पुलवामा पर आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को दिया मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा वापस ले लिया. इसके बाद भारत ने अब पाकिस्तानी सामानों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी बढ़ा दी है.
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट कर बताया ‘पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से एमएफएन का दर्जा वापस ले लिया है. साथ ही पाकिस्तान से भारत निर्यात होने वाली सभी चीजों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 200 फीसदी तक तत्काल प्रभाव से बढ़ा दी गई है.’
सीमा शुल्क में बढ़ोत्तरी से पाकिस्तान से भारत को किया जाने वाले निर्यात पर काफी बुरा असर पड़ेगा. साल 2017-18 में पाकिस्तान से भारत को 3,482.3 करोड़ रुपए यानी 48.85 करोड़ डॉलर का निर्यात किया गया था. पाकिस्तान प्रमुख तौर पर भारत को ताजे फल, सीमेंट, बड़े पैमाने पर खनिज-अयस्क और तैयार चमड़ा निर्यात करता है.
इससे पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, ‘पाकिस्तान को दिया गया MFN का दर्जा वापस लेने के निर्णय का उसकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. पाकिस्तान पहले से ही गहरे संकट में है.’ कुमार ने आगे कहा कि भारत का बड़ा बाजार अब पाकिस्तान के निर्यात के लिए बंद होगा. नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा, ‘कश्मीर में अत्यंत उकसावे वाली कार्रवाई के बाद भारत MFN का दर्जा वापस लेने के लिए बाध्य हुआ है.’
दरअसल, 14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकवादी हमला हुआ था. इस हमले में सेना के 40 जवान शहीद हो गए. हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी.
दूसरी तरफ पाकिस्तान ने शुक्रवार को भारतीय उप उच्चायुक्त को तलब किया और पुलवामा में हुए भीषण आतंकवादी हमले में उसकी भूमिका के बारे में भारत की ओर से लगाए गए आरोपों के प्रति अपना विरोध जताया. पाकिस्तान के जरिए भारतीय उप उच्चायुक्त को तलब करने का यह कदम ऐसे समय में उठाया गया जबकि भारत ने नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त सोहेल महमूद को तलब किया और सीआरपीएफ के जवानों के बलिदान को लेकर कड़ा डिमार्शे जारी किया.
विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि पाकिस्तान को जैश ए मोहम्मद के खिलाफ तत्काल और सत्यापित कार्रवाई करनी चाहिए और उसके क्षेत्र से संचालित आतंकवाद से जुड़े किसी भी समूह या व्यक्तियों को तत्काल रोकना चाहिए. हालांकि, पाकिस्तान विदेश कार्यालय ने कोई बयान जारी नहीं किया है, लेकिन सूत्रों ने बताया कि विदेश कार्यालय ने भारतीय उप उच्चायुक्त को तलब किया और पुलवामा हमले पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत के जरिए लगाए गए आरोपों को आधारहीन कह कर खारिज कर दिया.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/335941-arun-jaitley.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-02-16 16:33:082019-02-16 16:33:10पाकिस्तान से भारत को निर्यात होने वाले सभी सामानों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी तत्काल प्रभाव से 200 % तक बढ़ा दी गई है.
कुछ नाम अपने से पहले किसी ना किसी उपाधि से सँवारे जाते हैं, महात्मा गांधी, गुरुदेव रबीन्द्र नाथ, उसी प्रकार जब हम वीर बालक की बात करते हैं या उच्चारते हैं तो एक ही नाम मस्तिष्क में आता है “वीर बालक हकीकत राय”.। हकीकत राय कए नाम के आगे वीर बालक ना लगाना एक सामाजिक, धार्मिक अनुबंध है। इस बालक के बलिदान ई कथा ना केवल पंजाब की पुण्य भूमि पर गाया जाता है अपितु सम्पूर्ण उत्तरपथ में इस वीर बालक को पूजा जाता है। बसंत पंचमी और वीर बालक हकीकत राय एक दूसरे के पूरक हैं।
वीर बालक हकीकत राय का जन्म 1728 में सियालकोट में लाला बागमल पुरी के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम कोरा था। लाला बागमल सियालकोट के तब के प्रसिद्ध सम्पन्न हिंदु व्यापारी थे। वीर हकीकत राय उनकी एकमात्र सन्तान थी। उस समय देश में बाल विवाह प्रथा प्रचलित थी, क्योकि हिन्दुओ को भय रहता था कि कहीं मुसलमान उनकी बेटियो को उठा कर न ले जाये। जैसे आज भी पाकिस्तान और बांग्लादेश से समाचार आते रहते है। इसी कारण से वीर हकीकत राय का विवाह बटाला के निवासी कृषण सिंह की बेटी लक्ष्मी देवी से बारह वर्ष की आयु में कर दिया गया था।
उस समय देश में मुसलमानो का राज था।जिन्होंने देश के सभी राजनितिक और प्रशासिनक कार्यो के लिये फ़ारसी भाषा लागु कर रखी थे।देश में सभी काम फ़ारसी में होते थे। इसी से यह कहावत भी बन गई कि ,“हाथ कंगन को आरसी क्या, और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या”।
इसी कारण से बागमल पुरी ने अपने पुत्र को फ़ारसी सिखने के लिये मोलवी के पास उसके मदरसे में पढ़ने के लिये भेजा। कहते है और जो बाद में सिद्ध भी हो गया कि वो पढ़ाई में अपने अन्य सहपाठियों से अधिक तेज था, जिसके चलते मुसलमान बालक हकीकत राय से ईर्ष्या करने लगे।
एक बार हकीकत राय का अपने मुसलमान सहपाठियों के साथ झगड़ा हो गया। उन्होंने माता दुर्गा के प्रति अपशब्द कहे, जिसका हकीकत ने विरोध करते हुए कहा,”क्या यह आप को अच्छा लगेगा यदि यही शब्द मै आपकी बीबी फातिमा (मोहम्द की पुत्री) के सम्बन्ध में कहुँ? इसलिये आप को भी अन्य के प्रति ऐसे शब्द नही कहने चाहिये।” इस पर मुस्लिम बच्चों ने शोर मचा दिया की इसने बीबी फातिमा को गालिया निकाल कर इस्लाम और मोहम्मद का अपमान किया है। साथ ही उन्होंने हकीकत को मारना पीटना शुरू कर दिया। मदरसे के मौलवी ने भी मुस्लिम बच्चों का ही पक्ष लिया। शीघ्र ही यह बात सारे स्यालकोट में फैल गई। लोगों ने हकीकत को पकड़ कर मारते-पीटते स्थानीय हाकिम आदिल बेग के समक्ष पेश किया। वो समझ गया की यह बच्चों का झगड़ा है, मगर मुस्लिम लोग उसे मृत्यु-दण्ड की मांग करने लगे। हकीकत राए के माता पिता ने भी दया की याचना की। तब आदिल बेग ने कहा,”मै मजबूर हूँ।परन्तु यदि हकीकत इस्लाम कबूल कर ले तो उसकी जान बख्श दी जायेगी।” किन्तु वो 14 वर्ष का बालक हकीकत राय ने धर्म परिवर्तन से इंकार कर दिया। अब तो काजी, मौलवी और सारे मुसलमान उसे मारने को तैयार हो गए। ऐसे में बागमल के मित्रो ने कहा कि स्याकोट का वातावरण बहुत बिगड़ा हुआ है, यहाँ हकीकत के बचने की कोई आशा नही है। ऐसे में तुम्हे पंजाब के नवाब ज़करिया खान के पास लाहौर में फरियाद करनी चाहिये। बागमल ने रिश्वत देकर अपने बेटे का मुकदमा लाहौर भेजने की फरियाद की जो मंजूर कर ली गई।
सयालकोट से मुगल घुड़सवार हकीकत को लेकर लाहौर के लिये रवाना हो गये। हकीकत राय को यह सारी यात्रा पैदल चल कर पूरी करनी थी। उसके साथ बागमल अपनी पत्नी कोरा और अन्य मित्रो के संग पैदल चल पड़ा। उन्होने हकीकत की पत्नी को बटाला उसके पिता के पास भिजवा दिया। कहते है कि लक्ष्मी से यह सारी बाते गुप्त रखी गई थी। परन्तु मार्ग में उसकी डोली और बन्दी बने हकीकत का मेल हो गया। जिससे लक्ष्मी को सारे घटनाक्रम का पता चला।फिर। भी उसे समझा-बुझा कर बटाला भेज दिया गया।
दूसरी तरफ स्यालकोट के मुसलमान भी स्थानीय मौलवियो और काजियों को लेकर हकीकत को सजा दिलाने हेतु दल बना कर पीछे पीछे चल पड़े। सारे रास्ते वो हकीकत राय को डराते धमकाते, तरह तरह के लालच देते और गालिया निकलते चलते रहे। अगर किसी हिन्दू ने उसे सवारी या घोड़े पर बिठाना चाहा भी तो साथ चल रहे सैनिको ने मना कर दिया। मार्ग में जहाँ से भी हकीकत राय गुजरा, लोग साथ होते गये।
आखिर दो दिनों की यात्रा के बाद हकीकत राय को बन्दी बनाकर लानेवाले सेनिक लाहौर पहुंचे।अगले दिन उसे पंजाब के तत्कालिक सूबेदार ज़करिया खान के समक्ष पेश किया गया। यहाँ भी हकीकत के स्यालकोट से आये मुस्लिम सहपाठियों, मुल्लाओं और काजियों ने हकीकत राय को मौत की सज़ा देने की मांग की। उन्हें लाहौर के मुस्लिम उलेमा का भी समर्थन मिल गया। नवाब ज़करिया खान समझ तो गया की यह बच्चों का झगड़ा है, मगर मुस्लिम उलेमा हकीकत की मृतयु या मुसलमान बनने से कम पर तैयार न थे। वास्तव में यह इस्लाम फेलाने का एक ढंग था। सिक्खों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव और नोवै गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी को भी इस्लाम कबूलने अथवा शहीदी देने की शर्त रखी गयी थी।
परन्तु यहाँ भी हकीकत राय ने अपना धर्म छोड़ने से मना कर दिया।उसने पूछा,”क्या यदि मै मुसलमान बन जाऊ तो मुझे मौत नही आएगी? क्या मुसलमानो को मौत नही आती?” तो उलिमायो ने कहा,”मौत तो सभी को आती है।” तब हकीकत राय ने कहा,”तो फिर मै अपना धर्म क्यों छोड़ू ,जो सभी को ईश्वर की सन्तान मानता है और क्यों इस्लाम कबुलूँ जो मेरे मुसलमान सहपाठियों के मेरी माता भगवती को कहे अपशब्दों को सही ठहराता है, मगर मेरे न कहने पर भी उन्ही शब्दों के लिये मुझसे जीवित रहने का भी अधिकार छिन लेता है। जो दीन दूसरे धर्म के लोगो को गालिया निकलना, उन्हें लूटना, उन्हें मारना और उन्हें पग पग पर अपमानित करना अल्ला का हुक्म मानता हो,मै ऐसे धर्म को दूर से ही सलाम करता हूं।”
इस प्रकार सारा दिन लाहौर दरबार में शास्त्रार्थ होता रहा,मगर हकीकत राय इस्लाम कबूलने को तैयार ना हुआ। जैसे जैसे हकीकत की विद्वता, साहस और बुद्धिमता प्रगट होती रही, वैसे वैसे मुसलमानो में उसे दीन मनाने का उतसाह भी बढ़ता जा रहा था। परन्तु कोई स्वार्थ,कोई लालच और न ही कोई भय उस 14 वर्ष के बालक हकीकत को डिगाने में सफल रहा।
आखिरकार हकीकत राय के माता पिता ने एक रात का समय माँगा, जिससे वो हकीकत राय को समझा सके। उन्हें समय दे दिया गया।रात को हकीकत राय के माता पिता उसे जेल में मिलने गए। उन्होंने भी हकीकत राय को मुसलमान बन जाने के लिये तरह तरह से समझाया। माँ ने अपने बाल नोचे, रोइ, दूध का वास्ता दिया, मगर हकीकत ने कहा,”माँ! यह तुम क्या कर रही हो।तुम्हारी ही दी शिक्षा ने तो मुझे ये सब सहन करने की शक्ति दी है। मै कैसे तेरी दी शिक्षाओं का अपमान करूँ। आप ही ने सिखाया था कि धर्म से बढ़ के इस संसार में कुछ भी नही है। आत्मा अमर है।”
अगले दिन वीर बालक हकीकत राय को दोबारा लाहौर के सूबेदार के समक्ष पेश किया गया। सभी को विश्वास था कि हकीकत आज अवश्य इस्लाम कबूल कर लेगा। उससे आखरी बार पूछा गया कि क्या वो मुसलमान बनने को तैयार है।परन्तु हकीकत ने तुरन्त इससे इंकार कर दिया। अब मुस्लिम उलेमा हकीकत के लिये सजाये मौत मांगने लगे। ज़करिया खान ने इस पर कहा,” मै इसे मृत्यु दण्ड कैसे दे सकता हु। यह राष्ट्रद्रोही नही है और ना ही इसने हकुमत का कोई कानून तोड़ा है?” तब लाहौर के काजियों ने कहा कि यह इस्लाम का मुजरिम है। इसे आप हमे सौंप दे। हम इसे इस्लामिक कानून(शरिया) के मुताबिक सजा देगें। दरबार में मौजूद दरबारियों ने भी काजी की हाँ में हाँ मिला दी। अत: नवाब ने हकीकत राय को काजियों को सौंप दिया कि उनका निर्णय ही आगे मान्य होगा।
अब लाहौर के उलेमाओं न मुस्लिम शरिया के मुताबिक हकीकत की सजा तय करने के लिये बैठक की। इस्लाम के मुताबिक कोई भी व्यक्ति इस्लाम, उसके पैगम्बर और कुरान की सर्वोच्चता को चुनोती नही दे सकता। और यदि कोई ऐसा करता है तो वो ‘शैतान’ है। शैतान के लिये इस्लाम में एक ही सजा है कि उसे पत्थर मार मार कर मार दिया जाये। आज भी जो मुसलमान हज पर जाते है,उनका हज तब तक पूरा नही माना जाता जब तक कि वो वहाँ शैतान के प्रतीकों को पत्थर नही मारते। कई मुस्लिम देशो में आज भी यह प्रथा प्रचलित है।लाहौर के मुस्लिम उलिमियो ने हकीकत राय के लिये भी इसी सजा का फतवा दे डाला।
1849 में गणेशदास रचित पुस्तक,‘चार-बागे पंजाब’ के मुताबिक इसकेलिय लाहौर में बकायदा मुनादी करवाई गई कि अगले दिन हकीकत नाम के शैतान को (संग-सार) अर्थात पत्थरो से मारा जायेगा और जो जो मुसलमान इस मौके पर सबाब(पुण्य) कमाना चाहे आ जाये।
अगले दिन बसन्त पंचमी का दिन था जो तब भी और आज भी लाहौर में भी भरी धूमधाम से मनाया जाता है। वीर हकीकत राय को लाहौर की कोतवाली से निकाल कर उसी के सामने गड्ढा खोद कर कमर तक उसमे गाड़ दिया गया। लाहौर के मुसलमान शैतान को पत्थर मारने का पूण्य कमाने हेतु उसे चारो तरफ से घेर कर खड़े हो गए। हकीकत राय से अंतिम बार मुसलमान बनने के बारे में पूछा गया। हकीकत ने अपना निर्णय दोहरा दिया कि मुझे मरना कबूल है पर इस्लाम नही।इस ने लाहौर के काजियों ने हकीकत राय को संग-सार करने का आदेश सुना दिया। आदेश मिलते ही उस 14 वर्ष के बालक पर हर तरफ से पत्थरो की बारिश होने लगी। हजारो लोग “अल्लाहू-अकबर, अल्लाहू -अकबर” चिल्लाते हुये उस बालक पर पत्थर बरसा रहे थे, जबकि हकीकत ‘राम-राम’ का जाप कर रहा था। शीघ्र ही उसका सारा शरीर पत्थरो की मार से लहूलुहान हो गया और वो बेहोश हो गया। अब पास खड़े जल्लाद को उस बालक पर दया आ गयी की कब तक यह बालक यूँ ही पत्थर खाता रहेगा। इससे यही उचित है की मैं ही इसे मार दूँ। इतना सोच कर उसने अपनी तलवार से हकीकत राय का सिर काट दिया। रक्त की धरायेँ बह निकली और वीर हकीकत राय 1742 में बसन्त पंचमी के दिन अपने धर्म पर बलिदान हो गया।
दोपहर बाद हिन्दुओ को हकीकत राय के शव के वैदिक रीती से संस्कार की अनुमति मिल गई।हकीकत राय के धड़ को गड्ढे से निकाला गया। उसके शव को गंगाजल से नहलाया गया। उसकी शव यात्रा में सारे लाहौर के हिन्दू आ जुटे। सारे रास्ते उस के शव पर फूलों की वर्षा होती रही।इतिहास की पुस्तको में दर्ज है कि लाहौर में ऐसा कोई फूल नही बचा था जो हिन्दुओ ने खरीद कर उस धर्म-वीर के शव पर न चढ़ाया हो। कहते है कि किसी माली की टोकरी में एक ही फूलो का हार बचा था जो वो स्वयं चढ़ाना चाहता था, मगर भीढ़ में से एक औरत अपने कान का गहना नोच कर उसकी टोकरी में डाल के हार झपट कर ले गई। 1 पाई में बिकने वाला वो हार उस दिन 15 रुपये में बिका। यह उस आभूषण का मूल्य था। हकीकत राय का अंतिम संस्कार रावी नदी के तट पर कर दिया गया।
जब हकीकत के शव का लाहौर में संस्कार हो रहा था,ठीक उसी समय। बटाला में उसकी 12 वर्ष की पत्नी लक्ष्मी देवी अपने मायके बटाला (अमृतसर से 45 किलोमीटर दूर) में थी। हकीकत राय के बलिदान के पश्चात उसने अपने पति की याद में कुँआ खुदवाया और अपना समस्त जीवन इसी कुएं पर लोगों को जल पिलाते हुये गुजार दिया। बटाला में लक्ष्मी देवी की समाधि और कुँआ आज भी मौजूद है। यहाँ हर वर्ष बसन्त पंचमी को मेला लगता है और दोनों के बलिदान को नमन किया जाता है। लाहौर में हकीकत राय की दो समाधिया बनाई गई। पहली जहाँ उन्हें शहीद किया गया और दूसरी जहाँ उनका संस्कार किया गया। महाराजा रणजीत सिंह के समय से ही हकीकत राय की समाधियों पर बसन्त पंचमी पर मेले लगते रहे जो 1947 के विभाजन तक मनाया जाता रहा।1947 में हकीकत राय की मुख्य समाधि नष्ट कर दी गई। रावी नदी के तट पर जहाँ हकीकत राय का संस्कार हुआ था,वहाँ लाहौर निवासी कालूराम ने रणजीत सिंह के समय में पुनुरुद्धार करवाया था, इससे वो कालूराम के मन्दिर से ही जाने जाना लगा। इसी से वो बच गया और आज भी लाहौर में वो समाधि मौजूद है
हकीकत राय के गृहनगर स्यालकोट में उसके घर में भी उसकी याद में समाधि बनाई गई, वो भी 1947 में नष्ट कर दी गई।
इस धर्म वीर के माता पिता अपने पुत्र की अस्थिया लेकर हरिद्वार गए, मगर फिर कभी लौट के नही आये।
वीर हकीकत राय के बारे में पंजाब में वीर गाथाये लिखी और गायी जाती रही। सर्वप्रथम अगरे ने 1772 में हकीकत की गाथा काव्य शैली में लिखी। इसके अतिरिक्त सोहन लाल सूरी, गणेशदास वढेरा, गोकुलचन्द नारंग, स्वामी श्रदां नंद, गण्डा सिंह और अन्य सिख इतिहासकारो ने भी हकीकत राय पर लिखा है।
हकीकत राय के बलिदान का पभाव
हकीकत राय का बलिदान से पंजाब में एक नए युग का सूत्रपात हुया। इस बलिदान से हिंदुयों और सिखों में रोष फैल गया। अहमदशाह अब्दाली के काल मेंसिखों ने सियालकोट पर आक्रमण कर इसके8 इट से ईंट बजा दी। उन्होंने सारे स्यालकोट को जला कर राख कर डाला। 1748 में जम्मू के राजा रंजीतदेव ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।परन्तु इसके बाद भी यह शहर न बस सका।1849 में अंग्रेजी राज्य स्थापित होने पर ही स्यालकोट पुन: बसना आरम्भ हुया। पुराने समय की स्यालकोट में केवल हकीकत राय की समाधि ही शेष थी। शेष सारा नगर दोबारा बसाया गया।
वीर हकीकत राय ने भले ही लंबी आयु न भोगी, छोटी आयु में ही उसका बलिदान हो गया, परन्तु उसका बलिदानी रक्त आज तक भी प्रति वर्ष बसन्त के पवित्र पर्व पर हिदू जाति में अमृत्व की भावना का संचार कर रहा है और युगों युगों तक करता रहेगा। बसन्तपंचमि के शुभ अवसर पर इस धर्म वीर अमर बलिदानी वीर हकीकत राय और उनकी पत्नी श्री लक्ष्मी देवी को उनके बलिदान दिवस पर शत शत नमन करते है। हमारा सभी का यह परम कर्तव्य है कि हम बालक हकीकत के जीवन चरित्र को अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचाए, जिससे हम अभय होकर आगे बढ़ें। जीवन भले ही छोटा हो, परन्तु हकीकत के जीवन सा यशस्वी हो।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/02/Veer-Haquikat-Rai.jpg360640Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-02-12 02:39:382022-02-05 04:18:53बसंत पंचमी को याद आए वीर बालक हकीकत राय
सूरत: लोकसभा चुनाव को अब लगभग ढाई महीने का समय बचा है लेकिन पूरे देश में चुनाव का बुखार शुरू हो चुका है. अभी से ही नेता या तो सोशल मीडिया या किसी और तरीके से अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए हैं. बीजेपी ‘इस बार, 400 पार’ का नारा दे रही है. बीजेपी के प्रशंसक अपने ढंग से पार्टी का प्रचार कर रहे हैं.
सूरत के एक एम्ब्रॉयडरी कारखाने के व्यापारी ने मोदी सरकार को फिर जिताने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है. व्यापारी ने अपनी इनवॉइस बिल की बुक में मोदी की तस्वीर के साथ ‘नमो अगेन’ कैंपेन शुरू किया है. लोगों में भी इस कैंपेन को लेकर एक अलग ही उत्साह नजर आ रहा है. इस इनवॉइस को देखने वाला हर आदमी व्यापारी की तारीफ किए बिना नहीं रह पा रहा है.
सूरत के कापोद्रा इलाके में रहने वाले भरत भाई रंगोलिया एम्ब्रॉइडरी का कारखाना चलाते हैं. भरत भाई के कारखाने में पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से जॉब वर्क काम के लिए कारखाने में माल आता है. भरत भाई ने इस बात को ध्यान में रखते हुए अपनी इनवॉइस बुक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोटो प्रिंट के साथ ‘नमो अगेन’ कैंपेन शुरू किया है.
GST में काफी बदलाव के बाद व्यापार काफी सरल और अनुकूल हो गया है. अब व्यापार -व्यवसाय करना पहले से काफी आसान हो गया है. व्यापार के रास्ते सुगम हुए है और इसलिए ‘एक बार फिर मोदी सरकार’ के सत्ता में लाने के लिए कैंपेन कर रहे हैं. भरत भाई के इनवॉइस बिल दिल्ली, चेन्नई, तमिलनाडु, मुंबई सहित कई शहरों में जाते हैं. सभी व्यापारी इस पहल की सराहना कर रहे हैं.
यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी के प्रशंसकों ने मोदी सरकार को जिताने के लिए अनोखे ढंग से प्रचार न किया हो. इसी बीच, सूरत में ‘नमो साड़ी’ का एक वीडियो वायरल हुआ है. नमो इनवॉइस, नमो अगेन के टीशर्ट और नमो टॉप्स के बाद अब सूरत में ‘नमो साड़ी’ भी लोगो के आकर्षण केंद्र बन चुकी है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/02/Bharat-bhai.jpg7371225Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-02-11 15:19:012019-02-11 15:19:04सूरत के एक एम्ब्रॉयडरी कारखाने के व्यापारी ने मोदी सरकार को फिर जिताने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है
आज राष्ट्रीय सिख संगत का एक प्रतिनिधि मंडल महामहिम राज्यपाल श्री ओमप्रकाश कोहली जी एवं माननीय मुख्यमंत्राी श्री विजय रुपाणी जी से श्री अविनाश जायसवाल-राष्ट्रीय महामंत्राी संगठन के नेतृत्व में मिला। प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों में राष्ट्रीय महासचिव डा. अवतार सिंह शास्त्राी, प्रदेश अध्यक्ष स. बलजीत सिंह संधू, प्रदेश संगठन मंत्राी श्री जगजीवन शर्मा, प्रदेश महामंत्री श्री पवन सिंध्ी ने निम्न महत्वपूर्ण विषयों पर मुख्यमंत्राी आवास में बैठक कर विचार-विमर्श किया।
सौभाग्य से वर्ष 2019 हिन्दुस्थान देश, धर्म, समाज रक्षक जगद् गुरु बाबा श्री नानकदेव महाराज जी का 550वां प्रकाश पर्व वर्ष है। नागपुर (महाराष्ट्र) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूजनीय सरसंघचालक डा. मोहन राव जी भागवत ने विजय दशमी के अवसर पर अपने संबोधन में तथा एक वक्तव्य में कहा कि न केवल संघ परिवार को बल्कि देश विदेश में भारतीयों को उनके पवित्रा सन्देशए शिक्षाओं को घर-घर पहुंचाने का आह्वान किया।
भारत के यशस्वी प्रधनमंत्राी श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी ने इस पर्व को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए एक (एनआईसी) नेशनल इंपलीमेंटेशन कमेटी, भारत सरकार एवं अन्य राज्य सरकारों ने भी समिति बनाकर अपने प्रदेशों में यह कार्यक्रम करने के आदेश दिए है।
जगदगुरु बाबा श्री गुरु नानकदेव जी महाराज ने यूं तो पूरे विश्व को प्यार एवं वात्सल्य से निहाल किया हैए परन्तु गुजरात से उनका कुछ अतिरिक्त लगाव था। महाराज जी ने अपने जीवन का कुछ अमूल्य समय गुजरात की पावन भूमि द्वारिका बेट एवं लखपत में व्यतीत किया। इसीलिए स्वभाविक ही गुजरात के जनमानस की ओर से श्री गुरु नानकदेव जी महाराज का प्रकाश पर्व प्रेरक, प्रभावी और सारे देश के लिए ही नहीं, अपितू संपूर्ण विश्व के लिए प्रकाशस्तंभ का कार्य करेए ऐसी माननीय मुख्यमंत्राी जी ने इच्छा व्यक्त कर राष्ट्रीय सिख संगत के प्रतिनिध्यिों को आश्वासन दिया कि आगामी 23-24 फरवरी 2019 जीएमडीसी ग्राउंड, अहमदाबाद में एक भव्य राज्यस्तरीय (प्रदेश स्तरीय) कार्यक्रम गुजरात की पूण्य भूमि पर आयोजित किया जा रहा है। जिसमें पंथ प्रसिद्ध रागी एवं ढाडी जत्थे तथा पांचों तख्तों के सिंह साहिबानों को भी निमंत्राण दिया जाएगा तथा देश-विदेश की संगतों से भी आह्वान किया जाएगा कि इस पवित्र कार्य में भाग लेकर गुरुघर की खुशियां प्राप्त कर गुजरात सरकार को कृतार्थ करें।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/02/Vijay-Ji.jpg9191517Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-02-09 02:21:382019-02-09 02:23:05जगद् गुरु बाबा श्री गुरु नानकदेव जी महाराज का 550वां प्रकाश पर्व वर्ष हर्षोल्लास से मनाएंगे: विजय रुपाणी, मुख्यमंत्री गुजरात
केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है.
नई दिल्ली : अयोध्या विवाद पर केंद्र की मोदी सरकार ने मंगलवार को बड़ा कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. इसमें मोदी सरकार ने कहा है कि 67 एकड़ जमीन सरकार ने अधिग्रहण की थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. सरकार का कहना है कि जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एकड़ का है, बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट से इसकी इजाजत मांगी है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह अपने 31 मार्च, 2003 के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश में संशोधन करे या उसे वापस ले. केंद्र सरकार ने SC में अर्जी दाखिल कर अयोध्या की विवादित जमीन को मूल मालिकों को वापस देने की अनुमति देने की अनुमति मांगी है. इसमें 67 एकड़ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें लगभग 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण किया था.
केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है. केंद्र ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्होंने सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक जताया था, बाकि जमीन पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया है.
अर्जी में कहा गया है कि इस्माइल फारुकी नाम के केस के फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सरकार सिविल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने पर विचार कर सकती है. केंद्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है और इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है, गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य को केंद्र द्वारा अतिरिक्त भूमि को अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त जमीन वापस करने के लिए बेहतर होगा.
बता दें कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 29 जनवरी को सुनवाई होनी थी, लेकिन इसके लिए बनाई गई जजों की बेंच में शामिल जस्टिस बोबड़े के मौजूद न होने पर अब ये सुनवाई आगे के लिए टल गई है. अभी इस मामले में सुनवाई के लिए तारीख भी तय नहीं हुई है. इससे पहले पीठ के गठन और जस्टिस यूयू ललित के हटने के कारण भी सुनवाई में देरी हुई थी.
इससे पहले 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नई बेंच का गठन कर दिया था. इस बैंच में CJI रंजन गोगोई के अलावा एसए बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामिल हैं. पिछली बैंच में किसी मुस्लिम जस्टिस के न होने से कई पक्षों ने सवाल भी उठाए थे.
इससे पहले बनी पांच जजों की पीठ में जस्टिस यूयू ललित शामिल थे, लेकिन उन पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने सवाल उठाए थे. इसके बाद वह उस पीठ से अलग हो गए थे. इसके बाद चीफ जस्टिस ने नई पीठ गे गठन का फैसला किया था. वहीं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे साधु-संतों की ओर से प्रयागराज में चल रहे कुंभ में परम धर्म संसद का आगाज सोमवार को हो चुका है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में 30 जनवरी तक प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में परम धर्म संसद का आयोजन होगा.
वहीं साधु और संतों ने इस संबंध में बड़ा ऐलान भी किया हुआ है. उनका कहना है कि राम मंदिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये बनाया जाएगा. प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में इस समय साधु और संतों का जमावड़ा लगा हुआ है. यहां विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्म संसद से पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती परम धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं. यह परम धर्म संसद कुंभ में 28, 29 और 30 जनवरी तक चलेगी. इसमें राम मंदिर निर्माण के लिए चर्चा और रणनीति बनेगी. बता दें कि विश्व हिंदू परिषद 31 जनवरी को राम मंदिर मुद्दे पर धर्म संसद का आयोजन कर रही है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/343039-342672-kumbh-pti.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-29 17:26:192019-01-29 17:26:22अविवादित ज़मीन ‘न्यास’को लौटाई जाये ताकि निर्माण आरंभ हो: केंद्र सरकार
‘फ्लू का तो उपचार है लेकिन कांग्रेस नेता की मानसिक बीमारी का उपचार मुश्किल है.’ गोयल इस प्रकार के बयान कांग्रेस नेतृत्व के निराशा को भी दिखाते हैं: राठौड़ यह विचारों को दीवालियापन है और नैतिक मूल्यों की कमी है: जी वी एल नरसिम्हा राव
नई दिल्ली: बीजेपी ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के ‘स्वाइन फ्लू’ पर कांग्रेस नेता बी के हरिप्रसाद के तंज पर गंभीर रुख अपनाते हुए कहा कि फ्लू का इलाज है लेकिन विपक्षी दल के नेता के मानसिक स्वास्थ्य का इलाज मुश्किल है.
बीजेपी ने कांग्रेस से हरिप्रसाद को पार्टी से बर्खास्त करने और घृणित बयान के लिए सरेआम माफी मांगने की मांग की है. बीजेपी ने दावा किया कि इन बयानबाजियों पर विपक्षी दल की चुप्पी यह दर्शाती है कि इस प्रकार के सभी ‘जहरीले’ विचारों को नेतृत्व से मंजूरी मिली हुई है.
दरअसल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बी के हरिप्रसाद ने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के खराब स्वास्थ्य पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि उन्हें स्वाइन फ्लू इसलिए हुआ क्योंकि उनकी पार्टी ने कर्नाटक में कांग्रेस और जेडी(एस) सरकार को कथिततौर पर अस्थिर करने की कोशिश की है.
बीजेपी नेताओं ने व्यक्त की तीखी प्रतिक्रिया केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा,‘कांग्रेस सांसद बी के हरिप्रसाद ने बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ जिस प्रकार की घृणित और अभद्र टिप्पणी की है वह कांग्रेस के स्तर को दिखाती है. फ्लू का तो उपचार है लेकिन कांग्रेस नेता की मानसिक बीमारी का उपचार मुश्किल है.’ गोयल के अलावा राज्यवर्धन सिंह राठौड़, मुख्तार अब्बास नकवी तथा पार्टी के अन्य नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
नकवी ने कहा, ‘यह पूरी तरह से घृणित और भद्दा बयान है. इनमें इतनी शालीनता भी नहीं है कि किसी की बीमारी पर किस प्रकार से प्रतिक्रिया देते हैं.’ वहीं राठौड़ ने इस बयान पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वह यह देख का जरा भी अचंभित नहीं हुए कि कांग्रेस के नेताओं ने शालीनता और मर्यादा को एकदम त्याग दिया है. इस प्रकार के बयान कांग्रेस नेतृत्व के निराशा को भी दिखाते हैं.
वहीं बीजेपी प्रवक्ता जी वी एल नरसिम्हा राव ने कहा कि हरिप्रसाद का बयान कांग्रेस के नैतिक पतन को दिखाता है. यह विचारों को दीवालियापन है और नैतिक मूल्यों की कमी है.
पार्टी के अन्य प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने हरिप्रसाद के बयान को शर्मनाक बताया और कहा कि यही कांग्रेस का वास्तिव चेहरा है. उन्होंने कहा कि शाह ने खुद ही अपनी बीमारी लोगों को बताई है ऐसे में कांग्रेस नेता के बयान से जनता को दुख पहुंचेगा.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/as-e1523272124202-768x499.jpg499768Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 17:21:302019-01-17 17:21:32घृणा भरी बयानबाजियों पर कांग्रेस की चुप्पी यह दर्शाती है कि इस प्रकार के सभी ‘जहरीले’ विचारों को नेतृत्व से मंजूरी मिली हुई है: बीजेपी
महाधरना के बाद WJI ने देश की मीडियाकर्मियों की 28
मांगों का ज्ञापन PMO को सौंपा
WJI ने अपने सदस्यों को 3 लाख का दुर्घटना बीमा देने की घोषणा की
नई
दिल्ली / वर्किंग जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया ने 16 जनवरी अपने स्थापना दिवस के अवसर
पर मीडिया महा धरना का आयोजन किया।
पिछले
कुछ समय से पत्रकारों की मांगो को लेकर वर्किंग जर्नलिस्ट आफ इंडिया सम्बद्ध
भारतीय मजदूर संघ काफी सक्रिय रहा है।
देश
में पत्रकारों का शीर्ष संगठन है। यह
संगठन पत्रकारों के कल्याणार्थ समय समय पर रचनात्मक और प्ररेणादायक
कार्यक्रम और आंदोलन चलाता रहा है।इसको देश के विभिन्न राज्यों से आये पत्रकार
संगठन समर्थन दे रहे है।
वर्किंग
जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी और राष्ट्रीय महासचिव
नरेंद्र भंडारी ने
आज
के महाधरना में पत्रकार एकजुटता का दृश्य देखने को मिला।देश के 12 राज्यों के पत्रकार और कई पत्रकार
संगठन धरना में आकर सरकारों के प्रति आक्रोश व्यक्ति किया।पत्रकारों का खाना था
केंद्र सरकार तो नया मीडिया आयोग बना रही है और न ही ऑनलाइन मीडिया को मंदिर का दे
रही है जबकि पूरे देश में मीडिया कर्मी देश को मजबूत बनाने का काम करते हैं। महा
धरना के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप चौधरी के नेतृत्व में WJI
प्रतिनिधिमंडल
pmo पहुंचा और वहां पर पत्रकारों की 28 मांगो का ज्ञापन सौंपा गया।
आज WJI ने
अपने स्थापना दिवस पर अपने सदस्य पत्रकारों के हित में 3 लाख दुर्घटना बीमा की घोषणा की।
माहौल
उस समय बहुत ही उत्साहवर्धक हो गया जब भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री
पवन कुमार, संगठन महामंत्री अनीश मिश्रा और संगठन मंत्री ब्रजेश कुमार धरना स्थल
पहुंचे। उन्होंने पत्रकारों की मांगों का समर्थन दिया।
वर्किंग
जर्नलिस्ट आफ India WJI प्रवक्ता उदय मन्ना ने बताया कि पत्रकारों में
जो आक्रोश भरा वो कोई भी दिशा ले सकता है। मीडियाकर्मी RJS स्टार सुरेंद्र आनंद के गीत ने माहौल
में जोश भर दिया।
वर्किंग जर्नलिस्टस ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों
द्वारा तैयार मांग पत्र जिसमे सरकार से मांग हैः-
वर्तमान
समय की मांगों पर ध्यान में रखते हुए वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में संशोधन किया
जाये।
कार्यकारी
पत्रकार अधिनियम में इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब
मीडिया, ई-मीडिया और अन्य सभी मीड़िया को
अपने
अधिकार क्षेत्र में लाया जाये।
भारत
की प्रेस काउंसिल के स्थान पर मीडिया काउंसिल बनाई जाये। जिससे पीसीआई के दायरे और
क्षेत्राधिकार
को बढ़ाया जाये।
भारत
के सभी पत्रकारों को भारत सरकार के साथ पंजीकृत किया जाये और वास्तविक मीड़िया
पहचान
पत्र जारी किया जायें।
जिन
अखबारों ने वेज कार्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया उन पर सरकारी विज्ञापन देने
पर
कोई
अनुशासत्मक प्रतिबंध हो।
केन्द्र
सरकार लघु व मध्यम समाचार पत्रों को ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन जारी करने के अपने
नियमों
को जल्द से जल्द परिवर्तित करे।
देश
में पत्रकार सुरक्षा कानून तैयार किया जाये।
तहसील
और जिला स्तर के संवाददाताओं एवं मीडिया व्यक्तियों के लिए 24 घंटे की हेल्पलाईन
सेवायें
उपलब्ध कराई जायें।
भारत
में सभी मीड़िया संस्थानों को वेज बोर्ड की सिफारिशों को सख्ती से लागू करवाने के
नियम बनाये जाये।
ड्यूटी
के दौरान अथवा किसी मिशन पर काम करते हुये पत्रकार एवं मीडियाकर्मी की मृत्यु होने
पर उसके परिजन को 15 लाख का मुआवजा और परिजनों को नौकरी दी
जाये।
सभी
पत्रकारों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन की सुविधा ओर सेवानिवृति की उम्र 64 वर्ष की जाये।
सभी
पत्रकारों को राज्य एवं केन्द्र सरकारों की तरफ से चिकित्सा सुविधा और बीमा सुविधा
दी जाये।
पत्रकारिता
नौकरियों में अनुबंध प्रणाली का उन्मूलन किया जाये।
कैमरामैन
समेत सभी पत्रकारों को सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने के लिए कोई पांबदी नहीं
होनी चाहिए।
बेहतर
पारस्परिक सहयोग के लिए जिला स्तर पुलिस-पत्रकार समितियां गठित की जाये।
शुरूआती चरणों में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा
पत्रकारों से संबंधित सभी मामलों की समीक्षा की जाये
और
पत्रकारों से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई
जाये।
मीड़िया
व्यक्तियों को देश भर में उनकी संस्थान के पहचान पत्र के आधार पर सड़क टोल पर
भुगतान
करने
से मुक्त किया जाये।
पत्रकारों
को बस और रेल किराये में कुछ रियायत प्रदान की जाये।
केन्द्रों
और राज्य सरकारें PIB-DIP
पत्रकारों की मान्यता प्राप्त करने की प्रक्रिया को एकरूपता व सरल बनायें।
समाचार
पत्रों से GST खत्म की जाए।
विदेशी
मीडिया के लिए भारतीय मीडिया संस्थानों में विनिवेश की अनुमति ना दी जाये।
आनलाईन
मीडिया को मान्यता दी जाये उन्हें सरकारी विज्ञापन दिये जायें व उनका सरकारी
एक्रीडेशन किया जाये।
केन्द्र
सरकार अविलम्ब नये मीडिया आयोग का गठन करें।
संविधान
में मीडिया को चौथे स्तम्भ के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया जाये।
महिला
पत्रकारों के लिए होस्टल बनाये जायें।
पत्रकारों
की रिहायश के लिए सस्ती दरों पर भूखंड आबंटित किये जायें। अलग-अलग राज्यों से
पत्रकार और WJI पदाधिकारी भी उपस्थित रहे और संबोधन
दिया।
हरियाणा
भूपिंदर
सिंह
धर्मेंद्र
यादव
अमित
चौधरी
राजिंदर
सिंह
मोहन
सिंह
राज
कुमार भाटिया
उत्तर
खंड
सुनील
गुप्ता महा सचिव उत्तरखंड व कार्यकारिणी सदस्य
लखनऊ
पवन
श्रीवास्तव अध्यक्ष उत्तर प्रदेश व कार्यकारिणी
विशेष
Mr अशोक मालिक – राष्ट्रीय अध्यक्ष
नेशनल
यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट
मनोहर
सिंह अध्यक्ष
दिल्ली
पत्रकार संघ
संजय
राठी अध्यक्ष
हरियाणा
यूनियन ऑफ जॉर्नलिस्ट
चंडीगढ़
से नेशनल मीडिया कन्फेडरेशन के उपाध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा,
राष्ट्रीय
मीडिया फाउंडेशन मध्यप्रदेश के अध्यक्ष आशीष पाण्डेय,
दिल्ली
एनसीआर की टीम आरजेएस मीडिया
इसके
अलावा WJI की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के
उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय,संजय सक्सेना
कोषाध्यक्ष
अंजलि भाटिया,
सचिव
अर्जुन जैन,विपिन चौहान आदि ने महाधरना को सफल
बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आशा
है पत्रकारों के संगठनों की एकजुटता का प्रयास सरकार का ध्यान आकर्षित करेगा।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/f4aef9d8-0beb-4bd0-8144-100e574a25bf.jpg5201040Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-17 06:02:402019-01-17 06:02:43WJI ने दिल्ली में अपना मांग पत्र PMO को सौंपा
पाकिस्तान में करोड़ों रुपये मूल्य की अपनी संपत्ति छोड़कर पंजाब पहुंचे 50 वर्षीय सरन सिंह ने कहा कि पाकिस्तान में उनके साथ दोयम दर्ज का व्यवहार किया जाता था. नरेन्द्र मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन विधेयक से सुरवीर सिंह और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के हजारों शरणार्थियों के मन में आस की उम्मीद फिर से जगी है
नई दिल्ली: अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से परेशान होकर भागे सुरवीर सिंह को पहचान और आजीविका के दो पाटों के बीच पिसना पड़ रहा है. अपनी मातृभूमि भारत की नागरिकता के लिए आवश्यकताओं को पूरा करने और एक स्थिर नौकरी पाने के लिए उनकी दुविधा 27 साल बाद भी दूर होने का नाम नहीं ले रही है. चार सदस्यों के अपने परिवार के साथ अमृतसर में रहने वाले 33 वर्षीय सिंह ने कहा कि उसे अपनी मातृभूमि में रहने के लिए हर दूसरे महीने सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते है. वर्ष 1992 में उसके माता-पिता के भारत आने का फैसला लेने से पहले सुरवीर सिंह का परिवार अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में रहता था.
सोवियत संघ की वापसी और मुजाहिदीन के आगमन के बाद हिंदुओं और सिखों के अफगानिस्तान छोड़ने की एक लहर सी चली थी. परिवार का एकमात्र कमाने वाला होने के नाते सुरवीर सिंह कई तरह की नौकरियां करके अपनी आजीविका कमाते हैं. हालांकि उनका परिवार उसी समय भारत आया था और उनके परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के पास अलग-अलग तारीखों में जारी किये गये वीजा और शरणार्थी प्रमाण पत्र हैं.
सिंह ने कहा कि क्योंकि उनकी नागरिकता का आवेदन नौकरशाही के चक्रव्यूह में फंस गया है और उन्हें अपने कागजातों को बनाये रखने के लिए नियमित रूप से सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने की आवश्यकता पड़ती है. उन्होंने कई राजनीतिक नेताओं से भारतीय नागरिकता हासिल करने की गुहार लगाई है लेकिन उन्हें आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला है. सुरवीर सिंह ने कहा,‘‘हर 12 महीनों में कागजातों की अवधि समाप्त होने के बाद, मुझे हर दो या तीन महीनों में इनके नवीनीकरण के लिए अपने परिवार के एक सदस्य के साथ नई दिल्ली जाना पड़ता है. ’’
उन्होंने कहा कि नौकरी तलाशना पहले से ही बहुत मुश्किल है क्योंकि कोई भी शरणार्थियों को रोजगार नहीं देना चाहता है. यहां तक कि अगर किसी को नौकरी मिलती है तो अक्सर उन्हें कम भुगतान किया जाता है और हर दूसरे महीने नई दिल्ली जाने की आवश्यकता की वजह से नियोक्ता नाराज हो जाते है और वे ऐसे कर्मचारियों की तलाश करते है जिन्हें कम छुट्टी की जरूरत होती है. हालांकि नरेन्द्र मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन विधेयक से सुरवीर सिंह और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के हजारों शरणार्थियों के मन में आस की उम्मीद फिर से जगी है.
यह प्रस्तावित विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी. सुरवीर सिंह ने कहा,‘‘मैं सरकार से इस विधेयक को जल्द से जल्द पारित करने का आग्रह करता हूं. ’’ उनकी तरह ही सरन सिंह ने कहा कि वह एक गरिमापूर्ण जीवन चाहते है.
पाकिस्तान में करोड़ों रुपये मूल्य की अपनी संपत्ति छोड़कर 1999 में अपने परिवार के साथ पंजाब पहुंचे 50 वर्षीय सरन सिंह ने कहा कि पाकिस्तान में उनके साथ दोयम दर्ज का व्यवहार किया जाता था. वह पाकिस्तान की खैबर एजेंसी में रहते थे जहां आतंकवाद और धार्मिक उत्पीड़न जोरों पर था. उन्होंने कहा कि आतंकवादी प्राय: उन्हें बाध्य किया करते थे कि यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उनका परिवार इस्लाम कबूल कर ले.
इसलिए कई महिलाओं का अपहरण कर लिया गया और उन्हें जबरन इस्लाम कुबूलवाया गया. सरन ने कहा,‘‘कोई भी हमारी बेटियों और बेटों से शादी नहीं करना चाहता क्योंकि जब उन्हें पता चलता है कि हम पाकिस्तान से है तो वे हमे संदेह की नजर से देखते है. लोग कहते हैं कि आपके पास भारतीय नागरिकता नहीं है, अगर सरकार आपको निर्वासित करने का फैसला करती है तो क्या होगा? शादी का क्या होगा?’’
उन्होंने कहा,‘‘हम पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से बचकर अपनी मातृभूमि भारत पहुंचे लेकिन यहां हम लाल फीताशाही और नौकरशाही की बाधा में फंस गये. कभी-कभी अधिकारी हमें अपने पाकिस्तानी पासपोर्ट को नवीनीकृत करने के लिए कहते हैं जिसके लिए हमें पाकिस्तान जाने और जारी किए गए कागजात प्राप्त करने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालना पड़ता है. ’’
सरन ने कहा,‘‘जब हम पाकिस्तान में रह रहे थे तो स्थानीय लोगों का कहना था कि आप पाकिस्तानी नहीं हूं क्योंकि आप हिंदू और सिख हो और आपको अपने देश जाना चाहिए. भारत में रहने के दौरान लोग कहते हैं कि आप पाकिस्तान से हो. ’’ उन्होंने सरकार से उन्हें जल्द से जल्द नागरिकता दिये जाने का अनुरोध किया.
सरन ने कहा,‘‘हमें अपने दैनिक जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि किसी भी काम के लिए आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र की जरूरत होती है. ’’ उन्होंने दावा किया कि कागजातों के नहीं होने के कारण कई शरणार्थी अपने बच्चों को शिक्षित भी नहीं कर पाते है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/55891b417c034.jpg480800Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-13 18:34:572019-01-13 18:35:00नागरिकता संशोधन विधेयक से पाक हिंदुओं सिखों में बंधी सम्मानजनक जीवन की आस।
इतिहास ने कितने ही ऐसे नामों को संजोया जो हमें हमारे होने पर मान करवाते हैं। एक इतिहास है जो किताबों में लिखा गया और पाठशालाओं में हमने पढ़ा, और एक इतिहास वो जो लोगों के दिलों में रचा बसा, दादी नानी की कहानियों में, गावों से शहरों तक आये लोक गीतों में झूमता-डोलता है। कितने ही वीर सूरमा, कितने प्यार के परवाने, कितने भक्ति में डूबे दीवाने, कितने हंसी-ठट्ठा करते-कराते शेख़चिल्ली, कितने दानी धीर-वीर, सदियों से दिनों-दिन बदलते समाज के ढाँचे में लगे ईंट-पत्थर के समान उसकी सांस्कृतिक इमारत को बुलंद रखे हुए, बने हैं इन्हीं गीतों-कहानियों के ज़रिये हमारी आत्मा के प्रबल सम्बल। जिस समाज की कहानियाँ जितनी पुरानी हैं, उतनी ही गहरी है उसके शीलाचार, शिष्टाचार एवं सिद्धांतों की नींव। समय की आँधियाँ उस समाज के लोगों की प्रतीक्षित परीक्षाएं ही तो हैं। अपने बड़े-पुरखों की कहानियों में रचित जिजीविषा से प्रेरित वह समाज नयी कहानियाँ रचता है, परन्तु कभी समाप्त नहीं होता, बल्कि नया इतिहास बनाता है – पुरानी कहानियाँ-गीत संजोता है, और नए नए विचार गुनता है।
ऐसी ही भाग्यशाली शगुनों के ख़ुशी-भरे नाच-गानों में संजोयी एक खूबसूरत कहानी है, वीर सूरमा ‘दुल्ला भट्टी’ की जो लोहड़ी (मकर संक्रांति) के शुभ त्यौहार के दिन उत्तर भारत में घर-घर में न सिर्फ़ गायी जाती है, अपितु नाची भी जाती है। राय अब्दुल्लाह खान लोक-वाणी में ‘दुल्ला भट्टी’ नाम से प्रचलित हैं। हम में से कितनों की ज़बान पर यह नाम बिना इसकी सही जानकारी के लोहड़ी त्यौहार के प्रचलित लोक गीत में थिरकता है कि यह एक श्रद्धांजलि है एक ऐतिहासिक राजपूत वीर को जिसने सम्राट अक़बर के समय छापामार युद्ध किये, और आततायियों की सतायी कितनी ही स्त्रियों के जीवन पुनः बसाये।
पंजाब में फ़ैसलाबाद के पास के संदलबार इलाक़े में जन्मे दुल्ले की माँ का नाम लड्डी और पिता का नाम फ़रीद खान था, दादा थे संदल खान। ‘संदलबार’ (संदल की बार) का इलाका उन्ही संदल खान के नाम से पड़ा, रावी और चनाब नदियों के बीच का यह इलाक़ा अब पाकिस्तान में है और यहीं मिर्ज़ा-साहिबां की अमर प्रेमगाथा भी प्रसिद्ध हुई। दुल्ला के दादे-नाने यहीं संदलबार में पिंडी भट्टियाँ के राजपूत शासक थे। मुग़लों के शासन काल में पिंडी भट्टियां के राजपूत लड़ाकों नें विद्रोह करते हुए कर देना बंद कर दिया व मुगल सैनिकों से छापामार युद्धों की शुरुआत की। इस विद्रोह को डर से कुचलने के लिए पकड़े गए विद्रोहियों को मारकर उनकी मृत लाशों की चमड़ी उधड़वा, उनमें भूसा भर कर गावों के बाहर लटकाया गया, इन्हीं में दुल्ले के पिता और दादा भी थे। पंजाबी लोकगीतों ‘दुल्ले दी वार’ और ‘सद्दां’ में दुल्ले की यह गाथा मिलती है । इस शहादत के बारे में ‘सद्दां’ में ऐसे लिखा गया है –
दुल्ला, जिसका कि जन्म इस घटना के बाद हुआ, ओजस्वी अनख वाली राजपूत माँ का पुत्र था जिसके बारे में एक कहानी यह भी है कि अक़बर का पुत्र सलीम भी उसी समय के दौरान पैदा हुआ किन्तु वह एक कमज़ोर शिशु था, और अक़बर की आज्ञा से पिंडी भट्टियां की लड्डी को सलीम को दूध पिलाने की दाई रखा गया। क़रीब 12-13 वर्ष तक सलीम और दुल्ला इकट्ठे पले-बढ़े, एक ही दाई माँ की परवरिश में। लड्डी को जब उसकी इस सेवा से निवृत किया गया, और जब वह वापिस पिंडी भट्टियाँ आयी तो उसने दुल्ले को उसके पिता-दादा की शूरवीरता की कहानियाँ सुनाई, और उनके हश्र की भी। ज़ाहिर है कि उन दोनों के वापिस आने पर गाँव के बड़े-बूढ़ों की जुबां पर भी यही वीर-गाथाएं दिन-रात थिरकती रहती होंगी। दुल्ला ने अपने अंदर के दावानल को मुगलों की ताक़त के ख़िलाफ़ पूरे वेग से लगा दिया। दुल्ला ने फिर से अपने लोगों को इकट्ठा कर एक बार पुनः विद्रोह को जमाया, छापामार युद्ध किये, राजसी टोलों को लूट कर, लूट के धन को जनता में बांटा, संदलबार में लोगों ने फिर से ‘कर’ देना बंद कर दिया। कहानी है कि विद्रोह इस हद तक बढ़ा और फैला कि मुगलों को अपनी शहंशाही राजधानी दो दशकों तक लाहौर बनानी पड़ी।
यह राजपूत वीर सूरमा न सिर्फ़ राज-विद्रोह के लिए लोगों के मन में बसा, बल्कि इसने उस समय के समाज में हो रही स्त्रियों की दुर्दशा के ख़िलाफ़ ऐसे कदम उठाये जो कि उसको एक अनूठे समाज सुधारक की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं। पंजाब की सुन्दर हिन्दू लड़कियां जिन्हें ज़बरन उठा लिया जाता था और मध्यपूर्वी देशों में बेच दिया जाता या शाही हरम के लिए या मुग़ल ज़मींदारों के लिए, दुल्ले ने उनको न सिर्फ़ आततायियों से छुटकारा दिलवाया बल्कि उनके एक नयी रीति से विधिपूर्वक विवाह भी रचाये। सोचिये, हम बात कर रहे हैं सोहलवीं सदी की – जिन लड़कियों को छुड़वाया गया, उनके दामन दाग़दार, इज्ज़त रूठी हुई , आबरू के आँचल कमज़ोर, झीने और ज़ार ज़ार थे। ऐसे में अत्याचारियों से छुड़वा कर उनको उनके घर वापिस ले जाना कैसे सम्भव हुआ होगा? कौन-सा समाज ऐसी कुचली हुई दुखी आत्माओं के लिए भूखे भूतों का जंगल नहीं है? ये सभी माँएं, बहनें, बेटियां उन सभी रिश्तों को खो तब किस हश्र के हवाले थी? लेकिन दुल्ले ने उसी समाज में से ऐसे ऐसे सुहृदय पुरुष ढूँढ निकाले जिन्होंने इन स्त्रियों को सम्बल दिया, घर-परिवार व सम्मान दिया और विवाहसूत्र में उनके साथ बंध गये।
ये सभी बनी दुल्ले की बेटियां – किसी पंडित के न मिलने पर हिन्दू विवाह की रीति निभाने के लिए शायद ‘राइ अब्दुल्लाह खान’ उर्फ़ मुसलमान राजपूत दुल्ला भट्टी ने स्वयं ही अग्नि के आस पास फेरे दिलवा, आहुति डाल उनके विवाह करवाये, न जाने कितनी ऐसी बेटियों का कन्यादान दिया, उनका दहेज बनाया जो एक सेर शक्कर के साथ उनको दिया जाता और इन विवाहों की ऐसी रीति बना दी कि दुल्ले के करवाये इन्ही विवाहों की गाथा आज हम लोहड़ी के दिन ‘जोड़ियां जमाने’ के लिए गाते हैं, विवाहों में समन्वय और ख़ुशी के संचार के लिए अग्नि पूजा करके गाते और मनाते हैं। –
12000 सैनिकों की सेना से युद्ध के बावजूद जांबाज़ दुल्ला को पकड़ न पाने पर धोखे से उसे या ज़हर दे कर मार देने का उल्लेख है, या बातचीत का झांसा दे दरबार बुला कर गिरफ़्तार कर जनता के सामने कोतवाली में फांसी दिए जाने का। धरती के इस सच्चे सपूत के जनाज़े में सूफ़ी संत शाह हुसैन ने भाग लिया और अंतिम दफ़न का काम पूर्ण किया, दुल्ला भट्टी की क़ब्र मियानी साहिब कब्रिस्तान (लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान) में है। आज भी इस दरगाह पर फूल चढ़ते हैं।
उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार जो मकर संक्रांति की पूर्व संध्या का उत्सव है दुल्ले की याद की अमरता से जुड़ा है। अब जब हर साल लोहड़ी पर अग्नि में आशीर्वाद के लिए मूंगफली और फुल्ले डालें, उसके फेरे लें और “सुन्दर मुंदरिये” पर नाचते गाते बच्चों के थाल भरेंगे तो मन में इस अनूठे समाज सुधारक वीर सूरमा दुल्ला भट्टी को भी याद कर नमन करें और स्वयं भी अच्छे कर्म करने का संकल्प लें।
************************************************************************ लोकगाथाओं के सही सही काल का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है। समय की अनेकानेक परतों से गुज़रती यह गाथाएं कहीं कहीं कल्पनाशील अतिश्योक्तियों से पूर्ण भी होती हैं। मैं कोई शोधकर्ता नहीं, किन्तु जीवन और संस्कृति के प्रति जिज्ञासु ज़रूर हूँ। राय अब्दुल्लाह खान भट्टी की इस कथा के जालघर पर कोई २-४ वर्णन मिलते हैं। सन १९५६ में “दुल्ला भट्टी” नामक एक पंजाबी चलचित्र में भी यह कहानी दर्शायी गयी है। मेरा यह लेख इन्ही सूत्रों से प्रेरित है, हाँ, इसमें मामूली सी कल्पना की छौंक मेरी भी है, जो बस इस जोशभरी कहानी को जान लेने के बाद आयी एक स्वाभाविक उत्सुकता है जिसको सांझा करना सही समझती हूँ। कहीं उल्लेख है कई स्त्रियों के विवाह का, कहीं सिर्फ़ एक का, कहीं बताया है के ‘सुन्दर मुंदरिये’ गीत दुल्ले ने ही गाया। कहीं अक़बर की राजधानी दिल्ली से लाहौर ले जाने की बात है – जो कि लिखित इतिहास के अनुसार न कभी दिल्ली थी और न ही कभी लाहौर! तो ख़ैर, लेख लिखते समय मेरे लिए शायद यह एक बहुत ही बड़ी बात थी कि जिस गीत को मैं बचपन से गाती आ रही हूँ लोहड़ी पर वह उस वीर सुरमा की शौर्य गाथा है न कि कोई शादी का ‘दूल्हा’!! मेरा बाल-मन बस उछल उठा ‘दुल्ला भट्टी’ के कारनामों को पढ़ के और देख के, और अब आप से सांझा कर के। साभार: विभा चसवाल
लोहड़ी के लोक गीत
सुन्दर मुंदरिये,— हो तेरा कौन विचारा,— हो दुल्ला भट्टीवाला, —हो दुल्ले धी व्याही, —-हो सेर शक्कर पायी,— हो कुड़ी दा लाल पताका,—- हो कुड़ी दा सालू पाटा,—- हो सालू कौन समेटे,—- हो मामे चूरी कुट्टी, —-हो, जिमींदारां लुट्टी, —- हो ज़मींदार सुधाये, —-हो गिन गिन पोले लाए, — हो इक पोला घट गया! —-हो ज़मींदार वोहटी ले के नस गया—-हो इक पोला होर आया —-हो ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया—-हो सिपाही फेर के ले गया,—–हो सिपाही नूं मारी इट्ट —-हो भावें रो ते भावें पिट्ट। —-हो
साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी! साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे!!
‘पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी हाथी उत्ते जौं तेरे पुत्त पोते नौ! नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई टेर नी माँ टेर नी लाल चरखा फेर नी! बुड्ढी साह लैंदी है उत्तों रात पैंदी है अन्दर बट्टे ना खड्काओ सान्नू दूरों ना डराओ! चार क दाने खिल्लां दे पाथी लैके हिल्लांगे कोठे उत्ते मोर सान्नू पाथी देके तोर!
जहां से लोहड़ी मिल जाती थी वहाँ कंघा बी कंघा एह घर चंगा
और जहां से ना मिले
हुक्का बी हुक्का एह घर भुक्खा
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/15_59_126282610lohri-1-ll-1.jpg400600Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-13 06:01:242019-01-13 06:01:27लोहड़ी पर्व: राय अब्दुल्लाह खान जिसकी स्मृति में हम नाचते गाते हैं
नई दिल्ली :सवर्णों को आरक्षण देने के लिए सरकार ने लोकसभा की लड़ाई जीत ली है. लोकसभा में मंगलवार को संविधान संशोधन बिल पेश कर दिया है. इस मुद्दे पर बहस के बाद रात 9.55 बजे वोटिंग हुई. वोटिंग में 326 सांसदों ने हिस्सा लिया. इसमें संविधान संशोधन विधेयक के पक्ष में 323 वोट पड़े. 3 सांसदों ने इसका विरोध किया. बिल लोकसभा में पास हो गया. शाम 5 बजे से शुरू हुई बहस के बाद रात 9.55 बजे इस विधेयक पर वोटिंग हुई. अब सरकार की नजरें राज्यसभा पर होंगी. जहां इस पर बुधवार को चर्चा होगी.
इस विधेयक
पर शाम 5 बजे से
बहस शुरू हो गई. बहस शुरू करते हुए केंद्रीय मंत्री थावरचंद्र गहलोत ने कहा, निजी शिक्षण संस्थानों में भी
ये आरक्षण लागू होगा. इसके साथ ही उन्होंने इस पर सभी दलों का समर्थन मांगा. उन्होंने
कहा, जो आरक्षण
है, उसमें कोई
छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. इसके बाद कांग्रेस के नेता केवी थॉमस ने चर्चा में हिस्सा
लिया. उन्होंने कहा, हम इस बिल
के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन इससे पहले इस बिल को जेपीसी में भेजो. कांग्रेस के
सवालों का जवाब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिया. उन्होंने इसे जुमला
कहने वालों पर हमला बोलते हुए कहा, सवर्णों को आरक्षण देने के जुमले को सभी
दलों ने अपने अपने घोषणा पत्र में रखा. उन्होंने कहा, आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलना
चाहिए.
अरुण जेटली ने कहा, ये सही है कि इससे पहले जो भी कोशिशें हुईं वह सुप्रीम कोर्ट में नहीं ठहर पाईं. सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी की सीमा लगाई, ये सीमा 16 ए के संबंध में थी. कांग्रेस को जवाब देते हुए जेटली ने कहा, आपने आरोप लगाया कि ये बिल आप अभी क्यों लाए. तो आपको पटेलों के लिए आरक्षण गुजरात चुनाव से पहले क्यों याद नहीं आया. अरुण जेटली ने कांग्रेस को घोषणा पत्र के वादे को याद दिलाते हुए इस संशोधन का समर्थन करने की अपील की.
आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान ने इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए बीजेपी
सरकार पर हमला बोला. उन्होंने इस मुद्दे पर कहा सरकार सत्र के आखिरी दिन इस बिल
को लेकर आई है. इसलिए इनकी नीयत में खोट है. ये भारतीय जुमला पार्टी है. इनकी
नीयत इस बिल को लागू करने की नहीं है. सरकार इस आड़ में एससी एसटी का भी आरक्षण
खत्म करना चाहती है.
इस बिल पर
चर्चा करते हुए एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, मैं इस बिल का विरोध करता हूं. क्योंकि
ये बिल एक धोखा है. इस बिल के माध्यम से बाबा साहब आंबेडकर का अपमान किया गया है.
आप इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में पास नहीं करा सकते. ये वहां गिर जाएगा.
चर्चा में
हिस्सा लेते हुए एम थंबीदुरई ने कहा, गरीबों के लिए चलाई जा रहीं कई स्कीम
पहले से ही फेल हो चुकी हैं. आप जो ये बिल ला रहे हैं, वह सुप्रीम कोर्ट में फंस जाएगा.
टीएमसी के
सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा, सरकार इसी तरह महिलाओं के आरक्षण का बिल लेकर क्यों नहीं आती.
सरकार का ये बिल लोगों को धोखा देने के समान है.
बता दें कि
केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को सवर्ण जातियों के गरीबों के लिए शिक्षा और रोजगार
में 10 प्रतिशत का
आरक्षण देने का फैसला किया है. लेकिन इस फैसले को लागू करने के लिए सरकार को
संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और
अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण की 50 फीसदी सीमा के अतिरिक्त होगा, यानी ‘‘आर्थिक रूप से कमजोर’’ तबकों के लिए आरक्षण लागू हो जाने
पर यह आंकड़ा बढकर 60 फीसदी हो
जाएगा.
इस
प्रस्ताव पर अमल के लिए संविधान संशोधन विधेयक संसद से पारित कराने की जरूरत
पड़ेगी, क्योंकि
संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसके लिए संविधान के
अनुच्छेद 15 और
अनुच्छेद 16 में जरूरी
संशोधन करने होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी 50 फीसदी की सीमा…
विधेयक एक
बार पारित हो जाने पर संविधान में संशोधन हो जाएगा और फिर सामान्य वर्गों के
गरीबों को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने
इंदिरा साहनी मामले में अपने फैसले में आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय कर दी थी. सरकारी
सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित संविधान संशोधन से अतिरिक्त कोटा का रास्ता साफ हो
जाएगा. सरकार का कहना है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों को दिया
जाएगा जो अभी आरक्षण का कोई लाभ नहीं ले रहे.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/LS-Board.jpg387617Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-08 16:59:252019-01-08 17:00:24गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बिल लोक सभा में 323/326 से पास : देश में ख़ुशी का माहौल
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