मौका ख़ुशी का हो या क्षोभ का 100 रु का चंदा दो दिल्ली वालो


जित्तोगे तो पिटोगे अक हारोग्गे तो पिटोगे, दिल्लीवासियों कि हालत अब कुछ ऐसी ही प्रतीत होती है.

केजरीवाल कोर्ट में उपराज्यपाल के खिलाफ केस जीत गए अब ख़ुशी मानाने के लिए दिल्लीवासियों से 100 रु कि वसूली करनी है, यदि प्रति कमाऊ व्यक्ति कि जेब से 100 रु भी निकाले जाएँ तो कितने बनेंगे भाई, वैसे पूछ रहे हैं.


आम आदमी पार्टी (आप) ई-मेल के जरिए अपने समर्थकों से 100 रुपए डोनेट करने की अपील कर रही है. इस ई-मेल में दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) से चल रही खींचतान पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए पार्टी ने कहा है कि यह दिल्ली की जनता की जीत है.

‘हम जीत गए’, ‘दिल्ली की जनता जीत गई’, कुछ इन्हीं शब्दों से अपने ई-मेल की शुरुआत करते हुए पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खुशी जाहिर की है. पार्टी ने कहा है कि यह देश के संविधान और लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी जीत है.

चलिए इस इतने बड़े दिन का एक छोटे से डोनेशन की मदद से जश्न मनाएं. हम सभी इसके पात्र हैं. चलिए अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और बाकी के आप मंत्री, विधायकों और वोलेंटियर को उनके संघर्ष के लिए बधाई दें.

यह पहली बार नहीं है जब किसी बात के लिए पार्टी ने अपने समर्थकों से 100 रुपए के डोनेशन की मांग रखी है. इसके पूर्व भी जब बॉटनिकल गार्डन से कालकाजी मंदिर जाने वाली मंजेटा लाइन मेट्रो का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करवाया गया था और अरविंद केजरीवाल को बुलाया तक नहीं गया था, तब भी पार्टी ने अपने समर्थकों के सामने 100 रुपए के डोनेशन की मांग रखी थी.

वहीं एक बार केजरीवाल ने एक पत्र जारी कर स्वच्छ राजनीति के लिए अपने समर्थकों से 100 रुपए के चंदे की मांग की थी. बता दें क‌ि उनकी इस अपील के कुछ ही घंटों में आम आदमी पार्टी पर धन की बारिश हो गई थी.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों के आए फैसले के बाद से अरविंद केजरीवाल उत्साहित हैं. फैसले में कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह से काम करना चाहिए. उपराज्यपाल यह याद रखें कि दिल्ली की सरकार जनता की चुनी हुई सरकार है.

साथ ही यह भी कहा कि विधानसभा के फैसलों के लिए उपराज्यपाल की सहमति जरूरी नहीं है और उपराज्यपाल को राष्ट्रहित का ध्यान रखना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भूमिका दिल्ली के बॉस की तरह हो गई है.

उधर जनता बेहाल हो रही है, अब यह शायद सुप्रीम कोर्ट को भी कोसेंगे.

 

शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका पर दिल्ली की एक अदालत आज फैसला सुना सकती है

नई दिल्ली।

सुनंदा पुष्कर के मौत के मामले में कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका पर दिल्ली की एक अदालत आज फैसला सुना सकती है। थरूर अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की आत्महत्या के मामले में आरोपी हैं। कोर्ट में विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका का विरोध किया।

बुधवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरविंद कुमार ने कहा कि वह गुरुवार को अपना फैसला सुनाएंगे। दिल्ली पुलिस ने थरूर की याचिका का विरोध किया है। अदालत ने पांच जून को पुलिस द्वारा दाखिल आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था। 62 वर्षीय सांसद को सात जुलाई को अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल के समक्ष पेश होने को कहा गया है।
दिल्ली पुलिस ने पत्नी से क्रूरता तथा आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर शशि थरूर को एकमात्र संदिग्ध आरोपी बताया था। कोर्ट ने मामले में फाइल की गई आरोप-पत्र पर भी संज्ञान लिया है। तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर को मामले की अगली सुनवाई के लिए 7 जुलाई को अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी समर विशाल के समक्ष पेश होने को कहा गया है।
पुलिस ने 3000 हजार पन्नों की दाखिल की गई चार्जशीट में शशि थरूर पर अपनी पत्नी की आत्महत्या को लेकर क्रूरता करने का आरोप लगाया था। हालांकि शशि थरूर ने इन आरोपों को बेबुनियाद, आधारहीन और दुर्भावनापूर्ण बताया था और कहा था कि यह बदले की भावना से चलाये जा रहे अभियान का नतीजा है। दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 और 498ए के अंतर्गत 14 मई को आरोप पत्र दाखिल किए थे।

आआपा के बाबूशाही को निर्देश “काम में तेज़ी लाओ”….


आनन फानन : दिल्ली सरकार ने बुधवार को नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नई प्रणाली शुरू की जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद  मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कैबिनेट की बैठक बुलाई और अफसरों को राशन की घरों पर आपूर्ति और सीसीटीवी कैमरे लगाने जैसी परियोजनाओं को पूरा करने के  लिए की रफ्तार तेज करने का निर्देश दिया.

दिल्ली सरकार ने बुधवार को नौकरशाहों के तबादलों और तैनातियों के लिए भी एक नई प्रणाली शुरू की जिसके लिए मंजूरी देने का अधिकार मुख्यमंत्री केजरीवाल को दिया गया है.

उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने करीब आठ मिनट तक चली मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार काम करने का निर्देश दिया गया है.

सिसोदिया ने कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष पर कोर्ट के फैसले के बाद आप सरकार को अपने हर निर्णय को उपराज्यपाल अनिल बैजल से मंजूर कराने की जरूरत नहीं है.

अभी तक आईएएस और दानिक्स (दिल्ली , अंडमान निकोबार द्वीपसमूह सिविल सेवा) अधिकारियों के तबादलों और तैनातियों के लिए मंजूरी देने का अधिकार उपराज्यपाल के पास रहा है.

हालांकि दिल्ली सरकार में कार्यरत वरिष्ठ नौकरशाहों ने दावा किया कि ‘ सेवा संबंधी मामले ’ अब भी उपराज्यपाल के कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं क्योंकि दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है.

एक शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट की यथोचित नियमित पीठ सेवा संबंधी मामलों और अन्य मुद्दों पर अंतिम निर्णय करेगी.

एक अन्य अधिकारी ने दावा किया कि शीर्ष अदालत ने गृह मंत्रालय की मई , 2015 की अधिसूचना को रद्द नहीं किया है जिसके मुताबिक सेवा संबंधी मामले उपराज्यपाल के अधीन आते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता लेकिन यह भी कहा कि उपराज्यपाल को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार नहीं है.

केजरीवाल ने बैठक के बाद ट्वीट किया , ‘ दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों को निर्देश दिया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कामकाज करें. अब राशन की घरों पर आपूर्ति और सीसीटीवी लगाने के प्रस्तावों पर भी तेजी लाने का निर्देश दिया है.’

अराजकता का दंश झेलती आआपा क्या अब ओर अराजक होगी


एक आम आदमी के रूप में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सड़कों पर अपनी राजनीति की शुरुआत में बिजली कंपनियों की मनमानी के खिलाफ पावर की लड़ाई लड़ी तो अब आम आदमी पार्टी के लिये एलजी के खिलाफ पावर की लड़ाई जीती


पिछले महीने अचानक ही दिल्ली समेत देश की राजनीति में एकदम नए ढंग के धरने ने धमाल मचा दिया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल के दफ्तर पर हल्ला बोल देते हैं. वो अपनी कैबिनेट के 4 मंत्रियों के साथ सोफे पर विराजमान हो जाते हैं. धरना दे रहे दो मंत्री दो कदम आगे चलते हुए भूख हड़ताल पर बैठ जाते हैं. केजरीवाल एंड टीम की मांग होती है कि दिल्ली सरकार के कामों का बायकॉट करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एलजी कड़ी कार्रवाई करें तो साथ ही राशन की डोर स्टेप योजना की फाइल को आगे बढ़ाएं. केजरीवाल की ‘स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स’ पर बारीक नजर रखने वाले विरोधी ‘धरना मैन रिटर्न्स’ और ‘नौटंकी’ जैसे शब्दबाणों से प्रहार शुरू कर देते हैं. केजरीवाल की मांगों को राजनीतिक स्टंट और ड्रामा बताया जाता है. यहां तक कि दिल्ली हाईकोर्ट भी एलजी ऑफिस में केजरीवाल के धरने को असंवैधानिक करार देते हुए पूछ लेती है कि केजरीवाल को धरने की अनुमति किससे मिली?

केजरीवाल का धरना सियासी स्टंट के चश्मे से देखा जाता है. बीजेपी-कांग्रेस के दो तरफा हमले होते हैं और उन सबके बीच उपराज्यपाल दिल्ली के सीएम की मांगों को अनसुना कर देते हैं. केजरीवाल आरोप लगाते हैं कि उपराज्यपाल अनिल बैजल इन 9 दिनों में उनसे बात करने के लिये 9 मिनट का समय भी नहीं निकाल पाए. लेकिन इस टीस के साथ धरना खत्म करने वाले केजरीवाल ने भी शायद ये कभी नहीं सोचा होगा कि उनकी एक अपील कहीं पर गौर से सुनी जाने वाली है और दिल्ली के एलजी के साथ प्रशासनिक अधिकारों के लेकर चल रही खींचतान पर उनकी याचिका की गंभीरता से विवेचना होने वाली है.

दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उपराज्यपाल अनिल बैजल को  दिल्ली का प्रशासनिक हेड बताया था. जिसके बाद दिल्ली सरकार ने जब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उसे पावर का बोनस भी मिल गया. सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से केजरीवाल को एक तरह से हस्तिनापुर के रण के लिये कर्ण का कुंडल-कवच मिल गया.

अब केजरीवाल को सत्ता चलाने के लिए तीन वरदान मिल चुके हैं. उनकी सलाह मानने के लिये उपराज्यपाल बाध्य होंगे. अभी तक अरविंद केजरीवाल को अपने हर फैसले के लिये उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी पड़ती थी लेकिन अब केजरीवाल अपने फैसले के मालिक-मुख्तार खुद होंगे. केजरीवाल की सबसे बड़ी शिकायत ये रहती आई है कि दिल्ली के अधिकारी और कर्मचारी उनके आदेशों को तामील नहीं करते हैं.

लेकिन अब ट्रांसफर-पोस्टिंग की पावर हाथ में आने के बाद केजरीवाल अपने महत्वपूर्ण विभागों में मर्जी के अधिकारी-कर्मचारी बिठा सकेंगे. अब केजरीवाल एंटी करप्शन ब्यूरो में अपने पसंद के अधिकारी को मुखिया बना सकेंगे. ट्रांसफर-पोस्टिंग के जरिये ही वो आईएएस अफसर और कर्मचारियों पर भी नकेल कस सकेंगे.

भले ही अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने में किसी आम आदमी की तमाम उम्र बीत जाती हो लेकिन आम आदमी पार्टी को अपने अधिकार हासिल करने में साढ़े तीन साल का ही वक्त लगा. कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी के ‘अच्छे दिन’ आ गए हैं.

केजरीवाल अब विरोधियों से कह सकते हैं कि उनके पास सत्ता है, पावर है, पैसा है और पॉलिटिक्स के नए-नए स्टंट हैं.  केजरीवाल कह सकते हैं, ‘पहले तुम बोलते थे और मैं सुनता था. अब मैं बोलूंगा और तुम सुनोगे. केजरीवाल अब अधिकारियों से ये भी कह सकते हैं कि ‘फाइल भेजी है….साइन इट’.

बहरहाल एक आम आदमी के रूप में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सड़कों पर अपनी राजनीति की शुरुआत में बिजली कंपनियों की मनमानी के खिलाफ पॉवर की लड़ाई लड़ी तो अब आम आदमी पार्टी के लिये एलजी के खिलाफ पावर की लड़ाई जीती. लेकिन इन दोनों ही लड़ाइयों के केंद्र में केवल सत्ता ही थी. अब बड़ा सवाल ये है कि केजरीवाल तय समय में अपने वादों को पूरा करने की चुनौती से किस तरह पार पा सकेंगे? क्योंकि पहले तो ये कह कर दिल्ली की जनता को समझा लिया गया, ‘हम काम करते रहे और ये परेशान करते रहे’.

लेकिन अब जब दिल्ली सरकार को तमाम प्रशासनिक शक्तियां मिल चुकी हैं तो फिर कोई भी आरोप, बहाना या धरना काम नहीं आएगा क्योंकि एक हवा चली  है कि दिल्ली सरकार की दिल्लीवासियों के लिये बड़ी जीत हुई है. ऐसे में अब केजरीवाल एंड टीम भविष्य में किसी मुद्दे पर केंद्र सरकार या फिर उपराज्यपाल को इतनी आसानी से कटघरे में खड़ा नहीं कर सकेगी.

अब दिल्ली सरकार पर जनता की उम्मीदों की वजह से लटकती तलवार है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब बिना पावर के आम आदमी पार्टी पर इतने अराजक होने के आरोप लगते रहे हों तो फिर पावर आने के बाद शक्तियों के गैरवाजिब इस्तेमाल न होने की गारंटी कौन लेगा?

मैं कोई शहंशाह या दंभी शासक नहीं जो लोगों की गर्मजोशी से अप्रभावित रहे। लोगों के बीच रहने से मुझे ताकत मिलती है।’ मोदी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर खुलकर बात की है। मोदी ने कहा है कि वह कोई शहंशाह या दंभी शासक नहीं हैं, जो लोगों की गर्मजोशी से अप्रभावित रहे। उन्होंने कहा कि लोगों के साथ संवाद करने से उन्हें ताकत मिलती है। पीएम रोड शो के दौरान अपनी निजी सुरक्षा के बारे में शुभचिंतकों के मन में उठते आशंकाओं से जुड़े एक सवाल का जवाब दे रहे थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वह सडक़ों पर काफी संख्या में लोगों को उनका अभिनंदन और स्वागत करने के लिए खड़े देखते हैं तब वह अपनी कार में बैठे नहीं रह सकते। मोदी ने कहा, ‘मैं कोई शहंशाह या दंभी शासक नहीं जो लोगों की गर्मजोशी से अप्रभावित रहे। लोगों के बीच रहने से मुझे ताकत मिलती है।’

प्रधानमंत्री रोडशो के दौरान उनकी निजी सुरक्षा के बारे में उनके शुभचिंतकों के मन में उत्पन्न आशंकाओं से जुड़े एक प्रश्न का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा, ‘जब भी मैं यात्रा कर रहा होता हूं, मैं समाज के सभी आयु वर्ग और क्षेत्र के लोगों को सडक़ों पर मेरा अभिनंदन और स्वागत करते देखता हूं। तब मैं अपनी कार में बैठा नहीं रह सकता, उनके स्नेह को नजरंदाज नहीं कर सकता। और इसलिए मैं बाहर आ जाता हूं और लोगों से जितना बात कर सकता हूं, करता हूं।’

उल्लेखनीय है कि गृह मंत्रालय ने हाल में प्रधानमंत्री की सुरक्षा के संबंध में नये दिशानिर्देश तैयार किए थे। गृह मंत्रालय ने अपने खुफिया इनपुट के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नक्सलियों से जान का खतरा बताया था। गृह मंत्रालय ने कहा है कि पीएम के रोड शो को नक्सली निशाना बना सकते हैं। इस इनपुट के बाद गृह मंत्रालय ने राज्यों के साथ पीएम की सुरक्षा करने वाली एसपीजी को भी एडवायजरी जारी की है। जिसमें कहा गया है कि पीएम के दौरों में सुरक्षा इंतजाम और मजबूत किया जाए। रोड शो या कार्यक्रमों में किसी को पीएम के पास ना आने दिया जाए।

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री का सुरक्षा घेरा इतना मजबूत होता है कि उनके आस-पास परिंदा भी पर नहीं मार सकता। पीएम मोदी दुनिया के सबसे आधुनिक और कड़े सुरक्षा घेरे में रहते हैं। जिनके आसपास सुरक्षा का एक अभेद किला हर वक्त उनकी हिफाजत करता है। आज हम इसी बारे में बताते है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा कैसी होती है।

पीएम मोदी के सुरक्षा का पहला लेयर एसपीजी का होता है। देश या देश से बाहर पीएम मोदी जहां भी जाते हैं। वहां एसपीजी का सुरक्षा घेरा उनके साथ मौजूद होता है। ये एसपीजी जवान फुर्तीले और आधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस होते हैं। आंखों पर यह टैक्टिकल लेंस यानी काला चश्मा पहनते है, जिससे वह किसे देख रहे है। यह मालूम नहीं चल पता है। इनके कानों में कम्यूनिकेशन के लिए इयर प्लग लगा होता है। इनके पास अत्याधुनिक पी-90 ऑटोमेटेड गन होता है। सूट के भीतर एसपीजी जवान बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हुए होते है। फिसलन से खुद को बचाने के लिए कॉम्बैट शूज का प्रयोग करते हैं।

पीएम के सुरक्षा घेरे में दूसरा लेयर एसपीजी के स्पेशल कमांडो देते हैं। आपस में बातचीत के लिए ये कमांडोज अत्याधुनिक कम्यूनिकेशन डिवाइस से लैस होते हैं। पीएम की हर मूवमेंट और संदिग्धों को लेकर कंट्रोल रूम से ये पूरे वक्त जुड़े रहते हैं। इनके जूते भी खास किस्म के होते हैं, जो किसी भी सतह पर नहीं फिसलते है। पीएम के साथ मौजूद एसपीजी के जवान अपने हाथ में काला ब्रीफकेस लेकर चलते हैं। दरअसल ये काला ब्रीफकेस पोर्टेबल बुलेटप्रूफ शील्ड होती है, जो पूरी तरह खुल जाती है। प्रधानमंत्री पर किसी तरह के हमले की नौबत आने पर कमांडोज तुरंत इसे खोलकर उन्हें कवर कर लेंगे। ये एक बार में इतना बड़ा हो जाता है कि प्रधानमंत्री को पूरी तरह से ढक सकता है।

पीएम मोदी का देश में जहां कहीं भी जाने का कार्यक्रम होता है। एसपीजी के कमांडो का एक दस्ता पहले ही वहां पहुंच जाता है। ये दस्ता पहले कार्यक्रम स्थल को अपने कब्जे में लेकर पूरी जांच पड़ताल करता है। जब पूरी तसल्ली हो जाती है। तभी इस कार्यक्रम के लिए सिक्योरिटी क्लियरेंस दी जाती है। पीएम का हर कार्यक्रम एसपीजी क्लियरेंस के बाद तय होता है।

सुरक्षा वजहों से एसपीजी के कमांडो को मीडिया से बात करने पर पूरी तरह से पाबंदी होती है। इसके अलावा इन्हें किसी भी तरह की कोई किताब, लेटर या दूसरा डॉक्यूमेंट ना तो पब्लिश करने की इजाजत होती है ना ही पब्लिश करने में मदद करने की। पीएम मोदी जहां कहीं भी जाते हैं। वहां हर एक स्टेप पर कुछ अदृश्य कमांडोज भी तैनात होते हैं। जो कार्यक्रम स्थल के आसपास ऊंची इमारतों पर तैनात होते हैं।