NCP की महिला ने PM Modi को लेकर कहा ‘मोदी को अंगार लगा सुलगा डालो’

सोशल मीडिया पर अभी एक वीडियो वायरल हुआ है। यह वीडियो बुर्का या हिजाब के समर्थन में पुणे में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित एक ‘विरोध’ प्रदर्शन का है. इसमें एक महिला को कहते हुए सुना जा सकता है कि “कर्नाटक में चार दिन से स्कूल, कॉलेज सब बंद हो गए हैं। बहुत बड़ी परेशानी है। वीडियो में जिहादी महिला बोल रही हैं कि मोदी कायदा-कानून के नाम पर अचानक कुछ भी निकाल लेता है। इस मोदी को सब अंगार लगा कर सुलगा डालो। महाराष्ट्र के RSS के सह संयोजक पीयूष जगदीश कश्यप ने पीएम के खिलाफ अपमानजनक और धमकी भरी टिप्पणी करने वाली महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, महाराष्ट्र(ब्यूरो) :

कर्नाटक में पिछले काफी दिनों से हिजाब विवाद को लेकर बवाल मचा हुआ है। इस चर्चित विवाद का मामला कोर्ट में चल रहा है। वहीं हिजाब विवाद पर कुछ जिहादी जुबानों ने जहर उगलना शुरू कर दिया है। आपको बता दें कि इस मामले से संबधित एक वीडियो सामने आ रही है। वीडियों में जिहादी सोच का प्रदर्शन करने वाली महिला देश के प्रधानमंत्री की हत्या पर बोल रही है।

एक महिला को कहते हुए सुना जा सकता है, “कर्नाटक में चार दिन से स्कूल, कॉलेज सब बंद हो गए हैं। बहुत बड़ी परेशानी है। यह अचानक कुछ भी निकालता है मोदी कायदा-कानून। ये मोदी को सब अंगार लगा कर सुलगा डालो।”

अब इस मामले में केस दर्ज कराया गया है। यह केस महाराष्ट्र के RSS के सह संयोजक पीयूष जगदीश कश्यप ने करवाई है। उन्होंने पीएम के खिलाफ अपमानजनक और धमकी भरी टिप्पणी करने के लिए महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। सायबर पुलिस स्टेशन में दर्ज अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि महिला ने पीएम मोदी के खिलाफ धमकी भरा और अपमानजक शब्द का इस्तेमाल किया। 

जगदीश ने अपनी शिकायत में उस वीडियो का यूट्यूब लिंक और सीडी भी उपलब्ध कराई है। हालाँकि अब वह वीडियो प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं है। RSS कार्यकर्ता ने कहा कि इस तरह की भाषा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस पोस्ट के खिलाफ भी नफरत पैदा करती है। उन्होंने कहा कि वीडियो देख कर साफ तौर पर उसका इरादा पता चलता है कि वह जनता के बीच पीएम मोदी की अच्छी छवि को धूमिल करना चाहती है। उनका कहना है कि इससे जनता के बीच गलत संदेश जाएगा और वह भी इसी तरह की व्यवहार कर सकते हैं।

बता दें कि गुरुवार (10 फरवरी 2022) को राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी ने कर्नाटक में बुर्का (जिसे लोग हिजाब भी कह रहे हैं, जबकि दोनों में अंतर है) पहनने वाली मुस्लिम लड़कियों के समर्थन में महाराष्ट्र के पुणे जिले में प्रदर्शन किया। एनसीपी की पुणे इकाई के अध्यक्ष प्रशांत जगताप ने भगवा दुपट्टा डाले उन लड़कों पर निशाना साधा, जिन्होंने बुर्के का विरोध किया था। 

उन्होंने कहा, “कर्नाटक के उडुपी में एक मुस्लिम लड़की का कुछ दिन पहले कई दक्षिणपंथी युवकों ने पीछा किया था। इस घटना से भारतीयों के सिर शर्म से झुक गए हैं।” मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जगताप ने शिक्षण संस्थानों में धर्म और राजनीति लाने के लिए भाजपा सरकार की भी आलोचना की। हालाँकि बीजेपी सरकार की आलोचना करते हुए वह यह भूल गए कि कर्नाटक में बुर्का विवाद की शुरुआत सबसे पहले आठ मुस्लिम लड़कियों ने की थी, जिन्होंने कॉलेज की यूनिफॉर्म के नियमों का पालन करने से इनकार कर दिया था।

नोट: भले ही इस विरोध प्रदर्शन को ‘हिजाब’ के नाम पर किया जा रहा हो, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को बुर्का में शैक्षणिक संस्थानों में घुसते हुए और प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है। इससे साफ़ है कि ये सिर्फ गले और सिर को ढँकने वाले हिजाब नहीं, बल्कि पूरे शरीर में पहने जाने वाले बुर्का को लेकर है। हिजाब सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव। कई इस्लामी मुल्कों में शरिया के हिसाब से बुर्का अनिवार्य है। कर्नाटक में चल रहे प्रदर्शन को मीडिया/एक्टिविस्ट्स भले इसे हिजाब से जोड़ें, ये बुर्का के लिए हो रहा है।

हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

सुबह लगभग 10:40 पर वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच के सामने यह मामला रखा. कामत ने कहा, “हाईकोर्ट ने जो अंतरिम आदेश दिया है। वह संविधान के अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा हनन है। एक तरह से कोर्ट यह कह रहा है कि मुस्लिम छात्राएं हिजाब न पहनें, सिख छात्र पगड़ी न पहनें और दूसरे धर्मों के छात्र भी कोई धार्मिक वस्त्र न पहनें।” वरिष्ठ वकील ने मांग की कि सुप्रीम कोर्ट आज ही या सोमवार को इस मामले को सुने। लेकिन चीफ जस्टिस तुरंत दखल देने पर सहमत नजर नहीं आए।

ड़ेमोक्रेटिक फ्रंट, नयी दिल्ली(ब्यूरो) :

कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उच्च न्यायालय में सुनवाई जारी है। साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सही समय पर कोर्ट मामले में हस्तक्षेप करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह देख रहा है कि कर्नाटक में क्या हो रहा है और हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों से कहा कि इसे राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा न बनाएं और सुप्रीम कोर्ट सही समय पर हस्तक्षेप करेगा।

कर्नाटक के स्कूल एवं कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक के खिलाफ दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की बेंच ने कहा कि उचित समय पर हम इस अर्जी पर सुनवाई करेंगे। इसके साथ ही अदालत ने अर्जी दाखिल करने वालों को नसीहत दी है कि वे इस मामले को ज्यादा बड़े लेवल पर न फैलाएं। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे इसे राष्ट्रीय मुद्दा न बनाएं। अदालत ने साफ तौर पर कहा कि इस मसले पर याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए, जहां सोमवार को एक बार फिर से सुनवाई होनी है।

अदालत ने कहा कि सही समय पर वह इस मसले पर सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत ने केस की सुनवाई करते हुए कहा, ‘हम देख रहे हैं कि कर्नाटक में क्या हो रहा है और मामला हाई कोर्ट में लंबित है।’ अदालत ने याचिकाकर्ताओं को नसीहत देते हुए कहा कि वे इस मामले को राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनाने से बचें। उचित समय पर शीर्ष अदालत की ओर से दखल दिया जाएगा। बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने गुरुवार को अंतरिम आदेश देते हुए स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पर बैन जारी रखने की बात कही थी। इसके साथ ही कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर से मामले की सुनवाई करने की बात कही है।

हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को ही चुनौती देते हुए कांग्रेस के नेता BV श्रीनिवास में उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की। अर्जी में उनकी मांग थी कि शीर्ष अदालत को इस अंतरिम फैसले पर रोक लगानी चाहिए।

गौरतलब है कि हिजाब को लेकर छिड़ा विवाद कर्नाटक के बाहर भी फैलने लगा है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, दिल्ली समेत कई राज्यों में हिजाब के समर्थन में प्रदर्शन किए गए हैं। इन प्रदर्शनों में कहा गया है कि हिजाब चॉइस का मामला है और संविधान के तहत यह अधिकार है। ऐसे में इसके लिए अनुमति दी जानी चाहिए।

खेतों में बिना ड्राईवर के ट्रैक्टर

शायद ट्रैक्टर चलाना और इससे खेतों की जुताई करना ना कभी इतना आसान रहा और पर्यावरण के बेहद अनुकूल भी नहीं। और फिर जब दुनिया तेजी से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर बढ़ रही है तो एक ई-ट्रैक्टर की जरूरत सेे इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में किसानों के एक सच्चे दोस्त मोनार्क ट्रैक्टर ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है।

  • इस ई-ट्रैक्टर में ऑटोनॉमस क्षमताएं हैं जो इसे अपने आप आगे बढ़ने की अनुमति देती हैं।
  • अमरीका में पेश मोनार्क ई-ट्रैक्टर एक बार फुल चार्ज होने पर 10 घंटे तक काम कर सकता है।
  • ई-ट्रैक्टर में पारंपरिक ट्रैक्टरों की तुलना में दोगुना टॉर्क है और एटीवी की तरह इस्तेमाल की सुविधा।

डेमोक्रेटिक फ्रंट॰कॉम, नयी दिल्ली/नोएडा :

एस्कॉर्ट्स लिमिटेड ने अपने सालाना इनोवेशन प्लेटफॉर्म ‘एसक्लूसिव 2018’ में देश का पहला ऑटोमेटेड ट्रैक्टर को पेश किया। ट्रैक्टर के अलावा कंपनी ने कई दूसरे एग्रीकल्चर प्रोडक्ट भी पेश किए। नये ऑटोमेटेड ट्रैक्टर में लेटेस्ट टेक्नोलजी का इस्तेमाल किया गया है। इसके लिए एस्कॉर्ट्स ने 7 बड़ी कंपनियों से हाथ मिलाया है। इन कंपनियों में माइक्रोसॉफ्ट, रिलायंस जियो, ट्रिम्बल, समवर्धन मदरसन ग्रुप, वैबको, एवीएल और बॉश शामिल हैं। इन कंपनियों से एस्कॉर्ट्स इलेक्ट्रिक ट्रांसमिशन, रिमोट व्हीकल मैनेजमेंट और डेटा-बेस्ड सॉइल और क्रॉप मैनेजमेंट में सहयोग लेगी।

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एस्कॉर्ट्स लिमिटेड ने अपने सालाना इनोवेशन प्लेटफॉर्म ‘

एस्कॉर्ट्स का यह ट्रैक्टर अपनी तरह का पहला ट्रैक्टर है। यह खेत में काम करने के लिए सैटेलाइट कनेक्टिविटी और जियो फेंसिंग जैसी तकनीक का इस्तेमाल करता है। इसमें कई तरह के एडवांस सेंसर लगे हैं जो इसे बिल्कुल सीधा चलाने में मदद करते हैं। साथ ही यह ओवरलैपिंग नहीं करेगा, जिससे खेत में बीज डालने का काम काफी आसान हो जाएगा।

यह ऑटो स्पीड, ऑटो ब्रेकिंग और ऑटो क्लच से लैस है। ऐसे में एक बार खेत में उतारने के बाद इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं रहेगी। इसके रास्ते में कोई रुकावट आते ही यह ट्रैक्टर अपने आप रुक जाएगा। ऐसे में कोई हादसा होने की संभावना काफी कम हो जाती है। हालांकि, यह ट्रैक्टर सिर्फ खेत में इस्तेमाल किया जा सकता है। सामान ढोने और सड़क पर चलाने के लिए इसे तैयार नहीं किया गया है।

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स्मार्ट एग्रीकल्चर सॉल्यूशन्स भी हुए पेश

इस ऑटोनोमस ट्रैक्टर के साथ कंपनी ने कई दूसरे स्मार्ट एग्रीकल्चर सॉल्यूशंस भी पेश किए हैं। इनमें स्मार्ट स्प्रेयर, सीडर आदि शामिल है। स्मार्ट सीडर की बात करें तो यह ट्रैक्टर से सिग्नल लेगा और निश्चित मात्रा में बीज बोयेगा। साथ ही जमीन की जरूरत के मुताबिक खाद डालेगा। यह जमीन में पानी की गहराई, मात्रा आदि को सेंस कर लेता है।

इस मौके पर बात करते हुए एस्कॉर्ट्स लिमिटेड के चेयरमैन और एमडी निखिल नंदा ने बताया, ‘पिछले साल हमने विश्व का पहला इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर कॉन्सेप्ट लॉन्च किया था और इस वर्ष हम ऑटोमैटेड एग्रीकल्चर सॉल्यूशंस की शुरुआत कर रहे हैं। इसके लिए हमने कई कंपनियों से हाथ मिलाया है।’ उन्होंने कहा कि कि हम अब ट्रैक्टर कंपनी से सॉल्यूशन कंपनी की ओर बढ़ रहे हैं। यह सिर्फ ऑटोनोमस ट्रैक्टर की शुरूआत नहीं बल्कि यह स्मार्ट फार्मिंग और डिजिटली कनेक्टिड फार्मिंग की शुरुआत है। कीमत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसकी कीमत भारतीय बाजार को ध्यान में रखकर तय की जाएगी।

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एस्कॉर्ट्स एग्री मशीनरी के चीफ एग्जीक्यूटिव शेनू अग्रवाल ने कहा कि यह ट्रैक्टर 80 फीसद ऑटोनोमस है। हम इसी सीमा तक इसमें ऑटोमेशन चाहते थे। इसी तैयार करने के लिए हमने किसानों से इनपुट लिए हैं और उनकी समस्याओं को ध्यान में रखकर इसे तैयार किया गया है। इसमें ऑटो स्टीयरिंग जैसे फीचर्स दिए गए हैं जो इसे ओवरलैपिंग से बचाएगा। इससे किसानों की लागत घटेगी और वो ज्यादा मुनाफा कमा सकेंगे। कीमत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि यह अफॉर्डेबल प्राइस में उपलब्ध होगा।

कंपनी अगले साल मई तक इसका कमर्शियल ग्लोबल लॉन्च करेगी। इस मौके पर कंपनी ने ट्रैक्सी (ऐप के माध्यम से ट्रैक्टर की बुकिंग) 48 घंटे में स्पेयर पार्ट्स की डिलीवरी और एस्कॉर्ट्स क्रॉप सॉल्यून्श जैसी दूसरी सर्विसेज की भी घोषणा की।

हिन्दू विवाह की तरह संस्कार नहीं एक कांट्रैक्ट है निकाह कर्नाटक – उच्च न्यायालय

हाई कोर्ट ने कहा कि मुसलमानों में एक अनुबंध के साथ निकाह होता है और यह अंतत: वह स्थिति प्राप्त कर लेता है जो आमतौर पर अन्य समुदायों में होती है। यही स्थिति कुछ न्यायोचित दायित्वों को जन्म देती है। वे अनुबंध से पैदा हुए दायित्व हैं। अदालत ने कहा कि कानून के तहत नए दायित्व भी उत्पन्न हो सकते हैं।

  • कर्नाटक HC ने कहा- मुस्लिम निकाह एक कांट्रैक्‍ट है, इसके कई मायने
  • फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कराने हाई कोर्ट पहुंचा था मुस्लिम शख्‍स
  • कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी, साथ ही 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया

कर्णाटक/नयी दिल्ली:

उच्च न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिम निकाह एक अनुबंध या कॉन्ट्रैक्ट है, जिसके कई अर्थ हैं, यह हिंदू विवाह की तरह कोई संस्कार नहीं और इसके टूट जाने से बने कुछ अधिकारों एवं दायित्वों से पीछे नहीं हटा जा सकता। यह मामला बेंगलुरु के भुवनेश्वरी नगर में 52 साल के  एजाजुर रहमान की एक याचिका से संबंधित है, जिसमें 12 अगस्त, 2011 को बेंगलुरु में एक पारिवारिक अदालत के प्रथम अतिरिक्त प्रिंसिपल न्यायाधीश का आदेश रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

रहमान ने अपनी पत्नी सायरा बानो को पांच हजार रुपये के ‘मेहर’ के साथ विवाह करने के कुछ महीने बाद ही ‘तलाक’ शब्द कहकर 25 नवंबर, 1991 को तलाक दे दिया था। इस तलाक के बाद रहमान ने दूसरी शादी की, जिससे वह एक बच्चे का पिता बन गया। बानो ने इसके बाद गुजारा भत्ता लेने के लिए 24 अगस्त, 2002 में एक दीवानी मुकदमा दाखिल किया था. पारिवारिक अदालत ने आदेश दिया था कि वादी वाद की तारीख से अपनी मृत्यु तक या अपना पुनर्विवाह होने तक या प्रतिवादी की मृत्यु तक 3,000 रुपये की दर से मासिक गुजारा भत्ते की हकदार है।

न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज करते हुए सात अक्टूबर को अपने आदेश में कहा, ‘निकाह एक अनुबंध है जिसके कई अर्थ हैं, यह हिंदू विवाह की तरह एक संस्कार नहीं है। यह बात सत्य है।’ न्यायमूर्ति दीक्षित ने विस्तार से कहा कि मुस्लिम निकाह कोई संस्कार नहीं है और यह इसके समाप्त होने के बाद पैदा हुए कुछ दायित्वों और अधिकारों से भाग नहीं सकता। पीठ ने कहा, ‘तलाक के जरिये विवाह बंधन टूट जाने के बाद भी दरअसल पक्षकारों के सभी दायित्वों और कर्तव्य पूरी तरह समाप्त नहीं होते हैं।’ उसने कहा कि मुसलमानों में एक अनुबंध के साथ निकाह होता है और यह अंतत: वह स्थिति प्राप्त कर लेता है, जो आमतौर पर अन्य समुदायों में होती है। अदालत ने कहा, ‘यही स्थिति कुछ न्यायोचित दायित्वों को जन्म देती है। वे अनुबंध से पैदा हुए दायित्व हैं।’

अदालत ने कहा कि कानून के तहत नए दायित्व भी उत्पन्न हो सकते हैं। उनमें से एक दायित्व व्यक्ति का अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता देने का परिस्थितिजन्य कर्तव्य है जो तलाक के कारण अपना भरण-पोषण करने में अक्षम हो गई है। न्यायमूर्ति दीक्षित ने कुरान में सूरह अल बकराह की आयतों का हवाला देते हुए कहा कि अपनी बेसहारा पूर्व पत्नी को गुजारा-भत्ता देना एक सच्चे मुसलमान का नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है। अदालत ने कहा कि एक मुस्लिम पूर्व पत्नी को कुछ शर्तें पूरी करने की स्थिति में गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है और यह निर्विवाद है। न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा कि मेहर अपर्याप्त रूप से तय किया गया है और वधु पक्ष के पास सौदेबाजी की समान शक्ति नहीं होती।

यकीनन ‘वीर’ ही थे सावरकर

राजनाथ सिंह द्वारा दिया गया बयान कि वीर सावरकर ने मोहनदास करमचंद गांधी के कहने पर माफी मांगी थी अथवा माफी के लिए अंग्रेज़ हुकूमत को पत्र लिखा था। इस बात ने देश भर में अनर्गल राजनैतिक बहस छिड़ गईहाई।टीवी चैनल हों या प्रबुद्ध समाचार पत्र सभी इस बहस को दिखा एसएनए अथवा पढ़ा रहे हैं। जब हम उस काल खंड को दहते हैं तो हैरान होते हैं कि जहां सावरकर को दिन में 10 किलो तेल निकालना होता था और उन्हें यह त पता नहीं था कि दो कोठरी छोड़ कर उनका भाई कैद काट रहा है वह पत्र लिख पाये। कोल्हू में बैल कि जगह जुतना और फिर विमर्श पत्र लिखना क्या ही अचंभा है। अब कॉंग्रेस सावरकर को लेकर इतनी दुविधाग्रस्त क्यों है? रत्नगिरी में रहते हुए सावरर दलित बस्तियों में जाने का, सामाजिक कार्यों के साथ साथ धार्मिक कार्यों में भी दलितों के भाग लेने का और सवर्ण एवं दलित दोनों के लिए पतितपावन मंदिर की स्थापना का निश्चय लिया था। जिससे सभी एक स्थान पर साथ साथ पूजा कर सके और दोनों के मध्य दूरियों को दूर किया जा सके। यह भी एक कारण हैं कि कांग्रेस सावरकर की विरोधी बन कर खड़ी हो रही है, वरना 90 के दशक तक तो ऐसा देखने में नहीं आता था। उससे पहले भारत सरकार जब की कांग्रेस सत्तासीन थी ने सावरकर पर डाक टिकट भी जारी किया था। सत्ता के लाले पड़ने पर कॉंग्रेस हमेशा से झूठ सच की राजनीति करती आई है, इस मामले में भी यही हुआ।

राज वशिष्ठ, चंडीगढ़:

मेरे मन में प्रश्न उठता है कि, क्या मोहनदास गांधी कभी पर्यटन के लिए भी कालापानी गए थे? यदि नहीं गए थे तो वीर सावरकर ने गांधी से विमर्श कब किया? साथ ही एक बात और उठती है कि वीर सावरकर को क्या ही अनुमति थी कि वह पत्र व्यवहार कर सकें? क्या हमारी अथवा नयी पीढ़ी को पता भी है कि सावरकर को काला पानी कि सज़ा क्यों हुई थी? क्या उनके उस अपराध के पश्चात भी अंग्रेज़ सरकार उन्हें कागज कलाम पदाने कि हिम्मत जुटा पाती?

इन प्रश्नों के उत्तर खोजना कोई पुआल में सुई ढूँढने जैसा नहीं है। बस थोड़े से प्रयास की आवश्यकता है।

सबसे पहले पहली बात की सावरकर को सज़ा क्यों हुई?

सावरकर को सज़ा देने की पृष्ठ भूमि अंग्रेज़ सरकार बहुत पहले ही से तय कर चुकी थी। सावरकर की 1901 में प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंध का गौरव प्राप्त करती अत्यंत विचारोतेजक पुस्तक ‘1857 का सावतंत्र्य समर’। इस पुस्तक के प्रकाशन की संभावना मात्र से अंग्रेज़ हुकूमत थर्रा गयी थी। फिर भी इस प्स्त्का का गुप्त प्रकाशन एम वितरण हुआ। अंग्रेजों ने कड़ी मशक्कत के बाद इस पुस्तक को नष्ट करने में कोई कोर कसर न छोड़ी।

वीर सावरकर को लंदन में रहते हुए दो हत्याओं का आरोपी बनाया गया। पहली, 1 जुलाई 1909 को मदन लाल ढींगरा द्वारा कर्नल विलियम हट वायली की हत्या जिसका अंग्रेजों ने सूत्रधार वीर दामोदर सावरकर को ठहराया। दूसरी 1910 में हुई नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें साल 1910 में इंग्लैंड में गिरफ्तार किया गया। 8 अप्रैल,1911 को काला पानी की सजा सुनाई गई और सैल्यूलर जेल (काला पानी) पोर्ट ब्लेयर भेज दिया गया। मुक़द्दमा अंग्रेजों द्वारा अङ्ग्रेज़ी अदालत में चलाया गया और बाकी प्रबुद्ध विचाराओं की भांति इन्हे भी काले पानी की सज़ा सुना दी गयी। इन्हें 25 – 25 वर्ष की दो कारावासों का दंड दिया गया था जिसका अर्थ है की वह अपने आगामी जीवन के 50 वर्ष काला पानी में कोल्हू अथवा अंग्रेज़ मुलाजिमों की बग्घी में जुते रहते।

अब दूसरे प्रश्न पर, क्या मोहन दस करमचंद गांधी कभी अंडेमान राजनैतिक पर्यटन के लिए भी गए थे, तो उत्तर है ‘नहीं’। फिर गांधी – सावरकर कहाँ मिले?

गांधी सावरकर पहली बार इंग्लैंड में मिले थे, अक्तूबर 1906 में मिले थे। यह एक बहुत ही संक्षिप्त सी मुलाक़ात थी। दूसरी मुलाक़ात 24 अक्तूबर 1909 को इंडिया हाउस लंदन में हुई। तब तक वीर सावरर किसी भी आक्षेप को नहीं झेल रहे थे। अब यह प्रश्न कहाँ से उठा की गांधी ने सावरकर को दया याचिका डालने की सलाह कब और कहाँ दी?

इस बाबत व‍िक्रम संपत ने अपनी क‍िताब ‘Echoes from a Forgotten Past, 1883-1924’ में ल‍िखा है क‍ि व‍िनायक दामोदर सावरकर के छोटे भाई नारायण दामोदर सावरकर ने 1920 में एक चौंकाने वाला कदम उठाया। उन्‍होंने अपने भाई के धुर व‍िरोधी व‍िचारधारा वाले मोहनदास करमचंद गांधी को खत ल‍िखा। छह खतों में से यह पहला खत ल‍िखा गया था 18 जनवरी, 1920 को। इसमें उन्‍होंने सरकारी माफी की योजना के तहत अपने दोनों बड़े भाइयों को जेल से र‍िहा करवाने के संबंध में मदद व सलाह मांगी थी।

नारायण सावरकर ने अपने पत्र में लिखा था कि कल (17 जनवरी) मुझे भारत सरकार द्वारा जानकारी मिली कि सावरकार बंधुओं को उन लोगों में शामिल नहीं किया गया है, जिन्हें रिहा किया जा रहा है। ऐसे में अब साफ हो चुका है कि भारत सरकार उन्हें रिहा नहीं करेगी। अपने पत्र में उन्होंने महात्मा गांधी से सुझाव मांगा था कि ऐसी परिस्थितियों में आगे क्या किया जा सकता है। इस चिट्ठी का जिक्र, कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी के 19वें वॉल्यूम के पेज नंबर 384 पर किया गया है।

नारायण सावरकर की इस चिट्ठी का जवाब महात्मा गांधी ने 25 जनवरी 1920 को दिया था, जिसमें उन्होंने सलाह दी थी कि राहत प्रदान करने की एक याचिका तैयार करें, जिसमें तथ्यों के जरिए साफ करें कि आपके भाई द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह से राजनीतिक था। उन्होंने अपने जवाब में यह भी लिखा कि वह अपने तरीके से इस मामले में आगे बढ़ रहे हैं। गांधी द्वारा दिए गए इस जवाब का उल्लेख कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी के 19वें संस्करण में भी देखा जा सकता है।

अंग्रेजों से माफी मांगने का। इस मामले पर गांधी ने सावरकर को ‘चतुर’ बताते हुए कहा था कि ‘उन्होंने (सावरकर ने) स्थिति का लाभ उठाते हुए क्षमादान की मांग की थी, जो उस दौरान देश के अधिकांश क्रांतिकारियों और राजनीतिक कैदियों को मिल भी गई थी। सावरकर जेल के बाहर रहकर देश की आजादी के लिए जो कर सकते थे वो जेल के अंदर रहकर नहीं कर पाते।’

गांधी जी के इस कथन से इतना तो साफ है कि सावरकर अंग्रेजों के सामने झुके नहीं थे, बल्कि आगे की लड़ाई के लिए चतुराई दिखाई थी। खैर, बात करते हैं सावरकर से जुड़े तमाम पहलुओं की जो उनपर राय बनाने से पहले जानना जरूरी है।

उत्तराखंड, गुजरात के बाद क्या अब खट्टर का नंबर है

भारतीय जनता पार्टी ने कई राज्यों में गैर-प्रमुख जातियों के नेताओं को मुख्यमंत्री का पद सौंपा लेकिन हाल में हुए बदलावों को देखकर लगता है कि बीजेपी का हृदय परिवर्तन हो गया है। पिछले कुछ वर्षों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री को बदला जाना यह बताता है कि पार्टी ने जाति प्रमुख को महत्व देते हुए रणनीति में बदलाव किया है और इसी का कारण है कि विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में चुनाव से पहले वहां की प्रमुख जाति के चेहरों को सीएम की कुर्सी पर बैठाया। उत्तराखंड और कर्नाटक के बाद सबसे ताजा उहादरण गुजरात का है, जहां भाजपा ने बहुसंख्यक और प्रभुत्वशाली पाटीदार समाज की मांग के आगे झुकते हुए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पद से हटा दिया और भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बनाया।

चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को गुरुवार को अचानक दिल्ली बुलाया गया, जहां पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। मुख्यमंत्री खट्टर पीएम से मिलने उनके आवास पर पहुंचे हैं। दोनों नेताओं के बीच एक घंटे तक बैठक चली है। बताया जा रहा है कि इस दौरान वो गृह मंत्री अमित शाह सहित कई अन्य केंद्रीय मंत्रियों और आरएसएस के कुछ पदाधिकारियों से भी मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि और मुलाकातों को लेकर खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इनकार किया है। कयास ऐसे भी लगाए जा रहे हैं कि क्या बीजेपी संगठन गुजरात के बाद अब हरियाणा में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बारे में खट्टर ने जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी को उनके जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर बधाई दी है। हरियाणा सरकार के नए इनीशिएटिव्स को लेकर पीएम मोदी जी से बातचीत हुई है। मेरी फसल मेरा ब्यौरा, मेरा पानी मेरी विरासत, सहित राइट टू सर्विस कमिशन, के सॉफ्टवेयर को लेकर और तमाम नए प्रोजेक्ट्स के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी दी है।

अपने दिल्ली दौरे को लेकर बोले सीएम खट्टर ने कहा कि दिल्ली दौरे पर और कुछ मुलाकातें नहीं हैं। गुड़गांव से होते हुए कल चंडीगढ़ के लिए वापसी होगी। करनाल की घटना और किसान आंदोलन को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा हुई है। करनाल की घटना की जानकारी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने जो रास्ता छोड़ने की बात की है उसकी कमेटी की जानकारी भी प्रधानमंत्री को दी है।

जानकारों की मानें तो बरोदा उपचुनाव में बीजेपी की हार और इसके अलावा निकाय चुनाव में बीजेपी की सोनीपत और अंबाला में हार हुई. किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा बीजेपी बैकफुट पर नजर आई है। इसके अलावा मुख्यमंत्री मनोहर लाल और गृहमंत्री अनिल विज के बीच कई विवाद सामने आए हैं। दोनों के बीच का विवाद हाईकमान तक भी पहुंचा है।

हालांकि इस मुलाकात का एजेंडा सार्वजनिक नहीं हुआ है, चर्चा जोरों पर कि इस बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बदल सकते हैं, इसके साथ ही हरियाणा में मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है। बता दें कि केंद्र सरकार 6 महीने के अंदर तीन बीजेपी शासित राज्यों के 4 मुख्यमंत्रियों को बदल चुकी है. इसकी शुरूआत हुई उत्तराखंड से हुई और बयार चलते-चलते गुजरात तक पहुंची। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि ये हरियाणा का नंबर भी आ सकता है।

मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा गैर-प्रमुख जाति के नेताओं को चुनने के लिए जानी जाती रही है. फिर चाहे बात हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की हो या फिर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की. इन दोनों नेताओं को नरेंद्र मोदी-अमित शाह नेतृत्व ने जाट और मराठा समुदायों के बाहर से चुना था. जिसमें से खट्टर अभी भी मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हैं, हालांकि सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि 2024 में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मुख्यमंत्री बदल सकती है और गुजरात के तर्ज पर यहां भी किसी जाति-समुदाय प्रमुख चेहरे को राज्य का सीएम बना सकती है. हालांकि, ये सिर्फ भी कयास भर है.

कर्णाटक की इन्दिरा कैंटीन का नाम अन्नपूर्ण कैंटीन करने की मांग

पिछले हफ्ते भारतीय खेलों के सर्वोच्च पुरस्कार का नाम राजीव गांधी खेल रत्न से हटाकर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर कर दिया गया। इसके बाद अब कर्नाटक में चलाई जा रही इंदिरा कैंटीन का नाम बदलने की मांग जोर पकड़ने लगी है। कर्नाटक बीजेपी के नेता ने राज्य के मुख्यमंत्री बी.एस. बोम्मई से इंदिरा कैंटीन का नाम बदलकर अन्नपूर्णाश्वरी रखने की मांग की तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने इसे प्रतिशोध की राजनीति करार दिया। इंदिरा कैंटीन कर्नाटक सरकार द्वारा संचालित एक खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम है।

बंगलोर/नयी दिल्ली(ब्यूरो) :

06 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि अब इस पुरस्कार को भारत के हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर दिया जाएगा। हालाँकि जहाँ एक ओर पूरे देश में इस फैसले का स्वागत किया गया वहीं इस पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है। ताजा मामला कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता सिद्धारमैया का है जिन्होंने एक और योजना का नाम बदले जाने की संभावना पर भाजपा पर प्रतिशोध की राजनीति करने का आरोप लगाया है।

दरअसल, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने 07 अगस्त 2021 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस बोम्मई को ट्विटर पर टैग करते हुए यह माँग की थी कि कर्नाटक में चलने वाली ‘इंदिरा कैंटीन’ के नाम को बदलकर ‘अन्नपूर्णेश्वरी कैंटीन’ किया जाए। रवि ने अपने ट्वीट में आगे लिखा था कि इसका कोई कारण नहीं दिखता कि कर्नाटक के लोग खाना खाते समय आपातकाल के उन काले दिनों को याद करें।

रवि की इस माँग पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि इंदिरा कैंटीन के नाम को बदलने की बात करना कुछ और नहीं बल्कि भाजपा द्वारा की जा रही प्रतिशोध की राजनीति है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के नेतृत्व के नाम पर कई कार्यक्रम हैं ऐसे में क्या कभी उन्होंने इन नामों को बदलने की कोशिश की? सिद्धारमैया ने कहा कि खेल रत्न में राजीव गाँधी का नाम था, ऐसे में वह (भाजपा) इसे क्यों बदलना चाहते थे? साथ ही उन्होंने पीएम मोदी से इस मुद्दे पर जवाब माँगा है।

वहीं दूसरी ओर शिवसेना के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इस मुद्दे पर कहा कि राजीव गाँधी के द्वारा दिए गए बलिदान का अपमान किए बिना भी मेजर ध्यानचंद को सम्मान दिया जा सकता था। शिवसेना के मुखपत्र सामना में लिखते हुए राउत ने कहा कि राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड किया जाना एक ‘राजनैतिक दाँव’ है न कि लोगों की इच्छा के अनुरूप लिया गया फैसला।

ज्ञात हो कि केंद्र की मोदी सरकार ने शुक्रवार (6 अगस्त 2021) को खेल रत्न पुरस्कार मेजर ध्यानचंद के नाम पर दिए जाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा था, “मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार का नाम रखने के लिए देशभर से नागरिकों का अनुरोध मिले हैं। मैं उनके विचारों के लिए उनका धन्यवाद करता हूँ। उनकी भावना का सम्मान करते हुए, खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा! जय हिंद!”

बसवराज सोमप्पा बोम्मई होंगे कर्णाटक के नए मुख्यमंत्री

कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री का पूरा नाम बसवराज सोमप्पा बोम्मई है। कर्नाटक के गृह मामले, कानून, संसदीय मामले के मंत्री रहे बोम्मई ने हावेरी और उडुपी के जिला प्रभारी मंत्री के रूप में भी कार्य किया। इससे पहले उन्होंने जल संसाधन और सहकारिता मंत्री के रूप में कार्य किया है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई के पुत्र बसवराज ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीई की है। उन्होंने जनता दल से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।

चंडीगढ़/कर्नाटक:

कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के दो साल पूरे होने पर बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के ऐलान के बाद शुरू हुई हलचल अब शांत है। मंगलवार (जुलाई 27, 2021) शाम हुई विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए बसवराज बोम्मई का नाम सर्वसम्मति से पास कर दिया है।

कहा जा रहा है कि बैठक में स्वयं बीएस येदियुरप्पा ने ही इस नाम का प्रस्ताव रखा और फिर बाकी नेताओं ने इस पर सहमति दी। इससे पहले बसवराज, येदियुरप्पा सरकार में गृह मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। बुधवार यानी 28 जुलाई को वह 3 बजकर 20 मिनट पर सीएम पद की शपथ लेंगे।

बता दें कि बसवराज के पिता एस आर बोम्मई भी राज्य में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वहीं बसवराज ने भी जनता दल के साथ राजनीति की शुरुआत की थी। साल 1998 और 2004 में वह धारवाड़ से दो बार विधान परिषद के लिए चुने गए। लेकिन साल 2008 में वह भाजपा में शामिल हो गए और इसी वर्ष उन्होंने हावेरी जिले के शिगगाँव से विधायक पद पर जीत हासिल की।

28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज बोम्मई फिलहाल कर्नाटक के गृह मंत्री हैं। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की हुई है। राज्य में कई सिंचाई प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए उनकी तारीफ होती रही है। इसके अलावा वह येदियुरप्पा के करीबी माने जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में दो साल सरकार चलाने के बाद मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने एक कार्यक्रम में ऐलान किया था कि वह अपना सीएम का पद छोड़ रहे हैं। हालाँकि आज उन्होंने बोम्मई का नाम पास होने पर कहा, “हमने सर्वसम्मति से बसवराज एस बोम्मई को भाजपा विधायक दल का नेता चुना है। मैं पीएम मोदी को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूँ। पीएम के नेतृत्व में वह (बोम्मई) कड़ी मेहनत करेंगे।”

गौरतलब है कि केंद्र की कॉन्ग्रेस सरकार ने एसआर बोम्मई की सरकार को 21 अप्रैल 1989 को संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत कर कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। उन्हें बहुमत साबित करने का भी मौका नहीं दिया गया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार नाम से मशहूर इस मामले में 1994 में शीर्ष अदालत का फैसला आया था। इसमें अदालत ने उनकी सरकार की बर्खास्तगी को अनुचित बताया था। कहा था कि उन्हें बहुमत साबित करने का अवसर मिलना चाहिए था। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 356 लागू करने में केंद्र सरकार की मनमानी शक्ति को सिमित करने के लिए कई शर्तें जोड़ी थी।

बढ़ती उम्र के चलते येदियुरप्पा ने दिया इस्तीफा

कर्नाटक के सीएम बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने का फैसला किया है. उन्होंने भाषण के दौरान इस्तीफा देने की घोषणा की. बता दें कि मुख्यमंत्री ने करीब 35 मिनट तक भाषण दिया. इस दौरान कई बार उनकी आंखों में आंसू भी आ गए. सीएम येदियुरप्पा ने रविवार को कहा था कि वो बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का फैसला मानेंगे. माना जा रहा है कि बढ़ती उम्र के चलते येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा. क्या अगला मुख्यमंत्री नॉन – लिंगायत होगा.

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

पिछले दिनों से चल रही अटकलों के बीच कर्नाटक (Karnataka CM) के मुख्‍यमंत्री बीएस येडियुरप्‍पा (BS Yediyurappa) ने सोमवार को अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया है. वह शाम 4 बजे राज्‍यपाल से मुलाकात करेंगे. येडियुरप्‍पा ने अपने इस्‍तीफे की जानकारी उनकी सरकार को 26 जुलाई को दो साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में दी है.

बीएस येडियुरप्‍पा ऐसी संभावना जता चुके थे कि शायद 25 जुलाई को उनका मुख्‍यमंत्री के तौर पर आखिरी दिन होगा. उनका कहना था कि 25 जुलाई को केंद्रीय नेतृत्‍व उन्‍हें जो भी निर्देश देगा, वह 26 जुलाई से उसी के अनुसार काम शुरू करेंगे. उनका यह भी कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्‍यक्ष जेपी नड्डा पर उन्‍हें पूरा विश्‍वास है. आलाकमान जो भी निर्देश देगा, उन्‍हें वह मंजूर होगा.

शनिवार को इस बारे में उन्‍होंने कहा था कि मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने के पहले दिन से ही उन्‍होंने कई चुनौतियों का सामना किया है. लेकिन वह लोगों के जीवन का बेहतर बनाने के लिए किए गए ईमानदारी के काम को लेकर संतुष्‍ट हैं. बीएस येडियुरप्‍पा ने रविवार को कहा था कि वो इस पद पर बने रहेंगे या नहीं, कल तक (26 जुलाई) पता चल जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा कि वो अगले 10 से 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करते रहेंगे. येडियुरप्‍पा कर्नाटक के लिंगायत समुदाय से आते हैं. समुदाय में उनकी अच्‍छी पकड़ मानी जाती है.

वहीं कर्नाटक के नए मुख्‍यमंत्री की रेस में भी बीजेपी के कुछ नेताओं का नाम है. इनमें प्रह्लाद जोशी, मुरुएश आर निरानी, बासवराज बोम्‍मई, अरविंद बेलाड़ और बासनगौड़ा पाटिल यतनाल प्रमुख हैं.

आज गुरु पूर्णिमा पर विशेष

अर्थात् (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥।

उषा केडिया , मैसूर (कर्नाटक)

उषा केडिया ,
मैसूर (कर्नाटक
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      असत्य से सत्य की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमरता की ओर हमें केवल गुरु ही ले जा सकता है ।यहाँ प्रश्न आता है की गुरु ही क्यूँ हमें ले जा सकता है ???

        गुरु का शब्द दो वर्णों से बना है गु + रु = गुरु गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश । गु – कौन गु वह चन्द्रमा है वह अज्ञान है जिसमें कोई प्रकाश नही और रु -वह सूर्य वह ईश्वर है जो स्वयं के ज्ञान से प्रकाशित है ।

         जैसा कि हम सभी जानते है चन्द्रमा के पास अपना कोई प्रकाश नहीं लेकिन उसने अपना मुख सूर्य के सामने रखा हुआ है चूँकि सूर्य में अपना प्रकाश है तो जब चन्द्रमा उसके सामने आ जाता है तो उसके ऊपर सूर्य का प्रकाश पड़ने लगता है और इस तरह जहाँ जहाँ सूर्य का प्रकाश पड़ता है वहाँ वहाँ से चन्द्रमा भी प्रकाशित हो जाता है और एक दिन पूर्ण प्रकाश को पा जाता है ,उस प्रकाश को पा अब वो काली रात ( अंधकार)में दुनिया को प्रकाशित करता है।

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        तो बात चल रही थी गुरु ही क्यूँ  हमें अंधकार से प्रकाश की ओर असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जा सकता है ?? 

    उत्तर है क्यूँकि गुरु ने ही अपना मुख उस चन्द्रमा की तरह सूर्य रूपी ईश्वर की तरफ़ कर उससे प्रकाश प्राप्त किया है और अब वो ही केवल और केवल दुनिया के अंधकार को अपने ज्ञान द्वारा मिटा सकते है उनकी वाणी उस चन्द्रमा की तरह ही तपित हृदय को शीतलता प्रदान करती है ।

       इस प्रकृति पर लाखों करोड़ों लोग है किंतु सभी लोग तो गुरु की शरण में नही आते तो उनका जीवन उस काली रात की चादर सा ही रह जाता है और जो गुरु की शरण में आ जाते है उनका जीवन तारो सा हो जाता है जो काली रात में आसमान में चन्द्रमा के साथ झिलमिलाते है । 

        गुरु तो हमारी रूह है जो हमें बताते है कि तुम शरीर नही आत्मा हो , क्यूँकि मृत्यु के बाद शरीर तो वहीं पड़ा है तो फिर क्यूँ नही उसे गले लगते हो जिसके साथ ताउम्र सोते थे  उसके साथ एक रात भी सो नही पाते । क्यूँकि जिसके साथ तुम रहते थे वो आत्मा थी न की शरीर । गुरु बताते है कि हर आत्मा में ईश्वर है सभी आत्माओं को चाहे वह छोटा हो या बड़ा उसमें हमें उनके दर्शन कर उनको नमन करना है । गुरु पूर्ण है और उनके भावों को अपना कर हमें भी अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की तरफ़ आगे बढ़ना है ।