नई दिल्ली: नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया है. सरकार ने कहा है कि एजेएल की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. ऐसे में अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और इसे खारिज कर देना चाहिए. हलफनामे में केंद्रीय शहरी एवं आवास मामलों के मंत्रालय ने दिल्ली के आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस को खाली करने के अपने आदेश को सही बताया.
मंत्रालय ने याचिका में दिए गए आधारों को बताया गलत, कहा पिछले दस साल से हेराल्ड हाउस में कोई प्रेस नहीं चल रही है और सार्वजनिक परिसर अधिनियम का उल्लंघन है. साथ ही लीज पर मुहैया करायी गई संपत्ति का दुरुपयोग है. जवाब में सरकार ने कहा है कि सोनिया गांधी,राहुल गांधी, मोतीलाल वोहरा और ऑस्कर फर्नाडिज द्वारा सौ फीसद शेयर को स्थानांतरित किया जाना भी एजेएल द्वारा किया गया उल्लंघन है. राजनीतिक पार्टी का बैकग्राउंड होने की वजह से भवन को खाली कराने का आदेश जारी किए जाने का आरोप गलत है.
पांच अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एजेएल मामले में बड़ी राहत दी है. शीर्ष कोर्ट ने दिल्ली के आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने के आदेश पर रोक लगा दी थी. साथ ही एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्तों जवाब दाखिल करने को कहा था जिस पर केंद्र ने जवाब दिया है. इससे पहले नेशनल हेराल्ड अखबार की प्रकाशक कंपनी एजेएल ने दिल्ली हाईकोर्ट के हेराल्ड हाउस खाली करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने 28 फरवरी को लीज की शर्तें तोड़ने का दोषी पाते हुए एजेएल को दिल्ली के आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने का आदेश दिया था. मंत्रालय ने गतवर्ष ३० अक्टूबर को हाउस खाली कराने का नोटिस दिया था.
एजेएल ने एकल न्यायाधीश के 21 दिसंबर के आदेश को खिलाफ अपील दायर की थी, जिसने शहरी विकास मंत्रालय के खिलाफ दायर एजेएल की याचिका खारिज कर दी थी. शहरी विकास मंत्रालय ने 30 अक्टूबर, 2018 को कहा था कि एजेएल की 56 साल पुरानी लीज समाप्त हो चुकी है. इसलिए उसे परिसर खाली करना होगा.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/panchkula-bhupinder-thursday-congress-minister-panchkula-hindustan_2f787802-0fc5-11e9-b03e-d829a175bb22.jpg540960Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-03 16:11:592019-07-03 16:12:43ए जे एल मामले में सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया
कर्नाटक कांग्रेस के सामने आया यह नया संकट जल्द खत्म होने के आसार नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, आने वाले दिनों में महेश कुमाथाली, बीसी पाटिल, प्रताप गौड़ा पाटिल भी इस्तीफा दे सकते हैं
बेंगलुरू: कर्नाटक में कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को झटका देते हुए रमेश जरकीहोली और आनंद सिंह ने इस्तीफा दे दिया है. रमेश काफी लंबे अरसे से बागी तेवर अपनाए हुए थे. कांग्रेस के सामने यह संकट और बढ़ने के आसार हैं. सूत्रों के मुताबिक, कई अन्य विधायक भी इस्तीफा दे सकते हैं. तीन और विधायक भी इस्तीफा दे सकते हैं. उधर, दो विधायकों के इस्तीफे के बाद, कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया ने आनन-फानन में अपने आवास पर पार्टी की बैठक बुलाई. उधर, विधानसभा अध्यक्ष ने जारकीहोली के इस्तीफे की खबर की जानकारी होने से इनकार किया है.
विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने कहा, “मुझसे किसी ने संपर्क नहीं किया. मुझे नए राजनीतिक घटनाक्रम की जानकारी है. मैं इस्तीफा तभी स्वीकार करूंगा जब 20 सदस्य इस्तीफा देंगे. मुझे अभी किसी के इस्तीफे की कोई जानकारी नहीं है. मुझे कोई नेता नहीं मिला, यहां तक कि आनंद सिंह भी नहीं.”
जारकीहोली ने लगाया अनदेखी का आरोप जरकीहोली ने कहा कि उनकी पार्टी ने पिछले साल मंत्रिमंडल से उन्हें बाहर कर उनकी वरिष्ठता को ‘अनदेखा’ किया. उन्होंने कहा, “मैंने गोकक विधानसभा सीट से पार्टी और गठबंधन की सरकार द्वारा नजरअंदाज किए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया है.” इससे कुछ देर पहले ही, राज्य सरकार द्वारा 3,667 एकड़ भूमि को जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड को बेचने के फैसले से नाराज चल रहे कर्नाटक कांग्रेस के विधायक आनंद सिंह ने सोमवार को राज्य के उत्तर पश्चिमी बेल्लारी जिले में विजयनगर विधानसभा सीट से अपना इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने पत्रकारों से कहा, “मैं गठबंधन सरकार द्वारा जिंदल स्टील कंपनी को जमीन बेचने के फैसले से नाखुश हूं. इसलिए मैंने अपना त्यागपत्र राज्य विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार के आवास पर जाकर उन्हें सौंप दिया है.”
ये तीन विधायक भी दे सकते हैं इस्तीफा सूत्रों के मुताबिक, आने वाले दिनों में महेश कुमाथाली, बीसी पाटिल, प्रताप गौड़ा पाटिल भी इस्तीफा दे सकते हैं. दो विधायकों के इस्तीफे ऐसे समय आए हैं, जब राज्य में कांग्रेस-जेडीएस के बीच तालमेल कम होता नजर आ रहा है. हालांकि दोनों पार्टियों ने बार-बार यही कहा कि गठबंधन को लेकर कोई समस्या नहीं है और सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/untitled_25_2603404_835x547-m.jpg547835Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-01 16:47:512019-07-01 16:49:36कर्णाटक में 3 ओर विधायक हाथ का साथ छोडने की तैयारी में
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में 104 विधायकों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर राज्य में सरकार बनाई थी. इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अब ये संभावना प्रबल हो गई है कि अब सत्ता पक्ष से एक के बाद एक आधा दर्जन विधायक अपना इस्तीफा दे सकते हैं.
बेंगलुरु: कर्नाटक में जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी को एक बार फिर से झटका लगा है. उसके दो विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. सोमवार को विधायक रमेश जारकीहोली और आनंद सिंह ने पार्टी के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. रमेश जारकीहोली पहले सरकार में मंत्री थे. लेकिन दूसरे विस्तार में उन्हें पद से हटा दिया गया.
कांग्रेस में मची इस उथल-पुथल पर कर्नाटक बीजेपी ने कहा है कि अभी कांग्रेस में कई और विधायक पार्टी का साथ छोड़ेंगे. अगर ऐसा हुआ तो पहले से संकटों में घिरी कर्नाटक सरकार कभी भी गिर सकती है. राज्य सरकार द्वारा 3,667 एकड़ भूमि को जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड को बेचने के फैसले से नाराज चल रहे कर्नाटक कांग्रेस के विधायक आनंद सिंह ने सोमवार को राज्य के उत्तर पश्चिमी बल्लारी जिले में विजयनगर विधानसभा सीट से अपना इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पत्रकारों से कहा, “मैं गठबंधन सरकार द्वारा जिंदल स्टील फर्म को जमीन बेचने के फैसले से नाखुश हूं. इसलिए मैंने अपना त्यागपत्र राज्य विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार के आवास पर जाकर उन्हें सौंप दिया है.”
आनंद सिंह के बाद रमेश जारकीहोली ने भी दिया इस्तीफा कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर गर्म होती दिख रही है. सोमवार को कर्नाटक विधान सभा के एक के बाद एक दो विधायको ने विधानसभा की अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. शुरुआत सुबह बेल्लारी की विजयनगर सीट से कांग्रेस के विधायक आनंद सिंह के इस्तीफे से हुई. आनंद सिंह ने अपना इस्तीफा विधान सभा के अध्यक्ष रमेश कुमार को सुबह उनके आवास पर सौंपा. हालांकि विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार लगातार ऐसे किसी इस्तीफे के प्राप्त होने से इंकार करते रहे. दोपहर को आनंद सिंह ने कर्नाटक के राज्यपाल वजू भाई वाला से मिलकर अपने त्यागपत्र की जानकारी दी. इसके तुरंत बाद आनंद सिंह ने मीडिया से बात करते हुए अपने इस्तीफे का कारण राज्य सरकार द्वारा जे एस डब्लू स्टील (जिंदल) के जमीन आवंटन को कारण बताया. उन्होंने अपने अगले कदम को स्पष्ट नहीं किया. आनंद सिंह के राज्यपाल से मिलने के साथ ही स्पीकर ने भी आनंद सिंह के इस्तीफे के मिलने की पुष्टि कर दी.
दोपहर 3 बजे कांग्रेस के गोकाक विधानसभा से कांग्रेस विधायक रामेश जरकेहोली ने भी अपना त्यागपत्र स्पीकर को सौंप दिया. रमेश जरकेहोली लंबे समय से पार्टी से नाराज़ चल रहे थे और उनकी गिनती बागी विधयकों में हो रही थी. इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अब ये संभावना प्रबल हो गई है कि अब सत्ता पक्ष से एक के बाद एक आधा दर्जन विधायक अपना इस्तीफा दे सकते हैं.
सोमवार को ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदयुरप्पा ने कहा कि वो किसी भी तरह इस सरकार को गिराने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हालांकि वो इस बात से वाकिफ हैं कि 20 के आसपास विधायक वर्तमान की सरकार से नाराज़ चल रहे हैं और इस्तीफा दे सकते हैं. कांग्रेस विधायकों के ये बागी तेवर उस समय सामने आए हैं जब मुख्यमंत्री कुमार स्वामी देश में नहीं हैं. कुमारस्वामी एक कार्यक्रम में भाग लेंने अमेरिका की यात्रा पर हैं. पूर्व निर्धारित कर्यक्रम के मुताबिक वो 8 तारीख को भारत लौटेंगे पर जिस तरह के हालात फिलवक्त नज़र आ रहे हैं. हो सकता है वो अपना दौरा बीच मे ही समाप्त कर दें.
वर्तमान में कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीटो में बीजेपी के 105 विधायक हैं. जबकि जनता दल सेक्युलर के पास 38 (37+1 BSP) विधायक हैं. कांग्रेस के विधायकों की संख्या 80 है. (79+1 speaker).
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/untitled_25_2603404_835x547-m.jpg547835Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-01 15:31:242019-07-01 15:31:27कर्नाटक काँग्रेस को झटका देते हुए 2 विधायकों ने सौंपा इस्तीफा
काँग्रेस की विडम्बना विनम्रता है। पार्टी के छोटे से बड़े नेता तक में इसकी कमी है। विनम्रता से ही पात्रता का भान होता है ओर विनम्रता ही से मित्र बनते हैं। अहंकार और धृष्टता अलगाव पैदा करते हैं। दूसरी सबसे बड़ी कमी है ज़िम्मेदारी लेने कि, काँग्रेस में सभी प्यादे से लेकर वज़ीर तक ज़िम्मेदारी डालते हैं निभाते नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री और जद (एस) प्रमुख एचडी देवगौड़ा ने शुक्रवार को कहा कि लोकसभा चुनाव में हार के लिए उनकी पार्टी के साथ गठबंधन को जिम्मेदार ठहराने की कांग्रेस नेताओं की टिप्पणी से उन्हें ‘दुख’ पहुंचा है. देवगौड़ा ने कहा, ‘मुझे दुख हुआ जब एक बैठक में उनके (कांग्रेस के) राष्ट्रीय महासचिव की मौजूदगी में किसी ने(कांग्रस नेता ने) कहा कि पार्टी जद (एस) के साथ गठजोड़ की वजह से मुश्किल में थी.’
बेंगलुरु: लोकसभा चुनाव में कारारी हार के बाद कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी खुद कुर्सी छोड़ने पर आमदा हैं. पार्टी मीटिंग में वे कह चुके हैं कि इस हार की जिम्मेदारी पार्टी में कोई लेने को तैयार नहीं है. वहीं पार्टी के दूसरे नेता हार पर चुप्पी साधे हुए हैं. कर्नाटक में कांग्रेस ने हार के लिए सहयोगी जेडीएस को जिम्मेदार ठहराया है. इस बात से जेडीएस के वरिष्ठ नेता एचडी देवेगौड़ा काफी आहत हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री और जद (एस) प्रमुख एचडी देवगौड़ा ने शुक्रवार को कहा कि लोकसभा चुनाव में हार के लिए उनकी पार्टी के साथ गठबंधन को जिम्मेदार ठहराने की कांग्रेस नेताओं की टिप्पणी से उन्हें ‘दुख’ पहुंचा है. देवगौड़ा ने कहा, ‘मुझे दुख हुआ जब एक बैठक में उनके (कांग्रेस) गठजोड़ की वजह से मुश्किल में थी.’
यहां पत्रकारों से देवगौड़ा ने कहा कि मई 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु नतीजे आने के बाद कांग्रेस नेता ही इस इच्छा के साथ उनके पास आए थे कि एचडी कुमारस्वामी गठबंधन सरकार की अगुवाई करें. उन्होंने कहा, ‘हमने कभी नहीं कहा कि कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनना चाहिए.’
देवगौड़ा ने कहा, ‘ईमानदारी से कहूं तो क्या 37 सीटों के आधार पर (मुख्यमंत्री पद) के लिए कहना धर्म है? वे (कांग्रेस नेता) दिल्ली के आला कमान के आदेश पर आए थे और कहा था कि कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनना चाहिए.’ पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए मलिक्कार्जुन खड़गे, मौजूदा उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर या वरिष्ठ कांग्रेस नेता के एच मुनियप्पा का नाम सुझाया था.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/400631-hd-deve-gowda.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-29 04:51:452019-06-29 04:53:13कांग्रेस के आचरण से देवेगौड़ा आहात
नई दिल्लीः कर्नाटक से बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले पांच वर्षों में देश की राजनीति बदली और सियासत के ‘फैमिली बिजनेस’ होने की आम धारणा को खत्म कर दिया जिस वजह से अब आम परिवारों के युवा भी राजनीति में आने के सपने देख सकते हैं.
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए सूर्या ने कहा, ‘‘ मोदी सरकार में नए भारत की बुनियाद रखी गई है और अर्थव्यवस्था साफ-सुथरी और पारदर्शी हो गई है.’’ उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में आजादी के बाद पहली बार देश के लोगों को हिंदू संस्कृति पर गौरव का अहसास हुआ.
बेंगलुरू-दक्षिण से निर्वाचित सूर्या ने सदन में पहली बार अपनी रखते हुए कहा कि मोदी के कारण ही उनके जैसा मध्य वर्ग का युवा लोकतंत्र के मंदिर में पहुंच सका है. मोदी ने राजनीति बदल दी और उस पूरी धारणा को खत्म कर दिया कि राजनीति ‘फैमिली बिजनेस’ है.
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में जीएसटी को सफलतापूर्वक लागू किया गया और अर्थव्यवस्था को पारदर्शी बनाया गया.सूर्या ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर विपक्ष ने अपने आचरण में बदलाव नहीं किया तो अगली बार सदन में सभी 543 सदस्य बीजेपी के होंगे.बीजेपी के दिलीप घोष ने पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाया और आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल को पश्चिमी बांग्लादेश बनाना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में ‘कट मनी’ का चलन है और राज्य की जनता को ऐसे शासन से मुक्ति दिलाने की जरूरत है. उन्होंने कर्नाटक की वर्तमान कांग्रेस..जेडीएस सरकार पर भी निशाना साधा .
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/tejaswi.jpg6741199Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-26 00:52:472019-06-26 00:52:51मोदी सरकार में आजादी के बाद पहली बार देश के लोगों को हिंदू संस्कृति पर गौरव का अहसास हुआ : तेजस्वी सूर्या
25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. आज़ाद भारत में इमरजेंसी के 21 महीनों के दौरान संवैधानिक अधिकारों को कुचल कर मनमाने ढंग से सत्ता चलाई गई. 25 जून 1975 को Doctor भीम राव अंबेडकर के लिखे संविधान की कीमत…एक साधारण किताब जैसी हो गई थी. इस तारीख़ को गांधीवाद की माला जपने वाली कांग्रेस ने महात्मा गांधी के आदर्शों और उसूलों की हत्या कर दी थी. देश एक ऐसे अंधेरे में डूब गया था, जहां सरकार के विरोध का मतलब था जेल. ये वो दौर था जब अपने अधिकारों को मांगने के लिए भी जनता के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, क्योंकि अखबारों में वही छपता था, जो सरकार चाहती थी. रेडियो में वही समाचार सुनाई देते थे, जो सरकार के आदेश पर लिखे जाते थे.
25 जून को इमरजेंसी के 44 वर्ष पूरे हो जाएंगे. भारत में कम से कम दो पीढ़ियां ऐसी हैं, जो इमरजेंसी के बाद पैदा हुईं. और उनमें से सबसे युवा पीढ़ी को तो शायद इमरजेंसी के बारे में पता ही नहीं होगा. इसलिए, हम DNA में इमरजेंसी का विश्लेषण करने वाली एक सीरीज़ शुरू कर रहे हैं. जिसमें हम हर रोज़ आपको इमरजेंसी की अनुसनी कहानियां बताएंगे…ताकि हमारे हर उम्र के दर्शक इसके बारे में अच्छी तरह समझ सकें.
इमरजेंसी क्यों लगाई गई? इसके पीछे इंदिरा गांधी की मंशा क्या थी? इमरजेंसी को लगाने से पहले देश में किस तरह का माहौल था? इसकी जानकारी हम आपको आगे देंगे, लेकिन उससे पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर इमरजेंसी होती क्या है? भारतीय संविधान में तीन तरह की इमरजेंसी का ज़िक्र है…
संविधान के Article 352 के तहत National emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण से ख़तरा हो. संविधान के Article 356 के तहत State Emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब राज्य में संवैधानिक मशीनरी फेल हो गई हो. इस इमरजेंसी को राष्ट्रपति शासन या President Rule भी कहा जाता है. और संविधान के Article 360 के तहत Financial emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब देश की वित्तीय स्थिरता को ख़तरा हो.
भारत में National emergency यानी राष्ट्रीय आपातकाल तीन बार लगाया गया. पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान, दूसरी बार 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान. और तीसरी बार 1975 में इंदिरा गांधी के शासनकाल में. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक गड़बड़ियों की आशंका को आधार बनाकर आपातकाल लगा दिया था. इसे एक तानाशाही फैसला कहा जाता है, क्योंकि देश में इमरजेंसी लगाने के आदेश पर कैबिनेट की मंज़ूरी के बिना ही राष्ट्रपति के हस्ताक्षर ले लिए गए थे. अगली ही सुबह विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल के अंदर डाल दिया गया था. देश में जो भी सरकार की आलोचना कर रहा था उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.
आपातकाल में Maintenance of Internal Security Act यानी मीसा के तहत किसी को भी अनिश्चितकाल के लिए गिरफ़्तार कर लिया जाता था और उसे अपील करने का भी अधिकार नहीं था. इंदिरा गांधी ने देश के नागरिकों के सभी मूलभूत संवैधानिक अधिकार छीन लिए थे. लोकतंत्र में जनता ही भगवान है. लेकिन इंदिरा गांधी ने खुद को लोकतंत्र का भगवान समझ लिया था. इसलिए अपनी तानाशाही को बचाये रखने लिए उन्होंने इमरजेंसी लगा दी. इसकी वजह समझनी भी ज़रूरी है.
1971 का चुनाव जीतने के बाद अगले 3 वर्षों में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता कम होने लगी. सरकारी नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था बदहाल हो गई. भ्रष्टाचार और महंगाई ने लोगों की ज़िंदगी मुश्किल कर दी थी. महंगाई से परेशान सरकारी कर्मचारी वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे थे और छात्र भी हालात से परेशान होकर आंदोलन करने लगे. उस वक्त तमिलनाडु को छोड़कर देश के हर राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. लोगों का गुस्सा कांग्रेस सरकारों के प्रति बढ़ता जा रहा था. इसी बीच छात्र संगठनों ने भी आंदोलन तेज़ कर दिया था.
विपक्ष के सभी नेता एकजुट होकर इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करने लगे. इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ देश भर में हड़ताल, प्रदर्शन, अनशन और आंदोलनों का दौर शुरू हो गया. 1974 में जार्ज फर्नांडिस के साथ करीब 17 लाख रेलवे कर्मचारी 20 दिनों तक हड़ताल पर चले गये. फर्नांडिस उस समय सोशलिस्ट पार्टी के चेयरमैन और ऑल इंडिया रेलवे मैंस फेडरेशन के अध्यक्ष थे. 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने हड़ताल को गैरक़ानूनी क़रार देते हुए हज़ारों कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया.
इस फैसले के बाद कर्मचारी और मज़दूर इंदिरा गांधी से नाराज़ हो गए. लेकिन इमरजेंसी लगाने की आख़िरी वजह बना 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट को ऐतिहासिक फैसला, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया था…और उन्हें भ्रष्ट तरीकों से चुनाव लड़ने का दोषी ठहरा दिया था. आज आपको इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बारे में भी जानना चाहिए. जिसकी कहानी 1971 से शुरू होती है. वर्ष 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी, रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीती थीं.
लेकिन इंदिरा गांधी की इस जीत को उनके विपक्षी उम्मीदवार राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. राज नारायण संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. वो अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि नतीजे घोषित होने से पहले ही उनके समर्थकों ने विजय जुलूस निकाल दिया था.
लेकिन जब परिणाम घोषित हुआ तो राज नारायण चुनाव हार गए. नतीजा आने के बाद राज नारायण ने इसके ख़िलाफ़ कोर्ट में अर्ज़ी दी. उन्होंने ये अपील की थी कि, इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है, इसलिए ये चुनाव निरस्त कर दिया जाए. इंदिरा गांधी पर ये आरोप थे कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय के एक सीनियर अधिकारी यशपाल कपूर को अपना चुनावी एजेंट बनाया था, जबकि वो एक सरकारी कर्मचारी थे.
इसके अलावा उन्होंने ने भारतीय वायु सेना के विमानों का दुरुपयोग किया और रायबरेली के कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों को अपने चुनाव के लिए इस्तेमाल किया. इंदिरा गांधी पर ये आरोप भी था कि चुनाव जीतने के लिए वोटरों को कंबल और शराब भी बंटवाई गई थी. यानी आप आज के विश्लेषण से ये भी जान सकते हैं कि चुनाव जीतने के लिए शराब और दूसरे सामान बांटने का फॉर्मूला इंदिरा गांधी ने 1970 के दशक में ही खोज लिया था. मुक़दमे की सुनवाई के दौरान इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने वाले आरोप सही साबित हुए.
इसी आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और उनके चुनाव को रद्द कर दिया. इस फैसले में अगले 6 वर्षों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया.
ये इंदिरा गांधी के लिए बहुत बड़ा झटका था… उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. 25 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के Vacation Judge वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा कि इंदिरा गांधी को संसद में वोट का अधिकार नहीं है…पर वो अगले 6 महीने के लिए प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर राजनीतिक हमले तेज़ कर दिए. 25 जून 1975 को ही दिल्ली के रामलीला मैदान में देश के वरिष्ठ राजनेता जयप्रकाश नारायण की रैली हुई और उस रैली में एक नारा दिया गया था- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”…..आपने भी ये नारा ज़रूर सुना होगा. लेकिन ये सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता थी.
कहा जाता है कि जयप्रकाश नारायण की रैली को रोकने के लिए भी इंदिरा गांधी ने कई कोशिशें की. दिल्ली की रामलीला मैदान में रैली करने के लिए जयप्रकाश नारायण को Flight से कलकत्ता से दिल्ली आना था लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ्लाइट को कैंसिल करवा दिया. इसके बावजूद वो दिल्ली पहुंच गये. इस रैली में करीब तीन लाख लोगों की संख्या देखकर इंदिरा गांधी घबरा गईं. इसके बाद उन्होंने तुरंत इमरजेंसी लगाने का फैसला ले लिया.
वक़्त बदलने देर नहीं लगती. वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा को भंग कर के मध्यावधि चुनाव कराए थे. वो भारी बहुमत से चुनकर सत्ता में आई थीं. 1971 में कांग्रेस ने लोकसभा की 352 सीटें जीती थीं. इसके बाद दिसंबर 1971 में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटकर इंदिरा गांधी अपनी राजनीति के शिखर पर पहुंच गई थीं. लेकिन, सत्ता से चिपके रहने के इंदिरा गांधी के लालच ने देश को इस अंधकार में झोंक दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद इंदिरा गांधी इस्तीफ़ा देकर किसी और को प्रधानमंत्री बना सकती थीं और ये लड़ाई क़ानूनी तरीक़े से लड़कर दोबारा सत्ता हासिल कर सकती थीं. लेकिन, उन्होंने गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को प्रधानमंत्री बनाने के विकल्प पर काम नहीं किया और उसका नतीजा इमरजेंसी के तौर पर देश ने भुगता.
इंदिरा गांधी की इमरजेंसी वाली तानाशाही के पीछे एक पूरी टीम काम कर ही थी. इसमें दो तरह के लोग थे. एक वो जो इमरजेंसी को लागू करने की संवैधानिक रणनीति तैयार कर रहे थे. आप इन्हें इमरजेंसी के स्क्रिप्ट राइटर भी कह सकते हैं. इनमें पहला नाम है सिद्धार्थ शंकर रे– जो उस वक्त पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे. माना जाता है इमरजेंसी का आइडिया सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गांधी को दिया था. सिद्धार्थ शंकर रे एक मशहूर वक़ील थे और संविधान के जानकार माने जाते थे. इमरजेंसी लगाने से पहले इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे को कोलकाता से दिल्ली बुलाया था.
इसके बाद 25 जून को रात 11 बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति भवन गए. जहां इन दोनों ने इमरजेंसी की घोषणा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर कराए. इस तरह, सिद्धार्थ शंकर रे ने संविधान की अपनी जानकारी का इस्तेमाल देश को आपातकाल के अंधकार में झोंकने के लिए किया.
इमरजेंसी के दूसरे बड़े किरदार का नाम है- तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद. राष्ट्रपति पद के लिए फख़रुद्धीन अली अहमद के नाम को इंदिरा गांधी ने ही आगे बढ़ाया था. शायद यही वजह थी कि फखरुद्दीन अली अहमद ने विरोध का एक भी शब्द कहे बिना …संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए.
आधी रात को इमरजेंसी के पेपर पर राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर पर एक कार्टून भी बना था, जो पूरी दुनिया में चर्चित हो गया. इसमें फख़रुद्दीन अली अहमद अपने बाथटब में लेटे हुए इमरजेंसी के पेपर पर साइन कर रहे हैं और ये कह रहे हैं कि बाक़ी के कागज़ों पर साइन लेने के लिए थोड़ा इंतज़ार करें. इस कार्टून से आप इंदिरा गांधी की सत्ता की शक्ति और तानाशाही का अंदाज़ा लगा सकते हैं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/emergency-ss-25-06-15.jpg338666Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-25 16:02:192019-06-25 16:02:22आपातकाल कब – क्यूँ और कैसे ?
लोक सभा च्नावोन में मिली करारी हार से राहुल का उबरना कठिन लग रहा है। वह आए दिन अपने अंदाज़ से भारत की लोक तांत्रिक व्यवस्था का मज़ाक दाते दिखाई पड़ते हैं ओर फिर न्के नेता उनके बचाव में आ जाते हैं, लेकिन रहल हैं के मानते ही नहीं।
नई दिल्ली: राहुल गांधी का योग दिवस पर किए गए तंज पर विवाद बढ़ता जा रहा है. योग दिवस के मौके पर राहुल गांधी ने सेना के जवानों और कुत्तों के जरिए योग करते हुए तस्वीरें ट्वीट की थी. इस पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. इस तस्वीर में जवानों के साथ सेना के कुत्ते भी योग करते नजर आ रहे हैं. इस पर राहुल गांधी ने तंज कसा था.
इसके बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि सेना का अपमान करना कांग्रेस की परंपरा रही है. कांग्रेस का हाथ नकारात्मकता के साथ. उनके अलावा केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी राहुल गांधी के बयान पर निराशा जताते हुए कहा, भगवान उन्हें सदबुद्धि दे.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर सबसे तीखा हमला बीजेपी के पूर्व सांसद और फिल्म अभिनेता परेश रावल ने किया. उन्होंने कहा, हां राहुल गांधी जी ये न्यू इंडिया है. यहां पर कुत्ते आपसे ज्यादा स्मार्ट हैं.
योग दिवस पर पूरी दुनिया समेत देश के ज्यादातर हिस्सों में योगा दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के रांची में योग कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. खुद कांग्रेस शासित कई राज्यों में योग दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किए गए थे.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/D9lFFFBUwAASsH-.jpg5751024Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-21 18:49:442019-06-21 18:52:11राहुल जी, यही नव भारत है, जहां कुत्ते भी आपसे अधिक बुद्धिमान हैं : परेश रावल
1951 में कांग्रेस सरकार ने “हिंदू धर्म दान एक्ट” पास किया था। इस एक्ट के जरिए कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि वो किसी भी मंदिर को सरकार के अधीन कर सकते हैं। इस एक्ट के बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार नें लगभग 34,000 मंदिर को अपने अधीन ले लिया था। कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु ने भी मंदिरों को अपने अधीन कर दिया था। इसके बाद शुरू हुआ मंदिरों के चढ़ावे में भ्रष्टाचार का खेल। उदाहरण के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर की सालाना कमाई लगभग 3500 करोड़ रूपए है। मंदिर में रोज बैंक से दो गाड़ियां आती हैं और मंदिर को मिले चढ़ावे की रकम को ले जाती हैं। इतना फंड मिलने के बाद भी तिरुपति मंदिर को सिर्फ 7 % फंड वापस मिलता है, रखरखाव के लिए।
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री YSR रेड्डी ने तिरुपति की 7 पहाड़ियों में से 5 को सरकार को देने का आदेश दिया था। इन पहाड़ियों पर चर्च का निर्माण किया जाना था। मंदिर को मिलने वाली चढ़ावे की रकम में से 80 % “गैर हिंदू” कामों के लिए किया जाता है।
तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक हर राज्य़ में यही हो रहा है। मंदिर से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल मस्जिदों और चर्चों के निर्माण में किया जा रहा है। मंदिरों के फंड में भ्रष्टाचार का आलम ये है कि कर्नाटक के 2 लाख मंदिरों में लगभग 50,000 मंदिर रखरखाव के अभाव के कारण बंद हो गए हैं। दुनिया के किसी भी लोकतंत्रिक देश में धार्मिक संस्थानों को सरकारों द्वारा कंट्रोल नहीं किया जाता है, ताकि लोगों की धार्मिक आजादी का हनन न होने पाए। लेकिन भारत में ऐसा हो रहा है। सरकारों ने मंदिरों को अपने कब्जे में इसलिए किया क्योंकि उन्हे पता है कि मंदिरों के चढ़ावे से सरकार को काफी फायदा हो सकता है।
लेकिन, सिर्फ मंदिरों को ही कब्जे में लिया जा रहा है। मस्जिदों और चर्च पर सरकार का कंट्रोल नहीं है। इतना ही नहीं, मंदिरों से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल मस्जिद और चर्च के लिए किया जा रहा है।
इन सबका कारण अगर खोजे तो 1951 में पास किया हुआ कॉंग्रेस का वो बिल है। हिन्दू मंदिर एक्ट की पुरजोर मांग करनी चाहिए जिससे हिन्दुओ के मंदिरों का प्रबंध हिन्दू करे ।गुरुद्वारा एक्ट की तर्ज पर हिन्दू मंदिर एक्ट बनाया जाए।
राजीव कुमार सैनी, एडवोकेट हाई कोर्ट इलाहाबाद स्वयंसेवक संयोजक , भाजपा विधि प्रकोष्ठ, हाई कोर्ट इलाहाबाद इकाई, प्रयागराज
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/angkor_wat_mandir_temple6.jpg450800Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-21 16:28:162019-06-21 17:02:44एक और ख़बर जो ख़बर न बन सकी
ममता की भड़काई आग में सारे देश के जूनियर डाक्टर हड़ताल पर हैं। अभी तक कहीं कहीं सांकेतिक हड़ताल चल रही थी परंतु आज यानि 17 जून को आईएमए और दूसरे संगठनों ने देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। जो बात सिर्फ एक आश्वासन से दूर की जा सकती थी उसे पहले ममता ने सांप्रदायिक रंग दिया, फिर क्षेत्रीय मामला बनाया, धमकाया, इस्तीफे – निलंबन और तत्पश्चात अपनी सुरक्षा से भी जोड़ दिया। सब कुछ किया बस वही नहीं किया जो अति साधारण और अति आवश्यक था।
नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के साथ हुए व्यवहार के बाद हड़ताल का असर पूरे देश में देखने को मिल रहा है. आज राजधानी दिल्ली में सफदरजंग, लेडी हार्डिंग, आरएमएल, जी टीबी, डॉ बाबासाहेब अंबेडकर, संजय गांधी मेमोरियल, दिन दयाल उपाध्याय अस्पताल के डॉक्टर हड़ताल पर रहेंगे. डॉक्टरों के हड़ताल पर रहने के कारण दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं और रूटीन ऑपरेशन प्रभावित होंगे.
इमरजेंसी सेवाएं जारी रहेंगी
इन अस्पतालों में करीब 14,500 रेजिडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर रहने से ओपीडी प्रभावित रहेंगी. वहीं ऑपरेशन थियेटर बंद रहने की वजह से पहले से निर्धारित ऑपरेशन नहीं हो पाएंगे. हालांकि ओपीडी में वरिष्ठ डॉक्टर मौजूद रहेंगे. रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी में रेजिडेंट डॉक्टर ड्यूटी पर मौजूद रहेंगे. ताकि गंभीर मरीजों का इलाज प्रभावित न होने पाए. आइएमए की घोषणा के मद्देनजर दिल्ली के निजी अस्पतालों में भी ओपीडी सेवा प्रभावित होने की आशंका है. इससे हजारों मरीजों का इलाज प्रभावित होगा.
इन अस्पतालों में जाने से बचें
सफदरजंग, आरएमएल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, लोकनायक, जीबी पंत, जीटीबी, डीडीयू, संजय गांधी स्मारक अस्पताल, आंबेडकर अस्पताल, गुरु गो¨वद सिंह अस्पताल, हइबास, हिंदू राव, भगवान महावीर अस्पताल, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, रेलवे अस्पताल व महर्षि वाल्मीकि अस्पताल, एलबीएस. एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने अपना फैसला बदल लिया है और दोपहर 12 बजे से हड़ताल में शामिल होने के एलान किया है. इससे कार्डियक सेंटर व न्यूरो सेंटर में दोपहर दो बजे से होने वाली ओपीडी प्रभावित होगी.
दिल्ली के इन अस्पतालों के लिए जारी किया गया नंबर
यहां पहुंचने वाले मरीज़ हड़ताल से अस्पताल में कौन-कौन सी स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हुई है उसकी जानकारी हासिल कर सकते हैं.. 1. सफदरजंग :- 26165060, 26165032, 26168336 2. लेडी हार्डिंग :- 011 2336 3728 3. आरएमएल :-91-11-23404040 4. जी टीबी :- 011 2258 6262 5. डॉ बाबासाहेब अंबेडकर:- 0120 245 0254 6. संजय गांधी मेमोरियल :-011 2792 2843 / 011 2791 5990 7.दिन दयाल उपाध्याय : 011 2549 4402
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/02/5icjbnr_mamata-banerjee-dharna-pti_625x300_04_February_19.jpg400650Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-17 04:52:482019-06-17 04:53:37आज डाकटरों की देशव्यापी हड़ताल
नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक अस्पताल में तीमारदारों की ओर से डॉक्टरों संग की गई मारपीट के बाद शुरू हुई डॉक्टरों की हड़ताल पूरे देश में फैल गई है. देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स के भी रेजीडेंट डॉक्टर भी इसमें शामिल हो गए हैं. डॉक्टरों की इस हड़ताल में कोलकाता के मेयर और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता फरहाद हकीम की डॉक्टर बेटी भी शामिल हो गई है. उनकी बेटी शबा हकीम ने गुरुवार को डॉक्टरों की हड़ताल का समर्थन किया है. इसके साथ ही उन्होंने फेसबुक में एक पोस्ट लिखा. उसमें उन्होंने साफतौर पर कहा है कि मैं टीएमसी समर्थक हूं लेकिन इस मामले में नेताओं के ढुलमुल रवैया और उनकी ओर से साधी गई चुप्पी पर मैं शर्मिंदा हूं.
For those who do not know Doctors in government and most private hospitals are boycotting OPD but are still working in emergency. Unlike other professions we can’t just decide not to work because at the end of the day we have humanity. If there was a bus or taxi strike not one taxi driver or bus driver would provide you with any service no matter how dire the situation. For those saying “Ono Rugider ki dosh?” Please question the government as in why the police officers post…See more
शबा हकीम ने कोलकाता के केपीसी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से डॉक्टरी की पढ़ाई की है. शबा हकीम ने सोशल मीडिया में पोस्ट करते हुए डॉक्टरों को पश्चिम बंगाल में काम के समय अस्पताल में सुरक्षा उपलब्ध कराने की मांग की. बात दें कि इसके बाद शुक्रवार को ही खुद ममता बनर्जी के भतीजे आबेश बनर्जी भी डॉक्टरों की इस हड़ताल में शामिल हुए हैं. कोलकाता के केपीसी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पढ़ने वाले आबेश बनर्जी ने डॉक्टरों की हड़ताल का समर्थन किया है और इस हड़ताल में शामिल हो गए हैं.
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अल्टीमेटम के बाद डॉक्टरों की हड़ताल ने तूल पकड़ लिया है. इसी के चलते शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के 16 और डॉक्टरों ने अपना इस्तीफा दे दिया है. ये सभी डॉक्टर कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में कार्यरत हैं.
डॉक्टरों की सुरक्षा की मांग और पश्चिम बंगाल की घटना के विरोध में डॉक्टरों का प्रतिनिधिमंडल ने आज स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से मुलाकात की है. डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात से पहले स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने डॉक्टरों से सांकेतिक हड़ताल कर मरीजों का इलाज जारी रखने की अपील की. उन्होंने कहा कि मैं सभी डॉक्टरों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर है.
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने यह भी कहा कि मैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अनुरोध करता हूं कि इस मामले को अपने सम्मान का मुद्दा न बनाएं. उन्होंने डॉक्टरों को कल अल्टीमेटम दिया था, इसीलिए डॉक्टर नाराज हो गए और उन्होंने हड़ताल कर दी. आज मैं इस मामले में ममता बनर्जी जी को लिखूंगा. साथ ही उनसे बात करने की भी कोशिश करूंगा.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/394471-abesh.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-14 13:11:572019-06-14 13:11:59टीएमसी नेताओं के बच्चे डाक्टरों की हड़ताल के समर्थक
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