधानसभा के चीफ व्हिप भी रहे हैं। उन्होंने 1 बार KEC (1980), 1 बार JNP (1982), 3 बार KEC-M (1996, 2001, 2006), 1 बार निर्दलीय (2011) और 2016 में केरल कॉन्ग्रेस (M) से चुनाव जीता। उन्होंने 4 मलयालम फिल्मों में भी काम किया है, जिनमें से एक में उन्हें CM, एक में नेता प्रतिपक्ष और एक में पुलिस अधिकारी का किरदार मिला था।

कॉंग्रेस ने आरजेडी और एनसीपी से बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए न आने की लगाई गुहार

NCP सुप्रीमो पवार को लिखे पत्र में भट्टाचार्य ने कहा, ‘मेरी जानकारी में आया है कि आपने सत्तारुढ़ दल तृणमूल कांग्रेस का प्रचार करने के लिए बतौर स्टार प्रचारक पश्चिम बंगाल आने के लिए हामी भरी है, ताकि सूबे में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित की जा सके। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी तृणमूल से एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में स्टार कैंपेनर के रूप में आपकी उपस्थिति पश्चिम बंगाल के आम मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा कर सकती है। इसे देखते हुए यदि आप पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए प्रचार करने से बचते हैं तो मैं आपका बेहद आभारी रहूंगा।’

सरिया तिवारी, कोल्कत्ता/चंडीगढ़:

पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार से सूबे में चुनाव प्रचार न करने की गुजारिश की है। उन्होंने ऐसी ही गुजारिश बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव से भी की है।

दरअसल, पवार और तेजस्वी ‘स्टार कैंपेनर’ के रूप में पश्चिम बंगाल की सत्तारुढ़ तृणमूल कॉन्ग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करने वाले हैं, जबकि कॉन्ग्रेस राज्य में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी के खिलाफ चुनाव मैदान में है। ऐसे में प्रदीप ने दोनों से गुजारिश की है कि यदि संभव हो तो दोनों नेता तृणमूल के लिए प्रचार करने से बचें।

‘प्रचार नहीं करेंगे तो आपका आभारी रहूँगा’

NCP सुप्रीमो पवार को लिखे पत्र में भट्टाचार्य ने कहा, “मेरी जानकारी में आया है कि आपने सत्तारुढ़ दल तृणमूल कॉन्ग्रेस का प्रचार करने के लिए बतौर स्टार प्रचारक पश्चिम बंगाल आने के लिए हामी भरी है, ताकि सूबे में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित की जा सके। पश्चिम बंगाल में कॉन्ग्रेस पार्टी तृणमूल से एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में स्टार कैंपेनर के रूप में आपकी उपस्थिति पश्चिम बंगाल के आम मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा कर सकती है। इसे देखते हुए यदि आप पश्चिम बंगाल में तृणमूल कॉन्ग्रेस के लिए प्रचार करने से बचते हैं तो मैं आपका बेहद आभारी रहूँगा।”

‘सूबे में TMC से हमारी राजनीतिक लड़ाई’

वहीं, भट्टाचार्य ने तेजस्वी को लिखे पत्र में कहा है, “मुझे पता चला है कि आपने सत्तारुढ़ दल तृणमूल कॉन्ग्रेस का प्रचार करने के लिए बतौर स्टार प्रचारक पश्चिम बंगाल आने के लिए हामी भरी है, ताकि सूबे में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी जीत सुनिश्चित की जा सके। हालाँकि पश्चिम बंगाल में कॉन्ग्रेस पार्टी तृणमूल से एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में एक स्टार कैंपेनर के रूप में आपकी उपस्थिति पश्चिम बंगाल के आम मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा कर सकती है। इसे देखते हुए यदि आप तृणमूल कॉन्ग्रेस के लिए प्रचार न करने का फैसला लेते हैं तो मैं आपका बेहद आभारी रहूँगा।”

बता दें कि शरद पवार और तेजस्वी यादव दोनों ने ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी को नैतिक समर्थन देते हुए उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने की बात कही है, जबकि क्रमशः महाराष्ट्र और बिहार में इन नेताओं का कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन है। बिहार में आरजेडी के साथ कॉन्ग्रेस और वाम का गठबंधन है तथा महाराष्ट्र में एनसीपी, शिवसेना और कॉन्ग्रेस एकजुट होकर सरकार चला रही है।

सद्दाम गद्दाफ़ी की चुनावी प्रक्रिया बता कर अपनी ही पार्टी का सच बता बैठे राहुल

राहुल ने यहां तक कहा कि सद्दाम हुसैन और गद्दाफी जैसे लोग भी चुनाव आयोजित कराते थे और जीत जाते थे. लेकिन तब ऐसा कोई फ्रेमवर्क नहीं था, उन्हें मिले वोट की रक्षा कर सके. राहुल अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष के साथ चर्चा कर रहे थे। इस दौरान राहुल ने कहा कि कि हमें किसी दूसरे देश की संस्था से लोकतंत्र को लेकर सर्टिफिकेट नहीं चाहिए लेकिन उन्होंने जो कहा, वो बिल्कुल सही है। भारत में इस वक्त जितना हमने सोचा है, हालात उससे ज्यादा बदतर हैं। राहुल इस ब्यान को देते समय अपनी ही पार्टी की पोल खोल रहे थे। पार्टी अध्यक्ष के तौर पर जब उन्होने अपनी ही पार्टी के आंतरिक चुनाव लड़े थे तब ऊनके ही एक रिश्तेदार शहजाद पूनावाला ने उनके विरोध में नामांकन भरा था। आज शहजाद पूनावाला अपनी ही पार्टी से निकाल दिये गए। यही वह मॉडल है जिसकी चर्चा राहुल कर रहे थे। लें अपनी ही पार्टी के इस चरित्र को वह नहीं पहचान पाते। हर समय अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश की बात कराते हैं, लेकिन उतनी ही आज़ादी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलते गरियाते पाये जाते हैं, निर्भीकता से। क्या यह दोहरे माप दंड नहीं?

  • सद्दाम-गद्दाफ़ी इन्दिरा के थे अच्छे दोस्त सोशल मीडिया पर ट्रोल हुए राहुल
  • चुनाव मतलब सिर्फ यह नहीं कोई जाए और बटन दबाकर मताधिकार का इस्तेमाल कर दे
  • साल 2016 से 2020 के बीच 170 से अधिक कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी छोड़ दी
  • नहीं दिख रहा दम, पांच चुनावी राज्यों में गठबंधन के सहारे चुनावी मैदान में कांग्रेस

सरीका, चंडीगढ़:/नयी दिल्ली:

राहुल गाँधी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को दिए अपने हालिया इंटरव्यू में भारतीय जनता पार्टी पर पर ये कहकर निशाना साधा कि सद्दाम हुसैन और मोहम्मद गद्दाफी ने भी तो चुनाव जीता था। केंद्र सरकार को लेकर कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि सद्दाम हुसैन और गद्दाफी को भी वोट की जरूरत नहीं थी, उन्होंने सत्ता पर कब्जा करने के लिए चुनावी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया था।

दरअसल, कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पिछले दिनों वी-डेम इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के हवाले से देश के लोकतांत्रिक न होने को लेकर दावे किए थे। इसी पर ब्राउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय ने उनकी टिप्पणी पर सवाल किए, जिसके जवाब में राहुल गाँधी ने उक्त बात कही।

हालाँकि, राहुल की बात पर गौर देने से पहले ये जानना दिलचस्प है कि जिस गद्दाफी का उन्होंने उदाहरण दिया, वह सन् 1969 में लीबिया में सैन्य तख्तापलट होने के कारण नेता चुना गया था। उसने शासन पाने के लिए ब्रिटिश समर्थित नेता इदरीस को सत्ता से उखाड़ फेंका था, न कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से कुर्सी पर अधिकार पाया था।

इसी तरह से सद्दाम हुसैन को साल 2003 में अमेरिकी फोर्स ने पकड़ा था। साल 2006 में वह मानवता के विरुद्ध किए गए अपराधों का दोषी पाया गया था। इसके बाद उसे मौत की सजा सुनाई गई थी।

अब जाहिर है कि ऐसे तानाशाहों का नाम लेकर राहुल गाँधी पूरे मामले में सिर्फ़ और सिर्फ विदेशी चीजों को घुसाकर अपनी बात को दमदार साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त उनकी बातों का और कोई मतलब नहीं है।

इंटरव्यू के दौरान उन्होंने आरएसएस पर भी निशाना साधा। उन्होंने दावा किया कि आरएसएस और शिशु मंदिर सिर्फ़ भारत को तोड़ने के लिहाज से बने हैं और इनका इस्तेमाल जनता से पैसे लेने के लिए किया जाता है। एक और चौंकाने वाले बयान में उन्होंने दावा किया कि आरएसएस की विचारधारा और रणनीति मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड के समान है।

संसद सत्र में बंद हुए माइक वाली घटनाओं को उदाहरण देते हुए राहुल गाँधी मानते हैं कि भाजपा ने चुनावी प्रक्रिया का इस्तेमाल करके सत्ता हथियाई है। उनके मुताबिक, केंद्र के पास नए आइडिया के लिए कोई भी कोना नहीं है। सबसे हास्यास्पद बात यह है कि 5 लाख आईटी सेल सदस्यों को हायर करने के बाद कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आरोप लगाते हैं कि भारत में फेसबुक का हेड भाजपाई है। वह गलत ढंग से चुनावी नैरेटिव को कंट्रोल करता है।

इस सब के बाद राहुल गांधी ट्रोल भी हुए:

एक दैनिक समाचार पत्र के अनुसार सोनिया गांधी के बेटे राहुल ने जिस सद्दाम हुसैन का हवाला दिया है, उसका भारत और खासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बेहतरीन संबंध था। साल 1975 में इंदिरा गांधी इराक गईं तो सद्दाम हुसैन ने उनका सूटकेस उठा लिया। अखबार के अनुसार इंदिरा गांधी जब रायबरेली से लोकसभा चुनाव वे हार गईं तो सद्दाम ने उन्हें इराक की राजधानी बगदाद में स्थाई आवास की पेशकश कर दी। इतना ही नहीं, सद्दाम के नेतृत्व वाली बाथ सोशलिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशनों में शामिल हुआ करते थे। ऐसे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स लताड़ लगा रहे हैं।

टिकटों के आबंटन से नाराज़ लतिका सुभाष ने पद से दिया इस्तीफा और तिरुवनंतपुरम में पार्टी दफ्तर के बाहर ही सिर मुँड़वाया

लतिका सुभाष ने कहा कि इस बार हर जिले से कम से कम एक महिला उम्मीदवार की उम्मीद की गई थी लेकिन जो महिला नेता पार्टी के लिए काम करती थीं उनको नजरअंदाज किया जाता है। मैं इस पार्टी के लिए लंबे समय से काम कर रही हूं। पार्टी के कई विधायक मुझसे जूनियर हैं। हालांकि उन्‍होंने यह भी कहा कि मैं कांग्रेस नहीं छोडूंगी। मैं अब से पार्टी की एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर काम करूंगी। इस मसले पर केरल कांग्रेस के अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने कहा कि लतिका सुभाष को दरकिनार किया गया है। हम इस बार उन्हें सीट नहीं दे सके लेकिन यह जानबूझकर नहीं किया गया है। नई दिल्‍ली में केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख मुल्लापल्ली रामचंद्रन की ओर से उम्मीदवारों की लिस्‍ट जारी करने के बाद सुभाष ने तिरुवनंतपुरम स्थित पार्टी मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा कि उम्मीदवारों में महिला प्रत्‍याशी कम हैं। कांग्रेस की ओर से जारी की गई 86 उम्मीदवारों की सूची में केवल नौ महिलाएं हैं। लतिका सुभाष ने कहा कि वह ऐसे पद पर नहीं रहना चाहती हैं जो उन्हें एक चुनाव टिकट भी नहीं दिला सके। 

केरल में कॉन्ग्रेस का संकट खत्म होता नहीं दिख रहा है। विधानसभा चुनाव में महिलाओं को पर्याप्त उम्मीदवारी नहीं मिलने से नाराज पार्टी नेता लतिका सुभाष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। लतिका केरल महिला कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष थीं। विरोध जताते हुए उन्होंने तिरुवनंतपुरम में पार्टी दफ्तर के बाहर ही सिर भी मुँड़वा लिया।

केरल में कॉन्ग्रेस 92 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 86 उम्मीदवारों की सूची पार्टी ने रविवार को जारी की। इसमें लतिका सुभाष का नाम नहीं था। इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा, मैं दूसरी पार्टी में शामिल होने नहीं जा रही हूं। लेकिन विरोध जताने के लिए मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

लतिका ने कहा कि कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एम रामचंद्रन ने उम्मीदवारों की सूची तैयार करते वक्त महिलाओं की दावेदारी की अनदेखी की, जो स्वीकार्य नहीं है। अब तक घोषित 91 उम्मीदवारों में से केवल 9 महिला हैं, जबकि महिला कॉन्ग्रेस ने इन चुनावों में कम से कम 20 सीटें माँगी थी।

लतिका खुद इत्तूमनूर सीट से दावेदारी जता रहीं थी। लेकिन पार्टी ने यहाँ से प्रिंस लुकोश को उम्मीदवार बनाया है। उन्होंने कहा, “मैंने इत्तूमनूर से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी कि क्योंकि मैं यहाँ पैदा हुई और पली-बढ़ी हूँ।”

केरल में हाल में कई बड़े नेताओं ने कॉन्ग्रेस छोड़ी है। इनमें प्रदेश सचिव एमएस विश्वनाथन, महिला कॉन्ग्रेस सचिव सुजया वेणुगोपाल, इंटक महासचिव पीके अनिल कुमार, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य केके विश्वनाथन जैसे नेता शामिल हैं।

पार्टी केरल में 92 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस ने अभिनेता धर्माजन को कोझिकोड जिले की बालुस्सेरी सीट से उतारा है। पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी को पुथुपल्ली सीट से जबकि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्नीथला को हरिपद सीट से उम्मीदवार बनाया है।

गांधी परिवार को देश का प्रथम परिवार बताने वाले ‘पीसी चाको’ ने छोड़ी कॉंग्रेस

कॉंग्रेस यह मानती है की उत्तर भारत के मतदाता मुद्दों पर नहीं अपितु भेड़ चाल से अपना मत डालते हैं। इसी लिए इनके सांसद दक्षिण भारत का रुख कर रहे हैं। दक्षिण भारत से चुनाव लड़ कर जीतने पर उत्तर भारत की अपनी अविश्वसनीय हार को न पचा पाने वाली कॉंग्रेस के लिए अब दक्षिण भारत में भी सब कुछ ठीक नहीं है। हाल ही में केरल में चुनावों की घोषणा हुई है। वहाँ भी कुछ ज्वलंत मुद्दे उठ खड़े हुए जिसे निपटाने में कॉंग्रेस अक्षम साबित हुई और वहाँ भी विघटन का दंश झेल रही है।

  • केरल में 6 अप्रैल को होना है विधानसभा चुनाव के लिए मतदान
  • अभी प्रत्‍याशियों की लिस्‍ट पर हो रही थी माथापच्‍ची, लगा झटका
  • पीसी चाको ने सोनिया को भेजा इस्‍तीफा, बड़ी नाराजगी जताई
  • कहा- केरल कांग्रेस में दो खेमे, तबाही को चुपचाप देख रहा हाईकमान

एक के बाद एक नेताओं के पार्टी छोड़ने से बेजार कांग्रेस को एक और झटका लगा है। कांग्रेस से एक और विकेट गिरा है. । कांग्रेस के सीनियर नेता पीसी चाको ने इस्तीफा दे दिया है. खुद पीसी चाको ने इसका ऐलान करते हुए कहा है कि मैंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है और अपना इस्तीफ पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेज दिया है। इस्तीफे के ऐलान के बाद चाको ने कहा कि केरल कांग्रेस की टीम के साथ काम करना मुश्किल है। चाको ने केरल के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर भी नाराजगी जताई. । पीसी चाको ने टिकट वितरण को लेकर कहा कि किसी नियम का पालन नहीं किया गया।

चाको ने बुधवार को अपने इस्‍तीफे की घोषणा की। न्‍यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, चाको ने पार्टी की अंतरिम अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्‍तीफा भेज दिया है। चाको ने कहा कि केरल में कांग्रेस पार्टी दो धड़ों में बंटी हुई है। उन्‍होंने कहा कि वे हाईकमान से दखल देने की गुजारिश करते-करते थक गए हैं। चाको ने कहा कि केरल कांग्रेस में जो कुछ भी घट रहा है, आलाकमान उसे चुपचाप देख रहा है। चाको वही नेता हैं जिन्‍होंने करीब दो साल पहले गांधी परिवार को ‘देश का पहला परिवार’ बताकर बखेड़ा खड़ा कर दिया था। तब इसके लिए उनकी खासी आलोचना हुई थी और बीजेपी ने उनपर गांधी परिवार की चाटुकारिता का आरोप लगाया था।

चाको ने कहा, “मैं केरल से आता हूं जहां कांग्रेस जैसी कोई पार्टी नहीं है। वहां दो पार्टियां हैं- कांग्रेस (I) और कांग्रेस (A)। दो पार्टियों की कोऑर्डिनेशन कमिटी है जो KPCC की तरह काम कर रही है। केरल एक अहम चुनाव के मुहाने पर है। लोग कांग्रेस की वापसी चाहते हैं मगर शीर्ष नेता गुटबाजी में लगे हैं। मैं हाईकमान से कह चुका हूं कि यह सब खत्‍म होना चाहिए लेकिन हाईकमान दोनों समूहों के प्रस्‍तावो से भी सहमति जता रहा है।”

कांग्रेसी होना सम्‍मान की बात है लेकिन केरल में आज कोई कांग्रेसी नहीं हो सकता है। या तो वो I ग्रुप से हो सकता है या फिर A ग्रुप से इसलिए मैंने उससे बाहर निकलने का फैसला किया। इस आपदा को हाईकमान मूकदर्शक बनकर देख रहा है और कोई हल नहीं है।

आज आलाकमान से नाराज, कभी खूब करते थे तारीफ

चाको का गांधी परिवार से मोहभंग हो गया लगता है। दो साल पहले तक वे उन्‍हें ‘भारत का प्रथम परिवार’ बता रहे थे। चाको ने तब कहा था कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत के पहले परिवार के बारे में नकरात्‍मक राय है। वह सच में भारत का पहला परिवार है। भारत उनका आभारी है… भारत आज जो है वो पंडित जवाहरलाल नेहरू की योजना और नेतृत्‍व की वजह से है।” तब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गांधी परिवार के बारे में चाको के बयान की निंदा करते हुए इसे चाटुकारिता की संस्कृति का प्रतीक बताया था।

राज्‍य में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 6 अप्रैल को एक ही चरण में होगा। चुनावों के परिणाम 2 मई को घोषित किए जाएंगे।

वायनाड में भी 4 नेताओं ने दिया था इस्तीफा

पिछले हफ्ते पूर्व कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र वायनाड में 4 नेताओं का इस्तीफा हुआ था। केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व सदस्य केके विश्वनाथन, केपीसीसी सचिव एमएस विश्वनाथन, डीसीसी महासचिव पीके अनिल कुमार और महिला कांग्रेस नेता सुजाया वेणुगोपाल ने पार्टी से इस्तीफा दिया था।